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20 वर्षीया मीना बहुत देर से महसूस कर रही थी कि एक युवक काफी समय से उसे ही देख रहा है. वह जहां जा रही है, वह भी वहीं उस के पीछेपीछे पहुंच रहा है. मीना जब उस युवक को देखती तो वह उसे कनखियों से देख कर धीरे से मुसकरा देता था. उस की चोरी पकड़ी जाती तो वह चेहरा घुमा लेता था. वह क्यों उस के पीछे लगा है, यही जानने के लिए मीना ने साथ आई अपनी सहेली से कहा, ‘‘सोनिया, उसे देख रही है?’’

“किसे?’’ सहेली बोली.

“अरे वह, जो सामने की कल्पना शर्ट शौप पर खड़ा है.’’

सोनिया ने उस दुकान की ओर नजरें गड़ा दीं. वहां खड़े एक युवक को देख कर उस ने होंठों को गोल सिकोड़ कर अंदर सांस खींचते हुए आह भरी, ‘‘वाव, क्या हैंडसम सिंगल पीस है. यार मीना, तेरी पसंद तो बहुत लाजवाब है.’’

“पागल, वह मेरी पसंद नहीं है.’’ मीना झल्ला कर बोली, ‘‘वह मेरे पीछेपीछे आ रहा है.’’

“किस्मत वाली हो यार,’’ सोनिया ने ठंडी सांस भरी, ‘‘काश! वह मेरे पीछेपीछे आता, रुमाल में लपेट कर पर्स में डाल लेती.’’

“क्या अनापशनाप बक रही है,’’ मीना उस के कंधे पर हाथ मार कर झुंझलाए स्वर में बोली, ‘‘जो कह रही हूं, वह समझ.’’

“समझ गई हूं मेरी जान,’’ सोनिया ने फिर मसखरी की, ‘‘वह जवान और हैंडसम है, तुम भी किसी हसीना से कम नहीं हो. तुम उसे अच्छी लगी हो, इसीलिए तो पीछे लग गया है.’’

“मैं तेरा मुंह नोच लूंगी,’’ चिढ़ कर मीना बोली, ‘‘मैं उस की हरकत से परेशान हूं और तू है कि कुछ दूसरा पुलाव पका रही है.’’ इस बार सोनिया सीरियस हो गई, ‘‘यार, अगर वह हमारे पीछे लगा है तो लगा रहने दे. यह मर्दों की फितरत होती है, कोई सुंदर चीज उसे पसंद आती है तो उसे पाने को मचल उठता है, चाहे वह उस के हाथ में आए या न आए. यहां भी ऐसा ही है, हम यहां पालिका बाजार में कितनी देर के लिए आए हैं घंटा दो घंटा. इतनी देर में वह पीछे लगता है तो लगा रहने दो. हम शौपिंग कर के चले जाएंगे तो वह भी अपने रास्ते चला जाएगा.’’

“फिर भी, उसे इस तरह हमारे पीछे नहीं लगना चाहिए.’’

“यार मीना, तू बेकार की टेंशन ले बैठती है, मस्त हो कर खरीदारी कर. वह क्या कर रहा है, क्यों कर रहा है, करने दे.’’ सोनिया ने समझाया. लेकिन मीना कहां समझने वाली थी. वह सहेली सोनिया के साथ शौपिंग करते हुए उसी युवक को देख रही थी. एक कास्मेटिक की दुकान से निकल कर वह दूसरी दुकान की तरफ बढ़ी तो देखा वह युवक उन के पीछे आने लगा. मीना को गुस्सा आ गया. उस ने देखा कि सोनिया अपनी धुन में उस दुकान की तरफ जा रही थी.

मीना अपनी जगह रुक गई तो वह युवक हड़बड़ा गया. वह भी रुक गया और दूसरी ओर देखने लगा. मीना उस के पास आ गई और उस का कंधा थपथपा कर बोली, ‘‘ऐ मिस्टर, यह क्या हरकत है?’’

“जी…’’ वह युवक अचकचा कर बोली, ‘‘आप ने मुझ से कुछ कहा?’’

“हां, तुम से ही कह रही हूं. यह तुम मेरा पीछा क्यों कर रहे हो?’’

युवक बेहिचक मुसकरा कर बोला, ‘‘जो चीज अच्छी लगे उसे देखने में क्या बुराई है? आप बेहद सुंदर हैं, इसलिए मेरी नजर आप पर से हट नहीं पा रही है.’’

“मेरी मांग में तुम्हें सिंदूर दिखाई दे रहा है?’’ मीना झल्ला कर बोली, ‘‘ये मेरे सुहाग की निशानी है.’’

“एक चुटकी सिंदूर ही तो है,’’ युवक मुसकरा कर बेबाकी से बोला, ‘‘यदि इसे धो डालो तो कसम से कोई नहीं कहेगा कि आप सुहागन हैं. आप को कुंवारी समझ कर आप की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाने को कोई भी मचल जाएगा, मुझे तो सिंदूर में भी आप की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाने का मन हो रहा है.’’

मीना उलझ गई अजनबी से

मीना उस की बेबाकी और जिंदादिली पर अवाक रह गई. कुछ कहते नहीं बना. वह कुछ कहती, उस से पहले ही सोनिया उस के पास पहुंच गई, ‘‘यार मीना, तुम भी गजब हो, मैं तुम्हें वहां ढूंढ रही हूं और तुम यहां इन से उलझ रही हो. चलो, मैं ने तुम्हारे लिए एक ब्रेसलेट पसंद किया है.’’

सोनिया उसे बाजू से पकड़ कर घसीटती ले जाने लगी तो उसे उस युवक के ठंडी सांस भर कहे गए शब्द सुनाई दिए, ‘‘अब तो तुम से दोस्ती कर के ही चैन पाऊंगा, मीनाजी.’’

मीना कुछ कह नहीं पाई. सोनिया उसे घसीट कर उस दुकान पर ले आई, जहां पर वह ब्रेसलेट पसंद कर के गई थी. मीना को ब्रेसलेट पसंद आया तो उस ने उसे खरीद लिया. कुछ देर बाद मीना ने पलट कर पीछे देखा तो वह युवक वहां नहीं था. वह बेचैन हो कर उसे इधरउधर तलाश करने लगी, लेकिन शायद वह वहां से जा चुका था. जाने के बाद वह मीना के दिल में अजीब सी हलचल पैदा कर गया था.

मीना अपने पति सौरभ के साथ मध्य दिल्ली में नबी करीम के मुल्तानी ढांढा में रहती थी. सौरभ अभी 23 साल का था. मीना के साथ शादी को अभी ज्यादा वक्त नहीं हुआ था. दोनों एकदूसरे को पा कर खुश थे. सौरभ कनाट प्लेस के पालिका बाजार में टैटू बनाने का काम करता था. अपनी दुकान थी, जिसे वह अपने बड़े भाई अक्षय के साथ चलाता था.

सौरभ की गृहस्थी हंसीखुशी से चल रही थी कि मीना की शौपिंग के दौरान एक युवक से हुई अनजानी मुलाकात से गृहस्थी की खुशियों का रंग, बदरंग होना शुरू हो गया. मीना चाहती तो उस अजनबी युवक से हुई अनजानी मुलाकात को एक इत्तफाक या हादसा मान कर भुला सकती थी, लेकिन मीना उस मुलाकात की गहराई में उतरने की वही भूल कर बैठी, जो अकसर ऐसी मुलाकातों में अन्य महिलाएं कर बैठती हैं.

वह मुझे देख रहा था, मेरा पीछा कर रहा था, देखने में तो ठीक ही था, कहीं से सडक़छाप मजनूं भी नहीं लग रहा था, सभ्य और पढ़ालिखा भी था किंतु था निडर, बेबाक और दिल को हथेली पर ले कर चलने वाला इंसान. बड़े निर्भीक और सहजता से उस ने अपने मन की बात कह दी थी. ऐसे ही विचार मीना के दिमाग में घूम रहे थे.

उस का किसी काम में मन ही नहीं लग रहा था. रहरह कर उस अजनबी युवक का चेहरा उस की आंखों के सामने उभर आता था. उस युवक के चेहरे की लुभावनी मुसकान उसे कल किसी कांटे की तरह चुभ रही थी तो आज उसी मुसकान की वह दीवानी हो कर आहें भर रही थी.

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