मोबाइल फोन की घंटी बजते ही दीपेंद्र की नजर स्क्रीन पर चली गई. अंकिता उर्फ लाडो का नाम देख कर उस के चेहरे पर चमक सी आ गई. झट से फोन रिसीव कर के बोला, ‘‘हैलो अंकिता कैसी हो, सब ठीक तो है?’’
‘‘कुछ भी ठीक नहीं है दीपेंद्र. मैं बहुत परेशान हूं.’’ अंकिता भर्राई आवाज में बोली.
‘‘क्या बात है, साफसाफ बताओ?’’ दीपेंद्र ने परेशान हो कर पूछा.
‘‘विशाल ने मेरा जीना दूभर कर दिया है. अभीअभी धमकी दे कर गया है कि अगर मैं तुम से मिली या बात की तो वह दोनों के हाथपैर तोड़ देगा. मेरा जी बहुत घबरा रहा है. तुम जल्दी से आ जाओ, घंटे वाले मंदिर पर मैं तुम्हारा इंतजार कर रही हूं.’’ अंकिता ने रोआंसी हो कर कहा तो दीपेंद्र ने धमकाने वाले अंदाज में कहा, ‘‘उस हरामजादे की इतनी हिम्मत कि वह तुम्हें धमकी दे. तुम बिलकुल मत घबराना. मैं अभी तुम्हारे पास पहुंच रहा हूं.’’
यह कह कर दीपेंद्र ने फोन काट दिया. इस के बाद वह तैयार होने लगा तो छोटी बहन ज्योति ने पूछा, ‘‘भैया इस समय कहां जा रहे हो?’’
‘‘कहीं नहीं, बस अभी आता हूं.’’ दीपेंद्र ने कहा.
‘‘भैया जल्दी आ जाना. अकेले घर में डर लगता है.’’ ज्योति ने कहा.
‘‘तुम अंदर से दरवाजा बंद रखना. मैं एक दोस्त से मिलने जा रहा हूं. किसी भी सूरत में डेढ़-2 घंटे में आ जाऊंगा.’’ दीपेंद्र ने कहा और घर से निकल गया. यह 20 जुलाई की दोपहर की बात है.
ज्योति घर में अकेली थी, इसलिए वह बेसब्री से भाई के वापस आने का इंतजार कर रही थी. दीपेंद्र ने डेढ़-2 घंटे में आने के लिए कहा था. उतना समय तो उस ने आसानी से बिता दिया. लेकिन जब समय ज्यादा होने लगा तो उस ने दीपेंद्र को फोन किया. पता चला, उस का फोन बंद है. उस की मां आशा छोटे भाई अतुल के साथ बड़ी बहन अनीता की ससुराल गई थीं.