भगवानदास और ज्योति ने नकली पुलिस बन कर कमाई का रास्ता तो निकाल लिया था, पर वे ये नहीं सोच सके कि नकली और असली का फर्क पता चल ही जाता है. आखिर...

मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिला मुख्यालय से महज 5 किलोमीटर दूर एक गांव है कुम्हड़ी. आदिवासी बहुल इस छोटे से गांव में रहने वाले उम्मेद ठाकुर की 24 वर्षीय बेटी ज्योति की पुलिस में सिपाही की नौकरी लगने की जानकारी से गांव के लोग बहुत खुश थे.  गांव के युवक जब ज्योति को पुलिस की वरदी में देखते तो उन की आंखों में भी पुलिसिया रौब वाली इस नौकरी को पाने के सपने सजने लगते थे. ज्योति के पिता उम्मेद ठाकुर गांव वालों को बताते थे कि उन का दामाद सूरज धुर्वे पुलिस में दरोगा है, उस की पुलिस अधिकारियों से अच्छी जानपहचान है.

इसी जानपहचान की बदौलत उस ने ज्योति की सिपाही के पद पर नौकरी लगवा दी. गांव वाले उम्मेद ठाकुर की ही नहीं बल्कि उस की बेटी ज्योति की भी बहुत तारीफ करते और ज्योति से पुलिस में भरती होने के उपाय पूछते थे. तब ज्योति उन्हें कड़ी मेहनत करने और खूब पढ़ाई करने की सलाह देती थी. पिछले करीब एक महीने से गांव वाले देख रहे थे कि रात के समय उम्मेद ठाकुर के घर रोज पुलिस की नेमप्लेट लगी एक बोलेरो गाड़ी आती थी. सब लोग समझते थे कि उम्मेद ठाकुर की लड़की ज्योति पुलिस में है, ड्यूटी के बाद पुलिस की गाड़ी उसे छोड़ने आती होगी. नीली बत्ती लगी हूटर बजाती हुई वह बोलेरो गाड़ी जब उम्मेद के घर की तरफ आती तो उसे देखने के लिए अन्य लोगों के अलावा पढ़ेलिखे नवयुवक भी आ जाते.

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