लड़की से लड़का क्यों बनी स्वाति?

यह कहानी स्वाति से शिवाय बने (Swati to Shivaay) 35 साल के एक सौफ्टवेयर इंजीनियर की है, जिन्होंने 3 साल की लंबी मशक्कत के बाद अपना जेंडर फीमेल (Gender Change) से बदल कर मेल करवा लिया.

स्वाति का फ्रस्ट्रेशन तब और बढ़ गया, जब आठवीं क्लास में आते ही उसे पीरियड शुरू हो गए. वह अंदर ही अंदर घुटन महसूस करने लगी. उसे अपने शरीर से ही नफरत होने लगी थी. हायर सेकेंडरी पास होते ही, घर वालों ने उस की शादी के लिए लड़का भी देखना शुरू कर दिया.

एकदो रिश्ते आए भी, मगर उस की हेयर स्टाइल और कपड़े देख कर वे हैरान रह जाते.  एक दिन उस की मम्मी उर्मिला ने उसे पास बिठाया और उस के सिर पर हाथ रखते हुएकहा, ”देख स्वाति, अब तो तू बड़ी हो रही है. अपने बाल बढ़ा ले और लड़के वाले कपड़े पहनना छोड़ दे.’’

मगर स्वाति इस के लिए कतई तैयार नहीं थी. उस ने मम्मी से दोटूक कह दिया, ”देखो मम्मी, मुझे बारबार टोका मत करो, मैं तो लड़के के रूप में ही अच्छी हूं.’’

घर में सब से लाडली होने के कारण कोई भी उस से कुछ भी कहने के बजाय खामोश हो जाता. मगर आसपास रहने वाले लोग स्वाति के घर वालों को ताना देने लगे थे, इस से स्वाति का मानसिक तनाव बढ़ता जा रहा था.

बचपन से ही स्वाति शरीर से भले ही लड़की थी, मगर उसे अपना वह शरीर कतई पसंद नहीं था. उस के बाल, कपड़े इस तरह के थे कि कोई अनजान व्यक्ति उसे लड़का ही समझता था. लड़कियों के स्कूल में पढऩे जाने पर जब उसे यूनिफार्म में सलवार कमीज पहनने को मजबूर किया जाता तो वह स्कूल से बंक मारने लगी.

स्वाति ने बताया कि उस की आत्मा यही कहती थी कि ‘मैं वह नहीं हूं, जो दिखाई देती हूं. मेरा दिमाग और शरीर एकदूसरे से मेल नहीं खाते थे. कभीकभी मुझे अपने ही शरीर से चिढ़ सी होने लगी थी.’

आखिरकार एक दिन खुद को मजबूत करते हुए स्वाति ने घर वालों से बात की. उस ने मम्मीपापा से साफ कह दिया, ”तुम मुझे भले ही लड़की समझते हो, मगर मुझे फीलिंग लड़कों वाली आती है. मैं तो अपना जेंडर चेंज करा कर लड़का बनना चाहता हूं.’’

इतना सुन कर घर वालों की स्थिति और खराब हो गई. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आखिर इस लड़की के साथ क्या किया जाए. स्वाति के रंगढंग देख उस के पापा पवन ने पत्नी उर्मिला से कहा, ”देखो, ये लड़की समाज में हमारी बदनामी करने पर तुली हुई है.’’

उर्मिला यह कह कर अपने पति को समझा देती कि ‘स्वाति अभी नादान है. उम्र के साथ सब कुछ समझ जाएगी.’

ताप्ती नदी के किनारे बसे मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के बैतूल (Baitul) में संजय कालोनी में रहने वाले पवन सूर्यवंशी और पत्नी उर्मिला सूर्यवंशी की 4 बेटियों और एक बेटे में स्वाति सब से छोटी थी.

बैतूल (Baitul) के सिविल लाइंस इलाके की संजय कालोनी में रहने वाले पवन सूर्यवंशी मसाले और सब्जी का बिजनैस करते थे. एक सड़क हादसे में अपना एक पैर खोने के बाद घर की जिम्मेदारी पत्नी उर्मिला पर आ गई. उर्मिला ने अपने बेटे बेटियों की परवरिश में कोई कमी नहीं रखी. आज उन की 2 बड़ी बेटियां श्रद्धा और संगीता हौस्पिटल में एकाउंटेंट हैं, जबकि छोटी बेटी बबीता एक नर्स है. बड़ा बेटा कृष्णा सरकारी स्कूल में टीचर है.

स्वाति स्कूल में भी पहनती थी लड़कों के कपड़े

स्वाति का जन्म 6 मार्च, 1988 को हुआ था. उस की स्कूली शिक्षा बैतूल के गवर्नमेंट स्कूल में हुई थी. पहले तो सब कुछ ठीक था, लेकिन जैसेजैसे उम्र बढ़ती गई, स्वाति को अपने शरीर को ले कर अजीब सी फीलिंग आने लगी. 8वीं पास होतेहोते एक दिन लगा कि उसे शरीर लड़की का जरूर दे दिया है, लेकिन वह लड़की नहीं है. क्योंकि उसे भगवान ने मुझे गलत बौडी दे दी. हर काम लड़कों वाले करना पसंद थे.

मसलन लड़कों जैसे रहना, कपड़े पहनना अच्छा लगता था. गेम भी लड़कों वाले ही खेलती थी. यहां तक कि यदि उसे कोई लड़कियों की तरह संबोधन से बुलाता तो उसे बहुत बुरा लगता था. पवन सूर्यवंशी का पूरा परिवार धार्मिक विचारों वाला था. इस वजह से घर के सभी लोगों ने उसे शिवाय कहना शुरू कर दिया. उस के बाद तो सभी उसे शिवाय के नाम से ही पुकारने लगे.

घर वालों ने जब स्वाति का एडमिशन 9वीं क्लास में गल्र्स स्कूल में करा दिया तो वहां ड्रेस के रूप में सलवारकमीज चलती थी. उसे यह पहनना पसंद नहीं था. यही वजह थी कि वह स्कूल जाना पसंद नहीं करती थी. जिस दिन ड्रेस चेंज होती थी, सिर्फ उसी दिन स्कूल जाती थी. इसी जद्दोजहद में दिन बीतते गए और स्वाति 12वीं में पहुंच गई.

रहनसहन, कपड़े और लड़कों के साथ खेलने की वजह से घर वालों का दबाव बढऩे लगा था जोकि स्वाति को कतई पसंद नहीं था. अब स्वाति में लड़कियों के शरीर में होने वाले शारीरिक परिवर्तन भी होने लगे थे.

पीरियड की शुरुआत और अपनी छाती पर आए उभार देख कर उसे अच्छा नहीं लगता था. इस कारण उस का फ्रस्ट्रेशन और बढऩे लगा था. उसे अपने शरीर से चिढ़ होने लगी थी. स्वाति को यह सब रास नहीं आ रहा था और वह इस से डिप्रेशन में जाने लगी थी.

स्वाति का रुझान बचपन से ही बास्केट बाल खेल के प्रति रहा था. ऐसे में स्कूल में पढ़ते समय जब स्वाति लड़कियों के साथ बास्केट बाल खेलती तो उसे अजीब सा लगता था. तब उन के कोच रविंद्र गोटे स्वाति को लड़कों के साथ खेलने के लिए प्रोत्साहित करते थे.

baitul-swati-on-bike

बास्केट बाल गेम लड़कियों के ज्यादा खेलने की वजह से स्वाति उर्फ शिवाय बाद में फुटबाल खेलने लगी. बड़ी होने पर स्वाति को पुलिस में रहे कोच संजय ठाकुर ने काफी प्रोत्साहित किया. संजय ठाकुर उसे लड़कों जैसी फिटनैस रखने और सभी खेलों में भाग लेने के लिए कहते थे.

कोच संजय ठाकुर उस के खेल से प्रभावित हो कर अकसर यही कहते थे, ”स्वाति, तुझे तो लड़का होना चाहिए था, कुदरत ने तुझे लड़की क्यों बना दिया.’’  बस यही बात उस समय स्वाति को कचोटने लगी थी.

2006 में गवर्नमेंट गल्र्स स्कूल बैतूल से हायर सेकेंडरी परीक्षा पास करने के बाद स्वाति ने भोपाल के कालेज से 2010 में बीसीए पास कर लिया. बीसीए की पढ़ाई के दौरान उसे काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा. उस समय स्वाति से यह सब सहन नहीं हो रहा था, इसलिए उस ने फैसला किया कि वह अपना जेंडर जरूर चेंज कराएगी.

उस ने इस के लिए इंटरनेट और सोशल मीडिया का सहारा लिया. इंटरनेट पर उस ने  खूब सर्च किया और बहुत सारी जानकारी हासिल की. वह जेंडर चेंज के लिए 2010 से 2015 तक लगातार कई तरह की जानकारियां जुटाती रही.

बौडी बिल्डर आर्यन पाशा से हुई प्रभावित

स्वाति ने यूट्यूब पर आर्यन पाशा का एक वीडियो देखा था, जिसे देख कर उसे मालूम हुआ कि आर्यन पाशा का जन्म 1991 में नायला नाम की एक लड़की के रूप में हुआ था. आर्यन पाशा की मां को सब से पहले पता चला कि वह एक महिला शरीर में फंसा हुआ लड़का था.

जब वह 16 वर्ष का था तो पाशा की मां ने उसे लिंग परिवर्तन सर्जरी(Gender Change Surgery) के बारे में बताया. 2011 में जब पाशा सिर्फ 19 साल का था, तब उस ने दिल्ली एनसीआर के एक अस्पताल में सर्जरी के द्वारा अपना जेंडर चेंज कराया.

इस बदलाव के बाद उस ने 12वीं कक्षा में अपने स्कूल में टौप किया, फिर उस ने अपने सभी दस्तावेजों में खुद को ‘पुरुष’ के रूप में पहचाना और यहां तक कि अपने लिए एक नया नाम आर्यन भी लिया.

स्नातक पाठ्यक्रम के लिए दिल्ली के एक प्रमुख विश्वविद्यालय में प्रवेश से इनकार करने के बाद अंतत: उस ने मुंबई विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और कानून की पढ़ाई की. आर्यन बाद में बौडी बिल्डर बना और पुरुष वर्ग में बौडी बिल्डिंग इवेंट मसल मेनिया में प्रतिस्पर्धा करने वाला पहला भारतीय ट्रांसमैन बन गया. वह पोडियम पर दूसरे स्थान पर रहा.

इस के बाद स्वाति एक्सपर्ट डाक्टर से भी मिली और डाक्टर से बात कर यह जाना कि इस की सर्जरी की क्या प्रक्रिया है. जब सारी बातें साफ हो गईं तो उस ने उन लोगों से भी मुलाकात की, जिन्होंने अपना जेंडर चेंज करवाया था.

स्वाति ने इस के लिए आर्यन पाशा और राजवीर सिंह जैसे जेंडर चेंज करने वाले लोगों से मुलाकात की. इस के बाद अपने इरादे मजबूत कर लिए तो एक दिन सारी बातें घर वालों के सामने रख दीं और उन्हें जेंडर चेंज करवाने के लिए मनाना शुरू किया.

पहले तो घर वालों ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया. उस के पीछे आर्थिक स्थिति का कमजोर होना तो था ही, समाज में नकारात्मक सोच का डर भी घर वालों को था. यही वजह रही कि घर वालों ने ऐसा करने की इजाजत नहीं दी. उस वक्त स्वाति के लिए शादी के लिए रिश्ते भी आने शुरू हो गए थे.

3 साल का वक्त लगा जेंडर बदलने में

यह बात उस के तनाव को और बढ़ा रही थी. उस ने घर वालों को काफी मनाया समझाया और कुछ ऐसे लोगों से घर वालों की मुलाकात कराई, जो जेंडर चेंज कराने के बाद अपना पारिवारिक जीवन बेहतर ढंग से जी रहे थे.

राजवीर सिंह से मुलाकात और काफी कोशिशों के बाद मम्मीपापा के सोचने का नजरिया बदला. इस काम में स्वाति की 3 बहनों ने भी काफी सपोर्ट किया. आखिरकार लंबी मशक्कत के बाद घर वाले  जेंडर चेंज करवाने के लिए राजी हुए.

शिवाय को बाइक चलाने का भी शौक है. अब जेंडर चेंज सर्जरी करा कर स्वाति से शिवाय सूर्यवंशी बन गया है. जेंडर चेंज के बारे में जब हम ने शिवाय से बातचीत की तो खुशी और आत्मविश्वास से लबरेज नजर आया.

लंबी बातचीत में शिवाय (स्वाति) ने बताया कि एक बार यूट्यूब पर आर्यन पाशा को देखा था, आर्यन लड़की से लड़का बना और फिर बौडी बिल्डर बन गया. यह वीडियो मेरे लिए प्रेरणास्रोत रहा और इस के बाद मैं ने भी लड़का बनने की ठान ली.

जेंडर चेंज सर्जरी की शुरुआत 2020 में हुई थी. दिल्ली के एक निजी हौस्पिटल में उस ने 3 स्टेप में सर्जरी कराई है. जानेमाने सर्जन डा. नरेंद्र कौशिक ने उस की सर्जरी की थी.

पहली सर्जरी 2020 में जब शुरू हुई तो साइकोलौजिस्ट डा. राजीव ने मानसिक टेस्ट किया और डा. अरविंद कुमार ने हारमोंस थैरेपी की थी, जिस में हारमोंस चेंज होते हैं. इस थैरेपी के कुछ दिनों बाद ही वाइस चेंज होने लगी थी और चेहरे पर दाढ़ीमूंछ आने लगी थीं.

वहीं दूसरी टौप सर्जरी में शिवाय के दोनों ब्रेस्ट को बौडी से रिमूव किया गया था. थर्ड सर्जरी में बौटम पार्ट की सर्जरी की गई थी. इस सर्जरी के दौरान यूट्रस निकाला गया और सब से लास्ट में पेनिस डेवलप किया गया था. हर सर्जरी के बाद 3 माह का आराम करना होता था. शिवाय ने हर सर्जरी के बाद 5 से 6 महीने का गैप लिया.

अभी कुछ महीने पहले ही शिवाय की चौथी सर्जरी हुई थी, जिस में स्किन टाइट करवाई गई है. इस के बाद आराम किया और अब नवंबर 2023 से इंदौर में रह कर फिर से अपना जौब शुरू कर दिया है. पूरी सर्जरी में लगभग 10 लाख रुपए खर्च हुए थे.

शिवाय ने बताया कि वह पहले ही सर्जरी कराना चाहता था, लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने से सर्जरी नहीं करा पाया.

शिवाय सूर्यवंशी ने बताया, ”सर्जरी करवा कर मैं बहुत खुश हूं. अब लगता है कि मुझे जो शरीर चाहिए था, वह मिल गया है.’’

दस्तावेजों में लिंग बदलवाना नहीं था आसान

शिवाय के परिवार में भी लोग खुश हैं.  शिवाय के बड़े भाई कृष्णा सूर्यवंशी ने बताया, ”पहले जरूर हम ने इस का विरोध किया था, लेकिन बाद में पूरे परिवार ने सहयोग किया.  अब उन्हें एक भाई और मिल गया है, जिस से उन्हें काफी मदद मिल रही है. हम पहले 5 भाईबहन थे. स्वाति सब से छोटी बहन थी. अब स्वाति के शिवाय बनने से 3 बहन और 2 भाई हो गए हैं.’’

swati-bni-shivaay-with-family

जेंडर चेंज करवाने के बाद सब से चुनौतीपूर्ण काम पहचान दस्तावेजों में नाम व जेंडर बदलने का था. इस के लिए स्वाति से शिवाय बन कर सब से पहले बैतूल कलेक्टर के समक्ष उपस्थित हो कर आवेदन किया.

कलेक्टर औफिस से जारी किए गए पत्र के साथ शिवाय सूर्यवंशी ने बोर्ड औफ सेकेंडरी एजुकेशन, भोपाल के साथ माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल जहां से बीसीए किया और देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर जहां से एमबीए किया था, वहां आवेदन किया. आवेदन के साथ उस ने जेंडर चेंज सर्जरी के समस्त डाक्यूमेंट्स भी पेश किए.

इस आधार पर हाईस्कूल और हायर सेकेंडरी स्कूल परीक्षा की मार्कशीट जो स्वाति नाम से बनी है, वहीं अब स्वाति का नाम परिवर्तित हो कर शिवाय हो गया है. जेंडर फीमेल से मेल हो गया है. इसी तरह बीसीए, एमबीए की मार्कशीट के साथ आधार कार्ड, पैन कार्ड, बैंक पासबुक और वोटर आईडी कार्ड में भी उस का नाम बदल कर अब शिवाय सूर्यवंशी हो गया है.

शिवाय के सभी दस्तावेज पहले स्वाति सूर्यवंशी नाम से थे, लेकिन सर्जरी के बाद उस के सभी दस्तावेजों में भी नाम बदल चुका है. शिवाय ने अब ऐसे लोगों को, जो जेंडर चेंज के लिए सर्जरी कराना चाहते हैं, उन्हें जागरूक करना शुरू कर दिया है. शिवाय एमपी वाला चैनल बनाया है. बहुत सारे लोग इस संबंध में पूछताछ करते हैं शिवाय ने बताया कि अधिकांश लोग लड़का से लड़की बनना पसंद करते हैं.

जेंडर चेंज करने वाले माहिर डाक्टर बताते हैं कि जिन लोगों को जेंडर डायसफोरिया होता है, वो इस प्रकार का औपरेशन कराते हैं. इस बीमारी में लड़का, लड़की की तरह और लड़की, लड़के की तरह जीना चाहती है. एक का लड़के से लड़की बनना और दूसरे का लड़की से लड़का बनना जिसे मैडिकल टर्म में ‘जेंडर डिस्फोरिया’ या बौडी वर्सेस सोल कहते हैं. यानी शरीर और आत्मा की लड़ाई.

आसान नहीं होता जेंडर चेंज कराना

कई लड़के और लड़कियों में 12 से 16 साल के बीच जेंडर डायसफोरिया के लक्षण शुरू हो जाते हैं, लेकिन समाज के डर की वजह से ये अपने मातापिता को इन बदलावों के बारे में बताने से डरते हैं.

आज भी समाज में कई ऐसे लड़केलड़कियां हैं, जो इस समस्या के साथ जिंदगी गुजार रहे हैं, लेकिन इस बात को किसी से बताने से डरते हैं. लेकिन जो हिम्मत जुटा कर कदम उठाते हैं. वे जेंडर चेंज के लिए सर्जरी कराने का फैसला लेते हैं.

हालांकि जेंडर चेंज कराने वालों को समाज में एक अलग ही नजरिए से देखा जाता है और उन से लोग कई तरह के सवालजवाब भी करते हैं.

सैक्स-रिअसाइनमेंट सर्जरी या फिर जेंडर चेंज सर्जरी कराना एक चुनौतीपूर्ण काम होता है. इस का खर्च भी लाखों रुपए में है और इस सर्जरी को कराने से पहले मानसिक तौर पर भी तैयार रहना पड़ता है. यह सर्जरी हर जगह उपलब्ध भी नहीं है. कुछ मैट्रो सिटी के अस्पतालों में ही ऐसे सर्जन मौजद हैं, जो सैक्स-रिअसाइनमेंट सर्जरी को कर सकते हैं.

सैक्स चेंज कराने के इस औपरेशन के कई लेवल होते हैं. यह प्रक्रिया काफी लंबे समय तक चलती है. फीमेल से मेल बनने के लिए करीब 32 तरह की प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है. मेल से फीमेल बनने में 18 चरण होते हैं.

सर्जरी को करने से पहले डाक्टर यह भी देखते हैं कि लड़का और लड़की इस के लिए मानसिक रूप से तैयार हैं या नहीं. इस के लिए मनोरोग विशेषज्ञ की सहायता ली जाती है. इस के साथ ही यह भी देखा जाता है कि शरीर में कोई गंभीर बीमारी तो नहीं है.

जेंडर चेंज कराने की प्रक्रिया में सब से पहले डाक्टर एक मानसिक टेस्ट करते हैं. मानसिक टेस्ट में फिट होने के बाद इलाज के लिए हारमोंस थेरेपी शुरू की जाती है. यानी जिस लड़के को लड़की वाले हारमोंस की जरूरत है, वो इंजेक्शन और दवाओं के जरिए उस के शरीर में पहुंचाए जाते हैं.

इस इंजेक्शन के करीब 3 से 4 डोज देने के बाद बौडी में हार्मोनल बदलाव होने लगते हैं. फिर इस का प्रोसीजर शुरू किया जाता है.

दूसरे चरण में पुरुष या महिला के प्राइवेट पार्ट और चेहरे की शेप को बदला जाता है. महिला से पुरुष बनने वाले में पहले ब्रेस्ट को हटाया जाता है और पुरुष का प्राइवेट पार्ट डेवलप किया जाता है.

पुरुष से महिला बनने वाले व्यक्ति में उस के शरीर से लिए गए मांस से ही महिला के अंग बना दिए जाते हैं. इस में ब्रेस्ट और प्राइवेट पार्ट शामिल होता है. ब्रेस्ट के लिए अलग से 3 से 4 घंटे की सर्जरी करनी पड़ती है. यह सर्जरी 4 से 5 महीने के गैप के बाद ही की जाती है.

जेंडर चेंड सर्जरी की पूरी प्रक्रिया में कई डाक्टर शामिल होते हैं. इस में मनोरोग विशेषज्ञ, सर्जन, गायनेकोलौजिस्ट और एक न्यूरो सर्जन भी मौजूद रहता है. डाक्टर बताते हैं कि यह सर्जरी 21 साल से अधिक उम्र के लोगों पर ही की जाती है. इस से कम उम्र में मातापिता की ओर से लिखित में सहमति लेने के बाद ही औपरेशन किया जाता है.

डाक्टर से होने वाली है शिवाय की शादी

जिस स्वाति के लिए घर वाले शादी के लिए लड़का देख रहे थे, जेंडर बदलने के बाद सौफ्टवेयर इंजीनियर शिवाय सूर्यवंशी अब एक डाक्टर से शादी करने जा रहा है. जेंडर चेंज करवाने के दौरान ही शिवाय की मुलाकात इंदौर की रहने वाली एक लड़की से हौस्पिटल में हुई थी, जो बीएएमएस का कोर्स कंपलीट कर चुकी है और उस का खुद का क्लीनिक भी है.

सर्जरी के दौरान शिवाय को अपनी मंगेतर से काफी सपोर्ट मिला था. दोनों के परिवार वाले भी इस रिश्ते से काफी खुश हैं. शिवाय की यह अरेंज कम लव मैरिज होगी. कुछ ही दिनों बाद शिवाय मंगेतर के साथ परिणय सूत्र में बंधने जा रहा है. शिवाय ने बाद में महर्षि महेश योगी यूनिवर्सिटी से एमएससी (आईटी) पास करने के साथ सौफ्टवेयर डेवलपमेंट का कोर्स किया  है. फिलहाल वह विदेशी कंपनियों के कुछ प्रोजैक्ट को फ्रीलांस के तौर पर कर रहा है. इस के अलावा शिवाय आलमाइटी सोल्यूशन सौफ्टवेयर कंपनी को भी अपनी सेवाएं दे रहा है.

शिवाय के पास हर दिन उन लोगों के फोन आते हैं, जो जेंडर चेंज तकनीक की जानकारी हासिल करना चाहते हैं. शिवाय ऐसे लोगों से खुशमिजाज हो कर बात करता है और लोगों की जेंडर सर्जरी संबधी जिज्ञासाओं का समाधान भी करता है.

यूट्यूब चैनल से दिया जा रहा है संदेश

एक छोटे से नगर में रह कर जेंडर चेंज कराने वाले शिवाय ने बताया कि उस के पास रोज ही ऐसे नौजवानों के फोन काल आते हैं, जो इस तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं. शिवाय ऐसे युवाओं को फोन पर ही मार्गदर्शन करता है.

अपने चैनल के माध्यम से शिवाय जेंडर चेंज सर्जरी के साथ ही दस्तावेजों में नामपता बदलने की जानकारी भी विस्तार से देता है. उस के चैनल को बड़ी संख्या में युवा फालो भी कर रहे हैं.

शिवाय ने बताया कि इस तरह की समस्याओं से परेशान युवक युवतियां घुटघुट कर जीते हैं. घर वाले उन की फीलिंग्स को नहीं समझते और निराश हो कर युवक युवतियां आत्महत्या जैसा कदम तक उठा लेते हैं.

शिवाय का कहना है कि इस तरह की समस्या का सामना करने वाले नौजवान युवकयुवतियां डरने के बजाय अपना आत्मविश्वास जगाएं और बिना संकोच किए अपने घर वालों से बातचीत कर अपना जेंडर चेंज करा सकते हैं. आजकल तो सरकार की आयुष्मान योजना का लाभ उठा कर भी जेंडर चेंज सर्जरी कराई जा सकती है.

—कथा शिवाय सूर्यवंशी से की गई लंबी बातचीत पर आधारित

बालिका सेवा के नाम पर बच्चियों के साथ हैवानियत

31 जनवरी, 2019 की शाम जावरा क्षेत्र में पिपलोदा रोड स्थित कुटीर बालिका गृह के बाहर अफरातफरी का माहौल था. बालिका गृह के गेट पर औद्योगिक क्षेत्र के टीआई बी.एल. सोलंकी, एसआई मधु राठौर और पुलिस बल के साथ खड़े थे.

भारी पुलिस बल को देख कर लोगों की भीड़ जुटने लगी थी. उसी समय पूर्व संचालिका रचना भारतीय अपने पति ओमप्रकाश भारतीय के साथ बालिका गृह से बाहर निकल आई.

रचना भारतीय अपने पति ओमप्रकाश के साथ आश्रम के प्रांगण में स्थित घर में रहती थी. रचना ने टीआई सोलंकी से आने की वजह जाननी चाही तो टीआई ने बताया कि वह जिला कलेक्टर के आदेश पर आश्रम में रहने वाली बच्चियों को वहां से हटा कर रतलाम के वन स्टाफ सेंटर में ले जाने के लिए आए हैं.

रचना और उस के पति ओमप्रकाश ने इस बात का विरोध करना चाहा लेकिन पुलिस के सामने उन की एक नहीं चली. पुलिस ने आश्रम में रह रही करीब 300 बालिकाओं को बसों में बैठाया. इतना ही नहीं टीआई बी.एल. सोलंकी ने रचना भारतीय व ओमप्रकाश को भी हिरासत में ले लिया. इस के बाद वह उन्हें ले कर थाने लौट आए. उन्होंने सभी बालिकाओं को रतलाम के वन स्टाफ सेंटर भेज दिया.

रचना और ओमप्रकाश भारतीय को पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने की बात जल्द ही पूरे जावरा शहर में फैल गई. पर पुलिस की काररवाई चलती रही. टीआई सोलंकी ने अगले दिन क्षेत्र के 2 और चर्चित व्यक्तियों कुंदन वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष सुदेश जैन और सचिव दिलीप बरैया को भी गिरफ्तार कर लिया.

दरअसल इन की गिरफ्तारी की वजह यह थी कि कुटीर आश्रम से 24 जनवरी, 2019 को 5 बालिकाएं बालिका गृह का रोशनदान तोड़ कर फरार हो गई थीं.

आश्रम से बालिकाओं के भागने की सूचना मिलते ही पुलिस और बाल कल्याण समिति सक्रिय हो गई. जिस के चलते ये सभी बालिकाएं शाम को मंदसौर में मिल गईं. बालिकाओं से पूछताछ की गई तो पता चला कि रचना और उस का पति अन्य लोगों के साथ मिल कर इन लड़कियों का शारीरिक शोषण करते थे.

कलेक्टर ने दिए थे जांच के आदेश

यह जानकारी जब रतलाम की कलेक्टर रुचिका चौहान को मिली तो उन्होंने जावरा क्षेत्र के एसडीएम एम.एल. आर्य को संस्था में रह रही दूसरी लड़कियों से पूछताछ  करने के निर्देश दिए. एसडीएम ने आश्रम जा कर वहां रह रही करीब 300 लड़कियों से पूछताछ की तो उन्होंने आपबीती एसडीएम साहब को बता दी.

एसडीएम ने अपनी रिपोर्ट कलेक्टर रुचिका चौधरी को सौंप दी. इस के बाद ही कलेक्टर रुचिका चौहान ने आदेश दिया कि कुटीर बालिका गृह में रह रही सभी बच्चियों को वहां से वन स्टाफ सेंटर रतलाम शिफ्ट कर दिया जाए और दोषियों के खिलाफ सख्त काररवाई की जाए.

jawra-kundan-kutir

जिला कलेक्टर के आदेश पर ही पुलिस ने बालिका गृह की पूर्व संचालिका रचना भारतीय तथा उस के पति ओमप्रकाश भारतीय, संस्था के वर्तमान अध्यक्ष और सचिव सुदेश जैन एवं दिलीप बरैया के खिलाफ भादंवि की धारा 354, 376, 324 एवं बालकों की देखरेख संरक्षण अधिनियम की धारा 75, पोक्सो 5डी, 4, 7/8 के तहत मामला दर्ज कर लिया.

जांच में पुलिस को पता चला कि रचना भारतीय पूर्व में इस बालिका गृह की संचालिका के पद पर थी. वह अपने पति ओमप्रकाश के साथ बालिका गृह के एक हिस्से में रहती थी. बाद में अपनी राजनैतिक पकड़ के चलते उसे बाल कल्याण समिति का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया था.

चूंकि वह एक साथ 2 पदों पर नहीं रह सकती थी, लिहाजा उस ने बालिका गृह की संचालिका का पद छोड़ना जरूरी समझा. यह पद छोड़ने के बाद रचना ने अपने विश्वसनीय सुदेश जैन और दिलीप बरैया को संस्था का अध्यक्ष और सचिव बनवा दिया था. पद छोड़ने के बाद भी रचना अपने पति के साथ इसी आश्रम में रहती थी.

सुदेश जैन और दिलीप बरैया नाम के ही पदाधिकारी थे. बालिका गृह से जुड़े सारे फैसले रचना और उस का पति ही लेते थे.

बहरहाल पुलिस ने दूसरे दिन सभी आरोपियों को न्यायालय में पेश किया जहां से रचना भारतीय को रतलाम एवं ओमप्रकाश भारतीय, सुदेश जैन तथा दिलीप बरैया को जावरा जेल भेज दिया गया.

अदालत में पेश करने से पहले सुदेश जैन एवं दिलीप बरैया की मौजूदगी में टीआई बी.एल. सोलंकी तथा हुसैन टेकरीजहां के तहसीलदार के सामने आश्रम की सील तोड़ कर दस्तावेजों की जांच की गई. साथ ही लापरवाही बरतने के आरोप में महिला सशक्तिकरण अधिकारी रहे एवं वर्तमान में महिला बाल विकास विभाग के सहायक संचालक रविंद्र मिश्रा को निलंबित कर दिया गया.

इस के अलावा रचना को बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष पद से भी हटा दिया गया. बालिका गृह में लड़कियों के साथ किए जाने वाले शोषण की पूरी कहानी इस प्रकार सामने आई—

कई साल पहले जावरा नगर पालिका के अध्यक्ष हुआ करते थे कुंदनमल भारतीय. ओमप्रकाश भारतीय कुंदनमल का ही बेटा था. जबकि रचना ओमप्रकाश भारतीय की पत्नी थी. कुंदनमल की मृत्यु के बाद सन 2015 में रचना ने कुंदन बेलफेयर सोसाइटी का गठन कर उस के अंतर्गत पिपलौदा रोड पर कुंदन कुटीर नाम से बालिका गृह का संचालन किया.

राजनैतिक पहुंच का उठाया लाभ

रचना और उस के पति की राजनीति में अच्छी पकड़ थी जिस के चलते जल्द ही इस बालिका गृह को शासन से मोटा अनुदान मिलने लगा. जानकारी के अनुसार पिछले 3 साल में ही शासन की तरफ इस बालिका गृह को करीब 38 लाख रुपए की अनुदान राशि मिली थी. सूत्रों की मानें तो इस अनुदान राशि के अलावा रचना प्रदेश भर से काफी बड़ी रकम दान के रूप में बेटोर रही थी.

जो 5 लड़कियां बालिका गृह से भागी थीं, उन्होंने बताया कि हम सभी रचना को मम्मा कहते थे और उस के पति को पापा. लेकिन उन की नीयत लड़कियों के प्रति अच्छी नहीं थी. पापा रोज शराब पीते थे और रचना मम्मा इस दौरान हम में से किसी एक लड़की को शराब के पैग तैयार करने का काम सौंप देती थी. मम्मा खुद भी शराब पीती थी और दूसरे लोग भी रोज आश्रम में आ कर उन दोनों के साथ शराब पीते थे.

रात के समय आश्रम में आने वाली एक महिला भी शराब पीए होती थी. मम्मा एक गुप्त रास्ते से लड़कियों के कमरों में आती थी. रात के खाने में हमें कुछ मिला कर खिलाया जाता था, जिस के बाद हम उठ ही नहीं पाते थे.

यह भी पता चला कि सन 2018 में लड़कियों की शिकायत पर बाल संरक्षण अधिकारी पवन कुमार सिसौदिया ने जांच कर के अपनी रिपोर्ट रतलाम में संबंधित विभाग के 2 अधिकारियों को सौंपी थी. लेकिन उन की जांच रिपोर्ट पर कोई काररवाई नहीं की गई.

शिकायत में बच्चियों ने आरोप लगाए कि रचना मम्मा का व्यवहार काफी खराब है. वह बातबात पर हम लोगों से मारपीट करती हैं. समय पर खाना भी नहीं दिया जाता. लड़कियों ने बताया कि रचना के पति हम लोगों के शरीर पर गलत नीयत से हाथ फेरते थे. मना या विरोध करने पर हमारे साथ मारपीट की जाती थी. वह कभीकभी किचन में आ कर लड़कियों के पैर में हाकी डाल कर उन्हें अपनी तरफ खींच लेते.

बहरहाल अब शासन ने पूरे मामले को गंभीरता से लेते हुए न केवल 4 आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है बल्कि रचना के आश्रम में रहने वाली सभी बच्चियों को रतलाम और उज्जैन के आश्रमों में शिफ्ट कर दिया है, दूसरी तरफ रतलाम कलेक्टर के निर्देश पर पुलिस उन तमाम बच्चियों से संपर्क कर उन के बयान लेने की कोशिश कर रही हैं, जो कभी न कभी रचना के आश्रम में रही थीं.

कुंदन कुटीर बालिका गृह मामले में एक युवती से वीडियो बनवाने के संबंध में करीब 2 महीने से फरार चल रहे नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष और कांग्रेस से निष्कासित यूसुफ कड़पा को पुलिस ने गिरफ्तार कर भी लिया. गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने आरोपी को आननफानन में कोर्ट में पेश किया, जहां से कोर्ट ने उसे जमानत पर रिहा कर दिया.

इस मामले में पुलिस ने कोर्ट में आरोपी के पुलिस रिमांड की मांग भी नहीं की. पुलिस ने कोर्ट से उसे जेल भेजने का आग्रह किया, लेकिन कोर्ट ने आरोपी के आवेदन पर उसे कोर्ट से ही जमानत पर रिहा कर दिया.

दिलरूबा ने ली प्रेमी की जान

एसचओ ने ग्रामीणों की मदद से शव को तालाब से बाहर निकलवाया. शव पूरी तरह नग्न अवस्था में था. शव का बारीकी से निरीक्षण किया तो पाया कि मृतक की उम्र लगभग 30 साल थी और उस के शरीर पर धारदार हथियार से गोदे जाने के कई निशान थे.

उसी दौरान एक युवक ने लाश की शिनाख्त पिडरुआ निवासी तुलसीराम प्रजापति के रूप में की. उस की हत्या किस ने और क्यों की, यह बात कोई भी व्यक्ति नहीं समझ पा रहा था.

26 वर्षीय सविता और 28 वर्षीय तुलसीराम पहली मुलाकात में ही एकदूसरे को दिल दे बैठे थे, सविता को पाने की अभिलाषा तुलसीराम के दिल में हिलोरें मारने लगी थी, इसलिए वह किसी न किसी बहाने से सविता से मिलने उस के खेत पर बनी टपरिया में अकसर आने लगा था.

तुलसीराम प्रजापति के टपरिया में आने पर सविता गर्मजोशी से उस की खातिरदारी करती, चायपानी के दौरान तुलसीराम जानबूझ कर बड़ी होशियारी के साथ सविता के गठीले जिस्म का स्पर्श कर लेता तो वह नानुकुर करने के बजाय मुसकरा देती. इस से तुलसीराम की हिम्मत बढ़ती चली गई और वह सविता के खूबसूरत जिस्म को जल्द से जल्द पाने की जुगत में लग गया.

एक दिन दोपहर के समय तुलसीराम सविता की टपरिया में आया तो इत्तफाक से सविता उस वक्त अकेली चक्की से दलिया बनाने में मशगूल थी. उस का पति पुन्नूलाल कहीं गया हुआ था. इसी दौरान तुलसीराम को देखा तो उस ने साड़ी के पल्लू से अपने आंचल को करीने से ढंका.

तुलसीराम ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ”सविता, तुम यह आंचल क्यों ढंक रही हो? ऊपर वाले ने तुम्हारी देह देखने के लिए बनाई है. मेरा बस चले तो तुम को कभी आंचल साड़ी के पल्लू से ढंकने ही न दूं.’’

”तुम्हें तो हमेशा शरारत सूझती रहती है, किसी दिन तुम्हें मेरे टपरिया में किसी ने देख लिया तो मेरी बदनामी हो जाएगी.’’

”ठीक है, आगे से जब भी तेरे से मिलने तेरी टपरिया में आऊंगा तो इस बात का खासतौर पर ध्यान रखूंगा.’’

सविता मुसकराते हुए बोली, ”अच्छा एक बात बताओ, कहीं तुम चिकनीचुपड़ी बातें कर के मुझ पर डोरे डालने की कोशिश तो नहीं कर रहे?’’

”लगता है, तुम ने मेरे दिल की बात जान ली. मैं तुम्हें दिलोजान से चाहता हूं, अब तो जानेमन मेरी हालत ऐसी हो गई है कि जब तक दिन में एक बार तुम्हें देख नहीं लेता, तब तक चैन नहीं मिलता है. बेचैनी महसूस होती रहती है, इसलिए किसी न किसी बहाने से यहां चला आता हूं. तुम्हारी चाहत कहीं मुझे पागल न कर दे…’’

तुलसीराम प्रजापति की बात अभी खत्म भी नहीं हुई थी कि सविता बोली, ”पागल तो तुम हो चुके हो, तुम ने कभी मेरी आंखों में झांक कर देखा है कि उन में तुम्हारे लिए कितनी चाहत है. मुझे तो ऐसा लगता है कि दिल की भाषा को आंखों से पढऩे में भी तुम अनाड़ी हो.’’

”सच कहा तुम ने, लेकिन आज यह अनाड़ी तुम से बहुत कुछ सीखना चाहता है. क्या तुम मुझे सिखाना चाहोगी?’’ इतना कह कर तुलसीराम ने सविता के चेहरे को अपनी हथेलियों में भर लिया.

सविता ने भी अपनी आंखें बंद कर के अपना सिर तुलसीराम के सीने से टिका दिया. दोनों के जिस्म एकदूसरे से चिपके तो सर्दी के मौसम में भी उन के शरीर दहकने लगे. जब उन के जिस्म मिले तो हाथों ने भी हरकतें करनी शुरू कर दीं और कुछ ही देर में उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कर लीं.

सविता के पति पुन्नूलाल के शरीर में वह बात नहीं थी, जो उसे तुलसीराम से मिली. इसलिए उस के कदम तुलसीराम की तरफ बढ़ते चले गए. इस तरह उन का अनैतिकता का खेल चलता रहा.

सविता के क्यों बहके कदम

मध्य प्रदेश के सागर जिले में एक गांव है पिडरुआ. इसी गांव में 26 वर्षीय सविता आदिवासी अपने पति पुन्नूलाल के साथ रहती थी. पुन्नूलाल किसी विश्वकर्मा नाम के व्यक्ति की 10 बीघा जमीन बंटाई पर ले कर खेत पर ही टपरिया बना कर अपनी पत्नी सविता के साथ रहता था. उसी खेत पर खेती कर के वह अपने परिवार की गुजरबसर करता था. उस की गृहस्थी ठीकठाक चल रही थी.

उस के पड़ोस में ही तुलसीराम प्रजापति का भी खेत था, इस वजह से कभीकभार वह सविता के पति से खेतीबाड़ी के गुर सीखने आ जाया करता था. करीब डेढ़ साल पहले तुलसीराम ने ओडिशा की एक युवती से शादी की थी, लेकिन वह उस के साथ कुछ समय तक साथ रहने के बाद अचानक उसे छोड़ कर चली गई थी.

सविता को देख कर तुलसीराम की नीयत डोल गई. उस की चाहतभरी नजरें सविता के गदराए जिस्म पर टिक गईं.  उसी क्षण सविता भी उस की नजरों को भांप गई थी. तुलसीराम हट्टाकट्टा नौजवान था. सविता पहली नजर में ही उस की आंखों के रास्ते दिल में उतर गई. सविता के पति से बातचीत करते वक्त उस की नजरें अकसर सविता के जिस्म पर टिक जाती थीं.

सविता को भी तुलसीराम अच्छा लगा. उस की प्यासी नजरों की चुभन उस की देह को सुकून पहुंचाती थी. उधर अपनी लच्छेदार बातों से तुलसीराम ने सविता के पति से दोस्ती कर ली. तुलसीराम को जब भी मौका मिलता, वह सविता के सौंदर्य की तारीफ करने में लग जाता.

सविता को भी तुलसीराम के मुंह से अपनी तारीफ सुनना अच्छा लगता था. वह पति की मौजूदगी में जब कभी भी उसे चायपानी देने आती, मौका देख कर वह उस के हाथों को छू लेता. इस का सविता ने जब विरोध नहीं किया तो तुलसीराम की हिम्मत बढ़ती चली गई.

धीरेधीरे उस की सविता से होने वाली बातों का दायरा भी बढऩे लगा. सविता का भी तुलसीराम की तरफ झुकाव होने लगा था. तुलसीराम को पता था कि सविता अपने पति से संतुष्ट नहीं है. कहते हैं कि जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही आती है.

आखिर एक दिन तुलसीराम को सविता के सामने अपने दिल की बात कहने का मौका मिल गया और उस के बाद दोनों के बीच वह रिश्ता बन गया, जो दुनिया की नजरों में अनैतिक कहलाता है. दोनों ने इस रास्ते पर कदम बढ़ा तो दिए, लेकिन सविता ने इस बात पर गौर नहीं किया कि वह अपने पति के साथ कितना बड़ा विश्वासघात कर रही है.

जिस्म से जिस्म का रिश्ता कायम हो जाने के बाद सविता और तुलसीराम उसे बारबार बिना किसी हिचकिचाहट के दोहराने लगे. सविता का पति जब भी गांव से बाहर जाने के लिए निकलता, तभी सविता तुलसीराम को काल कर अपने पास बुला लेती थी.

अनैतिक संबंधों को कोई लाख छिपाने की कोशिश करे, एक न एक दिन उस की असलियत सब के सामने आ ही जाती है. एक दिन ऐसा ही हुआ. सविता का पति पुन्नूलाल शहर जाने के लिए घर से जैसे ही निकला, वैसे ही सविता ने अपने प्रेमी तुलसीराम को फोन कर दिया.

अवैध संबंधों का सच आया सामने

सविता जानती थी कि शहर से घर का सामान लेने के लिए गया पति शाम तक ही लौटेगा, इस दौरान वह गबरू जवान प्रेमी के साथ मौजमस्ती कर लेगी.

सविता की काल आते ही तुलसीराम बाइक से सविता के टपरेनुमा घर पर पहुंच गया. उस ने आते ही सविता के गले में अपनी बाहों का हार डाल दिया, तभी सविता इठलाते हुए बोली, ”अरे, यह क्या कर रहे हो, थोड़ी तसल्ली तो रखो.’’

”कुआं जब सामने हो तो प्यासे व्यक्ति को कतई धैर्य नहीं होता है,’’ इतना कहते हुए तुलसीराम ने सविता का गाल चूम लिया.

”तुम्हारी इन नशीली बातों ने ही तो मुझे दीवाना बना रखा है. न दिन को चैन मिलता है और न रात को. सच कहूं जब मैं अपने पति के साथ होती हूं तो सिर्फ तुम्हारा ही चेहरा मेरे सामने होता है,’’ सविता ने भी इतना कह कर तुलसी के गालों को चूम लिया.

तुलसीराम से भी रहा नहीं गया. वह सविता को बाहों में उठा कर चारपाई पर ले गया. इस से पहले कि वे दोनों कुछ कर पाते, दरवाजा खटखटाने की आवाज आई. इस आवाज को सुनते ही दोनों के दिमाग से वासना का बुखार उतर गया. सविता ने जल्दी से अपने अस्तव्यस्त कपड़ों को ठीक किया और दरवाजा खोलने भागी.

जैसे ही उस ने दरवाजा खोला, सामने पति को देख कर उस के चेहरे का रंग उड़ गया, ”तुम तो घर से शहर से सौदा लाने के लिए निकले थे, फिर इतनी जल्दी कैसे लौट आए?’’ सविता हकलाते हुए बोली.

”क्यों? क्या मुझे अब अपने घर आने के लिए भी तुम से परमिशन लेनी पड़ेगी? तुम दरवाजे पर ही खड़ी रहोगी या मुझे भीतर भी आने दोगी,’’ कहते हुए पुन्नूलाल ने सविता को एक तरफ किया और जैसे ही वह भीतर घुसा तो सामने तुलसीराम को देख कर उस का माथा ठनका.

”अरे, आप कब आए?’’ तुलसीराम ने पूछा तो पुन्नूलाल ने कहा, ”बस, अभीअभी आया हूं.’’

सविता के हावभाव पुन्नूलाल को कुछ अजीब से लगे, उस ने सविता की तरफ देखा, वह बुरी तरह से घबरा रही थी. उस के बाल बिखरे हुए थे. माथे की बिंदिया उस के हाथ पर चिपकी हुई थी.

यह सब देख कर पुन्नूलाल को शक होना लाजिमी था. डर के मारे तुलसीराम भी उस से ठीक से नजरें नहीं मिला पा रहा था. ठंड के मौसम में भी उस के माथे पर पसीना छलक रहा था. पुन्नूलाल तुलसीराम से कुछ कहता, उस से पहले ही वह अपनी बाइक पर सवार हो कर वहां से भाग गया.

उस के जाते ही पुन्नूलाल ने सविता से पूछा, ”तुलसीराम तुम्हारे पास क्यों आया था और तुम दोनों दरवाजा बंद कर क्या गुल खिला रहे थे?’’

”वह तो तुम से मिलने आया था और कुंडी इसलिए लगाई थी कि आज पड़ोसी की बिल्ली बहुत परेशान कर रही थी.’’ असहज होते हुए सविता बोली.

”लेकिन मेरे अचानक आ जाने से तुम दोनों की घबराहट क्यों बढ़ गई थी?’’

”अब मैं क्या जानूं, यह तो तुम्हें ही पता होगा.’’ सविता ने कहा तो पुन्नूलाल तिलमिला कर रह गया. उस के मन में पत्नी को ले कर संदेह पैदा हो गया था.

पुन्नूलाल ने कड़ा रुख अख्तियार करते हुए पति पर निगाह रखनी शुरू कर दी और हिदायत दे दी कि तुलसीराम से वह आइंदा से मेलमिलाप न करे. पति की सख्ती के बावजूद सविता मौका मिलते ही तुलसीराम से मिलती रहती थी.

सविता और उस के प्रेमी को चोरीछिपे मिलना अच्छा नहीं लगता था. उधर तुलसीराम चाहता था कि सविता जीवन भर उस के साथ रहे, लेकिन सविता के लिए यह संभव नहीं था.

सविता क्यों बनी प्रेमी की कातिल

वैसे भी जब से पुन्नूलाल और गांव वालों को सविता और तुलसीराम प्रजापति के अवैध संबंधों का पता लगा था, तब से सविता घर टूटने के डर से तुलसीराम से छुटकारा पाना चाह रही थी, लेकिन समझाने के बावजूद तुलसीराम उस का पीछा नहीं छोड़ रहा था. तब अंत में सविता ने अपने छोटे भाई हल्के आदिवासी के साथ मिल कर अपने प्रेमी तुलसीराम को मौत के घाट उतारने की योजना बना डाली.

अपनी योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए 8 जनवरी, 2024 को सविता अपने मायके साईंखेडा चली गई, जिस से किसी को उस पर शक न हो. वहां से वह 11 जनवरी की दोपहर अपनी ससुराल पिडरुआ वापस लौट आई. उसी दिन शाम के वक्त उस ने तुलसीराम को फोन करके मिलने के लिए मोतियाहार के जंगल में बुला लिया.

अपनी प्रेमिका के बुलावे पर उस की योजना से अनजान तुलसीराम खुशी खुशी मोतियाहार के जंगल में पहुंचा. तभी मौका मिलते ही सविता ने अपने मायके से साथ लाए चाकू का पूरी ताकत के साथ तुलसीराम के गले पर वार कर दिया.

अपनी जान बचाने के लिए खून से लथपथ तुलसीराम ने वहां से बच कर भाग निकलने की कोशिश की तो सविता ने चाकू उस के पेट में घोंप दिया. पेट में चाकू घोंपे जाने से उस की आंतें तक बाहर निकल आईं. कुछ देर छटपटाने के बाद ही उस के शरीर में हलचल बंद हो गई.

इस के बाद सविता के भाई हल्के आदिवासी ने तुलसीराम की पहचान मिटाने के लिए उस के सिर को पत्थर से बुरी तरह से कुचल दिया. फिर सविता ने अपने प्रेमी की नाक के पास अपनी हथेली ले जा कर चैक किया कि कहीं वह जिंदा तो नहीं है.

दोनों को पूरी तरह तसल्ली हो गई कि तुलसीराम मर चुका है, तब उन्होंने तुलसीराम के सारे कपड़े उतार कर उस के कपड़े, जूते एक थैले में रख कर तालाब में फेंक दिए. लाश को ठिकाने लगाने के लिए सविता और उस का भाई हल्के तुलसी की लाश को कंधे पर रख कर हरा वाले तालाब के करीब ले गए. वहां बोरी में पत्थर भर कर रस्सी को उस की कमर में बांध कर शव को तालाब में फेंक दिया.

नग्नावस्था में मिली थी तुलसी की लाश

12 जनवरी, 2024 की सुबह उजाला फैला तो पिडरुआ गांव के लोगों ने तालाब में युवक की लाश तैरती देखी. थोड़ी देर में वहां लोगों की भीड़ जुट गई. भीड़ में से किसी ने तालाब में लाश पड़ी होने की सूचना बहरोल थाने के एसएचओ सेवनराज पिल्लई को दी.

सूचना मिलते ही एसएचओ कुछ पुलिसकर्मियों को ले कर मौके पर पहुंच गए. लाश तालाब से बाहर निकलवाने के बाद उन्होंने उस की जांच की. उस की शिनाख्त पिडरुआ निवासी तुलसीराम प्रजापति के रूप में की.

वहीं पर पुलिस को यह भी पता चला कि तुलसीराम के पिछले डेढ़ साल से गांव की शादीशुदा महिला सविता आदिवासी से अवैध संबंध थे. इसी बात को ले कर पतिपत्नी में तकरार होती रहती थी.

लेकिन तुलसीराम की हत्या इस तरह गोद कर क्यों की गई, यह बात पुलिस और लोगों को अचंभे में डाल रही थी. मामला गंभीर था. एसएचओ ने घटना की सूचना एसडीओपी (बंडा) शिखा सोनी को भी दे दी थी. वह भी मौके पर आ गईं.

इस के बाद उन्होंने भी लाश का निरीक्षण कर एसएचओ को सारी काररवाई कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के निर्देश दिए. एसएचओ पिल्लई ने सारी काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. फिर थाने लौट कर हत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी.

एसडीओपी शिखा सोनी ने इस केस को सुलझाने के लिए एक पुलिस टीम गठित की. टीम में बहरोल थाने के एसएचओ सेवनराज पिल्लई, बरायथा थाने के एसएचओ मकसूद खान, एएसआई नाथूराम दोहरे, हैडकांस्टेबल जयपाल सिंह, तूफान सिंह, वीरेंद्र कुर्मी, कांस्टेबल देवेंद्र रैकवार, नीरज पटेल, अमित शुक्ला, सौरभ रैकवार, महिला कांस्टेबल प्राची त्रिपाठी आदि को शामिल किया गया.

चूंकि पुलिस को सविता आदिवासी और मृतक की लव स्टोरी की जानकारी पहले ही मिल चुकी थी, इसलिए पुलिस टीम ने गांव के अन्य लोगों से जानकारी जुटाने के बाद सविता आदिवासी को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया.

savita-and-halke-adiwasi-in-police-custody

सविता से तुलसीराम की हत्या के बारे में जब सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने पुलिस को गुमराह करने की भरसक कोशिश की, लेकिन एसएचओ सेवनराज पिल्लई के आगे उस की एक न चली और उसे सच बताना ही पड़ा.

सविता के खुलासे के बाद पुलिस ने सविता के भाई हल्के आदिवासी को भी साईंखेड़ा गांव से गिरफ्तार कर लिया. उस ने भी अपना जुर्म कुबूल कर लिया सविता और उस के भाई हल्के आदिवसी से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने दोनों अभियुक्तों को कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

सविता और उस के भाई हल्के ने सोचा था कि तुलसीराम को मौत के घाट उतार देने से बदनामी से छुटकारा और बसा बसाया घर टूटने से बच जाएगा, लेकिन पुलिस ने उन के मंसूबों पर पानी फेर कर उन्हें जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

तुलसीराम की हत्या कर के सविता और उस का भाई हल्के आदिवासी जेल चले गए. सविता ने अपनी आपराधिक योजना में भाई को भी शामिल कर के अपने साथ भाई का भी घर बरबाद कर दिया.

‘बूगी वूगी’ शो की विनर फंसी खुद के बुने जाल में

अय्याशी में डबल मर्डर : होटल मालिक और गर्लफ्रेंड की हत्या

सोने की चेन ने बनाया कातिल

‘बूगी वूगी’ शो की विनर फंसी खुद के बुने जाल में – भाग 3

बलवंत के अलग होते ही मिली उर्फ एंजल राय पूरी तरह से आजाद हो गई. वह इंदौर के बड़े बड़े मौल में जाती और वहां बड़े घरों के लड़कों को फांस कर उन्हें खुश करती. बदले में उन से मोटी रकम ऐंठती. इस तरह वह हाईप्रोफाइल कालगर्ल बन गई. धीरेधीरे तमाम लड़के उस के परमानेंट ग्राहक बन गए, जिस से अब उसे मौल के भी चक्कर नहीं लगाने पड़ते थे.

लेकिन छोटी ग्वालटोली में जहां वह रहती थी, वहां उस के ग्राहकों को आनेजाने में असुविधा होती थी, इसलिए उस ने सुखलिया के वीड़ानगर, प्राइम सिटी में एक बढि़या फ्लैट किराए पर ले लिया. अब वह अपने ग्राहकों को अय्याशी के लिए इसी फ्लैट पर बुलाने लगी.

अकेली औरत पर लोग वैसे भी तरहतरह की शंकाएं करते हैं. अगर उस के यहां आनेजाने वालों का तांता लगा हो तो आसपास वालों को अंगुली उठाते देर नहीं लगती. यह बात मिली को पता थी, इसलिए उसे एक ऐसे साथी की जरूरत थी, जो उस के साथ रह सके. उस ने तलाश की तो जल्दी ही उसे एक ऐसा साथी मिल गया. नीमच से नौकरी की तलाश में इंदौर आए नंदकिशोर से उस की मुलाकात हुई तो उस ने उसे अपने साथ रख लिया. इस तरह उसे एक साथी मिल गया.

इस के बाद मिली ने इंदौर के अरबिट मौल में चलने वाले पब में डांसर की नौकरी कर ली. वहां से उसे वेतन तो मिलता ही था, ग्राहक भी आसानी से मिल जाते थे. सतीश ततवादी से भी उस की मुलाकात इसी पब में हुई थी. सतीश इस पब में अक्सर शराब पीने आता था.

मिली के अनुसार सतीश शराब का ही नहीं, शबाब का भी शौकीन था, इसलिए उस की नजरें मिली पर जम गई थीं. मिली को ऐसे लोगों की जरूरत ही रहती थी, इसलिए उस ने उस की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया. इस के बाद सतीश अकसर मिली के फ्लैट पर जाने लगा, जहां वह मोटी रकम खर्च कर के शराब और शबाब का आनंद लेने लगा.

मूलरूप से जबलपुर के रहने वाले सतीश ततवादी एमबीए कर के नौकरी की तलाश में इंदौर आया तो वहां उसे सैटिसफैक्शन फर्नीचर कंपनी में सुपरवाइजर की नौकरी मिल गई थी. सूझबूझ और मेहनत से काम करने की बदौलत सतीश को जल्दी ही ठीकठाक वेतन तो मिलने ही लगा था, कंपनी ने तमाम सुविधाएं भी दे दी थीं.

सतीश को ठीकइाक वेतन मिलने लगा तो सतीश ने इंदौर की सिंगापुर सुपरसिटी जैसी पौश कालोनी में घर खरीद लिया और पूरे परिवार के साथ उसी में रहने लगा. मधुभाषी और मिलनसार होने की वजह से सतीश जल्दी ही मालिकों का ही नहीं, साथ काम करने वाले कर्मचारियों का भी चहेता बन गया था.

सतीश मिली के रूपजाल और अदाओं में कुछ इस तरह उलझा कि अक्सर शाम को उस के फ्लैट पर जाने लगा. यह बात मिली के साथ रहने वाले नंदकिशोर को अच्छी नहीं लगती थी, क्योंकि मिली अब उसे सोने का अंडा देने वाली मुर्गी नजर आ रही थी. वह उस से शादी करना चाहता था. यही वजह थी कि सतीश अब उसे फूटी आंख नहीं सुहाता था. इसलिए वह उस से छुटकारा पाने के उपाय सोचने लगा.

दूसरी ओर मिली को भी नंदकिशोर की सच्चाई का पता चल गया था. इसलिए वह उस से छुटकारा पाना चाहती थी. मिली को कहीं से पता चल गया था कि नंदकिशोर शादीशुदा ही नहीं है, बल्कि 3 बच्चों का बाप भी है. भला ऐसे आदमी से वह कैसे शादी करती. लेकिन उस से पीछा छुड़ाना मिली के लिए इतना आसान भी नहीं था, क्योंकि वह उस की सारी पोलपट्टी जानता था.

नंदकिशोर को सतीश से छुटकारा पाने का कोई उपाय नहीं सूझा तो उस ने उस की हत्या का इरादा बना लिया. लेकिन यह काम मिली की मदद के बिना नहीं हो सकता था. इसलिए उस ने अपने मन की बात मिली से कही. इस अपराध  में नंदकिशोर का साथ देने के लिए मिली तैयार हो गई, क्योंकि वह नंदकिशोर से छुटकारा पाना चाहती थी.

उस का सोचना था कि सतीश की हत्या के आरोप में नंदकिशोर जेल चला जाएगा तो उसे अपने आप नंदकिशोर से छुटकारा मिल जाएगा. यही सोच कर उस ने नंदकिशोर के साथ मिल कर सतीश की हत्या की योजना बना डाली.

योजना के अनुसार, 20 अगस्त, 2014 को मिली ने सतीश को फोन कर के अपने घर बुला लिया. सतीश को ऐसे मौके की हमेशा तलाश रहती थी, इसलिए मिली की ओर से दावत मिलते ही वह शराब की बोतल और खानेपीने का सामान ले कर घर में मीटिंग की बात बता कर मिली के घर अय्याशी करने पहुंच गया.

नंदकिशोर को वह पहचानता ही था. मिली ने सतीश को उसे अपना भाई बता रखा था. सतीश के पहुंचते ही शराब की बोतल खुल गई और पीनापिलाना शुरू हो गया. सतीश को नशा चढ़ा तो उस के अंदर का शैतान जाग उठा. उस शैतान को शांत करने के लिए वह मिली से छेड़छाड़ करने लगा.

नंदकिशोर सतीश से वैसे ही नफरत करता था. उस दिन वह उसे खत्म करने की योजना बनाए बैठा था. इसलिए उस ने सतीश को दबोच लिया. योजना के अनुसार उस ने सतीश को ज्यादा शराब पिला कर नशे में धुत कर दिया था, इसलिए वह विरोध करने की स्थिति में भी नहीं था. उस ने पायजामे का नाड़ा सतीश के गले में लपेट कर कसना शुरू कर दिया.

नंदकिशोर सतीश का गला घोंट रहा था तो शातिर मिली अपनी योजना के अनुसार मोबाइल से उस की वीडियो रिकौर्डिंग कर रही थी. सतीश की मौत हो गई तो लाश को ठिकाने लगाने के लिए नंदकिशोर ने उसे कंबल में लेपट कर रस्सी से बांध दिया. इस के बाद लाश को उठा कर नीचे लाने के बजाय उस ने उसे सीढि़यों के पास रख कर पैर से लुढ़का दिया.

मिली ने नंदकिशोर की इस हरकत की भी वीडियो रिकौर्डिंग कर ली थी. मिली ने यह वीडियो रिकौर्डिंग इसलिए की थी कि वह इसे पुलिस को दिखा कर नंदकिशोर को जेल भिजवा देगी.

इस के बाद उन्होंने सतीश की लाश को उसी की वैगनआर कार में रखा और धर्मपुरी (सांवरे क्षेत्र) उज्जैन होते हुए आगे बढ़ गए. लाश उन्होंने नागदा जंक्शन के थाना बिरमाग्राम के गांव डाबरी में एक पुलिया के पास फेंक दी थी. एक टोल नाके पर टैक्स देने की वजह से उन की कार का नंबर नोट हो गया था. इस के बाद उन्होंने कार की दोनों नंबर प्लेटें तोड़ कर फेंक दी थीं.

बिना नंबर की कार से वे सड़क से नहीं जा सकते थे. इसलिए वे जंगल के रास्ते से नीमच पहुंचे. सतीश का पर्स उन्होंने पहले ही निकाल लिया था. पैसे नंदकिशोर ने अपनी जेब में रख लिए. एटीएम तथा पेनकार्ड इंद्रानगर स्थित अपने घर में रख दिए. बाकी के कागज, खाली पर्स, घड़ी और मोबाइल फोन रास्ते में एक नदी में फेंक दिए.

रिमांड के दौरान पुलिस ने नीमच स्थित नंदकिशोर के घर से सतीश का एटीएम और पेनकार्ड बरामद कर लिया था. मिली ने सतीश की हत्या का जो वीडियो रिकौर्डिंग की थी, सुबूत के लिए पुलिस ने उस की सीडी बनवा ली थी. दूसरे को फंसाने के लिए अपराध में साथ देने वाली मिली को शायद यह पता नहीं था कि अपराध में साथ देने वाला भी अपराधी माना जाता है.

पुलिससिया काररवाई पर नजर रखने के लिए नंदकिशोर और मिली रोज अखबार पढ़ते थे. धीरेधीरे उन के पैसे खत्म हो गए तो वे इंदौर पैसे लेने जा रहे थे, तभी पकड़े गए. रिमांड अवधि खत्म होने पर दोनों को दोबारा अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

सतीश के घर वाले उस की मौत से दुखी तो हैं ही, जिस तरह से वह मारा गया, उस से शर्मिंदा भी हैं. सभी अंदर ही अंदर घुट रहे हैं कि आसपड़ोस वालों को कैसे मुंह दिखाएं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

‘बूगी वूगी’ शो की विनर फंसी खुद के बुने जाल में – भाग 2

नागदा पुलिस की जांच में यह बात सामने आई कि इंदौर से धर्मपुरी, उज्जैन और नीमच हो कर नागदा जंक्शन तक कई टोल नाके पड़ते थे. इन नाकों पर सतीश की वैगनआर का नंबर तो दर्ज था, पर फुटेज साफ नहीं थी. इस इलाके में काफी अफीम पैदा होती है, इसलिए यहां स्मग्लर सक्रिय रहते हैं. ये लोग टोल नाके से बचने के लिए जंगल के रास्तों से निकल जाते हैं. अगर सतीश की कार ऐसे किसी रास्ते से गई होती तो टोल नाके पर उस का नंबर दर्ज नहीं होता.

पुलिस की सब से बड़ी परेशानी यह थी कि उसे सतीश की वैगनआर नहीं मिल रही थी. जबकि इस बात की पूरी संभावना थी कि हत्या के बाद हत्यारों ने उसे कहीं न कहीं जरूर छोड़ा होगा. दूसरे सतीश की हत्या का कारण भी पुलिस की समझ में नहीं आ रहा था.

29 अगस्त को गणेश चतुर्थी थी. त्योहार की वजह से उस दिन इंदौर के बाजारों में कुछ ज्यादा ही भीड़भाड़ थी. त्योहार की ही वजह से पुलिस ने जगहजगह चैकिंग नाके लगा रखे थे. एक नाके से एक वैगनआर गुजरी तो पुलिस ने उसे चैकिंग के लिए रोक लिया. कार में 30 साल के आसपास का एक युवक और 24-25 साल की एक युवती बैठी थी. पुलिस देख कर दोनों सकपका गए. जांच में पता चला कि चालक के पास ड्राइविंग लाइसेंस नहीं है. ऊपर से कार की आगे और पीछे की दोनों नबर प्लेटें भी गायब थीं.

पूछताछ में जब दोनों ठीक से जवाब नहीं दे सके तो उन्हें थाने ले आया गया. थाने ला कर दोनों से पूछताछ की गई तो युवक ने अपना नाम नंदकिशोर और युवती ने अपना नाम मिली उर्फ एंजल राय बताया. वैगनआर कार के गायब होने की जानकारी सभी थानों की पुलिस को थी, इसलिए बिना नंबर की वैगनआर पर सवार नंदकिशोर और मिली से थाना लसूडि़या के थानाप्रभारी कुंवर नरेंद्र सिंह गहरवार ने जब उस कार के बारे में पूछा तो उन्होंने बिना किसी हीलाहवाली के बता दिया कि यह कार सतीश ततवादी की है, जिस की हत्या हो चुकी है.

इस के बाद कुंवर नरेंद्र सिंह गहरवार ने सतीश ततवादी की वैगनआर मिलने की सूचना थाना नागदा पुलिस को दी तो थाना नागदा की एक पुलिस टीम थाना लसूडि़या पहुंची और नंदकिशोर तथा मिली उर्फ एंजल राय को हिरासत में ले कर थाना नागदा ले गई.

थाना नागदा में पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति में नंदकिशोर और मिली से सतीश ततवादी की हत्या के बारे में पूछताछ शुरू हुई तो नंदकिशोर ने तो पुलिस को बरगलाने की कोशिश की, लेकिन मिली ने मुसकराते हुए अपना अपराध स्वीकार कर के सतीश की हत्या की पूरी कहानी सुना दी. मिली द्वारा सुनाई गई सतीश ततवादी की हत्या की कहानी कुछ इस प्रकार थी.

मध्य प्रदेश के बैतूल की रहने वाली मिली के 11 साल की होते होते उस के मातापिता एकएक कर के गुजर गए थे. मातापिता की मौत के बाद उस का ऐसा कोई रिश्तेदार भी नहीं था, जो उसे सहारा देता. इसलिए उसे किसी ने अनाथाश्रम पहुंचा दिया, वहां से वह भोपाल के चाइल्ड केयर सेंटर आ गई.

वहीं से मिली ने पढ़ाई की और डांस सीखा. डांस में उस ने अच्छी तरह महारत हासिल कर ली तो उस ने इसे ही रोजीरोटी का जरिया बनाना चाहा. वह टीवी देखती ही रहती थी. उन दिनों सोनी चैनल पर डांस का रियलटी शो बूगीवूगी आता था. डांस सीखने वालों के बीच यह कार्यक्रम काफी लोकप्रिय था. इस के अलावा अन्य लोग भी इस कार्यक्रम में काफी रुचि लेते थे. खास कर बच्चे इसे बहुत पसंद करते थे. मिली भी डांस सीख रही थी. इसलिए वह भी इस कार्यक्रम को देखती थी.

मिली खूबसूरत और आकर्षक तो थी ही, चंचल और तेजतर्रार भी थी. उस की भी इच्छा बूगीवूगी में भाग लेने की होती थी. यही वजह थी कि उस ने अपने नृत्य के कुछ चित्रों के साथ फार्म भर कर बूगीवूगी में भेज दिया. वह सुंदर भी थी और डांस में पारंगत भी, बूगीबूगी में उस का चयन हो गया. अब तक मिली 18 साल की हो चुकी थी.

वह मुंबई पहुंच गई. बूगीवूगी में उस ने अपना ऐसा जौहर दिखाया कि उस साल की वह ‘विनर’ घोषित की गई.

मिली मुंबई में ही रह कर काम तलाश करने लगी. लेकिन उसे कहीं चांस नहीं मिला. धीरेधीरे पैसे खत्म हो गए और कहीं काम नहीं मिला तो वह इंदौर वापस आ गई. बूगीबूगी का विनर होने पर उसे जो पैसे इनाम में मिले थे, वह मुंबई में ही काम की तलाश में खर्च हो गए थे. अब वह बच्ची भी नहीं रही थी कि चाइल्ड केयर सेंटर में रह लेती. इसलिए इंदौर आ कर सब से पहले उस ने ग्वालटोली मोहल्ले में किराए पर मकान ले कर रहने की व्यवस्था की. इस के बाद गुजरबसर के लिए वह बच्चों तथा लड़कियों को डांस सिखाने लगी. इस काम से उस की ठीकठाक कमाई होने लगी, जिस से वह ठाठ से रहने लगी.

मिली अब तक जवान हो चुकी थी. लेकिन उस का कोई ऐसा अपना नहीं था, जिस से वह अपना सुखदुख बांट सकती. अकेली होने की वजह से कभीकभी उसे घुटन सी होने लगती थी. अब उसे एक ऐसे साथी की जरूरत महसूस हो रही थी, जो उस की भावनाओं को समझे और उस की हर तरह से मदद भी करे. उस की यह तलाश जल्दी ही पूरी हुई. उसे साथी के रूप में बलवंत सिंह तोमर मिल गया. बलवंत अच्छा आदमी था. इसलिए मिली ने उस से प्यार ही नहीं किया, बल्कि उसे जीवनसाथी भी बना लिया.

लेकिन ज्यादा दिनों तक बलवंत सिंह तोमर की मिली से निभ नहीं पाई. इस की वजह यह थी कि मिली की महत्वाकांक्षाएं बहुत ऊंची थीं. डांस कार्यक्रम में भाग लेने की वजह से उस की सोच तो बदल ही गई थी, रहनसहन भी बदल गया था. इसलिए उस के खर्च भी अनापशनाप हो गए थे, जो अब डांस सिखाने से पूरे नहीं हो रहे थे. ऐसे में पैसे कमाने के उस ने अन्य रास्ते खोज लिए. निश्चित था, वे रास्ते ठीक नहीं रहे होंगे, इसलिए बलवंत ने उस से किनारा कर लिया.

‘बूगी वूगी’ शो की विनर फंसी खुद के बुने जाल में – भाग 1

इंदौर के निपानिया स्थित ‘सैटिसफैक्शन फर्नीचर’ बहुत बड़ा फर्नीचर शोरूम है. इंदौर के ही लोटस विला, सुपर सिटी निवासी सतीश ततवादी इसी फर्नीचर शोरूम में बतौर प्रोडक्शन मैनेजर तैनात थे, मृदुभाषी और मिलनसार स्वभाव का होने की वजह से उन के साथ के कर्मचारी उन की बड़ी इज्जत करते थे. उन के परिवार में मातापिता और 2 भाइयों के अलावा पत्नी श्रेया और 14 साल की बेटी ईशा को मिलाकर 7 सदस्य थे. उन का पूरा परिवार एक साथ रहता था.

20 अगस्त को सतीश ततवादी घर पर लंच कर के अपनी कार से शोरूम पर जाने के लिए निकले. जातेजाते उन्होंने पत्नी श्रेया से कहा, ‘‘आज फैक्ट्री में एक मीटिंग है, लौटने में थोड़ी देर हो जाएगी. हो सकता है 10, साढ़े 10 बज जाएं.’’

रात को साढ़े 10 बजे तक सतीश घर नहीं लौटे तो श्रेया ने फोन किया, लेकिन फोन पति के बजाय किसी और ने रिसीव किया. श्रेया की आवाज सुन कर उस ने कहा, ‘‘मैं साहब का पीए मुकाती बोल रहा हूं. साहब अभी बिजी हैं. हम लोग इस वक्त उज्जैन में हैं, बाद में बात करना.’’

श्रेया की बात सुने बिना ही दूसरी ओर से फोन काट दिया गया. यह बात श्रेया को इसलिए अजीब लगी, क्योंकि सतीश का कोई पीए नहीं था. उन्होंने दोबारा फोन मिलाया तो वह स्विच्ड औफ मिला. इस के बाद घर वालों ने दर्जनों बार सतीश का नंबर मिलाया, पर वह लगातार स्विच्ड औफ जाता रहा.

इस से परिवार के सभी लोगों के मन में तरहतरह की शंकाए सिर उठाने लगीं. वजह यह कि न तो सतीश ने उज्जैन जाने के बारे में कुछ बताया था और न कभी वह अपना मोबाइल बंद रखते थे.

रात भर फोन मिलाते रहने के बावजूद सतीश से किसी की बात नहीं हुई. ततवादी परिवार की वह रात आंखोंआंखों में कटी. जैसेतैसे रात गुजरी. सुबह होते ही सतीश के पिता रामकृष्ण ततवादी अपने दोनों बेटों संतोष और संजय को साथ ले कर अपने क्षेत्र के थाना लसूडि़या जा पहुंचे. वहां उन्होंने थानाप्रभारी कुंवर नरेंद्र सिंह गहरवार को सारी बात बता कर सतीश की गुमशुदगी दर्ज करा दी. उन्होंने रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया था कि सतीश फैक्ट्री में होने वाली किसी मीटिंग में शामिल होने की बात कह कर घर से निकले थे.

थानाप्रभारी श्री गहरवार ने उन लोगों को यह आश्वासन दे कर घर लौटा दिया कि वह इस मामले की जांच पूरी तत्परता से करेंगे. श्री गहरवार छानबीन के लिए अपनी टीम के साथ फर्नीचर की उस फैक्ट्री में गए. वहां के कर्मचारियों से उन्हें पता चला कि वहां ऐसी कोई मीटिंग थी ही नहीं, साथ ही यह भी कि उस दिन सतीश वहां आए ही नहीं थे. इस का मतलब सतीश झूठ बोल कर घर से निकले थे और उन के साथ कोई घटना घट गई थी.

थानाप्रभारी कुंवर नरेंद्र सिंह गहरवार ने थाने लौट कर सतीश ततवादी के हुलिए सहित यह सूचना जिले के सभी थानों को भेज दी.

21 अगस्त, 2014 की सुबह थाना बिरलाग्राम के गांव डाबरी का एक आदमी जंगल की ओर गया तो उस ने पुलिया के पास एक लाश पड़ी देखी. लाश कंबल में लिपटी हुई थी. वह व्यक्ति दौड़ादौड़ा थाना बिरलाग्राम गया और यह बात थानाप्रभारी नरेंद्र यादव को बताई.

नरेंद्र यादव अपनी टीम के साथ जिस समय घटनास्थल पर पहुंचे, उस समय साढ़े 11 बजे थे. सूचना सही थी. मृतक 40-41 साल का हट्टाकट्टा व्यक्ति था. पुलिस ने लाश के आसपास का सारा इलाका छान मारा, लेकिन कहीं कुछ नहीं मिला. पुलिस ने लाश का पंचनामा बना कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

मृतक के शव से पुलिस को ऐसी कोई चीज नहीं मिली थी, जिस से उस की पहचान हो पाती. अलबत्ता पहचान के लिए पुलिस ने लाश के फोटो जरूर करा लिए थे. इस के बाद थानाप्रभारी नरेंद्र यादव ने अन्य थानों में पहचान के लिए लाश के फोटो वाट्सएप पर भिजवा दिए.

थाना लसूडि़या के थानाप्रभारी नरेंद्र सिंह गहरवार ने वाट्सएप पर आया लाश का फोटो देखा तो सतीश के भाई संजय और संतोष को थाने बुला लिया. दोनों भाइयों ने थानाप्रभारी के मोबाइल पर आया लाश का फोटो देखा तो चीखचीख कर रोने लगे. वह उन के भाई सतीश की लाश का फोटो था. थानाप्रभारी ने उन्हें बताया कि वह फोटो जिला नागदा जंक्शन के थाना बिरलाग्राम से आया है. अत: लाश की शिनाख्त के लिए उन्हें वहीं जाना होगा.

सतीश के पिता रामकृष्ण अपने दोनों बेटों संजय और संतोष को साथ ले कर किराए की कार से थाना बिरलाग्राम जा पहुंचे. वहां से वह पुलिस के साथ नागदा जंक्शन गए. तब तक लाश का पोस्टमार्टम हो चुका था. बापबेटों ने शव को पहचान लिया. लाश सतीश की ही थी. लिखापढ़ी के बाद लाश रामकृष्ण ततवादी को सौंप दी गई. इस के बाद सतीश की हत्या का केस थाना बिरलाग्राम में दर्ज हो गया था.

सतीश के शव को इंदौर लाया गया तो उस के घर वालों का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था. पूरे सेक्टर में सन्नाटा छाया था. सतीश की पत्नी श्रेया और बेटी ईशा अर्द्धबेहोशी के आलम में थीं. बहरहाल, उसी दिन सतीश का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

सतीश की हत्या की खबर मिलने के बाद थाना बिरलाग्राम और थाना लसूडि़या की पुलिस मिल कर जांचपड़ताल में लग गई. इस के लिए पुलिस ने सतीश के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवा ली थी. सतीश ने आखिरी बार जिस नंबर पर बात की थी, उस की लोकेशन इंदौर जिले के गांव छोटा धर्मपुरी, उज्जैन, नीमच और नागदा की आ रही थी. यानी घटना के दिन वह नंबर कई जगहों पर रहा था.

चूंकि सतीश अपनी वैगनआर कार से गए थे, इसलिए पुलिस ने टोल नाकों से फुटेज निकलवा कर चेक की. लेकिन रात के अंधेरे की वजह से फुटेज में कुछ भी साफ नजर नहीं आया.

सतीश की काल डिटेल्स में 2 आखिरी नंबर संदिग्ध थे. नागदा पुलिस ने साइबर क्राइम सेल उज्जैन से उन नंबरों की जांच कराई तो उन में एक नंबर छोटी ग्वालटोली इंदौर में रहने वाली मिली उर्फ एंजल राय का निकला. थाना लसूडि़या के थानाप्रभारी नरेंद्र सिंह गहरवार ने मिली उर्फ एंजल राय के पते पर छानबीन की तो वह लापता मिली. मतलब उस ने अपना ठिकाना बदल लिया था. नरेंद्र सिंह ने यह सूचना नागदा पुलिस को दे दी.

सोने की चेन ने बनाया कातिल – भाग 3

थानाप्रभारी शिवपाल सिंह पुलिस वालों के साथ वैवाहिक कार्यक्रमों में शामिल हो गए. पुलिस वाले भले ही बाराती बने थे, लेकिन वे वहां आए अन्य लोगों से अलग लग रहे थे. शायद इसीलिए एक आदमी ने अपनी स्थानीय भाषा में पूछा, ‘या कुण (तुम कौन हो)?’

थानाप्रभारी साथी पुलिस वालों को ले कर एक किनारे आ गए, जहां उन पर कोई ध्यान न दे सके. वह वहीं से हरि सिंह पर नजर रखे हुए थे. हरि सिंह लघुशंका के लिए बाहर आया तो शिवपाल सिंह ने उसे दबोच लिया. इस तरह पकड़े जाने से वह घबरा गया.

हरि सिंह शोर मचाता, उस के पहले ही थानाप्रभारी शिवपाल सिंह ने रिवाल्वर सटा कर कहा, ‘‘हम पुलिस वाले हैं. अगर तुम ने शोर मचाया तो तुरंत गोली चल जाएगी. उस के बाद क्या होगा, तुम जानते ही हो.’’

हरि सिंह सन्न रह गया. पुलिस ने उस की तलाशी ली तो अनिता का मोबाइल उस के पास से मिल गया. पुलिस उसे मोटरसाइकिल पर बीच में बिठा कर थाना ठीकरी ले आई.

रात होने की वजह से पुलिस का यह काम आसानी से हो गया था. इंदौर ला कर हरि सिंह को अदालत में पेश किया गया, जहां से पूछताछ और लूटा गया सामान तथा हथियार बरामद कराने के लिए उसे 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया.

थाने में की गई पूछताछ में हरि सिंह ने दोनों बहनों की हत्या और लूटपाट का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने उस सामान के बारे में भी बता दिया, जो वह शकुंतला के घर से लूट कर लाया था. इस के बाद थाना पलासिया पुलिस थाना ठीकरी पुलिस के साथ हरि सिंह के घर पहुंची, जहां उस के बेटे की शादी हो रही थी.

पुलिस ने जब उस के घर वालों और गांव वालों को उस के कारनामे बारे में बताया तो सब ने नफरत से उस की ओर से मुंह मोड़ लिया.

हरि सिंह ने दरवाजे के पीछे से एक झोला ला कर दिया, जिस में उस ने शकुंतला और अनिता के घर से चोरी किया गया सामान रख कर छिपा रखा था. सामान बरामद कराते समय हरि सिंह रो पड़ा. क्योंकि अनिता की जिस सोने की चेन को उस ने बेटे को पहनाने के लिए चुराई थी, वह उसे पहना नहीं सका. जिस शौक के लिए उस ने इतना बड़ा अपराध किया, वह पूरा नहीं हो सका.

पुलिस ने जब उस से उस हथियार के बारे में पूछा, जिस से उस ने दोनों बहनों की हत्या की थी तो उस ने बताया कि वह तो इंदौर में है.

इस तरह 6 दिन की मशक्कत के बाद पुलिस ने शकुंतला और अनिता के हत्यारे को गिरफ्तार कर लिया. हरि सिंह को इंदौर लाया गया तो उस ने बाणगंगा के एक मकान से वह रौड बरामद करा दी, जिस से उस ने दोनों बहनों की हत्या की थी. वहां हरि सिंह का एक और राज खुला. जिस मकान से उस ने रौड बरामद कराई थी, उस में एक महिला भी थी. हरि सिंह ने उसे अपनी दूसरी पत्नी बताया था.

हरि सिंह के बताए अनुसार, लगभग 15 साल पहले जब वह अपना गांव छोड़ कर रोजी रोजगार के लिए इंदौर आया था तो वहां वह एक कारखाने में काम करने लगा था. उसी कारखाने में वह औरत भी काम करती थी.

दोनों में जानपहचान हुई और फिर प्यार, उस के बाद दोनों ने शादी कर ली. शादी के बाद उस ने कारखाने की वह नौकरी छोड़ दी और वेल्डिंग की मशीन खरीद कर साइकिल से घूम घूम कर वेल्डिंग का काम करने लगा. इस काम से वह ठीक ठाक कमा लेता था.

Indore-double-murder-aropi-Hari-singh-2014

      हरि सिंह

किसी परिचित के माध्यम से पिछले साल हरि सिंह ने शकुंतला के यहां एक टीन शेड में वेल्डिंग का काम किया था. इसलिए दोनों बहनें उसे पहचानने लगी थीं. उस दिन यानी 1 मई को वह आवाज लगाते हुए बख्तावरनगर में घूम रहा था तो शकुंतला ने उसे कूलर के स्टैंड में वेल्डिंग के लिए बुला लिया था.

कूलर पहली मंजिल पर था. हरि सिंह वहां पहुंचा तो अनिता के गले में मोटी सी सोने की चैन देख कर उस की नीयत खराब हो गई. इस से उसे लगा कि इन के घर में काफी गहने होंगे. उसे यह तो पता ही था कि इस घर में मात्र 2 महिलाएं ही रहती हैं, इसलिए उसे लगा कि यहां वह आसानी से लूटपाट कर सकता है.

अपना रास्ता साफ करने के लिए उस ने पहले वेल्डिंग के दौरान करंट लगने की बात कह कर वहां खेल रही तीनों लड़कियों को हटा दिया. बच्चे चले गए तो अनिता के गहने छीनने के इरादे से उस ने उसे पकड़ना चाहा.

अनिता जवान थी और तेजतर्रार भी. हरि सिंह का इरादा भांप कर उस ने उस का मुंह नोच लिया. तब तक हरि सिंह ने उसे पकड़ लिया था. अनिता शोर न मचा सके, इस के लिए उस ने उस का मुंह दबा दिया. उसी बीच अनिता ने उस के बाल पकड़ कर खींचे तो वह तिलमिला उठा.

हरि सिंह को लगा कि अब मामला बिगड़ने वाला है तो उस ने साथ लाए लोहे के रौड से अनिता के सिर पर वार कर दिया. उसी एक वार में अनिता गिर कर बेहोश हो गई. इस के बाद हरि सिंह ने लगातार कई वार कर के अनिता को खत्म कर दिया.

उस समय शकुंतला भूतल पर कोई काम कर रही थी. खटरपटर होते सुन वह ऊपर पहुंची तो हरि सिंह दरवाजे की ओट में छिप गया. जैसे ही वह कमरे में घुसीं, उस ने उसी रौड से उन के ऊपर भी हमला कर दिया.

शकुंतला का भी खेल खत्म हो गया तो उस ने दोनों लाशों को घसीट कर बाथरूम में नीचे ऊपर रख दिया. इस के बाद उस ने जल्दी जल्दी अलमारियां बक्से वगैरह तोड़ कर जो हाथ लगा, उसे कब्जे में किया और अनिता का कीमती मोबाइल ले कर भाग निकला. फिर वही मोबाइल उस की गिरफ्तारी की वजह बना.

रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद उसे पुन: अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक वह जेल में ही था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित