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4 जुलाई, 2023 का दिन था. अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश/विशेष न्यायाधीश (पोक्सो एक्ट) प्रमेंद्र  कुमार की कोर्ट में काफी गहमागहमी थी. घटना होने के मात्र 116 दिनों बाद उस दिन एक ऐसे मामले में फैसला सुनाया जाना था, जिस में दोस्ती परवान चढऩे से पहले ही तारतार हो गई थी. आइए, कोर्ट का फैसला जानने से पहले इस मामले के बारे में जान लेते हैं.

आगरा के सिकंदरा क्षेत्र के रुनकता के पास मांगरौल गूजर का जंगल करीब 6 किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है. यमुना का किनारा है और अकसर जंगली जानवर यहां घूमते रहते हैं. जंगल की सन्नाटे भरी सर्द रात में जंगली जानवरों के खतरे के बीच कांटेदार झाड़ियों के बीच पड़ी घायल 14 वर्षीय नीलम को जब हलका सा होश आया, तब चारों ओर घना अंधेरा छा चुका था.

नीलम दर्द से कराह रही थी. उस के अंगअंग में दर्द हो रहा था. वह रातभर तड़पती रही. वह अस्मत जाने के बाद भी टूटती सांसों को संजोए हुए थी. प्यास से उस का गला सूख रहा था, वहीं घावों से खून बह रहा था.

इस हालत में भी नीलम ने हिम्मत नहीं हारी. बेसुध शरीर ने हिम्मत कर हिलने की कोशिश की तो कांटे चुभ उठे. वह असहनीय दर्द को पी गई और कांटों के बिस्तर पर पड़ीपड़ी भोर होने का इंतजार कर ने लगी.

जीवन और मृत्यु से संघर्ष के बीच सुबह जब सूरज की रोशनी दिखाई दी तो इतनी हिम्मत आ गई कि वह करीब 100 मीटर घिसट कर रोड तक पहुंच गई. आखिर नीलम जंगल में कैसे पहुंची? उस की यह हालत कैसे और किस ने की?

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