यादगार केस : दुआ को मिला इन्साफ – भाग 3

सभी न्यूज चैनल्स मंगी की मौत और उस के आखिरी लम्हों की वीडियो की फुटेज दिखा रहे थे. पुलिस की काररवाई पर भी सवाल खड़े किए जा रहे थे. कातिल ने अपने दावे के मुताबिक मंगी को अदालत में पुलिस के सामने मार दिया था. डीएसपी रंधावा और इंसपेक्टर भट्टी बारबार मंगी के आखिरी लम्हों की वीडियो देख रहे थे, क्योंकि कोई सुबूत हाथ नहीं आ रहा था.

रंधावा पूरे 38 घंटे बाद बिस्तर पर लेटा तो सुबह 7 बजे के अलार्म मोबाइल की सुरीली आवाज से जागा. मोबाइल अलार्म के साथ उस के जेहन में भी एक घंटी बजी. चाय पी कर रंधावा औफिस के लिए निकल पड़े. औफिस में एक बार फिर उन्होंने मंगी के कत्ल की वीडियो देखी. इस बार वीडियो देख कर उन के होंठों पर एक रहस्यमय मुसकराहट आई.

रात 8 बजे रंधावा जज आफाक अहमद के कमरे में बैठे थे. दोनों के बीच मंगी के रहस्यमय कत्ल पर बातचीत चल रही थी. आफाक अहमद ने कहा, ‘‘इस मामले में सब कुछ रहस्यमय है.’’

रंधावा ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘जज साहब, आप बिलकुल सही कह रहे हैं.’’ इस के बाद दीवार पर नजर डालते हुए वह बोले, ‘‘इस पीतल की घड़ी के बगल में मार्क एंड बेंसन की स्विटजरलैंड मेड घड़ी लगी थी. वह नजर नहीं आ रही है?’’

‘‘वह खराब हो गई है.’’ जज साहब ने कहा.

दोनों दोस्तों की नजरें मिलीं. दोनों ही एकदूसरे के मिजाज और सोच के हर रंग से वाकिफ थे. रंधावा ने कौफी का घूंट भरते हुए कहा, ‘‘आफाक अहमद, तुम्हारी योग्यता का कोई जवाब नहीं. आखिर तुम ने इस केस को यादगार बना ही दिया.’’

रंधावा की इस बात से आफाक अहमद बिलकुल नहीं चौंके. उन्होंने कहा, ‘‘आखिर तुम्हें मेरा खयाल आ ही गया. लेकिन तुम्हारे पास सिर्फ थ्योरी है. कोई सुबूत नहीं कि यह सब कैसे हुआ?’’

रंधावा ने खुल कर हंसते हुए कहा, ‘‘बेशक कोई सुबूत नहीं है, मगर मैं जान गया हूं कि इस कारनामे को तुम ने कैसे अंजाम दिया?’’

‘‘जरा मैं भी तो सुनूं?’’ जज ने मजा लेते हुए कहा…

‘‘तुम्हें कैप्टन शाद अली की तकनीकी मदद हासिल थी.’’

पहली बार आफाक अहमद थोड़ा परेशान हुए. रंधावा ने आगे कहा, ‘‘मैं यह नहीं जानता कि तुम दोनों का गठजोड़ कैसे हुआ? पर यह जरूर जान गया हूं कि यह तुम दोनों की मिलीभगत थी.’’

जज आफाक अहमद ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारी मुश्किल आसान कर देता हूं. कैप्टन शाद अली को मेरे पास तुम्हारा भतीजा ले कर आया था.’’

रंधावा ने बात काटी, ‘‘और फिर उस मुलाकात में तुम दोनों ने मासूम दुआ अली के बेरहम कातिल को अदालत के कमरे में ही खत्म करने की योजना बना डाली. तुम्हें अपनी योजना की कामयाबी का सौ फीसदी यकीन था? इस दौरान तुम्हारे अंदर शरारत जाग उठी. तुम ने मुझे बीच में घसीट कर एक तरह से चुनौती दी कि तुम्हारे सामने मंगी मारा जाएगा और तुम कुछ कर सकते हो तो कर लो?’’

आफाक अहमद कहकहा लगाते हुए बोले, ‘‘बिलकुल ठीक जा रहे हो मेरे दोस्त.’’

‘‘योजना यकीनन तुम ने तैयार की थी. तुम्हारे कहने के मुताबिक कैप्टन शाद अली ने तुम्हारे कमरे की ‘मार्क एंड बेंसन’ घड़ी में जरूरी बदलाव कर के ‘एरोगन’ फिट कर दी और उस का ट्रिगर रिमोट कंट्रोल से जोड़ दिया.’’

रंधावा की इस बात से आफाक अहमद सन्न रह गए. उन की इस हालत का मजा लेते हुए रंधावा ने आगे कहा, ‘‘फैसले वाले दिन तुम उस खास घड़ी को ब्रीफकेस में रख कर अपने साथ ले गए. तुम उस समय अपने चैंबर में थे, जब मेरी टीम अदालत के कमरे को चैक कर रही थी. हम ने दीवार पर लगी तुम्हारी खास घड़ी जैसी मार्क एंड बेंसन घड़ी को भी बारीकी से चैक किया था.

निश्चिंत हो कर हम ने अदालत के कमरे को बंद करवा दिया था. इस के बाद तुम्हारे लिए सब कुछ बड़ा आसान हो गया. अपने चैंबर से अदालत के कमरे में खुलने वाले दरवाजे के जरिए तुम ने अंदर से खुलने वाले दरवाजे के जरिए अंदर दाखिल हो कर उस घड़ी की जगह अपनी घड़ी लगा दी.

‘‘मंगी को तुम ने बरी नहीं किया बल्कि उसे मौत दे दी. मुलजिमों के कटघरे और घड़ी का दरम्यानी फासला, घड़ी की ऊंचाई और मंगी की 6 फुट से निकलती लंबाई, सब कुछ तुम्हारी नजर में था. तुम्हारी पूरी योजना तैयार थी. रिमोट का महज एक बटन दबा कर तुम ने उसे खत्म कर दिया. शायद यह शेर ऐसे ही कत्ल के बारे में कहा गया है –

‘न हाथ में खंजर न आस्तीन पर लहू

तुम कत्ल करो हो कि करामात करो हो.’

जज आफाक अहमद ने बेआवाज ताली बजाई. एक पुलिस अफसर के तारीफी अल्फाज उन का रुतबा बढ़ा रहे थे. रंधावा ने कहा, ‘‘कत्ल के बाद जब हम ने दोबारा कमरा बंद किया तो तुम ने पहले की ही तरह जा कर घड़ी बदल दी और हमारे सामने से बड़े आराम से घर चले गए. उस के बाद हम बेचारे बने झक मारते रहे.’’

उन के इस अंदाज पर आफाक अहमद ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी कहानी बस अंदाजों पर टिकी है. तुम्हारे पास मेरे खिलाफ न कोई सुबूत है न कोई शहादत. तुम्हारी अंदाजों पर टिकी कहानी सुन कर हाईकोर्ट एक माननीय डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन जज के लिए गिरफ्तारी वारंट कभी जारी नहीं करेगा? बल्कि मुमकिन है कि ऐसी दरख्वास्त करने वाले पुलिस अफसर के स्टार ही मौके पर उतार लिए जाएं.’’

‘‘जानता हूं.’’ रंधावा ने कहा, ‘‘मेरा ऐसा कुछ करने का कोई इरादा भी नहीं है. और यकीनन वह खास कातिल घड़ी भी अब तक तुम ने ठिकाने लगा दी होगी.’’

आफाक अहमद ने तारीफी अंदाज में कहा, ‘‘यकीनन तुम एक काबिल और होशियार पुलिस अफसर हो. पर यह तो बताओ कि तुम्हें मेरा खयाल आया कैसे?’’

रंधावा ने मुसकरा कर कहा, ‘‘मंगी के ठीक सामने दीवार पर लगी पुरानी घड़ी मेरे जेहन में चुभ रही थी. वैसी ही घड़ी मैं तुम्हारे इस कमरे में देख चुका था. सुबह अलार्म की घंटी ने याद दिलाया. नईपुरानी घडि़यां जमा करना तुम्हारा पुराना शौक रहा है. तुम्हारी तरफ ध्यान गया तो परदे हटते गए और फिर तुम ही अकेले ऐसे शख्स थे, जो अपने चैंबर के रास्ते से कभी भी अदालत के कमरे में जा सकते थे.

‘‘वारदात के पहले और वारदात के बाद बिना किसी की नजरों में आए तुम अदालत के कमरे में दाखिल हो सकते थे. इस के अलावा तुम ने फैसला सुनाने से पहले घड़ी और मंगी के बीच खड़े सफाई वकील को बैठने के लिए कहा था.

‘‘अगर सफाई वकील वहां खड़ा भी रहता तो कोई फर्क नहीं पड़ता. लेकिन तुम ने खास तौर पर उसे बैठने को कहा था. उस वक्त की वीडियो देखने पर मुझे यकीन हो गया कि यह कारनामा सिर्फ तुम ही कर सकते थे.’’

आफाक अहमद ने सुकून से कहा, ‘‘तुम क्यों रिटायर हो रहे हो रंधावा? तुम्हारी काबलियत काबिले तारीफ है. 3-4 साल और नौकरी कर लो.’’

‘‘नहीं,’’ रंधावा ने कहा, ‘‘अपनी ईमानदारी और सच्चाई की साख बचातेबचाते अब मैं थक चुका हूं. वैसे एक बात और कहूंगा, तुम्हारी गुनहगार को सजा दिलाने की जिद और उसूल भी एक सुबूत है. मेरा आखिरी केस मेरे लिए सचमुच यादगार रहेगा. इस बात के साथ कि हर उलझे और मुश्किल केस की गुत्थियां सुलझाने वाला रंधावा अपने आखिरी केस को हल करने में नाकाम रहा. लेकिन मुझे खुशी है कि तुम्हारा उसूल अब भी कायम है. तुम्हारे बारे में जो मशहूर है कि तुम मुजरिम को छोड़ते नहीं, वह पूरा हुआ.’’

आफाक अहमद ने इत्मीनान और सुकून से सिर हिलाया. खड़े हो कर रंधावा को गले लगाते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी हार और मेरी जीत कोई मायने नहीं रखती दोस्त. सब से अहम बात तो यह है कि हम दोनों के दिल पर कोई बोझ नहीं है.’’

रंधावा ने मुसकरा कर हाथ मिलाते हुए कहा, ‘‘मैं भी इस बात से खुश हूं कि दुआ अली को इंसाफ मिला है, वह कैसे भी मिला है.’’

ट्रंक की चोरी : ईमानदार चोर ने किया साजिश का पर्दाफाश – भाग 2

उस ने फटाफट कार की डिक्की बंद की और कार ले कर वहां से निकल गया. कार चलाते समय वह बारबार साइड मिरर में देख रहा था कि कहीं कोई उस का पीछा तो नहीं कर रहा. उस के दिमाग में बारबार यही बात घूम रही थी कि अपार्टमेंट में रहने वाले सभी लोग बाहर गए हुए थे तो वहां फायर किस ने किए?

वह रात उस ने होटल माउंटेन हाऊस में गुजारी और सुबह जल्दी न्यूयार्क के लिए रवाना हो गया. ट्रंक में क्या चीज रखी है, यह जानने के लिए उस की जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी. न्यूयार्क पहुंचते ही उस ने डिक्की में रखे ट्रंक को खोला. अंदर एक सोने की अंगूठी मिली. उस पुरानी अंगूठी में एक बड़ा हीरा और उस के आसपास कई छोटे हीरे जड़े थे.

वह अंगूठी बहुत कीमती लग रही थी. निक ने अंगूठी जेब में रखी और ट्रंक डिक्की में ही बंद कर दिया. अंगूठी देख कर ग्लोरिया के मन में लालच आ गया. वह उस अंगूठी को अपने पास रखना चाहती थी, लेकिन निक ने यह कह कर उस से अंगूठी ले ली कि यह क्लाइंट या मालिक की अमानत है, वह उन्हें लौटा देगा.

रात साढ़े 9 बजे वह दिए गए पते पर ट्रंक पहुंचाने निकल गया. वह एक 4 मंजिला इमारत थी. अपार्टमेंट के मुख्य दरवाजे पर ताला लगा हुआ था. उसे विक्टर ने एक चाबी दे रखी थी. निक ने वह चाबी ताले में लगाई तो वह खुल गया. फिर दरवाजा खोल कर उस ने वह ट्रंक कमरे में रख दिया. जिस कमरे में ट्रंक रखा था वह हौलनुमा था और बेहद खूबसूरती से सजाया हुआ था.

ट्रंक रखने के बाद वह अपनी कार के पास पहुंचा तो वहां उसे विक्टर एलियानोफ मिला, जो कार से टेक लगा कर सिगरेट पी रहा था. निक को देखते ही बोला, ‘‘निक तुम अपने हुनर में माहिर हो. जी चाहता है कि तुम्हारे हाथ चूम लूं.’’

‘‘हाथ चूमने की जरूरत नहीं है. मुझे जो काम सौंपा गया था, पूरा कर दिया.’’

निक ने उस अंगूठी के बारे में विक्टर को कुछ नहीं बताया. उस ने सोचा कि विक्टर को अंगूठी के बारे में कुछ मालूम नहीं होगा. विक्टर ने एक मोटा लिफाफा निकाल कर उस की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘ये हैं तुम्हारे बाकी के 15 हजार डालर.’’

लिफाफा लेते हुए निक बोला, ‘‘मुझे ट्रंक में एक कीमती चीज मिली है.’’

विक्टर ने चौंक कर उसे देखते हुए कहा, ‘‘मेरी जानकारी के अनुसार ट्रंक खाली था तो तुम्हें उस में क्या चीज मिली?’’

‘‘हीरे जड़ाऊ एक अंगूठी थी उस में.’’

‘‘कहां है वो अंगूठी?’’

‘‘वह मेरे पास है मैं उसे उस के मालिक को वापस दूंगा. क्योंकि मैं केवल फालतू चीजें ही चोरी करता हूं, कोई कीमती चीज नहीं. यदि मैं अंगूठी रख लूंगा तो मुझ में और दूसरे चोरों में क्या फर्क रह जाएगा?’’

‘‘अगर तुम इतने ही शरीफ बनते हो तो लाओ अंगूठी मुझे दो, मैं उसे मालिक तक पहुंचा दूंगा.’’

‘‘नहीं, जब इसे चुरा कर मैं लाया हूं तो मैं ही पहुंचाऊंगा.’’

अगले दिन निक अखबार में छपी एक खबर पढ़ कर चौंक उठा. खबर में लिखा था कि न्यूपालिट में डकैती की वारदात कर लाखों रुपए के बहुत पुराने हीरेजवाहरात के जेवर लूट लिए. वारदात के समय डकैतों ने अपार्टमेंट के चौकीदार की गोली मार कर हत्या कर दी. इस मामले में पुलिस ने 3 लोगों को गिरफ्तार किया है जिन में एक लड़की भी शामिल है. पुलिस ने उन के पास से ट्रंक और कुछ लूटे हुए जेवरात बरामद कर लिए.

खबर पढ़ कर निक समझ गया कि यह सब विक्टर का ही कराधरा होगा. यानी विक्टर ने इस अपराध में उसे भी शामिल कर लिया. उस ने सोचा कि जिन 3 जनों को उसने फंसाया है वह उस के करीबी रिश्तेदार होंगे. निक ने विक्टर को फोन लगाया और मिलने के लिए कहा. विक्टर ने उसे बर्कशायर होटल के कमरा नंबर 787 में मिलने के लिए बुला लिया.

निक फटाफट तैयार हो कर होटल बर्कशायर पहुंच गया. विक्टर कमरे में बैठा टीवी देख रहा था. निक ने बैठते ही कहा, ‘‘मिस्टर विक्टर मैं यह जानना चाहता हूं कि जिन 3 लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है, उन से आप का क्या रिश्ता है? चौकीदार को किस ने मारा?’’

यह सुनते ही विक्टर ने चेकबुक निकाली और 5 हजार डालर का एक चेक काट कर उसे देते हुए कहा, ‘‘मिस्टर निक, ये 5 हजार रखो और भूल जाओ कि तुम ने कोई ट्रंक चोरी किया था और कोई घटना घटी थी. हां, वह कीमती अंगूठी भी तुम रख लो.’’

उस की बात सुन कर निक चौंक गया. वह बोला, ‘‘अच्छा, तो वह मकान आप का ही है. मुझे पहले ही शक था.’’

‘‘हां, मकान मेरा ही है मगर मैं कह रहा हूं कि उन सब बातों को भूलने के लिए ही ये 5 हजार हैं.’’

निक ने सोचा कि विक्टर रकम के बूते उसे चुप कराना चाहता है. वह लालच में नहीं आया. उस ने वह चेक फाड़ दिया और कहा, ‘‘मामला 3 बेगुनाह लोगों का है जिन्हें आप ने कत्ल और डकैती के जुर्म में जेल भिजवाया है.’’

‘‘मिस्टर निक, अक्ल से काम लो अगर वो तीनों छूट जाएंगे तो फांसी का फंदा तुम्हारी गरदन में ही पड़ेगा. मैडिकल रिपोर्ट के मुताबिक चौकीदार की मौत का जो वक्त है उसी वक्त तुम मेरे घर में मौजूद थे. इसलिए कत्ल और डकैती के इल्जाम से तुम निकल नहीं पाओगे.’’

विक्टर की बात में दम था. निक सोचने पर मजबूर हो गया. तभी विक्टर बोला, ‘‘तुम्हें बहुत उत्सुकता है जानने की तो सुन लीजिए, जिस मकान में तुम ने चोरी की, वह हमारा पुश्तैनी मकान है. ऐना एलियानोफ मेरी सौतेली बहन है. मेरे पुरखे रूसी थे. मेरे दादा ऐलेक्स एलियानोफ फौज में जनरल थे. लेनिन के साथ कुछ गलतफहमी होने पर उन्हें रूस छोड़ना पड़ा था. 1921 में वह रूस से इस्तांबुल आ गए. वह खानदानी रईस थे. उन के पास काफी कीमती हीरेजवाहरात थे.

‘‘वह 1932 में न्यूपालिट आ गए. यहां मकान बना कर रहने लगे. सारा कीमती खजाना एक मजबूत संदूक में बंद कर के तहखाने में रख दिया. उस के बारे में किसी को कुछ पता नहीं था. लेकिन अपनी मौत से पहले दादा ने मेरे पापा को खजाने का राज बता दिया था. इस के बाद मेरे पिता ने एक अमेरिकन महिला से दूसरी शादी कर ली थी. ऐना एलियानोफ उस अमेरिकन महिला से पैदा हुई हमारी सौतेली बहन है.’’

निक ने टोका, ‘‘ऐना की मां कहां है?’’

‘‘ऐना की मां ने मेरे पिता से करीब 20 साल पहले तलाक ले लिया था. तलाक के बाद वह ऐना को ले कर न्यूयार्क चली गई थी. बाद में उसने किसी शख्स से दूसरी शादी कर ली.’’

‘‘फिर ये कीमती जेवर की चोरी का क्या मामला है?’’ निक ने पूछा.

‘‘मेरे पिता की मौत करीब एक हफ्ता पहले हुई थी. मरने से पहले उन्होंने खानदानी खजाने के बारे में मुझे बता दिया था. मुझ से गलती यह हुई कि सारी बातें मैं ने एक डायरी में नोट कर ली थीं. पिता की मौत की खबर सुन कर सौतेली बहन ऐना भी आ गई थी.

‘‘मैं यह देख कर हैरान रह गया कि पिता के अंतिम संस्कार के बाद ऐना घर में रखी अलमारियां और दराजें खंगालने लगी. वह शायद कोई दस्तावेज तलाश रही थी. इसी बीच उसे मेरी डायरी हाथ लग गई. डायरी पढ़ कर उस ने ट्रंक के खजाने का रहस्य जान लिया था. 2 रोज बाद उस ने अपने 2 साथियों के साथ मिल कर ट्रंक का ताला तोड़ कर सारे जेवर चुरा लिए.’’

‘‘आप के पास इस चोरी का क्या सुबूत है?’’ निक ने पूछा.

‘‘यही तो सारी मुसीबत है. मेरे पास कोई सुबूत नहीं है, पर मुझे पक्का यकीन है कि चोरी उसी ने की, मैं ने उसे अपनी डायरी पढ़ते देख लिया था.’’ उस ने बेबसी से कहा.

‘‘और आप ने ट्रंक मुझ से चोरी करवा कर ऐना के अपार्टमेंट में रखवा दिया. बाद में आप ने पुलिस को खबर कर दी. लेकिन एक बात समझ में नहीं आई कि चौकीदार का कत्ल किस ने किया?’’ निक बोला.

‘‘जाहिर है यह काम ऐना के साथियों ने किया होगा.’’ विक्टर एलियानोफ बोला.

‘‘यह बात मेरी समझ में नहीं आ रही कि जब ऐना और उस के साथी चंद रोज पहले चोरी कर चुके थे, तो फिर दोबारा वहां जा कर कत्ल करने की क्या जरूरत थी?’’

‘‘उन्हें शक हुआ होगा कि चौकीदार ने चोरी करते देख लिया है या शायद वो कुछ और चुराने आए हों.’’ निक चुप रह गया. उस ने जेब से हीरे की अंगूठी निकाल कर विक्टर के हाथ पर रख दी और बाहर निकल गया.

                                                                                                                                             क्रमशः

उधार का चिराग – भाग 2

नाजनीन मुझे ले कर एक अलग टेबल पर बैठ गई. उस ने ढेर सारी चीजें और्डर कर दीं. वह मुझे वहां के तौरतरीके समझाती रही. मेरे बारबार मैडम कहने पर उस ने कहा, ‘‘यह मैडम कहना छोड़ो और मुझे नाम ले कर बुलाओ. मैं अब तुम्हारी बौस नहीं, दोस्त हूं.’’

हम क्लब से बाहर निकले तो उसने पूछा, ‘‘घर पर तुम्हारा कोई इंतजार तो नहीं कर रहा?’’

‘‘नहीं, मैं बिलकुल अकेला हूं.’’

‘‘तब तुम मेरे साथ मेरे घर चलो.’’

11 बजे के आसपास हम दोनों घर पहुंचे. मेरी हालत अजीब सी हो रही थी. घर पहुंचने पर पता चला कि अजहर अली कहीं बाहर गए हुए हैं. वह रात में आएंगे नहीं. कुछ देर रुक कर मैं जाने के लिए खड़ा हुआ, ‘‘नाजनीन, अब मुझे चलना चाहिए.’’

‘‘अब इतनी रात को तुम कहां जाओगे. तुम मेरे साथ आओ.’’ कह कर उस ने मेरा हाथ पकड़ा और खींच कर बेडरूम में ले आई. इतना शानदार बेडरूम मैं ने पहली बार देखा था. मुझे अजीब सी उलझन हो रही थी. मैं इतना भी बेवकूफ नहीं था कि एक खूबसूरत औरत के इशारे न समझ पाता.

वह मेरे एकदम करीब बैठी थी. मैं सोच रहा था कि क्या करूं? खुद को इस तूफान में बह जाने दूं या अपने बौस की इज्जत का  खयाल करते हुए यहां से भाग निकलूं या इस औरत को अहसास दिलाऊं कि वह गलत कर रही है.

नाजनीन ने मेरे गले में बांहें डाल दीं. मैं एकदम से खड़ा हो गया. उस की बांहें हटाते हुए बेरुखी से कहा, ‘‘मैडम, आप जो कर रही हैं, यह ठीक नहीं है. मुझे जाने दीजिए. आप के शौहर ने मेरे लिए इतना कुछ किया है, इतना बड़ा ओहदा दिया है और मुझे जमीन से उठा कर आसमान पर बिठा दिया है, मैं उन की इज्जत से खिलवाड़ करूं, इतना भी अहसान फरामोश नहीं हूं.’’

‘‘बेवकूफ हो तुम.’’ नाजनीन गुस्से से चीखी, ‘‘यह सब मैं अजहर की रजामंदी से कर रही हूं. उन्हें सब पता है.’’

मैं चौंका, ‘‘क्या… उन्हें यह सब पता है?’’

नाजनीन तुनक कर बोली, ‘‘अब तुम जा सकते हो. चाहो तो कल अपने बौस से मेरी शिकायत कर देना. उस के बाद देखना, वह क्या कहते हैं?’’

मैं ने कहा, ‘‘यह सब मेरे उसूलों के खिलाफ है, इसलिए मैं जरूर कहूंगा.’’ कह कर मैं उसी वक्त अपने घर आ गया. मुझे नाजनीन पर गुस्सा आ रहा था कि कैसी बेशर्म औरत है, जो अपने शौहर की इज्जत नीलाम कर रही है. पूरी रात मैं उस बेबाक बेधड़क औरत के बारे में ही सोचता रहा.

अगले दिन मैं गुस्से में बौस के चैंबर में पहुंचा तो उन्होंने मुसकराते हुए पूछा, ‘‘कहो, शहबाज, क्लब में कैसा लगा? मुबारक हो तुम्हें क्लब की मेंबरशिप मिल गई.’’

‘‘शुक्रिया सर, लेकिन मुझे आप से एक जरूरी बात करनी है.’’

‘‘कहो, क्या कहना चाहते हो?’’

‘‘सर, कल रात मैडम मुझे क्लब से सीधे अपने घर ले गईं.’’

‘‘मुझे मालूम है, उन्होंने मुझे सब बता दिया है.’’

‘‘सर, कल रात उन्होंने मेरे साथ कुछ ऐसा किया, जो उन्हें नहीं करना चाहिए था. वह सब बताते हुए मुझे शरम आती है.’’ मैं ने कहा.

‘‘मैं समझ गया, तुम क्या कहना चाहते हो. बैठ जाओ, मुझे तुम से कुछ खास बातें करनी हैं. शहबाज, मैं जो कहने जा रहा हूं, वह एक बहुत बड़ी ट्रेजिडी है. वादा करो, इस बात की चर्चा तुम किसी से नहीं करोगे.’’

‘‘जी सर, आप यकीन रखें, मैं किसी से कुछ नहीं कहूंगा.’’

‘‘बात यह है कि मेरा खानदान बहुत बड़ा है और सब की नजरें हमारे ऊपर ही टिकी हैं. हमारी शादी को 7-8 साल हो गए हैं और अब तक हमारी कोई औलाद नहीं हुई है. यह बात हर किसी को बताई भी नहीं जा सकती. दरअसल मेरी मजबूरी यह है कि मैं औलाद पैदा करने के काबिल नहीं हूं.’’

इतना कह कर अजहर अली ने एक लंबी सांस ली और सिर झुका लिया.

मेरे बौस ने एक बहुत बड़ी बात मेरे सामने कह दी थी. उस समय बौस काफी मजबूर और बेबस लग रहे थे. मेरे लिए भी यह बात किसी आघात से कम नहीं थी.

मुझे खामोश देख कर उन्होंने कहा, ‘‘तुम मेरी बात समझ रहे हो न? हमें एक बच्चे की सख्त जरूरत है, जो नाजनीन की कोख से पैदा हुआ हो. हम बच्चा अडौप्ट भी नहीं करना चाहते.’’

‘‘सर, आप बच्चे के लिए दूसरी शादी तो कर सकते हैं.’’ मैं ने कहा.

‘‘बेवकूफी वाली बात मत करो. कमजोरी मुझ में है. दूसरी या तीसरी शादी से क्या होगा?’’

‘‘हां, यह बात भी सही है.’’ मैं ने झेंप कर कहा.

‘‘अब तुम समझ गए होगे कि हम क्या चाहते हैं. मैं ने महीनों तुम्हारे बारे में सोचा, उस के बाद नाजनीन से बात की. तब फैसला लिया गया कि औलाद तुम्हारे जरिए प्राप्त कर ली जाए.’’ अजहर अली ने कहा.

मुझे झटका सा लगा, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है?’’

‘‘बिलकुल हो सकता है. तुम मेरे बच्चे के बाप हो, यह राज केवल हम तीनों को पता होगा. और हां, इस बात की जानकारी किसी अन्य को नहीं होनी चाहिए. बच्चा पैदा होने के बाद तुम्हारा नाजनीन से कोई संबंध नहीं रहेगा.’’ अजहर अली ने सख्त लहजे में कहा.

‘‘सर, कम से कम आप को मुझ से एक बार पूछ तो लेना चाहिए था कि क्या मैं इस सौदे के लिए तैयार हूं?’’ मैं ने कहा.

‘‘अगर तुम अक्लमंद हो तो मना नहीं करोगे. फिर इस में तुम्हारा नुकसान ही क्या है? तुम मैनेजर हो गए हो. तुम्हारा वेतन 3 गुना हो गया है, गाड़ीबंगला के साथ तुम्हें एक खूबसूरत औरत मिल रही है.’’ यह कहते हुए अजहर अली की जुबान लड़खड़ा गई थी.

‘‘लेकिन सर, मुझे अफसोस है कि इतना सब मिलने पर भी मैं यह सब नहीं कर सकता.’’

‘‘प्लीज, मेरी बात मान लो शहबाज. इसी में हम सब की भलाई है. अगर तुम ने मना कर दिया तो मैं किसे पकड़ूंगा? मैं ने तुम पर भरोसा किया था, इसीलिए इतनी बड़ी बात तुम से कह दी. अब मेरे घर और खानदान को तुम्हीं बरबादी से बचा सकते हो. अगर इतनी मेहरबानी तुम मुझ पर कर दो तो अच्छा रहेगा.’’

इस के बाद मुझे उन पर रहम आने लगा था. वह मुझे बहुत बेबस लग रहे थे. उन्होंने मेरे सामने ऐसी बात कह दी थी कि मैं मना नहीं कर सकता था. मैं ने कहा, ‘‘सर, एक काम हो सकता है.’’

‘‘कहो, क्या हो सकता है?’’ उन्होंने बेताबी से पूछा.

‘‘सर, आप मैडम को तलाक दे दीजिए.’’ मैं ने कहा.

‘‘क्या बेकार की बात करते हो, इस से क्या होगा?’’

‘‘सर, आप मेरी पूरी बात तो सुन लीजिए. आप को तलाक इस तरह देना है कि किसी को पता न चले. मैडम आप के साथ ही रहेंगी. इद्दत (तलाक के बाद जितने दिनों तक शादी नहीं हो सकती) के बाद मैं उन से निकाह कर लूंगा. यह उचित और इसलामी तरीका है. इस में कुछ गलत भी नहीं है.’’

‘‘हां, यह तरीका भी ठीक है.’’ अजहर अली ने राहत की सांस ली.

‘‘सर, इस में मुझे भी इत्मीनान रहेगा कि मैं ने कोई गलत काम नहीं किया है. आप का काम हो जाने के बाद मैं मैडम को तलाक दे दूंगा. इस तरह आप की बात भी रह जाएगी और आप का मकसद भी पूरा हो जाएगा.’’

‘‘लेकिन यह सब होगा कैसे?’’

‘‘बहुत ही खामोशी से हो जाएगा, किसी को कानोकान खबर नहीं होगी.’’ मैं ने कहा.

अजहर अली ने चुपचाप नाजनीन को तलाक दे दिया. इद्दत के दौरान वह अपने घर पर ही रहीं, इसलिए किसी को कुछ पता नहीं चला. इद्दत के बाद नाजनीन से उसी तरह चुपचाप मेरा निकाह हो गया, जिस तरह तलाक हुआ था. नाजनीन की जिंदगी में यह रात पहले भी आ चुकी थी, लेकिन मेरी तो पहली शादी थी, इसलिए मेरे लिए पहली रात खास थी.                                                                        

यादगार केस : दुआ को मिला इन्साफ – भाग 2

खलील मंगी गहरे सांवले रंग का ऊंचापूरा सेहतमंद कसरती बदन का मालिक था. कहने को तो वह बिल्डर था, लेकिन असल में वह जमीन माफिया था. रोजाना शाम को वह एक आधुनिक ‘हेल्थ एंड फिटनेस’ क्लब में वर्जिश करने जाता था. उसी क्लब के एक हिस्से में महिलाएं भी वर्जिश करती थीं. दुआ अली भी इसी क्लब में वर्जिश के लिए आती थी, लंबीछरहरी, खूबसूरत, जवानी में कदम रख चुकी 15 साल की मासूम सी लड़की दुआ मंगी को पसंद आ गई.

मंगी ने उस से दोस्ती की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहा. एक दिन पार्किंग में मंगी ने दुआ के कंधे पर हाथ रख दिया तो गुस्से में दुआ ने उसे एक थप्पड़ जड़ दिया. इस के बाद तो उस ने जबरदस्ती दुआ को बांहों में उठाया और अपनी गाड़ी में डाल कर भाग निकला. दुआ चीखतीचिल्लाती रही, लेकिन उस की मदद के लिए कोई नहीं आया. अगले दिन दुआ का रौंदा बेजार शरीर शहर के मशहूर पार्क में पड़ा मिला. जिंदगी की डोर काटने से पहले उसे बड़ी ही बेरहमी से कई बार बेआबरू किया गया था.

दुआ को उठा कर कार में डालते हुए खलील मंगी को कई लोगों ने देखा था, इसलिए शकशुबहा की कोई गुंजाइश नहीं थी. दुआ का भाई शाद अली फौज में अफसर था इसलिए तुरंत काररवाई कर के मंगी को गिरफ्तार कर लिया गया. बाद में मंगी ने रसूख व पैसे का जोर दिखाया, कुछ गवाह जान के खौफ से पीछे हट गए तो कुछ ने पैसे ले कर बयान बदल दिए यानी उन्हें खरीद लिया गया. पैसे के ही जोर पर मैडिकल रिपोर्ट भी बदलवा दी गई और अब वह जालिम कातिल किसी और दुआ के लिए बददुआ बनने के लिए रिहा हो कर आ रहा था.

जज आफाक अहमद आ कर अपनी सीट पर बैठ चुके थे. पेशकार ने पहले से ही टाइप की हुई फैसले की फाइल सामने रख दी थी. अदालत में दोनों ओर के वकीलों के अलावा बार काउंसिल के सदर कामरान पीरजादा, मीडिया के कुछ प्रतिनिधि, दुआ अली के कुछ रिश्तेदार, खलील मंगी का बड़ा भाई और सुरक्षा से जुड़े चंद लोगों के अलावा किसी अन्य को दाखिल होने की इजाजत नहीं थी.

अंदर आने वाले हर शख्स की बड़ी बारीकी से तलाशी ली गई थी. मीडिया वालों का हर सामान चेक किया गया था. बम डिस्पोजल स्क्वायड ने भी अदालत के कमरे को खूब अच्छी तरह से चैक किया गया था. डीएसपी रंधावा और इंसपेक्टर गुलाम भट्टी खुद भी काफी चौकन्ने थे.

दीवार पर लगी घड़ी ने 11 बजने की घोषणा की. जज आफाक अहमद ने मेज के सामने खड़े सफाई वकील को बैठने के लिए कह कर चश्मा ठीक किया. उस के बाद उन्होंने फैसला सुनाना शुरू किया, ‘‘हालात, वाकयात और गवाहों के बयानों से अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि खलील मंगी वल्द जलील मंगी बेगुनाह है.’’

यह फैसला नहीं, एक खंजर था, जिस ने दुआ के प्यारों की जान निकाल दी थी. उन की उम्मीदों का कत्ल कर दिया था. उन के चेहरों पर दुख और आंखों से आंसू उमड़ पड़े थे. जबकि मंगी के भाई का चेहरा खुशी से चमक उठा था.

दोनों भाइयों ने विजयी भाव से एक दूसरे को देखा. रंधावा और भट्टी की नजर वहां उपस्थित हर शख्स की हर हरकत पर थी. वह लम्हा आने ही वाला था, जिस का दावा किया गया था. वैसे तो हर तरफ सुकून था. उन्हें यकीन था कि कैप्टन शाद अली ने भटकाने के लिए वह दावा किया था. यकीनन वह वापसी पर मंगी पर हमला करेगा.

जज आफाक अहमद ने एक बार फिर चश्मे को ठीक किया. उस के बाद एक नजर मंगी पर डाल कर बोले, ‘‘इसी बुनियाद पर अदालत खलील मंगी वल्द जलील मंगी को बाइज्जत बरी करने का हुक्म देती है.’’

खलील मंगी ने खुशी से बेकाबू हो कर अपने दोनों हाथ ऊपर किए. उसी पल मीडिया वालों के कैमरे उस पर चमकने लगे. तभी वह अचानक लड़खड़ाया. बगल में खड़े सिपाही ने उस के मुंह से निकली सिसकारी सुनी. मंगी का एक हाथ सीने पर गया और उसी के साथ वह कटघरे की रेलिंग से टकराया. रेलिंग टूट गई और वह जज की मेज के सामने जा गिरा. पलभर के लिए जैसे सन्नाटा पसर गया. रंधावा ने हैरानी से पलकें झपकाईं. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि वह जो देख रहा है, वह हकीकत है या भ्रम हो रहा है.

एक साथ कई तरह की आवाजें गूंजी. लेकिन सब से अलग और तेज आवाज मंगी के भाई की थी. वह चीख कर अपने भाई की ओर दौड़ा. लेकिन इंसपेक्टर गुलाम भट्टी ने उसे बीच में ही पकड़ लिया, ‘‘खुद पर काबू रखो.’’

जज आफाक अहमद उठे और अदालत से लगे अपने चैंबर में चले गए. सुरक्षा में लगे लोग हरकत में आ गए. ऐंबुलैंस के लिए फोन किया जा चुका था. मंगी का भाई बेकाबू हो रहा था. उसे जबरदस्ती बाहर ले जाया गया. बाकी लोगों को उन की जगहों पर बैठा कर तलाशी ली जाने लगी.

दुआ के बूढ़े चाचा और बहनोई के चेहरे पर एक अजीब सी खुशी और सुकून था. उन के हाथ दुआ के लिए उठे हुए थे. वे दिल से खुद के शुक्रगुजार थे. मंगी का जिस्म कुछ झटके खा कर शांत पड़ गया था. होंठों पर नीला झाग उभर आया था. दुआ अली का मुजरिम खत्म हो गया था.

कैप्टन शाद अली अपने दावे में कामयाब हो गया था. मंगी के सीने पर दाईं ओर एक सुई जैसा बड़ा सा तीर घुसा था, जो बहुत घातक जहर में बुझा हुआ था. ताज्जुब की बात यह थी कि उस तीर को वहां कैसे और किस ने उस पर चलाया था? ये दिमाग को चकराने वाले सवाल थे. ऐंबुलैंस आ चुकी थी. पुलिस हेडक्वार्टर से इन्वैस्टीगेशन टीम आने वाली थी, इसलिए अदालत के कमरे को बंद कर दिया गया था.

सभी लोगों की अच्छी तरह से तलाशी ले ली गई थी. इन्वैस्टीगेशन टीम की काररवाई के बाद मंगी की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. कुछ देर बाद आफाक अहमद अपना ब्रीफकेस ले कर निकलने लगे तो रंधावा के पास आ कर धीरे से बोले, ‘‘वह अपने मकसद में कामयाब हो गया. मैं ने कहा था न कि यह तुम्हारे लिए एक यादगार केस होगा.’’

रंधावा खामोश रहे. उन का दिमाग तेजी से चल रहा था. गाड़ी आई और आफाक अहमद बैठ कर चले गए. इंसपेक्टर भट्टी और डीएसपी रंधावा सिर जोड़े बैठे थे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब कैसे हुआ?

पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई. स्पेशल इन्वैस्टीगेशन टीम की भी शुरुआती रिपोर्ट आ गई थी. उस के अनुसार मंगी के सीने में वह जहरीला तीर, बिलकुल सामने से 6 फुट की ऊंचाई से चलाया गया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार मंगी की मौत बेहद घातक जहर से हुई थी. मंगी का कद 6 फुट 1 इंच था. इस के अलावा मुल्जिमों का कटघरा जमीन से करीब 8 इंच ऊंचा था.

उस के सामने गवाहों वाला कटघरा था. उस के सामने दीवार थी, जिस पर एक घड़ी टंगी थी. कटघरे, दीवार घड़ी आदि सभी चीजों को अच्छे से चैक किया गया था. बाद में भी उन में किसी तरह की कोई गड़बड़ी नहीं मिली थी. अब सवाल यह था कि क्या कैप्टन शाद अली जादू की टोपी पहन कर अदालत के कमरे में आया और मंगी को मार कर आराम से चला गया. इन सवालों ने पुलिस को परेशान कर दिया था.

रंधावा ने पता कर लिया था कि शाद अली उस जहर और हथेली की साइज की अल्ट्रामाडर्न एरोगन चलाने वाले दस्ते से जुड़ा था. जहरीले तीर के चलने के स्थान और ऊंचाई को देख कर अदालत में मौजूद सभी लोग शक के दायरे से बाहर हो गए थे.

                                                                                                                                              क्रमशः

बेरुखी : बनी उम्र भर की सजा – भाग 2

मतलब यह कि चाहतों के हिंडोले में झूलती उम्र की मंजिलें तय करती रही. जब मैं छठी क्लास में थी, तब बड़ी आपा का रिश्ता तय हो गया. उन्हें मैट्रिक के बाद स्कूल से उठा लिया गया, क्योंकि हमारी बिरादरी में लड़कियों को इस से ज्यादा पढ़ाने का रिवाज नहीं था. हमारे खानदान में बिरादरी से बाहर शादी का भी रिवाज नहीं था. बड़ी आपा की शादी के बाद अम्मी ने फौरन ही छोटी आपा की रुखसती की तैयारी शुरू कर दी. वह बचपन से ही ताया अब्बा के बेटे से जोड़ दी गई थी. मेरे 8वीं पास करतेकरते दोनों बहनें विदा हो कर अपनेअपने घर की हो चुकी थीं.

मैट्रिक में आतेआते मुझ पर बहार आ गई. मैं ने ऐसा रूपरंग और कद निकाला कि मैट्रिक करते ही दरवाजे पर रिश्तों की लाइन लग गई. अम्मी का इरादा तो यही था कि मैट्रिक के बाद मुझे भी घर से रुखसत कर दिया जाए, लेकिन मैं अभी और आगे पढ़ना चाहती थी. इसलिए मैं ने अम्मी से छिप कर अब्बू से कालेज में दाखिले की जिद शुरू कर दी. पहले उन्होंने इनकार कर दिया, मगर फिर राजी हो गए.

लेकिन यह बात खुलते ही अम्मी ने हंगामा खड़ा कर दिया. वह मेरे आगे पढ़ने के हक में नहीं थीं. अब्बू ने उन्हें किसी न किसी तरह राजी कर लिया. मैट्रिक में मेरी बहुत अच्छी पोजीशन आई थी, इसलिए बेहतरीन कालेज में दाखिले में कोई मुश्किल पेश नहीं आई. उस कालेज में ज्यादातर बड़े घरानों की लड़कियां पढ़ती थीं. मुझे उस माहौल में आ कर ऐसा महसूस हुआ, जैसे मैं किसी तालाब से निकल कर विशाल समुद्र में आ गई थी.

कालेज में अगरचे एक से बढ़ कर एक हसीन लड़कियां मौजूदी थीं, मगर उन की सुंदरता मेरे हुस्न के आगे फीकी पड़ गई. अलबत्ता उन की बेबाकियां और बातें मुझे दांतों तले अंगुली दबा लेने पर मजबूर कर देतीं. फिर मैं धीरेधीरे उन से घुलमिल गई. लड़कियां जब अपने चाहने वालों की दीवानगी के अंदाज बयान करतीं तो मैं उन के मुंह देखती रह जाती. यह हकीकत थी कि मेरी खूबसूरती के बावजूद किसी लड़के ने मुझे चाहत का पैगाम नहीं दिया था.

कालेज में मेरा दूसरा साल था. मेरी क्लासफेलो नाजिया की सालगिरह थी और मैं उस जलसे में खासतौर पर तैयार हो कर गई थी. यही वजह थी कि वहां मौजूद हर निगाह कुछ क्षणों के लिए मुझ पर जम कर रह गई. नाजिया करोड़पति बाप की औलाद थी और उस दावत में आई हुई लड़कियां कीमती कपड़ों और बेशकीमती जेवरातों से जगमगा रही थीं.

फिर भी एक नौजवान की निगाहें बारबार मुझ पर ही टिक जाती थीं. लंबा कद, बर्जिशी जिस्म, हल्के घुंघराने बाल, सुर्खी मिली रंगत और चमकती आंखें. वह हाथ में कैमरा लिए तसवीरें खींच रहा था. मैं ने महसूस किया कि बारबार कैमरे की फ्लैश मुझ पर पड़ रही थी. उस की निगाहों की गर्मी मैं फासले से भी महसूस कर रही थी. मेरे होंठों पर एक गुरूरभरी मुसकराहट फैल गई. जल्दी ही परिचय का मौका भी आ गया. वह केक की प्लेट उठाए चला आया.

‘‘आप तो कुछ खा ही नहीं रही हैं मिस!’’ उस ने गहरी नजर से मेरा जायजा लिया.

‘‘गुल.’’ मैं ने कनफ्यूज हो कर अधूरा नाम बताया.

‘‘बहुत खूब. आप बिलकुल गुल (फूल) जैसी ही हैं. मुझे राहेल कहते हैं.’’ उस ने मेरी आंखों में झांकते हुए कहा.

उसी वक्त नाजिया वहां आ गई.

‘‘राहेल! तुम इस से मिले? मेरी बेस्टफ्रेंड गुलनार है.’’

‘‘मिल ही तो रहा हूं.’’ वह बोला और मैं ने अपने चेहरे पर रंग बिखरता हुआ महसूस किया.

फिर मुझे पता ही नहीं चला कि कब हम बेतकल्लुफी की सीमा में दाखिल हो गए. जाते समय उस ने चुपके से कागज की एक चिट मेरे हाथ में पकड़ा दी, जो मैं ने हथेली में दबा ली. घर पहुंचते ही धड़कते दिल के साथ वह चिट देखी. उस पर एक फोन नंबर लिखा था. उस रात नींद मेरी आंखों से गायब हो गई थी. नतीजे में सुबह कालेज न जा सकी. सारा दिन व्याकुल सी रही. रात हुई तो सब के सोने के बाद टेलीफोन उठा कर अपने कमरे में ले आई. कांपती अंगुलियों से चिट पर लिखा हुआ नंबर डायल किया. पहली ही घंटी पर रिसीवर उठा लिया गया.

‘‘हैलो!’’ मैं ने धीरे से कहा.

‘‘मुझे यकीन था कि आप फोन जरूर करेंगी.’’ दूसरी तरफ से आवाज आई. मेरे स्वाभिमान को धक्का सा लगा और मैं ने बात किए बिना फोन काट दिया. मगर अगली रात को फिर फोन करने से खुद को रोक न सकी, हालांकि कोई अंदर से मुझे खबरदार कर रहा था कि गुल यह खेल मत शुरू कर.

मैं ने गोलमोल शब्दों में उसे अपने दिल की हालत कह सुनाई और उस ने अपनी बेताबियों का खुल कर इजहार किया. यह कच्ची उम्र की जुनूनी मोहब्बत थी, जो नफानुकसान के खयाल से बेपरवाह होती है. इसलिए जब उस ने मुझे कहीं बाहर मिलने को कहा तो मैं सोचेसमझे बिना तैयार हो गई.

उस ने तजवीज पेश की कि मैं कालेज से किसी बहाने छुट्टी ले कर बाहर आ जाऊं. फिर हम दोनों किसी रेस्त्रां में चलेंगे. मुझे एहसास ही नहीं था कि मैं एक अजनबी की मोहब्बत के नशे में डूब कर मांबाप की इज्जत को दांव पर लगा रही हूं. बस मुझे एक ही अहसास था कि शहजादों जैसी खूबसूरती रखने वाला शख्स मेरी मोहब्बत में गिरफ्तार है.

साथ जीनेमरने की कसमों ने मुझे उस के जादू में जकड़ लिया था. पहली मुलाकात में, जो एक रेस्त्रां के फैमिली केबिन में हुई. उस ने वादा किया कि अपनी तालीम पूरी होते ही वह अपने वालिदैन को हमारे घर भेजेगा. उस के बाद मैं हर तीसरेचौथे रोज उस से इसी तरह बाहर मिलती रही.

अगरचे मैं बड़ी कामयाबी से इस सारे सिलसिले को घर वालों की नजरों से छिपाए हुए थी, मगर कुदरत ने माताओं को एक खूबी दे रखी है, जो उन्हें अपनी बेटियों की बदलती अवस्था से आगाह रखती है. शायद मेरी खुशी, गालों के दमकते हुए गुलाबों और आंखों में उतरे सपनों ने उन्हें सचेत कर  दिया. वह अकसर टटोलती निगाहों से मुझे देखतीं. उन के शक की वजह से मैं राहेल से मिलनेजुलने में सावधानी बरतने लगी. मगर उस समय धमाका हो गया, जब मेरा फस्ट ईयर का नतीजा आया और मैं 4 परचों में फेल हो गई.

                                                                                                                                          क्रमशः

डांसर के इश्क में : लुट गए दरोगा जी

मैक्स बीयर बार में सैक्स रैकेट चलने की सूचना मिलते ही नौदर्न टाउन थाने के सबइंस्पैक्टर भीमा सिंह ने अपने दलबल के साथ वहां छापा मारा. वहां किसी शख्स के जन्मदिन का सैलिब्रेशन हो रहा था. खचाखच भरे हाल में सिगरेट, शराब और तेज परफ्यूम की मिलीजुली गंध फैली हुई थी. घूमते रंगीन बल्बों की रोशनी में अधनंगी बार डांसरों के साथ भौंड़े डांस करते मर्द गदर सा मचाए हुए थे. सब इंस्पैक्टर भीमा सिंह हाल में घुसा और चारों ओर एक नजर फेरते हुए तेजी से दहाड़ा, ‘‘खबरदार… कोई अपनी जगह से नहीं हिलेगा. बंद करो यह तमाशा और बत्तियां जलाओ.’’

तुरंत बार में चारों ओर रोशनी बिखर गई. सबकुछ साफसाफ नजर आने लगा. सब इंस्पैक्टर भीमा सिंह एक बार डांसर के पास पहुंचा और उसे ऊपर से नीचे तक देखते हुए एक जोरदार तमाचा उस के गाल पर मारा. वह बार डांसर गिर ही पड़ती कि भीमा सिंह ने उसे बांहों का सहारा दे कर थाम लिया और बार मालिक को थाने में मिलने का आदेश देते हुए वह उस बार डांसर को अपने साथ ले कर बाहर निकल गया. भीमा सिंह ने सोचा कि उस लड़की को थाने में ले जा कर बंद कर दे, फिर कुछ सोच कर वह उसे अपने घर ले आया. उस रात वह बार डांसर नशे में चूर भीमा सिंह के बिस्तर पर ऐसी सोई, जैसे कई दिनों से न सोई हो.

दूसरे दिन भीमा सिंह ने उसे नींद से जगाया और गरमागरम चाय पीने को दी. उस ने चालाक हिरनी की तरह बिस्तर पर पड़ेपड़े अपने चारों ओर नजर फेरी. अपनेआप को महफूज जान उसे तसल्ली हुई. उस ने कनखियों से सामने खड़े उस आदमी को देखा, जो उसे यहां उठा लाया था. भीमा सिंह उस बार डांसर से पुलिसिया अंदाज में पेश हुआ, तो वह सहम गई. मगर जब वह थोड़ा मुसकराया, तो उस का डर जाता रहा और खुल कर अपने बारे में सबकुछ सचसच बताने लगी कि वह जामपुर की रहने वाली है.

वह पढ़ीलिखी और अच्छे घर की लड़की है. उस के पिता ने उस की बहनों की शादी अच्छे घरों में की है. वह थोड़ी सांवली थी, इसलिए उस की अनदेखी कर दी. इस से दुखी हो कर वह एक लड़के के साथ घर से भाग गई. रास्ते में उस लड़के ने भी धोखा देते हुए उसे किसी और के हाथ बेचने की कोशिश की. वह किसी तरह से उस के चंगुल से भाग कर यहां आ गई और पेट पालने के लिए बार में डांस करने लगी.

भीमा सिंह बोला, ‘‘तुम्हारे जैसी लड़कियां जब रंगे हाथ पकड़ी जाती हैं, तो यही बोलती हैं कि वे बेकुसूर हैं.

‘‘ठीक है, तुम्हारा केस थाने तक नहीं जाएगा. बस, तुम्हें मेरा एक काम करना होगा. मैं तुम्हारा खयाल रखूंगा.’’

‘‘मुझे क्या करना होगा ’’ उस बार डांसर के मासूम चेहरे पर चालाकी के भाव तैरने लगे थे.

भीमा सिंह ने उसे घूरते हुए कहा, ‘‘तुम मेरे लिए मुखबिरी करोगी.’’ उस बार डांसर को अपने बचाव का कोई उपाय नहीं दिखा. वह बेचारगी का भाव लिए एकटक भीमा सिंह की ओर देखने लगी. भीमा सिंह एक दबंग व कांइयां पुलिस अफसर था. रिश्वत लिए बिना वह कोई काम नहीं करता था. जल्दी से वह किसी पर यकीन नहीं करता था. भ्रष्टाचार की बहती गंगा में वह पूरा डूबा हुआ था.

लड़कियां उस की कमजोरी थीं. शराब के नशे में डूब कर औरतों के जिस्म के साथ खिलवाड़ करना उस की आदतों में शुमार था. भीमा सिंह पकड़ी गई लड़कियों से मुखबिरी का काम कराता था. लड़कियां भेज कर वह मुरगा फंसाता था. पकड़े गए अपराधियों से केस रफादफा करने के एवज में उन से हजारों रुपए वसूलता था. शराब के नशे में कभीकभी तो वह बाजारू औरतों को घर पर भी लाने लगा था, जिस के चलते उस की पत्नी उसे छोड़ कर मायके में रहने लगी थी.

इस बार डांसर को भी भीमा सिंह यही सोच कर लाया था कि उसे इस्तेमाल कर के छोड़ देगा, पर इस लड़की ने न जाने कौन सा जादू किया, जो वह अंदर से पिघला जा रहा था.

भीमा सिंह ने पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है ’’

‘‘रेशमा.’’

‘‘जानती हो, मैं तुम्हें यहां क्यों लाया हूं ’’

‘‘जी, नहीं.’’

‘‘क्योंकि थाने में औरतों की इज्जत नहीं होती. तुम्हारी मोनालिसा सी सूरत देख कर मुझे तुम पर तरस आ गया है. मैं ने जितनी लड़कियों को अब तक देखा, उन में एक सैक्स अपील दिखी और मैं ने उन से भरपूर मजा उठाया. मगर तुम्हें देख कर…’’

भीमा सिंह की बातों से अब तक चालाक रेशमा भांप चुकी थी कि यह आदमी अच्छी नौकरी करता है, मगर स्वभाव से लंपट है, मालदार भी है, अगर इसे साध लिया जाए… रेशमा ने भोली बनने का नाटक करते हुए एक चाल चली.

‘‘मैं क्या सचमुच मोनालिसा सी दिखती हूं ’’ रेशमा ने पूछा.

‘‘तभी तो मैं तुम्हे थाने न ले जा कर यहां ले आया हूं.’’

रेशमा को ऐसे ही मर्दों की तलाश थी. उस ने मन ही मन एक योजना तैयार कर ली. एक तिरछी नजर भीमा सिंह की ओर फेंकी और मचल कर खड़ी होते हुए बोली, ‘‘ठीक है, तो अब मैं चलती हूं सर.’’ ‘‘तुम जैसी खूबसूरत लड़की को गिरफ्त में लेने के बाद कौन बेवकूफ छोड़ना चाहेगा. तुम जब तक चाहो, यहां रह सकती हो. वैसे भी मेरा दिल तुम पर आ गया है,’’ भीमा सिंह बोला.

‘‘नहींनहीं, मैं चाहती हूं कि आप अच्छी तरह से सोच लें. मैं बार डांसर हूं और क्या आप को मुझ पर भरोसा है ’’

‘‘मैं ने काफी औरतों को देखा है, लेकिन न जाने तुम में क्या ऐसी कशिश है, जो मुझे बारबार तुम्हारी तरफ खींच रही है. तुम्हें विश्वास न हो, तो फिर जा सकती हो.’’ रेशमा एक शातिर खिलाड़ी थी. वह तो यही चाहती थी, लेकिन वह हांड़ी को थोड़ा और ठोंकबजा लेना चाहती थी, ताकि हांड़ी में माल भर जाने के बाद ले जाते समय कहीं टूट न जाए.

वह एकाएक पूछ बैठी, ‘‘क्या आप मुझे अपनी बीवी बना सकते हैं ’’

‘‘हां, हां, क्यों नहीं. मैं नहीं चाहता कि मैं जिसे चाहूं, वह कहीं और जा कर नौकरी करे. आज से यह घर तुम्हारा हुआ,’’ कह कर भीमा सिंह ने घर की चाबी एक झटके में रेशमा की ओर उछाल दी. रेशमा को खजाने की चाबी के साथ सैयां भी कोतवाल मिल गया था. उस के दोनों हाथ में लड्डू था. वह रानी बन कर पुलिस वाले के घर में रहने लगी. भीमा सिंह एक फरेबी के जाल में फंस चुका था.

अगले दिन रेशमा ने भीमा सिंह को फिर परखना चाहा कि कहीं वह उस के साथ केवल ऐशमौज ही करना चाहता है या फिर वाकई इस मसले पर गंभीर है. कहीं वह उसे मसल कर छोड़ न दे. फिर तो उस की बनीबनाई योजना मिट्टी में मिल जाएगी. रेशमा घडि़याली आंसू बहाते हुए कहने लगी, ‘‘मैं भटक कर गलत रास्ते पर चल पड़ी थी. मैं जानती थी कि जो मैं कर रही हूं, वह गलत है, मगर कर भी क्या सकती थी. घर से भागी हुई हूं न. और तो और मेरे पापा ने ही मेरी अनदेखी कर दी, तो मैं क्या कर सकती थी. मैं घर नहीं जाना चाहती. मैं अपनी जिंदगी से हारी हुई हूं.’’

‘‘रेशमा, तुम अपने रास्ते से भटक कर जिस दलदल की ओर जा रही थी, वहां से निकलना नामुमकिन है. तुम ने अपने मन की नहीं सुनी और गलत जगह फंस गई. खैर, मैं तुम्हें बचा लूंगा, पर तुम्हें मेरे दिल की रानी बनना होगा,’’ भीमा सिंह उसे समझाते हुए बोला. ‘‘तुम मुझे भले ही कितना चाहते हो, लेकिन मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकती. मैं बार डांसर बन कर ही अपनी बाकी की जिंदगी काट लूंगी. तुम मेरे लिए अपनी जिंदगी बरबाद मत करो. तुम एक बड़े अफसर हो और मैं बार डांसर. मुझे भूल जाओ,’’ रेशमा ने अंगड़ाई लेते हुए अपने नैनों के बाण ऐसे चलाए कि भीमा सिंह घायल हुए बिना नहीं रह सका.

‘‘यह तुम क्या कह रही हो रेशमा  अगर भूलना ही होता, तो मैं तुम्हें उस बार से उठा कर नहीं लाता. तुम ने तो मेरे दिल में प्यार की लौ जलाई है.’’ रेशमा के मन में तो कुछ और ही खिचड़ी पक रही थी. उस ने भीमा सिंह को अपने रूपजाल में इस कदर फांस लिया था कि वह आंख मूंद कर उस पर भरोसा करने लगा था. भीमा सिंह के बाहर जाने के बाद रेशमा ने पूरे घर को छान मारा कि कहां क्या रखा है. वह उस के पैसे से अपने लिए कीमती सामान खरीदती थी.

भीमा सिंह को कोई शक न हो, इस के लिए वह पूरे घर को साफसुथरा रखने की कोशिश करती थी. भीमा सिंह को भरोसे में ले कर रेशमा अपना काम कर चुकी थी. अब भागने की तरकीब लगाते हुए एक शाम उस ने भीमा सिंह की बांहों में झूलते हुए कहा, ‘‘एक अच्छे पति के रूप में तुम मिले, इस से अच्छा और क्या हो सकता है. मैं तो जिंदगीभर तुम्हारी बन कर रहना चाहती हूं, लेकिन कुछ दिनों से मुझे अपने घर की बहुत याद आ रही है.

‘‘मैं तुम्हें भी अपने साथ ले जाना चाहती थी, मगर मेरे परिवार वाले बहुत ही अडि़यल हैं. वे इतनी जल्दी तुम्हें अपनाएंगे नहीं.

‘‘मैं चाहती हूं कि पहले मैं वहां अकेली जाऊं. जब वे मान जाएंगे, तब उन लोगों को सरप्राइज देने के लिए मैं तुम्हें खबर करूंगी. तुम गाड़ी पकड़ कर आ जाना.

‘‘ड्रैसिंग टेबल पर एक डायरी रखी हुई है. उस में मेरे घर का पता व फोन नंबर लिखा हुआ है. बोलो, जब मैं तुम्हें फोन करूंगी, तब तुम आओगे न ’’

‘‘क्यों नहीं जानेमन, अब तुम ही मेरी रानी हो. तुम जैसा ठीक समझो करो. जब तुम कहोगी, मैं छुट्टी ले कर चला आऊंगा,’’ भीमा सिंह बोला. रेश्मा चली गई. हफ्ते, महीने बीत गए, मगर न उस का कोई फोन आया और न ही संदेश. भीमा सिंह ने जब उस के दिए नंबर पर फोन मिलाया, तो गलत नंबर बताने लगा.

भीमा सिंह ने जब अलमारी खोली, तो रुपएपैसे, सोनेचांदी के गहने वगैरह सब गायब थे. घबराहट में वह रेशमा के दिए पते पर उसे खोजते हुए पहुंचा, तो इस नाम की कोई लड़की व उस का परिवार वहां नहीं मिला. भीमा सिंह वापस घर आया, फिर से अलमारी खोली. देखा तो वहां एक छोटा सा परचा रखा मिला, जिस में लिखा था, ‘मुझे खोजने की कोशिश मत करना. तुम्हारे सारे पैसे और गहने मैं ने पहले ही गायब कर दिए हैं.

‘मैं जानती हूं कि तुम पुलिस में नौकरी करते हो. रिपोर्ट दर्ज कराओगे, तो खुद ही फंसोगे कि तुम्हारे पास इतने पैसे कहां से आए  तुम ने पहली पत्नी के रहते दूसरी शादी कब की ’ भीमा सिंह हाथ मलता रह गया.

यादगार केस : दुआ को मिला इन्साफ – भाग 1

अतिरिक्त जिला जज आफाक अहमद ने सामने बैठे डीएसपी खावर रंधावा पर गहरी नजर  डाल कर कहा, ‘‘मैं चाहता हूं कि तुम्हारा आखिरी केस यादगार बन जाए, इसलिए खलील मंगी को कल जेल से अदालत लाने और फैसले के बाद हिफाजत से उस के घर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी मैं तुम्हें सौंपना चाहता हूं.’’

सामने बैठे डीएसपी खावर रंधावा ने पहलू बदलते हुए कहा, ‘‘इस में यादगार बनने वाली क्या बात है? यह तो मेरा फर्ज है, जिसे मैं और मेरे साथी बखूबी निभाएंगे.’’

जज आफाक अहमद और डीएसपी खावर रंधावा पुराने दोस्त तो थे ही, समधी बन जाने के बाद उन की यह दोस्ती रिश्तेदारी में भी बदल गई थी.

‘‘मैं ने मंगी को रिहा करने का फैसला कर लिया है.’’ आफाक अहमद ने यह बात कही तो डीएसपी रंधावा को झटका सा लगा. हैरानी से वह अपने बचपन के दोस्त का चेहरा देखते रह गए. जबकि वह एकदम निश्चिंत नजर आ रहे थे. जिस आदमी के बारे में मीडिया और कानून के जानकार ही नहीं, पूरे देश में मशहूर था कि उन्होंने आज तक किसी भी गुनहगार को नहीं छोड़ा, शायद उन्होंने जिंदगी का मकसद ही गुनाहगार को सजा देना बना लिया था, आज वही शख्स एक घिनौने और बेरहम अपराधी को छोड़ने की बात कर रहा था.

उन्होंने कहा, ‘‘तुम उस घिनौने कातिल को छोड़ दोगे, जिस ने 15 साल की एक मासूम बच्ची को अपनी हवस का शिकार बना कर बेरहमी से मार डाला था. भई, मुझे तो यकीन नहीं हो रहा है कि तुम ऐसा काम करोगे. जिस आदमी की ईमानदारी और फर्ज अदायगी पर लोग आंख मूंद कर यकीन करते हों, वह भला ऐसा काम कैसे कर सकता है?’’

रंधावा की बातों में शिकायत थी. आफाक अहमद निराशा भरे अंदाज में अपना सिर कुरसी की पुश्त से टिकाते हुए धीरे से बोले, ‘‘जिस तरह मेरे आदेश पर तुम उस की हिफाजत करने के लिए मजबूर हो, उसी तरह कानूनी मजबूरियों की वजह से मैं भी उसे रिहा करने को मजबूर हूं.’’

रंधावा होंठ भींचे उन्हें देखते रहे तो आफाक अहमद ने आगे कहा, ‘‘तुम अदालती काररवाई के बारे में तो जानते ही हो. चश्मदीद गवाहों ने अपने बयान बदल दिए हैं, मैडिकल रिपोर्ट भी पैसे के बल पर बदलवा दी गई है, केवल घटना के आधार पर तो सजा नहीं दी जा सकती. फिर कोई मजबूत पक्ष भी नहीं है, इसलिए मुझे मजबूरन कल उसे रिहा करना होगा.’’

रंधावा के चेहरे पर निराशा के भाव साफ झलकने लगे. दोस्त वाकई बेबस था. मजबूत एफआईआर के साथ अगर गवाह अपने बयानों पर टिके रहते तो दुनिया की कोई भी ताकत खलील मंगी को फांसी पर चढ़ने से नहीं रोक सकती थी.

आफाक अहमद के कमरे में खामोशी छा गई. उस समय दीवार पर लगी आधा दरजन घडि़यों की टिकटिक की आवाज ही आ रही थी जो उन के कमरे की दीवारों पर चारों ओर लगी थीं. तरहतरह की नईपुरानी घडि़यों को जमा करना और उन्हें दीवारों पर लगाना आफाक अहमद का शौक था. रंधावा ने अचानक कहा, ‘‘फिर तो खलील के हाथों मारी गई दुआ के लिए दुआ ही की जा सकती है. उस का भाई शाद अली, जो कैप्टन था, अच्छा होगा वह अपने दावे में कामयाब हो जाए.’’

आफाक अहमद ने भी दुखी लहजे में कहा, ‘‘खुदा करे, वह अपने मकसद में कामयाब हो.’’

फौज में कैप्टन शाद अली ने 2 बार हिरासत के दौरान खलील मंगी पर कातिलाना हमला किया था. लेकिन वह अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सका था. उस के बाद वह एकदम से गायब हो गया था.

इलेक्ट्रौनिक मीडिया के जरिए उस ने दावा किया था कि अगर खलील मंगी को अदालत से रिहा किया तो वह अदालत में जज के सामने ही उसे जान से मार देगा. इस तरह की बातों को उछालने में मीडिया को वैसे भी बड़ा मजा आता है. इसलिए न्यूज चैनलों ने इसे बारबार दिखा कर लोगों में एक अजीब तरह का एक्साइटमेंट पैदा कर दिया था. इसीलिए यह फैसला मीडिया, अवाम और कानून के लिए एक चुनौती बन गया था.

कमरे की सभी घडि़यों ने 9 बजने की घोषणा की तो तरहतरह के म्यूजिक ने कमरे के सन्नाटे को भंग कर दिया. चंद पलों के लिए आफाक अहमद ने अपनी आंखें बंद कर लीं. ये आवाजें उन्हें बड़ा सुकून देती थीं. आवाजों के बंद होने पर उन्होंने कहा, ‘‘दोस्त हमें अपना फर्ज अदा करना है और उस सिरफिरे कैप्टन से मंगी को बचाना है. अब देखना है कि आखिर कौन कामयाब होता है?’’

रंधावा ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मेरी सारी दुआएं उस सिरफिरे कैप्टन के साथ हैं. खुदा करे वह अपने मकसद में कामयाब हो जाए. दिल तो चाहता है कि मैं ही उस की कोई मदद कर दूं. लेकिन अगले हफ्ते मैं खुद ही रिटायर हो रहा हूं. इसलिए अपने बेदाग कैरियर पर मैं कोई धब्बा नहीं लगने देना चाहता. इस इमेज को बनाने में मैं ने पूरी उम्र लगा दी है, अब उसे दांव पर नहीं लगा सकता. फिर भी दुआ तो कर ही सकता हूं कि शाद अली उस जालिम कातिल को बरी होने के बाद खत्म कर दे.’’

रंधावा के लहजे में नफरत साफ झलक रही थी.

आफाक अहमद ने चिंतित स्वर में कहा, ‘‘डीएसपी रंधावा, इसीलिए मैं ने तुम्हें इस काम के लिए चुना है, क्योंकि मुझे यकीन है कि यह मामला तुम्हारे लिए यादगार होगा.’’

डीएसपी रंधावा ने रात को ही अपने तेजतर्रार साथी इंसपेक्टर गुलाम भट्टी के साथ मिल कर अगले दिन की सुरक्षा व्यवस्था की पूरी योजना बना डाली थी. अतिरिक्त पुलिस बल की भी व्यवस्था कर ली गई थी. खलील मंगी को बख्तरबंद गाड़ी से अदालत ले आने और ले जाने की व्यवस्था पहले से ही थी. सुरक्षा की पूरी योजना बना कर गुलाम भट्टी ने कहा, ‘‘सर, हम लोगों को अपना पूरा ध्यान अदालत के कमरे पर रखना होगा.’’

रंधावा ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘मुझे तो लगता है कि अदालत के कमरे में खलील मंगी को मौत के घाट उतारने वाली बात उस ने केवल हमें भटकाने के लिए कही है. कैप्टन अदालत के बाहर कहीं पर भी उस पर हमला कर सकता है.’’

‘‘फिर तो बख्तरबंद गाड़ी को हमें अदालत के अहाते के बजाय अदालत के कमरे तक ले जाना चाहिए.’’ गुलाम भ्टटी ने कहा.

अगले दिन खलील मंगी को बख्तरबंद गाड़ी से अदालत के कमरे तक लाया गया. और जज आफाक अहमद की मेज के दाईं तरफ बने मुल्जिमों के कटघरे में खड़ा किया गया. उस की आंखों में जीत की चमक साफ झलक रही थी. उसे पूरा यकीन था कि थोड़ी देर में उसे रिहा कर दिया जाएगा. उस ने ताजा शेव किया हुआ या और कौटन का सफेद सलवार कुरता पहने था.

                                                                                                                                           क्रमशः

ट्रंक की चोरी : ईमानदार चोर ने किया साजिश का पर्दाफाश – भाग 1

निक वेल्वेर एक अलग तरह का चोर था. वह एक दिन सुबह साढ़े 10 बजे पब्लिक लाइब्रेरी में बैठा हुआ पिछले 2 घंटे से मैगजीन पढ़ रहा  था. इसी दौरान उस के दिमाग में एक आइडिया आया कि क्यों न वह चोरी के टौपिक पर एक किताब लिखे, जिस का शीर्षक हो ‘चोरी एक आर्ट’.

इस विषय पर क्याक्या लिखा जाए, इस बारे में वह सोच ही रहा था, तभी एक मोटा सा आदमी आ कर उस के पास वाली कुरसी पर बैठ गया. उस के बैठते ही निक उठने लगा. तभी वह मोटा आदमी बोला, ‘‘हैलो मिस्टर निक, शायद तुम मुझे नहीं जानते होगे लेकिन मैं तुम्हें जानता हूं. किसी के रेफरेंस से ही तुम्हारे पास तक पहुंचा हूं. मेरा नाम विक्टर एलियानोफ है.’’

निक विक्टर को गौर से देखने लगा तभी विक्टर ने कहा, ‘‘मैं तुम से मिलने यहां इसलिए आया हूं कि मैं तुम से एक ट्रंक चोरी करवाना चाहता हूं.’’

इतना सुनते ही वेल्वेर ने कहा, ‘‘जब आप को किसी ने मेरे पास भेजा है तो यह भी बताया होगा कि मैं सिर्फ फालतू और मामूली चीजों की ही चोरी करता हूं. ऐसी चीजों के चुराने में किसी को दुख भी नहीं होता.’’

‘‘हां, मैं जानता हूं. जिस संदूक के बारे में मैं बात कर रहा हूं वह पुराना और जंग लगा है. वह कोई 70-80 साल पुराना है.’’

‘‘जब इतना पुराना है, तब तो यह ऐतिहासिक महत्त्व की चीज होगी?’’

‘‘नहीं ऐसा कुछ नहीं है. यह एक फालतू पुराना ट्रंक है. उसे कोई कबाड़ी भी लेना पसंद नहीं करेगा, डेढ़ फीट ऊंचा 2 फीट चौड़ा और 4 फीट लंबा है.’’

‘‘जब किसी महत्त्व का नहीं है, तो आप इसे चोरी करवाना क्यों चाहते हैं?’’

‘‘मैं समझता हूं कि इस बात से तुम्हें कोई मतलब नहीं होना चाहिए. तुम अपना काम करो और काम के जो पैसे बनते हैं लो.’’

‘‘मेरी फीस पता है, मैं 25 हजार डालर लेता हूं.’’

विक्टर ने एक लिफाफा निकाल कर उस के सामने रखते हुए कहा, ‘‘ये रहे 10 हजार डालर बाकी काम होने के बाद.’’

निक ने लिफाफा देखे बगैर पूछा, ‘‘अब यह बताओ कि ये ट्रंक किस जगह पर है?’’

विक्टर एलियानोफ ने एक कागज उस के सामने रखते हुए कहा, ‘‘ये है उस जगह का पता. उस इमारत के तहखाने में तुम्हें यह संदूक मिल जाएगा.’’

निक ने कागज को देखते हुए कहा, ‘‘ये जगह कस्बा ‘न्यूपालिट’ में है, जो यहां से करीब 100 मील दूर है.’’

‘‘तुम्हें ट्रंक चोरी करने में ज्यादा दिक्कत पेश नहीं आएगी. जिस घर में यह रखा है, उस घर के लोग न्यूयार्क गए हुए हैं. बस एक बूढ़ा चौकीदार वहां होता है. मुझे यकीन है कि तुम उस चौकीदार की आंखों से बच कर आसानी से अपना काम कर लोगे.’’ विक्टर ने कहा.

‘‘मुझे अपना काम करना आता है. तुम यह बताओ कि ट्रंक पहुंचाना कहां है?’’

विक्टर ने एक पता लिखी परची उसे देते हुए कहा, ‘‘ट्रंक इस अपार्टमेंट में पहुंचाना होगा. ये रही अपार्टमेंट की चाबी. काम खत्म होने के बाद तुम मुझे फोन कर देना, मैं मिल लूंगा.’’ विक्टर ने निक को अपना फोन नंबर देते हुए कहा.

उस समय मौसम सुहाना था. निक ने अपनी दोस्त ग्लोरिया को फोन किया, ‘‘ग्लोरिया, हम न्यूपालिट घूमने चलेंगे. वहां मछली का शिकार और बोटिंग करेंगे.’’

न्यूपालिट एक बहुत खूबसूरत जगह थी इसलिए वहां जाने की बात सुनते ही ग्लोरिया बहुत खुश हुई, उस ने निक के साथ घूमने के लिए हामी भर ली. थोड़ी देर बाद निक अपनी कार से एक निर्धारित जगह पर पहुंच गया. वहां उसे ग्लोरिया उस का इंतजार करती मिली.

ग्लोरिया को कार में बैठा कर वह न्यूपालिट की ओर चल दिया. ग्लोरिया निक के बारे में सब जानती थी. निक ने उसे नए केस के बारे में बता दिया. ग्लोरिया तो वहां जाने से खुश थी. न्यूयार्क की भीड़भाड़, उमस से दूर वे चले जा रहे थे.

दोपहर साढ़े 12 बजे वे लोग न्यूपालिट पहुंच गए. झील के किनारे मशहूर होटल माउंटेन हाऊस में उन्होंने कमरा बुक कराया. खाना खा कर दोनों घूमने निकल गए. उसी दौरान निक उस मकान को एक नजर देख लेना चाहता था, जहां से उसे ट्रंक चुराना था.

कुछ देर बाद वह उस अपार्टमेंट के पास पहुंच गया. वह अपार्टमेंट लाल पत्थरों से बना था. अपार्टमेंट के चारों तरफ पेड़ और हरियाली थी. बाहर लोहे का बड़ा सा गेट लगा था. सीढि़यों के पास बैठा एक बूढ़ा चौकीदार सिगरेट पीता नजर आया. उस के कंधे पर स्टेनगन टंगी थी. अपार्टमेंट की चारदीवारी ज्यादा ऊंची नहीं थी. पीछे की चारदीवारी एक पहाड़ी ढलान से मिली हुई थी.

अपार्टमेंट का मुआयना करने के बाद पूरे दिन प्रेमिका के साथ घूमता रहा. दोनों ने बोटिंग की, शिकार किया. अपना काम करने के लिए निक रात 10 बजे अकेला उस अपार्टमेंट की तरफ रवाना हो गया. रात सुनसान और अंधेरी थी. निक ने अपनी कार एक पेड़ के नीचे खड़ी कर दी. फिर वह बड़ी आसानी से दीवार कूद कर अपार्टमेंट की तरफ बढ़ ही रहा था कि सन्नाटे में किसी कार की आवाज आई. निक पौधों की आड़ में हो गया.

एक कार फाटक पर आ कर रुकी. 3 बार हार्न बजाने पर गेट पर लगी बड़ी लाइट जला कर स्टेनगनधारी चौकीदार गेट के पास पहुंच गया. तभी कार में से एक लड़की उतरी उस ने चौकीदार से कुछ कहा. वह लाइट में खड़ी थी. चौड़े भारी बदन की वह लड़की तंग जींस और स्कीवी पहने हुई थी. वह चौकीदार से हाथ हिलाहिला कर कुछ कह रही थी. इस के बाद वह वापस मुड़ कर चली गई. गेट पर खड़ा चौकीदार बड़े गौर से उसे देखता रहा.

निक को फ्लैट में घुसने का यह सही मौका लगा, वह फुरती से चुपचाप खुले दरवाजे से अंदर दाखिल हो गया. अंदर गहरा अंधेरा था. निक ने जेब से पेंसिल टौर्च निकाली पर जलाई नहीं. दाईं तरफ कोने के कमरे में हलकी रोशनी हो रही थी.

वह ऊपरी मंजिल की सीढि़यों पर झुक कर खड़ा हो गया. तभी उसे ऊपरी मंजिल से कुछ आहट महसूस हुई. 2-3 मिनट वह चुपचाप खड़ा रहा. फिर उसे दरवाजा बंद करने की आवाज आई. एक साया, जो शायद चौकीदार, हलकी लाइट वाले कमरे में चला गया. उस के बाद वहां की लाइट भी बंद हो गई.

निक दबेपांव वहां से निकला और तहखाने की सीढि़यां ढूंढ कर धीरेधीरे नीचे उतरने लगा. तहखाने में उस ने टौर्च जला कर देखा. वहां पुराना सामान, टूटा फरनीचर, रद्दी अखबार वगैरह पड़े थे. सब चीजों पर धूल चढ़ी हुई थी और वहां मकडि़यों के जाले थे. यह सब देख कर ऐसा लग रहा था जैसे वहां कोई काफी दिनों से नहीं आया हो. एक कोने में पुराना, जंग लगा एक ट्रंक पड़ा था. निक समझ गया कि यही वह ट्रंक है.

अजीब बात यह थी कि ट्रंक पर धूल नहीं थी. जबकि वहां रखे हर सामान पर धूल चढ़ी हुई थी. निक ने उसे उठा कर सिर पर रखा. सीढि़यों के ऊपर पहुंच कर जरा रुक वह यह देखने लगा कि बाहर निकलने में उसे कोई खतरा तो नहीं है.

पूरी तरह सन्नाटा होने पर वह धीरे से दरवाजा खोल कर फ्लैट से बाहर निकल गया. आराम से चारदीवारी फांद कर वह बाहर पहुंचा. कार की डिक्की खोल कर ट्रंक उस में रखने लगा तभी उसे ट्रंक के अंदर से किसी चीज के खड़खड़ाने की आवाज आई. वैसी ही आवाज उसे ट्रंक उठाते समय भी आई थी. उस ने सोचा ट्रंक खोल कर देखा जाए कि उस में क्या है.

वह ट्रंक खोलने को हुआ उसी वक्त अपार्टमेंट के अंदर से कुछ उठापटक की आवाजें आने लगीं. ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने जोर से दरवाजा बंद किया हो. फिर किसी के दौड़ने की आवाज, कुछ शोर, कुछ भारी चीज गिरने की आवाज के साथ फायर होने की 2 आवाजें सुनाई दीं. निक ने ट्रंक खोलने का इरादा छोड़ दिया. उस ने वहां से जल्द खिसकने में भलाई समझी.

                                                                                                                                           क्रमशः

उधार का चिराग – भाग 1

मुझे उन्होंने मारने की पूरी कोशिश की थी, लेकिन संयोग अच्छा था कि मैं बच गया था. उन की चलाई गोली मेरे सिर को छूती हुई निकल गई थी. उस के बाद जान बचाने के  लिए मैं ने सरपट दौड़ लगा दी थी. जिन लोगों ने मुझे मारने की कोशिश की थी, उन से मेरी कोई दुश्मनी नहीं थी और जिस ने उन्हें इस काम के लिए भेजा था, उस से भी मेरी कोई दुश्मनी नहीं थी. इस के बावजूद मारने वाले मुझे मारना चाहते थे तो मरवाने वाला मुझे मरवाना चाहता था.

इस कहानी की शुरुआत उस दिन हुई थी, जिस दिन मेरे बौस अजहर अली ने मुझे अपने चैंबर में पहली बार बुलाया था. वह अपनी सख्ती और खड़ूसपने के लिए मशहूर थे. उन का एक्सपोर्टइंपोर्ट का बहुत बड़ा कारोबार था.  कंपनी के सारे कर्मचारी उन से बहुत डरते थे. चैंबर में घुसते ही उन्होंने बैठने का इशारा करते हुए पूछा, ‘‘शहबाज तुम्हारा ही नाम है?’’

‘‘जी सर.’’ मैं ने बैठते हुए अदब से कहा था.

‘‘तुम यहां अकेले ही रहते हो या परिवार के साथ?’’

‘‘सर, मैं बिल्कुल ही अकेला हूं, मेरा कोई नहीं है.’’

उन्होंने मुझे गौर से देखा. इस के बाद कुछ सोचते हुए पूछा, ‘‘अभी शादी भी नहीं की?’’

‘‘जी नहीं.’’

मुझे उन की बातों पर हैरानी हो रही थी. उन्होंने मेरे चेहरे पर नजरें जमा कर कहा, ‘‘मैं तुम्हारे काम से बहुत खुश हूं. तुम काफी मेहनती और ईमानदार हो. मैं ने तुम्हारी रिपोर्ट देखी है. मैं तुम्हें प्रमोशन देना चाहता हूं. शाम को मेरे घर आ जाना, वहीं इत्मीनान से बातें करेंगे.’’

यह मेरी खुशनसीबी ही थी कि मुझे इस तरह का मौका मिल रहा था. शाम को मैं बौस अजहर अली के घर पहुंच गया. उन का घर बहुत शानदार था. ड्राइंगरूम बेशकीमती चीजों से सजा हुआ था. बाहर कई गाडि़यां खड़ी थीं. कई नौकर इधरउधर घूम रहे थे.

अजहर अली एक छरहरी खूबसूरत औरत के साथ ड्राइंगरूम में दाखिल हुए. उन्होंने औरत की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘यह मेरी वाइफ नाजनीन है.’’

मैं ने सलाम किया. सभी लोग बैठ गए. अजहर अली ने औफिस और काम की बातें शुरू कीं. उन्होंने कुछ खास जिम्मेदारियां सौंपते हुए ओहदा और वेतन बढ़ाने की बात कही. तभी उन के मोबाइल पर किसी का फोन आ गया तो वह उठ कर बाहर चले गए.

उन के जाते ही नाजनीन अपनी जगह से उठी और मेरे पास आ कर बैठ गई. उस के परफ्यूम की खुशबू ने मुझे मदहोश सा कर दिया. मेरी धड़कन एकदम से बढ़ गई. उस ने बड़े प्यार से पूछा, ‘‘आप के शौक क्या क्या हैं, आप जिम जाते हैं?’’

‘‘मैडम, मैं इतने महंगे शौक कैसे पाल सकता हूं?’’ मैं ने कहा.

‘‘अब तुम गरीब नहीं रहोगे.’’ उस ने प्यार से कहा.

उस के इस अंदाज से मैं हैरान था. मैं ने कहा, ‘‘मैं समझा नहीं मैडम?’’

‘‘अजहर तुम पर मेहरबान हैं. वह तुम्हें अपनी फर्म का जनरल मैनेजर बनाने जा रहे हैं. इस के बाद पैसे की कमी कहां रहेगी. मैनेजर बनते ही तुम्हें क्लब की मैंबरशिप मिल जाएगी. बड़े आदमी बन जाओगे तो तुम्हें बड़े लोगों के साथ उठनाबैठना होगा न?’’

मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि पहली मुलाकात में यह कैसी बातें कह रही हैं. अजहर अली लौट कर आए. आते ही उन्होंने कहा, ‘‘नाजनीन ने तुम्हें सब बता ही दिया होगा. मुझे एक जरूरी मीटिंग में जाना है, इसलिए मैं चलता हूं.’’

‘‘लेकिन सर मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि यह कैसे हो सकता है?’’ मैं ने घबरा कर कहा.

‘‘इस में समझना क्या है. बस यह समझो कि तुम्हारी किस्मत जाग उठी है. कल तुम औफिस जाओगे तो तुम्हें अपौइंटमेंट लेटर मिल जाएगा.’’

मैं परेशान था कि आखिर मुझ पर यह मेहरबानी क्यों हो रही है? मैनेजर की पोस्ट, तगड़ा वेतन, गाड़ी के साथसाथ अन्य तमाम सुविधाएं. आखिर यह सब क्यों किया जा रहा है?

अजहर अली अपनी बीवी को बाय कह कर चले गए. उन के जाने के बाद नाजनीन ने कहा, ‘‘अब तो तुम्हें यकीन हो गया होगा कि आप अमीर आदमी बन गए हैं. मैं भी यही चाहती हूं.’’

‘‘मुझे तो यह सब एक सपना सा लग रहा है.’’ मैं ने कहा.

‘‘लेकिन तुम्हारा सपना हकीकत बन गया है. अब तुम जा सकते हो.’’

अपने किराए के फ्लैट पर पहुंच कर भी मुझे यह सब एक सपना ही लग रहा था. मैं ने अपने उस किराए के छोटे से पुराने फ्लैट को देखा, अब मुझे एक शानदार घर मिलने वाला था. किस्मत मुझ पर मेहरबान जो थी. अगले दिन बौस ने मुझे अपने चैंबर में बुलाया तो मैं धड़कते दिल के साथ पहुंचा.

उन्होंने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तुम्हारा लेटर तैयार हो गया है. अभी जो मैनेजर था, उस का ट्रांसफर कर दिया गया है. 3 दिन वह तुम्हारे साथ रह कर तुम्हें सारे काम समझा देगा.’’

मन यही कर रहा था कि मैं उठ कर नाचने लगूं. साथ काम करने वालों के लिए यह एक हैरानी की बात थी. सभी ने मुझे मुबारकबाद दी. मैनेजर का चैंबर काफी बड़ा और शानदार था. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं बौस का शुक्रिया कैसे अदा करूं?

एकाउंटेंट ने मेरे चैंबर में आ कर मुझे मुबारकबाद दे कर कहा, ‘‘शहबाज साहब, आप इस फर्म के जनरल मैनेजर हो गए हैं. लेकिन एक बात याद रखना कि अब आप को दोधारी तलवार पर चलना होगा. जितना बड़ा ओहदा होता है, जिम्मेदारियां उतनी ही बढ़ जाती हैं.’’

इस के बाद वह मुझे औफिस के काम और जिम्मेदारियां समझाने लगा. काफी बड़ी फर्म थी. कुछ मैं पहले से जानता था, बाकी पहले के मैनेजर और एकाउंटेंट ने समझाना और सिखाना शुरू कर दिया.

3-4 दिनों बाद अजहर अली ने मुझे बुला कर पूछा, ‘‘शहबाज, कोई मुश्किल तो नहीं आ रही है? काम समझ में आ रहा है न?’’

मैं ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा, ‘‘जी सर, सब ठीक चल रहा है.’’

उन्होंने मुझे गौर से देखते हुए कहा, ‘‘आज शाम को तुम मेरे घर आ जाना. नाजनीन तुम्हें साथ ले जा कर क्लब का मेंबर बनवा देगी.’’

‘‘जी सर.’’

किस्मत मुझ पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान थी. नाजनीन मेरी राह देख रही थी. उस ने आगे बढ़ कर बड़ी गर्मजोशी से मुझ से हाथ मिलाया. मैं थोड़ा नर्वस जरूर हुआ.

वह बहुत अच्छी तरह से तैयार हुई थी, जिस से बहुत ज्यादा खूबसूरत लग रही थी. उस का परफ्यूम मुझे मदहोश कर रहा था. उस ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर पूछा, ‘‘मैं कैसी लग रही हूं?’’

‘‘बहुत अच्छी लग रही हैं.’’ मैं ने कहा.

मेरे बाजू को थपथपाते हुए उस ने कहा, ‘‘अब तुम्हें हाई सोसायटी के तौरतरीके सीखने पड़ेंगे.’’

गाड़ी वह खुद चला रही थी. मैं उस की बगल वाली सीट पर बैठा था. क्लब में उस ने अपने सभी जानने वालों से मेरा परिचय कराया. आधे घंटे में मैं क्लब का मेंबर बन गया. यह वह क्लब था, जिस के सामने से गुजरते हुए मैं सोचा करता था कि इस में क्या होता होगा, कैसे कैसे लोग आते होंगे? आज मैं खुद उस के अंदर था.                                                                                                                            

बेरुखी : बनी उम्र भर की सजा – भाग 1

यह सच है कि अगर मेरे शौहर सुलतान अहमद मुझ से मेरी जान भी मांगते तो मैं देने में एक लमहे की भी देर न करती. उन का छोटे से छोटा काम  भी मैं खुद किया करती थी, हालांकि घर में नौकरनौकरानियां भी थीं. इस में ताज्जुब की कोई बात नहीं थी. अकसर औरतें अपने पतियों की ताबेदारी में खुशी महसूस करती हैं. फिर भी उन्होंने कभी मेरे साथ मुसकरा कर बात नहीं की थी.

दूसरों के सामने तो वह मेरे साथ नरम पड़ जाते थे, मगर तनहाई में या बच्चों के सामने बिलकुल अजनबी से बन जाते थे. ऐसा भी नहीं था कि वह स्वभाव से ऐसे थे. दूसरों के लिए वह बहुत हंसमुख थे. खासतौर पर बच्चों पर तो जान छिड़कते थे. उन के बीच वह बेतकल्लुफ दोस्त बन जाते थे.

उन की हर फरमाइश मुंह से निकलते ही पूरी किया करते, मगर मेरे लिए उन के पास सिवाय बेगानगी के और कुछ नहीं था. मुझे देखते ही सुलतान अहमद के चेहरे पर अजीब सी संजीदगी भरी सख्ती छा जाती. अगर वह बोल रहे होते तो मेरे आते ही खामोश हो जाते. हमारा बेडरूम साझा था, मगर वह वहां देर रात को आते थे. घर में उन का अधिक समय अपने स्टडी रूम में गुजरता था. वह कभी मेरे साथ शौपिंग के लिए नहीं गए.

सुलतान अहमद आला ओहदे पर लगे हुए थे. दफ्तर की तरफ से उन्हें मकान और गाड़ी मिली हुई थी. वह अपनी सारी तनख्वाह अपना खर्च निकाल कर मेरे हवाले कर देते थे और फिर पलट कर यह नहीं पूछते थे कि मैं ने क्या खर्च किया, कहां खर्च किया, क्यों खर्च किया और क्या बचाया.

उन का यह रवैया मैं कोई 1-2 साल से नहीं, बल्कि पिछले 25 सालों से बरदाश्त कर रही थी. एक चौथाई सदी के इस अरसे में उन की तरफ से चाहत का एक भी फूल मेरे आंचल में नहीं डाला गया था. इस सितम के बावजूद वह मेरे सिर का ताज थे. उन की सेवा करना, उन के काम करना मेरी जिंदगी का अहमतरीन मकसद था. सुलतान अहमद भी इतनी बेरुखी के बावजूद अपना हर काम मुझ से ही करवाना पसंद करते थे.

सुबह 8 बजे तक वह और बच्चे घर से निकल जाते थे. उन के जाने के बाद मैं नौकरानी से सफाई करवाती. फिर बर्तन और कपड़े धोने वाली आ जाती. मगर मैं सिर्फ अपने और बच्चों के कपड़े धुलवाती. सुलतान अहमद के कपड़े मैं अपने हाथों से ही धोया करती थी. फिर मैं दोपहर के खाने की तैयारी में लग जाती. बच्चे 1 बजे तक स्कूलकालेज से आ जाते थे और सुलतान अहमद भी दोपहर का खाना घर में ही आ कर खाते थे.

दफ्तर से आमतौर पर वह शाम 6 बजे तक आ जाते थे. फ्रेश हो कर लाउंज में बच्चों के पास बैठ जाते थे. इस दौरान वह उन के मनोविनोद और तालीमी सरगर्मियों के बारे में पूछते. चाय पीते और फिर अपने स्टडी रूम में चले जाते, जहां से वह रात के खाने के वक्त ही निकलते थे. खाने के बाद वह फिर स्टडीरूम में वापस चले जाते और लगभग 11, साढ़े 11 बजे बेडरूम में आते थे.

सुलतान अहमद आर्थिक मामलों में माहिर थे. वह आडिट और एकाउंट के विषय में खास अधिकार रखते थे. इस विषय पर उन की लिखी हुई किताबें बहुत मकबूल थीं. अपने स्टडी रूम में वह लिखनेपढ़ने का काम करते थे. इन सारी बातों से आप ने अंदाजा लगा लिया होगा कि उन के पास मेरे लिए एक लमहा भी नहीं था. यह मैं बता चुकी हूं कि सुलतान अहमद स्वभाव से ऐसे नहीं थे.

तब मुझे इतनी लंबी और कड़ी सजा देने की वजह क्या हो सकती थी, यह बताने के लिए मुझे अपनी जिंदगी की किताब के उन पन्नों को खोलना पड़ेगा, जिन की बातें आज तक किसी पर जाहिर नहीं की थीं. हमारे समाज में जब कोई औलाद लगातार तीसरी लड़की होने के नाते इस दुनिया में आंख खोलती है तो आमतौर पर उसे इस जुर्म की सजा तकरीबन उस सारे अरसे भुगतनी पड़ती है, जब तक वह बाप के घर रहती है.

मगर मेरी खुशकिस्मती थी कि जब बेटे की जगह मैं इस दुनिया में आई तो सब ने बड़ी मोहब्बत से मेरा स्वागत किया. यह मेरी खूबसूरती का करिश्मा था. दादी अम्मा, जो मेरी पैदाइश से पहले उठतेबैठते अम्मी को बेटा पैदा करने की याद दिलाना भूलती नहीं थी, मुझे देख कर खुश हो गईं. उन का कहना था कि हमारी 7 पीढि़यों में कोई इतनी हसीन बच्ची पैदा नहीं हुई.

मेरी पैदाइश के बाद भाइयों का जन्म शुरू हो गया. अब्बू तरक्की पर तरक्की करते गए. खुशहाली के सारे दरवाजे खुल गए. इस तरह मुझे पैदाइशी भाग्यशाली का दर्जा हासिल हो गया. होश संभालते ही मुझे जो पहला अहसास हुआ या फिर मेरे घर वालों ने अहसास दिलाया, वह यह था कि मैं बेहद खूबसूरत हूं.

स्कूल में दाखिले के समय मैं ने उस स्कूल में पढ़ने से साफ इनकार कर दिया, जहां मेरी दोनों बड़ी बहनें तालीम हासिल कर रही थीं. उस की बेरौनक इमारत, मामूली फर्नीचर और सादा लिबास लड़कियां मेरी पसंद से  कतई मेल नहीं खाती थीं. मैं ने अम्मीअब्बू से साफ कह दिया कि मैं उस गंदेसंदे स्कूल में उन गंदीसंदी लड़कियों के साथ हरगिज नहीं पढूंगी. यह सुनते ही दोनों बहनों ने हंगामा खड़ा कर दिया कि क्या हम गंदीसंदी हैं? अम्मी ने भी मेरी बात का बुरा तो माना, लेकिन दरगुजर कर गईं. उन्होंने दोनों बहनों को भी समझा लिया.

‘‘तो क्या तुझे किसी अंगरेजी स्कूल में पढ़ाऊं?’’ उन्होंने दबेदबे लहजे में कहा.

‘‘मैं ने कह दिया कि मैं उस स्कूल में नहीं पढूंगी, बस.’’ मैं ने ठुनक कर कहा.

अब्बू ने मेरी हिमायत की. उन्होंने अम्मी से कहा, ‘‘ठीक तो कह रही है मेरी बेटी. वह स्कूल भला इस के लायक है?’’

‘‘तो फिर दाखिल करा दें किसी बढि़या स्कूल में और दें भारी भरकम फीस.’’ अम्मी भन्ना कर बोलीं.

अब्बू ने भागदौड़ कर के मेरा दाखिला शहर के एक आला इंगलिश मीडियम स्कूल में करा दिया. घर से दूर होने की वजह से मुझे गाड़ी लेने और छोड़ने आया करती थी. स्कूल में मैं ने चुनचुन कर खूबसूरत और नफासतपसंद लड़कियों को सहेली बनाया. टीचरें भी मुझे पसंद करती थीं, जिस का सब से बड़ा फायदा मुझे तालीम हासिल करने में हुआ. मैं अपनी क्लास की बेहतरीन स्टूडेंट्स में गिनी जाती थी.

                                                                                                                                          क्रमशः