रेतीले धोरों वाले राजस्थान में चंबल नदी के मुहाने पर बसा औद्योगिक शहर कोटा आज एजूकेशन हब बन चुका है. इंजीनियरिंग एवं मैडिकल की आल इंडिया तथा प्रदेश स्तर की परीक्षाओं में सब से ज्यादा यहीं की कोचिंग सेंटरों में पढ़ने वाले बच्चों का सिलेक्शन होता है. यहां देश के नामीगिरामी कोचिंग सेंटरों की सैकड़ों शाखाएं हैं, जिन में देशभर के लाखों मेधावी बच्चे पढ़ने आते हैं.
उसी कोटा शहर में 27 मई की दोपहर को सूरज अपने पूरे शबाब पर था तो उस की तपन से लोगों का घर से बाहर निकलना मुश्किल हो रहा था. उस गरमी में कुछ देर पहले ही अपने औफिस से सरकारी बंगले पर आए शहर के एसपी सत्यवीर सिंह आराम फरमा रहे थे.
तभी भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) के डीआईजी आलोक वशिष्ठ आम कपड़ों में पैदल चलते हुए एसपी सत्यवीर सिंह के बंगले पर पहुंचे. गेट पर तैनात संतरी उन्हें पहचानता नहीं था, इसलिए उस ने उन्हें रोक कर पूछा, ‘‘किस से मिलना है?’’
‘‘मैं डीआईजी हूं, जयपुर से आया हूं.’’ डीआईजी आलोक वशिष्ठ ने कहा.
संतरी को जैसे ही पता चला कि आगंतुक डीआईजी हैं, उस ने झट से सैल्यूट मारा और उन के आने की सूचना देने के लिए इंटरकौम की घंटी बजाई. लेकिन डीआईजी आलोक वशिष्ठ बिना कुछ कहेसुने सीधे बंगले के अंदर चले गए.
सामने ड्राइंगरूम में पड़े सोफे पर एसपी साहब आराम की मुद्रा में बैठे थे. वह डीआईजी आलोक वशिष्ट को पहचानते थे, इसलिए उन के कमरे में आते ही उन्होंने तुरंत खड़े हो कर सैल्यूट मारा. डीआईजी ने उन के सैल्यूट का जवाब देते हुए कहा, ‘‘सत्यवीर सिंह, यू आर अंडर अरेस्ट. रिश्वत लेने के जुर्म में तुम्हें गिरफ्तार किया जाता है.’’
डीआईजी आलोक वशिष्ठ की ये बातें सुन कर एसपी सत्यवीर सिंह के पैरों तले से जमीन खिसक गई. वह कुछ कहने वाले थे कि डीआईजी साहब के पीछे आने वाले लोगों को देख कर चुप हो गए. डीआईजी साहब के पीछे एसीबी की टीम के साथ वह आदमी भी था, जिस ने उन पर रिश्वत लेने का आरोप लगाया था. उस आदमी का नाम अब्दुल मतीन था. उसी की शिकायत पर यह काररवाई की गई थी.
एसीबी ने यह काररवाई इतनी तेजी और गोपनीय तरीके से की थी कि एसपी सत्यवीर सिंह को न तो कुछ सोचने का समय मिला था और न ही कुछ कहनेसुनने का. अब्दुल मतीन को देखते ही वह सारा माजरा समझ गए थे. जबकि उन्हें सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि एक एसपी को उस के सरकारी आवास से इस तरह गिरफ्तार किया जाएगा.
एसपी सत्यवीर सिंह अच्छी तरह जानते थे कि विरोध करने का कोई मतलब नहीं है. आईपीएस होने के नाते वह एसीबी की कार्यप्रणाली को अच्छी तरह जानते थे. उन्हें अहसास हो गया कि अब खेल खत्म हो चुका है, इसलिए चुप रहना ही ठीक है. एसीबी टीम ने एसपी के मोबाइल जब्त करने के साथ उन के सरकारी आवास की तलाशी शुरू कर दी.
इस तलाशी में एसीबी टीम ने 62 हजार रुपए नकद, शराब की 6 बोतलें और 4 मोबाइल फोन के साथ कुछ खास दस्तावेज जब्त किए. दूसरी ओर उन के जयपुर के वैशालीनगर, गंगा सागर स्थित बंगले की भी तलाशी ली गई. वहां से कुछ दस्तावेजों के साथ बैंक के लौकर की चाबी भी मिली थी. तलाशी खत्म होने के बाद डीआईजी आलोक वशिष्ठ एसपी सत्यवीर सिंह को हिरासत में ले कर कोटा के अन्वेषण भवन आ गए.
एक ओर जहां एसीबी के डीआईजी आलोक वशिष्ठ ने एसपी सत्यवीर सिंह को गिरफ्तार किया था, वहीं दूसरी ओर एक अन्य डीआईजी हवा सिंह घुमरिया ने अपनी टीम के साथ जाल बिछा कर एसपी और जरूरतमंदों के बीच दलाली का काम करने वाली फरहीन और उस के पति निसार तंवर को आर.के.नगर स्थित उस के घर से गिरफ्तार किया था.
फरहीन और निसार को रंगेहाथों पकड़ने के लिए एसीबी टीम ने शिकायत करने वाले मतीन को रिश्वत के रूप में तय 2 लाख रुपए की रकम में से 50 हजार रुपए ले कर निसार के पास भेजा था. मतीन ने जैसे ही फरहीन को 50 हजार रुपए सौंपे थे, एसीबी की टीम ने घर में घुस कर फरहीन एवं उस के पति निसार को दबोच लिया था.
फरहीन और निसार की गिरफ्तारी की सूचना डीआईजी हवा सिंह घुमरिया द्वारा अपने साथी डीआईजी आलोक वशिष्ठ को मोबाइल फोन से देने के बाद ही आलोक वशिष्ठ ने एसपी सत्यवीर सिंह के घर छापा मार कर उन्हें गिरफ्तार किया था. फरहीन और निसार को गिरफ्तार करने की यह काररवाई इतनी गोपनीय थी कि यह दंपति अपनी गिरफ्तारी की सूचना अपने ‘आका’ एसपी को नहीं दे सका था. एसीबी टीम ने फरहीन और निसार के भी मोबाइल फोन जब्त कर लिए थे.
गिरफ्तारी के बाद फरहीन और निसार के घर तथा होटल की तलाशी ली गई. इस तलाशी में तमाम ऐसे दस्तावेज मिले, जिन से साफ हो गया कि फरहीन और उस का पति पैसे ले कर एसपी से तमाम काम कराते थे. यही नहीं, उस के रेस्टोरेंट और घर से पुलिसकर्मियों के तबादलों की तमाम अर्जियां भी मिली थीं.
एसीबी ने एसपी सत्यवीर सिंह के सरकारी आवास और जयपुर के वैशालीनगर स्थित आवास की ही नहीं, अलवर जिले की तहसील बहरोड़ के गांव चांदीचाना जा कर उन के पैतृक घर की भी तलाशी ली थी. एसीबी ने अपनी इस काररवाई को ‘औपरेशन टाइगर’ का नाम दिया था, जो पूरी तरह सफल रहा था.
एसीबी टीम का यह औपरेशन इतना गोपनीय था कि कोटा के एसीबी के एसपी को भी इस काररवाई की भनक नहीं लगी थी. एसपी सत्यवीर सिंह की गिरफ्तारी के बाद जब डीआईजी ने फोन कर के उन्हें पुलिस अन्वेषण भवन बुलाया तो इस काररवाई से वह हैरान रह गए थे.
गिरफ्तार एसपी सत्यवीर सिंह और उन के लिए दलाली का काम करने वाले फरहीन एवं उस के पति निसार से एसीबी अधिकारियों ने अलगअलग पूछताछ तो की ही, आमनेसामने बैठा कर भी पूछताछ की. इस पूछताछ एवं जांच में एक महिला की महत्त्वाकांक्षा एवं एक भ्रष्ट अधिकारी के भ्रष्टाचार और शौकीनमिजाजी की वरदी को दागदार करने वाली जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.
राजस्थान के जिला अलवर की तहसील बहरोड़ के गांव चांदीचाना के रहने वाले सेवानिवृत्त शिक्षक अमीचंद के बड़े बेटे सत्यवीर सिंह ने पढ़ाई पूरी होने के बाद प्रतियोगी परीक्षाएं दीं तो उन का चयन राजस्व सेवा में हो गया था. पदोन्नति से भले ही वह तहसीलदार हो गए थे, लेकिन उस ने प्रतियोगी परीक्षाएं देनी बंद नहीं की थीं. इसी का नतीजा था कि तहसीलदार रहते हुए उन का चयन राजस्थान पुलिस सेवा में हो गया.
राज्य पुलिस सेवा में चयन होने के बाद वह डीएसपी बने. इस के बाद पदोन्नत कर के एडिशनल एसपी बने. 1 फरवरी, 2010 को उन की पदोन्नति भारतीय पुलिस सेवा में हो गई. आईपीएस बनने के बाद उन की पहली पोस्टिंग दौसा के एसपी के रूप में हुई. इस के बाद वह जयपुर (पूर्व) के पुलिस उपायुक्त बने.
जयपुर में सत्यवीर सिंह विवादों में घिरे तो उन्हें एपीओ बना दिया गया. इस के बाद उन्हें सीकर का एसपी बनाया गया. 6 महीने बाद ही उन का तबादला कोटा कर दिया गया. 24 अगस्त, 2013 को उन्होंने कोटा के एसपी का पदभार संभाला था.
क्रमशः