पति पत्नी और वो – भाग 3

28 जनवरी, 2014 की सुबह दीपा के बच्चे स्कूल जाने की तैयारी कर रहे थे. वह उन के लिए नाश्ता तैयार कर रही थी. तभी किचन में सुमन पहुंच गई. वह उस समय भी नशे की अवस्था में ही थी. उस ने दीपा से कहा, ‘‘मुझ से बेरुखी की वजह बताओ इस के बाद ही परांठे बनाने दूंगी.’’

‘‘सुमन, अभी बच्चों को स्कूल जाना है नाश्ता बनाने दो. बाद में बात करेंगे.’’ पहली बार दीपा ने छोटू के बजाय सुमन कहा था.

‘‘तुम ऐसे नहीं मानोगी.’’ कह कर सुमन ने हाथ में लिया रिवाल्वर ऊपर किया और किचन की छत पर गोली चला दी.

गोली चलते ही दीपा डर गई. वह बोली, ‘‘सुमन होश में आओ.’’ इस के बाद वह उसे रोकने के लिए उस की ओर बढ़ी. सुमन उस समय गुस्से में उबल रही थी. उस ने उसी समय दीपा के सीने पर गोली चला दी. गोली चलते ही दीपा वहीं गिर पड़ी. गोली की आवाज सुन कर बच्चे किचन की तरफ आए. उन्होंने मां को फर्श पर गिरा देखा तो वे रोने लगे. बबलू उस समय ऊपर के कमरे में था. बच्चों की आवाज सुन कर वो और उस की पहली पत्नी निर्मला भी नीचे आ गए. निर्मला सुमन से बोली, ‘‘क्या किया तुम ने?’’

‘‘कुछ नहीं यह गिर पड़ी है. इसे कुछ चोट लग गई है.’’ सुमन ने जवाब दिया.

निर्मला ने दीपा की तरफ देखा तो उस के पेट से खून बहता देख वह सुमन पर चिल्ला कर बोली, ‘‘छोटू तुम ने इसे मार दिया.’’

दीपा की हालत देख कर बबलू के आंसू निकल पड़े. उस ने पत्नी को हिलाडुला कर देखा. लेकिन उन की सांसें तो बंद हो चुकी थीं. वह रोते हुए बोला, ‘‘छोटू, यह तुम ने क्या कर दिया.’’ वह दीपा को कार से तुरंत राममनोहर लोहिया अस्पताल ले गया जहां डाक्टरों ने दीपा को मृत घोषित कर दिया.

चूंकि घर वालों के बीच सुमन घिर चुकी थी. इसलिए उस ने फोन कर के अपने भतीजे विपिन सिंह और उस के साथी शिवम मिश्रा को वहीं बुला लिया. तभी सुमन ने अपना रिवाल्वर विपिन सिंह को दे दिया. विपिन ने रिवाल्वर से बबलू के घरवालों को धमकाने की कोशिश की लेकिन जब घरवाले उलटे उन पर हावी होने लगे वे दोनों वहां से भाग गए.

तब अपनी सुरक्षा के लिए सुमन ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया. बबलू के भाई बलू सिंह ने गाजीपुर थाने फोन कर के दीपा की हत्या की खबर दे दी. घटना की जानकारी पाते ही थानाप्रभारी नोवेंद्र सिंह सिरोही, एसएसआई रामराज कुशवाहा, सीटीडी प्रभारी सबइंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह, रूपा यादव, ब्रजमोहन सिंह के साथ मौके पर पहुंच गए.

हत्या की सूचना पाते ही एसएसपी लखनऊ प्रवीण कुमार, एसपी(ट्रांसगोमती) हबीबुल हसन और सीओ गाजीपुर विशाल पांडेय भी घटनास्थल पर पहुंच गए. बबलू के घर पहुंच कर पुलिस ने दरवाजा खुलवा कर सब से पहले सुमन को हिरासत में लिया. उस के बाद राममनोहर लोहिया अस्पताल पहुंच कर दीपा की लाश कब्जे में ले कर उसे पोस्टमार्टम हाउस भेज दिया.

पुलिस ने थाने ला कर सुमन से पूछताछ की तो उस ने सच्चाई उगल दी. इस के बाद कांस्टेबल अरुण कुमार सिंह, शमशाद, भूपेंद्र वर्मा, राजेश यादव, ऊषा वर्मा और अनीता सिंह की टीम ने विपिन को भी गिरफ्तार कर लिया. उन से हत्या में प्रयोग की गई रिवाल्वर और सुमन की अल्टो कार नंबर यूपी32 बीएल6080 बरामद कर ली. जिस से ये दोनों फरार हुए थे.

देवरिया जिले के भटनी कस्बे का रहने वाला शिवम गणतंत्र दिवस की परेड देखने लखनऊ आया था. वह एक होनहार युवक था. लखनऊ घूमने के लिए विपिन ने उसे 1-2 दिन और रुकने के लिए कहा. उसे क्या पता था कि यहां रुकने पर उसे जेल जाना पड़ जाएगा. दोनों अभियुक्तों के खिलाफ पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 506 के तहत मामला दर्ज कर के उन्हें 29 जनवरी, 2014 को मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर जेल भेज दिया.

जेल जाने से पहले सुमन अपने किए पर पछता रही थी. उस ने पुलिस से कहा कि वह दीपा से बहुत प्यार करती थी. गुस्से में उस का कत्ल हो गया. सुमन के साथ जेल गए शिवम को लखनऊ में रुकने का पछतावा हो रहा था.

अपराध किसी तूफान की तरह होता है. वह अपने साथ उन लोगों को भी तबाह कर देता है जो उस से जुड़े नहीं होते हैं. दीपा और सुमन के गुस्से के तूफान में शिवम के साथ विपिन और दीपा का परिवार खास कर उस के 2 छोटेछोटे बच्चे प्रभावित हुए हैं. सुमन का भतीजा विपिन भागने में सफल रहा. कथा लिखे जाने तक उस की तलाश जारी थी.

— कथा पुलिस सूत्रों और मोहल्ले वालों से की गई बातचीत के आधार पर

पति पत्नी और वो – भाग 2

सुमन एक तेजतर्रार महिला थी. अपने संबंधों से उस ने एनजीओ को कई प्रोजेक्ट भी दिलवाए. तब दीपा ने उसे अपनी संस्था का सदस्य बना दिया. इतना ही नहीं वह संस्था की ओर से सुमन को उस के कार्य की एवज में पैसे भी देने लगी. कुछ ही दिनों में सुमन के दीपा से पारिवारिक संबंध बन गए.

दीपा को ज्यादा से ज्यादा बनठन कर रहने और सजनेसंवरने का शौक था. वह हमेशा बनठन कर और ज्वैलरी पहने रहती थी. 2 बच्चों की मां बनने के बाद भी उस में गजब का आकर्षण था. उसे देख कर कोई भी उस की ओर आकर्षित हो सकता था. एनजीओ में काम करने की वजह से सुमन दीपा को अकसर अपने साथ ही रखती थी. दीपा इसे सुमन की दोस्ती समझ रही थी पर सुमन पुरुष की तरह ही दीपा को प्यार करने लगी थी.

एक बार जब सुमन दीपा को प्यार भरी नजरों से देख रही थी तो दीपा ने पूछा, ‘‘ऐसे क्या देख रही हो? मैं भी तुम्हारी तरह एक महिला हूं. तुम मुझे इस तरह निहार रही हो जैसे कोई प्रेमी प्रेमिका को देख रहा हो.’’

‘‘दीपा, तुम मुझे अपना प्रेमी ही समझो. मैं सच में तुम्हें बहुत प्यार करने लगी हूं.’’ सुमन ने मन में दबी बातें उस के सामने रख दीं.

सुमन की बातें सुनते ही वह चौंकते हुए बोली, ‘‘यह तुम कैसी बातें कर रही हो? कहीं 2 लड़कियां आपस में प्रेमीप्रेमिका हो सकती हैं?’’

‘‘दीपा, मैं लड़की जरूर हूं पर मेरे अंदर कभीकभी लड़के सा बदलाव महसूस होता है. मैं सबकुछ लड़कों की तरह करना चाहती हूं. प्यार और दोस्ती सबकुछ. इसीलिए तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. मैं तुम से शादी भी करना चाहती हूं.’’

‘‘मैं पहले से शादीशुदा हूं. मेरे पति और बच्चे हैं.’’ दीपा ने उसे समझाने की कोशिश की.

‘‘मैं तुम्हें पति और बच्चों से अलग थोड़े न कर रही हूं. हम दोस्त और पतिपत्नी दोनों की तरह रह सकते हैं. सब से अच्छी बात तो यह है कि हमारे ऊपर कोई शक भी नहीं करेगा. दीपा, मैं सच कह रही हूं कि मुझे तुम्हारे करीब रहना अच्छा लगता है.’’

‘‘ठीक है बाबा, पर कभी यह बातें किसी और से मत कहना.’’ दीपा ने सुमन से अपना पीछा छुड़ाने के अंदाज में कहा.

‘‘दीपा, मेरी इच्छा है कि तुम मुझे सुमन नहीं छोटू के नाम से पुकारा करो.’’

‘‘समझ गई, आज से तुम मेरे लिए सुमन नहीं छोटू हो.’’ इतना कह कर सुमन और दीपा करीब आ गए. दोनों के बीच आत्मीय संबंध बन गए थे. सुमन ने रिश्ते को मजबूत करने के लिए एक दिन दीपा के साथ मंदिर जा कर शादी भी कर ली. सुमन के करीब आने से दीपा के जीवन को भी नई उमंग महसूस होने लगी थी कि कोई तो है जो उसे इतना प्यार कर रही है.

इस के बाद सुमन एक प्रेमी की तरह उस का खयाल रखने लगी थी. समय गुजरने लगा. दीपा के पति और परिवार को इस बात की कोई भनक नहीं थी. वह सुमन को उस की सहेली ही समझ रहे थे. एनजीओ के काम के कारण सुमन अकसर ही दीपा के साथ उस के घर पर ही रुक जाती थी.

सुमन को भी शराब पीने का शौक था. बबलू भी शराब पीता था. कभीकभी सुमन बबलू के साथ ही पीने बैठ जाती थी. जिस से सुमन और बबलू की दोस्ती हो गई. सुमन के लिए उस के यहां रुकना और ज्यादा आसान हो गया था. उस के रुकने पर बबलू भी कोई एतराज नहीं करता था. वह भी उसे छोटू कहने लगा.

साल 2010 में उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव हुए तो सुमन ने अपने गांव कटरा शाहबाजपुर से ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ा. सुमन सिंह का भाई विनय सिंह करनैलगंज थाने का हिस्ट्रीशीटर बदमाश था. उस के पिता अवधराज सिंह के खिलाफ भी कई आपराधिक मुकदमे करनैलगंज थाने में दर्ज थे. दोनों बापबेटों की दबंगई का गांव में खासा प्रभाव था. जिस के चलते सुमन ग्रामप्रधान का चुनाव जीत गई. उस ने गोंडा के पूर्व विधायक अजय प्रताप सिंह उर्फ लल्ला भैया की बहन सरोज सिंह को भारी मतों से हराया.

ग्राम प्रधान बनने के बाद सुमन सिंह सीतापुर रोड पर बनी हिमगिरी में फ्लैट ले कर रहने लगी. सन 2010 में प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनने के बाद उस ने अपने संबंधों की बदौलत फिर से ठेकेदारी शुरू कर दी. अपनी सुरक्षा के लिए वह .32 एमएम की लाइसैंसी रिवाल्वर भी साथ रखने लगी. उस की और दीपा की दोस्ती अब और गहरी होने लगी थी. सुमन किसी न किसी बहाने से दीपा के पास ही रुक जाती थी.

ऐसे में दीपा और सुमन एक साथ ही रात गुजारती थीं. यह सब बातें धीरेधीरे बबलू और उस के बच्चों को भी पता चलने लगी थीं. तभी तो उन्हें सुमन का उन के यहां आना अच्छा नहीं लगता था.

सुमन महीने में 20-25 दिन दीपा के घर पर रुकती थी. शनिवार और रविवार को वह दीपा को अपने साथ हिमगिरी कालोनी ले जाती थी. दीपा को सुमन के साथ रहना कुछ दिनों तक तो अच्छा लगा, लेकिन अब वह सुमन से उकता गई थी.

एक बार सुमन ने दीपा से किसी काम के लिए साढ़े 3 लाख रुपए उधार लिए थे. तयशुदा वक्त गुजर जाने के बाद भी सुमन ने पैसे नहीं लौटाए तो दीपा ने उस से तकादा करना शुरू कर दिया. तकादा करना सुमन को अच्छा नहीं लगता था. इसलिए दीपा जब कभी उस से पैसे मांगती तो सुमन उस से लड़ाईझगड़ा कर बैठी थी.

27 जनवरी, 2014 की देर रात करीब 9 बजे सुमन दीपा के घर अंगुली में अपना रिवाल्वर घुमाते हुए पहुंची. दीपा और बबलू में सुमन को ले कर सुबह ही बातचीत हो चुकी थी. अचानक उस के आ धमकने से वे लोग पशोपेश में पड़ गए.

‘‘क्या बात है छोटू आज तो बिलकुल माफिया अंदाज में दिख रहे हो.’’ दीपा बोली.

इस के पहले कि सुमन कुछ कहती. बबलू ने पूछ लिया, ‘‘छोटू अकेले ही आए हो क्या?’’

‘‘नहीं, भतीजा विपिन और उस का दोस्त शिवम मुझे छोड़ कर गए हैं. कई दिनों से दीपा के हाथ का बना खाना नहीं खाया था. उस की याद आई तो चली आई.’’

सुमन और बबलू बातें करने लगे तो दीपा किचन में चली गई. सुमन ने भी फटाफट बबलू से बातें खत्म कीं और दीपा के पीछे किचन में पहुंच कर उसे पीछे से अपनी बांहों में भर लिया. पति और बच्चोें की बातें सुन कर दीपा का मूड सुबह से ही खराब था. वह सुमन को झिड़कते हुए बोली, ‘‘छोटू ऐसे मत किया करो. अब बच्चे बड़े हो गए हैं. यह सब उन को बुरा लगता है.’’

उस समय सुमन नशे में थी. उसे दीपा की बात समझ नहीं आई. उसे लगा कि दीपा उस से बेरुखी दिखा रही है. वह बोली, ‘‘दीपा, तुम अपने पति और बच्चों के बहाने मुझ से दूर जाना चाहती हो. मैं तुम्हारी बातें सब समझती हूं.’’

दीपा और सुमन के बीच बहस बढ़ चुकी थी दोनों की आवाज सुन कर बबलू भी किचन में पहुंच गया. लड़ाई आगे न बढ़े इस के लिए बबलू सिंह ने सुमन को रोका और उसे ले कर ऊपर के कमरे में चला गया. वहां दोनों ने शराब पीनी शुरू कर दी. शराब के नशे में खाने के समय सुमन ने दीपा को फिर से बुरा भला कहा.

दीपा को भी लगा कि शराब के नशे में सुमन घर पर रुक कर हंगामा करेगी. उस की तेज आवाज पड़ोसी भी सुनेंगे जिस से घर की बेइज्जती होगी इसलिए उस ने उसे अपने यहां रुकने के लिए मना लिया. बबलू सिंह ऊपर के कमरे में सोने चला गया. दीपा के कहने के बाद भी सुमन उस रात वहां से नहीं गई बल्कि वहीं दूसरे कमरे में जा कर सो गई.

खुल गया महंत की हत्या का राज

20 जून, 2014 को सुबह से ही भीषण गरमी थी. सुबह के 11 बजे के आसपास उत्तराखंड के जिला हरिद्वार के कुंभ मेला  नियंत्रण कक्ष के बाहर काफी भीड़ जमा थी. क्योंकि थोड़ी देर बाद वहां हरिद्वार के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक डा. सदानंद दाते 2 साल पहले महानिर्वाणी अखाड़े के श्रीमहंत सुधीर गिरि हत्याकांड का खुलासा करने वाले थे. इसलिए वहां के साधुसंत, राजनेता, पत्रकार और अन्य लोग तरहतरह की चर्चाएं कर रहे थे.

श्रीमहंत की हत्या 14 अप्रैल, 2012 की रात को उस समय हुई थी, जब वह कार से हरिद्वार से गांव बेलड़ा स्थित अपने महानिर्वाणी अखाड़े जा रहे थे.  38 वर्षीय युवा श्रीमहंत सुधीर गिरि की हत्या हुए 2 साल से भी ज्यादा का समय बीत चुका था, मगर उन के हत्यारों का पुलिस को पता नहीं चल सका था. इसलिए संत समाज में पुलिस के प्रति काफी रोष था.

हत्या के वक्त रुड़की के थानाप्रभारी कुलदीप सिंह असवाल थे, जो काफी तेजतर्रार थे. उन्होंने भी इस मामले में दरजनों संदिग्धों से पूछताछ की थी. सर्विलांस के माध्यम से भी उन्होंने हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने की कोशिश की थी, मगर उन्हें सफलता नहीं मिली थी.

इस के बाद इस केस को सुलझाने के लिए थाना ज्वालापुर, पथरी, कनखल के थानाप्रभारियों और देहरादून की एसटीएफ टीम को लगाया गया था, लेकिन वे भी पता नहीं लगा सके थे कि श्रीमहंत का हत्यारा कौन है. मीडिया ने भी इस मामले को काफी उछाला था, फिर भी यह केस नहीं खुल सका था. इस मामले के खुलने की किसी को कोई उम्मीद भी नहीं थी.

अब 2 साल बाद जैसे ही लोगों को श्रीमहंत सुधीर गिरि के हत्यारों के गिरफ्तार होने की जानकारी मिली साधुसंतों, पत्रकारों के अलावा आम लोग भी कुंभ मेला नियंत्रण कक्ष के बाहर जमा हो गए थे. सभी के मन में हत्यारों के बारे में जानने की उत्सुकता थी.

एसएसपी ने जब मौजूद लोगों के सामने महंत के हत्यारे की घोषणा की तो सभी दंग रह गए. क्योंकि पुलिस ने जिस आदमी का नाम बताया था, वह एक कंस्ट्रक्शन कंपनी का मालिक था और वह श्रीमहंत सुधीर गिरि के अखाड़े में मुंशी भी रह चुका था. उस का नाम था आशीष शर्मा.

आशीष शर्मा ने श्रीमहंत सुधीर गिरि की हत्या जो कहानी पुलिस को बताई थी, वह इस प्रकार थी.

सुधीर गिरि का जन्म पुरानी रुड़की रोड स्थित दौलतपुर गांव के रहने वाले दर्शन गिरि के यहां हुआ था. दर्शन गिरि गांव में खेतीबाड़ी करते थे. उन के 2 बेटे और 2 बेटियां थीं. बच्चों को उस ने खेतीकिसानी से दूर रख कर उन्हें उच्च शिक्षा हासिल कराई.

पढ़लिख कर बड़े बेटे प्रदीप की रेल कोच फैक्ट्री कपूरथला (पंजाब) में नौकरी लग गई. दोनों बेटियों की वह शादी कर चुके थे. कहते हैं कि पूत के पैर पालने में ही दिख जाते हैं. सुधीर गिरि का साधुसंतों के प्रति लगाव बचपन से ही था. वर्ष 1981 में इन के पिता दर्शन गिरि ने उन्हें पढ़ने के लिए कनखल, हरिद्वार के एक स्कूल में भेजा तो सुधीर स्कूल से लौटने के बाद शाम को महानिर्वाणी अखाड़े के मंदिर में जरूर जाते थे.

उस समय वह बाबा हनुमान के सान्निध्य में रह कर मंदिर की देखरेख करते थे. हनुमान बाबा के सान्निध्य में रहने की वजह से सुधीर गिरि पर धीरेधीरे संन्यास का रंग चढ़ने लगा. उन का संसार, समाज और रिश्तेनाते से मोह भंग होने लगा.

सुधीर गिरि ने एक दिन अपने पिता से स्पष्ट कह भी दिया कि वह जल्द ही संन्यास ले लेंगे. यह सुन कर पिता हैरान रह गए. उन्होंने बेटे को समझाया. बाद में मां भी बेटे के सामने गिड़गिड़ाई, लेकिन सुधीर गिरि ने जिद नहीं छोड़ी. सुधीर गिरि के इस फैसले से घर में कोहराम मच गया. भाईबहनों और रिश्तेदारों ने भी सुधीर गिरि को समझाया और संन्यास न लेने की सलाह दी.

सुधीर गिरि ने सब की बात अनसुनी कर दी. बात सितंबर, 1988 की है. उस समय सुधीर गिरि की उम्र मात्र 13 साल थी और वह उस समय कक्षा 8 में पढ़ रहे थे. उसी दौरान वह अचानक घर से गायब हो गए.

सुधीर गिरि के अचानक गायब होने से घर वाले परेशान हो गए. उन्होंने आसपास के क्षेत्रों व हरिद्वार के अखाड़ों में उन की काफी तलाश की. लेकिन सुधीर गिरि का कहीं भी पता नहीं चला. पिता दर्शन गिरि ने जब हनुमान बाबा से पूछा तो उन्होंने कहा कि सुधीर गिरि ने उन से दीक्षा तो ली थी, मगर इस समय वह कहां है, उन्हें मालूम नहीं.

घर वालों के जेहन में एक सवाल यह भी उठ रहा था कि कहीं उस की किसी ने हत्या तो नहीं कर दी. बहरहाल काफी खोजबीन के बाद भी जब सुधीर गिरि का कोई सुराग नहीं मिला तो घर वाले थकहार कर बैठ गए.

10 साल बाद दर्शन गिरि को कहीं से पता चला कि सुधीर गिरि कुरुक्षेत्र (हरियाणा) के एक आश्रम में है और उस ने संन्यास ले लिया है. दर्शन गिरि परिवार सहित बेटे से मिलने कुरुक्षेत्र के आश्रम पहुंचे तो पहले सुधीर गिरि ने अपने परिजनों से मिलने से ही मना कर दिया.

किसी तरह जब मां व बहनें उस से मिलीं तो उन्होंने उन से साफ कह दिया कि अब उन्होंने संन्यास ले लिया है, इसलिए उन का इस समाज व संसार से कोई नाता नहीं है. यह सुनते ही मां और बहनों की आंखों में आंसू आ गए. वह उस से वापस घर चलने के लिए गिड़गिड़ाने लगीं. लेकिन सुधीर गिरि पर उन के गिड़गिड़ाने का कोई असर नहीं पड़ा.

सुधीर गिरि ने अंत में यही कहा, ‘‘संन्यास ले कर मैं ने कुछ ऐसा नहीं किया, जिस से परिवार की प्रतिष्ठा को धब्बा लगे. इसलिए मेरी आप लोगों से विनती है कि आप अब मेरा पीछा करना और मुझे खोजना बंद कर दें.’’

इतना कह कर सुधीर गिरि आश्रम के अंदर चले गए. परिजन रोतेबिलखते घर लौट गए.

इस के बाद सुधीर गिरि लगभग 6 सालों तक कुरुक्षेत्र में रहे. फिर वह हरिद्वार स्थित अखाड़े में रहने लगे. वह महंत हो गए तो उन के नाम के साथ श्रीमहंत जुड़ गया.

श्रीमहंत सुधीर गिरि ज्यादातर अखाड़े की प्रौपर्टी की देखरेख में व्यस्त रहते थे. वह अकसर अखाड़े के संतों द्वारा जमीन बेचने का विरोध करते थे. अखाड़े में प्रौपर्टी डीलरों के आने पर उन्हें ऐतराज रहता था, इसलिए वह अपने अखाड़े में किसी प्रौपर्टी डीलर को घुसने नहीं देते थे.

इसी अखाड़े में आशीष शर्मा उर्फ टुल्ली काम करता था. वह कनखल के रहने वाले सुभाष शर्मा का बेटा था. अखाड़े की काफी जमीनजायदाद थी. आशीष का काम अखाड़े की आयव्यय का ब्यौरा रखना था. सालों पहले आशीष ने अखाड़े के संतों से कुछ जमीन सस्ते में खरीद कर महंगे दामों में बेच दी थी.

इस के बाद वह कुछ प्रौपर्टी डीलरों व बिल्डरों से भी जुड़ गया था. सन 2004 में जब श्रीमहंत सुधीर गिरि गुरु हनुमान बाबा इस अखाड़े से जुड़े तो उन्होंने अखाड़े की जमीन बेचने का विरोध किया. इसी बात को ले कर एक बार आशीष और हनुमान बाबा की बहस हुई तो आशीष को अखाड़े से निकाल दिया गया.

सन 2006 में आशीष दोबारा अखाड़े में आया, तो उसे अखाड़े का मुंशी बना दिया गया. कुछ दिनों बाद आशीष ने अखाड़े की एक प्रौपर्टी को बेचने की बात चलाई तो हनुमान बाबा ने इस का विरोध किया.

सन 2010 के कुंभ मेले के दौरान गुरु हनुमान के शिष्य श्रीमहंत सुधीर गिरि को अखाड़े का सचिव बनाया गया तो उन्होंने भी अखाड़े की जमीन बेचने का विरोध करना शुरू कर दिया. इस के एक साल बाद आशीष ने अपनी मरजी से अखाड़े की नौकरी छोड़ दी. प्रौपर्टी के धंधे में आशीष करोड़ों के वारेन्यारे कर चुका था.

आशीष पहले से ही श्रीमहंत से रंजिश रखता था, क्योंकि उन के विरोध की वजह से वह अखाड़े की जमीन नहीं बेच पाया था. इस के अलावा उसे इस बात का भी डर था कि कहीं श्रीमहंत उस के कारनामों की पुलिस प्रशासन के सामने पोलपट्टी न खोल दे, इसलिए आशीष उर्फ टुल्ली ने श्रीमहंत की हत्या कराने की ठान ली.

श्रीमहंत की हत्या करवाने के लिए आशीष ने मुजफ्फरनगर की सरकुलर रोड निवासी प्रौपर्टी डीलर हाजी नौशाद से संपर्क किया. हाजी नौशाद ने आशीष की मुलाकात इम्तियाज और महताब से कराई, जो शूटर थे. दोनों ही शूटर मुजफ्फरनगर में रहते थे. वे दोनों मुजफ्फरनगर के बदमाश थे. 9 लाख रुपए में श्रीमहंत सुधीर गिरि की हत्या की बात तय हो गई.

उस वक्त श्रीमहंत कभी कनखल तो कभी बेलड़ा स्थित महानिर्वाणी अखाड़े में रहते थे. दोनों शूटर कई महीने तक आशीष के साथ बतौर ड्राइवर रहे और श्रीमहंत की रेकी करते रहे.

14 अप्रैल, 2012 को रात 8 बजे श्रीमहंत सुधीर गिरि हरिद्वार से गांव बेलड़ा स्थित महानिर्वाणी अखाड़े जा रहे थे. दोनों शूटर उन का पीछा कर रहे थे. जैसे ही श्रीमहंत की कार रुड़की के निकट बेलड़ा गांव के बाहर पहुंची, दोनों शूटरों ने उन पर फायरिंग कर के उन की हत्या कर दी.

हत्या करने के बाद दोनों शूटर वापस मुजफ्फरनगर चले गए. फिर कुछ महीने बाद ये शूटर हरिद्वार आ कर आशीष के साथ प्रौपर्टी के धंधे में लग गए.

आशीष का प्रौपर्टी का धंधा अच्छा चल रहा था. उस ने एक कंस्ट्रक्शन कंपनी भी बना ली थी. इम्तियाज और महताब को आशीष 25-25 हजार रुपए प्रतिमाह वेतन देता था. इन दोनों शूटरों को उस ने अपने पास इसलिए रख रखा था कि विवाद वाली प्रौपर्टी का सौदा करने में उन का उपयोग कर सके.

मामला एक महंत की हत्या का था, इसलिए पुलिस प्रशासन हरकत में आ गया. तेजतर्रार पुलिस अधिकारियों के अलावा एसटीएफ ने भी श्रीमहंत सुधीर गिरि की हत्या के मामले को सुलझाने की भरसक कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली. जांच अधिकारियों को आशीष उर्फ टुल्ली पर शक तो हुआ था. लेकिन अपनी ऊंची पहुंच की वजह से बच गया था. पुलिस जब भी उस से सख्ती से पूछताछ करती, वह अपनी ऊंची पहुंच के बल पर विवेचना अधिकारी को ही बदलवा देता था.

श्रीमहंत की हत्या को तकरीबन 2 साल बीत चुके थे, इसलिए आशीष और दोनों शूटर निश्चिंत हो गए थे. आशीष इन शूटरों के जरिए देहरादून की एक प्रौपर्टी को हथियाने की योजना बना रहा था. श्रीमहंत की हत्या के बाद तत्कालीन क्षेत्रीय सांसद हरीश रावत अफसोस जताने कनखल स्थित महानिर्वाणी अखाड़े गए थे.

उस वक्त हरीश रावत ने इस हत्याकांड की सीबीआई जांच कराने की मांग तत्कालीन बहुगुणा सरकार से की थी. उत्तराखंड में राजनैतिक बयार बदलने पर हरीश रावत प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो संत समाज में श्रीमहंत सुधीर गिरि हत्याकांड खुलने की आस जागी.

अखिल भारतीय दशनाम गोस्वामी समाज के मीडिया प्रभारी प्रमोद गिरि ने 14 जून, 2014 को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत को पत्र लिख कर श्रीमहंत की हत्या की सीबीआई जांच कराने की मांग की.

प्रमोद गिरि के इस पत्र का जादू की तरह असर हुआ. पत्र पढ़ते ही मुख्यमंत्री हरीश रावत को अपने वे शब्द याद आ गए जो उन्होंने महानिर्वाणी आश्रम में कहे थे. इसलिए उन्होंने श्रीमहंत सुधीर गिरि की हत्या का राज खोलने के लिए प्रदेश पुलिस मुख्यालय को सख्त निर्देश दिए, साथ ही उन्होंने यह हिदायत भी दी कि इस केस की तफतीश करने वाले पुलिस अधिकारियों पर कोई दबाव न बनाया जाए.

एसएसपी डा. सदानंद दाते ने इस हत्याकांड की जांच के लिए एक पुलिस टीम बनाई, जिस में एसपी (सिटी) एस.एस. पंवार, रुड़की के थानाप्रभारी योगेंद्र चौधरी, हरिद्वार के एसओजी प्रभारी नरेंद्र बिष्ट व रुड़की के एसओजी प्रभारी मोहम्मद यासीन को शामिल किया. टीम का निर्देशन एसपी (देहात) अजय सिंह कर रहे थे. केस की फाइल का विस्तृत अध्ययन करने के बाद टीम को आशीष शर्मा उर्फ टुल्ली पर शक हुआ.

तब एसपी (सिटी) एस.एस. पंवार ने आशीष शर्मा को अपने कार्यालय में बुला कर सख्ती से पूछताछ की तो इस हत्या पर पड़ा परदा हट गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि श्रीमहंत की हत्या उसी ने कराई थी. इस के बाद उस ने हत्या की पूरी कहानी पुलिस को बता दी. आशीष से पूछताछ के बाद पुलिस ने 20 जून, 2014 को मुजफ्फरनगर से हाजी नौशाद, इम्तियाज और मेहताब को भी गिरफ्तार कर लिया.

तीनों आरोपियों को हरिद्वार ला कर गहन पूछताछ की गई. पूछताछ में इम्तियाज और महताब ने पुलिस को बताया कि उन की मुलाकात हाजी नौशाद ने ही आशीष शर्मा से कराई थी. उसी के कहने पर उन्होंने श्रीमहंत सुधीर गिरि की हत्या की थी. थानाप्रभारी योगेंद्र चौधरी ने चारों आरोपियों के बयान दर्ज कर लिए. उन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त पिस्टल, एक देशी तमंचा और भारी मात्रा में कारतूस भी बरामद किया गया.

इंसपेक्टर योगेंद्र सिंह चौधरी ने बताया कि इस प्रकरण में आशीष से जुड़े कुछ नेताओं, पत्रकारों  और पुलिस वालों के नाम भी सामने आ रहे हैं. केस में अगर उन की संलिप्तता पाई जाती है तो सुबूत जुटा कर उन के खिलाफ भी काररवाई की जाएगी. पूछताछ और सुबूत जुटा कर सभी अभियुक्तों को कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

असली पुलिस पर भारी नकली पुलिस

15 शादियां करने वाला लुटेरा दूल्हा

पति पत्नी और वो – भाग 1

‘‘मम्मी, मैं जानता हूं कि आप को मेरी एक बात बुरी लग सकती है. वो यह कि सुमन आंटी जो आप की सहेली  हैं, उन का यहां आना मुझे अच्छा नहीं लगता.  और तो और मेरे दोस्त तक कहते हैं कि वह पूरी तरह से गुंडी लगती हैं.’’ बेटे यशराज की यह बात सुन कर मां दीपा उसे देखती ही रह गई.

दीपा बेटे को समझाते हुए बोली, ‘‘बेटा, सुमन आंटी अपने गांव की प्रधान है. वह ठेकेदारी भी करती है. वह आदमियों की तरह कपड़े पहनती है, उन की तरह से काम करती है इसलिए वह ऐसी दिखती है. वैसे एक बात बताऊं कि वह स्वभाव से अच्छी है.’’

मां और बेटे के बीच जब यह बहस हो रही थी तो वहीं कमरे में दीपा का पति बबलू भी बैठा था. उस से जब चुप नहीं रहा गया तो वह बीच में बोल उठा,‘‘दीपा, यश को जो लगा, उस ने कह दिया. उस की बात अपनी जगह सही है. मैं भी तुम्हें यही समझाने की कोशिश करता रहता हूं लेकिन तुम मेरी बात मानने को ही तैयार नहीं होती हो.’’

‘‘यश बच्चा है. उसे हमारे कामधंधे आदि की समझ नहीं है. पर आप समझदार हैं. आप को यह तो पता ही है कि सुमन ने हमारे एनजीओ में कितनी मदद की है.’’ दीपा ने पति को समझाने की कोशिश करते हुए कहा.

‘‘मदद की है तो क्या हुआ? क्या वह अपना हिस्सा नहीं लेती है? और 8 महीने पहले उस ने हम से जो साढ़े 3 लाख रुपए लिए थे. अभी तक नहीं लौटाए.’’ पति बोला.

मां और बेटे के बीच छिड़ी बहस में अब पति पूरी तरह शामिल हो गया था.

‘‘बच्चों के सामने ऐसी बातें करना जरूरी है क्या?’’ दीपा गुस्से में बोली.

‘‘यह बात तुम क्यों नहीं समझती. मैं कब से तुम्हें समझाता आ रहा हूं कि सुमन से दूरी बना लो.’’ बबलू सिंह ने कहा तो दीपा गुस्से में मुंह बना कर दूसरे कमरे में चली गई. बबलू ने भी दीपा को उस समय मनाने की कोशिश नहीं की. क्योंकि वह जानता था कि 2-4 घंटे में वह नार्मल हो जाएगी.

बबलू सिंह उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर के इस्माइलगंज में रहता था. कुछ समय पहले तक इस्माइलगंज एक गांव का हिस्सा होता था. लेकिन शहर का विकास होने के बाद अब वह भी शहर का हिस्सा हो गया है. बबलू सिंह ठेकेदारी का काम करता था. इस से उसे अच्छी आमदनी हो जाती थी इसलिए वह आर्थिकरूप से मजबूत था.

उस की शादी निर्मला नामक एक महिला से हो चुकी थी. शादी के 15 साल बाद भी निर्मला मां नहीं बन सकी थी. इस वजह से वह अकसर तनाव में रहती थी. बबलू सिंह को बैडमिंटन खेलने का शौक था. उसी दौरान उस की मुलाकात लखनऊ के ही खजुहा रकाबगंज मोहल्ले में रहने वाली दीपा से हुई थी. वह भी बैडमिंटन खेलती थी. दीपा बहुत सुंदर थी. जब वह बनठन कर निकलती थी तो किसी हीरोइन से कम नहीं लगती थी.

बैडमिंटन खेलतेखेलते दोनों अच्छे दोस्त बन गए. 40 साल का बबलू उस के आकर्षण में ऐसा बंधा कि शादीशुदा होने के बावजूद खुद को संभाल न सका. दीपा उस समय 20 साल की थी. बबलू की बातों और हावभाव से वह भी प्रभावित हो गई. लिहाजा दोनों के बीच प्रेमसंबंध हो गए. उन के बीच प्यार इतना बढ़ गया कि उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया.

दीपा के घर वालों ने उसे बबलू से विवाह करने की इजाजत नहीं दी. इस की एक वजह यह थी कि एक तो बबलू दूसरी बिरादरी का था और दूसरे बबलू पहले से शादीशुदा था. लेकिन दीपा उस की दूसरी पत्नी बनने को तैयार थी. पति द्वारा दूसरी शादी करने की बात सुन कर निर्मला नाराज हुई लेकिन बबलू ने उसे यह कह कर राजी कर लिया कि तुम्हारे मां न बनने की वजह से दूसरी शादी करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. पति की दलीलों के आगे निर्मला को चुप होना पड़ा क्योंकि शादी के 15 साल बाद भी उस की कोख नहीं भरी थी. लिहाजा न चाहते हुए भी उस ने पति को सौतन लाने की सहमति दे दी.

घरवालों के विरोध को नजरअंदाज करते हुए दीपा ने अपनी उम्र से दोगुने बबलू से शादी कर ली और वह उस की पहली पत्नी निर्मला के साथ ही रहने लगी. करीब एक साल बाद दीपा ने एक बेटे को जन्म दिया जिस का नाम यशराज रखा गया. बेटा पैदा होने के बाद घर के सभी लोग बहुत खुश हुए. अगले साल दीपा एक और बेटे की मां बनी. उस का नाम युवराज रखा. इस के बाद तो बबलू दीपा का खास ध्यान रखने लगा. बहरहाल दीपा बबलू के साथ बहुत खुश थी.

दोनों बच्चे बड़े हुए तो स्कूल में उन का दाखिला करा दिया. अब यशराज जार्ज इंटर कालेज में कक्षा 9 में पढ़ रहा था और युवराज सेंट्रल एकेडमी में कक्षा 7 में. दीपा भी 35 साल की हो चुकी थी और बबलू 55 का. उम्र बढ़ने की वजह से वह दीपा का उतना ध्यान नहीं रख पाता था. ऊपर से वह शराब भी पीने लगा. इन्हीं सब बातों को देखने के बाद दीपा को महसूस होने लगा था कि बबलू से शादी कर के उस ने बड़ी गलती की थी. लेकिन अब पछताने से क्या फायदा. जो होना था हो चुका.

बबलू का 2 मंजिला मकान था. पहली मंजिल पर बबलू की पहली पत्नी निर्मला अपने देवरदेवरानी और ससुर के साथ रहती थी. नीचे के कमरों में दीपा अपने बच्चों के साथ रहती थी. उन के घर से बाहर निकलने के भी 2 रास्ते थे. दीपा का बबलू के परिवार के बाकी लोगों से कम ही मिलनाजुलना  होता था. वह उन से बातचीत भी कम करती थी.

बबलू को शराब की लत हो जाने की वजह से उस की ठेकेदारी का काम भी लगभग बंद सा हो गया था. तब उस ने कुछ टैंपो खरीद कर किराए पर चलवाने शुरू कर दिए थे. उन से होने वाली कमाई से घर का खर्च चल रहा था.

शुरू से ही ऊंचे खयालों और सपनों में जीने वाली दीपा को अब अपनी जिंदगी बोरियत भरी लगने लगी थी. खुद को व्यस्त रखने के लिए दीपा ने सन 2006 में ओम जागृति सेवा संस्थान के नाम से एक एनजीओ बना लिया. उधर बबलू का जुड़ाव भी समाजवादी पार्टी से हो गया. अपने संपर्कों की बदौलत उस ने एनजीओ को कई प्रोजेक्ट दिलवाए.

इसी बीच सन 2008 में दीपा की मुलाकात सुमन सिंह नामक महिला से हुई. सुमन सिंह गोंडा करनैलगंज के कटरा शाहबाजपुर गांव की रहने वाली थी. वह थी तो महिला लेकिन उस की सारी हरकतें पुरुषों वाली थीं. पैंटशर्ट पहनती और बायकट बाल रखती थी. सुमन निर्माणकार्य की ठेकेदारी का काम करती थी. उस ने दीपा के एनजीओ में काम करने की इच्छा जताई. दीपा को इस पर कोई एतराज न था. लिहाजा वह एनजीओ में काम करने लगी.

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असली पुलिस पर भारी नकली पुलिस – भाग 3

इमरान के पास परवीन का नंबर था, उस ने उसे फोन कर दिया. थोड़ी देर में परवीन थाना ग्वालटोली आ पहुंची. उस समय भी वह पुलिस सबइंसपेक्टर की वरदी में थी. उस ने थानाप्रभारी आर.एन. शर्मा के सामने जा कर दोनों हाथ जोड़ कर ‘नमस्ते’ किया तो वह उसे हैरानी से देखते रह गए. वह पुलिस की वरदी में थी. उस के कंधे पर सबइंसपेक्टर के 2 स्टार चमक रहे थे.

उन्होंने बड़े प्यार से पूछा, ‘‘मैडम, तुम किस थाने में तैनात हो?’’

‘‘फिलहाल तो मैं डीआरपी लाइन में हूं.’’ परवीन बड़ी ही शिष्टता से बोली.

‘‘आरआई कौन है?’’ थानाप्रभारी श्री शर्मा ने पूछा तो परवीन बगले झांकने लगी. साफ था, उसे पता नहीं था कि आरआई कौन है. जब वह आरआई का नाम नहीं बता सकी तो थानाप्रभारी ने कहा, ‘‘अपना आईकार्ड दिखाओ.’’

परवीन के पास आईकार्ड होता तब तो दिखाती. उस ने जैसे ही कहा, ‘‘सर, आईकार्ड तो नहीं है.’’ थानाप्रभारी ने थोड़ी तेज आवाज में कहा, ‘‘सचसच बताओ, तुम कौन हो? तुम नकली पुलिस वाली हो न?’’

परवीन ने सिर झुका लिया. थानाप्रभारी आर.एन. शर्मा ने कहा, ‘‘मैं तो उसी समय समझ गया था कि तुम नकली पुलिस वाली हो, जब तुम ने दोनों हाथ जोड़ कर मुझ से नमस्ते किया था. तुम्हें पता होना चाहिए कि पुलिस विभाग में अपने सीनियर अफसर को हाथ जोड़ कर ‘नमस्ते’ करने के बजाय सैल्यूट किया जाता है.

तुम्हारे कंधे पर लगे स्टार भी बता रहे हैं कि स्टार लगाना भी नहीं आता. क्योंकि तुम ने कहीं टे्रनिंग तो ली नहीं है. तुम्हारे कंधे पर जो स्टार लगे हैं, उन की नोक से नोक मिल रही है, जबकि कोई भी पुलिस वाला स्टार लगाता है तो उस की स्टार की नोक दूसरे स्टार की 2 नोक के बीच होती है.’’

परवीन ने देखा कि उस की पोल खुल गई है तो वह जोरजोर से रोने लगी. रोते हुए ही उस ने स्वीकार कर लिया कि वह नकली पुलिस वाली है.

इस के बाद थानाप्रभारी ने लौकअप में बंद गुरुदेव सिंह को बाहर निकलवाया. पूछताछ में उस ने बताया कि वह भी सिपाही है और थाना महू में तैनात है. यहां वह डीआरपी लाइन में रहता है. रोजाना बस से महू अपनी ड्यूटी पर जाता है.

इस के बाद थानाप्रभारी आर.एन. शर्मा ने थाना महू फोन कर के गुरुदेव सिंह के बारे में जानकारी ली तो वहां से बताया गया कि वह उन के यहां सिपाही के रूप में तैनात है. फिर डीआरपी लाइन फोन कर के आरआई से भी उस के बारे में पूछा गया. आरआई ने भी बताया कि वह लाइन में रहता है.

पूछताछ में परवीन ने मान लिया कि उस ने गुरुदेव के खिलाफ फरजी मामला दर्ज कराया था तो थानाप्रभारी ने उसे छोड़ दिया. अब परवीन रोते हुए अपने किए की माफी मांग रही थी.

पूछताछ में उस ने कहा, ‘‘मैं यह वरदी इसलिए पहनती हूं कि कोई मुझ से छेड़छाड़ न करे. इस के अलावा मेरे पिता चाहते थे कि मैं पुलिस अफसर बनूं. मैं ने कोशिश भी की, लेकिन सफल नहीं हुई. पिता का सपना पूरा करने के लिए मैं नकली दरोगा बन गई. मेरे नकली दरोगा होने की जानकारी मेरे अब्बूअम्मी को नहीं है. अगर उन्हें असलियत पता चल गई तो वे जीते जी मर जाएंगे. इसलिए साहब आप उन्हें यह बात मत बताइएगा.’’

पूछताछ के बाद थानाप्रभारी आर.एन. शर्मा ने लोक सेवक प्रतिरूपण अधिनियम की धारा 177 के तहत परवीन के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद उस की गिरफ्तारी की सूचना उस के पिता असलम खान को दी गई.

उज्जैन से इंदौर 53 किलोमीटर दूर है. थाना ग्वालटोली पहुंचने पर जब उसे पता चला कि परवीन नकली दरोगा बन कर सब को धोखा दे रही थी तो वह सन्न रह गया. वह सिर थाम कर बैठ गया. असलम खान बेटी की नादानी से बहुत दुखी हुआ. वह थानाप्रभारी से उस की गलती की माफी मांग कर उसे छोड़ने की विनती करने लगा.

चूंकि परवीन के खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं था, इसलिए थानाप्रभारी ने उसे थाने से ही जमानत दे दी. सिपाही गुरुदेव सिंह ने भी उस के खिलाफ मामला दर्ज नहीं कराया था. क्योंकि वह खुद ही छेड़छाड़ के मामले में फंस रहा था.

लेकिन अगले दिन परवीन के बारे में अखबार में छपा तो लोग पुलिस पर अंगुली उठाने लगे. लोगों का कहना था कि पहले पुलिस को परवीन के बारे में जांच करनी चाहिए थी. क्योंकि इंदौर में आए दिन नकली पुलिस बन कर उन महिलाओं को ठगा जा रहा है, जो गहने पहन कर घर से निकलती हैं.

मौका देख कर नकली पुलिस के गिरोह के सदस्य महिला को रोक कर कहते हैं कि आजकल शहर में लूटपाट की घटनाएं बहुत हो रही हैं. इसलिए आप अपने गहने उतार कर पर्स या रूमाल में रख लीजिए. इस के बाद एक पुलिस वाला महिला के गहने उतरवाता है. उसी दौरान उस का साथी महिला को बातों में उलझा लेता है तो गहने उतरवाने वाला सिपाही महिला की नजर बचा कर गहने की जगह कंकड़ पत्थर बांध कर महिला को पकड़ा देता है.

अब तक पुलिस ऐसे किसी भी नकली पुलिस के गिरोह को नहीं पकड़ सकी थी. इस के बावजूद पुलिस ने हाथ आई उस नकली दरोगा के बारे में जांच किए बगैर छोड़ दिया, इसलिए लोगों में गुस्सा था.

होहल्ला हुआ तो थाना ग्वालटोली पुलिस ने परवीन के बारे में थोड़ीबहुत जांच की. परवीन ने पुलिस को बताया था कि वह एक महीने से सबइंसपेक्टर की वरदी पहन रही है. लेकिन उस की वरदी तैयार करने वाले दरजी का कहना है कि वह एक साल से उस के यहां वरदी सिलवा रही है.

वहीं चिकन की दुकान चलाने वाले नियाज ने पुलिस को बताया कि परवीन उस के यहां से चिकन ले जाती थी. पुलिस का रौब दिखाते हुए वह उस के पूरे पैसे नहीं देती थी. पुलिस की वरदी में होने की वजह से वह बस वालों का किराया नहीं देती थी. कथा लिखे जाने तक पुलिस को कहीं से ऐसी कोई शिकायत नहीं मिली थी कि उस ने किसी को ठगा हो या जबरन वसूली की हो.

शायद यही वजह है कि पुलिस कह रही है कि परवीन के खिलाफ न कोई रिपोर्ट दर्ज है, न उस का कोई पुराना आपराधिक रिकौर्ड है. किसी ने यह भी नहीं कहा है कि उस ने जबरदस्ती वसूली की है. इसलिए उसे थाने से जमानत दे दी गई है. बहरहाल पुलिस अभी उस के बारे में पता कर रही है. जांच पूरी होने के बाद ही उस के खिलाफ आरोपपत्र अदालत में पेश किया जाएगा.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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