औफिस में लंच के समय श्वेता ने व्हाट्सऐप संदेश देखा ‘‘आज शाम 6 बजे,’’ श्वेता ने तुरंत उत्तर दे दिया. ‘‘ठीक है,’’ औफिस से 6 बजे श्वेता नीचे उतरी, इंद्रनील उस का इंतजार कर रहा था. दोनों पैदल समीप के मौल की ओर बातें करते हुए चल दिए जहां कौफीहाउस में एक कोने की सीट पर बैठ कर कौफी पीने लगे. इंद्रनील आज चुप था, वह श्वेता की ओर न देख कर विपरीत दिशा में देख रहा था.

‘‘क्या बात है इंद्रनील, उधर क्या देख रहे हो?’’

‘‘कुछ नहीं, बस यों ही.’’

‘‘चुप भी हो?’’

श्वेता के पूछने पर इंद्रनील चुप रहा.

‘‘कौफी भी नहीं पी रहे हो. टकटकी लगा कर उधर देखे जा रहे हो. कौन है वहां?’’

इंद्रनील ने अब श्वेता की ओर देखा और धीरे से कहा ‘‘श्वेता अब विदा होने का समय आ गया है.’’

‘‘समझी नहीं?’’

‘‘मैं दिल्ली छोड़ कर वापस कोलकाता जा रहा हूं,’’ इंद्रनील ने श्वेता की ओर पहली बार देखते हुए कहा.

‘‘क्या सदा के लिए?’’ श्वेता कुछ उदास हो गई.

‘‘हां तभी तुम से कह रहा हूं. शायद आज अंतिम बार मिलना हो, मैं कुल सुबह कोलकाता रवाना हो रहा हूं.’’

‘‘इतनी जल्दी?’’

‘‘हां सब अचानक से हो गया और निर्णय भी तुरंत ही लेना पड़ा.’’

‘‘श्वेता मैं ने नौकरी छोड़ दी है. आज मेरा अंतिम दिन था. सब को अलविदा कहा. बिना तुम से मिले कैसे जा सकता हूं. एक तुम ही तो हो जिस के साथ हर सुख और दुख सांझा किया है.’’

‘‘पहले बता देते?’’ श्वेता के इस प्रश्न पर इंद्रनील भावुक हो गया.

‘‘बस 10-12 दिनों में घटनाक्रम इतनी तेजी से घूमा कि तुम से बात नहीं कर सका.’’

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