जब सास बनी फांस : बेटे ने ली जान

8 जनवरी की रात को दोनों बापबेटे खेत पर सोने गए थे, जबकि घर पर संजय की पत्नी मायाबाई और मां कसुम थी. सुबह को संजय की पत्नी मायाबाई ने उसे फोन पर बताया कि थोड़ी देर पहले वह सो कर उठी तो उस के कमरे का दरवाजा बाहर से बंद मिला. मायाबाई ने उसे आगे बताया कि फोन लगाने से पहले उस ने सासू मां को कई आवाजें दी थीं. लेकिन जब उन की तरफ से कोई उत्तर नहीं मिला, तब उस ने उन्हें फोन लगाया.

‘‘कहीं ऐसा तो नहीं कि अम्मा दिशामैदान चली गई हों, तुम इंतजार करो. हो सकता है, थोड़ी देर में आ जाएं.’’ संजय बोला.

‘‘मैं काफी देर से उन का इंतजार कर रही हूं, आज तक वह बाहर से दरवाजा बंद कर के कभी नहीं गईं. आप जल्द दरवाजा खोल दो.’’ मायाबाई ने पति से कहा.

पत्नी की बात सुन कर संजय घर पहुंच गया. उस ने कमरे का दरवाजा खोला तो माया बहुत घबराई हुई थी. संजय ने उस से पूछा तो उस ने कहा कि पता नहीं किस ने कमरे का दरवाजा बंद कर दिया था.

इस के बाद मियांबीवी दोनों मां के कमरे में गए तो वह कमरे में नहीं थी. कुछ देर तक दोनों ने उस के लौटने का इंतजार किया. काफी देर बाद भी जब वह नहीं लौटी तो संजय ने खेत पर जा कर पिता को यह जानकारी दे दी. मायाबाई भी खेत पर पहुंच गई थी.

पत्नी के गायब होने की बात सुन कर मलुवा चौधरी भी परेशान हो गए. उन के एक खेत में अरहर की फसल खड़ी थी. मायाबाई पति के साथ जब उसी खेत के किनारे से जा रही थी, तभी संजय की नजर अरहर के खेत में पड़ी एक लाश पर गई. वह लाश के नजदीक पहुंचा तो उस की चीख निकल गई. लाश उस की मां कुसुम की थी.

उस की गरदन के आसपास कई जगह कुल्हाड़ी के गहरे घाव थे. खून से सनी कुल्हाड़ी भी वहीं पड़ी थी. इस से लग रहा था कि किसी ने उसी कुल्हाड़ी से उस की हत्या की है.

संजय की चीखपुकार पर पास के खेतों में सो रहे किसान कन्हैयालाल और मांगीलाल भी आ गए. कुछ देर बाद संजय ने यह खबर डायल 100 को दे दी. कुछ देर बाद पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. डायल-100 के एक पुलिसकर्मी ने मामले की जानकारी पवई थाने के टीआई एस.पी. शुक्ला को दे दी.

महिला की हत्या की सूचना मिलते ही थानाप्रभारी सिपाही संजय को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. टीआई ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. मृतका कुसुम के शव से बहा खून अभी भी सूखा नहीं था. इस से टीआई समझ गए कि घटना सुबह हुई है.

उन्होंने सोचा कि जब कुसुम दिशामैदान के लिए खेत में आई होगी, तभी किसी ने उस की हत्या कर दी. लेकिन शव के पास लोटा वगैरह नहीं था. सवाल यह उठा कि अगर कुसुम शौच के लिए नहीं आई तो खेत पर सुबहसुबह क्यों आई.

हत्या की खबर पा कर एसपी मयंक अवस्थी, डीएसपी (पवई) डी.एस. परिहार भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने भी मौकामुआयना किया. टीआई द्वारा पूछताछ करने पर कुसुम के पति मलुवा और बेटे संजय ने किसी से दुश्मनी होने की बात से इनकार कर दिया. संजय की पत्नी मायाबाई ने भी सारी जानकारी पुलिस को दे दी.

इस के बाद पुलिस ने उन के घर का मुआयना किया. पूछताछ करने पर टीआई को कुसुम के किसी परिचित पर ही हत्या का शक था, क्योंकि जिस कमरे में कुसुम सो रही थी, वहां किसी संघर्ष के कोई निशान नहीं मिले थे. इस से लग रहा था कि कुसुम अपनी मरजी से उठ कर ही बाहर आई थी.

मायाबाई के कमरे का दरवाजा बाहर से बंद किए जाने को ले कर टीआई का मानना था कि संभव है, कुसुम के गांव के किसी आदमी से अवैध संबंध हों. उस का आशिक रात में कुसुम से मिलने घर आया होगा. कहीं बहू अपने कमरे से निकल कर सास के कमरे में न आ जाए, इसलिए उस ने ही मायाबाई के कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया होगा.

इस के बाद किसी बात को ले कर कुसुम का उस के प्रेमी से विवाद हुआ होगा. इसी के चलते उस व्यक्ति ने कुसुम की हत्या कर दी होगी. लेकिन 56 साल की कुसुम का प्रेम पुलिस के गले नहीं उतर रहा था. फिर भी टीआई ने पुष्टि के लिए गांव में कुसुम के चालचलन की जानकारी जुटानी शुरू की.

इस जांच में कुसुम के बारे में तो नहीं लेकिन उस की बहू मायाबाई के बारे में यह जानकारी निकल कर आई कि गांव में सब से ज्यादा सुंदर मानी जाने वाली मायाबाई का चालचलन संदिग्ध था. आसपास के लोगों ने यह भी बताया कि मायाबाई का चक्कर पड़ोस में रहने वाले एक 19 वर्षीय युवक हलके चौधरी के साथ था.

पुलिस पहले भी संजय की पत्नी मायाबाई से पूछताछ कर चुकी थी, लेकिन उस के बयानों में पुलिस को कुछ भी संदिग्ध नहीं लगा था. सिवाय इस के कि बयान देते समय मायाबाई एक हाथ लंबा घूंघट निकाले रहती थी.

इस से टीआई को लगा कि हो सकता है मायाबाई अपने चेहरे के भाव छिपाने के लिए घूंघट का सहारा लेती हो, इसलिए उस के बारे में नई जानकारी मिलने के बाद टीआई शुक्ला ने एक महिला पुलिसकर्मी को मायाबाई से पूछताछ करने को कहा.

महिला पुलिसकर्मी ने उस का घूंघट खुलवा कर उस से घटना वाली रात के बारे में कई सवाल पूछते हुए अचानक से पूछा, ‘‘अच्छा, यह बता कि हलके तेरे पास कितने बजे आया था?’’

हलके का नाम सुनते ही मायाबाई का चेहरा बुझ गया. पहले तो वह सकपकाई फिर बोली, ‘‘कौन हलके? वो मेरे पास क्यों आएगा?’’

‘‘ज्यादा सयानी मत बन. पुलिस को सारी बात पता चल गई है. उस रात हलके तुझ से मिलने आया था, इसलिए सीधेसीधे बता दे कि हलके ने तेरी सास को क्यों मारा? देख, तू सच बता देगी तो पुलिस तुझे छोड़ देगी वरना तुझे जेल जाने से कोई नहीं रोक सकेगा.’’

मायाबाई पुलिस की बातों में आ गई, उस ने स्वीकार कर लिया कि उस रात सास ने उसे उस के प्रेमी हलके के साथ देख लिया था. इस के बाद हालात ऐसे बने कि उस ने प्रेमी के साथ मिल कर सास की हत्या कर दी.

पुलिस पूछताछ में बहू के इश्क में सास के कत्ल की कहानी इस प्रकार सामने आई—

कोई 5 साल पहले मायाबाई जब संजय के साथ ब्याह कर गांव में आई, तब उस की उम्र 21 साल थी. पति के साथ कुछ समय तो उस के दिन अच्छे बीते लेकिन बाद में संजय पत्नी के बजाए खेती पर ज्यादा ध्यान देने लगा. पत्नी की भावनाओं को नजरंदाज करते हुए वह घर के बजाए रात को खेतों पर ही सोने लगा.

ऐसे में मायाबाई की नजरें पड़ोस में रहने वाले युवक हलके चौधरी से लड़ गईं. वह मायाबाई से 2 साल छोटा था और उसे भौजी कहता था. गांव में मायाबाई के आते ही उस की सुंदरता के चर्चे होने लगे थे. लेकिन उस वक्त हलके इन सब बातों में ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेता था. धीरेधीरे उस की उम्र बढ़ी तो उस के मन में भी मायाबाई की खूबसूरती गुदगुदी करने लगी.

मायाबाई के कच्चे मकान में कच्चा बाथरूम बाहर आंगन में था, जो हलके के घर से साफ दिखाई देता था. इसलिए 20 साल की उम्र तक आतेआते जब हलके के मन में जवानी की तरंगें उछाल मारने लगीं तो वह मायाबाई को नहाते हुए छिप कर देखने लगा.

इसी बीच करीब साल भर पहले एक दिन नहा रही मायाबाई की नजर हलके पर पड़ गई. उस ने उस से कुछ नहीं कहा. वह समझ गई थी कि हलके चौधरी की जवानी अंगड़ाई ले रही है.

फिर मायाबाई के मन में भी चुहल करने की बात घर कर गई. अगले दिन से वह चोरीछिपे ताकाझांकी करने वाले हलके को अपने रूप के और भी खुले दर्शन करवाने लगी. मायाबाई ने यह खेल हलके के मन में आग लगाने के लिए खेला था. लेकिन धीरेधीरे उसे न केवल इस खेल में मजा आने लगा, बल्कि हलके के प्रति उस के मन में भी चाहत पैदा हो गई.

हलके का मायाबाई के घर आनाजाना था, इसलिए जब भी हलके मायाबाई के घर आता तो वह उस से हंसीमजाक करती, जिस से कुछ दिनों में हलके की समझ में भी आ गया कि मायाबाई उस के मन की बात समझ चुकी है.

इसलिए एक दिन दोपहर में वह उस समय मायाबाई के घर पहुंचा, जब वह घर पर अकेली थी. मायाबाई को भी ऐसे ही मौके का इंतजार था. उस रोज मायाबाई ने बातोंबातों में हलके से पूछ लिया, ‘‘हलके, तुम मुझे यह बताओ कि तुम्हारी कोई प्रेमिका है?’’

‘‘नहीं.’’ हलके चौधरी ने जवाब दिया.

‘‘क्यों, अभी तक क्यों नहीं बनाई? तुम्हारा मन तो होता होगा?’’ मायाबाई ने पूछा.

‘‘नहीं.’’ हलके ने झूठ बोला.

‘‘मन नहीं होता तो फिर छिप कर मुझे नहाते क्यों देखते हो? मैं तो समझी थी कि मेरा देवर कई लड़कियों से दोस्ती कर चुका होगा, इसलिए अब मेरे साथ दोस्ती करना चाहता है.’’ मायाबाई मुसकराते हुए बोली.

‘‘वो तो इसलिए कि आप अच्छी लगती हो.’’

‘‘कभी मेरी सुंदरता को पास से देखने का मन नहीं करता तुम्हारा?’’ मायाबाई ने पूछा.

‘‘करता है, लेकिन डर लगता है कि कहीं आप गुस्सा न हो जाओ.’’ हलके ने बताया.

‘‘मैं ने कब कहा कि मैं गुस्सा हो जाऊंगी. अच्छा, एक काम करो अभी तो अम्मा खेत से आने वाली हैं. कल सुबह जल्दी आ जाना फिर देख लेना, अपनी भाभी को एकदम पास से और मन करे तो छू कर भी देखना.’’ इतना कह कर मायाबाई ने नौसिखिया हलके के गाल पर एक पप्पी दे कर उसे उस के घर भेज दिया.

दूसरे दिन हलके चौधरी मायाबाई के घर पहुंच गया. उस समय घर में उन दोनों के अलावा कोई नहीं था. मायाबाई ने इस का फायदा उठाया. उस ने हलके को कामकला का ऐसा पाठ पढ़ाया कि वह उस का मुरीद बन गया. इस के बाद तो दोनों के बीच आए दिन वासना का खेल खेला जाने लगा.

मायाबाई को कम उम्र का प्रेमी मिला तो वह उसे बढ़चढ़ कर वासना के खेल सिखाने लगी. जिस के चलते हलके उस का ऐसा दीवाना हुआ कि हर दिन मायाबाई से अकेले में मिल कर प्यार करने की जिद करने लगा. लेकिन यह रोजरोज कैसे संभव हो पाता. इसलिए मायाबाई ने एक रास्ता निकाला.

रात को जब उस का पति और ससुर खेत की रखवाली करने चले जाते तो सास के सो जाने के बाद आधी रात में वह अपने प्रेमी हलके को कमरे में बुला लेती और फिर पूरी रात उसके संग अय्याशी करने के बाद सुबह होने से पहले वापस भेज देती.

8 जनवरी, 2020 की रात को भी यही हुआ. रात में संजय और उस के पिता मलुवा खेत पर चले गए. फिर सास भी खाना खापी कर गहरी नींद सो गई तो मायाबाई ने हलके को बुला लिया. हलके अब प्यार के खेल में काफी होशियार हो चुका था. वह अपने मोबाइल पर अश्लील फिल्में लगा कर मायाबाई को गुदा मैथुन के लिए मना रहा था लेकिन मायाबाई तैयार नहीं हो रही थी. उस रोज हलके ने जिद की तो मायाबाई गुदा मैथुन के लिए राजी हो गई.

उसी दौरान मायाबाई के मुंह से चीख निकली तो बाहर कमरे में सो रही सास की नींद टूट गई. अनुभवी सास ऐसी चीख का मतलब अच्छी तरह जानती थी, सो उस ने उठ कर चुपचाप बहू के कमरे में झांक कर देखा तो पड़ोसी हलके के साथ बहू को अय्याशी करते देख उस की आंखें फटी रह गईं.

सास ने गुस्से में किवाड़ पर लात मार कर दरवाजा खोला और मायाबाई और हलके को खूब खरीखोटी सुनाई. सास बहू की करतूत अपने बेटे को बताने के लिए रात में ही खेत पर जाने लगी.

यह देख कर मायाबाई के हाथपैर फूल गए. उस ने पास पड़ी कुल्हाड़ी उठा कर हलके के हाथ में पकड़ाते हुए कहा कि वह सास की कहानी खत्म कर दे वरना उन के प्यार की कहानी खत्म हो जाएगी.

हलके के हाथपैर कांपने लगे. उस में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह बाहर जा कर कुसुम की हत्या कर सके. लेकिन जब मायाबाई भी साथ हो गई तो दोनों ने पीछे से जा कर खेतों पर पहुंच चुकी कुसुम की गरदन पर कुल्हाड़ी से वार किया, जिस से वह वहीं गिर गई. इस के बाद उस के शरीर पर कुल्हाड़ी से कई वार और किए, जिस से कुसुम की मृत्यु हो गई.

कुछ देर बाद मायाबाई के कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर हलके चौधरी अपने घर चला गया.

दोनों को भरोसा था कि पुलिस उन तक कभी नहीं पहुंच पाएगी, लेकिन पवई पुलिस ने 4 दिन में ही दोनों को कानून की ताकत का अहसास करवा दिया.

 

षड्यंत्रकारी साली : प्रेमी बना हत्यारा

राजस्थान के बूंदी जिले का रहने वाला 30 वर्षीय अभिषेक शर्मा राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल था. उस की पोस्टिंग बूंदी की पुलिस लाइन में थी. 28 अगस्त, 2019 की शाम वह अपनी बहन शीतल से यह कह कर गया था कि ड्यूटी पर जा रहा है.

अगले दिन जब वह घर नहीं लौटा तो उस के पिता भगवती प्रसाद ने उस के मोबाइल पर फोन किया लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ था. परेशान हो कर जब उन्होंने पुलिस लाइन में ही तैनात उस के दोस्त इरशाद को फोन कर के अभिषेक के बारे में पूछा तो उस ने जो बताया, उसे सुन कर सब परेशान हो उठे. इरशाद ने बताया कि अभिषेक ड्यूटी पर पहुंचा ही नहीं था.

किसी को बिना कुछ बताए अभिषेक कहां चला गया? उस का मोबाइल क्यों बंद है? यह सोच कर घर में सभी परेशान थे. एक सप्ताह तक परिवार के लोग अपने स्तर पर अभिषेक का पता लगाने की कोशिश करते रहे लेकिन जब उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो 5 सितंबर को भगवती प्रसाद ने बूंदी कोतवाली पहुंच कर कोतवाल घनश्याम मीणा को बेटे अभिषेक शर्मा के गायब होने की जानकारी दे कर उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी. इतना ही नहीं, उन्होंने शक जताया कि अभिषेक को गायब कराने में उस की पत्नी दिव्या पाठक और साली श्यामा शर्मा का हाथ हो सकता है.

चूंकि मामला विभाग के ही कांस्टेबल के गायब होने का था, इसलिए उन्होंने इस की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दे दी. कांस्टेबल अभिषेक शर्मा का पता लगाने के लिए एएसपी सतनाम सिंह ने एक स्पैशल पुलिस टीम गठित की, जिस में सीओ मनोज शर्मा, कोतवाल घनश्याम मीणा, साइबर सेल के हैडकांस्टेबल मुकेंद्र पाल सिंह, अशोक कुमार, कांस्टेबल राकेश बैंसला आदि को शामिल किया गया.

कोतवाल घनश्याम मीणा ने गुमशुदा कांस्टेबल के पिता भगवती प्रसाद को एक बार फिर थाने में बुला कर उस के बारे में पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि अभिषेक के उस की पत्नी दिव्या पाठक के साथ संबंध ठीक नहीं थे. इस की वजह यह थी कि अभिषेक के प्रेम संबंध दिव्या की फुफेरी बहन श्यामा से हो गए थे.

इस की जानकारी दिव्या को हुई तो उस ने अभिषेक का विरोध किया. लेकिन जब अभिषेक नहीं माना तो दिव्या नाराज हो कर अपने मायके जटवाड़ा चली गई. उस समय वह अपनी डेढ़ साल की बेटी के साथ मायके में ही थी. श्यामा शर्मा बौंली कस्बे में अपने मातापिता के साथ रहती है.

मामला प्रेम प्रसंग का नजर आ रहा था, इसलिए कोतवाल घनश्याम मीणा ने अभिषेक, दिव्या और श्यामा के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. उन्होंने जब इन की काल डिटेल्स की जांचपड़ताल कराई तो पता चला कि घटना वाली रात को साढ़े 12 बजे तक अभिषेक का मोबाइल फोन एक्टिव था. इस के बाद उस का फोन विजयगढ़ किले में जा कर स्विच्ड औफ हो गया था.

विजयगढ़ किले में अभिषेक की अंतिम लोकेशन मिलने के बाद कोतवाल घनश्याम मीणा ने उस के घर वालों को इस के बारे में बताया और अभिषेक के संभावित जगहों पर जाने के बारे में पूछताछ की. उन्होंने बताया कि इस जगह से उस की पत्नी दिव्या का मायका जटवाड़ा नजदीक है. शायद वह उस से मिलने वहां गया हो.

इस के बाद पुलिस ने इस मामले को आपसी कलह के ऐंगल से भी देखना शुरू किया, लेकिन जब पुलिस टीम दिव्या पाठक से मिलने उस के गांव पहुंची तो उस ने बताया कि अभिषेक उस से मिलने नहीं आया था. अभिषेक के घर वालों ने अपना शक उस की साली श्यामा पर भी जाहिर किया था, इसलिए पुलिस का ध्यान अब श्यामा पर केंद्रित हो गया.

पुलिस की जांच बड़ी धीमी रफ्तार से बढ़ रही थी. उधर गुमशुदा अभिषेक शर्मा के घर वालों के सब्र का बांध टूटता नजर आ रहा था. वे दिनरात अपने बेटे की सलामती जानने के लिए बूंदी कोतवाली का चक्कर लगा रहे थे. अभिषेक की साली श्यामा शर्मा के मोबाइल की काल डिटेल्स से पता चला कि श्यामा की अभिषेक शर्मा के गायब होने तक रोज उस की लंबीलंबी बातें होती थीं.

लेकिन श्यामा की काल डिटेल्स में एक और भी नंबर शक के दायरे में आया. उस नंबर पर भी श्यामा बात करती थी. इस संदिग्ध फोन नंबर की काल डिटेल्स निकालने के बाद पता चला कि यह नंबर नावेद रंगरेज नामक युवक का है जो श्यामा के गांव बौंली का ही निवासी था.

वह जयपुर में फाइनैंस का काम करता था. इस से कोतवाल मीणा का शक और पुख्ता हो गया और उन्होंने श्यामा और नावेद रंगरेज दोनों को पूछताछ के लिए कोतवाली बुला लिया.

जब श्यामा और नावेद रंगरेज दोनों कोतवाली पहुंचे तो कोतवाल घनश्याम मीणा ने उन दोनों से अभिषेक शर्मा के गायब होने के बारे में पूछा. लेकिन दोनों ने पुलिस को गुमराह करने की भरपूर कोशिश की. उन दोनों के सामने जब अभिषेक और उन दोनों की काल डिटेल्स और लोकेशन दिखा कर मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की तो वे टूट गए. उन्होंने स्वीकार किया कि 28 अगस्त की रात उन्होंने कांस्टेबल अभिषेक शर्मा की हत्या कर उस की लाश गायब कर दी थी.

पुलिस की तहकीकात और मृतक कांस्टेबल अभिषेक शर्मा के घर वालों से पूछताछ के बाद इस हत्याकांड के पीछे की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह कुछ इस प्रकार है—

कांस्टेबल अभिषेक शर्मा अपने मातापिता के साथ राजस्थान के बूंदी शहर स्थित बीबनवा रोड पर रहता था. करीब 11 साल पहले उस की नौकरी राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल के पद पर लगी थी. बाद में उस ने कमांडो की ट्रेनिंग भी ली थी. इन दिनों वह बूंदी की पुलिस लाइन में तैनात था.

अभिषेक की शादी सवाई माधोपुर जिले के जरवाड़ा गांव की दिव्या पाठक से हुई थी. अभिषेक औसत कदकाठी का हैंडसम युवक था. दिव्या उसे अपने पति के रूप में पा कर खुश थी.

ससुराल में पति के अतिरिक्त सासससुर, ननद सभी थे. वहां दिव्या को किसी चीज की कमी नहीं थी. वह खुद को दुनिया की सब से भाग्यशाली औरत समझती थी. शादी के कुछ साल बाद जब उस ने एक लड़की को जन्म दिया तो उस की किलकारियों से घर का वातावरण सुहाना हो गया.

दिव्या की एक फुफेरी बहन थी श्यामा. श्यामा सांवलीसलोनी जरूर थी, लेकिन वह आकर्षक और सैक्सी दिखती थी. वह खुले दिल की युवती थी. उसे टिकटौक पर अपने गाने व वीडियो डालने का शौक था. चूंकि वह किशोर उम्र से वीडियो बना रही थी, इसलिए अब तक वह 300 से अधिक वीडियो अपलोड कर चुकी थी. सवाई माधोपुर में तो वह टिकटौक गर्ल के नाम से मशहूर थी. दिव्या और श्यामा की आपस में बातचीत होती रहती थी.

इस के अलावा श्यामा पढ़ने में भी तेज थी. 12वीं कक्षा में उस ने 75 प्रतिशत अंक हासिल किए थे. उस के पिता की मृत्यु हो चुकी थी. मां आंगनवाड़ी में काम करती थी.

एक बार श्यामा दिव्या से मिलने उस की ससुराल बूंदी पहुंची तो उस की मुलाकात जीजा अभिषेक से हुई. चुलबुली और बला की खूबसूरत साली को देख कर अभिषेक की नीयत डोल गई. वहां कुछ दिनों रहने के बाद उस की अभिषेक से नजदीकियां बढ़ गईं और दोनों के बीच अवैध संबंध भी बन गए.

दिव्या ने पहले तो इसे महज जीजासाली का प्यार समझा, लेकिन बाद में उस ने अभिषेक और श्यामा को रंगेहाथों पकड़ लिया. इस के बाद घर के हालात बदलते देर नहीं लगी. श्यामा को ले कर अभिषेक के साथ उस का झगड़ा हुआ. आननफानन में दिव्या ने श्यामा के भाई को बुला कर श्यामा को उस के साथ उस के घर भेज दिया.

श्यामा के चले जाने के बाद भी अभिषेक और श्यामा के संबंधों में कमी नहीं आई. दोनों फोन पर देर तक लंबीलंबी बातें करते थे. बाद में अभिषेक उस से मिलने उस के गांव भी जाने लगा, जहां वह श्यामा के साथ अपने मन की मुराद पूरी कर लेता था. वहां कई दिन रुकने के बाद वह बूंदी लौट आता था. दिव्या और अभिषेक के बीच इस बात को ले कर रोजरोज दूरियां बढ़ने लगीं तो नौबत मारपीट तक जा पहुंची.

आखिरकार दिव्या ने पति की हरकतों से तंग आ कर बूंदी थाने में पति के खिलाफ मारपीट का मामला दर्ज करा दिया और अपने मायके जरवाड़ा चली गई. अभिषेक ने भी दिव्या के खिलाफ गहने चोरी करने का मामला दर्ज करा दिया और कोर्ट में उस से तलाक की अरजी डाल दी. अब वह श्यामा के साथ शादी कर के उसी के साथ जिंदगी गुजारना चाहता था. वह उस पर शादी करने का दबाव डालने लगा.

उधर श्यामा ने जब अपनी ममेरी बहन का घर उजड़ते देखा तो उसे होश आया. दूसरे अभिषेक उस से उम्र में 10-12 साल बड़ा था. वह उस से किसी भी कीमत पर शादी नहीं करना चाहती थी. इसलिए उस ने अभिषेक से कहा कि वह उस से शादी नहीं करेगी, क्योंकि इस से उस की बहन का घर उजड़ जाएगा. लेकिन अभिषेक किसी भी हाल में उसे छोड़ने के लिए तैयार नहीं था. वह श्यामा पर शादी करने का दबाव बनाने लगा. अभिषेक की इन हरकतों से श्यामा तंग आ गई और अभिषेक से पीछा छुड़ाने के बारे में वह सोचने लगी.

श्यामा का एक और प्रेमी था नावेद. नावेद उस के गांव का ही लड़का था, जिस के साथ पिछले 4-5 सालों से उस के गहरे संबंध थे. अभिषेक की हत्या से 15 दिन पहले श्यामा ने नावेद की मदद से अभिषेक से पीछा छुड़ाने की योजना तैयार की. नावेद भी चाहता था कि श्यामा के संबंध उस के सिवा किसी और लड़के से न हों.

28 अगस्त, 2019 को योजनानुसार श्यामा ने अभिषेक के मोबाइल पर फोन कर उसे मिलने के लिए अपने गांव बौंली बुलाया. साथ ही कहा कि आज उस का बर्थडे है. वह उस के लिए खाना बना कर लाएगी और दोनों कहीं एकांत जगह पर चलेंगे. वहीं जा कर हम दोनों साथसाथ खाना खाएंगे. फिर वहीं रात भर मौजमस्ती करेंगे.

यह सुन कर अभिषेक उस से मिलने के लिए तैयार हो गया. उस दिन शाम 7 बजे वह अपनी बहन शीतल से यह कह कर निकला कि वह ड्यूटी पर जा रहा है. लेकिन वह पुलिस लाइन में ड्यूटी पर न जा कर बूंदी से करीब 136 किलोमीटर दूर साली के गांव बौंली पहुंच गया.

उस के बौंली पहुंचने के बाद श्यामा ने अपने प्रेमी नावेद को फोन कर के विजयगढ़ किले के धीरावती महल में पहुंचने के लिए कहा और खुद अभिषेक की मोटरसाइकिल पर बैठ कर किले की तरफ रवाना हो गई.

वहां पहुंच कर श्यामा अभिषेक को अपने हाथों से खाना खिलाने लगी. उस खंडहर में जाने पर अभिषेक को भी कुछ शक हो रहा था. लेकिन कमांडो ट्रेनिंग कर चुका अभिषेक बहुत सतर्क था. वह बारबार इधरउधर देख रहा था.

आड़ में छिपा नावेद अभिषेक पर हमला करने का मौका देख रहा था, लेकिन उस पर हमला करने से उसे भी डर लग रहा था. उस के हाथ इसलिए कांप रहे थे कि यदि उस का निशाना सही नहीं पड़ा तो अभिषेक उस पर भारी पड़ सकता है.

आखिर हिम्मत जुटा कर नावेद दबेपांव अभिषेक के पीछे पहुंचा और अभिषेक के सिर पर लोहे की पाइप से भरपूर प्रहार कर दिया. सिर पर वार होते ही अभिषेक वहीं लुढ़क गया.

इस के बाद श्यामा और नावेद दोनों ने मिल कर गला घोंट कर उस की हत्या कर दी. फिर उस की लाश को नंगा कर पहले से खोदे गए धीरावती महल के गड्ढे में डाल कर उस के ऊपर मिट्टी और कांटेदार झाडि़यां डाल दीं.

अभिषेक की लाश दफनाने के बाद नावेद श्यामा को उस की मोटरसाइकिल पर बिठा कर लौट आया. उस ने श्यामा को उस के गांव के बाहर छोड़ दिया. फिर मोटरसाइकिल काफी दूर ले जा कर एक सुनसान कुएं में डाल दी. इस के बाद वह घर चला गया. मामला शांत हो जाने के बाद वह श्यामा से शादी कर अपनी दुनिया बसाना चाहता था.

अभिषेक की हत्या को 4 महीने हो चुके थे. श्यामा और नावेद समझ रहे थे कि पुलिस उन दोनों तक नहीं पहुंच पाएगी, लेकिन एएसपी हरनाम सिंह के निर्देशन में बूंदी थाने की पुलिस कड़ी से कड़ी जोड़ते हुए मामले की तह तक पहुंच गई और 18 दिसंबर, 2019 को दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया.

आरोपी श्यामा और उस के प्रेमी नावेद से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश कर 3 दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया. इस दौरान पुलिस उन की निशानदेही पर कांस्टेबल अभिषेक शर्मा की लाश तक पहुंची, जो कंकाल में बदल चुकी थी. पुलिस ने अभिषेक का कंकाल विजयगढ़ किले के खंडहर हो चुके धीरावती महल से बरामद कर लिया. जबकि उस की मोटरसाइकिल वहां से कुछ दूरी पर एक वीरान कुएं में मिली.

नावेद की निशानदेही पर अभिषेक शर्मा के रक्तरंजित कपड़े एक तालाब से बरामद किए गए. घटना के बाद उस के कपड़े नावेद ने एक पौलीथिन में भर कर फेंक दिए थे.

रिमांड अवधि पूरी होने के बाद कोर्ट के आदेश पर अभिषेक शर्मा हत्याकांड की आरोपी श्यामा शर्मा को नारी सुधारगृह और नावेद को जेल भेज दिया गया. जिस समय अभिषेक की हत्या हुई थी, उस समय श्यामा के 18 साल पूरे होने में केवल 6 दिन बाकी थे, इसलिए कोर्ट ने उसे नाबालिग माना. हालांकि 18 दिसंबर को जब उसे गिरफ्तार किया गया तो वह बालिग हो चुकी थी. बहरहाल, कुछ भी हो, कत्ल करने का दाग उस के दामन पर लग ही गया है.

 

10 रूपए का कत्ल : प्रेमी बना भाई का हत्यारा

रोजाना की तरह पूनम उस दिन भी स्कूल जाने के लिए अपनी साइकिल से निकली तो रास्ते में पहले से उस का इंतजार कर रहे विकास ने उस के पीछे अपनी साइकिल लगा दी. पूनम ने विकास को पीछे आते देखा तो अपनी साइकिल की गति और तेज कर दी.विकास अपनी साइकिल की रफ्तार और तेज कर के पूनम के आगे जा कर इस तरह खड़ा हो गया कि अगर वह अपनी साइकिल के ब्रेक न लगाती तो जमीन पर गिर जाती.

साइकिल संभालते हुए पूनम साइकिल से उतर कर खड़ी हुई और बोली, ‘‘देख नहीं रहे हो, मैं स्कूल जा रही हूं. आज वैसे भी देर हो गई है. अगर हमें किसी ने देख लिया तो बिना मतलब बात का बतंगड़ बनते देर नहीं लगेगी.’’

‘‘जिसे जो बातें बनानी हैं, बनाता रहे. मुझे किसी की परवाह नहीं है.’’ विकास ने बड़े प्यार से अपनी बात कह डाली.

पूनम स्कूल जाने के लिए मन ही मन बेचैन थी. उस ने विकास की तरफ देखा और उस से अनुरोध करते हुए बोली, ‘‘देखो, मुझे देर हो रही है. अभी मुझे स्कूल जाने दो. मैं तुम से बाद में मिल लूंगी. तुम्हें जो बात करनी हो, कर लेना.’’

विकास पूनम की बात सुन कर नरम पड़ गया. वह अपनी साइकिल को साइड में कर के पूनम के चेहरे को देखते हुए बोला, ‘‘पूनम, तुम मेरी आंखों में झांक कर देखो, इस में तुम्हें बेपनाह मोहब्बत नजर आएगी. तुम्हें पता है, तुम्हारी चाहत में मैं सब कुछ भूल गया हूं. मुझे दिनरात बस तुम ही तुम नजर आती हो.’’

‘‘वह सब तो ठीक है विकास, पर तुम्हें यह तो पता है कि हम एक ही जगह के हैं और हमारे तुम्हारे घर के बीच बहुत ज्यादा फासला नहीं है. अगर हम दोनों इस तरह प्यारमोहब्बत की पेंग बढ़ाएंगे तो मोहल्ले वालों से हमारा प्रेम कब तक छिपा रहेगा.

‘‘तुम मेरे पिता को तो जानते हो, बातबात में गुस्सा हो जाते हैं. अगर उन्हें हम दोनों के प्रेम की भनक लगी तो मैं बदनाम हो जाऊंगी. फिर मेरे पिता मेरी क्या गत बनाएंगे, यह तो ऊपर वाला ही जाने.’’ वह बोली.

‘‘पूनम, मैं सपने में भी तुम्हें बदनाम करने की नहीं सोच सकता. तुम तो मेरी मोहब्बत हो और मोहब्बत के लिए लोग न जाने क्याक्या कर जाते हैं. तुम सिर्फ जरा सी बदनामी से डरती हो. पता है, मैं तुम से मिलने और बातें करने के लिए क्याक्या तिकड़म भिड़ाता हूं.

‘‘तब कहीं जा कर तुम से तनहाई में मुलाकात होती है. देखो पूनम, मैं तुम्हें बदनाम नहीं होने ही दूंगा. और हां, मैं ने निर्णय ले लिया है कि शादी करूंगा तो सिर्फ तुम से. मेरी दुलहन तुम्हारे अलावा कोई दूसरी नहीं होगी, फिर बदनामी कैसी.’’

पूनम कुछ देर शांत मन से विकास की बातें सुनती रही. फिर लंबी सांस ले कर बोली, ‘‘अच्छा, अब बस करो, मैं स्कूल जा रही हूं. मुझे काफी देर हो चुकी है.’’

पूनम ने इतना कह कर अपनी साइकिल आगे बढ़ाई ही थी कि विकास मुसकराता हुआ बोला, ‘‘हां जाओ, लेकिन मिलने के लिए थोड़ा समय निकाल लिया करो.’’

पूनम बिना कुछ बोले अपने स्कूल की ओर बढ़ गई. पूनम के स्कूल जाने वाले रास्ते के उस मोड़ के पास विकास अकसर उस का रास्ता रोक कर कभी प्रेम से तो कभी थोड़ा गुस्से में अपने प्रेम का इजहार करने लगता था.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिला रामपुर, थाना स्वार की चौकी मसवासी के अंतर्गत एक मोहल्ला है भूबरा. वीर सिंह अपने परिवार के साथ इसी मोहल्ले में रहता था. परिवार में उस की पत्नी के अलावा 3 बेटे और 2 बेटियां थीं.

वीर सिंह और उस की पत्नी प्रेमवती दोनों दिव्यांग थे. वीर सिंह हाईस्कूल पास था. वह मोहल्ले के छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता था. बड़ा बेटा गिरीश नौकरी करता था. बापबेटे मिल कर परिवार का बोझ उठाते थे.

वीर सिंह की बेटी पूनम खूबसूरत भी थी और चंचल भी. वीर सिंह और प्रेमवती उसे बहुत चाहते थे. पूनम एक स्थानीय स्कूल में दसवीं में पढ़ती थी.

15 वर्षीय पूनम उम्र के उस पायदान पर खड़ी थी, जहां शरीर में काफी बदलाव आ जाते हैं और दिल में उमंग की लहरें हिचकोले लेने लगती हैं. पूनम पहले से ही सुंदर थी, लेकिन जब कुदरत ने उस के बदन को खूबसूरती के सांचे में ढाल कर आकर्षक आकार दिया तो उस की सुंदरता कयामत ढाने लगी, जिस का पूनम को भी अहसास हो गया था.

अपनी सुंदरता पूनम को लुभाती तो थी, लेकिन लोगों की चुभती नजरों से बचने के लिए उसे तरहतरह के जतन करने पड़ते थे. वह लोगों की गिद्ध दृष्टि को अच्छी तरह पहचानती थी. लेकिन विकास उन सब से अलग था. उस की आंखों में पूनम को अपने लिए अलग तरह की चाहत दिखती थी. विकास स्मार्ट भी था और खूबसूरत भी.

विकास मौर्य भी भूबरा मोहल्ले में ही रहता था. पूनम के घर से उस के घर की दूरी महज ढाई सौ मीटर थी. विकास के पिता नरपाल मौर्य खेतीकिसानी का काम करते थे. घर में पिता के अलावा उस की मां जगदेवी, एक बड़ा भाई और 3 बहनें थीं.

वीर सिंह और नरपाल मौर्य के परिवारों का एकदूसरे के घर आनाजाना था. इसी आनेजाने में जब विकास की नजर जवान होती पूनम पर पड़ी तो वह बरबस उस की ओर आकर्षित होगया और उसे मन ही मन चाहने लगा.

लेकिन पूनम के घर वालों की वजह से उसे अकेले में पूनम से बात करने का मौका नहीं मिल पाता था. विकास हमेशा इस फिराक में रहता था कि मौका मिले तो पूनम से बात करे.

संयोग से एक साल पहले विकास को मौका मिल गया. पूनम के घर वाले किसी शादी समारोह में गए हुए थे. पूनम घर पर अकेली थी. यह पता चलते ही विकास बहाने से वीर सिंह के घर पहुंच गया और दरवाजे पर दस्तक दी. पूनम उस समय पढ़ रही थी. दस्तक सुन कर उस ने दरवाजा खोला तो सामने विकास खड़ा था. विकास को देख वह बोली, ‘‘सब लोग शादी में गए हैं. घर में कोई नहीं है.’’

विकास ने पूनम की बात खत्म होते ही कहा, ‘‘देखो पूनम, आज मैं सिर्फ तुम से ही मिलने आया हूं. चाचा से मिलना होता तो कभी भी मिल लेता.’’

‘‘ठीक है, अंदर आ जाओ और बताओ मुझ से क्यों मिलना है.’’ पूनम के कहने पर विकास अंदर आ गया.

विकास के अंदर आते ही पूनम फिर से बोली, ‘‘हां विकास, बोलो, क्या कहना चाहते हो?’’

विकास एकटक पूनम की ओर देखते हुए बोला, ‘‘दरअसल, मैं बहुत दिनों से तुम से एकांत में मिलना चाह रहा था. मैं तुम्हें दिल से चाहने लगा हूं. मुझे तुम से प्यार हो गया है. दिल नहीं माना तो तुम से मिलने चला आया.’’

विकास आगे कुछ और बोलता, इस से पहले ही पूनम के होंठों पर हंसी आ गई. वह मुसकराते हुए बोली, ‘‘आतेजाते तुम मुझे जिस तरह से देखते थे, उस से ही मुझे आभास हो गया था कि जरूर तुम्हारे दिल में मेरे लिए कोई चाहत है.’’

‘‘इस का मतलब तुम भी मुझे पसंद करती हो. तुम्हारी इन बातों से विश्वास हो गया कि हम दोनों के दिल में एकदूसरे के प्रति प्यार है.’’ विकास कुछ और बोल पाता, तभी पूनम बोल पड़ी, ‘‘मम्मीपापा के आने का समय हो गया है. इसलिए तुम अभी यहां से चले जाओ. मुझे मौका मिला तो मैं फिर बात कर लूंगी.’’

पूनम के इतना कहने के बाद भी विकास वहीं खड़ा रहा और पूनम की खूबसूरती के कसीदे पढ़ता रहा. पूनम से रहा नहीं गया तो वह जबरदस्ती विकास का हाथ पकड़ कर उसे मेनगेट तक ले आई और उसे बाहर कर के मेनगेट बंद कर लिया. लेकिन जातेजाते विकास पूनम को यह याद कराना नहीं भूला कि उस ने बाहर मिलने का वादा किया है.

पूनम अपने वादे को नहीं भूली और अगले दिन स्कूल जाते समय रास्ते में विकास दिखा तो उस ने इशारे से बता दिया कि स्कूल से वापस लौटते समय उस से मिलेगी.

विकास समय से पहले ही पूनम के वापस लौटने वाले रास्ते पर उस का इंतजार करने लगा. पूनम स्कूल से लौटी तो विकास से उस की मुलाकात हुई. उस ने विकास के प्यार को स्वीकार करते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारे प्यार को स्वीकार कर रही हूं और चाहती हूं कि हम बदनाम न हों. इसलिए तुम्हें भी सावधान रहना होगा ताकि किसी को हमारे प्यार की भनक न लगे.’’

विकास पूनम के हाथों को अपने हाथों में लेता हुआ बोला, ‘‘तुम भी कैसी बातें करती हो? क्या कभी कोई प्रेमी चाहेगा कि उस की प्रेमिका की समाज में रुसवाई हो? तुम मुझ पर भरोसा रखो.’’

समय बीतता रहा. दोनों लोगों की नजरों से बच कर चोरीछिपे मिलते रहे. दोनों का प्यार इतना बढ़ गया कि वे एकदूसरे के लिए कुछ भी कर सकते थे. यहां तक कि एकदूजे के लिए

जान भी दे सकते थे. पर एकदूसरे से अलग होना उन्हें किसी भी हाल में मंजूर नहीं था.

बीते 9 दिसंबर को पूनम का सब से छोटा 7 वर्षीय भाई अंश दोपहर 2 बजे के करीब घर के बाहर खेल रहा था, लेकिन अचानक वह लापता हो गया. बडे़ भाई गिरीश ने अपने भाईबहनों के साथ उसे काफी खोजा लेकिन उस का कोई पता नहीं चला.

एक दिन पहले ही किसी अनजान युवक ने अंश को 10 रुपए दिए थे. यह बात अंश ने घर आ कर बताई थी. लेकिन घर के लोगों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया था, इस के अगले दिन यह घटना घट गई.

जब किसी तरह से अंश का पता नहीं चला तो 10 दिसंबर, 2019 को गिरीश ने स्वार थाने जा कर इंसपेक्टर सतेंद्र कुमार सिंह को पूरी बात बताई. सतेंद्र सिंह ने गिरीश की तहरीर पर अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 363 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

पुलिस ने गिरीश और उस के पिता के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगवा दिए, ताकि अपहर्त्ता फिरौती के लिए फोन करें तो ट्रेस किया जा सके.

11 दिसंबर, 2019 को अपहर्त्ता ने वीर सिंह के नंबर पर काल कर के अंश को रिहा करने के एवज में 15 लाख रुपए की फिरौती मांगी. सर्विलांस टीम और अंश के घर वालों द्वारा सूचना देने पर मसवासी चौकी इंचार्ज कुलदीप सिंह चौधरी अंश के घर गए और उस के घर वालों से पूछताछ की.

जिस नंबर से काल की गई थी, वह फरजी आईडी पर खरीदा गया था. जिस मोबाइल में वह सिम डाला गया था, उस मोबाइल में उस से पहले जो सिम डाले गए थे, उन की जांचपड़ताल करने के बाद पुलिस अपहर्त्ता तक पहुंच गई. वह कोई और नहीं, अंश की बड़ी बहन पूनम का प्रेमी विकास मौर्य था.

12 दिसंबर को इंसपेक्टर सतेंद्र सिंह और चौकी इंचार्ज कुलदीप सिंह चौधरी ने मानपुर तिराहे से विकास मौर्य को उस के साथी अनुराग शर्मा के साथ गिरफ्तार कर लिया. दोनों से कड़ाई से पूछताछ की गई तो दोनों ने अपने 3 अन्य साथियों विकास सैनी, रवि सैनी और रोहित के नाम बताए. इन सब ने साथ मिल कर अंश का अपहरण कर हत्या कर देने की बात कबूल कर ली. साथ ही हत्या के पीछे की कहानी भी बयान कर दी.

विकास मौर्य और पूनम का प्यार दिनोंदिन परवान चढ़ रहा था, वह भी सब की नजरों से बच कर. लेकिन एक दिन पूनम के छोटे भाई अंश ने दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में एक साथ देख लिया. पूनम ने जैसेतैसे अंश को समझा दिया और उसे अपने साथ घर ले गई, लेकिन विकास इस बात से डर गया कि कहीं वह घर वालों को उन दोनों के बारे में न बता दे.

इसी वजह से उस ने अंश का अपहरण कर उसे मार देने का फैसला किया. इस बारे में उस ने पूनम को भनक तक नहीं लगने दी. उस ने अपने दोस्तों सीतारामपुर गांव निवासी अनुराग शर्मा, विकास सैनी, रवि सैनी और भूबरा मोहल्ला निवासी रोहित से बात की. दोस्ती की खातिर ये सब विकास का साथ देने को तैयार हो गए.

8 दिसंबर, 2019 को अंश घर के बाहर बच्चों के साथ खेल रहा था. तभी विकास के साथ अनुराग वहां आ गया. विकास ने अनुराग को अंश की तरफ इशारा कर के उस की पहचान कराई. अनुराग अंश के पास पहुंचा और उस से प्यार से बात की, साथ ही उसे 10 रुपए दिए.

मासूम अंश ने उस से 10 रुपए ले लिए. अनुराग उस से दोस्ती कर के चला गया. अंश ने घर जा कर इस अनजान दोस्त से मिले पैसों के बारे में बताया तो किसी ने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया.

अगले दिन 9 दिसंबर को योजनानुसार दोपहर 2 बजे विकास अनुराग के साथ बाइक से अंश के घर के पास पहुंचा. रोज की तरह उस समय अंश बच्चों के साथ खेल रहा था. विकास ने उस से कहा कि उस के बड़े भैया गिरीश उसे बुला रहे हैं. वह आगे खड़े हैं. मासूम अंश उन के साथ बाइक पर बैठ गया.

आगे कुछ दूरी पर विकास सैनी, रवि और रोहित खड़े थे. अंश को उन के साथ देख कर वे भी उन के साथ हो लिए. अंश को वे बेलवाड़ा गांव के जंगल में ले गए. वहां रुमाल से बनाया फंदा अंश के गले में डाल कर कस दिया, जिस से अंश की दम घुटने से मौत हो गई.

इस के बाद अंश की लाश को एक प्लास्टिक की बोरी में डाल कर रेत में दबा दिया. इस के बाद 11 दिसंबर को विकास ने केस की दिशा मोड़ने के लिए फरजी सिम से अंश के पिता को काल कर के 15 लाख रुपए की फिरौती मांगी. इस से केस की दिशा तो नहीं बदली, लेकिन उस के पकड़े जाने का रास्ता जरूर खुल गया. विकास की यह गलती उसे और उस के साथियों को भारी पड़ी.

12 दिसंबर को ही विकास मौर्य और अनुराग शर्मा की निशानदेही पर इंसपेक्टर सतेंद्र सिंह और चौकी इंचार्ज कुलदीप सिंह चौधरी ने एसडीएम राकेश कुमार गुप्ता की मौजूदगी में रेत में दबी अंश की लाश बरामद कर ली.

इस के बाद मुकदमे में दर्ज धारा 363 को भादंवि की धारा 364, 302, 201, 34 तरमीम कर दिया गया. पुलिस ने 14 दिसंबर, 2019 को मुंशीगंज तिराहे से विकास सैनी और रवि सैनी को भी गिरफ्तार कर लिया.

आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी के बाद चारों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश किया गया, जहां से सब को जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक रोहित फरार था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में पूनम परिवर्तित नाम है.

सौजन्य- सत्यकथा, फरवरी 2020

असंभव के पार झांकने की भूल

24 जून, 2019 की बात है. लखनऊ के शेरपुर लवल गांव में सुबह 6 बजे रोज की तरह प्रभातफेरी निकल रही थी. प्रभातफेरी जब गांव में ही रहने वाले शिवप्रसाद के घर से 100 मीटर दूर पहुंची तो सड़क किनारे पीपल के पेड़ के नीचे एक लड़के का नंगा शव पड़ा दिखाई दिया. शव को देखने से लग रहा था कि किसी ने धारदार हथियार से उस की हत्या की है.

प्रभातफेरी में जगदीश भी शामिल था. जगदीश जैसे ही लाश के पास गया, तो चिल्लाने लगा कि यह तो मेरा भतीजा यतीश है. इस का यह हाल किस ने कर दिया. लाश की शिनाख्त जगदीश ने अपने भतीजे यतीश के रूप में की.

उस ने इस बात की सूचना अपने भाई शिवप्रसाद और परिवार के अन्य लोगों को दे दी. घटना का पता चलते ही पूरे गांव में कोहराम मच गया. गांव के लोग घटनास्थल की तरफ भागे. यतीश का शव देख कर सभी लोग सन्न रह गए.

24 वर्षीय यतीश की मां सरला उस के शव से लिपट कर रोने लगी. गांव की महिलाएं और दूसरे लोग उसे ढांढस बंधा रहे थे. वह बारबार दहाड़ें मार कर रोतेरोते बेहोश हो रही थी.

घटना की जानकारी लखनऊ जनपद के निगोहा थाने को दी गई. शेरपुर लवल गांव इसी थाने के तहत आता था. निगोहा लखनऊ जिले का अंतिम थाना है. इस के बाद रायबरेली जिला शुरू हो जाता है. पुलिस ने यतीश की नंगी लाश देखने और गांव वालों से बात करने के बाद अनुमान लगाया कि उस की हत्या की वजह अवैध संबंध हो सकते हैं

इंसपेक्टर निगोहां जगदीश पांडेय ने लखनऊ के एसएसपी कलानिधि नैथानी को घटना के बारे में बताया. एसएसपी कलानिधि नैथानी ने एसपी (क्राइम) सर्वेश कुमार मिश्रा और सीओ (मोहनलालगंज) राजकुमार शुक्ला को मौके पर जा कर घटना की तहकीकात और खुलासा करने को कहा.

पुलिस ने घटनास्थल का निरीक्षण किया, तो पता चला कि मृतक यतीश पर किसी धारदार हथियार से वार किए गए थे. मौके पर काफी मात्रा में खून फैला हुआ था. लाश के मुआयने में लगा कि हत्यारे एक से अधिक रहे होंगे.

वहां मौजूद मृतक की मां सरला ने पुलिस को बताया कि यतीश कल रात अपने दोस्तों के साथ गांव के बाहर मोबाइल फोन पर गेम खेलने की बात कह कर आया था. मैं ने इसे मना भी किया पर यह नहीं माना. यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस को यह पता लगाना था कि यतीश किन दोस्तों के साथ आया था. पुलिस ने मौके की काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

जांच में सामने आया नेहा का नाम

एसएसपी ने इस केस को सुलझाने के लिए एक पुलिस टीम बनाई.  इसी दौरान पुलिस टीम को मुखबिर से पता चला कि मृतक के गांव की ही नेहा से प्रेम संबंध थे. इस सूचना में पुलिस को दम नजर आया, क्योंकि जिस तरह से यतीश की नंगी लाश मिली थी, उस से हत्या की यही वजह नजर आ रही थी.

टीम ने यतीश के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस में एक नंबर ऐसा मिल गया, जिस पर यतीश काफी देर तक बातें करता था. वह फोन नंबर नेहा का ही निकला.

इस के बाद पुलिस को यकीन हो गया कि यतीश की हत्या के तार जरूर नेहा से जुड़े हैं. इसलिए पुलिस टीम नेहा के घर पहुंच गई. पुलिस नेहा और उस के भाई को पूछताछ के लिए थाने ले आई. पूछताछ करने पर नेहा ने यह तो कबूल कर लिया कि यतीश के साथ उस के प्रेम संबंध थे लेकिन उस के अनुसार, हत्या के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं थी.

सख्ती से पूछताछ करने पर नेहा के भाई शिवशंकर ने स्वीकार कर लिया कि यतीश ने उस के घर वालों का जीना हराम कर दिया था. इसीलिए उसे ठिकाने लगाने के पर मजबूर होना पड़ा. शिवशंकर ने यतीश की हत्या की जो कहानी बताई वह इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 40 किलोमीटर दूर एक गांव है शेरपुर लवल. यहां की आबादी मिलीजुली है. ज्यादातर परिवार खेतीकिसानी पर निर्भर हैं. इन्हीं लोगों में शिवप्रसाद तिवारी का भी परिवार था.

यतीश तिवारी शिवप्रसाद का ही बेटा था. यतीश 2 भाई थे. मनीष बड़ा था और यतीश छोटा. मनीष होमगार्ड की नौकरी करता है. उस की ड्यूटी लखनऊ सचिवालय में लगी थी. मनीष अपने परिवार के साथ लखनऊ के पास ही तेलीबाग में रहता था. यतीश की एक बहन है प्रीति, जिस की शादी हो चुकी है. यतीश अकेला अपने मातापिता के साथ रहता था. मां सरला देवी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता है.

यतीश भारतीय सेना में शामिल हो कर देश की सेवा करना चाहता था. इस के लिए वह अपनी तैयारी भी कर रहा था. वह रोजाना गांव के बाहर दौड़ लगाता था और एक्सरसाइज भी करता था. शारीरिक रूप से फिट 24 साल के यतीश ने कई प्रतियोगी परीक्षाएं पास की थीं. लेकिन फिजिकल टेस्ट में वह रह जाता था.

यतीश अपनी मां से कहता था कि अगर मैं आर्मी में नहीं जा पाया तो दूसरी फोर्स या पुलिस में तो मेरा चयन हो ही जाएगा. मां को भी बेटे की बात पर यकीन था. मां ही नहीं गांव और घर के दूसरे लोग भी यही मान रहे थे. यही वजह थी कि बिना नौकरी किए भी यतीश के रिश्ते आने लगे थे.

लेकिन यतीश अभी शादी नहीं करना चाहता था. उस ने मां से कहा, ‘‘मां शादी की अभी क्या जल्दी है, नौकरी लगने दो फिर शादी कर लूंगा.’’

‘‘शादी के लायक उम्र हो गई है. तू ही बता, अभी नहीं तो कब होगी तेरी शादी? तुझे पता नहीं है गांव के लोग तमाम तरह की बातें करते हैं. ऐसे में उन को भी कहने का मौका नहीं मिलेगा.

‘‘जिस जगह से रिश्ता आया है वहां लड़की और घरपरिवार सभी अच्छा है. कई बार लड़की की किस्मत अच्छी होती है तो पति की नौकरी जल्दी लग जाती है.’’ मां ने यतीश को समझाया तो वह भी मां की बात टाल नहीं सका. इस के बाद मांबाप ने यतीश की शादी तय कर दी.

उस की शादी हैदरगढ़ के रहने वाले एक परिवार में तय हो गई. शादी और तिलक की तारीख भी तय हो गई थीं. इसी साल यानी 2019 में ही 22 नवंबर को तिलक और 28 नवंबर को उस की बारात जानी थी.

दूसरी ओर यतीश का चक्कर गांव की ही नेहा से चल रहा था. वह नेहा के साथ शादी करना चाहता था. नेहा के पिता मिस्त्री का काम करते थे. नेहा और यतीश अलगअलग बिरादरी के थे. इसलिए दोनों परिवारों के बीच शादी विवाह की बात किसी भी हालत में संभव नहीं था. यतीश और नेहा के बीच लंबे समय से संबंध थे. यह बात नेहा के घर वालों को भी पता चल गई थी.

उन्होंने नेहा को समझाया लेकिन वह प्रेमी को किसी भी हालत में नहीं छोड़ना चाहती थी. नेहा के मातापिता और परिवार के लोग इस बात का विरोध कर रहे थे. इस के बाद भी यतीश और नेहा मानने को तैयार नहीं थे.

जब नेहा और यतीश का मिलनाजुलना बंद नहीं हुआ तो नेहा के पिता शिवप्रसाद ने अपने परिवार को गांव से दूर पीजीआई अस्पताल के पास वेदावन कालोनी में किराए का घर ले कर दे दिया. पूरा परिवार किराए के उसी मकान में रहने लगा. लेकिन वहां जाने के बाद भी यतीश ने नेहा से मिलना नहीं छोड़ा.

शिवप्रसाद को यह बात पता चल गई थी कि नेहा और यतीश अब भी छिपछिप कर मिलते हैं. लिहाजा उस ने अपने बेटे शिवशंकर से कहा कि यतीश की हरकतें बढ़ती जा रही हैं. गांव छोड़ने के बाद भी वह नेहा का पीछा नहीं छोड़ रहा है. अब उसे सबक सिखाना ही पड़ेगा.

‘‘हम तो पहले ही कह रहे थे कि गांव छोड़ने से कुछ नहीं होगा. लेकिन आप ही नहीं माने. अब जो भी करना है, जल्दी करो. कहीं ऐसा न हो कि वह कोई दूसरा कदम उठा ले.’’ बेटे शिवशंकर ने कहा.

इस के बाद दोनों ने तय कर लिया कि यतीश को रास्ते से हटाना है. शिवप्रसाद और उस के बेटे शिवशंकर ने मिल कर यतीश की हत्या की योजना बना ली. शिवशंकर ने इस के लिए गांव में रहने वाले अपने दोस्त हनुमान को भी अपनी योजना में शामिल कर लिया.

हनुमान ने सतीश पर नजर रखनी शुरू कर दी  ताकि काम आसानी से हो सके. यतीश की दिनचर्या से पता चला कि रात को वह गांव के बाहर पीपल के पेड़ के पास चबूतरे पर बैठ कर मोबाइल फोन पर पबजी गेम खेलता है. यह पूरी जानकारी हनुमान ने शिवशंकर को दे दी. इस के बाद शिवशंकर, शिवप्रसाद और हनुमान ने अपनी योजना को अंजाम देने की तैयारी कर ली.

23 जून को गांव में किसी की तेरहवीं का भोज था. शिवप्रसाद और शिवशंकर भोज में शामिल होने के लिए घर से निकले. वहां जाने से पहले दोनों ने हनुमान के साथ शराब पी, फिर खाना खाया. रात करीब एक बजे तीनों गांव के बाहर उस चबूतरे के पास पहुंच गए जहां पर यतीश मोबाइल के स्क्रीन पर नजरें जमाए बड़े ध्यान से गेम खेल रहा था.

शिवप्रसाद और हनुमान ने यतीश को पीछे से दबोच लिया. उस का मुंह दबा कर वे लोग उसे वहीं स्थित पुलिया के नीचे ले गए. इस के बाद शिवशंकर ने साथ लाए चापड़ से उस के गले और सिर पर कई वार किए. कुछ ही देर में वह मर गया. उस की हत्या करने के बाद इन लोगों ने उस के कपड़े उतार कर सड़क के किनारे फेंक दिया. यतीश के कपड़ों में तो खून लगा ही था. पुलिया के दोनों किनारों पर भी खून के छींटे गिर गए थे. शिवशंकर से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उस के दोस्त हनुमान को भी गिरफ्तार कर लिया, जबकि नेहा को छोड़ दिया गया.

शिवशंकर की निशानदेही पर पुलिस ने उस के घर से हत्या में प्रयुक्त चापड़ और यतीश के खून सने कपड़े बरामद कर लिए. पुलिस ने दोनों आरोपियों शिवशंकर और हनुमान को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया. कहानी लिखे जाने तक शिवप्रसाद की तलाश जारी थी. साफ जाहिर है कि अपराध छिपाने की कितनी भी कोशिश की जाए, अपराध छिपता नहीं है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में नेहा परिवर्तित नाम है.

प्यार के भंवर में-भाग 3 : देवर भाभी ने क्यों की आत्महत्या

राममिलन की जब शादी तय हुई थी, तब सुनीता मायके गई हुई थी. वह वहां से वापस आई तब उसे मालूम पड़ा कि देवर की शादी तय हो गई है. उस ने इस बाबत राममिलन से पूछा तो उस ने जवाब दिया कि उस से पूछ कर शादी तय नहीं की गई है. शादी के संबंध में वह कुछ भी नहीं बता सकता. लेकिन सुनीता को शक हुआ कि शादी के लिए राममिलन की रजामंदी है

सुनीता अब अपने भविष्य को ले कर चिंतित रहने लगी. वह सोचती, ‘‘कल को राममिलन की शादी हो जाएगी, तो वह उसे दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेंकेगा. वह अपनी रातें तो नईनवेली दुलहन के साथ रंगीन करेगा और वह पूरी रात करवट बदलते बिताएगी.’’

सुनीता जितना सोचती, उतना ही उसे अपना जीवन अंधकारमय लगता. इसी उलझन में सुनीता ने राममिलन से हंसनाबोलना बंद कर दिया. वह उस के प्रणय निवेदन को भी ठुकराने लगी. राममिलन उसे मनाने की कोशिश करता, लेकिन वह उस की कोई बात नहीं सुनती.

सुनीता में आए आकस्मिक परिवर्तन से राममिलन परेशान हो उठा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह भाभी को कैसे मनाए. एक रोज जब उस से नहीं रहा गया तो उस ने पूछा, ‘‘भाभी, मुझ से ऐसी क्या खता हो गई, जो मुझ से नाराज हो. पहले तो तुम खूब हंसती थी, खूब बोलती थी. समर्पण को सदैव तैयार रहती थी. लेकिन अब दूर भागती हो. हंसनाबोलना भी गायब हो गया है. हमेशा चेहरे पर उदासी छाई रहती है. आखिर बात क्या है?’’

‘‘यह तुम अपने आप से पूछो देवरजी, तुम ने मेरे साथ जीनेमरने का वादा किया था. क्या वह वादा तुम शादी करने के बाद निभा सकोगे. शादी के बाद तुम दुलहन के पल्लू में बंध जाओगे और मुझे भूल जाओगे. यही सोच कर मैं उदास रहती हूं. तुम से दूर भागने का भी यही कारण है.’’ सुनीता बोली.

‘‘भाभी, मैं आज भी तुम्हारा हूं और कल भी रहूंगा. साथ जीनेमरने का वादा भी मैं नहीं भूला हूं. रही बात शादी की, तो वह मैं अपनी मरजी से नहीं कर रहा हूं. शादी तो मांबाप ने अपनी मरजी से तय कर दी है.’’
‘‘जो भी हो देवरजी, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती और घर वाले हमें साथ रहने नहीं देंगे. इसलिए हमेंतुम्हें एकदूसरे से किया गया वादा निभाना होगा.’’

‘‘हम वादा निभाने को तैयार हैं.’’ कहते हुए राममिलन ने सुनीता को अपनी बांहों में समेट लिया. उस के बाद उन दोनों ने एक साथ आत्महत्या करने का निश्चय किया. फिर वह समय का इंतजार करने लगे.
30 नवंबर, 2020 को शिवबरन की रिश्तेदारी में असोथर कस्बा में शादी थी. इसी शादी में सम्मिलित होेने के लिए शिवबरन अपने बड़े बेटे हरिओम के साथ शाम 6 बजे घर से निकल गया.

खाना खाने के बाद गेंदावती पोते हर्ष (3 वर्ष) के साथ कमरे में जा कर लेट गई. घर पर काम निपटाने के बाद सुनीता भी अपनी मासूम बेटी क्रांति के साथ कमरे में जा कर लेट गई. लेकिन उस की आंखों से नींद ओेझल थी.

रात लगभग 11 बजे राममिलन, सुनीता के कमरे में आ गया. उन दोनों के बीच बातचीत शुरू हुई. बातचीत के दौरान सुनीता ने कहा, ‘‘देवरजी, अपनी जीवनलीला समाप्त करने का आज सही समय है. तुम मेरा साथ दोगे या नहीं?’’

‘‘तुम्हारे बिना मेरे जीवित रहने का मकसद ही क्या है. अत: मैं भी तुम्हारे साथ ही अपना जीवन समाप्त करूंगा.’’ इस के बाद सुनीता और राममिलन ने छत के कुंडे में साड़ी को बांधा और साड़ी के दोनों सिरों को फांसी का फंदा बनाया. फिर एकएक सिरा गले में डाल कर फांसी के फंदे पर झूल गए. कुछ देर बाद ही दोनों की गरदन लटक गई.

पहली दिसंबर, 2020 की सुबह करीब 7 बजे गेंदावती जागीं तो उन्हें मासूम बच्ची क्रांति के रोने की आवाज सुनाई दी. वह सुनीता के कमरे पर पहुंचीं, तो कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था. तब उन्होंने दरवाजे की कुंडी खटखटाई और आवाज दी, ‘‘बहू, दरवाजा खोलो, बच्ची रो रही है. क्या घोड़े बेच कर सो रही हो?’’ पर अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. वह राममिलन के कमरे में पहुंची तो वह कमरे में नहीं था.

अब गेंदावती का माथा ठनका. उन के मन में तरहतरह के कुविचार आने लगे. इसी घबराहट में वह सुनीता की चचेरी जेठानी रूपाली को बुला लाई. उस ने भी दरवाजा थपथपाया और आवाज लगाई पर अंदर से कोई हलचल नहीं हुई. शोरशराबा सुन कर पासपड़ोस के लोग भी आ गए.

उसी समय शिवबरन व उस का बेटा हरिओम भी असोथर से आ गए. उन दोनों ने अपने दरवाजे पर भीड़ देखी तो घबरा गए. गेंदावती ने पति व बेटे को बताया कि सुनीता दरवाजा नहीं खोल रही है. राममिलन भी कमरे में नहीं है.

शिवबरन व हरिओम ने भी दरवाजा खुलवाने का प्रयास किया, लेकिन जब दरवाजा नहीं खुला तो दोनों ने कमरे का दरवाजा तोड़ दिया और कमरे के अंदर प्रवेश किया.

कमरे के अंदर का दृश्य बड़ा ही वीभत्स था. पंखे के हुक से साड़ी का फंदा बंधा था. साड़ी के एक छोर पर सुनीता तथा दूसरे छोर पर राममिलन का शव लटक रहा था. सुनीता का चेहरा राममिलन की छाती पर था. सुनीता का एक पैर चारपाई के नीचे लटक रहा था तथा दूसरा पैर चारपाई को छू रहा था.

देवरभाभी द्वारा आत्महत्या करने की खबर लमेहटा गांव में फैल गई. सैकड़ों लोग घटनास्थल पर आ पहुंचे. इसी बीच किसी ने थाना गाजीपुर पुलिस को सूचना दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी कमलेश पाल पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने पुलिस अधिकारियों को सूचित किया तो एसपी सतपाल, एएसपी राजेश कुमार तथा सीओ संजय कुमार शर्मा आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने फोरैंसिक टीम को भी मौके पर बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तथा मृतक व मृतका के घर वालों से पूछताछ की. फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए. निरीक्षण व पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों शवों को फांसी के फंदे से नीचे उतरवाया. फिर दोनों शवों को पोस्टमार्टम हेतु जिला अस्पताल फतेहपुर भिजवा दिया.

मृतक के पिता शिवबरन निषाद की तहरीर पर गाजीपुर पुलिस ने भादंवि की धारा 309 के तहत सुनीता और राममिलन के खिलाफ मुकदमा तो दर्ज किया, लेकिन दोनों की मौत हो जाने से पुलिस ने इस मामले की फाइल बंद कर दी.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्यार के भंवर में-भाग 2 : देवर भाभी ने क्यों की आत्महत्या

थोड़ी देर की चुप्पी के बाद होश दुरुस्त हुए, तो सुनीता ने राममिलन की ओर देख कर कहा, ‘‘देवरजी, तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो. लेकिन हमारे बीच रिश्तों की दीवार है. अब मैं इस दीवार को तोड़ना चाहती हूं. तुम मुझे बस यह बताओ कि हमारे इस रिश्ते का अंजाम क्या होगा?’’

‘‘भाभी मैं तुम्हें कभी धोखा नहीं दूंगा. तुम अपना बनाओगी तो तुम्हारा ही बन कर रहूंगा. मैं वादा करता हूं कि आज के बाद हम साथ ही जिएंगे और साथ ही मरेंगे.’’ कह कर राममिलन ने सुनीता को बांहों में भर लिया.

ऐसे ही कसमोंवादों के बीच कब संकोच की सारी दीवारें टूट गईं, दोनों को पता ही न चला. उस दिन के बाद राममिलन और सुनीता बिस्तर पर जम कर सामाजिक रिश्तों और मानमर्यादाओं की धज्जियां उड़ाने लगे. वासना की आग ने उन के इन रिश्तों को जला कर खाक कर दिया था.

सुनीता से शारीरिक सुख पा कर राममिलन निहाल हो उठा. सुनीता को भी उस से ऐसा सुख मिला था, जो उसे पति से कभी नहीं मिला था. राममिलन अपनी भाभी के प्यार में इतना अंधा हो गया था कि उसे दिन या रात में जब भी मौका मिलता, वह सुनीता से मिलन कर लेता. सुनीता भी देवर के पौरुष की दीवानी थी. उन के मिलन की किसी को कानोंकान खबर नहीं थी.

कहते हैं वासना का खेल कितनी भी सावधानी से खेला जाए, एक न एक दिन भांडा फूट ही जाता है. ऐसा ही सुनीता और राममिलन के साथ भी हुआ. एक रात पड़ोस में रहने वाली चचेरी जेठानी रूपाली ने चांदनी रात में आंगन में रंगरलियां मना रहे राममिलन और सुनीता को देख लिया. इस के बाद तो देवरभाभी के अवैध रिश्तों की चर्चा पूरे गांव में होने लगी.

हरिओम को जब देवरभाभी के नाजायज रिश्तोें की जानकारी हुई तो उस का माथा ठनका. उस ने इस बाबत सुनीता से बात की तो उस ने नाजायज रिश्तों की बात सिरे से खारिज कर दी. उस ने कहा राममिलन सगा देवर है. उस से हंसबोल लेती हूं. पड़ोसी इस का मतलब गलत निकालते हैं. उन्होंने ही तुम्हारे कान भरे हैं.

हरिओम ने उस समय तो पत्नी की बात मान ली, लेकिन मन में शक पैदा हो गया. इसलिए वह चुपकेचुपके पत्नी पर नजर रखने लगा. परिणामस्वरूप एक रात हरिओम ने सुनीता और राममिलन को रंगरलियां मनाते रंगेहाथों पकड़ लिया. हरिओम ने दोनों की पिटाई की और संबंध तोड़ने की चेतावनी दी.

लेकिन इस चेतावनी का असर न तो सुनीता पर पड़ा और न ही राममिलन पर. हां, इतना जरूर हुआ कि अब वे सतर्कता बरतने लगे. जिस दिन हरिओम, सुनीता को राममिलन से हंसतेबतियाते देख लेता, उस दिन शराब पी कर सुनीता को पीटता और राममिलन को भी गालियां देता. उस ने गांव के मुखिया से भी भाई की शिकायत की. साथ ही राममिलन को भी कहा कि वह घर न तोड़े.

उन्हीं दिनों हरिओम को बांदा जाना पड़ा. क्योंकि उस के ठेकेदार को सड़क निर्माण का ठेका मिला था. चूंकि हरिओम जेसीबी चालक था, सो उसे भी वहीं काम करना था. जाने से पहले वह अपनी मां व पिता को सतर्क कर गया था कि वह सुनीता व राममिलन पर नजर रखें.

सास गेंदावती सुनीता पर नजर तो रखती थी, लेकिन देवर की दीवानी सुनीता सास की आंखों में धूल झोंक कर देवर से मिल कर लेती थी. हरिओम मोबाइल फोन पर मां से बात कर घर का हालचाल लेता रहता था.
वह सुनीता से भी बात करता था और उसे मर्यादा में रहने की हिदायत देता रहता था. लेकिन सुनीता पति की बातों को कोई तवज्जो नहीं देती थी. वह तो देवर के रंग मे पूरी तरह रंगी थी.

एक रात आधी रात को गेंदावती की नींद खुली तो उसे सुनीता की बेटी मासूम क्रांति के रोने की आवाज सुनाई दी. वह उठ कर कमरे में पहुंची तो सुनीता अपने बिस्तर पर नहीं थी.

सास गेंदावती को समझते देर नहीं लगी कि बहू राममिलन के कमरे में होगी. वह दबे पांव राममिलन के कमरे में पहुंची, वहां सुनीता उस के बिस्तर पर थी. उस रात गेंदावती के सब्र का बांध टूट गया. उस ने दोनों की चप्पल से पिटाई की और खूब फटकार लगाई. रंगेहाथ पकड़े जाने से दोनों ने माफी मांग ली.

लगभग एक सप्ताह बाद हरिओम बांदा से घर आया तो गेंदावती ने बहू को रंगेहाथ पकड़ने की बात बेटे को बताई. तब हरिओम ने सुनीता की खूब पिटाई की, राममिलन को भी खूब डांटा फटकारा और समझाया भी. उस ने दोनों को धमकाया भी कि यदि वे न सुधरे तो अंजाम अच्छा न होगा.

लेकिन सुनीता और राममिलन प्यार के भंवर में इतनी गहराई तक समा चुके थे, जहां से बाहर निकलना उन के लिए नामुमकिन था. अत: दोनों ने हरिओम की धमकी को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया. उन्हें जब भी मौका मिलता था, शारीरिक मिलन कर लेते थे.

सुनीता और राममिलन के नाजायज रिश्तों ने पूरे घर को चिंता में डाल दिया था. वे इस समस्या से निजात पाने के लिए उपाय खोजने लगे थे. एक रोज गेंदावती ने अपने पति शिवबरन व बेटे हरिओम के साथ बैठ कर मंत्रणा की. फिर तय हुआ कि समस्या से निजात पाने के लिए राममिलन की शादी कर दी जाए. शादी हो जाएगी तो समस्या भी हल हो जाएगी.

शिवबरन निषाद अब राममिलन के लिए गुपचुप तरीके से लड़की की खोज करने लगा. कई माह की दौड़धूप के बाद शिवबरन को असोधर कस्बे में राम सुमेर निषाद की बेटी कमला पसंद आ गई. कमला सांवले रंग की थी. लेकिन शिवबरन व उस की पत्नी गेंदावती ने उसे पसंद कर लिया था.
फिर आननफानन में उन्होंने रिश्ता तय कर दिया. इस रिश्ते के लिए राममिलन ने न ‘हां’ की और न ही इनकार किया. बारात जाने की तारीख तय हुई मई 2021 की 7 तारीख.

पढ़ा लिखा अमानुष : अपनी बेटी का किया शिकार

जूनियर इंजीनियर सुशील कुमार पिछले 2 सालों से मेरठ की ट्यूबवेल कालोनी स्थित सरकारी कालोनी में अपने परिवार के साथ रह रहा था.उस की नियुक्ति सिंचाई विभाग में थी. उस के परिवार में पत्नी मोनिका उर्फ डौली के अलावा 2 बेटियां और एक बेटा था. सब से बड़ी बेटी सोनी (परिवर्तित नाम) 14 साल की थी.

बात 13 मार्च, 2019 की सुबह करीब 9 बजे की है. जेई सुशील कुमार की पत्नी मोनिका अपनी बड़ी बेटी सोनी के साथ अस्पताल गई थी. थोड़ी देर बाद जब वह घर लौटी तो वहां का खौफनाक मंजर देख कर उस की चीख निकल गई. उस के रोनेबिलखने की आवाजें सुन कर आसपास रहने वाले लोग उस के यहां चले आए. सभी के मन में जिज्ञासा हो गई कि पता नहीं अचानक जेई साहब के यहां क्या हो गया. लेकिन लोगों ने एक कमरे में जब जेई सुशील कुमार की खून से सनी लाश बैड पर पड़ी देखी तो सन्न रह गए. लोग समझ नहीं पा रहे थे कि यह सब कैसे हो गया. कमरे का सारा सामान भी बिखरा हुआ था.

मोनिका ने उसी समय अपने देवर अजय कुमार को फोन कर के इस घटना की जानकारी दी. बड़े भाई की हत्या होने की बात सुन कर अजय भी अवाक रह गया. अजय सहारनपुर के पास स्थित अपने पैतृक गांव सलोनी में रहता था. भाई का दुखद समाचार सुन कर वह परिवार के अन्य लोगों के साथ मेरठ की तरफ रवाना हो गया. उसी दौरान मोनिका ने थाना सिविल लाइंस में फोन कर के पति की हत्या की सूचना दे दी.
मेरठ के सिविल लाइंस थानाप्रभारी अब्दुर रहमान सिद्दीकी को जैसे ही घटना की जानकारी मिली तो वह अपने स्टाफ के साथ नलकूप विभाग की कालोनी की ओर रवाना हो गए.

थानाप्रभारी ने घटनास्थल का बारीकी से मुआयना किया. उन्होंने फोरैंसिक टीम तथा डौग स्क्वायड को भी घटनास्थल पर बुला लिया. बैड पर मृतक जेई सुशील कुमार के हाथपैर तथा मुंह कपड़े से बंधे थे तथा उस के गले को किसी तेज धारदार हथियार से रेता गया था.

बैड के अलावा बैडरूम में चारों तरफ खून के छींटे दिख रहे थे तथा कमरे का सामान इधरउधर बिखरा पड़ा था. इस के अलावा जेई साहब के क्वार्टर के सामने वाले एक क्वार्टर के दरवाजे पर भी खून के छींटे दिखाई दिए.

घटनास्थल पर मिले तमाम फोरैंसिक नमूने एकत्र करने के बाद उन्होंने क्वार्टर के दूसरे कमरे का भी मुआयना किया. दरअसल, इस सरकारी क्वार्टर में 2 कमरे थे. दूसरे कमरे का सारा सामान भी बिखरा हुआ था और अलमारी खुली पड़ी थी.

यह सब देख कर ऐसा लग रहा था जैसे हत्या की यह वारदात लूटपाट के इरादे से की गई हो. शायद सुशील कुमार ने लुटेरों का विरोध किया होगा. जिस पर लुटेरों ने उस की निर्ममतापूर्वक हत्या कर दी होगी.

मृतक की पत्नी मोनिका से जब इस घटना के बारे में थानाप्रभारी ने पूछा तो उस ने रोते हुए बताया कि वह सुबह 9 बजे के आसपास अपनी बड़ी बेटी सोनी के साथ डाक्टर के पास गई थी. उस समय उस के पति चाय पीने के बाद नहाने जाने की तैयारी कर रहे थे. जबकि दोनों छोटे बच्चे घर से बाहर खेलने गए थे.

डाक्टर के पास से जब वह घर लौटी तो देखा कि क्वार्टर के दरवाजे की कुंडी बाहर से बंद थी. दरवाजा खोलने पर उसे बैड पर पति की लाश पड़ी मिली. यह सारी घटना महज आधे घंटे के अंतराल के दौरान घट गई थी.

मृतक की पत्नी और कालोनी के कुछ अन्य लोगों से पूछताछ करने के बाद सुशील कुमार की लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी.

काररवाई के बाद पुलिस ने सुशील कुमार के बैडरूम को अपने कब्जे में ले लिया. वहां पर कुछ पुलिसकर्मियों को निगरानी के लिए छोड़ कर थानाप्रभारी अब्दुर रहमान सिद्दीकी वापस थाने लौट आए. पुलिस ने मोनिका की शिकायत पर अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या और लूटपाट का मामला दर्ज कर लिया. थानाप्रभारी इस केस की आगे की तहकीकात थाने के ही इंसपेक्टर मुकेश कुमार को सौंप दी.

इंसपेक्टर मुकेश कुमार ने हत्या के इस सनसनीखेज मामले की तफ्तीश को आगे बढ़ाते हुए मृतक जेई के सामने रहने वाले दूसरे जेई भारत यादव को हिरासत में ले लिया. क्योंकि उन के दरवाजे पर खून के छींटे मिले थे. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में जेई भारत यादव ने खुद को निर्दोष बताते हुए कहा कि सुबह वह अपने र्क्वाटर में मौजूद थे. लेकिन इस दौरान उन्होंने सुशील कुमार के क्वार्टर से चीखने जैसी कोई आवाज नहीं सुनी.

अलबत्ता मोनिका ने भारत यादव पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि भारत यादव के उस के पति से अच्छे संबंध नहीं थे इसलिए इस घटना में उस का हाथ हो सकता है. लेकिन जब अगले 36 घंटे की पूछताछ में इंसपेक्टर मुकेश कुमार को इस घटना में भारत यादव के ऊपर संदेह नहीं हुआ तो उन्होंने उसे शहर में ही रहने की ताकीद कर घर जाने की इजाजत दे दी.

उधर पोस्टमार्टम के बाद सुशील कुमार की लाश अतिम संस्कार के लिए उस के घर वालों को सौंप दी गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि सुशील कुमार की मौत गला कटने के कारण अधिक खून निकल जाने की वजह से हुई थी.

काल डिटेल्स में मिला क्लू

पुलिस जांच में यह भी पता चला कि सुबह 9 और साढ़े 9 बजे के बीच कालोनी के लोगों ने किसी को भी मृतक के क्वार्टर की तरफ आतेजाते नहीं देखा था. जब कहीं से कोई क्लू नहीं मिला तो पुलिस ने मृतक सुशील कुमार और उस की पत्नी मोनिका के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई.

मोनिका के मोबाइल की काल डिटेल्स देख कर इंसपेक्टर मुकेश कुमार चौंक उठे. पता चला कि पिछले कुछ महीने से लगातार एक मोबाइल नंबर पर उस की लगातार बातें होती आ रही हैं. बातचीत का यह सिलसिला उस के पति की हत्या के बाद भी जारी था.

पुलिस ने उस मोबाइल नंबर की भी डिटेल निकलवाई तो पता चला यह सिमकार्ड पवन कुमार सैनी के नाम रजिस्टर्ड था, जो राजस्थान के गंगानगर का रहने वाला था. जब इंसपेक्टर मुकेश कुमार ने मोनिका को थाने में बुला कर इस मोबाइल नंबर के बारे में सख्ती से पूछताछ की तो उस का चेहरा सफेद पड़ गया. उस ने बड़ी ही आसानी से पति की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. पति की हत्या को स्वीकार करते हुए उस ने जो कुछ बताया, सुन कर वहां उपस्थित सभी पुलिस अधिकारी हैरान रह गए.

उस से की गई पूछताछ के बाद उसी दिन पुलिस टीम श्रीगंगानगर पहुंची और वहां से पवन को हिरासत में ले आई. उस से जब इस घटना के बारे में पूछताछ की तो थोड़ी देर तक आनाकानी करने के बाद उस ने मोनिका के साथ मिल कर उस के पति सुशील कुमार की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली.

मेरठ के एसएसपी नितिन तिवारी और एसपी डा. अखिलेश नारायण सिंह ने 16 मार्च, 2019 को एक प्रैस कौन्फ्रैंस आयोजित कर इस सनसनीखेज हत्याकांड का परदाफाश कर दिया.

उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर का एक गांव है सलोनी. यह गांव थाना सरसावाला के अंतर्गत आता है. जेई सुशील कुमार इसी गांव का रहने वाला था. वह अपनी पत्नी मोनिका व 3 बच्चों के साथ मेरठ के सिंचाई विभाग के सरकारी क्वार्टर में रहता था. उस के पास सभी भौतिक सुखसुविधाएं थीं.

मोनिका अपने पति और तीनों बच्चों के साथ बेहद खुश थी. लेकिन पिछले कुछ महीनों से वह पति के चालचलन में कुछ परिवर्तन महसूस कर रही थी.

दरअसल, सुशील ने उस में रुचि लेनी बहुत कम कर दी थी. इस का पता लगाने के लिए जब मोनिका ने एक दिन पति के मोबाइल फोन की जांचपड़ताल की तो एक दिन उसे पता चला कि पति के कुछ महिलाओं के साथ अवैध संबंध हैं, जिन के साथ वह बराबर संपर्क में रहता है.

यह जान कर मोनिका के दिल को बहुत चोट पहुंची. उस ने पति को आकर्षित करने के कई हथकंडे अपनाए, लेकिन सुशील के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया. यह सब देख कर उस ने पति से बदला लेने की ठानी और अपने मोबाइल से एक सोशल साइट पर जा कर दूसरे लड़कों से रोमांटिक चैटिंग करनी शुरू कर दी. सोशल साइट पर उस की मुलाकात पवन कुमार सैनी नाम के युवक से हुई. पवन सैनी राजस्थान के श्रीगंगानगर के गांव नाहरावाली का रहने वाला था.

मोनिका की पवन से गहरी दोस्ती हो गई. मोनिका को पवन बहुत अच्छा लगा, इसलिए उस ने उस से प्यार का इजहार कर दिया. अब मोनिका पवन से मिलने के लिए उतावली हो रही थी. लिहाजा मोनिका ने एक दिन उसे मेरठ के एक होटल में मिलने के लिए बुलाया.

मोनिका के कहने पर पवन श्रीगंगानगर से चल कर मेरठ के एक होटल में पहुंच गया. मोनिका भी उसी होटल में पहुंच गई. पहली बार मिलने पर दोनों ही बहुत खुश हुए. पवन उम्र में उस से छोटा था.

होटल के बंद कमरे में दोनों ने एकदूसरे पर प्यार लुटाते हुए काफी वक्त गुजारा. एकदूसरे को प्यार करते रहने की कसमें खाईं. इस हसीन और रोमांचक मुलाकात के बाद पवन ने मोनिका से फिर मिलने आने का वादा किया और वापस श्रीगंगानगर लौट गया.

इस घटना के बाद वे दोनों अपनी सुविधा और मौके के अनुसार एक दूसरे को फोन कर अपने दिल की बात कर लेते थे. जब मोनिका के मन में पवन से मिलने की इच्छा हिलोरें मारती तो वह उसे मेरठ बुला लेती थी. पवन अभी कुंवारा था, इसलिए वह खुद भी मोनिका से मिलने की ताक में रहता था.

करीब ढाई साल तक अवैध संबंधों का यह सिलसिला बड़ी खामोशी से चलता रहा. मोनिका और पवन दोनों एकदूसरे को पा कर बहुत खुश थे. तभी एक दिन अचानक मोनिका की 14 वर्षीय किशोर बेटी सोनी ने उसे जो कुछ बताया, उसे सुन कर उस के पैरों तले की जमीन खिसक गई.

सोनी ने बताया कि उस के पापा पिछले कुछ महीनों से उस के साथ जबरन गलत काम करते हैं और मना करने पर वह उस के साथ मारपीट करते हैं.

मोनिका ने हिम्मत कर के यह बात पति से पूछी तो उलटे वह आगबबूला हो उठा और चुप रहने को कहा. इतना ही नहीं, उस ने यह भी धमकी दी कि अगर यह बात किसी को बताई तो वह तीनों बच्चों को मौत के घाट उतार देगा.

पानी चढ़ गया सिर से ऊपर

मोनिका ने कई बार पति को समझाने की कोशिश की, लेकिन सुशील अपनी हरकतों से बाज नहीं आया. पानी सिर से ऊपर जाता देख कर मोनिका ने सुशील की इस गंदी हरकत के बारे में अपनी सास परीक्षा देवी को बताया. अपने बेटे की करतूत सुन कर परीक्षा ने ऐसे पढ़ेलिखे बेटे को लानत दी. इतना ही नहीं, उन्होंने बेटे सुशील को समझाने की कोशिश की, मगर वह कुछ भी समझने की जगह उलटे मरनेमारने पर उतारू हो गया.

यह देख कर परीक्षा से बहू मोनिका से कहा कि ऐसे राक्षस का घर में रहना ठीक नहीं है. इसे तो समाज में जिंदा रहने का भी अधिकार नहीं है. सास की बात सुन कर मोनिका मन ही मन बहुत खुश हुई क्योंकि पति के मरने के बाद पूरी तरह से अपने प्रेमी पवन सैनी के साथ रहने की आजादी मिलती.

मोनिका एक तीर से दो शिकार कर रही थी. उसे अब सुशील से नफरत हो चुकी थी. वह सुशील की हत्या करने के बाद पवन के साथ अपनी जिंदगी शुरू करना चाहती थी. मोनिका ने पति को ठिकाने लगाने के बारे में सास से बात की तो उन्होंने मोनिका को कुछ रुपए भी दे दिए ताकि वह किसी और से सुशील की हत्या करा सके.

इस के बाद मोनिका ने पवन को मेरठ बुला कर उस से कहा कि अगर वह उसे हमेशा के लिए पाना चाहता है तो उसे पति को ठिकाने लगाना होगा. आखिर में पवन अपनी माशूका के साथ जिंदगी गुजारने की खातिर उस के पति की हत्या करने के लिए तैयार हो गया. इस काम के लिए मोनिका ने अपनी बड़ी बेटी सोनी को भी शामिल कर लिया.

बेटी भी हो गई बाप की हत्या में शामिल

दरअसल वह भी अपने बाप के अत्याचारों से इतनी तंग आ चुकी थी कि उसे मौत के घाट उतारने के लिए मम्मी का साथ देने में उस ने एक पल के लिए भी नहीं सोचा.

योजना के अनुसार, 12 मार्च, 2019 को मोनिका का प्रेमी पवन श्रीगंगानगर से मेरठ पहुंचा और वहां एक होटल में ठहर गया. अगले दिन 13 मार्च की सुबह मोनिका ने पवन के मोबाइल पर फोन कर उसे अपने क्वार्टर के बाहर बुला लिया. उस समय लोगों का अधिक आनाजाना नहीं था.

इसी बीच सोनी अपने पापा सुशील के पास पहुंची. सुशील कुमार उस समय अपने बैड पर बैठा हुआ था. सोनी ने प्यार से मनुहार करते हुए उसे एक खेल खेलने के लिए कहा तो वह इस के लिए फौरन राजी हो गया. दरअसल, वह सोनी को कभी किसी बात के लिए मना नहीं करता था.

इस के बाद पहले तो उस ने पापा सुशील कुमार की दोनों आंखों पर पट्टी बांधी. फिर उस के हाथ और पैरों को भी मजबूती से बांध दिया. तब तक मोनिका भी कमरे में आ गई. उस ने पति को बंधे देखा तो पवन को कमरे में आने के लिए फोन किया.

पवन चाकू ले कर वहां पहुंच गया. पवन को देखकर मोनिका की आंखें चमक उठीं. उस ने पति के सिर को पकड़ कर पीछे की ओर खींचा और पवन को जल्दी से उस की गरदन काटने का इशारा किया. शायद तभी सुशील को अपने साथ कुछ गलत होने का आभास हो गया था, इसलिए वह बचने के लिए छटपटाने लगा. लेकिन उस की बेटी सोनी ने उस के हाथ और पैर पकड़ लिए ताकि पवन आसानी से अपने काम को अंजाम दे सके. तभी पवन ने चाकू से सुशील की गरदन रेत डाली.

जब सुशील की लाश तड़प कर ठंडी पड़ गई तो पवन ने दूसरे कमरे में जा कर अपने कपड़ों से खून साफ किया और वहां से अपने होटल लौट गया. उस के जाने के बाद मोनिका और सोनी ने सुशील के खून के छींटे सामने रहने वाले जेई भारत यादव के दरवाजे पर लगा दिए ताकि साजिश के तहत इस कत्ल का आरोप उस के सिर मढ़ा जा सके.

दरअसल भारत यादव और सुशील के बीच किसी बात को ले कर खटपट होती रहती थी. इस के बाद उस ने घर के कपड़े और अलमारियों का सामान इस प्रकार कमरे में फेंक दिया ताकि यह मामला लूटपाट का लगे. फिर दोनों मांबेटी कमरों का दरवाजा बंद कर अस्पताल जाने के बहाने घर से बाहर निकल गईं. आधे घंटे के बाद दोनों वापस लौट आईं और घर में लूटपाट होने तथा पति की हत्या की झूठी खबर लोगों में फैला दी.

विवेचनाधिकारी इंसपेक्टर मुकेश कुमार ने हत्या में प्रयुक्त चाकू और खून से सने पवन के कपड़े बरामद करने के बाद सुशील कुमार हत्याकांड के दोनों आरोपियों पवन और मोनिका को स्थानीय अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

सोनी को बाल न्यायालय में पेश कर बाल सुधारगृह भेजा गया. बाद में इस हत्याकांड में शामिल चौथी आरोपी जेई सुशील कुमार की मां परीक्षा देवी को भी सहारनपुर स्थित उन के पुश्तैनी घर से गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें भी जेल भेज दिया गया.

सौजन्य- मनोहर कहानियां, मई 2019

प्यार के भंवर में-भाग 1 : देवर भाभी ने क्यों की आत्महत्या

उत्तर प्रदेश के जिला बांदा का एक गांव है-बदौली. रसपाल इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी चंद्रकली के अलावा एक बेटा भानुप्रताप तथा बेटी सुनीता थी. रसपाल खेती किसानी के साथसाथ ट्यूबवैल मरम्मत का काम करता था. इस से उसे अतिरिक्त आमदनी हो जाती थी.

कुल मिला कर उस का परिवार खुशहाल था. रसपाल ने अपनी बेटी सुनीता का विवाह सन 2016 में हरिओम के साथ कर दिया था. हरिओम के पिता शिवबरन, फतेहपुर जिले के गांव लमेहटा के रहने वाले थे. उन के परिवार में पत्नी गेंदावती के अलावा 2 बेटे हरिओम व राममिलन थे. हरिओम जेसीबी चालक था, जबकि राममिलन पिता के कृषि कार्य में हाथ बंटाता था.

एक तरह से सुनीता और हरिओम की शादी बेमेल थी. हरिओम उम्र में तो बड़ा था, साथ ही वह सांवले रंग का भी था. जबकि सुनीता सुंदर थी और चंचल भी. इस के बावजूद उस के घरवालों ने हरिओम को पसंद कर लिया था. इस की वजह यह थी कि हरिओम जेसीबी चला कर अच्छा पैसा कमाता था.

हरिओम जहां सुनीता को पा कर खुश था, वहीं सुनीता उम्रदराज और सांवले रंग के पति को पा कर जरा भी खुश नहीं थी. शादी से पहले उस के मन में पति को ले कर जो सपने थे, वे चकनाचूर हो गए थे.
शादी के एक साल बाद सुनीता ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम हर्ष रखा. इस के बाद एक बेटी का जन्म हुआ. 2 बच्चों की किलकारियों से सुनीता का घरआंगन गूंजने लगा.

सुनीता की अपने देवर राममिलन से खूब पटती थी. इस की वजह यह थी कि एक तो वह हमउम्र था, दूसरे सुनीता, राममिलन के बात व्यववहार से काफी प्रभावित थी. वह अपने देवर का हर तरह से खयाल रखती थी.

इसी वजह से राममिलन सुनीता के आकर्षण में बंध कर उस के नजदीक आने की कोशिश करने लगा. यही नहीं, वह उस की खूब तारीफ करता और उसे प्रभावित करने के लिए कभीकभार वह उस के लिए कोई उपहार भी ले आता.

हरिओम ड्राइवर था, सो पक्का शराबी था. अकसर वह झूमता हुआ घर वापस आता. वह कभी थोड़ाबहुत खाना खा कर तो कभी बिना खाए ही सो जाता था. सुनीता 2 बच्चों की मां जरूर थी, लेकिन अभी उस में पति का साथ पाने की प्रबल इच्छा थी. लेकिन हरिओम तो बिस्तर पर लेटते ही खर्राटे भरने लगता था. तब सुनीता मन मसोस कर रह जाती थी.

आखिर पति से जब उसे शारीरिक सुख मिलना बंद हुआ तो उस ने विकल्प की खोज शुरू कर दी.
सुनीता स्वभाव से मिलनसार थी. राममिलन भाभी के प्रति सम्मोहित था. जब दोनों साथ चाय पीने बैठते, तब सुनीता उस से खुल कर हंसीमजाक करती. सुनीता का यह व्यवहार धीरेधीरे राममिलन को ऐसा बांधने लगा कि उस के मन में भाभी सुनीता का सौंदर्य रस पीने की कामना जागने लगी.

एक दिन राममिलन खाना खाने बैठा, तो सुनीता थाली ले कर आई और जानबूझ कर गिराए गए आंचल को ढंकते हुए बोली, ‘‘लो देवरजी, खाना खा लो, आज मैं ने तुम्हारी पसंद का खाना बनाया है.’’
राममिलन को भाभी की यह अदा बहुत अच्छी लगी. वह उस का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘भाभी, तुम भी अपनी थाली परोस लो, साथ खाने में मजा आएगा.’’

सुनीता अपने लिए भी खाना ले आई. खाना खाते समय दोनों के बीच बातों का सिलसिला जुड़ा तो राममिलन बोला, ‘‘भाभी, तुम सुंदर व सरल स्वभाव की हो, लेकिन भैया ने तुम्हारी कद्र नहीं की. मुझे पता है, वह अपनी कमजोरी की खीझ तुम पर उतारते हैं. लेकिन मैं तुम्हें प्यार करता हूं.’’

यह कह कर राममिलन ने सुनीता की दुखती रग पर हाथ रख दिया था. सच में सुनीता पति से संतुष्ट नहीं थी. उसे न तो पति से प्यार मिल रहा था और न ही शारीरिक सुख, जिस से उस का मन विद्रोह कर उठा. उस का मन बेईमान हो चुका था. आखिर उस ने फैसला कर लिया कि अब वह असंतुष्ट नहीं रहेगी. चाहे इस के लिए उसे रिश्तों को तारतार क्यों न करना पड़े.

औरत जब जानबूझ कर बरबादी की राह पर कदम रखती है, तो उसे रोक पाना मुश्किल होता है. यही सुनीता के साथ हुआ. सुनीता जवान भी थी और पति से असंतुष्ट भी, अत: उस ने देवर राममिलन के साथ नाजायज रिश्ता बनाने का निश्चय कर लिया.

राममिलन वैसे भी सुनीता का दीवाना था. देवर राममिलन गबरू जवान था, दूसरे कुंवारा था. उस पर दिल आते ही सुनीता उसे अपने प्यार के भंवर में फंसाने की कोशिश करने लगी. भाभीदेवर के रिश्ते की आड़ में सुनीता राममिलन से ऐसेऐसे मजाक करने लगी कि राममिलन के शरीर में सिहरन सी होने लगी. जल्दी ही उस का मन स्त्री सुख के लिए बेचैन होने लगा.

एक शाम सुनीता बनसंवर कर बिस्तर पर लेटी थी, तभी राममिलन आ गया. वह उस की खूबसूरती को निहारने लगा. सुनीता को राममिलन की आंखों की भाषा पढ़ने में देर नहीं लगी. सुनीता ने उसे करीब बैठा लिया और उस का हाथ सहलाने लगी. राममिलन के शरीर में हलचल मचने लगी.

सिरकटी लाश का रहस्य

राजिंदर कुमार रोजाना की तरह सुबह 9 बजे काम पर जाने के लिए घर से निकला था. उस की मां बिशनो ने उसे दोपहर के खाने का टिफिन तैयार कर के दिया था. 20

वर्षीय राजिंदर मेनबाजार बटाला में रेडीमेड कपड़ों की दुकान पर काम करता था.वह ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था. कुछ साल पहले उस के पिता शिंदरपाल की मृत्यु हो गई थी. पिता की मौत के बाद रिश्तेदारों ने भी परिवार का साथ छोड़ दिया था. किसी से सहायता की उम्मीद नहीं थी. घर के आर्थिक हालात ऐसे नहीं बचे थे कि राजिंदर पढ़ाई आगे जारी रख पाता. इसलिए उस ने पढ़ाई बीच में छोड़ कर काम करना शुरू कर दिया था.

राजिंदर के परिवार में उस की मां बिशनो के अलावा एक बहन नीलम थी. वह जो कमाता था, उस से जैसेतैसे घर खर्च चल पाता था. 19 सिंतबर, 2019 की सुबह राजिंदर काम पर गया. शाम को वह अपने समय पर घर नहीं लौटा तो मां को चिंता हुई. क्योंकि इस से पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था. वह ठीक साढ़े 8 बजे काम से घर लौट आता था.

राजिंदर का इंतजार करतेकरते जब रात के 10 बज गए तो मां बिशनो और बहन नीलम कुछ पड़ोसियों के साथ उसे ढूंढने निकलीं. सब से पहले वे उस दुकान पर गईं, जहां राजिंदर काम करता था. उस समय दुकान बंद हो चुकी थी.

दुकान मालिक के घर जा कर पूछने पर पता चला कि राजिंदर अपने समय से पहले ही 7 बजे छुट्टी ले कर चला गया था. घर वालों ने राजिंदर के खास दोस्तों से पूछताछ की. इस के अलावा हर संभावित ठिकाने पर उस की तलाश की गई, लेकिन उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

अंत में हार कर पड़ोसियों की सलाह पर बिशनो ने बेटे राजिंदर के लापता होने की रिपोर्ट थाना सिविल लाइंस बटाला की पुलिस चौकी सिंबल में दर्ज करवा दी.

चौकी इंचार्ज एसआई बलविंदर सिंह ने उन्हें राजिंदर को जल्द तलाशने का आश्वासन दिया. राजिंदर का फोटो ले कर उन्होंने जिले के सभी थानों में भिजवा दिया और अस्पतालों में भी उस की तलाश करवाई गई. पर राजिंदर का कहीं कोई पता नहीं चला.

बिशनो ने बेटे के लापता होने में अपनी ही कालोनी गांधी कैंप निवासी अशोक प्रीतम दास पर शक जताया था. अशोक उसी मोहल्ले में रहता था और उस का बिशनो के घर काफी आनाजाना लगा रहता था.

करीब एक महीना पहले अशोक की पत्नी की रहस्यमयी हालात में मृत्यु हो गई थी. अशोक का बेडि़यां बाजार में अपना खुद का हेयरकटिंग सैलून था.

राजिंदर अशोक का अपने घर आने का विरोध करता था. उस की कई बार अशोक से झड़प भी हो चुकी थी. इस बात को ले कर राजिंदर की अपनी मां से भी कई बार कहासुनी हुई थी. उस ने मां से भी कह दिया था कि वह अशोक को अपने घर आने से रोके.

एसआई बलविंदर ने अशोक को थाने बुला कर उस से पूछताछ की. अशोक ने बताया कि उसे राजिंदर से मिले एक महीना हो गया है और कई दिनों से वह उस के घर भी नहीं गया. बातचीत में अशोक बेकसूर लगा तो एसआई बलविंदर सिंह ने उसे घर भेज दिया और राजिंदर की तलाश जारी रखी.

22 सितंबर, 2019 को सेंट फ्रांसिस स्कूल के पीछे मोहल्ला भट्ठा इंदरजीत में रहने वालों ने प्रधान अमरीक सिंह को बताया कि उन के घर के सामने वाले हंसली नाले से बड़ी भयानक दुर्गंध आ रही है.

अमरीक सिंह कुछ लोगों को साथ ले कर नाले के पास पहुंचे. उन्होंने देखा कि वहां बोरी में बंद किसी आदमी की लाश पड़ी थी. लाश की टांगें बोरे से बाहर थीं. अमरीक सिंह ने तुरंत इस बात की सूचना पुलिस चौकी सिंबल के इंचार्ज एसआई बलबीर सिंह को दी.

सूचना मिलते ही बलबीर सिंह मौके के लिए रवाना हो गए और यह जानकारी थाना सिविल लाइंस बटाला के एसएचओ मुख्तियार सिंह को दे दी. थानाप्रभारी भी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस ने मौके पर पहुंच कर लाश को नाले से बाहर निकलवाया. बोरी में मृतक का सिर नहीं था. हां, धड़ जरूर था. कंधों से बाजू कटे हुए थे. कपड़ों के नाम पर मृतक के शरीर पर केवल अंडरवियर था.

कई दिनों से लाश नाले के पानी में पड़ी रहने से बुरी तरह से गल चुकी थी, जिस की पहचान मुश्किल थी. वैसे भी बिना सिर के मृतक की शिनाख्त करना असंभव काम था.

पहचान के लिए मृतक के शरीर पर ऐसा कोई निशान नहीं था, जिस के सहारे पुलिस उस की शिनाख्त कराती. सिर और बाजू कटी लाश मिलने से पूरे शहर में सनसनी फैल गई थी, दहशत का माहौल बन गया था.

क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम बुलवा कर पंचनामे की कारवाई की गई. थानाप्रभारी ने लाश मिलने की जानकारी अपने आला अधिकारियों को दे दी थी. इस के कुछ देर बाद एसएसपी उपिंदरजीत सिंह घुम्मन, एसपी (इनवैस्टीगेशन) सूबा सिंह और डीएसपी (सिटी) बालकिशन सिंगला भी मौकाएवारदात पर पहुंच गए थे.

पुलिस ने नाले में आसपास मृतक के कटे हुए अंग तलाशने की मुहिम शुरू कर दी. पुलिस को यह पता नहीं था कि हत्यारे ने मृतक के शेष अंग वहीं फेंके थे या उन्हें किसी दूसरी जगह ठिकाने लगाया था.

काफी खोजने के बाद भी कटे हुए अंग नहीं मिले. मौके की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने अज्ञात युवक की लाश 72 घंटों के लिए सिविल अस्पताल की मोर्चरी में रखवा दी और अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

अपनी तफ्तीश के पहले चरण में चौकी इंचार्ज बलबीर सिंह ने पिछले दिनों शहर से लापता हुए लोगों की लिस्ट चैक की. लिस्ट में राजिंदर का नाम भी था. चौकी इंचार्ज बलबीर सिंह ने 23 सितंबर को राजिंदर के परिवार वालों को बुलवा कर जब लाश दिखाई तो उस की मां बिशनो और बहन नीलम ने शरीर की बनावट और अंडरवियर से लाश की शिनाख्त राजिंदर के रूप में की.

राजिंदर 19 सितंबर, 2019 को लापता हुआ था और 22 सितंबर को उस की लाश नाले से मिली. चूंकि मां बिशनो ने मोहल्ले के ही अशोक पर शक जताया था, जिस से एक बार पुलिस पूछताछ भी कर चुकी थी. अब लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद चौकी इंचार्ज उसी दिन अशोक को पूछताछ के लिए दोबारा थाने ले आए. इस बार भी वह अपने पहले बयान पर अड़ा रहा. पर जब उस से सख्ती की गई तो उस ने राजिंदर की हत्या करने का अपराध स्वीकार कर लिया.

अगले दिन अशोक को अदालत में पेश कर उस का 4 दिनों का पुलिस रिमांड लिया गया. रिमांड के दौरान सब से पहले उस से पूछा गया कि राजिंदर के शरीर के बाकी अंग उस ने कहां फेंके थे.

24 सितंबर को अशोक की निशानदेही पर पुलिस और नायब तहसीलदार जसकरण सिंह के नेतृत्व वाली टीम ने नाले से मृतक राजिंदर का सिर और बाजू ढूंढ निकाले. इन हिस्सों को पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भेज दिया गया और पोस्टमार्टम के बाद लाश उस के घर वालों को सौंप दी गई.

रिमांड के दौरान अशोक कुमार ने पुलिस को बताया कि बिशनो के पति की मृत्यु के बाद राजिंदर कुमार की मां बिशनो के साथ उस का करीब 7 साल से प्रेम प्रसंग चल रहा था. वह बिशनो से मिलने रोज उस के घर जाया करता था. उस समय राजिंदर और उस की बहन छोटे थे. सो उन्हें कोई रोकनेटोकने वाला नहीं था. जब बच्चे बड़े हुए तो राजिंदर उसे और मां को संदेह की नजरों से देखने लगा था.

वह उस के वहां आने का विरोध करता था. बिशनो के संबंधों का पता अशोक की पत्नी को भी था. इस बात को ले कर वह भी घर में क्लेश करती थी. तब अशोक गुस्से में उस की पिटाई कर देता था. दूसरी ओर राजिंदर के विरोध से अशोक भी काफी परेशान था. वह उसे अपने रास्ते का कांटा समझने लगा था. इस कांटे को रास्ते से हटाने के लिए अशोक कुमार ने राजिंदर की हत्या करने की एक खौफनाक साजिश रच ली.

अपनी योजना के अनुसार, 19 सितंबर की शाम वह राजिंदर से मिला और कोई जरूरी बात करने के बहाने उसे अपने घर ले गया. घर ले जा कर अशोक ने राजिंदर को चाय पिलाई, जिस में नशे की दवा मिली हुई थी. चाय पीते ही राजिंदर एक ओर लुढ़क गया.

राजिंदर के लुढ़कते ही अशोक ने पहले गला दबा कर उस की हत्या की और उस के बाद दातर (हंसिया) से बड़े आराम से उस का सिर काट कर धड़ से अलग किया. फिर दोनों बाजू काटे. यह सब करने के बाद अशोक ने राजिंदर के शव को बोरी में डाल कर बांधा और अपनी साइकिल पर रख कर रात के अंधेरे में हंसली नाले में फेंक आया.

रिमांड के दौरान पुलिस ने अशोक की निशानदेही पर दातर, साइकिल, अपने और राजिंदर के जलाए हुए कपड़ों की राख भी बरामद कर ली. रिमांड अवधि के दौरान पुलिस इस मामले में मृतक की मां बिशनो की भूमिका की भी जांच कर रही है. हालांकि पुलिस ने इस बारे में अभी स्पष्ट खुलासा नहीं किया है.

राजिंदर की बहन पर भी अशोक बुरी नजर रखता था. अब पुलिस इस बारे में भी जांच कर रही है. अगर कोई बात सामने आती है तो मृतक की मां बिशनो पर भी काररवाई की जाएगी. एक माह पहले अशोक की पत्नी की रहस्यमयी तरीके से मौत हो गई थी. पुलिस इस बात की जांच भी कर रही है कि बिशनो के चक्कर में कहीं अशोक ने ही तो अपनी पत्नी को कोई जहरीली चीज दे कर मारा था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य- सत्यकथा, नवंबर 2019