एंटी टेरेरिस्ट स्क्वायड यानी एटीएस में बतौर एएसपी तैनात राजेश साहनी की खुदकुशी पर लखनऊ के लोग यकीन नहीं कर पा रहे. राजेश साहनी का नाम ईमानदार और सीधेसरल अफसरों में लिया जाता था. वह बहुत मृदुभाषी थे. लोग उन के पास अपनी परेशानी ले कर जाते थे तो शिकायत सुनने के बाद वह अपनी सलाह देते समय एक तरह से पूरी काउंसलिंग कर देते थे.
जब वह किसी सेमीनार में हिस्सा लेने जाते थे तो सब से एक ही अपील करते थे कि कभी अपने मन की बात को मन में न रखें, उसे व्यक्त करें, कठिनाई कोई भी हो रास्ता निकल ही आता है. पुलिस विभाग में उन को मोटिवेटर के रूप में देखा जाता था. राजेश साहनी केवल मोटिवेटर ही नहीं थे, खुद भी बहुत कुछ करते थे. जहां बहादुरी दिखानी होती थी वहां वह पीछे नहीं हटते थे. उन के लिए इस बात का कोई मतलब नहीं था कि पुलिस के किस विभाग में तैनात हैं.
लखनऊवासियों को उस समय का एक वाकया आज भी याद है, जब राजेश साहनी सीओ चौक हुआ करते थे. उन्हीं दिनों एक दिन वह वाहनों की चेकिंग कर रहे थे. तब समाजवादी पार्टी की सरकार थी और मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे. चैकिंग के समय सपा के कुछ नेता वहां से एक जीप से गुजरे. पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की तो उन्होंने जीप को पुलिस पर चढ़ाने का प्रयास किया. राजेश साहनी खुद आगे बढ़े और जीप के बोनट पर चढ़ गए.
दुस्साहसी नेताओं ने जीप की स्पीड बढ़ा दी और गाड़ी लहरा कर चलाने लगे ताकि राजेश साहनी गिर जाएं, उन को चोटें लगें. 3 किलोमीटर तक गाड़ी इसी तरह भागती रही. साहनी की हिम्मत देख नेताओं को लगा कि वे बचेंगे नहीं. ऐसे मे वे जीप को मुख्यमंत्री आवास की ओर ले जाने लगे. पुलिस ने घेराबंदी की और हजरतगंज में एसएसपी कार्यालय के पास जीप रोक ली. गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने नेताओं को जेल भेज दिया. इस मामले के बाद पूरे लखनऊ में राजेश साहनी की चर्चा जांबाज अफसर के रूप में होने लगी.