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एसएचओ मीणा और एसआई जयकिशन ने मौके पर जा कर जला हुआ ट्रक देखा. बालेश की कंकाल में परिवर्तित बौडी को पोस्टमार्टम हाउस में देखने के बाद वह भी इसी नतीजे पर पहुंचे कि बालेश कुमार की जल जाने की वजह से मौत हो गई है.

दोनों बुझे मन से दिल्ली लौट आए. राजेश वर्मा की हत्या का जिम्मेदार सुंदर लाल उन की गिरफ्त में था. अब उसी को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने के लिए उन्हें चार्जशीट तैयार करनी थी.

पुलिस फाइल में बालेश मर चुका था और सुंदर लाल को राजेश वर्मा की हत्या का दोषी मान कर कोर्ट द्वारा आजीवन कारावास की सजा भी मिल गई थी. एक प्रकार से यह हत्या का केस यहीं समाप्त हो गया था और इस केस की फाइल बंद कर दी गई थी.

लेकिन 19 साल बीत जाने के बाद यह केस अक्तूबर, 2023 में फिर से चौंका देने वाली स्थिति में खुल गया. 19 साल पहले जिस बालेश कुमार को थाना बवाना और डांडियावास पुलिस मरा हुआ मान चुकी थी, वह जिंदा था और सेंट्रल रेंज (अपराध शाखा) के एसआई महक सिंह की टीम ने उसे नजफगढ़ (दिल्ली) के एक मकान से गिरफ्तार कर लिया था.

दरअसल, सन 2000 में कोटा हाउस (दिल्ली) के औफिसर मेस में चोरी हुई थी. औफिसर मेस से कीमती मैडल व प्राचीन वस्तुएं रात को चोरी कर ली गई थीं. इस चोरी में बालेश कुमार, उस के पिता चंद्रभान और साला राजेश उर्फ खुशीराम पकड़े गए थे.

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पुलिस उपायुक्त अंकित कुमार

दिल्ली के थाना तिलक मार्ग में तीनों के खिलाफ एफआईआर 341/2000 पर धारा 457/380/411/34 आईपीसी के तहत केस दर्ज हुआ था. उन्हें इस मामले में जमानत मिल गई थी. पुलिस ने इन के पास से चोरी का सामान बरामद कर लिया था. इसी की फाइल अपराध शाखा के स्पैशल पुलिस आयुक्त रविंद्र सिंह यादव के पास आई थी.

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