दूर की सोच : प्यार या पैसा – भाग 4

इजाबेला को देख कर भले ही फिलिप मुसकरा देता था, लेकिन सही मायने में उसे देख कर उसे गुस्सा आता था. उस ने बाप के साथ मिल कर एलेक्स को प्यार के नाम पर धोखा देने की कोशिश की थी. अगर वह सचमुच एलेक्स को प्यार करती होती तो आत्महत्या कर लिया होता. आत्महत्या नहीं करती तो कम से कम बीमार तो पड़ ही गई होती या अपने कमीने बाप को छोड़ दिया होता. लेकिन उस ने ऐसा कुछ नहीं किया था. इस का मतलब उस का प्यार नाटक था.

एक दिन इजाबेला फिलिप के एकदम सामने पड़ गई तो उस ने नमस्ते किया. फिलिप ने उसे बताया कि आजकल एलेक्स कैलिफोर्निया में है और बहुत खुश है. वह टेनिस का अच्छा खिलाड़ी है. हर समय लड़कियां उस के पीछे लगी रहती हैं.

यह बताते हुए फिलिप उस के चेहरे को गौर से देख रहा था कि प्रतिक्रियास्वरूप उस पर कैसे भाव आते हैं. लेकिन उस का चेहरा भावशून्य बना रहा. बल्कि उसे लगा कि वह मुसकरा रही है. तब बेचैनी से फिलिप ने कहा, ‘‘कभी तुम उस से बहुत प्यार करती थीं?’’

‘‘जी, शायद वह मेरी बेवकूफी थी.’’ इजाबेला ने झट कहा, ‘‘कई महीने पहले एलेक्स ने भी फोन कर के कहा था.’’

‘‘तुम उतनी नहीं भोली हो, जितनी दिखती हो,’’ फिलिप ने कहा, ‘‘कितनी आसानी से तुम ने उसे बुद्धू बना दिया.’’

‘‘इन बातों का अब क्या मतलब मि. फिलिप. आप ने ही कहा था कि एलेक्स को छोड़ दो. मैं ने छोड़ दिया. अब आप शिकायत कर रहे हैं कि मैं ने बड़ी आसानी से उसे भुला दिया.’’

‘‘तुम जैसी लड़कियां कुछ भी कर सकती हैं. किसी पर भी हक जमा सकती हैं.’’

‘‘कैसा हक मि. फिलिप? मुझे पता है कि एलेक्स आप का बेटा है. वह आप से अलग थोड़े ही हो सकता है. उस समय वह भावुक हो रहा था, वरना मुझ में ऐसा क्या था, जिस के लिए वह आप को और आप की जायदाद को छोड़ देता. वह मुझ से सिविल मैरिज के लिए कह रहा था, पर मैं ने मना कर दिया.’’

फिलिप चौंका, फिर स्वयं को संभाल कर बोला, ‘‘कर लेना चाहिए था सिविल मैरिज. तुम दोनों बालिग तो हो ही चुके हो.’’

‘‘वह मुझ से कह रहा था कि मैं उस के साथ कैलिफोर्निया चलूं, लेकिन मैं ने मना कर दिया था. मुझे पता था कि वह बाद में पछताता. क्योंकि उस की शक्लसूरत, आदत और मिजाज सब कुछ आप जैसे हैं. वह भी दौलत से उतना ही प्यार करता है, जितना आप. बाद में अपनी गरीबी के लिए मुझ पर आरोप लगता. उसे मेहनतमजदूरी करनी पड़ती तो प्यार का नशा उतर जाता और लड़ाईझगड़ा होने लगता. अंत में तलाक हो जाता.’’ इजाबेला ने व्यंग्यात्मक हंसी हंसते हुए कहा.

‘‘ये बातें तुम्हें एलेक्स से कहनी चाहिए थीं.’’

‘‘अब कोई फायदा नहीं, जो होना था, वह हो चुका है. अब इस बारे में सोचने से क्या फायदा.’’

इजाबेला की बातें सुन कर फिलिप को लगा, वह सचमुच एलेक्स से प्यार करती थी. उस ने बिना मतलब एक मासूम लड़की का दिल तोड़ा. उस पूरे सप्ताह वह काफी उदास रहा. एक दिन उस ने रोजा से कहा, ‘‘काश, इजाबेला किसी और की बेटी होती तो एलेक्स से उस की शादी हो गई होती.’’

‘‘किसी और की नहीं, किसी करोड़पति की बेटी कहो. तब तुम्हारा मकसद पूरा हो जाता.’’ रोजा ने कहा.

अगले ही दिन एलेक्स आ गया. उस का रवैया एकदम नार्मल था. वह खुश भी नजर आ रहा था. इस से फिलिप को तसल्ली हुई. उस ने स्पोर्ट कार खरीद ली थी. वह रोज टेनिस खेलने जाता था. उस के आने के बाद फिलिप ने एक दिन डिनर रखा. उस में इजाबेला को खासतौर से बुलाया. फिलिप एलेक्स के साथ दरवाजे पर खड़े हो कर आने वाले मेहमानों का स्वागत कर रहा था.

इजाबेला आई तो बहुत ही खूबसूरत और ग्रेसफुल लग रही थी. उस के आते समय फिलिप की नजरें एलेक्स पर ही जमी थीं. एलेक्स ने उस पर खास ध्यान नहीं दिया था. सब की ही तरह हाथ मिला कर हालचाल पूछ लिया था. उसी तरह फिलिप ने भी हालचाल पूछा था. इजाबेला रोजा से बड़े प्यार से बातें कर रही थी.

फिलिप सब से मिलजुल रहा था, लेकिन उस की नजरें एलेक्स पर ही टिकी थीं. उस ने देखा, दोनों एकदूसरे के प्रति लापरवाह नजर आ रहे थे, जैसे उन का एकदूसरे से कोई ताल्लुक ही नहीं था. उस ने इत्मीनान की सांस ली कि उस की दूर की सोच ने उसे बुरे अंजाम से बचा लिया. इस तरह इजाबेला को पार्टी में बुलाने का उस का मकसद पूरा हो गया.

पार्टी खत्म हुई तो इजाबेला ने जाने की इजाजत मांगी. फिलिप ने एलेक्स से कहा कि वह इजाबेला को उस के घर तक छोड़ आए. उन के बाहर निकलने से पहले फिलिप पिछले दरवाजे से निकल कर वहां गया, जिधर से वे जाने वाले थे. वह एक झाड़ी के पीछे छिप कर खड़ा हो गया. बाहर आते ही एलेक्स बेताबी से इजाबेला को बांहों में भर कर प्यार करने लगा.

इजाबेला ने उस के सीने से लग कर रोते हुए कहा, ‘‘एलेक्स, अब मैं और इंतजार नहीं कर सकती. मुझे लगता है, मैं पागल हो जाऊंगी.’’

‘‘बेवकूफी वाली बातें मत करो. जिस तरह तुम ने एक साल बिता दिया, उसी तरह कुछ दिन और बिता दो. यही तो दूर की सोच है.’’ इजाबेला के बालों को सहलाते हुए एलेक्स ने कहा.

‘‘लेकिन इस बात का क्या भरोसा कि अब हमें ज्यादा दिन इंतजार नहीं करना पड़ेगा, क्योंकि अब मैं ज्यादा दिनों तक यह नाटक नहीं कर सकती.’’

‘‘बस, कुछ दिनों की ही बात है. मैं खुद जा कर डाक्टर से मिला था. उस ने बताया है कि डैडी का दिल काफी कमजोर होने के साथ बहुत ज्यादा बढ़ चुका है, इसलिए वह ज्यादा दिनों तक जिंदा रहने वाले नहीं हैं. बस कुछ हफ्ते या 2-4 महीने के मेहमान हैं. उस के बाद हमारे इंतजार की घडि़यां और दुख के दिन खत्म हो जाएंगे.’’

ये बातें सुन कर फिलिप को लगा कि उस ने एलेक्स का प्यार छीना तो इजाबेला ने उस से उस का बेटा छीन लिया. वह उस की जायदाद का एकलौता वारिस था. कहां उसे अपनी दूर की सोच पर नाज था, अपनी अक्ल पर घमंड था, आज उस का बेटा उस से ज्यादा दूर की सोच वाला और समझदार निकल चुका था. कितनी आसानी से बिना किसी लड़ाईझगड़े के उस ने अपनी दूर की सोच की वजह से अपने प्यार को पा लिया था.

जाल में उलझी जिंदगी – भाग 4

उस के घर पर सेहन में 3 आदमी बैठे थे, जिन में एक जवान और 2 ज्यादा उम्र के थे. जवान लडक़ा देखने में जाहिद का भाई लगता था. दूसरे आदमियों के बारे में बताया कि वे उस के रिश्तेदार हैं, जो पास के गांव में रहते हैं. मुझे याद आया कि मुनव्वरी के बाप ने बताया था कि जाहिद की रिश्तेदारी पड़ोस के गांव में ऐसे लोगों से थी, जिन के यहां दुश्मनी में हत्या, मारकुटाई आम बात है.

मैं ने दोनों के नाम पूछे. दोनों चचाजाद भाई थे. दोनों के पिता के नाम पूछे तो पता चला कि उन में से एक के पिता को दफा 307 में 5 साल की जेल हुई थी. मैं ने उस से पूछा कि वह अपने पिता से जेल में मिलने जाता है या नहीं तो उस ने कहा कि मैं और घर वाले उन से मिलने जेल जाते रहते हैं. मैं जाहिद को कमरे में ले गया तो देखा वे दोनों जा रहे थे. मैं ने उन्हें आवाज दे कर कहा, “अभी जाओ नहीं, यहीं बैठो.”

जाहिद से मैं ने पूछा, “गहने कौन से ट्रंक में रखे थे.”

उस ने ट्रंक खोल कर दिखाया, “बस यही ट्रंक है. मैं ने आप से सच बताया था कि वह सब गहने ले गई है.”

मैं गहनों के बारे में ज्यादा गंभीर नहीं था. उस ने 2-3 बार कहा, “यही ट्रंक है. आप सब खोल कर देख लें. किसी में भी गहने नहीं मिलेंगे.”

मैं दूसरे कमरे में गया, उस में 2 पलंग थे, मैं कोई और सुराग तलाश रहा था. तभी मुझे एक पलंग के नीचे एक और ट्रंक दिखाई दिया. मैं ने जाहिद से कहा, “तुम तो कह रहे थे कि बस यही ट्रंक है तो यह ट्रंक किस का है?”

वह बोला, “ओह, मुझे यह याद नहीं रहा. मैं ने कहा था कि उस कमरे में यही ट्रंक है.”

वह अपनी कही बात को घुमाने की कोशिश करने लगा. उस की इस बात पर मुझे गुस्सा आ गया. मैं समझ गया कि यह आदमी मुझे मूर्ख बना कर मुझ से कुछ छिपा रहा है. मैं ने गुस्से में कहा, “इस ट्रंक को बाहर निकाल कर खोलो.”

उस ने मेरी बात को अनसुना सा कर दिया. वह उस ट्रंक को खोलना नहीं चाह रहा था. मैं ने चीख कर कहा, “खोलो इस ट्रंक को, खोलते क्यों नहीं?”

उस ने ट्रंक को घसीटा. फिर मेरी ओर देख कर कहा, “ओह इस की चाबियां तो मेरे पास नहीं हैं. मेरी पत्नी के पास थीं, पता नहीं वह कहां रख गई है?”

मैं ने पास खड़े कांस्टेबल से लोहार को बुलाने को कहा.

“इस में आप को क्या मिलेगा मलिक साहब?” जाहिद ने मेरी तरफ देखते हुए कहा.

“मैं तुम से यह नहीं कहूंगा कि चाबियां ढूंढो, क्योंकि चाबियां घर में ही रखी हैं.” मैं ने कहा.

आखिर चाबियां घर में ही मिल गईं, ट्रंक खोल कर देखा तो उस में कुछ कपड़े और नीचे एक लंबे से डिब्बे में गहने रखे थे. गहने देखते ही जाहिद के हावभाव बदल गए.

“यह किस के गहने हैं?” मैं ने जाहिद से पूछा.

“ओह… गहने तो यहीं पड़े हैं. मुझे लगा था कि वह गहने साथ ले गई है.”

मैं ने उस से कुछ नहीं कहा. अभी मैं यह देख रहा था कि यह आदमी मुझे किस तरह मूर्ख समझ कर कैसे खेल तमाशे कर रहा है. उस मकान में एक कमरा और था. मैं उस में गया तो वहां भी एक पलंग बिछा था. दीवार के साथ एक खूंटी पर 2 जोड़ी जनाना कपड़े टंगे थे. पलंग के नीचे एक जोड़ी जनाना चप्पलें पड़ी थीं. पलंग के तकिए की ओर दीवार के साथ 4 जोड़ी सैंडिलें और एक जरी की जूती रखी थी.

मैं ने जाहिद को बुला कर कहा, “यह तेरी पत्नी का कमरा है?”

“जी, वह इसी कमरे में सोती थी.”

“और तुम.”

“जी 6-7 महीने से हम दोनों अलगअलग कमरों में सो रहे थे.”

मैं ने मुनव्वरी की सहेलियों के बारे में पूछा तो जाहिद ने एक का नाम बताया. मैं ने उसे बुला कर पूछा, “मुनव्वरी अपने पति के बारे में तो तुम से बातें करती रही होगी, क्या बातें करती थी?”

उस लडक़ी का जवाब बहुत लंबा था. संक्षेप में यह कि जाहिद को मुनव्वरी ने शुरूशुरू में कबूल कर लिया था, लेकिन जाहिद इतना बेहूदा इंसान था कि मुनव्वरी पर चरित्रहीनता के झूठे आरोप लगाता रहता था. शादी से पहले मुनव्वरी का करामत से प्रेम था, लेकिन शादी के बाद खत्म हो गया था.

कोई एक साल पहले मुनव्वरी ने जाहिद के तानों से तंग आ कर करामत से मिलना शुरू कर दिया था. उस लडक़ी ने यह भी बताया कि पिछले 6 महीने से दोनों के संबंध ऐसे हो गए थे कि बोलचाल बंद थी. केवल काम की बातें होती थीं.

“क्या मुनव्वरी ने तुम से कभी कहा था कि वह घर से भाग जाएगी?” मैं ने पूछा.

“हां जी, यह तो उस ने कई बार कहा था. वह बहुत तंग हो गई थी. वह कहती थी कि अम्मी और अब्बा तलाक नहीं लेने देते. जी करता है कि कहीं भाग जाऊं. कभी वह इतनी दुखी होती थी कि कहती थी कि कुछ खा कर मर जाऊं.”

उस लडक़ी से मैं ने बहुत से सवाल पूछे. रात के 12 बज चुके थे. मैं ने उस से कहा, “एक सवाल और, जिस रात मुनव्वरी गई थी, उस रात को याद करो. जाते समय वह तुम से मिली थी या तुम उस के घर गई थीं?”

“वह आई थी, थोड़ी देर बैठी और चली गई थी. मैं ने उसे कुछ देर और बैठने को कहा तो उस ने बुरा सा मुंह बना कर कहा था कि गांव से उस के पति के 2 रिश्तेदार अभीअभी घर पहुंचे हैं. उन के लिए कुछ करना है.”

यह बात मेरे लिए बहुत खास थी. अब मुझे यह देखना था कि उस के वे यहां जो रिश्तेदार आए थे, वे कौन थे?

उस लडक़ी से बात कर के मैं कमरे में चला गया. जाहिद का भाई खड़ा था. मैं ने उस से पूछा कि उस रात जाहिद के कौन मेहमान आए थे? उस ने बताया कि यही दोनों थे, जो अब भी घर में बैठे हैं.

मैं ने उस से और कुछ नहीं पूछा. जाहिद, उस के भाई और उन दोनों रिश्तेदारों को मैं थाने ले आया. थाने ला कर मैं ने उन्हें बिठा दिया और सिपाहियों से कह दिया कि उन्हें एकदूसरे से दूर बिठा कर उन पर निगरानी रखी जाए.

गुनाह : भूल का एहसास

दूर की सोच : प्यार या पैसा – भाग 3

बातचीत वाली रात फिलिप की तबीयत ठीक नहीं थी. डाक्टर ने उसे कंपलीट रेस्ट के लिए कहा था. खानेपीने के बाद फिलिप ने डौल्टन और उस की पत्नी को सामने बैठा कर बड़ी होशियारी से बात शुरू की. एलेक्स और इजाबेला उस के बगल वाले सोफे पर बैठे थे. उन के चेहरे खुशी से खिले हुए थे.

फिलिप ने कहा, ‘‘मि. डौल्टन, जानते हो मैं ने तुम्हें यहां क्यों बुलाया है? दरअसल मैं स्पष्ट बात करने का आदी हूं. इस शादी से मैं जरा भी खुश नहीं हूं. इसलिए नहीं कि इजाबेला में कोई खराबी है. इस की वजह मेरा और तुम्हारा अतीत है, जिस का एलेक्स और इजाबेला से कोई ताल्लुक नहीं है. मैं यह जानना चाहता हूं कि इस शादी से तुम ने क्या उम्मीदें बांध रखी हैं?’’

फिलिप का यह सवाल इतना अजीब था कि सब हैरानी से उस का मुंह देखते रह गए. थोड़ी देर में डौल्टन ने खुद को संभाल कर कहा, ‘‘मि. फिलिप, जो होना था, वह हो चुका है. अच्छा है, आप ने साफ बात की. मैं भी आप को बता दूं कि कभी मैं भी दौलतमंद था, लेकिन अब मुश्किल से गुजरबसर हो रहा है. इसलिए मैं अपनी बेटी के लिए कुछ नहीं कर सकता. जो करना है, वह आप को ही करना है.’’

डौल्टन की बात खत्म होते ही फिलिप ने कहा, ‘‘मुझे नहीं, जो कुछ करना है मि. डौल्टन आप को और एलेक्स को करना है. आप की बेटी एलेक्स से शादी कर रही है, मुझ से नहीं.’’

‘‘लेकिन एलेक्स आप का बेटा है. इसलिए आप इस बात को कतई पसंद नहीं करेंगे कि वह इजाबेला की कमाई खाए.’’

इस तरह डौल्टन ने फिलिप की दुखती रग पर हाथ रखने की कोशिश की. जवाब में उस ने कहा, ‘‘पसंद ना पसंद का सवाल मेरे लिए नहीं, एलेक्स के लिए है. मेरी दुआएं उस के साथ हैं. वह पढ़ालिखा नौजवान है, अपनी जिंदगी खुद संवार सकता है. यतीम हो कर मैं ने अपनी जिंदगी खुद बनाई थी. किसी ने मेरी मदद भी नहीं की.’’

डौल्टन ने व्यंग्य से कहा, ‘‘शायद आप अपनी दौलत की बात कर रहे हैं? लेकिन आप भूल रहे हैं कि संयोग भी कोई चीज होती है. लेकिन हालात अब काफी बदल गए हैं.’’

‘‘मैं हालात का मुकाबला करने की हिम्मत रखता हूं.’’ एलेक्स ने विश्वास के साथ कहा.

‘‘लेकिन एलेक्स आप का एकलौता बेटा है,’’ एलेक्स की बात पूरी होते ही डौल्टन की बीवी ने कहा, ‘‘इसलिए वही आप की दौलत का वारिस है.’’

‘‘आप ने सही कहा, लेकिन मेरी मौत के बाद, पहले नहीं. मेरे बाप को छोड़ कर मेरे खानदान में कोई 90 साल से पहले नहीं मरा. इस तरह अभी मेरी आधी जिंदगी बाकी है. सौरी, इसलिए आप की यह उम्मीद जल्दी पूरी नहीं हो सकती.’’ फिलिप ने एकएक शब्द पर जोर देते हुए जवाब दिया.

रोजा ने फिलिप को घूरा. उस की इस बात से डौल्टन और उस की पत्नी का चेहरा शरम और अपमान से लाल हो गया. एलेक्स के चेहरे की भी चमक खतम हो गई. वह एकदम से उठा और कमरे से निकल गया. इस के बाद डौल्टन, उस की पत्नी और बेटी भी उठ खड़ी हुई. निकलते समय दरवाजे के बाहर एलेक्स ने इजाबेला को रोकने की कोशिश की, ‘‘इजाबेला मेरी बात सुनो.’’

इजाबेला ने बगैर रुके ही कहा, ‘‘अगर एलेक्स तुम्हारे डैड को दौलत प्यारी है तो मेरे पापा को अपनी इज्जत. अब मैं कुछ भी नहीं सुनना चाहती.’’

तीनों बाहर निकल गए. बाप को नफरत से देखते हुए एलेक्स ने कहा, ‘‘खलनायक की इतनी अच्छी भूमिका अदा करने के लिए आप को बहुतबहुत धन्यवाद. यही बात कोई और कहता तो शायद मैं उसे थप्पड़ मार देता.’’

फिलिप ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘बेवकूफ मत बनो एलेक्स. मैं तुम्हारे सामने यह साबित करना चाहता था कि वे इजाबेला की शादी तुम से सिर्फ मेरी दौलत के लिए करना चाहते थे. मेरी दौलत से तुम इजाबेला जैसी सैकड़ों लड़कियों से शादी कर सकते हो.’’

‘‘डैडी, औरत खरीदी जा सकती है, बीवी नहीं.’’ एलेक्स ने शांति से कहा. इस के बाद वह सिर थाम कर बैठ गया.

फिलिप को लगा, उस का तीर सही निशाने पर लगा है. उस ने प्यार से कहा, ‘‘तुम क्या समझते हो, जो कुछ मैं ने कहा है, वह सच था? तुम चाहो तो कल इजाबेला से शादी कर सकते हो, लेकिन तुम ने देखा न, वह तुम से नहीं, तुम्हारी दौलत से प्यार करती है. बहरहाल मेरा जो कुछ भी है, तुम्हारा है. मैं नहीं चाहता कि कोई तुम्हें उल्लू बना कर तुम्हारी दौलत ठग ले.’’

ये बातें फिलिप ने बेटे को उदास देख कर बहुत दूर की सोच कर कही थी. एलेक्स ने जवाब दिया, ‘‘शायद आप ठीक कह रहे हैं, कम से कम उसे मेरी बात तो सुननी ही चाहिए थी. खैर, अपने प्रोग्राम के मुताबिक मैं जा रहा हूं. आप की दौलत और इजाबेला की मुहब्बत, दोनों ने मुझे बरबाद कर दिया.’’

कह कर एलेक्स निढाल और मायूस सा अपने कमरे में चला गया.

मौसम अच्छा होने की वजह से फिलिप शाम को लंबी वाक पर निकल जाता था. रास्ते में ही डौल्टन का घर पड़ता था, जो उजड़ा और पुराना सा था. उस के हालात पहले से भी बुरे हो गए थे. उस की अखबार की नौकरी छूट गई थी. इजाबेला को मिलने वाले वेतन से घर चल रहा था.

उस की हालत देख कर फिलिप को काफी सुकून मिलता था, क्योंकि अपने पुश्तैनी मकान से निकाले जाने के बाद उस ने बहुत बुरे दिन देखे थे. पैसे के लिए उस ने इतनी मेहनत की थी कि उस की सेहत बरबाद हो गई थी. उसी की वजह से आज वह दिल का मरीज बन गया था. इस सब की वजह उसे डौल्टन लगता था.

कभीकभार फिलिप को खूबसूरत, स्मार्ट और ग्रेसफुल इजाबेला भी दिखाई दे जाती थी. कभी स्कूल से आती हुई तो कभी कोई काम करती हुई. इस में कोई शक नहीं था कि वह चाहे जाने लायक थी. अगर फिलिप की डौल्टन से दुश्मनी न होती तो निश्चित वह बेटे की पसंद को दाद देता.

इजाबेला से फिलिप की नजर मिल जाती तो वह मुसकरा देता. वह उस से नमस्ते करती. ऐसे में फिलिप यह जानने का प्रयास करता कि एलेक्स से जुदाई का उस पर क्या असर पड़ा है. पिछले एक साल से एलेक्स बाहर रह रहा था. शुरू में तो उस ने फिलिप से कोई संबंध नहीं रखा, लेकिन बाद में बापबेटे में फोन पर बातें होने लगी थीं. वह कंपनी के काम में काफी रुचि ले रहा था, इसलिए फिलिप को लगने लगा था कि वह उस का उत्तराधिकारी बनने का प्रयास कर रहा है.

जाल में उलझी जिंदगी – भाग 3

मैं ने करामत की पत्नी को वह लिफाफा और खत दिखा कर पूछा, “यह इकबाल कौन है.”

उस ने बताया, “करामत का एक दोस्त है और इसी मोहल्ले में रहता है. वह भी शहर के एक सरकारी औफिस में काम करता है.”

मैं ने उस की पत्नी से पूछा कि करामत किस समय घर से निकला था तो उस ने दुखी हो कर कहा, “वह शाम को खाना खा कर घर से निकलते थे और अपने दोस्तों में समय गुजार कर आधी रात को घर आ जाते थे.”

मोहल्ले के 2-4 आदमियों से पूछा कि रात को करामत और उस के दोस्त इकट्ठा हो कर क्या करते थे तो उन्होंने बताया कि वे ताश खेलते थे.

मैं ने पूछा, “जुआ भी खेलते थे?”

उन्होंने कहा, “नहीं, जुआ नहीं खेलते थे. कभी तमाशा देखने वाले भी आ जाते थे, तब महफिल रात तक जमी रहती थी.”

मैं ने करामत के दोस्त इकबाल का पता दे कर एसआई को यह कह कर उस के घर भेजा कि पूछ कर आए कि करामत वहां आया था या नहीं? उस के बाद मैं ने उस के उन दोस्तों को बुलवाया, जो उस के साथ ताश खेला करते थे. मैं ने उन से बारीबारी पूछताछ की तो सब ने यही बताया कि वह रात के साढ़े 12 बजे ताश खेल कर चला गया था.

साढ़े 12 बजे की बात सुन कर मुझे उस आदमी का खयाल आया, जिस ने कहा था कि उस ने करामत को रात साढ़े 11 बजे गाड़ी में सवार होते देखा था. मैं ने एक कांस्टेबल को भेज कर उस आदमी को बुलवाया, जिस ने करामत को ट्रेन में सवार होने की बात बताई थी.

जब मैं ने उस से कहा कि तुम ने इतना बड़ा झूठ क्यों बोला तो उस के चेहरे का रंग फीका पड़ गया. वह मेरे चेहरे को देखते हुए बोला, “मैं ने झूठा बयान नहीं दिया.”

मैं कुछ देर तक चुप रहा, फिर पुलिसिया अंदाज से बोला, “करामत रात साढ़े 12 बजे तक ताश खेलता रहा था, जिस के 8-10 गवाह हैं. जबकि तुम ने बताया है कि तुम ने उसे साढ़े 11 बजे गाड़ी में सवार होते देखा था.”

“मुझ से गलती हो गई, वह कोई और रहा होगा.”

“तुम ने बहुत बड़ी गलती की है, अब उस की सजा के लिए तैयार हो जाओ.” मैं ने हडक़ाया.

वह हाथ जोड़ कर उठ खड़ा हुआ, कांपती आवाज में बोला, “गरीब हूं हुजूर, 20 रुपए महीना वेतन मिलता है, छोटेछोटे 2 बच्चे हैं, 2 भाई हैं. इतने कम वेतन में गुजारा नहीं होता. जाहिद ने मुझ से कहा था कि ऐसा बयान दे दो, तुम्हें 15 रुपए दूंगा. आप जानते हैं हुजूर मेरे लिए 15 रुपए कितनी बड़ी रकम है. यह मेरे पूरे घर की रोटी का खर्च है. लालच में आ कर मैं ने यह बयान दे दिया था.”

“तुम ने यह क्यों कहा था कि करामत के पीछे एक आदमी था, जो कंबल ओढ़े था.” मैं ने उस से पूछा, “तुम ने यह क्यों नहीं कहा कि वह जाहिद की पत्नी थी.”

“मुझे जैसा जाहिद ने कहने को कहा था, मैं ने वैसा ही कह दिया.”

उस की बात सुन कर मुझे यही लगा कि जाहिद चालाक आदमी है, जबकि मैं उसे परेशान समझता रहा.

“अगर तुम्हें कुछ और पता हो तो बता दो, बाद में पता चला तो मैं तुम्हें गिरफ्तार कर के जेल भेज दूंगा.”

उस ने कसमें खा कर कहा कि इस के अलावा वह कुछ नहीं जानता. उस आदमी को मैं ने थाने में बिठाए रखा और जाहिद को बुलवा लिया. मेरे दिमाग में करामत के नाम का लिफाफा और स्लीपर अटक गए थे और यह भी कि वह घर में पहनने वाले कपड़ों में गया था.

जाहिद थाने आया तो मैं ने उस से पूछा, “जाहिद, तुम ने अपने तौर पर अपनी पत्नी को ढूंढऩे की कोशिश नहीं की?”

“मैं कैसे ढूंढ़ सकता हूं जी, पता नहीं वह अपने यार के साथ ट्रेन से कहां चली गई? एक आदमी को मैं आप के पास लाया भी था, जिस ने उन दोनों को गाड़ी में सवार होते देखा था.”

“वह आदमी अभी थाने में ही है. बस तुम मुझे इतना बता दो कि उस आदमी से तुम ने झूठ क्यों बुलवाया था?”

जवाब देने के बजाय वह मेरे मुंह को देखने लगा. कुछ देर बाद उस ने हिम्मत की, “मैं ने झूठ नहीं बुलवाया हुजूर, वह तो उस ने खुद ही बोला था.”

मैं ने कहा, “जाहिद, उस बेचारे को 2 साल के लिए क्यों अंदर करा रहे हो? वह बालबच्चों वाला आदमी है. तुम ने उसे झूठ बोलने के लिए 15 रुपए दिए थे. कह दो कि यह बात भी झूठी है.

“जाहिद, मुझे कुछ और भी सबूत मिले हैं. क्या तुम्हें पता नहीं कि आज सुबह मैं करामत के घर गया था?”

“पता है.”

“तो तुम्हें यह भी पता होगा कि खेतों में से करामत की कुछ चीजें बरामद हुई हैं. वे चीजें कुछ और ही कहानी कहती हैं.”

इतना सुन कर उस के चेहरे पर ऐसा बदलाव आया, जैसे सिनेमा के परदे पर एक स्लाइड के बाद दूसरे रंग की स्लाइड आ गई हो.

उस ने कांपती आवाज में कहा, “मलिक साहब. मैं ने सोचा है कि अगर मुझे पत्नी मिल जाती है तो मैं उस का क्या करूंगा? क्या ऐसी पत्नी को कोई इज्जतदार आदमी अपने घर में रख सकता है, जो गैरमर्द के साथ चली गई हो. मैं ने तय किया है कि तलाक दे कर कागज उस के बाप को दे दूंगा और आप को एक तहरीर दे कर अपनी रिपोर्ट वापस ले लूंगा.”

“और जो तुम्हारे इतने गहने चले गए हैं, उन का क्या होगा?” मैं ने पूछा.

“संतोष कर लूंगा. मेरा घर तो तबाह हो ही गया है.”

“फिर जानते हो क्या होगा?” मैं ने कहा, “तुम्हारा ससुर तुम्हारे खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराएगा कि तुम ने उस की लडक़ी को गायब कर दिया है और उस के गहने तुम हजम कर गए हो.”

“मैं उस के गहने दे दूंगा.”

“कहां से दोगे?”

उस ने कोई जवाब नहीं दिया. मैं ने उस के चेहरे पर एक और बदलाव देखा. मुझे लगा, जैसे उस ने अपनी पत्नी को बदनाम करने के लिए कोई चाल चली है. आगे की जांच के लिए मैं जाहिद को उस के घर ले गया.

दूर की सोच : प्यार या पैसा – भाग 2

इजाबेला बहुत ही खूबसूरत लंबीछरहरी लड़की थी. उस के चेहरे पर ऐसी कशिश थी कि उस की उम्र का कोई भी नौजवान उस की ओर आकर्षित हो सकता था. फिलिप के दिमाग में खतरे की घंटी बज उठी.

तभी डौल्टन ने उस के करीब आ कर कहा, ‘‘मि. फिलिप, हम चाहते हैं कि पुरानी बातों को भुला कर अब हम अच्छे दोस्त बन जाएं.’’

‘‘ऐसा कुछ मेरे लिए मुमकिन नहीं है.’’ फिलिप ने बेरुखी से कहा.

डौल्टन भौचक्का रह गया. वह कुछ कहता, उस के पहले ही फिलिप ने उठते हुए कहा, ‘‘अब मुझे चलना चाहिए, रात काफी हो चुकी है.’’

फिलिप एलेक्स के करीब पहुंचा और उस का बाजू पकड़ कर बोला, ‘‘एलेक्स बेहतर होगा कि तुम भी हमारे साथ चलो, काफी वक्त हो गया है.’’

‘‘डैडी, मैं अभी रुकना चाहता हूं, आप और आंटी जाइए. मैं बाद में आ जाऊंगा.’’ एलेक्स ने इत्मीनान से कहा.

घर आते हुए फिलिप ने बहन रोजा से कहा, ‘‘डौल्टन के यहां पार्टी में आ कर हम ने गलती तो नहीं की? कहीं ऐसा न हो, हमें बाद में पछताना पड़े.’’

‘‘ऐसा क्या हो गया, जो हमें पछताना पड़ेगा?’’ रोजा ने पूछा.

‘‘डौल्टन ने अपनी खूबसूरत बेटी को चारा बना कर मेरे बेटे के पास भेजा है, ताकि वह उसे अपने जाल में फंसा सके.’’

‘‘तुम्हारा मतलब इजाबेला से है?’’

‘‘हां, देखा नहीं, वह एलेक्स से कैसे हंसहंस कर बातें कर रही थी.’’

‘‘फिलिप, तुम नफरत में अंधे हो चुके हो. ऐसा कुछ भी नहीं है.’’

‘‘मैं बहुत दूर की सोचने वालों में हूं. यह जायदाद और दौलत मैं ने अपनी अक्ल और इसी सोच की बदौलत बनाई है. मुझे साफ दिख रहा है कि डौल्टन इजाबेला को माध्यम बना कर मेरी दौलत हड़पना चाहता है. क्योंकि उसे पता है कि एलेक्स मेरा एकलौता बेटा है और यह सब उसी का है.’’

रोजा ने फिलिप को तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘मन में तसल्ली रखो, ऐसा कुछ नहीं है.’’

फिलिप स्टडी रूम में बैठ कर एलेक्स का इंतजार करने लगा. जब वह आया तो उसे देख कर फिलिप को लगा कि उस का बेटा इतना खूबसूरत है कि कोई भी लड़की उसे पसंद कर सकती है.

उसे इस तरह बैठे देख एलेक्स ने कहा, ‘‘लगता है, आप को पार्टी पसंद नहीं आई?’’

‘‘रोजा ने मुझे वहां जाने के लिए मजबूर किया था, वरना मैं ऐसे लोगों के यहां कतई नहीं जाता.’’

‘‘ऐसे लोगों से आप का मतलब, कहीं आप इजाबेला के बारे में तो..?’’

‘‘तुम इजाबेला के बारे में मेरे विचार क्यों जानना चाहते हो?’’

‘‘इसलिए कि मैं उस से शादी करना चाहता हूं.’’ एलेक्स ने कहा.

फिलिप एकदम से उठ कर गुस्से से चीखा, ‘‘तुम पागल तो नहीं हो गए हो एलेक्स? मैं तुम्हें भी अपनी तरह दूर तक सोचने वाला समझता था. तुम ने एक ही मुलाकात में इतना बड़ा फैसला ले लिया. अपनी और उस की हैसियत देखो, डौल्टन की हमारे आगे क्या औकात है? और वह लड़की, जो गंवार सी है, तुम से उम्र में भी 4 साल बड़ी है.’’

‘‘डैड, आप नफरत में भले ही आंटी की दलीलें रद्द कर देते हैं, लेकिन मैं अपनी चाहत में आप की सारी दलीलें रद्द करने को मजबूर हूं. मुझे पहली मुलाकात में ही वह बहुत अच्छी लगी, इसीलिए मैं ने उस से शादी का फैसला कर लिया है.’’

गुस्से में गिलास दीवार पर मारते हुए फिलिप ने कहा, ‘‘बंद करो यह बकवास. वह कमीना मुझ से बदला लेना चाहता है. इसीलिए अपनी बेटी को तुम्हारे पीछे लगा दिया है. वह मेरी जायदाद पाने के लिए बेटी का इस्तेमाल कर रहा है.’’

‘‘डैड, मुझे मालूम था कि आप यही कहेंगे, इसलिए मैं इजाबेला से शादी कर के कैलिफोर्निया जा रहा हूं. आप चाहें तो मुझे अपनी जायदाद से बेदखल कर सकते हैं.’’

एलेक्स की बात खत्म होते ही रोजा कमरे में दाखिल हुई. फिलिप ने उस से कहा, ‘‘देखा तुम ने, सुनी इस की बातें. मैं नशे में नहीं हूं.’’

रोजा व्यंग्यात्मक लहजे में बोली, ‘‘भइया, शराब के नशे से ज्यादा घातक दौलत का नशा होता है.’’

एलेक्स पैर पटकते हुए कमरे से बाहर चला गया.

फिलिप ने झुंझला कर कहा, ‘‘रोजा, वह गरीब, गंवार मेरा रिश्तेदार कैसे बन सकता है?’’

‘‘तुम्हारे दौलत के गुरूर की वजह से ही तुम्हारी बीवी तुम्हें ठुकरा कर चली गई. अब तुम्हारे बेटे की बारी है, जिसे तुम कहते हो कि बीवी से ज्यादा प्यार करते हो. लेकिन मुझे लगता है कि तुम्हें सब से ज्यादा प्यार दौलत से है.’’ रोजा ने तल्खी से कहा.

‘‘रोजा, मैं एलेक्स के लिए इजाबेला के बारे में सोच भी नहीं सकता.’’

‘‘तो क्या तुम उस की शादी किसी प्रिंसेस से कराना चाहते हो?’’

फिलिप गुस्से से पैर पटक कर रह गया. 2 सप्ताह तक खामोशी रही. एलेक्स ने फिलिप से कोई बात नहीं की. उस ने भी उस से कुछ नहीं पूछा. लेकिन रोजा से उसे पता चला कि एलेक्स इजाबेला से रोज मिलता था.  फिलिप समझ गया कि मामला बहुत आगे बढ़ चुका है. ऐसे में अगर वह जल्दबाजी में कोई फैसला लेता है तो बेटे को हमेशा के लिए खो सकता है.

उस ने काफी सोचविचार कर एक योजना बनाई और एलेक्स को पास बैठा कर बड़े प्यार से बोला, ‘‘मुझे अफसोस है कि उस दिन मैं ने तुम से प्यार से बात नहीं की. शायद ऐसा उम्र के अंतर की वजह से हुआ है. मुझे लगता है कि मैं तुम्हें इजाबेला से शादी की इजाजत दे दूं.’’

एलेक्स इस तरह खामोश बैठा रहा, जैसे उस की बात से उसे कोई खुशी नहीं हुई. फिलिप ने कहा, ‘‘एक शर्त है. शर्त क्या, तुम्हारे लिए चैलेंज है. तुम इजाबेला से शादी कर सकते हो, लेकिन एक साल बाद भी तुम्हारे जज्बात वही रहने चाहिए, जो इस समय हैं. तब मैं समझूंगा कि भावनाओं में बह कर तुम ने यह फैसला नहीं लिया है.’’

‘‘मुझे मंजूर है. मैं यह शर्त आप की दौलत के लिए नहीं, बल्कि यह साबित करने के लिए मान रहा हूं कि प्यार का संबंध दौलत से नहीं, दिल से होता है. अब यह बताइए कि मुझे कहां जाना होगा?’’ एलेक्स ने गंभीरता से जवाब दिया.

फिलिप ने उस की अक्लमंदी की दाद दी. उस ने कहा, ‘‘तुम जहां चाहो, जा सकते हो. लेकिन उस से पहले मैं डौल्टन और उस के परिवार वालों से मिलना चाहता हूं. क्योंकि मैं इजाबेला और तुम्हारी उपस्थिति में उन से कुछ बातें करना चाहता हूं.’’

जाल में उलझी जिंदगी – भाग 2

सबइंसपेक्टर इनाम को मैं ने जबलपुर में फौजी के पास भेजा. फौजी का पता उस के पिता से ले लिया था. उसे भेज कर मैं ने अपने मुखबिरों को लगा दिया कि वह करामत, मुनव्वरी, जाहिद, करामत की पत्नी और उन सब के परिवार के बारे में पता करे.

अगले दिन मुनव्वरी का पति जाहिद एक आदमी को ले कर मेरे पास आया. उस आदमी ने बताया कि उस के एक रिश्तेदार का उस के पास खत आया था कि वह रात की गाड़ी से अपने मातापिता और बच्चों के साथ आ रहा है. अपने उन रिश्तेदारों को लेने के लिए वह कल रात स्टेशन पहुंचा. जिस गाड़ी से उन्हें आना था, वह आई, लेकिन वे रिश्तेदार प्लेटफौर्म पर दिखाई नहीं दिए.

मैं काफी देर तक उन्हें इधरउधर घूम कर देखता रहा. उसी समय मैं ने वहां करामत को देखा. वह जबलपुर जाने वाली गाड़ी में रात साढ़े 11 बजे सवार हो रहा था. उस के पीछे एक आदमी भी था. उस ने सिर पर कंबल इस तरह से ओढ़ा हुआ था कि उस का मुंह दिखाई नहीं दे रहा था. वह भी करामत के पीछेपीछे गाड़ी में चढ़ गया था.

मुझे कल ही पता चला कि जाहिद की पत्नी घर से गायब हो गई है. मैं ने जाहिद को करामत और कंबल ओढ़े आदमी के साथ ट्रेन में सवार होने की बात बताई तो जाहिद ने झट से कह दिया कि उस के साथ कंबल ओढ़े हुए मुनव्वरी ही थी. जाहिद के साथ आए उस आदमी को मैं ने गवाहों की सूची में शामिल कर लिया और उस से कह दिया कि मेरे पूछे बिना वह कहीं बाहर नहीं जाएगा.

2 दिनों बाद सबइंसपेक्टर जबलपुर से वापस आ गया. उस ने बताया कि करामत वहां नहीं पहुंचा है.

उसी बीच मुनव्वरी का पिता मलिक नूर अहमद मेरे औफिस में आया. आते ही उस ने कप्तान की तरह पूछा, “थानेदार साहब तफ्तीश कहां तक पहुंची है?” मैं ने उसे गोलमोल जवाब दे दिया.

उस ने कहा, “मलिक साहब, मुझे यह मामला कुछ और ही दिखाई देता है. मुझे लगता है कि जाहिद ने ही मेरी बेटी और करामत को कहीं गायब करा दिया है. यह भी हो सकता है हत्या करा दी हो.”

“मलिक नूर अहमद साहब.” मैं ने कहा, “क्या आप ने हत्यारे देखे हैं? अलगअलग आदमियों को उन के घरों से गायब कराना, उन की हत्या कराना, कोई ऐसेवैसे आदमी का काम नहीं है. यह किसी पक्के उस्ताद का काम है. मैं ने जाहिद को परखा है, वह ऐसा आदमी नहीं है.”

“मलिक साहब, आप ने केवल जाहिद को देखा है,” उस ने एक गांव का नाम ले कर कहा, “आप ने उस के रिश्तेदारों को नहीं देखा. वे मामूली बात पर हत्याएं कर देते हैं. लड़ाई और मारकुटाई को तो वे मामूली बात समझते हैं.”

जिस गांव का उस ने नाम लिया था, वह गांव मेरे ही थाने में आता था. मुझे उस गांव का एक घराना याद आ गया. उस घराने ने हर थानेदार को मुसीबत में डाला हुआ था. उस गांव में वास्तव में ज्यादातर लोग खुराफाती किस्म के थे.

उस ने कहा, “मलिक साहब, मैं ने अपनी बेटी जाहिद को दे तो दी थी, लेकिन बेटी ने उस के घर में एकएक दिन एकएक साल के बराबर काटे हैं. वह उसे गालियां देता था, मारता था और सब से गंदी हरकत यह थी कि वह उसे चरित्रहीन कहता था.”

मैं ने पूछा, “चरित्रहीनता का आरोप किसी एक आदमी के साथ लगाता था या वैसे ही चरित्रहीन कहता था.”

“अजी उस की एक बात हो तो बताऊं, पूरा मोहल्ला उस से बहुत दुखी था. आप इस केस को इस तरह न लें कि करामत उसे ले कर भाग गया है, इस केस को दूसरे तरीके से भी देखें.” उस ने मशविरा दिया.

मलिक नूर अहमद ने मेरा इतना दिमाग चाटा कि मैं कुछ सोचने के काबिल नहीं रहा. उस ने चलतेचलते एक बात यह भी कही कि उस की बेटी मुनव्वरी अपने पति से इतनी तंग थी कि उसे उस घर से भाग जाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं सूझा.

उसी दिन उसी मोहल्ले का एक सम्मानित आदमी मेरे पास एक डाक का लिफाफा ले कर आया. मैं ने लिफाफा खोला तो उस में एक पत्र और 5-5 के 3 नोट निकले. लिफाफा करामत के नाम था. लिफाफा लाने वाले के साथ एक आदमी और था. उसी के खेत में यह लिफाफा पड़ा मिला था. उस समय गेंहू की फसल एक फुट ऊंची थी.

मैं उन्हें ले कर खेत में उस जगह पहुंचा, जहां लिफाफा पड़ा मिला था. साफ लग रहा था कि वहां से 2-3 आदमी गुजरे हैं. पास के 2 और खेतों को देखा तो वहां भी पौधे टूटे हुए थे. वे मेंड़ों पर सीधे चलते गए थे. जहां से लिफाफा मिला था, उस से लगभग 200 गज दूर एक पैर का स्लीपर मिला था. उन दिनों लोग घरों में स्लीपर पहना करते थे. वह स्लीपर नया था. पुराना होता तो मैं समझ लेता कि इसे फेंका गया होगा.

उस स्लीपर को उठा कर मैं आगे चला गया. जहां खेत खत्म होते थे, वहां जमीन डेढ़-दो गज नीची ढलान पर थी. आगे झाडिय़ां थीं. दूसरा स्लीपर झाडिय़ों में मिला. मैं वहीं रुक गया और जिस आदमी को वह लिफाफा मिला था, उसे दौड़ा कर मैं ने करामत के बाप और भाइयों को बुलवा लिया. बाप और भाइयों को वे स्लीपर दिखा कर पूछा कि वे करामत के तो नहीं हैं.

उन्होंने बताया कि करामत तो उन से अलग दूसरी जगह पर अपनी पत्नी के साथ रहता था, इसलिए कह नहीं सकते कि स्लीपर किस के हैं. फिर मैं उन स्लीपरों को ले कर करामत के घर पहुंचा. वहां उस की पत्नी मिली. करामत की पत्नी को मैं ने वे स्लीपर दिखा कर पूछा, “क्या करामत ऐसे स्लीपर पहनता था?”

“ये उन्हीं के लगते हैं,” उस ने कहा, “2-3 दिन पहले ही तो उन्होंने खरीदे थे.”

“घर में उस के और भी कोई जूते हैं?” मैं ने पूछा.

उस ने कहा, “जी हां, 2 जोड़ी जूते पड़े हैं.”

मेरे कहने पर वह जूते उठा लाई. मैं ने स्लीपर और जूतों के तलवे देखे, दोनों का साइज एक जैसा था. मैं ने पूछा, “करामत के पास कितने जोड़े हैं?”

“यही 2 जोड़े हैं, जिन्हें वह बाहर जाने पर पहनते थे और यह स्लीपर घर में पहनने के हैं.”

“जरा याद करो कि जब वह घर से निकला था तो क्या पहने था?” मैं ने पूछा.

“मुझे अच्छी तरह याद है, वह यही स्लीपर पहने थे. पाजामा और कमीज पहनी थी, ऊपर पुराना स्वेटर था.”

इस तरह कुरेदतेकुरेदते पता चला कि करामत दफ्तर जाता था तो सलवारकमीज और अच्छे प्रकार का स्वेटर और कोट पहनता था. अगर उसे शहर से बाहर जाना होता था तो वह यही कपड़े पहनता था. चूंकि वह एक औरत को ले कर गया है, निश्चित उस ने अच्छे कपड़े पहने होंगे.

दूर की सोच : प्यार या पैसा – भाग 1

फिलिप रौजर की जेब में मौजूद पीले रंग का वह पुराना कागज एक तरह से उस के बाप की वसीयत थी, जिस में उस ने आशीर्वाद के बाद लिखा था कि वह उस के और उस की बहन के लिए भारी कर्ज छोड़े जा रहा है. खानदानी जायदाद और घर रेहन रखने के बाद भाईबहन को वह तकदीर के भरोसे छोड़ कर मौत को गले लगा रहा है. इस के अलावा अब उस के पास कोई दूसरा रास्ता भी नहीं बचा है.

उस वसीयत के साथ फिलिप को 14 साल की एक लड़की और 24 साल के एक नौजवान की याद आ गई, जो बाप के आत्महत्या कर लेने के बाद बेसहारा हो गए थे. उस दिन पूरे 24 साल बाद फिलिप ने डौल्टन का दरवाजा खटखटाने के लिए दरवाजे पर हाथ रखा तो मन में दहक रही बदले की आग के साथ गर्व का अहसास हुआ, क्योंकि अब उस के पास वह ताकत थी, जिस से वह अपना अतीत खरीद सकता था.

डौल्टन ने दरवाजा खोला. उस के सिर के बाल सफेद हो गए थे, चेहरे पर परेशानी और गरीबी साफ झलक रही थी. फिलिप ने तो उसे पहचान लिया, लेकिन वह उसे नहीं पहचान सका, क्योंकि फिलिप अब 24 साल का दुबलापतला नौजवान नहीं, 48 साल का कीमती सूट में लिपटा शानदार व्यक्तित्व का मालिक था.

फिलिप ने हाथ मिलाते हुए गंभीर लहजे में कहा, ‘‘मि. डौल्टन, मैं फिलिप रौजर. क्या अंदर आ सकता हूं?’’

डौल्टन घबरा सा गया. हकला कर बोला, ‘‘ओह मि. रौजर, मुझे यकीन ही नहीं हो रहा है कि यह आप हैं. आइए, यह आप का ही तो घर है.’’

‘‘है नहीं मि. डौल्टन, था. सचमुच 24 साल पहले यह मेरा ही घर था. लेकिन अब नहीं है.’’

‘‘मि. फिलिप प्लीज, ऐसा मत कहिए. आज भी यह आप का ही घर है. आप अंदर तो आइए.’’ डौल्टन ने बेचैन हो कर कहा.

पूरे 24 सालों बाद फिलिप ने अपने घर में कदम रखा था, जहां आज भी उस का अतीत जिंदा था और उस के मांबाप की यादें थीं. घर की हालत काफी खस्ता हो चुकी थी. वहां रखा फर्नीचर भी काफी पुराना था. हर तरफ गरीबी झलक रही थी. यह सब देख कर फिलिप को खुशी हुई. कीमती पेंटिंग्स, फानूस, बड़ीबड़ी लाइटें, सब गायब थीं.

फिलिप ने एक पुरानी कुर्सी पर बैठते हुए कहा, ‘‘मैं यहां अपने मतलब की जरूरी बात करने आया हूं.’’

‘‘हां…हां, जरूर कहिएगा, पहले मैं आप को अपने घर वालों से तो मिलवा दूं.’’

‘‘मैं यहां किसी से मिलने नहीं, सिर्फ काम की बात करने आया हूं.’’ कह कर फिलिप ने साथ लाया बड़ा सा सूटकेस खोला और फर्श पर बिछे कालीन पर पलट दिया. नोटों का ढेर सा लग गया. उस ढेर की ओर इशारा करते हुए उस ने कहा, ‘‘आप ने विज्ञापन दिया है कि आप यह घर बेच रहे हैं. इसलिए मैं यहां आया हूं. शायद मुझ से ज्यादा इस घर की कीमत कोई दूसरा नहीं दे सकता. जितनी रकम चाहो, इस में से निकाल लो.’’

डौल्टन की आंखें हैरत से चौड़ी हो गईं. बातचीत सुन कर डौल्टन की पत्नी भी उस कमरे में आ गई थी. नोटों के उस ढेर को देख कर वह भी हैरान रह गई. फिलिप ने डौल्टन को घूरते हुए कहा, ‘‘24 साल पहले आप ने बड़ी होशियारी से मेरे बाप को मार दिया था.’’

‘‘यह सरासर गलत है मिस्टर रौजर,’’ डौल्टन ने जल्दी से कहा, ‘‘दीवालिया हो जाने के बाद आप के पिता ने आत्महत्या की थी.’’

‘‘आप ने उन्हें आत्महत्या के लिए मजबूर किया था. उस के बाद मुझे और मेरी बहन को धक्के खाने और भूखे मरने के लिए घर से निकाल दिया था. लेकिन संयोग देखो, पांसा पलट गया. बताइए, इस घर के लिए आप को कितनी रकम चाहिए?’’

‘‘मैं इसे 5 लाख डौलर में बेचना चाहता हूं.’’ डौल्टन ने धीरे से कहा.

फिलिप ने गर्व से कहा, ‘‘ये 7 लाख डौलर हैं, लेकिन मेरी एक शर्त है, आप को आज शाम तक यह मकान खाली कर देना होगा.’’

डौल्टन और उस की पत्नी का मुंह हैरत से खुला रह गया. पल भर बाद डौल्टन ने कहा, ‘‘लेकिन मि. फिलिप कानूनी काररवाही में समय लगेगा.’’

‘‘कानूनी काररवाही होती रहेगी, मुझे आज शाम तक घर चाहिए.’’

डौल्टन ने कांपते हाथों से नोट समेटते हुए कहा, ‘‘मि. फिलिप यह मकान आप का हुआ, लेकिन मैं भी उसूलों वाला आदमी हूं. इसलिए आप जो 2 लाख डौलर ज्यादा दे रहे हैं, वे मुझे नहीं चाहिए.’’

फिलिप के गुरूर को धक्का लगा. क्योंकि 2 लाख डौलर डौल्टन ने लौटा दिए थे. इस तरह फिलिप रौजर का पुश्तैनी मकान उस के कब्जे में आ गया था.

इस के कुछ दिनों बाद फिलिप की बहन रोजा ने बाल संवारते हुए कहा, ‘‘फिलिप, तुम्हें तो आज डौल्टन के यहां पार्टी में जाना था?’’

‘‘नहीं, मैं नहीं जा पाऊंगा उस के यहां पार्टी में.’’ फिलिफ ने बेरुखी से कहा.

‘‘यह गलत बात है फिलिप. हमारे उस के यहां से पुराने संबंध हैं, इसलिए उस के यहां तुम्हें जरूर जाना चाहिए.’’ रोजा ने भाई को समझाया.

‘‘मुझे उस आदमी से नफरत है. उसी की वजह से मेरे बाप ने आत्महत्या की थी.’’

‘‘यह इल्जाम झूठा है फिलिप. हमारे पिताजी यह मकान और जायदाद जुए और शराब में हार गए थे. इस में खरीदार का क्या दोष? उस ने पैसे दिए थे, बदले में यह सब ले लिया. अब तुम्हें इस में क्या परेशानी है, तुम ने तो अपना मकान वापस ले लिया है. अब डौल्टन के बच्चों का क्या हक है कि वे तुम से नफरत करें, तुम्हें जलील करें? अगर वह आत्महत्या कर लेता तो क्या तुम हत्यारे कहे जाओगे?’’

‘‘तुम तो वकालत बहुत अच्छी कर लेती हो.’’ फिलिफ ने हार मानते हुए कहा.

डौल्टन का नया घर काफी छोटा और पुराना था. उस के इस घर को देख कर फिलिप को बहुत खुशी हुई थी. लेकिन डौल्टन ने दिल से उस का स्वागत किया था. इस के बाद उस ने अपने बगल खड़ी एक लड़की की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘मि. फिलिप, यह मेरी बेटी इजाबेला है.’’

फिलिप ने इजाबेला पर एक नजर डाली और एक किनारे बैठ गया. उस ने किसी से बात नहीं की तो लोग भी उस से दूरी बनाए रहे. शायद वे उस की संपन्नता से सहमे हुए थे. डौल्टन ने वह पार्टी अपना कर्ज अदा करने और यह घर खरीदने की खुशी में दी थी.

पैग ले कर फिलिप धीरेधीरे चुस्कियां ले रहा था. क्योंकि वह शराब उसे पसंद नहीं थी. यह बात उस के चेहरे से ही पता चल रही थी. कर्ज अदा करने और मकान खरीदने में डौल्टन ने काफी रकम खर्च कर दी थी.   गुजरबसर के लिए उस की बेटी इजाबेला एक स्कूल में पढ़ा रही थी तो वह किसी अखबार के दफ्तर में छोटामोटा काम कर रहा था. पार्टी में आए मेहमान खानेपीने में मशगूल थे.

अचानक फिलिप की नजर अपने बेटे एलेक्स पर पड़ी. कीमती सूट में लिपटा शानदार पर्सनैलिटी वाला एलेक्स सब से अलग नजर आ रहा था. वह हंसहंस कर बातें कर रहा था. इजाबेला भी उस से उसी तरह बातें कर रही थी.

जाल में उलझी जिंदगी – भाग 1

मैं थाने में बैठा कत्ल की एक फाइल को पढ़ रहा था, तभी एक आदमी आया जो आते ही बोला, “साहब, मेरा नाम जाहिद है और मैं इसी कस्बे में रहता हूं. मेरी पत्नी भाग गई है. मेरी रिपोर्ट दर्ज कर के उस के बारे में पता लगाने की कोशिश करिए.”

उस की बात सुन कर मैं चौंका. उस की तरफ देखते हुए मैं ने पूछा, “यह तुम कैसे कह सकते हो?”

“पिछली रात, जब मैं बाथरूम गया था तो वह बिस्तर पर नहीं थी, बाहर का दरवाजा देखा तो कुंडी अंदर से खुली थी. इस

से मुझे लगा कि वह भाग गई है.”

“तुम्हारी बातों से यही लगता है कि तुम्हें पहले से ही शक था कि तुम्हारी पत्नी भाग जाएगी. क्या तुम ने उस के मायके वालों

से पता किया है कि वह वहां तो नहीं चली गई? तुम्हारी ससुराल कहां है?”

“ससुराल तो यहीं है, लेकिन मैं ने वहां पता नहीं किया,” उस ने जवाब में कहा.

“क्या तुम अपने मातापिता के साथ रहते हो?”

“नहीं जी, मैं अलग रहता हूं. लेकिन वह आधी रात को मेरे या अपने मातापिता के घर जा कर क्या करेगी? वह गांव के ही

करामत के साथ गई होगी.”

“यह बात तुम इतने दावे से कैसे कह सकते हो?”

“वह इसलिए कि उस का पहले से ही उस के साथ चक्कर चल रहा था. वह भी अपने घर पर नहीं है.”

“उसे रोकने के लिए तुम ने कुछ नहीं किया?”

“बहुत कुछ किया था. उस के मातापिता से भी शिकायत की थी. मैं ने उस की कई बार पिटाई भी की, लेकिन वह नहीं मानी. मेरे ससुर डीसी औफिस में हैडक्लर्क हैं. मेरे शिकायत करने पर उलटे उन्होंने मेरा अपमान करते हुए मुझे बंद कराने की धमकी दी थी. वह जिस आदमी के साथ गई है, वह भी बहुत पैसे वाला बदमाश किस्म का है.

“अच्छा, तुम मलिक नूर अहमद की बात कर रहे हो,” मैं ने कहा, “वह तुम्हारे ससुर हैं?”

उस के ससुर को मैं जानता था. वह डिप्टी कमिश्नर के दफ्तर में हैडक्लर्क थे, डीसी दफ्तर में नौकरी करना बड़े सम्मान की बात थी.

“आप देख लीजिएगा, वह कभी नहीं मानेंगे कि उस की बेटी भाग गई है. वह मेरे खिलाफ कोई न कोई फंदा डाल देंगे.” उस ने कहा.

मैं ने जाहिद से वह सभी बातें पूछीं, जो ऐसे मामले में पूछनी जरूरी होती हैं. करामत नाम के जिस शादीशुदा आदमी के साथ वह बीवी के भागने की बात कर रहा था, मैं ने उस का भी नामपता नोट कर के एक कांस्टेबल को करामत को बुलाने के लिए उस के घर भेज दिया. लेकिन कांस्टेबल उस की जगह उस के पिता और भाई को ले आया. दोनों ही डरे हुए थे.

उन्होंने बताया कि करामत घर पर नहीं है. पिता ने कहा कि वह सुबह ही घर से निकल गया था, जबकि भाई का कहना था कि वह रात का खाना खा कर निकला था और घर नहीं आया था. दोनों के बयान अलगअलग होने की वजह से मैं ने बाप से पूछा. मेरे सवालों से बाप परेशान हो गया. उस की आंखें लाल हो गईं. लग रहा था कि वह रोने वाला है.

वह कहने लगा, “साहब, मेरा यह बेटा पता नहीं मुझे कहांकहां अपमानित कराएगा. उसी की वजह से मुझे आज थाने आना पड़ा.”

यह कहते समय उस के चेहरे पर जो भाव उभरे, वह मुझे आज भी याद हैं. उस ने आगे कहा, “बड़ी इज्जत से जिंदगी गुजारी थी. लेकिन आज उस की वजह से मुझे झूठ बोलना पड़ा. करामत शाम को ही घर से निकला था. अभी तक उस के घर न लौटने पर मुझे भी लगने लगा है कि कहीं वह उसी के साथ ही तो नहीं भागी? बेटे को बचाने के लिए ही मैं झूठ बोल रहा था.”

वह एक सम्मानित आदमी था, इसलिए मैं उसे पूरा सम्मान दे रहा था. वह अपने बेटे को बचाने की पूरी कोशिश में था. मैं ने उसे झूठी सांत्वना देते हुए कहा कि मैं उस के बेटे को बचाने की पूरी कोशिश करूंगा.

इस के बाद उस ने कहा, “साहब मैं ने करामत की शादी 4 साल पहले एक सुंदर, सुघड़ और सुशील लडक़ी से की थी. लेकिन उस ने उसे दिल से कबूल नहीं किया, क्योंकि वह मुनव्वरी नाम की एक लडक़ी से शादी करना चाहता था. हम ने मुनव्वरी का हाथ उस के बाप से मांगा, लेकिन पता नहीं क्यों उस ने मना कर दिया. मुनव्वरी बड़ी दिलेर निकली, उस ने अपने पति की परवाह नहीं की और करामत से मिलना जारी रखा.

“पता चला है कि इसी बात को ले कर मुनव्वरी की अपने पति से रोज लड़ाई होती थी. मैं ने भी अपने बेटे को समझाया, लेकिन वह मेरी सुनता ही नहीं था. इसी वजह से वह अपनी बीवी में ज्यादा रुचि नहीं लेता था.

“इस के बावजूद भी उस की बीवी संतोष कर के बैठी रही. उसे एक बच्चा भी हो गया, फिर भी करामत ने घर को घर नहीं समझा. मुनव्वरी के जाल में ऐसा फंसा रहा कि मांबाप और बीवीबच्चों को भूल गया.

“मुनव्वरी के बाप को भी पता था कि उस की बेटी क्या कर रही है. लेकिन डीसी औफिस में नौकरी करने की वजह से वह घमंड में चूर रहता था. उस ने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया.”

मैं ने उस से पूछा, “क्या आप बता सकते हैं कि करामत मुनव्वरी को ले कर कहां गया होगा?”

वह सोच कर बोला, “जबलपुर छावनी में उस के चाचा का लडक़ा रहता है. वह फौज में है. उस से करामत की गहरी दोस्ती है. हो सकता है वह वहीं गया हो?”

मैं ने उन दोनों से पूछताछ कर के उन्हें घर भेज दिया. मुनव्वरी और करामत के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हो चुकी थी. यह मामला खोजबीन का नहीं, पीछा करने का था. खोजबीन उस मामले में होती है, जिस में अपराधी का पता न हो. इस मामले में अपराधी का नामपता सब कुछ था. उन दोनों को सिर्फ ढूंढना था. मैं ने दोनों की फोटो ले कर विभिन्न थानों को सूचना भेज दी. इस मामले को मैं खुद देख रहा था. करामत के चरित्र के बारे में पता चला कि वह इसी कस्बे में एक बैंक में नौकरी करता था, साथ ही एक बीमा कंपनी में एजेंट भी था.

गुनाह : भूल का एहसास – भाग 3

‘‘तुम पहले ही मुझे इतना छल चुके हो कि अब और गुंजाइश बाकी नहीं है. सच तो यह है कि तुम्हारे लिए मेरी अहमियत उस फूल से अधिक कभी नहीं रही, जिसे जब चाहा मसल दिया. तुम ने कभी समझने की कोशिश ही नहीं की कि बिस्तर से परे भी मेरा कोई वजूद है. मैं भी तुम्हारी तरह इंसान हूं. मेरा शरीर भी हाड़मांस से बना हुआ है, जिस के भीतर दिल धड़कता है और जो तुम्हारी तरह ही सुखदुख का अनुभव करता है.’’

‘‘इस बीच रीना ने मेरी बहुत सहायता की. जीने की प्रेरणा दी. कदमकदम पर हौसला बढ़ाया. वह भावनात्मक संबल न देती तो मैं टूट गई होती. अपना अस्तित्व बचाने के लिए मैं अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थी. उस ने भरपूर साथ दिया. तुम ने कभी नहीं चाहा मैं नौकरी करूं. इस के लिए तुम ने हर संभव कोशिश भी की. अपने बराबर मुझे खड़ी होते देख तुम विचलित होने लगे थे. दरअसल, मेरे आंसुओं से तुम्हारा अहं तुष्ट होता था, शायद इसीलिए तुम्हारी कुंठा छटपटाने लगीथी.’’

‘‘मुझे अपने सारे जुर्म स्वीकार हैं. जो चाहे सजा दो मुझे, पर प्लीज अपने घर लौट चलो,’’ मैं असहाय भाव से गिड़गिड़ाता हुआ बोला.

‘‘कौन सा घर?’’ वह आपे से बाहर हो गई, ‘‘ईंट पत्थर की बेजान दीवारों से बना वह ढांचा, जहां तुम्हारे तुगलकी फरमान चलते हैं? तुम्हें जो अच्छा लगता वही होता था वहां. बैडरूम की लोकेशन से ले कर ड्राइंगरूम की सजावट तक सब में तुम्हारी ही मरजी चलती थी. मुझे किस रंग की साड़ी पहननी है, किचन में कब क्या बनना है, इस सब का निर्णय भी तुम ही लेते थे. वह सब मुझे पसंद है भी या नहीं, इस से तुम्हें कुछ लेनादेना नहीं था. मैं टीवी देखने बैठती तो रिमोट तुम झपट लेते. जो कार्यक्रम मुझे पसंद थे उन से तुम्हें चिढ़ थी.

‘‘वहां दूरदूर तक मुझे अपना अस्तित्व कहीं भी नजर नहीं आता था… हर ओर तुम ही तुम पसरे हुए थे. मेरे विचार, मेरी भावनाएं, मेरा अस्तित्व सब कुछ तिरोहित हो गया तुम्हारी विक्षिप्त कुंठाओं में. तुम्हारी हिटलरशाही की वजह से मेरा जीना हराम हो गया था. उस अंधेरी कोठरी में दम घुटता था मेरा, इसीलिए उस से दूर बहुत दूर यहां आ गई हूं ताकि सुकून के 2 पल जी सकूं, अपनी मरजी से.’’

‘‘अब तुम जो चाहोगी वही होगा वहां. तुम्हारी मरजी के बिना एक कदम भी नहीं चलूंगा मैं. तुम्हारे आने के बाद से वह घर खंडहर हो गया है. दीवारें काट खाने को दौड़ती हैं. बेटी की किलकारियां सुनने को मन तरस गया है. उस खंडहर को फिर से घर बना दो रेवा,’’ मेरा गला भर आया था.

‘‘अपनी गंदी जबान से मेरी बेटी का नाम मत लो,’’ उस की आवाज से नफरत टपकने लगी, ‘‘भौतिक सुख और रासायनिक प्रक्रिया मात्र से कोई बाप कहलाने का हकदार नहीं हो जाता. बहुत कुछ कुरबान करना पड़ता है औलाद के लिए. याद करो उन लमहों को, जब मेरे गर्भवती होने पर तुम गला फाड़फाड़ कर चीख रहे थे कि मेरे गर्भ में तुम्हारा रक्त नहीं, मेरे बौस का पल रहा है. तुम्हारे दिमाग में गंदगी का अंबार देख कर मैं स्तब्ध रह गई थी. कितनी आसानी से तुम ने यह सब कह दिया था, पर मैं भीतर तक घायल हो गईथी तुम्हारी बकवास सुन कर. जी तो चाहा था कि तुम्हारी जबान खींच लूं, पर संस्कारों ने हाथ जकड़ लिए थे मेरे.

‘‘तुम चाहते थे कि मैं गर्भपात करा लूं. अपनी बात मनवाने के लिए जुल्मों का हथकंडा भी अपनाया पर मैं अपने अंश को जन्म देने के लिए दृढ़संकल्प थी. प्रसव कक्ष में मैं मौत से संघर्ष कर रही थी और तुम श्रुति के साथ गुलछर्रे उड़ा रहे थे. एक बार भी देखने नहीं आए कि मैं किस स्थिति में हूं. तुम तो चाहते ही थे कि मैं मर जाऊं ताकि तुम्हारा रास्ता साफ हो जाए. इस मुश्किल घड़ी में रीना साथ न देती तो मर ही जाती मैं.’’

आंखों में आंसू लिए मैं अपराधी की भांति सिर झुकाए उस की बात सुनता रहा.

‘‘मुझे परेशान करने के तुम ने नएनए तरीके खोज लिए थे. तुम मेरी तुलना अकसर श्रुति से करते थे. तुम्हारी निगाह में मेरा चेहरा, लिपस्टिक लगाने का तरीका, हेयरस्टाइल, पहनावा और फिगर सब कुछ उस के आगे बेहूदा था. मेरी हर बात में नुक्स निकालना तुम्हारी आदत में शामिल हो गया था. मूर्ख, पागल, बेअक्ल… तुम्हारे मुंह से निकले ऐसे ही जाने कितने शब्द तीर बन कर मेरे दिल के पार हो जाते थे. मैं छटपटा कर रह जाती थी. भीतर ही भीतर सुलगती रहती थी तुम्हारे शब्दालंकारों की अग्नि में. इतनी ही बुरी लगती हूं तो शादी क्यों की थी मुझ से? मेरे इस प्रश्न पर तुम तिलमिला कर रह जाते थे.

‘‘उकता गई थी मैं उस जीवन से. ऐसा लगता था जैसे किसी ने अंधेरी कोठरी में बंद कर दिया हो. मेरी रगरग में विषैले बिच्छुओं के डंक चुभने लगे थे. जहर घुल गया था मेरे लहू में. सांस घुटने लगी थी मेरी. उस दमघोंटू माहौल में मैं अपनी बेटी का जीवन बरबाद नहीं कर सकती. उपेक्षा के जो दंश मैं ने झेले हैं, उस की छाया उस पर हरगिज नहीं पड़ने दूंगी. बेहतर है, तुम खुद ही चले जाओ वरना तुम जैसे बेगैरत इंसान को धक्के मार कर बाहर का रास्ता दिखाना भी मुझे अच्छी तरह आता है.

एक बात और समझ लो,’’ मेरी ओर उंगली तान कर वह शेरनी की तरह गुर्राई, ‘‘भविष्य में भूल कर भी इधर का रुख किया तो बाकी बची जिंदगी जेल में सड़ जाएगी,’’ मेरी ओर देखे बिना उस ने अंदर जा कर इस तरह दरवाजा बंद किया जैसे मेरे मुंह पर तमाचा मारा हो.

मैं किंकर्तव्यविमूढ सा खड़ा रहा. इंसान के गुनाह साए की तरह उस का पीछा करते हैं. लाख कोशिशों के बाद भी वह परिणाम भुगते बगैर उन से मुक्त नहीं हो सकता. कल मैं ने जिस का मोल नहीं समझा, आज मैं उस के लिए मूल्यहीन था. यह दुनिया कुएं की तरह है. जैसी आवाज दोगे वैसी ही प्रतिध्वनि सुनाई देगी. जो जैसे बीज बोता है वैसी ही फसल काटता है. तनहाई की स्याह सुरंगों की कल्पना कर मेरी आंखों में मुर्दनी छाने लगी. आवारा बादल सा मैं खुद को घसीटता अनजानी राह पर चल दिया. टूटतेभटकते जैसे भी हो, अब सारा जीवन मुझे अपने गुनाहों का प्रायश्चित्त करना था.