डा. डी. विजया राजकुमारी की देखरेख में चल रहा किडनी गैंग गरीब लोगों की किडनी 4-5 लाख में खरीद कर 35-40 लाख रुपए में बेचता था. आप भी जानें कि गैंग के सदस्य भारत के ही नहीं, बल्कि बांग्लादेश के लोगों को किस तरह अपने जाल में फांस कर अपने काम को अंजाम देते थे.
रात के 9 बजे का समय होगा. दक्षिणपूर्वी दिल्ली के जसोला क्षेत्र में स्थित एक मुसलिम ढाबे पर 3 लोग आए. तीनों शक्लसूरत और पहनावे से बांग्लादेशी मुसलमान लग रहे थे. तीनों सांवले रंग के और 30 से 40 की उम्र के लपेटे में थे. इन के पहनावे और शक्लसूरत से लग रहा था कि यह बहुत गरीब तबके के हैं. तीनों आ कर खुले आसमान के नीचे लगी टेबल के इर्दगिर्द बिछी कुरसियों पर बैठ गए. इन तीनों में से एक व्यक्ति काफी परेशान दिखाई दे रहा था. उस के चेहरे पर चिंता के भाव थे. वह गुमसुम भी था, जबकि उस के साथी के चेहरे खिले हुए नजर आ रहे थे. उन के बैठते ही एक वेटर उन के पास आ कर अदब से बोला, ”क्या खाएंगे जनाब?’’
”3 हाफहाफ प्लेट कोरमा और रूमाली रोटी ले आओ,’’ उन में से एक व्यक्ति ने और्डर दिया. वेटर वहां से चला गया तो परेशान सा दिखने वाला व्यक्ति फंसे स्वर में बोला, ”मैं कोरमा नहीं दाल खाऊंगा. कोरमा मेरे गले से इस हालत में नीचे नहीं उतरेगा.’’ ”क्यों?’’ और्डर देने वाला व्यक्ति उसे घूरते हुए बोला, ”क्या तेरे गले का सुराख बंद हो गया है?’’ ”ऐसी बात नहीं है इकबाल, बस मेरी इच्छा नहीं हो रही है.’’
”मुझे मालूम है तेरी इच्छा कोरमा खाने की क्यों नहीं हो रही है नूर.’’ इकबाल ने गंभीर स्वर में कहा, ”तू किडनी देने के नाम पर परेशान और नरवस हो गया है.’’ ”हां,’’ उस व्यक्ति का नाम नूर था, धीरे से बोला, ”मैं यहां इस लालच में आया था कि मुझे 5-6 हजार रुपए की नौकरी मिलेगी, लेकिन यहां ला कर वे लोग मेरी किडनी का सौदा कर रहे हैं, यह ठीक नहीं है.’’ ”नूर वो तुम्हारी नहीं, हम दोनों की भी तो किडनी मांग रहे हैं, हम तो नरवस नहीं हैं.’’ इकबाल नूर के कंधे पर हाथ रख कर बोला, ”हम तो खुशीखुशी अपनी किडनी देने को तैयार हो गए हैं.’’
नूर ने भर्राई आवाज में कहा, ”तुम्हें अपने बीवीबच्चों से प्यार नहीं है, मैं अपने बीवीबच्चों को बहुत प्यार करता हूं. मैं उन लोगों के लिए जिंदा रहना चाहता हूं.’’ इस बार तीसरा व्यक्ति जिस का नाम शाकिर रहमान था, बहुत संजीदा होते हुए बोला, ”तुम से ज्यादा मैं अपनी बीवी और नन्हीं बेटी जैद से बहुत प्यार करता हूं नूर मियां, लेकिन मैं खुशीखुशी अपनी किडनी बेच रहा हूं. भाई नूर…’’ एकाएक शाकिर खामोश हो गया. वेटर खाना ले कर आ रहा था, इसलिए उस ने अपनी बात बीच में छोड़ दी थी. वेटर खाने की प्लेटें लगा कर चला गया तो शाकिर ने कहा, ”भाई नूर, किडनी देने से कोई मरता नहीं है.’’
इकबाल ने सिर हिला कर शाकिर की बात का समर्थन किया, ”शाकिर की बात ठीक है नूर. देख, हर इंसान के शरीर में 2 किडनियां होती हैं. यदि इन में से एक किडनी किसी वजह से खराब हो जाए तो इंसान फिर भी जीवित रह सकता है.’’ कुछ पल खामोश रह कर उस ने बात आगे बढ़ाई, ”अगर इंसान अपनी एक किडनी किसी को दे दे तो एक किडनी के सहारे वह अपनी शेष जिंदगी जी लेगा. अब मैं तुझे हम लोगों की जिंदगी की हकीकत से रूबरू करवाता हूं जो हम जी रहे हैं. देख, वहां बांग्लादेश में हम भूखों मर रहे हैं. बहुत कड़ी मेहनत करने के बाद किसी तरह अपने बच्चों के लिए बस रोटी लायक कमा पाते हैं. हमें किसी दिन काम नहीं मिलता तो बच्चे उस दिन भूख से बिलबिलाते हुए घुटने पेट से लगा कर सो जाते हैं, तब हम अपने आप पर लानत भेजते हैं कि क्यों इंसान के रूप में हम इस जमीन पर पैदा हुए.
”नूर, हर बरसात में हमारे घर के छप्पर टपकते हैं, तेज धूप में छप्परों से धूप छन कर अंदर घर में आती है तो बीवीबच्चे गरमी से झुलसते रहते हैं. हम अपने बीवीबच्चों के ठीक से तन तक नहीं ढक पाए हैं. नाली के अंदर रेंगने वाले कीड़ेमकोड़ों जैसी जिंदगी जी रहे हैं हम.’’ इकबाल का गला भर आया. किसी तरह उस ने खुद पर काबू पाया. कुछ क्षण रुकने के बाद वह बोला, ”हमें बांग्लादेश से भारत इसलिए लाया गया है कि हमें 8-10 हजार रुपए महीना की अच्छी नौकरी दिलवाई जाएगी. किंतु अब बात खोली गई है हमारी किडनी वह मांग रहे हैं. मैं समझता हूं कि यह हमारे सौभाग्य की बात है.
”देख नूर, यदि हमें 8 हजार की नौकरी मिल भी गई तो भी हम शान की जिंदगी नहीं जी पाएंगे. वह हमारी किडनी 7 या 8 लाख में खरीद रहे हैं. इतनी बड़ी रकम हमारी फटेहाल जिंदगी में खुशियों के रंग बिखेर देगी. हमारे बच्चेबीवी सुकून भरी जिंदगी जी लेंगे. अपनी किडनी बेच कर हम अच्छे पिता और अच्छे शौहर होने का हक अदा करेंगे दोस्त.’’ नूर को बात समझ आ गई थी, वह भर्राए स्वर में बोला, ”अपने बीवीबच्चों के लिए मैं कुरबानी देने को तैयार हूं. चलो, खाना खाते हैं, कोरमा ठंडा हो रहा है.’’ नूर की बात पर इकबाल और शाहिद मुसकराने लगे. अब वे अपनीअपनी प्लेट सरका कर इत्मीनान से खाना खाने लगे थे.
डोनर की बातों से मुखबिर के कान क्यों हुए खड़े
उन तीनों ने अभी खाना खा कर प्लेटें सरकाई ही थीं कि एक फटेहाल व्यक्ति ने आ कर इकबाल के पैर पकड़ लिए. ”अरे! अरे! यह क्या कर रहे हो भाई?’’ इकबाल घबरा कर बोला, ”मेरे पांव से क्यों लिपट रहे हो.’’ ”आप मेरा बेड़ा पार कर सकते हैं माईबाप.’’ वह व्यक्ति गिड़गिड़ा कर बोला. ”मैं…’’ इकबाल ने उस से पैर छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा, ”क्या तुम भूखे हो?’’ ”नहीं जनाब… रोटी तो मुझे कहीं भी हाथ फैलाने पर मिल जाती है, मुझे पेट की भूख नहीं है.’’
‘‘तब क्या चाहिए तुम्हें?’’ इकबाल ने उसे उठा कर अपने पास पड़ी कुरसी पर बिठा कर पूछा. ”मैं ने अभीअभी आप लोगों की बातें सुनी हैं.’’ उस की बात पर तीनों चौंक कर उसे हैरानी से देखने लगे. ”क्या सुना है तुम ने?’’ कुछ क्षण खामोश रहने के बाद इकबाल ने उस व्यक्ति से पूछा. ”आप लोग अपनी किडनी बेच रहे हैं.’’ वह व्यक्ति गंभीर स्वर में बोला, ”मैं बहुत परेशान हूं. मैं भी अपनी किडनी बेचना चाहता हूं.’’ ”भीख मांगते हो, तुम्हें किडनी बेचने की क्या जरूरत आ पड़ी.’’ नूर ने हैरानी से पूछा.
”काम नहीं मिल रहा है भाईसाहब, इसलिए अपना और बीवीबच्चों का पेट भरने के लिए भीख मांगने की नौबत आ पड़ी है. मेरी बीवी को कैंसर है. डाक्टर कह रहे हैं कि यदि अच्छे हौस्पिटल में इलाज करवाओगे तो बच सकती है. मैं किडनी बेच कर बीवी का इलाज करवाऊंगा.’’ ”ओह!’’ नूर के मुंह से आह निकली, ”तुम भी हमारी तरह जरूरतमंद हो भाई. क्या नाम है तुम्हारा?’’
”मेरा नाम माजिद है,’’ उस व्यक्ति ने बताया. ”देखो माजिद भाई. हम बांग्लादेशी हैं, चटगांव से हमें रोकोन ले कर आया है. वैसे जहां हम ठहरे हैं, उस का मालिक रसेल है, तुम रसेल से मिलो.’’ ”मैं उसे नहीं पहचानता.’’ ”हम दूर से दिखा देंगे. तुम अपने बूते पर रसेल से बात करना, हमारी ओर न देखना. न यह बताना कि तुम ने हम लोगों की बातें सुनी हैं, इसलिए किडनी बेचने आए हो.’’ ”ठीक है भाईजान,’’ माजिद ने सिर हिला कर कहा. कुछ देर तक वहां खामोशी रही. वह वेटर द्वारा खाने का बिल लाने की बाट जोह रहे थे.
वेटर जब नहीं आया तो इकबाल झुंझला कर बोला, ”मैं देखता हूं, क्या पता बिल काउंटर पर देना होता हो.’’ ”देख लो.’’ नूर ने कहा, ”बिल शायद काउंटर पर ही देना होगा.’’ इकबाल उठ कर काउंटर की तरफ चला गया. ”एक बात बताओ नूर भाई,’’ माजिद आगे की ओर धीरे से बोला, ”ये लोग तुम्हें किडनी बेचने के बदले में कितने रुपए देंगे?’’ ”तय नहीं हुआ है, शायद 7-8 लाख मिलेगा एक किडनी का.’’ नूर ने बताया. ”ठीक है, मैं भी 8 लाख मांगूगा.’’ माजिद ने खुश हो कर कहा, ”मेरी बीवी के इलाज में 5 लाख भी लगा तो भी 3 लाख मेरे पास बच जाएगा, उन रुपयों से कोई धंधा खोल लूंगा.’’
मुखबिर ऐसे पहुंचा गैंग के सरगना तक
इकबाल पेमेंट कर के लौट आया तो सभी उठ कर खड़े हो गए. ”माजिद तुम चुपचाप हमारे पीछे आओ. जिस फ्लैट में हम जाएंगे, वहां तुम भी आ जाना. रसेल कौन है, यह तुम्हें वहां इशारे से मैं दिखा दूंगा.’’ ”ठीक है, भाई जान.’’ वे तीनों उस ओर बढ गए, जहां उन्हें एक फ्लैट में ला कर ठहराया गया था. थोड़ी ही देर में वे तीनों फ्लैट में पहुंच गए. माजिद उन लोगों के पीछेपीछे साए की तरह लगा रहा. वह भी फ्लैट में आ गया. ”तुम कौन हो? यहां कैसे घुस आए हो?’’ एक कड़कता स्वर वहां गूंजा.
माजिद अपनी जगह ठिठक गया. क्षण भर बाद ही उसे अपनी ओर एक पतला सा व्यक्ति आता दिखा. उस के चेहरे पर सख्ती दिखाई दे रही थी. नूर धीरे से माजिद के पास से गुजरा और फुसफुसा कर बोला, ”यही है रसेल.’’ रसेल ने यह नहीं देखा. वह माजिद की तरफ बढ़ रहा था. माजिद के सामने आ कर वह रुक गया. ”कौन हो तुम?’’ उस ने गुर्रा कर पूछा.
”मेरा नाम माजिद है साहब, बहुत परेशान हूं.’’ माजिद कहतेकहते नीचे झुका और रसेल के पैरों पर लोटने लगा. ”अरे, यह क्या तमाशा है.’’ रसेल घबरा कर उछला. वह माजिद से दूर जा कर खड़ा हुआ और जोर से बोला, ”तुम उठ कर खड़े हो जाओ और बताओ तुम्हें क्या परेशानी है.’’ माजिद उठ कर खड़ा हो गया. उस की आंखों में एकाएक आंसू चमके. भर्राए गले से वह बोला, ”मेरी बीवी कैंसर से जूझ रही है जनाब, उसे बचा लीजिए.’’ ”मैं डाक्टर नहीं हूं दोस्त.’’ रसेल कुछ नरम पड़ गया, ”अपनी बीवी का किसी अच्छे अस्पताल में इलाज करवाओ तुम.’’
”इस के लिए पैसा चाहिए जी, मेरे पास जहर खाने के भी पैसे नहीं हैं. यहां आप से मदद मांगने आया हूं.’’ ”कितना पैसा लगेगा?’’ रसेल ने हमदर्दी दिखाई. ”5-6 लाख लग जाएगा जनाब.’’ रसेल की आंखें चमकीं, ”तुम मेरे साथ मेरे औफिस में आओ.’’ रसेल ने एक ओर कदम बढ़ाए. माजिद उस के पीछेपीछे था. रसेल उसे जिस कमरे में लाया, वह बैडरूमनुमा औफिस था. रसेल ने अंदर पहुंचते ही दरवाजा बंद कर लिया. माजिद को एक गोल मेज के पास में ला कर उसे बैठने को कहा और सामने खुद बैठ गया.
”क्या नाम है तुम्हारा?’’ ”माजिद है जनाब.’’ ”तुम्हें 7 लाख रुपया चाहिए. बीवी का इलाज करवाने के वास्ते.’’ रसेल ने राजदाराना तरीके से माजिद की आंखों में झांकते हुए कहा, ”मिल जाएगा, लेकिन बदले में मुझे तुम्हारी एक किडनी चाहिए.’’ माजिद कुछ क्षण के लिए खामोश हो गया. फिर बोला, ”मैं किडनी दे दूंगा जनाब. कब करवाएंगे मेरा औपरेशन?’’ ”पहले तुम्हारे सारे टेस्ट होंगे, इस में एक से 2 दिन लग जाएंगे.’’
”कोई बात नहीं सर!’’ ”2 दिन बाद तुम्हारी किडनी निकालने का औपरेशन हो जाएगा. तभी तुम्हें 6 लाख रुपया मैं दे दूंगा.’’ ”6 नहीं जनाब.. मैं 8 लाख लूंगा.’’ माजिद ने अपनी शर्त रखी. ”8 लाख ज्यादा हैं. डा. विजया राजकुमारी को भी 5 लाख देना होता है. डोनर की रिश्तेदारी रिसीवर के साथ दिखाने के जाली दस्तावेज तैयार करवाने में भी लाखडेढ़ लाख लग जाता है, फिर डोनर के टेस्ट आदि का खर्चा… ना भाई 8 लाख ज्यादा है. तुम्हें मैं साढ़े 6 लाख तक दे सकता हूं.’’
”चलिए, इतना ही दीजिए.’’ माजिद धीरे से बोला, ”लेकिन मुझे 10 हजार एडवांस दे दीजिए. मैं बच्चों का राशन आदि भरवा कर कल दोपहर तक यहां आ जाऊंगा.’’ रसेल ने अलमारी से 10 हजार निकाल कर माजिद को दे दिए. ”मैं विश्वास पर तुम्हें यह रुपए दे रहा हूं. तुम अब घर जाओ और कल 3 बजे तक लौट आना. और हां, तुम अपनी किडनी बेच रहे हो यह बात अपने बीवीबच्चों या किसी दूसरों को मत बताना.’’ ”नहीं बताऊंगा जनाब.’’ नोट जेब में रखते हुए माजिद ने कहा और खुशीखुशी कमरे से बाहर आ गया. कुछ ही देर में वह सीढिय़ां उतर कर खुली हवा में आ गया. उस ने चाणक्यपुरी के लिए आटो किया. इस वक्त उस की आंखों में तीखी चमक थी.
पुलिस ने मुखबिर की क्यों थपथपाई पीठ
दिल्ली के चाणक्यपुरी में स्थित क्राइम ब्रांच औफिस में माजिद इंसपेक्टर सतेंद्र मोहन के पास पहुंच गया और किडनी बेचने वाले गैंग की बातें इंसपेक्टर सतेंद्र मोहन को बता दीं. दरअसल, माजिद कोई भिखारी नहीं, वह पुलिस का विश्वासपात्र मुखबिर था. वह चाणक्यपुरी में ही रहता था. सब से दिलचस्प बात यह थी कि उस का नाम माजिद नहीं शंकर था. लोगों के पेट में घुस कर उन की असलियत मालूम करने के लिए कोई भी भेष बदल लेता था.
16 जून, 2024 का दिन था. दोपहर के 2 बज रहे थे. जब शंकर दक्षिणपूर्वी दिल्ली के जसोला गांव में अपने एक जिगरी दोस्त से मिलने गया था तो इत्तफाक से उस दिन उस की बीवी मायके गई हुई थी. तब वह दोस्त शंकर को उस मुसलिम ढाबे पर खाना खिलाने ले कर आया था. चूंकि वहां दूर तक कोई हिंदू ढाबा नहीं था, इसलिए वहां खाना खाने से न तो दोस्त को परहेज था और न शंकर को हुआ. खाना खाने के दौरान ही शंकर ने वहां पास में टेबल के इर्दगिर्द बैठ कर खाना खा रहे नूर, इकबाल और शाकिर की किडनी बेचने वाली बातें सुनी थीं. उस का मुखबिरी वाला कीड़ा कुलबुलाया तो वह दोस्त को समझा कर उन तीनों बांग्लादेशियों के पास आ गया.
अपना शानदार अभिनय कर के उस ने उन से हमदर्दी पाई और वहां तक पहुंच गया, जहां पर वे ठहरे थे. वहां वह रसेल से मिला और अपनी किडनी का साढ़े 6 लाख रुपए में सौदा तय कर लिया. वह दूसरे दिन भी जसोला गांव में रसेल के फ्लैट पर गया. उसे रसेल ने जांच के लिए इकबाल, नूर और शाकिर के साथ नोएडा के यथार्थ हौस्पिटल भेजा. उन्हें रसेल का एक व्यक्ति गाइड कर रहा था, जिस का नाम रतेश पाल था. यहां शंकर ने उस लेडी डाक्टर से भी मुलाकात की, जो उन की किडनी ट्रांसप्लांट करने वाली थी. उस का नाम डा. डी. विजया राजकुमारी था. वह चेन्नै की रहने वाली थी. ज्यादा पैसा कमाने के लिए वह कई अस्पतालों में विजिटिंग कंसलटेंट के तौर पर काम करती थी. अपोलो अस्पताल प्रबंधन ने उस की अवैध गतिविधियों के चलते उसे अस्पताल से सस्पेंड कर दिया था. रसेल से उस के काम करने का तरीका और उस के गैंग मेंबर के बारे में मालूम कर के शंकर क्राइम ब्रांच औफिस पहुंचा था. उस ने इंसपेक्टर सतेंद्र मोहन को जब किडनी रैकेट के विषय में बताया तो वह हैरान रह गए.
शंकर की पीठ थपथपा कर वह बोले, ”अगर तुम्हारी जानकारी सही है तो इस बार तुम बड़े ईनाम के हकदार बनोगे शंकर.’’ ”शंकर नाम है मेरा सर, मैं ने इस केस में बहुत मेहनत की है. यदि आप जसोला गांव के उस फ्लैट पर छापा मारेंगे तो वहां किडनी सौदागर और वे गरीब बांग्लादेशी मिल जाएंगे, जिन्हें नौकरी दिलाने के बहाने यहां लाया गया है. वह 5-5 लाख में अपनी किडनी का सौदा कर चुके हैं.’’ शंकर कुछ क्षण के लिए खामोश हुआ फिर बोला, ”कल या परसों तक उन तीनों की किडनियां निकाल ली जाएंगी, सर. मैं चाहता हूं उन गरीबों की किडनी न निकलने पाए.’’
”नहीं निकाल पाएंगे शंकर, मैं वादा करता हूं लेकिन उन्होंने अपनी किडनी बेचने का गुनाह किया है, वह जायज तरीका नहीं है किडनी देने का. भारतीय कानून कहता है कि किडनी लेने वाला और देने वाला आपस में सगे रिश्तेदार होने चाहिए. किसी दूसरे से किडनी लेना कानूनन जुर्म है.’’ ”उन के जाली कागजात बना दिए गए हैं सर. वे लोग बहुत बड़े रैकेट को चला कर लाखों रुपए कमा रहे हैं. इस गैंग को पकडऩा बहुत जरूरी है.’’
”हां. वे पकड़े जाएंगे. तुम बेफिक्र रहो. तुम बाहर बैठो, मैं अफसरों से बात कर के आगे की योजना बनाता हूं.’’ ”ओके सर.’’ शंकर ने कहा और सीटी बजाता हुआ कमरे से बाहर निकल गया. इंसपेक्टर सतेंद्र मोहन ने क्राइम ब्रांच के एसीपी रमन लांबा से संपर्क कर के शंकर द्वारा बताई गई किडनी रैकेट की जानकारी दे दी. एसीपी ने इसे गंभीरता से लिया और तुरंत इस पर सख्त ऐक्शन लेने के लिए इंसपेक्टर सतेंद्र मोहन को निर्देश दे दिए. साथ ही यह भी कहा कि इस मामले में डीसीपी अमित गोयल से भी बात कर लें. उन की परमिशन इस इंटरनैशनल किडनी रैकेट के मामले में जरूरी है.
इंसपेक्टर सतेंद्र मोहन ने डीसीपी अमित गोयल से बात कर के उन्हें सारी जानकारी दी. डीसीपी साहब ने किडनी रैकेट चलाने वाले गिरोह पर रात ही को रेड डालने के लिए एक टीम का गठन कर दिया. इस टीम में इंसपेक्टर सतेंद्र मोहन, एसआई समय सिंह, आशीष कुमार शर्मा, एएसआई शैलेंद्र सिंह, राकेश कुमार, हैडकांस्टेबल रामकेश, सुरेंद्र सिंह, शक्ति सिंह, वरुण कुमार, कांस्टेबल नवीन कुमार आदि को शामिल किया गया. टीम का नेतृत्व एसीपी रमन लांबा कर रहे थे. उन्होंने सभी को कमरे में बुला कर मीटिंग की. सभी को निर्देश दिया कि वह रेड के दौरान सजग और चौंकन्ने रहें. यह गैंग बचाव में उन पर फायरिंग भी कर सकता है.
इस तरह शिकंजे में आया किडनी गैंग
रात को क्राइम ब्रांच की पूरी टीम वैन में सवार हो कर जसोला गांव पहुंच गई. सावधानी से उन्होंने वैन एक अंधेरी जगह रोकी और उतर कर पैदल ही जसोला गांव में दाखिल हो गए. उन के साथ मुखबिर शंकर भी था. वह पूरी टीम को रास्ता दिखा रहा था. रसेल के फ्लैट को दिखा कर शंकर नीचे ही रुक गया. क्राइम ब्रांच की टीम तेजी से ऊपरी मंजिल की तरफ बढ़ गई. ऊपर के फ्लैट में हट्टेकट्टे व्यक्तियों को घुसते देख कर सभी सकपका गए.
इंसपेक्टर सतेंद्र मोहन ने ऊंची आवाज में कहा, ”जो जहां है, वहीं अपने हाथ सिर से ऊपर उठा ले. हम क्राइम ब्रांच से हैं, कोई भागा या होशियार बना तो उस की खोपड़ी उड़ा दी जाएगी.’’ उन की धमकी काम कर गई. सब अपनी जगह हाथ उठा कर खड़े रह गए. यहां रसेल, रोकोन के अलावा 5 बांग्लादेशी व्यक्ति हिरासत में लिए गए. वह डोनर और किडनी खरीदने वाले व्यक्ति थे. रसेल मुख्य आरोपी था. यह किडनी रैकेट वही चला रहा था. उस के साथी रोकोन, रितेश पाल और इफ्ती, बांग्लादेश और नार्थईस्ट स्टेट त्रिपुरा आदि के डायलिसिस सेंटरों में घूमते थे और गरीब बांग्लादेशी युवकों को नौकरी का झांसा दे कर दिल्ली में बुलाते थे. यहां उन के पासपोर्ट छीन कर उन्हें किडनी बेचने को मजबूर करते थे.
गरीब बांग्लादेशी व्यक्ति 5-6 लाख के लालच में अपनी एक किडनी बेचने को तैयार हो जाता था. इस किडनी को जरूरतमंद अमीर व्यक्ति को 25-30 लाख में बेचा जाता था. कभीकभी अमीर व्यक्ति, जिस की दोनों किडनियां खराब हो चुकी होती हैं, वह अपनी जिंदगी बचाने के लिए 60-70 लाख रुपया दे देता था. इस गैंग का किडनी ट्रांसप्लांट में 2019 से जो डाक्टर साथ दे रही थी, उस का नाम डी. विजया राजकुमारी था. वह सीनियर कंसलटेंट और ट्रांसप्लांट सर्जन है. 15 साल पहले जूनियर डाक्टर के तौर पर उस ने इंद्रप्रस्थ अपोलो हौस्पिटल में जौइन किया था.
क्राइम ब्रांच टीम फ्लैट से 3 लोगों को गिरफ्तार कर के अपने साथ क्राइम ब्रांच चाणक्यपुरी औफिस में ले कर आई. इस टीम ने 3 बांग्लादेशी व्यक्तियों को पीछे की बिल्डिंग से हिरासत में लिया गया. ये वही 3 बांग्लादेशी थे, जो मुखबिर को मुसलिम ढाबे में टकराए थे. इन के बारे में हम पहले ही बता चुके हैं, इन को हम नूर, इकबाल और शाहिद के नाम से जानते हैं. लेकिन इन की असली पहचान छिपाने के लिए ये नाम रखे गए थे. इन के वास्तविक नाम क्राइम ब्रांच टीम की पूछताछ में सामने आए, इस प्रकार थे.
- मोहम्मद तारीकुल इसलाम (24 वर्ष) निवासी चारुंबबांद, दिनाजपुर, बांग्लादेश
- सुजीत सुतरोडार पुत्र ओमोल सुतरोडार (28 वर्ष) निवासी नेट्रो कोना, बांग्लादेश
ये दोनों किडनी डोनर थे.
एक- मोहम्मद जोनी (32 वर्ष) पुत्र मोहम्मद इदरीस निवासी हाथाजारी, जिला- चीटागांव, बांग्लादेश
दूसरा- सुजान बरुआ (50 वर्ष) पुत्र बाबुल बरुआ निवासी राओजान, जिला चीटागांव, बांग्लादेश
तीसरा- रहीमा बेगम (52 वर्ष) पत्नी नूरुद्ïदीन निवासी थाना जलालाबाद, सिलहठ, बांग्लादेश
ये तीनों अपनी किडनी खराब बता रहे थे, भारत में इन्हें डोनर दिलवाने के लिए इफ्ती और रोकोन यहां लाए थे. इन्हें 25 लाख रुपए प्रति किडनी के हिसाब से देने थे. इस के लिए इफ्ती ने रसेल से इन की बात करवा दी थी. रसेल इस किडनी गैंग का मुख्य आरोपी था. उस का साथी रितेश पाल त्रिपुरा का रहने वाला था. रितेश पाल 12वीं पास था. यह रसेल, सुमोन और रोकोन के साथ बांग्लादेश से मरीजों और डोनर को भारत लाने में मदद करता था. मोहम्मद शारिक उत्तर प्रदेश का निवासी था. इस ने बीएससी की पढ़ाई की थी. मैडिकल लैब तकनीशियन का कोर्स कर रखा है.
रोगियों और किडनी दानदाताओं की प्रत्यारोपण फाइलों के संबंध में निजी सहायक विक्रम और डा. विजया के साथ तालमेल बनाता था. उत्तराखंड का मूल निवासी विक्रम सिंह 12वीं पास था. वर्तमान में फरीदाबाद में रहता है. यह डा. विजया का सहायक है. किडनी ट्रांसप्लांट का काम डा. डी विजया राजकुमारी सीनियर कंसल्टेंट का था. वह सर्जन है. किडनी की अदलाबदली वही करती थी. यह पता चलते ही उसे गिरफ्तार कर लिया गया था. उस का सहायक विक्रम सिंह, मोहम्मद शाकिर, रितेश पाल, सुमोन भी क्राइम ब्रांच की गिरफ्त में आ गए. डा. डी. विजया राजकुमारी ने पूछताछ में बताया कि डोनर और रिसीवर का किडनी ट्रांसप्लांट यथार्थ हौस्पिटल (ग्रेटर नोएडा) में करती थी.
पता चला कि इस अस्पताल में पिछले 2 सालों में 20 से अधिक किडनियां ट्रांसप्लांट हुईं. डा. विजया दिल्ली से 6 सदस्यों की टीम ले कर किडनी ट्रांसप्लांट के लिए नोएडा जाती थी. एक ट्रांसप्लांट का वह 5 लाख रुपए लेती थी. गैंग द्वारा 34 प्रत्योरापणों की पुलिस पहचान कर चुकी थी. एक सप्ताह तक की गई छापेमारी में पुलिस 8 लोगों को गिरफ्तार कर चुकी थी.
सभी आरोपियों को अदालत में पेश कर पुलिस ने उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया. लेकिन इन लोगों के पकड़े जाने से क्या इस प्रकार के अवैध औपरेशन, अवैध धंधे, मानव तस्करी जैसे काम रुक जाएंगे? कदापि नहीं, क्योंकि जल्द ज्यादा पैसे कमाने के लिए ऐसे लोग निचले स्तर तक गिरने को तैयार रहते हैं.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित