महिला कांस्टेबल से ट्रेन में दरिंदगी – भाग 3

तीनों बदमाश उस महिला सिपाही पर हावी नहीं हो पा रहे थे. इस के बाद तीनों ने उसे पकडऩे की कोशिश छोड़ कर उसे पीटना शुरू कर दिया, जिस से सिपाही बेसुध हो गई और ट्रेन के फर्श पर गिर पड़ी. तीनों बदमाशों ने उस के कपड़े फाड़ दिए.

इसी बीच मनकापुर स्टेशन आ गया. तब रात के करीब एक बज चुका था. तीनों को पकड़े जाने का डर हुआ फिर उन्होंने बेहोश महिला सिपाही को सीट के नीचे धकेल दिया. तीनों ने अपने मोबाइल फोन स्विच्ड औफ कर लिए और वहां से भाग निकले. हैडकांस्टेबल मानसी बेहोश होने के कारण सीट के नीचे पड़ी रही. रात करीब 3 बजे ट्रेन मनकापुर से प्रयागराज के लिए चली. उस समय तक मानसी को होश नहीं आया था.

सुबहसुबह 3 बज कर 40 मिनट पर ट्रेन अयोध्या स्टेशन पहुंची तो पूरा मामला खुला.

बदमाशों में मारा गया 30 वर्षीय अनीस खान और घायल आजाद खान ने नाबालिग हिंदू लड़कियों को अपने प्रेम जाल में फंसा लिया था और उन का धर्मांतरण कर निकाह कर लिया था. दोनों अयोध्या के हैदरगंज थाना क्षेत्र स्थित गांव दशलावन के निवासी हैं, जो अयोध्या शहर से लगभग 50 किलोमीटर दूर सुलतानपुर जिले की सीमा से सटा हुआ है.

अनीस ने दलित लडक़ी और आजाद ने पिछड़े समुदाय की युवती से निकाह किया था. आजाद की शादी हुए 13 साल हो चुके हैं और वह 4 बच्चों का बाप है. कहानी लिखे जाने तक पुलिस आजाद खान और विशंभर दयाल दुबे को गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों व जनचर्चा पर आधारित. कथा में मानसी और मनोज परिवर्तित नाम हैं.

अनीस खान और आजाद खान ने हिंदू लड़कियों से किया था निकाह

मृतक अनीस खान और घायल आजाद खान अयोध्या के हैदरगंज थाना क्षेत्र स्थित गांव दशलावन के निवासी थे. अनीस खान ने अपने घर से लगभग 2 किलोमीटर दूर स्थित मनऊपर गांव की एक दलित समुदाय की युवती से निकाह किया था. निकाह से पूर्व उस युवती का नाम अंतिमा था, जबकि अब वह  बानो के नाम से जानी जाती है. बानो एक बच्ची की मां है.

अनीस खान की पत्नी बानो उर्फ अंतिमा की मां ने मीडिया को रोते हुए बताया कि उन की फूल सी बच्ची अंतिमा के पीछे अनीस खान तब से पड़ा था, जब वह नाबालिग थी. उन्होंने आरोप लगाया कि स्कूल आनेजाने के दौरान अनीस खान ने कक्षा 8 में पढ़ रही अंतिमा को अपने वश में कर लिया था.

अंतिमा की मां ने आगे बताया कि अनीस खान तो पहले नाबालिग उम्र में ही निकाह करना चाहता था, परंतु पुलिस के हस्तक्षेप के कारण वह अपने इरादे में कामयाब नहीं हो पाया था. उस के बाद अनीस खान ने अंतिमा के बालिग होने का इंतजार किया और उस के बालिग होते होते ही उसे अपने साथ ले गया.

अंतिमा की मां ने आगे बताया कि उन की 5 बेटियों और 2 बेटों के साथ पूरी बिरादरी ने इस रिश्ते का विरोध भी किया था. तब मामला पुलिस तक भी गया था और हम ने अनीस खान पर अंतिमा के अपहरण का आरोप लगाया था. हालांकि पुलिस छानबीन और पूछताछ के दौरान अंतिमा ने अपने आप को बालिग बताते हुए अनीस खान के साथ ही रहने की इच्छा जताई थी.

अपनी बेटी अंतिमा के महज 25-26 वर्ष की उम्र में ही विधवा हो जाने की खबर पर रोती हुई उस की मां ने बताया कि अब वह चाह कर भी अपनी विधवा बेटी को अपने परिवार में वापस नहीं ला पाएंगी. इस की वजह उन्होंने खुद को बिरादरी द्वारा बेदखल करने की चेतावनी और खुद के बेटों द्वारा अंतिमा से कोई संबंध न रखने का संकल्प बताया.

अंतिमा की मां ने रोते हुए मीडिया को बताया, “हम हिंदू वो मुसलमान. हमारा और इन का ये कैसा मेल. अपने ही धर्म में शादी की होती तो कुछ न कुछ रास्ता अवश्य निकल सकता था. अंतिमा के एक मुसलिम युवक के साथ निकाह कर लेने के बाद मेरे पति मानसिक रूप से बीमार हो गए और अब पागलों जैसी हरकत करते हैं. अगर हमारी बेटी अंतिमा हमारी नाक नीची न करती तो अनीस अब तक जेल की सजा काट रहा होता.”

अंतिमा की मां का दावा है कि 5 साल पहले निकाह होने के बाद उन्होंने या उन के परिवार ने कभी अपनी अपनी बेटी से बात तक नहीं की. उन को ये भी पता नहीं था कि उन की बेटी अंतिमा का नाम अब बानो हो चुका था.

अंतिमा की मां के अंतिम शब्द यह थे, “मैं ने उसे अपनी कोख से पैदा किया है. बहुत दर्द है अंदर ही अंदर हमें, परंतु अब हम चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते. उस घर में वह इतनी लंबी जिंदगी नहीं काट पाएगी, आप लोग ही उसे हिम्मत देना.”

वहीं दूसरी तरफ पुलिस मुठभेड़ में गिरफ्तार किए गए आरोपी आजाद खान ने भी एक ओबीसी समुदाय की हिंदू युवती से निकाह किया था, जो उसी दशलावन गांव की निवासी है. निकाह से पूर्व मुन्ना की बेटी सुमन अब शबाना के नाम से जानी जाती है.

सुमन उर्फ शबाना का आजाद खान से निकाह लगभग 13 साल पहले हुआ था. अब शबाना 4 बच्चों की अम्मी है. दशलावन गांव में अनीस खान और आजाद खान का घर लगभग अगलबगल ही है.

सुमन की मां ने कहा, “मेरी बेटी स्कूल जाती थी, तब से आजाद खान उस के पीछे लगा रहता था. स्कूल आतेजाते ही दोनों एकदूसरे के संपर्क में आए थे. लगभग 13 साल पहले जब सुमन की उम्र 20 वर्ष की हुई थी तो दोनों ने निकाह कर लिया था. हम ने जब आजाद खान के खिलाफ केस दायर किया और पुलिस से ले कर कोर्ट तक में हम ने केस भी लड़ा था. मगर जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो भला कौन क्या कर सकता था.

“सुमन ने खुद ही कोर्ट और पुलिस के आगे अपने बयान में आजाद खान के साथ रहने की इच्छा जताई थी. सुमन के इस बयान के बाद हम ने कभी भी सुमन या उस के घर की तरफ मुंह उठा कर भी नहीं देखा. हम एक ही गांव में रहते थे.”

रेप में फंसा दिल्ली सरकार का अधिकारी – भाग 3

डाक्टर्स उस के साथ हुई हैवानियत से आगबबूला हो गए. एक नाबालिग लडक़ी के साथ दिल्ली सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग का उपनिदेशक ऐसी घिनौनी हरकत करे और आजादी से घूमे, यह बरदाश्त से बाहर की बात थी.

एक डाक्टर ने तुरंत इस मामले की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दी. कंट्रोल रूम ने घटना से संबंधित उत्तरी दिल्ली के थाना बुराड़ी को तुरंत अवगत करा कर सेंट स्टीफन हौस्पिटल जा कर पीडि़ता के बयान दर्ज करने को कहा.

बुराड़ी थाने के एसएचओ राजेंद्र कुमार ने जिले के डीसीपी सागर सिंह कलसी को फोन कर के घटना के विषय में बताया, फिर अपने संग 2 महिला और 2 पुलिस कांस्टेबल को ले कर सेंट स्टीफन अस्पताल के लिए रवाना हो गए.

सेंट स्टीफन में जब एसएचओ राजेंद्र कुमार पहुंचे तब काउंसलिंग एक्सपर्ट और फोन करने वाले डाक्टर वहीं मीनाक्षी के बेड के पास मौजूद थे. इस 14 साल की नाबालिग लडक़ी को देख कर एसएचओ राजेंद्र कुमार ने गहरी सांस ली. वह उस व्यक्ति को कोसने लगे जिस ने इस फूल जैसी बच्ची से अपना मुंह काला किया था.

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मीनाक्षी अभी सो रही थी. एसएचओ राजेंद्र कुमार को काउंसलिंग एक्सपर्ट और डाक्टर ने संक्षिप्त में सारी बातें बता दीं. डीसीपी सागर सिंह कलसी भी वहां आ गए थे. मीनाक्षी का बयान लेने के लिए उसे जगाया गया और सीआरपीसी के सेक्शन 164 के तहत उसका बयान दर्ज किया गया. मीनाक्षी के बयान दर्ज कर के डीसीपी सागर सिंह कलसी और एसएचओ राजेंद्र कुमार लौट गए.

पुलिस ने महिला एवं बाल विकास विभाग के उपनिदेशक प्रमोदय खाका और पत्नी सीमा को पहुंचाया जेल

मामला दिल्ली सरकार के एक प्रतिष्ठित पद पर बैठे अधिकारी का था. उस पर एकदम से हाथ नहीं डाला जा सकता था. पुलिस उस के खिलाफ ठोस सबूत जुटाना चाहती थी. इस के लिए एसएचओ राजेंद्र कुमार ने बुराड़ी के चर्च में जा कर पादरी और वहां हमेशा आने वाले लोगों से प्रमोदय खाका के बारे में जानकारी जुटाई. पता चला कि प्रमोदय खाका वहां रविवार को अवश्य जाता था. वहां उस की दोस्ती मीनाक्षी के मम्मीपापा से हुई. चर्च में आने वाले लोगों ने बताया कि ये तीनों चर्च में आने पर एकदूसरे से हंसतेबोलते थे.

मीनाक्षी के घर भी एसएचओ ने जा कर मीनाक्षी के बारे में पूछताछ की, मीनाक्षी कैसी लडक़ी है, उस की मां का चरित्र कैसा है, यह सब आसपास रहने वाले लोगों से पूछा गया. सभी ने बताया कि मीनाक्षी अच्छी लडक़ी है. उस की मां पति की मौत के बाद एक फैक्ट्री में नौकरी करती है, वह अच्छे चरित्र की महिला है. उन के यहां प्रमोदय खाका आता रहता था. तीनों के बारे में पूछताछ कर के एसएचओ राजेंद्र कुमार वापस आ गए.

मीडिया तक मीनाक्षी के साथ हुए रेप और उस का अबार्शन करवाने की बात पहुंची तो अखबारों में प्रमोदय खाका और उस की पत्नी सीमा के विरुद्ध सुर्खियों में बहुत कुछ लिखा जाने लगा.

दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्षा स्वाति मालीवाल ने प्रमोदय खाका की गिरफ्तारी की मांग कर डाली. दिल्ली सरकार ने तुरंत ऐक्शन लेते हुए खाका को नौकरी से सस्पेंड कर दिया. चारों ओर से दबाव बना तो पुलिस ने प्रमोदय खाका के बुराड़ी स्थित घर पर दबिश दे कर प्रमोदय की पत्नी सीमा को गिरफ्तार कर लिया. प्रमोदय खाका फरार था. पता चला कि वह अपनी अग्रिम जमानत के लिए कोर्ट पहुंच गया था.

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पुलिस ने उसे उस की अग्रिम जमानत होने से पहले ही वहां से गिरफ्तार कर लिया. सीमा को कोर्ट में 21 अगस्त, 2023 को पेश कर उसे जेल भेज दिया गया.

22 अगस्त मंगलवार को प्रमोदय खाका की गिरफ्तारी हुई थी. उस पर थाने में भादंवि की धारा 376 (2) (महिला से बलात्कार), 509 (महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाना), 328 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना), 313 (महिला की सहमति के बिना उस का गर्भपात करवाना), धारा 120बी (आपराधिक साजिश) और पोक्सो अधिनियम (यौन अपराध से बच्चों के संरक्षण का प्रावधान), 506 (आपराधिक धमकी देना) के अंतर्गत केस दर्ज किया गया.

पुलिस को प्रमोदय खाका का पोटेंसी टेस्ट (शुक्राणु की जांच से संबंधित) भी करवाना पड़ा, क्योंकि प्रमोदय खाका के वकील उमाशंकर ने चौंकाने वाला खुलासा किया था कि प्रमोदय खाका ने 2005 में अपनी नसबंदी करवा ली थी. हकीकत क्या है यह जांच रिपोर्ट आने के बाद पता चल सकेगा. कथा लिखने तक प्रमोदय खाका और उस की पत्नी सलाखों के पीछे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में मीनाक्षी और सुषमा परिवर्तित नाम हैं.

महिला कांस्टेबल से ट्रेन में दरिंदगी – भाग 2

रेलवे पुलिस और एसटीएफ जुटी जांच में

इस बीच सर्विलांस की जांच टीम ने अयोध्या रेलवे स्टेशन पर सीसीटीवी फुटेज निकलवाई. साथ ही उत्तर प्रदेश पुलिस ने इस मामले को एसटीएफ को सौंप दिया.एक तरफ फुटेज खंगाले जा रहे थे, जबकि दूसरी तरफ एसटीएफ की टीम अपराधियों तक पहुंचने के लिए लोगों से पूछताछ कर रही थी. इस के लिए एसटीएफ द्वारा एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई थी. प्रैस विज्ञप्ति जन साधारण के लिए थी.

अखबारों में छपी विज्ञप्ति में घटनास्थल और घटना के बारे में जानकारी देने के साथसाथ अभियुक्तों के बारे में सूचना देने वालों को एक लाख रुपए इनाम की भी घोषण की गई थी. यह भी कहा गया था कि मामले का मुकदमा अपराध संख्या 29/2023 धारा 333, 353, 354ख, 304 भादंवि पंजीकृत किया गया है. इसी के साथ सूचना देने के लिए उत्तर प्रदेश के एएसपी (एसटीएफ), डीएसपी (एसटीफ) और विवेचक (एसटीएफ) के मोबाइल नंबर भी दिए गए थे.

एक तरफ मानसी अस्पताल में जीवन और मौत के बीच झूल रही थी तो वहीं दूसरी तरफ रेलवे पुलिस से ले कर यूपी पुलिस की एसटीएफ टीम अपराधियों को दबोचने के अभियान में तेजी ला चुकी थी. हालांकि घटना के 20 दिन से अधिक निकल चुके थे, लेकिन उन्हें कोई बड़ा सुराग हाथ नहीं लगा था. जबकि लोग यह जानने को इच्छुक थे कि आखिर उस रात चलती ट्रेन में मानसी के साथ बदमाशों ने क्या किया? वे बदमाश कौन थे,  जिन्होंने पुलिसकर्मी के साथ यह करने की जुर्रत की? इस घटना को ले कर पूरे इलाके में सनसनी थी.

वारदात के वक्त अयोध्या स्टेशन और मानेसर पर लगे सीसीटीवी फुटेज में 3 युवकों की फुटेज बारबार दिखाई दी थी. पुलिस ने उन तसवीरों के सहारे जांच शुरू कर दी थी. सैंकड़ों लोगों से पूछताछ के अलावा साइंटिफिक सर्विलांस और काल ट्रेसिंग के जरिए आखिर पुलिस आरोपियों तक पहुंच गई.

एनकाउंटर में मारा एक आरोपी

एसटीएफ को सूचना मिली कि मामले के तीनों संदिग्ध बदमाश मनकापुर स्टेशन पर साथसाथ उतरे थे. फिर क्या था, एसटीएफ की ओर से जांच की गति तेज हो गई. घटना की टाइमिंग को ले कर जांच शुरू हुई तो मनकापुर स्टेशन पर एक साथ 3 मोबाइल स्विच औफ होने की जानकारी मिली. इस के बाद सीसीटीवी फुटेज को खंगाला गया. संदिग्धों के स्केच तैयार किए गए. पुलिस ने मोबाइल नंबरों के आधार पर बदमाशों की खोज शुरू की. इसी आधार पर 22 सितंबर, 2023 की सुबहसुबह पुलिस ने बदमाशों को घेर लिया.

यह काररवाई भी कुछ कम नाटकीय तरीके से नहीं हुई. यूपी एसटीएफ आरोपियों के मोबाइल को ट्रैक कर रही थी. इसी क्रम में उन्हें इनपुट मिला कि तीनों इनायत नगर में छिपे हुए हैं. पुलिस ने लोकेशन को लौक करते हुए तीनों को घेर लिया.

पुलिस की घेराबंदी की सूचना मिलते ही तीनों बदमाशों ने पुलिसकर्मियों पर गोलीबारी शुरू कर दी. पुलिस ने भी जवाबी काररवाई की. दोनों तरफ से गोली चलने लगी. कुछ समय में इस एनकाउंटर के दौरान घिरता देख कर एक बदमाश वहां से भाग निकला. जबकि पुलिस ने कुछ देर में ही 2 बदमाशों को काबू में कर लिया. दोनों को गोली लग चुकी थी, इस कारण वे पकड़ में आ गए.

एक बदमाश के भागने पर पुलिस ने पूरे इलाके की नाकेबंदी करा दी. इसी बीच जानकारी आई कि वह बदमाश पुराकलंदर इलाके में छिपा हुआ है. यूपी एसटीएफ ने उसे वहां घेर लिया. उस से सरेंडर करने को कहा गया तो उस ने पुलिस पर\ गोलियां चलानी शुरू कर दीं.

इस गोलीबारी में पुराकलंदर थाने के एसएचओ रतन शर्मा और 2 सिपाही घायल हो गए. एसएचओ रतन शर्मा के हाथ में गोली लगी. जबकि पुलिस की गोली से बदमाश घायल हो गया. उसे अस्पताल ले जाया गया. लेकिन वहां उसे मृत घोषित कर दिया गया.

अकेली देख बदमाशों ने बनाया शिकार

पकड़े गए बदमाशों ने अपना नाम विशंभर और आजाद बताया, जबकि मारा गया बदमाश अनीस था. पकड़े गए बदमाशों ने पूछताछ में बताया कि उन्होंने महिला हैडकांस्टेबल के साथ किस तरह से दरिंदगी की. कैसे उन्होंने प्रयागराज से अयोध्या जाने वाली सरयू एक्सप्रेस में उसे अपना निशाना बनाया.

दरअसल, अनीस, आजाद और विशंभर पेशे से चोर थे. ट्रेनों में चोरी करते थे. एसटीएफ द्वारा पूछताछ करने पर पता चला कि 30 अगस्त की रात 14234 सरयू एक्सप्रेस के कोच में ये तीनों चोरी करने के इरादे से सवार हुए थे. अयोध्या स्टेशन पर बोगी खाली हो चुकी थी. तीनों सीट पर बैठ कर ब्लू फिल्म देखने लगे.

सामने महिला हैडकांस्टेबल मानसी बैठी हुई थी. मानसी ने अपराधियों के इरादों को भांप लिया और अपनी सीट बदल ली. मानसी जैसे ही दूसरी सीट पर पहुंची तो पीछे से तीनों युवक भी आ गए. अयोध्या स्टेशन पर बचे पैसेंजर भी उतर गए थे. बोगी में उन तीनों के अलावा केवल मानसी ही थी. जैसे ही ट्रेन आगे बढ़ी, तीनों ने मानसी से मारपीट व जोरजबरदस्ती करनी शुरू कर दी.

45 वर्षीया हैडकांस्टेबल मानसी ने उन से अपना बचाव भी किया, किंतु वह तीनों बदमाशों के आगे तब पस्त पड़ गई, जब उन्होंने उस पर वार करना शुरू कर दिया. इसी दौरान एक बदमाश ने उन के चेहरे पर धारदार हथियार से हमला कर दिया. असंतुलित मानसी के सिर को खिडक़ी से टकरा दिया. उस के सिर से खून निकलने लगा था. चेहरा भी जगह जगह कट चुका था. इस के बाद भी वह उन से लड़ रही थी.

रेप में फंसा दिल्ली सरकार का अधिकारी – भाग 2

आखिर डाक्टरों ने आपस में सलाह कर के मीनाक्षी की काउंसलिंग करवाने का फैसला लिया. यह बात उस की मां सुषमा को भी बता दी गई. काउंसलिंग एक्सपर्ट बुलवाया गया और डाक्टरों तथा मीनाक्षी की मां की मौजूदगी में 11 अगस्त, 2023 को मीनाक्षी की काउंसलिंग शुरू हुई.

काउंसलिंग एक्सपर्ट ने मीनाक्षी को अपने तरीके से विश्वास में ले कर प्यार से पूछा, “बेटा मीनाक्षी, मैं महसूस कर रहा हूं कि तुम्हारे भीतर कोई ऐसी बात गड्डमड्ड हो रही है, जिसे जुबान तक लाने में तुम झिझक रही हो. वही बात तुम्हें परेशान और बेचैन कर रही है. तुम अपने मन की बात होंठों पर लाओगी तो मन का बोझ कम हो जाएगा, तुम अपने आप को हलका महसूस करने लगोगी.”

मीनाक्षी की आंखों में आंसू आ गए. वह हिलक हिलक कर रोने लगी. काउंसलिंग एक्सपर्ट ने प्यार से उस का कंधा थपथपाया,

“कह दो बेटा, जो मन में है. तुम्हारी मदद के लिए डाक्टर हैं, तुम्हारी मम्मी हैं, मैं हूं.”

“अंकल…” मीनाक्षी रुंधे गले से बोली, “मेरा मुंहबोला मामा बहुत गंदा आदमी है. उस ने अपने घर ले जा कर मुझे अपनी हवस का शिकार बनाया.”

इस खुलासे ने डाक्टर और काउंसलिंग एक्सपर्ट को बुरी तरह चौंका दिया. सुषमा तो बेटी के साथ उस मुंहबोले भाई की दरिंदगी की बात सुन कर अपना होश खो बैठी. वह अपनी जगह पर बेहोश हो कर गिर पड़ी. नर्स उसे उठवा कर बेड पर ले गई और उसे होश में लाने की कोशिश करने लगी.

नशीला पदार्थ खिला कर इज्जत से खेला मामा

मीनाक्षी बोली, “पहली अक्तूबर को मैं मामा के साथ उस के घर गई थी. अभी उस घर में गए मुझे 8-10 दिन ही हुए थे. उस दिन सीमा मामी बाजार गई थी. उस के बच्चे स्कूल गए हुए थे. घर में मैं अकेली थी. सीमा मामी मुझे हिदायत दे गई थी कि मैं घर में ही अंदर से दरवाजा लौक कर के रहूं. मैं ने ऐसा ही किया. अभी मामी को गए हुए थोड़ी ही देर हुई थी कि दरवाजे की बेल बजी. मैं ने की-होल से देखा तो बाहर मुंहबोले मामा को खड़ा पाया. मैं ने दरवाजा खोल दिया. मामा ने अंदर आ कर दरवाजा लौक कर लिया.”

“क्या कर रही थी मीना?” उस ने प्यार से पूछा.

“कुछ नहीं अंकल. मामीजी बाजार गई हैं, सोच रही थी कुछ पढ़ाई कर लूं.”

“छोड़ो, तुम शाम को पढ़ लेना. आओ, मेरे पास बैठो. मैं तुम्हारे लिए ठंडी कोक लाया हूं. और पेस्ट्री भी.”

“मैं उस के पास पलंग पर बैठ गई तो उस ने एक कांच के गिलास में कोक डाल कर और प्लेट में पेस्ट्री रख कर मुझे दी. मैं पेस्ट्री खाने लगी. बीचबीच में मैं कोक भी पी रही थी. अभी मेरी कोक खत्म भी नहीं हुई थी कि मुझे जोर का चक्कर आया और मैं बिस्तर पर लुढक़ती चली गई. फिर मैं बेहोश हो गई थी.

“मुझे जब होश आया तो मुंहबोला मामा वहां नहीं था. मैं ने उठने की कोशिश की तो दर्द से तड़प गई. मेरी जांघों के जोड़ों में भयंकर दर्द था. मैं ने झांक कर देखा तो घबरा गई. मेरी जांघों पर खून फैला था और मेरी सलवार का नाड़ा खुला पड़ा था. सलवार पर भी खून लग गया था. मेरी आंखों के आगे अंधेरा छा गया. मेरी समझ में इतना ही आया कि मेरे साथ मुंहबोले मामा ने गलत काम किया है.” मीनाक्षी कहतेकहते सिसकने लगी.

आपबीती सुन कर डाक्टर हुए आश्चर्यचकित

काउंसिलिंग एक्सपर्ट ने सहानुभूति से मीनाक्षी का सिर सहलाया, “आंसू कमजोर लोग बहाते हैं बेटी, तुम बहादुर बेटी हो. उस मुंहबोले मामा की असलियत बताओगी तो उसे हम सब कड़ी से कड़ी सजा दिलवाने की कोशिश करेंगे. बोलो, आगे क्या हुआ?”

मीनाक्षी ने गालों पर लुढक़ आए आंसुओं को हथेलियों से पोंछा और फिर बताने लगी, “मैं हिम्मत बटोर कर जैसेतैसे बाथरूम तक गई. अपने खून को साफ किया. सलवार बदली और कमरे में बैठ कर मामी के आने का इंतजार करने लगी. सीमा मामी दोपहर में घर लौट कर आई. उसे देख कर मैं रोने लगी तो वह मुझे घूरते हुए बोली क्या हुआ, यह टेसुए क्यों बहा रही है? क्या हुआ है?”

“मामा ने मेरे साथ गलत काम किया है मामी.” मैं ने सुबकते हुए बताया.

“ऐ लडक़ी, क्या बकवास कर रही है.” सीमा मुझ पर चीखी, “तुझे अपने मामा पर ऐसा लांछन लगाते शरम नहीं आ रही है.”

“मैं झूठ नहीं बोल रही हूं.”

“मक्कार, बदचलन, मेरे पति पर झूठी तोहमत लगा रही है. वह तो सुबह ही ड्यूटी चले गए हैं.”

“वह घर आए थे, आप बाजार गई थी तब उन्होंने आ कर कालबेल बजाई थी. मैं ने उन के लिए दरवाजा खोला था…” मैं ने रोते हुए बताया, “वह मुझे अपने कमरे में ले गए, मुझे पेस्ट्री और कोक दी. मैं ने जैसे ही कोक पी, मैं बेहोश हो गई. उसी बेहोशी में मेरे साथ उन्होंने गलत काम किया. आप मेरी खून सनी सलवार देख लीजिए. वह मैं ने उतार कर रख दी है.”

“यह लडक़ी क्या बके जा रही है.” सीमा मामी ने अपना सिर थाम लिया. कुछ क्षण वह चुप रही तो मैं ने समझा कि वह मेरे साथ न्याय करेगी, मगर सिर से हाथ हटा कर उस ने चुप्पी तोड़ी.

वह मुझे गालियां देने लगी, “छोटे घर की बदजात लडक़ी, तेरी मां ने तुझे यहां मेरे पति को फांसने के लिए भेजा है. मेरे पति की दौलत पर तेरी मां की नजर है, उस ने तुझे सिखापढ़ा कर भेजा है कि सीमा के पति को अपनी जवानी के जाल में फंसा लेना फिर हम लोगों की गरीबी दूर हो जाएगी.”

“यह गलत है.” मैं तैश में चिल्ला पड़ी, “हम गरीब हैं, लेकिन ऐसी ओछी हरकतें नहीं करते.”

“ओह, तू चिल्लाना भी जानती है. ठहर, मैं तेरी जुबान बंद करती हूं.” सीमा मामी ने कहा और जा कर दूसरे कमरे में रखा डंडा उठा लाई. वह मुझे डंडे से पीटने लगी. मैं रोती चीखती रही, लेकिन सीमा को मुझ पर दया नहीं आई. उस ने मुझे जी भर कर मारा और एक कमरे में बंद कर दिया. मुझे उस दिन खाना भी नहीं दिया गया. मै बंद कमरे में पड़ी रोती रही.

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मीनाक्षी की आपबीती सुन कर बुलानी पड़ी पुलिस

“मुंहबोले मामा ने एक बार नहीं, मुझे 4 बार अपनी गंदी सोच का शिकार बनाया.” मीनाक्षी ने बताया, “उस की इस बुरी हरकत में मामी भी बराबर की भागीदार बनती रही. उस का पति अपनी इच्छा पूर्ति करने के लिए मुझे धोखे से नशीली दवा मिली चीज खिला देता था. मामी उस वक्त घर में ही होती थी.

“वह एक प्रकार से अपने पति को मौका देती थी. मैं होश में आने पर मामी को मामा की हरकत के बारे में बताती थी तो मेरा पक्ष लेने के बजाय वह पति का पक्ष लेती. मुझे पीटने लगती और लांछन लगाती कि मैं उस के पति को गलत काम करने के लिए उकसाती हूं. मैं बहुत डरी हुई और टेंशन में जी रही थी कि मेरे साथ ऐसी घटना घटी कि मैं न मरे में रह गई न जीवित में.”

“ऐसी क्या बात हुई थी मीनाक्षी बेटी?” काउंसलिंग एक्सपर्ट ने हैरानी से पूछा.

“मैं गर्भ से हो गई थी अंकल!” मीनाक्षी ने धीरे से बताया.

“ओ माई गौड.” डाक्टर्स और काउंसलिंग एक्सपर्ट चौंक कर एक साथ बोल पड़े.

“यह बात तुम ने सीमा को बताई होगी?” एक्सपर्ट ने पूछा.

“हां, बताई थी. उस ने अपने बेटे से प्रेंगनेंसी जांच किट मंगवा कर मेरी प्रेगनेंसी जांच की और प्रेग्नेंट होने पर बाजार से एबार्शन (गर्भ गिराने) की दवा ला कर मुझे जबरन खिलाई. उस के बाद से मैं वहां से अपने घर जाने के लिए लगातार मां को फोन कर रही थी. मैं 4 महीने उस गंदी नीयत वाले मुंहबोले मामा के घर रही. उस ने मेरी जिंदगी बरबाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है अंकल..” मीनाक्षी की आंखों से आंसुओं का सैलाब फूट पड़ा.

क्या मीनाक्षी को न्याय मिलेगा? या आरोपी अपनी ऊंची पहुंच की वजह से बच जायेगा? जानने के लिए पढ़िए सोशल क्राइम स्टोरी का अगला भाग. 

महिला कांस्टेबल से ट्रेन में दरिंदगी – भाग 1

पकड़े गए बदमाशों ने पूछताछ में बताया कि सरयू एक्सप्रैस के कोच में वह तीनों सवार हुए थे. अयोध्या स्टेशन पर बोगी खाली हो चुकी थी. तीनों सीट पर बैठ कर ब्लू फिल्म देखने लगे. सामने महिला हैडकांस्टेबल मानसी बैठी हुई थी. मानसी ने अपराधियों के इरादों को भांप लिया और अपनी सीट बदल ली.

मानसी जैसे ही दूसरी सीट पर पहुंची तो पीछे से तीनों युवक भी आ गए. अयोध्या स्टेशन पर बचे पैसेंजर भी उतर गए थे. बोगी में उन तीनों के अलावा केवल मानसी ही थी. जैसे ही ट्रेन आगे बढ़ी, तीनों ने मानसी से मारपीट व जोरजबरदस्ती करनी शुरू कर दी. मानसी ने उन से अपना बचाव भी किया, किंतु वह तीनों बदमाशों के आगे तब पस्त पड़ गई, जब उन्होंने उस पर वार करना शुरू कर दिया.

इसी दौरान एक बदमाश ने उन के चेहरे पर धारदार हथियार से हमला कर दिया. असंतुलित मानसी के सिर को खिड़की से टकरा दिया. उस के सिर से खून निकलने लगा था. चेहरा भी जगहजगह कट चुका था. इस के बाद भी वह उन से लड़ रही थी. तीनों बदमाश उस महिला सिपाही पर हावी नहीं हो पा रहे थे. इस के बाद तीनों ने उसे पकड़ने की कोशिश छोड़ कर उसे पीटना शुरू कर दिया, जिस से सिपाही बेसुध हो गई और ट्रेन के फर्श पर गिर पड़ी.

तीनों बदमाशों ने जबरदस्ती करते हुए उस के कपड़े फाड़ दिए. इसी बीच मनकापुर स्टेशन आ गया. तब रात के करीब एक बज चुका था. फिर उन्होंने बेहोश महिला सिपाही को सीट के नीचे धकेल दिया.

उत्तर प्रदेश के जिला प्रयागराज के भदरी गांव की रहने वाली मानसी उत्तर प्रदेश पुलिस की हैडकांस्टेबल थी. वह 4 बहनों और 2 भाइयों में दूसरे नंबर की थी. उस की तैनाती सुलतानपुर जिले में हुई थी. वैसे वह स्पोट्र्स कोटे से 1998 में सामान्य सिपाही के पद पर भरती हुई थी, लेकिन इसी साल जनवरी में उस का हैडकांस्टेबल पद पर प्रमोशन हुआ था. अयोध्या के सावन झूला मेले में उस की ड्यूटी लगाई गई थी.

वह रोज की तरह 30 अगस्त, 2023 को अपने आवास से ड्यूटी के लिए निकली थी. शाम को करीब 6 बजे फाफामऊ स्टेशन पहुंच गई. फाफामऊ स्टेशन से वह सरयू एक्सप्रेस ट्रेन के जनरल डिब्बे में सवार हो गई. सरयू एक्सप्रेस प्रतापगढ़ होते हुए निर्धारित समय पर अयोध्या कैंट पहुंच गई. उस वक्त रात के सवा 11 बज गए थे. ट्रेन वहां 5 मिनट के लिए रुकी और 11.20 पर चल दी. मानसी को अयोध्या कैंट में उतर कर आगे हनुमानगढ़ जाना था, लेकिन वह अयोध्या नहीं उतर पाई.

सरयू एक्सप्रेस रात 12 बजे अयोध्या जंक्शन पर पहुंची. यहां पर ट्रेन 2 मिनट के लिए रुकी. वहां अयोध्या के लगभग सभी यात्री ट्रेन से उतर गए, मगर मानसी वहां पर भी नहीं उतरी. सरयू एक्सप्रेस रात 12 बज कर 50 मिनट पर अपने आखिरी स्टेशन मनकापुर पहुंच गई, लेकिन मानसी यहां भी ट्रेन से नहीं उतरी.

मनकापुर रेलवे स्टेशन पर सरयू एक्सप्रेस करीब 2 घंटे रुकी. गाड़ी का इंजन भी बदला गया. ट्रेन दूसरे दिन सुबहसुबह 3 बज कर 5 मिनट पर दोबारा मनकापुर रेलवे स्टेशन से अयोध्या के लिए चल पड़ी. जब ट्रेन अयोध्या रेलवे स्टेशन पर पहुंची तो राजकीय रेलवे पुलिस (जीआरपी) के सिपाही अपने निर्धारित समय पर ड्यूटी के अनुसार ट्रेन में चढ़े.

जीआरपी के जवानों ने वहां पर एक हृदयविदारक दृश्य देखा. वे दृश्य को देख कर सन्न रह गए. उन्होंने देखा कि एक सीट के नीचे पुलिस वरदी में एक महिला तड़प रही थी. जीआरपी के सिपाहियों ने पहले उस का वीडियो बनाया और उस के तुरंत बाद अपने उच्चाधिकारियों को हादसे की सूचना दे दी.

आननफानन में वरिष्ठ पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां पर पुलिस अधिकारियों ने देखा कि घायल महिला के चेहरे पर चाकू के वार के कई घाव हैं. उस के माथे और गले पर धारदार हथियार के घाव थे. उस के शरीर पर केवल पुलिस की शर्ट थी, जबकि पैंट नीचे की ओर खिसकी हुई थी.

राजकीय रेलवे पुलिस, स्थानीय पुलिस और आरपीएफ के अधिकारियों ने मौका मुआयना कर बोगी में मौजूद एक भिखारी से दिखने वाले आदमी को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया जबकि वह मानसिक तौर पर सही हालत में नहीं दिख रहा था.

हाईकार्ट ने लिया स्वत:संज्ञान

यह खबर 31 अगस्त, 2023 की सुबह 4 बजे अयोध्या रेलवे स्टेशन पर जंगल की आग की तरह फैल गई. लोगों के बीच कानाफूसी होने लगी कि सरयू एक्सप्रेस की जनरल बोगी में सीट के नीचे एक महिला हैडकांस्टेबल खून से लथपथ पड़ी है. रेलवे पुलिस ने जांचपड़ताल की. सीट के नीचे फर्श पर खून ही खून फैला था. उस के पास से मिले आईडी से उस का नामपता मालूम हुआ.

साथ ही रेलवे पुलिस तुरंत मानसी को श्रीराम अस्पताल ले गई. वहां डाक्टरों ने प्राथमिक उपचार के बाद उसे मैडिकल कालेज के अस्पताल भेज दिया. डाक्टरों ने बुरी तरह से जख्मी मानसी की नाजुक हालत को देखते हुए उसे लखनऊ स्थित ट्रामा सेंटर में रेफर कर दिया. इस की जांच की जिम्मेदारी (रेलवे) पूजा यादव को सौंपी गई थी.

डाक्टरी जांच में यह पता चला कि मानसी बुरी तरह से दरिंदगी की शिकार हो चुकी थी. उन्होंने सबूत मिटाने के लिए उस पर जानलेवा हमला भी किया गया था. यह घटना पुलिस महकमे के लिए बेहद शर्मनाक और कमजोर साबित करने वाली थी. इसे देखते हुए ही मामले की जांच के लिए जीआरपी, आरपीएफ और एसटीएफ के अलावा पुलिस की दूसरी टीमों को भी लगा दिया गया था.

इसी बीच 31 अगस्त, 2023 को मानसी के भाई मनोज ने जीआरपी अयोध्या कैंट पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट दर्ज करवा दी थी. रिपोर्ट में उस ने दरिंदों को गिरफ्तार कर सख्त सजा देने की गुहार लगाई थी.

अयोध्या के जीआरपी थाने में हैडकांस्टेबल मानसी के भाई मनोज की तहरीर पर अज्ञात अपराधियों के खिलाफ सरकारी काम में बाधा डालने, लोक सेवक पर हमला करने और जान से मारने की मंशा के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी गई.

इस मामले को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इतना संवेदनशील समझा कि 3 सितंबर की रात में इलाहाबाद हाईकोर्ट की बेंच बैठी. माननीय चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर द्वारा बैठाई गई बेंच ने भारतीय रेलवे और उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब तलब किया. साथ ही यूपी की योगी सरकार को सूबे की कानूनव्यवस्था के बिगडऩे को ले कर तीखी टिप्प्णी की और उसे दुरुस्त करने के साथसाथ हरसंभव महिला सुरक्षा देने के आदेश दिए.

हाईकोर्ट की इस सुनवाई के बाद भारतीय रेलवे से ले कर उत्तर प्रदेश सरकार तक सकते में आ गई. कारण सुनवाई के दौरान जांच से जुड़े किसी सीनियर अधिकारी को भी अदालत में पेश होने का हुक्म दिया गया था. इस संबंध में सुनवाई अगले रोज भी हुई. रेलवे की तरफ से जवाब दाखिल किया गया. कोर्ट में एसपी (रेलवे) पूजा यादव, सीओ और विवेचना अधिकारी पेश हुए.

पूजा यादव ने 3 दिनों के दरम्यान हुई जांच की विस्तृत जानकारी दी. साथ ही उन्होंने अदालत को बताया कि मानसी की स्थिति गंभीर बनी हुई है. इस कारण उस के बयान नहीं लिए जा सके हैं. उन्हें मानसी के होश में आने का इंतजार है.

यादव ने कोर्ट को यह आश्वासन दिया कि इस गंभीर मामले में आरोपियों की पहचान के लिए काररवाई की जा रही है. घटना की विस्तार से जांच और वर्कआउट के लिए कई टीमों का गठन किया गया है. जांच टीम के लिए अच्छी खबर वारदात के 6 दिन बाद तब मिली, जब डाक्टर ने पीडि़ता मानसी को खतरे से बाहर बताया. डाक्टरों ने उसे बचा लिया था, मगर वह बयान देने की स्थिति में नहीं थी. उसे बयान देने की स्थिति में आने में और 2 दिन लगने की संभावना थी.

मानसी ने होश आने पर अपने साथ हुई दरिंदगी के बारे में जो कुछ बताया, वह बेहद रोंगटे खड़े करने वाला था. उस ने बताया कि उस के साथ दरिंदगी करने वाले 3 लोग थे. उस ने उन दरिंदों से खुद को बचाने की बहुत कोशिश की, लेकिन उन के द्वारा उस पर जानलेवा हमला कर दिया गया था. किसी ने सिर पर भी हमला कर दिया था, जिस से वह बेहोश हो गई थी. उस के बाद क्या हुआ, उसे कुछ नहीं पता.

रेप में फंसा दिल्ली सरकार का अधिकारी – भाग 1

“मुंहबोले मामा ने एक बार नहीं, मुझे 4 बार अपनी गंदी सोच का शिकार बनाया.” मीनाक्षी ने बताया, “उस की इस बुरी हरकत में मामी भी बराबर की भागीदार बनती रही. उस का पति अपनी इच्छा पूर्ति करने के लिए मुझे धोखे से नशीली दवा मिली चीज खिला देता था. मामी उस वक्त घर में ही होती थी.

“वह एक प्रकार से अपने पति को मौका देती थी. मैं होश में आने पर मामी को मामा की हरकत के बारे में बताती थी तो मेरा पक्ष लेने के बजाय वह पति का पक्ष लेती. मुझे पीटने लगती और लांछन लगाती कि मैं उस के पति को गलत काम करने के लिए उकसाती हूं. मैं बहुत डरी हुई और टेंशन में जी रही थी कि मेरे साथ ऐसी घटना घटी कि मैं न मरे में रह गई न जीवित में.

“उस ने अपने बेटे से प्रेंगनेंसी जांच किट मंगवा कर मेरी प्रेगनेंसी जांच की और प्रेग्नेंट होने पर बाजार से एबार्शन (गर्भ गिराने) की दवा ला कर मुझे जबरन खिलाई. उस ने मेरी जिंदगी बरबाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है.” मीनाक्षी की आंखों से आंसुओं का सैलाब फूट पड़ा.

यह कहानी अपने पद और दौलत के नशे में झूम रहे एक ऐसे व्यक्ति की है, जिस ने सुखवैभव और सुंदर पत्नी के होते हुए अपने दोस्त की नाबालिग बेटी को अपनी हवस का शिकार बनाया.

बात उस समय की है जब देश कोरोना के खौफ में जी रहा था. लौकडाउन खुल गया था, लेकिन लोग डरे सहमे हुए थे. सन 2020 का अक्तूबर महीना शुरू हुआ था. दिल्ली के उत्तरी जिला के अंतर्गत बुराड़ी क्षेत्र में रहने वाली मीनाक्षी अब वह मीनाक्षी नहीं रह गई थी जो हमेशा खिलीखिली नजर आती थी, उस की आंखों में ढेर सारे ख्वाब तैरते रहते तो होठों पर मोहक मुसकान फैली रहती.

हंसमुख स्वभाव वाली मीनाक्षी बुझीबुझी सी नजर आ रही थी. वह ढंग से खाना भी नहीं रखा रही थी, न गहरी नींद सो पा रही थी. उस में आए इस परिवर्तन को सुषमा 2-3 दिन से देख और महसूस कर रही थी. वह सोच रही थी कि मीनाक्षी से इस बाबत पूछे या नहीं. अभी 4 महीने पहले ही तो मीनाक्षी के पापा इस दुनिया से विदा ले गए थे. उस पर गमों और दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था.

फिर मीनाक्षी तो मात्र 14 साल की थी, वह अपने पापा के लिए अंदर ही अंदर घुट रही होगी. वह अपना दुख जाहिर नहीं कर पा रही है, तभी खामोश सी रहने लगी है. उस से कुछ पूछने से कोई लाभ नहीं होगा. सुषमा इस कारण सब देखसमझ कर भी खामोश थी.

मीनाक्षी के पापा की मौत के बाद घर संभालने की जिम्मेदारी सुषमा के कंधों पर आ गई थी. वह एक फैक्ट्री में काम पर जाने लगी थी. वह सारा दिन घर से बाहर रहने लगी. घर में जवान और नाबालिग बेटी थी. सुषमा को उसी की चिंता सताती रहती थी, लेकिन इस का हल खुदबखुद निकल आया.

मुंहबोला मामा मीनाक्षी को अपने घर ले आया. मीनाक्षी के पापा जब जीवित थे, वह चर्च जाते थे. सुषमा और मीनाक्षी साथ में होती थी. चर्च में दिल्ली सरकार की नौकरी में महिला एवं बाल विकास विभाग का उपनिदेशक परमोदय खाका भी आता था. वहां मीनाक्षी के पापा की परमोदय खाका से जानपहचान हुई और धीरेधीरे यह पहचान गहरी दोस्ती में बदल गई.

प्रमोदय खाका मिलनसार व्यक्ति था. वह सुषमा को अपनी बहन मानने लगा. सुषमा भी उसे बड़े भाई का सम्मान देने लगी. उन का एकदूसरे के घर भी आनाजाना शुरू हो गया. मीनाक्षी के पापा का अचानक देहांत हुआ तो सुषमा पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. परमोदय खाका ने आगे बढ़ कर मीनाक्षी के पापा की अंत्येष्टि से ले कर तेरहवीं तक की सारी जिम्मेदारी निभाई थी.

प्रमोदय खाका मीनाक्षी को ले गया अपने घर

सुषमा को उस ने फोन कर के कह दिया, “बहन, मैं कई दिन से देख रहा हूं कि तुम अपनी बेटी मीनाक्षी को ले कर परेशान रहती हो. मैं ने आज तुम्हारी टेंशन दूर कर दी है. मैं मीनाक्षी को अपने घर ले आया हूं. यहां तुम्हारी भाभी है, बच्चे हैं. मीनाक्षी उन के साथ रहेगी तो उस को अपने पापा का गम भूलने में मदद मिलेगी. तुम चिंता मत करना, जो मेरे बच्चे खातेपहनते हैं, मीनाक्षी भी वैसा ही खाएगी पहनेगी. मैं अपने बच्चों और मीनाक्षी में कोई फर्क नहीं रखूंगा.”

“तुम बहुत अच्छे हो भैया. मेरी सारी चिंता समाप्त हो गई. मीनाक्षी नादान और भोली है. मैं उस को घर में अकेले छोड़ कर काम पर जाती थी तो पूरा दिन उसी की फिक्र लगी रहती थी. अब कोई फिक्र नहीं रहेगी. अच्छा भैया, मीनाक्षी का ध्यान रखना.” कहने के बाद सुषमा ने फोन रख दिया था. उस ने गहरी सांस ली.

लेकिन अब 4 महीने बाद मीनाक्षी उस के पास वापस लौट कर आई थी तो वह खोई खोई और गुमसुम रहने लगी थी. सुषमा ने 2 दिन इस विषय में कोई चर्चा नहीं की. तीसरे दिन वह काम से लौटते वक्त सोच कर आई कि आज मीनाक्षी से उस की खामोशी का राज पूछेगी.

घर में कदम रखते ही वह घबरा गई. मीनाक्षी पलंग पर थी और उस पर दौरा पड़ा था. वह पलंग पर गिरी हुई थी. उस का शरीर ऐंठ रहा था, आंखें फैल गई थीं. सुषमा ने दौड़ कर उसे संभाला. पड़ोसियों की मदद ली और पास के डाक्टर से उपचार दिलाया.

डाक्टर ने बताया, “लडक़ी पर एंजाइटी का दौरा पड़ा है. ऐसा फिर हो सकता है. आप इसे बड़े हौस्पिटल में दिखाएंगे तो ठीक रहेगा.”

दूसरे दिन 7 अगस्त, 2023 को सुषमा ने काम से छुट्टी ली और मीनाक्षी को दिल्ली के सेंट स्टीफन हौस्पिटल में ले गई. मीनाक्षी की जांच कर के डाक्टरों ने उसे भरती कर लिया.

मीनाक्षी के खुलासे पर डाक्टरों को बुलवानी पड़ी पुलिस

मीनाक्षी को एंजायटी के दौरे पड़ रहे थे, अब उसे पैनिक अटैक भी आने लगे थे. डाक्टर उस के इलाज में कोई कमी नहीं छोड़ रहे थे. वह यह भी समझने की कोशिश कर रहे थे कि मीनाक्षी के साथ ऐसा क्यों हो रहा है. मीनाक्षी बेचैन थी और बुझीबुझी सी दिखाई दे रही थी. उस की खामोशी के पीछे अवश्य कोई ऐसा राज छिपा हुआ था, जो उसे अंदर ही अंदर परेशान कर रहा था.

किसी भी बीमार व्यक्ति के इलाज के लिए डाक्टर की यह थ्यौरी रहती है कि मरीज में खुद पर आत्मविश्वास हो, वह ठीक होना चाहता हो, तभी दवा भी अपना काम करती है. मीनाक्षी अपना विश्वास खो चुकी थी, इसलिए उसे ठीक करने में डाक्टरों को दिक्कतें पेश आ रही थीं. डाक्टर उसे खुद को संभालने की हिदायतें देते तो वह गहरी सांस भर कर यह जाहिर करती कि अब जी कर क्या करना है.

क्यों मीनाक्षी अपनी जिंदगी से इस कदर तंग आ चुकी थी? क्यों उसकी जीने की इच्छा खत्म हो गयी थी? ऐसा क्या हुआ था उसके साथ? इन सभी सवालों के जवाब मिलेंगे इस अपराध कथा के अगले अंक में.

मैं चीज बड़ी हूं मस्त मस्त – भाग 3

गुड़गांव के अनाथालय में किआरा का एक और दोस्त था गुलफाम. गुलफाम उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर का रहने वाला था. वह 4 साल का था तभी उस के अब्बू की मौत हो गई थी. अब्बू की मौत के बाद मां हमीदा बेसहारा हो गई.

हमीदा ने फिर दूसरा निकाह कर लिया. दूसरे पति से उसे 4 बच्चे हुए. हमीदा दूसरे पति के साथ दिल्ली के आयानगर में रहने लगी. फिर सन 2004 में हमीदा की मौत हो जाने के बाद सौतेले पिता ने गुलफाम को गुड़गांव के अनाथालय में भरती करा दिया.

गुलफाम और रफीक अनाथालय में अच्छे दोस्त थे. करीब एक साल पहले गुलफाम किसी तरह अनाथालय से भाग गया. किआरा ने किसी तरह गुलफाम से संपर्क साध लिया.

10 मार्च, 2014 को उन दोनों ने गुड़गांव के एमजी रोड मेट्रो स्टेशन पर मुलाकात की. वहीं पर किआरा का एक दोस्त पवन आ गया. पवन द्वारका सेक्टर-3 में रहता था. फिर तीनों रफीक के कमरे पर पहुंच गए. कमरे पर 2 दिन रुक कर पवन तो चला गया. लेकिन गुलफाम वहीं रुका रहा. रफीक ने किआरा से जब पूछा कि ये गुलफाम यहां कब तक रहेगा तो किआरा ने कहा कि जब तक मैं यहां रहूंगी, ये भी रहेगा.

जब किआरा को रफीक अपनी बहन मान चुका था तो उसे अपने कमरे से जाने को भी नहीं कह सकता था, इसलिए न चाहते हुए भी किआरा को कमरे पर रखने के लिए उसे मजबूर होना पड़ा.

उधर आगरा में रहने वाले रोहित को जब पता चला कि किआरा गुड़गांव में रह रही है तो वह उस के पास आ गया और उसे अपने साथ आगरा ले जाने की जिद करने लगा. लेकिन किआरा ने उस के साथ जाने से मना ही नहीं किया बल्कि लड़ कर उसे कमरे से भगा भी दिया.

रफीक के कमरे पर आनेजाने वालों का तांता लगना शुरू हो गया तो मकान मालिक को शक हुआ. तब उस ने रफीक से कमरे पर आनेजाने वालों के बारे में पूछा और उस से अपना कमरा खाली करा लिया. तब ये तीनों दिल्ली चले आए.

गुलफाम की दिल्ली स्थित एक काल सेंटर में नौकरी लग गई तो उस ने अलग कमरा ले लिया तो वहीं किआरा ने दक्षिणपश्चिमी दिल्ली के थाना बिंदापुर के तहत सुखराम पार्क में रहने वाले अशोक कुमार सेठ के यहां ग्राउंड फ्लोर पर 3 हजार रुपए महीना किराए पर एक कमरा ले लिया. मकान मालिक से रफीक को उस ने अपना भाई बताया था. यह बात 4 अप्रैल, 2014 की है.

कुछ दिनों बाद उत्तम नगर क्षेत्र स्थित एक फोन कंपनी के शोरूम में किआरा की भी नौकरी लग गई. कुछ दिनों बाद गुलफाम ने भी किआरा के पास आना शुरू कर दिया. चूंकि किआरा और गुलफाम के बीच पहले से अवैध संबंध थे, इसलिए वह उसे छोड़ना नहीं चाहती थी.

ऐसा भी नहीं था कि उस के संबंध केवल गुलफाम से ही हों बल्कि पड़ोस में रहने वाले एक अन्य युवक से भी उस के नाजायज संबंध हो गए थे.

इतना ही नहीं, जिस शोरूम में वह नौकरी करती थी, वहां भी 2 लड़कों को उस ने अपने रूपजाल में फांस रखा था. दरअसल अब वह इस क्षेत्र की इतनी माहिर खिलाड़ी हो चुकी थी कि लड़कों को अपने रूपजाल में फांसना उस के बाएं हाथ का खेल बन चुका था. वह होटलों और क्लबों में भी जाने लगी.

यह केवल उस का शौक ही नहीं था बल्कि बदले में वह उन से अपनी जरूरत की चीजें या पैसे भी ऐंठ लेती थी. देर रात को शराब के नशे में कमरे पर लौटना जैसे उस का रूटीन बन चुका था.

रफीक और गुलफाम को पता लग चुका था कि किआरा अब होटलों और क्लबों में भी जाने लगी है. उन्होंने उसे समझाया और कमरे पर जल्दी लौटने की बात कही तो उस ने साफ कह दिया, ‘‘जब मेरी मरजी होगी, घर आऊंगी. मेरी निजी जिंदगी में कोई भी दखल देने की कोशिश न करे.’’

‘‘जब तुझे ऐसा ही करना है तो अलग कमरा ले ले.’’ रफीक बोला.

‘‘मैं हरगिज अलग कमरा नहीं लूंगी. यहीं पर रहूंगी और तुम लोग आइंदा इस बारे में कुछ मत कहना.’’

‘‘तू हमारे ही साथ रह रही है और हमें ही घुड़की दे रही है. कम से कम इतनी शरम तो कर कि हम तुझे खिलाते पिलाते हैं, तेरे कपड़े धोते हैं और सारा खर्चा हम ही उठा रहे हैं. यदि तूने हमारी बात नहीं मानी तो कहीं दूसरा कमरा ले ले.’’ रफीक ने कहा.

‘‘मैं कहीं कमरा नहीं लूंगी, यहीं रहूंगी. और अगर ज्यादा बात की तो तुम्हारे खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज करा कर जेल भिजवा दूंगी. इसलिए ज्यादा उड़ने की कोशिश मत करो.’’ किआरा ने धमकी दी.

रफीक को किआरा की यह बात बहुत बुरी लगी, क्योंकि उस ने किआरा को उस समय सहारा दिया था जब वह बहुत परेशान हालत में थी. उसे मुंहबोली बहन मान कर उस की सेवा भी की और आज वही उसे बलात्कार के केस में फंसाने की धमकी दे रही है.

बहरहाल, उस की धमकी पर रफीक और गुलफाम डर गए कि किआरा उन्हें वास्तव में जेल भिजवा सकती है. इस तरह वे चाहते हुए भी अपने कमरे से उसे निकाल नहीं सके.

एक दिन ये दोनों दोस्त उत्तम नगर किसी काम से गए हुए थे. घर पर किआरा रह गई थी. जब वे लौट कर आए तो कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था. गुलफाम ने दरवाजे पर जोर से 2-3 धक्के दिए तो सिटकनी खुल गई. कमरे में किआरा और एक युवक अपने अपने कपड़े पहनते दिखे. बंद कमरे में किआरा को दूसरे लड़के साथ देख कर रफीक और गुलफाम हक्केबक्के रह गए.

उधर जब किआरा ने अचानक रफीक और गुलफाम को कमरे में आया देखा तो उस ने उन दोनों को जम कर फटकार लगाई.

रफीक और गुलफाम के लिए किआरा गले की एक ऐसी हड्डी बन चुकी थी जिसे न तो वे निगल सकते थे और न ही उगल सकते थे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि उस से कैसे निजात पाएं. दोनों ही उस से निजात पाने के उपाय खोजने लगे. काफी सोचविचार के बाद उन्होंने उस का काम तमाम करने का फैसला कर लिया कि न रहेगा बांस, न बजेबी बांसुरी.

30 अप्रैल, 2014 को आधी रात के करीब किआरा पारकर नशे की हालत में कमरे पर लौटी. थोड़ी देर बाद ही वह सो गई. तभी रात सवा 2 बजे के करीब उन दोनों ने किआरा की गला घोंट कर हत्या कर दी. उस की हत्या करने के बाद दोनों ने राहत की सांस ली. फिर दोनों ने ही उस की लाश के साथ बारीबारी से अपनी हवस पूरी की.

रफीक और गुलफाम ने उस की हत्या तो कर दी लेकिन अब उन के सामने लाश को ठिकाने लगाने की समस्या थी. लाश को घर से बाहर ले जाने की उन की हिम्मत नहीं हो रही थी. तभी उन्हें कमरे की दीवार में बनी अलमारी का ध्यान आया. उस अलमारी को उन्होंने एक बार खोल कर देखा तो उस का बीच का खाना इतना बड़ा था कि उस में उस की लाश रखी जा सकती थी.

फिर दोनों ने उस की लाश उठा कर अलमारी के बीच वाले खाने में रख कर अलमारी के दरवाजे को सिटकनी से बंद कर दिया. फिर सुबह होने से पहले ही बैगों में अपने जरूरी सामान भर कर, कमरे का ताला बंद कर के चले गए.

दिल्ली से वे सीधे छत्तीसगढ़ पहुंचे. वहां पर गुलफाम का एक  दोस्त राजू रहता था. वे उस के पास ही रुक गए. 4-5 दिन छत्तीसगढ़ में रहने के बाद जब दोनों उत्कल एक्सप्रैस से दिल्ली पहुंचे तो वे पुलिस के शिकंजे में आ गए.

पुलिस ने रफीक और गुलफाम को किआरा पारकर की हत्या करने और लाश छिपाने (आईपीसी की धारा 302, 201) के तहत गिरफ्तार कर के 10 मई, 2014 को द्वारका कोर्ट में महानगर दंडाधिकारी श्री विक्रम के समक्ष पेश कर 2 दिन के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उन से किआरा की पर्सनल डायरी आदि सामान बरामद किया.

12 मई को पुन: न्यायालय में पेश कर उन्हें जेल भेज दिया. मामले की विवेचना इंसपेक्टर सत्यवीर जनौला कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

मौत के मुंह से वापसी – भाग 3

बस चल पड़ी. इराकी सेना ने बस को रोकने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुई. थोड़ा आगे जाने पर लड़ाकों ने नर्सों को दिलासा दिया कि वे परेशान न हों, उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा. उन्हें मोसुल ले जाया जा रहा है, जहां पहुंच कर उन्हें एरबिल हवाईअड्डे से आजाद कर दिया जाएगा. बस के चलते ही नर्सों के मोबाइल बजने लगे.

फोन दिल्ली से किया जा रहा था. लेकिन नर्सों को यह पता नहीं था कि फोन कौन कर रहा था. फोन करने वालों ने उन से कहा था कि वे खिड़की से झांक कर देखें कि बाहर साइनबोर्डों पर स्थान का नाम क्या लिखा है. उस के बाद स्थान का नाम उसी नंबर पर मैसेज कर दें.

नर्सों को ले जाने वाली बस जिस रास्ते से गुजर रही थी, वह काफी घुमावदार था. शायद सड़कें सुरक्षित नहीं थीं, इसलिए उन्हें उस रास्ते से ले जाया जा रहा था. नर्सों को पता नहीं चल पा रहा था कि उन्हें कहां ले जाया जा रहा है. बस की खिड़कियों पर मोटे परदे पड़े थे, जिस से बाहर का कुछ दिखाई नहीं दे रहा था.

बस के आगे एक काला झंडा लगा था, जिस पर वहां की भाषा में कुछ लिखा था. शायद ऐसा इसलिए किया गया था कि उन के लड़ाके साथी उस पर गोली न चलाएं. बस के पीछे एक वैन थी, जिस पर नर्सों का सामान लदा था. एक लड़ाका नर्सों के साथ था. बाकी के 3 लड़ाके एक कार में सवार थे.

मोसुल पहुंचने में उन्हें 8 घंटे लगे. पूरी रास्ते सभी नर्सें रोती रहीं. उन के आंसू एक पल के लिए भी नहीं रुके. मौत के डर से सभी के शरीर कांप रहे थे. एकदूसरे से लिपट कर वे एकदूसरे को ढांढस बंधा रही थीं. वहां उन्हें 10-10 की टोली में कतार से उतरने को कहा गया. लड़ाकों के इस हुक्म से उन नर्सों को लगा कि इस तरह कतार में उतारने का मतलब है, वे उन्हें मारना चाहते हैं.

मारे जाने के डर से सब बुरी तरह कांपने लगीं. लेकिन उस तरह कतार में उतार कर उन नर्सों को गलियारे से होते हुए एक हौल में ले जाया गया. जिस में कुल 4 एसी लगे थे. उन की पैकिंग से लग रहा था कि वे अभी नए हैं. नर्सों को लग रहा था कि ये लड़ाके उन्हें बंधक बना कर भारत सरकार से अच्छीखासी रकम वसूल करेंगे. सभी नर्सें हौल में आ गईं तो उन की सुरक्षा में लगे लड़ाके ने सभी नर्सों से अपने हाथपैर ढकने को कहा.

नर्सें वैसा ही करती रहीं, जैसा लड़ाके कहते रहे. उन्होंने सभी नर्सों को दाल रोटी, और चीज खाने को दी. इस के बाद कुछ चटाइयां दे कर उन्होंने सभी को आराम करने को कहा. नर्सें भले ही लड़ाकों की बंधक थीं, लेकिन मोबाइल से उन का भारतीय दूतावास से संपर्क बना था. दूतावास से लगातार उन के मोबाइल पर मैसेज आ रहे थे. दूतावास की ओर से उन के मोबाइल रिचार्ज भी कराए गए थे.

लेकिन परेशानी की बात यह थी कि नर्सों को जिस कमरे में ठहराया गया था, उस में बिजली का कोई स्विच नहीं था. इसलिए एकएक कर के उन के मोबाइल फोन की बैट्रियां खत्म होने लगी थीं.

4 जुलाई को लड़ाकों ने नर्सों से कहा कि वे एयरपोर्ट चलने को तैयार हो जाएं. नर्सों ने राजदूत अजय कुमार से संपर्क किया. उन्होंने पहले की ही तरह लड़ाकों का हुक्म मानने को कहा. एयरपोर्ट जाते हुए 3 जगहों पर उन की बस रोकी गई. शायद वे उन्हीं के साथी लडाके रहे होंगे. क्योंकि बातचीत के बाद उन्हें जाने के लिए कह दिया गया था.

बस एक मकान के सामने रुकी. सभी नर्सों को बस से उतार कर उस मकान में ले जाया गया. अच्छी बात यह थी कि उस मकान में बिजली का स्विच था. जिस से सभी नर्सों ने अपने मोबाइल फोन चार्ज किए. लेकिन वहां मोबाइल सिगनल नहीं मिल रहा था. उन नर्सों में से 2 के पास किसी दूसरी कंपनी का सिम था. उन्होंने उस सिम को मोबाइल में डाला तो सिगनल मिल गया.

इस के बाद उन्होंने राजदूत अजय कुमार से बात की. उन्होंने कहा कि मकान के बाहर एक बस खड़ी है, जिस का ड्राइवर अब्दुल शाह है. ड्राइवर का नाम पूछ कर सभी नर्सें उसी बस में बैठ जाएं. लेकिन नर्सों ने बाहर आ कर देखा तो वहां कोई बस नहीं थी.

लेकिन कुछ देर बाद कुछ लड़ाके एक बस ले कर आए और उस में सभी नर्सों को सवार होने के लिए कहा. इस के बाद वह बस सभी नर्सों को वहां ले गई, जहां भारतीय दूतावास के कुछ अधिकारी उन का इंतजार कर रहे थे. इस से यह साबित हो गया था कि दूतावास के अधिकारी लगातार आईएसआईएस के लड़ाकों के संपर्क में थे. रात पौने 9 बजे वे अधिकारी सभी नर्सों को एरबिल इंटरनेशनल एयरपोर्ट ले गए, जहां 5 जुलाई की सुबह 4 बजे उन्हें एयर इंडिया के विमान पर सवार करा दिया गया.

विमान 12 बजे दोपहर को केरल के कोच्चि एयरपोर्ट पर उतरा तो इराक से मुक्त हुई नर्सों ने राहत की सांस ली. घर वालों को पहले ही सूचना दे दी गई थी, इसलिए सभी के घर वाले हवाई अड्डे पर आ गए थे. सभी अपनेअपने घर घर वालों के गले लगीं तो उन की आंखों से आंसू बहने लगे.

इराक से सोना, वीना, नीनू जोंस, मरीना, श्रुथी शशिकुमार, ऐंसी जोसफ और सलीजा जोसफ अपनी साथिन नर्सों के साथ तो वापस आ गई हैं, लेकिन उन की दुश्वारियां कम होने के बजाय बढ़ गई हैं. ये बेहतर जिंदगी का जो सपना ले कर इराक गई थीं, वहां आए संकट ने इन के संकट को कम करने के बजाय और बढ़ा दिया है.

इस की वजह यह है कि अपना सपना पूरा करने के लिए किसी ने कर्ज लिया था तो किसी ने प्रौपर्टी बेची थी कि कमा कर फिर से खरीद लेंगे. लेकिन अब क्या होगा, क्योंकि भारत में नौकरी करने पर शायद उतना भी वेतन न मिले, जिस में वे ठीक से गुजरबसर कर सकें.

मैं चीज बड़ी हूं मस्त मस्त – भाग 2

पुलिस मान कर चल रही थी कि यदि वह दिल्ली आ रहा होगा तो या तो बस से आएगा या फिर ट्रेन से. छत्तीसगढ़ से आने वाली बसें सराय कालेखां अंतरराज्यीय बस टर्मिनल पर आती हैं और ट्रेनें हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन. इसलिए 9 मई, 2014 को 2 पुलिस टीमें हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन और सराय कालेखां बस टर्मिनल पर लगा दीं.

चूंकि सुखराम पार्क में रहने वाले अशोक कुमार सेठ और उन का बेटा अंकुश रफीक और गुलफाम को जानते थे इसलिए उन दोनों को भी पुलिस ने अपने साथ ले लिया था.

एक पुलिस टीम सर्विलांस के जरिए उस फोन नंबर पर नजर रखे हुई थी. सर्विलांस टीम को जो नई जानकारी मिल रही थी, टीम उस जानकारी को दोनों पुलिस टीमों को शेयर करा रही थी. इसी आधार पर पुलिस ने रफीक और गुलफाम को हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन से हिरासत में ले लिया.

थाने ला कर उन दोनों से किआरा पारकर की हत्या की बाबत पूछताछ की तो उन्होंने बड़ी आसानी से किआरा की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. उस की हत्या की उन्होंने जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली.

किआरा दिल्ली के रहने वाले विनोद कुमार की बेटी थी. विनोद कुमार एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था. उस के 2 बेटियां और एक बेटा था. किआरा दूसरे नंबर की थी. किआरा की मां रेखा को कैंसर था. विनोद ने पत्नी का काफी इलाज कराया लेकिन वह ठीक नहीं हो सकी.

एक दिन डाक्टरों ने विनोद को बता दिया कि रेखा का कैंसर ठीक होने वाला नहीं है, यह अब आखिरी स्टेज पर हैं. डाक्टरों से यह जानकारी मिलने के बाद विनोद ने पत्नी की तीमारदारी करनी बंद कर दी.

बताया जाता है कि विनोद का उस समय किसी महिला के साथ चक्कर चल रहा था. उसे यह तो पता चल ही गया था कि उस की पत्नी अब ज्यादा दिनों तक जीवित नहीं रहेगी इसलिए उस ने पत्नी के जीतेजी उस महिला से शादी कर ली जिस के साथ उस का चक्कर चल रहा था.

रेखा को पति द्वारा दूसरी शादी करने का ज्यादा दुख नहीं हुआ, बल्कि पति की आदतों को देखते हुए उसे इस बात की आशंका थी कि उस के मरने के बाद उस के तीनों बच्चों की दुर्दशा होगी. क्योंकि सौतन उस के बच्चों को तवज्जो नहीं देगी और उस के नातेरिश्तेदार भी ऐसे नहीं हैं जो बच्चों को पालपोस सकें.

बच्चों के भविष्य के बारे में उस ने अपने मिलने वालों से सलाह ली तो उन्होंने बच्चों को किसी अनाथालय में भरती करने की बात कही. इस बीच विनोद रेखा और बच्चों को दिल्ली में छोड़ कर अपनी दूसरी बीवी को ले कर मुंबई चला गया, जो आज तक नहीं लौटा.

पति द्वारा बच्चों को बेसहारा छोड़ जाने पर रेखा को बड़ा दुख हुआ. तब रेखा दक्षिणी दिल्ली के घिटोरनी गांव में रहने वाली अपनी मां के पास चली गई. रेखा नहीं चाहती थी कि उस के मरने के बाद बच्चे दरदर की ठोकरें खाएं इसलिए वह तीनों बच्चों को गुड़गांव के सेक्टर-10 स्थित शांति भवन ट्रस्ट औफ इंडिया नाम के अनाथालय में भरती करा आई.

बताया जाता है कि किआरा का घर का नाम कल्पना था. अनाथालय में उस का नाम किआरा पारकर रखा गया. बच्चों को अनाथालय में भरती कराने के कुछ दिनों बाद रेखा की मौत हो गई. यह करीब 8 साल पहले की बात है. उस समय किआरा करीब 10 साल की थी. अनाथालय में ही तीनों बच्चों की परवरिश होती रही. वहीं पर उन की पढ़ाई चलती रही. किआरा थोड़ी चंचल स्वभाव की थी. जब वह जवान हुई तो अनाथालय में ही रहने वाले कई लड़कों से उस की दोस्ती हो गई.

अधिकांशत: देखा गया है कि ऐसे जवान लड़के और लड़कियां जो आपस में सगेसंबंधी न हों उन की दोस्ती लंबे समय तक पाकसाफ नहीं रह पाती. एकांत में मिलने का मौका पाते ही वह खुद पर संयम नहीं रख पाते और उन के बीच जिस्मानी ताल्लुकात कायम हो जाते हैं. यही किआरा के साथ भी हुआ.

अनाथालय में ही रहने वाले एक नजदीकी दोस्त के साथ किआरा के अवैध संबंध कायम हो गए. काफी दिनों तक वह मौजमस्ती करती रही. इसी दौरान उस ने अपने और भी कई दोस्तों से नाजायज ताल्लुकात बना लिए. इस के बाद तो अनाथालय के तमाम लड़के किआरा के नजदीक आने की कोशिश करने लगे.

अवैध संबंधों को छिपाने के लिए कोई चाहे कितनी भी सावधानी क्यों न बरते, एक न एक दिन उन की पोल खुल ही जाती है. यानी किआरा के संबंधों की जानकारी भी अनाथालय के संचालकों तक पहुंच गई.

संचालकों ने किआरा को बहुत समझाया लेकिन उस ने अपनी आदत नहीं बदली तो उन के लिए यह बड़ी ही चिंता की बात हो गई. खरबूजे को देख कर खरबूजा रंग बदलता है. उस की देखादेखी अनाथालय के अन्य बच्चे न बिगड़ जाएं, संचालकों को इस बात की आशंका थी.

काफी सोचनेसमझने के बाद संचालकों ने किआरा को उस अनाथालय से किसी दूसरी जगह भेजने का फैसला ले लिया. करीब 1 साल पहले अनाथालय की तरफ से किआरा को पढ़ाई के लिए आगरा भेज दिया गया. वहां के एक हौस्टल में रह कर वह पढ़ने लगी.

चूंकि किआरा के कदम पहले ही बहक चुके थे इसलिए आगरा में उस के रोहित नाम के लड़के से अवैध संबंध हो गए. रोहित का एक दोस्त था विवेक चौहान जो दिल्ली में रहता था. वह भी आगरा आताजाता रहता था. किआरा ने उसे भी अपने जाल में फांस लिया. इसी दौरान किआरा गर्भवती हो गई. यह बात उस ने जब रोहित को बताई तो उस के हाथपैर फूल गए.

किआरा ने जब रोहित से शादी करने को कहा तो वह उस से कन्नी काटने लगा. उस समय किआरा के पेट में 2 माह का गर्भ था. जब किआरा को लगा कि उस का साथ देने वाला कोई नहीं है तो उस ने दवा खा कर गर्भ गिरा दिया.

किआरा का एक दोस्त था रफीक, जो गुड़गांव के अनाथालय में उस के साथ ही था. उस की उम्र जब 18 साल हो गई तो वह अनाथालय से बाहर आ गया. अनाथालय से निकलने के बाद रफीक ने गुड़गांव स्थित साउथ इंडियन होटल में नौकरी कर ली और में कादीपुर गांव में एक कमरा किराए पर ले कर रहने लगा.

किआरा को किसी तरह रफीक के बारे में जानकारी मिली. तब वह इस साल होली से पहले आगरा से भाग कर गुड़गांव चली आई. वह उस होटल पर पहुंच गई जहां रफीक नौकरी कर रहा था. किआरा को देख कर रफीक खुश हुआ. फिर किआरा ने रफीक को अपना गर्भ गिराने तक की पूरी कहानी बता दी.

उस ने आराम करने के लिए कुछ दिनों उस के यहां रुकने की इजाजत मांगी. रफीक उसे मुंहबोली बहन मानता था इसलिए उस ने उसे हर तरह का सहयोग करने का भरोसा दिया. वह उसे अपने कमरे पर ले गया. फिर वह वहीं रहने लगी. रफीक अपने काम पर निकल जाता तो किआरा घर पर ही रहती थी.

क्यों मजबूर हो गए थे वो दोनों किआरा की हत्या करने पर? जानेंगें कहानी के अंतिम भाग में.

मौत के मुंह से वापसी – भाग 2

इराक में जो हिंसा फैली थी, उस से टिकरित के उस विशाल अस्पताल के मरीज अस्पताल छोड़ कर जाने लगे थे. सोना, वीना और उस की अन्य साथी नर्सें टेलीविजन और मोबाइल फोन पर इंटरनेट के माध्यम से समाचार देख कर जानकारी प्राप्त करने के साथ समय काट रही थीं.

लेकिन जल्दी ही टेलीविजन भी बंद हो गया और इंटरनेट भी. अब वे बाहर की दुनिया से पूरी तरह कट गईं. उन्हें बिलकुल भी पता नहीं चलता था कि बाहर क्या हो रहा है. वे बस उतना ही जानती थीं, जो उन की खिड़कियों से दिखाई देता था.

सोना और उस की साथी नर्सें बाहर की दुनिया से पूरी तरह कटी थीं, इसलिए उन्हें असलियत का पता नहीं था. वे सिर्फ यही जानती थीं कि केवल टिकरित में ही स्थानीय 2 गुटों के बीच लड़ाई चल रही है. लेकिन जब बारबार तेज धमाकों से अस्पताल की बिल्डिंग थर्राने लगी तो उन्हें लगा कि यहां तो युद्ध हो रहा है. यह संदेह होते ही सभी नर्सें कांप उठीं. उन्हें सामने मौत नाचती नजर आने लगी. अपने बचाव का उन के पास कोई रास्ता नहीं था, इसलिए वे एकदूसरे के गले लग कर रोने लगीं. कोई आश्वासन देने वाला नहीं था, इसलिए खुद ही चुप भी हो गईं.

धमाके लगातार हो रहे थे. डरीसहमी नर्सें किसी तरह एकएक पल काट रही थीं. उन के पास खानेपीने का सामान भी कुछ ही दिनों का बचा था. तभी स्वास्थ्य विभाग के एक रहमदिल अधिकारी मदद के लिए आ गए. अगर उन्होंने साहस न दिखाया होता तो इन नर्सों को भूखी रहना पड़ता. उस अधिकारी ने अपनी ओर से सभी नर्सों के लिए अगले 2 सप्ताह के भोजन की व्यवस्था कर दी थी.

वह अधिकारी अस्पताल के नजदीक ही रहते थे. इसलिए नर्सें उन के मोबाइल पर जैसे ही मिस काल करतीं, वह तुरंत उन की मदद के लिए आ जाते थे. लेकिन जून के अंत में उन्होंने कहा कि अब वह उन की मदद नहीं कर पाएंगे. क्योंकि आईएसआईएस लड़ाके आगे बढ़ते आ रहे हैं, जो जल्दी ही इस अस्पताल पर भी कब्जा कर लेंगे. इसलिए वह यहां से जा रहे हैं. उस समय तक अस्पताल की सुरक्षा के लिए 2 फौजी तैनात थे. लेकिन उस अधिकारी के जाते ही, वे भी गायब हो गए थे.

सचमुच अगले दिन लड़ाके अस्पताल पहुंच गए. वे काले कपड़े पहने हुए थे. आंखों पर काला चश्मा लगाए वे अपने चेहरे को काले दुपट्टे से ढांपे हुए थे. उन्हें देख कर नर्सें बुरी तरह से डर गईं. वे लड़ाके बुरी तरह से जख्मी अपने साथियों को ले कर आए थे. लड़ाकों ने नर्सों से उन की मरहमपट्टी कराने के बाद अगले दिन यानी 30 जून की शाम तक अस्पताल को खाली करने के लिए कहा.

लड़ाकों के जाने के बाद नर्सों ने एक बार फिर राजदूत अजय कुमार और केरल के मुख्यमंत्री ओमन चांडी को फोन किया. दोनों ने ही नर्सों को सलाह दी कि लड़ाके जैसा कहते हैं, वे वैसा ही करें. क्योंकि उन की बात न मानना उन के लिए प्राणघातक सिद्ध हो सकता है. संयोग से उस शाम लड़ाके नहीं आए. इसीलिए उस दिन संकट टल गया.

इस के अगले दिन केरल सरकार के आप्रवासी केरलवासी मामलों के विभाग से नर्सों को फोन कर के उन्हें वहां से निकालने के लिए उन के पासपोर्ट के नंबर तथा अन्य जानकारी ली गई.

2 जुलाई को अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में ऐसा धमाका हुआ कि ब्लड बैंक सहित वह पूरा हिस्सा ढह गया. इसी के साथ पूरा अस्पताल हिल उठा. इस धमाके से नर्सें थरथर कांपने लगीं. चारों ओर उसी तरह के धमाके हो रहे थे. अस्पताल के पास ही कई इमारतें जल रही थीं. चारों ओर आग की लपटें, जली कारें और ट्रक दिखाई दे रहे थे.

उस दिन भी कुछ लड़ाके आए और सभी नर्सों से कहा कि वे अपना सामान बांध कर तैयार हो जाएं, शाम को उन्हें उन के साथ चलना है. इतना कह कर लड़ाके चले गए. उन के जाते ही नर्सों ने एक बार फिर राजदूत अजय कुमार और मुख्यमंत्री ओमन चांडी को फोन किया. दोनों ने सभी नर्सों को आश्वासन देने के साथ शांति से रहने को कहा और बताया कि भारत सरकार उन्हें हरसंभव वहां से किसी भी तरह निकालने की कोशिश में लगी है. मुख्यमंत्री ओमन चांडी ने उन से यह भी कहा कि वह लगातार भारत सरकार की विदेशमंत्री सुषमा स्वराज के संपर्क में हैं.

संयोग से उस शाम भी लड़ाके नहीं आए, जिस से नर्सों ने थोड़ी राहत महसूस की. लेकिन अगले ही दिन वे दोपहर के आसपास फिर आ धमके. उन्होंने सभी नर्सों को 15 मिनट में अस्पताल से बाहर आने को कहा. उन का कहना था कि वे इस अस्पताल को अभी बम से उड़ाएंगे और उन्हें अपने साथ मोसुल ले जाएंगे.

नर्सों ने तुरंत भारतीय दूतावास को फोन किया. दूतावास के अधिकारी ने उन से कहा कि वे लड़ाकों से छोड़ देने की विनती करें. अगर वे मान जाते हैं तो कोई बात नहीं. अगर नहीं मानते हैं तो वे जैसा कहते हैं, सभी लोग वैसा ही करो. इसी के साथ उस अधिकारी ने यह भी कहा कि अगर स्थिति ज्यादा बिगड़ती है तो सरकार उन्हें बचाने के लिए कमांडो का उपयोग भी कर सकती हैं.

उन नर्सों को ले जाने के लिए इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड सीरिया (आईएसआईएस) के 4 लड़ाके आए थे. वे काले कपड़े पहने थे और चेहरे पर काला दुपट्टा बांधे थे. आंखों पर काला चश्मा भी लगाए थे. सभी के कंधों पर एसाल्ट राइफलें लटक रही थीं. उन के आदेश का पालन करते हुए नर्सें अपना सामान समेट रही थीं कि तभी उन लड़ाकों में से एक ने मुड़ कर अपनी एसाल्ट राइफल की नाल अस्पताल की ऊपरी मंजिल की ओर कर के तड़ातड़ गोलियां चला दीं.

उसी मंजिल पर बने कमरों में सोना, वीना और उस की साथी नर्सें रहती थीं. जब से बम धमाके हो रहे थे और गोलियां चल रही थीं, ये नर्सें यहीं पर शरण लिए हुए थीं. लेकिन उस युवा लड़ाके ने जो गोलियां चलाई थीं. उस से उस मंजिल पर लगे शीशे टूटने लगे. उन शीशों के टुकड़े कुछ नर्सों के ऊपर गिरे, जिस से वे बुरी तरह से जख्मी हो कर खून से लथपथ हो गईं. बाकी नर्सें चीखतीचिल्लाती उन घायल नर्सों की ओर दौड़ीं.

लड़ाकों ने सभी नर्सों को बाहर खड़ी बस में चढ़ने को कहा. नर्सें जल्दीजल्दी बस में सवार होने लगीं. नर्सें बस में सवार हो रही थीं, तभी उस विशाल अस्पताल में एक जोरदार धमाका हुआ. उस से उठा काला धुआं चारों ओर फैलने लगा. धुएं के बाद ऊंचीऊंची उठती आग की लपटें दिखाई दीं. अस्पताल से बाहर निकलते समय नर्सों ने देखा कि पिछले दिन हुए धमाके से गिरी दीवारों पर खून लगा था. चारों ओर मांस के लोथडे़ बिखरे थे.