रागिनी क्यों नहीं जाना चाहती थी ससुराल
रागिनी ने अच्छी तरह शोभाराम को देखा सुहागरात को. वह सांवले रंग और इकहरे शरीर का था. उस ने कपड़े उतारे तो हीरो जैसी बौडी की आरजू करने वाली रागिनी के सारे अरमानों पर पानी फिर गया.
उस रात शोभाराम रागिनी का तन तो जीतने में सफल रहा, किंतु मन नहीं जीत सका. शोभाराम उस की कल्पना से एकदम उलट था. इसलिए सफल यौनाचार भी उसे आनंद से नहीं भर सका.
मायके लौटने पर रागिनी का गुस्सा मां पर फूटा. वह मायके गई तो अपनी मम्मी पर बरस पड़ी, ''मम्मी, तुम लोगों ने अपनी बड़ी बेटियों के लिए सुंदर, सजीले वर खोजे और मुझे कालेकलूटे, मरियल और नीरस आदमी के पल्ले बांध दिया. तुम ने क्या देख कर उसे मेरे लिए पसंद किया था.’‘
मम्मी ने उसे समझाया, ''बेटी, लड़के की शक्लसूरत नहीं, उस के गुण देखे जाते हैं. शोभाराम में शराब, जुआ, सट्टा जैसा कोई ऐब नहीं है. वह मेहनती और कमाऊ है. कुछ दिन साथ रहोगी तो वही सांवला, मरियल और सीधा सा पति संसार का सब से सुंदर लगने लगेगा.’‘
''मम्मी, शोभाराम मुझे पसंद नहीं, अब मैं ससुराल नहीं जाऊंगी.’‘ रागिनी गुस्से से बोली.
''बेटा, ससुराल तो तुझे जाना होगा,’‘ मां ने निर्णय सुनाने के साथ नसीहत दी, ''शोभाराम जैसा है, उसी रूप में उसे मन से स्वीकार करो. मैं कह रही हूं न, जल्द ही वह तुझे अच्छा लगने लगेगा.’‘
रागिनी की एक न चली. मम्मीपापा की जिद के चलते रागिनी की एक न चली और उसे ससुराल जाना पड़ा. शोभाराम के साथ वह पति धर्म भी निभाती रही, परंतु उसे दिल से स्वीकार नहीं कर सकी. इस बीच वह एक बेटी व एक बेटे की मां बन गई.