बीता वक़्त वापिस नहीं आता – भाग 1

रोक्सेन के चेहरे पर परेशानी के बादल एक बार फिर घिर आए थे. ऐसे ही बादल पिछले दिन शाम को भी घिरे थे. लेकिन डेरेन  वाकर का फोन आ गया था, तो वे छंट गए थे. वाकर ने फोन कर के बता दिया था कि वह रात को घर नहीं आ पाएगा. स्टेसी भी उसी के साथ लौरी में रहेगी. वाकर ने स्टेसी से उस की बात भी करा दी थी. उस समय वह लौरी में लगा टीवी देख रही थी. वह काफी खुश नजर आ रही थी, इसलिए रोक्सेन निश्ंिचत हो गई थी.

अगला पूरा दिन गुजर गया और वाकर तथा स्टेसी नहीं आए, तो रोक्सेन एक बार फिर परेशान हो उठी. उस का धैर्य जवाब देने लगा था, क्योंकि वाकर फोन भी नहीं उठा रहा था. ऐसा किसी हादसे की सूरत में ही हो सकता था. वह हादसा कैसा हो सकता है, यह रोक्सेन की समझ में नहीं आ रहा था. रात हो गई और धैर्य ने भी जवाब दे दिया, तो हार कर उस ने पुलिस को फोन कर के अपने प्रेमी डेरेन वाकर और बेटी स्टेसी लारैंस के गायब होने की सूचना दे दी.

38 वर्षीय रोक्सेन तलाकशुदा 3 बच्चों की मां थी. बेटी एमा हेमंड 17 साल की, उस से छोटी स्टेसी लारैंस 9 साल की, तो बेटा रौबर्ट 4 साल का. लगभग 19 साल पहले उस की शादी कोरोनट पेंबर से हुई थी. शादी के शुरुआती दिन बहुत अच्छे बीते. रोक्सेन पति के साथ बहुत खुश थी. लेकिन बेटी स्टेसी के पैदा होने के 3 साल बाद अचानक उन के रिश्तों में कड़वाहट आ गई. इस की वजह थी उम्र के साथ रोक्सेन के मन में बढ़ती शारीरिक संबंध की इच्छा. जबकि शराब अधिक पीने और दिन भर मेहनत करने की वजह से कोरोनट की मर्दाना ताकत कम होती जा रही थी.

शुरूशुरू में तो रोक्सेन ऐसी नहीं थी, लेकिन बेटी के पैदा होने के बाद उस में न जाने क्या बदलाव आया कि उस की शारीरिक संबंध बनाने की इच्छा एकाएक बढ़ने लगी. जबकि दिन भर का थकामादा कोरोनट शाम को शराब पी कर बिस्तर पर पड़ते ही सो जाता था. कभीकभी तो उसे खाने का भी होश नहीं रहता था.कोरोनट को तो अच्छी नींद आती थी, लेकिन उस की बगल में लेटी रोक्सेन सारी रात शारीरिक सुख के लिए तड़पती रहती थी.

सुबह उठने पर रोक्सेन कोरोनट से शिकायत करती, ‘‘तुम्हें काम और शराब के अलावा भी कुछ दिखाई देता है या नहीं? पहले तो तुम ऐसे नहीं थे, कितना प्यार करते थे? एक भी रात मुझे चैन नहीं लेने देते थे. पूरीपूरी रात जगाए रखते थे. अब ऐसा क्या हो गया कि तुम मेरी ओर देखते तक नहीं. मैं खूबसूरत नहीं रही या तुम ने किसी और से दिल लगा लिया है?’’

‘‘कैसी बातें करती हो. अब तो तुम पहले से भी ज्यादा खूबसूरत लगती हो. प्यार भी मैं तुम से पहले की ही तरह करता हूं. लेकिन क्या करूं, परिवार बढ़ने से जिम्मेदारियां बढ़ गई हैं. इसलिए ज्यादा कमाई के लिए मेहनत ज्यादा करनी पड़ती है. यह सब मैं तुम लोगों को सुखी रखने के लिए ही तो कर रहा हूं.’’ कोरोनट ने रोक्सेन को समझाया.

‘‘भाड़ में जाए यह सुख. औरत को सिर्फ रोटीकपड़े से ही सुख नहीं मिलता, इस के अलावा भी उसे कुछ चाहिए. मैं सारी रात तड़पती रहती हूं और तुम मस्ती में सोए रहते हो. रोज नहीं, तो कभीकभार ही मेरी ओर देख लिया करो.’’ रोक्सेन ने कहा.

‘‘ठीक है, अब ध्यान रखूंगा.’’ कह कर कोरोनट ने किसी तरह पीछा छुड़ाया. लेकिन अपनी इस बात पर वह कभी खरा नहीं उतरा. उस का वही ढर्रा रहा. वह करता ही क्या. पूरे दिन की हाड़तोड़ मेहनत के बाद रात को उसे पत्नी को सुख देने का होश ही नहीं रहता. उस की मजबूरी भी थी. थका होने की वजह से मानसिक रूप से वह इस के लिए तैयार ही नहीं हो पाता था.

कभी कोशिश भी करता, तो उस के दिमाग में यह घूमता रहता कि वह किस तरह पत्नी और बेटी को सुख मुहैया करवाए, जिस की उन्हें जरूरत है. यही सोचने में वह भूल जाता कि उस की पत्नी रोक्सेन को इन चीजों के अलावा भी किसी चीज की जरूरत है. उस का सोचना था कि बेटी हो गई है, तो अब रोक्सेन को उस की नजदीकी की क्या जरूरत है. वह बेटी में ही व्यस्त रहती होगी, उसे उस का होश ही नहीं रहता होगा.

जबकि रोक्सेन की यही सब से अहम जरूरत बन गई थी. वह एक समय भूखी रह सकती थी, लेकिन पति के सान्निध्य के बिना नहीं रह सकती थी. इस की वजह यह थी कि इस इच्छा को दबाना शायद उस के वश में नहीं रह गया था, वरना वह जरूर दबा लेती.

खैर, किसी तरह वक्त गुजरता रहा. बेटी के पैदा होने के करीब 5 सालों बाद रोक्सेन एक बार फिर मां बनी. इस बार बेटा रौबर्ट पैदा हुआ. इस के बाद तो उस की इच्छा और ज्यादा होने लगी. हमेशा उस की देह में आग लगी रहती, जबकि कोरोनट में उस आग को बुझाने की ताकत नहीं रह गई थी.

पति की उपेक्षा से रोक्सेन की नजरें भटकने लगीं, जिस से उस के मन में खोट आ गया. अब वह जब भी घर से बाहर निकलती, उस की नजरें पराए पुरुषों पर ठहर जातीं. उन्हें वह हसरत भरी नजरों से तब तक ताकती रहती, जब तक वे आंखों से ओझल नहीं हो जाते. वह मर्दों को ताकती जरूर, लेकिन चाहत का इजहार करने की हिम्मत नहीं कर पाती. संकोचवश वह किसी को इशारा भी नहीं कर पाती थी.

वे लोग बदनसीब होते हैं, जिन्हें इंतजार का वाजिब फल नहीं मिलता. रोक्सेन उन में से नहीं थी. उस दिन शाम को वह मौल में शौपिंग करने गई, तो उस की हसरत पूरी हो गई. शौपिंग करने के बाद वह कैश काउंटर पर पेमेंट कर के गेट की ओर बढ़ रही थी, तभी गेट के पास खड़े एक युवक पर उस की नजरें जम गईं. इस की वजह यह थी कि वह युवक उसी को ताक रहा था.

रोक्सेन का दिल धड़का और पलकें अपने आप झपक उठीं. वह युवक भी उस से जरा भी कम स्मार्ट नहीं था. हां, उम्र में उस से कम जरूर था. इस के बावजूद रोक्सेन उस की नजरों में छा गई, तो वह भला क्यों पीछे रहती. उस ने उसे दिल की धड़कन बना लिया. अब कदमों के रुकने का सवाल ही नहीं था. रोक्सेन ने उस की ओर कदम बढ़ाए, तो युवक भी उस की ओर बढ़ने लगा.

दोनों आमनेसामने थे. मुसकराहट दोनों के होंठों पर थी. वे एकदूसरे की आंखों में अपनीअपनी तसवीरें देखते हुए चाहत तलाशने की कोशिश कर रहे थे. कुछ कहना भी चाह रहे थे, लेकिन होंठों से शब्द नहीं निकल रहे थे. बस कांप कर रह जा रहे थे. इसी कशमकश में आखिर युवक ने हिम्मत दिखाई, ‘‘मुझे डेरेन वाकर कहते हैं और आप.’’

‘‘रोक्सेन नाम है मेरा, लेकिन आप मुझे आप न कह कर तुम कहोगे, तो ज्यादा अच्छा लगेगा.’’ रोक्सेन ने कहा.

‘‘अगर तुम भी मुझे आप न कह कर वाकर कहोगी, तो मुझे भी अच्छा लगेगा.’’ डेरेन ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘यहां आतेजाते लोग घूर रहे हैं. अगर हम कहीं एकांत में चलें, तो..?’’ रोक्सेन ने हिम्मत कर के कहा.

वाकर रोक्सेन को साथ ले कर मौल स्थित रेस्टोरेंट में आ गया. रेस्टोरेंट में कोने की टेबल पर बैठने के बाद बातों का सिलसिला शुरू हुआ. इस बातचीत में दोनों ने अपनेअपने बारे में सब कुछ बता दिया.

32 साल का हो जाने के बाद भी डेरेन वाकर कुंवारा था. उस के पास अपनी एक कैब (लौरी) थी, जिस से वह शहर व शहर के बाहर डिपार्टमेंटल स्टोरों पर माल सप्लाई का काम करता था. काम भी अच्छा था और कमाई भी अच्छी थी. वह ए.एफ. ब्लेकमोरे एंड संस नामक कंपनी के लिए काम करता था. उसी का माल वह स्टोरों पर पहुंचाता था.

अपने जैसा स्मार्ट और अपनी उम्र से कमउम्र प्रेमी पा कर रोक्सेन खुश थी. वाकर को भी ऐतराज नहीं था कि रोक्सेन उस से उम्र में 6 साल बड़ी थी और 2 बच्चों की मां थी. रोक्सेन और वाकर ने किसी भी तरह की औपचारिकता निभाए बगैर पहली ही मुलाकात में अपनेअपने प्यार का इजहार कर दिया था.

तीन साल बाद खुला रहस्य

किसी एक की नहीं हुई अनारकली

चाची का इश्किया भतीजा – भाग 3

डीएसपी केसर सिंह ने भी लाश का निरीक्षण किया. क्राइम टीम ने भी अपना काम कर लिया तो इंसपेक्टर जसविंदर सिंह ने लाश को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस के बाद थाने लौट कर उन्होंने हत्या के इस मामले को दर्ज कर के स्वयं ही जांच शुरू कर दी. क्योंकि मामला एक व्यापारी की हत्या का था, इसलिए व्यापारी होहल्ला कर सकते थे. जबकि वह नहीं चाहते थे कि किसी तरह का होहल्ला हो.

हत्यारों तक जल्द से जल्द पहुंचने के लिए सबइंसपेक्टर वासुदेव सिंह के नेतृत्व में उन्होंने एक टीम बनाई, जिस में एएसआई बलकार सिंह, इंद्रपाल, हेडकांस्टेबल कुलदीप सिंह, कुलवंत सिंह, अजायब सिंह और महिला सिपाही जसविंदर कौर को शामिल किया.

पूछताछ में जसमीत कौर ने बताया था कि वह अपने पति परमजीत सिंह उर्फ सिंपल और 2 बेटों, 18 वर्षीय गुरतीरथ सिंह एवं 10 वर्षीय जसदीप सिंह के साथ कटड़ा साहिब सिंह के मकान नंबर 197/8 में रहती थी. उस के पति का अरनाबरना चौक पर कोयले का डिपो था.

कल यानी 22 मार्च की शाम 5 बजे के करीब वह किसी पार्टी के पास जाने की बात कह कर घर से निकले थे. रात 10 बजे के करीब उन्होंने फोन कर के बताया था कि वह किसी दोस्त के यहां बैठे हैं, इसलिए आने में थोड़ी देर हो जाएगी. जब काफी रात हो गई और वह नहीं आए तो जसमीत बेटों और पड़ोसियों के साथ उन्हें ढूंढने निकल पड़ी. काफी कोशिश के बाद भी उन का कुछ पता नहीं चला. आज सुबह उस के पति के भतीजे प्रीत महेंद्र सिंह ने फोन द्वारा सूचना दी कि सनौली अड्डे के पास उन की लाश पड़ी है.

पुलिस ने जब दुश्मनी वगैरह के बारे में पूछा तो जसमीत कौर ने बताया कि वह सीधेसादे शरीफ इंसान थे. काफी पूछताछ के बाद भी जसमीत कौर से ऐसी कोई बात पता नहीं चली, जिस से तफ्तीश आगे बढ़ाने में पुलिस को मदद मिलती. इंसपेक्टर जसविंदर सिंह ने परमजीत के आसपड़ोस वालों से पूछताछ की तो कुछ लोगों ने चाचीभतीजे के अवैध संबंधों की बात बता दी.

इंसपेक्टर जसविंदर सिंह को परमजीत की कोठी में सीसीटीवी कैमरे लगे दिखई दिए थे. उन्होंने हेडकांस्टेबल कुलदीप सिंह से उन कैमरों की फुटेज निकलवाने को कहा. फुटेज निकलवा कर वहीं जसमीत और प्रीत महेंद्र सिंह के सामने देखा गया. फुटेज के अनुसार हत्या वाले दिन प्रीत महेंद्र सिंह जसमीत के पास आया और कुछ बातें कीं. इस के बाद उस ने अपना पिस्टल निकाल कर चेक किया. चैंबर में एक गोली कम थी तो जेब से एक गोली निकाल चैंबर फुल किया और उसे कमर में खोंस कर चला गया.

फुटेज के ये दृश्य देख कर इंसपेक्टर जसविंदर सिंह टिवाणा पूरी कहानी समझ गए. उन्होंने प्रीत महेंद्र से पूछा, ‘‘तुम यह पिस्टल खोंस कर कहां गए थे, यह पिस्टल किस का है?’’

‘‘जी यह पिस्टल मेरा है. मेरे पास इस का लाइसैंस भी है.’’

‘‘लेकिन चुनाव की वजह से सभी को अपनेअपने हथियार जमा कराने को कहा गया है. तुम ने अपना पिस्टल क्यों नहीं जमा कराया?’’

‘‘मैं शहर से बाहर था, इसलिए जमा नहीं करा सका. कल ही जमा करा दूंगा.’’ प्रीत महेंद्र ने कहा.

परमजीत सिंह की हत्या की पूरी कहानी इंसपेक्टर जसविंदर सिंह टिवाणा की समझ में आ गई थी. लेकिन वह आगे का काम पूरे सुबूतों के साथ करना चाहते थे. उन्होंने प्रीत महेंद्र से अगले दिन अपना पिस्टल ले कर थाने आने को कहा. अगले दिन वह थाने तो गया, लेकिन अपना पिस्टल नहीं ले गया. पूछने पर उस ने कहा कि वह जल्दी में साथ लाना भूल गया.

इंसपेक्टर जसविंदर सिंह टिवाणा को लगा कि अब देर करना ठीक नहीं है, इसलिए उन्होंने एएसआई बलकार सिंह को आदेश दिया कि वह महिला सिपाही को ले कर जाएं और जसमीत कौर को थाने ले आएं.

जसमीत कौर भी थाने आ गई तो इंसपेक्टर जसविंदर सिंह टिवाणा ने दोनों को सामने बैठा कर सुबूतों के साथ मनोवैज्ञानिक ढंग से पूछताछ की तो जल्दी ही दोनों ने परमजीत सिंह की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

दरअसल, परमजीत सिंह ने हत्या से 2 दिनों पहले यानी 20 मार्च को जसमीत और प्रीत महेंद्र को आपत्तिजनक स्थिति में पकड़ लिया था. हुआ यह था कि परमजीत सिंह दवा खाना भूल गया था, इसलिए घर वापस आ गया था.

संयोग से जसमीत कौर घर का दरवाजा बंद करना भूल गई थी. इसलिए परमजीत सीधे अंदर आ गया और चाचीभतीजे को उस स्थिति में देख कर हक्काबक्का रह गया. सीधासरल परमजीत पत्नी और भतीजे को कुछ कहने के बजाय रोने लगा. रोते हुए ही उस ने कहा, ‘‘तुम लोगों ने मेरे साथ ठीक नहीं किया. इसलिए वाहेगुरु तुम लोगों के साथ ठीक नहीं करेगा.’’

परमजीत बेबस था. रोधो कर चुपचाप डिपो पर चला गया. वह तो चला गया, लेकिन उस के आंसुओं से उन पापियों की आत्मा कांप उठी. दोनों डर गए. जसमीत ने प्रीत महेंद्र का कंधा पकड़ कर झकझोरते हुए कहा, ‘‘अब इस का जिंदा रहना ठीक नहीं है, क्योंकि इस के रहते मैं इस घर में नहीं रह सकती. इस के रहते मुझे हमेशा डर लगा रहेगा कि न जाने कब क्या हो जाए.’’

प्रीत महेंद्र भी डर गया था. इसलिए परमजीत के चुपचाप चले जाने के बाद ही दोनों ने उसी समय उस की हत्या की योजना बना डाली. प्रीत और उस के पिता हरदर्शन का प्रौपर्टी और फाइनैंस का काम था. वे लोगों को ब्याज पर पैसा देते थे. प्रीत का एक छोटा भाई गगनदीप सिंह है, जो बड़े भाई और पिता के इस धंधे को पसंद नहीं करता था, इसलिए वह इन से अलग उत्तर प्रदेश के नोएडा शहर में रहता था.

प्रीत महेंद्र सिंह ने योजनानुसार परमजीत को सनौली अड्डे पर यह कह कर बुलाया कि एक पार्टी मात्र एक प्रतिशत ब्याज पर अपना पैसा देना चाहती है. प्रीत महेंद्र को पता था कि उस के चाचा परमजीत को रुपयों की सख्त जरूरत है. इसलिए उस ने उस से यह बात कही थी. यही वजह थी कि उस की बात सुन कर परमजीत सिंह उस की बताई जगह पर शाम साढे 5 बजे के आसपास पहुंच गए थे. प्रीत वहीं उन्हें मिल गया.

प्रीत ने परमजीत का स्कूटर वहीं स्टैंड पर खड़ा करा दिया और उसे अपनी वैगन आर कार में बैठा कर काफी देर तक इधरउधर सड़कों पर घुमाता रहा. जब रात के लगभग 10 बज गए तो वह सीआईए रोड पर आया और बिना कोई बात किए अपने चाचा परमजीत को कार से उतार कर 4 गोलियां मार दीं. उस ने गोलियां ऐसी जगहों पर मारीं कि परमजीत तुरंत मर गया.

इस के बाद लाश वहीं छोड़ कर प्रीत अपने घर चला गया. रास्ते से उस ने परमजीत की हत्या की सूचना जसमीत कौर को दे दी थी. इसी के बाद जसमीत कौर पड़ोसियों और बेटों को साथ ले कर परमजीत को ढूंढने का नाटक करने लगी थी.

प्रीत महेंद्र और जसमीत से पूछताछ के बाद इंसपेक्टर जसविंदर सिंह टिवाणा ने 26 मार्च को दोनों को सीजेएम सिमित ढींगरा की अदालत में पेश कर के 29 मार्च तक के लिए पुलिस रिमांड पर ले लिया.

रिमांड के दौरान पुलिस ने प्रीत महेंद्र की निशानदेही पर परमजीत का स्कूटर, वह वैगन आर कार, जिस में परमजीत को ले जाया गया था, एक पिस्टल, राइफल, 16 जिंदा कारतूस और खून सने कपड़े बरामद कर लिए थे.

रिमांड समाप्त होने पर 29 मार्च को जसमीत कौर और प्रीत महेंद्र सिंह को पुन: अदालत में पेश किया गया, जहां से दोनों को जिला जेल भेज दिया गया. जसमीत से प्यार करते समय प्रीत महेंद्र ने जो कहा था कि वह अंतिम सांस तक अपने प्यार को निभाएगा, सचमुच पूरा किया था.

तीन साल बाद खुला रहस्य – भाग 3

जयकुमार 2 दिन घर नहीं आया तो उस की मां गंजू के घर गई. उस ने बताया कि जयकुमार 2 दिनों से घर नहीं आया है और उस का फोन भी नहीं लग रहा है तो गंजू को भी चिंता हुई. उस ने रीना से प्रीति के बारे में पूछा तो पता चला कि वह तो परीक्षा देने अलीगढ़ गई है. जब उसे पता चला कि देवेंद्र भी घर पर नहीं है तो उस ने देवेंद्र को फोन कर के कहा कि वह जयकुमार को वापस भेज दे.

गंजू के इस फोन से देवेंद्र शर्मा घबरा गया. वह क्या जवाब दे, एकदम से उस की समझ में नहीं आया. लेकिन अचानक उस के मुंह से निकल गया, ‘‘प्रीति भी घर से गायब है. लगता है, वह उसे कहीं भगा ले गया है.’’

यह सुन कर संध्या परेशान हो उठी. उसे विश्वास नहीं हुआ कि उस का बेटा ऐसा भी कर सकता है. दूसरी ओर देवेंद्र परेशान था. वह गुनाह का ऐसा जाल बुनना चाहता था, जिस में जयकुमार का परिवार इस तरह फंस जाए कि कोई काररवाई करने के बजाए वह बचने के बारे में सोचे. उस ने पड़ोस में रहने वाले चौकीदार राकेश को बताया कि जयकुमार नाम का एक लड़का उस की बेटी को भगा ले गया है.

इस के बाद वह वकील मुन्नालाल के पास पहुंचा और उसे सारी बात बता दी. वकील मुन्नालाल देवेंद्र का परिचित था. उस ने उसे सलाह दी कि वह जयकुमार के खिलाफ बेटी को भगाने का मुकदमा दर्ज करा दे.

इस के बाद देवेंद्र मुन्नालाल वकील और कुछ पड़ोसियों को साथ ले कर थाना गांधीपार्क पहुंचा और जयकुमार के खिलाफ अपनी नाबालिग बेटी प्रीति को भगा ले जाने का मुकदमा दर्ज करा दिया. यह मुकदमा 12 दिसंबर, 2013 में दर्ज हुआ था. मुकदमा दर्ज होने के बाद इस मामले की जांच एसआई अभय कुमार को सौंपी गई.

अभय कुमार ने जयकुमार को नाबालिग प्रीति को भगाने का दोषी मानते हुए जांच शुरू की तो देवेंद्र को लगा कि उस ने जो किया है, पुलिस उस बारे में जान नहीं पाएगी. लेकिन चिंता की बात यह भी थी कि प्रीति का वह क्या करे. अब उसे घर में रखना ठीक नहीं था. दूसरी ओर उसे पता भी चल गया था कि जयकुमार की हत्या हो चुकी है.

पूछताछ में प्रीति सच्चाई उगल सकती थी, इसलिए उस ने उसे धमकाया कि अगर उस ने किसी को भी यह बात बताई तो वह उस की भी हत्या कर के उस की लाश को जयकुमार की लाश की तरह रेल की पटरी पर डाल आएगा. प्रीति डर गई. उस ने पिता से वादा किया कि वह मर सकती है, लेकिन यह बात किसी को बता नहीं सकती.

अब प्रीति को छिपा कर रखना था. इस के लिए देवेंद्र ने प्रीति को थाना सादाबाद, जिला हाथरस के गांव करसोरा स्थित अपने साले प्रमोद कुमार की ससुराल भिजवा दिया. चूंकि प्रमोद उस के साथ जयकुमार की हत्या में शामिल था, इसलिए देवेंद्र जो चाहता था, उसे वैसा ही करना पड़ता था. प्रीति मामा की ससुराल पहुंच गई, जबकि पुलिस जयकुमार और प्रीति की तलाश में दरदर भटकती रही.

प्रीति से छुटकारा पाने के लिए देवेंद्र उस के लिए लड़का तलाशने लगा. थोड़ी कोशिश कर के थाना वृंदावन के मोहल्ला चंदननगर के रहने वाले पूरन शर्मा का बेटा राहुल उसे पसंद आ गया तो करसोरा से ही उस ने प्रीति की शादी राहुल से कर दी. प्रीति की यह शादी 27 फरवरी, 2014 को हुई.

इस तरह प्रीति को ससुराल भेज कर देवेंद्र निश्चिंत हो गया. मजे की बात यह थी कि वह शांत नहीं बैठा था. वह महीने, 15 दिनों में थाने पहुंच जाता और पुलिस से बेटी की तलाश के लिए गुहार लगाता. यही नहीं, वह फरीदाबाद में रहने वाले जयकुमार के घर वालों को भी धमकाता कि वे जयकुमार के बारे में पता कर के उस की बेटी को बरामद कराएं, वरना वह उन्हें शांति से जीने नहीं देगा.

भले ही जयकुमार का कत्ल हो गया था और प्रीति की शादी हो गई थी. फिर भी पुलिस का डर तो देवेंद्र को सताता ही रहता था. कहीं जयकुमार की हत्या का रहस्य खुल न जाए, इस बात से परेशान देवेंद्र एक बार फिर वकील मुन्नालाल से मिला. उस ने कहा कि अगर पुलिस को प्रीति के बारे में पता चल गया तो उस की परेशानी बढ़ सकती है. पुलिस उस पर शिकंजा कस सकती थी. अब तक प्रीति गर्भवती हो चुकी थी.

मुन्नालाल ने पूरी कहानी पर एक बार फिर नए सिरे से विचार किया. इस के बाद उस ने सलाह दी कि वह प्रीति को पुलिस के सामने पेश कर के उस से कहलवाए कि वह जयकुमार के बच्चे की मां बनने वाली है. वह उसे धोखा दे कर मथुरा रेलवे स्टेशन पर छोड़ कर कहीं भाग गया है. उस के बाद वह पिता के पास आ गई है.

प्रीति के अपहरण के मामले की जांच अब तक कई थानाप्रभारी कर चुके थे. लेकिन कोई मामले की तह तक नहीं पहुंच सका था. शायद उन्होंने कोशिश ही नहीं की थी. जबकि पुलिस ने कई बार फरीदाबाद जा कर जयकुमार की मां एवं रिश्तेदारों से पूछताछ की थी.

पूछताछ में जयकुमार की विधवा मां ने हर बार यही कहा था कि जयकुमार और प्रीति एकदूसरे को प्यार करते थे. दोनों को प्रीति के पिता देवेंद्र ने ही गायब किया है. मुकदमा दर्ज कराने के बाद देवेंद्र फरीदाबाद छोड़ कर बल्लभगढ़ में रहने लगा था. उस ने प्रीति को फोन कर के कहा कि वह सासससुर से लड़ाई कर के उस के यहां आ जाए. प्रीति पिता के हाथ की कठपुतली थी, इसलिए पिता ने जैसा कहा, उस ने वैसा ही किया.

इस की वजह यह थी कि वह नहीं चाहती थी कि उस के प्रेमसंबंधों की जानकारी उस की ससुराल वालों को हो. क्योंकि जानकारी होने के बाद वे उसे घर से निकाल सकते थे. पिता के कहने पर प्रीति ने सास से लड़ाई कर ली तो उसी दिन देवेंद्र उसे विदा कराने उस की ससुराल पहुंच गया.

वकील की सलाह के अनुसार देवेंद्र ने 1 सितंबर, 2015 को प्रीति को एसएसपी के सामने पेश कर दिया. प्रीति ने पुलिस के सामने वही सब कहा, जैसा उसे वकील ने सिखाया था. एसएसपी के आदेश पर प्रीति का मैडिकल कराया गया. जिस समय प्रीति को एसएसपी के सामने पेश किया गया था, उस समय थाना गांधीपार्क के थानाप्रभारी अमित कुमार थे. मजे की बात यह थी कि उन्होंने प्रीति से यह भी जानने की कोशिश नहीं की थी कि जयकुमार के साथ भागने के बाद वह उस के साथ कहांकहां रही.

पुलिस की देखरेख में ही प्रीति ने बच्चे को जन्म दिया. पुलिस ने अदालत में भी प्रीति के बयान करा दिए. वहां भी प्रीति ने वही कहानी सुना दी. अदालत ने प्रीति को उस के पिता को सौंप दिया. अब तक वैसा ही हो रहा था, जैसा देवेंद्र चाह रहा था. लेकिन इसी के बाद जब अलीगढ़ के एसएसपी बन कर राजेश पांडेय आए तो सब उलटा हो गया और वह पकड़ा गया.

मृतक जयकुमार के घर वालों को भी उस की हत्या की सूचना दे दी गई थी. पुलिस ने उस की मां को बुला कर जब जयकुमार के रखे सामान को दिखाया तो उस ने बेटे के जूते और कपड़ों की पहचान कर के फोटो में भी उस की शिनाख्त कर दी.

इस के बाद पुलिस ने प्रीति, देवेंद्र और प्रमोद को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. एसएसपी ने इस मामले का खुलासा करने वाली पुलिस टीम को 10 हजार रुपए का इनाम देने की घोषणा की है, साथ ही थानाप्रभारी दिनेश कुमार दुबे को शाबाशी दी.

प्रीति की ससुराल वालों को जब सच्चाई का पता चला तो वे हैरान रह गए. प्रीति ने प्रेम क्या किया, अपनी तो जिंदगी बरबाद की ही, प्रेमी को भी मरवा दिया जो विधवा मां का एकलौता सहारा था.

तीन साल बाद खुला रहस्य – भाग 2

मां ने भले ही समझाया, लेकिन जयकुमार के प्यार में डूबी प्रीति को मां की बात समझ में नहीं आई. परेशान हो कर रीना ने सारी बात पति को बता दी. बेटी की आशिकी के बारे में सुन कर देवेंद्र तिलमिला उठा. वह मकान मालिक गंजू से मिला और उन से कहा कि वह जयकुमार को घर आने से मना करें, क्योंकि वह उस की बेटी प्रीति को बरगला रहा है.

‘‘आप का कहना ठीक है, लेकिन अपने किसी रिश्तेदार को मैं घर आने से कैसे रोक सकता हूं. आप अपनी बेटी को थोड़ा संभाल कर रखिए.’’ मकान मालिक गंजू ने कहा.

गंजू की इस बात से देवेंद्र ने खुद को काफी अपमानित महसूस किया. अब वह मकान मालिक से तो कुछ नहीं कह सकता था, लेकिन जयकुमार उसे जब भी मिलता, उसे धमकाता कि वह जो कर रहा है, ठीक नहीं है. वह उस की बेटी का पीछा छोड़ दे वरना उसे पछताना पड़ सकता है. लेकिन जयकुमार भी प्रीति के प्रेम में इस तरह डूबा था कि देवेंद्र की चेतावनी का उस पर कोई असर नहीं पड़ रहा था. जबकि देवेंद्र मन ही मन बौखलाया हुआ था.

प्रीति की अर्द्धवार्षिक परीक्षा की तारीख आ गई तो वह परीक्षा देने अपने मामा प्रमोद कुमार के यहां अलीगढ़ चली गई. उस के मामा अलीगढ़ के थाना गांधीपार्क की बाबा कालोनी में रहते थे. घर वाले तो यही जानते थे कि प्रीति बस से अलीगढ़ गई है, लेकिन घर से निकलने से पहले उस ने जयकुमार को फोन कर दिया था, इसलिए वह मोटरसाइकिल ले कर उसे रास्ते में मिल गया था. उस के बाद प्रीति उस की मोटरसाइकिल से अलीगढ़ गई थी.

मामा के घर रह कर प्रीति ने परीक्षा दे दी. उसी बीच प्रीति के मामामामी अपने एक रिश्तेदार के यहां शादी में चले गए तो घर खाली देख कर उस ने जयकुमार को फोन कर के अलीगढ़ बुला लिया. प्रेमिका के बुलाने पर घर में बिना किसी को कुछ बताए जयकुमार उस से मिलने अलीगढ़ पहुंच गया. प्रेमी को देख कर प्रीति का दिल बल्लियों उछल पड़ा. वह प्रेमी के आगोश में समा गई.

जयकुमार और प्रीति को उस दिन पहली बार एकांत और आजादी मिली थी, इसलिए उन्होंने सारी सीमाएं तोड़ दीं. ऐसे में जयकुमार ने प्रीति से वादा किया कि कुछ भी हो, हर हालत में वह उसे अपना कर रहेगा. प्रीति को भी प्रेमी पर पूरा विश्वास था. लेकिन उस दिन दोनों ने एक गलती कर दी. जयकुमार को प्रेमिका से मिल कर वापस आ जाना चाहिए था, लेकिन वह तो उस दिन और पिला दे साकी वाली स्थिति में था. प्रीति भी भूल गई थी कि अगले दिन मामामामी लौट आएंगे.

दोनों एकदूसरे में इस तरह खो गए कि सब कुछ भूल गए. याद तब आया, जब दरवाजे पर दस्तक हुई. प्रीति ने दरवाजा खोला तो मामामामी को देख कर सन्न रह गई. जयकुमार घर में ही था. प्रमोद ने अपने घर में जयकुमार को देखा तो पूछा, ‘‘यह कौन है?’’

‘‘यह जयकुमार है. मेरे मकान मालिक का साला.’’ प्रीति ने बताया.

प्रमोद को जब पता चला कि जयकुमार एक दिन पहले उस के घर आया था और प्रीति के साथ रात में रुका था तो उसे इस बात की चिंता हुई कि यह लड़का यहां क्यों आया था? उसे दाल में कुछ काला लगा तो उस ने जयकुमार को एक कमरे में बंद कर दिया और अपने बहनोई देवेंद्र को फोन कर के सारी बात बता दी. देवेंद्र उस समय उत्तराखंड के रुद्रपुर में था. उस ने कहा, ‘‘जब तक मैं आ न जाऊं, तब तक उसे उसी तरह कमरे में बंद रखना.’’

प्रीति डर गई. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि प्रेमी को छुड़ाने के लिए वह क्या करे. उस ने मामामामी से बहुत विनती की कि वे जयकुमार को छोड़ दें, लेकिन प्रमोद कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहता था, इसलिए उस ने जयकुमार को नहीं छोड़ा.

शाम को देवेंद्र अलीगढ़ पहुंचा तो उस ने पहले ही मन ही मन तय कर लिया था कि बेटी के इस प्रेमी के साथ उसे क्या करना है? उस ने रास्ते में ही शराब की बोतल खरीद ली थी और साले के यहां पहुंचने से पहले ही उस ने शराब पी कर मूड बना लिया था.

नशे में धुत्त वह साले के यहां पहुंचा तो जयकुमार को कमरे से निकाल कर बातचीत शुरू हुई. इस बातचीत में जयकुमार ने साफसाफ कह दिया कि वह प्रीति से प्यार करता है और उस से शादी करना चाहता है. यह सुन कर देवेंद्र का खून खौल उठा और वह जयकुमार की पिटाई करने लगा.

पिटाई करते हुए ही उस ने जयकुमार से कहा, ‘‘इस बार तुम ने जो किया, माफ किए देता हूं. अब दोबारा ऐसी गलती मत करना. चलो, हम तुम्हें दिल्ली जाने वाली बस में बिठा देते हैं. फरीदाबाद आऊंगा तो तुम्हारी मां से बात करूंगा.’’

प्यार में बड़ी उम्मीदें होती हैं, जयकुमार को भी लगा कि शायद प्रेमिका का बाप मां से बात कर के शादी करा देगा. लेकिन देवेंद्र के मन में तो कुछ और था. अब तक अंधेरा गहरा चुका था. देवेंद्र और प्रमोद जयकुमार को ले कर पैदल ही चलते हुए नगला मानसिंह होते हुए रेलवे लाइन की ओर नई बस्ती के अवतारनगर में रहने वाले अपने एक परिचित विनोद के घर पहुंचे.

विनोद ने चाय बनवाने के लिए कहा तो देवेंद्र ने सिर्फ पानी लाने को कहा. विनोद ने जयकुमार के बारे में पूछा तो देवेंद्र ने बताया कि यह उस के दोस्त का बेटा है. विनोद पानी ले आया तो प्रमोद और देवेंद्र ने शराब पी. नशा चढ़ा तो दोनों जयकुमार को ले कर रेलवे लाइन की ओर चल पड़े. अब तक काफी अंधेरा हो चुका था. जयकुमार कुछ समझ पाता, उस के पहले ही सुनसान पा कर दोनों ने उसे एक गड्ढे में गिरा दिया.

वह संभल भी नहीं पाया, उस के पहले ही दोनों ने उस की गला दबा कर हत्या कर दी. इस के बाद दोनों वहीं बैठ कर ट्रेन के आने का इंतजार करने लगे. थोड़ी देर बाद उन्हें ट्रेन आती दिखाई दी तो जयकुमार की लाश को उठा कर दोनों ने पटरी पर रख दिया. ट्रेन लाश के ऊपर से गुजर गई तो वह कई टुकड़ों में बंट गई.

देवेंद्र और प्रमोद ने राहत की सांस ली, क्योंकि अब कांटा निकल गया था. लेकिन अब क्या करना है, अभी देवेंद्र को इस बारे में सोचना था. उस ने जो किया था, उसे भले ही किसी ने नहीं देखा था, लेकिन उसे होशियार तो रहना ही था. सुबह प्रीति ने उस से पूछा, ‘‘पापा, जयकुमार चला गया क्या?’’

देवेंद्र ने उसे खा जाने वाली नजरों से घूरते हुए कहा, ‘‘तू अपनी पढ़ाई से मतलब रख. कौन कहां गया, इस से तुझे क्या मतलब?’’

प्रीति को शक हुआ. अगले दिन उस ने जयकुमार को फोन किया. लेकिन उस का तो फोन बंद था, इसलिए बात नहीं हो सकी. अब प्रीति की समझ में आ गया कि जयकुमार के साथ क्या हुआ है. वह बुरी तरह डर गई.

                                                                                                                                 क्रमशः

चाची का इश्किया भतीजा – भाग 2

कुछ देर तक दोनों खामोश बैठे एकदूसरे को देखते रहे. जब खामोशी घुटन का रूप लेने लगी तो प्रीत महेंद्र ने कहा, ‘‘मैं ने तो सोचा था कि चाचा घर पर ही होंगे, ऐसे में कोई बात नहीं हो पाएगी.’’

‘‘वह तो आज शंभू बौर्डर गए हैं. कोयले की गाड़ी आने वाली है. अब तो वह देर रात को ही आएंगे.’’ कुछ सोचते हुए जसमीत ने कहा, ‘‘तुम्हें उन से कोई बात करनी थी क्या?’’

प्रीत ने जब सुना कि चाचा रात से पहले नहीं आएंगे तो उस के दिल में चाची को ले उथलपुथल मचने लगी. उसे लगा कि आज उस के मन की मुराद पूरी हो सकती है. जसमीत की बात का जवाब देने के बजाय वह खयालों में डूब गया तो जसमीत ने फिर कहा, ‘‘तुम ने मेरी बात का जवाब नहीं दिया प्रीत?’’

‘‘जवाब क्या दूं. आप को तो मेरे मन की बात पता ही है.’’ प्रीत महेंद्र ने कहा.

‘‘बिना बताए मुझे कैसे पता चलेगा कि तुम्हारे दिल में क्या है या तुम किस से कौन सी बात कहने आए हो?’’ जसमीत ने कहा.

जसमीत कम चालाक नहीं थी. वह प्रीत के मन की बात जानती थी, फिर भी उस के मुंह से उस के मन की बात कहलवाना चाहती थी. इसलिए गंभीरता का नाटक करते हुए बोली, ‘‘पहेलियां मत बुझाओ प्रीत, साफसाफ बताओ, क्या बात है?’’

‘‘बात बस इतनी सी है,’’ प्रीत आगे खिसक कर जसमीत का हाथ पकड़ते हुए बोला, ‘‘मुझे तुम से प्यार हो गया है.’’

प्रीत महेंद्र के ये शब्द सुन कर जसमीत की आत्मा को अजीब सी शांति मिली. उस के मुंह से ये शब्द कहलवाने के लिए उस का दिल कब से बेचैन था. इस के बावजूद वह बनावटी नाराजगी जताते हुए बोली, ‘‘अरे बदमाश, तुझे पता नहीं, मैं तेरी चाची हूं.’’

‘‘और मैं भतीजा,’’ प्रीत ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तुम्हें पता है कि मैं तुम्हारे पति का भतीजा हूं, फिर भी तुम मुझे देख कर उसी तरह मुसकराती हो जैसे कोई लड़की अपने प्रेमी को देख कर मुसकराती है.’’

जसमीत ने प्रीत महेंद्र का हाथ दबाते हुए कहा, ‘‘तुम तो बहुत होशियार हो भाई. मन की बात जानते थे, फिर भी अपने मन की बात कहने में इतनी देर कर दी. लेकिन एक बात और, तुम यह प्यार कहां तक निभाओगे?’’

‘‘जिंदगी की आखिरी सांस तक मैं यह प्यार निभाऊंगा.’’ प्रीत महेंद्र जसमीत का हाथ छोड़ कर अपने दोनों हाथ उस के कंधों पर रख कर बोला, ‘‘यह मत समझना कि मैं ने तुम्हारा शरीर पाने के लिए तुम से प्यार किया है. यह प्यार पूरी जिंदगी निभाने के लिए किया है और हर तरह से निभाऊंगा भी.’’

‘‘सोच लो प्रीत, मुझे धोखे में रख केवल मेरे शरीर से खेलना हो तो अभी साफसाफ बता दो. हम दोनों शादीशुदा ही नहीं, 2-2 बच्चों के मातापिता हैं.’’

‘‘तुम मुझ पर भरोसा करो चाची.’’

‘‘आज के बाद फिर कभी चाची मत कहना.’’ जसमीत ने हंसते हुए प्यार से प्रीत के गाल को थपथपाते हुए कहा. इस के बाद वह उस की बाहों में समा गई. इस तरह प्यार के इजहार के साथसाथ इकरार ही नहीं हो गया, बल्कि दोनों के तन भी एक हो गए.

पल भर में रिश्तों की परिभाषा बदल गई. मन के मिलन के साथ अगर तन का मिलन हो जाए तो मिलन की चाह और अधिक भड़क उठती है. मन हमेशा महबूब से मिलने के लिए बेचैन रहता है. और अगर घर में मिलने की सहूलियत हो तो बात सोने पर सुहागा जैसी हो जाती है.

प्रीत महेंद्र सुबह 10-11 बजे जसमीत के घर आ जाता था. क्योंकि उस समय बच्चे स्कूल गए होते थे, तो परमजीत सिंह डिपो. दोनों का मिलन निर्बाध गति से चलने लगा था. लेकिन नजर रखने वालों की भी कमी नहीं है. ऐसे लोग उड़ती चिडि़या को पर से पहचान लेते हैं.

सीधेसादे परमजीत को भले ही पत्नी और भतीजे की करतूतों का भान नहीं था, लेकिन गलीमोहल्ले में चाचीभतीजे के संबंधों को ले कर खूब चर्चा होने लगी थी. यही नहीं, उड़तेउड़ते यह खबर यूएसए में रह रही परमजीत की बहनों तक तक पहुंच गई थी. उन्होंने पटियाला आ कर जसमीत और प्रीत महेंद्र को समझाया भी, लेकिन गले तक पाप के दलदल में डूबे जसमीत और प्रीत ने किसी की नहीं सुनी.

परमजीत की बहनों ने अपने चचेरे भाई यानी प्रीत महेंद्र के बाप हरदर्शन सिंह से मिल कर उस की शिकायत की कि वह अपने बेटे को समझाएं. लेकिन समझाने की कौन कहे, हरदर्शन ने ढिठाई से कहा, ‘‘तुम लोग अपनी भाभी को ही क्यों नहीं समझातीं कि वह इधरउधर मुंह न मारे.’’

परमजीत की बहनों ने किसी भी तरह पाप के इस खेल को बंद कराने के लिए किसकिस के हाथ नहीं जोड़े. लेकिन कहीं से कुछ नहीं हुआ. इतना सब करने के बावजूद उन्होंने अपने भाई को यह पता नहीं चलने दिया कि भाभी क्या कर रही है. क्योंकि उन्हें पता था कि भाभी की बेवफाई का पता भाई को चल गया तो वह आत्महत्या कर लेगा.

बहरहाल, प्रीत महेंद्र सिंह और जसमीत कौर का यह घिनौना खेल बेरोकटोक चलता रहा. परमजीत सिंह सुबह नाश्ता कर के घर से निकल जाते तो देर रात को ही लौटते थे. इस बीच घर में क्या होता है. उन्हें पता नहीं होता था.

22 मार्च, 2014 को शाम को करीब 5 बजे परमजीत सिंह जसमीत कौर को यह कह कर अपने स्कूटर से घर से निकले कि वह किसी पार्टी के पास जा रहे हैं, डेढ़-2 घंटे में लौट आएंगे. लेकिन जब वह देर रात तक घर नहीं लौटे तो जसमीत कौर को चिंता हुई. वह अपने दोनों बेटों गुरतीरथ, जसदीप और कुछ पड़ोसियों को ले कर परमजीत की तलाश में निकल पड़ी. लेकिन रात भर इधरउधर भटकने के बाद भी परमजीत का कुछ पता नहीं चला.

रात 10 बजे के आसपास परमजीत ने फोन कर के जसमीत को बताया था कि वह अपने किसी दोस्त के घर बैठा है. इस के बाद न उस का कोई फोन आया था और न ही उस के बारे में कुछ पता चला था, क्योंकि उस का फोन बंद हो गया था.

अगले दिन सुबह यानी 23 मार्च को 8 बजे प्रीत महेंद्र ने फोन द्वारा जसमीत को सूचना दी कि सीआईए रोड के सनौली अड्डे पर चाचा की लाश पड़ी है. इसी सूचना पर जसमीत दोनों बेटों और कुछ पड़ोसियों को साथ ले कर सनौली अड्डे पर जा पहुंची थी. वहां पड़ी लाश परमजीत की ही थी. किसी ने गोलियां मार कर उस की हत्या कर दी थी. जसमीत पति की लाश देख कर रोने लगी थी.

दरअसल, प्रीत महेंद्र किसी काम से सनौली अड्डे की ओर जा रहा था तो रास्ते में भीड़ देख कर रुक गया. जब उसे पता चला कि यहां कोई लाश पड़ी है तो उत्सुकतावश वह भी उसे देखने चला गया. वहां जाने पर पता चला कि वह तो उस के चाचा परमजीत की लाश है. उसे पता था कि चाचा कल शाम से लापता हैं. लेकिन इस तरह उन की लाश मिलेगी, यह उम्मीद उसे नहीं थी. उस ने तुरंत फोन द्वारा इस बात की जानकारी चाची को दे दी थी.

जसमीत तुरंत घटनास्थल पर पहुंच गई थी. वह पुलिस को सूचना देने कोतवाली जा रही थी कि रात की गश्त से लौट रहे कोतवाली प्रभारी इंसपेक्टर जसविंदर सिंह टिवाणा खलिया चौक पर ही मिल गए. जसमीत ने जब उन्हें पति की हत्या के बारे में बताया तो वह कोतवाली जाने के बजाय घटनास्थल की ओर चल पड़े.

परमजीत सिंह की लाश सड़क के किनारे पड़ी थी. लाश मिलने की सूचना इंसपेक्टर जसविंदर सिंह टिवाणा ने डीएसपी (सिटी) केसर सिंह को दी तो थोड़ी देर में क्राइम टीम के साथ वह भी घटनास्थल पर पहुंच गए. लाश के निरीक्षण में उन्होंने देखा कि मृतक परमजीत सिंह को 4 गोलियां मारी गई थीं, 2 सीने में, एक पेट में दांईं ओर किडनी के पास और एक बाईं ओर पेट में. इन चारों गोलियों के खोखे भी घटनास्थल से बरामद हो गए थे.

तीन साल बाद खुला रहस्य – भाग 1

पिछले साल सन 2016 के सितंबर महीने में अलीगढ़ का एसएसपी राजेश पांडेय को बनाया गया तो चार्ज लेते ही उन्होंने पुलिस अधिकारियों की एक मीटिंग बुला कर सभी थानाप्रभारियों को आदेश दिया कि जितनी भी जांचें अधूरी पड़ी हैं, उन की फाइलें उन के सामने पेश करें. जब सारी फाइलें उन के सामने आईं तो उन में एक फाइल थाना गांधीपार्क में दर्ज प्रीति अपहरण कांड की थी, जिस की जांच अब तक 10 थानाप्रभारी कर चुके थे और यह मामला 12 दिसंबर, 2013 में दर्ज हुआ था.

राजेश पांडेय को यह मामला कुछ रहस्यमय लगा. उन्होंने इस मामले की जांच सीओ अमित कुमार को सौंपते हुए जल्द से जल्द खुलासा करने को कहा. अमित कुमार ने फाइल देखी तो उन्हें काफी आश्चर्य हुआ. क्योंकि इतने थानाप्रभारियों ने मामले की जांच की थी, इस के बावजूद मामले का खुलासा नहीं हो सका था. उन्होंने थानाप्रभारी दिनेश कुमार दुबे को कुछ निर्देश दे कर फाइल सौंप दी.

मामला काफी पुराना और रहस्यमयी था, इसलिए इसे एक चुनौती के रूप में लेते हुए दिनेश कुमार दुबे ने मामले की तह तक पहुंचने के लिए अपनी एक टीम बनाई, जिस में एसएसआई अजीत सिंह, एसआई धर्मवीर सिंह, कांस्टेबल सत्यपाल सिंह, मोहरपाल सिंह और नितिन कुमार को शामिल किया.

फाइल का गंभीरता से अध्ययन करने के बाद उन्होंने मामले की जांच फरीदाबाद से शुरू की, क्योंकि प्रीति को भगाने का जिस युवक जयकुमार पर आरोप था, वह फरीदाबाद का ही रहने वाला था. दिनेश कुमार दुबे फरीदाबाद जा कर उस की मां संध्या से मिले तो उस ने बताया कि जयकुमार उस का एकलौता बेटा था. उस पर जो आरोप लगे हैं, वे झूठे हैं. उस का बेटा ऐसा कतई नहीं कर सकता. उस ने उस की गुमशुदगी भी दर्ज करा रखी थी.

संध्या से पूछताछ के बाद दिनेश कुमार दुबे को मामला कुछ और ही नजर आया. अलीगढ़ लौट कर उन्होंने 13 जनवरी, 2016 को प्रीति के पिता देवेंद्र शर्मा को थाने बुलाया, जिस ने जयकुमार पर बेटी को भगाने का मुकदमा दर्ज कराया था. पुलिस के सामने आने पर वह इस तरह घबराया हुआ था, जैसे उस ने कोई अपराध किया हो. जब सीओ अमित कुमार, एसपी (सिटी) अतुल कुमार श्रीवास्तव ने उस से जयकुमार के बारे में पूछताछ की तो पुलिस अधिकारियों को गुमराह करते हुए वह इधरउधर की बातें करता रहा.

लेकिन यह भी सच है कि आदमी को एक सच छिपाने के लिए सौ झूठ बोलने पड़ते हैं. ऐसे में ही कोई बात ऐसी मुंह से निकल जाती है कि सच सामने आ जाता है. उसी तरह देवेंद्र के मुंह से भी घबराहट में निकल गया कि कहीं जयकुमार ने घबराहट में ट्रेन के आगे कूद कर आत्महत्या तो नहीं कर ली.

देवेंद्र की इस बात ने पुलिस अधिकारियों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि इसे कैसे पता चला कि जयकुमार ने ट्रेन के आगे कूद कर आत्महत्या कर ली है. पुलिस ने दिसंबर, 2013 के ट्रेन एक्सीडेंट के रिकौर्ड खंगाले तो पता चला कि थाना सासनी गेट पुलिस को 7 दिसंबर, 2013 को ट्रेन की पटरी पर एक लावारिस लाश मिली थी.

इस के बाद पुलिस अधिकारियों ने देवेंद्र के साथ थोड़ी सख्ती की तो उस ने जयकुमार की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उस ने जयकुमार की हत्या की जो कहानी सुनाई, उस की शातिराना कहानी सुन कर पुलिस हैरान रह गई. देवेंद्र ने बताया कि अपनी इज्जत बचाने के लिए उसी ने अपने साले प्रमोद कुमार के साथ मिल कर जयकुमार की हत्या कर दी थी. इस बात की जानकारी उस की बेटी प्रीति को भी थी.

इस के बाद पुलिस ने देवेंद्र शर्मा की बेटी प्रीति और उस के साले प्रमोद को भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में प्रीति और प्रमोद ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. तीनों की पूछताछ में जयकुमार की हत्या की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के जिला अलीगढ़ के थाना गांधीपार्क के नगला माली का रहने वाला देवेंद्र शर्मा रोजीरोटी की तलाश में हरियाणा के फरीदाबाद आ गया था. उसे वहां किसी फैक्ट्री में नौकरी मिल गई तो रहने की व्यवस्था उस ने थाना सारंग की जवाहर कालोनी के रहने वाले गंजू के मकान में कर ली. उन के मकान की पहली मंजिल पर किराए पर कमरा ले कर देवेंद्र शर्मा उसी में परिवार के साथ रहने लगा था. यह सन 2013 के शुरू की बात है.

उन दिनों देवेंद्र शर्मा की बेटी प्रीति यही कोई 17-18 साल की थी और वह अलीगढ़ के डीएवी कालेज में 12वीं में पढ़ रही थी. फरीदाबाद में सब कुछ ठीक चल रहा था. देवेंद्र शर्मा की बेटी प्रीति जवान हो चुकी थी. मकान मालिक गंजू की पत्नी गुडि़या का ममेरा भाई जयकुमार अकसर उस से मिलने उस के यहां आता रहता था. वह पढ़ाई के साथसाथ एक वकील के यहां मुंशी भी था. इस की वजह यह थी कि उस के पिता शंकरलाल की मौत हो चुकी थी, जिस से घरपरिवार की जिम्मेदारी उसी पर आ गई थी. वह अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा भी रहा था.

जयकुमार अपनी मां संध्या के साथ जवाहर कालोनी में ही रहता था. फुफेरी बहन गुडि़या के घर आनेजाने में जयकुमार की नजर देवेंद्र शर्मा की बेटी प्रीति पर पड़ी तो वह उस के मन को ऐसी भायी कि उस से प्यार करने के लिए उस का दिल मचल उठा. अब वह जब भी बहन के घर आता, प्रीति को ही उस की नजरें ढूंढती रहतीं.

एक बार जयकुमार बहन के घर आया तो संयोग से उस दिन प्रीति गुडि़या के पास ही बैठी थी. जयकुमार उस दिन कुछ इस तरह बातें करने लगा कि प्रीति को उस में मजा आने लगा. उस की बातों से वह कुछ इस तरह प्रभावित हुई कि उस ने उस का मोबाइल नंबर ले लिया.

जयकुमार देखने में ठीकठाक तो था ही, अपनी मीठीमीठी बातों से किसी को भी आकर्षित कर सकता था. उस की बातों से ही आकर्षित हो कर प्रीति ने उस का मोबाइल नंबर लिया था. इस के बाद दोनों की बातचीत मोबाइल फोन से शुरू हुई तो जल्दी उन में प्यार हो गया. फिर खतरों की परवाह किए बिना दोनों प्यार की राह पर बेखौफ चल पड़े. दोनों घर वालों की चोरीछिपे जब भी मिलते, घंटों भविष्य के सपने बुनते रहते.

जल्दी ही प्रीति और जयकुमार प्यार की राह पर इतना आगे निकल गए कि उन्हें जुदाई का डर सताने लगा था. उन के एक होने में दिक्कत उन की जाति थी. दोनों की ही जाति अलगअलग थी. उन की आगे की राह कांटों भरी है, यह जानते हुए भी दोनों उसी राह पर आगे बढ़ते रहे.

देवेंद्र गृहस्थी की गाड़ी खींचने में व्यस्त था तो बेटी आशिकी में. लेकिन कहीं से प्रीति की मां रीना को बेटी की आशिकी की भनक लग गई. उन्होंने बेटी को डांटाफटकारा, साथ ही प्यार से समझाया भी कि जमाना बड़ा खराब है, इसलिए बाहरी लड़के से बातचीत करना अच्छी बात नहीं है. अगर किसी ने देख लिया तो बिना मतलब की बदनामी होगी.

                                                                                                                                   क्रमशः

चाची का इश्किया भतीजा – भाग 1

सन 2003-04 में केंद्र और राज्य सरकारों के आपसी मतभेदों के कारण कोयले के दाम आसमान छूने लगे थे. उन दिनों कोयला  सामान्य मूल्य से दोगुने से भी अधिक दाम में बिक रहा था. उस स्थिति में सरदार परमजीत सिंह को कोयला खरीदना मुश्किल हो  गया था. पटियाला के अरनाबरना चौक पर उन का कोल डिपो था. उन का यह काफी पुराना व्यवसाय था. लेकिन कोयले की आसमान छूती कीमतों से उन के इस व्यवसाय को गहरा झटका लगा था.

कोयले के दाम तो बढ़ ही गए थे, इस के साथ एक समस्या यह भी थी कि कोयले का सौदा भी 4-6 गाडि़यों से कम का नहीं हो रहा था. धंधा करने वालों को धंधा करना ही था, इसलिए कोयला महंगा हो या सस्ता, कोयला तो मंगाना ही था. जिस भाव में माल आएगा, उसी भाव में बिकेगा भी.

कुछ अपने पास से तो कुछ ब्याज पर उधार ले कर जैसेतैसे परमजीत सिंह उर्फ सिंपल ने 6 गाड़ी कोयला मंगा लिया. संयोग देखो, परमजीत का माल आते ही केंद्र सरकार ने कोयला कंपनियों को अपने नियंत्रण में ले लिया, जिस से तुरंत कोयले की आसमान छूती कीमतें घट कर सामान्य हो गईं.

परमजीत सिंह का तो दीवाला निकल गया. महंगे भाव पर खरीदा गया कोयला उन्हें मिट्टी के भाव बेचना पड़ा. जिस की वजह से उन्हें मोटा घाटा हुआ. इस घाटे से उन्हें गहरा सदमा लगा और वह बीमार रहने लगे. घाटा हो या मुनाफा, परमजीत ने जिस के पैसे लिए थे, उस के पैसे तो देने ही थे.

इस तरह परमजीत सिंह की हालत काफी खराब हो गई. मिलनेजुलने वाले, यारदोस्त, नातेरिश्तेदार आते और सांत्वना दे कर चले जाते. कोई मदद की बात न करता. उस समय उन की इस परेशानी में उन का भतीजा प्रीत महेंद्र सिंह काम आया. उस ने चाचा की मदद ही नहीं की, हर तरह से साथ दिया. बीमारी का इलाज तो कराया ही, व्यवसाय को फिर से जमाने के लिए मोटी रकम भी दी.

जब तक सब ठीक नहीं हो गया, प्रीत महेंद्र दोनों समय परमजीत सिंह के घर आताजाता रहा. दवा आदि की ही नहीं, घर की जरूरत की अन्य चीजों का भी उस ने खयाल रखा. इसी का नतीजा था कि परमजीत सिंह ने जल्दी स्वस्थ हो कर अपना व्यवसाय फिर से संभाल लिया. परमजीत के ठीक होने के बाद भी प्रीत महेंद्र का उन के घर आनेजाने का सिलसिला उसी तरह जारी रहा.

अब इस की वजह चाचा की बीमारी नहीं, खूबसूरत चाची जसमीत कौर उर्फ गुडि़या थी. दरअसल जब से प्रीत महेंद्र ने चाची जसमीत कौर को देखा था, तभी से उस के मन में एक अजीब सी उथलपुथल मची हुई थी. चाचा से शादी के समय ही वह चाची की सुंदरता पर मर मिटा था.

इस में उस का दोष भी नहीं था. जसमीत थी ही इतनी खूबसूरत. कश्मीर के सेब की तरह गोल और गुलाबी रंग का उस का चेहरा ताजे खिले गुलाब की तरह दमकता था. उस का शरीर भी सांचे में ढला बहुत ही आकर्षक था. 2 बच्चों की मां होने के बाद भी उस की खूबसूरती में कोई कमी नहीं आई थी.

प्रीत महेंद्र ने चाचा के साथ जो किया था, वह छोटीमोटी बात नहीं थी. इसलिए परमजीत सिंह उस का बहुत एहसान मानते थे. चाची जसमीत भी उस की बहुत इज्जत करती थी. चाचीभतीजे में पटती भी खूब थी. इस की वजह यह थी कि भतीजा ही नहीं, चाची भी अभी जवान थी. जबकि परमजीत अधेड़ हो चुका था. चाचीभतीजे ने क्या गुल खिलाया, यह जानने से पहले आइए थोड़ा इन के घरपरिवार के बारे में जान लेते हैं.

सरदार सुरेंद्र सिंह पटियाला के ही रहने वाले थे. उन का कोयले का छोटामोटा व्यवसाय था. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे परमजीत सिंह, हरमीत सिंह और 2 बेटियां थीं. हरमीत की शादी के पहले ही मौत हो गई थी. दोनों बेटियों की शादी कर दी तो वे अपनेअपने पतियों के साथ यूएसए चली गई थीं.

सुरेंद्र सिंह ने परमजीत सिंह की शादी सन 1995 में जसमीत कौर के साथ की थी. जसमीत कौर छोटी थी, तभी उस के पिता की मौत हो गई थी. जसमीत की 2 बहनें और थीं, भाई कोई नहीं था. विधवा मां ने किसी तरह तीनों बेटियों को पालापोसा. शादी लायक होने पर दोनों बड़ी बेटियों की शादी उन्होंने लखनऊ में कर दी थी. जसमीत की शादी परमजीत से कर के वह बेटियों के पास रहने लखनऊ चली गईं थीं.

जिस समय जसमीत कौर की शादी परमजीत सिंह से हुई थी, वह मात्र 16 साल की थी, जबकि परमजीत उस से 20 साल बड़ा यानी 36 साल का था. समय के साथ वह 2 बच्चों की मां बनी. लेकिन वह जवान हुई तो उस का पति बुढ़ापे की ओर बढ़ चला. जसमीत से हुए उस के दोनों बेटों के नाम थे गुरतीरथ और जसदीप.

शादी और बच्चे होने से परमजीत की जिम्मेदारियां बढ़ गई थीं. उस के खर्च के लिए पिता सुरेंद्र सिंह ने एक ईंट भट्टा खोलवा दिया था. लेकिन उस का वह भट्ठा चला नहीं. इस के बाद उस ने अपना कोयले का व्यवसाय संभाल लिया. उसी बीच सरदार सुरेंद्र सिंह की मौत हो गई तो घरपरिवार से ले कर कारोबार तक की जिम्मेदारी उसी पर आ गई.

सब कुछ लगभग ठीकठाक ही चल रहा था. लेकिन 2004 में हुए जबरदस्त घाटे ने परमजीत की कमर तोड़ दी थी. संयोग से मदद के लिए भतीजा प्रीत महेंद्र आगे आ गया था. इसी मदद के बहाने प्रीत महेंद्र का चाचा के घर आनाजाना हुआ तो उसे चाची से दिल लगाने का मौका मिल गया. परमजीत सुबह ही डिपो पर चले जाते थे.  उस के बाद भतीजा प्रीत महेंद्र उन के घर पहुंच जाता था. परमजीत ने पत्नी से कह रखा था कि वह प्रीत महेंद्र का हर तरह से खयाल रखे, क्योंकि उस ने उन्हें बहुत बड़े संकट से उबारा था.

एक दिन दोपहर को प्रीत महेंद्र चाचा के घर पहुंचा तो घर में जसमीत अकेली थी. उस ने डोरबेल बजाई तो जसमीत कौर ने दरवाजा खोला. एकदूसरे को देख कर दोनों मुसकराए. जसमीत बगल हट कर बोली, ‘‘आओ, अंदर आओ.’’

अंदर आ कर प्रीत महेंद्र सोफे पर बैठ गया. दरवाजा बंद कर के जसमीत कौर भी आ कर उस के बगल बैठ गई. जसमीत और प्रीत महेंद्र भले ही चाचीभतीजे थे, लेकिन दोनों हमउम्र थे. इसलिए कभीकभार हलकाफुलका मजाक भी कर लेते थे. लेकिन जब से उस की नीयत में खोट आई थी तब से वह खामोश रहने लगा था. ऐसा ही कुछ हाल जसमीत का भी था. शायद दोनों को ही इस बात का इंतजार था कि पहल कौन करे.

बेवफाई का सिला कुछ ऐसा मिला

26 जनवरी, 2017 को इलाहाबाद के यमुनानगर इलाके के थाना नैनी में गणतंत्र दिवस के ध्वजारोहण की तैयारी चल रही थी. इंसपेक्टर अवधेश प्रताप सिंह एवं अन्य पुलिसकर्मी सीओ अलका भटनागर के आने का इंतजार कर रहे थे. उसी समय एक दुबलापतला युवक आया और एक सिपाही के पास जा कर बोला, ‘‘स…स… साहब, बड़े साहब कहां हैं, मुझे उन से कुछ कहना है.’’

इंसपेक्टर अवधेश प्रताप सिंह वहीं मौजूद थे. उस युवक की आवाज उन के कानों तक पहुंची तो उन्होंने उसे अपने पास बुला कर पूछा, ‘‘कहो, क्या बात है?’’

‘‘साहब, मेरा नाम इंद्रकुमार साहू है. मैं चक गरीबदास मोहल्ले में मामाभांजा तालाब के पास रहता हूं. मैं ने अपनी पत्नी और उस के प्रेमी को मार डाला है.’’ इंद्रकुमार के मुंह से 2 हत्याओं की बात सुन कर अवधेश प्रताप सिंह दंग रह गए. उन्होंने उस के ऊपर एक नजर डाली, उस के उलझे बाल, लाललाल आंखों से वह पागल जैसा नजर आ रहा था. चेहरे के हावभाव देख लग रहा था कि वह रात भर नहीं सोया था.

वहां मौजूद सभी पुलिसकर्मी इंद्रकुमार को हैरानी से देख रहे थे. थाना पुलिस कुछ करने का सोच रही थी, तभी सीओ अलका भटनागर भी थाना आ पहुंचीं. इंद्रकुमार द्वारा दो हत्याएं करने की बात सुन वह भी दंग रह गईं. सीओ के इशारे पर अवधेश प्रताप सिंह ने उसे हिरासत में ले लिया.

ध्वजारोहण की औपचारिकताएं पूरी करने के बाद अवधेश प्रताप सिंह इंद्रकुमार को अपनी जीप में बैठा कर उस के घर ले गए. अलका भटनागर भी साथ गईं. इंद्रकुमार पुलिस को उस कमरे में ले गया, जहां पत्नी गीता साहू और उस के प्रेमी रीतेश सोनी की लाशें पड़ी थीं.

पुलिस के पहुंचने पर इस दोहरे हत्याकांड की खबर पासपड़ोस वालों को मिली तो सभी इकट्ठा हो गए. पुलिस दोनों लाशों का बारीकी से निरीक्षण करने लगी. पुलिस अधिकारी यह देख कर हतप्रभ थे कि दोनों लाशों पर नोचखसोट या चोट के कोई निशान नहीं थे. गीता के गले पर लाल धारियां जरूर पड़ी थीं. रीतेश के गले पर भी वैसे ही निशान देख कर लग रह था कि उन की हत्या गला घोंट कर की गई थी.

मोहल्ले वालों से खबर पा कर उस के घर वाले रोतेबिलखते घटनास्थल पर आ गए थे. मौके की जरूरी काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद इंद्रकुमार को थाने ला कर उस से इस दोहरे हत्याकांड के बारे में पूछताछ की तो उस ने पत्नी की बेवफाई की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

इंद्रकुमार साहू उत्तर प्रदेश के जिला इलाहाबाद के थाना नैनी के मोहल्ला गरीबदास में अपनी 32 साल की पत्नी गीता और 4 बच्चों के साथ रहता था. उस की बड़ी बेटी 15 साल की थी. इंद्रकुमार ने अपने मकान के आगे वाले हिस्से में किराना और चायनाश्ता की दुकान खोल रखी थी. उस का काम अच्छा चल रहा था. घर के काम से फारिग होने के बाद गीता भी दुकानदारी के काम में उस का हाथ बंटाती थी.

इंद्रकुमार के घर से कुछ दूरी पर बनारसीलाल सोनी रहता था. उस का बेटा रीतेश सोनी सिगरेट और गुटखा का शौकीन था. इसी वजह से उस का इंद्रकुमार की दुकान पर आनाजाना लगा रहता था. मोहल्ले के रिश्ते से गीता उस की भाभी लगती थी. इसी नाते वह अकसर उस से इंद्रकुमार के सामने ही हंसीमजाक कर लिया करता था.

अपने से 9 साल छोटे रीतेश की बातों का गीता भी हंस कर जवाब दे दिया करती थी. स्वभाव से सीधा और सरल इंद्रकुमार इस का कतई बुरा नहीं मानता था. इंद्रकुमार दुकान का सामान लेने अकसर इलाहाबाद शहर जाता रहता था. ऐसे में गीता ही दुकान संभालती थी.इस बीच रीतेश गीता को रिझाने के लिए उस की तारीफ किया करता था. एक बार उस ने कहा, ‘‘भाभी, तुम्हें देख कर कोई नहीं कह सकता कि तुम 4 बच्चों की मां हो. तुम तो अभी भी जवान दिखती हो.’’

अपनी तारीफ सुन कर गीता गदगद हो गई थी. इस के बाद एक दिन उस ने कहा, ‘‘भाभी, तुम में गजब का आकर्षण है. कहां तुम और कहां इंदर भाई. दोनों की कदकाठी, रंगरूप और उम्र में जमीनआसमान का अंतर है. तुम्हारे सामने तो वह कुछ भी नहीं है.’’

अपनी तारीफ सुन कर गीता अंदर ही अंदर जहां एक ओर फूली नहीं समाई, वहीं दिखावे के लिए उस ने मंदमंद मुसकराते हुए रीतेश की ओर देखते हुए कहा, ‘‘झूठे कहीं के, तुम जरूरत से ज्यादा तारीफ कर रहे हो? मुझे तुम्हारी इस तारीफ में दाल में कुछ काला नजर आ रहा है, तुम्हारे भैया जो मरियल से दिखते हैं, आने दो बताती हूं उन से.’’

इतना कह कर वह जोरजोर से हंसने लगी. हकीकत यह थी कि गीता रीतेश को मन ही मन चाहती थी. उस ने केवल दिखावे के लिए यह बात कही थी. रीतेश हर हाल में उसे पाना चाहता था. गीता के हावभाव से वह समझ चुका था कि गीता भी उसे पसंद करती है. लेकिन वह इजहार नहीं कर पा रही है.

एक दिन दोपहर को गीता के बच्चे स्कूल गए थे. इंद्रकुमार बाजार गया हुआ था. गरमी के दिन थे. दुकान पर सन्नाटा था. रीतेश ऐसे ही मौके की तलाश में था. वह गीता की दुकान पर पहुंच गया. इधरउधर की बातों और हंसीमजाक के बीच रीतेश ने गीता का हाथ अपने हाथ में ले लिया.

गीता ने इस का विरोध नहीं किया. चेहरेमोहरे से गोरेचिट्टे गबरू जवान रीतेश के हाथों का स्पर्श कुछ अलग था. गीता का हाथ अपने हाथ में ले कर रीतेश सुधबुध खो कर एकटक उस के चेहरे पर निगाहें टिकाए रहा. अचानक रीतेश की तंद्रा भंग करते हुए गीता ने कहा, ‘‘अरे ओ देवरजी, किस दुनिया में सो गए. छोड़ो मेरा हाथ. अगर किसी ने देख लिया तो जानते हो कितनी बड़ी बेइज्जती होगी?’’

गीता की बात सुन कर रीतेश ने कहा, ‘‘यहां बाहर कोई देख लेगा तो अंदर कमरे में चलें?’’

‘‘नहीं…नहीं… आज नहीं, अभी उन के आने का समय हो गया है. वह किसी भी समय आ सकते हैं. फिर कभी अंदर चलेंगे.’’ गीता ने कहा तो रीतेश ने उस का हाथ छोड़ दिया.

लेकिन वह मन ही मन बहुत खुश था, क्योंकि उसे गीता की तरफ से हरी झंडी मिल गई थी. इस के बाद मौका मिलते ही दोनों ने मर्यादा की दीवार तोड़ डाली. इस के बाद इंद्रकुमार की आंखों में धूल झोंक कर गीता रीतेश के साथ मौजमस्ती करने लगी. अवैधसंबंधों का यह सिलसिला करीब 3 सालों तक चलता रहा.

अवैध संबंधों को कोई लाख छिपाने की कोशिश क्यों न करे, लेकिन वह छिप नहीं पाते. किसी तरह पड़ोसियों को गीता और रीतेश के अवैध संबंधों की भनक लग गई. इंद्रकुमार के दोस्तों ने कई बार उसे उस की पत्नी और रीतेश के संबंधों की बात बताई, लेकिन वह इतना सीधासादा था कि उस ने दोस्तों की बातों पर ध्यान नहीं दिया. क्योंकि उसे पत्नी पर पूरा विश्वास था. जबकि सच्चाई यह थी कि वह उस के साथ लगातार विश्वासघात कर रही थी.

सही बात तो यह थी कि गीता पति को कुछ समझती ही नहीं थी. आखिर 6 महीने पहले एक दिन इंद्रकुमार ने अपनी पत्नी और रीतेश को अपने ही घर में आपत्तिजनक स्थिति में रंगेहाथों पकड़ लिया. रीतेश ने जब इंद्रकुमार को देखा तो वह फुरती से वहां से भाग गया. उस ने भी उस से कुछ नहीं कहा. पर उस ने गीता को खूब खरीखोटी सुनाई और दोबारा ऐसी हरकत न करने की हिदायत दे कर छोड़ दिया.

उस दिन के बाद से कुछ दिनों तक रीतेश का गीता के यहां आनाजाना लगभग बंद रहा. पर यह पाबंदी ज्यादा दिनों तक कायम न रह सकी. मौका मिलने पर दोनों फिर से इंद्रकुमार की आंखों में धूल झोंकने लगे. पर अब वे काफी सावधानी बरत रहे थे. गीता ने अपने दोनों बड़े बच्चों बेटी और बेटे को पूरी तरह से अपने पक्ष में कर लिया था.

रीतेश भी बच्चों को पैसे और खानेपीने की चीजें ला कर देता रहता था, जिस से बच्चे रीतेश के घर में आने की बात अपने पिता को नहीं बताते थे. इस के बावजूद इंद्रकुमार ने दोनों की चोरी दोबारा पकड़ ली. इस बार उस ने गीता की जम कर धुनाई की और बच्चों को भी डांटाफटकारा.

अब वह गीता पर और ज्यादा निगाह रखने लगा. मगर गीता पर इस का विपरीत असर हुआ. वैसे भी वह पहले ही पति की परवाह नहीं करती थी. अब उस का डर बिलकुल मन से निकल गया था. वह पूरी तरह बेशर्मी पर उतर आई. पति की मौजूदगी में ही वह प्रेमी रीतेश से खुलेआम मिलने लगी.

इंद्रकुमार दुकान पर बैठा रहता तो रीतेश उस के सामने ही घर के अंदर उस की पत्नी के पास चला जाता. वह जानता था कि रीतेश और गीता उस से ज्यादा ताकतवर हैं, इसलिए वह चाह कर भी कुछ नहीं कह पाता था. लाचार सा वह दुकान पर ही बैठा रहता था.

पत्नी पर अब उस का कोई वश नहीं रह गया था. वह 15 साल की बड़ी बेटी की दुहाई देते हुए पत्नी को समझाता, पर पत्नी पर उस के समझाने का कोई फर्क नहीं पड़ता था. बल्कि वह और भी ज्यादा मनमानी करने लगी थी.

अपनी आंखों के सामने अपनी इज्जत का जनाजा उठते देख उस का धैर्य जवाब देने लगा. अब उस से पत्नी की बेवफाई और बेहयाई बिलकुल बरदाश्त नहीं हो रही थी. इसी सब का नतीजा था कि उस ने मन ही मन एक खतरनाक मंसूबा पाल लिया. वह मंसूबा था रीतेश और बेवफा पत्नी की हत्या का.

घटना से 8-10 दिन पहले से ही वह अपने मंसूबे को अमलीजामा पहनाने में लग गया था. मसलन दोनों को मौत के आगोश में सुलाने की उस ने एक खतरनाक योजना बना ली थी. अपनी इस योजना के तहत वह खुद भी पत्नी के प्रेमी रीतेश से ऐसे बातें करने लगा, जैसे कि कुछ हुआ ही न हो.

योजना के अनुसार, 25 जनवरी, 2017 को वह एक मैडिकल स्टोर से नींद की 20 गोलियां खरीद लाया. दोनों बड़े बच्चों को वह उन की मौसी के घर छोड़ आया. जबकि छोटे दोनों बच्चे घर में ही थे.

रात 9 बजे के आसपास उस ने दुकान बंद की. घर के भीतर गया तो देखा गीता खाना बनाने की तैयारी कर रही थी. उस का प्रेमी रीतेश कमरे में बैठा टीवी देख रहा था. उसे देख कर अंदर ही अंदर उस का खून खौल रहा था. हत्या के इरादे से इंद्रकुमार ने खुद ही चाय बनाई और पत्नी तथा रीतेश की चाय में नींद की दवा मिला कर चाय उन्हें दे दी. एक कप में ले कर वह खुद भी चाय पीने लगा.

चाय पीने के बाद भी दोनों बेहोश नहीं हुए तो इंद्रकुमार अवाक रह गया. क्योंकि उस दिन उस ने दोनों को मौत के घाट उतारने की पूरी तैयारी कर ली थी. जब उन दोनों पर नींद की गोलियों का कोई असर नहीं हुआ तो उस ने रीतेश से कहा, ‘‘भाई रितेश कल 26 जनवरी है. कल शराब की सारी दुकानें बंद रहेंगी. आज मेरा मन शराब पीने का कर रहा है. क्यों न आज हम 3-3 पैग लगा लें.’’

इंद्रकुमार की बात पर रीतेश खुश हो गया. उस ने कहा, ‘‘हांहां, क्यों नहीं. जब तक गीता भाभी खाना बना रही हैं, तब तक हम दोनों अपना काम कर लेते हैं.’’ इस के बाद दोनों शराब की दुकान पर गए और वहां से एक बोतल खरीद कर लौट आए. उन के बीच शराब का दौर शुरू हुआ. अब तक गीता और रीतेश पर गोलियों का असर होने लगा था.

बातोंबातों में इंद्रकुमार ने रीतेश को ज्यादा शराब पिला दी. बिना खाएपिए दोनों आधी रात तक शराब पीते रहे. इस बीच गीता को नींद आने लगी. दोनों बच्चों के साथ गीता ने खाना खा लिया. उस ने रीतेश और पति को कई बार खाने को कहा. लेकिन जब उस ने देखा कि दोनों पीने में मस्त हैं तो वह बच्चों के साथ दूसरे कमरे में सोने चली गई. थोड़ी देर बाद नशा हावी होते ही रीतेश भी वहीं पसर गया.

इंद्रकुमार को इसी मौके का इंतजार था. वह रीतेश को खींच कर दुकान के पीछे वाले कमरे में ले गया और पूरी ताकत से उस का गला दबा दिया. थोड़ी देर में उस का शरीर हमेशाहमेशा के लिए शांत हो गया.

इस के बाद वह गीता को भी उसी कमरे में खींच लाया. लेकिन गीता पूरी तरह बेहोश नहीं थी. उस ने इंद्रकुमार से बचने की भरपूर कोशिश की, विरोध भी किया, लेकिन इंद्रकुमार ने दुपट्टे से उस का गला कस दिया. जिस के चलते उस के भी त्रियाचरित्र का अध्याय हमेशा के लिए समाप्त हो गया.

इंद्रकुमार साहू से विस्तार से पूछताछ कर के पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 308 के तहत गिरफ्तार कर उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित