प्रियरंजन आशू दिवाकर मूलरूप से मैनपुरी का रहने वाला है. वहां उस का पुश्तैनी मकान है. उस के पिता रामप्रकाश दिवाकर शिक्षा विभाग में अधिकारी थे. 3 भाइयों में प्रियरंजन सब से छोटा है. कानपुर के श्याम नगर में भी उस का आलीशान मकान है.
वह स्वयं भी डाक्टर है और उस की पत्नी अनामिका भी डाक्टर है. आशू दिवाकर 1999 बैच का डाक्टर है. उस ने कानपुर मैडिकल कालेज से ही एमबीबीएस फिर एमएस की पढ़ाई की थी. उस की पत्नी डा. अनामिका यहीं पर फिजियोलौजी डिपार्टमेंट में कार्यरत है. उसे मैडिकल कालेज में आवास भी मिला हुआ है. लेकिन डा. प्रियरंजन आशू दिवाकर ने डाक्टरी पेशा नहीं चुना. उसे तो राजनीतिक भूख थी, इसलिए उस ने भारतीय जनता पार्टी को अपने राजनीतिक करिअर के रूप में चुना.
भाजपा में उस ने अपनी मेहनत और लगन से कद बढ़ाया, जिस का परिणाम यह हुआ कि भाजपा ने 2007 में उसे मैनपुरी के किशनी विधानसभा क्षेत्र से टिकट दे दिया, लेकिन वह हार गया. इस के बाद वह सपा में चला गया. सपा ने उसे जिला पंचायत अध्यक्ष बना दिया. कुछ समय बाद वह फिर से पाला बदल कर भाजपा में आ गया.
2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उसे पुन: किशनी से टिकट दिया, लेकिन वह फिर हार गया. इस के बाद भाजपा ने उसे बाल संरक्षण आयोग का सदस्य बना दिया. बाल आयोग में विभिन्न क्षेत्रों से सदस्यों को चुना जाता है. चूंकि प्रियरंजन आशू दिवाकर डाक्टर था, इसलिए उस का चयन मैडिकल क्षेत्र से किया गया था.
डा. प्रियरंजन आशू दिवाकर ने अपने ड्राइवर बबलू यादव की सिफारिश पर किसान बाबू सिंह की कोर्टकचहरी में जम कर पैरवी की और उस की जमीन नरेंद्र के चंगुल से मुक्त करा दी. लेकिन नरेंद्र व उस के बेटे फिर भी उसे परेशान करते रहे. इस गम में बाबू सिंह अधिक शराब पीने लगा. वह बीमार पड़ गया. आशू दिवाकर को जानकारी हुई तो उस ने बाबू सिंह को हैलट अस्पताल में भरती कराया और उस का इलाज कराया.