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शाम होतेहोते मानसी के अकाउंट में एक लाख रुपए की राशि आ चुकी थी. इतनी बड़ी राशि देख कर के मानसी को विश्वास ही नहीं हो पा रहा था. उसे तो सिर्फ 25 हजार रुपए की ही जरूरत थी.  उस ने सोचा ही नहीं था कि संजीव इतनी बड़ी राशि भेज देगा.

मानसी सोच में पड़ गई कि आखिर इतना पैसा संजीव ने क्यों दिया? गलती से या फिर जानबूझ कर? इसे संजीव ने बहुत ही हलके में लिया.

उस के बाद संजीव और मानसी की मुलाकातें और भी अधिक होने लगी थीं. एक बार जब मानसी ने पैसे लौटाने की बात की तब संजीव ने उसे झिड़क दिया था. डांटते हुए कहा था कि वह दोबारा ऐसी बात नहीं करे. उस के पास सब कुछ है. किसी बात पर जब भी मानसी को संजीव उदास देखता, तो तुरंत पूछ बैठता, ‘‘अरे, यह क्या, तुम्हें कुछ पैसे की जरूरत है तो बेझिझक बताओ.’’

मानसी जवाब देने के बजाय सिर्फ उस की ओर देखती रहती और गोलगोल आंखें मटका देती. इस पर संजीव बोल देता, ‘‘यही तो तुम्हारी खूबी है, जिस कारण मैं तुम्हें जी जान से चाहता हूं, प्यार करता हूं.’’

संजीव समयसमय पर मानसी की बढ़चढ़ कर आर्थिक मदद करने लगा. यह कहा जा सकता है कि संजीव ने मानसी के लिए न केवल अपने दिल के दरवाजे खोल दिए थे, बल्कि तिजोरी भी खोल रखी थी.

दूसरी तरफ संजीव जैन की करोड़ों की दौलत देख कर के मानसी की रुपयों की चाहत बढ़ती चली गई. जब भी जरूरत होती, वह संजीव से पैसे मांग लेती थी. संजीव ने भी कभी आनाकानी नहीं की.

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