कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

अपूर्वा, अमर और सार्थक की दोस्ती 2012 में तब हुई जब तीनों साथसाथ 8वीं में पढ़ रहे थे. अपूर्वा और अमर विशाल नगर में आसपास ही रहते थे. दोस्ती बढ़ी तो दोनों एकदूसरे के घर भी आनेजाने लगे. ऐसे में निकटता बढ़ना स्वाभाविक ही था. लेकिन यह निकटता घनिष्ठ मित्रता में समाहित थी, जिसे किशोर मन का आकर्षण भी कह सकते हैं और दोस्ती की जरूरत भी.

अपूर्वा, अमर और सार्थक की दोस्ती ऐसी गहराई कि तीनों पढ़ाई लिखाई की बातें भी शेयर करने लगे और टिफिन बौक्स भी. तीनों को हंसते खेलते देख कोई भी उन की दोस्ती की गहराई का अंदाजा लगा सकता था.

जब तक इन तीनों ने किशोरवय को पार किया तब तक दोस्ती यूं ही चलती रही. बिना किसी भेदभाव के. लेकिन यौवन की पहली सीढ़ी पर पहुंचते ही बहुत कुछ बदलने लगा. रंग, रूप और भावनाएं ही नहीं, और भी बहुत कुछ. कुलांचे भरती उम्र ने लड़की और लड़कों के बीच एक अचिन्ही सी रेखा खींच दी. चाहो या न चाहो ऐसा होता ही है. यही समाज का नियम है.

सार्थक पड़ा प्यार के चक्कर में

12 वीं तक पहुंचते पहुंचते जब तनमन और शरीर पर यौवन में रंग जमाना शुरू किया तो सार्थक ने महसूस किया कि वह अपूर्वा को प्यार करने लगा है. दोस्ती के बावजूद उस में अपूर्वा से कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं थी, इसलिए सार्थक ने दोस्त के कंधों का सहारा लिया. अमर शिंदे और अपूर्वा करीबी दोस्त थे, एकदूसरे को समझने वाले.

वैसे भी अमर अपूर्वा के व्यक्तित्व और सोच को जानता समझता था. उस ने सार्थक से कहा, ‘‘दोस्ती, नजदीकियां अलग बात है, पर हकीकत में अपूर्वा ऐसी लड़की नहीं है. मैं उसे अच्छी तरह जानता हूं. इस का जवाब भी मुझे मालूम है. इसलिए दोस्ती को दोस्ती ही रहने दे.’’

लेकिन अमर की बात प्रेम रंग में डूबे सार्थक के पल्ले नहीं पड़ी. उसे बात न मानते देख अमर ने कहा, ‘‘भाई, प्यार का इजहार स्वयं किया जाता है. जो तू सोच रहा है, वह गुजरे जमाने में होता था, जब प्रेमी प्रेमिका किसी अन्य के माध्यम से संदेशे भिजवाते थे.’’

‘‘अमर, मैं पहले अपूर्वा के मन को टटोलना चाहता हूं.’’ जानना चाहता हूं कि उस के मन में मेरे लिए कुछ है भी या नहीं. यह काम बिना तेरी मदद के नहीं हो सकता.’’ सार्थक ने अमर की चिरौरी करते हुए कहा.

दोस्ती की खातिर अमर यह काम करने को तैयार हो गया. वह तैयार ही नहीं हुआ बल्कि मौका देख कर अपूर्वा से बातोंबातों में उस ने सार्थक के मन की बात भी बता दी. लेकिन अपूर्वा ने कोई संतोषजनक उत्तर न देर कर इतना ही कहा कि सार्थक स्मार्ट भी है और दिल का साफ भी.

अमर ने जब यह बात सार्थक को बताई तो वह यह जान कर खुश हुआ कि कम से कम अपूर्वा के मन में उस के प्रति गुड फीलिंग तो है. प्यार का इजहार अब न सही, फिर कभी हो जाएगा. लेकिन इस से पहले कि सार्थक अपने प्यार का इजहार कर पाता 12वीं के बाद तीनों की राहें अलगअलग हो गईं.

सार्थक इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए औरंगाबाद चला गया, जबकि अमर ने लातूर के पौलीटेक्निक कालेज में एडमिशन ले लिया. अपूर्वा डाक्टर बनना चाहती थी, उस ने बीएएमएस की पढ़ाई के लिए जामखंडी, कर्नाटक के मैडिकल कालेज में दाखिला ले लिया. वह वहीं कालेज के हौस्टल में रहने लगी थी.

कैरियर के हिसाब से बात यहीं खत्म हो जानी चाहिए थी. लेकिन नहीं हुई. वैसे भी दिल की लगी इतनी आसानी से कहां खत्म होती है.

  अलगअलग हो गए दोस्त

तीनों दोस्त एकदूसरे से दूर हो गए थे. जगह बदल गई थी. माहौल बदल गया था. नई जगह, नए दोस्त. इस के बावजूद अपूर्वा के प्रति सार्थक की चाहत नहीं बदली थी. वह अपूर्वा से मिलने उस के कालेज आताजाता रहता था. अपूर्वा को उस का आना अच्छा लगता था. वह उस से पहले की तरह ही बातें करती थी, हंसतीबोलती थी, उस का हालचाल पूछती थी.

जब सार्थक के रेगुलर आनेजाने से उस की पढ़ाई में व्यवधान आने लगा तो वह सार्थक से पहले की तरह बात करने से कतराने लगी. जैसेजैसे समय बीतता गया, सार्थक और अपूर्वा के बीच दूरियां बढ़ती गईं.

दूसरी ओर वक्त और जरूरत की मांग के हिसाब से मैडिकल कालेज में अपूर्वा के दोस्त बनते गए. उस के दोस्तों में मौली घोपल नाम का एक लड़का भी था जो अपूर्वा के काफी करीब था. वह भी उस का वैसा ही करीबी दोस्त था, जैसे सार्थक और अमर थे. हां, केवल स्थितियां जरूर बदल गई थीं.

अमर के माध्यम से जब यह बात सार्थक को पता चली तो वह आपा खो बैठा. क्रोधावेश में वह जामखंडी मैडिकल कालेज जा कर अपूर्वा से मिला. निस्संदेह अपूर्वा ने पहले जैसी रिश्तों की गरमाहट नहीं दिखाई. इस पर सार्थक ने उस से पूछा, ‘‘क्या बात है अपूर्वा, तुम काफी बदल गई हो. मुझ से मिलने में तुम्हारी कोई दिलचस्पी नहीं है?’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है सार्थक,’’ अपूर्वा ने शांत भाव से कहा, ‘‘यहां पढ़ाई का बोझ काफी बढ़ गया है, इसलिए समय निकालना मुश्किल होता है.’’

‘‘पढ़ाई का बोझ बढ़ गया है या घोपल की दोस्ती से फुरसत नहीं है.’’ सार्थक के मन की कड़वाहट शब्दों में उतर आई. उस के शब्द अपूर्वा को भी चुभे. वह थोड़े गुस्से में बोली, ‘‘क्या मतलब है तुम्हारा?’’

‘‘यही कि कालेज बदलते ही पुराने दोस्तों को भूल गईं, नई जगह नए नए दोस्त बन गए.’’ सार्थक ने भी कड़वाहट के साथ कहा, ‘‘लेकिन एक बात याद रखना, सब हमारे जैसे नहीं, मेरी राय मानो तो उन से दूर रहो, खास कर मौली घोपल से.’’

‘‘जरा मुझे बताओगे,  इस में बुराई क्या है?’’ अपूर्वा ने जवाब की जगह प्रश्न के साथसाथ कहा, ‘‘मौली घोपल मेरी क्लास में पढ़ता है. जैसी दोस्ती तुम्हारे और अमर के साथ थी, वैसी ही उस के साथ है.’’

इस से सार्थक का दिमाग घूम गया. वह सख्त शब्दों में बोला, ‘‘जो मैं कहता हूं, वही करो. उस से दोस्ती तोड़ दो.’’

सार्थक की बात सुन कर अपूर्वा को झटका लगा. उस ने भी वैसे ही शब्दों में जवाब दिया, ‘‘मैं जिस से चाहूं दोस्ती करूं, तुम कौन होते हो मुझे रोकने या आदेश देने वाले?’’

क्रोधावेश में सार्थक के मुंह से सच्चाई निकल ही गई, ‘‘अपूर्वा, मैं तुम्हें प्यार करता हूं, इसी नाते तुम पर हक भी जता रहा हूं.’’

अपूर्वा सुंदर ही नहीं समझदार भी थी. उस ने स्थिति की नजाकत को समझते हुए सार्थक को समझाया, ‘‘देखो सार्थक, अभी हमें अपनेअपने कैरियर के बारे में सोचना चाहिए. रहा सवाल प्यार का तो मैं ने अभी इस बारे में सोचा ही नहीं है. मैं तुम्हें अपना दोस्त मानती हूं और मानती रहूंगी. इस से ज्यादा मुझ से कोई अपेक्षा मत करना. क्योंकि मैं उस समाज का अंग हूं, जहां मेरे मातापिता की प्रतिष्ठा है. मेरा ऐसा कोई भी निर्णय मेरे पिता करेंगे.’’

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...