मैं थाने में बैठा कत्ल की एक फाइल को पढ़ रहा था, तभी एक आदमी आया जो आते ही बोला, “साहब, मेरा नाम जाहिद है और मैं इसी कस्बे में रहता हूं. मेरी पत्नी भाग गई है. मेरी रिपोर्ट दर्ज कर के उस के बारे में पता लगाने की कोशिश करिए.”
उस की बात सुन कर मैं चौंका. उस की तरफ देखते हुए मैं ने पूछा, “यह तुम कैसे कह सकते हो?”
“पिछली रात, जब मैं बाथरूम गया था तो वह बिस्तर पर नहीं थी, बाहर का दरवाजा देखा तो कुंडी अंदर से खुली थी. इस
से मुझे लगा कि वह भाग गई है.”
“तुम्हारी बातों से यही लगता है कि तुम्हें पहले से ही शक था कि तुम्हारी पत्नी भाग जाएगी. क्या तुम ने उस के मायके वालों
से पता किया है कि वह वहां तो नहीं चली गई? तुम्हारी ससुराल कहां है?”
“ससुराल तो यहीं है, लेकिन मैं ने वहां पता नहीं किया,” उस ने जवाब में कहा.
“क्या तुम अपने मातापिता के साथ रहते हो?”
“नहीं जी, मैं अलग रहता हूं. लेकिन वह आधी रात को मेरे या अपने मातापिता के घर जा कर क्या करेगी? वह गांव के ही
करामत के साथ गई होगी.”
“यह बात तुम इतने दावे से कैसे कह सकते हो?”
“वह इसलिए कि उस का पहले से ही उस के साथ चक्कर चल रहा था. वह भी अपने घर पर नहीं है.”
“उसे रोकने के लिए तुम ने कुछ नहीं किया?”
“बहुत कुछ किया था. उस के मातापिता से भी शिकायत की थी. मैं ने उस की कई बार पिटाई भी की, लेकिन वह नहीं मानी. मेरे ससुर डीसी औफिस में हैडक्लर्क हैं. मेरे शिकायत करने पर उलटे उन्होंने मेरा अपमान करते हुए मुझे बंद कराने की धमकी दी थी. वह जिस आदमी के साथ गई है, वह भी बहुत पैसे वाला बदमाश किस्म का है.
“अच्छा, तुम मलिक नूर अहमद की बात कर रहे हो,” मैं ने कहा, “वह तुम्हारे ससुर हैं?”
उस के ससुर को मैं जानता था. वह डिप्टी कमिश्नर के दफ्तर में हैडक्लर्क थे, डीसी दफ्तर में नौकरी करना बड़े सम्मान की बात थी.
“आप देख लीजिएगा, वह कभी नहीं मानेंगे कि उस की बेटी भाग गई है. वह मेरे खिलाफ कोई न कोई फंदा डाल देंगे.” उस ने कहा.
मैं ने जाहिद से वह सभी बातें पूछीं, जो ऐसे मामले में पूछनी जरूरी होती हैं. करामत नाम के जिस शादीशुदा आदमी के साथ वह बीवी के भागने की बात कर रहा था, मैं ने उस का भी नामपता नोट कर के एक कांस्टेबल को करामत को बुलाने के लिए उस के घर भेज दिया. लेकिन कांस्टेबल उस की जगह उस के पिता और भाई को ले आया. दोनों ही डरे हुए थे.
उन्होंने बताया कि करामत घर पर नहीं है. पिता ने कहा कि वह सुबह ही घर से निकल गया था, जबकि भाई का कहना था कि वह रात का खाना खा कर निकला था और घर नहीं आया था. दोनों के बयान अलगअलग होने की वजह से मैं ने बाप से पूछा. मेरे सवालों से बाप परेशान हो गया. उस की आंखें लाल हो गईं. लग रहा था कि वह रोने वाला है.
वह कहने लगा, “साहब, मेरा यह बेटा पता नहीं मुझे कहांकहां अपमानित कराएगा. उसी की वजह से मुझे आज थाने आना पड़ा.”
यह कहते समय उस के चेहरे पर जो भाव उभरे, वह मुझे आज भी याद हैं. उस ने आगे कहा, “बड़ी इज्जत से जिंदगी गुजारी थी. लेकिन आज उस की वजह से मुझे झूठ बोलना पड़ा. करामत शाम को ही घर से निकला था. अभी तक उस के घर न लौटने पर मुझे भी लगने लगा है कि कहीं वह उसी के साथ ही तो नहीं भागी? बेटे को बचाने के लिए ही मैं झूठ बोल रहा था.”
वह एक सम्मानित आदमी था, इसलिए मैं उसे पूरा सम्मान दे रहा था. वह अपने बेटे को बचाने की पूरी कोशिश में था. मैं ने उसे झूठी सांत्वना देते हुए कहा कि मैं उस के बेटे को बचाने की पूरी कोशिश करूंगा.
इस के बाद उस ने कहा, “साहब मैं ने करामत की शादी 4 साल पहले एक सुंदर, सुघड़ और सुशील लडक़ी से की थी. लेकिन उस ने उसे दिल से कबूल नहीं किया, क्योंकि वह मुनव्वरी नाम की एक लडक़ी से शादी करना चाहता था. हम ने मुनव्वरी का हाथ उस के बाप से मांगा, लेकिन पता नहीं क्यों उस ने मना कर दिया. मुनव्वरी बड़ी दिलेर निकली, उस ने अपने पति की परवाह नहीं की और करामत से मिलना जारी रखा.
“पता चला है कि इसी बात को ले कर मुनव्वरी की अपने पति से रोज लड़ाई होती थी. मैं ने भी अपने बेटे को समझाया, लेकिन वह मेरी सुनता ही नहीं था. इसी वजह से वह अपनी बीवी में ज्यादा रुचि नहीं लेता था.
“इस के बावजूद भी उस की बीवी संतोष कर के बैठी रही. उसे एक बच्चा भी हो गया, फिर भी करामत ने घर को घर नहीं समझा. मुनव्वरी के जाल में ऐसा फंसा रहा कि मांबाप और बीवीबच्चों को भूल गया.
“मुनव्वरी के बाप को भी पता था कि उस की बेटी क्या कर रही है. लेकिन डीसी औफिस में नौकरी करने की वजह से वह घमंड में चूर रहता था. उस ने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया.”
मैं ने उस से पूछा, “क्या आप बता सकते हैं कि करामत मुनव्वरी को ले कर कहां गया होगा?”
वह सोच कर बोला, “जबलपुर छावनी में उस के चाचा का लडक़ा रहता है. वह फौज में है. उस से करामत की गहरी दोस्ती है. हो सकता है वह वहीं गया हो?”
मैं ने उन दोनों से पूछताछ कर के उन्हें घर भेज दिया. मुनव्वरी और करामत के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हो चुकी थी. यह मामला खोजबीन का नहीं, पीछा करने का था. खोजबीन उस मामले में होती है, जिस में अपराधी का पता न हो. इस मामले में अपराधी का नामपता सब कुछ था. उन दोनों को सिर्फ ढूंढना था. मैं ने दोनों की फोटो ले कर विभिन्न थानों को सूचना भेज दी. इस मामले को मैं खुद देख रहा था. करामत के चरित्र के बारे में पता चला कि वह इसी कस्बे में एक बैंक में नौकरी करता था, साथ ही एक बीमा कंपनी में एजेंट भी था.