मैं ने लड़की से उस के जख्म के बारे में पूछा तो वह बोली, “इंसपेक्टर साहब, वह चरस के नशे में लड़कियों से बेहूदा हरकतें कर रहा था. मुझ से बरदाश्त नहीं हुआ तो मैं ने मना किया. वह मेरे पीछे पड़ गया. मुझे बाजुओं से पकड़ कर अगली सीट पर ले जाने लगा. लेक्चरार जो वहीं थी, उन्होंने उस पर अपना पर्स दे मारा. लेकिन पिस्तौल नहीं गिरा. उस ने उन पर गोली चला दी, जो बाजू में लगी. वह सीटों के बीच गिर पड़ीं. मैं ने उस बास्टर्ड के लंबे बाल पकड़ लिए.
अगर उस वक्त कोई अन्य लड़की मदद को आ जाती तो हम उस का तियापांचा कर देते. लेकिन सभी इतनी डरी हुई थीं कि कोई भी आगे नहीं बढ़ी. उस ने फिर गोली चला दी, जो मेरी जांघ में लगी. उस के बाद अस्पताल पहुंच कर मुझे होश आया.”
मैं लड़की से बातें कर रहा था कि डाक्टर ने आ कर मुझ से कहा, “पुलिस स्टेशन से आप का फोन आ गया है.”
मैं ने जा कर फोन रिसीव किया. एसपी साहब ने मुझे फौरन बुलाया था. मैं समझ गया कि मीङ्क्षटग में कोई खास फैसला हुआ है. जब मैं वहां पहुंचा तो एसपी साहब ने कहा, “नवाज खान, कमिश्नर साहब ने हमें एक कोशिश करने की इजाजत दी है, लेकिन बहुत मुश्किल से. उन का आदेश है कि सवारियों में से किसी का भी कोई नुकसान नहीं होना चाहिए. मैं ने उन्हें यकीन दिलया है और वादा किया है कि ऐसा ही होगा. हम ने एक प्लान बनाया है. क्या तुम इस के लिए अपनी मरजी से खुद को पेश कर सकते हो?”
“जनाब, मैं तो पहले ही खुद को पेश कर चुका हंू, आदेश दीजिए कि मुझे करना क्या है?” मैं ने बड़े ही आत्मविश्वास से कहा.
एसपी साहब ने सारा प्लान मुझे समझाया. उस वक्त 3 बज रहे थे. प्लान बहुत ज्यादा महत्त्व का तो नहीं था, पर नजमा, शारिक और गुरविंदर के लिए कुछ करने का मौका था.
सुबह के साढ़े 4 बज रहे थे. सख्त सर्दी थी. चारों ओर गहरा अंधेरा था. कुत्तों के भौंकने की आवाज कभीकभी सुनाई दे रही थी. हम झाडिय़ों के बीच खड़े थे. 30 गज के फासले पर बस हलकी सी दिखाई दे रही थी, जिस में कालेज की लड़कियां ,लेक्चरार और एक 3 साल की बच्ची पिछले 14 घंटे से जिंदगी और मौत के बीच झूल रही थी.
मेरे साथ पुलिस के 6 जवान 2 इंसपेक्टर और कई सबइंसपेक्टर थे. मैं अभीअभी वहां पहुंचा था. लेकिन बाकी के लोग शाम से ही वहां जमे थे. मैं ने उन से अब तक की प्रगति के बारे में पूछा. उस के बाद मैं बस तक जाने को तैयार हो गया. मैं आम सिपाही की ड्रैस में था. हाथों में एक बड़ा टिफिन था, जिस में 2-3 आदमियों का खाना था.
दरअसल, बदरू ने करीब डेढ़ घंटे पहले भूख से बेहाल हो कर खाने की फरमाइश की थी. उस की यही फरमाइश मीङ्क्षटग में इस काररवाई का सबब बनी थी. 14 घंटों में पहली बार कोई आदमी बस के करीब जा रहा था. इस से पहले शाम को 2 सिपाही जख्मी औरतों को बस के बाहर से उठा कर लाने के लिए गए थे, लेकिन उस वक्त उजाला था. किसी काररवाई का मौका नहीं था. चांद की रोशनी में बस का साया किसी भूत की तरह लग रहा था.
एक इंसपेक्टर ने थोड़ा आगे बढ़ कर जोर से चिल्ला कर कहा, “बदरू, सिपाही खाना ला रहा है, ले लो.”
कोई जवाब नहीं आया, केवल खिडक़ी का शीशा खोलने की आवाज आई. मैं धडक़ते दिल के साथ झाडिय़ों में से निकला और टिफिन ले कर बस की ओर बढ़ा. हमारे मंसूबों की कामयाबी इस बात पर निर्भर करती थी कि बदरू खुद खाना लेने के लिए हाथ बाहर निकाले या कम से कम खिडक़ी में नजर आए. मैं नपेतुले कदमों से बस के करीब पहुंचा. अपने रिवाल्वर को हाथ लगा कर देखा. बस के करीब पहुंच कर मैं ने टिफिन ऊपर उठाया.
उस वक्त मेरी सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया, जब खिडक़ी में एक लडक़ी का डरासहमा चेहरा दिखाई दिया. उस ने हाथ बढ़ा कर मुझ से टिफिन थाम लिया. बस के अंदर अंधेरा था. किसी के रोने की आवाज आ रही थी. उसी वक्त मुझे लडक़ी के सिर के ऊपर 2 लाल चमकती आंखें और मुलजिम का सिर दिखाई दिया. वह झाडिय़ों में छिपे किसी दरिंदे की तरह लग रहा था. मैं ने जरा पीछे हट कर बस के दरवाजे पर दबाव डाला, वह बंद था.
अब लौट आने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था. देरी मुलजिम को शक में डाल सकती थी. मुरदा कदमों के साथ मैं लौट आया. एसपी साहब वायरलैस पर रिपोर्ट का इंतजार कर रहे थे. मैं ने उन्हें नाकामी की खबर दी.
उन्होंने फैसला सुना दिया, “नवाज खान, अब तुम लौट आओ. कमिश्नर साहब ने सख्त हिदायत दी है कि इस के आगे कोई काररवाई नहीं होगी. उन का आदेश है कि तुम तुरंत थाने पहुंचो. इनायत खां से बात हो चुकी है, वह राजी है. उन का आदेश है कि बस की लड़कियों को जल्द से जल्द रिहा कराया जाए.”
मैं एसपी साहब की बात का मतलब अच्छी तरह समझ रहा था. एक मासूम लडक़ी को एक दरिंदे के हवाले किया जा रहा था. मेरा दिमाग भन्ना गया. लानत है ऐसी नौकरी और ऐसी जिंदगी पर. यह समझौता नहीं, कत्ल था. मैं ऐसा नहीं होने दूंगा, ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, मेरी नौकरी और जान चली जाएगी या डिप्टी कमिश्नर की बेटी और नवासी को नुकसान पहुंचेगा. पर मैं यह जुल्म नहीं होने दूंगा.
मैं ने एक फैसला किया और अपनी जगह पर खड़ा हो गया. एक सबइंसपेक्टर ने पूछा, “क्या हुआ जनाब?”
“कुछ नहीं, मैं वापस थाने जा रहा हूं. एसपी साहब ने बुलाया है.”
साथियों से अलग हो कर मैं सडक़ की ओर आया और बाएं घूम कर झाडिय़ों में दाखिल हो गया. करीब एक फर्लांग का चक्कर काट कर मैं बस की दूसरी तरफ निकला. अब मैं अपनी काररवाई के लिए आजाद था. इस काररवई का इरादा ही मेरी कामयाबी थी. मैं सुकून में था. जब इंसान खतरे में कूदने की ठान ले तो रास्ता आसान लगता है.