आखिर जब नहीं रहा गया तो एक रात बिस्तर पर उस ने पति को समझाने की कोशिश की, ‘‘तुम जिस रास्ते पर चल रहे हो, वह अच्छा नहीं है. तुम उस दो टके की औरत के पीछे ऐसे दीवाने हो गए हो, जैसे कोई पागल सांड़ भरी बाजार में बलबला उठता है. मेरा नहीं तो कम से कम अपने बेटे के बारे में सोचो. कल जब वह बड़ा होगा तो तुम्हारा नाम ले कर लोग ताना नही मारेंगे.’’
प्रेम केसरवानी समझ गया कि पत्नी को सब पता चल गया है. वह सिर झुकाए बैड पर बैठा रहा. संगीता आगे बोली, ‘‘आखिर सुशीला में कौन से मोती जड़े हैं? क्या मुझ से ज्यादा उस के अंदर तुम्हें गरमी मिलती है? प्रेम, मैं तुम्हारी पत्नी हूं और सुशीला... सुशीला गंदी नाली का कीड़ा है. वह औरत लटकेझटके दिखा कर तुम्हें तो चूस ही रही है. साथ में तुम्हारी दौलत पर भी उस की नजर लगी हुई है.’’
संगीता ने हर तरह से पति को समझाया, लेकिन संगीता की कोई बात प्रेम की खोपड़ी में नहीं घुसी. उस ने बातें एक कान से सुनीं और दूसरे से निकाल दीं. दरअसल, सुशीला की चाहत में वह इतना आगे निकल चुका था कि वहां से पीछे लौटना अब उस के बस की बात नहीं थी. फिर भी संगीता ने पति का साथ नहीं छोड़ा और उस के पीछे पड़ी रही. सुशीला और प्रेम केसरवानी लव अफेयर की कहानी आगे बढ़ती रही. एकदूसरे को पाने के लिए वे दोनों हमेशा छटपटाते रहते और जब कभी एकांत में मिलने का अवसर मिलता तो आंधीतूफान की तरह एकदूसरे में समा जाते थे. तन की आग बुझ जाती, किंतु मन की प्यास हमेशा बनी रहती.