रोक्सेन के चेहरे पर परेशानी के बादल एक बार फिर घिर आए थे. ऐसे ही बादल पिछले दिन शाम को भी घिरे थे. लेकिन डेरेन वाकर का फोन आ गया था, तो वे छंट गए थे. वाकर ने फोन कर के बता दिया था कि वह रात को घर नहीं आ पाएगा. स्टेसी भी उसी के साथ लौरी में रहेगी. वाकर ने स्टेसी से उस की बात भी करा दी थी. उस समय वह लौरी में लगा टीवी देख रही थी. वह काफी खुश नजर आ रही थी, इसलिए रोक्सेन निश्ंिचत हो गई थी.
अगला पूरा दिन गुजर गया और वाकर तथा स्टेसी नहीं आए, तो रोक्सेन एक बार फिर परेशान हो उठी. उस का धैर्य जवाब देने लगा था, क्योंकि वाकर फोन भी नहीं उठा रहा था. ऐसा किसी हादसे की सूरत में ही हो सकता था. वह हादसा कैसा हो सकता है, यह रोक्सेन की समझ में नहीं आ रहा था. रात हो गई और धैर्य ने भी जवाब दे दिया, तो हार कर उस ने पुलिस को फोन कर के अपने प्रेमी डेरेन वाकर और बेटी स्टेसी लारैंस के गायब होने की सूचना दे दी.
38 वर्षीय रोक्सेन तलाकशुदा 3 बच्चों की मां थी. बेटी एमा हेमंड 17 साल की, उस से छोटी स्टेसी लारैंस 9 साल की, तो बेटा रौबर्ट 4 साल का. लगभग 19 साल पहले उस की शादी कोरोनट पेंबर से हुई थी. शादी के शुरुआती दिन बहुत अच्छे बीते. रोक्सेन पति के साथ बहुत खुश थी. लेकिन बेटी स्टेसी के पैदा होने के 3 साल बाद अचानक उन के रिश्तों में कड़वाहट आ गई. इस की वजह थी उम्र के साथ रोक्सेन के मन में बढ़ती शारीरिक संबंध की इच्छा. जबकि शराब अधिक पीने और दिन भर मेहनत करने की वजह से कोरोनट की मर्दाना ताकत कम होती जा रही थी.
शुरूशुरू में तो रोक्सेन ऐसी नहीं थी, लेकिन बेटी के पैदा होने के बाद उस में न जाने क्या बदलाव आया कि उस की शारीरिक संबंध बनाने की इच्छा एकाएक बढ़ने लगी. जबकि दिन भर का थकामादा कोरोनट शाम को शराब पी कर बिस्तर पर पड़ते ही सो जाता था. कभीकभी तो उसे खाने का भी होश नहीं रहता था.कोरोनट को तो अच्छी नींद आती थी, लेकिन उस की बगल में लेटी रोक्सेन सारी रात शारीरिक सुख के लिए तड़पती रहती थी.
सुबह उठने पर रोक्सेन कोरोनट से शिकायत करती, ‘‘तुम्हें काम और शराब के अलावा भी कुछ दिखाई देता है या नहीं? पहले तो तुम ऐसे नहीं थे, कितना प्यार करते थे? एक भी रात मुझे चैन नहीं लेने देते थे. पूरीपूरी रात जगाए रखते थे. अब ऐसा क्या हो गया कि तुम मेरी ओर देखते तक नहीं. मैं खूबसूरत नहीं रही या तुम ने किसी और से दिल लगा लिया है?’’
‘‘कैसी बातें करती हो. अब तो तुम पहले से भी ज्यादा खूबसूरत लगती हो. प्यार भी मैं तुम से पहले की ही तरह करता हूं. लेकिन क्या करूं, परिवार बढ़ने से जिम्मेदारियां बढ़ गई हैं. इसलिए ज्यादा कमाई के लिए मेहनत ज्यादा करनी पड़ती है. यह सब मैं तुम लोगों को सुखी रखने के लिए ही तो कर रहा हूं.’’ कोरोनट ने रोक्सेन को समझाया.
‘‘भाड़ में जाए यह सुख. औरत को सिर्फ रोटीकपड़े से ही सुख नहीं मिलता, इस के अलावा भी उसे कुछ चाहिए. मैं सारी रात तड़पती रहती हूं और तुम मस्ती में सोए रहते हो. रोज नहीं, तो कभीकभार ही मेरी ओर देख लिया करो.’’ रोक्सेन ने कहा.
‘‘ठीक है, अब ध्यान रखूंगा.’’ कह कर कोरोनट ने किसी तरह पीछा छुड़ाया. लेकिन अपनी इस बात पर वह कभी खरा नहीं उतरा. उस का वही ढर्रा रहा. वह करता ही क्या. पूरे दिन की हाड़तोड़ मेहनत के बाद रात को उसे पत्नी को सुख देने का होश ही नहीं रहता. उस की मजबूरी भी थी. थका होने की वजह से मानसिक रूप से वह इस के लिए तैयार ही नहीं हो पाता था.
कभी कोशिश भी करता, तो उस के दिमाग में यह घूमता रहता कि वह किस तरह पत्नी और बेटी को सुख मुहैया करवाए, जिस की उन्हें जरूरत है. यही सोचने में वह भूल जाता कि उस की पत्नी रोक्सेन को इन चीजों के अलावा भी किसी चीज की जरूरत है. उस का सोचना था कि बेटी हो गई है, तो अब रोक्सेन को उस की नजदीकी की क्या जरूरत है. वह बेटी में ही व्यस्त रहती होगी, उसे उस का होश ही नहीं रहता होगा.
जबकि रोक्सेन की यही सब से अहम जरूरत बन गई थी. वह एक समय भूखी रह सकती थी, लेकिन पति के सान्निध्य के बिना नहीं रह सकती थी. इस की वजह यह थी कि इस इच्छा को दबाना शायद उस के वश में नहीं रह गया था, वरना वह जरूर दबा लेती.
खैर, किसी तरह वक्त गुजरता रहा. बेटी के पैदा होने के करीब 5 सालों बाद रोक्सेन एक बार फिर मां बनी. इस बार बेटा रौबर्ट पैदा हुआ. इस के बाद तो उस की इच्छा और ज्यादा होने लगी. हमेशा उस की देह में आग लगी रहती, जबकि कोरोनट में उस आग को बुझाने की ताकत नहीं रह गई थी.
पति की उपेक्षा से रोक्सेन की नजरें भटकने लगीं, जिस से उस के मन में खोट आ गया. अब वह जब भी घर से बाहर निकलती, उस की नजरें पराए पुरुषों पर ठहर जातीं. उन्हें वह हसरत भरी नजरों से तब तक ताकती रहती, जब तक वे आंखों से ओझल नहीं हो जाते. वह मर्दों को ताकती जरूर, लेकिन चाहत का इजहार करने की हिम्मत नहीं कर पाती. संकोचवश वह किसी को इशारा भी नहीं कर पाती थी.
वे लोग बदनसीब होते हैं, जिन्हें इंतजार का वाजिब फल नहीं मिलता. रोक्सेन उन में से नहीं थी. उस दिन शाम को वह मौल में शौपिंग करने गई, तो उस की हसरत पूरी हो गई. शौपिंग करने के बाद वह कैश काउंटर पर पेमेंट कर के गेट की ओर बढ़ रही थी, तभी गेट के पास खड़े एक युवक पर उस की नजरें जम गईं. इस की वजह यह थी कि वह युवक उसी को ताक रहा था.
रोक्सेन का दिल धड़का और पलकें अपने आप झपक उठीं. वह युवक भी उस से जरा भी कम स्मार्ट नहीं था. हां, उम्र में उस से कम जरूर था. इस के बावजूद रोक्सेन उस की नजरों में छा गई, तो वह भला क्यों पीछे रहती. उस ने उसे दिल की धड़कन बना लिया. अब कदमों के रुकने का सवाल ही नहीं था. रोक्सेन ने उस की ओर कदम बढ़ाए, तो युवक भी उस की ओर बढ़ने लगा.
दोनों आमनेसामने थे. मुसकराहट दोनों के होंठों पर थी. वे एकदूसरे की आंखों में अपनीअपनी तसवीरें देखते हुए चाहत तलाशने की कोशिश कर रहे थे. कुछ कहना भी चाह रहे थे, लेकिन होंठों से शब्द नहीं निकल रहे थे. बस कांप कर रह जा रहे थे. इसी कशमकश में आखिर युवक ने हिम्मत दिखाई, ‘‘मुझे डेरेन वाकर कहते हैं और आप.’’
‘‘रोक्सेन नाम है मेरा, लेकिन आप मुझे आप न कह कर तुम कहोगे, तो ज्यादा अच्छा लगेगा.’’ रोक्सेन ने कहा.
‘‘अगर तुम भी मुझे आप न कह कर वाकर कहोगी, तो मुझे भी अच्छा लगेगा.’’ डेरेन ने मुसकराते हुए कहा.
‘‘यहां आतेजाते लोग घूर रहे हैं. अगर हम कहीं एकांत में चलें, तो..?’’ रोक्सेन ने हिम्मत कर के कहा.
वाकर रोक्सेन को साथ ले कर मौल स्थित रेस्टोरेंट में आ गया. रेस्टोरेंट में कोने की टेबल पर बैठने के बाद बातों का सिलसिला शुरू हुआ. इस बातचीत में दोनों ने अपनेअपने बारे में सब कुछ बता दिया.
32 साल का हो जाने के बाद भी डेरेन वाकर कुंवारा था. उस के पास अपनी एक कैब (लौरी) थी, जिस से वह शहर व शहर के बाहर डिपार्टमेंटल स्टोरों पर माल सप्लाई का काम करता था. काम भी अच्छा था और कमाई भी अच्छी थी. वह ए.एफ. ब्लेकमोरे एंड संस नामक कंपनी के लिए काम करता था. उसी का माल वह स्टोरों पर पहुंचाता था.
अपने जैसा स्मार्ट और अपनी उम्र से कमउम्र प्रेमी पा कर रोक्सेन खुश थी. वाकर को भी ऐतराज नहीं था कि रोक्सेन उस से उम्र में 6 साल बड़ी थी और 2 बच्चों की मां थी. रोक्सेन और वाकर ने किसी भी तरह की औपचारिकता निभाए बगैर पहली ही मुलाकात में अपनेअपने प्यार का इजहार कर दिया था.