जब पिंकी और सफदर अब्बास ने प्यार किया था, तब धर्म बीच में नहीं था. जब शादी की बात आई तो अपने प्यार के लिए पिंकी ने इसलाम भी स्वीकार कर लिया और बिना शादी किए सफदर के साथ दुबई भी चली गई, लेकिन वहां जा कर सफदर ऐसा बदला कि...   

25 वर्षीय पिंकी चंदा हैदराबाद में पुरानी सिटी के मलकजगिरी इलाके में अपने परिवार के साथ रहती थी. वह शेखर चंदा की एकलौती संतान थी. शेखर चंदा का अपना छोटा सा घरसंसार था. वह अच्छाभला कमाते थे, इसलिए उन के पास हर तरह की भौतिक सुखसुविधा थी. इन सब से अलग उन में जो खासियत थी, वह यह थी कि वे स्वच्छंद विचारों वाले जीवंत इंसान थे. इसी परिपाटी पर उन का परिवार भी चलता था.

शेखर चंदा का सपना था कि वह अपनी एकलौती बेटी को पढ़ालिखा कर इस काबिल बना दें कि वह कोई बड़ी अफसर बन जाए. पिंकी का भी यही सपना था कि वह कुछ ऐसा करे, जिस से मांबाप का नाम इज्जत से लिया जाए. पिंकी बातचीत करने और पढ़नेलिखने में अव्वल थी. वह मन लगा कर पढ़ती रही. ग्रैजुएशन करने के बाद पिंकी चंदा को हैदराबाद के सोमाजुगुडा क्षेत्र की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी मिल गई. वह उस कंपनी के कंप्यूटर सैक्शन में थी. यह सन 2013-14 की बात है.

जिस बहुराष्ट्रीय कंपनी में पिंकी जौब करती थी, उसी कंपनी के कंप्यूटर सैक्शन में दारुलशफा का रहने वाला सफदर अब्बास खलीम अख्तर जैदी नाम का युवक भी नौकरी करता था. वह सौफ्टवेयर इंजीनियर था. सफदर जैदी बेहद ईमानदार, मेहनती और लगनशील युवक था. वाकपटुता उस की रगरग में भरी हुई थी. अपनी कलात्मक बातों से वह किसी को भी अपनी ओर आकर्षित करने में माहिर था.

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