मैं चीज बड़ी हूं मस्त मस्त – भाग 1

2 मई, 2014 को दोपहर 11 बजे दक्षिण पश्चिमी दिल्ली के थाना बिंदापुर के ड्यूटी औफिसर को पुलिस कंट्रोलरूम द्वारा वायरलैस से एक  मैसेज मिला. मैसेज यह था कि मटियाला इलाके के सुखराम पार्क स्थित मकान नंबर आरजेड-54, 55 के बंद कमरे से बदबू आ रही है. ड्यूटी औफिसर ने यह सूचना थानाप्रभारी किशोर कुमार को बताई तो वह समझ गए कि कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है.

उन का अनुभव था कि बंद कमरों से बदबू आने के ज्यादातर मामलों में कमरे से लाश ही मिलती है. इसलिए यह खबर मिलते ही वह एसआई सुरेंद्र सिंह को साथ ले कर सूचना में दिए पते पर रवाना हो गए. इस के कुछ देर बाद इंसपेक्टर सत्यवीर जनौला भी सुखराम पार्क की तरफ निकल गए.

पुलिस अधिकारी जब उपरोक्त पते पर पहुंचे तो वहां अशोक कुमार सेठ नाम का आदमी मिला. वही उस मकान का मालिक था. अशोक कुमार अपने मकान में एक जनरल स्टोर चलाता था. पुलिस को फोन उस के बेटे अंकुश ने किया था. अशोक पुलिस को अपने मकान के उस कमरे के पास ले गया, जहां से तेज बदबू आ रही थी. पुलिस ने भी कमरे के पास पहुंच कर बदबू महसूस की. उस कमरे के दरवाजे पर ताला लटका हुआ था.

थानाप्रभारी ने अशोक कुमार सेठ से पूछा, ‘‘इस कमरे में कौन रहता था?’’

‘‘सर, इस कमरे में एक लड़की और 2 लड़के रहते थे. 2 दिन से ये दिखाई नहीं दे रहे. आज हमें कमरे से बदबू आती महसूस हुई तो शक हुआ. फिर 100 नंबर पर फोन कर दिया.’’ अशोक ने बताया.

थानाप्रभारी ने ताला तोड़ने से पहले क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को भी वहां बुला लिया. टीम और वहां मौजूद लोगों के सामने पुलिस ने उस कमरे का ताला तोड़ा तो गंध और तेज महसूस हुई. पुलिस की निगाह फर्श पर बहते काले रंग के द्रव पर गई. वह द्रव कमरे में बनी हुई अलमारी से आ रहा था.

पुलिस को लगा कि अलमारी में ही कुछ रखा है, जहां से यह द्रव रिस कर आ रहा है. अलमारी पर लकड़ी का दरवाजा लगा था और वह बाहर लगी सिटकनी से बंद था. मन में आशंका रखते हुए थानाप्रभारी ने वह अलमारी खुलवाई. अलमारी खुलते ही बदबू का भभका आया और जब सामने देखा तो सब की आंखें खुली की खुली रह गईं.

अलमारी के बीच वाले खाने में एक लड़की की लाश रखी थी. लाश देखते ही मकान मालिक अशोक कुमार बोल पड़ा, ‘‘सर, यह लाश तो उसी लड़की की है जो इस कमरे में रहती थी.’’

उन्होंने लड़की का नाम किआरा पारकर बताया.

क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम द्वारा अपना काम निपटाने के बाद थानाप्रभारी किशोर कुमार ने अलमारी से लाश निकलवा कर उस का निरीक्षण किया. लाश सड़ी हुई अवस्था में थी. इस से लग रहा था कि उस की हत्या कई दिन पहले की गई है.

उस के शरीर पर कोई घाव का निशान भी नहीं दिखा तो अनुमान लगाया कि उस की हत्या गला दबा कर की होगी या फिर उसे कोई जहरीला पदार्थ दिया होगा. मकान मालिक से पुलिस को यह पता लग ही गया था कि लाश 18 वर्षीया किआरा पारकर की है. तब पुलिस ने लाश का पंचनामा करने के बाद उसे पोस्टमार्टम के लिए दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल, हरिनगर भेज दिया.

यह काररवाई करने के बाद पुलिस ने अशोक कुमार से बात की तो उस ने बताया कि कमरा किराए पर लेते समय किआरा ने उसे अपने आधार कार्ड की कौपी दी थी. उस लड़की द्वारा दी गई आधार कार्ड की कौपी अपने कमरे से ला कर उस ने थानाप्रभारी को दे दी.

आधार कार्ड की उस फोटोकौपी पर उस का पता मकान नंबर 93, सेक्टर-10, बराई रोड, गुड़गांव, हरियाणा लिखा था. अशोक ने बताया कि किआरा के साथ जो 2 लड़के रहते थे, उन के नाम गुलफाम और रफीक थे. दोनों की ही उम्र 18 साल के आसपास थी.

अशोक से बात करने के बाद पुलिस ने उस कमरे की तलाशी ली. वहां से एक छोटी पौकेट डायरी मिली. उस डायरी में गुलफाम और रफीक के फोन नंबर लिखे थे. थानाप्रभारी ने उन दोनों नंबरों को उसी समय मिलाया तो वे दोनों ही बंद मिले.

घटनास्थल की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस थाने लौट गई और अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या कर लाश छिपाने का मामला दर्ज कर लिया. थानाप्रभारी ने 18 वर्षीय लड़की की लाश बरामद करने की जानकारी डीसीपी को भी दे दी.

डीसीपी सुमन गोयल ने हत्या के इस मामले को सुलझाने के लिए थानाप्रभारी किशोर कुमार की देखरेख में एक पुलिस टीम बनाई. पुलिस टीम में इंसपेक्टर सत्यवीर जनौला, सबइंसपेक्टर शक्ति सिंह, सुरेंद्र सिंह, हेडकांस्टेबल भूपसिंह, नरेश, विजयपाल, कांस्टेबल अनिल कुमार, दिनेश, अरविंद आदि को शामिल किया गया.

पुलिस मरने वाली युवती की शिनाख्त कर ही चुकी थी और यह आशंका भी हो रही थी कि उस के साथ रहने वाले लड़कों ने ही उस की हत्या की होगी क्योंकि वे कमरे से फरार थे और उन के फोन भी स्विच्ड औफ आ रहे थे. पुलिस को मरने वाली युवती किआरा का पता मिल चुका था जबकि उस के साथ रहने वाले रफीक और गुलफाम के बारे में जानकारी नहीं मिल पाई थी कि वे कहां के रहने वाले हैं.

एसआई शक्ति सिंह के नेतृत्व में एक टीम किआरा के पते पर सेक्टर-10, गुड़गांव भेज दी गई. इस पते पर शांति भवन ट्रस्ट औफ इंडिया नाम का एक अनाथालय चल रहा था. शक्ति सिंह ने अनाथालय के संचालकों को किआरा पारकर के आधार कार्ड की कौपी दिखाते हुए उन से उस के बारे में पूछा.

वह फोटोकौपी देखते ही संचालकों ने बताया कि किआरा पारकर इसी अनाथालय में रहती थी जो अब यहां से चली गई है. यहां उस का चालचलन अच्छा नहीं था. उसे हम ने आगरा भेजा था. वहां से वह भाग गई. उसे उस की मां ने इस अनाथालय में भरती कराया था, लेकिन अब मां भी गुजर चुकी है. इतना पता है कि दिल्ली के घिटोरनी गांव में उस की नानी रहती हैं. वही उस से कभीकभी मिलने आती थीं.

पुलिस ने संचालकों से रफीक और गुलफाम के बारे में पूछा तो बताया गया कि ये दोनों भी इसी अनाथालय में रहते थे. किआरा हत्याकांड की जो धुंधली तसवीर पुलिस के दिमाग में बनी हुई थी, अनाथालय से मिली जानकारी के बाद वह तसवीर साफ नजर आने लगी थी. यानी किआरा की उन दोनों लड़कों से जानपहचान पुरानी थी.

एसआई शक्ति सिंह को यह पता चल ही चुका था कि किआरा की नानी घिटोरनी गांव में रहती हैं. उन से बात करने के लिए वह घिटोरनी चले गए. थोड़ी मशक्कत के बाद उन्होंने किआरा की नानी का पता लगा ही लिया. उन से बातचीत करने के बाद भी उन्हें किआरा के बारे में कोई बहुत ज्यादा जानकारी नहीं मिल सकी.

थाने लौट कर शक्ति सिंह ने सारी जानकारी थानाप्रभारी को दे दी. उधर इंसपेक्टर सत्यवीर जनौला ने फरार युवकों रफीक और गुलफाम के फोन नंबरों को सर्विलांस पर लगा दिया था. दोनों ही फोन बंद थे. लेकिन मई के पहले हफ्ते में उन में से एक फोन औन हो गया. तभी पता चल गया कि उस की लोकेशन छत्तीसगढ़ में है. वह लोकेशन स्थिर नहीं आ रही थी. बदलती लोकेशन से ऐसा लग रहा था कि जैसे वह दिल्ली की तरफ आ रहा है.

क्या सच में किआरा की हत्या रफीक और गुलफाम ने ही की थी? जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग.

नासमझी का घातक परिणाम – भाग 3

नंदकुमार साहू का साथ पा कर चंद्रभाव और भी शातिर हो गया. मगर उन दोनों का यह काम ज्यादा दिनों तक चल नहीं पाया. यात्रियों की शिकायत पर पुलिस सतर्क हुई तो दोनों ही चोरी करते पकड़े गए. इस के बाद दोनों के कुली के बैज छिन गए.

काम बंद हुआ तो दोनों के घरों में खाने के लाले पड़ गए. कमाई का कोई जरिया नहीं रहा तो दोनों पूरी तरह से अपराध की राह पर चल पड़े. अब वे ट्रेन से सफर करने वाले यात्रियों को किसी तरह अपने जाल में फंसाते और एकांत में ले जा कर उन्हें डराधमका कर लूट लेते. दोनों यह काम कुर्ला के लोकमान्य तिलक टर्मिनस से ले कर नासिक मनमाड़ रेलवे स्टेशन तक करते थे.

यात्रियों का ध्यान इधरउधर कर के चंद्रभाव और नंदकुमार महंगे मोबाइल, लैपटौप और बैग पर हाथ साफ कर देते. जब दोनों लगातार चोरियां करने लगे तो पकड़े भी गए. इस तरह नंदकुमार और चंद्रभाव के खिलाफ नासिक और मनमाड़ के जीआरपी थानों में कई मुकदमे दर्ज हो गए.

5 जनवरी, 2014 को विशाखापट्टनम एक्सपे्रस टे्रन से ईस्टर अनुह्या कुर्ला के लोकमान्य तिलक रेलवे टर्मिनस के प्लेटफार्म नंबर 5 और 6 पर उतरी. उस समय सुबह के साढ़े 4 बज रहे थे. बाहर अंधेरा और सुनसान होने की वजह से वह प्लेटफार्म पर ही बैठ कर उजाला होने का इंतजार करने लगी.

उसी बीच शिकार की तलाश में प्लेटफार्म पर घूम रहे चंद्रभाव और नंदकुमार की नजर उस पर पड़ गई. अकेली लड़की देख कर दोनों उस के पास पहुंचे. उस के महंगे मोबाइल और लैपटौप को देख कर उन के मुंह में पानी आ गया. वे उन्हें किसी भी तरह हासिल करने की योजना बनाने लगे.

लूट का इरादा बना कर चंद्रभाव और नंदकुमार ने कहा कि अगर वह चलना चाहे तो वे उसे अपनी टैक्सी से उस के हौस्टल तक पहुंचा सकते हैं, लेकिन ईस्टर अनुह्या प्रसाद ने मना कर दिया. जब चंद्रभाव और नंदकुमार लगातार आग्रह करने लगे तो ईस्टर अनुह्या उन के साथ जाने के लिए राजी हो गई. पैसा भी तय हो गया. दोनों ने उसे हौस्टल तक पहुंचाने के लिए 3 सौ रुपए मांगे थे.

किराया तय होने के बाद ईस्टर अनुह्या चंद्रभाव और नंदकुमार के साथ टर्मिनस से बाहर टैक्सी स्टैंड पर आई तो वहां उसे कोई टैक्सी दिखाई नहीं दी. वहां सिर्फ एक मोटरसाइकिल खड़ी थी. ईस्टर ने जब उन से टैक्सी के बारे में पूछा तो चंद्रभाव ने बड़ी ही विनम्रता से कहा, ‘‘मैडम, आप अकेली ही तो हैं. मैं आप को अपनी मोटरसाइकिल से आप के हौस्टल तक पहुंचा दूंगा.’’

ईस्टर अनुह्या ने मोटरसाइकिल से जाने से मना कर दिया तो चंद्रभाव ने कहा, ‘‘मैडम, आप को घबराने या डरने की जरा भी जरूरत नहीं है. हम शरीफ और बालबच्चे वाले आदमी हैं. इस पर भी आप को हमारे ऊपर विश्वास नहीं है तो आप हमारा मोबाइल नंबर ले कर अपने किसी परिचित या घर वाले को दे दीजिए.’’

उन की इस पेशकश पर ईस्टर को उन पर थोड़ा भरोसा हुआ. उस ने चंद्रभाव और नंदकुमार के मोबाइल नंबर ले तो लिए, लेकिन बदकिस्मती से मोबइल में बैलेंस न होने की वजह से वह उन के नंबर किसी को दे नहीं पाई. इस के बाद दोनों पर विश्वास कर के ईस्टर चंद्रभाव की मोटरसाइकिल पर बैठ गई. चंद्रभाव मोटरसाइकिल ले कर रवाना हो गया तो नंदकुमार वहां से चला गया.

चंद्रभाव ने ईस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे पर मोटरसाइकिल डाल दी तो ईस्टर ने टोका. तब उस ने कहा, ‘‘मैडम, यह रास्ता शौर्टकट है. आप जल्दी पहुंच जाएंगी.’’

रास्ते की जानकारी न होने की वजह से ईस्टर अनुह्या चुप हो गई. चंद्रभाव मोटरसाइकिल जरूर चला रहा था, लेकिन उस का दिमाग कहीं और ही भटक रहा था. क्योंकि उसे किसी ऐसी जगह की तलाश थी, जहां वह अपना काम आसानी से कर सके.

आखिर उसे वह स्थान मुलुंड और कांजुर मार्ग ईस्टर्न एक्सपे्रस हाईवे के किनारे बने सर्विस रोड पर मिल गया. उचित स्थान देख कर उस ने बीड़ी पीने के बहाने मोटरसाइकिल रोक दी. बीड़ी पीते हुए चंद्रभाव की नजर खूबसूरत अनुह्या पर पड़ी तो उस की नीयत खराब हो गई. उस का उस पर दिल आया तो उस ने उस के साथ जबरदस्ती करने का मन बना लिया.

चोरी के इरादे से ईस्टर को लाने वाले चंद्रभाव के मन में उस के प्रति कामवासना जागी तो सुनसान देख कर चंद्रभाव उसे समुद्री झाडि़यों में खींच ले गया. झाडि़यों में उस ने उस के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की तो वह पूरी तरह विरोध पर उतर आई.

ईस्टर का विरोध इतना जबरदस्त था कि चंद्रभाव अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सका. इस स्थिति में अगर आदमी की इच्छा पूरी न हो तो जानवर से भी ज्यादा खूंख्वार हो जाता है. वही हाल चंद्रभाव का भी हुआ. इच्छा पूरी न होने पर चंद्रभाव भी खूंख्वार हो उठा और ईस्टर के गले में पड़ी चुन्नी को पकड़ कर पूरी ताकत से कस दिया.

नाजुक ईस्टर अनुह्या पल भर में खत्म हो गई. उस की शिनाख्त न हो सके, इस के लिए उस ने एक बड़ा सा पत्थर उठा कर उस के चेहरे को कुचल दिया. इस के बाद मोटरसाइकिल से पेट्रौल निकाल कर उसे जलाने की भी कोशिश की. शिनाख्त मिटाने के सारे उपाय करने के बाद उस ने अधजली लाश को उठा कर वहीं गहरी खाई में फेंक दिया और निश्चित हो कर अपने घर चला गया था. घर से उस ने इस घटना के बारे में नंदकुमार साहू को बताया तो वह परेशान हो उठा.

नंदकुमार साहू तुरंत चंद्रभाव के घर पहुंचा. उस से कोई गलती तो नहीं हुई, इस बात पर दोनों विचार करने लगे तो पता चला कि चंद्रभाव का मोबाइल घटनास्थल पर ही कहीं गिर गया था. दोनों मोबाइल फोन ढूंढ़ने के लिए घटनास्थल पर पहुंचे. काफी कोशिश के बाद भी उन्हें मोबाइल फोन नहीं मिला.

दोनों ने मोबाइल फोन की उम्मीद छोड़ कर ईस्टर अनुह्या का मोबाइल फोन, लैपटौप, बैग लिया और घर जाने के बजाय चंद्रभाव जहां नासिक के अपने गांव चला गया, वही नंदकुमार साहू झारखंड चला गया. नासिक पहुंच कर चंद्रभाव ने ईस्टर का कपड़ों सहित बैग एक भिखारी को दान कर दिया तो मोबाइल फोन और लैपटौप वहां की एक नदी में फेंक दिया.

जब चंद्रभाव को पता चला कि उस ने जिस लड़की की हत्या की है, उस की लाश मिल गई है और उस की हत्या की जांच चल रही है तो दाढ़ीमूंछ बढ़ा कर उस ने अपना भेष बदल लिया. वह मुंबई भी आनेजाने लगा. लेकिन उस का कोई भी नाटक पुलिस के सामने नहीं चला और पकड़ा गया. चंद्रभाव से पूछताछ के बाद उस के साथी नंदकुमार साहू को भी झारखंड के उस के गांव से गिरफ्तार कर के मुंबई लाया गया.

विस्तारपूर्वक पूछताछ के बाद क्राइम ब्रांच यूनिट-6 की पुलिस ने चंद्रभाव और नंदकुमार शाहू को थाना कांजुर मार्ग पुलिस के हवाले कर दिया. थाना पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में आर्थर रोड जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मौत के मुंह से वापसी – भाग 1

खाड़ी देशों से कमाई कर के आने वाले लोगों के चमक दमक वाले कपड़े, आटोमैटिक घडि़यां, तरहतरह  के खूब अच्छे लगने वाले टेपरिकौर्डर, छोटेछोटे रेडियो तथा बटन दबाने से खुलने वाले छाते देख कर बचपन में मैं भी सपने देखने लगा था कि बड़ा हो कर जब मैं कमाने लायक होऊंगा तो  इन्हीं लोगों की तरह खाड़ी देशों में नौकरी करने जाऊंगा. लेकिन जैसेजैसे मैं बड़ा होता गया,  मेरी आंखों से वह सपना ओझल होता गया.

किन्हीं कारणों से भले ही खाड़ी देशों में नौकरी करने जाने का मेरा सपना पूरा नहीं हुआ, लेकिन केरल के एक गांव के मजदूर बाप की बेटी सोना ने बड़ी हो कर खाड़ी देश जाने का जो सपना बचपन में देखा था, कुछ पाईपाई जोड़ कर तो कुछ रिश्तेदारों से तो कुछ महाजन से कर्ज ले कर पूरा कर ही लिया.

सोना का बाप रातदिन मेहनत कर के उसे और उस की जुड़वां बहन वीना को पढ़ालिखा कर इस काबिल बनाना चाहता था कि उस की ये बेटियां उस की तरह किसी के यहां गुलामी न करें. वह चाहता था कि बहुत ज्यादा नहीं तो उस की दोनों बेटियां इतना जरूर पढ़लिख लें कि कम से कम अपने लिए 2 जून की रोटी और कपड़े का इज्जत के साथ जुगाड़ कर सकें. अपने बच्चों को भी कायदे से पढ़ालिखा सकें.

बेटियों ने भी बाप की तरह मेहनत कर के उस के सपने को साकार करने में कोताही नहीं बरती. बाप के पास इतना पैसा नहीं था कि वे उच्च शिक्षा ग्रहण करतीं. फिर भी 12वीं कर के उन्होंने नर्सिंग की ट्रेनिंग जरूर कर ली, जिस से इतना तो हो ही गया कि वे कहीं भी नौकरी कर के इज्जत की जिंदगी जी सकती थीं. जब दोनों बहनें नर्स की ट्रेनिंग कर रही थीं, तभी से वे सपना देखने लगी थीं कि अगर वे किसी तरह खाड़ी के किसी देश चली जाती हैं तो कुछ ही सालों में इतना कमा लाएंगी, जितना भारत में शायद पूरी जिंदगी में न कमा सकें.

ट्रेनिंग के दौरान सोना और वीना देख रही थीं कि जो नर्सें भारत में नौकरी करती हैं, वे किसी तरह गुजरबसर कर पाती हैं. जबकि जो खाड़ी देशों में चली जाती हैं, वे शान की जिंदगी जीती हैं. वैसी ही शान की जिंदगी सोना भी जीना चाहती थीं. इसी के साथ वे अपने मातापिता के लिए भी कुछ करना चाहती थीं, जिन्होंने कभी एक जून खा कर तो कभी भूखे पेट रह कर उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया था कि वे किसी की मोहताज न रहें.

सोना और वीना ने खाड़ी देशों में जा कर कमाने का जो सपना देखा था, अपनी नर्स की ट्रेनिंग के बाद से उसे साकार करने की कोशिश शुरू कर दी थी. मात्र ट्रेनिंग से काम चलने वाला नहीं था. बाहर जाने के लिए अच्छेखासे अनुभव की जरूरत थी. अनुभव के लिए नौकरी की जरूरत थी. अनुभव के लिए सोना और वीना ने केरल के एक अस्पताल में नौकरी कर ली. 12 घंटे की ड्यूटी थी और वेतन था 6 हजार रुपए. ड्यूटी चाहे दिन की होती या रात की, जब तक अस्पताल में रहतीं, पलभर बैठने को न मिलता.

बाप ने नर्स की ट्रेनिंग में जो फीस भरी थी, वह कर्ज ले कर भरी थी. उस का ब्याज भी लगता था. इसलिए कर्ज अदा करने के लिए नौकरी तो करनी ही थी. वेतन भले ही कम मिले और उस वेतन में काम चाहे जितना करना पड़े. किसी तरह पूरे 4 साल नौकरी कर के सोना और वीना ने अच्छाखासा अनुभव प्राप्त कर लिया तो खाड़ी के किसी देश जाने की तैयारी शुरू कर दी.

पहले उन्होंने पासपोर्ट बनवाया और फिर ऐसी एजेंसी की तलाश में लग गईं, जो उन्हें खाड़ी के किसी देश में नौकरी दिला सके. उन की यह तलाश जल्दी ही पूरी हो गई और दिल्ली की एक एजेंसी ने डेढ़ लाख रुपए प्रति आदमी ले कर इराक में नौकरी दिलाने का वादा किया. एजेंसी के अनुसार वहां उन्हें 750 डौलर तनख्वाह मिलने वाली थी.

सोना और वीना ने एजेंसी की इस पेशकश को स्वीकार कर लिया. इस की वजह यह थी कि उन की जानपहचान की कई नर्सें वहां पहले से ही नौकरी कर रही थीं. उन्होंने उन्हें बताया था कि वहां उन्हें कोई परेशानी नहीं है.

सोना और वीना की ही तरह मरीना, श्रुथी, सलीजा जोसेफ और ऐंसी जोसेफ पिछले साल अगस्त में 27 अन्य नर्सों के साथ इराक के पूर्व राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन के गृह शहर टिकरित जा पहुंची. लेकिन वहां पहुंच कर ये नर्सें टिकरित के उस अस्पताल की इमारत तक ही सीमित रह गई थीं. इन नर्सों को अस्पताल से बाहर जाने की बिलकुल इजाजत नहीं थी.

टिकरित के उसी अस्पताल में इस साल फरवरी महीने में 13 अन्य नर्सें भारत से भेजी गईं. इस तरह वहां भारत की 46 नर्सें हो गईं. इन में 45 नर्सें केरल की थीं. बाकी एक नर्स दूसरे राज्य की थी. ये सभी नर्सें अस्पताल की दूसरी मंजिल पर बने कमरों में रहती थीं. एक कमरे में 6 नर्सों के रहने की व्यवस्था थी. बाहर की दुनिया से उन का ताल्लुक सिर्फ कमरे की खिड़की से दिखाई देने वाले आसमान से था.

इराक में यह जो नया संकट पैदा हुआ था, इस की जानकारी इन नर्सों को 12 जून को तब हुई, जब अस्पताल के आसपास बम धमाके और गोलियों के चलने की आवाजें सुनाई दीं. रात में जलती हुई इमारतें दिखाई दीं. तभी उस अस्पताल में काम करने वाली इराकी नर्सों ने इन से कहा कि वे शहर छोड़ कर भाग रही हैं.

और सचमुच वे नर्सें भाग गईं. भारतीय नर्सें कहां जातीं, उन्होंने तो कभी अस्पताल के बाहर कदम ही नहीं रखा था. उन की दुनिया तो अस्पताल और उन के उस कमरे तक सीमित थी, जिस में वे रह रही थीं. सभी भारतीय नर्सें वहां बुरी तरह से फंस चुकी थीं. लेकिन अभी उन के पास एक सहारा यह था कि उन के मोबाइल फोन चालू थे. उन के पास भारतीय दूतावास के नंबर भी थे.

13 जून को इन नर्सों ने बगदाद स्थित भारतीय दूतावास में वहां के भारतीय राजदूत अजय कुमार को फोन कर के सभी नर्सों को वहां से किसी भी तरह निकालने की गुहार लगाई. 46 नर्सों में एक को छोड़ कर बाकी 45 नर्सें केरल की थीं. उन के पास केरल के मुख्यमंत्री ओमन चांडी का नंबर था, नर्सों ने उन्हें भी फोन किया.

मुख्यमंत्री ओमन चांडी ने उन्हें धैर्य ही नहीं बंधाया, बल्कि मदद का वादा भी किया. लेकिन तब तक टिकरित की सड़के बंद हो चुकी थीं, इसलिए सड़क मार्ग से उन नर्सों को कोई मदद नहीं मिल सकती थी. ऐसे में उन्हें कहीं बाहर नहीं ले जाया जा सकता था.

नासमझी का घातक परिणाम – भाग 2

16 जनवरी, 2014 को जौनथन प्रसाद अपने रिश्तेदारों के साथ मुलुंड और कांजुर मार्ग ईस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे के किनारे से गुजर रहे थे तो उन्हें किसी शव के सड़ने की दुर्गंध महसूस हुई. इस गंध ने उन्हें बेचैन कर दिया. मन अशांत हो उठा. न चाहते हुए भी उन्होंने उन दोनों सिपाहियों को फोन कर के वहां बुला लिया. सिपाहियों के आने पर वह उस ओर बड़े, जिधर से दुर्गंध आ रही थी.

जौनथन प्रसाद सिपाहियों के साथ सर्विस रोड से 10 फुट अंदर समुद्र के किनारे की झाडि़यों में घुसे तो वहां एक खाई में क्षतविक्षत अवस्था में एक शव पड़ा दिखाई दिया. दूर से उसे पहचाना नहीं जा सकता था, क्योंकि उसे बेरहमी से जलाने की कोशिश की गई थी. लेकिन यह साफ दिख रहा था कि वह शव महिला का था.

जौनथन प्रसाद की बेटी गायब थी. लाश महिला की थी. कहीं यह लाश ईस्टर की तो नहीं, यह सोच कर वह खाई में उतर गए. करीब से देखने पर पता चला कि वह लाश उन की बेटी ईस्टर अनुह्या की ही थी. बेटी की हालत देख कर वह रो पड़े.

लाश जहां पड़ी थी, वह स्थान थाना कांजुर मार्ग के अंतर्गत आता था. इसलिए लाश पड़ी होने की सूचना थाना कांजुर मार्ग पुलिस को दी गई. थाना पुलिस ने घटनास्थल पर पहुंच कर खाई से शव निकलवाया. घटनास्थल के निरीक्षण और काररवाई के बाद शव को पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए जे.जे. अस्पताल भिजवा दिया.

अगले दिन ईस्टर अनुह्या की हत्या का समाचार दैनिक अखबारों में छपा तो मामले ने तूल पकड़ लिया. मामला हाईप्रोफाइल परिवार का था, इसलिए मुंबई पुलिस कमिश्नर सत्यपाल सिंह ने इसे गंभीरता से लिया. उनहोंने तत्काल इस मामले की जांच की जिम्मेदारी क्राइम ब्रांच के ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर हिमांशु राय को सौंप दी.

एक ओर जहां जीआरपी थाना कुर्ला पुलिस और थाना कांजुर मार्ग पुलिस इस मामले की जांच कर रही थी, वहीं दूसरी ओर अपर पुलिस कमिश्नर निकेत कौशिक, अतिरिक्त पुलिस कमिश्नर अंबादास पोटे, सहायक पुलिस कमिश्नर प्रफुल्ल भोसले के निर्देशन में क्राइम ब्रांच की 5 यूनिटें इस मामले की जांच में लगी थीं.

पुलिस अधिकारियों ने जांच की दिशा तय करने के लिए जौनथन प्रसाद को क्राइम ब्रांच के औफिस में बुला कर विस्तार से बातचीत कर के ढेर सारी जानकारी इकट्ठा की.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से ऐसा कोई क्लू नहीं मिला था कि जांच आगे बढ़ पाती. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार उस के साथ दुष्कर्म नहीं हुआ था. इस से अंदाजा लगाया गया कि या तो दुष्कर्मी ने असफल होने पर हत्या की थी या फिर उस की हत्या लूटपाट के लिए की गई थी.

सामान के नाम पर ईस्टर के पास मोबाइल फोन, लैपटौप और कुछ कपड़े थे. ज्यादा पैसे भी नहीं थे. पुलिस ने जब इस मामले पर गहराई से विचार किया तो लगा कि इस मामले में किसी ऐसे लुटेरे का हाथ हो सकता है, जो बैग, मोबाइल और लैपटौप चोरी करता था.

ईस्टर लोकमान्य तिलक टर्मिनस पर उतरी थी. उस की लाश कांजुर मार्ग ईस्टर्न एक्सप्रेस हाइवे पर मिली थी, इसलिए पुलिस ने अपने जांच का दायरा स्टेशन से लाश मिलने के स्थान तक बनाया. टर्मिनस से ले कर कांजुर मार्ग तक टैक्सी ड्राइवर, औटोरिक्शा ड्राइवर, टर्मिनस के कुली, सफाई कर्मचारी, चरसी आदि से पूछताछ करने के साथसाथ यह पता लगाने की कोशिश की गई कि यहां इस तरह की चोरी करने वाले कौनकौन हैं.

यूनिट-1 के सीनियर इंसपेक्टर नंद कुमार गोपाल, यूनिट 25 के सीनियर इंसपेक्टर अविनाश सावंत, यूनिट 6 के सीनियर इंसपेक्टर श्रीपाद काले, यूनिट 7 के सीनियर इंसपेक्टर व्यंकट पाटिल, इंसपेक्टर संजय सुर्वे, इंसपेक्टर अशोक खोत, इंसपेक्टर अनिल ढोले की संयुक्त टीम स्टेशन पर काम करने वाले ही नहीं, वहां गलत काम करने वालों पर खुद तो नजर रख ही रही थी, मुखबिरों को भी लगा दिया गया था.

स्टेशन पर लगे सीसीटीवी कैमरे ही नहीं, हाईवे पर लगे सीसीटीवी कैमरों की भी फुटेज देखी गई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. मामले में प्रगति न होते देख जौनथन प्रसाद का धैर्य जवाब देने लगा. इंसाफ पाने के लिए वह दिल्ली गए और गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे, सीपीएम की नेता वृंदा करात, आम आदमी पार्टी के नेता योगेंद्र यादव से मिल कर ईस्टर के हत्यारों की गिरफ्तारी के लिए गुहार लगाई.

लेकिन उन की इस दौड़भाग का कोई लाभ नहीं हुआ. तमाम कोशिशों के बाद भी पुलिस ईस्टर के हत्यारों तक नहीं पहुंच पाई. धीरेधीरे 2 महीने का समय बीत गया. इस से यही लग रहा था कि ईस्टर की हत्या जिस ने भी की थी, वह काफी होशियार और शातिर था. उस ने कोई भी ऐसा सुबूत नहीं छोड़ा था कि पुलिस उस तक पहुंच पाती. पुलिस जांच का कोई दूसरा रास्ता निकालती, पुलिस के कई बड़े अधिकारियों का तबादला हो गया.

मुंबई पुलिस कमिश्नर सत्यपाल सिंह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. उस के बाद राकेश मारिया मुंबई के नए पुलिस कमिश्नर बने. इस के साथ क्राइम ब्रांच में भी काफी उलटपुलट हुआ. ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर हिमांशु राय और अपर पुलिस कमिश्नर निकेत कौशिक की जगह पर नए जौइंट पुलिस कमिश्नर सदानंद दाते और अपर पुलिस कमिश्नर राजवर्धन को लाया गया.

नए पुलिस कमिश्नर राकेश मारिया इस के पहले क्राइम ब्रांच के चीफ थे, इसलिए उन्हें जटिल से जटिल मामलों को सुलझाना अच्छी तरह आता था. कार्यभार संभालते ही उन्होंने चर्चा में रहे ईस्टर हत्याकांड को सुलझाने के लिए सहायकों के साथ जांच की रूपरेखा तैयार की. इस के बाद उसी रूपरेखा पर जांच की जिम्मेदारी नए क्राइम ब्रांच के जौइंट कमिश्नर सदानंद दाते, अपर पुलिस कमिश्नर राजवर्धन, सत्यनारायण चौधरी, एडिशनल कमिश्नर अंबादास पोटे और असिस्टैंट कमिश्नर प्रफुल्ल भोंसले को सौंप दी गई.

इन नए अधिकारियों के निर्देशन में एक बार फिर क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने सरगर्मी से मामले की जांच शुरू की. इस बार उन्होंने 2 हजार लोगों से पूछताछ की. मुखबिर भी जीजान से लगे थे. इसी के साथ सीसीटीवी के कैमरों की फुटेज एक बार फिर देखी गई. इस बार फुटेज देखते समय जौनाथन प्रसाद को भी साथ बैठाया गया था. इस बार की मेहनत रंग लाई और फुटेज में ईस्टर के साथ एक ऐसा आदमी दिखाई दिया, जो स्टेशन से बैग, मोबाइल और लैपटौप की चोरी करता था.

इसी के बाद 2 मार्च, 2014 को यूनिट-6 के सीनियर इंस्पेक्टर व्यंकट पाटिल ने अपने सहायक इंस्पेक्टर संजय सुर्वे, अशोक खोत और अनिल ढोले के साथ भांडूप के एक घर से उस आदमी को गिरफ्तार कर लिया गया था. उस का नाम था चंद्रभाव उर्फ चौक्या सुदाम सापन.

मिली जानकारी के अनुसार यही चंद्रभाव उर्फ चौक्या सुदाम सापन सीसीटीवी कैमरे की फुटेज में ईस्टर के साथ जाता दिखाई दिया था. पूछताछ में पता चला कि वही ईस्टर का हत्यारा था. उसे क्राइम ब्रांच के औफिस ला कर पूछताछ की गई तो उस ने ईस्टर अनुह्या की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया था.

चंद्रभाव उर्फ चौक्या ने क्राइम ब्रांच अधिकारियों को ईस्टर की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी.

28 वर्षीया चंद्रभाव उर्फ चौक्या मूलरूप से नासिक जनपद के गांव मधमलाबाद का रहने वाला था. संतानों में बड़ा होने की वजह से मांबाप का कुछ ज्यादा ही लाडला था, जिस की वजह से वह आवारा हो गया था. पढ़ाई छोड़ कर वह दोस्तों के साथ मटरगश्ती किया करता था. पिता सुदाम सापन सीएसटी टर्मिनस पर कुली का काम करते थे. मुंबई में वह उपनगर कांजुर मार्ग स्थित कर्वेनगर साईंकृपा सोसायटी की इमारत नंबर वी-2 के रूम नंबर 208 में परिवार के साथ रहते थे.

चंद्रभाव चौक्या की शादी मांबाप ने यह सोच कर कर दी थी कि जिम्मेदारी पड़ने पर शायद वह सुधर जाएगा. वह एक बेटी का बाप भी बन गया, लेकिन वह जस का तस ही रहा.

2005 में सुदाम सापन गंभीर रूप से बीमार हुए तो रेलवे के अधिकारियों से पैरवी कर के अपना कुली वाला बैज चंद्रभाव उर्फ चौक्या के नाम करा दिया था. इस के बाद चंद्रभाव सीएसटी रेलवे टर्मिनस पर बाप की जगह कुली का काम करने लगा था.

जब थोड़ाबहुत पैसा आने लगा तो चंद्रभाव के शौक बढ़ने लगे. घर में खूबसूरत पत्नी के होते हुए भी वह अपनी कमाई का ज्यादा हिस्सा खानेपीने और पराई औरतों पर उड़ाने लगा. अपने यही शौक पूरे करने के लिए कभीकभी वह यात्रियों के सामान उड़ाने लगा. 2 सालों तक सीएसटी रेलवे टर्मिनस पर कुलीगीरी करने के बाद उस ने यह काम छोड़ दिया.

2007 में वह कुर्ला लोकमान्य तिलक रेलवे टर्मिनस पर आ गया, जहां उस की दोस्ती नंदकुमार साहू से हुईं. नंदकुमार साहू भी कुली था और उस में भी वे सभी बुरी आदतें थीं, जो चंद्रभाव में थी. वह भी मौजमस्ती के लिए यात्रियों के सामानों की चोरी करता था.

क्यों की चन्द्रभाव ने ईस्टर की हत्या? जानने के लिए पढ़िए इस Social Crime Story का अगला भाग.

खुद ही लिख डाली मौत की स्क्रिप्ट

नासमझी का घातक परिणाम – भाग 1

सुबह सो कर उठते ही एस. जौनथन प्रसाद के घर वाले एकदूसरे से पूछने लगे थे कि ईस्टर का फोन आया या नहीं? जब सभी ने मना  कर दिया कि फोन नहीं आया तो एस. जौनथल प्रसाद और उन की पत्नी को हैरानी हुई. क्योंकि वह तो कब का कमरे पर पहुंच गई होगी, अब तक उस ने फोन क्यों नहीं किया? वह व्यस्त होगी, यह सोच कर उन्होंने फोन नहीं किया.

जब घर के सभी लोगों ने नहाधो कर नाश्ता भी कर लिया और ईस्टर का फोन नहीं आया तो जौनथन प्रसाद से रहा नहीं गया. उन्होंने खुद ही फोन मिला दिया. तब दूसरी ओर से आवाज आई कि फोन पहुंच से बाहर है. उन्होंने दोबारा फोन लगाया तो पता चला कि फोन बंद है. इस के बाद उन्होंने न जाने कितनी बार फोन मिला डाला, हर बार फोन से स्विच्ड औफ होने की ही आवाज आई.

फोन न मिलने से जौनथन प्रसाद परेशान हो उठे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि ईस्टर अनुह्या का फोन बंद क्यों है. मन में तरहतरह के खयाल आने लगे. कभी लगता कि फोन चार्ज न होने की वजह से ऐसा होगा तो कभी लगता कि किसी वजह से उस ने फोन बंद कर दिया होगा. लेकिन ईस्टर इतनी लापरवाह नहीं थी कि फोन बंद हो और उसे पता न चले. फिर उसे मुंबई पहुंच कर औफिस जाने की सूचना भी तो देनी थी.

बेटी से बात न हो पाने की वजह से जौनथन प्रसाद काफी परेशान थे. उन्हें इस तरह बेचैन देख कर पत्नी ने कहा, ‘‘मेरी समझ में यह नहीं आता कि आप इतना परेशान क्यों हैं? ईस्टर बच्ची नहीं है. किसी काम में फंस गई होगी या कोई मीटिंग वगैरह होगी, जिस की वजह से फोन बंद कर दिया होगा. मौका मिलेगा तो जरूर फोन करेगी. वह अपनी जिम्मेदारी अच्छी तरह समझती है.’’

‘‘पता नहीं क्यों मेरा दिल बहुत घबरा रहा है,’’ जौनथन प्रसाद ने कहा, ‘‘ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ. वह कितनी भी व्यस्त रही हो, फोन करने में जरा भी लापरवाही नहीं करती थी. आज पहली बार ऐसा हो रहा है, इसीलिए चिंता हो रही है.’’

जौनथन प्रसाद की इस बात का पत्नी के पास कोई जवाब नहीं था. फिर भी उन्होंने पति को धीरज बंधाया. वह पति को भले ही धीरज बंधा रही थीं, लेकिन उन का खुद का मन भी उतना ही बेचैन था. बेटी का कोई हाल समाचार न पा कर उन का खुद का दिल भी किसी अज्ञात भय से बैठा जा रहा था.

वह पूरा दिन और रात इसी इंतजार में बीत गया कि ईस्टर किसी जरूरी काम में फंसी होगी, इसलिए उस ने फोन बंद कर दिया है. इस के बावजूद जौनथन प्रसाद लगातार फोन करते रहे कि शायद अब ईस्टर का फोन चालू हो गया हो. लेकिन जब अगले दिन भी फोन चालू नहीं हुआ तो उन की हिम्मत जवाब देने लगी. इस बीच पतिपत्नी न कुछ खा सके थे और न एक पल के लिए आंखें झपका सके थे.

अगले दिन जब ईस्टर के फोन आने और मिलने की उम्मीद पूरी तरह खत्म हो गई तो जौनथन प्रसाद मुंबई के चैंबूर में अपने एक रिश्तेदार को फोन कर के सारी बात बता कर ईस्टर अनुह्या के बारे में पता लगाने की विनती की. इस के बाद उन्होंने ईस्टर की कंपनी को फोन किया तो वहां से पता चला कि पिछले दिन वह औफिस आई ही नहीं थी.

जौनथन प्रसाद को जब पता चला कि वह औफिस नहीं गई थी तो उन्होंने तुरंत उस के हौस्टल फोन किया. वहां से जब उन्हें बताया गया कि वह वहां भी नहीं पहुंची है तो वह परेशान हो उठे. अब उन्हें किसी अनहोनी की आशंका होने लगी. वह मन को सांत्वना देने के लिए ईस्टर की सहेलियों और परिचितों को फोन कर के पूछने लगे कि वह उन के यहां तो नहीं गई है या उन्हें कुछ बताया तो नहीं है? जब कहीं से ईस्टर के बारे में कुछ पता नहीं चला तो उन की बेचैनी और बढ़ गई.

दूसरी ओर जब ईस्टर की सहेलियों, परिचितों, कंपनी और हौस्टल वालों को उस के लापता होने का पता चला तो वे सब भी परेशान हो उठे, क्योंकि अब तक उसे गायब हुए 24 घंटे से अधिक बीत चुके थे. उस का किसी से भी संपर्क नहीं हुआ था, इसलिए सभी को उस के साथ किसी अनहोनी की आशंका सताने लगी थी.

23 वर्षीया ईस्टर अनुह्या प्रसाद आंध्र प्रदेश के शहर मछलीपट्टनम के रहने वाले एस. जौनथन प्रसाद की बेटी थी. वह शहर के प्रतिष्ठित नागरिक थे. राजनेताओं से अच्छे संबंध होने की वजह से स्थानीय राजनीति में भी उन की अच्छीखासी पकड़ थी. मछलीपट्टनम के सांसद पी.के. नारायण राव और उन के भाई जगन्नाथ राव से उन के पारिवारिक संबंध थे.

इस तरह के परिवार की लाडली बेटी अनुह्या बहुत ही महत्त्वाकांक्षी और तेजतर्रार लड़की थी. उस ने बंगलुरु युनिवर्सिटी से बीएससी कर के सौफ्टवेयर इंजीनियरिंग की. आगे की पढ़ाई के लिए वह जर्मनी जाना चाहती थी, लेकिन मांबाप ने इस के लिए इजाजत नहीं दी. मातापिता का कहना था कि अब आगे की पढ़ाई वह शादी के बाद करे.

मांबाप ने मना कर दिया तो आगे की पढ़ाई का खयाल छोड़ कर ईस्टर अनुह्या ने बंगलुरु में ही टीसीएस (टाटा कंसल्टेंसी सर्विस) कंपनी में नौकरी  कर ली. कुछ दिनों बाद कंपनी ने उसे एक बड़ा प्रमोशन दे कर महानगर मुंबई के उपनगर गोरेगांव स्थित कंपनी की शाखा में भेज दिया. यहां उसे असिस्टेंट सिस्टम इंजीनियर बनाया गया था. यहां उस ने अपने रहने की व्यवस्था अंधेरी के एमआईडीसी डब्ल्यूएचसीए महिला हौस्टल में की थी.

25 दिसंबर को ईसाइयों का सब से बड़ा त्यौहार होता है, जिसे ये लोग नाताल कहते हैं. इसी त्यौहार को घर वालों के साथ मनाने के लिए ईस्टर अनुह्या ने 8 दिनों की छुट्टी ली और मछलीपट्टनम आ गई थी.

छुट्टी खत्म होने पर ईस्टर अनुह्या ने 4 जनवरी, 2014 की सुबह 8 बजे मछलीपट्टनम के विजयवाड़ा रेलवे टर्मिनस से विशाखापट्टनम एक्सप्रेस पकड़ कर मुंबई के लिए रवाना हुई. उस का पूरा परिवार उसे टे्रन पर बैठाने आया था. उस का एसी (प्रथम) में रिजर्वेशन था. मांबाप ने उसे समझाबुझा कर विदा किया था कि अपना खयाल रखना, मुंबई पहुंचने तक किसी अजनबी से बात मत करना. पहुंच कर फोन करना. ईस्टर ने मुंबई पहुंचने पर मातापिता को विश्वास दिलाया था कि वह वैसा ही करेगी, जैसा उन्होंने उसे समझाया है.

5 जनवरी, 2014 की सुबह 5 बजे तक मुंबई के कुर्ला लोकमान्य तिलक टर्मिनस पहुंचने तक ईस्टर का संपर्क मांबाप से बना रहा. लेकिन उस के बाद जब संपर्क टूटा तो फिर संपर्क नहीं हो सका.

जब कहीं से भी ईस्टर के बारे मे कोई जानकारी नहीं मिली तो जौनथन प्रसाद बेटे के साथ प्लेन पकड़ कर मुंबई आ गए. हवाई अड्डे से वह सीधे अपने उस रिश्तेदार के यहां गए और उस से सारी जानकारी ली. इस के बाद वह बेटी की तलाश में उन स्थानों पर गए, जहांजहां उस के मिलने की संभावना थी, जब ईस्टर अनुह्या के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं मिली तो पुलिस के पास जाने के अलावा उन्हें कोई दूसरा रास्ता नजर नहीं आया.

पुलिस की मदद लेने के लिए जौनथन प्रसाद थाना कुर्ला पहुंचे. जब उन्होंने वहां के थानाप्रभारी से अपनी समस्या बताई तो उन्होंने कहा कि यह जीआरपी थाना विजयवाड़ा का मामला है. मजबूरन उन्हें जीआरपी थाना विजयवाड़ा जाना पड़ा. जीआरपी थाना विजयवाड़ा पुलिस ने ईस्टर अनुह्या प्रसाद की गुमशुदगी दर्ज कर के मामले को मुंबई के जीआरपी थाना कुर्ला पुलिस को ट्रांसफर कर दिया.

जीआरपी थाना विजयवाड़ा से शिकायत मिलने के बाद जीआरपी थाना कुर्ला पुलिस ने ईस्टर की तलाश शुरू कर दी. लेकिन उन की यह तलाश काफी धीमी गति से चल रही थी.

शिकायत दर्ज कराने के बाद जौनथन प्रसाद मुंबई आ गए. वह खुद भी अपने रिश्तेदारों और परिचितों के साथ मिल कर बेटी की तलाश करने लगे. एक पुलिस के उच्च अधिकारी के कहने पर उन की मदद के लिए 2 पुलिस वाले हमेशा उन के साथ लगा दिए गए थे. वह अपने हिसाब से बेटी की तलाश कर रहे थे. उन की नजर उस रास्ते पर थी, जो स्टेशन से ईस्टर के हौस्टल तक जाता था.

आखिर उन की मेहनत रंग लाई. जीआरपी थाना कुर्ला पुलिस कुछ कर पाती, उस के पहले उन्होंने खुद ही बेटी की लाश खोज निकाली. संयोग से उस समय वे दोनों पुलिस वाले भी उन के साथ वहीं थे.

क्या अनहोनी हो गयी थी ईस्टर अनुह्या के साथ? पढ़ेंगे इस Society Crimes Story के अगले अंक में.

भांजी की गवाही से बलात्कारी को सजा-ए-मौत

खुद ही लिख डाली मौत की स्क्रिप्ट – भाग 3

परिवार के साथ बैठ कर बनाया प्लान

कल्लू ऐशोआराम पर बड़ी रकम खर्च करता था. यही कारण रहा कि उस पर कर्ज बढ़ता चला गया. जिन से कर्ज लिया था, वह आए दिन तगादा करने घर पर आते थे. इस वजह से कल्लू का घर से निकलना मुश्किल हो गया था.

कल्लू जब लिए गए कर्ज की मासिक किस्त नहीं भर पा रहा था तो प्राइवेट बैंक के लोन वसूली करने वाले कर्मचारी उसे मकान नीलाम करने की धमकी देने लगे थे. जिस बैंक से कल्लू ने कार लोन लिया था, वह भी कार खींच कर ले जाने की तैयारी में थे. कर्ज में कल्लू बुरी तरह डूब चुका था. आसपास रहने वाले लोगों की नजर में उस के ऐशोआराम की जिंदगी की पोल खुल गई. इन सब कारणों से अब कल्लू को कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था.

एक दिन उस ने अपनी पत्नी से कहा, “मुझ पर कर्ज बढ़ता ही जा रहा है, मेरे मन में एक विचार आ रहा है.”

“कैसा विचार? कुछ उलटापुलटा मत कर लेना. कामधंधा अच्छे से करो. पैसा आएगा तो धीरेधीरे कर्ज भी पटा देंगे.” प्रियंका ने उसे ढांढस बंधाते हुए कहा.

“नहीं प्रियंका, इतना कर्ज अब कामधंधा करने से नहीं चुकेगा. यदि किसी तरह मैं अपने आप को मरा हुआ साबित कर दूं तो कर्ज से मुक्ति मिल जाएगी और जो हम ने बीमा पौलिसी ले रखी हैं, उस से तुम्हें लाखों रुपए भी मिल जाएंगे.” कल्लू ने अपना प्लान समझाते हुए कहा.

कल्लू ने अपने इस प्लान की जानकारी साथ में रहने वाले छोटे भाई दीनदयाल को भी बताई तो उस ने भी सहमति दे दी. इस साजिश में उस की पत्नी और परिवार ने भी साथ देने का वादा किया. कल्लू ने खुद को मरा साबित करने के लिए टीवी पर कई क्राइम शो देखे और अपने प्लान को अंतिम रूप दिया.

13 अप्रैल, 2023 को कल्लू ने पत्नी प्रियंका, छोटे भाई दीनदयाल चढ़ार के साथ भोपाल के भानपुर स्थित अपने घर पर यह प्लान बनाया कि पत्नी और भाई पड़ोसियों को यह कह देंगे कि कल्लू की एक्सीडेंट में मौत हो गई है. इस के बाद कल्लू भानपुर भोपाल स्थित अपने घर से इंद्रपुरी स्थित एक होटल में गया और रूम ले लिया. पत्नी प्रियंका और छोटा भाई दीनदयाल भानपुर स्थित घर पर ही रुक गए.

मौका देख कर दोनों ने रोनापीटना शुरू कर दिया. जब पड़ोसियों ने उन से रोने का कारण पूछा तो बोल दिया कि कल्लू का विदिशा में एक्सीडेंट हो गया है और मौत हो गई है. उन्होंने पड़ोसियों को बताया कि हम गांव के लिए निकल रहे हैं. यहां से दोनों अपने गांव पहुंचे और गांव जा कर रहने लगे.

कल्लू ने मोबाइल सिम प्रियंका के मोबाइल में डाल दी और खुद नया नंबर ले लिया. जब कर्जदारों के फोन आए तो पत्नी ने उन्हें भी कल्लू की मौत की कहानी सुना दी.

दोस्त को बनाया बलि का बकरा

कल्लू ने खुद को मृत घोषित करने के लिए प्लान तो बना लिया, लेकिन इस के लिए उसे एक लाश की जरूरत थी. भोपाल के आरिफ नगर, करोंद निवासी 25 साल के सलमान खान से उस की दोस्ती थी. कुछ साल पहले दोनों भोपाल के शिखा होटल में काम करते थे.

सलमान मूलरूप से विदिशा के गंज बासौदा का रहने वाला था. वह अपनी बहन के पास भोपाल के आरिफ नगर में रहता था. एक ही जिले के होने के कारण सलमान की दोस्ती कल्लू से हो गई. कल्लू ने अपने ही दोस्त से दगाबाजी कर उस की हत्या की प्लानिंग कर डाली.

सलमान नौकरी की तलाश में था. सलमान की इसी कमजोरी का फायदा उठाते हुए कल्लू ने नौकरी दिलाने का झांसा देते हुए कहा, “सलमान भाई, उदयपुरा में एक अस्पताल में मेरा एक परिचित है, वह तुम्हारी नौकरी लगवा देगा. तुम मेरे साथ उदयपुरा चलो.”

अंधा क्या चाहे दो आंखें. सलमान झट से तैयार हो गया. 19 अप्रैल को दोनों भोपाल से बस में सवार हो कर उदयपुरा रवाना हो गए. रात करीब 9 बजे वे बस से सिलवानी पहुंचे और एक ढाबे पर दोनों ने खाना खाया. खाना खा कर रात करीब 11 बजे कल्लू सलमान से बोला, “भाई, रात में उदयपुरा के लिए बस तो मिलेगी नहीं, सडक़ पर पैदल चलते हैं, रास्ते में कोई ट्रक मिलेगा तो लिफ्ट ले कर उदयपुरा चलेंगे.

सिलवानी से रात करीबन 11 बजे पैदल उदयपुरा जाने के लिए दोनों पठापोड़ी गांव के तिराहा पर पहुंच गए. वहां पहुंच कर कल्लू ने सलमान से कहा, “पैदल चल कर काफी थक गए हैं थोड़ा आराम कर लेते हैं, फिर आगे बढ़ते हैं.”

इस के बाद दोनों तिराहे पर जगह देख कर बैठ गए. कुछ देर बाद कल्लू ने कहा, “यहां बैठना खतरे से खाली नहीं है, कोई हमें चोर न समझ बैठे. आगे खेत में आराम से बैठेंगे.”

इस के बाद दोनों एक खेत पर पहुंचे. खेत में मूंग की फसल थी और वहां ठंडक का अहसास भी हो रहा था. कल्लू ने सलमान से कहा, “कुछ देर लेट कर आराम कर लेते हैं, फिर उदयपुरा चलेंगे.”

यहां सलमान ने सहमति देते हुए खेत में रुमाल आंखों पर डाल कर आंखें बंद कर लीं. कल्लू भी बगल में सो गया, मगर नींद उस से कोसों दूर थी. सलमान के गले में अंगोछा डला हुआ था. थकान की वजह से सलमान को जल्द ही नींद आ गई. कल्लू ने मौका पा कर सलमान के गले में पड़े अंगोछे को कस कर खींच दिया, फिर उस ने उसे पीछे की ओर इतनी जोर से खींचा कि वह बेसुध हो गया यानी उस की मौत हो गई.

कल्लू ने खेत के किनारे पड़े बड़े पत्थर को उठा कर सलमान के चेहरे पर 3-4 बार दे मारा. चेहरा बुरी तरह से कुचलने के बाद उस का मोबाइल, पर्स समेत सब कुछ निकाल लिया. इस के बाद कल्लू ने अपना आधार कार्ड और पाकेट डायरी, जिस में उस ने अपने घर का मोबाइल नंबर लिखा था, वह सलमान की जेब में रख दिया और सलमान की लाश को खेत पर ही छोड़ कर भोपाल लौट आया. भोपाल आ कर उस ने फोन कर के गांव में रह रही अपनी पत्नी प्रियंका को सलमान को मारने की पूरी बात बता दी.

अपराधी कितना भी शातिर क्यों न हो, कानून के लंबे हाथ उस तक पहुंच ही जाते हैं. ऐसा ही कल्लू चढ़ार के मामले में हुआ. पुलिस ने कल्लू की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त पत्थर, सलमान का पर्स और मोबाइल भी बरामद कर लिया.

23 अप्रैल, 2023 को तीनों आरोपियों कल्लू चढ़ार, दीनदयाल चढ़ार और प्रियंका के खिलाफ धारा 302 और 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें रायसेन जेल भेज दिया गया.

24 अप्रैल को रायसेन जिले के सिलवानी पुलिस थाने में एसपी विवेक साहबाल ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर घटना का खुलासा किया. चादर से ज्यादा पैर पसारने की कल्लू की फितरत ने उसे संगीन जुर्म करने पर मजबूर कर दिया. अपने दोस्त का कत्ल कर उस परिवार का चिराग बुझा दिया और खुद को पत्नी, भाई के साथ जेल की सलाखों के पीछे जाना पड़ा.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

खुद ही लिख डाली मौत की स्क्रिप्ट – भाग 2

21 अप्रैल की शाम कल्लू की पत्नी प्रियंका अपने देवर और सास के साथ सिलवानी थाने पहुंची, जहां से उन्हें सिविल अस्पताल ले जाया गया. अस्पताल की मोर्चरी में रखे शव और कपड़ों के आधार पर तीनों ने बताया कि यह लाश कल्लू चढ़ार की ही है.

जब टीआई भारत सिंह ने दीनदयाल और उस की मां से कहा कि घर पर खबर कर दो कि परिवार के लोग अंतिम संस्कार की तैयारी कर लें तो दीनदयाल बोला, “साहब, हमारे पिताजी को यह खबर सुन कर हार्टअटैक आ सकता है. हम तो घर जा कर ही सब बताएंगे.”

पुलिस को तीनों के हावभाव देख कर यह नहीं लग रहा था कि कल्लू की मौत से किसी को सदमा पहुंचा हो. दूसरी बात मरने वाले की उम्र 25 साल के करीब थी, जबकि जेब में मिले आधार कार्ड में उम्र 34 साल थी.

पुलिस को पूरा मामला संदिग्ध लग रहा था, इसी वजह से सिलवानी थाने के टीआई भारत सिंह ने एसडीओपी राजेश तिवारी, एडीशनल एसपी अमृत मीणा और एसपी विवेक कुमार साहबाल को मामले की जानकारी देते हुए डैडबौडी के साथ उन के गांव थाना क्षेत्र त्योंदा के गांव बागरोद जाने का निर्णय लिया था.

पुलिस ने चिता से उठाया शव

गांव वालों की तस्दीक के बाद टीआई भारत सिंह, एसआई आरती धुर्वे को जब पूरी तरह यकीन हो गया कि यह डैडबौडी कल्लू की नहीं है तो उन्होंने श्मशान में मौजूद लोगों से कहा, “जिस कल्लू चढ़ार का क्रियाकर्म करने आप लोग आए हैं, यह डैडबौडी उस की नहीं है. डैडबौडी को चिता से हटाइए, अब इस का अंतिम संस्कार नहीं होगा.”

पुलिस की इस काररवाई से वहां मौजूद कल्लू के परिवार के लोग भौंचक रह गए. चिता पर लेटे युवक को मुखाग्नि देने की तैयारी चल ही रही थी कि पुलिस ने शव को चिता से बाहर निकाला. पुलिस ने शव को अपने कब्जे में लिया और इस की सूचना एसपी विवेक कुमार साहबाल को दे दी. इस के बाद कल्लू चढ़ार की पत्नी प्रियंका, भाई दीनदयाल और मां कलाबाई को ले कर थाने आ गई.

तब तक लाश की हालत काफी खराब हो चुकी थी, इस वजह से आवश्यक काररवाई कर रात में ही पुलिस ने वार्ड नं 3 इंदिरा आवास कालोनी के मुक्तिधाम में जेसीबी मशीन से गड्ढा खुदवा कर लाश को दफना दिया, क्योंकि मृतक मुसलिम लग रहा था.

पूछताछ में हुआ चौंकाने वाला खुलासा

दूसरे दिन 22 अप्रैल को पुलिस ने तीनों से सख्ती से पूछताछ की तो उन्होंने यह स्वीकार कर लिया कि यह डैड बौडी कल्लू की नहीं है. तीनों ने बताया कि यह लाश भोपाल में रहने वाले सलमान खान की है.

इस के बाद पुलिस ने सलमान भोपाल के पास करोंद का रहने वाला था. सलमान खान के पिता साबिर खान को घटना की सूचना दी गई और तहसीलदार की उपस्थिति में 22 अप्रैल को लाश को गड्ढे से बाहर निकाला गया.

सलमान के घर वालों की शिनाख्त के आधार पर डैडबौडी उन के सुपुर्द कर दी गई. पुलिस पूछताछ में तीनों ने पुलिस को यह भी बताया कि कल्लू जिंदा है और कल्लू ने ही अपने दोस्त मोहम्मद सलमान खान का कत्ल किया है.

एसपी विवेक कुमार साहबाल के निर्देश पर हत्यारोपी की तलाश हेतु सिलवानी एसडीओपी राजेश तिवारी के नेतृत्व में एक टीम का गठन किया गया, टीम में टीआई भारत सिंह, एसआई आरती धुर्वे, संतोष कुमार दांगी, एएसआई संतोष रघुवंशी, साइबर सेल से एएसआई सुरेंद्र, हैडकांस्टेबल योगेंद्र सिंह राजपूत, कांस्टेबल नीतू चंदेल, नवीन पांडे, मुकेश यादव को शामिल किया गया.

पुलिस ने कल्लू की पत्नी प्रियंका से कल्लू का मोबाइल नंबर और फोटो ले कर उस की तलाश शुरू कर दी. साइबर सेल की मदद से कल्लू की लोकेशन भोपाल के पास भानपुर की मिल रही थी. पुलिस टीम ने दिनरात मेहनत कर के सलमान खान के हत्यारे कल्लू चढ़ार को खोज निकाला.

पुलिस की एक टीम कल्लू की तलाश में जब तक भोपाल पहुंची, उस समय कल्लू भोपाल के बस स्टैंड पर सागर जाने वाली बस में बैठा हुआ था. पुलिस ने मोबाइल लोकेशन के आधार पर कल्लू को धर दबोचा. पुलिस टीम जब कल्लू को भोपाल से सिलवानी ले कर आ रही थी तो कल्लू ने चलती गाड़ी में गेट खोल कर भागने की कोशिश की, परंतु पुलिस ने उसे पकड़ लिया.

चलती गाड़ी से कूदने पर घायल हुए कल्लू का पहले पुलिस ने सिलवानी अस्पताल में इलाज करवाया. इस के बाद सिलवानी थाने आ कर जब पुलिस ने उस से सख्ती के साथ पूछताछ की तो कल्लू ने जो कहानी सुनाई, वह काफी सनसनीखेज निकली.

ऐशोआराम के लिए ले रखा था कर्ज

विदिशा जिले के बागरोद गांव में रहने वाले भगवान दास चढ़ार के 2 बेटों और 2 बेटियों में कल्लू सब से बड़ा था. उस का रंग काला होने के कारण लोग बचपन में उसे कल्लू कह कर बुलाते थे और बाद में यही उस का असली नाम हो गया. जवान होतेहोते कल्लू गलत संगत में पड़ गया.

जब वह 19 साल का था, तब गांव के एक पंडित से विवाद होने पर उसे चाकू मार कर फरार हो गया था. बाद में पुलिस के सामने सरेंडर कर वह जेल भेज दिया. फिर जमानत मिलने के बाद वह भोपाल चला गया था. कल्लू 20 साल की उम्र में गांव छोड़ कर भोपाल चला गया और कैटरिंग का काम करने लगा था.

कैटरिंग का काम करने के दौरान उस का संपर्क एक तलाकशुदा महिला से हुआ, उस महिला का एक बेटा भी था. बाद में उस महिला के साथ वह लिवइन रिलेशनशिप में रहने लगा. कुछ साल बाद घर वालों ने कल्लू की शादी प्रियंका से कर दी और प्रियंका भी 2 बच्चों की मां बन गई.

भोपाल के करोंद इलाके में खुद का मकान बना कर रह रहे कल्लू का रहनसहन और शौक किसी रईस से कम नहीं थे. अपने ऐशोआराम के लिए उस ने बैंक और साहूकारों से कर्ज ले रखा था. कल्लू ने प्राइवेट बैंक से लोन ले कर कार खरीद ली थी. कल्लू अपनी दोनों बीवी और बच्चों का खर्च उठा रहा था.

शराब और अय्याशी के शौक के चलते उस का हाल आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैया की तरह था. अपने शौक पूरा करने के लिए उस ने कुछ लोगों से लाखों रुपए का कर्ज ब्याज पर ले रखा था. कर्ज देने वाले जब उस से रुपए मांगते तो वह किसी दूसरे से रुपए ले कर उस का कर्ज चुका देता.

कल्लू के शौक और खर्च कम नहीं हो रहे थे और आमदनी घटती जा रही थी. कल्लू भोपाल और आसपास के इलाकों में शादीविवाह के फंक्शन में हलवाई का काम करता था. उस ने मकान खरीदने के लिए 13 लाख रुपए, 9 लाख की गाड़ी और किराना की दुकान खोलने के लिए 5 लाख रुपए का कर्ज बैंकों से ले रखा था. कुछ साहूकारों से लिए गए 6-7 लाख के कर्ज को मिला कर करीब 30 से 35 लाख रुपए का कर्ज कल्लू पर था. आए दिन कर्ज देने वाले घर पर आ कर उसे उलाहना देने लगे. कल्लू की पत्नी भी इस से परेशान रहने लगी.

कर्ज से छुटकारा पाने के लिए कल्लू ने क्या योजना बनाई? पढ़िए कहानी के अगले अंक में.