किसी दिन दीपेंद्र और अंकिता को कहीं एकांत में प्रेमी-प्रेमिका की तरह सट कर बैठे अंकिता के मंगेतर विशाल ने देख लिया. उस समय तो उस ने कुछ नहीं कहा, लेकिन शाम को वह अंकिता के घर पहुंच गया. वहां भी उस ने अंकिता से कुछ कहने के बजाय अपने होने वाले ससुर राजा से कहा. ‘‘बाबूजी, आप ने अंकिता की शादी तय तो मेरे साथ की है, लेकिन यह गुलछर्रे किसी और के साथ उड़ा रही है. आप इसे रोकिए, वरना मैं यह रिश्ता तोड़ दूंगा.’’
‘‘ऐसा मत करना बेटा, मैं अंकिता को समझाऊंगा.’’ राजा ने विशाल को समझाने की कोशिश की.
विशाल के जाने के बाद राजा ने अंकिता से पूछा, ‘‘बेटी, विशाल जो कह रहा था, क्या वह सच था? कहीं वह तुम्हें बदनाम कर के यह रिश्ता तो नहीं तोड़ना चाहता? बेटी मुझे तुम पर पूरा भरोसा है, इस के बावजूद सच्चाई जानना चाहता हूं.’’
‘‘पापा, विशाल जो कह रहा था, वह सच है. उस ने मुझे दीपेंद्र के साथ देख लिया था. दीपेंद्र और मैं एकदूसरे से प्यार करते हैं, इसलिए अकसर मिलते रहते हैं.’’ अंकिता ने सच्चाई बता दी.
अंकिता ने जो बताया, उसे सुन कर राजा के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उन्होंने कहा, ‘‘बेटी, तुम्हारी शादी विशाल से तय हो चुकी है. इसलिए तुम्हारा दीपेंद्र से एकांत में मिलना ठीक नहीं है. ठीक होते ही मैं तुम्हारी शादी उस के साथ कर दूंगा, इसलिए अब तुम दीपेंद्र से मिलनाजुलना बंद कर दो.’’
अंकिता की मां मीना ने भी प्यार से समझाया, ‘‘बेटी, तू दीपेंद्र से मिलनाजुलना बंद कर दे, इसी में हम सब की भलाई है. दीपेंद्र और हमारी जाति अलगअलग है, इसलिए उस के घर वाले कभी तेरी शादी उस के साथ नहीं करेंगे. तेरी सगाई हो चुकी है. 2 नावों पर पैर रखना ठीक नहीं है.’’