सावधान! ऐसे दोस्तों से : दोस्त की बेटी पर बुरी नजर – भाग 3

रईस मंसूरी ने बाद में इनवर्टर का काम शुरू कर दिया. उस ने एकएक कर के 4 शादियां कीं. 3 बीवियों को वह तलाक दे चुका था, अब चौथी बीवी नुसरतजहां के साथ रह रहा था. पति के मरने के बाद तसलीमा को आर्थिक परेशानी हुई तो रईस ने उस की काफी मदद की. इस वजह से वह रईस की एहसानमंद हो गई.

तसलीमा की बेटियां जवान हो चुकी थीं. रईस की नीयत उस की बड़ी बेटी पर खराब हो गई. वह उसे फंसाने की कोशिश करने लगा. उसे इस बात की भी शर्म नहीं आई कि वह उस के लंगोटिया यार की बेटी है. एक तरह से वह उस की बेटी की तरह है. लेकिन उस ने इस ओर ध्यान नहीं दिया.

उसे फंसाने के लिए वह उस की पसंद की चीजें खरीद कर देने लगा. आखिर एक दिन वह अपनी योजना में सफल हो गया. नाजायज संबंध बने तो यह सिलसिला काफी दिनों तक चला. उस ने उस के अंतरंग संबंधों की मोबाइल से फिल्म भी बना ली थी.

तसलीमा के घर वालों को रईस मंसूरी पर इतना विश्वास था कि कोई उस के बारे में कुछ गलत सोच भी नहीं सकता था. इसी की आड़ में वह अपने मंसूबे पूरे कर रहा था. कुछ दिनों बाद तसलीमा की बेटी ने महसूस किया कि रईस से संबंध बना कर उस ने ठीक नहीं किया, क्योंकि वह उस की पिता की उम्र का है. उस से वह शादी भी नहीं कर सकती.

यह अहसास होने के बाद वह उस से दूरियां बनाने लगी. लेकिन रईस उस का पीछा छोडऩे को तैयार नहीं था. उस ने जो वीडियो बना रखी थी, उसी के बल पर वह उसे ब्लैकमेल करने लगा. रईस ने उसे धमकी दी कि अगर उस ने उस की बात नहीं मानी तो वह उस वीडियो को इंटरनेट पर डाल देगा. इस धमकी से वह डर गई. इस तरह रईस उस का शारीरिक व मानसिक शोषण करने लगा.

तसलीमा का बेटा आलम अब जवान हो चुका था. वह दुनियादारी समझने लगा था. अपने घर आने वाले रईस की गतिविधियां उसे अच्छी नहीं लगती थीं. क्योंकि वह जब भी उस के घर आता था, उस की बहन के आगेपीछे मंडराता रहता था. वह रईस से तो कुछ कह नहीं कहा, क्योंकि वह उस के मरहूम पिता की उम्र का था. उस की अम्मी भी उस की बड़ी इज्जत करती थी. इसलिए उस ने बहन को ही डांटा कि वह रईस ज्यादा बातें न किया करे.

आलम को पता नहीं था कि बात तो उस की बहन भी नहीं करना चाहती, पर रईस ने वीडियो फिल्म का ऐसा खौफ उस के दिल में बैठा दिया है कि ना चाहते हुए भी वह रईस की हर बात मानती है. एक दिन आलम के एक दोस्त ने अपने मोबाइल में उसे एक वीडियो दिखाई. वह वीडियो देख कर आलम का खून खौल उठा. उस वीडियो में उस की बहन रईस के साथ आपत्तिजनक स्थिति में थी. उस के दोस्त को वह फिल्म रईस ने ही दी थी.

इस के बाद रईस आलम का दुश्मन बन गया. उस ने मन ही मन तय कर लिया कि वह उसे उस के किए की सजा जरूर देगा. अपने दिल में उठ रहे गुस्से के सैलाब को उस ने जाहिर नहीं होने दिया और रईस को ठिकाने लगाने का उपाय खोजने लगा. आखिर उस ने एक खौफनाक योजना बना ही ली.

आलम को अपने घर में इनवर्टर लगवाना था. चूंकि रईस इनवर्टर का काम करता था, इसलिए उस ने रईस को इनवर्टर लगाने के लिए 5 हजार रुपए दे दिए. रईस के पास काम ज्यादा था, इसलिए उस ने सोचा कि जिस दिन उसे टाइम मिलेगा, वह आलम के यहां जा कर इनवर्टर लगा देगा.

आलम ने रईस को फोन किया तो उस ने आलम से कह दिया कि 15 दिसंबर की शाम को वह उस के यहां इनवर्टर लगा देगा. आलम ने उसी दिन रईस को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली. इस काम में उस ने अपने एक दोस्त शोएब को भी शामिल कर लिया.

उस दिन शाम को वह रईस के आने का इंतजार करने लगा. शाम साढ़े 7 बजे तक रईस उस के यहां नहीं पहुंचा तो उस ने उसे फोन किया. फोन पर बात करने के कुछ देर बाद रईस अपनी स्कूटी से आलम के यहां पहुंच गया.

योजना के अनुसार, आलम ने शराब की एक बोतल पहले से ही खरीद कर रख ली थी. रईस ने जब उस के यहां इनवर्टर लगा दिया तो वह रईस को एक कमरे में ले गया. उस कमरे में मेज पर शराब की बोतल और नमकीन पहले से ही रखी थी.

आलम ने कहा, “इनवर्टर लगने की खुशी में मैं ने छोटी सी पार्टी रखी है.”

रईस मना नहीं कर सका और आलम तथा शोएब के साथ शराब पीने बैठ गया. आलम ने तेज आवाज में डेक बजा दिया. जैसे ही उन का पीनेपिलाने का दौर खत्म हुआ, आलम अपनी जगह से उठा और कमरे में पहले से रखे हथौड़े से रईस के सिर पर जोरदार वार कर दिया. एक ही वार में रईस बिना कोई आवाज किए नीचे गिर गया. सिर से खून बहने लगा. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

हत्या के बाद उन के सामने समस्या लाश ठिकाने लगाने की थी. नाराज आलम ने उस की गरदन काट दी. इस के बाद उस ने लाश के टुकड़े कर के 4 बोरों में भर दिए और आधी रात को उन बोरों को एकएक कर के रामगंगा नदी के किनारे फेंक आया. कमरे में जमीन पर जो खून फैला था, उसे भी उस ने मिट्टी सहित कुरच कर एक बोरे में भर दिया और उसे भी जामा मस्जिद के नाले में डाल आया. उस की स्कूटी को उस ने रामगंगा नदी के पार मजार के पास बने कुंड में फेंक दी.

पूछताछ के बाद पुलिस ने आलम के साथी शोएब को भी गिरफ्तार कर लिया. आलम की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त हथौड़ा, चाकू, आरी के ब्लेड, मृतक का मोबाइल फोन और स्कूटी बरामद कर ली. इस के बाद उन्हें न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

(कथा पुलिस सूत्रों व अभियुक्त आलम के बयान पर आधारित. कथा में तसलीमा परिवर्तित नाम है)

एक और युग का अंत – भाग 3

राजेश की ऊपर की कमाई तो पहले ही बंद हो चुकी थी, अब नौकरी भी चली गई. दूसरी नौकरी के लिए उस ने बहुत कोशिश की, लेकिन कहीं जुगाड़ नहीं बन सका. कहीं कोई उम्मीद भी नजर नहीं आ रही थी. मौजमजे की जिंदगी जी रहा राजेश दवरे एक एक पैसे के लिए मोहताज हो गया. उस का अपना और घर का खर्च कैसे चले, इस बात को ले कर वह परेशान रहने लगा.

अपनी इस स्थिति के लिए राजेश डा. मुकेश चांडक और उन के बेटे युग को जिम्मेदार मान रहा था. उसे लगता था कि यह सब युग की वजह से हुआ है. वह इस बात को हजम नहीं कर पा रहा था. उसे डा. मुकेश चांडक और युग से पहले ही नफरत थी. कहीं कामधाम न मिलने की वजह से धीरेधीरे वह बढ़ती ही गई और हालात यह हो गए कि वह डा. मुकेश चांडक से अपमान का बदला लेने और युग को उस के किए की कठोर से कठोर सजा देने के बारे में सोचने लगा.

इसी सोचनेविचारने में उस के दिमाग में युग के अपहरण की बात आ गई. उस ने सोचा कि युग का अपहरण कर के वह उसे खत्म कर देगा. उस के बाद फिरौती के रूप में डाक्टर से मोटी रकम वसूल करेगा. इस से बाप बेटे दोनों को सबक मिल जाएगा.

राजेश दवरे की यह योजना खतरनाक तो थी ही, उस के अकेले के वश की भी नहीं थी. इस के लिए उसे एक साथी की जरूरत थी. उस ने साथी की तलाश शुरू की तो उस की नजर अपने दोस्त अरविंद सिंह पर टिक गई. उस ने उसे अपनी योजना समझा कर मोटी रकम का लालच दिया तो वह उस का साथ देने को तैयार हो गया.

राजेश दवरे ने अरविंद से कहा था कि युग का अपहरण कर के वह डा. मुकेश चांडक से 15 करोड़ रुपए फिरौती में वसूल करेगा. इस से उस का बदला भी पूरा हो जाएगा और मिली हुई रकम से दोनों पार्टनशिप में एक अच्छा सा होटल खरीदेंगे, जिस में बीयर बार खोल कर दोनों मौजमस्ती करेंगे.

25 वर्षीय अरविंद सिंह राजेश दवरे के पड़ोस में ही रहता था. उस का परिवार काफी संपन्न था, लेकिन आवारा दोस्तों के साथ रहने की वजह से वह बिगड़ गया था. राजेश के साथ रहते हुए उसे भी मौजमस्ती का शौक लग गया था. इसीलिए वह राजेश के बहकावे में आ गया था. राजेश को डा. मुकेश चांडक के बारे में सब पता था. वह जानता था कि डा. चांडक अपने लाडले बेटे युग के लिए आसानी से 10-15 करोड़ रुपए दे देगा.

अरविंद तैयार हो गया तो युग को उठाने की जिम्मेदारी राजेश ने उसे ही सौंपी. क्योंकि उसे युग और सोसायटी के गार्ड पहचानते थे. वह यह भी जानता था कि युग उस के साथ कभी नहीं जाएगा. इसलिए उस ने अरविंद को युग के बारे में सब कुछ समझा कर उसे धोखा देने के लिए अपनी वह शर्ट दे दी, जो उसे क्लिनिक में काम करते समय पहनने को दी गई थी.

1 सितंबर को अरविंद सिंह पूरी तैयारी कर के अपनी स्कूटी से उस सोसायटी में जा पहुंचा, जिस में डा. चांडक परिवार के साथ रहते थे. उस समय दिन के पौने 4 बज रहे थे. उस ने सोसायटी के गार्ड से युग के बारे में पूछा. तब तक युग स्कूल से आया नहीं था. अरविंद की यही गलती गिरफ्तारी की वजह बनी. गार्ड ने उसे बताया था कि युग 4 बजे आएगा. 4 बजे युग की स्कूल बस आई तो वह स्कूटी ले कर उस के पास जा पहुंचा.

बस से उतर कर युग घर की ओर बढ़ा तो अरविंद ने उस के सामने आ कर कहा, ‘‘युग जल्दी चलो, तुम्हारे पापा ने तुम्हें बुलाया है.’’

चूंकि अरविंद डा. मुकेश चांडक की क्लिनिक में पहनी जाने वाली शर्ट पहने था, इसलिए युग को उस पर सहज ही विश्वास हो गया. उस ने अपना स्कूल बैग सिक्योरिटी गार्ड की खाली पड़ी कुर्सी पर फेंका और अरविंद सिंह की स्कूटी पर कूद कर बैठ गया. अरविंद उसे ले कर सोसायटी के बाहर रास्ते में खड़े राजेश के पास जा पहुंचा. युग कुछ समझ पाता, उस के पहले ही राजेश दवरे ने क्लोरोफार्म में भीगी रूमाल उस की नाक पर रख दी, जिस से वह बेहोश हो गया. इस के बाद वह पीछे बैठ गया.

राजेश दवरे और अरविंद सिंह ने युग का अपहरण तो आसानी से कर लिया, लेकिन अब उसे वे छिपा कर रखे कहां, इस की उन के पास कोई व्यवस्था नहीं थी. इसलिए उन्होंने उसे तुरंत ठिकाने लगाने यानी खत्म करने की योजना बना डाली. वे उस की हत्या करने के इरादे से उसे शहर से बाहर खापरघेड़ा की ओर ले कर चल पड़े.

शहर से 20 किलोमीटर दूर लोणखेरी पहुंचतेपहुंचते अंधेरा हो चुका था. उन्हें इस बात का भी डर सता रहा था कि अगर युग को होश आ गया तो संभालना मुश्किल हो जाएगा. इसलिए वे जल्द से जल्द युग को ठिकाने लगा देना चाहते थे.

लोणखेरी के पास सड़क पर उन्हें एक पुल दिखाई दिया तो उन्होंने स्कूटी रोक दी. वह स्थान सुनसान था. युग को उठा कर दोनों पुल के नीचे ले गए. अब तक युग को होश आ गया था. वह समझ गया कि वे उसे वहां क्यों ले आए हैं. वह रोते हुए प्राणों की भीख मांगने लगा. लेकिन नफरत की आग में जल रहे राजेश दवरे को उस मासूम पर बिलकुल दया नहीं आई और गला दबा कर उस ने उसे मार डाला.

युग को मौत के घाट उतार कर उन्होंने स्कूटी में रखे पेचकस से एक गड्ढा खोदा और शव को उसी में रख कर ढंक दिया. युग की हत्या करने के बाद उन्होंने डा. चांडक को फोन कर के 15 करोड़ की फिरौती मांगी, लेकिन वे रकम लेने की जगह तय कर पाते, उस के पहले ही पकड़ लिए गए.

पूछताछ में उन्होंने पुलिस को बताया कि फिल्म इनकार में जिस तरह फिरौती की रकम ली गई थी, उसी तरह वे फिरौती की रकम लेना चाहते थे. फिल्म में फिरौती की रकम बैग में भर कर चलती ट्रेन से फेंकने की बात दिखाई गई थी. पुलिस ने दोनों को साथ ले जा कर पुल के नीचे से युग का शव बरामद कर लिया था, जिसे पोस्टमार्टम के बाद घर वालों की सौंप दिया गया था.

पूछताछ के बाद इंसपेक्टर सुधीर नंदनवार ने राजेश दवरे और अरविंद सिंह को थाना लकड़गंज पुलिस के हवाले कर दिया. थाना लकड़गंज के थानाप्रभारी एस.के. जैसवाल ने वह स्कूटी भी बरामद कर ली थी, जिस से उन्होंने युग का अपहरण किया था.

इस के बाद दोनों के खिलाफ अपहरण और हत्या का मुकदमा दर्ज कर के अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. नागपुर के पुलिस कमिश्नर ने थाना गणेशपेढ की पुलिस टीम को 5 हजार रुपए का नकद इनाम दे कर सम्मानित किया था, क्योंकि इस टीम ने मात्र 12 घंटे में इस मामले को सुलझा लिया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

गोवा की खौफनाक मुलाकात – भाग 3

चंद्रप्रकाश और उन के साथियों ने अनुज और सोनम के मामले में हुई काररवाई पर रोष व्यक्त करते हुए पुलिस से उन का पोस्टमार्टम दोबारा कराने की अपील की. इस सिलसिले में वे वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से भी मिले. संदिग्ध हालात में हुई नवदंपति की हत्या की स्थितियों को देखते हुए पुलिस अधिकारी दोबारा पोस्टमार्टम कराने के लिए तैयार हो गए.

3 डाक्टरों के पैनल से जब अनुज और सोनम की लाशों का पोस्टमार्टम कराया गया तो पता चला कि उन की मौत शरीर में कोई तीक्ष्ण जहर जाने के बाद पानी में डूबने से हुई थी. यह तथ्य प्रकाश में आते ही गोवा पुलिस ने अनुज और सोनम की मौत के मामले को अपहरण, लूट, हत्या और धोखाधड़ी के तहत दर्ज कर के तेजी से जांच शुरू कर दी.

प्राथमिक जांच में पता चला कि अनुज और सोनम को 3 दिन पहले दोपहर बाद और रात को एक ऐसे खूबसूरत जोड़े के साथ देखा गया था जिन के पास सफेद रंग की आल्टो कार थी. इस मामले की जांच कर रहे सहायक पुलिस आयुक्त विनायक ने होटल के कर्मचारियों, अंजुना बीच के एक रेस्तरां के मालिक और कुछ पर्यटकों से पूछताछ की.

उन्हें पता चला कि अनुज और सोनम ने 3 दिन पहले दोपहर को एक युवा जोड़े के साथ अंजुना बीच के एक रेस्तरां में खाना खाया था. रेस्तरां के कर्मचारियों के अनुसार खाना खाते समय अनुज और सोनम के साथ जो जोड़ा था, वह देखने में पतिपत्नी लगते थे और धाराप्रवाह अंगरेजी में बात कर रहे थे. आचारव्यवहार से वे किसी संपन्न घराने के लगते थे. अनुज और सोनम को दोपहर को भी उसी जोड़े के साथ देखा गया था और रात को भी. इस से पुलिस को शक हुआ कि उन के साथ जो भी हुआ, उस का जिम्मेदार वही जोड़ा रहा होगा.

सहायक पुलिस आयुक्त विनायक ने होटल के कर्मचारियों, अंजुना बीच के रेस्तरां मालिक और कुछ पर्यटकों से पूछताछ के बाद अनुज और सोनम के साथ देखे गए युवा जोड़े का पूरा हुलिया एकत्र कर के कंप्यूटर स्केच तैयार करवाया. जिन लोगों ने उस जोड़े को अनुज और सोनम के साथ देखा था, उन के अनुसार कंप्यूटर स्केच और उस जोड़े की शक्ल काफी मिलतीजुलती थी.

इस पर जांच अधिकारी विनायक ने उस जोड़े के चित्रों वाला स्केच गोवा पर्यटन से जुड़े तमाम लोगों को दिखाया. इस छानबीन में विनायक को जानकारी मिली कि उस हुलिए के एक जोड़े को अकसर महंगे होटलों, नाइट क्लबों, डिस्कोथेक, शराबखानों और समुद्र तटों पर कितनी ही बार देखा गया था. कभी वह जोड़ा देशी पर्यटकों के साथ होता था तो कभी विदेशी पर्यटकों के साथ.

केस भी दर्ज हो गया था और जांच भी शुरू हो चुकी थी. रोतेबिलखते चंद्रप्रकाश बेटे और पुत्रवधू के शवों को ले कर अपने साथियों के साथ दिल्ली लौट आए. यह मामला चंद्रप्रकाश के परिवार और सोनम के मायके वालों के लिए दिल दहला देने वाला था. उन लोगों ने एक माह पूर्व जिस युवा जोड़े को बड़े अरमानों के साथ शादी के बंधन में बांधा था, उसी की लाशें उन के सामने पड़ी थीं.

बहरहाल, सोनम और अनुज का एक साथ अंतिम संस्कार कर दिया गया. अनुज और सोनम की क्रिया आदि से निपटने के बाद चंद्रप्रकाश पुन: गोवा पहुंचे. इस बीच गोवा पुलिस ने अपनी छानबीन से यह पता लगा लिया था कि अंतिम दिन अनुज और सोनम के साथ जिस जोड़े को देखा गया था, उन के नाम महेंद्र सागर और कामिनी सागर थे.

प्राप्त जानकारी के अनुसार पतिपत्नी का ये स्मार्ट और खूबसूरत जोड़ा संपन्न परिवार के सदस्यों की तरह रहता था और धाराप्रवाह अंगरेजी में बात करता था. अपनी वाकपटुता से महेंद्र और कामिनी किसी भी पर्यटक को अपने जाल में फंसाने में सक्षम थे. गोवा के विभिन्न थानों में उन दोनों के खिलाफ धोखाधड़ी के दर्जनों मामले दर्ज थे. पुलिस रिकौर्ड में सागर दंपति का चित्र उपलब्ध था.

अनुज व सोनम की हत्या और लूटपाट के बाद सागर दंपति ने गोवा छोड़ दिया होगा, यह सोचते हुए गोवा पुलिस ने विवरण सहित उन के चित्र देश भर के पुलिस मुख्यालयों में भिजवा दिए.

गोवा पुलिस को पक्का विश्वास हो गया था कि नकद रकम और लाखों रुपए के जेवरात लूटने के लिए अनुज और सोनम की हत्या महेंद्र और कामिनी ने ही की थी. ये पतिपत्नी चूंकि बड़ेबड़े होटलों, नाइटक्लबों और डिस्कोथेक में अकसर जाते रहते थे इसलिए गोवा पुलिस ने ऐसे स्थानों पर भी इन दोनों के बारे में जानकारियां एकत्र कीं.

इस छानबीन में पता चला कि यह दंपति गोवा में जिस मकान में रहता था, उसी में छोटी सी एक लौज भी चलाता था. सागर दंपति के घर और लौज में पुलिस को कोई विशेष सामान नहीं मिला. पुलिस ने उन के मकान और लौज सील कर दिए. महेंद्र और कामिनी के जहांजहां मिलने की संभावनाएं थीं, गोवा पुलिस ने वहांवहां छापे मारे. लेकिन वे पुलिस के हाथ नहीं लगे.

जब महेंद्र और कामिनी को पकड़ने में किसी तरह की सफलता नहीं मिली तो गोवा पुलिस थकहार कर बैठ गई. इस बीच कई महीने गुजर चुके थे. पुलिस ने भले ही हार मान ली थी, लेकिन अनुज के पिता चंद्रप्रकाश ने हार नहीं मानी. उन्हें महेंद्र और कामिनी के बारे में जहां भी जरा सी जानकारी मिलती, वे वहीं पहुंच जाते.

उन की कोशिशें रंग लाईं और किसी से उन्हें महेंद्र सागर के पिता का नामपता मिल गया. वह हरियाणा के रहने वाले थे. लेकिन महेंद्र चूंकि अपने हिस्से की सारी जमीनजायदाद बेच चुका था इसलिए गांव से उस का कोई संबंध नहीं था. उस की पत्नी कामिनी के बारे में चंद्रप्रकाश को पता चला कि उच्च शिक्षा प्राप्त कामिनी दिल्ली की ही रहने वाली है.

घटना के 11 महीने बाद चंद्रप्रकाश को जानकारी मिली कि महेंद्र सागर का एक काफी करीबी रह चुका विनीत नाम का एक युवक जोधपुर में कहीं रहता है. चंद्रप्रकाश के पास हालांकि विनीत के बारे में आधीअधूरी जानकारी थी फिर भी वह जोधपुर गए और हफ्तों की भागदौड़ के बाद उसे ढूंढ निकाला.

चंद्रप्रकाश के साथ उन के 2-3 घर वाले भी थे. खुद को कई लोगों से घिरा देख विनीत घबरा गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि वह महेंद्र सागर का सहयोगी रह चुका है और उस ने ठगी के कई मामलों में उस की मदद की थी. लेकिन विनीत को अनुज और सोनम की हत्या के बारे में कोई जानकारी नहीं थी.

वो कैसे बना 40 बच्चों का रेपिस्ट व सीरियल किलर? – भाग 2

जांच ने लिया नया मोड़

इस मामले को सुलझाने के लिए डीसीपी विक्रमजीत ने एसीपी ऋषिदेव के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में इंसपेक्टर जगमंदर दहिया, एएसआई सुरेंद्रपाल, हैडकांस्टेबल नरेंद्र कुमार, कांस्टेबल टी.आर. मीणा आदि को शामिल किया गया.

जिस बिल्डिंग में निशा की लाश मिली थी, उसी बिल्डिंग में पुलिस को जो ड्राइविंग लाइसेंस और कागजात मिले थे, उन की जांच शुरू की गई. ड्राइविंग लाइसेंस पर सन्नी पुत्र सुरेंद्र कुमार नाम लिखा था. उस पर जो पता लिखा था, वह कराला के जैन नगर का ही था. यानी यह पता वही था, जहां मरने वाली बच्ची रहती थी.

खैर, पुलिस सन्नी के घर पहुंच गई. लेकिन वह घर पर नहीं मिला. पता चला कि वह डा. अंबेडकर अस्पताल में भरती है. जब पुलिस अस्पताल पहुंची तो जानकारी मिली कि सन्नी को कुछ देर पहले ही डिस्चार्ज कर दिया गया था. लिहाजा उलटे पांव पुलिस जैन नगर लौट आई. सन्नी घर पर ही मिल गया. उस के हाथपैर और शरीर के अन्य भागों पर चोट लगी हुई थी.

पुलिस ने 14 जुलाई को ही सन्नी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि कल रात पड़ोस के ही रविंद्र कुमार, उस के भाई सुनील और उस के दोस्त हिमांशु ने उस की खूब पिटाई की थी. पिटाई करने के बाद रविंद्र उस की जेब से मोबाइल, ड्राइविंग लाइसेंस, पैसे आदि निकाल कर ले गया था. मुझे उम्मीद है कि उसी ने यह सब किया होगा.

आरोपी रविंद्र तक ऐसे पहुंची पुलिस

रविंद्र का घर सन्नी के घर के पास ही था. पुलिस उस के घर गई तो वह और उस के भाई में से कोई नहीं मिला. घर पर मौजूद उस के पिता ने पुलिस को बताया कि दोनों भाई अपने किसी दोस्त के यहां गए हुए हैं. पुलिस उस के पिता को हिदायत दे कर चली आई.

पुलिस ने रविंद्र के बारे में छानबीन की तो जानकारी मिली कि पिछले साल उस ने बेगमपुर थानाक्षेत्र में ही एक बच्चे के साथ कुकर्म कर के उस की गला काट कर हत्या कर दी थी. इस की रिपोर्ट थाना बेगमपुर में ही भादंवि की धारा 363/307/377 के तहत लिखी गई थी. इस मामले में वह गिरफ्तार हुआ था. गिरफ्तारी के 6 महीने बाद सन्नी के पिता सुरेंद्र सिंह ने उस की जमानत कराई थी. तब वह जेल से बाहर आया था.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस को रविंद्र पर शक हुआ. उस का जो मोबाइल नंबर पुलिस को मिला था, वह स्विच्ड औफ था. पुलिस टीम रविंद्र को सरगर्मी से तलाशने लगी. 2 दिन बाद एक मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने 16 जुलाई  को उसे थाना क्षेत्र के ही सुखवीर नगर बस स्टौप से गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर जब रविंद्र से पूछताछ की गई तो उस ने निशा की हत्या का जुर्म तो स्वीकार कर ही लिया, इस के अलावा उस ने ऐसा खुलासा किया कि पुलिस हैरान रह गई. उस ने बताया कि वह निशा की तरह तकरीबन 40 बच्चों की हत्या कर चुका है. पुलिस तो केवल मर्डर के एक केस को खोलने के लिए रविंद्र को तलाश रही थी, लेकिन वह इतना बड़ा सीरियल किलर निकलेगा, पता नहीं था.

इंसपेक्टर जगमंदर दहिया के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी. उन्होंने उसी समय डीसीपी विक्रमजीत को यह जानकारी दी तो आधे घंटे के अंदर वह भी बेगमपुर थाने पहुंच गए. एक लाश और ड्राइविंग लाइसेंस ने ऐसे गुनाह से परदा उठा दिया था, जिसे सुन कर इंसानियत भी शर्मशार हो जाए. उस ने डीसीपी के सामने रोंगटे खड़ी कर देने वाली बच्चों की हत्या की जो कहानी बताई, वह नोएडा के निठारी कांड से कम नहीं थी.

रविंद्र ने बताया कि वह बच्चों की हत्या करने के बाद ही उन से कुकर्म करता था. उस के खुलासे पर डीसीपी भी चौंके. 24 साल के रविंद्र कुमार ने एक के बाद एक कर के करीब 40 बच्चों की हत्या करने और सैक्स एडिक्ट बनने की जो कहानी बताई, वह दिल को झकझोरने वाली थी.

गांव छोड़ कर दिल्ली आया था परिवार

रविंद्र मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला कासगंज के कस्बा गंज डुंडवारा के रहने वाले ब्रह्मानंद का बेटा था. रविंद्र के अलावा उस के 3 और बेटे थे. ब्रह्मानंद प्लंबर का काम करता था, इसलिए उस की हैसियत ऐसी नहीं थी कि वह बच्चों को पढ़ा सकता था.

लिहाजा जब उस के 2 बेटे बड़े हुए तो वह उन से भी मजदूरी कराने लगा. बेटे कमाने लगे तो उस के घर की माली हालत सुधरने लगी. उसी दौरान सन 1990 में गंज डुंडवारा में दंगा भडक़ गया तो ब्रह्मानंद अपनी पत्नी मंजू और बच्चों को ले कर दिल्ली आ गया.

बाहरी दिल्ली के कराला गांव में उस की जानपहचान के तमाम लोग रहते थे. लिहाजा वह भी उन के साथ कराला में रहने लगा. उस समय मंजू गर्भवती थी. कुछ दिनों बाद उस ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम रविंद्र कुमार रखा. घर में सब से छोटा होने की वजह से वह सब का प्यारा था.

ब्रह्मानंद्र अपने बाकी बच्चों को तो पढ़ा नहीं सका था, लेकिन वह रविंद्र को पढ़ाना चाहता था. जब वह स्कूल जाने लायक हुआ तो उस ने उस का दाखिला सरकारी स्कूल में करा दिया, लेकिन मोहल्ले के बच्चों की संगत में पड़ कर वह पांचवीं कक्षा से आगे नहीं पढ़ सका.

वह नशा करने वाले बच्चों की संगत में पड़ गया, जिस से वह भी चरस, गांजा आदि पीने लगा. घर वालों को जब पता चला तो उन्होंने उसे डांटा भी, लेकिन वह नहीं माना. रविंद्र नहीं पढ़ा तो ब्रह्मानंद उसे अपने साथ काम पर ले जाने लगा, लेकिन उस की आदत तो दोस्तों के साथ घूमने की थी.

पिता के साथ मेहनत का काम भला वह क्यों करता. इसलिए वह पिता के साथ भी ज्यादा दिन नहीं टिक सका. उसे जब खर्च के लिए पैसों की जरूरत होती, वह अपनी जानपहचान वाले ड्राइवर सन्नी के साथ हेल्परी करने चला जाता. सन्नी उसी के पड़ोस में रहता था और वह ट्रेलर चलाता था. उस का ट्रेलर मुंडका मैट्रो स्टेशन के निर्माण के कार्य में लगा हुआ था. रविंद्र वहां से जो भी कमाता, अपने नशा के शौक पर उड़ा देता था.

एक रात में टूटी दोस्ती की इमारत – भाग 2

जब अच्छी आमदनी होने लगी तो गौहर ने अपना खुद का जरदोजी का कारखाना खोल लिया. लगभग 5 महीने से जावेद उसी के कारखाने में काम करता था. जावेद फर्रूखाबाद के मोहल्ला खटकपुरा इज्जत खां में रहता था. उस के परिवार में पिता नियामतुल्ला के अलावा मां शाहीन बेगम, 3 भाई अजहर, आवेद व उबैद और 4 बहनें थीं. 3 बहनों का निकाह हो चुका था. जबकि सब से छोटी बहन रुखसाना (परिवर्तित नाम) अविवाहित थी.

जावेद ने अपने काम और व्यवहार से जल्द ही गौहर का विश्वास हासिल कर लिया. दोनों के बीच जल्द ही अच्छीभली दोस्ती हो गई. जावेद ने फर्रूखाबाद में जरदोजी का काम कराने की बात गौहर के दिमाग में डाली तो उसे उस की बात जम गई. वैसे भी फर्रूखाबाद में जरदोजी का काम बड़े पैमाने पर होता था. यह काम करने वालों की वहां कोई कमी नहीं थी.

समय पर अच्छा काम होने की लालसा में गौहर ने जावेद को फर्रूखाबाद में जरदोजी का काम कराने का जिम्मा सौंप दिया. इस के लिए उस ने अपनी होंडा बाइक भी जावेद को दे दी. इस के बाद जावेद जयपुर से गौहर से जरदोजी का काम ले कर फर्रूखाबाद में करने वालों को बांटने लगा. काम पूरा होने पर जावेद पूरा माल जयपुर पहुंचवा देता था. काम पूरा हो जाता तो गौहर कारीगरों को देने वाली रकम उसे दे देता. काम अच्छा चलने लगा, तो गौहर और जावेद की उम्मीदों को नए पंख लग गए.

काम के चक्कर में गौहर भी फर्रूखाबाद आनेजाने लगा. वह जावेद के घर पर ही रुकता था. हालांकि उस के मामा आफाक उर्फ हद्दू फर्रूखाबाद में असगर रोड पर रहते थे. वह उन के घर जा कर मामा व ननिहाल वालों से मिल तो आता था लेकिन वहां रुकता नहीं था.

गौहर करीबकरीब हर हफ्ते ही फर्रूखाबाद आता था. जावेद के घरवालों से उस की खूब पटती थी. वैसे भी उसी की वजह से जावेद का काम अच्छा चल रहा था. घर पर जावेद की छोटी बहन रुखसाना ही ऐसी थी जो मेहमानों की खातिरतवज्जो करती थी.

गौहर के बारबार आने से उस से रुखसाना का ही ज्यादा वास्ता पड़ता था. इसी वजह से रुखसाना उस से काफी खुल गई थी. वह उस से बात करते मुसकराती रहती थी. उस की मुसकराहट और अल्हड़ता गौहर को मन भाने लगी थी. कामधंधे के चक्कर में गौहर की शादी की उम्र भले ही निकल गई थी, लेकिन वह था तो कुंवारा ही.

रुखसाना को देख कर उस के अरमान मचल उठे थे. अचानक ही उसे सारी दुनिया उसे अच्छी लगने लगी थी. धीरेधीरे रुखसाना उस की चाहत बन गई. रुखसाना जब भी उस के सामने आती तो वह उसे एकटक निहारता रह जाता. वह क्या बोलती क्या कहती, उसे सुध ही नहीं रहती थी. जब रुखसाना ने उसे इस स्थिति में देखा तो वह झेंपने लगी. लेकिन जल्द ही उसे गौहर की इस हालत की असलियत पता चल गई.

धीरेधीरे वह भी गौहर की चाहत के बारे में जान गई. गौहर कोई बात कहता या उस के साथ शरारत करता, तो वह शर्म से दोहरी हो जाती थी. मुंह से शब्द नहीं निकलते थे और वह वहां से मंदमंद मुसकराते हुए चली जाती थी. रुखसाना भी दिल से गौहर को अपना मान चुकी थी. इस बात को गौहर भी महसूस करने लगा था कि रुखसाना भी उसे दिल से चाहने लगी है.

दोनों एकदूसरे से दूर होते तो उन के दिल तड़प उठते और पास होते तो दिल को सुकून मिलता, आंखों को ठंडक पहुंचती. दोनों एकदूसरे से अपने दिल की बात कहने को आतुर थे, लेकिन पहल नहीं कर पा रहे थे.

इस बार जब गौहर आया तो उसे मौका भी मिल गया. उस दिन घर में कम लोग थे, वे भी दोपहर का खाना खाने के बाद सो गए थे. जबकि गौहर ऊपरी मंजिल पर टीवी देख रहा था. उसे अकेला बैठा देख रुखसाना भी वहां पहुंच गई. वह भी गौहर के साथ बेड पर बैठ कर टीवी देखने लगी. उस समय गौहर एक रोमांटिक फिल्म देख रहा था. फिल्म में कोई रोमांटिक सीन आता तो दोनों कनखियों से एकदूसरे को देखने लगते, उन के होंठ मुसकरा उठते. यह क्रम काफी देर यूं ही चलता रहा.

कुछ देर बाद गौहर ने बेड पर लेट कर अपना सिर रुखसाना की गोद में रख दिया. उस की इस अप्रत्याशित हरकत से वह पल भर के लिए चौंकी, लेकिन जब उस ने गौहर की आंखों में प्यार का सागर उमड़ते देखा तो वह विरोध न कर सकी. इस शरारत पर उस ने गौहर से पूछा, ‘‘तुम ने किस अधिकार से मेरी गोद में अपना सिर रख दिया?’’

गौहर उस की आंखों की गहराइयों में उतरते हुए बोला, ‘‘यह सवाल तुम अपने दिल से क्यों नहीं पूछतीं, जवाब खुद ब खुद मिल जाएगा.’’

‘‘अधिकार तुम जता रहे हो, और पूछूं मैं अपने दिल से?’’ रुखसाना थोड़ा रुक कर बोली, ‘‘कोई जबरदस्ती है, मैं क्यों पूछूं अपने दिल से? तुम्हें बताना हो तो बताओ, नहीं तो मेरे ठेंगे से.’’ रुखसाना गौहर को ठेंगा दिखा कर दूसरी ओर देखने लगी.

गौहर जानता था कि रुखसाना नाराजगी का नाटक कर रही है, जबकि हकीकत में वह अपने दिल का हाल बयां कर देना चाहती है. गौहर यह भी जानता था कि इस के लिए पहल उसे ही करनी होगी. इसलिए वह उस का हाथ अपने हाथों में ले कर बोला, ‘‘रुखसाना, मैं तुम से प्यार करता हूं, अपनी जान से भी ज्यादा प्यार. मुझे यह भी मालूम है कि तुम भी मुझे दिल से चाहती हो, लेकिन कह नहीं पा रही हो. इसी प्यार के नाते मैं तुम पर अधिकार जता रहा था.’’

गौहर ने रुखसाना के जिस हाथ को अपने हाथों में ले रखा था, वह उस हाथ को उस के हाथों सहित अपने सीने पर रखती हुई बोली, ‘‘मैं जानती हूं, तुम ने प्यार के अधिकार से ही ऐसा किया है, लेकिन तुम प्यार की बात जुबां पर नहीं ला रहे थे. तुम से प्यार का इजहार करवाने के लिए ही मैं ने तुम्हें उकसाया था ताकि तुम अपने दिल की बात बेहिचक कह सको. गौहर… आई लव यू टू.’’

रुखसाना ने उस के प्यार को स्वीकार कर के जवाब में प्यार के मीठे बोल बोले तो गौहर ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. दोनों एकदूसरे के इतना करीब आ कर खुशी से झूम उठे. प्यार की खुशी में दोनों के तनमन मिले तो तन की गरमी का वेग बढ़ गया. नतीजतन वे उस राह पर उतर गए जो सामाजिक नजरिए से सही नहीं होती. लेकिन उन दोनों को इस की फिक्र नहीं थी. दुनिया से बेपरवाह हो कर दोनों प्यार की उस नदी में बह गए जिस का कोई छोर नहीं होता.

मन के साथ तन का मिलन हुआ तो उन के चेहरों पर अजीब सी खुशी झलकने लगी. उस दिन के बाद तो यह खुशी अकसर उन के चेहरों पर नजर आने लगी. रात में सब के सो जाने के बाद रुखसाना गौहर के पास उस के कमरे में आ जाती और दोनों मनचाही करते. मस्ती का खजाना लुटाने के बाद वह अपने कमरे में चली जाती. इस की किसी को कानोेंकान खबर तक नहीं होती.

सावधान! ऐसे दोस्तों से : दोस्त की बेटी पर बुरी नजर – भाग 2

इसी पूछताछ में पुलिस को पता चला कि नुसरत रईस की चौथी बीवी थी. रईस ने पहला निकाह अमरोहा की शबाना से किया था. उसे तलाक दे कर रईस ने गुइयाबाग निवासी नरगिस से दूसरा निकाह किया था. कुछ दिनों साथ रख कर रईस ने उसे भी छोड़ दिया था. इस के बाद रईस ने लालबाग निवासी रानी से निकाह किया. उसे भी छोड़ कर उस ने 8 साल पहले नुसरतजहां से निकाह किया, जिस से उसे 3 बच्चे थे.

पुलिस ने मृतक रईस मंसूरी के फोन नंबर को सॢवलांस पर लगाया तो वह बंद आ रहा था. लेकिन जांच में पता चला कि उस के फोन की अंतिम लोकेशन 15 दिसंबर की शाम को उसी इलाके में थी, जहां आलम रहता था. इस से यह तो पता चल रहा था कि रईस आलम के यहां गया था, लेकिन वहां जाने के बाद उस का फोन बंद क्यों हो गया? पुलिस को यही पता लगाना था.

पुलिस टीम बखलान के रहने वाले आलम के घर पहुंची तो वह घर पर ही मिल गया. पूछताछ के लिए पुलिस उसे थाने ले आई. अनिल कुमार वर्मा ने आलम से रईस की हत्या के बारे में पूछताछ शुरू की तो वह यही कहता रहा कि उस के यहां इनवर्टर लगाने के बाद रईस चला गया था. इस के बाद वह कहां गया, उसे पता नहीं. वह खुद को बेकुसूर बता रहा था.

पूछताछ के दौरान ही एसएसआई मनोज कुमार सिंह को मुखबिर से पता चला कि मृतक रईस के आलम की बहन से नाजायज संबंध थे. यह बात उन्होंने अनिल कुमार वर्मा को बता दी. जिस तरह क्रूरता से रईस की लाश के टुकड़े कर के उस के गुप्तांग को काट कर फेंक दिया गया था, उस से अनिल कुमार वर्मा को लग रहा था कि हत्या के पीछे प्रेमप्रसंग का मामला है.

मनोज कुमार सिंह की बात ने उन के शक को पुख्ता कर दिया. उन्हें लगा कि आलम झूठ बोल रहा है. इसलिए उन्होंने उस से थोड़ी सख्ती की तो वह सारी सच्चाई बताने को तैयार हो गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि रईस मंसूरी की हत्या उसी ने की थी. उस ने उस के सामने ऐसे हालात पैदा कर दिए थे कि उसे उस की हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा. आलम से पूछताछ में रईस मंसूरी की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.

रईस मंसूरी और आलम के पिता जमा खां आपस में अच्छे दोस्त थे. कहा जाता है कि दोनों बिजली की लाइनों का तार चोरी किया करते थे. चोरी किए तार से जो पैसा मिलता था, उसे वे आपस में बांट लेते थे. इसी काम से वे अपनेअपने परिवारों को पाल रहे थे. लेकिन जमा खां की पत्नी को जानकारी नहीं थी कि उस का पति बिजली के तार चोरी करता है. उसे तो जमा खां ने यही बताया था कि वह इलैक्ट्रिशियन है.

करीब 15 साल पहले की बात है. रईस और जमा खां काशीपुर की तरफ बिजली के तार काटने गए थे. जमा खां ने पत्नी को बताया था कि उसे काशीपुर में बिजली फिटिंग का एक बड़ा काम मिला है, रईस के साथ वह उस काम को करने जा रहा है. उस की पत्नी रईस को जानती थी, क्योंकि वह उस के यहां आताजाता रहता था. उस ने कहा था कि वह वहां से कई दिनों बाद लौटेगा. लेकिन वह वहां से जिंदा नहीं लौट सका.

दरअसल, हुआ यह कि जब दोनों रात को काशीपुर के जंगल में 11 हजार वोल्ट की लाइन के तार काट रहे थे, तभी जमा खां को बिजली ने करंट मार दिया. वह खंभे से नीचे गिरा और उस की मौत हो गई. दोस्त को मरा देख कर रईस डर गया. कहीं वह पुलिस के चक्कर में न फंस जाए, वह उसे वहीं छोड़ कर घर चला आया.

अगले दिन लोगों ने खेत में लाश देखी तो इस की सूचना पुलिस को दे दी. पुलिस मौके पर पहुंची तो लाश के पास बिजली के तार काटने के औजार देख कर पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि यह बिजली के तार काटने वाला चोर है और बिजली के करंट की चपेट में आ कर मर गया है. पुलिस ने आवश्यक काररवाई कर के लाश का पोस्टमार्टम कराया और शिनाख्त न होने के बाद अज्ञात मान कर उस का अंतिम संस्कार करा दिया.

इस के बाद एक दिन जमा खां की पत्नी को बाजार में रईस मिला तो वह उसे देख कर चौंकी, क्योंकि उस का पति तो रईस के साथ काम करने काशीपुर गया था. तसलीमा ने उस से पति के बारे में पूछा तो रईस ने बताया कि उस की एक हादसे में मौत हो गई है.

पति की मौत की बात सुन कर तसलीमा चौंकी, “यह तुम क्या कह रहे हो, यह नहीं हो सकता?”

“मैं सच कह रहा हूं भाभी, करंट लगने से जमा खां की मौत हो गई है.” रईस ने कहा.

“यह कैसे और कहां हो गया? तुम ने मुझे बताया क्यों नहीं?” तसलीमा ने पूछा.

“हम दोनों बिजली का तार काटने काशीपुर गए थे. वहीं तार काटते समय उन्हें 11 हजार वोल्ट का करंट लग गया, जिस से वह खंबे से नीचे गिर गया और उस की मौत हो गई.” रईस ने बताया.

“मेरे पति चोर नहीं थे, वह तो इलैक्ट्रिशियन थे. तुम झूठ बोल रहे हो.” तसलीमा रोते हुए बोली.

“नहीं भाभी, मैं बिलकुल सच कह रहा हूं. उन्होंने तुम्हें बताया होगा कि वह इलैक्ट्रिशियन हैं. हकीकत में हम दोनों तार काट कर बेचा करते थे.” रईस ने कहा.

“मुझे तुम्हारी बात पर यकीन नहीं हो रहा. मैं काशीपुर जा कर वहां की पुलिस से मिलूंगी.” तसलीमा ने कहा.

“तुम वहां जाना चाहती हो तो जरूर जाओ. लेकिन वहां जा कर तुम खुद भी फंस सकती हो. वहां की पुलिस ने जब जमा खां की लाश बरामद की थी, तब उस के साथ तार काटने के औजार भी मिले थे. जब तुम वहां जाओगी, पुलिस तुम से कहेगी कि एक चोर की बीवी हो कर तुम ने पुलिस को इस की खबर क्यों नहीं दी?” रईस ने उसे डराने के लिए कहा.

तसलीमा सीधीसादी औरत थी. वह रईस की बातों से डर कर काशीपुर नहीं गई और पति की मौत का गम सीने में दबा कर रहने लगी. उस समय उस का बेटा आलम 13 साल का था.

एक और युग का अंत – भाग 2

उन्होंने अपनी टीम के साथ डा. मुकेश चांडक के घर और डेंटल क्लिनिक से अपहर्त्ता की खोज शुरू की. उन्हें लग रहा था कि युग के अपहरण में निश्चित रूप से ऐसा कोई आदमी शामिल है, जो इस परिवार के बारे में सब कुछ अच्छी तरह से जानतापहचानता है.

इसी बात को ध्यान में रख कर इंसपेक्टर सुधीर नंदनवार ने डा. मुकेश चांडक के घर और क्लिनिक में काम करने वाले सभी नौकरों के अलावा सोसायटी के सभी सिक्योरिटी गार्डों से भी लंबी पूछताछ की. इसी पूछताछ में उन्हें एक ऐसा सुराग मिला, जिस ने उन्हें युग के अपहर्त्ताओं तक पहुंचा दिया.

सोसायटी के एक सिक्योरिटी गार्ड ने उन्हें बताया, ‘‘सर, पौने चार बजे के आसपास सोसायटी के अंदर एक लड़का आया था, जो युग के बारे में पूछ रहा था. वह डा. मुकेश चांडक की क्लिनिक की शर्ट पहने था, इसीलिए उस पर किसी तरह का संदेह नहीं किया जा सका था.’’ इंसपेक्टर सुधीर नंदनवार को इस तरह एक अहम सुराग मिल गया था.

उन्होंने तुरंत डा. मुकेश चांडक की क्लिनिक पर काम करने वाले सभी लड़कों को बुला कर उस गार्ड के सामने खड़ा किया तो वह युवक उन में नहीं था. इस से साफ हो गया कि युग के अपहरण में उसी युवक का हाथ था, जो उन की क्लिनिक की शर्ट पहन कर आया था.

अब पुलिस को यह पता करना था कि उस युवक को डा. मुकेश चांडक की क्लिनिक में काम करने वाले लड़के जो शर्ट पहनते हैं, वह उसे कहां से मिली. या तो वह पहले उन की क्लिनिक में काम कर चुका था या फिर क्लिनिक में काम करने वाले किसी लड़के ने उसे वह शर्ट दी थी?

थानाप्रभारी सुधीर नंदनवार ने डा. मुकेश चांडक की क्लिनिक पर काम करने वाले सभी नौकरों से पूछताछ की. उन में से उन्हें कोई संदिग्ध नजर नहीं आया. इस का मतलब वह कोई बाहरी आदमी था. निश्चित ही उस की डाक्टर साहब से कोई दुश्मनी रही होगी. पुलिस चक्कर में पड़ गई कि डा. मुकेश चांडक का ऐसा कौन दुश्मन हो सकता है, जिस ने उन के बेटे का अपहरण किया है.

थानाप्रभारी सुधीर नंदनवार ने डा. मुकेश चांडक से इस बारे में पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि कुछ दिनों पहले उन्होंने राजेश दवरे नामक युवक को डांटफटकार कर नौकरी से निकाल दिया था. उस का पता डा. मुकेश चांडक के पास था ही, थानाप्रभारी सुधीर नंदनवार ने देर किए बगैर राजेश दवरे के घर पर छापा मार कर उसे गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर राजेश दवरे से पूछताछ शुरू हुई तो काफी देर तक वह स्वयं को निर्दोष बताता रहा. उस का कहना था कि वह युग का अपहरण क्यों करेगा? लेकिन पुलिस को पूरा विश्वास था कि यह काम उसी ने किया है, इसलिए जब पुलिस ने उस के साथ थोड़ी सख्ती की तो उस ने युग के अपहरण और हत्या की सच्चाई उगल दी.

राजेश दवरे ने डा. मुकेश चांडक द्वारा किए गए अपमान का बदला लेने के लिए अपने दोस्त अरविंद सिंह की मदद से उन के बेटे युग का अपहरण कर के हत्या कर दी थी. हत्या के बाद उस ने डाक्टर से एक मोटी रकम वसूल करने की साजिश भी रची थी. इस के बाद पुलिस ने उस के साथी अरविंद सिंह को भी गिरफ्तार कर लिया था. लेकिन फिरौती की रकम वसूलने के पहले ही पकड़ा गया था. पुलिस पूछताछ में राजेश दवरे ने युग के अपहरण और हत्या के पीछे जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी.

22 वर्षीय राजेश दवरे अपने भाईबहनों के साथ नागपुर वांजरी लेक आउट में रहता था. घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने की वजह से वह 12वीं तक ही पढ़ सका था. पैसे के की वजह से वह आगे की पढ़ाई नहीं कर सका तो कंप्यूटर सीख लिया और गुजरबसर के लिए छोटीमोटी नौकरी ढूंढ़ने लगा.

राजेश को कहीं से पता चला कि दंत चिकित्सक डा. मुकेश चांडक की डेंटल क्लिनिक में कंप्यूटर औपरेटर की जरूरत है तो वह उन के यहां जा पहुंचा. बातचीत से वह तेजतर्रार और व्यवहारकुशल लगा तो डा. मुकेश चांडक ने उसे अपने यहां रख लिया. क्लिनिक में उस का काम मरीजों से फीस लेना और उन्हें टोकन देना था. डा. साहब के यहां से उसे इतना वेतन मिल जाता था कि उस का खर्च आराम से चल जाता था. अपनी इस नौकरी से वह खुश भी था.

कुछ दिनों तक तो राजेश दवरे ने अपना काम पूरी ईमानदारी के साथ किया. इस बीच उस ने डा. मुकेश चांडक के दिल में अपने लिए जगह भी बना ली. लेकिन जब उस ने देखा कि डाक्टर साहब उस पर कुछ ज्यादा ही विश्वास करने लगे हैं तो वह पैसों की हेराफेरी करने लगा.

क्लिनिक में मरीजों की भीड़भाड़ और उन से बरसती दौलत देख कर राजेश के मन में बेईमानी करने की बात आने लगी. वह क्लिनिक में आने वाले मरीजों के बिलों में हेराफेरी कर के अधिक पैसे वसूल करने लगा. इस के अलावा वह कुछ लोगों से फीस के अलावा भी कुछ पैसे ले कर उन्हें बिना नंबर के ही एंट्री दे देता. यही नहीं, वह कुछ मरीजों से फीस तो ले लेता था, लेकिन उसे चढ़ाता नहीं था.

इस तरह हेराफेरी कर के राजेश रोजाना 3-4 सौ रुपए अलग से कमाने लगा था. इन पैसों को वह घर में देने के बजाय दोस्तों के साथ बीयर बारों में जा कर अय्याशी करता था. बार डांसरों पर उड़ाता, उन के साथ मौजमस्ती करता. इस ऊपर की कमाई से राजेश और उस के दोस्तों की बल्लेबल्ले थी.

लेकिन यह भी सच है कि बुराई कोई भी हो, वह अधिक दिनों तक छिपी नहीं रहती. यही राजेश दवरे के साथ हुआ. युग देखने में भले छोटा था, लेकिन दिमाग का काफी तेज था. कंप्यूटर पर उस का दिमाग कंप्यूटर की ही तरह चलता था. स्कूल से छुट्टी होने के बाद वह अकसर क्लिनिक आ जाता और कंप्यूटर पर गेम खेलता रहता. गेम खेलने के दौरान ही उस ने राजेश की हेराफेरी पकड़ ली थी और डा. मुकेश चांडक से पूरी बात बता दी थी.

जब राजेश दवरे की हेराफेरी की जानकारी डा. मुकेश चांडक को हुई तो उन्होंने उसे पूरे स्टाफ के सामने काफी डांटा फटकारा. लेकिन नौकरी से नहीं निकाला, सिर्फ चेतावनी दे कर छोड़ दिया. डा. मुकेश चांडक तो इस बात को भूल गए. लेकिन राजेश नहीं भूला, क्योंकि एक तो उस की कमाई बंद हो गई थी, दूसरे पूरे स्टाफ के सामने उस की काफी बेइज्जती हुई थी. इसलिए वह इस बात को भुला नहीं पा रहा था. इस सब की वजह युग था, इसलिए उसे युग से नफरत हो गई थी.

धीरेधीरे नफरत की यह आग इतनी तेज होती गई कि वह युग को सबक सिखाने के बारे में सोचने लगा. शायद इसी वजह से एक दिन उस ने किसी बात पर नाराज हो कर युग को एक तमाचा भी मार दिया. जब इस बात की जानकारी डा. मुकेश चांडक को हुई तो उन्होंने पहले तो राजेश को खूब खरीखोटी सुना कर अपमानित किया, उस के बाद नौकरी से निकाल दिया. यह इसी साल अगस्त महीने की बात थी.

गोवा की खौफनाक मुलाकात – भाग 2

लगभग 3 बजे अनुज ने आ कर ड्राइवर ने कहा, ‘‘हमें दिल्ली के कुछ दोस्त मिल गए हैं. उन के पास गाड़ी भी है. हम लोग उन के साथ घूमेंगे, तुम जाओ.’’

‘‘कल कितने बजे आना है साहब?’’ ड्राइवर ने पूछा तो अनुज बोला, ‘‘अब आने की जरूरत नहीं है. कल सुबह हम मुंबई लौट जाएंगे.’’

ड्राइवर कार ले कर चला गया और उस ने यह बात विनोद अत्री को बता दी. अनुज ने कार ड्राइवर समेत वापस भेजी थी. अत: वे निश्चिंत हो गए.

अनुज और सोनम की होटल में 3 दिन की बुकिंग थी. तीसरे दिन उन्हें लौट कर मुंबई पहुंच जाना था. जब वे उस दिन देर रात तक वापस नहीं लौटे तो विजयकरण को चिंता हुई. उन्होंने अगले दिन अपने दोस्त विनोद अत्री को फोन किया. उन्होंने बताया कि अनुज ने अंजुना बीच से यह कह कर ड्राइवर को कार सहित वापस भेज दिया था कि उन्हें दिल्ली के कुछ दोस्त मिल गए हैं और वे उन्हीं के साथ घूमेंगे. उन के पास कार भी है.

अनुज और सोनम न तो वापस लौटे थे और न उन्होंने फोन किया था. विजयकरण को चिंता हुई. चिंता इसलिए स्वाभाविक थी क्योंकि अनुज फोन करने में कतई लापरवाह नहीं था. विजयकरण ने अपने दोस्त विनोद अत्री से कहा कि वे होटल में पता लगा कर बताएं.

विनोद अत्री ने होटल से पता किया तो वहां के कर्मचारियों ने बताया कि अनुज और सोनम सुबह साढ़े 10 बजे के आसपास होटल से साथसाथ निकले थे. शाम को देर रात तक वे वापस नहीं लौटे. रात को लगभग पौने 12 बजे मैडम एक मारुति कार में होटल आईं. तब साहब उन के साथ नहीं थे.

अलबत्ता स्मार्ट सा एक व्यक्ति और खूबसूरत सी एक महिला उन के साथ आए थे. मैडम ने बताया कि उन्हें दिल्ली के कुछ दोस्त मिल गए हैं. वे लोग होटल छोड़ कर जा रहे हैं और दोस्तों के साथ ही रहेंगे. मैडम ने होटल का बिल चुकाया और अपना सामान ले कर उन्हीं के साथ चली गईं.

विनोद अत्री ने यह बात विजयकरण को बताई तो उन की चिंता और भी बढ़ गई. उन की समझ में नहीं आया कि जब सोनम होटल से सामान लेने आई तो अनुज उस के साथ क्यों नहीं था. दिल्ली के दोस्तों या परिचितों के मिलने की बात मान भी ली जाती तो होटल छोड़ने के लिए अनुज को उस के साथ आना चाहिए था.

2 दिन से अनुज का फोन न करना भी चिंता पैदा कर रहा था. दोनों के मोबाइल भी स्विच्ड औफ थे. अनुज और सोनम को 2 दिन बाद दिल्ली लौटना था. वापसी के लिए राजधानी एक्सप्रेस में उन का रिजर्वेशन था. क्या पता वे दोनों शाम तक लौट आएं, यह सोच कर विजयकरण ने उन का इंतजार किया. लेकिन जब उस दिन शाम तक न वे आए और न उन का फोन आया तो परेशान हो कर उन्होंने अनुज के पिता चंद्रप्रकाश को फोन कर के सारी बात बताई.

बेटे और पुत्रवधू के यूं गायब होने की बात सुन कर चंद्रप्रकाश आश्चर्यचकित रह गए. वह इस बात से पहले ही परेशान थे कि अनुज और सोनम ने 3 दिनों से फोन क्यों नहीं किया. उन के फोन भी बंद थे. नवविवाहित जवान बेटे और बहू का मामला था. उन के पास पैसे और लाखों के जेवर थे. चंद्रप्रकाश अपने कुछ रिश्तेदारों को साथ ले कर अगले दिन सुबह की फ्लाइट से मुंबई जा पहुंचे. वहां से वे विजयकरण के साथ गोवा गए.

गोवा में उन्होंने विनोद अत्री को भी साथ ले लिया. ये सब लोग सब से पहले उस होटल में पहुंचे, जहां अनुज और सोनम ठहरे थे. वहां पर उन्होंने होटल कर्मचारियों से उन दोनों के बारे में पूछताछ की तो कर्मचारियों ने वही बातें बताईं जो वे विनोद अत्री को पहले ही बता चुके थे.

उन के अनुसार, उस दिन सुबह को अनुज और सोनम गए तो साथसाथ थे लेकिन रात को जब पौने 12 बजे सोनम आई तो उस के साथ अनुज की जगह एक महिला और पुरुष थे, जो सफेद रंग की आल्टो कार से आए थे. होटल कर्मचारियों ने सोनम के साथ आने वालों का हुलिया भी बताया. उस हुलिए के किसी आदमी या औरत को चंद्रप्रकाश नहीं जानते थे.

मामला गंभीर लग रहा था. चंद्रप्रकाश और उन के दोस्त उत्तरी गोवा स्थित अंजुना थाने पहुंचे और थानाप्रभारी को पूरी बात बता कर अनुज व सोनम की हत्या करने की नीयत से अपहरण की आशंका व्यक्त करते हुए रिपोर्ट लिखा दी.

अंजुना थाने की पुलिस ने 1 दिन पहले अंजुना बीच की ओर जाने वाले रोड के किनारे एक अज्ञात युवती का शव बरामद किया था. युवती स्विमिंग सूट पहने थी. पुलिस को लगा था कि उस युवती की मृत्यु संभवत: नहाते वक्त डूबने से हुई होगी. इत्तफाक से युवती की लाश का पोस्टमार्टम उसी दिन हुआ था. लाश का अभी संस्कार नहीं किया गया था. पुलिस ने चंद्रप्रकाश और उन के साथियों को अस्पताल ले जा कर लाश दिखाई तो वे पहचान गए. वह लाश सोनम की ही थी.

अंजुना थाने की पुलिस ने अनुज का हुलिया बयान कर के उस की गुमशुदगी का संदेश गोवा के सभी थानों को भेज दिया था. उसी दिन दोपहर बाद सूचना मिली कि वाडा तोड़ और कोलबा बीच की सड़क के किनारे एक युवक का शव मिला था, जिस का हुलिया भेजे गए हुलिए से मिलता था.

अंजुना बीच और कोलबा बीच जहां युवक की लाश मिली, में 65 किलोमीटर की दूरी थी. इस युवक के शरीर पर भी स्विमिंग सूट था. युवक की लाश का पोस्टमार्टम भी उसी दिन हुआ था और लाश सुरक्षित थी. पुलिस के अनुमान के हिसाब से युवक की मृत्यु नहाते समय डूबने से हुई थी. चंद्रप्रकाश और उन के साथ गए लोगों को युवक की लाश दिखाई गई तो वे देखते ही बिलख पड़े. वह उन का बेटा अनुज ही था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी अनुज की मृत्यु का कारण डूबना बताया गया था और पुलिस भी यही मान कर चल रही थी. लेकिन चंद्रप्रकाश इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं थे. उन का कहना था कि अनुज तैरना जानता था. उस के डूबने का प्रश्न ही नहीं था. यह बात सभी की समझ के बाहर थी कि अनुज और सोनम की लाशें एकदूसरे से 65 किलोमीटर दूर कैसे मिलीं. वे लोग सोनम की मौत को भी डूबने का मामला मानने को तैयार नहीं थे.