दोपहर की तपती धूप काली सडक़ों पर कुछ ज्यादा ही तीखी चमक रही थी. गरमी की वजह से सडक़ें लगभग सूनी थीं. चिलचिलाती धूप में सडक़ों पर इक्कादुक्का लोग ही आजा रहे थे. रंगीन दुपट्टों को मुंह पर बांधे गरम लपटों के थपेड़ों को झेलती 3 लड़कियां तेजी से चली जा रही थीं. वे पटना के बाढ़ इलाके के एएसएन स्कूल से घर लौट रही थीं.
चौक चौराहे पर खड़े 4 लडक़ों ने उन्हें आते देखा तो आपस में कुछ बातें कीं और इधरउधर झांक कर उन के पीछेपीछे चल पड़े. लडक़ों की चालढाल और हावभाव से लड़कियों को समझते देर नहीं लगी कि वे उन का पीछा कर रहे हैं. कपड़े सहेजती हुई लड़कियों ने अपनी चाल बढ़ा दी. लडक़े भी पीछे नहीं रहे. उन्होंने तेजी से आगे बढ़ कर लड़कियों को रोक लिया.
लडक़ों के इस साहस पर लड़कियां सहम कर रुक गईं. उन में से एक ने कहा, “यह क्या बदतमीजी है? तुम लोगों ने हमारा रास्ता क्यों रोक लिया?”
“मैडम, हम भी आप के साथ चलना चाहते हैं.” चारों लडक़ों में से एक ने कहा तो उस के तीनों साथी बेशरमी से हंसने लगे.
“हटो आगे से, हमें जाने दो.” तीनों लड़कियों में से एक ने कहा.
“लो भई हट गए,” लड़कियों के सामने से हटते हुए उसी लडक़े ने कहा, “लेकिन जाएंगी कहां, कोई न कोई तो आप लोगों को संभालने के लिए साथ होना चाहिए.”
“तुम्हें शायद पता नहीं कि तुम ने किस से पंगा लिया है. तुम लोगों ने जो किया है, इस की सजा तुम सब को जरूर मिलेगी.”