वो कमजोर पल: सीमा ने क्या चुना प्यार या परिवार?

वही हुआ जिस का सीमा को डर था. उस के पति को पता चल ही गया कि उस का किसी और के साथ अफेयर चल रहा है. अब क्या होगा? वह सोच रही थी, क्या कहेगा पति? क्यों किया तुम ने मेरे साथ इतना बड़ा धोखा? क्या कमी थी मेरे प्यार में? क्या नहीं दिया मैं ने तुम्हें? घरपरिवार, सुखी संसार, पैसा, इज्जत, प्यार किस चीज की कमी रह गई थी जो तुम्हें बदचलन होना पड़ा? क्या कारण था कि तुम्हें चरित्रहीन होना पड़ा? मैं ने तुम से प्यार किया. शादी की. हमारे प्यार की निशानी हमारा एक प्यारा बेटा. अब क्या था बाकी? सिवा तुम्हारी शारीरिक भूख के. तुम पत्नी नहीं वेश्या हो, वेश्या.

हां, मैं ने धोखा दिया है अपने पति को, अपने शादीशुदा जीवन के साथ छल किया है मैं ने. मैं एक गिरी हुई औरत हूं. मुझे कोई अधिकार नहीं किसी के नाम का सिंदूर भर कर किसी और के साथ बिस्तर सजाने का. यह बेईमानी है, धोखा है. लेकिन जिस्म के इस इंद्रजाल में फंस ही गई आखिर.

मैं खुश थी अपनी दुनिया में, अपने पति, अपने घर व अपने बच्चे के साथ. फिर क्यों, कब, कैसे राज मेरे अस्तित्व पर छाता गया और मैं उस के प्रेमजाल में उलझती चली गई. हां, मैं एक साधारण नारी, मुझ पर भी किसी का जादू चल सकता है. मैं भी किसी के मोहपाश में बंध सकती हूं, ठीक वैसे ही जैसे कोई बच्चा नया खिलौना देख कर अपने पास के खिलौने को फेंक कर नए खिलौने की तरफ हाथ बढ़ाने लगता है.

नहीं…मैं कोई बच्ची नहीं. पति कोई खिलौना नहीं. घरपरिवार, शादीशुदा जीवन कोई मजाक नहीं कि कल दूसरा मिला तो पहला छोड़ दिया. यदि अहल्या को अपने भ्रष्ट होने पर पत्थर की शिला बनना पड़ा तो मैं क्या चीज हूं. मैं भी एक औरत हूं, मेरे भी कुछ अरमान हैं. इच्छाएं हैं. यदि कोई अच्छा लगने लगे तो इस में मैं क्या कर सकती हूं. मैं मजबूर थी अपने दिल के चलते. राज चमकते सूरज की तरह आया और मुझ पर छा गया.

उन दिनों मेरे पति अकाउंट की ट्रेनिंग पर 9 माह के लिए राजधानी गए हुए थे. फोन पर अकसर बातें होती रहती थीं. बीच में आना संभव नहीं था. हर रात पति के आलिंगन की आदी मैं अपने को रोकती, संभालती रही. अपने को जीवन के अन्य कामों में व्यस्त रखते हुए समझाती रही कि यह तन, यह मन पति के लिए है. किसी की छाया पड़ना, किसी के बारे में सोचना भी गुनाह है. लेकिन यह गुनाह कर गई मैं.

मैं अपनी सहेली रीता के घर बैठने जाती. पति घर पर थे नहीं. बेटा नानानानी के घर गया हुआ था गरमियों की छुट्टी में. रीता के घर कभी पार्टी होती, कभी शेरोशायरी, कभी गीतसंगीत की महफिल सजती, कभी पत्ते खेलते. ऐसी ही पार्टी में एक दिन राज आया. और्केस्ट्रा में गाता था. रीता का चचेरा भाई था. रात का खाना वह अपनी चचेरी बहन के यहां खाता और दिनभर स्ट्रगल करता. एक दिन रीता के कहने पर उस ने कुछ प्रेमभरे, कुछ दर्दभरे गीत सुनाए. खूबसूरत बांका जवान, गोरा रंग, 6 फुट के लगभग हाइट. उस की आंखें जबजब मुझ से टकरातीं, मेरे दिल में तूफान सा उठने लगता.

राज अकसर मुझ से हंसीमजाक करता. मुझे छेड़ता और यही हंसीमजाक, छेड़छाड़ एक दिन मुझे राज के बहुत करीब ले आई. मैं रीता के घर पहुंची. रीता कहीं गई हुई थी काम से. राज मिला. ढेर सारी बातें हुईं और बातों ही बातों में राज ने कह दिया, ‘मैं तुम से प्यार करता हूं.’

मुझे उसे डांटना चाहिए था, मना करना चाहिए था. लेकिन नहीं, मैं भी जैसे बिछने के लिए तैयार बैठी थी. मैं ने कहा, ‘राज, मैं शादीशुदा हूं.’

राज ने तुरंत कहा, ‘क्या शादीशुदा औरत किसी से प्यार नहीं कर सकती? ऐसा कहीं लिखा है? क्या तुम मुझ से प्यार करती हो?’

मैं ने कहा, ‘हां.’ और उस ने मुझे अपनी बांहों में समेट लिया. फिर मैं भूल गई कि मैं एक बच्चे की मां हूं. मैं किसी की ब्याहता हूं. जिस के साथ जीनेमरने की मैं ने अग्नि के समक्ष सौगंध खाई थी. लेकिन यह दिल का बहकना, राज की बांहों में खो जाना, इस ने मुझे सबकुछ भुला कर रख दिया.

मैं और राज अकसर मिलते. प्यारभरी बातें करते. राज ने एक कमरा किराए पर लिया हुआ था. जब रीता ने पूछताछ करनी शुरू की तो मैं राज के साथ बाहर मिलने लगी. कभी उस के घर पर, कभी किसी होटल में तो कभी कहीं हिल स्टेशन पर. और सच कहूं तो मैं उसे अपने घर पर भी ले कर आई थी. यह गुनाह इतना खूबसूरत लग रहा था कि मैं भूल गई कि जिस बिस्तर पर मेरे पति आनंद का हक था, उसी बिस्तर पर मैं ने बेशर्मी के साथ राज के साथ कई रातें गुजारीं. राज की बांहों की कशिश ही ऐसी थी कि आनंद के साथ बंधे विवाह के पवित्र बंधन मुझे बेडि़यों की तरह लगने लगे.

मैं ने एक दिन राज से कहा भी कि क्या वह मुझ से शादी करेगा? उस ने हंस कर कहा, ‘मतलब यह कि तुम मेरे लिए अपने पति को छोड़ सकती हो. इस का मतलब यह भी हुआ कि कल किसी और के लिए मुझे भी.’

मुझे अपने बेवफा होने का एहसास राज ने हंसीहंसी में करा दिया था. एक रात राज के आगोश में मैं ने शादी का जिक्र फिर छेड़ा. उस ने मुझे चूमते हुए कहा, ‘शादी तो तुम्हारी हो चुकी है. दोबारा शादी क्यों? बिना किसी बंधन में बंधे सिर्फ प्यार नहीं कर सकतीं.’

‘मैं एक स्त्री हूं. प्यार के साथ सुरक्षा भी चाहिए और शादी किसी भी स्त्री के लिए सब से सुरक्षित संस्था है.’

राज ने हंसते हुए कहा, ‘क्या तुम अपने पति का सामना कर सकोगी? उस से तलाक मांग सकोगी? कहीं ऐसा तो नहीं कि उस के वापस आते ही प्यार टूट जाए और शादी जीत जाए?’

मुझ पर तो राज का नशा हावी था. मैं ने कहा, ‘तुम हां तो कहो. मैं सबकुछ छोड़ने को तैयार हूं.’

‘अपना बच्चा भी,’ राज ने मुझे घूरते हुए कहा. उफ यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था.

‘राज, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम बच्चे को अपने साथ रख लें?’

राज ने हंसते हुए कहा, ‘क्या तुम्हारा बेटा, मुझे अपना पिता मानेगा? कभी नहीं. क्या मैं उसे उस के बाप जैसा प्यार दे सकूंगा? कभी नहीं. क्या तलाक लेने के बाद अदालत बच्चा तुम्हें सौंपेगी? कभी नहीं. क्या वह बच्चा मुझे हर घड़ी इस बात का एहसास नहीं दिलाएगा कि तुम पहले किसी और के साथ…किसी और की निशानी…क्या उस बच्चे में तुम्हें अपने पति की यादें…देखो सीमा, मैं तुम से प्यार करता हूं. लेकिन शादी करना तुम्हारे लिए तब तक संभव नहीं जब तक तुम अपना अतीत पूरी तरह नहीं भूल जातीं.

‘अपने मातापिता, भाईबहन, सासससुर, देवरननद अपनी शादी, अपनी सुहागरात, अपने पति के साथ बिताए पलपल. यहां तक कि अपना बच्चा भी क्योंकि यह बच्चा सिर्फ तुम्हारा नहीं है. इतना सब भूलना तुम्हारे लिए संभव नहीं है.

‘कल जब तुम्हें मुझ में कोई कमी दिखेगी तो तुम अपने पति के साथ मेरी तुलना करने लगोगी, इसलिए शादी करना संभव नहीं है. प्यार एक अलग बात है. किसी पल में कमजोर हो कर किसी और में खो जाना, उसे अपना सबकुछ मान लेना और बात है लेकिन शादी बहुत बड़ा फैसला है. तुम्हारे प्यार में मैं भी भूल गया कि तुम किसी की पत्नी हो. किसी की मां हो. किसी के साथ कई रातें पत्नी बन कर गुजारी हैं तुम ने. यह मेरा प्यार था जो मैं ने इन बातों की परवा नहीं की. यह भी मेरा प्यार है कि तुम सब छोड़ने को राजी हो जाओ तो मैं तुम से शादी करने को तैयार हूं. लेकिन क्या तुम सबकुछ छोड़ने को, भूलने को राजी हो? कर पाओगी इतना सबकुछ?’ राज कहता रहा और मैं अवाक खड़ी सुनती रही.

‘यह भी ध्यान रखना कि मुझ से शादी के बाद जब तुम कभी अपने पति के बारे में सोचोगी तो वह मुझ से बेवफाई होगी. क्या तुम तैयार हो?’

‘तुम ने मुझे पहले क्यों नहीं समझाया ये सब?’

‘मैं शादीशुदा नहीं हूं, कुंआरा हूं. तुम्हें देख कर दिल मचला. फिसला और सीधा तुम्हारी बांहों में पनाह मिल गई. मैं अब भी तैयार हूं. तुम शादीशुदा हो, तुम्हें सोचना है. तुम सोचो. मेरा प्यार सच्चा है. मुझे नहीं सोचना क्योंकि मैं अकेला हूं. मैं तुम्हारे साथ सारा जीवन गुजारने को तैयार हूं लेकिन वफा के वादे के साथ.’

मैं रो पड़ी. मैं ने राज से कहा, ‘तुम ने पहले ये सब क्यों नहीं कहा.’

‘तुम ने पूछा नहीं.’

‘लेकिन जो जिस्मानी संबंध बने थे?’

‘वह एक कमजोर पल था. वह वह समय था जब तुम कमजोर पड़ गई थीं. मैं कमजोर पड़ गया था. वह पल अब गुजर चुका है. उस कमजोर पल में हम प्यार कर बैठे. इस में न तुम्हारी खता है न मेरी. दिल पर किस का जोर चला है. लेकिन अब बात शादी की है.’

राज की बातों में सचाई थी. वह मुझ से प्यार करता था या मेरे जिस्म से बंध चुका था. जो भी हो, वह कुंआरा था. तनहा था. उसे हमसफर के रूप में कोई और न मिला, मैं मिल गई. मुझे भी उन कमजोर पलों को भूलना चाहिए था जिन में मैं ने अपने विवाह को अपवित्र कर दिया. मैं परपुरुष के साथ सैक्स करने के सुख में, देह की तृप्ति में ऐसी उलझी कि सबकुछ भूल गई. अब एक और सब से बड़ा कदम या सब से बड़ी बेवकूफी कि मैं अपने पति से तलाक ले कर राज से शादी कर लूं. क्या करूं मैं, मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था.  मैं ने राज से पूछा, ‘मेरी जगह तुम होते तो क्या करते?’

राज हंस कर बोला, ‘ये तो दिल की बातें हैं. तुम्हारी तुम जानो. यदि तुम्हारी जगह मैं होता तो शायद मैं तुम्हारे प्यार में ही न पड़ता या अपने कमजोर पड़ने वाले क्षणों के लिए अपनेआप से माफी मांगता. पता नहीं, मैं क्या करता?’

राज ये सब कहीं इसलिए तो नहीं कह रहा कि मैं अपनी गलती मान कर वापस चली जाऊं, सब भूल कर. फिर जो इतना समय इतनी रातें राज की बांहों में बिताईं. वह क्या था? प्यार नहीं मात्र वासना थी? दलदल था शरीर की भूख का? कहीं ऐसा तो नहीं कि राज का दिल भर गया हो मुझ से, अपनी हवस की प्यास बुझा ली और अब विवाह की रीतिनीति समझा रहा हो? यदि ऐसी बात थी तो जब मैं ने कहा था कि मैं ब्याहता हूं तो फिर क्यों कहा था कि किस किताब में लिखा है कि शादीशुदा प्यार नहीं कर सकते?

राज ने आगे कहा, ‘किसी स्त्री के आगोश में किसी कुंआरे पुरुष का पहला संपर्क उस के जीवन का सब से बड़ा रोमांच होता है. मैं न होता कोई और होता तब भी यही होता. हां, यदि लड़की कुंआरी होती, अकेली होती तो इतनी बातें ही न होतीं. तुम उन क्षणों में कमजोर पड़ीं या बहकीं, यह तो मैं नहीं जानता लेकिन जब तुम्हारे साथ का साया पड़ा मन पर, तो प्यार हो गया और जिसे प्यार कहते हैं उसे गलत रास्ता नहीं दिखा सकते.’

मैं रोने लगी, ‘मैं ने तो अपने हाथों अपना सबकुछ बरबाद कर लिया. तुम्हें सौंप दिया. अब तुम मुझे दिल की दुनिया से दूर हकीकत पर ला कर छोड़ रहे हो.’

‘तुम चाहो तो अब भी मैं शादी करने को तैयार हूं. क्या तुम मेरे साथ मेरी वफादार बन कर रह सकती हो, सबकुछ छोड़ कर, सबकुछ भूल कर?’ राज ने फिर दोहराया.

इधर, आनंद, मेरे पति वापस आ गए. मैं अजीब से चक्रव्यूह में फंसी हुई थी. मैं क्या करूं? क्या न करूं? आनंद के आते ही घर के काम की जिम्मेदारी. एक पत्नी बन कर रहना. मेरा बेटा भी वापस आ चुका था. मुझे मां और पत्नी दोनों का फर्ज निभाना था. मैं निभा भी रही थी. और ये निभाना किसी पर कोई एहसान नहीं था. ये तो वे काम थे जो सहज ही हो जाते थे. लेकिन आनंद के दफ्तर और बेटे के स्कूल जाते ही राज आ जाता या मैं उस से मिलने चल पड़ती, दिल के हाथों मजबूर हो कर.

मैं ने राज से कहा, ‘‘मैं तुम्हें भूल नहीं पा रही हूं.’’

‘‘तो छोड़ दो सबकुछ.’’

‘‘मैं ऐसा भी नहीं कर सकती.’’

‘‘यह तो दोतरफा बेवफाई होगी और तुम्हारी इस बेवफाई से होगा यह कि मेरा प्रेम किसी अपराधकथा की पत्रिका में अवैध संबंध की कहानी के रूप में छप जाएगा. तुम्हारा पति तुम्हारी या मेरी हत्या कर के जेल चला जाएगा. हमारा प्रेम पुलिस केस बन जाएगा,’’ राज ने गंभीर होते हुए कहा.

मैं भी डर गई और बात सच भी कही थी राज ने. फिर वह मुझ से क्यों मिलता है? यदि मैं पूछूंगी तो हंस कर कहेगा कि तुम आती हो, मैं इनकार कैसे कर दूं. मैं भंवर में फंस चुकी थी. एक तरफ मेरा हंसताखेलता परिवार, मेरी सुखी विवाहित जिंदगी, मेरा पति, मेरा बेटा और दूसरी तरफ उन कमजोर पलों का साथी राज जो आज भी मेरी कमजोरी है.

इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. पति को भनक लगी. उन्होंने दोटूक कहा, ‘‘रहना है तो तरीके से रहो वरना तलाक लो और जहां मुंह काला करना हो करो. दो में से कोई एक चुन लो, प्रेमी या पति. दो नावों की सवारी तुम्हें डुबो देगी और हमें भी.’’

मैं शर्मिंदा थी. मैं गुनाहगार थी. मैं चुप रही. मैं सुनती रही. रोती रही.

मैं फिर राज के पास पहुंची. वह कलाकार था. गायक था. उसे मैं ने बताया कि मेरे पति ने मुझ से क्याक्या कहा है और अपने शर्मसार होने के विषय में भी. उस ने कहा, ‘‘यदि तुम्हें शर्मिंदगी है तो तुम अब तक गुनाह कर रही थीं. तुम्हारा पति सज्जन है. यदि हिंसक होता तो तुम नहीं आतीं, तुम्हारे मरने की खबर आती. अब मेरा निर्णय सुनो. मैं तुम से शादी नहीं कर सकता. मैं एक ऐसी औरत से शादी करने की सोच भी नहीं सकता जो दोहरा जीवन जीए. तुम मेरे लायक नहीं हो. आज के बाद मुझ से मिलने की कोशिश मत करना. वे कमजोर पल मेरी पूरी जिंदगी को कमजोर बना कर गिरा देंगे. आज के बाद आईं तो बेवफा कहलाओगी दोनों तरफ से. उन कमजोर पलों को भूलने में ही भलाई है.’’

मैं चली आई. उस के बाद कभी नहीं मिली राज से. रीता ने ही एक बार बताया कि वह शहर छोड़ कर चला गया है. हां, अपनी बेवफाई, चरित्रहीनता पर अकसर मैं शर्मिंदगी महसूस करती रहती हूं. खासकर तब जब कोई वफा का किस्सा निकले और मैं उस किस्से पर गर्व करने लगूं तो पति की नजरों में कुछ हिकारत सी दिखने लगती है. मानो कह रहे हों, तुम और वफा. पति सभ्य थे, सुशिक्षित थे और परिवार के प्रति समर्पित.

कभी कुलटा, चरित्रहीन, वेश्या नहीं कहा. लेकिन अब शायद उन की नजरों में मेरे लिए वह सम्मान, प्यार न रहा हो. लेकिन उन्होंने कभी एहसास नहीं दिलाया. न ही कभी अपनी जिम्मेदारियों से मुंह छिपाया.

मैं सचमुच आज भी जब उन कमजोर पलों को सोचती हूं तो अपनेआप को कोसती हूं. काश, उस क्षण, जब मैं कमजोर पड़ गई थी, कमजोर न पड़ती तो आज पूरे गर्व से तन कर जीती. लेकिन क्या करूं, हर गुनाह सजा ले कर आता है. मैं यह सजा आत्मग्लानि के रूप में भोग रही थी. राज जैसे पुरुष बहका देते हैं लेकिन बरबाद होने से बचा भी लेते हैं.

स्त्री के लिए सब से महत्त्वपूर्ण होती है घर की दहलीज, अपनी शादी, अपना पति, अपना परिवार, अपने बच्चे. शादीशुदा औरत की जिंदगी में ऐसे मोड़ आते हैं कभीकभी. उन में फंस कर सबकुछ बरबाद करने से अच्छा है कि कमजोर न पड़े और जो भी सुख तलाशना हो, अपने घरपरिवार, पति, बच्चों में ही तलाशे. यही हकीकत है, यही रिवाज, यही उचित भी है.

दिल, दौलत और दगाबाज दोस्त

उत्तरी अमेरिका के शहर लास वेगास को दुनिया का फन सिटी माना जाता है. वहां चौबीसों घंटे जुआ खेला जाता है, इसलिए वहां जुआ खेलने वालों का जमघट लगा रहता है. यहां सिर्फ जुआ ही नहीं खेला जाता, सैक्स और फैशनेबल कपड़ों का भी व्यापार होता है. इस की वजह से यहां अपराधी भी बहुत हैं. यहां रातदिन टौपलेस लड़कियों के डांस शो और शराब के साथ जुआ चलता रहता है.

इस शहर की रौनक सालोंसाल से ज्यों की त्यों बनी है. कसीनो में डूबी रातों, स्पा बाथ के जलवे और सैक्स का मजा लूटने यहां तमाम पर्यटक आते हैं. कसीनो में पैसे वाले लोग हजारोंलाखों रुपयों की बाजियों में डूबे रहते हैं. एक तरफ बाजी जीतने वाले को खुशी होती है तो दूसरी ओर हजारों लाखों हारने वाले पर भी ‘जीत’ का नशा छाया रहता है.

कसीनो का मायाजाल ही ऐसा होता है कि हारने का भी गम नहीं होता. वह इसी उम्मीद में रहता है कि कभी उस का भी समय आ सकता है. 17 सितंबर, 1996 की रात निवेडा वैली पर काले बादलों का ऐसा साया मंडराया, जो कभी फीका नहीं पड़ा. निवेडा वासियों के दिल में अब घोड़ों, जुआ और लड़कियों के शौकीन टेड बिनियन की सिर्फ यादें ही रह गई हैं.

स्मार्ट, गणित में माहिर और बेशुमार दौलत का मालिक टेड के पास इतनी दौलत थी कि नोट गिनने वाली मशीन भी थक जाए. खतरों से खेलने वाला, मौत से न डरने वाला, टेड आखिर में मारा गया. जो दौलत उसे जान से प्यारी थी, उसी दौलत की वजह से उसे जान गंवानी पड़ी.

टेड बिनियन लड़कियों का भी खूब शौकीन था. उसे हर रोज एक नई लडक़ी की तलाश होती थी. पैसा उस के पास था ही, इसलिए हर रात उसे नई लडक़ी आसानी से मिल जाती थी. उस रात वह लडक़ी की ही तलाश में चिताह क्लब पहुंचा तो वहां उस की मुलाकात साथ वाली टेबल पर बैठी सैंडी मर्फी से हुई.

टेड बारबार उसी की ओर देख रहा था. उस के इस तरह देखने से सैंडी को अंदाजा हो गया कि वह क्या चाहता है. सैंडी को पता था कि टेड अरबपति है. टेड ने सैंडी को अपनी तरफ खींचने की बहुत कोशिश की, लेकिन उस ने भाव नहीं दिया.

तब उस ने उसे नोटों की गड्डी दिखाई. लेकिन सैंडी ने उसे लौटाते हुए कहा, “तुम ने मुझे समझा क्या है? तुम्हें क्या लगता है कि पैसे ले कर मैं तुम्हारे साथ चल दूंगी.”

टेड ने सोचा था कि सैंडी भी अन्य लड़कियों की तरह होगी, लेकिन वह वैसी नहीं थी. जबकि यह उस की एक अदा थी, जिस की बदौलत वह टेड को अपनी ओर आकर्षित करने में कामयाब हो गई थी. उस के इस अंदाज से टेड अंदर तक घायल हो गया था. लड़कियों को सिर्फ मौजमस्ती की चीज समझने वाले टेड के दिल में सैंडी अपनी इस अदा से उतर गई थी.

जबकि सही बात यह थी कि सैंडी पैसों की तलाश में ही कैलिफोर्निया से लास वेगास आई थी. वह पैसों के लिए क्लबों में टौपलेस डांस करती थी. सैंडी की यह अदा टेड के लिए दिखावा भर थी. वह टेड की अमीरी और खुले दिल से अनजान नहीं थी. वह खुद उसे अपनी ओर खींचना चाहती थी. जिस में वह कामयाब भी हो गई थी.

इस के बाद उन्हें मिलते देर नहीं लगी. उन की मुलाकातें होने लगीं. एक लंबे समय के बाद सैंडी को पता चला कि टेड ही उस कसीनो का मालिक है, जहां वह काम करती थी. 2 सप्ताह में ही सैंडी की जिंदगी बदल गई थी.

टेड की पत्नी को जब पति और सैंडी के प्रेम के बारे में पता चला तो उस की पत्नी डौरिस अपनी 15 वर्षीया बेटी को ले कर चली गई. उस ने तलाक का मुकदमा करने में भी देर नहीं की. टेड शराब तो पीता ही था, पत्नी के जाने के बाद हेरोइन भी लेने लगा.

डोरिस के घर से जाते ही जो सैंडी पैसों की खातिर हर रात क्लबों में जिस्म दिखाने का नाच करती थी, वह अरबपति के घर की मालकिन बन गई. एक तरह से उस के हाथ सोने का अंडा देने वाली मुर्गी लग गई थी. लास वेगास ने उस की जिंदगी बदल दी थी.

टेड सैंडी की अदाओं पर फिदा था. हर रात उस के साथ बाहर जा कर खाना खाता, कसीनो में जुआ खेलता और फिर रात भर सैंडी के साथ मजे लेता. यही उस की जिंदगी का नियम बन गया था.

सैंडी ने जिंदगी में जो चहा था, पा लिया था. अब टेड की बेशुमार दौलत सैंडी के हाथों में थी. उस की जिंदगी ने नया करवट तब लिया, जब उस की जिंदगी में टेबिश आया. रिक टेबिश लास वेगास सन 1991 में आया था. यहां उस ने अपनी ट्रांसपोर्ट कंपनी खोली थी. इस के बाद जल्दी ही उस की गिनती करोड़पतियों में होने लगी थी.

पिएरो रेस्टोरेंट के रौसलेट में रिक की मुलाकात टेड से हुई तो जल्दी ही दोनों गहरे दोस्त बन गए. एक दिन टेड रिक को अपने घर ले गया तो वहां उस ने उसे सैंडी से मिलवाया. इस के बाद अक्सर तीनों की मुलाकातें होने लगीं. टेड बिनियन अपने कारोबार में व्यस्त रहता था, जिस की वजह से सैंडी का झुकाव रिक की ओर हो गया. वह उस के साथ शौङ्क्षपग पर भी जाने लगी. इस तरह दोनों करीब आते गए.

इस के बाद एक शाम जब दोनों घर में अकेले थे तो सैंडी ने कहा, “रिक, क्या तुम्हें नहीं लगता कि हमारे बीच अपनापन इस हद तक बढ़ गया है कि अब इसे रिश्ते का नाम दे दिया जाना चाहिए.”

“कैसा रिश्ता?” रिक ने पूछा.

“प्यार का रिश्ता,” सैंडी ने कहा, “तुम्हारे साथ होने पर दिल में कुछकुछ होने लगता है. सच कहूं, मेरा दिल बिलकुल खाली है. टेड को तो मेरे दिल ने सिर्फ नाम का पति माना है. उस बूढ़े में इतनी ताकत कहां है कि उसे पूरी तरह से पति मान लिया जाए. वह शरीर में आग तो लगा देता है, लेकिन बुझाना उस के वश की बात नहीं है.”

रिक उस के कहने का मतलब समझ गया था. वह तो वैसे ही सैंडी पर फिदा था. इस तरह खुले आमंत्रण पर भला कैसे खुद को रोक पाता. उस ने सैंडी को बाहों में भर लिया. इस का नतीजा यह रहा कि दोनों के बीच जिस्मानी दूरी खत्म होते देर नहीं लगी.

दोनों एकांत के साथी बने तो हर छोटीबड़ी बातों के भी राजदार बन गए. इस सब से बेखबर टेड का भी रिक पर विश्वास बढ़ता गया. यही वजह थी कि एक दिन टेड ने उस से पाॄकग के नीचे बने बेसमेंट में दबी चांदी के सिक्कों की बोरियों को कहीं दूसरी जगह ले जाने के बारे में सलाह मांगी. क्योंकि टेड अपनी बहन की दखलंदाजी से परेशान था. वह उस की दौलत हड़पना चाहती थी.

इस के बाद रिक की सलाह पर टेड ने चांदी के सिक्कों से भरी बोरियां लास वेगास से 60 किलोमीटर दूर एक छोटे से गांव पाहरूपम पहुंचा दी. टेड ने वहां जमीन खरीद कर इंजीनियर्स ग्रुप की मदद से एक तहखाना बनवाया था और उसी में अपनी दौलत रखवा दी थी.

17 सितंबर, 1998 की रात लास वेगास के मेट्रोपैलिटन डिपार्टमेंट में एक फोन आया, जिस में एक औरत कह रही थी कि उस के पति की तबीयत बहुत खराब है. उन्होंने सांस लेना बंद कर दिया है.

उस ने घर का पता बताया था 2406, पोलोकिनो लेन. यह टेड बिनियन का घर था. वह फोन सैंडी ने किया था. थोड़ी देर में घर के बाहर 3 जीपें आ कर रुकीं. इसी के साथ डाक्टरों की 2 टीमों के साथ पुलिस वालों की लाइन लग गई. भीतर से सैंडी चिल्लाई, “आप लोग इन्हें बचा लो, यह मर जाएंगे, इन की सांस रुक गई है.”

एक डाक्टर उसे चुप कराने लगा तो बाकी अंदर चले गए. रेंकल ने बाहर आ कर उस से पूछा, “आप कौन हैं?”

“मैं उन की बीवी हूं.” सैंडी बोली.

“आप की पति से आखिरी बार कब मुलाकात हुई थी?”

“आज सुबह.”

रेंकल सैंडी को वहीं छोड़ कर अंदर टेड के पास पहुंचा. उस की नब्ज टटोली तो रुक चुकी थी. शरीर एकदम ठंडा हो चुका था. साफ था टेड मर चुका था. सैंडी भी आ गई और टेड की लाश से लिपट कर रोने लगी. पुलिसकॢमयों ने उसे पकड़ कर अलग किया और सांत्वना दिया.

टेड को जांच के लिए अस्पताल ले जाया गया. वहां सैंडी की तबीयत खराब हो गई तो उसे दवा दे कर सुला दिया गया. कुछ देर में रिक भी आ गया. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में उस ने बताया कि वह टेड और सैंडी दोनों का दोस्त है. वह कारोबार के सिलसिले में शहर से बाहर जा रहा था. टेड की मौत का पता चला तो एयरपोर्ट से सीधे अस्पताल आ गया.

पुलिस ने अनुमान लगाया कि कैसीनों का लाइसैंस न मिलने से टेड ने आत्महत्या की होगी. सैंडी ने बताया कि देर शाम उस ने टेड के हाथ में बंदूक देखी थी. चाह कर भी उसे नींद नहीं आ रही थी. परेशानी की वजह से उन्होंने हेरोइन की ज्यादा डोज ले ली होगी?

जांच करने वाली टीम ने पाया कि टेड बिनियन की मौत आत्महत्या नहीं थी, बल्कि उसे आत्महत्या दिखाने की कोशिश की गई थी. जांच में उस के कमरे से जो एक्सानेक्स की शीशी मिली थी, उस की अधिक डोज देने से टेड तड़पतड़प कर एक कमरे से दूसरे कमरे में भटका होगा. कमरा बंद होने की वजह से छलांग लगाने का भी कोई रास्ता नहीं था. इस दवा के कारण उल्टी भी हुई होगी, जिसे साफ किया गया होगा.

यह अपराध काफी गहराई तक सोच कर किया गया था. टेड बिनियन की मौत के 2 दिनों बाद 19 सितंबर, 1998 पुलिस को सूचना मिली कि 2 बड़ेबड़े भरे हुए ट्रक पाहरूम से बाहर जाते हुए देखे गए हैं. उन दोनों ट्रकों में से एक को रिक टेबिश चला रहा है, जबकि दूसरे को उस का साथी डेविड मेटसन.

दोनों ट्रकों को पीछा कर के पकड़ लिया गया. उस समय तो रिक बहाना कर के बच गया था. उस ने कहा था कि टेड बिनियन ने उसे ये ट्रक मि. एंथनी के पास पहुंचाने को कहा था. लेकिन आगे की जांच में सैंडी और रिक शक के दायरे में आ गए. इस के बाद 14 जून, 1999 को सैंडी मर्फी और रिक टेबिश को गिरफ्तार कर लिया गया.

पूछताछ में पता चला कि जिस रात टेड का कत्ल हुआ था, दोनों होटल पेनिनसुला में एक साथ दिखाई दिए थे. होटल का कमरा मिस्टर एंड मिसेज टेबिश के नाम से बुक कराया गया था. रात गुजारने के बाद दोनों सुबह वहां से एक साथ घर के लिए निकले थे. लेकिन उस समय सबूत न होने की वजह से वे छूट गए थे.

करीब 4 सालों बाद अक्टूबर, 2004 में सैंडी मर्फी और रिक टेबिश को सबूतों के साथ पेशी के लिए कोर्ट में लाया गया, जहां दोनों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. सैंडी ने माना कि उस ने टेड बिनियन के साथ शादी प्यार की वजह से नहीं, उस की दौलत की वजह से की थी. वह उस की दौलत हासिल करना चाहती थी. इस के बाद रिक उस की जिंदगी में आया तो दोनों ने शादी का फैसला कर लिया.

सैंडी की तरह रिक भी टेड की दौलत हड़पना चाहता था. सैंडी ने जब उस से टेड की दौलत हथिया कर शादी करने को कहा तो वह राजी हो गया. सैंडी जानती थी कि टेड हेरोइन के नशे का आदी है. इस के अलावा वह कई तरह की नशीली गोलियां भी खाता था.

उस ने टेड को मारने के लिए इन्हीं चीजों का सहारा लेने का फैसला किया. रिक भी इस पर सहमत हो गया. घटना वाले दिन पहले दोनों ने दवा की हाई डोज दे कर टेड को मार दिया. उस के बाद दोनों ने जिस्मानी भूख मिटाई.

उन्होंने माना कि टेड बिनियन को जबरदस्ती 12 पैकेट हेरोइन खिलाई गई थी. उस के बाद एक्सानेक्स की 10 गोलियां उस के मुंह में ठूंस दी थी, ताकि उस की अरबों की दौलत के मालिक वे खुद बन सकें.

दोनों के अपराध स्वीकार करने और सबूतों के आधार पर जज ने उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई थी. उम्रकैद की सजा मिलने के बाद सैंडी और रिक ने कई बार जमानत की अर्जी दी, लेकिन उन्हे खारिज कर दिया गया.

2 जनवरी, 2010 को फिर सैंडी ने उम्र का हवाला देते हुए जमानत की अर्जी दाखिल की कि अभी उस की उम्र ही क्या है, अपने किए की वह काफी सजा भुगत चुकी है, इसलिए उस के भविष्य को ध्यान में रख कर उसे जमानत दी जाए. लेकिन इस बार भी उसे जमानत नहीं मिल सकी. दोनों की उम्रकैद की सजा बरकरार है. यह प्रकरण इतना विख्यात हुआ था कि हौलीवुड में इस पर फिल्म बनी थी.

खतरनाक मंसूबे में शामिल लड़की

खतरनाक मंसूबे में शामिल लड़की – भाग 3

जीतो के बयान और नरेश तथा कुलदीप की गवाही के आधार पर पुलिस राज के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज कर के उसे जेल भिजवा देगी, क्योंकि जीतो के मैडिकल में इस बात की पुष्टि हो जाती कि उस के साथ शारीरिक संबंध बनाया गया है. छेड़छाड़ के आरोप में तुरंत दोनों की जमानत हो जाती, जबकि दुष्कर्म के आरोप में राज को जेल भेज दिया जाता.

इस काम के लिए सुरजीत ने नरेश और कुलदीप को 5-5 हजार रुपए तथा जीतो को 10 हजार रुपए एडवांस भी दिए थे. इतने ही रुपए उन्हें तब और मिलने थे, जब वे रिपोर्ट की कौपी सुरजीत को देते. यह सारी कारगुजारी सुरजीत की बनाई थी.

बहरहाल, मैं ने परमजीत सिंह से उन तीनों के बयान दर्ज कर के जीतो को अस्पताल ले जा कर मैडिकल कराने को कहा. इस के बाद मैं ने थाना मानावाला से हवलदार जसबीर को बुलवा कर पूछा, “यह राज वाला क्या मामला है?”

उस ने सब कुछ सचसच बता दिया. उस ने कहा कि वह न राज को जानता है और न ही उसे उस के द्वारा की गई किसी छेड़छाड़ की बात मालूम है. सुरजीत ने उसे रुपए दे कर राज पर झूठा मुकदमा दर्ज कराने के लिए कहा था. लेकिन बीच में राज के पत्रकार पिता के आ जाने से वह राज पर कोई कार्यवाई नहीं कर सका था.

जसबीर ने यह भी बताया था कि उस के बाद भी सुरजीत उस के पास आया था और कह रहा था कि वह चाहे जितने रुपए ले ले, लेकिन राज पर दुष्कर्म का केस बना कर उसे जेल भिजवा दे. लेकिन उस ने उसे साफ मना कर दिया था. शायद इसीलिए वह उस का थानाक्षेत्र छोड़ कर अपने मंसूबे को पूरे करने के मेरे थानाक्षेत्र में आया था.

मैं ने जसबीर की मुलाकात राज और अमन सिंह से भी कराई और उसे पूरी कहानी बताई. इस के बाद मैं ने उस से कहा कि सुरजीत ने राज के खिलाफ अपनी बहन से छेड़छाड़ की जो झूठी रिपोर्ट दी थी, उस पर वह उस के खिलाफ कार्यवाई करे. जसबीर इस के लिए तैयार हो गया.

अब तक परमजीत सिंह जीतो का मैडिकल करवा कर लौट आए थे. इस के बाद मैं ने नरेश, कुलदीप और जीतो से पूछा, “इस के बाद सुरजीत ने तुम लोगों से क्या करने को कहा था?”

“उस ने कहा था कि रिपोर्ट दर्ज होने के बाद मैं उसे फोन करूं. इस के बाद वह आता और रिपोर्ट की कापी ले कर मेरे बाकी रुपए देता.” जीतो ने कहा.

“ठीक है, तुम उसे फोन कर के बताओ कि रिपोर्ट दर्ज हो गई है. पुलिस राज को पकड़ने उस के औफिस गई है.”

मेरे कहने पर जीतो ने सुरजीत को फोन कर के वही सब कहा, जो मैं ने उसे समझाया था. सुरजीत ने जीतो से आधे घंटे बाद मेन बाईपास चौक पर मिलने को कहा. मैं ने परमजीत सिंह और जसबीर के नेतृत्व में एक टीम तैयार की और जीतो के साथ सुरजीत को पकड़ने के लिए भेज दी.

दरअसल, मुझे सुरजीत पर बहुत गुस्सा आ रहा था. इसलिए नहीं कि राज मेरे दोस्त अमन सिंह का बेटा था, गुस्सा इस बात पर आ रहा था कि बहन की गलती मान कर उसे समझाने के बजाय वह एक निर्दोष को सजा दिलवाना चाहता था, वह भी सिर्फ अपने अहं और झूठी शान के लिए. इस तरह के लोग एक तरह से समाज पर कलंक हैं और घृणा के पात्र बन जाते हैं.

बहरहाल, सुरजीत को पकड़ने गई टीम खाली हाथ लौट आई. वह बाईपास पर नहीं आया. पुलिस टीम उस के घर भी गई, लेकिन वह घर पर नहीं मिला. जीतो ने कई बार फोन कर के उस से बात करने की कोशिश की, लेकिन उस ने अपना फोन बंद कर दिया था. शायद उसे पुलिसिया कार्यवाई की भनक लग गई थी. वह फरार हो गया था.

बहरहाल, जीतो, नरेश और कुलदीप के खिलाफ मैं ने कार्यवाई करनी शुरू कर दी. नरेश पर मैं ने जीतो से दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज करना चाहा तो जीतो और नरेश मेरे पैर पकड़ कर गिड़गिड़ाने लगे.

नरेश ने जीतो के साथ शारीरिक संबंध तो बनाए ही थे, जो मैडिकल रिपोर्ट से भी स्पष्ट हो गए थे. लेकिन जीतो ने कहा, “साहब, हम से गलती हो गई है, हमें माफ कर दें. यह संबंध मेरी मरजी से बने थे.”

जीतो के इस नए बयान पर मैं ने नरेश के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज करने के बजाय इम्मोरल ट्रैफिकिंग एक्ट (देह व्यापार) का मुकदमा दर्ज कर उन्हें हिरासत में ले लिया. कुलदीप के खिलाफ मैं ने जीतो से छेड़छाड़ का मुकदमा दर्ज किया. अगले दिन तीनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जमानत मिल गई.

यह संयोग की ही बात थी कि राज मेरे पत्रकार दोस्त का बेटा था, वरना सुरजीत अपनी घिनौनी योजना को अंजाम दे कर एक भले लडक़े को जेल भिजवा कर उस पर एक ऐसा कलंक का टीका लगा देता, जो पूरी जिंदगी न छूटता. इस से उस का जीवन भी अंधकारमय हो जाता.

प्रस्तुति:

—कथा सत्य घटना पर आधारित, पात्रों के नाम बदले गए हैं.

खतरनाक मंसूबे में शामिल लड़की – भाग 2

किशोरीलाल की एक जवान बेटी थी सुधा, जो ग्रैजुएशन कर के उन दिनों घर में बैठी थी. वह पोस्टग्रैजुएशन करना चाहती थी, लेकिन एडमिशन में देरी थी. किशोरीलाल ने सोचा कि सुधा पूरे दिन घर में बैठी बोर होती रहती है, क्यों न इस बीच अस्थाई रूप से उसे अपनी कंपनी में लगवा दे. मन भी बहलता रहेगा, 4 पैसे कमा कर भी लाएगी.

उस ने इस विषय पर राज से बात की तो उसे भला क्या ऐतराज होता. जहां 40-50 लडक़ेलड़कियां काम कर रहे थे, वहां एक और सही. सुधा ने फाइनैंस कंपनी जौइन कर ली. वह खुले विचारों वाली आधुनिक युवती थी. बातचीत में किसी से भी जल्दी घुलमिल जाना और दोस्ती कर लेना उस की फितरत थी.

स्कूल में पढ़ते समय से ही उस की कई लडक़ों से दोस्ती थी. उन में से किसी एक ने उसे धोखा भी दिया था. बहरहाल राज को देखते ही वह उस की ओर आकर्षित हो गई थी, क्योंकि राज के खूबसूरत होने के साथसाथ कंपनी में भी उस की बड़ी इज्जत थी. कोई न कोई बहाना बना कर सुधा राज के नजदीक जाने की कोशिश करने लगी.

इस कोशिश में उस ने घुमाफिरा कर कई बार उस से प्यार करने का इशारा किया. उस ने उस से यहां तक कह दिया कि वह एक लडक़े से प्यार करती थी, लेकिन उस ने उसे धोखा दे दिया था. अब मांबाप उस की शादी करना चाहते हैं, लेकिन वह अभी शादी नहीं करना चाहती.

राज ने उस की कोशिश को नाकाम करते हुए उसे समझाया कि उसे इन बातों पर ध्यान न दे कर अपने काम पर ध्यान देना चाहिए. फिर अभी उसे आगे की पढ़ाई भी करनी है. उसे अपना कैरियर बनाना है. अभी उस का पूरा जीवन पड़ा है. उसे इस तरह की फिजूल की बातें दिमाग में नहीं लाना चाहिए.

राज की बातों पर गौर किए बगैर सुधा सुधरने के बजाय मैसेज करने लगी. उन संदेशों में वह राज से सलाह मांगती कि अब उसे क्या करना चाहिए, साथ ही बीचबीच में प्यार के इजहार वाले मैसेज भी कर देती थी. सुधा के इन संदेशों से परेशान हो कर राज ने उसे संदेश भेजा कि वह उस का समय बरबाद न करे, जैसा उस ने उसे समझाया है, वह वैसा ही करे.

संयोग से किसी दिन सुधा का फोन उस के भाई सुरजीत के हाथ लग गया. उस ने मैसेज बौक्स में बहन के भेजे मैसेज देखे तो गुस्से से पागल हो उठा. उस ने बहन को समझाने के बजाय राज को सबक सिखाने का इरादा बना लिया. जबकि राज का इस मामले में कोई दोष नहीं था. बहन से उस ने कुछ कहना इसलिए उचित नहीं समझा, क्योंकि वह उस की फितरत को जानता था. उस ने मैसेज वाली बात मांबाप को भी बता दी थी.

यह सब सुन कर किशोरीलाल तो इतना शर्मिंदा हुए कि उन्होंने नौकरी पर जाना ही बंद कर दिया. सुधा की भी नौकरी छुड़वा दी गई. सुरजीत ने राज को सबक सिखाने के लिए थाने के अपने एक परिचित हवलदार को कुछ रुपए दे कर कहा कि राज उस की बहन से छेड़छाड़ कर के उसे परेशान करता है. वह उसे किसी झूठे मुकदमे में फंसा कर जेल भिजवा दे.

हवलदार, जिस का नाम जसबीर था, ने फोन कर के राज को थाने बुलाया. फोन पर उस ने राज को धमकाते हुए कहा था कि थाने में उस के खिलाफ रेप का मुकदमा दर्ज है. अगर वह थाने नहीं आया तो वह उसे उस के औफिस से गिरफ्तार कर लेगा.

समझदारी दिखाते हुए राज ने यह बात अपने पत्रकार पिता अमन सिंह को बता दी, साथ ही सुधा द्वारा भेजे गए संदेशों के बारे में भी बता दिया. अमन इस बारे में मेरे पास सलाह लेने आया. मेरे पास आने से पहले उस ने हवलदार जसबीर सिंह को फोन कर के अपना परिचय दे कर पूछा था कि उस के बेटे राज से उसे ऐसा क्या काम है, जो वह उसे थाने बुला रहा है.

पत्रकार एसोसिएशन के अध्यक्ष ने भी फोन कर के हवलदार जसबीर सिंह से यही बात पूछी तो उस दिन के बाद उस ने राज को कभी फोन नहीं किया. इस के बाद अमन सिंह इस मामले को सुलझाने के लिए राज की कंपनी के मैनेजर से मिले. उन्होंने किशोरीलाल को औफिस में बुलवाया, जिस से आमनेसामने बैठ कर बातचीत हो सके और जो भी गलतफहमी हो दूर की जा सके.

तय समय पर राज, अमन सिंह और किशोरीलाल मैनेजर की केबिन में इकट्ठा हुए. किशोरीलाल के साथ उस की पत्नी और बेटा सुरजीत भी आया था. सुरजीत के बारे में जैसा मुझे पता चला था, उस के हिसाब से वह अपनी मां के लाड़प्यार में बिगड़ा आवारा किस्म का लडक़ा था. वह दिन भर गुंडागर्दी और आवारागर्दी किया करता था. वह खुद को किसी तीसमार खां से कम नहीं समझता था.

बातचीत शुरू हुई तो सुरजीत और उस की मां किशोरीलाल को चुप करा कर जोरजोर से बोल कर राज पर झूठे आरोप लगाने लगे. बात यहीं तक सीमित नहीं रही, वे उसे सजा दिलाने की बात कर रहे थे. अंत में मैनेजर साहब को हस्तक्षेप करना पड़ा.

उन्होंने कहा, “मैं राज को 5 सालों से जानता हूं. वह कैसा है, यह तुम लोगों को बताने की जरूरत नहीं है. रही बात सुधा की तो उसे भी 10 दिनों में जान लिया. फायदा इसी में है कि बात को यहीं खत्म कर दिया जाए.”

उस दिन समझौता तो हो गया, लेकिन जातेजाते सुरजीत ने राज को धमकाते हुए कहा, “मैं तुम्हें देख लूंगा.”

यह बात भी यहीं खत्म हो गई. उस दिन जो समझौता हुआ था, सुरजीत उस से बिलकुल खुश नहीं था. वह राज को सजा दिलाना चाहता था. सजा भी ऐसी कि वह मुंह दिखाने लायक न रहे.

2 महीने तक शांत रहने के बाद सुरजीत ने राज को सबक सिखाने के लिए एक योजना बनाई. उस योजना में उस ने कालगर्ल जीतो और 2 आवारा लडक़ों नरेश तथा कुलदीप को शामिल किया. उस ने उन से कहा कि योजना सफल होने पर वह उन्हें मोटी रकम देगा.

उस की योजना के अनुसार, नरेश को किसी सुनसान जगह पर जीतो के साथ शारीरिक संबंध बनाना था. उस के बाद जीतो थाने जा कर शिकायत दर्ज कराती कि उस के साथ दुष्कर्म हुआ है. जीतो पुलिस को उस जगह ले जाती, जहां दुष्कर्म हुआ था. नरेश और कुलदीप वहीं छिपे रहेंगे, जिन्हें पुलिस दुष्कर्म का साथी मान कर थाने ले आती.

थाने आ कर जीतो बताती कि इन दोनों ने दुष्कर्म नहीं किया, इन्होंने केवल छेड़छाड़ की थी. दुष्कर्म इन के दोस्त ने किया था, जो भाग गया है. पुलिस जब नरेश और कुलदीप से उन के दोस्त का नाम पूछती तो वे उस का नाम राज बता कर उस का मोबाइल नंबर देते हुए उस के बारे में पूरी जानकारी दे देते.

जाल में उलझी जिंदगी

खतरनाक मंसूबे में शामिल लड़की – भाग 1

बात उतनी बड़ी नहीं थी, लेकिन इतनी छोटी भी नहीं थी कि हलके में लिया जाता. उस के पीछे का मकसद और साजिश इतनी खतरनाक थी कि पूरी घटना जानने के बाद मैं दंग रह गया था. इस बात ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया था कि आजकल के बच्चे छोटीछोटी बातों को ले कर इतने बड़ेबड़े मंसूबे कैसे बना लेते हैं?

उस दिन मैं थोड़ी देर से थाने पहुंचा था. इस की वजह यह थी कि मेरे बेटे के स्कूल में सालाना समारोह था, इसलिए मुझे वहां जाना पड़ा था.  थाने पहुंच कर मैं ने ड्यूटी अफसर परमजीत सिंह को बुला कर पूछा, “कोई खास बात तो नहीं है?”

“जी कोई खास बात नहीं, बस एक…”

परमजीत बात पूरी कर पाता, मुख्य मुंशी गुरजीत सिंह कुछ फाइलें ले कर हस्ताक्षर कराने आ गया. मैं ने फाइलों पर दस्तखत करते हुए परमजीत सिंह को हाथ से बैठने का इशारा किया. वह मेरे सामने पड़ी कुरसी पर बैठ गए. सभी फाइलोंपर दस्तखत कर के मैं ने मुंशी से 2 चाय भिजवाने को कहा.

मुंशी चला गया तो मैं परमजीत से मुखातिब हुआ, “हां, तो तुम क्या कह रहे थे?”

“सर, लगभग 12 बजे टोल नाके पर तैनात हमारे थाने के पुलिसकर्मियों के पास एक लड़की भागती हांफती आई. उस की हालत बता रही थी कि किसी बात को ले कर वह काफी परेशान थी. पुलिसकर्मियों ने आगे बढ़ कर उस की उस हालत की वजह पूछी तो उस ने हांफते हुए कहा कि वह सतलुज नदी में कोई पूजा सामग्री फेंकने आई थी. सामग्री फेंक कर जैसे ही वह लौटी 2 लडक़ों ने उसे पकड़ लिया और जबरदस्ती खींच कर खेतों में ले गए, जहां उन्होंने उस के साथ जबरदस्ती की. लडक़ों ने उस का मुंह दबा रखा था, जिस से वह चीख भी नहीं सकी.”

परमजीत इतनी बात कर चुप हुआ तो पूरी बात जानने के लिए मैं ने कहा, “आगे क्या हुआ?”

“लड़की ने अपना नाम जीतो बताया था. उस की बात सुन कर हवलदार चरण सिंह और इंद्र सिंह ने फोन द्वारा मुझे घटना की सूचना दे कर खुद जीतो द्वारा बताए गए खेत की ओर चल पड़े. उन के खेतों में पहुंचने तक मैं भी मोटरसाइकिल से वहां पहुंच गया.”

जीतो का कहना था कि वे लड़के अभी यहीं कहीं छिपे होंगे, इसलिए हम सभी लडक़ों की तलाश करने लगे. थोड़ी तलाश की तो 2 लड़के सतलुज किनारे एक झाड़ी के पास बैठे मिल गए. जीतो ने उन की शिनाख्त करते हुए कहा कि इन दोनों ने उस के साथ दुष्कर्म नहीं किया, इन्होंने केवल छेड़छाड़ की थी. दुष्कर्म करने वाला कोई और लडक़ा था.

“तो क्या 3 लड़के थे?” मैं ने पूछा तो परमजीत ने कहा, “जी सर, दुष्कर्म करने वाला तीसरा लडक़ा भाग गया था. सर, मैं जीतो और उन दोनों लडक़ों को थाने ले आया हूं. अब आप बताइए कि आगे क्या किया जाए?”

“अरे भई करोगे क्या, लड़की का मैडिकल कराओ, बयान लो और उस फरार लड़के के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के उसे पकड़ो और क्या करोगे. वैसे ये सब रहने वाले कहां के है. दुष्कर्म कर के जो लडक़ा भागा है, उस का क्या नाम है, वह कहां रहता है?” मैं ने पूछा.

मेरी इस बात पर परमजीत कुछ परेशान सा हो गया. मैं ने आंखों से आगे बताने का इशारा किया तो उस ने कहा, “सर, इन दोनों लडक़ों के नाम तो नरेश और कुलदीप हैं. दुष्कर्म कर के जो लडक़ा भागा है. उस का नाम राज है और वह आप के दोस्त पत्रकार अमन सिंह का बेटा है.”

“क्या… अमन का बेटा राज?” मैं चौंका. पत्रकार अमन सिंह सचमुच मेरा अच्छा दोस्त था. वह निहायत ही शरीफ और शांतिप्रिय आदमी था. झूठ से उसे सख्त नफरत थी. उस ने कभी झूठी खबरें नहीं लिखी थीं. अपने काम से काम रखने वाला अमन अपनी नेकनीयती की वजह से हमेशा आर्थिक तंगी से जूझता रहता था. उस के सिखाए दर्जनों लड़के दुनियादारी के मजे कर रहे थे, लेकिन वह वैसा नहीं बन पाया था.

मैं ने दिमाग पर जोर डाला तो मुझे याद आया कि अमन के बेटे का नाम राज ही है, क्योंकि 2-3 महीने पहले अमन किसी मामले में मुझ से सलाह लेने आया था, तब उस ने बेटे का नाम ले कर कोई चर्चा की थी. तब मुझे पता चला था कि उस के बेटे का नाम राज है.

मैं हैरान था कि अमन जैसे शरीफ आदमी का बेटा इस तरह का काम कैसे कर सकता है? लेकिन आज के समय में किसी के बारे में कोई राय रखना उचित नहीं है. जरूरी नहीं कि बाप शरीफ हो तो बेटा भी शरीफ ही हो.

बहरहाल, अमन को उस दिन मेरे पास आना था, क्योंकि उसे कुछ रुपयों की जरूरत थी. 2 दिन पहले उस ने फोन कर के मुझ से कहा था तो मैं ने उसे उस दिन आ कर रुपए ले जाने के लिए कहा था. वह किसी भी समय आ सकता था. मैं सोचने लगा कि अमन जब अपने बेटे की इस करतूत के बारे में सुनेगा तो उस पर क्या गुजरेगी?

“उन दोनों लडक़ों को ले आओ.” मैं ने कहा.

मेरे कहने पर परमजीत सिंह ने नरेश और कुलदीप को ला कर मेरे सामने खड़ा कर दिया. दोनों देखने में ही आवारा लग रहे थे. उन्हें देख कर मैं सोच भी नहीं सकता था कि ऐसे घटिया लडक़ों से राज की दोस्ती हो सकती है. फिर भी मैं ने पूछा,

“सचसच बताओ, क्या बात है?”

नरेश थोड़ा तेज दिखाई दे रहा था. उसी ने कहा, “सर, हम ने उसे मना किया था. कहा कि छेड़छाड़ की बात और है, लेकिन वह नहीं माना. लड़की को पकड़ खेत में ले गया और लडक़ी की इज्जत खराब कर दी.”

“वह सब तो ठीक है, लेकिन उस लड़के का नाम क्या है, कौन है वह?”

“सर, उस का नाम राज है. उस के पापा पत्रकार हैं. उन का नाम अमन सिंह है. राज एक फाइनैंस कंपनी में असिस्टैंट मैनेजर है.”

इस के बाद उस ने वही सब मुझे भी बताया, जो उस ने परमजीत को बताया था. नरेश के साथी कुलदीप ने भी वही सब बताया था, जो नरेश ने बताया था. मैं उन से पूछताछ कर ही रहा था कि अमन आ पहुंचा. मुझ से हाथ मिला कर वह मेरे सामने कुरसी पर बैठ गया तो मैं ने शिकायती लहजे में कहा, “तुम्हारे बेटे ने जो किया है, मुझे उस से ऐसी उम्मीद कतई नहीं थी. तुम ने यही सब सिखाया है उसे?”

“मेरा बेटा… आप मेरे किस बेटे की बात कर रहे हैं?”

“राज की और किस की..?”

“क्यों, क्या किया राज ने?” अमन ने हैरानी से पूछा.

“एक लडक़ी के साथ जबरदस्ती की है.”

“जबरदस्ती… क्या मतलब?”

“भई एक लड़की के साथ दुष्कर्म किया है राज ने.” मैं ने आवाज पर जोर दे कर कहा.

“यह आप क्या कह रहे हैं? कहां किस के साथ दुष्कर्म किया है? राज ऐसा कतई नहीं कर सकता.” अमन ने जिद सी करते हुए कहा.

“ऐसा नहीं कर सकता तो क्या मैं झूठ बोल रहा हूं. पूछो राज के इन साथियों से.” मैं ने नरेश और कुलदीप की ओर इशारा कर के कहा, “अपने इन्हीं साथियों के साथ उस ने घटना को अंजाम दिया है. दोनों उसी के दोस्त हैं.”

“आप यह क्या कह रहे हैं. ये आवारा लड़के राज के दोस्त कतई नहीं हो सकते. राज के सिर्फ 3 दोस्त हैं, जिन्हें मैं अच्छी तरह से जानता हूं. तुम इन सडक़छाप लडक़ों को राज का दोस्त कह दोगे तो क्या मैं मान लूंगा.”

दुष्कर्म के मामले में राज का नाम आने से अमन काफी नाराज था. उस ने खीझते हुए कहा, “अच्छा, अब बात समझ में आई, मैं ने आप से कुछ रुपए मांगे थे, नहीं देने का मन था तो मना कर देते. मेरे बेटे पर इस तरह का झूठा आरोप लगाने की क्या जरूरत थी? सच ही कहा गया है, पुलिस वाले की न दोस्ती अच्छी होती है और न दुश्मनी.”

“अमन ये तुम क्या बेकार की बातें कर रहे हो? मैं कुछ भी नहीं कह रहा हूं. जो कुछ भी कह रहे हैं, वह ये लड़के और वह लड़की कह रही है, जिस के साथ राज ने दुष्कर्म किया है. रही बात पैसों की तो उस के लिए मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा था. तुम्हें रुपए देने के लिए ही तो मैं ने बुलाया था.”

“मुझे अब आप की कोई मदद नहीं चाहिए. आप मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिए.”

मैं खामोश हो गया. अमन सिर झुकाए किसी सोच में डूबा बैठा रहा. कुछ देर बाद मैं ने अमन को प्यार से समझाया. लड़की को बुला कर पूरी बात उस के सामने कहलवाई. नरेश और कुलदीप से भी बात कराई. तब जा कर बात उस की समझ में आई.

वह कुछ देर शांत बैठा रहा. उस के बाद अचानक जेब से मोबाइल फोन निकाला और किसी से बात करने लगा. उस की बातचीत से समझ में आया कि उस ने राज को फोन किया था और अपने 2-4 दोस्तों के साथ आने को कहा था.

मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि अमन करना क्या चाहता है. मैं ने अमन के लिए चाय मंगाई. चाय पी कर हम सभी चुपचाप बैठे रहे. वहां की खामोशी बता रही थी कि कोई किसी से बात नहीं करना चाहता.

लगभग आधे घंटे बाद अमन के फोन की घंटी बजी. फोन रिसीव कर के उस ने कहा, “आ जाओ.”

इस के बाद अमन उस से मुखातिब हुआ, “इन तीनों से कहो कि अभी जो लडक़े आएंगे, उन में पहचान कर बताएं कि राज कौन है, जिस ने इस लड़की के साथ जबरदस्ती की है.”

अमन के इतना कहतेकहते 6 लडक़े मेरे औफिस में आ कर खड़े हो गए. सभी लड़के नरेश और कुलदीप से एकदम अलग पढ़ेलिखे और अच्छे घरों के लग रहे थे. मैं ने सब से पहले जीतो से कहा, “बताओ, इन लडक़ों में से कौन राज है, जिस ने तुम्हारे साथ जबरदस्ती की है?”

मेरी बात सुन कर वह बगलें झांकने लगी. मैं ने डांटा तो हड़बड़ा कर उस ने एक लड़के की ओर इशारा कर दिया. मेरे कहने पर परमीत सिंह ने उस लडक़े को खड़ा कर दिया. इस के बाद मैं ने नरेश और कुलदीप से कहा कि वे बताएं कि उन में इन का दोस्त राज कौन है?”

जीतो की तरह वे भी एकदूसरे का मुंह देखने लगे. मैं ने डांटते हुए कहा, “अब पहचान कर बताओ न तुम्हारा दोस्त राज कौन है?”

दोनों हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाने लगे, “साहब, हम नहीं जानते कि इन में से राज कौन है? हमें तो राज का नाम लेने के लिए रुपए दिए गए थे.”

“जी साहब,” नरेश और कुलदीप के सच उगलते ही जीतो ने भी बीच में सच उगल दिया, “ये सच कह रहे हैं साहब. राज को दुष्कर्म के मामले में फंसाने के लिए हम सभी को रुपए दिए गए थे. मैं न तो राज को जानती हूं और न मैं ने कभी उसे देखा है.”

इस के बाद उन तीनों ने जो बताया, उसे सुन कर मैं हैरान रह गया. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि आज की युवा पीढ़ी को यह क्या हो गया है, जो छोटीछोटी बातों पर इतने खतरनाक मंसूबे बना लेती हैं. इस के बाद जीतो, नरेश और कुलदीप से की गई पूछताछ में इस फरजी दुष्कर्म की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस तरह थी.

राज जिस फाइनैंस कंपनी में काम करता था, उसी में उस के साथ ही किशोरीलाल भी काम करता था. उस का काम लोन पास करवाना था. वह सीधासादा पारिवारिक आदमी था. इसलिए राज उस की बहुत इज्जत करता था. इस के अलावा एक वजह यह भी थी कि वह उस के पिता की उम्र का था.

दूर की सोच : प्यार या पैसा

चोट : मिला कत्ल का सुराग

जाल में उलझी जिंदगी – भाग 5

सुबह मैं ने जाहिद को अपने औफिस में बुला कर कहा, “जाहिद मियां, तुम इतना झूठ बोल चुके हो कि अब मैं तुम्हें कोई मौका नहीं दूंगा. तुम यह बताओ कि यह झूठ किस लिए बोला था. अब तुम बताओ कि करामत और तुम्हारी पत्नी कहां हैं?”

“मुझे क्या पता साहब.” उस ने जवाब में कहा.

मैं ने चीख कर पूछा, “तुम्हारी पत्नी और करामत कहां हैं?”

उस के होंठ कांपने लगे, लेकिन आवाज नहीं निकली. मैं ने गरज कर कहा, “जल्दी बोलो…”

इस पर भी उस ने कुछ नहीं बताया तो मैं ने एक हैडकांस्टेबल को बुला कर जाहिद को उस के हवाले कर के कहा, “यह कुछ कहना चाहता है, लेकिन कह नहीं पा रहा है. इस की सुन लो.”

हैडकांस्टेबल उसे पकड़ कर ले गया

मैं ने उन आदमियों में से एक को, जो जाहिद के घर आए थे, बुला कर पूछा, “यहां कब से आए हुए हो?”

“कल सुबह आए थे.”

“पहले कब आए थे?”

“पिछली बार… कोई एक महीना हो गया.”

उसे भेज कर दूसरे को बुलाया, उस से भी यही सवाल किया. उस ने जवाब दिया, “कोई डेढ़दो महीने पहले आए थे.”

मैं ने अभी जाहिद के छोटे भाई को नहीं बुलाया और अपने काम में लग गया. कोई एक घंटे बाद हैडकांस्टेबल हंसता हुआ आया. उस ने कहा, “सर, आप को जाहिद बुला रहा है.”

मैं वहां गया. हैडकांस्टेबल ने उसे जिस पोजीशन में रखा था, जाहिद 15 मिनट से अधिक सहन नहीं कर सकता था. उस की आंखें मांस की तरह लाल हो गई थीं.

मैं ने उसे बिठाया, पानी पिलाया. उस के सामान्य होने पर मैं ने कहा, “देख, तेरे साथ यह जो हुआ है, वह ट्रेलर है. अब भी मुंह नहीं खोला तो समझ ले आगे क्या होगा?”

उस की आंखों से आंसू टपकने लगे. वह बोला, “साहब, मुझे बचा लो.”

मैं ने कहा, “कुछ कहो तो सही, पहले अपना अपराध बताओ, फिर मैं कुछ करूंगा. तुम मेरे दुश्मन नहीं हो, मेरा तुम ने क्या बिगाड़ा है.”

उस की जबान पर बात आती और चली जाती. अपराध स्वीकार करने से पहले हर अपराधी का यही हाल होता है. मैं ने उसे तसल्ली दी, “मुझे यह बताओ कि तुम्हारी पत्नी और करामत कहां हैं?”

“अब वे जिंदा नहीं हैं.”

इस के बाद उस ने जो कहानी सुनाई, उस के अनुसार, वह मुनव्वरी की करतूत से तंग आ गया था लेकिन उस के बाप से डरता था, इसलिए उसे तलाक नहीं दे सकता था. मुनव्वरी के मातापिता बेटी को समझाने के अलावा उसे उलटा पाठ पढ़ाते थे. तंग आ कर जाहिद ने अपने इन दोनों रिश्तेदारों से बात की.

दोनों ने जाहिद के साथ मिल कर करामत और मुनव्वरी को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली. जाहिद को पता था कि करामत रोज अपने दोस्तों के साथ रात को ताश खेलने जाता है. उन्होंने दिन के समय टीलों के पास वह जगह देख ली, जहां दोनों की लाशों को छिपाया जा सकता था. घटना की रात जाहिद ने मुनव्वरी का गला उस समय दबा दिया, जब वह सोई हुई थी. जाहिद के भाई और दोनों रिश्तेदारों ने उस की लाश को एक बोरी में डाल कर सिल दिया.

जाहिद का भाई देख आया कि करामत अपने दोस्तों के साथ ताश खेल रहा है. चारों गली के मोड़ पर घात लगा कर करामत का इंतजार करने लगे. करामत जब ताश खेल कर लौट रहा था तो चारों ने चाकू के बल पर उसे रोक लिया. उस के बाद वे उसे खेतों की तरफ ले गए. डर की वजह से करामत उन के साथ चला गया.

खेतों में जा कर एक आदमी ने पीछे से उस का गला दबा दिया. वह मर गया तो उस की लाश को बोरी में डालने के बाद कंधे पर रख कर चल पड़े. बारीबारी से वे उसे ले कर चलते रहे और टीले के पास ले गए. टीले पर दीवार की तरफ कुदरती गड्ढा था. अंदर से वह चौड़ा था. उन्होंने करामत की लाश को उस गढ्ढे में डाल कर दबा दिया. जाहिद और उस के भाई ने दोनों रिश्तेदारों के साथ घर से मुनव्वरी की लाश को भी ला कर वहीं दबा दिया, जहां करामत की लाश दबाई थी.

करामत को जब वे लोग ले जा रहे थे तभी उस की जेब से एक लिफाफा गिर गया था. घसीटने में उस के पैरों से स्लीपर निकल गए थे. स्लीपर गिरा, जिस का उन चारों को पता नहीं चल पाया था. मुनव्वरी की जूतियां घर में थीं, क्योंकि उसे मार कर बोरी में भर दिया गया था. उन लोगों की योजना थी कि सुबह जाहिद थाने जा कर रिपोर्ट करेगा कि करामत और उस की पत्नी भाग गए हैं. जाहिद ने किया भी वही.

मैं ने मुलजिमों की निशानदेही पर करामत और मुनव्वरी की लाशें टीले के पास से निकलवाईं और पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दीं. अदालत में जब मामला चला तो मैं ने पुख्ता सुबूत पेश किए, जिस से जाहिद और उस के दोनों रिश्तेदारों को फांसी की सजा तथा भाई को अपराध में शामिल होने का दोषी होने पर 5 साल की सजा हुई. उन्होंने सजा के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील की, लेकिन उन की अपील खारिज हो गई.