Love Crime Story : सगाई वाले दिन ही प्रेमिका का किया मर्डर

Love Crime Story : शादीशुदा युवराज उर्फ जुगराज सिंह ने हरप्रीत को प्यार के जाल में फांस तो लिया, लेकिन जब बात शादी तक पहुंची तो वह परेशान हो गया. गले में अटकी इस हड्डी को निकालने के लिए युवराज ने अपने दोस्तों सुखचैन सिंह व सुखविंदर के साथ ऐसी योजना बनाई कि…

कानपुर के जवाहर नगर निवासी सरदार गुरुवचन सिंह की 22 वर्षीय बेटी हरप्रीत कौर श्रमशक्ति एक्सप्रेस से दिल्ली जाने के लिए रात 9 बजे घर से निकली. रात 10 बजे कानपुर सेंट्रल पहुंचने पर हरप्रीत ने अपनी मां गुरप्रीत को फोन पर बताया कि उस का टिकट कंफर्म हो गया है, उसे आसानी से सीट मिल जाएगी. बेटी की बात से संतुष्ट हो कर गुरप्रीत कौर निश्चिंत हो गई. दरअसल, 13 दिसंबर को कानपुर में हरप्रीत कौर की रिंग सेरेमनी थी. उस का मंगेतर युवराज सिंह दिल्ली के बंगला साहिब गुरुद्वारे में रहता था. हरप्रीत कौर की भाभी व भाई सुरेंद्र सिंह भी दिल्ली में ही रहते थे. हरप्रीत भाई से मिलने तथा अपनी सगाई का सामान खरीदने के लिए 9 दिसंबर, 2019 की रात घर से निकली थी.

बेटी सफर में अकेली हो तो मांबाप की चिंता स्वाभाविक है. गुरुवचन सिंह को भी बेटी की चिंता थी. अत: हालचाल जानने के लिए उन्होंने रात 12 बजे बेटी को काल लगाई, पर उस का फोन स्विच्ड औफ था. उन्होंने सोचा कि वह सो गई होगी. लेकिन मन में शक का बीज पड़ गया था, जिस ने सवेरा होतेहोते वृक्ष का रूप ले लिया. सुबह 7 बजे उन्होंने फिर से हरप्रीत को काल लगाई, पर फोन अब भी बंद था. इस से गुरुवचन सिंह की चिंता और बढ़ गई. उन्होंने दिल्ली में रहने वाले बेटे सुरेंद्र सिंह को फोन पर सारी बात बताई. सुरेंद्र सिंह ने उन्हें बताया कि हरप्रीत कौर अभी तक यहां नहीं पहुंची है. इस के बाद सुरेंद्र सिंह बहन की खोज में निकल पड़ा.

सुरेंद्र सिंह नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचा क्योंकि श्रमशक्ति एक्सप्रैस नई दिल्ली तक ही आती है. वहां उस ने स्टेशन का हर प्लेटफार्म छान मारा लेकिन उसे हरप्रीत कौर नहीं दिखी. उस ने वेटिंग रूम में भी चेक किया, पर हरप्रीत कौर वहां भी नहीं थी. सुरेंद्र सिंह ने सोचा कि हो न हो, हरप्रीत अपने मंगेतर युवराज सिंह के पास चली गई हो? मन में यह विचार आते ही सुरेंद्र सिंह ने हरप्रीत के मंगेतर युवराज से फोन पर बात की, ‘‘युवराज, हरप्रीत तेरे पास तो नहीं आई?’’

‘‘नहीं तो,’’ युवराज ने जवाब दिया. फिर उस ने पूछा, ‘‘सुरेंद्र बात क्या है, हरप्रीत को ले कर तू इतना परेशान क्यों है?’’

‘‘क्या बताऊं… हरप्रीत कल रात कानपुर से दिल्ली आने को निकली थी, पर वह अभी तक यहां नहीं पहुंची. स्टेशन पर आ कर मैं ने चप्पाचप्पा छान मारा पर वह कहीं नहीं दिख रही. मैं बहुत परेशान हूं. समझ में नहीं आ रहा कि हरप्रीत गई तो कहां गई?’’

‘‘तुम परेशान न हो. मैं तुम्हारे पास आ रहा हूं.’’ युवराज बोला और कुछ देर बाद वह नई दिल्ली स्टेशन पहुंच गया. वह भी सुरेंद्र सिंह के साथ हरप्रीत की खोज करने लगा. दोनों ने नई दिल्ली स्टेशन का कोनाकोना छान मारा, लेकिन हरप्रीत का कुछ पता न चला. दिल्ली में सुरेंद्र व युवराज के कुछ परिचित थे. हरप्रीत भी उन्हें जानती थी. उन परिचितों के यहां भी सुरेंद्र सिंह ने बहन की खोज की, पर उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. सुरेंद्र सिंह के पिता गुरुवचन सिंह मोबाइल पर उस के संपर्क में थे. सुरेंद्र पिता को पलपल की जानकारी दे रहा था. जब सुबह से शाम हो गई और हरप्रीत का कुछ भी पता नहीं चला तो गुरुवचन सिंह चिंतित हो उठे. तब वह कानपुर रेलवे स्टेशन पर स्थित जीआरपी (राजकीय रेलवे पुलिस) थाना पहुंच गए.

उन्होंने थानाप्रभारी को बेटी के लापता होने की बात बताते हुए बेटी की गुमशुदगी दर्ज करने की मांग की. लेकिन थानाप्रभारी ने गुरुवचन सिंह की बात को तवज्जो नहीं दी. उन्होंने यह कह कर उन्हें वापस भेज दिया कि बेटी जवान है हो सकता है किसी के साथ सैरसपाटा के लिए निकल गई हो, 1-2 रोज इंतजार कर लो. उस के बाद न लौटे तो हम गुमशुदगी दर्ज कर लेंगे. गुरुवचन सिंह बुझे मन से वापस घर आ गए. गुरुवचन सिंह और उन की पत्नी गुरप्रीत कौर ने वह रात आंखों ही आंखों में काटी. दोनों के मन में तरहतरह की आशंकाएं उमड़नेघुमड़ने लगी थीं. अब तक गुरुवचन सिंह की युवा बेटी के गायब होने की खबर कई गुरुदारों तथा सिख समुदाय में फैल गई थी. लोगों की भीड़ उन के घर पर जुटने लगी थी.

गुरुद्वारे के जत्थे की महिलाएं भी आ गई थीं. सभी तरहतरह के कयास लगा रही थीं. गुरुवचन सिंह ने अपने खास लोगों से बंद कमरे में विचारविमर्श किया और जीआरपी थाने जा कर हरप्रीत की गुमशुदगी दर्ज कराने का निश्चय किया. 11 दिसंबर, 2019 की दोपहर गुरुवचन सिंह अपने परिचितों के साथ एक बार फिर कानपुर जीआरपी थाने पहुंचे. इस बार दबाव में बिना नानुकुर के थाना पुलिस ने हरप्रीत कौर की गुमशुदगी दर्ज कर ली. गुरुवचन सिंह एवं उन के परिचितों ने पुलिस से सीसीटीवी की फुटेज दिखाने का अनुरोध किया. इस पर पुलिस ने व्यस्तता का हवाला दे कर फुटेज दिखाने को इनकार कर दिया लेकिन जब दवाब बनाया गया तो फुटेज दिखाई.

फुटेज में हरप्रीत कौर स्टेशन की कैंट साइड से बाहर निकलते दिखाई दी. उस के बाद पता नहीं चला कि वह कहां गई. गुरुवचन सिंह जवाहर नगर में रहते थे. यह मोहल्ला थाना नजीराबाद के अंतर्गत आता है. शाम 5 बजे वह परिचितों के साथ थाना नजीराबाद जा पहुंचे. उस समय थानाप्रभारी मनोज रघुवंशी थाने पर ही मौजूद थे. गुरुवचन सिंह ने उन्हें अपनी व्यथा बताई और बेटी की गुमशुदगी दर्ज करने की गुहार लगाई. थानाप्रभारी ने तत्काल गुरुवचन सिंह की बेटी हरप्रीत कौर की गुमशुदगी दर्ज कर ली. उन्होंने बेटी को तलाशने में हर संभव कोशिश करने का आश्वासन दिया. इधर 12 दिसंबर की अपराह्न 3 बजे कानपुर के ही थाना महाराजपुर की पुलिस को हाइवे के किनारे झाडि़यों में एक युवती की लाश पड़ी होने की सूचना मिली. सूचना पाते ही थानाप्रभारी ए.के. सिंह कुछ पुलिसकर्मियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

लाश तिवारीपुर स्थित राधाकृष्ण मुन्नीदेवी महाविद्यालय के समीप हाइवे किनारे झाडि़यों में पड़ी थी. उन्होंने घटनास्थल और लाश का निरीक्षण किया. मृतका की उम्र 22 साल के आसपास थी. उसे देखने से लग रहा था कि उस की हत्या 2-3 दिन पहले कहीं और कर के लाश वहां डाली गई थी. मृतका के शरीर पर कोई जख्म वगैरह नहीं था जिस से प्रतीत हो रहा था कि उस की हत्या गला दबा कर की गई होगी. उस के पास ऐसी कोई चीज नहीं मिली जिस से उस की शिनाख्त हो सके. थानाप्रभारी ने हुलिए सहित एक युवती की लाश पाए जाने की सूचना वायरलेस द्वारा कानपुर नगर तथा देहात के थानों को प्रसारित कराई ताकि मृतका की पहचान हो सके. इस सूचना को जब नजीराबाद थानाप्रभारी मनोज रघुवंशी ने सुना तो उन का माथा ठनका. क्योंकि उन के यहां भी एक दिन पहले 22 वर्षीय युवती हरप्रीत कौर की गुमशुदगी दर्ज हुई थी.

उन्होंने आननफानन में हरप्रीत कौर के पिता गुरुवचन सिंह को थाने बुलवा लिया. फिर उन्हें साथ ले कर वह महाराजपुर में मौके पर पहुंच गए. गुरवचन सिंह उस लाश को देखते ही फफक पड़े, ‘‘सर, यह शव हमारी बेटी हरप्रीत का ही है. इसे किस ने और क्यों मार डाला?’’

हरप्रीत की लाश पाए जाने की सूचना जब अन्य घरवालों को मिली तो घर में कोहराम मच गया. मां, बहन, भाई व परिजन घटनास्थल पर पहुच गए. हरप्रीत का शव देख कर सभी बिलख पड़े. थानाप्रभारी ने हरप्रीत कौर की हत्या की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दी. कुछ ही देर बाद एसएसपी अनंतदेव तिवारी, एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता तथा सीओ (नजीराबाद) गीतांजलि सिंह भी मौके पर पहुंच गईं. मौके से साक्ष्य जुटाए गए. खोजी कुत्ता शव को सूंघ कर राधाकृष्ण मुन्नीदेवी महाविद्यालय की ओर भौंकता हुआ आगे बढ़ा फिर कुछ दूर जा कर वापस आ गया.

खोजी कुत्ता हत्या से संबंधित कोई साक्ष्य नहीं जुटा पाया. घटना स्थल से न तो मृतका का मोबाइल फोन बरामद हुआ और न उस का बैग. निरीक्षण के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम हेतु लाला लाजपत राय अस्पताल भेज दिया. 13 दिसंबर, 2019 को हरप्रीत हत्याकांड की खबर समाचारपत्रों में सुर्खियों में छपी तो सिख समुदाय के लोगों में रोष छा गया. सुबह से ही लोग पोस्टमार्टम हाउस पहुंचने लगे. दोपहर 12 बजे तक पोस्टमार्टम हाउस पर भारी भीड़ जुट गई. सपा विधायक इरफान सोलंकी तथा अमिताभ बाजपेई भी वहां पहुंच गए. विधायकों के आने से भीड़ ज्यादा उत्तेजित हो उठी. लोगों में पुलिस की लापरवाही के प्रति गुस्सा था.

अत: पुलिस विरोधी नारेबाजी शुरू हो गई. यह देख कर थानाप्रभारी मनोज रघुवंशी के हाथपांव फूल गए. उन्होंने घटना की जानकारी आला अधिकारियों को दी तो एडीजी प्रेम प्रकाश, आईजी मोहित अग्रवाल, एसएसपी अनंतदेव तिवारी, एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता, तथा सीओ गीतांजलि सिंह लाला लाजपतराय अस्पताल आ गईं. वहां जुटी भीड़ को देखते हुए एसएसपी ने मौके पर नजीराबाद, स्वरूप नगर, फजलगंज, काकादेव थाने की फोर्स भी बुला ली. बवाल की जानकारी पा कर जिलाधिकारी विजय विश्वास पंत भी मौके पर आ गए. सपा विधायक माहौल को बिगाड़ न दें, इसलिए पुलिस अधिकारियों ने भाजपा विधायक सुरेंद्र मैथानी तथा गुरु सिंह सभा, कानपुर के नगर अध्यक्ष सिमरन जीत सिंह को वहां बुलवा लिया. भाजपा विधायक व पुलिस अधिकारियों ने मृतका के परिजनों से बातचीत शुरू की.

मृतका के पिता गुरुवचन सिंह ने आरोप लगाया कि पुलिस ने बेहद लापरवाही की. पुलिस यदि सक्रिय होती, तो शायद आज उन की बेटी जिंदा होती. वह थानों के चक्कर लगाते रहे, कहते रहे कि जल्द से जल्द उन की बेटी के हत्यारों को गिरफ्तार किया जाए. उन्होंने जिलाधिकारी के समक्ष तीसरी मांग यह रखी कि उन्हें कम से कम 5 लाख रुपए की आर्थिक मदद दी जाए. गुरुवचन सिंह की इन मांगों के संबंध में विधायक सुरेंद्र मैथानी तथा गुरु सिंह सभा नगर अध्यक्ष सिमरन जीत सिंह ने जिलाधिकारी तथा पुलिस अधिकारियों से विचारविमर्श किया. अंतत: उन की सभी मांगें मान ली गईं. अधिकारियों के आश्वासन के बाद माहौल शांत हो गया.

3 डाक्टरों के एक पैनल ने हरप्रीत कौर के शव का पोस्टमार्टम किया. पैनल में डिप्टी सीएमओ डा. ए.बी. मिश्रा, डा. कृष्ण कुमार तथा डा. एस.पी. गुप्ता को शामिल किया गया. पोस्टमार्टम के दौरान वीडियोग्राफी भी की गई. डाक्टरों ने विसरा के साथ ही स्लाइड बना कर डीएनए सैंपल जांच के लिए सुरक्षित रख लिए. पोस्टमार्टम के बाद हरप्रीत के शव को जवाहर नगर गुरुद्वारा लाया गया. यहां जत्थे की महिलाओं की पुलिस से झड़प हो गई. सीओ गीतांजलि सिंह ने किसी तरह महिलाओं को समझाया. उस के बाद मृतका के शव को कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच बर्रा स्थित स्वर्गआश्रम लाया गया. जहां परिजनों ने उसे नम आंखों से अंतिम विदाई दी.

दरअसल हरप्रीत कौर की 13 दिसंबर को कानपुर में रिंग सेरेमनी थी. सगाई वाले दिन ही उस की अर्थी उठी. इसलिए जिस ने भी मौत की खबर सुनी, उस की आंखें आंसू से भर आईं. यही कारण था कि उस की शवयात्रा में भारी भीड़ उमड़ी. भीड़ में गम और गुस्सा दोनों था. गम का आलम यह रहा कि सिख समुदाय के अनेक घरों तथा गुरुद्वारे में खाना तक नहीं बना. एसएसपी अनंतदेव तिवारी ने हरप्रीत हत्याकांड को बेहद गंभीरता से लिया. उन्होंने हत्या के खुलासे की जिम्मेदारी एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता को सौंपी. अपर्णा गुप्ता ने खुलासे के लिए एक स्पैशल टीम गठित की.

इस टीम में नजीराबाद थानाप्रभारी मनोज रघुवंशी, सीओ गीतांजलि सिंह, कई थानों के तेजतर्रार दरोगाओं तथा कांस्टेबलों को सम्मिलित किया गया. अब तक थानाप्रभारी ने गुमशुदगी के इस मामले को भा.द.वि. की धारा 302, 201 के तहत अज्ञात हत्यारों के विरूद्ध तरमीम कर दिया था. एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता द्वारा गठित टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया, फिर पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अध्ययन किया. रिपोर्ट के मुताबिक हरप्रीत की हत्या गला दबा कर की गई थी. दुष्कर्म की आशंका के चलते स्लाइड बनाई गई थी तथा जहर की आशंका को देखते हुए विसरा भी सुरक्षित कर लिया गया था. स्लाइड व विसरा को परीक्षण हेतु लखनऊ लैब भेजा गया.

टीम ने मृतका के पिता गुरुवचन सिंह का बयान दर्ज किया. उन्होंने बताया कि उन्होंने अपनी बेटी हरप्रीत कौर का रिश्ता दिल्ली के बंगला साहिब गुरुद्वारा में क्लर्क के पद पर सेवारत युवराज सिंह के साथ तय हुआ था. 13 दिसंबर को उस की सगाई थी. वह सामान की खरीदारी करने 9 दिसंबर को दिल्ली जाने के लिए कानपुर रेलवे स्टेशन पहुंची थी. बेटी तो दिल्ली नहीं पहुंची, अपितु उस की मौत की खबर जरूर मिल गई.

‘‘हरप्रीत का मंगेतर युवराज कहां है? क्या वह तुम से मिलने तुम्हारे घर आया है?’’ थानाप्रभारी ने गुरुवचन सिंह से पूछा.

‘‘नहीं, वह मौत की खबर पा कर भी कानपुर नहीं आया. 12 दिसंबर को उस से बात जरूर हुई थी. उस के बाद उस से संपर्क नहीं हो पाया. युवराज का मोबाइल फोन भी बंद है.’’ गुरुवचन सिंह ने पुलिस को जानकारी दी. गुरुवचन सिंह की बात सुन कर मनोज रघुवंशी का माथा ठनका, इस की वजह यह थी कि जिस की होने वाली पत्नी की हत्या हो गई हो, वह खबर पा कर भी न आए, यह थोड़ा अजीब था. ऊपर से उस ने अपना मोबाइल भी बंद कर लिया था. इन सब वजहों से उन्हें लगा कि कुछ तो गड़बड़ है. हरप्रीत कौर घर से कानपुर सेंट्रल स्टेशन पहुंची थी. स्टेशन से ही वह गायब हुई थी. पुलिस टीम जांच करने स्टेशन पहुंची.

कानपुर रेलवे स्टेशन की जीआरपी पुलिस की मदद से सीसीटीवी फुटेज देखे गए तो हरप्रीत कौर स्टेशन से कैंट साइड में बाहर जाते दिखी. इस के बाद पुलिस ने रेल बाजार के हैरिशगंज क्षेत्र के एक सीसीटीवी फुटेज की जांच की तो इस फुटेज में 9 दिसंबर की रात 10 बजे हरप्रीत के अलावा 3 अन्य लोग कार में बैठे दिखे. पुलिस ने उन की पहचान कराने के लिए यह फुटेज गुरुवचन सिंह को दिखाई तो उन्होंने उन में से एक युवक की तत्काल पहचान कर ली. यह कोई और नहीं बल्कि हरप्रीत का मंगेतर युवराज सिंह था. 2 अन्य युवकों को वह नहीं पहचान पाए. युवराज सिंह पुलिस की रडार पर आया तो पुलिस ने युवराज तथा हरप्रीत के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. इस से पता चला कि 9 दिसंबर को युवराज और हरप्रीत के बीच कई बार बात हुई थी.

हरप्रीत ने अपने मोबाइल फोन से उसे आखिरी मैसेज भी भेजा था. लेकिन उस ने हरप्रीत से अपने एक दूसरे फोन नंबर से बात की थी. उस के पहले उस के फोन की लोकेशन 9 दिसंबर की रात दिल्ली की ही मिल रही थी. पुलिस टीम को समझते देर नहीं लगी कि युवराज सिंह शातिर दिमाग है. उस ने ही अपने साथियों के साथ मिल कर अपनी मंगेतर हरप्रीत की हत्या की है. पुलिस को उस पर शक न हो इसलिए वह अपना एक मोबाइल फोन दिल्ली में ही छोड़ आया था. हत्या में कार का प्रयोग भी हुआ था. इस का पता लगाने पुलिस टीम बारा टोल प्लाजा पहुंची. क्योंकि इसी टोल प्लाजा से कानपुर शहर का आवागमन दिल्ली आगरा की ओर होता है.

पुलिस टीम ने बारा टोल प्लाजा के सीसीटीवी फुटेज देखे तो हैरान रह गई. दिल्ली नंबर की टैक्सी वैगन आर कार 7 घंटे में 4 बार टोल से इधर से उधर क्रास हुई थी. 9 दिसंबर की रात साढ़े 8 बजे वह टैक्सी कानपुर शहर आई. रात 12.36 बजे वह वापस दिल्ली की तरफ गई. फिर 45 मिनट बाद रात 1.19 बजे कार वापस कानपुर की तरफ आई. इस के बाद रात 3.36 बजे वापस बारा टोल प्लाजा क्रास कर दिल्ली की ओर चली गई. इस बीच पुलिस ने डाटा डंप करा कर कई संदिग्ध नंबर निकाले तथा इन नंबरों की जानकारी जुटाई. कार पर अंकित नंबर डीएल1आरटीए 5238 की आरटीओ कार्यालय से जानकारी जुटाई गई तो पता चला कि कार का रजिस्ट्रैशन तरसिक्का (अमृतसर) निवासी सुखविंदर सिंह के नाम है.

एक अन्य संदिग्ध मोबाइल नंबर की जानकारी जुटाई गई तो पता चला कि वह नंबर अमृतसर (पंजाब) जिले के जुगावा गांव निवासी सुखचैन सिंह का है. हरप्रीत का मंगेतर युवराज सिंह भी इसी जुगावा गांव का रहने वाला था. पुलिस टीम जांच के आधार पर अब तक हरप्रीत कौर हत्याकांड के खुलासे के करीब पहुंच चुकी थी. अत: टीम ने जांच रिपोर्ट से एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता को अवगत कराया तथा युवराज सिंह तथा उस के साथियों की गिरफ्तारी की अनुमति मांगी. अपर्णा गुप्ता ने जांच रिपोर्ट के आधार पर गिरफ्तारी का आदेश दे दिया. इस के बाद पुलिस पार्टी हत्यारों की गिरफ्तारी के लिए दिल्ली व पंजाब रवाना हो गई.

15 दिसंबर, 2019 को पुलिस टीम युवराज सिंह की तलाश में दिल्ली स्थित बंगला साहिब गुरुद्वारा पहुंची. पता चला कि युवराज सिंह का असली नाम जुगराज सिंह है. 5 दिसंबर से वह ड्यूटी पर नहीं आ रहा है. गुरुद्वारे में वह क्लर्क के पद पर तैनात था. युवराज सिंह जब गुरुद्वारे में नहीं मिला तब पुलिस टीम ने युवराज सिंह व उस के दोस्त सुखचैन सिंह की तलाश में उस के गांव जुगावा (अमृतसर) में छापा मारा. लेकिन वह दोनों अपनेअपने घरों से फरार थे. उन का मोबाइल फोन भी बंद था, जिस से उन की लोकेशन नहीं मिल पा रही थी. युवराज सिंह तथा सुखचैन सिंह जब पुलिस के हत्थे नहीं चढ़े तो पुलिस टीम को निराशा हुई लेकिन टीम ने हिम्मत नहीं हारी. इस के बाद टीम ने रात में तरसिक्का (अमृतसर) निवासी सुखविंदर सिंह के घर दबिश दी.

सुखविंदर सिंह घर में ही था और चैन की नींद सो रहा था. पुलिस टीम ने उसे दबोच लिया और उस की कार भी अपने कब्जे में ले ली. पुलिस टीम कार सहित सुखविंदर सिंह को कानपुर ले आई. एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता तथा सीओ (नजीराबाद) गीतांजलि सिंह ने थाना नजीराबाद में सुखविंदर सिंह से हरप्रीत कौर की हत्या के संबंध में सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने हत्या में शामिल होना कबूल कर लिया. कार की डिक्की से उस ने मृतका हरप्रीत का ट्रौली बैग तथा मोबाइल फोन भी बरामद करा दिया. सुखविंदर सिंह ने बताया कि हरप्रीत कौर की हत्या उस के मंगेतर जुगराज सिंह उर्फ युवराज सिंह ने अपने गांव के दोस्त सुखचैन सिंह के साथ मिल कर रची थी. हत्या में वह भी सहयोगी था.

हत्या के बाद शव को ठिकाने लगाने के बाद वह तीनों रात में ही दिल्ली के लिए रवाना हो गए थे. कार उस की खुद की थी. दिल्ली में वह उस कार को टैक्सी के रूप में चलाता था. सुखविंदर सिंह ने बताया कि वह हत्या करना नहीं चाहता था, लेकिन दोस्त जुगराज सिंह की शादीशुदा जिंदगी तबाह होने से बचाने के लिए वह हत्या जैसे जघन्य अपराध में शामिल हो गया. चूंकि सुखविंदर सिंह ने हत्या का परदाफाश कर दिया था और हत्या में प्रयुक्त कार भी बरामद करा दी थी. साथ ही मृतका का ट्रौली बैग तथा मोबाइल फोन भी बरामद करा दिया था. अत: एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता ने सीओ गीतांजलि सिंह के कार्यालय परिसर में आननफानन में प्रैस वार्ता की.

पुलिस ने कातिल सुखविंदर सिंह को मीडिया के समक्ष पेश कर घटना का खुलासा कर दिया. पुलिस पूछताछ में प्यार में धोखा खाई एक युवती की मौत की सनसनीखेज कहानी प्रकाश में आई. उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर के नजीराबाद थाना अंतर्गत एक मोहल्ला है जवाहर नगर. इसी मोहल्ले में स्थित गुरुद्वारे में गुरुवचन सिंह अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी गुरप्रीत कौर के अलावा 2 बेटे सुरेंद्र सिंह, महेंद्र सिंह तथा 2 बेटियां जगप्रीत व हरप्रीत कौर थीं. गुरुवचन सिंह गुरुद्वारा में ग्रंथी व सेवादार थे. उन की अर्थिक स्थिति भले ही कमजोर थी पर मानसम्मान बहुत था. भाईबहनों में हरप्रीत कौर सब से छोटी थी. हरप्रीत जितनी सुंदर थी, पढ़ने में वह उतनी ही तेज थी.

उस ने ग्रैजुएशन तक पढ़ाई की थी. शारीरिक सौंदर्य बनाए रखने हेतु वह गतिका सीखती थी. गुरुद्वारे में वह सेवादार भी थी. जत्थे की महिलाओं का उस पर स्नेह था. हरप्रीत कौर का एक भाई सुरेंद्र सिंह दिल्ली के चांदनी चौक में अपने परिवार के साथ रहता था. हरप्रीत का अपने भैयाभाभी के घर आनाजाना बना रहता था. भाई के घर रहने के दौरान कभीकभी वह मत्था टेकने बंगला साहिब गुरुद्वारा भी चली जाती थी. हरप्रीत कौर धार्मिक प्रवृत्ति की थी. धर्मकर्म में उस की विशेष रुचि थी. गुरुनानक जयंती व गुरु गोविंद सिंह के जन्म पर्व पर वह बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी.

एक बार हरप्रीत अपने मातापिता के साथ बंगला साहिब गुरुद्वारा अपने भाई महिंद्र सिंह के लिए लड़की देखने गई. यहीं उस की मुलाकात एक खूबसूरत सिख युवक युवराज सिंह से हुई. पहली ही नजर में दोनों एकदूसरे के प्रति आकर्षित हो गए थे. इस के बाद दोनों की अकसर मुलाकातें होने लगीं. बाद में मुलाकातें प्यार में तब्दील हो गईं. दोनों एकदूसरे को टूट कर चाहने लगे. प्यार परवान चढ़ा तो दोनों एकदूजे का होने के लिए उतावले हो उठे. युवराज सिंह मूलरूप से पंजाब प्रांत के अमृतसर जिले के गांव जुगावा का रहने वाला था. वह शादीशुदा तथा एक बच्चे का पिता था. उस का परिवार तो गांव में रहता था, जबकि वह स्वयं दिल्ली स्थित बंगला साहिब गुरुद्वारे में रहता था. उस के मांबाप भी गुरुद्वारे में सेवादार थे. वह महीनोंमहीनों गुरुद्वारे में रहते थे.

युवराज सिंह छलिया आशिक था. उस का असली नाम जुगराज सिंह था. उस ने जानबूझ कर हरप्रीत कौर से अपनी पहचान, नाम व शादी वाली बात छिपा रखी थी. युवराज सिंह के प्यार में हरप्रीत ऐसी अंधी हो गई थी कि वह उस से ब्याह रचाने के सपने संजोने लगी. युवराज सिंह भी हरप्रीत से प्यार का ऐसा दिखावा करता था कि उस से बढ़ कर कोई आशिक हो ही नहीं सकता. उस ने हरप्रीत को कभी आभास ही नहीं होने दिया कि वह शादीशुदा और एक बच्चे का बाप है. हरप्रीत जब तक भाई के घर रहती, युवराज के साथ प्यार की पींगें बढ़ाती, जब वापस कानपुर आती तब मोबाइल फोन द्वारा दोनों घंटों तक बतियाते. हरप्रीत ने अपने मातापिता को भी अपने और युवराज के प्यार के संबंध में जानकारी दे दी थी. भाई सुरेंद्र सिंह को भी दोनों का प्यार पनपने की जानकारी थी.

एक रोज जब सुरेंद्र सिंह का दिल्ली में एक्सीडेंट हो गया, तब हरप्रीत अपने मांबाप के साथ भाई को देखने दिल्ली आ गई. हरप्रीत के दिल्ली आने की जानकारी पा कर युवराज भी सुरेंद्र सिंह को देखने आया. यहां भाई के घर पर हरप्रीत ने युवराज सिंह की मुलाकात अपने मांबाप से कराई. चूंकि युवराज सिंह देखने में स्मार्ट था, सो गुरुवचन सिंह ने उसे बेटी के लिए पसंद कर लिया. उन्होंने उसी समय युवराज सिंह को शगुन भी दे दिया. किंतु इन्हीं दिनों युवराज सिंह के छलावे की बात खुल गई. हरप्रीत को पता चला कि युवराज सिंह शादीशुदा और एक बच्चे का बाप है. इस छलावे को ले कर हरप्रीत और युवराज सिंह के बीच जम कर झगड़ा हुआ. उस ने शिकवाशिकायत की, लेकिन युवराज  सिंह ने उस से माफी मांग ली.

हरप्रीत कौर, युवराज सिंह के प्यार में अंधी हो चुकी थी. वह प्यार की सब से ऊंची सीढ़ी पर पहुंच चुकी थी, जहां से नीचे उतरना उस के लिए संभव नहीं था. अत: शादीशुदा वाली बात जानने के बावजूद भी वह उस से शादी करने को अडिग रही. यद्यपि उस ने युवराज के शादीशुदा होने वाली बात अपने मातापिता से छिपा ली. हरप्रीत को शक था कि भेद खुल जाने से कहीं युवराज सिंह सगाई से मुकर न जाए. अत: वह युवराज सिंह पर जल्द सगाई करने का दबाव डालने लगी. उस ने अपने मांबाप पर भी सगाई की तारीख तय करने का दबाव बनाया.

दबाव के चलते युवराज सिंह सगाई करने को राजी हो गया. हरप्रीत के मांबाप ने सगाई की तारीख 13 दिसंबर, 2019 नियत कर दी. इस के बाद वह बेटी की सगाई की तैयारी में जुट गए. तय हुआ कि जवाहर नगर, कानपुर गुरुद्वारे में दोनों की सगाई होगी. युवराज सिंह हरप्रीत कौर से प्यार तो करता था, लेकिन सगाई नहीं करना चाहता था. क्योंकि सगाई से उस की खुशहाल जिंदगी तबाह हो सकती थी. उस ने हरप्रीत से 1-2 बार सगाई का विरोध भी किया था, लेकिन हरप्रीत ने उसे यह धमकी दे कर उस का मुंह बंद कर दिया कि वह सारी बात बंगला साहिब गुरुद्वारा तथा उस के परिवार में सार्वजनिक कर देगी. तब उस की नौकरी भी चली जाएगी और परिवार में कलह भी होगी. हरप्रीत की इसी धमकी के चलते वह उस से सगाई को राजी हो गया था.

युवराज ने हामी तो भर दी लेकिन वह किसी भी कीमत पर हरप्रीत से सगाई नहीं करना चाहता था, अत: जैसेजैसे सगाई की तारीख नजदीक आती जा रही थी, वैसेवैसे युवराज की चिंता बढ़ती जा रही थी. आखिर उस ने इस समस्या से निजात पाने के लिए अपनी प्रेमिका हरप्रीत कौर को शातिराना दिमाग से ठिकाने लगाने की योजना बनाई. इस योजना में उस ने अपने गांव के दोस्त सुखचैन सिंह तथा दिल्ली के दोस्त सुखविंदर सिंह को एकएक लाख रुपए का लालच दे कर शामिल कर लिया. सुखविंदर सिंह मूलरूप से तरसिक्का (अमृतसर) का रहने वाला था. दिल्ली में वह पांडव नगर के पास गणेश नगर में रहता था. उस के पास वैगनआर कार थी, जिसे वह दिल्ली में टैक्सी के रूप में चलाता था.

हत्या की योजना बनाने के बाद युवराज सिंह हरप्रीत कौर व उस के मातापिता से मनलुभावन बातें करने लगा, ताकि उन्हें किसी प्रकार का शक न हो. बातचीत के दौरान युवराज सिंह को पता चला कि हरप्रीत 9 दिसंबर को भाई से मिलने तथा खरीदारी करने घर से दिल्ली को रवाना होगी. अत: युवराज सिंह ने 9 दिसंबर की रात ही उसे ठिकाने लगाने का निश्चय किया. उस ने इस की जानकारी अपने दोस्तों को भी दे दी. 9 दिसंबर, 2019 की सुबह 11 बजे युवराज सिंह व सुखचैन सिंह, सुखविंदर सिंह की कार से दिल्ली से कानपुर को रवाना हुआ. युवराज सिंह ने अपना एक मोबाइल घर पर ही छोड़ दिया ताकि उस की लोकेशन ट्रेस न हो सके. रास्ते में सुखचैन सिंह के मोबाइल से हरप्रीत व उस की मां से बतियाता रहा.

हालांकि उस ने यह जानकारी नहीं दी कि वह कानपुर आ रहा है. रात 8 बज कर 31 मिनट पर उस की कार ने बारा टोल प्लाजा पार किया, फिर साढ़े 9 बजे वह रेलवे स्टेशन से कैंट साइड में पहुंच गया. इधर हरप्रीत कौर भी दिल्ली जाने को कानपुर सेंट्रल स्टेशन पहुंच गई थी. यह बात युवराज सिंह को पता थी. उस ने फोन कर के हरप्रीत को स्टेशन के बाहर कैंट साइड में बुलवा लिया. हरप्रीत उसे देख कर चौंकी तो उस ने कहा कि वह उसे ही लेने आया है. इस के बाद हरप्रीत ने मां को झूठी जानकारी दी कि उस का टिकट कंफर्म हो गया है.

रात 10 बजे युवराज सिंह ने हरप्रीत को कार में बिठा लिया. फिर चारों गोविंदनगर आए. यहां सभी ने अनिल मीट वाले के यहां खाना खाया और कोल्डड्रिंक पी. युवराज सिंह ने चुपके से हरप्रीत की कोल्डड्रिंक में नशीली दवा मिला दी थी. हरप्रीत ने कोल्डड्रिंक पी तो वह कार में बेहोश हो गई. कार इटावा हाइवे की तरफ बढ़ी और उस ने रात 12:36 बजे बारा टोल प्लाजा पार किया. चलती कार में युवराज सिंह व सुखचैन सिंह ने शराब पी. युवराज सिंह ने दोस्तों को हरप्रीत के साथ दुष्कर्म करने को कहा लेकिन सुखचैन सिंह व सुखविंदर सिंह ने इस औफर को ठुकरा दिया. लगभग 45 मिनट बाद कार फिर कानपुर की तरफ वापस हुई और उस ने रात 1 बज कर 19 मिनट पर टोल प्लाजा को पार किया. फिर कार कानपुर हाइवे पार कर महराजपुर थाना क्षेत्र के तिवारीपुर गांव के समीप पहुंची. यहां युवराज सिंह ने सुनसान जगह पर हाइवे किनारे कार रुकवा ली.

इस के बाद बेहोशी की हालत में कार में बैठी हरप्रीत को युवराज सिंह ने दबोच लिया. सुखचैन सिंह तथा सुखविंदर सिंह ने हरप्रीत के पैर पकड़े तथा युवराज सिंह ने उस का गला घोंट दिया. हत्या करने के बाद तीनों ने मिल शव को हाइवे किनारे झाडि़यों में फेंक दिया. इस के बाद ये लोग कार से दिल्ली की ओर चल पड़े. उन की कार ने रात 3:36 बजे बारा टोल प्लाजा को पार किया. दिल्ली पहुंच कर युवराज सिंह हरप्रीत के भाई सुरेंद्र सिंह के साथ हरप्रीत की तलाश का नाटक करता रहा. 12 दिसंबर को वह पकड़े जाने के डर से फरार हो गया. उस ने अपना मोबाइल फोन भी बंद कर लिया था.

सुखविंदर सिंह को गिरफ्तार कर पुलिस ने उसे 17 दिसंबर, 2019 को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट बी.के. पांडेय की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

 

Love Crime : शादीशुदा प्रेमिका के लिए जल्लाद बना विधायक

Love Crime :  पद और पैसों के घमंड में कई लोग इतने अंधे हो जाते हैं कि गलत कदम तक उठा लेते हैं. सत्ता के गुरूर में चूर हो कर पूर्व विधायक अनूप कुमार साय ने अपनी प्रेमिका कल्पना दास और उस की बेटी की नृशंस हत्या तो कर दी, लेकिन यह कदम उस के लिए कितना घातक होगा, इस की उस ने कल्पना तक नहीं की थी.

पूर्व विधायक अनूप कुमार साय ओडिशा के झारसुगड़ा स्थित होटल मेघदूत में अपनी प्रेमिका कल्पना दास के साथ ठहरा था. कल्पना के साथ उस की 14 वर्षीय बेटी प्रवती दास भी थी. कल्पना और अनूप कुमार के बीच एक महत्त्वपूर्ण विषय पर चर्चा हो रही थी. कमरे में बैठे अनूप कुमार साय ने पास बैठी कल्पना दास की ओर देखते हुए कहा, ‘‘कल्पना, हम छत्तीसगढ़ के शहर रायगढ़ चलते हैं. वहीं पर हमीरपुर में एक साईं मंदिर है. उसी मंदिर में हम शादी कर लेंगे, वहां मेरे कुछ रिश्तेदार भी हैं. कुछ दिनों वहीं रह लेंगे. यह बताओ कि अब तो तुम खुश हो न?’’

कल्पना दास ने उचटतीउचटती निगाह अनूप कुमार साय पर डाली और बोली, ‘‘देखो, अब मुझे तुम पर विश्वास नहीं है. कितने साल बीत गए, तुम तो बस हम मांबेटी का खून पीते रहे हो. पता नहीं वह दिन कब आएगा, जब मुझे शांति मिलेगी.’’

कल्पना के रूखे स्वर से अनूप कुमार साय के तनबदन में आग लग गई. वह अपने ड्राइवर बर्मन टोप्पो की ओर देख कर बोला, ‘‘बर्मन, चलना है रायगढ़.’’

मालिक का आदेश सुन कर बर्मन टोप्पो मुस्तैद खड़ा हो गया. वह अनूप कुमार साय का सालों से ड्राइवर था. यानी एक तरह से उस का विश्वासपात्र मुलाजिम था. उस ने विनम्रता से कहा, ‘‘साहब, मैं नीचे इंतजार करता हूं.’’

इतना कह कर वह वहां से चला गया. माहौल थोड़ा सामान्य हुआ तो अनूप साय ने बड़े प्यार से कल्पना को समझाया, ‘‘देखो कल्पना, मैं वादा करता हूं कि बस यह आखिरी मौका है. इस के बाद मैं तुम्हें कभी भी नाराज होने का मौका नहीं दूंगा.’’

अनूप साय की बात पर कल्पना शांत हो गई और बेटी के साथ जाने के लिए उस की बोलेरो में बैठ गई. झारसुगुडा से रायगढ़ लगभग 85 किलोमीटर दूर है. बोलेरो रायगढ़ की तरफ रवाना हो गई. यह 6 मई, 2016 की बात है. 3 बार विधायक रहा अनूप कुमार साय वर्तमान में ओडिशा के वेयर हाउसिंग कारपोरेशन का चेयरमैन था. ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के खासमखास लोगों में से एक. मुख्यमंत्री से अनूप कुमार के नजदीकी संबंधों की ही एक नजीर यह थी कि मई 2019 के विधानसभा चुनाव में विधानसभा की टिकट नहीं मिलने के बावजूद भी उसे मुख्यमंत्री का वरदहस्त प्राप्त था. राजनीतिक रसूख के कारण ही उसे कारपोरेशन का चेयरमैन नियुक्त किया गया था.

यह कथा है पूर्व विधायक अनूप कुमार साय की जो सन 1999, 2004 एवं 2009 में ओडिशा के ब्रजराजनगर विधानसभा से विधायक चुना गया. अनूप कुमार साय ने कल्पना दास के साथ प्रेम की पींगे भरीं. फिर देखते ही देखते वह अपराध के दलदल में चला गया. राजनीति की उजलीकाली रोशनी में कोई राजनेता जब स्वयं को स्वयंभू समझने लगता है तो उस का पतन उस का समूल अस्तित्व नष्ट कर जेल के सींखचों में पहुंचा देता है. यही सब अनूप कुमार साय के साथ भी हुआ. 6 मई, 2016 की सुबह के समय अनूप कुमार साय अपनी प्रेमिका कल्पना दास और उस की बेटी को अपनी बोलेरो कार में बिठा कर रायगढ़ की तरफ रवाना हो गया. करीब 2 घंटे बाद वह छत्तीसगढ़ की सीमा में प्रवेश कर गया. इस बीच दोनों आपस में बातें करते रहे.

बातोंबातों में एक बार फिर से उन के स्वर तल्ख होते जा रहे थे. कल्पना ने कहा, ‘‘देखो, तुम्हारे साथ मेरा जीवन तो बरबाद हो ही गया, अब मैं प्रवती की जिंदगी कतई बरबाद नहीं होने दूंगी.’’

अनूप कुमार साय का स्वर तल्खीभरा हो चला था, ‘‘अच्छा, मेरी वजह से तुम्हारा जीवन बरबाद हो गया? तुम ने कभी यह सोचा कि पहले क्या थीं, क्या बन गई हो और कहां से कहां पहुंच गई हो. अहसानफरामोशी इसी को कहते हैं. तुम अपने दिल से पूछो कि क्या नहीं किया है मैं ने तुम्हारे और प्रवती के लिए. तुम लोगों की खातिर मैं ने अपना राजनीतिक जीवन तक दांव पर लगा दिया. बदनाम हो गया, मेरी विधायकी चली गई. यहां तक कि अपनी विवाहिता पत्नी, बच्चों तक से संबंध तोड़ बैठा हूं.’’

‘‘झूठ…बिलकुल झूठ.’’ कल्पना दास का स्वर स्पष्ट रूप से कठोर था, ‘‘जब तक तुम मुझे मेरा अधिकार नहीं दोगे, मैं तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ूंगी.’’

‘‘देखो, मैं भी तुम्हें प्यार से समझा रहा हूं कि जिद छोड़ दो, सब कुछ तो तुम्हारा ही है. सिर्फ लिख कर दे दूंगा तो क्या होगा? अरे पगली, मन जीतना सीखो. अगर मेरा मन तुम्हारे साथ है तो मैं जो भी लिखूंगा, नहीं लिखूंगा सब तुम्हारा है.’’ अनूप ने समझाया.

‘‘मुझे बातों में मत उलझाओ. 12 साल हो गए देखते हुए. मैं अब सब्र नहीं कर सकती. अब तो तुम्हें मुझ से शादी करनी ही होगी और तुम्हारी संपत्ति में भी मुझे हिस्सा चाहिए.’’ कल्पना ने स्पष्ट कह दिया.

‘‘तो यह तुम्हारा अंतिम फैसला है?’’ अनूप कुमार बिफर पड़ा.

‘‘हां, यह मेरा अंतिम फैसला है.’’ कल्पना दास के स्वर में दृढ़ता थी.

‘‘तो ठीक है, फिर…’’ कहते हुए अनूप कुमार साय ने ड्राइवर टोप्पो से गाड़ी रोकने का इशारा किया. ड्राइवर ने तुरंत गाड़ी रोक दी.अनूप कुमार साय ने कार का दरवाजा खोला और बाहर निकलते हुए कहा, ‘‘आओ, आओ बाहर आओ.’’

उस के स्वर में बेहद रोष था. कल्पना दास जब तक बाहर आती, अनूप कुमार साय जल्दी से गाड़ी के पीछे गया और पीछे रखी लोहे की एक मोटी रौड ले कर सामने खड़ा हो गया. कल्पना बाहर निकली तो उस ने रौड से कल्पना दास पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया. लोहे की रौड जब कल्पना के सिर पर पड़ी तो वह चीख कर वहीं गिर पड़ी. मां के चीखने की आवाज सुनते ही बेटी प्रवती घबरा गई. मां को घायल देख घबरा कर वह बाहर आई तो अनूप कुमार ने उस के सिर पर भी उसी रौड से प्रहार कर दिया. उस का भी सिर फट गया और खून की धार फूट निकली. वह भी वहीं धराशाई हो कर गिर पड़ी. मांबेटी घायल पड़ी थीं. उन के सिर से खून बह रहा था. दोनों को घायलावस्था में देख अनूप कुमार उन्हें गालियां देते हुए चिल्ला रहा था, ‘‘मुझ से शादी करोगी, मेरी संपत्ति पर नजर लगा रखी है, मार डालूंगा.’’

कहते हुए उस ने रौड से उन पर कई वार किए, जिस से कुछ ही देर में उन दोनों की मौत हो गई. उन्हें मौत के घाट उतार कर उस ने लहूलुहान लोहे की रौड बोलेरो में रख ली. इस के बाद उस ने ड्राइवर बर्मन टोप्पो से कहा, ‘‘इन दोनों का हश्र ऐसा करो कि कोई पहचान भी न पाए. गाड़ी से दोनों का सिर कुचल डालो.’’

बर्मन टोप्पो ने मालिक के कहने पर बोलेरो स्टार्ट कर के कल्पना और उस की बेटी पर कई बार चढ़ाई. वह पहिया चढ़ा कर उन के चेहरे बिगाड़ने लगा ताकि कोई पहचान न पाए. अनूप ने यह वारदात छत्तीसगढ़ के जिला रायगढ़ में मां शाकुंभरी फैक्ट्री के सुनसान रास्ते पर की थी. घटनास्थल थाना चक्रधर नगर के अंतर्गत आता था. अनूप कुमार साय अपनी बरसों से प्रेयसी रही कल्पना दास और उस की 14 वर्षीय बेटी प्रवती की नृशंस हत्या कर उसी बोलेरो में बैठ कर बृजराजनगर, ओडिशा की ओर चला गया. यह बात 6 मई, 2016 की है. आइए जानें कि कल्पना दास कौन थी और वह पूर्व विधायक अनूप कुमार साय के चक्कर में कैसे फंसी?

कल्पना दास ब्रजराज नगर के रहने वाले रुद्राक्ष दास की बेटी थी. रुद्राक्ष दास की बेटी के अलावा 2 बेटे भी थे. उन्होंने अपने तीनों बच्चों को उच्चशिक्षा दिलवाई. पढ़ाई के दौरान ही कल्पना को कालेज में ही अपने साथ पढ़ने वाले सुनील श्रीवास्तव से प्यार हो गया था. सुनील भी ब्रजराज नगर में रहता था. उन का प्यार इस मुकाम पर पहुंच गया था कि उन्होंने शादी करने का फैसला ले लिया था. कल्पना ने जब अपने प्यार के बारे में घर वालों को बताया तो उन्होंने उसे सुनील के साथ शादी करने की अनुमति नहीं दी. लेकिन कल्पना ने अपने घर वालों की बात नहीं मानी. लिहाजा एक दिन सुनील श्रीवास्तव और कल्पना दास ने घर वालों को बिना बताए एक मंदिर में शादी कर ली. यह सन 2000 की बात है.

सुनील से शादी करने के बाद कल्पना ने अपने पिता का घर छोड़ दिया. इस के बाद सुनील ने भी इलैक्ट्रौनिक की एक दुकान खोल ली, जिस से गुजारे लायक आमदनी होने लगी. शादी के बाद भी कल्पना ने अपनी पढ़ाई जारी रखी. इसी दौरान सन 2002 में उस ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम प्रवती रखा. इसी बीच कल्पना ने अपनी वकालत की पढ़ाई भी पूरी कर ली थी. कल्पना सुनील के साथ खुश थी. लेकिन कुछ दिनों बाद ही जब उस के सिर से प्यार का नशा उतरा तो उसे पति में कई कमियां नजर आने लगीं. इस की सब से बड़ी वजह यह थी कि उसे खर्चे के लिए तंगी होती थी, क्योंकि सुनील की आमदनी बहुत ज्यादा नहीं थी. कम आय में कल्पना की महत्त्वाकांक्षाएं पूरी नहीं हो पाती थीं.

कल्पना जब कभी किसी पर्यटक स्थल पर घूमने को कहती तो सुनील पैसों का रोना रोने लगता था. न ही वह कल्पना को रेस्टोरेंट वगैरह में खाना खिलाने ले जाता था. एक बार कल्पना ने उस से गोवा घूमने की जिद की तो सुनील ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘अरे भई, ये सब बड़े लोगों के चोंचले हैं. हम साधारण लोग क्या गोवा घूमने जाएंगे.’’

सुनील कल्पना को समझाता मगर कल्पना की काल्पनिक उड़ान बहुत ऊंची थी. वह जीवन में उल्लास और ऐश्वर्य चाहती थी. वह सुनील के साथ घुट कर जीने से आजिज आ चुकी थी. एक दिन कल्पना ने पति से कहा, ‘‘मैं ने वकालत की डिग्री हासिल की है. क्यों न वकालत कर के पैसे और नाम दोनों ही अर्जित करूं. इस से हमारे सपने भी पूरे होंगे और मेरा मन भी लगा रहेगा.’’

सुनील को कल्पना की यह सलाह पसंद आई. कल्पना ने बृजराज नगर में वकालत करनी शुरू कर दी. इसी दौरान कल्पना ने अपने मांबाप से बातचीत करना शुरू कर दिया था. वह मायके भी आनेजाने लगी थी. कल्पना ने वकालत जरूर शुरू कर दी थी लेकिन पेशे के पेंच समझे बिना कैसे पैसा कमाती. फिर भी किसी तरह धीरेधीरे गाड़ी चल निकली. कल्पना के अपने मायके वालों से संबंध सामान्य हो चुके थे. पिता रुद्राक्ष दास ने भी सुनील और कल्पना को माफ कर दिया था. एक दिन कल्पना ने पिता रुद्राक्ष दास से जब अपने वकालत के पेशे में आ रही दिक्कतों के बारे में चर्चा की तो वे बोले, ‘‘वकालत का पेशा गहराई मांगता है. यह संबंधों का खेल है.’’

‘‘क्या मतलब?’’ कल्पना ने भोलेपन से पूछा.

‘‘बेटी, जिन के संबंध जितने गहरे यानी दूर तक फैले होते हैं, वकालत में उसे ही ज्यादा काम मिलता है. मैं तुम्हें यहां के कांग्रेस पार्टी के एक बड़े नेता अनूप कुमार साय से मिला दूंगा. वह मेरे अच्छे परिचित हैं. वह तुम्हारी मदद जरूर करेंगे. रोजाना उन से सैकड़ों लोग मिलने आते हैं. देखना, उन के सहयोग से तुम्हारी वकालत को कैसे रवानगी मिलती है.’’

‘‘पापा, वह तो क्षेत्र के विधायक हैं न?’’ कल्पना ने आश्चर्य से पिता की ओर देखते हुए कहा.

‘‘हांहां, हमारे एमएलए हैं अनूप कुमार साय.’’ रुद्राक्ष दास ने बेटी की बात की पुष्टि करते हुए कहा.

कल्पना बहुत खुश हुई. दूसरे दिन पिता के साथ वह स्थानीय कांग्रेस नेता व विधायक अनूप कुमार साय के आवास पर पहुंची, जहां उस के पिता ने उसे विधायक अनूप कुमार से मिलाया. एमएलए ने उस की भरपूर मदद करने का आश्वासन दिया. कल्पना उस समय 24 साल की थी, प्रवती 4 वर्ष की बालिका थी. कल्पना को देख कर विधायक पहली ही नजर में उस का मुरीद हो गया. अब कल्पना रोजाना ही नेताजी के घर-औफिस आ जाती और उस का काम संभालती. दोनों जल्द ही एक रंग में रंग गए तो सुनील श्रीवास्तव का बसाबसाया घर टूट गया. एमएलए से बन गए संबंध इस की वजह यह थी कि 2006 आतेआते कल्पना अनूप कुमार साय की हमसाया बन चुकी थी. फिर एक दिन उस ने पति सुनील श्रीवास्तव से संबंध विच्छेद कर लिया.

सन 2009 में अनूप कुमार तीसरी बार विधायक बना तो उस ने कल्पना के लिए 24, सुंदरपदा कालोनी, भुवनेश्वर, ओडिशा में एक आवासीय भूखंड खरीदा और वहां 2 मंजिला मकान बनवा कर दे दिया. मकान के ऊपर वाले भाग में कल्पना दास अपनी एकलौती बेटी के साथ ठसक से रहने लगी. विधायक ने मकान के नीचे का हिस्सा एक ठेकेदार शरद साहू को दे दिया जो मकान की देखरेख करता था. विधायक अनूप कुमार साय ने कल्पना दास को एक तरह से दूसरी पत्नी के रूप में रखा हुआ था. उस की सारी जरूरतें वही पूरी करता था. प्रवती दास को विधायक ने अपना नाम दे कर उस का दाखिला नामीगिरामी सेंट जेवियर्स इंग्लिश स्कूल में करा दिया था.

कल्पना हंसीखुशी से रहने लगी. विधायक के रूप में अनूप कुमार साय की क्षेत्र में बड़ी प्रतिष्ठा थी. वह कांग्रेस पार्टी का एक तरह से सर्वेसर्वा था. राज्य में बीजू जनता दल की सरकार होने के बावजूद वह बारबार कांग्रेस से विधायक निर्वाचित हो रहा था और अंचल में उस का खासा रुतबा और दबदबा बढ़ता रहा. विधायक अनूप व कल्पना प्रेम से रहते रहे. दोनों बच्ची प्रवती को साथ ले कर कभी गोवा, कभी हैदराबाद और कभी विशाखापट्टनम सहित देश भर के प्रमुख पर्यटक स्थलों पर घूमने जाते. मगर धीरेधीरे कल्पना को यह लगने लगा था कि वह दूसरी औरत है. उस की अपनी कोई हैसियत नहीं है इसलिए वह अनूप से शादी की जिद करने लगी. जिस की परिणति 6 मई, 2016 को उस की और बेटी प्रवती की हत्या के साथ पूरी हुई.

7 मई, 2016 को शाकुंभरी फैक्ट्री के निकट लोगों ने एक महिला और एक लड़की का शव देखा. यह खबर जंगल में आग की तरह फैली तो वहां लोगों का हुजूम जुट गया. किसी ने इस की सूचना चक्रधर नगर थाने में दी तो तत्कालीन टीआई अमित पाटले तुरंत घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए. घटनास्थल पर वह 10 मिनट में ही पहुंच गए. वहां पहुंच कर उन्होंने घटनास्थल का सूक्ष्य निरीक्षण किया. वहां पर एक महिला और एक लड़की की खून से लथपथ लाशें पड़ी थीं. दोनों लाशें किसी गाड़ी के टायरों से कुचली हुई दिख रही थीं. टायरों के निशान भी साफ दिख रहे थे. मीडिया में उछला मामला इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि किसी ने योजनाबद्ध तरीके से वारदात को अंजाम दिया है. घटना के बारे में उच्चाधिकारियों को जानकारी देने के बाद टीआई ने दोनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

मीडिया में जब यह घटना प्रमुखता से आई तो पुलिस अधिकारी भी हरकत में आ गए. अगले दिन तत्कालीन आईजी पवन देव, एसपी संजीव शुक्ला सहित कई अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. उन्होंने अंदेशा जताया कि ये कालगर्ल्स से जुड़ा मामला हो सकता है. इस केस की जांच के लिए उन्होंने एक जांच टीम बनाई, जिस में टीआई अमित पाटले, राकेश मिश्रा (प्रभारी क्राइम ब्रांच) आदि को शामिल किया गया. जांच टीम ने जिले के सभी थानों को घटना की जानकारी देते हुए गुमशुदा हुए लोगों के संदर्भ में जानकारी मांगी.

जब पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला तो रायगढ़ पुलिस आईजी के निर्देश पर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पश्चिम बंगाल तक जांच के लिए पहुंच गई. इन राज्यों के पुलिस कप्तानों के पास दोनों लाशों से संबंधित पैंफ्लेट भी छपवा कर भेज दिए ताकि दोनों लाशों की शिनाख्त हो सके. ओडिशा के बरगढ़ थाने में कांस्टेबल के पद पर तैनात सरोज दास ने जब पैंफ्लेट पढ़ा तो वह परेशानी में पड़ गया. क्योंकि उन लाशों का हुलिया उस की बहन कल्पना दास और भांजी प्रवती दास से मिलताजुलता था. दोनों ही कुछ दिनों से लापता भी थीं.

सरोज दास ने उसी समय पैंफ्लेट में क्राइम ब्रांच प्रभारी राकेश मिश्रा के दिए गए फोन नंबर पर संपर्क किया. उस ने उन्हें बताया कि उस की बहन कल्पना दास एक वकील थी. उस का विवाह सुनील श्रीवास्तव नाम के शख्स से हुआ था. फिलहाल वह सुनील से अलग रह रही थी. उस ने उन्हें सुनील श्रीवास्तव का फोन नंबर भी दे दिया. यह जानकारी मिलने के बाद जांच टीम को केस के खुलने के आसार नजर आने लगे. पुलिस ने सुनील श्रीवास्तव को चक्रधर थाने बुलवा लिया ताकि उस से विस्तार से बात की जा सके. पुलिस ने सुनील को दोनों लाशों के फोटो दिखाए तो फोटो देखते ही वह फूटफूट कर रोने लगा. उस ने महिला की लाश की शिनाख्त कल्पना दास के रूप में की. लेकिन वह लड़की को नहीं पहचान सका.

उस ने बताया कि पिछले 10 साल से वह पत्नी व बच्ची से अलग रहता है. कल्पना से उस का सन 2011 में तलाक हो चुका है, इसलिए वह उसे एक तरह से भूल चुका था. सुनील ने बताया कि कल्पना पूर्व विधायक अनूप कुमार साय के साथ रहती थी. तलाक होने से पहले वह पत्नी और बेटी से मिलने जाता था तो विधायक उसे बेटी व पत्नी से मिलने नहीं देता था. एमएलए से की पूछताछ पुलिस के सामने पूर्व विधायक अनूप कुमार साय का नाम आया, तो इस की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. अधिकारियों के निर्देश पर जांच टीम ने इस मामले की गहराई से जांच की. इस जांच में यह तथ्य सामने आ गया कि कल्पना और अनूप कुमार साय की 6 मई, 2016 को मोबाइल पर बातचीत हुई थी.

पुलिस ने कल्पना व प्रवती दोनों का डीएनए टेस्ट करा लिया था, अब पूर्व विधायक अनूप कुमार साय से पूछताछ करनी जरूरी थी. इसलिए उस का बयान लेने के लिए पुलिस ने उसे नोटिस जारी किया. लेकिन व्यस्तता का बहाना बना कर वह पुलिस से बचने की कोशिश करता रहा. एसपी के दबाव पर एक दिन वह चक्रधर नगर थाने पहुंचा तो उस ने बड़ी ही विनम्रता से घटना के बारे में अनभिज्ञता जाहिर कर दी. उस ने बयान में कहा कि वह कल्पना दास और प्रवती दास से वाकिफ तो है मगर घटना के संदर्भ में कुछ नहीं जानता. विधायक अनूप कुमार साय के साफसाफ कन्नी काट जाने के बाद और राजनीतिक दखलंदाजी बढ़ने पर पुलिस जांच की गति धीमी पड़ने लगी.

समय के साथ परिस्थितियां बदलीं. अनूप कुमार साय ने कांग्रेस पार्टी से अचानक इस्तीफा दे दिया और मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के समक्ष बीजू जनता दल का दामन थाम लिया. सत्तासीन पार्टी में होने के कारण अनूप कुमार साय राजनीतिक रूप से दबंग हो गया था. चूंकि ओडिशा राज्य में बीजू जनता दल और छत्तीसगढ़ में डा. रमन सिंह की भाजपा सरकार थी और दोनों में अच्छा समन्वय था, सो इस का असर इस दोहरे हत्याकांड की जांच पर पड़ा. फलस्वरूप जांच ठंडे बस्ते में चली गई. अनूप कुमार साय मुख्यमंत्री नवीन पटनायक का खासमखास बन चुका था. नवीन पटनायक 2014 के विधानसभा चुनाव में आस्का विधानसभा के अलावा बरगढ़ की बिजेपुर से चुनाव लड़े थे. जबकि अनूप कुमार को किसी भी विधानसभा से टिकट नहीं मिला था. तब नवीन पटनायक ने अनूप कुमार साय को चुनाव संचालक बना दिया था.

यहां से जब मुख्यमंत्री भारी मतों से चुनाव जीत गए तो उपहारस्वरूप उन्होंने अनूप कुमार साय को ओडिशा प्रदेश के वेयर हाउसिंग कारपोरेशन का चेयरमैन बना दिया. इस से अनूप का राजनीतिक रसूख और ज्यादा बढ़ गया. इधर छत्तीसगढ़ में भाजपा 2018 के चुनावों में बुरी तरह पराजित हो गई और कांग्रेस की सरकार अस्तित्व में आ गई. मामला जब गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल तक पहुंचा तो उन्होंने रायगढ़ पुलिस को निष्पक्ष तरीके से केस की जांच करने के आदेश दिए. उस समय संतोष सिंह ने एसपी (रायगढ़) का पदभार संभाला था. एसपी ने अपने निर्देशन में इस दोहरे हत्याकांड की जांच करानी प्रारंभ कर दी.

दोबारा शुरू हुई जांच चूंकि कल्पना दास और उस की बेटी प्रवती की बड़ी ही बेदर्दी से सिर कुचल कर हत्या की गई थी, इसलिए यह हत्याकांड पुलिस के लिए एक चुनौती था. पुलिस ने अनूप कुमार साय के एकएक कदम की निगरानी करनी शुरू कर दी. 6 महीने निगरानी करने के बाद पुलिस को तमाम सबूत मिल गए. पुलिस को पता चल गया था कि अनूप कुमार साय ने कल्पना दास को एक मकान 24 सुंदरपदा कालोनी, भुवनेश्वर, ओडिशा में दे रखा था. प्रवती को वह एक महंगे और प्रतिष्ठित स्कूल में पढ़ा रहा था और उन्हें ले कर गोवा, हैदराबाद, विशाखापट्टनम, दिल्ली आदि जगहों घूमने के लिए गया था. पुलिस ने कई पुख्ता सबूत इकट्ठा कर लिए, जिन्हें वह झुठला नहीं सकता था.

इस के बाद 13 फरवरी, 2020 को आधी रात रायगढ़ पुलिस ने पूर्व विधायक अनूप कुमार साय के ब्रजराज नगर स्थित आवास पर दबिश दे कर उसे हिरासत में ले लिया. अनूप कुमार साय अपने बचाव के लिए खूब राजनीतिक दांवपेंच खेलता रहा. मगर पुलिस ने उस की एक न सुनी और थाने ला कर उस से पूछताछ शुरू की तो अंतत: वह टूट गया और उस ने स्वीकार कर लिया कि 6 मई, 2016 को उस ने लिवइन रिलेशनशिप में रह रही कल्पना दास व उस की बेटी प्रवती की हत्या लोहे की रौड से की थी. इस के बाद उस के आदेश पर उस के ड्राइवर बर्मन टोप्पो ने दोनों की लाशें बोलेरो गाड़ी से कुचल दी थीं.

अनूप कुमार साय से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने ब्रजराज नगर से उस के ड्राइवर बर्मन टोप्पो को भी हिरासत में ले लिया. उस ने भी अंतत: कल्पना व प्रवती मर्डर केस में अपनी भूमिका स्वीकार कर ली. इस के बाद पुलिस ने घटना का सीन रीक्रिएट किया ताकि पता चल सके कि हत्याकांड को किस तरह अंजाम दिया गया था. अनूप कुमार साय के गिरफ्तार होने की खबर ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक तक पहुंची तो उन्होंने जरा भी देर किए बिना अनूप कुमार साय को वेयर हाउसिंग कारपोरेशन के चेयरमैन पद व पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से बरखास्त कर दिया.

रायगढ़ पुलिस ने हत्या के आरोपी 59 वर्षीय अनूप कुमार साय और उस के ड्राइवर बर्मन टोप्पो को भादंवि की धारा 302, 201, 120 के तहत गिरफ्तार कर रायगढ़ के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के सामने पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Madhya Pradesh Crime : तकिए से मुंह दबाकर ली पत्नी की जान, गर्लफ्रेंड थी वजह

Madhya Pradesh Crime : अमितेश गर्लफ्रैंड के लिए अपने 2 बच्चों की मां और पत्नी को मारना चाहता था. इस के लिए उस ने काफी जतन से शिवानी की हत्या कर भी दी, लेकिन हत्या के लिए कोबरा इस्तेमाल करना उसे भारी पड़ गया. जब उस की हकीकत…

1 दिसंबर, 2019 की शाम की बात है. इंदौर के मोहल्ला संचार नगर एक्सटेंशन का रहने वाला अमितेश एकदम से चिल्लाया, ‘‘निखिल, ओ निखिल, शिवानी को सांप ने काट लिया है. जल्दी आओ, वह बेहोश हो गई है. मेरी मदद करो, इसे अस्पताल ले जाना है.’’

शिवानी अमितेश की पत्नी थी. निखिल कुमार खत्री उस का किराए था. जिस समय अमितेश ने उसे आवाज लगाई, वह रात का खाना बना रहा था. उस ने झट से गैस बंद की और सब कुछ जस का तस छोड़ कर अमितेश के बैडरूम में जा पहुंचा. क्योंकि शिवानी उस समय बैडरूम में ही थी. उस ने देखा शिवानी बैड पर पड़ी थी. उसी के पास बैड पर एक काला कोबरा सांप मरा पड़ा था. अमितेश काफी घबराया हुआ था. शिवानी के पास पड़े सांप को देख कर निखिल को समझते देर नहीं लगी कि इसी सांप ने शिवानी को काटा है. उस के आते ही अमितेश ने कहा, ‘‘निखिल, जल्दी करो, इसे अस्पताल ले चलते हैं. जल्दी इलाज मिलने से शायद बच जाए. देर होने पर सांप का जहर पूरे शरीर में फैल सकता है.’’

दोनों शिवानी को उठा कर बाहर ले आए. बाहर अमितेश की कार खड़ी थी. उसे कार में लिटा कर अमितेश अंदर जाने लगा तो निखिल ने सोचा, चाबी लेने जा रहा होगा. पर जब वह लौटा तो उस के हाथ में एक बरनी थी, जिस में वही मरा हुआ सांप था, जिस ने शिवानी को काटा था. उसे देख कर निखिल ने पूछा, ‘‘इसे कहां ले जा रहे हो?’’

‘‘डाक्टर को दिखा कर बताएंगे कि इसी सांप ने काटा है.’’ अमितेश ने कहा और बरनी को पीछे की सीट पर शिवानी के पास रख कर खुद ड्राइविंग सीट पर बैठ गया. बगल वाली सीट पर निखिल के बैठते ही कार आगे बढ़ गई. शिवानी को वह इंदौर के जानेमाने अस्पताल एमवाईएच अस्पताल ले गया. अमितेश ने डाक्टरों को बताया कि इसे सांप ने काटा है. शिवानी को देखते ही डाक्टर समझ गए कि उस की मौत हो चुकी है. अमितेश के अनुसार शिवानी की मौत सांप के काटने से हुई थी. लेकिन जब डाक्टरों ने शिवानी को ध्यान से देखा तो उन्हें मामला गड़बड़ लगा. शिवानी के हाथ पर 3 काले गहरे नीले निशान थे, जो सांप के काटने के हो सकते थे, पर साथ ही उस के शरीर पर चोट के भी निशान थे.

अमितेश कह रहा था कि शिवानी की मौत सांप के काटने से हुई है. सांप के काटने के निशान भी उस के बाएं हाथ पर थे. यही नहीं, उस ने डाक्टरों को वह सांप भी दिखाया, जिस ने शिवानी को काटा था. डाक्टरों ने देखा कि जहां सांप ने काटा था, वहां तो नीले निशान थे, पर बाकी शरीर सफेद पड़ गया था, जबकि सांप के काटने से मरने वाले का शरीर नीला पड़ जाता है. किसी को विश्वास नहीं हुआ अमितेश की बात पर डाक्टरों का संदेह जब विश्वास में बदल गया कि कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है तो उन्होंने हत्या का शक होने की सूचना अस्पताल प्रशासन को दे दी. अमितेश थाना कनाडिया क्षेत्र में रहता था, इसलिए अस्पताल प्रशासन ने इस की जानकारी थाना कनाडिया पुलिस को दे दी.

सूचना मिलते ही थाना कनाडिया के थानाप्रभारी अनिल सिंह, एसआई अविनाश नागर, 2 सिपाही महेश और मीना सुरवीर को साथ ले कर एमवाईएच अस्पताल पहुंच गए. पुलिस को देख कर अमितेश घबराया जरूर, पर वह अपनी बात पर अड़ा रहा कि शिवानी की मौत सांप के काटने से ही हुई है. अमितेश भले ही अपनी बात पर अड़ा था, पर पुलिस ने शिवानी के शव का निरीक्षण किया तो उसे पूरा विश्वास हो गया कि अमितेश झूठ बोल रहा है. इस की वजहें भी थीं. सांप के काटने से मरने वाले का शरीर नीला पड़ जाता है, जबकि शिवानी का शरीर सफेद था. इस के अलावा उस की बाईं आंख के नीचे चोट का निशान भी था. दोनों पैरों के पंजे नीचे की ओर खिंचे हुए थे. हाथों की मुट्ठियां बंद थीं और नाक के बाहरी किनारों की चमड़ी छिली थी, जैसे किसी चीज से रगड़ी गई हो.

अमितेश जिस डेजर्ट कोबरा सांप को बरनी में भर कर लाया था, वह कोबरा मध्य प्रदेश में नहीं पाया जाता था. इस के अलावा जिस तरह सांप का सिर कुचला हुआ था, उस तरह सांप का सिर कुचलना आसान नहीं है. क्योंकि कोबरा बहुत फुर्तीला होता है. पुलिस को लग रहा था कि सांप को पकड़ कर मारा गया है. इस सब के अलावा अहम बात यह भी थी कि घटना बरसात के मौसम की होती तो एक बार मान भी लिया जाता कि सांप कहीं से आ गया होगा. पर ठंड के मौसम में शहर के बीचोबीच इस तरह बैडरूम में जा कर सांप के काटने की बात किसी के गले नहीं उतर रही थी.

इन्हीं सब बातों को ध्यान में रख कर अनिल सिंह ने शिवानी की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस के बाद घटनास्थल के निरीक्षण के लिए अमितेश और निखिल को साथ ले कर संचार नगर एक्सटेंशन स्थित अमितेश के घर आ गए. पुलिस ने बैडरूम का निरीक्षण किया. बैड पर बिछी चादर इस तरह अस्तव्यस्त थी, जैसे उस पर लेटने वाला खूब छटपटाया हो. बैड पर 2 तकिए थे. उन में से एक तकिए के कवर पर लार का निशान था. पुलिस ने तकियों के कवर और बैडशीट को फोरैंसिक जांच के लिए भिजवा दिया. अनिल सिंह ने अब तक की जांच में जो पाया था और जो काररवाई की थी, उसे अपने अधिकारियों को बता दिया. निखिल और अमितेश से पूछताछ शुरू करने से पहले उन्होंने शिवानी की मौत की सूचना उस के मायके वालों को देना जरूरी समझा.

अमितेश से फोन नंबर ले कर उन्होंने शिवानी की मौत की बात उस के पिता को बताई, तो उन्होंने सीधा आरोप लगाया, ‘शिवानी की मौत सांप के काटने से नहीं हुई, उस की हत्या की गई है.’ अनिल सिंह ने उन से इंदौर आने को कहा और निखिल कुमार खत्री से पूछताछ शुरू की. पूछताछ में निखिल ने जो देखा था, सचसच बता दिया. अमितेश से घर वालों के बारे में पूछा गया तो उस ने बताया कि उस के पिता ओमप्रकाश पटेरिया, दोनों बच्चों बेटी वैदिका और बेटे वैदिक को ले कर राऊ में रहने वाली उस की बहन रिचा चतुर्वेदी के यहां गए हैं. पुलिस ने फोन कर के उन्हें भी शिवानी की मौत की सूचना दे कर इंदौर आने को कहा.

अगले दिन सब लोग इंदौर आ गए. ललितपुर से शिवानी के पिता और भाई भी आ गए थे. पुलिस ने एक बार फिर अमितेश कुमार पटेरिया, पिता ओमप्रकाश पटेरिया, बहन रिचा चतुर्वेदी, किराएदार निखिल कुमार खत्री से विस्तारपूर्वक पूछताछ की. इस पूछताछ में सभी के बयान अलगअलग पाए गए. इस से पुलिस का शक विश्वास में बदल गया, लेकिन पुलिस को सबूत चाहिए था. दूसरी ओर शिवानी के पिता और भाई का कहना था कि अमितेश का नोएडा में रहने वाली किसी युवती से प्रेमसंबंध है. वह युवती नोएडा में उस के साथ लिवइन में रहती थी, इसीलिए वह शिवानी को साथ नहीं रखता था. उस ने शिवानी से तलाक के लिए मुकदमा भी दायर किया था, लेकिन बाद में खुद ही मुकदमा वापस ले लिया था. उस युवती को ले कर शिवानी और अमितेश में अकसर लड़ाई झगड़ा होता था.

पतिपत्नी के बीच विवाद की बात अमितेश और उस के घर वालों ने भी स्वीकार की. पुलिस चाहती तो अमितेश को गिरफ्तार कर सकती थी, लेकिन वह किसी साधारण परिवार से नहीं था इसलिए पुलिस को अब पोस्टमार्टम रिपोर्ट और फोरैंसिक रिपोर्ट का इंतजार था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने खोली पोल तीसरे दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली तो सारा मामला साफ हो गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, शिवानी की मौत अस्पताल लाने से 8 घंटे पहले सांप के काटने से नहीं बल्कि दम घुटने से हुई थी. फोरैंसिक रिपोर्ट से भी साबित हो गया था कि शिवानी की हत्या की गई थी. पुलिस ने अमितेश के बैडरूम से जो तकिए के कवर जब्त किए गए थे, उन में से एक तकिए के कवर पर शिवानी की लार के धब्बे पाए गए थे.

शक विश्वास में बदल गया था, पुलिस ने अमितेश को हिरासत में ले कर सख्ती से पूछताछ की तो उस ने शिवानी की हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने पुलिस को बताया कि उसी ने पिता ओमप्रकाश एवं बहन रिचा की मदद से शिवानी की हत्या सोते समय मुंह पर तकिया रख कर की थी. अमितेश से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के पिता ओमप्रकाश पटेरिया और बहन रिचा चतुर्वेदी को भी गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी के बाद उन दोनों ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस पूरी पूछताछ में शिवानी की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

 

जल संसाधन विभाग के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर पद से रिटायर 73 वर्षीय ओमप्रकाश पटेरिया परिवार के साथ मध्य प्रदेश, इंदौर के थाना कनाडिया क्षेत्र में पड़ने वाले संचार नगर एक्सटेंशन में रहते थे. उन के परिवार में बेटा अमितेश कुमार और बेटी रिचा पटेरिया थी. पत्नी की मौत हो गई थी. बेटी बड़ी थी और बेटा छोटा. बेटी की पढ़ाई पूरी होने के बाद उन्होंने उस की शादी कर दी थी.

बेटा अमितेश कुमार पटेरिया पढ़लिख कर एक्सिस बैंक में मैनेजर के पद पर तैनात हो गया था. करीब 13 साल पहले ओमप्रकाश ने उस की शादी ललितपुर की शिवानी के साथ कर दी थी. अमितेश बैंक में अधिकारी था. पिता भी एग्जीक्यूटिव इंजीनियर था, घर में किसी चीज की कमी नहीं थी, इसलिए जिंदगी आराम से कट रही थी.

समय के साथ अमितेश एक बेटी और एक बेटे का पिता बना. बेटी वैदिका इस समय 8 साल की है तो बेटा वैदिक 4 साल का. सब मिलजुल कर रह रहे थे, इसलिए घर में खुशी ही खुशी थी. घर में परेशानी तब शुरू हुई, जब करीब 5 साल पहले अमितेश का तबादला इंदौर से नोएडा हो गया.

पिता सेवानिवृत्त हो चुके थे, इसलिए वह घर पर ही रहते थे. पत्नी और बच्चों को पिता के भरोसे इंदौर में छोड़ कर अमितेश नोएडा आ गया था. उस ने पत्नी से वादा किया था कि बच्चों की परीक्षा हो जाने के बाद वह उन्हें साथ ले जाएगा. लेकिन अमितेश अपने इस वादे पर कायम नहीं रहा.

बच्चों की परीक्षा खत्म हो गई तो शिवानी ने पति के साथ चलने की जिद की. तब उस ने पिता के अकेले होने की बात कह कर उसे इंदौर में ही रहने को कहा. उस का कहना था कि उस के नोएडा जाने पर पिता परेशान तो होंगे ही, उन की देखभाल भी नहीं हो पाएगी.

शिवानी जबरदस्ती नहीं कर सकती थी, क्योंकि अमितेश ने बहाना ही ऐसा बनाया था. मजबूर हो कर शिवानी को ससुर के पास इंदौर में ही रुकना पड़ा. जबकि सही बात यह थी कि अमितेश ने पिता की देखभाल का सिर्फ बहाना बनाया था. क्योंकि उस का नोएडा की एक युवती मोना सिंह से प्रेम संबंध बन गया था. इसी वजह से वह शिवानी को नोएडा नहीं लाना चाहता था.

मोना से उस की मुलाकात बैंक में ही हुई थी. वह किसी काम से बैंक आई थी. उस का वह काम बिना मैनेजर के नहीं हो सकता था. मोना अमितेश से मिली तो उस ने उस की जिस तरह मदद की, उस से वह काफी प्रभावित हुई. फिर तो वह जब भी बैंक आती, अमितेश से जरूर मिलती. धीरेधीरे ये मुलाकातें दोस्ती में बदल गईं तो दोनों ने एकदूसरे के फोन नंबर ले लिए.

मोना आधुनिक विचारों वाली स्वच्छंद युवती थी. किसी भी मर्द से बातें करने में उसे जरा भी परहेज नहीं था. यही वजह थी कि वह अमितेश से फोन पर बातें करने लगी. धीरेधीरे बातों का यह सिलसिला बढ़ता गया और समय भी. इसी के साथ बातें करने का विषय भी बदलता गया. दुनियादारी की बातों के साथ प्रेम की बातें भी होने लगीं.

गर्लफ्रैंड लगी पत्नी से प्यारी अमितेश शादीशुदा था. साथ ही 2 बच्चों का बाप भी. उस की उम्र बताती थी कि वह शादीशुदा होगा, मोना को यह बात पता भी थी. फिर भी अमितेश से दोस्ती और प्यार में उसे कोई आपत्ति नहीं थी. शायद वह मौके का फायदा उठाने वाली युवती थी. अमितेश घर और पत्नी से दूर नोएडा में अकेला रह रहा था. उसे प्यार और पत्नी के साथ की जरूरत भी महसूस होती थी. पर पत्नी बच्चों की परीक्षा की वजह से साथ नहीं आ पाई थी. इसी का फायदा मोना सिंह ने उठाया. पत्नी साथ होती तो शायद अमितेश का झुकाव मोना सिंह की ओर नहीं होता. पत्नी के प्यार को तरस रहे अमितेश ने अपनी यह जरूरत मोना सिंह से पूरी करने की कोशिश की. वह बैंक के बाहर भी उस से मिलने लगा.

मोना मर्दों की कमजोरी का फायदा उठाने वाली युवती थी. तभी तो उस ने अमितेश जैसे कमाऊ आदमी को अपने प्रेमजाल में फांसा था. मोना अमितेश को अकसर अट्टा बाजार में मिलने के लिए बुलाती. नोएडा में अट्टा बाजार ही एक ऐसी जगह है, जहां आदमी की हर जरूरत का सामान मिल जाता है. प्रेमियों के मिलने का उचित स्थान भी वही है. क्योंकि वहां इतनी भीड़ होती है कि कोई एकदूसरे को नहीं देखता. बैठने की जगहें भी हैं तो घूमने और खरीदारी के लिए दुकानें और मौल भी हैं. आधुनिक फैशन की हर चीज वहां मिलती है तो खाने के अच्छे रेस्टोरेंट भी हैं. अब तक मोना और अमितेश की बातें ही नहीं मुलाकातें भी लंबी हो गई थीं. दोनों लगभग रोज ही अट्टा बाजार में मिलने लगे थे. इस से मन नहीं भरता तो छुट्टी के दिन भी पूरा पूरा दिन साथ बिताते.

एक कहावत है, आदमी को अगर बैठने की जगह मिल जाए तो वह लेटने की सोचने लगता है. ऐसा ही कुछ अमितेश के साथ भी हुआ. मोना से दोस्ती के बाद प्यार हुआ, फिर दोनों साथसाथ घूमने लगे. शादीशुदा अमितेश का मन मोना से एकांत में मिलने का होने लगा. वह उस पर पैसे भी जम कर खर्च कर रहा था. ऐसे में भला फायदा क्यों न उठाता. लेकिन इस के लिए मोना को अपने फ्लैट पर लाना जरूरी था, क्योंकि उस से बढि़या एकांत जगह कहां हो सकती थी. मोना भी बेवकूफ नहीं थी. वह अच्छी तरह जानती थी कि अमितेश उस पर पैसा क्यों लुटा रहा है. वह तो उस की हर इच्छा पूरी कर उसे पूरी तरह अपना बनाना चाहती थी, क्योंकि अब तक उसे अमितेश के बारे में सब कुछ पता चल चुका था. उस की हैसियत का भी उसे पता था. वह बैंक में मैनेजर था, अगर ऐसा आदमी इस तरह मिल जाए तो भला कौन नहीं पाना चाहेगा. मोना उसे पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार थी.

वैसा ही हाल अमितेश का भी था. वह भी मोना को पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार था. क्योंकि उस के आगे अब पत्नी बेकार लगने लगी थी. वैसे भी उसे पत्नी से एकांत में मिलने वाला प्यार नहीं मिल रहा था. उस के लिए वह तड़प रहा था. इंदौर इतना नजदीक भी नहीं था कि उस का जब मन होता, पत्नी से मिलने चला जाता. इसलिए मोना से नजदीकी बनने के बाद वह उस से उस प्यार की अपेक्षा करने लगा, क्योंकि वह प्यार उस की जरूरत भी बन चुका था.

मोना का हाथ हाथ में ले कर अमितेश घूमता ही था. ऐसे में ही एक दिन उस ने कहा, ‘‘मोना, तुम मेरे फ्लैट पर मिलने क्यों नहीं आती?’’

‘‘मैं तो तैयार हूं, तुम्हीं नहीं बुलाते.’’ मोना ने कहा.

‘‘मेरे कमरे पर आने की तुम्हारी हिम्मत है?’’ अमितेश ने पूछा.

‘‘मेरी तो आने की हिम्मत है, तुम अपनी हिम्मत की बात करो.’’

‘‘मैं तो तुम्हारे बारे में सोच रहा था कि कहीं तुम मना न कर दो.’’ अमितेश ने कहा.

‘‘मैं जब तुम्हारे साथ घूम सकती हूं, तुम जहां बुलाते हो, वहां आ सकती हूं तो भला मैं तुम्हारे फ्लैट पर क्यों नहीं आ सकती. तुम बुलाने की हिम्मत तो करो.’’ मोना ने अमितेश की आंखों में आंखें डाल कर कहा.

‘‘फ्लैट पर आने का मतलब समझती हो?’’ अमितेश ने कहा.

‘‘खूब अच्छी तरह समझती हूं, इसीलिए तो हिम्मत की बात कही है. कमरे पर आने का मतलब है, तुम्हारी इच्छा पूरी करना. मैं उस के लिए भी तैयार हूं. अब तुम सोचो कि तुम उस के लिए तैयार हो कि नहीं?’’

‘‘मैं तैयार हूं, तभी तो तुम से फ्लैट पर चलने को कह रहा हूं.’’

‘‘तैयार तो मैं भी हूं पर अगर तुम पत्नी वाला प्यार चाहते हो तो मुझे तुम्हें पत्नी का दर्जा भी देना होगा.’’ मोना ने मन की बात स्पष्ट बता दी.

 

पत्नी की जगह लेने को तैयार हुई गर्लफ्रैंड मोना की इस बात पर अमितेश सोच में पड़ गया. उसे सोच में डूबा देख कर मोना ने कहा, ‘‘किस सोच में डूब गए. पत्नी वाला प्यार चाहिए तो दर्जा तो पत्नी वाला ही देना होगा. जिम्मेदारियां तो उठानी ही पड़ेंगी न?’’

अमितेश को मोना बहुत अच्छी लगती थी. उस ने पत्नी और मोना में जोड़ लगाना शुरू किया. उस की पत्नी शिवानी घरेलू, पुराने विचारों वाली, घरपरिवार में ही सुख तलाशने वाली महिला थी. उस ने ससुराल में साड़ी के अलावा कभी कुछ नहीं पहना था. उस की शक्लसूरत भी साधारण थी. उस में नाजनखरे नहीं थे, अपने बच्चों में ही उलझी रहती थी. उस के लिए बच्चे पहले थे, पति बाद में. अमितेश को इस सब की आदत भी पड़ चुकी थी, लेकिन मोना से मिलने के बाद शिवानी उसे बेकार लगने लगी थी. उसे अब मोना ही मोना दिखाई देती थी. मोना जींसटौप तो पहनती ही थी, अमितेश उसे जो भी कपड़े खरीद कर देता, वह उन सभी को पहनती थी. बाजार में खुलेआम उस का हाथ पकड़ कर चलती थी. नाजनखरे करने भी खूब आते थे. भला इस उम्र में इस तरह की प्रेम करने वाली मिले तो कौन नहीं, उस की हर शर्त मान लेगा.

अमितेश ने भी मोना की हर शर्त मान ली. फिर तो मोना अमितेश के फ्लैट पर आने की कौन कहे, अपना सामान ले कर हमेशाहमेशा के लिए आ गई. वह बिना शादी के ही अमितेश के साथ रहने लगी. इस तरह किसी मर्द के साथ रहने को आजकल लिवइन कहा जाता है. महानगरों में इस तरह रहना नई पीढ़ी के लिए एक तरह का फैशन बन गया है. अमितेश मोना के प्रेमजाल में पूरी तरह फंस चुका था, उस के आगे शिवानी बेकार लगने लगी थी. उस की हर जरूरत मोना से पूरी होने लगी तो वह शिवानी को भूलने लगा. उस की उपेक्षा करने लगा. शुरूशुरू में घरपरिवार में व्यस्त रहने वाली शिवानी ने इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया, पर बात जब कुछ ज्यादा ही बढ़ गई तो उस ने अमितेश को उलाहना देना शुरू किया. ऐसे में अमितेश काम का बहाना बना कर खुद को बचाने की कोशिश करता.

लेकिन कोई भी गलत काम कितने दिन छिपा रह सकता है. उस ने शिवानी को बच्चों की परीक्षा के बाद नोएडा लाने को कहा था. बच्चों की परीक्षा हो गई तो शिवानी बच्चों को ले कर नोएडा आने की तैयारी करने लगी. क्योंकि नोएडा में बच्चों के दाखिले भी कराने थे. लेकिन उन्हें नोएडा लाने के बजाय अमितेश बहाने बनाने लगा. क्योंकि अब तक वह पूरी तरह मोना का हो चुका था. जैसेजैसे दिन बीत रहे थे, वह मोना के नजदीक आता जा रहा था और शिवानी से दूर होता जा रहा था.

अभी तक अमितेश पूरी तरह मोना का नहीं हुआ था. वह भले ही उस के साथ लिवइन में रहती थी, लेकिन उस पर पूरा हक शादी के बाद ही हो सकता था. क्योंकि कुछ भी हो, कोई कितना भी प्यार करता हो, पहला और ज्यादा हक तो उस की ब्याहता पत्नी का ही बनता है. लिवइन में रहने वाली महिला पत्नी के सामने रखैल से ज्यादा कुछ नहीं होती. अमितेश की एक शादी हो चुकी थी. उस पत्नी से उसे 2 बच्चे भी थे, इसलिए दूसरी शादी के लिए उसे पहली पत्नी से तलाक लेना जरूरी था. मोना के लिए वह शिवानी से तलाक लेने को भी तैयार था, पर उसे तलाक की कोई वजह नजर नहीं आ रही थी. क्योंकि शिवानी सीधीसादी गृहस्थ महिला थी. अभी ससुराल वाले भी उसी के पक्ष में थे. इस के लिए अमितेश को पिता और बहन को भी अपने पक्ष में करना था.

घर वाले उस के पक्ष में तभी आते, जब शिवानी से उन्हें परेशानी होती. इस के लिए उस ने चाल चलनी शुरू कर दी. वह जम कर शिवानी की उपेक्षा करने लगा, जिस से शिवानी तिलमिला उठी और यह सोचने पर मजबूर हो गई कि अमितेश उस के साथ ऐसा क्यों कर रहा है. जल्दी ही उसे अपनी उपेक्षा की वजह पता चल गई. पता चला कि उस के पति को बीवी जैसा सुख देने वाली कोई और मिल गई है, इसीलिए वह उस की उपेक्षा कर रहा है. विवाद बढ़ा तो पिता और बहन ने अमितेश का ही लिया पक्ष मोना से अमितेश के संबंध होने की बात पता चलते ही पतिपत्नी में विवाद होने लगा. विवाद बढ़ा तो इस का असर घरपरिवार पर भी पड़ने लगा, जिस से घर में परेशानी होने लगी. पिता और बहन को जितना लगाव अमितेश से था, उतना शिवानी से नहीं था. होता भी कहां से अमितेश उन का अपना खून था, शिवानी गैर घर से आई थी.

घर वालों को शिवानी का अमितेश से लड़ना अच्छा नहीं लगता था. उन्हें लगता था कि शिवानी उसे परेशान करती है इसलिए वे शिवानी का पक्ष लेने के बजाए अमितेश का ही पक्ष लेते थे. इस से शिवानी घर में अकेली पड़ गई. उस के ससुर और ननद दोष उसे ही देते थे. उन का कहना था कि उसी की वजह से अमितेश ने इंदौर आना छोड़ दिया. वह अपनी बात कहती तो उसकी बात पर कोई विश्वास नहीं करता था. पिता और बहन अमितेश के पक्ष में आ गए तो उस ने शिवानी को तलाक देने की तैयारी कर ली. क्योंकि मोना तलाक के लिए उस पर लगातार दबाव डाल रही थी. शिवानी अमितेश से लड़ाईझगड़ा करती थी, उस ने इसे ही आधार बना कर तलाक की अर्जी तो लगा दी पर बाद में उसे लगा पतिपत्नी में लड़ाईझगड़े का आधार तलाक के लिए पर्याप्त नहीं है, इसलिए उस ने तलाक की अर्जी वापस ले कर शिवानी से समझौता कर लिया.

उस ने तलाक की अर्जी भले ही वापस ले ली थी, पर वह शिवानी से किसी भी तरह छुटकारा पाना चाहता था. क्योंकि अब वह मोना के बगैर नहीं रह सकता था. जब उस ने विचार करना शुरू किया कि किस तरह शिवानी से पूरी तरह मुक्ति मिल सकती है तो उस के दिमाग में एक ही बात आई, उस की हत्या. लेकिन यह काम आसान नहीं था. अगर वह हत्या के आरोप में पकड़ा जाता तो पूरी जिंदगी जेल में बीतती, मोना भी उसे नहीं मिल पाती. लेकिन हत्या के अलावा अमितेश को दूसरा कोई उपाय नजर नहीं आ रहा था. वह इस बात पर विचार करने लगा कि शिवानी की हत्या किस तरह करे कि वह मर जाए और उस पर शक न जाए. काफी सोचविचार के बाद भी जब उस की समझ में कुछ नहीं आया तो उस ने टीवी पर आने वाले अपराध आधारित शो देखने शुरू किए. इन्हीं में से किसी धारावाहिक के एपिसोड में उस ने देखा कि एक आदमी ने जहरीले सांप से कटवा कर पत्नी की हत्या कर दी.

अमितेश को यह उपाय अच्छा लगा. उस ने इसी तरह की योजना बनानी शुरू कर दी. वह पता लगाने लगा कि भारत में सब से जहरीला सांप कौन सा होता है. उसे पता चला कि भारत में सब से अधिक जहरीला सांप डेजर्ट कोबरा है. पर वह मध्य प्रदेश में नहीं पाया जाता. आजकल गूगल पर किसी भी बात के बारे में जाना जा सकता है. उस ने गूगल पर सर्च किया तो पता चला यह सांप राजस्थान में पाया जाता है. सारी जानकारी जुटा कर अमितेश नवंबर 2019 में नौकरी से इस्तीफा दे कर इंदौर स्थित अपने घर आ गया. घर आ कर उस ने शिवानी से कहा, ‘‘लो अब मैं हमेशाहमेशा के लिए तुम्हारे पास आ गया. अब तो तुम्हें विश्वास हो जाना चाहिए कि मैं केवल तुम्हारा हूं.’’

‘‘कहीं इस में भी तुम्हारी कोई चाल न हो?’’ शिवानी ने कहा.

‘‘तुम्हें तो अब मेरी हर बात में चाल ही नजर आती है. अरे मैं तुम्हारे पास रह कर कौन सी चाल चलूंगा.’’ शिवानी को विश्वास दिलाने की गरज से अमितेश ने कहा, ‘‘तुम मेरी पत्नी ही नहीं, मेरे बच्चों की मां भी हो. मैं तुम्हें छोड़ कर भला कहां जा सकता हूं.’’

शिवानी को पति की बातों पर विश्वास करना ही पड़ा. उस के पास इस के अलावा कोई और विकल्प भी नहीं था क्योंकि उसे रहना तो वहीं था. इस की सब से बड़ी वजह यह है कि हमारे यहां यह मान लिया जाता है कि शादी के बाद बेटी का घर ससुराल ही होता है. भले ही ससुराल में उसे कितनी भी तकलीफ झेलनी पड़े, शादी के बाद बेटी मांबाप के लिए बोझ बन जाती है. ऐसा ही शिवानी के साथ भी था. फिर अब वह अकेली भी नहीं थी. उस के 2 बच्चे भी थे. उन्हें साथ ले कर वह मायके नहीं जा सकती थी.

योजना पर अमल के लिए इंदौर पहुंच कर अमितेश ने शिवानी से छुटकारा पाने वाली बात पिता ओमप्रकाश पटेरिया को बता कर उन से मदद मांगी. अमितेश उन का एकलौता बेटा था, बुढ़ापे की लाठी. वह भला उस का साथ क्यों न देते. क्योंकि उस ने उन से साफ कह दिया था कि मोना के बगैर वह नहीं रह सकता. अगर वह उस का साथ नहीं देते तो वह या तो हमेशाहमेशा के लिए घर छोड़ देता या मौत को गले लगा लेता. ऐसा ही कुछ कह कर उस ने बहन को भी शिवानी की हत्या में साथ देने के लिए राजी कर लिया. जब पिता और बहन राजी हो गए तो अमितेश 19 नवंबर को राजस्थान के जिला अलवर गया और वहां रहने वाले किसी संपेरे से 5 हजार रुपए में डेजर्ट कोबरा खरीद लाया. सांप को उस ने एक बरनी में बंद कर के अलमारी में छिपा दिया और मौके का इंतजार करने लगा.

वह हर रात शिवानी के सो जाने पर उसे जहरीले सांप से कटवाने की कोशिश करता पर सांप को हाथ से पकड़ कर शिवानी को कटवाने की वह हिम्मत नहीं कर पाता. इस तरह एकएक कर के 11 रातें गुजर गईं. सांप से कटवाने में उसे एक बात का डर और सता रहा था कि कहीं शिवानी जाग गई और उस के हाथ में सांप देख लिया तो शोर मचा देगी. उस के बाद वह पकड़ा जाएगा और हत्या की कोशिश में उसे सजा हो जाएगी. जब अमितेश ने देखा कि वह जीते जी शिवानी को सांप से नहीं कटवा पा रहा है तो उस ने पिता और बहन की मदद ली. जब वे दोनों मदद के लिए राजी हो गए तो पहली दिसंबर की सुबह पिता और बहन की मदद से अमितेश ने सो रही शिवानी के मुंह को तकिए से दबा कर मार डाला.

शिवानी की हत्या के बाद उस के पिता और बहन बच्चों को ले कर साऊ चले गए तो अमितेश अपनी अगली योजना पर काम करने लगा. अब वह मृत शिवानी को सांप से कटवाना चाहता था. इस कोशिश में उसे काफी समय लग गया, क्योंकि वह खुद भी डर रहा था कि कहीं सांप उसे ही न काट ले. आखिरकार दोपहर बाद वह चिमटे से सांप को पकड़ कर शिवानी को कटवाने में सफल हो गया. शिवानी तो पहले ही मर चुकी थी लेकिन अमितेश को तो यह दिखाना था कि शिवानी सांप के काटने से मरी है, इसलिए उस ने क्रिकेट खेलने वाले बैट से सांप को मार कर शिवानी के पास बैड पर रख दिया. इस के बाद सारी तैयारी कर के उस ने किराएदार निखिल को आवाज लगाई कि शिवानी को सांप ने काट लिया है. वह निखिल को गवाह बनाना चाहता था कि उस ने शिवानी के पास उस सांप को देखा है, जिस के काटने से उस की मौत हुई है.

निखिल गवाह तो बना पर अमितेश को बचाने का नहीं बल्कि फंसाने का. उसी ने पुलिस को बताया था कि पतिपत्नी में नहीं पटती थी. उस की इस बात से अमितेश शक के घेरे में आ गया था. सभी से विस्तारपूर्वक की गई पूछताछ के बाद पुलिस ने अमितेश, उस के पिता ओमप्रकाश पटेरिया, बहन रिचा चतुर्वेदी के खिलाफ शिवानी की हत्या का मुकदमा दर्ज कर के उन्हें बाकायदा गिरफ्तार कर लिया. इस के अलावा अमितेश ने यह भी स्वीकार किया कि उस ने डेजर्ट कोबरा की हत्या क्रिकेट बैट से की थी, इसलिए पुलिस ने उस के खिलाफ वन्यप्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 51 के तहत भी केस दर्ज किया.

इस धारा में कम से कम 3 साल और ज्यादा से ज्यादा 7 साल की सजा का प्रावधान है. इस के अलावा 10 हजार रुपए का जुरमाना भी देना होता है. सारी काररवाई पूरी कर पुलिस ने तीनों आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया. जिस मोना के लिए आज अमितेश जेल में है, क्या वह उस का इंतजार करेगी? कतई नहीं, मोना अपनी जवानी उस के इंतजार में क्यों गंवाएगी. अब वह अमितेश जैसा ही कोई और ढूंढ लेगी.

 

 

Uttar Pradesh Crime : शराब में जहरीला पदार्थ मिलाकर प्रेमी को मार डाला

Uttar Pradesh Crime : बेटी मानसी चौरसिया के कदम बहकने के बाद पिता रोहित चौरसिया को किसी भी तरह उस के कदमों को रोकना चाहिए था. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया बल्कि वह बेटी के कहने पर बेटे के साथ मिल कर ऐसा  कुछ कर बैठा कि …

25 नवंबर, 2019 की बात है. उत्तर प्रदेश के गोंडा का रहने वाला रमेश गुप्ता घर में बिस्तर पर लेटा आराम कर रहा था. तभी अचानक उस के फोन की घंटी बजी. उस ने फोन उठा कर काल रिसीव की, बात होने के बाद उस ने कपडे़ बदले और छोटे भाई सुरेश से यह कह कर चला गया कि मनोज के घर जा रहा है. अगर जरूरत हुई तो वह उन के घर पर रुक जाएगा. दरअसल, मनोज गुप्ता के ससुर बीमार थे, सुरेश उन की देखभाल के लिए उन के घर जाता रहता था. दोनों परिवारों के घ्निष्ठ संबंध थे. रमेश को गए काफी देर हो गई. जब वह नहीं लौटा तो सुरेश ने समझा कि वह मनोज के घर रुक गए होंगे. रमेश जब 26 नवंबर की सुबह तक भी नहीं लौटा तो सुरेश ने मनोज गुप्ता को फोन किया तो उन्होंने बताया कि रमेश कल रात को उन के यहां आया ही नहीं था.

यह जान कर सुरेश को चिंता हुई. रमेश जहांजहां जा सकता था, सुरेश ने उन सभी जगहों पर उस की खोज की, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. 30 वर्षीय रमेश गुप्ता अपने परिवार के साथ जिला गोंडा के थाना कोतवाली क्षेत्र में स्थित विष्णुपुरी कालोनी में रहता था. जब सुरेश रिश्तेदारों, मित्रों और परिचितों से पूछपूछ कर परेशान हो गया तो उस ने 29 नवंबर को थाना कोतवाली जा कर भाई रमेश गुप्ता की गुमशुदगी दर्ज करा दी. कोतवाल आलोक राव ने सुरेश की तहरीर पर रमेश गुप्ता की गुमशुदगी दर्ज कर ली. इस के बाद उन्होंने उस की तलाश के लिए आवश्यक काररवाई शुरू कर दी. गोंडा शहर के ही सिविल लाइंस क्षेत्र में अफीम कोठी मोहल्ले में एक खाली मैदान है, जिस में तमाम झाडि़यां थीं. इस खाली मैदान में 2 दिसंबर को कुछ लोग गए तो वहां बदबू के तेज भभके उठ रहे थे.

लोगों ने खोजबीन शुरू की तो वहां एक सूखे कुएं में क्षतविक्षत अवस्था में लाश पड़ी देखी. वह कुआं मिट्टी से आधा पट चुका था, इसलिए चित अवस्था में पड़ी उस लाश का चेहरा स्पष्ट दिख रहा था. उन लोगों ने वह लाश पहचान ली. वह लाश विष्णुपुरी कालोनी के रहने वाले रमेश गुप्ता की थी. रमेश के मकान से उस जगह की दूरी महज 200 मीटर थी. उन में से ही एक आदमी ने जा कर रमेश के भाई सुरेश गुप्ता को रमेश की लाश मिलने की सूचना दे दी. सुरेश तुरंत मौके पर पहुंचा तो उस ने कुएं में पड़ी भाई की लाश पहचान ली. सुरेश ने कोतवाल आलोक राव को भाई की लाश मिलने की सूचना दे दी.

सूचना पा कर इंसपेक्टर आलोक राव, एसएसआई राजेश मिश्रा आदि के साथ मौके पर पहुंच गए. मौके पर लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था. इंसपेक्टर राव ने लाश कुएं से निकलवाई. लाश काफी सड़गल चुकी थी, इसलिए लाश का निरीक्षण करने पर मौत की वजह पता नहीं चल रही थी. इसी बीच एसपी राजकरन नैयर और एएसपी महेंद्र कुमार भी मौके पर पहुंच गए. लाश का मुआयना करने के बाद उन्होंने रमेश के भाई सुरेश से पूछताछ की. सुरेश ने भाई की हत्या में उस की प्रेमिका मानसी का हाथ होने का शक जताया. वैसे भी अफीम कोठी मोहल्ले में ही 100 मीटर की दूरी पर मानसी चौरसिया का मकान था.

सुरेश से पूछताछ के बाद पुलिस ने मौके की काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. फिर सुरेश की तहरीर पर मानसी चौरसिया के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा पंजीकृत कर लिया. इंसपेक्टर राव ने मृतक रमेश गुप्ता के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर जांच की तो पता चला कि 25 नवंबर की रात को उस के मोबाइल पर जो काल आई थी, वह मानसी चौरसिया के फोन नंबर से ही की गई थी. अब मानसी से पूछताछ करनी जरूरी थी. लिहाजा 3 दिसंबर को इंसपेक्टर आलोक राव ओर एसएसआई राजेश मिश्रा ने महिला कांस्टेबल की मदद से मानसी को घर से पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. कोतवाली ला कर जब मानसी से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने आसानी से अपना जुर्म कबूल कर लिया.

उस ने बताया कि रमेश की हत्या करने में उस के दूसरे प्रेमी अंकित सिंह, पिता रोहित चौरसिया और भाई दीपू चौरसिया ने साथ दिया था. पूछताछ के बाद मानसी ने रमेश की हत्या की जो कहानी बताई, इस प्रकार निकली—

उत्तर प्रदेश के जिला गोंडा की नगर कोतवाली अंतर्गत रामचंद्र गुप्ता अपने परिवार के साथ रहते थे. रामचंद्र के परिवार में उन की पत्नी राजकुमारी और 2 बेटियों के अलावा 3 बेटे दिनेश, रमेश और सुरेश थे. रामचंद्र प्राइवेट नौकरी करते थे. उन्होंने दिनेश का विवाह कर दिया था. दिनेश को विवाह के कुछ समय बाद ही चालचलन ठीक न होने पर रामचंद्र ने उसे घर से निकाल दिया. यह लगभग 8 साल पहले की बात है. इस समय दिनेश परिवार के साथ बस्ती जिले में रहता है. रामचंद्र ने अपनी दोनों बेटियों का विवाह कर दिया था. रमेश और सुरेश अभी अविवाहित थे. रमेश ने बीए तक पढ़ाई की थी. रामचंद्र के कूल्हे में रौड पड़ी थी. उस रौड की वजह से उन्हें इंफेक्शन हो गया था, जो कि किडनी और उस के आसपास फैल गया था. वह काफी समय से बीमार थे.

इस की वजह से उन की देखभाल बड़ा बेटा रमेश किया करता था. देखभाल करने के कारण रमेश कोई काम नहीं करता था. घर पर ही रहता था. जबकि सुरेश एक बैंक में मैनेजर के रहमोकरम पर काम करने लगा था. विष्णुपुरी कालोनी से सटा अफीम कोठी मोहल्ला था. इसी मोहल्ले में रोहित चौरसिया परिवार के साथ रहता था. रोहित रेलवे में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी था. उस की पत्नी जगदेवी का देहांत हो चुका था. रोहित के 2 बेटे दीपू चौरसिया और सूरज चौरसिया और एकलौती बेटी मानसी थी. दीपक का रीमा नाम की युवती से विवाह हो चुका था. सूरज अविवाहित था और मुंबई में रहता था. मानसी ने इंटरमीडिएट तक शिक्षा ग्रहण की थी, इस के बाद उस का पढ़ाई में मन नहीं लगा तो वह घर के रोजमर्रा के काम करने लगी.

रमेश और मानसी के मकान के बीच महज 200 मीटर की दूरी थी. दोनों एकदूसरे से परिचित थे. मानसी काफी महत्त्वाकांक्षी थी. छरहरी काया वाली मानसी को लड़कों से दोस्ती करना बहुत अच्छा लगता था. उस की वजह थी कि उस के नाजनखरे उठाने में लड़कों की लाइन लगी रहती थी. उन के साथ घूमने, मौजमस्ती के उसे खूब मौके मिलते थे. रमेश मोहल्ले में ही घूमता रहता था, इसलिए वह मानसी के चालचलन से बखूबी वाकिफ था. उस ने भी मानसी की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया तो मानसी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया. दोनों की दोस्ती धीरेधीरे रंग दिखाने लगी. वैसे भी दोस्ती प्यार की पहली सीढ़ी होती है. रमेश और मानसी दोनों यह सीढ़ी चढ़ चुके थे.

दोनों साथ में काफी समय बिताने लगे. उन के बीच मोबाइल पर भी बातें होती रहती थीं. जैसेजैसे समय गुजरने लगा, दोनों को अहसास होने लगा कि दोनों दोस्ती की सीमाओं को पार कर उस से भी आगे निकल चुके हैं. उन के दिलों में प्यार की उमंगें हिलारें मार रही थीं. दोनों का प्यार दिनोंदिन परवान चढ़ने लगा. यह भी तय कर लिया कि जीवन भर दोनों पतिपत्नी के रूप में साथसाथ रहेंगे. दोनों ने विवाह करने की बात अपने घरों में की तो रमेश के घर वालों को तो शादी से कोई ऐतराज नहीं था, लेकिन मानसी के पिता रोहित और भाई दीपू ने मना कर दिया. उन्होंने मानसी से कहा कि रमेश एक तो उन की जातिबिरादरी का नहीं और दूसरे वह निठल्ला है. कुछ कामधाम नहीं करता. ऐसे में शादी के बाद वह उसे कैसे रख पाएगा.

बाप की नसीहत बेटी के दिमाग में घर कर गई. मानसी ने अभी तक इस बारे में सोचा ही नहीं था. वह तो प्यार में इतनी डूब गई थी कि और कुछ सोचसमझ ही नहीं पा रही थी. बाप की नसीहत ने जैसे उस की आंखें खोल दी थीं. अब उस ने रमेश से दूरी बनानी शुरू कर दी. लेकिन रमेश था कि उस का पीछा छोड़ने को तैयार ही नहीं था. इसी बीच मानसी की मुलाकात कुछ दूर जानकीनगर मोहल्ला निवासी अंकित से हो गई. अंकित अच्छा कमाता था. रमेश के मुकाबले हर लिहाज से अंकित मानसी को अच्छा लगा था. दोनों की मुलाकातें दिनोंदिन बढ़ने लगीं. दोनों के बीच की दूरियां कम होती गईं. मानसी अंकित के साथ बहुत खुश थी. रमेश ने मानसी चौरसिया को अपने से दूरी बनाते देखा तो उसे अच्छा नहीं लगा. वह ऐसा क्यों कर रही है, यह जानने की उस ने कोशिश की तो उस के सामने हकीकत आते देर नहीं लगी.

रमेश को लगा कि दूसरा प्रेमी मिलते ही मानसी ने उस से किनारा कर लिया है. यह बात रमेश के दिमाग में बारबार कौंध रही थी. वह इसे बरदाश्त नहीं कर पा रहा था. वह मानसी को हर हाल में पाना चाहता था. एक दिन रमेश ने मानसी से मिल कर उसे समझाया लेकिन मानसी नहीं मानी. मानसी ने उसे बताया कि परिवार वाले उस से विवाह करने को तैयार नहीं हैं और वह अपने परिवार के खिलाफ नहीं जा सकती. इस पर रमेश ने सीधे कहा कि ऐसे में तुम्हें अपने घर वालों को मनाना चाहिए. लेकिन तुम ने तो दूसरा प्रेमी ही ढूंढ लिया. तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था.

मानसी को न मानते देख रमेश ने उसे धमकाया कि अगर उस ने उसे छोड़ कर किसी दूसरे को चुना तो उस के जो अश्लील फोटो उस के पास हैं, वह उन्हें वायरल कर देगा. रमेश के इतना कहने पर मानसी डर गई लेकिन उस ने हिम्मत कर के कह दिया कि वह अब उस की नहीं हो सकती. इस के बाद मानसी के दिमाग में यही चलता रहता था कि कहीं रमेश उस के अश्लील फोटो को वायरल न कर दे. वह इसी डर में जी रही थी. ऐसे में उस ने रमेश को सबक सिखाने का फैसला कर लिया. उस ने अपने दूसरी प्रेमी अंकित से कहा कि कुछ दिनों पहले रमेश ने धोखे से उस के कुछ अश्लील फोटो खींच लिए थे, उन के बल पर वह उसे ब्लैकमेल कर फोटो वायरल करने की धमकी दे रहा है.

मानसी ने अंकित से कहा कि उसे रोकने का एक ही तरीका है कि उसे मार दिया जाए. अंकित इस काम में उस का साथ देने को तैयार हो गया. उसे कहां और कैसे मारना है, इस पर दोनों ने विचार कर लिया. इस के बाद दोनों को लगा कि वे दोनों इस काम को ठीक से अंजाम नहीं दे पाएंगे. इस पर मानसी ने रमेश को ठिकाने लगाने के लिए अपने पिता और भाई को राजी करने का उपाय सोचा. योजनानुसार मानसी ने रोते हुए अपने पिता रोहित चौरसिया और भाई दीपू को बताया कि रमेश के पास उस के कुछ अश्लील फोटो हैं. उन को वायरल कर के वह उस की जिंदगी बरबाद करना चाहता है. यह सुन कर दोनों को मानसी और रमेश पर गुस्सा आया. पर पहले तो उन्हें रमेश को देखना था, क्योंकि उन के लिए मानसी की इज्जत यानी परिवार की इज्जत पहले थी. इज्जत बचाने की खातिर उस के पिता व भाई रमेश को सबक सिखाने को तैयार हो गए.

तब मानसी ने दोनों को बता दिया था कि इस सब में उस का एक दोस्त अंकित भी मदद करने को तैयार है. इस के बाद एक दिन मानसी ने अंकित को घर बुला लिया. फिर सब ने मिल कर रमेश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. 25 नवंबर को मानसी के भाई दीपू की पत्नी रीमा अपने मायके गई हुई थी. योजनानुसार रात साढ़े 10 बजे मानसी ने फोन कर के रमेश को अपने घर बुलाया. रमेश अपने भाई सुरेश से घर के सामने रहने वाले मनोज गुप्ता के यहां जाने की बात कह कर निकला और सीधे मानसी के घर पहुंच गया.  वहां मानसी, उस के पिता रोहित, भाई दीपू के अलावा अंकित भी मौजूद था. रमेश के पहुंचने पर सब ने पहले उसे शराब पिलाई. शराब में पहले से ही जहरीला पदार्थ मिला दिया गया था. शराब में मिले जहर ने अपना असर दिखाना शुरू किया तो रमेश की हालत बिगड़ने लगी. वह उठ कर जाने की कोशिश करने लगा तो सब ने मिल कर उसे दबोच लिया और गला दबा कर उसे मार डाला.

रमेश को मौत की नींद सुलाने के बाद रात एक बजे उस की लाश अपने घर के पीछे झाडि़यों से पटे खाली मैदान में बने सूखे कुएं में डाल दी. इस के बाद अंकित अपने घर चला गया. लेकिन उन का गुनाह छिप न सका. मानसी चौरसिया ने सभी के नाम खोले तो इंसपेक्टर आलोक राव ने अंकित, रोहित चौरसिया और दीपू चौरसिया की गिरफ्तारी के लिए दबिश देनी शुरू कर दी. मानसी के हिरासत में लिए जाने के बाद ही तीनों अपने घरों से फरार हो गए थे. पुलिस के बढ़ते दबाव के चलते अंकित ने 6 दिसंबर, 2019 को न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया. 8 दिसंबर को इंसपेक्टर राव ने दीपू चौरसिया को गिरफ्तार कर लिया. आवश्यक लिखापढ़ी के बाद अभियुक्तों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक रोहित चौरसिया फरार चल रहा था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. मनोज गुप्ता परिवर्तित नाम है.

 

Lucknow Crime : बेवफा बीवी ने प्रेमी के साथ मिल कर बनाया पति का मर्डर प्‍लान

Lucknow Crime : कमला और रामकुमार की अच्छीभली गृहस्थी थी. लेकिन जब ज्ञान सिंह दोनों के बीच आया तो उन की गृहस्थी भी बिखरने लगी और रिश्तों के धागे भी उलझ गए. अब कमला और उस के चाहने वाले ज्ञान सिंह के पास एक ही विकल्प था कि…

शाम के यही कोई 6 बजे थे. धुंधलका उतर आया था. लखनऊ से सीतापुर जाने वाले मार्ग पर एक कस्बा है बख्शी का तालाब. इसी कस्बे से शिवपुरी बराखेमपुर गांव को एक रोड जाती है. सायंकाल का वक्त होने के कारण वह रोड सुनसान थी. अचानक गुडंबा की तरफ से आ रही एक बाइक गोलइया मोड़ पर आ कर रुकी. बाइक पर 3 व्यक्ति सवार थे. वे सड़क किनारे खड़े हो कर किसी के आने का इंतजार करने लगे. कुछ देर के बाद सामने से एक बाइक आती हुई दिखाई दी, जिस पर 2 लोग बैठे थे. इस से पहले कि मामला कुछ समझ में आता कि सड़क किनारे खड़े उन तीनों व्यक्तियों में से एक ने सामने से आती हुई उस बाइक को रोका. उस बाइक पर रामकुमार और उस का भतीजा मतोले बैठे थे, जो शिवपुरी बराखेमपुर में रहते थे.

जैसे ही रामकुमार ने बाइक की गति धीमी की, तभी उन तीनों में से एक व्यक्ति ने तमंचे से फायर कर दिया. गोली बाइक रामकुमार के लगी जिस से बाइक सहित वे दोनों लड़खड़ा कर गिर पड़े. उन के गिरते ही तीनों हमलावर घटनास्थल से फरार हो गए. यह घटना 25 दिसंबर, 2019 की है. रात काफी हो गई थी. मतोले ने उसी समय फोन कर के यह सूचना रामकुमार की पत्नी कमला को देते हुए कहा, ‘‘चाची, ज्ञानू ने अपने 2 साथियों राजा व अंकित के साथ चाचा रामकुमार पर हमला कर दिया है. उन के पेट में गोली लगी है. चाचा गोलइया मोड़ के पास घायल पड़े हैं.’’

यह खबर सुनते ही कमला फफक कर रो पड़ी. उस ने अपने जेठ यानी मतोले के पिता जयकरण व देवर दिनेश व अन्य परिवारजनों को यह जानकारी दे दी. घटनास्थल गांव से 4-5 सौ मीटर की दूरी पर था. इसलिए जल्द ही परिवार व मोहल्ले वाले घटनास्थल पर पहुंच गए. परिवारजन घायल रामकुमार कोे बाइक से बख्शी के तालाब तक ले आए, फिर वहां से वाहन द्वारा लखनऊ के केजीएमयू मैडिकल अस्पताल ले गए. रामकुमार की हालत गंभीर थी. उस के पेट में गोली लगने से खून ज्यादा मात्रा में बह चुका था, डाक्टरों की लाख कोशिशों के बाद भी रामकुमार को बचाया नहीं जा सका. मैडिकल कालेज में उपचार के दौरान उस की मृत्यु हो गई.

चूंकि मामला हत्या का था, इसलिए अस्पताल प्रशासन ने इस की सूचना स्थानीय थाना बख्शी का तालाब में दे दी. सूचना पा कर थानाप्रभारी बृजेश सिंह, एसएसआई कुलदीप कुमार सिंह और एसआई योगेंद्र कुमार, अवनीश कुमार और सिपाही नितेश मिश्रा के साथ मैडिकल कालेज जा पहुंचे. डाक्टरों से बातचीत करने के बाद उन्होंने मृतक के परिजनों से पूछताछ की तो मतोले ने थानाप्रभारी को हमलावरों के नाम भी बता दिए. जरूरी काररवाई करने के बाद पुलिस ने रामकुमार का शव अस्पताल की मोर्चरी में भेज दिया. इस के बाद थानाप्रभारी रात में ही घटनास्थल पर पहुंच गए. रोशनी की व्यवस्था कर उन्होंने घटनास्थल से खून आलूदा मिट्टी से सबूत एकत्र किए.

अगले दिन 26 दिसंबर, 2019 को पोस्टमार्टम होने के बाद रामकुमार का शव उस के परिजनों को सौंप दिया. अंतिम संस्कार के बाद थानाप्रभारी ने रामकुमार की पत्नी कमला की ओर से ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू और राजा के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 120बी व एससी/एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. चूंकि मुकदमे में एससी/एसटी एक्ट की धारा भी लगी थी, इसलिए इस की जांच की जिम्मेदारी सीओ स्वतंत्र सिंह ने संभाली. पुलिस ने जांच शुरू की तो पता चला कि मृतक की पत्नी कमला का चरित्र ठीक नहीं था, इसलिए पुलिस ने कमला का मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले लिया और उस से ज्ञान सिंह यादव का फोन नंबर भी प्राप्त कर लिया. पुलिस ने उन के नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई.

घटना का चश्मदीद मृतक का भतीजा मतोले था, पूछताछ करने पर मतोले ने पुलिस को बताया कि पड़ोस की दूध की डेयरी पर काम करने वाले ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू ने उस से कई बार कहा कि तुम शहर में कामधंधे के लिए अपने चाचा रामकुमार के साथ न जाया करो, क्योंकि तुम्हारे चाचा से मेरी रंजिश चल रही है. उस ने अपने दोस्तों के साथ घेर कर चाचा को गोली मार दी. उधर पुलिस ने कमला और ज्ञान सिंह के फोन नंबरों की काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो इस बात की पुष्टि हो गई कि कमला और ज्ञान सिंह के बीच दाल में कुछ काला अवश्य है.

एसएसआई कुलदीप सिंह ने इस बारे में मतोले से पूछा तो उस ने हां में सिर हिला दिया. ऐसे में कमला से पूछताछ करनी जरूरी थी. इसलिए 26 दिसंबर, 2019 की शाम एसएसआई कुलदीप सिंह अपने सहयोगियों एसआई अवनीश कुमार, हंसराज, महिला सिपाही श्रद्धा शंखधार, नेहा शर्मा को साथ ले कर कमला के घर पहुंचे. रात में पुलिस को अपने घर आया देख कर कमला सकपका गई. उस के चेहरे का रंग उतर गया. उस ने पूछा, ‘‘दरोगाजी, इतनी रात को घर आने का क्या मकसद है?’’

‘‘मैं यह जानना चाहता हूं कि क्या ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू से तुम्हारे पति रामकुमार की कोई रंजिश थी? मुझे पता चला है कि तुम्हारे पति पर ज्ञान सिंह ने ही भाड़े के लोगों के साथ हमला कराया था. पुलिस उसी की तलाश में गांव आई है.’’ एसएसआई ने कहा. यह कह कर एसएसआई ने कमला के दिमाग से शक का कीड़ा निकाल दिया, ताकि उसे लगे कि वह पुलिस के शक के दायरे में नहीं है. इस केस की जांच में सहयोग करने के लिए तुम्हें कल सुबह थाने आना होगा. इस पूछताछ में पुलिस को ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू व अंकित यादव के खिलाफ कुछ और तथ्य मिल गए.

अगले दिन पुलिस टीम ज्ञान सिंह यादव उर्फ ज्ञानू, अंकित आदि की तलाश में उन के घर गई तो वे घरों पर नहीं मिले. पता चला कि कमला भी अपने घर से फरार हो गई है. इस से पुलिस को पूरा विश्वास हो गया कि ये लोग इस अपराध से जुड़े हैं. इसलिए पुलिस ने तीनों के पीछे मुखबिर लगा दिए. मुखबिरों द्वारा पुलिस को पता चला कि कमला अपने प्रेमी ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू व उस के दोस्त अंकित यादव के साथ फरार होने के लिए गांव से निकल कर भगतपुरवा तिराहा, भाखामऊ रोड पर खड़ी है. कुछ ही देर में थाना बख्शी का तालाब से एक पुलिस टीम वहां पहुंच गई. वहीं से पुलिस ने कमला, ज्ञान सिंह और अंकित को गिरफ्तार कर लिया.

एक मुखबिर की सूचना पर एक अन्य आरोपी उत्तम कुमार को भैसामऊ क्रौसिंग से एक तमंचे व 2 कारतूस सहित गिरफ्तार कर लिया गया. थाने पहुंच कर कमला निडरता के साथ बोली, ‘‘दरोगाजी, हमें थाने बुला कर काहे बारबार परेशान कर रहे हैं.’’

इतना सुनते ही थानाप्रभारी बृजेश कुमार सिंह ने महिला सिपाही नेहा शर्मा और सिपाही शंखधार को बुला कर कहा, ‘‘इस औरत को हिरासत में ले लो. एक तो इस ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर अपने पति की हत्या करने की साजिश रची और ऊपर से स्वयं पतिव्रता बनने का नाटक कर रही है.’’

थानाप्रभारी ने हंसते हुए कमला से कहा, ‘‘परेशान न हो शाम तक तुम्हें घर वापस भेज दिया जाएगा. कुछ अधिकारी यहां आ रहे हैं, तुम उन्हें सचसच बता देना.’’

सीओ स्वतंत्र सिंह भी जांच हेतु थाने पहुंच गए. सूचना पा कर एसपी (ग्रामीण) आदित्य लंगेह भी थाना बख्शी का तालाब आ पहुंचे. चारों आरोपियों को अधिकारियों के सामने पेश किया गया. चारों आरोपियों ने पुलिस के सामने स्वीकार किया कि कमला के गांव के ही निवासी ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू से अवैध संबंध थे. उन्होंने ही रामकुमार को ठिकाने लगाया था. उन चारों से हुई पूछताछ के आधार पर रामकुमार हत्याकांड की गुत्थी सुलझ गई. पूछताछ में कमला और ज्ञान सिंह के अवैध संबंधों की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार है—

लखनऊ से 20 किलोमीटर दूर लखनऊ-सीतापुर राजमार्ग के किनारे तहसील बख्शी का तालाब है. इसी क्षेत्र में गांव शिवपुरी बरा खेमपुर है. रामकुमार रावत का परिवार इसी गांव में रहता था. रामकुमार रावत अपने परिवार में सब से बड़ा था. उस के अन्य 2 भाई दिनेश (35 साल) व राजेश (30 साल) थे. रामकुमार का विवाह करीब 15 साल पहले मूसानगर के निकट कुरसी गांव की रहने वाले शिवचरण रावत की बेटी कमला के साथ हुआ था. उस के 2 बच्चे थे. रामकुमार लखनऊ के आसपास कामधंधे की तलाश में जाता रहता था. उस के पड़ोस में ही ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू रहता था, जो मूलरूप से शिवपुरी मानपुर लाला, थाना बख्शी का तालाब का रहने वाला था. ज्ञान सिंह अविवाहित था.

रामकुमार की पत्नी कमला की उम्र लगभग 40 वर्ष के आसपास रही होगी. कमला की एक बहन रामप्यारी शिवपुरी मानपुर लाला में रहती थी. निकटवर्ती रिश्तेदारी होने के कारण कमला का अपनी बहन के गांव शिवपुरी मानपुर लाला अकसर आनाजाना लगा रहता था. ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू अपने गांव में दूध की डेयरी का काम करता था. वह रोजाना अपने गांव से दूध इकट्ठा कर बाइक से बख्शी का तालाब कस्बे में बेचने के लिए आताजाता था. कमला की बहन रामप्यारी के कहने पर ज्ञान सिंह ने कमला के पति रामकुमार को अपने साथ दूध के काम पर लगा दिया. इस के बाद दूध इकट्ठा करने का काम रामकुमार करने लगा. बाद में वह दूध बेचने के लिए लखनऊ व निकटवर्ती इलाकों में निकल जाता था और दूध बेच कर शाम तक अपने गांव शिवपुरी बराखेमपुर लौट आता था.

रामकुमार की दिन भर की यही दिनचर्या थी. इस तरह कई सालों तक रामकुमार ज्ञान सिंह के साथ रह कर दूध बेचने का काम करता रहा. चूंकि ज्ञान सिंह और रामकुमार के गांवों में महज 3 किलोमीटर की दूरी थी. ज्ञान सिंह का रामकुमार के घर भी आनाजाना हो गया और धीरेधीरे रामकुमार ज्ञान सिंह का विश्वासपात्र बन गया. इसी दौरान ज्ञान सिंह की नजरें रामकुमार की पत्नी कमला पर जा टिकीं. रामकुमार दिन में जब दूध ले कर शहर को निकल जाता तो ज्ञान सिंह दोपहर के वक्त कमला के घर में बैठ कर उस से घंटों बतियाता. दरअसल वह उस के मन को टटोला करता था. कमला की नजरों ने ज्ञान सिंह के मन को भांप लिया कि वह क्या चाहता है. ज्ञान सिंह कमला को भाभी कहता था.

उम्र में वह कमला से काफी छोटा था. इसलिए दोनों में नजदीकियां काफी बढ़ गईं. वक्तजरूरत पर ज्ञान सिंह ने पैसे से मदद कर कमला का मन जीत लिया था. धीरेधीरे वह भी उस की तरफ आकर्षित होने लगी और कमला का झुकाव ज्ञान सिंह की तरफ हो गया था. फिर दोनों में करीबी रिश्ता बन गया. एक दिन कमला ने मौका देख कर ज्ञान सिंह से कहा, ‘‘तुम मेरे मकान के नजदीक खाली पड़े खंडहर में दूध की डेयरी का काम क्यों नहीं शुरू कर देते. तुम्हारे भाईसाहब को भी शिवपुरी मानपुर लाला से जा कर रोजाना दूध लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी और उन्हें भी आसानी हो जाएगी. समय निकाल कर मैं भी दूध की डेयरी पर हाथ बंटा दिया करूंगी. बच्चों का खर्च उठाने के लिए मुझे भी धंधा मिल जाएगा.’’

कमला की बात सुन कर ज्ञान सिंह हंसते हुए बोला, ‘‘अच्छा तो यह बात है. मैं अपने रिश्तेदार अंकित यादव से इस बारे में बात करूंगा.’’

ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू अंकित यादव का रिश्तेदार था. उस के अंकित के परिवार से अच्छे संबंध थे. ज्ञान सिंह ने अंकित के सामने यह प्रस्ताव रखा कि वह शिवपुरी बरा खेमपुर में दूध की डेयरी खोलना चाहता है. अंकित ने ज्ञान सिंह के प्रस्ताव को सुन कर हामी भर ली और शिवपुरी बरा खेमपुर में रामकुमार के आवास के पास ही दूध की डेयरी खोल ली और दूध के कारोबार की जिम्मेदारी कमला के पति रामकुमार को सौंप दी. कमला ज्ञान सिंह की इस पहल से काफी खुश थी. गांव में दूध की डेयरी खुल जाने के बाद कमला और ज्ञान सिंह की नजदीकियां बढ़ गईं तो दोनों ने इस का भरपूर फायदा उठाया. रामकुमार भी पहले से अधिक ज्ञान सिंह की डेयरी पर समय बिताने लगा. रामकुमार ज्ञान सिंह की काली करतूतों से अनजान था.

धीरेधीरे ज्ञान सिंह और कमला की नजदीकियों की चर्चा रामकुमार के कानों तक पहुंच गई. पहले तो रामकुमार ने इन चर्चाओं पर विश्वास नहीं किया. उस ने कहा कि जब तक वह आंखों से देख नहीं लेगा, विश्वास नहीं करेगा. लेकिन फिर एक दिन कमला और ज्ञान सिंह को रामकुमार ने अपने ही घर में आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. उस समय रामकुमार कमला से कुछ नहीं बोला लेकिन रात का खाना खा कर रामकुमार ने फुरसत के क्षणों में कमला से पूछा, ‘‘क्यों, मैं जो कुछ सुन रहा हूं और जो कुछ मैं ने अपनी आंखों से देखा, वह सच है?’’

चतुर कमला ने दोटूक जवाब देते हुए ज्ञान सिंह से अपने संबंधों की बात नकार दी. लेकिन रामकुमार के मन में संदेह का बीज पनपते ही घर में कलह की नींव पड़ गई. धीरेधीरे उस का मन ज्ञान सिंह की डेयरी पर काम करने को ले कर उचटने लगा. मन में दरार पड़ते ही उस ने ज्ञान सिंह से साफ कह दिया कि उस की पत्नी और उस के बीच जो कुछ भी चल रहा है, वह उस के जीवन में जहर घोल रहा है. उस ने ज्ञान सिंह से उस की डेयरी पर काम करने के लिए न केवल इनकार कर दिया, बल्कि ज्ञान सिंह की डेयरी पर काम भी छोड़ दिया. दोनों की दोस्ती कमला को ले कर दुश्मनी में बदल गई. यह बात ज्ञान सिंह और कमला को अच्छी नहीं लगी. कमला ने पति से कहा कि उस ने ज्ञान सिंह का कारोबार छोड़ कर दुश्मनी मोल ले ली है,

लेकिन रामकुमार ने उस की एक नहीं सुनी. इतना ही नहीं, उस ने पत्नी कमला पर दबाव बना कर पत्नी की तरफ से ज्ञान सिंह के खिलाफ थाना बख्शी का तालाब में एससी/एसटी एक्ट के तहत शिकायत दर्ज करवा दी. रिपोर्ट दर्ज होने के बाद ज्ञान सिंह की बदनामी हुई तो कुछ लोगों ने गांव में ही दोनों का फैसला करा दिया. ज्ञान सिंह की दूध की डेयरी पर काम बंद करने एवं थाने में शिकायत दर्ज कराने को ले कर ज्ञान सिंह के मन में काफी खटास पैदा हो गई थी. दूसरे, दूध की डेयरी की जिम्मेदारी भी ज्ञान सिंह पर स्वयं आ पड़ी. रामकुमार ने भी अपनी मेहनतमजदूरी के वास्ते शहर जा कर काम ढूंढ लिया. पुलिस की जानकारी में आया कि एक बार ज्ञान सिंह ने शहर के एक अज्ञात व्यक्ति द्वारा रामकुमार पर हमला करवा दिया था. उस दिन से रामकुमार और ज्ञान सिंह दोनों एकदूसरे के कट्टर दुश्मन बन गए. उस दिन घर लौट कर रामकुमार ने कमला को खूब खरीखोटी सुनाई थी.

रामकुमार ने कमला को हिदायत देते हुए ज्ञान सिंह ने दूर रहने की चेतावनी दे दी. ऐसा न करने पर उस ने अंजाम भुगतने की धमकी भी दी. लेकिन दोनों में से कोई भी रामकुमार की हिदायतों को मानने के लिए तैयार नहीं था. इधर कमला की भी मजबूरी थी. वह ज्ञान सिंह द्वारा वक्तवक्त पर आर्थिक मदद के कारण उस के दबाव और अहसानों से दबती चली गई. रामकुमार इस बात से बिलकुल अंजान था. कमला ने ज्ञान सिंह से ली हुई रकम को चुकता करने के लिए डेयरी पर आनेजाने का सिलसिला जारी रखा. वह चाहती थी कि ज्ञान सिंह की दूध की डेयरी पर अधिक से अधिक दिनों तक काम कर के उस की ली हुई आर्थिक मदद में उधार की रकम की देनदारी को चुकता कर दे.

रामकुमार को कमला का उस की डेयरी पर आनाजाना बिलकुल नहीं भाता था. लेकिन कमला ने पति की चिंता नहीं की. वह पति से ज्यादा प्रेमी ज्ञान सिंह को चाहती थी. इस की एक वजह यह थी कि ज्ञान सिंह उच्च जाति का धनवान व्यक्ति था. रामकुमार से अनबन कर लेने पर उसे कोई नुकसान नहीं था, लेकिन ज्ञान सिंह से अलग हो जाने पर गृहस्थी का सारा खेल बिगड़ सकता था. इसी वजह से कमला ने ज्ञान सिंह से मिलनाजुलना जारी रखा. रामकुमार मन ही मन कुढ़ता रहता और रोजाना घर में कलह होती रहती. पति के चाहते हुए भी कमला ज्ञान सिंह को अपनी जिंदगी से दूर करने का विकल्प नहीं ढूंढ पा रही थी.

ज्ञान सिंह ने एक दिन कमला से कहा, ‘‘भाभी, पानी सिर से ऊपर हो चुका है. अब एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं. तुम ही बताओ कुछ न कुछ तो करना होगा.’’

कमला ने कहा, ‘‘तुम ही बताओ, कौन सा रास्ता निकाला जाए.’’

ज्ञान सिंह ने कमला से मिल कर अपने मन की छिपी हुई बात बताते हुए कहा कि तुम्हारे पास मेरी जो 20 हजार रुपए की रकम है, वह तुम्हें वापस करनी थी. उन में से अब 13 हजार रुपए देने होंगे और रामकुमार को किराए के लोगों से बुला कर शाम के समय लखनऊ से गांव लौटते समय रास्ते से हटा देंगे. इस प्रस्ताव को सुन कर कमला भी खुश हो गई. उस ने ज्ञान सिंह को रजामंदी दे दी, फिर ज्ञान सिंह ने कमला के साथ मिल कर षडयंत्रपूर्वक एक योजना बना ली. तब ज्ञान सिंह ने कमला के पति रामकुमार को रास्ते से हटाने के लिए अंकित यादव को इस वारदात के लिए राजी कर लिया. ज्ञान सिंह ने उस से और किराए के आदमी जुटाने को कहा.

तब अंकित यादव ने रामकुमार की हत्या के लिए 20 हजार रुपए में सौदेबाजी पक्की कर ली. इस काम के लिए उस ने राजा, निवासी बरगदी, के.डी. उर्फ कुलदीप सिंह निवासी बख्शी का तालाब, उत्तम कुमार निवासी अस्ती रोड, गांव मूसानगर को तैयार किया. राजा के कहने पर कमला और ज्ञान सिंह ने 13 हजार रुपए अंकित यादव को सौंप दिए और 7 हजार रुपए काम हो जाने के बाद देने का वादा कर लिया गया. सभी ने तय किया कि 25 दिसंबर, 2019 को लखनऊ से आते समय भखरामऊ गोलइया मोड़ पर रामकुमार की हत्या को अंजाम दिया जाएगा. योजना के अनुसार 25 दिसंबर, 2019 की शाम को के.डी. सिंह के साथ राजा और उस के साथी पहुंच गए. राजा ने रामकुमार पर बाइक से आते समय तमंचे से हमला कर दिया. उस समय बाइक रामकुमार स्वयं चला रहा था और उस का भतीजा मतोले पीछे बैठा हुआ था.

पुलिस को अभी 2 अभियुक्तों राजा व कुलदीप सिंह की तलाश थी. पुलिस द्वारा मुखबिरों का जाल फैला दिया गया था. मुखबिर की सूचना पर 3 जनवरी, 2020 को राजा व कुलदीप दोनों को मय तमंचे और बाइक के साथ गिरफ्तार कर लिया गया. राजा ने पुलिस के साथ जा कर हमले में उपयोग किया गया तमंचा बरामद करा दिया. पुलिस ने अभियुक्तों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

 

Agra Crime : पति की लाश को संदूक में बंद कर यमुना में फेंका

Agra Crime : पतिपत्नी के रिश्ते कितने भी मधुर क्यों न हों, अगर उन के बीच ‘वो’ आ जाए तो न केवल रिश्तों का माधुर्य बिखर जाता है बल्कि किसी एक को मिटाने की भूमिका भी बन जाती है. हरिओम और बबली के साथ भी यही हुआ. इन के रिश्तों में जब कमल की एंट्री हुई तो…

मानने वाले प्रेमीप्रेमिका और पतिपत्नी का रिश्ता सब से अजीम मानते हैं. लेकिन जबजब ये रिश्ते आंतरिक संबंधों की महीन रेखा को पार करते हैं, तबतब कोई न कोई संगीन जुर्म सामने आता है. हरिओम तोमर मेहनतकश इंसान था. उस की शादी थाना सैंया के शाहपुरा निवासी निहाल सिंह की बेटी बबली से हुई थी. हरिओम के परिवार में उस की पत्नी बबली के अलावा 4 बच्चे थे. हरिओम अपनी पत्नी बबली और बच्चों से बेपनाह मोहब्बत करता था. बेटी ज्योति और बेटा नमन बाबा राजवीर के पास एत्मादपुर थानांतर्गत गांव अगवार में रहते थे, जबकि 2 बेटियां राशि और गुड्डो हरिओम के पास थीं. राजवीर के 2 बेटों में बड़ा बेटा राजू बीमारी की वजह से काम नहीं कर पाता था. बस हरिओम ही घर का सहारा था, वह चांदी का कारीगर था.

हरिओम और बबली की शादी को 15 साल हो चुके थे. हंसताखेलता परिवार था, घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. दिन हंसीखुशी से बीत रहे थे. लेकिन अचानक एक ऐसी घटना घटी, जिस से पूरे परिवार में मातम छा गया.  3 नवंबर, 2019 की रात में हरिओम अपनी पत्नी और 2 बच्चों के साथ घर से लापता हो गया. पिछले 12 साल से वह आगरा में रह रहा था. 36 वर्षीय हरिओम आगरा स्थित चांदी के एक कारखाने में चेन का कारीगर था. पहले वह बोदला में किराए पर रहता था. लापता होने से 20 दिन पहले ही वह पत्नी बबली व दोनों बच्चियों राशि व गुड्डो के साथ आगरा के थानांतर्गत सिकंदरा के राधानगर इलाके में किराए के मकान में रहने लगा था.

आगरा में ही रहने वाली हरिओम की साली चित्रा सिंह 5 नवंबर को अपनी बहन बबली से मिलने उस के घर गई. वहां ताला लगा देख उस ने फोन से संपर्क किया, लेकिन दोनों के फोन स्विच्ड औफ थे. चित्रा ने पता करने के लिए जीजा हरिओम के पिता राजबीर को फोन कर पूछा, ‘‘दीदी और जीजाजी गांव में हैं क्या?’’

इस पर हरिओम के पिता ने कहा कि कई दिन से हरिओम का फोन नहीं मिल रहा है. उस की कोई खबर भी नहीं मिल पा रही. चित्रा ने बताया कि मकान पर ताला लगा है. आसपास के लोगों को भी नहीं पता कि वे लोग कहां गए हैं. किसी अनहोनी की आशंका की सोच कर राजबीर गांव से राधानगर आ गए. उन्होंने बेटे और बहू की तलाश की, लेकिन उन की कोई जानकारी नहीं मिली. इस पर पिता राजबीर ने 6 नवंबर, 2019 को थाना सिकंदरा में हरिओम, उस की पत्नी और बच्चों की गुमशुदगी दर्ज करा दी. जांच के दौरान हरिओम के पिता राजबीर ने थाना सिकंदरा के इंसपेक्टर अरविंद कुमार को बताया कि उस की बहू बबली का चालचलन ठीक नहीं था. उस के संबंध कमल नाम के एक व्यक्ति के साथ थे, जिस के चलते हरिओम और बबली के बीच आए दिन विवाद होता था.

पुलिस ने कमल की तलाश की तो पता चला कि वह भी उसी दिन से लापता है, जब से हरिओम का परिवार लापता है. पुलिस सरगरमी से तीनों की तलाश में लग गई. इस कवायद में पुलिस को पता चला कि बबली सिकंदरा थानांतर्गत दहतोरा निवासी कमल के साथ दिल्ली गई है. उन्हें ढूंढने के लिए पुलिस की एक टीम दिल्ली के लिए रवाना हो गई. शनिवार 16 नवंबर, 2019 को बबली और उस के प्रेमी कमल को पुलिस ने दिल्ली में पकड़ लिया. दोनों बच्चियां भी उन के साथ थीं, पुलिस सब को ले कर आगरा आ गई. आगरा ला कर दोनों से पूछताछ की गई तो मामला खुलता चला गया. पता चला कि 3 नवंबर की रात हरिओम रहस्यमय ढंग से लापता हो गया था. पत्नी और दोनों बच्चे भी गायब थे. कमल उर्फ करन के साथ बबली के अवैध संबंध थे. वह प्रेमी कमल के साथ रहना चाहती थी.

इस की जानकारी हरिओम को भी थी. वह उन दोनों के प्रेम संबंधों का विरोध करता था. इसी के चलते दोनों ने हरिओम का गला दबा कर हत्या कर दी थी. बबली की बेहयाई यहीं खत्म नहीं हुई. उस ने कमल के साथ मिल कर पति की गला दबा कर हत्या दी थी. बाद में दोनों ने शव एक संदूक में बंद कर यमुना नदी में फेंक दिया था. पूछताछ और जांच के बाद जो कहानी सामने आई, वह इस तरह थी—

फरवरी, 2019 में बबली के संबंध दहतोरा निवासी कमल उर्फ करन से हो गए थे. कमल बोदला के एक साड़ी शोरूम में सेल्समैन का काम करता था. बबली वहां साड़ी खरीदने जाया करती थी. सेल्समैन कमल बबली को बड़े प्यार से तरहतरह के डिजाइन और रंगों की साडि़यां दिखाता था. वह उस की सुंदरता की तारीफ किया करता था. उसे बताता था कि उस पर कौन सा रंग अच्छा लगेगा. कमल बबली की चंचलता पर रीझ गया. बबली भी उस से इतनी प्रभावित हुई कि उस की कोई बात नहीं टालती थी. इसी के चलते दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर दे दिए थे. अब जब भी बबली उस दुकान पर जाती, तो कमल अन्य ग्राहकों को छोड़ कर बबली के पास आ जाता.

वह मुसकराते हुए उस का स्वागत करता फिर इधरउधर की बातें करते हुए उसे साड़ी दिखाता. कमल आशिकमिजाज था, उस ने पहली मुलाकात में ही बबली को अपने दिल में बसा लिया था. नजदीकियां बढ़ाने के लिए उस ने बबली से फोन पर बात करनी शुरू कर दी. जब दोनों तरफ से बातों का सिलसिला शुरू हुआ तो नजदीकियां बढ़ती गईं. फोन पर दोनों हंसीमजाक भी करने लगे. फिर उन की चाहत एकदूसरे से गले मिलने लगी. बातोंबातों में बबली ने कमल को बताया कि वह बोदला में ही रहती है. इस के बाद कमल बबली के घर आनेजाने लगा. जब एक बार दोनों के बीच मर्यादा की दीवार टूटी तो फिर यह सिलसिला सा बन गया. जब भी मौका मिलता, दोनों एकांत में मिल लेते थे.

हरिओम की अनुपस्थिति में बबली और कमल के बीच यह खेल काफी दिनों तक चलता रहा. लेकिन ऐसी बातें ज्यादा दिनों तक छिपी नहीं रहतीं, एक दिन हरिओम को भी भनक लग गई. उस ने बबली को कमल से दूर रहने और फोन पर बात न करने की चेतावनी दे दी. दूसरी ओर बबली कमल के साथ रहना चाहती थी. उस के न मानने पर वह घटना से 20 दिन पहले बोदला वाला घर छोड़ कर सपरिवार सिकंदरा के राधानगर में रहने लगा. 3 नवंबर, 2019 को हरिओम शराब पी कर घर आया. उस समय बबली मोबाइल पर कमल से बातें कर रही थी. यह देख कर हरिओम के तनबदन में आग लग गई. इसी को ले कर दोनों में झगड़ा हुआ तो हरिओम ने बबली की पिटाई कर दी.

बबली ने इस की जानकारी कमल को दे दी. कमल ने यह बात 100 नंबर पर पुलिस को बता दी. पुलिस आई और रात में ही पतिपत्नी को समझाबुझा कर चली गई. पुलिस के जाने के बाद भी दोनों का गुस्सा शांत नहीं हुआ, दोनों झगड़ा करते रहे. रात साढे़ 11 बजे बबली ने कमल को दोबारा फोन कर के घर आने को कहा. जब वह उस के घर पहुंचा तो हरिओम उस से भिड़ गया. इसी दौरान कमल ने गुस्से में हरिओम का सिर दीवार पर दे मारा. नशे के चलते वह कमल का विरोध नहीं कर सका. उस के गिरते ही बबली उस के पैरों पर बैठ गई और कमल ने उस का गला दबा दिया. कुछ देर छटपटाने के बाद हरिओम की मौत हो गई. उस समय दोनों बच्चियां सो रही थीं. कमल और बबली ने शव को ठिकाने लगाने के लिए योजना तैयार कर ली. दोनों ने शव को एक संदूक में बंद कर उसे फेंकने का फैसला कर लिया, ताकि हत्या के सारे सबूत नष्ट हो जाएं.

योजना के तहत दोनों ने हरिओम की लाश एक संदूक में बंद कर दी. रात ढाई बजे कमल टूंडला स्टेशन जाने की बात कह कर आटो ले आया. आटो से दोनों यमुना के जवाहर पुल पर पहुंचे. लाश वाला संदूक उन के साथ था. इन लोगों ने आटो को वहीं छोड़ दिया. सड़क पर सन्नाटा था, कमल और बबली यू टर्न ले कर कानपुर से आगरा की तरफ आने वाले पुल पर पहुंचे और संदूक उठा कर यमुना में फेंक दिया. इस के बाद दोनों अपनेअपने घर चले गए. दूसरे दिन 4 नवंबर को सुबह कमल बबली और उस की दोनों बच्चियों को साथ ले कर दिल्ली भाग गया.

बबली की बेवफाई ने हंसतेखेलते घर को उजाड़ दिया था. उस ने पति के रहते गैरमर्द के साथ रिश्ते बनाए. यह नाजायज रिश्ता उस के लिए इतना अजीज हो गया कि उस ने अपने पति की मौत की साजिश रच डाली. पुलिस 16 नवंबर को ही कमल व बबली को ले कर यमुना किनारे पहुंची. उन की निशानदेही पर पीएसी के गोताखोरों को बुला कर कई घंटे तक यमुना में लाश की तलाश कराई गई, लेकिन लाश नहीं मिली. अंधेरा होने के कारण लाश ढूंढने का कार्य रोकना पड़ा. रविवार की सुबह पुलिस ने गोताखोरों और स्टीमर की मदद से लाश को तलाशने की कोशिश की. लेकिन कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला.

बहरहाल, पुलिस हरिओम का शव बरामद नहीं कर सकी. शायद बह कर आगे निकल गया होगा. पुलिस ने बबली और उस के प्रेमी कमल को न्यायालय में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Love Crime : शादी के लिए गर्लफ्रेंड नहीं मानी, तो मार डाला

Love Crime : ससुरालियों से खटपट हो जाने के बाद आराधना अपने दोनों बच्चों को ले कर मायके आ गई. फिर एकाउंटेंट की नौकरी करने के दौरान उसे प्रवीण कुमार से प्यार हो गया. इस से पहले कि प्रवीण उस से शादी कर पाता, आराधना का झुकाव शोएब की तरफ हो गया. आराधना की यह गुस्ताखी प्रवीण को इतनी नागवार लगी कि…

उस दिन दिसंबर 2019 की 16 तारीख थी, रात के 9 बज रहे थे. रामप्रकाश गौतम बेहद परेशान थे. वह घर के अंदर चहलकदमी कर रहे थे. कभी उन की निगाह कमरे की दीवार घड़ी पर टिक जाती तो कभी दरवाजे की ओर. दरअसल वह अपनी बेटी के लिए परेशान हो रहे थे. उन की 35 वर्षीय बेटी आराधना गौतम किदवई नगर स्थित जैन ट्रेडिंग कंपनी में एकाउंटेंट थी. वह हर हाल में 8 बजे तक घर आ जाती थी, किंतु उस दिन तो रात के 9 बज गए, उस का कुछ अतापता नहीं था. वह उस के मोबाइल फोन पर कई बार काल कर चुके थे. उस के फोन की घंटी तो बज रही थी, लेकिन वह रिसीव नहीं कर रही थी.

ज्योंज्यों समय बीतता जा रहा था, त्योंत्यों रामप्रकाश गौतम की चिंता बढ़ती जा रही थी. आखिर जब उन के सब्र का बांध टूट गया तो रात 10 बजे उन्होंने अपने साले रामकुमार तथा भाई रमन गौतम को घर बुला लिया. उन्होंने उन्हें आराधना के घर वापस न आने के बारे में बताया तो वह भी चिंतित हो उठे. आपस में विचारविमर्श कर के रामप्रकाश ने पुलिस कंट्रोलरूम को सूचना दी. सूचना मिलने के कुछ देर बाद पुलिस तातियागंज, कानपुर स्थित उन के घर पहुंच गई. रामप्रकाश ने पुलिस को बेटी के संबंध में जानकारी दी तो पुलिसकर्मियों ने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि मामला किदवई नगर थाना क्षेत्र का है. अत: किदवई नगर थाने जा कर रिपोर्ट दर्ज कराएं.

इस पर रात 11 बजे रामप्रकाश गौतम अपने भाई रमन तथा साले रामकुमार के साथ थाना किदवईनगर पहुंचे. थानाप्रभारी राजेश पाठक उस समय थाने पर ही मौजूद थे. उन्होंने थानाप्रभारी को अपनी बेटी के अभी तक घर न लौटने की जानकारी दी. चूंकि मामला एक महिला एकाउंटेंट के लापता होने का था, अत: थानाप्रभारी राजेश पाठक ने आराधना गौतम की गुमशुदगी दर्ज कर ली और उस की खोज में जुट गए. उन्होंने रामप्रकाश से आराधना का फोन नंबर लिया फिर उस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. डिटेल्स में उस के फोन की अंतिम लोकेशन कल्याणपुर थाना क्षेत्र के शताब्दी नगर की मिली. राजेश पाठक आराधना के घर वालों के साथ रात में ही कल्याणपुर पहुंचे और आराधना के संबंध में वहां के थानाप्रभारी अश्विनी कुमार पांडेय को जानकारी दी.

मामला गंभीर था, इसलिए थानाप्रभारी राजेश पाठक तथा थानाप्रभारी अश्विनी कुमार पांडेय फोर्स के साथ शताब्दी नगर पहुंचे और उन्होंने वहां स्थित मोबाइल टावर के 500 मीटर की परिधि में आराधना की खोजबीन शुरू की. लेकिन उस का पता नहीं चला. दरअसल, उस समय आराधना के मोबाइल फोन का इंटरनेट बंद था, जिस से पुलिस को उस के फोन की वास्तविक लोकेशन नहीं मिल पा रही थी. इंसपेक्टर राजेश पाठक ने कई बार आराधना का नंबर अपने मोबाइल फोन से मिलाया तो उस के फोन की घंटी तो बज रही थी, लेकिन रिसीव नहीं हो रहा था. पुलिस ने उस के परिजनों के संग सुबह 4 बजे तक आराधना की तलाश की लेकिन सफलता नहीं मिली. तब पुलिस लौट गई.

सुबह 5 बजे रामप्रकाश गौतम भाई रमन के साथ घर पहुंचे तो उन की पत्नी रमा गौतम परिवार की अन्य महिलाओं के साथ दरवाजे पर ही बैठी थीं. उन्होंने पूरी रात आराधना के इंतजार में ही गुजार दी थी. रामप्रकाश को देखते ही रमा गौतम ने पूछा, ‘‘मेरी बेटी का कुछ पता चला?’’

जवाब में नहीं सुनते ही वह फफक पड़ीं. रामप्रकाश ने उन्हें धैर्य बंधाया कि बेटी का पता जल्द ही लग जाएगा. इधर सुबह 10 बजे के लगभग कुछ लोग शताब्दी नगर स्थित जवाहरपुरम पार्क पहुंचे तो उन्होंने पार्क के अंदर झाडि़यों के बीच एक महिला का शव पड़ा देखा. उन्हीं लोगों में से किसी ने इस की सूचना उसी समय थाना कल्याणपुर को दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी अश्विनी कुमार पांडेय जवाहरपुरम पार्क पहुंच गए. उन्होंने एक महिला का शव पाए जाने की खबर पहले अधिकारियों को दी फिर थाना किदवई नगर पुलिस को भी सूचित कर दिया. क्योंकि उन के थाना क्षेत्र से आराधना गौतम नाम की युवती भी लापता थी.

सूचना पाते ही एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता, सीओ (कल्याणपुर) अजय कुमार तथा किदवई नगर थानाप्रभारी राजेश पाठक आराधना के पिता रामप्रकाश गौतम को साथ ले कर घटनास्थल पर आ गए. रामप्रकाश गौतम ने झाडि़यों में पड़े शव को देखा तो वह शव देखते ही फफक पडे़ और बोले, ‘‘सर, यह शव हमारी बेटी आराधना का है. पता नहीं इसे किस ने बेरहमी से मार डाला.’’ इस के बाद तो रामप्रकाश के घर में कोहराम मच गया. पुलिस अधिकारियों ने रामप्रकाश गौतम को धैर्य बंधाया फिर घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. मृतका के गले पर खरोंच का निशान था, जिस से स्पष्ट था कि उस की हत्या रस्सी या तार से गला कस कर की गई थी.

शव से कुछ दूरी पर मृतका के कान की एक बाली पड़ी थी तथा दूसरी उस के कान में ही थी. कुछ चूडि़यां भी टूटी हुई थीं तथा उस का पर्स भी पार्क में पड़ा था. निरीक्षण में पार्क की घास से साफ दिखाई दे रहा था कि शव घसीट कर झाडि़यों तक ले जाया गया है. मौकामुआयना करने से यही लग रहा था कि आराधना ने मृत्यु से पहले हत्यारे से संघर्ष किया होगा. पुलिस अधिकारियों ने यह भी अनुमान लगाया कि हत्यारा मृतका का अति करीबी रहा होगा, जिस के साथ वह यहां तक आई. उस करीबी का इरादा सिर्फ आराधना की हत्या का ही रहा. क्योंकि उस ने उस के आभूषणों पर हाथ नहीं लगाया था. पुलिस ने मौके से सबूत अपने कब्जे में ले लिए. इस के बाद जरूरी काररवाई कर शव पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय भिजवा दिया.

एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता ने महिला एकाउंटेंट आराधना गौतम की हत्या के मामले को बेहद गंभीरता से लिया और खुलासे की जिम्मेदारी किदवई नगर थानाप्रभारी राजेश पाठक को सौंपी. उन्होंने स्वयं भी किदवई नगर थाने में डेरा डाल दिया. श्री पाठक ने आराधना की गुमशुदगी भादंवि की धारा 302 में तरमीम कर दी. फिर वह जांच में जुट गए. उन्होंने सब से पहले जैन ट्रेडर्स के कर्मचारियों को जांच के दायरे में लिया, जहां आराधना गौतम काम करती थी. श्री पाठक ने मालिक से ले कर कर्मचारियों तक से पूछताछ की, जिस से पता चला कि आराधना गौतम पिछले 3 साल से यहां काम कर रही थी. वह समय से काम पर आती थी और समय से घर जाती थी. कंपनी के किसी कर्मचारी से उस की कहासुनी तक नहीं हुई थी.

जैन टे्रडर्स के यहां जांचपड़ताल के दौरान 2 बातें चौंकाने वाली सामने आईं. एक तो यह कि 16 दिसंबर को आराधना गौतम किसी का फोन आने के बाद शाम सवा 6 बजे औफिस से निकली थी. दूसरा यह कि पिछले कुछ दिनों से आराधना का झुकाव फर्म के कर्मचारी शोएब की ओर बढ़ गया था. इस बाबत थानाप्रभारी ने शोएब से पूछताछ की तो उस ने स्वीकार किया कि दोनों के बीच दोस्ती तो थी, लेकिन हत्या से उस का कोई वास्ता नहीं है. फर्म में पूछताछ के बाद थानाप्रभारी राजेश पाठक ने मृतका के पिता रामप्रकाश गौतम को थाना किदवई नगर बुलाया और उन का बयान दर्ज किया. रामप्रकाश ने बताया कि उन्होंने आराधना का विवाह दौलतपुर (कानपुर देहात) गांव निवासी धर्मेंद्र गौतम के साथ किया था.

धर्मेंद्र केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) का जवान था. वह आराधना को दहेज के लिए मारतापीटता था, जिस से आराधना अपने 2 बच्चों के साथ मायके में आ कर रहने लगी थी. उस ने पति पर दहेज उत्पीड़न तथा भरणपोषण का मामला दर्ज करवाया था. धर्मेंद्र गौतम इस समय छत्तीसगढ़ में तैनात है. उस ने पत्नी के रहते दूसरी शादी भी रचा ली. आराधना उस के वैवाहिक जीवन में बाधा न बने तथा मुकदमे से छुटकारा मिल जाए, इसलिए धर्मेंद्र ने ही अपने मामा प्रकाश व जयशंकर के साथ मिल कर आराधना की हत्या की है. रामप्रकाश के बयान के आधार पर थानाप्रभारी राजेश पाठक ने जांच आगे बढ़ाई और आराधना के पति धर्मेंद्र गौतम से संपर्क साधने का प्रयास किया लेकिन न तो धर्मेंद्र से संपर्क हो सका और न उस के मामा प्रकाश व जयशंकर से, क्योंकि दोनों फरार थे.

एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता ने मृतका के पर्स की जामातलाशी कराई. उस के पर्स में 2 मोबाइल फोन, कुछ नकदी, चाबी तथा साजशृंगार का सामान मिला. उन में से एक मोबाइल चालू हालत में था. पुलिस ने उस की काल डिटेल्स निकलवाई. इस काल डिटेल्स में एक संदिग्ध नंबर मिला. उस नंबर की जांच की गई तो पता चला कि वह नंबर राजेंद्र का है. थानाप्रभारी राजेश पाठक ने राजेंद्र को उस के घर से दबोचा और उसे पूछताछ के लिए थाना किदवई नगर ले आए. थाने आतेआते राजेंद्र कांपने लगा था. उस ने सहज ही बता दिया कि उस के मोबाइल फोन से उस के दोस्त प्रवीण ने किसी महिला को फोन किया था. प्रवीण तातियागंज (चौबेपुर) थाना क्षेत्र के मालौगांव में रहता है और बस ड्राइवर है. वह उस के बारे में और कुछ ज्यादा नहीं जानता.

थानाप्रभारी राजेश पाठक ने प्रवीण को गिरफ्तार करने के लिए उस के घर मालौगांव छापा मारा, लेकिन वह घर से फरार था. पुलिस ने तब उस के कई खास रिश्तेदारों के घर दबिश दी, पर प्रवीण हाथ नहीं आया. तब पुलिस ने उस की टोह में एक खास मुखबिर लगा दिया. 18 दिसंबर, 2019 को इस खास मुखबिर ने थानाप्रभारी राजेश पाठक को जानकारी दी कि प्रवीण कुमार इस समय गौशाला (जुही) टैंपों स्टैंड पर मौजूद है. चूंकि मुखबिर की सूचना अतिमहत्त्वपूर्ण थी, इसलिए थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ गौशाला टैंपो स्टैंड पहुंच गए. पुलिस जीप रुकते ही वहां खड़ा एक युवक मोटरसाइकिल स्टार्ट कर भागने लगा. तभी पुलिस ने उसे दबोच लिया. उस ने अपना नाम प्रवीण कुमार बताया. पुलिस उसे थाने ले आई.

पुलिस ने जब प्रवीण से आराधना गौतम की हत्या के संबंध में पूछा तो वह साफ मुकर गया. लेकिन जब सख्ती की गई तो वह टूट गया और हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने मोटरसाइकिल के बैग से वह रस्सी भी बरामद करा दी, जिस से उस ने आराधना का गला घोंटा था. पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त मोटरसाइकिल तथा रस्सी अपने कब्जे में ले ली. पुलिस पूछताछ में प्रवीण ने बताया कि वह आराधना से प्रेम करता था और उस से शादी करना चाहता था. आराधना भी राजी हो गई थी, लेकिन जब उस का एक्सीडेंट हो गया तो वह उस से कतराने लगी. इतना ही नहीं, उस ने फोन पर बात करनी भी बंद कर दी, तब उसे आराधना पर शक हुआ. उस ने गुप्तरूप से जानकारी जुटाई तो पता चला कि वह किसी और से प्यार करने लगी है. यही बात उसे चुभ गई.

इस के बाद उस ने निश्चय कर लिया कि यदि आराधना उस की नहीं होगी तो वह उसे किसी और की भी नहीं होने देगा. फाइनल बात करने को उस ने घटना वाली शाम दोस्त राजेंद्र के फोन से बात कर आराधना को बुलाया. फिर मोटरसाइकिल पर बिठा कर उसे जवाहरपुरम पार्क ले गया. वहां शादी को ले कर दोनों के बीच झगड़ा हुआ. वह शादी को राजी नहीं हुई तो उस ने गला घोंट कर आराधना को मार दिया. एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता ने भी प्रवीण कुमार से पूछताछ की, फिर आननफानन में थाना किदवई नगर में ही प्रैसवार्ता आयोजित कर प्रवीण को मीडिया के समक्ष पेश कर घटना का खुलासा किया.

चूंकि प्रवीण कुमार ने आराधना गौतम की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था और हत्या में प्रयुक्त रस्सी भी बरामद करा दी थी, अत: थानाप्रभारी राजेश पाठक ने प्रवीण कुमार को आराधना की हत्या के जुर्म में भादंवि की धारा 302 के तहत विधिसम्मत बंदी बना लिया. प्रवीण के बयानों के आधार पर प्रेमिका की बेवफाई की सनसनीखेज घटना प्रकाश में आई. उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर से 20 किलोमीटर दूर जीटी रोड पर एक कस्बा मंधना पड़ता है. इसी से सटा हुआ तातियागंज है. तातियागंज पहले गांव था, लेकिन जैसेजैसे मंधना का विकास होता गया, यह गांव कस्बा के समीप आता गया. इस तातियागंज में लिपस्टिक तथा अन्य सौंदर्य प्रसाधन बनाने वाली कई फैक्ट्रियां हैं, जहां ज्यादातर महिलाएं काम करती हैं.

तातियागंज में ही रामप्रकाश गौतम अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी रमा गौतम के अलावा 3 बच्चे थे, जिस में बेटी आराधना सब से छोटी थी. रामप्रकाश गौतम ट्रांसपोर्टर हैं. उन की आर्थिक स्थिति भी मजबूत है. रामप्रकाश गौतम की बेटी आराधना बीकौम करने के बाद नौकरी के लिए प्रयासरत थी. वहीं उस के पिता रामप्रकाश गौतम उस के योग्य वर खोज रहे थे. रामप्रकाश की तमन्ना थी कि वह अपनी लाडली तथा खूबसूरत बेटी की शादी किसी संपन्न परिवार में ही करेंगे, ताकि उसे किसी प्रकार की कमी महसूस न हो. ऐसा संपन्न घरवर खोजने में रामप्रकाश को 3 साल लग गए. तब कहीं जा कर वह बेटी के योग्य लड़के की खोज कर पाए. लड़के का नाम था धर्मेंद्र गौतम उर्फ लालजी.

धर्मेंद्र के पिता दयाराम गौतम कानपुर देहात जिले के मैथा ब्लौक के गांव दौलतपुर के रहने वाले थे. उन के 4 बच्चों में धर्मेंद्र सब से छोटा था. धर्मेंद्र उर्फ लालजी पढ़ालिखा युवक था. वह सीआरपीएफ का जवान था. दयाराम गौतम के पास 10 बीघा खेती की जमीन थी, जिस में अच्छी उपज होती थी. कुल मिला कर उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. रामप्रकाश गौतम को घरवर पसंद आया तो वह आराधना की शादी धर्मेंद्र से करने को राजी हो गए. इस के बाद 6 अप्रैल, 2003 को आराधना की शादी धर्मेंद्र गौतम उर्फ लालजी के साथ धूमधाम से कर दी.

आराधना के मुकाबले धर्मेंद्र उम्र में बड़ा था. ऊपर से वह सांवला भी था. धर्मेंद्र ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसे इतनी सुंदर बीवी मिलेगी. उस से शादी कर के वह बहुत खुश था. आराधना ने अपनी समझदारी और काम से पति ही नहीं बल्कि सासससुर का मन भी जीत लिया था. हंसीखुशी से उस की गृहस्थी को 7 साल बीत गए. इन 7 सालों में आराधना एक बेटा अभय तथा एक बेटी सुप्रिया की मां बन चुकी थी. बच्चों के जन्म से परिवार की खुशियां दूनी हो गई थीं. धर्मेंद्र गौतम की ड्यूटी एक राज्य से दूसरे राज्य में लगती रहती थी. उसे जब छुट्टी मिलती थी, तभी घर आ पाता था. लेकिन छुट्टियां खत्म होने के बाद जब वह अपनी ड्यूटी पर चला जाता तो आराधना को अपनी जिंदगी नीरस लगने लगती थी. उस का दिन तो बच्चों के कोलाहल में कट जाता था लेकिन रात बैरन बन जाती थी.

इन्हीं दिनों पति, सास व ससुर का व्यवहार भी आराधना के प्रति बदल गया, जिस से वह और भी परेशान रहने लगी. सासससुर उसे बातबेबात प्रताडि़त करते थे. मकान के निर्माण हेतु उस पर मायके से पैसा लाने का दबाव बनाते. उसे दहेज कम लाने के ताने भी दिए जाने लगे. मायके से रुपए न लाने पर आराधना को प्रताडि़त किया जाने लगा. आखिर जब आराधना आजिज आ गई तो उस ने पति का घर त्याग दिया और अपने दोनों बच्चों को साथ ले कर पिता के घर रहने लगी. आराधना को विश्वास था कि पति धर्मेंद्र बच्चों की खातिर उसे मनाने आएगा और अपने साथ ले जाएगा. लेकिन धर्मेंद्र ने ऐसा नहीं किया. वह आराधना को मनाने नहीं आया.

पति के इस रूखे व्यवहार से आराधना को गहरी ठेस पहुंची. उस ने पति व सासससुर को सबक सिखाने के लिए उन के खिलाफ कानपुर कोर्ट में सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत दहेज उत्पीडन तथा भरणपोषण का मुकदमा कायम करा दिया. मुकदमा दर्ज कराने की जानकारी धर्मेंद्र को हुई तो आराधना के प्रति उस की नफरत और बढ़ गई. उस ने आराधना से समझौता करने के बजाए मुकदमा लड़ने का निश्चय किया. आराधना ने 3 साल तक इंतजार किया कि शायद धर्मेंद्र समझौते का प्रस्ताव लाएगा और उसे तथा बच्चों को साथ ले जाएगा. लेकिन धर्मेंद्र नहीं आया. तब आराधना ने बच्चों को पढ़ाने तथा उन के भविष्य को बनाने के लिए नौकरी करने का निश्चय किया. हालांकि आराधना तथा उस के बच्चों को पिता रामप्रकाश के घर पर हर प्रकार की सुविधा थी, फिर भी वह पिता पर बोझ नहीं बनना चाहती थी. वह कोई नौकरी करना चाहती थी.

आराधना पढ़ीलिखी युवती थी. उस ने बीकौम कर रखी थी. एकाउंट की ट्रेनिंग भी उस ने की थी, अत: उसे नौकरी हासिल करने में ज्यादा समय नहीं गंवाना पड़ा. सन 2016 में उसे किदवई नगर स्थित जैन ट्रेडिंग नामक फर्म में एकाउंटेंट की नौकरी मिल गई. आराधना ने अपने कुशल व्यवहार व अच्छे काम से कुछ महीने में ही मालिक व कर्मचारियों का दिल जीत लिया और सब की चहेती बन गई. आराधना के हाथ पर सैलरी का पैसा आने लगा तो वह अपनी तथा बच्चों की जरूरतें उचित तरीके से पूरी करने लगी. अब उसे पिता का मुंह नहीं ताकना पड़ता था. आराधना पहले दिन भर घर में बैठे बोर हुआ करती थी, लेकिन नौकरी लग जाने के बाद उस के दिन हंसीखुशी से बीतने लगे थे. रामप्रकाश को भी सकून मिला था कि आराधना अब खुश रहने लगी है.

आराधना तातियागंज से औफिस बस व टैंपो से आतीजाती थी. वह मंधना से झकरकटी बस द्वारा फिर झकरकटी से किदवईनगर औफिस टैंपो द्वारा पहुंचती थी. वह सुबह 10 बजे औफिस पहुंचती थी और शाम सवा 6 बजे औफिस छोड़ देती थी. वह हर हाल में रात 8 बजे तक अपने घर पहुंच जाती थी. हां, यह बात दीगर थी कि जब औफिस में किसी दिन काम ज्यादा होता तो उसे घर पहुंचने में देर हो जाती थी. ऐसी हालत में वह फोन द्वारा पिता को बता देती थी. आराधना जिस बस से औफिस आतीजाती थी, उस बस का ड्राइवर प्रवीण कुमार था. वह चौबेपुर थाने के मालौगांव का रहने वाला था. प्रवीण एक ट्रैवल कंपनी की बस चलाता था. उस का रूट मंधना से जाजमऊ तक था. प्रवीण की बस से आतेजाते आराधना और प्रवीण में दोस्ती हो गई. धीरेधीरे यह दोस्ती प्यार में बदल गई.

रविवार को आराधना की छुट्टी रहती थी. प्रवीण भी रविवार को छुट्टी करता था, अत: उस दिन दोनों कभी मोतीझील तो कभी साईंमंदिर में मिलते थे. यहां दोनों घंटों बतियाते थे और खूब हंसीठिठोली करते थे. आराधना अपने दोनों बच्चों को भी साथ लाती थी. प्रवीण उन्हें खूब खिलातापिलाता था. दोनों बच्चे प्रवीण से खूब घुलमिल गए थे. आराधना के प्यार में आकंठ डूबा प्रवीण सारी कमाई आराधना व उस के बच्चों पर खर्च करने लगा था. आराधना भले ही 2 बच्चों की मां थी, लेकिन उस के सौंदर्य और जिस्मानी कसाव में जरा भी कमी नहीं आई थी. स्वभाव से आराधना मजाकिया तथा खुले विचारों की थी. प्रवीण से हंसीमजाक तथा नयनों के तीर भी चला देती थी. इस से प्रवीण उसे पाने के सपने देखने लगा था. प्रवीण आराधना से 8-10 साल छोटा था.

एक दिन प्रवीण ने प्यार का इजहार कर दिया, ‘‘आराधना, मैं तुम से बेइंतहा प्यार करता हूं. तुम्हारा साथ जीवन भर चाहता हूं. बोलो, मेरा साथ दोगी?’’

आराधना प्रवीण की बात सुन कर गहरी सोच में पड़ गई. फिर कुछ देर बाद बोली, ‘‘प्रवीण, मैं शादीशुदा और 2 बच्चों की मां हूं. पति से मेरा तलाक भी नहीं हुआ है. ऐसी हालत में मैं तुम से कैसे शादी कर सकती हूं. रही बात प्यारमोहब्बत की तो वह मैं तुम से करती हूं और करती रहूंगी.’’

आराधना के जवाब से प्रवीण कुछ मायूस जरूर हुआ, लेकिन उसे लगा कि जब आराधना उस से प्यार करती है तो आज नहीं तो कल शादी भी उसी से करेगी. इसलिए वह उस का दीवाना बना रहा. उस ने अपनी और आराधना की मोहब्बत की जानकारी अपने परिवार वालों को भी दे दी. इस पर उस के मातापिता ने उसे समझाया और एक शादीशुदा महिला से रिश्ता तोड़ने को कहा. लेकिन प्रवीण ने घर वालों की बात नहीं मानी. आराधना और प्रवीण रिश्ते में बंध पाते, उस से पहले ही प्रवीण का एक्सीडेंट हो गया. उस की नौकरी छूट गई और उस की आर्थिक स्थिति भी खराब हो गई. प्रवीण को यकीन था कि आराधना एक्सीडेंट की जानकारी पा कर उस से मिलने आएगी और उस की हरसंभव मदद करेगी.

लेकिन महीनों बीत गए, आराधना न तो उस से मिलने आई और न ही उस की कोई आर्थिक मदद की. और तो और उस ने मोबाइल पर प्रवीण से बतियाना भी बंद कर दिया. आराधना में आए इस अकस्मात बदलाव से प्रवीण बेचैन हो उठा. उस ने गुप्तरूप से आराधना के संबंध में जानकारी जुटाई तो उस के आश्चर्य का ठिकाना न रहा. उसे पता चला कि आराधना औफिस के ही एक कर्मचारी शोएब की मोहब्बत में बंधी है. वह उस के साथ ही सैरसपाटा करती है. उस ने इस का विरोध आराधना से किया तो उस ने दोटूक जवाब दे दिया कि वह उस की जिंदगी में दखल देने वाला होता कौन है. वह कुछ बन कर दिखाए, तब उस से बात करे.

आराधना के जवाब से प्रवीण का दिल घायल हो गया. आराधना के प्रति वह नफरत से भर उठा. फिर भी वह आराधना को दिल से निकाल नहीं सका. आराधना ने अब उस से फोन पर बात करनी भी बंद कर दी थी. वह काल पर काल करता, तब कहीं जा कर उस की काल रिसीव करती और जवाब दे कर अपना फोन बंद कर लेती. प्रवीण तब खिसिया कर रह जाता था. 10 दिसंबर, 2019 को प्रवीण आराधना के औफिस के पास पहुंचा. कुछ देर बाद आराधना औफिस से बाहर निकली और सहकर्मी शोएब की मोटरसाइकिल पर बैठ गई. प्रवीण ने उस का पीछा किया. वह उस के साथ घंटाघर गई. शौपिंग की, फिर उसी के साथ घर गई. इस बीच प्रवीण ने आराधना को फोन कर पूछा कि वह कहां है तो उस ने कहा कि वह अपने एक रिश्तेदार के यहां शादी में शामिल होने आई है.

उस के इस झूठ से प्रवीण बौखला गया. उस ने आराधना की हत्या का फैसला कर लिया. 16 दिसंबर, 2019 की शाम 6 बजे प्रवीण ने अपने दोस्त राजेंद्र के मोबाइल से आराधना से बात की और मिलने का अनुरोध किया. आराधना ने पहले तो साफ मना कर दिया लेकिन प्रवीण के विशेष अनुरोध पर वह मान गई. इस के बाद प्रवीण मोटरसाइकिल से आराधना के औफिस पहुंच गया. शाम सवा 6 बजे आराधना औफिस से बाहर निकली. प्रवीण ने उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बिठा लिया. रास्ते में शोएब को ले कर दोनों के बीच झगड़ा हुआ.

लड़तेझगड़ते प्रवीण आराधना को शताब्दी नगर स्थित जवाहरपुरम पार्क ले आया. अब तक रात के 8 बज चुके थे. भीषण सर्दी पड़ने के कारण पार्क में सन्नाटा था. पार्क में प्रवीण ने उस से सीधे पूछा, ‘‘आराधना, तुम मुझ से शादी करोगी या नहीं?’’

‘‘नहीं, कभी नहीं.’’

इतना सुनते ही प्रवीण भड़क उठा.

दोनों में झगड़ा शुरू हो गया. इसी झगड़े में आराधना की चूडि़यां टूट गईं और कान की एक बाली पार्क में गिर गया. झगड़े के दौरान ही प्रवीण ने आराधना का पर्स पार्क में फेंक दिया और उसे दबोच लिया. फिर उस के गले में रस्सी का फंदा कसते हुए बोला, ‘‘आराधना, तू मेरी नहीं हुई तो मैं किसी और की भी नहीं होने दूंगा.’’

उस के बाद उस ने फंदा तभी गले से निकाला, जब उस के प्राणपखेरू उड़ गए. हत्या करने के बाद प्रवीण ने आराधना के शव को घसीट कर झाडि़यों में छिपाया और फिर मोटरसाइकिल से फरार हो गया. हत्यारोपी प्रवीण कुमार से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे 19 दिसंबर, 2019 को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट महेंद्र कुमार गर्ग की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया. आराधना के दोनों बच्चे नाना रामप्रकाश गौतम के संरक्षण में पल रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Chhattisgarh Crime : गमछे से घोंटा प्रेमिका का गला

Chhattisgarh Crime : जवानी की दहलीज पर चढ़ते ही मंजू ने शोएब अहमद अंसारी उर्फ सैफ से न सिर्फ दोस्ती की बल्कि कोर्ट में शादी भी कर ली. बाद में जब मंजू ने सैफ से किनारा करना चाहा तो उस ने न सिर्फ मंजू को बल्कि उस की बहन मनीषा को अपने गुस्से का शिकार बना डाला…

नए साल के पहले दिन मंजू अपनी बहन मनीषा के साथ मूवी देखने रायगढ़ के मल्टीप्लैक्स पहुंची तो वहां शोएब अहमद अंसारी उर्फ सैफ उस का बड़ी बेताबी से इंतजार कर रहा था. मंजू सिदार सैफ से पहली दफा मिलने वाली थी. लगभग एक साल से दोनों फेसबुक और वाट्सऐप पर ही बातें करते रहे थे. उन की दोस्ती फेसबुक के माध्यम से ही हुई थी. धीरेधीरे उन की दोस्ती परवान चढ़ती गई. उन्होंने तय किया कि पहली जनवरी को वे एक साथ पिक्चर देखने चलेंगे. जब मंजू सिदार और सैफ ने एकदूसरे को देखा तो दोनों बहुत खुश हुए. शोएब अहमद अंसारी ने मंजू को बताया कि उस ने टिकट ले ली है और मूवी शुरू होने में अभी थोड़ा समय है. क्यों न पास के रेस्टोरेंट में बैठ कर कुछ बातें कर लें.

मंजू की स्वीकृति के बाद दोनों रेस्टोरेंट में जा कर बैठ गए. एकदूसरे को निकटता से समझने के प्रयास में मंजू और सैफ बातों में डूब गए. सैफ मंजू को पहली बार देख कर उस का दीवाना ही हो गया. मंजू की बातों से सैफ मंत्रमुग्ध सा हो गया. उस दिन उस ने मौका हाथ से नहीं जाने दिया. पिक्चर देखने के बाद तीनों एक गार्डन में बैठ गए, जहां दोनों ने अपने प्यार का इजहार कर दिया. सैफ ने तो यहां तक कह दिया कि मैं शादी करूंगा तो तुम से ही करूंगा. मंजू पहली ही मुलाकात में सैफ के व्यवहार से प्रभावित हो गई. वह बोली, ‘‘सैफ, मैं तुम्हें पसंद करती हूं. मगर शादी के लिए इतनी जल्दबाजी ठीक नहीं. अभी हम एकदूसरे को और समझ लें. वैसे भी अभी मेरी नर्सिंग की पढ़ाई पूरी नहीं हुई है. मैं रायपुर जा कर पढ़ाई पूरी कर लूं.’’

‘‘ठीक है, तुम सोच लो, मैं तो तुम्हारा हो गया. समझ लो, मैं तुम्हारी इच्छा का गुलाम हूं. जब तुम कहोगी, तब शादी कर लेंगे.’’ सैफ ने कहा.

यह सुन मंजू हंसते हुए बोली, ‘‘तुम मुसलिम हो न, मुझे जाने क्यों मुसलिम बहुत अच्छे लगते हैं. मैं शादी करूंगी, मगर थोड़ा समय दो.’’

मंजू के मुसलमान वाले फिकरे को सुन कर सैफ के कान खड़े हो गए. वह सोचने लगा कि मंजू कहीं उस के मुसलिम होने की वजह से उस से निकाह नहीं करना चाहती या और कोई बात है. सैफ ने मंजू की आंखों में झांकते हुए प्यार से कहा, ‘‘मंजू, अगर तुम्हें आपत्ति है तो मैं तुम्हारी खातिर अपना धर्म बदलने को तैयार हूं.’’

‘‘नहींनहीं, तुम्हें धर्म बदलने की कोई जरूरत नहीं है. न तुम धर्म बदलो और न मैं बदलूंगी. यह तय है.’’ मंजू बोली.

मंजू की बात सुन कर सैफ खुश हुआ. मंजू ने उस से कहा, ‘‘सैफ, मैं अभी पढ़ना चाहती हूं. मेरे जीवन का उद्देश्य पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ा होना है. मैं नर्स बनना चाहती हूं. बस तुम मुझे थोड़ा समय दो.’’

सैफ ने उस की बातों पर अपनी स्वीकृति दे दी. इस घटनाचक्र के बाद मंजू सिदार और सैफ अकसर मिलते और साथसाथ समय बिताते. उन की दोस्ती ने रंग लाना शुरू कर दिया. उन का प्यार बढ़ता गया. शोएब अहमद अंसारी उर्फ सैफ रायगढ़ के बोइरदादर कस्बे का रहने वाला था. रायगढ़ में उस की मोबाइल फोन और एक्सेसरीज की दुकान थी. एक दिन जब दोनों मिले तो मंजू बोली, ‘‘सैफ, मैं अगले हफ्ते रायपुर जाऊंगी, क्योंकि वहीं रह कर मुझे पढ़ाई पूरी करनी है.’’

अब मंजू को पढ़ाई के लिए 2 साल रायपुर में रहना था. त्यौहार आदि पर वह साल में 1-2 बार ही रायगढ़ आ सकती थी. मंजू की बातें सुन कर सैफ निराश हुआ. उसे निराश होते देख मंजू चहकी, ‘‘तुम इतने दुखी क्यों हो गए?’’

‘‘मैं क्या कहूं,’’ सैफ ने दुखी स्वर में कहा, ‘‘मैं तो तुम्हारा गुलाम हूं, जो कहोगी सुनूंगा, करूंगा.’’

मंजू ने हंस कर कहा, ‘‘मगर एक खुशी की खबर है.’’

‘‘क्या?’’ सैफ उत्सुक हुआ.

‘‘उस से पहले हम शादी कर सकते हैं, अगर तुम चाहो तो…’’

‘‘यह तुम क्या कह रही हो? अंधे से पूछ रही हो कि आंखें चाहिए, मैं तैयार हूं.’’ वह खुश हो कर बोला.

इस के बाद फैसला कर दोनों ने 21 मार्च, 2019 को रायगढ़ से नोटरी पब्लिक शपथ पत्र बनवा लिया और कोर्ट में औपचारिक रूप से विवाह कर लिया. इस विवाह के साक्षी दोनों के नजदीकी मित्र बने. दोनों ने तय किया कि कुछ समय दोनों अलगअलग ही रहेंगे, मगर जल्द ही एकदूसरे के हो जाएंगे. मंजू छत्तीसगढ़ के जिला रायगढ़ के विनीतानगर वार्ड में रहने वाले गजाधर सिदार की बेटी थी. गजाधर रायगढ़ तहसील में पटवारी हैं. उन की 2 बेटियां थीं मंजू और मनीषा. दोनों बेटियों को वह उन के मनमुताबिक पढ़ा रहे थे. दोनों बहनों में आपस में बहुत प्यार था. मंजू सिदार की छोटी बहन मनीषा कहने को तो उस की बहन थी, लेकिन वह उस की दोस्त भी थी. वह भी मंजू और सैफ के विवाह की गवाह थी. एक दिन उस ने अपनी मां प्रभावती को बातों ही बातों में बता दिया कि मंजू दीदी ने शादी कर ली है.

यह बात जब मां प्रभावती और पिता गजाधर सिदार को पता चली तो दोनों मंजू से बेहद नाराज हुए. मां प्रभावती तो मानो टूट ही गईं. उस ने मंजू को प्यार से समझाया. साथ ही दुहाई दे कर कहा कि तुम गलत दिशा में जा रही हो. तुम ने जो कदम उठाया है, उस से तुम्हारा भविष्य अंधकारमय हो जाएगा. मां की सलाह से धीरेधीरे मंजू के विचार बदल गए. उसे समझ में आने लगा कि उस ने जीवन की बहुत बड़ी भूल की है. सैफ और उस के रास्ते बिलकुल अलग हैं. जब मंजू को यह बात समझ में आई तो धीरेधीरे उस ने सैफ से कन्नी काटनी शुरू कर दी. इतना ही नहीं, उस ने सैफ से बातचीत भी बहुत कम कर दी. सैफ समझ नहीं पा रहा था कि आखिर मंजू उसे इग्नोर क्यों कर रही है.

एक दिन दोनों की मुलाकात हुई तो सैफ ने बहुत सारे गिफ्ट, जरूरी सामान और पैसे मंजू को देने चाहे. मगर मंजू ने लेने से इनकार करते हुए कहा, ‘‘सैफ, तुम्हारे और मेरे रास्ते अब जुदाजुदा हैं.’’

सैफ मानो आसमान से जमीन पर गिर पड़ा. वह अचंभित सा मंजू को देखता रह गया. मंजू ने आगे कहा, ‘‘सैफ, अच्छा तो यही रहेगा कि अब तुम मुझे भूल जाओ.’’ इस पर सैफ बोला, ‘‘मंजू, तुम ने मेरे साथ ब्याह किया है, कोर्ट मैरिज. और अब कहती हो भूल जाऊं. यह भला कैसे हो सकता है. मंजू अगर ऐसी बात थी तो तुम्हें विवाह नहीं करना चाहिए था. यह तो सरासर धोखा है.’’

‘‘नहींनहीं, यह धोखा नहीं बल्कि हमारा बचपना था. मुझ से भूल हुई. बिना मांबाप, परिवार की सहमति के भला विवाह कैसे हो सकता है?’’ वह बोली.

‘‘हम ने कोर्टमैरिज की है, उस का क्या होगा?’’

‘‘उन कागजों को जला दो.’’ मंजू ने सपाट स्वर में कहा.

मंजू की कठोरता देख शोएब अंसारी उर्फ सैफ का दिल टूट गया. उस की आंखों के आगे जैसे अंधेरा घिर आया. उस ने कातर स्वर में कहा, ‘‘मंजू, तुम चाहे जो सोचो, जो कहो, मगर मैं साफसाफ कहता हूं मैं ने सच्चे दिल से तुम्हें चाहा है और सदैव चाहता रहूंगा. मैं तुम्हें अपनी पत्नी स्वीकार कर चुका हूं.’’

मंजू सैफ की आंखों में देखती रही. उसे लगा सैफ उसे सचमुच दिल से चाहता है, उस का सिर घूम गया. फिर वह अपने घर चली गई. 10 दिसंबर, 2019 को मंगलवार था. उस दिन छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के टिकरापारा के गोदावरी नगर स्थित फ्लैट के बाहर शोएब अहमद अंसारी उर्फ सैफ अपने 2 साथियों गुलाम मुस्तफा (18 वर्ष) और रामलाल (15 वर्ष) के साथ खड़ा था. मंजू वहीं फ्लैट में रह कर अपनी पढ़ाई कर रही थी. उस समय उस की छोटी बहन मनीषा भी उस के पास आई हुई थी. सैफ ने मुस्तफा से कहा, ‘‘देखो, मंजू ने मेरे साथ जो धोखा किया है, उसे मैं अब और बरदाश्त नहीं कर पा रहा हूं. मंजू मेरे साथ ऐसा करेगी, मैं ने कभी सोचा नहीं था. अब मैं ने फैसला कर लिया है कि ऐसी धोखेबाज को सबक जरूर सिखाना है. यानी उस का काम तमाम करना है.

अगर तुम मेरा यह काम कर दोगे, तो मैं तुम्हें 7 लाख रुपए दूंगा.’’ कहतेकहते उस का चेहरा गुस्से से लाल हो गया. सैफ की बात सुन गुलाम मुस्तफा बोला, ‘‘देख यार सैफ, तू गुस्सा न हो. तू उस से बात कर. हो सकता है अभी भी वह तेरी हो जाए. मगर सुन ले हमारे पैसे तुम्हें दोनों ही हालत में देने होंगे.’’

‘‘मेरा वादा है, पैसे जरूर दूंगा. बस मेरा काम हो जाए.’’ सैफ ने कहा.

‘‘आओ, फिर हम अपना काम करें.’’ गुलाम मुस्तफा ने कहा. मंजू घर में है या नहीं, पता लगाने के लिए सैफ ने उस के मोबाइल पर फोन कर कहा, ‘‘मंजू, मैं तुम से आखिरी बार कुछ बात करना चाहता हूं. उस के बाद तुम्हें कभी परेशान नहीं करूंगा.’’

मंजू सुबह का नाश्ता बना कर नर्सिंग कालेज जाने के लिए तैयार थी. उसे वहां 12 बजे पहुंचना था. उस ने सैफ को फ्लैट पर बुला लिया. सैफ और मुस्तफा फ्लैट में चले गए और रामलाल फ्लैट के बाहर ही खड़ा रहा. फ्लैट में प्रवेश करते ही सैफ ने देखा मंजू उस समय अपनी छोटी बहन मनीषा के साथ नाश्ता कर रही थी.  सैफ पास पहुंच कर बोला, ‘‘मंजू, मैं आखिरी बार तुम्हारे पास आया हूं, क्योंकि मैं रोजरोज की बातों से आजिज आ चुका हूं. बताओ, तुम मेरे साथ ऐसा क्यों कर रही हो?’’

यह सुनते ही मंजू और मनीषा नाश्ता छोड़ उस की ओर देखने लगीं. तभी मंजू बोली, ‘‘सैफ, मैं तो तुम्हें पहले ही बोल चुकी हूं कि अब तुम मुझे भूल जाओ. जो हुआ, वह भी भूल जाओ.’’

मंजू की तल्ख बातें सुन कर सैफ आपे में नहीं रहा. वह गुस्से में बोला, ‘‘तुम ने रमन के साथ टिकटौक पर वीडियो क्यों डाला? क्या यह वीडियो अपलोड करना तुम्हारी फितरत को बयां नहीं करता?’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘सीधी सी बात है, तुम ने मुझे बरबाद किया अब रमन को बरबाद करोगी. पहले मेरे साथ कोर्टमैरिज की, अब उसे फंसा रही हो.’’

‘‘नहीं, मेरी रमन के साथ शादी होने जा रही है.’’ मंजू ने एकाएक जैसे बड़े रहस्य से परदा उठा दिया.

‘‘मुझे छोड़ कर तुम किसी और के साथ शादी नहीं कर सकती.’’ सैफ तल्ख हो गया.

मंजू भी आगबबूला हो गई. दोनों में कहासुनी बढ़ती गई.

तभी सैफ ने वहीं रखा फ्राइंग पैन उठा कर मंजू के सिर पर दे मारा. जिस से मंजू की चीख निकल गई और उस के सिर से खून बहने लगा. वह वहीं ढेर हो गई. बहन की गंभीर हालत देख कर मनीषा सैफ पर हमलावर हो उठी तो उस ने उसी फ्राइंग पैन से कई वार कर के मनीषा को भी मरणासन्न कर डाला. इस बीच गुलाम मुस्तफा उस का बराबर साथ दे रहा था. वह अपना गमछा ले कर मंजू के पास पहुंचा और गमछे से मंजू का गला घोंट दिया. फिर उसी गमछे से मनीषा का भी गला घोंट दिया, जिस से दोनों की ही मौत हो गई.

सैफ और गुलाम मुस्तफा दोनों ने उन के मोबाइल उठा कर अपने पास रख लिए. अपना काम निपटा कर जब वह घर से बाहर भागने को हुए तो घर के बाहर से किसी की आवाज सुनाई दी. आवाज सुन कर वे घबरा गए, जिस से जल्दबाजी में गुलाम मुस्तफा का एक जूता किसी चीज में फंस कर वहीं रह गया. वह दरवाजा खोल भाग खड़ा हुआ. इस दरमियान उस फ्लैट के बाहर दूसरी मंजिल पर लगे सीसीटीवी कैमरे में वे सब कैद हो गए. मंजू और मनीषा की चीखें सुन कर आसपड़ोस वाले भी वहां आ गए. उन्होंने फ्लैट की खिड़की से झांक कर देखा तो दोनों लड़कियों को लहूलुहान देख कर वह माजरा समझ गए.

उन्होंने सूचना फ्लैट मालिक इंद्रजीत सिंह को दे दी. इंद्रजीत फ्लैट पर पहुंचे तो वहां रहने वाली मंजू और उस की बहन को लहूलुहान हालत में देख कर वह घबरा गए. उन्होंने तुरंत फोन कर के थाना तिकरापारा पुलिस को सूचना दी. सूचना पा कर टीआई कय्यूम मेमन पुलिस मौके पर पहुंच गए. उन्होंने सब से पहले दोनों बहनों को रायपुर के अंबेडकर हौस्पिटल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया. अस्पताल में 2 पुलिसकर्मियों को छोड़ कर टीआई कय्यूम मेमन घटनास्थल पर पहुंचे. सूचना पा कर एसपी आरिफ एच. शेख और एएसपी (क्राइम) पंकज चंद्रा भी घटनास्थल पर पहुंचे. स्थिति का मुआयना कर उन्होंने इस दोहरे हत्याकांड को खोलने के लिए 5 पुलिस टीमें बनाईं. टीआई ने मंजू के घर भी फोन कर सूचना दे दी.

कुछ देर बाद मंजू के मातापिता और अन्य लोग अंबेडकर अस्पताल की मोर्चरी पहुंच गए. दोनों बेटियों के शव देख कर वे फूटफूट कर रोने लगे. पिता गजाधर सिदार से पुलिस ने पूछताछ की तो उन्होंने रायगढ़ के ही रहने वाले शोएब अहमद अंसारी उर्फ सैफ पर अपना शक जताया. उन्होंने बताया कि उस ने उन की बेटी मंजू से कथित रूप से विवाह कर लिया था. मंजू जब रावतपुरा नर्सिंग कालेज, रायपुर में पढ़ाई कर रही थी, तब सैफ लगातार फोन कर के उसे परेशान किया करता था. उन्होंने यह भी बताया कि सैफ ने उन की बेटी के कुछ वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल किए थे. तब उन्होंने उस के खिलाफ मामला दर्ज कराया था. जिस पर पुलिस ने उसे पोक्सो एक्ट के तहत गिरफ्तार कर जेल भेजा था.

गजाधर सिदार से यह जानकारी मिलने के बाद टीआई कय्यूम मेमन ने एक पुलिस टीम रायगढ़ के बोइरदादर भेजी, जहां का सैफ रहने वाला था. मगर पुलिस को जानकारी मिली कि वह पिछले 2 दिनों से गायब है. पुलिस ने उस के मोबाइल को ट्रेस करना शुरू किया और सूत्रों से उस की जानकारी लेनी आरंभ की तो खबर मिली कि सैफ बिलासपुर से पेंड्रा के शहडोल मैहर होता हुआ रीवा पहुंच चुका है. रायपुर पुलिस ने 11 दिसंबर, 2019 को रीवा (मध्य प्रदेश) पुलिस की सहायता से तोपखाना के निकट छिप कर रह रहे सैफ को अपनी गिरफ्त में ले लिया. सैफ से पूछताछ के बाद पुलिस ने गुलाम मुस्तफा को रायगढ़ से और नाबालिग रामलाल को जिला चांपा जांजगीर से अपनी गिरफ्त में ले लिया.

उन्होंने इकबालिया बयान में स्वीकार किया कि उन्होंने मंजू और मनीषा की हत्या में सैफ की मदद की थी. सैफ ने बताया कि मंजू ने अपनी मरजी से उस के साथ कोर्टमैरिज की थी. मगर उस के बाद मंजू अपना रंग दिखाने लगी, जिस से वह बहुत निराश हो गया था. मगर जब एक लड़के के साथ उस ने टिकटौक वीडियो सोशल मीडिया पर जारी किया तो उस के तनबदन में आग लग गई और उस ने उसी दिन निर्णय लिया कि अब मंजू को मार डालेगा. इस बारे में उस ने अपने दोस्तों गुलाम मुस्तफा और रामलाल के साथ प्लानिंग की. उस की मंशा सिर्फ मंजू की हत्या करने की थी, लेकिन घटना के समय मनीषा ने जिस तरह विरोध करना शुरू किया तो गुस्से में उन्होंने उस की भी हत्या कर दी.

पुलिस ने हत्यारोपी शोएब अहमद अंसारी, गुलाम मुस्तफा और रामलाल को भादंवि की धारा 302, 201, 34 के तहत गिरफ्तार कर उन्हें मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी, रायपुर के न्यायालय में पेश किया, जहां से तीनों आरोपियों को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है. कथा में रामलाल परिवर्तित नाम है.

 

Uttar Pradesh Crime : प्रेमिका के भाई को मारा फिर बोरी में बंद कर रेत में दफना डाला

Uttar Pradesh Crime : आजकल के ज्यादातर युवा तो प्यार को जानते हैं और जानना चाहते हैं. उन के लिए शारीरिक आकर्षण ही प्यार होता है. इसी आकर्षण को प्यार समझ कर वे ऐसीऐसी कंदराओं में खो जाते हैं, जो अपने अंदर का अंधेरा उन के जीवन में भर देती हैं. ऐसा ही विकास के साथ भी हुआ. आखिर…  

रोजाना की तरह पूनम उस दिन भी स्कूल जाने के लिए अपनी साइकिल से निकली तो रास्ते में पहले से उस का इंतजार कर रहे विकास ने उस के पीछे अपनी साइकिल लगा दी. पूनम ने विकास को पीछे आते देखा तो अपनी साइकिल की गति और तेज कर दी. विकास अपनी साइकिल की रफ्तार और तेज कर के पूनम के आगे जा कर इस तरह खड़ा हो गया कि अगर वह अपनी साइकिल के ब्रेक लगाती तो जमीन पर गिर जाती. साइकिल संभालते हुए पूनम साइकिल से उतर कर खड़ी हुई और बोली, ‘‘देख नहीं रहे हो, मैं स्कूल जा रही हूं. आज वैसे भी देर हो गई है. अगर हमें किसी ने देख लिया तो बिना मतलब बात का बतंगड़ बनते देर नहीं लगेगी.’’

‘‘जिसे जो बातें बनानी हैं, बनाता रहे. मुझे किसी की परवाह नहीं है.’’ विकास ने बड़े प्यार से अपनी बात कह डाली.

पूनम स्कूल जाने के लिए मन ही मन बेचैन थी. उस ने विकास की तरफ देखा और उस से अनुरोध करते हुए बोली, ‘‘देखो, मुझे देर हो रही है. अभी मुझे स्कूल जाने दो. मैं तुम से बाद में मिल लूंगी. तुम्हें जो बात करनी हो, कर लेना.’’

विकास पूनम की बात सुन कर नरम पड़ गया. वह अपनी साइकिल को साइड में कर के पूनम के चेहरे को देखते हुए बोला, ‘‘पूनम, तुम मेरी आंखों में झांक कर देखो, इस में तुम्हें बेपनाह मोहब्बत नजर आएगी. तुम्हें पता है, तुम्हारी चाहत में मैं सब कुछ भूल गया हूं. मुझे दिनरात बस तुम ही तुम नजर आती हो.’’

‘‘वह सब तो ठीक है विकास, पर तुम्हें यह तो पता है कि हम एक ही जगह के हैं और हमारे तुम्हारे घर के बीच बहुत ज्यादा फासला नहीं है. अगर हम दोनों इस तरह प्यारमोहब्बत की पेंग बढ़ाएंगे तो मोहल्ले वालों से हमारा प्रेम कब तक छिपा रहेगा

‘‘तुम मेरे पिता को तो जानते हो, बातबात में गुस्सा हो जाते हैं. अगर उन्हें हम दोनों के प्रेम की भनक लगी तो मैं बदनाम हो जाऊंगी. फिर मेरे पिता मेरी क्या गत बनाएंगे, यह तो ऊपर वाला ही जाने.’’ वह बोली.

‘‘पूनम, मैं सपने में भी तुम्हें बदनाम करने की नहीं सोच सकता. तुम तो मेरी मोहब्बत हो और मोहब्बत के लिए लोग जाने क्याक्या कर जाते हैं. तुम सिर्फ जरा सी बदनामी से डरती हो. पता है, मैं तुम से मिलने और बातें करने के लिए क्याक्या तिकड़म भिड़ाता हूं

‘‘तब कहीं जा कर तुम से तनहाई में मुलाकात होती है. देखो पूनम, मैं तुम्हें बदनाम नहीं होने ही दूंगा. और हां, मैं ने निर्णय ले लिया है कि शादी करूंगा तो सिर्फ तुम से. मेरी दुलहन तुम्हारे अलावा कोई दूसरी नहीं होगी, फिर बदनामी कैसी.’’

पूनम कुछ देर शांत मन से विकास की बातें सुनती रही. फिर लंबी सांस ले कर बोली, ‘‘अच्छा, अब बस करो, मैं स्कूल जा रही हूं. मुझे काफी देर हो चुकी है.’’

पूनम ने इतना कह कर अपनी साइकिल आगे बढ़ाई ही थी कि विकास मुसकराता हुआ बोला, ‘‘हां जाओ, लेकिन मिलने के लिए थोड़ा समय निकाल लिया करो.’’

पूनम बिना कुछ बोले अपने स्कूल की ओर बढ़ गई. पूनम के स्कूल जाने वाले रास्ते के उस मोड़ के पास विकास अकसर उस का रास्ता रोक कर कभी प्रेम से तो कभी थोड़ा गुस्से में अपने प्रेम का इजहार करने लगता था. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिला रामपुर, थाना स्वार की चौकी मसवासी के अंतर्गत एक मोहल्ला है भूबरा. वीर सिंह अपने परिवार के साथ इसी मोहल्ले में रहता था. परिवार में उस की पत्नी के अलावा 3 बेटे और 2 बेटियां थीं. वीर सिंह और उस की पत्नी प्रेमवती दोनों दिव्यांग थे. वीर सिंह हाईस्कूल पास था. वह मोहल्ले के छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता था. बड़ा बेटा गिरीश नौकरी करता था. बापबेटे मिल कर परिवार का बोझ उठाते थे.

वीर सिंह की बेटी पूनम खूबसूरत भी थी और चंचल भी. वीर सिंह और प्रेमवती उसे बहुत चाहते थे. पूनम एक स्थानीय स्कूल में दसवीं में पढ़ती थी. 15 वर्षीय पूनम उम्र के उस पायदान पर खड़ी थी, जहां शरीर में काफी बदलाव जाते हैं और दिल में उमंग की लहरें हिचकोले लेने लगती हैं. पूनम पहले से ही सुंदर थी, लेकिन जब कुदरत ने उस के बदन को खूबसूरती के सांचे में ढाल कर आकर्षक आकार दिया तो उस की सुंदरता कयामत ढाने लगी, जिस का पूनम को भी अहसास हो गया था. अपनी सुंदरता पूनम को लुभाती तो थी, लेकिन लोगों की चुभती नजरों से बचने के लिए उसे तरहतरह के जतन करने पड़ते थे. वह लोगों की गिद्ध दृष्टि को अच्छी तरह पहचानती थी. लेकिन विकास उन सब से अलग था. उस की आंखों में पूनम को अपने लिए अलग तरह की चाहत दिखती थी. विकास स्मार्ट भी था और खूबसूरत भी.

विकास मौर्य भी भूबरा मोहल्ले में ही रहता था. पूनम के घर से उस के घर की दूरी महज ढाई सौ मीटर थी. विकास के पिता नरपाल मौर्य खेतीकिसानी का काम करते थे. घर में पिता के अलावा उस की मां जगदेवी, एक बड़ा भाई और 3 बहनें थीं. वीर सिंह और नरपाल मौर्य के परिवारों का एकदूसरे के घर आनाजाना था. इसी आनेजाने में जब विकास की नजर जवान होती पूनम पर पड़ी तो वह बरबस उस की ओर आकर्षित होगया और उसे मन ही मन चाहने लगालेकिन पूनम के घर वालों की वजह से उसे अकेले में पूनम से बात करने का मौका नहीं मिल पाता था. विकास हमेशा इस फिराक में रहता था कि मौका मिले तो पूनम से बात करे.

संयोग से एक साल पहले विकास को मौका मिल गया. पूनम के घर वाले किसी शादी समारोह में गए हुए थे. पूनम घर पर अकेली थी. यह पता चलते ही विकास बहाने से वीर सिंह के घर पहुंच गया और दरवाजे पर दस्तक दी. पूनम उस समय पढ़ रही थी. दस्तक सुन कर उस ने दरवाजा खोला तो सामने विकास खड़ा था. विकास को देख वह बोली, ‘‘सब लोग शादी में गए हैं. घर में कोई नहीं है.’’

विकास ने पूनम की बात खत्म होते ही कहा, ‘‘देखो पूनम, आज मैं सिर्फ तुम से ही मिलने आया हूं. चाचा से मिलना होता तो कभी भी मिल लेता.’’

‘‘ठीक है, अंदर जाओ और बताओ मुझ से क्यों मिलना है.’’ पूनम के कहने पर विकास अंदर गया

विकास के अंदर आते ही पूनम फिर से बोली, ‘‘हां विकास, बोलो, क्या कहना चाहते हो?’’

विकास एकटक पूनम की ओर देखते हुए बोला, ‘‘दरअसल, मैं बहुत दिनों से तुम से एकांत में मिलना चाह रहा था. मैं तुम्हें दिल से चाहने लगा हूं. मुझे तुम से प्यार हो गया है. दिल नहीं माना तो तुम से मिलने चला आया.’’

विकास आगे कुछ और बोलता, इस से पहले ही पूनम के होंठों पर हंसी गई. वह मुसकराते हुए बोली, ‘‘आतेजाते तुम मुझे जिस तरह से देखते थे, उस से ही मुझे आभास हो गया था कि जरूर तुम्हारे दिल में मेरे लिए कोई चाहत है.’’

‘‘इस का मतलब तुम भी मुझे पसंद करती हो. तुम्हारी इन बातों से विश्वास हो गया कि हम दोनों के दिल में एकदूसरे के प्रति प्यार है.’’ विकास कुछ और बोल पाता, तभी पूनम बोल पड़ी, ‘‘मम्मीपापा के आने का समय हो गया है. इसलिए तुम अभी यहां से चले जाओ. मुझे मौका मिला तो मैं फिर बात कर लूंगी.’’

पूनम के इतना कहने के बाद भी विकास वहीं खड़ा रहा और पूनम की खूबसूरती के कसीदे पढ़ता रहा. पूनम से रहा नहीं गया तो वह जबरदस्ती विकास का हाथ पकड़ कर उसे मेनगेट तक ले आई और उसे बाहर कर के मेनगेट बंद कर लिया. लेकिन जातेजाते विकास पूनम को यह याद कराना नहीं भूला कि उस ने बाहर मिलने का वादा किया है. पूनम अपने वादे को नहीं भूली और अगले दिन स्कूल जाते समय रास्ते में विकास दिखा तो उस ने इशारे से बता दिया कि स्कूल से वापस लौटते समय उस से मिलेगीविकास समय से पहले ही पूनम के वापस लौटने वाले रास्ते पर उस का इंतजार करने लगा. पूनम स्कूल से लौटी तो विकास से उस की मुलाकात हुई. उस ने विकास के प्यार को स्वीकार करते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारे प्यार को स्वीकार कर रही हूं और चाहती हूं कि हम बदनाम हों. इसलिए तुम्हें भी सावधान रहना होगा ताकि किसी को हमारे प्यार की भनक लगे.’’

विकास पूनम के हाथों को अपने हाथों में लेता हुआ बोला, ‘‘तुम भी कैसी बातें करती हो? क्या कभी कोई प्रेमी चाहेगा कि उस की प्रेमिका की समाज में रुसवाई हो? तुम मुझ पर भरोसा रखो.’’

समय बीतता रहा. दोनों लोगों की नजरों से बच कर चोरीछिपे मिलते रहे. दोनों का प्यार इतना बढ़ गया कि वे एकदूसरे के लिए कुछ भी कर सकते थे. यहां तक कि एकदूजे के लिए जान भी दे सकते थे. पर एकदूसरे से अलग होना उन्हें किसी भी हाल में मंजूर नहीं था. बीते 9 दिसंबर को पूनम का सब से छोटा 7 वर्षीय भाई अंश दोपहर 2 बजे के करीब घर के बाहर खेल रहा था, लेकिन अचानक वह लापता हो गया. बडे़ भाई गिरीश ने अपने भाईबहनों के साथ उसे काफी खोजा लेकिन उस का कोई पता नहीं चला. एक दिन पहले ही किसी अनजान युवक ने अंश को 10 रुपए दिए थे. यह बात अंश ने घर कर बताई थी. लेकिन घर के लोगों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया था, इस के अगले दिन यह घटना घट गई

जब किसी तरह से अंश का पता नहीं चला तो 10 दिसंबर, 2019 को गिरीश ने स्वार थाने जा कर इंसपेक्टर सतेंद्र कुमार सिंह को पूरी बात बताई. सतेंद्र सिंह ने गिरीश की तहरीर पर अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 363 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. पुलिस ने गिरीश और उस के पिता के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगवा दिए, ताकि अपहर्त्ता फिरौती के लिए फोन करें तो ट्रेस किया जा सके. 11 दिसंबर, 2019 को अपहर्त्ता ने वीर सिंह के नंबर पर काल कर के अंश को रिहा करने के एवज में 15 लाख रुपए की फिरौती मांगी. सर्विलांस टीम और अंश के घर वालों द्वारा सूचना देने पर मसवासी चौकी इंचार्ज कुलदीप सिंह चौधरी अंश के घर गए और उस के घर वालों से पूछताछ की.

जिस नंबर से काल की गई थी, वह फरजी आईडी पर खरीदा गया था. जिस मोबाइल में वह सिम डाला गया था, उस मोबाइल में उस से पहले जो सिम डाले गए थे, उन की जांचपड़ताल करने के बाद पुलिस अपहर्त्ता तक पहुंच गई. वह कोई और नहीं, अंश की बड़ी बहन पूनम का प्रेमी विकास मौर्य था. 12 दिसंबर को इंसपेक्टर सतेंद्र सिंह और चौकी इंचार्ज कुलदीप सिंह चौधरी ने मानपुर तिराहे से विकास मौर्य को उस के साथी अनुराग शर्मा के साथ गिरफ्तार कर लिया. दोनों से कड़ाई से पूछताछ की गई तो दोनों ने अपने 3 अन्य साथियों विकास सैनी, रवि सैनी और रोहित के नाम बताए. इन सब ने साथ मिल कर अंश का अपहरण कर हत्या कर देने की बात कबूल कर ली. साथ ही हत्या के पीछे की कहानी भी बयान कर दी

विकास मौर्य और पूनम का प्यार दिनोंदिन परवान चढ़ रहा था, वह भी सब की नजरों से बच कर. लेकिन एक दिन पूनम के छोटे भाई अंश ने दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में एक साथ देख लिया. पूनम ने जैसेतैसे अंश को समझा दिया और उसे अपने साथ घर ले गई, लेकिन विकास इस बात से डर गया कि कहीं वह घर वालों को उन दोनों के बारे में बता दे. इसी वजह से उस ने अंश का अपहरण कर उसे मार देने का फैसला किया. इस बारे में उस ने पूनम को भनक तक नहीं लगने दी. उस ने अपने दोस्तों सीतारामपुर गांव निवासी अनुराग शर्मा, विकास सैनी, रवि सैनी और भूबरा मोहल्ला निवासी रोहित से बात की. दोस्ती की खातिर ये सब विकास का साथ देने को तैयार हो गए.

8 दिसंबर, 2019 को अंश घर के बाहर बच्चों के साथ खेल रहा था. तभी विकास के साथ अनुराग वहां गया. विकास ने अनुराग को अंश की तरफ इशारा कर के उस की पहचान कराई. अनुराग अंश के पास पहुंचा और उस से प्यार से बात की, साथ ही उसे 10 रुपए दिए. मासूम अंश ने उस से 10 रुपए ले लिए. अनुराग उस से दोस्ती कर के चला गया. अंश ने घर जा कर इस अनजान दोस्त से मिले पैसों के बारे में बताया तो किसी ने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया. अगले दिन 9 दिसंबर को योजनानुसार दोपहर 2 बजे विकास अनुराग के साथ बाइक से अंश के घर के पास पहुंचा. रोज की तरह उस समय अंश बच्चों के साथ खेल रहा था. विकास ने उस से कहा कि उस के बड़े भैया गिरीश उसे बुला रहे हैं. वह आगे खड़े हैं. मासूम अंश उन के साथ बाइक पर बैठ गया.

आगे कुछ दूरी पर विकास सैनी, रवि और रोहित खड़े थे. अंश को उन के साथ देख कर वे भी उन के साथ हो लिए. अंश को वे बेलवाड़ा गांव के जंगल में ले गए. वहां रुमाल से बनाया फंदा अंश के गले में डाल कर कस दिया, जिस से अंश की दम घुटने से मौत हो गई. इस के बाद अंश की लाश को एक प्लास्टिक की बोरी में डाल कर रेत में दबा दिया. इस के बाद 11 दिसंबर को विकास ने केस की दिशा मोड़ने के लिए फरजी सिम से अंश के पिता को काल कर के 15 लाख रुपए की फिरौती मांगी. इस से केस की दिशा तो नहीं बदली, लेकिन उस के पकड़े जाने का रास्ता जरूर खुल गया. विकास की यह गलती उसे और उस के साथियों को भारी पड़ी.

12 दिसंबर को ही विकास मौर्य और अनुराग शर्मा की निशानदेही पर इंसपेक्टर सतेंद्र सिंह और चौकी इंचार्ज कुलदीप सिंह चौधरी ने एसडीएम राकेश कुमार गुप्ता की मौजूदगी में रेत में दबी अंश की लाश बरामद कर ली. इस के बाद मुकदमे में दर्ज धारा 363 को भादंवि की धारा 364, 302, 201, 34 तरमीम कर दिया गया. पुलिस ने 14 दिसंबर, 2019 को मुंशीगंज तिराहे से विकास सैनी और रवि सैनी को भी गिरफ्तार कर लिया

आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी के बाद चारों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश किया गया, जहां से सब को जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक रोहित फरार था.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में पूनम परिवर्तित नाम है.

          

 

 

  

Extramarital Affair : पत्‍नी से अवैध संबंध बनाने वाले दोस्‍त को मार कर दफनाया

Extramarital Affair : पंकज और आशीष की गहरी दोस्ती थी, इसी दोस्ती के चलते आशीष और पंकज की पत्नी अनीता के बीच नाजायज संबंध बन गए. यह बात जब पंकज को पता चली तो उस ने…

मध्य प्रदेश के जिला नरसिंहपुर की एक तहसील है गोटेगांव. इस तहसील क्षेत्र में प्रसिद्ध धार्मिक स्थल झोतेश्वर होने की वजह से छोटा शहर होने के बावजूद गोटेगांव खासा प्रसिद्ध है. गोटेगांव के इलाके में ही एक गांव है कोरेगांव. 8 दिसंबर, 2019 की सुबह कोरेगांव का रहने वाला खुमान ठाकुर झोतेश्वर पुलिस चौकी की इंचार्ज एसआई अंजलि अग्निहोत्री के पास आया. उस ने अंजलि को बताया कि उस के भाई का बड़ा लड़का आशीष 6 दिसंबर को किसी काम से घर से निकला था, लेकिन वापस नहीं लौटा. उन्होंने उसे गांव के आसपास के अलावा सभी रिश्तेदारों के यहां तलाश किया, लेकिन उस की कोई खबर नहीं मिली. उस ने आशीष की गुमशुदगी दर्ज कर उसे तलाशने की मांग की.

एसआई अंजलि अग्निहोत्री ने खुमान से पूछा, ‘‘आप को किसी पर कोई शक हो तो बताओ.’’ खुमान के साथ आए उस के दामाद कृपाल ने बताया कि 6 दिसंबर को उस ने आशीष को उस के दोस्तों पंकज और सुरेंद्र के साथ खेतों की तरफ जाते देखा था. उस ने यह भी बताया कि आशीष के परिवार के लोगों ने जब पंकज और सुरेंद्र को बुला कर पूछताछ की तो वे इस बात से साफ मुकर गए कि आशीष उन के साथ था. इसलिए हमें उन पर शक हो रहा है. चौकी इंचार्ज अंजलि अग्निहोत्री ने खुमान की शिकायत दर्ज कर इस घटना की सूचना तत्काल एसपी गुरुचरण सिंह, एसडीपीओ (गोटेगांव) पी.एस. बालरे और टीआई प्रभात शुक्ला को दे दी.

एसडीपीओ के निर्देश पर चौकी इंचार्ज एसआई अंजलि अग्निहोत्री ने कोरेगांव में पंकज और सुरेंद्र के घर दबिश तो दोनों घर पर ही मिल गए. उन दोनों से पुलिस चौकी में पूछताछ की गई तो पंकज और सुरेंद्र ने बताया कि हम तीनों दोस्त मछली मारने के लिए गांव से बाहर खेतों के पास वाले नाले पर गए थे. मछली मारते समय नाले के पास से जाने वाली मोटरपंप की सर्विस लाइन से आशीष को करंट लग गया, जिस से उस की मौत हो गई. उन्होंने बताया कि आशीष की इस तरह हुई मौत से वे दोनों घबरा गए. डर के मारे उन्होंने आशीष के शव को नाले के समीप ही गड्ढा खोद कर दफना दिया.

पुलिस को पंकज और सुरेंद्र द्वारा गढ़ी गई इस कहानी पर विश्वास नहीं हुआ. उधर आशीष का छोटा भाई आनंद ठाकुर पुलिस से कह रहा था कि उस के भाई की हत्या की गई है. मामला संदेहपूर्ण होने के कारण पुलिस ने गोटेगांव के एसडीएम जी.सी. डहरिया को पूरे घटना क्रम की जानकारी दे कर दफन की गई लाश को निकालने की अनुमति ली. उसी दिन गोटेगांव एसडीपीओ पी.एस. बालरे, फोरैंसिक टीम सहित दोनों आरोपियों को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. आरोपियों की निशानदेही पर कोरेगांव के नाले के पास खेत में बने एक गड्ढे से लाश निकाली गई.

आशीष के पिता ने लाश के हाथ पर बने टैटू को देखा तो वह फूटफूट कर रोने लगा. लाश के गले पर घाव और खून का निशान था. इस से स्पष्ट हो गया कि आशीष की मौत करंट लगने से नहीं हुई, बल्कि उस की हत्या की गई थी. पुलिस ने मौके की काररवाई पूरी करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए जबलपुर मैडिकल कालेज भेज दी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि आशीष की मौत बिजली के करंट से नहीं, बल्कि किसी धारदार हथियार से गले पर किए गए प्रहार से हुई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ कर पुलिस को पूरा यकीन हो गया कि आशीष की हत्या पंकज और सुरेंद्र ने ही की है.

पुलिस ने दोनों आरोपियों से जब सख्ती से पूछताछ की तो पंकज जल्दी ही टूट गया. उस ने पुलिस के सामने आशीष की हत्या करने की बात कबूल ली. आशीष ठाकुर की हत्या के संबंध में उस ने पुलिस को जो कहानी बताई, वह अवैध संबध्ाोंं पर गढ़ी हुई निकली—

आदिवासी अंचल के छोटे से गांव कोरेगांव के साधारण किसान पुन्नूलाल का बड़ा बेटा आशीष और गांव के ही जगदीश ठाकुर के बेटे पंकज की आपस में गहरी दोस्ती थी. हमउम्र होने के कारण दोनों का दिनरात मिलनाजुलना बना रहता था. आशीष पंकज के घर आताजाता रहता था. पंकज ठाकुर की शादी हो गई थी और पंकज की पत्नी अनीता (परिवर्तित नाम) से भाभी होने के नाते आशीष हंसीमजाक किया करता था. एक लड़की के जन्म के बाद भी अनीता का बदन गठीला और आकर्षक था. अनीता आशीष की शादी की बातों को ले कर उस से मजाक किया करती थी. 24 साल का आशीष उस समय कुंवारा था. वह अनीता की चुहल भरे हंसीमजाक का मतलब अच्छी तरह समझता था. देवरभाभी के बीच होने वाली इस मजाक का कभीकभार पंकज भी मजा ले लेता था.

दोस्तों के साथ मोबाइल फोन पर अश्लील वीडियो देख कर आशीष के मन में अनीता को ले कर वासना का तूफान उठने लगा था. इसी के चलते वह अनीता से दैहिक प्यार करने लगा. उसे सोतेजागते अनीता की ही सूरत नजर आने लगी थी. पंकज का परिवार खेतीकिसानी का काम करता था. घर के सदस्य दिन में अकसर खेतों में काम करते थे. इसी का फायदा उठा कर आशीष पंकज की गैरमौजूदगी में अनीता से मिलने आने लगा. करीब 2 साल पहले सर्दियों की एक दोपहर में आशीष पंकज के घर पहुंचा तो अनीता की 2 साल की बेटी सोई हुई थी और अनीता नहाने के बाद घर की बैठक पर कपड़े बदल रही थी.

अनीता के खुले हुए अंगों और उस की खूबसूरती को देखते ही आशीष के अंदर का शैतान जाग उठा. वह घर की बैठक के एक कोने में पड़ी चारपाई पर बैठ गया और अनीता से इधरउधर की बातें करने लगा.

बातचीत के दौरान जैसे ही अनीता उस के पास आई, उस ने उसे अपनी बांहों में भर लिया और बोला, ‘‘भाभी, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं.’’

आशीष के बंधन में जकड़ी अनीता ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘आशीष, छोड़ो, कोई देख लेगा.’’

इस पर आशीष ने उस के गालों को चूमते हुए कहा, ‘‘भाभी, मैं तुम से प्यार करता हूं तो डरना क्या.’’

अनीता कुछ शरमाई तो आशीष ने उसे अपने सीने से दबाते हुए अपने होंठे उस के होंठों पर रख दिए. देखते ही देखते आशीष के कृत्य की इस चिंगारी से उठी वासना की आग ने अनीता को भी अपने आगोश में ले लिया. आपस की हंसीमजाक से शुरू हुआ प्यार का यह सफर वासना के खेल में बदल गया. अनीता अपना सब कुछ आशीष को सौंप चुकी थी. अब जब भी पंकज के घर के लोग काम के लिए निकल जाते, आशीष अनीता के पास पहुंच जाता और दोनों मिल कर अपनी हसरतें पूरी करते. एक बार पंकज ने आशीष को अनीता के साथ ज्यादा नजदीकी से बात करते देख लिया, तब से उस के दिमाग में शक का कीड़ा बैठ गया. उस ने अनीता को आशीष से दूर रहने की हिदायत दे कर आशीष से इस बारे में बात की तो वह दोस्ती की दुहाई देते हुए बोला, ‘‘तुम्हें गलतफहमी हुई है, मैं तो भाभी को मां की तरह मानता हूं.’’

लेकिन प्यार के उन्मुक्त आकाश में उड़ने वाले इन पंछियों पर किसी की बंदिश और समझाइश का कोई असर नहीं पड़ा. आशीष और अनीता के प्यार का खेल बेरोकटोक चल रहा था. जब भी उन्हें मौका मिलता, दोनों अपनी जिस्मानी भूख मिटा लेते थे. पंकज भी अब पत्नी अनीता पर नजर रखने लगा था. पंकज अकसर सुबह को खेतों में काम के लिए निकल जाता और शाम को ही वापस आता था. लेकिन एक दिन जब वह दोपहर में ही घर लौट आया तो अपने बिस्तर पर आशीष और अनीता को एकदूसरे के आगोश में देख लिया. अपनी पत्नी को पराए मर्द की बांहों में देख कर उस का खून खौल उठा. आशीष तो जल्दीसे अपने कपड़े ठीक कर के वहां से चुपचाप निकल गया, मगर क्रोध की आग में जल रहे पंकज ने अपनी पत्नी अनीता की जम कर धुनाई कर दी.

पंकज ने बदनामी के डर से यह बात किसी को नहीं बताई. वह गुमसुम सा रहने लगा और आशीष से मिलनाजुलना भी कम कर दिया. अब उस ने गांव के एक अन्य युवक सुरेंद्र ठाकुर से दोस्ती कर ली. इसी दौरान आशीष की शादी भी हो गई और उस ने अनीता से मिलनाजुलना बंद कर दिया. लेकिन पंकज के दिल में बदले की आग अब भी जल रही थी. उस की आंखों में आशीष और अनीता का आलिंगन वाला दृश्य घूमता रहता था. उस के मन में हर समय यही खयाल आता था कि कब उसे मौका मिले और वह आशीष का गला दबा दे. पंकज सोचता था कि जिस दोस्त के लिए वह जान की बाजी लगाने को तैयार रहता, उसी दोस्त ने उस की थाली में छेद कर दिया.

6 दिसंबर के दिन योजना के मुताबिक सुरेंद्र ठाकुर आशीष को मछली मारने के लिए गांव के बाहर नाले पर ले गया. नाले के पास ही पंकज ठाकुर अपने खेतों पर उन दोनों का इंतजार कर रहा था. उस ने आशीष और सुरेंद्र को नाले में मछती मारते हुए देखा तो वह खेत पर रखे चाकू को जेब में छिपा कर नाले के पास आ गया. आशीष नाले के पानी में कांटा डाले मछली पकड़ने में तल्लीन था. तभी पंकज ने मौका पा कर आशीष के गले पर चाकू से धड़ाधड़ कई वार किए तो आशीष छटपटा कर जमीन पर गिर गया. कुछ देर में उस ने दम तोड़ दिया. यह देख पंकज ने अपने खेतों से फावड़ा ला कर गड्ढा खोदा और सुरेंद्र की मदद से आशीष को दफना दिया. चाकू और फावड़े को इन लोगों ने खेत के पास झाडि़यों में छिपा दिया. फिर कपड़ों पर लगे खून के छींटों को नाले में धोया और दोनों अपनेअपने घर चले गए.

हत्या के बाद दोनों सोच रहे थे कि उन्हें किसी ने नहीं देखा. लेकिन आशीष के जीजा कृपाल ने सुरेंद्र और आशीष को नाले की तरफ जाते देख लिया था. इसी आधार पर घर वालों ने सुरेंद्र और पंकज पर संदेह होने की बात पुलिस को बताई थी. पंकज ने बिना सोचेसमझे बदले की आग में अपने दोस्त पंकज का कत्ल तो कर दिया, लेकिन कानून की पकड़ से नहीं बच सका. पंकज और सुरेंद्र के इकबालिया बयान के आधार पर आशीष ठाकुर की हत्या के आरोप में गोटेगांव थाने में भादंवि की धारा 302, 201, 34 के तहम मामला कायम कर उन्हें न्यायालय में पेश किया गया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

जवानी के जोश में अपने दोस्त की पत्नी से अवैध संबंध बनाने वाले आशीष को अपनी जान गंवानी पड़ी तो पंकज ठाकुर और सुरेंद्र ठाकुर को जेल की सलाखों के पीछे जाना पड़ा.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित