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मानसी की अदाओं और खूबसूरती का दीवाना बन चुके कारोबारी संजीव जैन ने उसे फोन किया, ‘‘यार मानसी, तुम कहां हो? मिलना है...’’

‘‘... लेकिन मैं तो आज ही मेरठ आई हूं.’’ मानसी की आवाज आई.

‘‘मेरठ कब? क्यों गई हो मेरठ? कोई खास बात है क्या?’’ संजीव लगातार बोलता चला गया.

‘‘इतने सवाल एक साथ मत करो. मेरी ससुराल है मेरठ में. मेरी भी तो कुछ पर्सनल है. मैं अपने चाचा के यहां भाई की शादी में आई हूं. कल शाम ही रायपुर से आई थी... कुछ जरूरी बात है तो बताओ, अभी के अभी आती हूं...’’ मानसी मिठास भरी शब्दों में बोली.

‘‘अरे यार, तुम्हारी बहुत याद आ रही है. मैं आज रायपुर पहुंच रहा हूं. सोचा था तुम से भी मिलता चलूं.’’ संजीव जैन ने मानसी के प्रति प्यार दर्शाते हुए धीरे से कहा.

‘‘अच्छा तो ये बात है,’’ मानसी बोली, ‘‘कोई बात नहीं, एक दिन वहां रुक सकते हो तो होटल में ठहरो.’’

‘‘तुम ने न जाने कैसा जादू कर दिया है मुझ पर, जब तक तुम से बात न कर लूं, मिल न लूं, मन नहीं लगता... और तुम से मिले हुए भी तो कई दिन हो गए हैं,’’ संजीव ने कहा.

संजीव की इस बात पर मानसी हंसती हुई बोली, ‘‘मैं भी तो तुम्हें हमेशा याद करती हूं. तुम्हारे इंतजार में कई बार घंटों बैठी रही हूं. और वैसे भी जब तुम ने फोन कर ही दिया है तो मेरी एक छोटी सी प्राब्लम दूर कर दो न प्लीज!’’

‘‘बताओ न प्राब्लम. मेरी तो जान हाजिर है तुम्हारे लिए,’’ संजीव चहकते हुए बोला.

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