जाल में उलझी जिंदगी – भाग 1

मैं थाने में बैठा कत्ल की एक फाइल को पढ़ रहा था, तभी एक आदमी आया जो आते ही बोला, “साहब, मेरा नाम जाहिद है और मैं इसी कस्बे में रहता हूं. मेरी पत्नी भाग गई है. मेरी रिपोर्ट दर्ज कर के उस के बारे में पता लगाने की कोशिश करिए.”

उस की बात सुन कर मैं चौंका. उस की तरफ देखते हुए मैं ने पूछा, “यह तुम कैसे कह सकते हो?”

“पिछली रात, जब मैं बाथरूम गया था तो वह बिस्तर पर नहीं थी, बाहर का दरवाजा देखा तो कुंडी अंदर से खुली थी. इस

से मुझे लगा कि वह भाग गई है.”

“तुम्हारी बातों से यही लगता है कि तुम्हें पहले से ही शक था कि तुम्हारी पत्नी भाग जाएगी. क्या तुम ने उस के मायके वालों

से पता किया है कि वह वहां तो नहीं चली गई? तुम्हारी ससुराल कहां है?”

“ससुराल तो यहीं है, लेकिन मैं ने वहां पता नहीं किया,” उस ने जवाब में कहा.

“क्या तुम अपने मातापिता के साथ रहते हो?”

“नहीं जी, मैं अलग रहता हूं. लेकिन वह आधी रात को मेरे या अपने मातापिता के घर जा कर क्या करेगी? वह गांव के ही

करामत के साथ गई होगी.”

“यह बात तुम इतने दावे से कैसे कह सकते हो?”

“वह इसलिए कि उस का पहले से ही उस के साथ चक्कर चल रहा था. वह भी अपने घर पर नहीं है.”

“उसे रोकने के लिए तुम ने कुछ नहीं किया?”

“बहुत कुछ किया था. उस के मातापिता से भी शिकायत की थी. मैं ने उस की कई बार पिटाई भी की, लेकिन वह नहीं मानी. मेरे ससुर डीसी औफिस में हैडक्लर्क हैं. मेरे शिकायत करने पर उलटे उन्होंने मेरा अपमान करते हुए मुझे बंद कराने की धमकी दी थी. वह जिस आदमी के साथ गई है, वह भी बहुत पैसे वाला बदमाश किस्म का है.

“अच्छा, तुम मलिक नूर अहमद की बात कर रहे हो,” मैं ने कहा, “वह तुम्हारे ससुर हैं?”

उस के ससुर को मैं जानता था. वह डिप्टी कमिश्नर के दफ्तर में हैडक्लर्क थे, डीसी दफ्तर में नौकरी करना बड़े सम्मान की बात थी.

“आप देख लीजिएगा, वह कभी नहीं मानेंगे कि उस की बेटी भाग गई है. वह मेरे खिलाफ कोई न कोई फंदा डाल देंगे.” उस ने कहा.

मैं ने जाहिद से वह सभी बातें पूछीं, जो ऐसे मामले में पूछनी जरूरी होती हैं. करामत नाम के जिस शादीशुदा आदमी के साथ वह बीवी के भागने की बात कर रहा था, मैं ने उस का भी नामपता नोट कर के एक कांस्टेबल को करामत को बुलाने के लिए उस के घर भेज दिया. लेकिन कांस्टेबल उस की जगह उस के पिता और भाई को ले आया. दोनों ही डरे हुए थे.

उन्होंने बताया कि करामत घर पर नहीं है. पिता ने कहा कि वह सुबह ही घर से निकल गया था, जबकि भाई का कहना था कि वह रात का खाना खा कर निकला था और घर नहीं आया था. दोनों के बयान अलगअलग होने की वजह से मैं ने बाप से पूछा. मेरे सवालों से बाप परेशान हो गया. उस की आंखें लाल हो गईं. लग रहा था कि वह रोने वाला है.

वह कहने लगा, “साहब, मेरा यह बेटा पता नहीं मुझे कहांकहां अपमानित कराएगा. उसी की वजह से मुझे आज थाने आना पड़ा.”

यह कहते समय उस के चेहरे पर जो भाव उभरे, वह मुझे आज भी याद हैं. उस ने आगे कहा, “बड़ी इज्जत से जिंदगी गुजारी थी. लेकिन आज उस की वजह से मुझे झूठ बोलना पड़ा. करामत शाम को ही घर से निकला था. अभी तक उस के घर न लौटने पर मुझे भी लगने लगा है कि कहीं वह उसी के साथ ही तो नहीं भागी? बेटे को बचाने के लिए ही मैं झूठ बोल रहा था.”

वह एक सम्मानित आदमी था, इसलिए मैं उसे पूरा सम्मान दे रहा था. वह अपने बेटे को बचाने की पूरी कोशिश में था. मैं ने उसे झूठी सांत्वना देते हुए कहा कि मैं उस के बेटे को बचाने की पूरी कोशिश करूंगा.

इस के बाद उस ने कहा, “साहब मैं ने करामत की शादी 4 साल पहले एक सुंदर, सुघड़ और सुशील लडक़ी से की थी. लेकिन उस ने उसे दिल से कबूल नहीं किया, क्योंकि वह मुनव्वरी नाम की एक लडक़ी से शादी करना चाहता था. हम ने मुनव्वरी का हाथ उस के बाप से मांगा, लेकिन पता नहीं क्यों उस ने मना कर दिया. मुनव्वरी बड़ी दिलेर निकली, उस ने अपने पति की परवाह नहीं की और करामत से मिलना जारी रखा.

“पता चला है कि इसी बात को ले कर मुनव्वरी की अपने पति से रोज लड़ाई होती थी. मैं ने भी अपने बेटे को समझाया, लेकिन वह मेरी सुनता ही नहीं था. इसी वजह से वह अपनी बीवी में ज्यादा रुचि नहीं लेता था.

“इस के बावजूद भी उस की बीवी संतोष कर के बैठी रही. उसे एक बच्चा भी हो गया, फिर भी करामत ने घर को घर नहीं समझा. मुनव्वरी के जाल में ऐसा फंसा रहा कि मांबाप और बीवीबच्चों को भूल गया.

“मुनव्वरी के बाप को भी पता था कि उस की बेटी क्या कर रही है. लेकिन डीसी औफिस में नौकरी करने की वजह से वह घमंड में चूर रहता था. उस ने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया.”

मैं ने उस से पूछा, “क्या आप बता सकते हैं कि करामत मुनव्वरी को ले कर कहां गया होगा?”

वह सोच कर बोला, “जबलपुर छावनी में उस के चाचा का लडक़ा रहता है. वह फौज में है. उस से करामत की गहरी दोस्ती है. हो सकता है वह वहीं गया हो?”

मैं ने उन दोनों से पूछताछ कर के उन्हें घर भेज दिया. मुनव्वरी और करामत के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हो चुकी थी. यह मामला खोजबीन का नहीं, पीछा करने का था. खोजबीन उस मामले में होती है, जिस में अपराधी का पता न हो. इस मामले में अपराधी का नामपता सब कुछ था. उन दोनों को सिर्फ ढूंढना था. मैं ने दोनों की फोटो ले कर विभिन्न थानों को सूचना भेज दी. इस मामले को मैं खुद देख रहा था. करामत के चरित्र के बारे में पता चला कि वह इसी कस्बे में एक बैंक में नौकरी करता था, साथ ही एक बीमा कंपनी में एजेंट भी था.

गुनाह : भूल का एहसास – भाग 3

‘‘तुम पहले ही मुझे इतना छल चुके हो कि अब और गुंजाइश बाकी नहीं है. सच तो यह है कि तुम्हारे लिए मेरी अहमियत उस फूल से अधिक कभी नहीं रही, जिसे जब चाहा मसल दिया. तुम ने कभी समझने की कोशिश ही नहीं की कि बिस्तर से परे भी मेरा कोई वजूद है. मैं भी तुम्हारी तरह इंसान हूं. मेरा शरीर भी हाड़मांस से बना हुआ है, जिस के भीतर दिल धड़कता है और जो तुम्हारी तरह ही सुखदुख का अनुभव करता है.’’

‘‘इस बीच रीना ने मेरी बहुत सहायता की. जीने की प्रेरणा दी. कदमकदम पर हौसला बढ़ाया. वह भावनात्मक संबल न देती तो मैं टूट गई होती. अपना अस्तित्व बचाने के लिए मैं अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थी. उस ने भरपूर साथ दिया. तुम ने कभी नहीं चाहा मैं नौकरी करूं. इस के लिए तुम ने हर संभव कोशिश भी की. अपने बराबर मुझे खड़ी होते देख तुम विचलित होने लगे थे. दरअसल, मेरे आंसुओं से तुम्हारा अहं तुष्ट होता था, शायद इसीलिए तुम्हारी कुंठा छटपटाने लगीथी.’’

‘‘मुझे अपने सारे जुर्म स्वीकार हैं. जो चाहे सजा दो मुझे, पर प्लीज अपने घर लौट चलो,’’ मैं असहाय भाव से गिड़गिड़ाता हुआ बोला.

‘‘कौन सा घर?’’ वह आपे से बाहर हो गई, ‘‘ईंट पत्थर की बेजान दीवारों से बना वह ढांचा, जहां तुम्हारे तुगलकी फरमान चलते हैं? तुम्हें जो अच्छा लगता वही होता था वहां. बैडरूम की लोकेशन से ले कर ड्राइंगरूम की सजावट तक सब में तुम्हारी ही मरजी चलती थी. मुझे किस रंग की साड़ी पहननी है, किचन में कब क्या बनना है, इस सब का निर्णय भी तुम ही लेते थे. वह सब मुझे पसंद है भी या नहीं, इस से तुम्हें कुछ लेनादेना नहीं था. मैं टीवी देखने बैठती तो रिमोट तुम झपट लेते. जो कार्यक्रम मुझे पसंद थे उन से तुम्हें चिढ़ थी.

‘‘वहां दूरदूर तक मुझे अपना अस्तित्व कहीं भी नजर नहीं आता था… हर ओर तुम ही तुम पसरे हुए थे. मेरे विचार, मेरी भावनाएं, मेरा अस्तित्व सब कुछ तिरोहित हो गया तुम्हारी विक्षिप्त कुंठाओं में. तुम्हारी हिटलरशाही की वजह से मेरा जीना हराम हो गया था. उस अंधेरी कोठरी में दम घुटता था मेरा, इसीलिए उस से दूर बहुत दूर यहां आ गई हूं ताकि सुकून के 2 पल जी सकूं, अपनी मरजी से.’’

‘‘अब तुम जो चाहोगी वही होगा वहां. तुम्हारी मरजी के बिना एक कदम भी नहीं चलूंगा मैं. तुम्हारे आने के बाद से वह घर खंडहर हो गया है. दीवारें काट खाने को दौड़ती हैं. बेटी की किलकारियां सुनने को मन तरस गया है. उस खंडहर को फिर से घर बना दो रेवा,’’ मेरा गला भर आया था.

‘‘अपनी गंदी जबान से मेरी बेटी का नाम मत लो,’’ उस की आवाज से नफरत टपकने लगी, ‘‘भौतिक सुख और रासायनिक प्रक्रिया मात्र से कोई बाप कहलाने का हकदार नहीं हो जाता. बहुत कुछ कुरबान करना पड़ता है औलाद के लिए. याद करो उन लमहों को, जब मेरे गर्भवती होने पर तुम गला फाड़फाड़ कर चीख रहे थे कि मेरे गर्भ में तुम्हारा रक्त नहीं, मेरे बौस का पल रहा है. तुम्हारे दिमाग में गंदगी का अंबार देख कर मैं स्तब्ध रह गई थी. कितनी आसानी से तुम ने यह सब कह दिया था, पर मैं भीतर तक घायल हो गईथी तुम्हारी बकवास सुन कर. जी तो चाहा था कि तुम्हारी जबान खींच लूं, पर संस्कारों ने हाथ जकड़ लिए थे मेरे.

‘‘तुम चाहते थे कि मैं गर्भपात करा लूं. अपनी बात मनवाने के लिए जुल्मों का हथकंडा भी अपनाया पर मैं अपने अंश को जन्म देने के लिए दृढ़संकल्प थी. प्रसव कक्ष में मैं मौत से संघर्ष कर रही थी और तुम श्रुति के साथ गुलछर्रे उड़ा रहे थे. एक बार भी देखने नहीं आए कि मैं किस स्थिति में हूं. तुम तो चाहते ही थे कि मैं मर जाऊं ताकि तुम्हारा रास्ता साफ हो जाए. इस मुश्किल घड़ी में रीना साथ न देती तो मर ही जाती मैं.’’

आंखों में आंसू लिए मैं अपराधी की भांति सिर झुकाए उस की बात सुनता रहा.

‘‘मुझे परेशान करने के तुम ने नएनए तरीके खोज लिए थे. तुम मेरी तुलना अकसर श्रुति से करते थे. तुम्हारी निगाह में मेरा चेहरा, लिपस्टिक लगाने का तरीका, हेयरस्टाइल, पहनावा और फिगर सब कुछ उस के आगे बेहूदा था. मेरी हर बात में नुक्स निकालना तुम्हारी आदत में शामिल हो गया था. मूर्ख, पागल, बेअक्ल… तुम्हारे मुंह से निकले ऐसे ही जाने कितने शब्द तीर बन कर मेरे दिल के पार हो जाते थे. मैं छटपटा कर रह जाती थी. भीतर ही भीतर सुलगती रहती थी तुम्हारे शब्दालंकारों की अग्नि में. इतनी ही बुरी लगती हूं तो शादी क्यों की थी मुझ से? मेरे इस प्रश्न पर तुम तिलमिला कर रह जाते थे.

‘‘उकता गई थी मैं उस जीवन से. ऐसा लगता था जैसे किसी ने अंधेरी कोठरी में बंद कर दिया हो. मेरी रगरग में विषैले बिच्छुओं के डंक चुभने लगे थे. जहर घुल गया था मेरे लहू में. सांस घुटने लगी थी मेरी. उस दमघोंटू माहौल में मैं अपनी बेटी का जीवन बरबाद नहीं कर सकती. उपेक्षा के जो दंश मैं ने झेले हैं, उस की छाया उस पर हरगिज नहीं पड़ने दूंगी. बेहतर है, तुम खुद ही चले जाओ वरना तुम जैसे बेगैरत इंसान को धक्के मार कर बाहर का रास्ता दिखाना भी मुझे अच्छी तरह आता है.

एक बात और समझ लो,’’ मेरी ओर उंगली तान कर वह शेरनी की तरह गुर्राई, ‘‘भविष्य में भूल कर भी इधर का रुख किया तो बाकी बची जिंदगी जेल में सड़ जाएगी,’’ मेरी ओर देखे बिना उस ने अंदर जा कर इस तरह दरवाजा बंद किया जैसे मेरे मुंह पर तमाचा मारा हो.

मैं किंकर्तव्यविमूढ सा खड़ा रहा. इंसान के गुनाह साए की तरह उस का पीछा करते हैं. लाख कोशिशों के बाद भी वह परिणाम भुगते बगैर उन से मुक्त नहीं हो सकता. कल मैं ने जिस का मोल नहीं समझा, आज मैं उस के लिए मूल्यहीन था. यह दुनिया कुएं की तरह है. जैसी आवाज दोगे वैसी ही प्रतिध्वनि सुनाई देगी. जो जैसे बीज बोता है वैसी ही फसल काटता है. तनहाई की स्याह सुरंगों की कल्पना कर मेरी आंखों में मुर्दनी छाने लगी. आवारा बादल सा मैं खुद को घसीटता अनजानी राह पर चल दिया. टूटतेभटकते जैसे भी हो, अब सारा जीवन मुझे अपने गुनाहों का प्रायश्चित्त करना था.

गुनाह : भूल का एहसास – भाग 2

अगले दिन सैकंड सैटरडे था और उस के अगले दिन संडे. इन 2 दिनों की दूरी मेरे लिए आकाश और पाताल के बराबर थी. कुछ सोचता हुआ मैं उसी तेजी से उस औफिस में दाखिल हुआ, जहां से रेवा निकली थी. रिशैप्सन पर एक खूबसूरत लड़की बैठी थी. तेज चलती सांसों को नियंत्रित कर मैं ने उस से पूछा कि क्या रेवा यहीं काम करती हैं? उस ने ‘हां’ कहा तो मैं ने रेवा का पता पूछा. उस ने अजीब निगाहों से मुझे घूर कर देखा.

‘‘मैडम प्लीज,’’ मैं ने उस से विनती की, ‘‘वह मेरी पत्नी है. किन्हीं कारणों से हमारे बीच मिसअंडरस्टैंडिंग हो गई थी, जिस से वह रूठ कर अलग रहने लगी. मैं उस से मिल कर मामले को शांत करना चाहता हूं. हमारी एक छोटी सी बेटी भी है. मैं नहीं चाहता कि हमारे आपस के झगड़े में उस मासूम का बचपन झुलस जाए. आप उस का पता दे दें तो बड़ी मेहरबानी होगी. बिलीव मी, आई एम औनेस्ट,’’ मेरा गला भर आया था.

वह कुछ पलों तक मेरी बातों में छिपी सचाई को तोलती रही. शायद उसे मेरी नेकनीयती पर यकीन हो गया था. अत: उस ने कागज पर रेवा का पता लिख कर मुझे थमा दिया. मैं हवा में उड़ता वापस आया. सारी रात मुझे नींद नहीं आई. मन में एक ही बात खटक रही थी कि मैं रेवा का सामना कैसे करूंगा? क्या उस से नजरें मिला सकूंगा? पता नहीं वह मुझे माफ करेगी भी या नहीं?

उस के स्वभाव से मैं भलीभांति परिचित था. एक बार जो मन में ठान लेती थी, उसे पूरा कर के ही दम लेती थी. अगर ऐसा हुआ तो? मन के किसी कोने से उठी व्यग्रता मेरे समूचे अस्तित्व को रौंदने लगी. ऐसा हरगिज नहीं हो सकता. मन में घुमड़ते संशय के बादलों को मैं ने पूरी शिद्दत से छितराने की कोशिश की. वह पत्नी है मेरी. उस ने मुझे दिल की गहराइयों से प्यार किया है. कुछ वक्त लिए तो वह मुझ से दूर हो सकती है, पर हमेशा के लिए नहीं. मेरा मन कुछ हलका हो गया था. उस की सलोनी सूरत मेरी आंखों में तैरने लगी थी.

सुबह उस का पता ढूंढ़ने में कोई खास परेशानी नहीं हुई. मीडियम क्लास की कालोनी में 2 कमरों का साफसुथरा सा फ्लैट था. आसपास गहरी खामोशी का जाल फैला था. बाहर रखे गमलों में उगे गुलाब के फूलों से रेवा की गंध का मुझे एहसास हो रहा था. रोमांच से मेरे रोएं खड़े हो गए थे. आगे बढ़ कर मैं ने कालबैल का बटन दबाया. भीतर गूंजती संगीत की मधुर स्वरलहरियों ने मेरे कानों में रस घोल दिया. कुछ ही पलों में गैलरी में उभरी रेवा के कदमों की आहट को मैं भलीभांति पहचान गया. मेरा दिल उछल कर हलक में फंसने लगा था.

‘‘तुम?’’ मुझे सामने खड़ा देख कर वह बुरी तरह चौंक गई?थी.

‘‘रेवा, मैं ने तुम्हें कहांकहां नहीं ढूंढ़ा. हर ऐसी जगह जहां तुम मिल सकती थीं, मैं भटकता रहा. तुम ने मुझे सोचनेसमझने का अवसर ही नहीं दिया. अचानक ही छोड़ कर चली आईं.’’

‘‘अचानक कहां, बहुत छटपटाने के बाद तोड़ पाई थी तुम्हारा तिलिस्म. कुछ दिन और रुकती तो जीना मुश्किल हो जाता. तुम तो चाहते ही थे कि मैं मर जाऊं. अपनी ओर से तुम ने कोई कसर बाकी भी तो नहीं छोड़ी थी.’’

‘‘मैं बहुत शर्मिंदा हूं रेवा,’’ मेरे हाथ स्वत: ही जुड़ गए थे, ‘‘तुम्हारे साथ जो बदसुलूकी की है मैं ने उस की काफी सजा भुगत चुका हूं, जो हुआ उसे भूल कर प्लीज क्षमा कर दो मुझे.’’

‘‘लगता है मुझे परेशान कर के अभी तुम्हारा दिल नहीं भरा, इसलिए अब एक नया बहाना ले कर आए हो,’’ उस की आवाज में कड़वाहट घुल गई थी, ‘‘बहुत रुलाया है मुझे तुम्हारी इन चिकनीचुपड़ी बातों ने. अब और नहीं, चले जाओ यहां से. मुझे कोई वास्ता नहीं रखना है तुम्हारे जैसे घटिया इंसान से.’’

मैं हैरान सा उस की ओर देखता रहा.

‘‘तुम्हारी नसनस से मैं अच्छी तरह वाकिफ हूं. अपने स्वार्थ के लिए तुम किसी भी हद तक गिर सकते हो. तुम्हारा दिया एकएक जख्म मेरे सीने में आज भी हरा है.’’

‘‘मुझे प्रायश्चित्त का एक मौका तो दो रेवा. मैं…’’

‘‘मैं कुछ नहीं सुनना चाहती,’’ मेरी बात बीच में काट कर वह बिफर पड़ी, ‘‘तुम्हारी हर याद को अपने जीवन से खुरच कर मैं फेंक चुकी हूं.’’

‘‘अंदर आने को नहीं कहोगी?’’ बातचीत का रुख बदलने की गरज से मैं बोला.

‘‘यह अधिकार तुम बहुत पहले खो चुके हो.’’ मैं कांप कर रह गया.

‘‘ऐसे हालात तुम ने खुद ही पैदा किए हैं आकाश. अपने प्यार को बचाने की मैं ने हर संभव कोशिश की थी. अपना वजूद तक दांव पर लगा दिया पर तुम ने कभी समझने की कोशिश ही नहीं की. जब तक सहन हुआ मैं ने सहा. मैं और कितना सहती और झुकती. झुकतेझुकते टूटने लगी थी. मैं ने अपना हाथ भी बढ़ाया था तुम्हारी ओर इस उम्मीद से कि तुम टूटने से बचा लोगे, पर तुम तो जैसे मुझे तोड़ने पर ही आमादा थे.’’

मैं मौन खड़ा रहा.

‘‘अफसोस है कि मैं तुम्हें पहचान क्यों न सकी. पहचानती भी कैसे, तुम ने शराफत का आवरण जो ओढ़ रखा था. इसी आवरण की चकाचौंध में तुम्हारे जैसा जीवनसाथी पा कर खुद पर इतराने लगी थी. पर मैं कितनी गलत थी. इस का एहसास शादी के कुछ दिन बाद ही होने लगा था. मैं जैसेजैसे तुम्हें जानती गई, तुम्हारे चेहरे पर चढ़ा मुखौटा हटता गया. जिस दिन मुखौटा पूरी तरह हटा मैं हैरान रह गई थी तुम्हारा असली रूप देख कर.

‘‘शुरुआत में तो सब कुछ ठीक रहा. फिर तुम अकसर कईकई दिनों तक गायब रहने लगे. बिजनैस टूर की मजबूरी बता कर तुम ने कितनी सहजता से समझा दिया था मुझे. मैं अब भी इसी भ्रम में जीती रहती, अगर एक दिन अचानक तुम्हें, तुम्हारी सैक्रेटरी श्रुति की कमर में बांहें डाले न देख लिया होता. रीना के आग्रह पर मैं सेमिनार में भाग लेने जिस होटल में गई थी, संयोग से वहीं तुम्हारे बिजनैस टूर का रहस्य उजागर हो गयाथा. तुम्हारी बांहों में किसी और को देख कर मैं जैसे आसमान से गिरी थी, पर तुम्हारे चेहरे पर क्षोभ का कोई भाव तक नहीं था.

मैं कुछ कहती, इस से पहले ही तुम ने वहां मेरी उपस्थिति पर हजारों प्रश्नचिह्न खड़े कर दिए थे. मैं चाहती तो तुम्हारे हर तर्क का करारा जवाब दे सकती थी, पर तुम्हारी रुसवाई में मुझे मेरी ही हार नजर आती थी. मेरी खामोशी को कमजोरी समझ कर तुम और भी मनमानी करने लगे थे. मैं रोतीतड़पती तुम्हारे इंतजार में बिस्तर पर करवटें बदलती और तुम जाम छलकाते हुए दूसरों की बांहों में बंधे होते.’’

‘‘वह गुजरा हुआ कल था, जिसे मैं कब का भुला चुका हूं,’’ मैं मुश्किल से बोल पाया.

‘‘तुम्हारे लिए यह सामान्य सी बात हो सकती है, पर मेरा तो सब कुछ दफन हो गया है, उस गुजरे हुए कल के नीचे. कैसे भूल जाऊं उन दंशों को, जिन की पीड़ा में मैं आज भी सुलग रही हूं. याद करो अपनी शादी की सालगिरह का वह दिन, जब तुम जल्दी चले गए थे. देर रात तक तुम्हारा इंतजार करती रही मैं. हर आहट पर दौड़ती हुई मैं दरवाजे तक जाती थी.

लगता था कहीं आसपास ही हो तुम और जानबूझ कर मुझे परेशान कर रहे हो. तुम लड़खड़ाते हुए आए थे. मैं संभाल कर तुम्हें बैडरूम में ले गईथी. खाने के लिए तुम ने इनकार कर दिया था. शायद श्रुति के साथ खा कर आए थे. मैं पलट कर वापस जाना चाहती थी कि तुम ने भेडि़ए की तरह झपट्टा मार कर मुझे दबोच लिया था. तुम देर तक मुझे नोचतेखसोटते रहे थे और मैं तुम्हारी वहशी गिरफ्त में असहाय सी तड़पती रही थी. तुम्हारी दरिंदगी से मेरा मन तक घायल हो गया था. बोलो, कैसे भूल जाऊं मैं वह सब?’’

‘‘बस करो रेवा,’’ कानों पर हाथ रख कर मैं चीत्कार कर उठा, ‘‘मेरे किए गुनाह विषैले सर्प बन कर हर पल मुझे डसते रहे हैं. अब और सहन नहीं होता. प्लीज, सिर्फ एक बार माफ कर दो मुझे. वादा करता हूं भविष्य में तुम्हें तकलीफ नहीं होने दूंगा.

गुनाह : भूल का एहसास – भाग 1

‘‘रेवा…’’ बाथरूम में घुसते ही ठंडे पानी के स्पर्श से सहसा मेरे मुंह से निकल गया. यह जानते हुए भी कि वह घर में नहीं है. आज ही क्यों, पिछले 2 महीनों से नहीं है. लेकिन लगता ऐसा है, जैसे युगों का पहाड़ खड़ा हो गया.

रेवा का यों अचानक चले जाना मेरे लिए अप्रत्याशित था. जहां तक मैं समझता हूं वह उन में से थी, जो पति के घर डोली में आने के बाद लाख जुल्म सह कर भी 4 कंधों पर जाने की तमन्ना रखती हैं. लेकिन मैं शायद यह भूल गया था कि लगातार ठोंकने से लोहे की शक्ल भी बदल जाती है. खैर, उस वक्त मैं जो आजादी चाहता था, वह मुझे सहज ही हासिल हो गई थी.

श्रुति मेरी सैक्रेटरी थी. उस का सौंदर्य भोर में खिले फूल पर बिखरी ओस की बूंदों सा आकर्षक था. औफिस के कामकाज संभालती वह कब मेरे करीब आ गई, पता ही नहीं चला. उस की अदाओं और नाजनखरों में इतना सम्मोहन था कि उस के अलावा मुझे कुछ और सूझता ही नहीं था. मेरे लिए रेवा जेठ की धूप थी तो श्रुति वसंती बयार. रेवा के जाने के बाद मेरे साथसाथ घर में भी श्रुति का एकाधिकार हो गया था.

सब कुछ ठीक चल रहा था कि एक दिन अचानक पश्चिम से सुरसा की तरह मुंह बाए आई आर्थिक मंदी ने मेरी शानदार नौकरी निगल ली. इस के साथ ही मेरे दुर्दिन शुरू हो गए. मैं जिन फूलों की खुशबू से तर रहता था, वे सब एकएक कर कैक्टस में बदलने लगे. मैं इस सदमे से उबर भी नहीं पाया था कि श्रुति ने तोते की तरह आंखें फेर लीं. उस के गिरगिटी चरित्र ने मुझे तोड़ कर रख दिया. अब मैं था, मेरे साथ थी आर्थिक तंगी में लिपटी मेरी तनहाई और श्रुति की चकाचौंध में रेवा के साथ की ज्यादतियों का अपराधबोध.

रेवा का निस्स्वार्थ प्रेम, भोलापन और सहज समर्पण रहरह कर मेरी आंखों में कौंधता है. सुबह जागने के साथ बैडटी, बाथरूम में गरम पानी, डाइनिंग टेबल पर नाश्ते के साथ अखबार, औफिस के वक्त इस्तिरी किए हुए कपड़े, पौलिश किए जूते, व्यवस्थित ब्रीफकेस और इस बीच मुन्नी को भी संभालना, सब कुछ कितनी सहजता से कर लेती थी रेवा. इन में से कोई भी एक काम ठीक वक्त पर नहीं कर सकता मैं… फिर रेवा अकेली इतना सब कुछ कैसे निबटा लेती थी, मैं सोच कर हैरान हो जाता हूं.

उस ने कितने करीने से संवारा था मुझे और मेरे घर को… अपना सब कुछ उस ने होम कर दिया था. उस के जाने के बाद यहां के चप्पेचप्पे में उस की उपस्थिति और अपने जीवन में उस की उपयोगिता का एहसास हो रहा है मुझे. उसे ढूंढ़ने में मैं ने रातदिन एक कर दिए. हर ऐसी जगह, जहां उस के मिलने की जरा भी संभावना हो सकती थी मैं दौड़ता भागता रहा पर हर जगह निराशा ही हाथ लगी. पता नहीं वह कहां अदृश्य हो गई.

मन के किसी कोने से पुलिस में शिकायत करने की बात उठी. पर इस वाहियात खयाल को मैं ने जरा भी तवज्जो नहीं दी. रेवा को मैं पहले ही खून के आंसू रुला चुका हूं. उसे हद से ज्यादा रुसवा कर चुका हूं. पुलिस उस के जाने के 100 अर्थ निकालती, इसलिए अपने स्तर से ही उसे ढूंढ़ने के प्रयास करता रहा.

मेरे मस्तिष्क में अचानक बिजली सी कौंधी. रीना रेवा की अंतरंग सखी थी. अब तक रीना का खयाल क्यों नहीं आया… मुझे खुद पर झुंझलाहट होने लगी. जरूर उसी के पास गई होगी रेवा या उसे पता होगा कि कहां गई?है वह. अवसाद के घने अंधेरे में आशा की एक किरण ने मेरे भीतर उत्साह भर दिया. मैं जल्दीजल्दी तैयार हो कर निकला, फिर भी 10 बज चुके थे. मैं सीधा रीना के औफिस पहुंचा.

‘‘मुझे अभी पता चला कि रेवा तुम्हें छोड़ कर चली गई,’’ मेरी बात सुन कर वह बेरुखी से बोली, ‘‘तुम्हारे लिए तो अच्छा ही हुआ, बला टल गई.’’

मेरे मुंह से बोल न फूटा.

‘‘मैं नहीं जानती वह कहां है. मालूम होता तो भी तुम्हें हरगिज नहीं बताती,’’ उस की आवाज से नफरत टपकने लगी, ‘‘जहां भी होगी बेचारी चैन से तो जी लेगी. यहां रहती तो घुटघुट कर मर जाती.’’

‘‘रीना प्लीज,’’ मैं ने विनती की, ‘‘मुझे अपनी भूल का एहसास हो गया है. श्रुति ने मेरी आंखों में जो आड़ीतिरछी रेखाएं खींच दी थीं, उन का तिलिस्म टूट चुका है.’’

‘‘क्यों मेरा वक्त बरबाद कर रहे हो,’’ वह बोली, ‘‘बहुत काम करना है अभी.’’

रात गहराने के साथ ठिठुरन बढ़ गई थी. ठंडी हवाएं शरीर को छेद रही थीं. इन से बेखबर मैं खुद में खोया बालकनी में बैठा था. बाहर दूर तक कुहरे की चादर फैल चुकी थी और इस से कहीं अधिक घना कुहरा मेरे भीतर पसरा हुआ था, जिस में मैं डूबता जा रहा था. देर तक बैठा मैं रेवा की याद में कलपता रहा. उस के साथ की ज्यादतियां बुरी तरह मेरे मस्तिष्क को मथती रहीं. जिस ग्लेशियर में मैं दफन होता जा रहा था, उस के आगे शीत की चुभन बौनी साबित हो रही थी.

अगले कई दिनों तक मेरी स्थिति अजीब सी रही. रेवा के साथ बिताया एकएक पल मेरे सीने में नश्तर की तरह चुभ रहा था. काश, एक बार, सिर्फ एक बार रेवा मुझे मिल जाए फिर कभी उसे अपने से अलग नहीं होने दूंगा. उस से हाथ जोड़ कर, झोली फैला कर क्षमायाचना कर लूंगा. वह जैसे चाहेगी मैं अपने गुनाहों का प्रायश्चित्त करने के लिए तैयार हूं. उसे इतना प्यार दूंगा कि वह सारे गिलेशिकवे भूल जाएगी. उस के हर आंसू को फूल बनाने में जान की बाजी लगा दूंगा.

अपनी सारी खुशियां उस के हर एक जख्म को भरने में होम कर दूंगा. पर इस के लिए रेवा का मिलना निहायत जरूरी था, जोकि संभव होता नजर नहीं आ रहा था. वह भीड़भाड़ भरा इलाका था. आसपास ज्यादातर बड़ीबड़ी कंपनियों के औफिस थे. शाम को वहां छुट्टी के वक्त कुछ ज्यादा ही भागमभाग हो जाती थी. एक दिन मैं खुद में खोया धक्के खाता वहां से गुजर रहा था कि मेरे निर्जीव से शरीर में करंट सा दौड़ गया. जहां मैं था, उस के ऐन सामने की बिल्डिंग से रेवा आती दिखाई दी.

मेरा दिल जोरजोर से धड़कने लगा. मैं दौड़ कर उस के पास पहुंच जाना चाहता था पर सड़क पर दौड़ते वाहनों की वजह से मैं ऐसा न कर सका. लाल बत्ती के बाद वाहनों का काफिला थमा, तब तक वह बस में बैठ कर जा चुकी थी. मैं ने तेजी से दौड़ कर सड़क पार की पर सिवा अफसोस कि कुछ भी हासिल न कर सका. मेरा सिर चकराने लगा.

चोट : मिला कत्ल का सुराग – भाग 4

आधे घंटे बाद दोनों अतुल के औफिस में बैठे थे. इंसपेक्टर पटेल थोड़ा नाराज थे. योगेन जबरदस्ती उन्हें औफिस ले आया था. गार्ड से चाबी ले कर अतुल का औफिस खोल कर दोनों उस में बैठे थे.

“मुझे रीना के कातिल का पता चला गया है.” योगेन ने कहा.

“कौन है वह?” इंसपेक्टर पटेल ने पूछा.

“यह बड़ी होशियारी से तैयार किया गया प्लान था. कातिल किसी का कत्ल नहीं करना चाहता था. उस ने पाइप में भी कपड़ा लपेट रखा था, ताकि अपने शिकार को बेहोश कर के नेकलैस उड़ा सके. न जाने क्यों उस ने लिफाफे खोलने वाली छुरी से रीना पर हमला कर दिया? शायद उसे अंदाजा नहीं था कि यह छुरी किसी को मार भी सकती है.”

“यह सब छोड़ो, तुम यह बताओ कि हम यहां क्यों आए हैं? रीना का कातिल कौन है?” इंसपेक्टर पटेल ने पूछा.

“जिस वक्त रीना मेरी बांहों में थी, उसी वक्त उस ने चौंक कर मेरे पीछे देखा था. मतलब उस ने मुझ पर हमला करने वाले को देख लिया था. हमला करने वाला मुझे बेहोश कर के नेकलैस हासिल करना चाहता था. मगर रीना ने उसे देख लिया था, इसलिए हमला करने वाले को मजबूरन उस का कत्ल करना पड़ा.” योगेन ने कहा.

“आखिर वह है कौन?” पटेल ने झुंझला कर पूछा.

“इस के लिए आप को थोड़ा इंतजार करना होगा. सुबह होते ही कातिल आप की गिरफ्त में होगा.” योगेन ने जवाब में कहा.

दोनों बैठे इंतजार करते रहे. जैसे ही सुबह का उजाला फैला, योगेन ने उठ कर अतुल के औफिस के दरवाजे में हलकी सी झिरी कर दी और बाहर झांकने लगा. पटेल भी उसी के साथ खड़ा था. धीरेधीरे लोग आने लगे. सभी अपनेअपने औफिसों में जा रहे थे. कुछ देर बाद डा. परीचा नजर आया, वह भी अपने औफिस का दरवाजा खोल कर अंदर चला गया.

अतुल और प्रेमप्रकाश भी नजर आए. दोनों साथसाथ बातें करते आ रहे थे. प्रेमप्रकाश अपने औफिस में चला गया. जैसे ही अतुल ने अपने औफिस के दरवाजे के हैंडल पर हाथ रखा, योगेन ने दरवाजा खोल दिया. योगेन को अंदर देख कर अतुल हैरान रह गया. कभी वह इंसपेक्टर पटेल को देखता तो कभी योगेन को. योगेन ने कहा,

“अतुलजी अंदर आ जाइए. थोड़ी देर में आप को सब मालूम हो जाएगा.”

उन दोनों को हैरानी से देखते हुए अतुल अंदर आ गया. फिर वह अंदर के कमरे में चला गया. योगेन झिरी से बाहर की तरफ देखता रहा. अचानक उस ने एकदम से दरवाजा खोल कर कहा, “आइए पटेल साहब.”

दोनों तेजी से दरवाजा खोल कर बाहर आ गए. सामने ही मरदाना टौयलेट था. योगेन ने पटेल से चाबियों का गुच्छा मांगा, जो उस ने गार्ड से ले रखा था. उस में से एक चाबी ढूंढ़ कर टौयलेट में लगाई, दरवाजा खुल गया, सामने का सीन साफ नजर आने लगा. प्रेमप्रकाश फर्श पर झुका बेसिन के नीचे कुछ तलाश रहा था.

उन दोनों को देख कर वह सीधा खड़ा हो गया. योगेन ने उसे एक तरफ धकेल कर बेसिन के नीचे हाथ डाला तो अगले पल उस के हाथ में वह मखमली डिबिया थी, जिस में हीरों का नेकलैस था. यह वही डिबिया थी, जो रात योगेन अतुल पराशर को देने लाया था.

“मिल गया न इंसपेक्टर साहब नेकलैस.” योगेन ने कहा.

इंसपेक्टर पटेल प्रेमप्रकाश को घूर रहे थे. उस का चेहरा पीला पड़ गया था. वह हकलाते हुए बोला, “मैं तो… बस अंदाजे से तलाश रहा था. इस से पहले कि मैं सफल होता, आप लोग आ गए. मैं तो…”

“प्रेमप्रकाश झूठ मत बोलो.” योगेन ने कहा.

“मैं सच कह रहा हूं,” उस ने कहा.

“बेकार की बकवास मत करो.” पटेल ने घुडक़ा.

“तुम झूठे हो, पहले तुम ने मेरी मंगेतर रीना का खून किया, उस के बाद नकेलैस ले कर इस बेसिन के नीचे छिपा दिया.” योगेन ने कहा.

प्रेमप्रकाश घबरा गया. वह दोनों को देखता रहा. उस की जुबान बंद हो चुकी थी.

“जब मैं नेकलैस ले कर अतुल के औफिस की तरफ जा रहा था, तब तक तुम अपने औफिस में अंधेरा किए खड़े थे और मेरी निगरानी कर रहे थे. जब मैं औफिस में रीना की बांहों में था तो तुम अंदर आए. रीना ने तुम्हें देख लिया. पहले तुम ने मुझ पर हमला किया, उस के बाद रीना को छुरी घोप कर मार दिया, क्योंकि वह तुम्हें देख चुकी थी.

मेरी बेहोशी का फायदा उठा कर तुम नेकलैस ले उड़े. नेकलैस तुम ने मरदाना टौयलेट में छिपा दिया. इस के बाद यहां आ कर ड्रामा करने लगे. तुम्हारी जुबान से निकले एक वाक्य ने तुम्हें फंसवा दिया. वह मैं ने सुन लिया था. बाद में तुम्हारी भारी आवाज पहचान ली थी.

जब मुझे थोड़ाथोड़ा होश आ रहा था, तब तुम ने कहा था, ‘पीछे देखो, शायद इस के दिमाग पर चोट आई है.’

“तुम्हें कैसे पता चला कि मेरे सिर के पीछे चोट लगी थी. हमलावर जा चुका था, हम दोनों फर्श पर पड़े थे. इस से यह साबित होता है कि चोट तुम ने ही मारी थी. इसलिए तुम इस के बारे में जानते थे.”

योगेन ने सारी बात का खुलासा कर दिया. रीना की मौत का दुख उस की आंखों में छलक आया.

“प्रेमप्रकाश, तुम्हारा खेल खत्म हो चुका हूं. मैं तुम्हें रीना के कत्ल और हीरों के नेकलैस की चोरी के इल्जाम में गिरफ्तार करता हूं. तुम ही कातिल हो.” इंसपेक्टर पटेल ने सख्ती से कहा.

प्रेमप्रकाश ने सिर झुका लिया. योगेन ने दरवाजा खोला और आंसू पोंछते हुए चला गया.

लड़की, लुटेरा और बस

चोट : मिला कत्ल का सुराग – भाग 3

इस के बाद उस ने अतुल की ओर देखा, जो कभी पटेल को देख रहा था और कभी लिलि को. उस के चेहरे पर उलझन थी. लिलि समझ गई थी कि योगेन ने ही इंसपेक्टर पटेल को यह बताया होगा.

“इंसपेक्टर, आप मुझ से सवाल पर सवाल किए जा रहे हैं और इस आदमी से कुछ नहीं पूछ रहे हैं, जिसके गाल पर अभी तक लिपस्टिक का निशान है.” लिलि ने कहा.

“तुम चुपचाप आराम से बैठो. यह पुलिस की जांच है, कोई मजाक नहीं. बेकार की बातें करने के बजाय यह बताओ कि तुम डाक्टर के औफिस में क्यों गई थी?” इंसपेक्टर पटेल ने पूछा.

“तुम्हें इस बात से कोई मतलब नहीं होना चाहिए.” लिलि ने गुस्से में कहा.

इस बात पर उस का पति अतुल गुस्से में बोला, “पर मुझे मतलब है लिलि. मुझे बताओ कि तुम डा. परीचा के औफिस में क्यों गई थीं?”

“अतुल, तुम क्यों पागल हो रहे हो?”

“मैं तुम्हारा पति हूं. मेरा पूरा हक है यह जानने का कि तुम डाक्टर के पास क्यों गई थीं? क्या मैं बेवकूफ हूं कि इतनी बड़ी रकम खर्च कर के तुम्हारे लिए हीरों का नेकलैस खरीद रहा था? मेरी यही मंशा थी कि तुम डाक्टर का खयाल तक न करो, पूरी तरह मेरी वफादार बन जाओ. रीना ने ही मुझ से कहा था कि मैं वह हीरों का नेकलैस इस के मंगेतर योगेन के जरिए खरीदूं, ताकि उस का कुछ भला हो जाए. उसे कमीशन मिल सके.

यह इतना कीमती नेकलैस मैं ने तुम्हारे लिए ही खरीदा था और इस के बदले मैं तुम्हारी वफा चाहता था, लेकिन मुझे खुशी है कि वह नेकलैस चोरी हो गया. अच्छा हुआ जो तुम जैसी बेवफा औरत को नहीं मिला. वैसे भी मैं ने कौन सी अभी उस की कीमत अदा की है. अच्छा हुआ कि तुम्हारे चेहरे से नकाब उतर गया. तुम्हारी असली सूरत सामने आ गई. शक तो मुझे पहले भी था, अब तो इस का सबूत भी मिल गया.”

“जहन्नुम में जाओ तुम और तुम्हारा नेकलैस. मामूली सी बात का बतंगड़ बना दिया सब ने.” लिलि गुस्से से बोली.

“तुम दोनों लडऩाझगडऩा बंद करो. यह तुम्हारा आपस का मामला है. घर जा कर सुलझाना. यहां जांच हो रही है, उस में अड़ंगे मत डालो.” इंसपेक्टर पटेल ने कहा.

इंसपेक्टर पटेल ने डा. परीचा और प्रेम प्रकाश को अंदर बुलाया. डा. परीचा सेहतमंद और काफी स्मार्ट था. प्रेमप्रकाश लंबा और स्लिम था. वह इंश्योरैंस एजेंट था.

“प्रेमप्रकाश, जब तुम डाक्टर को बुलाने उस के औफिस में गए थे तो वह अकेला था या उस के साथ कोई और था?” इंसपेक्टर ने पहला सवाल किया.

“मैं सिर्फ बाहरी कमरे तक ही गया था. वह वहां अकेला ही था. अंदर के कमरे में कोई रहा हो तो मुझे मालूम नहीं.” प्रेमप्रकाश ने कहा.

“तुम क्या कहते हो डा. परीचा?” पटेल ने डा. परीचा से पूछा.

“मैं अकेला था.” डाक्टर धीरे से बोला.

“लिलि पराशर तुम्हारे साथ नहीं थीं?” उस ने इनकार में सिर हिला दिया.

“पर लिलि ने तो मान लिया है कि वह तुम्हारे साथ थी.” इंसपेक्टर पटेल ने कहा. पर डाक्टर इनकार करता रहा.

“डाक्टर, पुलिस के काम में उलझन मत पैदा करो. तुम्हें अंदाजा नहीं है कि तुम्हारा यह झूठ तुम्हें मुश्किल में डाल सकता है. लिलि और उस के पति ने मान लिया है कि वह तुम्हारे कमरे में थी. पर तुम लगातार इनकार कर रहे हो. आखिर कारण क्या है?”

“मि. अतुल एक शक्की आदमी है. मैं नहीं चाहता कि मेरे सच बोलने की वजह से लिलि के लिए कोई मुसीबत खड़ी हो. वह पागल आदमी उस का जीना मुश्किल कर देगा.” डा. परीचा ने कहा.

“तुम और लिलि शादी के पहले से दोस्त हो?”

पटेल ने अचानक प्रेमप्रकाश से सवाल किया, “तुम ने मि. अतुल को इस लडक़ी और योगेन को करीब खड़े देखा था, ये दोनों फर्श पर पड़े थे, तुम अपने औफिस से इस औफिस में क्यों आए थे?”

“मैं यहां शोर सुन कर वजह जानने आया था.”

“तुम्हें नेकलैस के बारे में मालूम था?” पटेल ने घूरते हुए पूछा.

“जी, अतुल ने मुझ से ही उस कीमती नेकलैस का इंश्योरैंस करवाया था. मुझे यह भी पता था कि वह नेकलैस आज ही उन्हें मिलने वाला है.” प्रेमप्रकाश ने कहा.

“उस नेकलैस के चोरी होने से तुम्हें तो नुकसान होगा?” पटेल ने पूछा.

“मुझे तो नहीं, हां मेरी कंपनी को जरूर नुकसान होगा. इस के लिए पुलिस जांच की रिपोर्ट की जरूरत पड़ेगी.” प्रेमप्रकाश ने बताया.

“क्या तुम रेस खेलते हो, घोड़ों पर रकम लगाते हो, यह बहुत महंगा शौक है?” पटेल ने पूछा.

“तुम्हारा मतलब है नेकलैस मैं ने चुराया है?” प्रेमप्रकाश ने खीझ कर पूछा.

पटेल ने उसे जवाब देने के बजाय डाक्टर से पूछा, “तुम इतनी रात तक अपने औफिस में क्या कर रहे थे? लिलि की राह देख रहे थे क्या?”

“मुझे लिलि के आने के बारे में कुछ भी पता नहीं था. वह जिस वक्त मेरे पास आई, घबराई हुई थी. उस ने बताया कि कोई उस का पीछा कर रहा है. उस ने यह भी कहा कि वह आदमी उस के पति के औफिस में गया है. इस के बाद हम बातें करने लगे. तभी प्रेमप्रकाश आ गया. मैं ने लिलि को अंदर वाले कमरे में भेज दिया और अपना बैग ले कर उस के साथ यहां आ गया.

लिलि को मुझे छिपाना नहीं चाहिए था.” डाक्टर ने कहा.

“उस के बाद क्या हुआ?” पटेल ने पूछा.

“जब मैं अतुल के औफिस में पहुंचा तो रीना मर चुकी थी. मगर यह लडक़ा जिन्दा था. इस के सिर पर चोट आई थी. अगर चोट जरा भी गहरी होती तो यह मर भी सकता था.” डाक्टर ने कहा.

“अच्छा, तुम दोनों जा सकते हो.” पटेल ने कहा.

“क्या मैं भी जा सकता हूं?” योगेन ने पूछा.

इंसपेक्टर पटेल ने उसे भी इजाजत दे दी.

योगेन की चोट तकलीफ दे रही थी. सिर के पिछले हिस्से में दर्द था. उस की नजरों के सामने बारबार रीना की लाश आ रही थी. कैसी हंसतीमुसकराती लड़की मिनटों में मौत की गोद में समा गई. नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. रीना से मुलाकात का दृश्य उस की आंखों में घूम रहा था, कानों में उस की आवाज गूंज रही थी. वह उन आवाजों के बारे में सोचने लगा, जो जरा होश में आने पर उस के कानों में पड़ी थी.

अचानक एक आवाज उसे याद आई तो वह उछल पड़ा. उस ने उसी वक्त इंसपेक्टर पटेल को फोन किया. पटेल ने झुंझला कर कहा, “अभी तुम सो जाओ, सुबह बात करेंगे.”

“इंसपेक्टर साहब, सुबह तक बहुत देर हो जाएगी. सारा खेल खतम हो जाएगा. हमें अभी और इसी वक्त बिजनैस सेंटर चलना होगा. मुझे उम्मीद है कि नेकलैस भी बरामद कर लेंगे और कातिल को भी पकड़ लेंगे.”

चोट : मिला कत्ल का सुराग – भाग 2

योगेन को दोबारा होश आया तो उस का दर्द काफी कम हो चुका था. उसे ऐसा लग रहा था, जैसे वह नींद से जागा हो. किसी की कोमल अंगुलियों ने उस के सिर को छुआ तो उस ने आंखें खोल दीं. उस की आंखों के सामने उसी औरत का चेहरा था, जो कौरीडोर में उस से डर रही थी. लेकिन अब डर की जगह उस के चेहरे पर मुसकराहट थी.

उस ने हमदर्दी से पूछा, “अब तुम कैसा फील कर रहे हो?”

“ठीक हूं.” योगेन ने मुश्किल से जवाब दिया.

“मुझे पहचाना मैं लिलि… लिलि पराशर. मैं वही हूं, जो तुम्हारे आगेआगे बिजनैस सेंटर में आई थी. तुम मेरे पीछे थे.” लिलि ने बेहद नरमी से कहा.

“लेकिन मैं तुम्हारा पीछा नहीं कर रहा था.”

“तुम्हें याद है, मैं डा. परीचा के औफिस में गई थी?” लिलि ने पूछा.

योगेन ने ‘हां’ में सिर हिला दिया.

“तुम से मेरी एक रिक्वैस्ट है. अगर तुम ने मेरी बात मान ली तो मुझ पर एक बड़ा एहसान करोगे.” लिलि ने कहा.

“इस की वजह?” योगेन ने पूछा.

“दरअसल, मेरे पति अतुल पराशर बहुत ही शक्की स्वभाव के हैं. मैं और डा. परीचा बहुत अच्छे दोस्त हैं. शादी के पहले से हम एकदूसरे को जानते हैं. अतुल उन से जलता है, इसलिए मैं चाहती हूं कि तुम यह बात भूल जाओ कि मैं डाक्टर के औफिस में गई थी. इस समय तुम मेरे पति के ही औफिस में हो.”

योगेन चुपचाप उसे देखता रहा. लिलि ने आगे कहा, “मेरी बात मानोगे न? बाहर पुलिस आ चुकी है. कहीं ऐसा न हो कि तुम कह दो कि मैं डाक्टर के पास गई थी.”

“पुलिस… पुलिस क्यों आई है?” यह कह योगेन उठा और दरवाजे की ओर बढ़ा. लिलि ने उसे रोकना चाहा, लेकिन वह रुका नहीं. उसे चक्कर आ गया तो उस ने दीवार का सहारा ले कर दरवाजा खोला.

दूसरे कमरे में काफी लोग जमा थे. फर्श पर रीना चित लेटी थी. उस की आंखें खुली थीं, चेहरा सफेद पड़ गया था. उस के सीने में चमकदार चीज घुसी थी. वह जोर से चीखा, “रीना…”

इसी के साथ वह लडख़ड़ा कर गिरने लगा तो 2 लोगों ने उसे संभाल कर सोफे पर लिटा दिया. थोड़ी देर बाद एक स्मार्ट सा आदमी उस के पास आ कर बोला, “मैं इंसपेक्टर पटेल…क्या तुम इस लड़की को जानते हो?”

“जी, रीना मेरी मंगेतर थी.” उस ने उदासी से कहा.

“जी, मुझे अफसोस है. इस लड़की का कातिल यहीं मौजूद है. वह कौन है? हम पता करने की कोशिश कर रहे हैं.” पटेल ने हमदर्दी से कहा, “मैं उसे जल्दी ही पकड़ लूंगा.”

योगेन चुपचाप भरी आंखों से पटेल को देखता रहा. इंसपेक्टर पटेल ने पूछा, “तुम मि. अतुल पराशर को हीरो का नेकलैस डिलीवर करने आए थे न?”

यह सुन कर योगेन का हाथ जेब पर गया. जेब में न नेकलैस था, न पिस्तौल. उस ने कहा, “सर, नेकलैस की डिबिया गायब है.”

“मुझे पता है. मैं तुम्हारी तलाशी ले चुका हूं. तुम्हारी पिस्तौल मेरे पास है. तुम पूरी बात मुझे बताओ.” पटेल ने कहा.

योगेन ने शुरू से अंत तक पूरी बात बता दी. उस के बाद पटेल ने कहा, “तुम्हारे और मृतका लड़की के अलावा बाहर के कमरे में 4 लोग मौजूद हैं. वे चारों इसी फ्लोर पर थे. इन में से किसी ने तुम्हारे ऊपर हमला कर के तुम्हारी मंगेतर का कत्ल किया और तुम्हारी जेब से वह नेकलैस लिया.”

“क्या, सचमुच कातिल और चोर बाहर मौजूद हैं?” योगेन ने पूछा.

“हां, क्योंकि इन लोगों के अलावा यहां कोई और नहीं था. लिफ्ट से कोई आया नहीं, सीढिय़ों वाले दरवाजे में ताला बंद था.” पटेल ने बताया.

“वे 4 लोग कौन हैं?” योगेन ने पूछा.

“मि. अतुल, उन की बीवी लिलि, डा. परीचा और एक इंश्योरैंस एजेंट प्रेमप्रकाश.”

“आप ने उन लोगों से कुछ पता किया?”

“हम ने सभी की अच्छी तरह तलाशी ले ली है. डा. परीचा और अतुल के औफिसों की भी अच्छी तरह तलाशी ले ली गई है. लेकिन नेकलैस नहीं मिला. कोई सुराग भी नहीं मिल रहा है.” पटेल ने कहा.

“हो सकता है, किसी तरह नेकलैस बाहर पहुंचा दिया गया हो?” योगेन ने कहा.

“सवाल ही नहीं उठता. हम ने लगभग सभी दरवाजे लौक करवा दिए हैं. सारे रास्ते बंद करा दिए हैं. सब से जरूरी है कातिल को पकड़ना. नेकलैस को बाद में भी ढूंढ़ लेंगे.”

“रीना को किस ने और कैसे मारा?” योगेन ने रुंधे गले से पूछा.

“किसी ने लिफाफे खोलने वाली छुरी, जो उस की मेज पर रखी रहती थी, उसी को उस के सीने में घोंप कर मार दिया है. तुम्हारे सिर पर पीछे से एक पाइप से वार किया गया था, जिस पर कपड़ा लपेटा हुआ था.”

“अब आप क्या करेंगे?” उस ने पूछा.

“मैं तुम्हारे सामने उन चारों को बुला कर पूछताछ करूंगा. तुम सारी बातें सुनते रहना, शायद उस में काम की कोई बात निकल आए.” इंसपेक्टर पटेल ने कहा.

इस के बाद उन्होंने लिलि और अतुल को बुलवाया. लिलि ने सवालिया नजरों से योगेन की ओर देखा तो योगेन ने उसे नजरंदाज कर के उस के पति की ओर देखा. वह एक छोटे कद का भारीभरकम आम सा आदमी था, जबकि लिलि काफी खूबसूरत थी.

अतुल ने आते ही ऐतराज करते हुए कहा, “मैं पुलिस का हर तरह से सहयोग कर रहा हूं, फिर भी मुजरिमों की तरह मेरी तलाशी ली जा रही है. मेरी बीवी को भी पूछताछ में शामिल किया गया है.”

पटेल ने उस के ऐतराज पर ध्यान दिए बगैर योगेन का उस से परिचय कराया. अतुल ने हमदर्दी से कहा, “तो तुम्हीं से रीना की शादी होने वाली थी?”

योगेन ने ‘हां’ में सिर हिलाया.

“उस की मौत का मुझे बहुत अफसोस है. रीना अकसर तुम्हारा जिक्र किया करती थी. उसी के कहने पर मैं ने तुम्हारी फर्म की नेकलैस का और्डर दिया था. काश, मैं ऐसा न करता.” अफसोस जाहिर करते हुए अतुल ने कहा.

“इस का मतलब तुम ने रीना की सिफारिश पर नेकलैस का और्डर दिया था?” पटेल ने कहा.

“जी, मेरे और्डर पर इस लडक़े को फायदा होता. हालांकि यह उस फर्म का सेल्समैन नहीं है, फिर भी रीना के कहने पर मैं ने उस फर्म से संपर्क कर और्डर देते हुए कहा था कि वह नेकलैस योगेन के जरिए मुझे भिजवा दिया जाए, ताकि उसे फायदा हो जाए.”

“मि. अतुल, सब से पहले तुम ने रीना और योगेन को देखा था?” पटेल ने पूछा.

“मैं अपने औफिस में बैठा था. रिसेप्शन पर मुझे शोर सुनाई दिया तो मैं ने घंटी बजाई कि रीना को बुला कर इस शोर के बारे में पता करूं. लेकिन रीना की तरफ से कोई जवाब नहीं आया तो मैं बाहर निकला. तब ये दोनों मुझे फर्श पर पड़े मिले. रीना के सीने में लिफाफे खोलने वाली छूरी घुसी हुई थी और यह योगेन बेहोश पड़ा था.”

“फिर…?”

“मैं मामला समझ ही रहा था कि प्रेमप्रकाश अंदर आए. मैं ने उन से डा. परीचा को बुलाने को कहा. इस के बाद पुलिस को फोन किया.”

“मिसेज अतुल पराशर मैं यह जानना चाहता हूं कि तुम अपने पति के औफिस में आने से पहले डा. परीचा के औफिस में क्यों गई थीं? और तुम ने योगेन से यह क्यों कहा कि वह इस बात का किसी से जिक्र न करे?”

लिलि ने गुस्से से योगेन की ओर देखा. उस के बाद बोली, “इंसपेक्टर, योगेन या तो ख्वाबों की दुनिया में रहता है या बहुत बड़ा झूठा है.”

“ठीक है, हम डा. परीचा से पता कर लेते हैं, लेकिन उस से पहले प्रेमप्रकाश से बात करूंगा. वहीं डा. परीचा को बुलाने गया था. अगर तुम वहां थीं तो उस ने तुम्हें जरूर देखा होगा?” पटेल ने रूखेपन से कहा.

“जरूर जरूर, अगर सच में मैं डा. परीचा के पास थी तो प्रेमप्रकाश जरूर बता देगा.” लिलि ने कहा.

चोट : मिला कत्ल का सुराग – भाग 1

योगेन नपे तुले कदमों से आगे बढ़ते हुए साफ महसूस कर रहा था कि आगे चल रही महिला उस से डर रही है. उस अंधेरे कौरीडोर में वह बारबार पीछे मुड़ कर देख रही थी. उस की आंखों में एक अंजाना सा डर था और वह बेहद घबराई हुई लग रही थी. शायद उसे लग रहा था कि वह उस का पीछा कर रहा है.

बिजनैस सेंटर में ज्यादातर औफिस थे, जिन में अब तक काफी बंद हो चुके थे. इस बिजनैस सेंटर में खास बात यह थी कि इस के औफिस में किसी भी समय आयाजाया जा सकता था. इसीलिए सेंटर के गेट पर एक रजिस्टर रख दिया गया था, जिस में आनेजाने वालों को अपना नामपता और समय लिखना होता था.

महिला रजिस्टर में अपना नामपता और समय लिख कर तेजी से आगे बढ़ गई. उस के बाद योगेन भी नामपता और समय लिख कर महिला के साथ लिफ्ट में सवार हो गया था. लिफ्ट में महिला ने एक बार भी नजर उठा कर उस की ओर नहीं देखा. शायद वह अपने खौफ पर काबू पाने की कोशिश कर रही थी.

योगेन ने लिफ्ट औपरेटर से कहा, “सातवीं मंजिल पर जाना है.”

इस पर महिला ने चौंक कर उस की ओर देखा, क्योंकि उसे भी उसी मंजिल पर जाना था. यह सोच कर उस की सांस रुकने लगी कि यह आदमी क्यों उस के पीछे लगा है?

चंद पलों में ही सातवीं मंजिल आ गई. लिफ्ट का दरवाजा खुलते ही महिला तेजी से निकली और उसी रफ्तार से आगे बढ़ गई. उस की ऊंची ऐड़ी के सैंडल फर्श पर ठकठक बज रहे थे. तेजी से चलते हुए उस ने पलट कर देखा तो गिरतेगिरते बची. योगेन की समझ में नहीं आ रहा था कि वह उस महिला को कैसे समझाए कि वह उस का पीछा नहीं कर रहा, इसलिए उसे उस से डरने की कोई जरूरत नहीं है.

आगे बढ़ते हुए योगेन दोनों ओर बने धुंधले शीशे वाले औफिसों पर नजर डालता जा रहा था. अंधेरा होने की वजह से दरवाजों पर लिखे नंबर ठीक से दिखाई नहीं दे रहे थे. कौरीडोर खत्म होते ही महिला बाईं ओर मुड़ गई. वह भी उसी ओर मुड़ा तो महिला और ज्यादा सहम गई.

वह और तेजी से आगे बढ़ कर एक औफिस के आगे रुक गई. उस की लाइट जल रही थी. दरवाजे के हैंडल पर हाथ रख कर उस ने योगेन की ओर देखा. लेकिन वह उस के करीब से आगे बढ़ गया. आगे बढ़ते हुए योगेन ने दरवाजे पर नजर डाली थी. उस पर डा. साहिल परीचा के नाम का बोर्ड लगा था. उस के आगे बढ़ जाने से महिला हैरान तो हुई ही, उसे यकीन भी हो गया कि वह उस का पीछा नहीं कर रहा था.

योगेन अंधेरे में डूबे दरवाजों को पार करते हुए आगे बढ़ता रहा. उस कौरीडोर में आखिरी दरवाजे से रोशनी आ रही थी. आगे बढ़ते हुए उस ने अपनी दोनों जेबें थपथपाई. एक जेब में पिस्तौल था, जिसे इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं पड़ी थी. दूसरी जेब में 50 लाख रुपए की कीमत का बहुमूल्य हीरे का नेकलैस मखमल की एक डिब्बी में रखा था. जिसे लेने से पहले योगेन ने अच्छी तरह चैक किया था. वह वही नेकलैस पहुंचाने यहां आया था.

दरवाजा खोलने से पहले योगेन ने पलट कर देखा तो वह महिला अभी तक दरवाजे पर खड़ी उसी को देख रही थी. योगेन ने उसे घूरा तो वह हड़बड़ा कर जल्दी से अंदर चली गई. योगेन ने एक बार फिर खाली कौरीडोर को देखा और दरवाजा खोल कर अंदर चला गया.

सामने रिसैप्शन में बैठी लड़की उसे देख कर मुसकराते हुए उठी और उस के गले लग गई. योगेन कुछ कहता, उस के पहले ही वह बोली, “तुम एकदम सही समय साढ़े 8 बजे आए हो डियर. उसे साथ ले आए हो न?”

“हां, ले आया हूं.” योगेन ने जेब पर हाथ फेरते हुए कहा.

“कैसा है, क्या बहुत खूबसूरत है?” लड़की ने बेचैनी से पूछा.

योगेन ने लड़की का हाथ पकड़ कर उस के बाएं हाथ की हीरे की अंगूठी देखते हुए कहा, “रीना, नेकलैस के सारे हीरे इस से बड़े और काफी कीमती हैं.”

“योगेन, फिर कभी ऐसा मत कहना. मेरे लिए यह अंगूठी दुनिया की सब से कीमती चीज है. जानते हो क्यों? क्योंकि इसे तुम ने दिया है. यह तुम्हारे प्यार की निशानी है.” रीना योगेन की आंखों में झांकते हुए प्यार से कहा.

रीना की इस बात पर योगेन मुसकराया.

रीना ने अपने बैग से टिशू पेपर निकालते हुए कहा, “तुम्हारे गाल पर मेरी लिपस्टिक का निशान लग गया है…” रीना इतना ही कह पाई थी कि उस की आंखें हैरानी से फैल गईं और आगे की बात मुंह में ही रह गई.

रीना की हालत से ही योगेन अलर्ट हो गया. वह समझ गया कि उस के पीछे जरूर कोई मौजूद है. उस ने मुडऩे की कोशिश की कि तभी उस के सिर के पिछले हिस्से पर कोई भारी चीज लगी और वह रीना की बांहों में गिर कर बेहोश हो गया. जब उसे होश आया तो उसे लगा कि वह किसी मुलायम चीज पर लेटा है. सिर के पिछले हिस्से में तेज दर्द हो रहा था. उस के होंठों से कराह निकली. आंखें खोलने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहा.

उसे लगा जैसे उस की आंखों पर भारी बोझ रखा है. फिर भी उस ने हिम्मत कर के आंखें खोल दीं. लेकिन तेज रोशनी से उस की आंखें बंद हो गईं. उस के कानों में कुछ आवाजें पड़ रही थीं. कोई कह रहा था, “ओह गाड, यह क्या हुआ?”

“पता नहीं, मैं ने इसे इसी तरह पड़ा पाया था.” किसी ने जवाब दिया.

“अरे इसे होश आ रहा है.” किसी ने कहा.

इस के बाद 2-3 लोगों ने मिल कर योगेन को उठाया तो उस के हलक से कराह निकल गई.

“आराम से, शायद यह जख्मी है. शायद इसे दिमागी चोट आई है. रुको डा. परीचा के औफिस में लाइट जल रही है. मैं उन्हें बुला कर लाता हूं.” किसी ने भारी आवाज में कहा.

“ठीक है, डाक्टर को जल्दी ले कर आओ.” किसी अन्य ने कहा.

अब तक योगेन को पूरी तरह से होश आ गया था. कोई धीरेधीरे उस के शरीर को टटोल रहा था. शायद चोट तलाश रहा था. जैसे ही उस का हाथ योगेन के सिर के पीछे पहुंचा, उसके मुंह से कराह निकल गई. उस का शरीर कांप उठा.

“इस का मतलब सिर के पिछले हिस्से में काफी गहरी चोट लगी है. इसे उठा कर सोफे पर लिटाओ, उस के बाद देखता हूं.”

योगेन को उठा कर मुलायम और आरामदेह सोफे पर लिटा दिया गया. इस के बाद कोई उस के जख्म की जांच करने लगा तो उसे तकलीफ हुई और वह दोबारा बेहोश हो गया.

लड़की, लुटेरा और बस – भाग 7

मेरा खौफ, डर सब खत्म हो चुका था. डीसी साहब चूंकि अभी एक दुख उठा चुके थे, इसलिए वह जरूरत से ज्यादा डरे हुए थे. यह डर वक्त गुजरने के साथसाथ बढ़ता जा रहा था. अब नौबत यहां तक आ पहुंची थी कि इस मसले पर एसपी और डीएसपी साहब बहुत गंभीर नजर आने लगे थे. कोई भी जरा सा रिस्क लेने को तैयार नहीं था.

मैं ने वरदी उतारी और लपेट कर झाडिय़ों में छिपा दी. इस के बाद धीरेधीरे आगे बढऩे लगा. मैं कोहनियों और घुटनों के बल रेंगता रहा. बस के करीब पहुंच कर बस के पहियों के बीच से निकल कर ड्राइविंग सीट की तरफ से बाहर निकल आया. बस के बगल में छिप कर मैं ने अंगुली से लोहे की चादर को बजाया. ठकठक की आवाज पैदा की.

थोड़ा रुक कर फिर ठकठक की. इस बार चलने और बड़बड़ाने की आवाज आई. मैं एकदम अलर्ट था. मैं बैठा हुआ था. सिर ऊंचा था, नजर खिडक़ी पर जमी थी. मुझे खिडक़ी से किसी की ठोढ़ी और नाक की चोंच नजर आई. बदरू आवाज की वजह जानने को नीचे झांक रहा था.

लेकिन उस ने गरदन खिडक़ी से बाहर निकालने की गलती नहीं की. फिर भी मैं उस की जगह जान चुका था. बहुत तेजी से अपनी जगह पर उछल कर खड़ा हो गया और उस के बाल मुट्ठी में पकड़ लिए. इस के पहले कि वह कुछ समझ पाता, मैं ने एक जोरदार झटका दिया, जिस से उस का आधा धड़ खिडक़ी से बाहर आ गया.

उस के दाएं हाथ में हथगोला बम मुझे दिखाई दिया. उसी समय बस में लड़की की चीखें गूंजी. उन में भगदड़ मच गई. मैं ने बहुत नफरत और गुस्से से दूसरा झटका मारा तो झनाके की आवाज से खिडक़ी का शीशा टूट गया और बदरू कांटे में फंसी मछली की तरह तड़प कर नीचे आ गिरा. वह अपना दायां हाथ मुंह की तरफ बढ़ा रहा था. अगर वह कामयाब हो जाता तो तबाही मच जाती. मैं ने उस की दाहिनी कलाई थाम कर बालों को जोर से झटका दिया.

वह सैफ्टी पिन खींचने के लिए बम को अपने मुंह के करीब ला रहा था. मैं पूरी ताकत से उस का हाथ मुंह से दूर रखने की कोशिश कर रहा था. मैं ने बस की खिड़कियों में कुछ लड़कियों के खौफजदा चेहरे देखे, मैं ने चिल्ला कर कहा, “भाग जाओ तुम लोग.”

मेरी आवाज सुन कर वे सब जैसे होश में आईं. अब तक कुछ लड़कियां दरवाजे की सिटकनी खोल चुकी थीं. फिर मैं ने लड़कियों के भागने की और चीखने की आवाजें सुनीं. मैं ने पूरी ताकत से बदरू का हाथ मरोड़ दिया. बम उस के हाथ से छूट कर नीचे गिर गया. बम जैसे ही नीचे गिरा, मैं ने खड़े हाथ का एक जोरदार वार उस की गरदन पर किया तो उस की पकड़ ढीली पड़ गई.

मैं ने उस का सिर जमीन से टकराया तो कराह के साथ उस ने हाथपैर फेंक दिए. मुझे यकीन था कि वह एक घंटे से पहले होश में नहीं आएगा. उसी वक्त मैं ने बस के अंदर जूतों की ठकठक सुनी. मेरे साथी बस में दाखिल हो चुके थे. मैं तेजी से भागता हुआ वहां आया, जहां अपने कपड़े रखे थे. उन्हें उठा कर झाडिय़ों की आड़ लेता हुआ सडक़ पर आ गया.

कुछ अरसे बाद मैं इनायत खां की बेटी नजमा और शारिक की शादी में शामिल हुआ. दोनों खानदानों में सुलह हो चुकी थी. शादी खूब धूमधाम से हुई. शादी में पुलिस के बड़े अफसर और दूसरे विभाग के भी बड़े अफसर शामिल थे. दूल्हा अपने दोस्तों में खुश बैठा था. सब से ज्यादा गुरविंदर सिंह खुश था.

निकाह हो चुका था. खाने का इंतजार हो रहा था. मेरे साथ ही बैठे एसपी साहब एक डाक्टर और जज साहब से बस वाले हादसे की डिटेल बता रहे थे. एसपी साहब कह रहे थे, “4 बजे सुबह हम बस पर छापा मारने ही वाले थे (वैसे छापे का कोई प्रोग्राम नहीं था) कि हालात एकदम बदल गए. उसी वक्त मुलजिम का एक साथी वहां पहुंचा. न जाने क्यों बदरू और उस का झगड़ा हो गया. लड़कियों ने उन दोनों को गुत्थमगुत्था देखा तो बस से भाग निकलीं.”

बात खत्म होने पर एसपी साहब ने मुसकरा कर मेरी ओर देख कर कहा, “हमारे डिपार्टमेंट में कुछ ऐसे लोग हैं, जिन पर मुझे फख्र है.”

इस के पहले जब भी इस हादसे का जिक्र हुआ था, उन्होंने मुझे मुसकरा कर तारीफी नजरों से देखा था. एक बार तो उन्होंने कह भी दिया था, “नवाज खां, कभी उस पतलून वाले का पता तो लगाओ, पुलिस में उस जवान को भरती कर लेंगे.”

चुप रहने में ही मेरी भलाई थी. दरअसल एसपी जानते थे कि उस रात बदरू को मार कर बेहोश करने वाला मैं ही था.