Family Crime : दामाद ने संपत्ति हड़पने के लिए सास, ससुर और सालियों की डंडे से पीट कर की हत्या

Family Crime : नरेंद्र गंगवार बेहद शातिर इंसान था. सब से पहले उस ने हीरालाल की बड़ी बेटी लीलावती को फांस कर उस से लवमैरिज की. फिर ससुर की संपत्ति हड़पने के लिए ससुराल के सभी लोगों की हत्या कर उन्हें घर में ही दफना दिया. 15 महीने बाद जब इस सनसनीखेज राज से परदा…

25 अगस्त, 2020 को नरेंद्र गंगवार अपने ससुर हीरालाल के पैतृक गांव पैगानगरी पहुंचा. यह गांव बरेली जिले की तहसील मीरगंज के अंतर्गत आता है. गांव पहुंचते ही वह हीरालाल के नाती दुर्गा प्रसाद से मिला. उस ने दुर्गा प्रसाद को बताया कि वह अपने ससुर की जमीन की पैदावार की बंटाई का हिस्सा लेने आया है. दरअसल, इस गांव में हीरालाल की 16 बीघा जमीन थी जो उन्होंने बंटाई पर दे रखी थी. वह खेती की पैदावार का हिस्सा लेने गांव आते रहते थे. दुर्गा प्रसाद नरेंद्र को अच्छी तरह जानते थे. हीरालाल दुर्गा प्रसाद के रिश्ते के नाना लगते थे. नरेंद्र कई बार अपने ससुर के साथ गांव आया था. दुर्गा प्रसाद ने उस से नाना की कुशलक्षेम पूछी.

इस पर नरेंद्र ने कहा, ‘‘दुर्गा प्रसादजी, बहुत ही दुखद खबर है. आप के नाना हीरालालजी अब इस दुनिया में नहीं रहे. 22 अप्रैल, 2020 को उन की मंझली बेटी दुर्गा और हीरालालजी ने जहर खा कर आत्महत्या कर ली थी. लौकडाउन के चलते हम किसी को उन की मृत्यु की खबर तक नहीं दे पाए. कोरोना महामारी के चलते मैं ने अपनी बीवी लीलावती, किराएदार विजय व कुछ अन्य लोगों के सहयोग से नारायण नंगला किचा नदी में उन का दाहसंस्कार करा दिया था. पति के वियोग में उन की पत्नी हेमवती भी अपनी बेटी पार्वती को ले कर अचानक कहीं चली गईं. मैं ने और लीलावती ने उन्हें सब जगह ढूंढा, लेकिन उन का भी कहीं पता न चल सका.’’

हीरालाल की मृत्यु की खबर सुन कर दुर्गा प्रसाद को झटका लगा. वहां बैठे गांव के कई लोग भी हैरत में पड़ गए. उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि जो इंसान अपनी औलाद के सुनहरे भविष्य का सपना ले कर गांव छोड़ शहर जा बसा था, उस का परिवार इस तरह टूट कर बिखर जाएगा. हीरालाल के मरने की खबर सुन कर गांव के लोग तरहतरह की बातें करने लगे. दुर्गा प्रसाद को बहुत दुख हुआ. लेकिन एक बात उन की समझ में नहीं आ रही थी कि जब पति और बेटी खत्म हो गए तो हेमवती को अपनी बेटी को साथ ले कर कहीं चली गई. अगर उसे वहां से जाना था तो गांव में उस के पति की 16 बीघा जमीन पड़ी थी, जिस के सहारे हीरालाल के घर का खर्च चलता था. गांव में उस का मकान भी था. वह गांव आ कर रह सकती थी.

उसी समय नरेंद्र ने दुर्गाप्रसाद को बताया कि ससुर के घर के पास ही मेरा भी मकान है. जिस पर एकमात्र बची बेटी लीलावती का मालिकाना हक कराने के लिए मुझे हीरालालजी के मृत्यु प्रमाण पत्र की जरूरत है. आप लोग उन के परिवार के लोग हो, यह काम आप ही करा सकते हो. दुर्गा प्रसाद को विश्वास नहीं हुआ नरेंद्र की बात सुनते ही दुर्गा प्रसाद का दिमाग घूम गया. उन्हें उस की बात में कुछ झोल नजर आया. दुर्गा प्रसाद ने यह बात हीरालाल के बटाईदार कुंवर सैन के घर जा कर उन्हें बताई. साथ ही नरेंद्र की बातों पर कुछ शक भी जाहिर किया. यह बात सुन कर कुंवर सैन ने उसे बंटाई का हिस्सा देने से भी साफ मना कर दिया तो नरेंद्र वापस अपने घर चला आया.

नरेंद्र की बातों पर शक हुआ तो 27 अगस्त, 2020 को दुर्गा प्रसाद हीरालाल के बटाईदार कुंवर सैन को साथ ले कर उन की मौत की सच्चाई जानने के लिए रुद्रपुर ट्रांजिट कैंप पहुंचे. हीरालाल के घर पर ताला लगा हुआ था. यह देख कर उन्होंने पड़ोसियों से उन के बारे में जानकारी लेनी चाही तो पता चला कि हीरालाल के घर पर पिछले 15 महीने से ताला लटका हुआ है. इस दौरान उन्होंने कभी भी हीरालाल और उन के परिवार वालों को यहां आतेजाते नहीं देखा. यह बात सामने आते ही दुर्गा प्रसाद और कुंवर सैन को हैरानी हुई, क्योंकि नरेंद्र ने उन्हें बताया था कि हीरालाल ने जहर खा कर आत्महत्या कर ली थी. लेकिन उस के पड़ोसियों को इस बात की जानकारी तक नहीं थी.

नरेंद्र का झूठ सामने आते ही दुर्गा प्रसाद और कुंवर सैन समझ गए कि हीरालाल की संपत्ति हड़पने की मंशा से उन के दामाद नरेंद्र ने कोई चक्रव्यूह रच कर उन्हें मौत Family Crime के घाट उतार दिया. हीरालाल के परिवार के साथ किसी अनहोनी की आशंका को देखते हुए दुर्गा प्रसाद और कुंवर सैन उसी दिन ट्रांजिट कैंप थाने पहुंच गए. यह बात उन्होंने थानाप्रभारी ललित मोहन जोशी को बताई. मामला एक ही परिवार के 4 लोगों के लापता होने का था, इसलिए उन्होंने इसे गंभीरता से लिया. दुर्गाप्रसाद और कुंवर सैन से जरूरी जानकारी लेने के बाद उन्हें घर भेज दिया गया. फिर थानाप्रभारी जोशी ने इस मामले की सच्चाई जानने के लिए गुप्तरूप से जांचपड़ताल करानी शुरू की. सादे वेश में जा कर पुलिस ने नरेंद्र गंगवार को अपने कब्जे में लिया, ताकि वह फरार न हो सके.

थानाप्रभारी ललित मोहन जोशी ने नरेंद्र से हीरालाल और उन के परिवार के सदस्यों के बारे में कड़ी पूछताछ की. पुलिस पूछताछ के दौरान नरेंद्र शुरू में तो इधरउधर की कहानी गढ़ता रहा. लेकिन जैसे ही पुलिस की सख्ती बढ़ी तो उस का धैर्य जवाब दे गया. उस के बाद उस ने अपने ससुराल वालों की हत्या अपने किराएदार विजय के सहयोग से करने की बात स्वीकार कर ली. पूछताछ के दौरान नरेंद्र गंगवार ने बताया कि 20 अप्रैल, 2019 को सुबह साढ़े 5 बजे उस ने अपने किराएदार विजय के साथ मिल कर सासससुर और 2 सालियों को डंडे से पीट कर मौत के घाट उतारा. फिर उन की लाशों को उन्हीं के मकान में गड्ढा खोद कर दफन कर दिया.

नरेंद्र द्वारा 4 लोगों की हत्या कर घर में ही दफनाने वाली बात सामने आते ही थानाप्रभारी भी आश्चर्यचकित रह गए. उन्होंने इस बात की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दी. थानाप्रभारी ने आननफानन में तत्परता से नरेंद्र के सहयोगी रहे उस के किराएदार विजय को भी हिरासत में ले लिया. यह जानकारी मिलते ही ट्रांजिट कैंप के साथसाथ थाना पंतनगर, थाना रुद्रपुर और थाना किच्छा से भी पुलिस टीमें हीरालाल के मकान पर पहुंच गईं. देखते ही देखते आजादनगर की मुख्य सड़क पुलिस छावनी में तब्दील हो गई. आजादनगर के आसपास यह नजारा देख लोग हैरत में पड़ गए. घटना की जानकारी मिलते ही एसएसपी दिलीप सिंह व आईजी (कुमाऊं) अजय कुमार रौतेला भी घटनास्थल पर पहुंचे.

पुलिस द्वारा हीरालाल के घर का दरवाजा खोलने से पहले ही वहां तमाशबीनों का जमावड़ा लग गया. पुलिस ने नरेंद्र की निशानदेही पर मजिस्ट्रैट की मौजूदगी में दिन के 3 बजे 4 मजदूरों को लगा कर खुदाई शुरू कराई. लगभग 2 घंटे के अथक प्रयास के बाद पुलिस लाशों तक पहुंची. लगभग साढ़े 4 फीट की गहराई में एक के ऊपर एक 4 लाशें पड़ी मिलीं, जो प्लास्टिक की थैलियों में पैक थीं. इस हृदयविदारक दृश्य को देख कर लोगों के होश उड़ गए. लोगों को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि जो उन के सामने है वह सच है या सपना. पुलिस ने थैलियों को खोल कर लाशों की जांचपड़ताल की. लाशों को देख कर पुलिस हैरान थी कि सभी लाशें अभी तक अच्छी हालत में थीं. पुलिस को उम्मीद थी कि 15 महीनों के लंबे अंतराल के दौरान लाशें कंकाल में बदल चुकी होंगी. लेकिन ऐसा कुछ नहीं था. उसी गड्ढे से पुलिस ने लकड़ी के डंडे के आकार की एक फंटी बरामद की. नरेंद्र ने उसी फंटी से चारों को मारने की बात स्वीकार की थी.

घटनास्थल पर पहुंची फोरैंसिक टीम ने सैंपल एकत्र किए. फिर उन्हें जांच के लिए सुरक्षित रख लिया. पुलिस ने चारों लाशें पोस्टमार्टम के लिए भेज दीं और इस मामले को गंभीरता से लेते हुए 4 डाक्टरों के पैनल द्वारा वीडियोग्राफी के साथ पोस्टमार्टम कराया. यह कुमाऊं का पहला ऐसा सनसनीखेज  मामला था, जिस ने तहलका मचा दिया था. हीरालाल का अपना कोई बेटा नहीं था तो उन्होंने बेटियों का ही पालनपोषण अच्छे से किया था. बड़ी बेटी लीलावती ने गलत कदम उठाया तो उसे भी सहन करते हुए उन्होंने उस के पति नरेंद्र को बेटे का दरजा दे कर उसे अपने घर में शरण दी. इस के बावजूद उस ने ऐसा कदम उठाया कि ससुराल का वजूद ही खत्म कर डाला. यह कहानी जितनी सनसनीखेज थी, उस से कहीं ज्यादा हृदयविदारक भी थी.

हीरालाल का परिवार उत्तर प्रदेश के जिला बरेली, तहसील मीरगंज के गांव पैगानगरी में रहता था गांव में उन का परिवार सुखीसंपन्न माना जाता था. गांव में उन की जुतासे की करीब 60 बीघा जमीन थी. औलाद के नाम पर 3 बेटियां थीं लीलावती उर्फ लवली, पार्वती और सब से छोटी दुर्गा. उन की पत्नी हेमवती सहित घर में कुल 5 सदस्य थे. घर में सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. हीरालाल की बस एक ही परेशानी थी कि उन का कोई बेटा नहीं था. जो घर धनधान्य से भरपूर हो और घर में उस का कोई वारिस न हो तो चिंतित रहना स्वभाविक ही है. हीरालाल ने बेटे की चाह के चलते इधरउधर काफी हाथपांव मारे. कई डाक्टरों और तांत्रिकों से मिले लेकिन उन की बेटे की इच्छा पूरी न हो सकी.

बाद में इस सोच को बदल कर उन्होंने अपना पूरा ध्यान बेटियों की परवरिश में लगा दिया. समय के साथ बेटियां समझदार हुईं तो हीरालाल ने सोचा कि उन्हें अपनी बेटियों को गांव के माहौल से बचा कर शहर में अच्छी शिक्षा दिलानी चाहिए. जिस से वे पढ़लिख कर कुछ बन जाएं. इसी सोच के चलते हीरालाल ने सन 2007 में अपनी खेती की जमीन में से 44 बीघा जमीन बेच दी. उस पैसे को ले कर हीरालाल अपने परिवार के साथ गांव से रुद्रपुर के ट्रांजिट कैंप थानांतर्गत राजा कालोनी में आ कर रहने लगे. उन्होेंने अपना मकान बना लिया था. रुद्रपुर आ कर हीरालाल ने अपनी तीनों बेटियों को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए अच्छे स्कूल में दाखिला दिला दिया था.

बेटियों की तरफ से निश्चिंत हो कर हीरालाल ने बाकी बचे पैसों से प्रौपर्टी डीलिंग का काम शुरू कर दिया. जमीन के पैसे से ही उन्होंने आसपास कई प्लौट खरीद कर डाल दिए थे. उसी दौरान हीरालाल की मुलाकात नरेंद्र गंगवार से हुई. राहु बन कर कुंडली में बैठा नरेंद्र नरेंद्र गंगवार रामपुर जिले के थाना ऐरो बिलासपुर के गांव खेड़ासराय का रहने वाला था. वह उसी मोहल्ले में किराए के मकान में रहता था. नरेंद्र गंगवार सिडकुल की एक फैक्ट्री में काम करता था. उस ने हीरालाल से एक प्लौट खरीदने की इच्छा जताई. इस पर हीरालाल ने उसे अपने घर के सामने पड़ा प्लौट दिखाया तो वह नरेंद्र को पसंद आ गया. उस ने हीरालाल से वह प्लौट खरीद कर उस की रजिस्ट्री अपने नाम करा ली.

प्लौट के चक्कर में नरेंद्र की हीरालाल से जानपहचान हुई तो वह उन के संपर्क में रहने लगा था. इसी बहाने वह हीरालाल के घर भी आनेजाने लगा था. घर आनेजाने के दौरान ही नरेंद्र की नजर हीरालाल की बड़ी बेटी लीलावती पर पड़ी. लीलावती देखनेभालने में सुंदर थी और उस समय पढ़ भी रही थी. उस की सुंदरता को देखते ही नरेंद्र उसे पाने के लिए लालायित हो उठा. वह जब भी हीरालाल के घर जाता तो उस की निगाहें उसी पर टिकी रहती थीं. लीलावती नरेंद्र के बारे में पहले ही सब कुछ जान चुकी थी. जब उस ने नरेंद्र को अपनी ओर आकर्षित होते देखा तो उस के दिल में भी चाहत पैदा हो गई.

दोनों के दिलों में एकदूसरे के प्रति प्यार उमड़ा तो वे प्रेम की राह पर बढ़ चले.  लीलावती स्कूल जाती तो नरेंद्र घंटों तक उस की राह तकता रहता. उस के स्कूल जाने का फायदा उठाते हुए वह घर से बाहर ही उस से मुलाकात करने लगा. प्रेम बेल फलीफूली तो मोहल्ले वालों की नजरों में किरकरी बन कर चुभने लगी. कुछ ही समय बाद दोनों की प्रेम कहानी हीरालाल के सामने जा पहुंची. अपनी बेटी की करतूत सुन कर हीरालाल को बहुत दुख हुआ. वह अपनी बेटियों को बेटा समझ पढ़ालिखा रहे थे, ताकि वे किसी काबिल बन जाएं. लेकिन बड़ी बेटी की करतूत सुन कर उसे गहरा सदमा पहुंचा. यह जानकारी मिलने पर उस ने लीलावती को समझाया और नरेंद्र के घर आने पर पाबंदी लगा दी. इस पर दोनों मोबाइल पर बात कर अपने दिल की पीड़ा एकदूसरे से साझा करने लगे.

इस प्रेम कहानी के चलते लीलावती ने सन 2008 में घर वालों को बिना बताए नरेंद्र से लव मैरिज कर ली. शादी के बाद लीलावती उस के साथ किराए के मकान में रहने लगी. लीलावती की इस करतूत से हीरालाल और उन की पत्नी हेमवती दोनों को जबरदस्त आघात पहुंचा. बेटी के कारण मियांबीवी मोहल्ले में सिर उठा कर चलने लायक नहीं रहे. इसी वजह से हीरालाल ने अपनी बेटी लीलावती से संबंध खत्म कर दिए. लेकिन हेमवती मां थी. मां का दिल तो वैसे भी बहुत कोमल होता है. भले ही लीलावती ने नरेंद्र के साथ शादी कर अपनी दुनिया बसा ली थी, लेकिन मां होने के नाते हेमवती उस के लिए परेशान रहने लगी थी. जब बेटी के बिना उस से नहीं रहा गया तो वह पति को बिना बताए उस से मिलने लगी.

हेमवती जब कभी घर में कुछ अच्छा बनाती, चुपके से लीलावती को पहुंचा आती. साथ ही वह उस की आर्थिक मदद भी करने लगी थी. धीरेधीरे यह बात हीरालाल को भी पता चल गई. शुरूशुरू में तो इस बात को ले कर दोनों में विवाद हो गया. लेकिन हीरालाल भी दिल के कमजोर इंसान थे. बेटी की परेशानी को देखते हुए उन का दिल भी पसीज गया. नरेंद्र बना घरजंवाई शादी के कुछ समय बाद ही हीरालाल ने नरेंद्र को अपने दामाद के रूप में स्वीकार कर लिया और बेटीदामाद दोनों को घर ले आए. नरेंद्र घरजंवाई की हैसियत से ससुर हीरालाल के मकान में ही रहने लगा. उसी दौरान नरेंद्र कई बार हीरालाल के साथ उन के गांव पैगानगरी भी गया था. हीरालाल का गांव में मकान था, जो खाली पड़ा था.

साथ ही उन की बची हुई 16 बीघा जमीन भी थी, जिसे उन्होंने बंटाई पर दे रखा था. इस जमीन से उन्हें हर साल इतना रुपया मिल जाता था कि उन के परिवार की गुजरबसर ठीक चल रही थी. वह प्रौपर्टी खरीदबेच कर जो कमाते थे वह अलग था. ससुर के साथ रह कर नरेंद्र उन की एकएक बात अपने दिमाग में उतारने लगा. मम्मीपापा के घर पर रहते हुए ही लीलावती 4 बच्चों, 2 बेटियों और 2 बेटों की मां बनी. हीरालाल के घर पर रहते हुए नरेंद्र नौकरी करने के साथसाथ उन के काम में भी हाथ बंटाने लगा था. हालांकि नरेंद्र के चारों बच्चों का खर्च भी हीरालाल स्वयं ही वहन कर रहे थे. इस के बावजूद नरेंद्र अपने खर्च के लिए हीरालाल से पैसे ऐंठता रहता था.

हीरालाल की अभी 2 बेटियां शादी के लिए बाकी थीं. वह समय से उन की शादी करना चाहते थे. लेकिन जब से नरेंद्र इस घर में आया था, अपनी सालियों को फूटी आंख नहीं देखना चाहता था. नरेंद्र तेजतर्रार और चालाक था. लीलावती से शादी करने के बाद उस की निगाह हीरालाल की संपत्ति पर जम गई थी. जिसे देख वह भविष्य के सुनहरे सपनों में खोया रहता था. उसी दौरान उस ने हीरालाल पर उस के हिस्से की संपत्ति उस के नाम कराने का दबाव बनाना शुरू किया. लेकिन हीरालाल का कहना था कि जब तक उन की दोनों बेटियां विदा नहीं हो जातीं, वह अपनी किसी भी संपत्ति का बंटवारा नहीं करेंगे. हीरालाल जब नरेंद्र की हरकतों से परेशान हो उठे तो उन्होंने नरेंद्र के प्लौट पर मकान बनवा दिया. बाद में नरेंद्र अपने बीवीबच्चों को साथ ले कर नए मकान में चला गया.

हीरालाल ने सोचा था कि नरेंद्र अपने घर में जाने के बाद सुधर जाएगा. लेकिन घर आमनेसामने होने के कारण उस के बीवीबच्चे हीरालाल के घर पर ही पड़े रहते थे. बच्चों के सहारे आ कर वह फिर से बदतमीजी पर उतर आता था. लेकिन ससुर होने के नाते हीरालाल सब कुछ सहन करते रहे. उसी दौरान नरेंद्र ने अपने मकान में विजय नाम का एक किराएदार रख लिया. विजय गंगवार जिला बरेली के थाना देवरनियां के गांव दमखोदा का रहने वाला था. विजय गंगवार से नरेंद्र पहले से ही परिचित था. दोनों में खूब पटती थी. विजय गंगवार अभी कुंवारा था. नरेंद्र ने विजय गंगवार के सामने अपने ससुर की सारी संपत्ति की पोल खोल कर दी, जिस की वजह से उस के मन में भी लालच जाग उठा. उस ने भी नरेंद्र की तरह हीरालाल की मंझली बेटी पार्वती पर निगाहें गड़ा दीं. लेकिन पार्वती समझदार थी. विजय के लाख कोशिश करने के बाद भी वह उस के प्रेम जाल में नहीं फंसी.

जम गई नजर ससुर की संपत्ति पर मन में संपत्ति का लालच आते ही वह अपने ससुर के साथसाथ बाकी लोगों को भी मौत के घाट उतारने के लिए षडयंत्र रचने लगा. लेकिन वह अपनी किसी भी योजना में सफल नहीं हो पा रहा था. नरेंद्र को यह भी पता लग गया था कि विजय उस की साली के पीछे पड़ा है. तभी उस के दिमाग में एक आइडिया आया. उस ने वह बात विजय को बताते हुए धमकाया कि जो वह कर रहा है वह ठीक नहीं है. अगर इस बात का पता उस के ससुर को चल गया तो परिणाम बहुत गलत होगा. नरेंद्र की बात सुन कर विजय घबरा गया. इस के बाद विजय नरेंद्र की हां में हां मिलाने लगा. फिर आए दिन नरेंद्र अपने घर पर विजय की दावत करने लगा. उस समय तक हीरालाल का परिवार हंसीखुशी से रह रहा था. लेकिन नरेंद्र को उन के परिवार की खुशियां कचोटती थीं.

वह मन ही मन अपने ससुराल वालों से खार खाने लगा था. उसी दौरान उस ने विजय को अपने ससुर की संपत्ति Family Crime से कुछ हिस्सा देने की बात कहते हुए अपनी षडयंत्रकारी योजना में शामिल कर लिया. फिर 17 अप्रैल, 2019 को नरेंद्र ने अपने किराएदार विजय के साथ मिल कर ससुराल वालों की हत्या की योजना को अंतिम रूप दे दिया. इस योजना के बनते ही नरेंद्र ने अपने बीवीबच्चों को देवरनियां बरेली में अपने फूफा के घर भेज दिया ताकि उन्हें उस की साजिश का पता न चल सके. बीवीबच्चों को बरेली भेजने के बाद वह विजय के साथ मिल कर इस घटना को अंजाम देने के लिए मौके की तलाश में लग गया. लेकिन उसे मौका नहीं मिल पा रहा था. नरेंद्र और विजय को यह भी डर था कि अगर इस योजना में वे किसी तरह से फेल हो गए तो न घर के रहेंगे न घाट के.

नरेंद्र जानता था कि उस की सास सुबह दूध लेने जाती है. उस वक्त उस का ससुर और दोनों सालियां सोई रहती हैं. घर का गेट खुला रहता है. उस वक्त तक पड़ोसी भी सोए होते हैं. घटना को अंजाम देने के लिए नरेंद्र को यह समय सही लगा. 20 अप्रैल, 2019 को नरेंद्र गंगवार और विजय गंगवार सुबह जल्दी उठ गए थे. दोनों हेमवती के दूध लेने जाने का इंतजार करने लगे. हेमवती उस दिन सुबह के साढ़े 5 बजे अपनी बेटी पार्वती को साथ ले कर दूध लाने के लिए घर से निकली. उन के घर से निकलते ही नरेंद्र विजय को साथ ले कर ससुर हीरालाल के घर में घुस गया. उस समय तक हीरालाल सो कर उठ गए थे. सुबहसुबह दोनों को अपने घर में आया देख हीरालाल ने नरेंद्र से आने का कारण पूछा तो उस ने कहा कि आज मैं आखिरी बार आप से पूछने आया हूं कि आप मेरे हिस्से की संपत्ति मुझे देते हो या नहीं.

पूरे परिवार की हत्या सुबहसुबह दामाद के मुंह से इस तरह की बात सुन हीरालाल का पारा चढ़ गया. दोनों के बीच विवाद बढ़ा तो पूर्व योजनानुसार नरेंद्र ने वहां रखी लकड़ी की फंटी से पीटपीट कर बड़ी ही बेरहमी से हीरालाल की हत्या कर दी. अपने पापा के चीखने की आवाज सुन कर बेटी दुर्गा उन के बचाव में आई तो दोनों ने उसे भी फंटी से पीटपीट कर मार डाला. दोनों को मौत की नींद सुलाने के बाद नरेंद्र और विजय हेमवती और पार्वती के आने का इंतजार करने लगे. जैसे ही उन दोनों ने घर में प्रवेश किया दरवाजे के पीछे खड़े नरेंद्र और विजय ने उन्हें भी पीटपीट कर मार डाला. सासससुर और दोनों सालियों को खत्म करने के बाद नरेंद्र और विजय ने चारों को घसीट कर एक कमरे में ले जा कर डाल दिया.

कमरे में ले जाने के बाद भी नरेंद्र और विजय को उन की मौत पर विश्वास नहीं हुआ तो दोनों ने एकएक कर सब की नब्ज चैक की. जब उन्हें पूरा यकीन हो गया कि चारों मौत की नींद सो चुके हैं, तो दोनों ने मकान में फैले खून को धो कर साफ किया और घर के बाहर ताला लगा कर अपने घर आ गए. इस खूनी वारदात को अमलीजामा पहनाने के बाद दोनों ने उन लाशों को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. नरेंद्र जानता था कि उन की लाश को घर से बाहर ले जा कर ठिकाने लगाना उन के लिए खतरे से खाली नहीं है. इसलिए दोनों ने तय किया कि बाजार से प्लास्टिक शीट ला कर लाशों को उस में लपेटा घर में ही गड्ढा खोद कर दफन कर दिया जाए. लाशों पर प्लास्टिक शीट लिपटी होने के कारण उन के सड़ने के बाद भी बदबू बाहर नहीं निकल पाएगी.

20 अप्रैल, 2019 को ही नरेंद्र बाजार से प्लास्टिक शीट खरीद लाया. उसी रात दोनों ने ससुर हीरालाल के मकान में जा कर चारों लाशों को प्लास्टिक शीट में पैक कर दिया. अगले दिन 21 अप्रैल, 2019 की सुबह नरेंद्र विजय को साथ ले कर ससुर के घर में गया. फिर दोनों ने अपनी योजना के मुताबिक जीने के नीचे गड्ढा खोदना शुरू किया. कुछ पड़ोसियों ने नरेंद्र से हीरालाल के घर में अचानक काम कराने के बारे में पूछा तो नरेंद्र ने कहा कि वह मकान बेच कर कहीं दूसरी जगह चले गए. घर में रिपेयरिंग का काम चल रहा है. वैसे भी उस मोहल्ले में नरेंद्र से कोई ज्यादा मतलब नहीं रखता था. यही कारण था कि हीरालाल के परिवार के बारे में किसी ने भी नरेंद्र से ज्यादा पूछताछ नहीं की. नरेंद्र ने विजय के साथ मिल कर लगभग 6 घंटे में एक गहरा गड्ढा खोदा. उस के बाद दोनों ने प्लास्टिक में पैक चारों लाशें गड्ढे में डाल दीं.

चारों लाशों को गड्ढे में दफन कर के उन्होंने वहां पर पक्का फर्श बना दिया. चारों लाशों को ठिकाने लगाने के बाद नरेंद्र ने हीरालाल के घर के मुख्य दरवाजे पर ताला डाल दिया. घर के अंदर कब्रिस्तान हीरालाल के घर पर अचानक ताला देख लोगों को हैरत तो जरूर हुई. लोग समझ नहीं पा रहे थे कि हीरालाल रात ही रात में अपने परिवार को ले कर अचानक कहां गायब हो गए. लेकिन नरेंद्र से किसी ने पूछने की हिम्मत नहीं की. ससुराल वालों को ठिकाने लगा कर नरेंद्र अपने बीवीबच्चों को बरेली से घर ले आया. घर आते ही लीलावती की नजर पिता के मकान की ओर गई, जहां पर ताला लगा था.

लीलावती ने उन के बारे में पति से पूछा, तो उस ने बताया कि उस के पापा अपना मकान बेच कर हल्द्वानी चले गए हैं. उन्होंने वहां पर ही अपना प्रौपर्टी का काम शुरू कर दिया है. यह सुन कर लीलावती चुप हो गई. इस के आगे उसे नरेंद्र से ज्यादा पूछने की हिम्मत नहीं थी. उसे पता था कि उस के पिता और नरेंद्र की आपस में नहीं बनती है. नरेंद्र ने हीरालाल के पूरे परिवार को मौत की नींद सुला दिया था, इस के बाद भी उस के मन में किसी तरह का खौफ नहीं था. इस घटना को अंजाम देने के बाद नरेंद्र ने हीरालाल के मकान को किराए पर उठा दिया. लेकिन कुछ समय बाद किराएदार मकान छोड़ कर चला गया तो उस ने मकान पर फिर से ताला लगा दिया.

उस दिन के बाद उस ने कभी भी उस मकान का ताला नहीं खोला था. अगर नरेंद्र संपत्ति हड़पने के लिए मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाने में जल्दबाजी न करता तो यह राज शायद राज ही बन कर रह जाता. इस केस के खुलते ही पुलिस ने आरोपी नरेंद्र गंगवार और विजय गंगवार को भादंवि की धारा 302/201/120बी के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. चारों शवों के पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने शव उन के रिश्तेदार दुर्गा प्रसाद को सौंप दिए थे. उन का दाह संस्कार बरेली के मीरगंज गांव पैगानगरी के पास भाखड़ा नदी किनारे किया गया. नरेंद्र गंगवार इतना शातिर इंसान था कि उस ने दुर्गा प्रसाद को इस केस में फंसाने की कोशिश की. लेकिन सच्चाई सामने आते ही पुलिस ने उन्हें छोड़ दिया.

हालांकि इस केस की रिपोर्ट दुर्गा प्रसाद की ओर से ही दर्ज कराई गई थी. फिर भी इस केस के खुल जाने के बाद पुलिस दुर्गा प्रसाद और अन्य के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर जांच में जुटी थी. पुलिस ने लीलावती से पूछताछ करने के बाद उसे छोड़ दिया था. वह नरेंद्र के फूफा के साथ बहेड़ी चली गई थी. केस की जांच थानाप्रभारी ललित मोहन जोशी कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधार

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Love Crime : बंटी और सुखदेवी चचेरेतहेरे भाईबहन जरूर थे लेकिन वे एकदूसरे से दिली मोहब्बत करते थे. दोनों के घर वालों ने शादी करने से मना कर दिया तो अपनी शादी से एक दिन पहले दोनों घर से भाग गए. इस के बाद जो हुआ, उस की किसी ने कल्पना तक नहीं की थी…

बंटी की अजीब सी स्थिति थी. उस का दिमाग तो चेतनाशून्य हो चला था. साथ ही उस के दिमाग में एक तूफान सा मचा हुआ था. यही तूफान उसे चैन नहीं लेने दे रहा था. बेचैनी का आलम यह था कि वह कभी बैठ जाता तो कभी उठ कर चहलकदमी करने लगता. अचानक उस का चेहरा कठोर होता चला गया, जैसे वह किसीफैसले पर पहुंच गया था, उस फैसले के बिना जैसे और कुछ हो नहीं सकता था. बंटी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के संभल जिले के थाना धनारी के गांव गढ़ा में रहता था. उस के पिता का नाम बिन्नामी और माता का नाम शीला था. बिन्नामी खेतीकिसानी का काम करते थे.

22 वर्षीय बंटी इंटर पास था. उस के बड़े भाई 25 वर्षीय संदीप का विवाह हो चुका था. बंटी से छोटे 2 भाई तेजपाल (14 वर्ष) और भोलेशंकर (9 वर्ष) के अलावा छोटी बहनें कश्मीरा, सोमवती और राजवती थीं, जोकि क्रमश: 17 वर्ष, 7 वर्ष और 5 वर्ष की थीं. उस के पड़ोस में उस के ताऊ तुलसीदास रहते थे. परिवार में उन की पत्नी रमा देवी और उन के 6 बेटै रामपाल, विनीत उर्फ लाला, किशोरी, गोपाल उर्फ रामगोपाल, धर्मेंद्र और कुलदीप उर्फ सूखा थे. इस के अलावा इकलौती बेटी थी 21 वर्षीय सुखदेवी, जोकि सब भाइयों से छोटी थी. रिश्ते में बंटी और सुखदेवी तहेरे भाईबहन थे. बचपन से दोनों साथ खेलेघूमे. हर समय एकदूसरे का साथ दोनों को खूब भाता था. समय के साथ ही बचपन का यह खेल कब जवानी के प्यार की तरफ बढ़ने लगा, उन को एहसास भी नहीं हुआ.

जवान होती सुखदेवी के सौंदर्य को देखदेख कर बंटी आश्चर्यचकित हो गया था. सुखदेवी पर छाए यौवन ने उसे एक आकर्षक युवती बना दिया था. उस के नयननक्श में अब गजब का आकर्षण पैदा हो गया था.  हिरनी जैसे नयन, गुलाब की पंखुडि़यों जैसे होंठ, जिन का रसपान करना हर नौजवान की हसरत होती है. उस के गालों पर आई लाली ने उसे इतना आकर्षक बना दिया था कि बंटी खुद पर काबू न रख सका और उसे देख कर उसे पाने को लालायित हो उठा. सुखदेवी के यौवन में वह इस कदर खो गया कि उस के बदन को ऊपर से नीचे तक निहारता रह गया. उस के छरहरे बदन में यौवन की ताजगी, कसक और मादकता की साफसाफ झलक दिखती थी.

बंटी अपनी तहेरी बहन के मादक सौंदर्य को बस देखता रह गया और उस की चाहत में डूबता चला गया. वह इस बात को भी भूल गया कि वह उस की तहेरी ही सही, लेकिन बहन तो है. बंटी जब सुखदेवी के घर गया तो उसे एकटक देखने लगा. उधर सुखदेवी इस बात से बेखबर अपने काम में व्यस्त थी. जब उस की मां रमा ने उसे आवाज दी, ‘‘ऐ सुखिया, देख बंटी आया है.’’ तो उस का ध्यान बंटी की तरफ गया. चाहने लगा था सुखदेवी को सुखदेवी को भी बंटी पसंद था, मगर उस रूप में नहीं जिस रूप में उसे बंटी देख रहा था और उसे पाने की चाह में तड़पने लगा था.

रमा देवी ने फिर आवाज लगाई. सुखदेवी ने तुरंत एक गिलास पानी और थोड़ा मीठा ला कर बंटी के सामने रख दिया. पानी का गिलास हाथ में पकड़ाते हुए बोली, ‘‘क्या हाल हैं जनाब के?’’

जब बंटी ने उस से पानी का गिलास लिया तो उस का स्पर्श पा कर वह पहले से अधिक व्याकुल हो उठा. उस के साथ सुंदर सपनों में खो गया. इधर सुखदेवी ने उस के गालों को खींच कर कहा, ‘‘कहां खो गए जनाब?’’

इस के बाद वह चाय बनाने चली गई. बंटी का सारा ध्यान तो सुखदेवी की तरफ ही था, जो किचन में उस के लिए चाय बना रही थी. वह तो इस कदर व्याकुल था कि दिल हुआ किचन में जा कर खड़ा हो जाए. उधर जब सुखदेवी चाय ले कर आई तो बंटी की बेचैनी थोड़ी कम हुई. सुखदेवी ने जब बंटी को चाय दी तो उस ने पुन: उसे छूना चाहा, मगर नाकाम रहा. तभी उस की ताई को कुछ काम याद आ गया और वह उठ कर बाहर चली गईं. इधर बंटी की धड़कनें रेल के इंजन की तरह दौड़ने लगीं. वह घबराने लगा. मगर एक खुशी भी थी कि उस तनहाई में वह सुखदेवी को देख सकता है. फिर सुखदेवी अपने काम में लग गई, मगर बंटी के कहने पर वह उस के करीब ही चारपाई पर बैठ गई. उस के शरीर के स्पर्श ने उसे गुमशुदा कर दिया.

उस का दिल तो चाह रहा था कि वह उसे अपनी बांहों में भर ले और प्यार करे, मगर न जाने कैसी झिझक उसे रोक देती और वह अपने जज्बातों पर काबू किए उस की बातें सुनता जा रहा था. वह बारबार हंसती तो बंटी के मन में फूल खिल उठते थे. थोड़ी ही देर में बंटी को न जाने क्या हुआ, वह उठा और जाने लगा. तभी सुखदेवी ने उस का हाथ पकड़ कर पूछा, ‘‘कहां जा रहे हो?’’

मगर बंटी ने बिना कुछ कहे अपना हाथ छुड़ाया और वहां से चला गया. सुखदेवी उस से बारबार पूछती रही. मगर वह रुका नहीं और बिना पीछे देखे चला गया. प्यार के इजहार का नहीं मिला मौका बंटी को उस दिन के बाद कुछ अच्छा न लगता, वह तो बस सुखदेवी के खयालों में ही खोया रहता था, मगर चाह कर भी वह उस से मन की जता नहीं पाता था. उस के मन में पैदा हुई दुविधा ने उसे अत्यंत उलझा रखा था. तहेरी बहन से प्रेम की इच्छा ने उस के दिलोदिमाग को हिला रखा था. मगर सुखदेवी के यौवन का रंग बंटी पर खूब चढ़ चुका था. उस के यौवन की किसी एक बात को भी वह भुला नहीं पा रहा था.

एक दिन बंटी घर पर अकेला था और सुखदेवी के खयालों में खोया हुआ था. वह चारपाई पर लेटा था, तभी सुखदेवी उस के घर पहुंची और बिना कुछ कहे सीधे अंदर चली गई. बंटी उसे देख कर आश्चर्यचकित रह गया. कुछ देर तक वह उसे देखता ही रहा था. तभी सुखदेवी ने सन्नाटा भंग करते हुए कहा, ‘‘क्या हाल है? क्या मुझे बैठने तक को नहीं कहोगे?’’

‘‘कैसी बात कर रही हो, आओ तुम्हारा ही घर है.’’ बंटी ने कहा तो सुखदेवी वहीं पड़ी चारपाई पर बैठ गई.

सुखदेवी ने बैठते ही बंटी को देखा और कहने लगी, ‘‘क्या बात है आजकल तुम घर नहीं आते? मुझ से कोई गलती हो गई है कि उस दिन तुम बिना कुछ कहे घर से चले आए.’’

बंटी मूक बैठा बस सुखदेवी को निहारे जा रहा था. सुखदेवी ने जब उसे चुप देखा तो बंटी के करीब पहुंच कर वह बैठ गई और उस के हाथों को अपने हाथों में ले कर बोली, ‘‘बोलो न क्या हुआ? तुम इतने चुपचुप क्यों हो, क्या कोई बात है जो तुम्हें बुरी लग गई है. मुझे बताओ न, तुम तो हमेशा हंसते थे, मुझ से ढेर सारी बातें करते थे. मगर अब क्या हुआ है तुम्हें, तुम इतने खामोश क्यों हो?’’

मगर उधर बंटी तो एक अलग ही दुविधा में फंसा हुआ था. सुखदेवी की बातों को सुन कर अचानक ही बंटी उस की ओर घूमा और उसे बड़े गौर से देखने लगा. तभी सुखदेवी ने उस से पूछा कि वह क्या देख रहा है, मगर बंटी जड़वत हुआ उसे घूरता ही जा रहा था. सुखदेवी भी उस की निगाह के एहसास को महसूस कर रही थी, शायद इसलिए वह भी खामोश नजरें झुकाए वहीं बैठी रही थी. बंटी उस से प्रेम का इजहार करना चाहता था, मगर इस दुविधा में उलझा हुआ था कि वह मेरी तहेरी बहन है. मगर अंत में प्रेम की विजय हुई. उस ने सुखदेवी के चेहरे को अपने हाथों में ले लिया. बंटी के इस व्यवहार से सुखदेवी थोड़ा घबरा गई. मगर अपनी धड़कनों पर काबू पा कर उस ने अपनी दोनों मुट्ठियों को बहुत जोर से भींचा और अपनी आंखें बंद कर लीं.

तभी बंटी ने उस से आंखें खोलने को कहा, मगर सुखदेवी हिम्मत न कर सकी. फिर दोबारा कहने पर सुखदेवी ने अपनी पलकें उठाईं और फिर तुरंत झुका लीं. तभी बंटी ने उस की आंखों को चूम लिया. सुखदेवी घबरा गई’ उस ने वहां से उठना चाहा. मगर बंटी ने उसे उठने नहीं दिया. वह शर्म के मारे कांपने लगी. उस के होंठों की कंपकंपाहट से बंटी अच्छी तरह वाकिफ था. मगर वह तो उस दिन अपने प्यार का इजहार कर देना चाहता था. तभी उस ने सुखदेवी की कलाई पकड़ कर कहा, ‘‘मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता, मैं सचमुच तुम से बहुत प्यार करता हूं.’’

बंटी की इन बातों को सुन कर सुखदेवी आश्चर्यचकित हो गई और उस ने बंटी को समझाना चाहा, मगर बंटी तो अपनी जिद पर ही अड़ा रहा. सुखदेवी ने कहा, ‘‘बंटी, मैं तुम्हारी बहन हूं. हमारा प्यार कोई कैसे स्वीकार करेगा.’’

मगर बंटी ने इन सब बातों को खारिज करते हुए सुखदेवी को अपनी बांहों में समेट लिया और बड़े प्यार से उस के होंठों पर अपने प्यार की मोहर लगा दी. सुखदेवी के लिए यह किसी पुरुष का पहला स्पर्श था, जिस ने उसे मदहोश होने पर मजबूर कर दिया और बंटी की बांहों में कसमसाने लगी. सुखदेवी चाह कर भी अपने आप को उस से अलग नहीं कर पा रही थी. लगातार कुछ क्षणों तक चले इस प्रेमालाप से सुखदेवी मदमस्त हो गई, तभी अचानक बंटी उस से अलग हो गया. प्यार को लग गई हवा सुखदेवी तड़प उठी. बंटी के स्पर्श से छाया खुमार जल्दी ही उतरने लगा. वह बिना कुछ कहे घर के दरवाजे की तरफ बढ़ी तो पीछे से बंटी ने उसे कई आवाजें लगाईं, मगर सुखदेवी नजरें झुकाए चुपचाप बाहर चली गई.

बंटी घबरा सा गया. उस के दिल में हजारों सवाल सिर उठाने लगे और इसी दुविधा में फंसा रहा कि सुखदेवी उस का प्यार ठुकरा न दे या कहीं ताऊताई को उस की इस हरकत के बारे में न बता दे. इसी सोच में बंटी परेशान रहा और पूरी रात सो न सका, बस बिस्तर पर करवटें बदलता रहा. उधर सुखदेवी का हाल भी बंटी से जुदा न था. वह भी पूरे रास्ते बंटी द्वारा कहे हर लफ्ज के बारे में सोचती गई. घर पहुंच कर बिना कुछ खाएपीए वह अपने बिस्तर पर लेट गई. मगर उस की आंखों में नींद भी कहां थी. वह भी इसी सोच में डूबी रही. बंटी का प्यार दस्तक दे चुका था. वह भी बिस्तर पर पड़ीपड़ी करवटें बदलती जा रही थी. सुखदेवी भी अपनी भावनाओं पर काबू न रख पाई और वह भी बंटी से प्यार कर बैठी. अपने इस फैसले को दिल में लिए सुखदेवी बहुत बेकरारी से सुबह का इंतजार करने में लगी रही.

पूरी रात आंखोंआंखों में कटने के बाद सुखदेवी सुबह जल्दीजल्दी घर का सारा काम कर के अपनी मां को बता कर बंटी के घर चली गई. सुखदेवी के कदम खुदबखुद आगे बढ़ते जा रहे थे. वह बस कभी बंटी के प्रेम स्नेह के बारे में सोचती तो कभी समाज व लोकलाज के बारे में, रास्ते में जाते वक्त कई बार वापस होने को सोचा, मगर हिम्मत न जुटा सकी. क्योंकि बंटी के उस जुनून को भी भुला नहीं पा रही थी. लेकिन कहीं न कहीं उस के दिल में भी बंटी के लिए प्रेम की भावना उछाल मार रही थी. इन्हीं सोचविचार में वह बंटी के घर के दरवाजे पर पहुंच गई लेकिन अंदर जाने की हिम्मत न जुटा सकी. तभी बंटी की नजर उस पर पड़ गई और फिर उसे अंदर जाना ही पड़ा.

उधर बंटी का चेहरा एकदम पीला पड़ा हुआ था. बस एक रात में ही ऐसा लग रहा था कि वह कई दिनों से बिना कुछ खाएपीए हो. उस की आंखें लाल थीं, जिस से साफ पता चल रहा था कि वह न तो रात भर सोया है और न ही कुछ खायापीया है. उस की आंखों को देख कर सुखदेवी समझ चुकी थी कि वह बहुत रोया है. सुखदेवी को इस का आभास हो चुका था कि बंटी उस से अटूट प्रेम करता है. उस ने आते ही बंटी से पूछ लिया कि वह रोया क्यों था? बस फिर क्या था, इतना सुनते ही बंटी की आंखें फिर छलक आईं. उस की आंखों से छलके आसुंओं ने सुखदेवी को इस दुविधा में उतार दिया कि अब उसे न समाज की सोच, न अपने परिजनों का भय रह गया, वह उस से लिपट गई और उस के चेहरे को चूमने लगी.

उस के बाद उस ने अपने हाथों से बंटी को खाना खिलाया. फिर दोनों तन्हाई में एक कमरे मे बैठ गए. तन्हाई के आलम में बंटी से रहा न गया और उस ने सुखदेवी को अपनी बांहों में भर लिया, सुखदेवी ने विरोध नहीं किया. दोनों ने लांघ दी सीमाएं सुखदेवी ने इस से पहले कभी ऐसे एहसास का अनुभव नहीं किया था. बंटी का हर स्पर्श सुखदेवी की मादकता को और भड़का रहा था. उस दिन बंटी ने सुखदेवी को पूरी तरह पा लिया. सुखदेवी को भी यह अनुभव आनन्दमई लग रहा था. उसे वह सुख प्राप्त हुआ जो पहले कभी नहीं हुआ था. उस दिन के बाद सुखदेवी के मन में भी बंटी के लिए प्यार और बढ़ गया. अब उस के लिए बंटी सब कुछ था.

एक बार जब उस पर जिस्मानी ताल्लुकात कायम हुआ तो बस यह सिलसिला चलता ही रहा. दोनों घंटोंघंटों बातें करते. एकदूसरे के बगैर दोनों के लिए रहना अब मुश्किल होता जा रहा था. लेकिन एक दिन उन के प्यार का भेद उन के परिजनों के सामने खुल गया तो कोहराम सा मच गया. उन को समझाया गया कि उन के बीच खून का संबंध होने के कारण उन की शादी नहीं हो सकती लेकिन वे प्रेम दीवाने कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे. आखिर रिश्ते में दोनों भाईबहन थे, ऐसे में समाज उन की शादी पर अंगुलियां उठाता और उन का जीना मुहाल हो जाता. परिजनों के विरोध से दोनों परेशान रहने लगे. इसी बीच बंटी के परिजनों ने उस की शादी बदायूं जनपद के गांव तिमरुवा निवासी एक युवती से तय कर दी.

शादी की तारीख तय हुई 26 जून, 2020. इस से सुखदेवी तो परेशान हुई ही बंटी भी बेचैन हो उठा. बेचैनी में काफी देर तक वह सोचता रहा, फिर उस ने फैसला कर लिया कि वह अब अपने प्यार को ले कर कहीं और चला जाएगा, जहां प्यार के दुश्मन उन को रोक न सकें. अपने फैसले से उस ने सुखदेवी को भी अवगत करा दिया. सुखदेवी भी उस के साथ घर छोड़ कर दूर जाने को तैयार हो गई. शादी की तारीख से एक दिन पहले 25 जून, 2020 को बंटी सुखदेवी को घर से ले कर भाग गया. उन के भाग जाने की भनक दोनों के घर वालों को लग गई. उन्होंने तलाशा लेकिन कोई पता नहीं चला. प्रेमी युगल के मिले शव पहली जुलाई को गढ़ा गांव के जंगल में देवराज उर्फ दानवीर के यूकेलिप्टस के बाग में बंटी और सुखदेवी की लाशें शीशम के एक पतले  से पेड़ पर लटकी मिलीं.

गांव के कुछ लड़के उधर आए तो उन्होंने यह देखी थीं. दोनों के घर वालों को उन लड़कों ने जानकारी दे दी. सूचना पा कर बंटी के घर वाले और गांव के लोग तो पहुंच गए, लेकिन सुखदेवी के घर वाले वहां नहीं पहुंचे. संबंधित थाना धनारी को घटना की सूचना दे दी गई. सूचना पा कर इंसपेक्टर सतेंद्र भड़ाना कुछ पुलिसकर्मियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. थानाप्रभारी की सूचना पर एएसपी आलोक जायसवाल और सीओ (गुन्नौर) डा. के.के. सरोज भी वहां पहुंच गए. सुखदेवी और बंटी की लाशें एक ही पेड़ से लटकी हुई थीं. सुखदेवी के गले में हरे रंग के दुपट्टे का फंदा था तो बंटी के गले में प्लास्टिक की रस्सी का. दोनों के चेहरे किसी तेजाब जैसे पदार्थ से झुलसे हुए थे. प्रथमदृष्टया मामला आत्महत्या का था, लेकिन दोनों के चेहरे झुलसे होने से हत्या का शक भी जताया जा रहा था.

फिलहाल मौके पर मौजूद मृतक बंटी के पिता बिन्नामी से पुलिस अधिकारियों ने आवश्यक पूछताछ की. फिर इंसपेक्टर सतेंद्र भड़ाना को दिशानिर्देश दे कर दोनों अधिकारी चले गए. इस के बाद पुलिस ने जरूरी काररवाई कर भड़ाना ने दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का सही कारण नहीं आ पाया. 7 जुलाई, 2020 को सुखदेवी के भाई 25 वर्षीय कुलदीप उर्फ सूखा का गढ़ा के जंगल में नीम के पेड़ से लटका शव मिला. जहां सुखदेवी और बंटी के शव मिले थे, उस से कुछ दूरी पर ही कुलदीप का शव मिला. थानाप्रभारी सतेंद्र भड़ाना  पुलिस टीम के साथ वहां पहुंचे. सीओ के.के. सरोज भी फोरैंसिक टीम के साथ पहुंच गए.

कुलदीप का शव प्लास्टिक की रस्सी से लटका हुआ था और उस का चेहरा भी तेजाब से झुलसा हुआ प्रतीत हो रहा था. लाश का निरीक्षण करने पर पता चला कि तीनों की मौत का तरीका एक जैसा ही था. मुआयना करने के बाद पुलिस को इस मामले में भी हत्या की साजिश नजर आ रही थी. पहले बंटी व सुखदेवी की मौत और अब सुखदेवी के भाई कुलदीप की मौत सिर्फ आत्महत्या नहीं हो सकती थी. हां, आत्महत्या का रूप दे कर हत्यारों ने गुमराह करने का प्रयास जरूर किया था. कुलदीप के घर वालों से पूछताछ की तो पता चला कि कुलदीप 25 जून से ही लापता था. लेकिन सुखदेवी और बंटी की मौत के बाद घर वाले पुलिस के पास जाने से डर रहे थे, इसलिए पुलिस तक सूचना नहीं पहुंची.

गढ़ा गांव में 3 हत्याओं के बाद एसपी यमुना प्रसाद एक्शन में आए. उन्होंने शीघ्र ही केस का खुलासा करने के निर्देश इंसपेक्टर सतेंद्र भड़ाना को दिए. मृतक बंटी के पिता बिन्नामी की तहरीर पर इंसपेक्टर भड़ाना ने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धाराओं 302/201/34 के तहत मुकदमा थाने में दर्ज करा दिया. इस के बाद थानाप्रभारी ने सुखदेवी के घर वालों से पूछताछ की तो सुखदेवी का भाई विनीत उर्फ लाला और किशोरी घर से गायब मिले. पुलिस ने दोनों की तलाश की तो गढ़ा के जंगल से दोनों को हिरासत में ले लिया. उन से पूछताछ की गई तो इन 3 हत्याओं का परदाफाश हो गया. उन से पूछताछ में कई और लोगों के शामिल होने का पता चला.

इस के बाद पुलिस ने गढ़ा गांव के ही जगपाल यादव उर्फ मुल्लाजी और श्योराज को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में सभी ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और घटना के बारे में विस्तार से बता दिया. पता चला कि सुखदेवी और बंटी के घर से लापता हो जाने के बाद उन के घर वाले काफी परेशान हो गए थे. जबकि बंटी सुखदेवी के साथ अपने गन्ने के खेत में छिप गया था. गांव के जगपाल यादव उर्फ मुल्लाजी ने 26 जून को उन्हें देख लिया. उस ने दोनों के खेत में छिपे होने की बात जा कर सुखदेवी के भाई विनीत उर्फ लाला को बता दी. विनीत ने यह बात अपने भाई किशोरी और गांव के श्योराज को बताई. समाज में बदनामी के डर से विनीत ने जगपाल से अपनी बहन सुखदेवी और बंटी को मारने की बात कही और बदले में ढाई लाख रुपया देने को कहा. जगपाल पेशे से अपराधी था, इसलिए वह हत्या करने को तैयार हो गया.

विनीत ने उसे ढाई लाख रुपए ला कर दे दिए. इस के बाद योजना बना कर रात 11 बजे चारों बंटी के खेत में पहुंचे. वे शराब और तेजाब की बोतल साथ ले गए थे. वहां पहुंच कर चारों ने बंटी और सुखदेवी को दबोच लिया. श्योराज ने बंटी को जबरदस्ती शराब पिलाई. फिर श्योराज पास में ही जगपाल के ट्यूबवेल पर पड़े छप्पर में लगी प्लास्टिक की रस्सी निकाल लाया. इस के बाद सुखदेवी के गले को उसी के हरे रंग के दुपट्टे से और बंटी के गले को प्लास्टिक की रस्सी से घोंट कर मार डाला. इसी बीच विनीत का छोटा भाई 25 वर्षीय कुलदीप उर्फ सूखा वहां आ गया. उस ने दोनों हत्याएं करते उन लोगों को देख लिया. विनीत ने उसे समझाबुझा कर वहां से वापस घर भेज दिया. इस के बाद वे लोग दोनों की लाशों को कुछ दूरी पर देवराज यादव उर्फ दानवीर के यूकेलिप्टस के बाग में ले गए.

वहां शीशम के पेड़ से दोनों की लाशों को दुपट्टे व रस्सी की मदद से लटका दिया. इस के बाद उन की पहचान मिटाने के लिए दोनों के चेहरों पर तेजाब डाल दिया. फिर वापस अपने घरों को लौट गए. कुलदीप को दौरे पड़ते थे, उन दौरों की वजह से उस का दिमाग भी सही नहीं था, उस पर भरोसा करना ठीक नहीं था. वह घटना का लगातार विरोध भी कर रहा था. इस पर चारों लोगों ने योजना बनाई कि कुलदीप को भी मार दिया जाए, नहीं तो वह उन लोगों का भेद खोल देगा. 2 जुलाई, 2020 को विनीत और उस के तीनों साथी कुलदीप को बहाने से रात को जंगल में ले गए. वहां गांव के नेकपाल यादव के खेत में कुलदीप का गला पीले रंग के दुपट्टे से घोंट कर उस की हत्या कर दी और उस की लाश को नीम के पेड़ से दुपट्टे से बांध कर लटका दिया.

और उस के चेहरे पर भी तेजाब डाल दिया. फिर निश्चिंत हो कर घरों को लौट गए. कुलदीप की हत्या उन के लिए बड़ी गलती साबित हुई. थानाप्रभारी सतेंद्र भड़ाना ने अभियुक्तों की निशानदेही पर हत्या के एवज में दिए गए ढाई लाख रुपए, शराब के खाली पव्वे और तेजाब की खाली बोतल बरामद कर ली. फिर आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी करने के बाद चारों अभियुक्तों विनीत उर्फ लाला, किशोरी, जगपाल और श्यौराज को न्यायालय में पेश किया गया, वहां से उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

UP News : बेटी के लवमैरिज से नाराज पिता ने लाडली बेटियां और दामाद को मारी गोली

UP News : बेटी कामिनी ने अपने प्रेमी प्रशांत से लवमैरिज कर ली तो उस के पिता बसपा नेता विनोद कुमार गौतम को लगा कि उस की नाक कट गई है. कटी नाक से रिसता खून रोकने के लिए उस ने बेटे को घर लाने की कोशिश की, लेकिन जब उस ने आने से मना कर दिया तो गौतम ने…

11 सितंबर, 2020 की बात है. प्रशांत कुमार के घर उस के ससुर विनोद कुमार गौतम, गौतम का छोटा भाई महावीर सिंह और बेटा रवि कुमार गौतम आए हुए थे. प्रशांत और उस के घर वालों ने उन की खूब खातिरदारी की. दरअसल, प्रशांत कुमार ने विनोद कुमार गौतम की बेटी कामिनी के साथ हाल ही में शादी की थी. शाम का खाना खाने के बाद प्रशांत के पिता रामऔतार अपने नए रिश्तेदारों के साथ बातचीत कर रहे थे, तभी रात 10 बजे के करीब गोलियां चलने की आवाज गूंज उठी. गोलियां नई बहू कामिनी के पिता विनोद कुमार गौतम ने चलाई थीं, जो प्रशांत और उस की पत्नी कामिनी को लगीं. दोनों लहूलुहान हालात में फर्श पर पड़े थे. गोलियां चलते ही घर में अफरातफरी का माहौल हो गया. घर के लोगों ने रोनापीटना शुरू कर दिया.

रामऔतार के घर से अचानक गोलियां चलने की आवाज गांव वालों के कानों तक पहुंची तो वे रामऔतार सिंह के घर की तरफ दौड़े. कोई समझ नहीं पा रहा था कि अचानक ऐसा क्या हो गया, जो गोली चल गई. लोग जब घर में पहुंचे तो वहां की स्थिति दिमाग को सुन्न कर देने वाली थी. लोगों के आने से पहले ही विनोद कुमार गौतम, उस का छोटा भाई महावीर सिंह और बेटा रविकांत गौतम वहां से भाग चुके थे. घर में खून ही खून फैला था. रामऔतार के बेटे प्रशांत कुमार और बहू कामिनी फर्श पर पड़े तड़प रहे थे. उन दोनों को देख यह बात सहज ही समझ आ रही थी कि गोलियां उन दोनों को ही लगी हैं.

तुरंत इस की सूचना थाना टांडा को दे दी गई. सूचना पा कर थानाप्रभारी माधव सिंह बिष्ट पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. सब से पहले उन्होंने घायल कामिनी और प्रशांत को अपनी गाड़ी में डाला और इलाज के लिए ले गए. उन्होंने दोनों को रामपुर के जिला अस्पताल में भरती करवा दिया. इस दौरान रामऔतार ने थानाप्रभारी को बता दिया था कि दोनों को गोली कामिनी के पिता विनोद कुमार गौतम ने मारी थी. वजह यह कि कुछ दिन पहले कामिनी ने अपने घर वालों को बिना बताए उन के बेटे प्रशांत से कोर्टमैरिज की थी. थानाप्रभारी माधो सिंह बिष्ट विनोद कुमार गौतम को अच्छी तरह जानते थे, क्योंकि वह बहुजन समाज पार्टी का ऊधमसिंह नगर जिले का जिला अध्यक्ष था. नेता होने की वजह से आए दिन अखबारों में उस का नाम आता रहता था. विनोद कुमार गौतम मामूली इंसान नहीं था. राजनीति में उस की ऊंची पहुंच थी.

थानाप्रभारी ने यह सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दे दी. सूचना मिलने के कुछ देर बाद ही रामपुर के एसपी शगुन गौतम जिला अस्पताल पहुंच गए. एसपी साहब ने दोनों घायलों का इलाज करने वाले डाक्टरों से बातचीत की. डाक्टरों ने बताया कि दोनों घायलों की हालत गंभीर है. मामला हाईप्रोफाइल था, इसलिए एसपी गौतम ने इस की सूचना आईजी रमित शर्मा को दे दी. रमित शर्मा ने एसपी गौतम को स्पष्ट निर्देश दिए कि हमलावर चाहे कितना भी प्रभावशाली व्यक्ति क्यों न हो, उस के खिलाफ तुरंत कड़ी काररवाई की जाए. उधर प्रशांत कुमार और कामिनी की गंभीर हालत को देखते हुए डाक्टरों ने दोनों को मुरादाबाद के कौसमौस अस्पताल रेफर कर दिया. कौसमौस अस्पताल के डा. अनुराग अग्रवाल के नेतृत्व में डाक्टरों की एक टीम ने दोनों घायलों का इलाज शुरू कर दिया.

प्रशांत को 2 गोलियां लगी थीं, जो उस के शरीर में फंसी हुई थीं. डाक्टरों की टीम ने उस के शरीर से दोनों गोलियां सफलतापूर्वक निकाल दीं. एसपी शगुन कुमार गौतम ने आईजी साहब के निर्देश पर इस मामले को सुलझाने के लिए एक पुलिस टीम बनाई. उन्होंने टीम में थानाप्रभारी माधव सिंह बिष्ट और अजीमनगर के थानाप्रभारी सुभाष मावी को भी शामिल किया. पुलिस टीम ने आरोपियों की तलाश शुरू कर दी. ये सभी काशीपुर के निकटवर्ती गांव पेगा के रहने वाले थे. पुलिस टीम ने उन के घर दबिश दे कर 13 सितंबर,2020 को तीनों अभियुक्तों विनोद कुमार गौतम, उस के छोटे भाई महावीर सिंह और बेटे रविकांत गौतम को गिरफ्तार कर लिया.पुलिस ने विनोद गौतम की निशानदेही पर उस की, लाइसैंसी पिस्टल भी बरामद कर ली, जिस से जानलेवा हमला किया था.

इन तीनों से व्यापक पूछताछ की गई. पुलिस पूछताछ के बाद इस मामले की जो कहानी सामने आई, वह प्यार की बुनियाद पर टिकी थी. रामपुर जिले के थाना टांडा के अंतर्गत एक गांव है सैदनगर. इसी गांव में रामऔतार सिंह अपने 5 बच्चों के साथ रहते थे. उन के 2 बेटे और 3 बेटियां थीं. प्रशांत कुमार उन का सब से बड़ा बेटा था. प्रशांत के एक चाचा हैं कुंवरपाल सिंह, जिन की ससुराल काशीपुर में थी. प्रशांत काशीपुर में रह कर पढ़ाई कर रहा था. काशीपुर में ही एक शादी समारोह में प्रशांत की मुलाकात कामिनी से हुई. कामिनी काशीपुर के गांव पेगा के रहने वाले विनोद कुमार गौतम की बेटी थी. विनोद कुमार गौतम के 4 बेटियां और एक बेटा था, जिस में कामिनी सब से बड़ी थी. कामिनी भी काशीपुर के एक कालेज से पढ़ाई कर रही थी. कामिनी और प्रशांत दूर के रिश्तेदार थे.

शादी समारोह में दोनों एकदूसरे को देख कर बहुत प्रभावित हुए. दोनों में आपस में काफी बातें हुईं. दोनों एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर भी  दे दिए. यह करीब 2 साल पहले की बात है. इस के बाद दोनों का फोन पर बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. जब भी खाली होते, दोनों खूब बातें करते. बातों का दायरा धीरेधीरे बढ़ता चला गया और उन के दिलों में प्यार के अंकुर फूट निकले. चाहतों की उड़ान में दोनों यह भी भूल गए कि वे रिश्तेदार हैं. प्रशांत चाहता था कि वह आईएएस अफसर बने, इसलिए उस ने ठाकुरद्वारा कस्बे में स्थित नालंदा आईएएस अकैडमी में कोचिंग करनी शुरू कर दी. उधर कामिनी भी काशीपुर के एक कालेज से बीए कर रही थी. इसी दौरान प्रशांत का चयन उत्तर प्रदेश पुलिस में कांस्टेबल के पद पर हो गया. प्रशांत ने सोचा कि वह नौकरी करते हुए अपनी सिविल सर्विस की तैयारी जारी रखेगा.

पुलिस में चयन हो जाने के बाद उसे ट्रेनिंग के लिए मेरठ भेज दिया गया. प्रेमी की नौकरी लग जाने के बाद कामिनी बहुत खुश हुई. उन दोनों के बीच पहले की तरह ही बातचीत चलती रही. दोनों ने तय कर लिया था कि पुलिस ट्रेनिंग पूरी हो जाने के बाद शादी कर लेंगे. कामिनी ने प्रशांत को बताया कि उस के पिता दबंग प्रवृत्ति के हैं, इसलिए उन दोनों की शादी हरगिज नहीं होने देंगे. इस पर दोनों तय किया कि घर वालों को बिना बताए कोर्टमैरिज कर लेंगे. इस के बाद दोनों अपने भविष्य के तानेबाने बुनने लगे. ट्रेनिंग पूरी हो जाने के बाद प्रशांत की पहली पोस्टिंग बरेली स्थित पीएसी की 8वीं बटालियन में हो गई. 28 अगस्त, 2020 को प्रशांत छुट्टी ले कर अपने घर आया. इसी दौरान प्रशांत और कामिनी ने रामपुर की कोर्ट में शादी कर ली.

घटना से 4 दिन पहले की बात है, कामिनी अपने घर वालों को बिना बताए प्रशांत के घर यानी अपनी ससुराल पहुंच गई. घर से कामिनी के अचानक गायब हो जाने के बाद उस के घर वाले परेशान हो गए. वे समझ नहीं पा रहे थे कि कामिनी अचानक कहां गायब हो गई. उन्होंने अपने स्तर पर उसे ढूंढना शुरू कर दिया, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. जवान बेटी के घर से गायब हो जाने पर जो उस के मातापिता पर गुजरती है, उसे भुक्तभोगी ही समझ सकता है. विनोद कुमार गौतम का भी बुरा हाल था. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि बेटी को कहां ढूंढें. विनोद कुमार गौतम के एक रिश्तेदार सैदनगर में रहते थे. विनोद गौतम ने अपने रिश्तेदार से कामिनी के गायब होने के बारे में बात की. तब रिश्तेदार ने बताया कि कामिनी तो यहां प्रशांत के घर आई हुई है. साथ ही यह भी बता दिया कि शायद कामिनी और प्रशांत ने शादी कर ली है.

यह सुन कर विनोद गौतम के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई. वह दबंग किस्म का व्यक्ति था. राजनीति में भी उस का काफी प्रभाव था. जब लोगों को यह बात पता चलेगी तो उस की समाज में क्या इज्जत रह जाएगी, यह सोचसोच कर वह परेशान हो गया. काफी सोचविचार के बाद विनोद गौतम ने 9 सितंबर को प्रशांत कुमार के पिता रामऔतार सिंह को फोन किया. उस ने रामऔतार से अपनी बेटी कामिनी के बारे में पूछा. उन्होंने बता दिया कि प्रशांत और कामिनी ने कोर्ट में शादी कर ली है. इस की खबर उन्हें भी शादी के बाद ही मिली. यह सुन कर गौतम बहुत परेशान हो गया. उस ने गंभीर लहजे में रामऔतार से कहा कि तुम्हारे लड़के ने अच्छा नहीं किया. उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था. कम से कम रिश्तेदारी का तो लिहाज रखता. इस पर रामऔतार ने कहा कि यह जानकारी उन्हें बाद में मिली.

अगर पहले पता होता तो वह उसे समझाते भी. वैसे भी दोनों बालिग हैं, इस में हम क्या कर सकते हैं. विनोद कुमार गौतम खून का घूंट पी कर रह गया. उधर ससुराल में कामिनी खुश थी. ऐसे में विनोद गौतम की समझ में नहीं आ रहा कि क्या करे, क्योंकि बात उस की इज्जत से जुड़ी थी. काफी सोचविचार के बाद 9 सितंबर, 2020 को गौतम ने प्रशांत के पिता रामऔतार को फोन कर के कहा कि जो हो गया उसे छोड़ो. हम चाहते हैं कि दोनों की शादी सामाजिक रीतिरिवाज से कर दी जाए. इस सिलसिले में बात करने के लिए हम सैदनगर आ रहे हैं. अपने साथ गांव के कुछ लोगों को भी साथ लाएंगे, आप भी गांव के कुछ संभ्रांत लोगों को इकट्ठा कर लेना,  फिर इस बारे में बातचीत कर ली जाएगी.

विनोद कुमार गौतम अपने कई परिचितों और कुछ लोगों को साथ ले कर तय समय पर सैदनगर पहुंच गया. उधर रामऔतार ने भी गांव के कुछ लोगों को इकट्ठा कर लिया था. सभी लोग साथ बैठे और पंचायत शुरू हो गई. पंचायत में विनोद गौतम ने अपनी इज्जत का वास्ता देते हुए कहा कि देखो गांव और समाज में हमारी बहुत बदनामी हो रही है. आप से अनुरोध है कि आप मेरी बेटी कामिनी को मेरे साथ घर भेज दें. इस पर रामऔतार सिंह ने साफ मना करते हुए कहा कि वह अपनी बहू को अभी नहीं भेजेंगे. फलस्वरूप विनोद गौतम मुंह लटका कर लौट गया. 10 सितंबर, 2020 को भी विनोद गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर सैदनगर पहुंचा. इस बार भी उस ने कामिनी को साथ भेजने की बात कही, लेकिन कामिनी ने पिता से मना कर दिया कि वह अभी उन के साथ नहीं जाएगी.

विनोद गौतम को उम्मीद थी कि उस की बेटी इतनी बदल जाएगी. वह उसे जबरदस्ती तो घर नहीं ले जा सकता था, इसलिए उस ने बेटी को समझाने की काफी कोशिश की, पर कामिनी नहीं मानी. रामऔतार सिंह ने कह दिया कि जब बेटी जाने से मना कर रही है तो आप उसे फिर कभी ले जाना. इस बार भी विनोद गौतम को खाली हाथ लौटना पड़ा. लेकिन विनोद गौतम हार मानने वालों में से नहीं था. वह चाहता था कि किसी भी तरह एक बार कामिनी उस के साथ घर पहुंच जाए, इस के बाद क्या करना है, वह तय करेगा. लिहाजा वह बेटी को घर लाने के उपाय खोजने  लगा. 11 सितंबर, 2020 को भी विनोद गौतम अपने भाई महावीर सिंह और बेटे रविकांत के साथ फिर सैदनगर पहुंचा. चूंकि विनोद गौतम रामऔतार का नजदीकी रिश्तेदार बन चुका था, लिहाजा उन्होंने उन सब की खातिरदारी की.

रात का खाना खाने के बाद गौतम ने उन से कहा कि मेरी बात पर विश्वास करो. मैं कामिनी को घर ले जाना चाहता हूं और इस के बाद इन दोनों की शादी धूमधाम से करूंगा. अगर कामिनी घर चली जाएगी तो कम से कम समाज में मेरी इज्जत तो बनी रहेगी. इस बार रामऔतार ने कहा कि हमारी तरफ से कोई रोक नहीं है. हम अपनी बहू को भेजने से मना नहीं कर रहे, पर आप सीधे उस से बात कर लें तो ज्यादा अच्छा है. अगर वह जाना चाहती है तो हमें कोई एतराज नहीं होगा. रामऔतार ने बात करने के लिए बहू कामिनी को कमरे में बुलाया. कामिनी पति प्रशांत के साथ कमरे में आई तो वहां पहुंचते ही सब से पहले उस ने वहां बैठे अपने ससुर रामऔतार के पैर छुए. प्रशांत का चेहरा देखते ही गौतम का खून खौल उठा, लेकिन उस समय उस ने खुद पर कंट्रोल रखा.

विनोद कुमार गौतम ने कामिनी से बात की और उस से घर चलने को कहा. उस समय रात के करीब 10 बज रहे थे. पिता की बातों पर कामिनी का दिल भी पसीज गया. लेकिन उस ने कहा कि पापा अब तो रात ज्यादा हो गई है, सुबह मैं आप के साथ चलूंगी. लेकिन गौतम अपनी जिद पर अड़ा हुआ था. वह कामिनी पर उसी समय साथ चलने के लिए दबाव डाल रहा था, पर कामिनी पिता के साथ रात में जाने को तैयार नहीं थी. वह बारबार कह रही थी कि अभी नहीं, सुबह को चलेंगे. प्रशांत और कामिनी विनोद गौतम के सामने खड़े थे. प्रशांत का चेहरा देख कर गौतम का धैर्य जवाब दे गया. उस के दिमाग में एक ही बात घूम रही थी कि यह सब प्रशांत की वजह से ही हो रहा है, इसी की वजह से समाज में उस की नाक कटी है, बदनामी हो रही है.

लिहाजा गुस्से में आगबबूला हुए विनोद गौतम ने अपनी अंटी से लाइसैंसी पिस्तौल निकाली और प्रशांत पर निशाना साधते हुए कई फायर किए. इन में से 2 गोलियां प्रशांत के लगीं और एक गोली कामिनी को. गोली लगते ही प्रशांत और कामिनी फर्श पर गिर पड़े. कुछ ही पलों में फर्श पर खून फैल गया. अचानक मची अफरातफरी में मौके का फायदा उठा कर विनोद कुमार गौतम, उस का छोटा भाई महावीर सिंह और बेटा रविकांत गौतम वहां से भाग गए. जाते वक्त वे अपनी वैगनआर कार नंबर यूके06 पी7349 वहीं छोड़ गए. बेटा और बहू को लहूलुहान हालत में देख कर रामऔतार के घर में चीखपुकार मचनी शुरू हो गई. उधर गोलियां चलने की आवाज सुन कर मोहल्ले वाले भी रामऔतार के घर पहुंच गए. उसी दौरान रामऔतार ने इस की सूचना थाना टांडा में दे दी.

सूचना पा कर थानाप्रभारी माधोसिंह बिष्ट कुछ ही देर में घटनास्थल पर पहुंच गए और काररवाई शुरू की. तीनों आरोपियों विनोद कुमार गौतम, महावीर सिंह और रविकांत से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. विनोद कुमार गौतम के जेल जाने के बाद बसपा हाईकमान ने उसे पार्टी से निष्कासित कर दिया. इस के अलावा जिला प्रशासन ने  उस के लाइसैंसी पिस्टल का लाइसैंस निरस्त करने की काररवाई शुरू कर दी. कथा लिखने तक गंभीर रूप से घायल प्रशांत कुमार और उस की पत्नी कामिनी का मुरादाबाद के कौसमौस अस्पताल में इलाज चल रहा था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Uttarakhand Crime : तमंंचा निकाल कर पत्नी के सीने में दागी गोली

Uttarakhand Crime : आज की युवा लड़कियों के लिए पारिवारिक, सामाजिक अथवा मानसिक स्तर में से किसी एक में सुदृढ़ होना जरूरी है. क्योंकि जो युवा लड़कियां इन में से हर स्तर पर कमजोर होती हैं, उन्हें पथभ्रष्ट करने वालों की समाज में कमी नहीं है. आसिफ ने नेहा की इसी कमजोरी का लाभ उठा कर उसे…

रंजना के पति राजू की 15 साल पहले मृत्यु हो गई थी. उस समय रंजना के चारों बच्चे, 2 बेटे और 2 बेटियां छोटे थे. ऐसे में विधवा औरत के कंधों पर अगर 4 बच्चे पालने की जिम्मेदारी आ जाए तो उस के लिए मुश्किल हो जाती है. बिना मर्द के राह में कई रोड़े आ जाते हैं, अंजना के साथ भी यही हुआ. उस के पास बदायूं के मोहल्ला लोटनपुरा में पति राजू का बनाया घर तो था, लेकिन जमापूंजी या आय का कोई साधन नहीं था. मजबूरी में उसे 2 बच्चों आशीष और नेहा की जिम्मेदारी अपने जेठ सरवन को सौंपनी पड़ी, जो पड़ोस में ही रहते थे. 2 बच्चों बेटे अनिल और बेटी नीना को साथ ले कर उस ने घर से थोड़ी दूर बसे गांव कुंवरपुर निवासी छोटे के साथ बिना किसी विधिविधान के रहना शुरू कर दिया. समाज के सहयोग से बने नए पति के साथ रहने को बैठना कहा जाता है.

रंजना के बच्चे समय के साथ बड़े होने लगे. सारी बातों को समझने लायक हुए तो उन्होंने पढ़ाई में विशेष ध्यान देना शुरू कर दिया. आशीष के स्नातक तक की पढ़ाई करने के बाद नेहा ने भी स्नातक की शिक्षा ग्रहण कर ली. नेहा जवान और बालिग हो चुकी थी. गौरवर्ण वाली नेहा की देहयष्टि आकर्षक थी, चेहरे पर मासूमियत. झील सी गहरी आंखों में तो कोई भी उतरने को तैयार हो जाता. नेहा पर कालेज में कई युवक फिदा थे. जब वह कंप्यूटर इंस्टीट्यूट में कंप्यूटर सीखने के लिए जाने लगी तो वहां आने वाले युवक भी उस पर डोरे डालने लगे. लेकिन नेहा किसी को भाव नहीं देती थी, न ही उन में से कोई उस के दिल को भाया था. फिर एक दिन उस की जिंदगी का वह दिन भी आया, जब उस के दिल में किसी ने दस्तक दे दी.

एक स्मार्ट और दर्शनीय युवक ने उस की कंप्यूटर क्लास में आना शुरू किया. वह काफी मिलनसार और हंसमुख था. पहले दिन वह सब से बारीबारी से मिला और अपना परिचय दिया. उस ने अपना नाम राजकुमार बताया. नेहा को ऐसा लगा जैसे वह नाम का ही नहीं, उस के दिल का राजकुमार भी है. नेहा ने मुसकरा कर उस का स्वागत किया. समय के साथ दोनों में दोस्ती हो गई. साथ बैठ कर दोनों खूब बातें करने लगे. राजकुमार भी उस में दिलचस्पी ले रहा था. वह नेहा की खूबसूरती को चुपचाप निहारता रहता था. असल में राजकुमार की नजर नेहा पर ही थी. वह उसी के लिए वहां आया था. उस ने नेहा के नजदीक रहने, उस से मेलजोल बढ़ाने के लिए ही कंप्यूटर क्लासेज जौइन की थी. नेहा को वह अपने दिल की रानी बनाना चाहता था.

प्यार की शुरुआत बातें करतेकरते नेहा ने भी कई बार गौर किया कि राजकुमार नजरें चुरा कर उसे निहारता है. इस का मतलब यह था कि वह भी उसे दिल ही दिल में चाहता है, लेकिन मन की बात कह नहीं पा रहा है या फिर मौके की तलाश में है. उस के बारे में सोच कर नेहा मन ही मन खुश थी. राजकुमार नेहा को हंसाने और उस का दिल बहलाने का कोई मौका नहीं छोड़ता था. एक दिन कंप्यूटर क्लासेज खत्म होने पर जब सब घर जाने लगे तो रास्ते में राजकुमार ने नेहा को रोक लिया. नेहा ने प्रश्नवाचक निगाहों से उस की ओर देखा तो वह बोला, ‘‘नेहा, एक मिनट के लिए रुक जाओ. मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं.’’

‘‘क्या कहना चाहते हो?’’

‘‘नेहा, पहले वादा करो कि तुम्हें मेरी बात अच्छी नहीं लगी तो बुरा नहीं मानोगी.’’

‘‘मुझे पता तो चले कि बात क्या है? बुरा मानना या न मानना तो बाद की बात है.’’

‘‘आई लव यू नेहा… आई लव यू. हां नेहा, मैं तुम से बेइंतहा प्यार करता हूं. अगर तुम मेरे प्यार को स्वीकार कर लो तो मेरी जिंदगी संवर जाएगी.’’

‘‘तुम्हारी यह कहने की हिम्मत कैसे हुई?’’

नेहा की तीखी आवाज सुन कर राजकुमार सकपका गया. उस की हालत देख कर नेहा खिलखिला कर हंस पड़ी. नेहा को हंसता देख राजकुमार ने प्रश्नवाचक निगाहों से उस की ओर देखा तो नेहा बोली, ‘‘बस इतने में घबरा गए. मैं भी तुम से प्यार करती हूं और यह भी जानती थी कि तुम भी मुझ से प्यार करते हो लेकिन मैं चाहती थी कि पहल तुम ही करो.’’

राजकुमार ने खुश हो कर उसे गले लगाना चाहा तो नेहा पीछे हटते हुए बोली, ‘‘देख नहीं रहे हो, हम दोनों सड़क पर खड़े हैं. यह खुशी रोक कर रखो, समय आने पर जता देना.’’ कह कर नेहा वहां से चली गई.

दूसरे दिन दोनों सुनसान जगह पर एकांत में झाडि़यों के पीछे बैठ गए. राजकुमार ने नेहा का चेहरा अपने हाथों में लेते हुए कहा, ‘‘नेहा, तुम्हारा फूलों सा चेहरा और कलियों जैसी मुसकान देख ऐसा लगा जैसे मेरे जीवन की बगिया में बहार आ गई है. आज मैं इतना खुश हूं कि बयान नहीं कर सकता.’’

नेहा अपनी सुंदरता की तारीफ सुन कर शरमाते हुए बोली, ‘‘तुम बेकार में मेरी तारीफ किए जा रहे हो, जैसी भी हूं, तुम्हारे सामने हूं. मैं अपनी सुंदरता पर प्यार लुटाने का अधिकार तुम्हें पहले ही दे चुकी हूं.’’

‘‘तुम्हारी खूबसूरती और शरारत भरी बातों ने ही मेरा दिल जीत लिया है.’’ कह कर राजकुमार ने उसे अपने सीने से लगा लिया. इस के बाद दोनों का प्यार दिनोंदिन परवान चढ़ने लगा. नेहा और राजकुमार एक जाति के नहीं थे. इसलिए उन के परिवार उन के विवाह के लिए तैयार नहीं होंगे, यह बात दोनों जानते थे. हालांकि राजकुमार ने नेहा को कभी अपने परिवार से नहीं मिलाया था, न इस बारे में कुछ बताया था. नेहा ने राजकुमार को अपने भाई व ताऊ से मिलवाया, लेकिन वे नेहा का रिश्ता राजकुमार से जोड़ने को तैयार नहीं हुए. उन दिनों नेहा की मां रंजना अपने पति छोटे के साथ उत्तराखंड के रूद्रपुर में रह रही थी. नेहा राजकुमार के साथ मां के पास गई और मां पर राजकुमार से विवाह का दबाव डालने लगी. उस ने मां को धमकाया भी कि अगर राजकुमार से उस का विवाह नहीं हुआ तो वह हाथ की नस काट कर अपनी जान दे देगी.

राजकुमार की खुली पोल रंजना बेटी को खो देने के डर से सहम गई. नेहा के पीछे पड़ने से आखिर रंजना को बेटी की जिद के आगे झुकना पड़ा. उस ने बेटी नेहा का विवाह हिंदू रीतिरिवाज से राजकुमार से कर दिया. यह डेढ़ साल पहले की बात है. दोनों वहीं रहने लगे. कुछ दिनों बाद राजकुमार उसे दिल्ली ले आया. दिल्ली में रहते हुए वह एक फर्नीचर की दुकान पर काम करने लगा, वह पेशे से बढ़ई था. फिर एक दिन नेहा के सामने उस की पोल खुल गई. राजकुमार का असली नाम आसिफ उर्फ बाबा था. आसिफ उर्फ बाबा बदायूं के निकटवर्ती गांव शेखूपुर का रहने वाला था. उस के पिता शकील खेतीकिसानी करते थे. आसिफ 4 भाई व 2 बहनों में तीसरे नंबर का था. 2018 में बदायूं शहर के खंडसारी मोहल्ला निवासी हिस्ट्रीशीटर रहे नईम उर्फ राजा की छह सड़का के नजदीक गोली मार कर हत्या कर दी गई थी, जिस में 17 लोगों के नाम सामने आए थे.

उन में आसिफ के पिता शकील और बड़े भाई साबिर का भी नाम था. पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया था, तब से दोनों जेल में हैं. आसिफ का विवाह ढाई साल पहले आगरा की अर्शी के साथ हुआ था. उस से आसिफ का एक डे़ढ साल का बेटा भी है. आसिफ शातिर और खुराफाती था. वह उन मुसलिम युवकों में से था जो हिंदू नाम रख कर हिंदू युवतियों को प्रेमजाल में फंसाते हैं और उन से विवाह कर लेते है. उस के बाद उन्हें अपना धर्म स्वीकार कर के अपने साथ रहने को मजबूर करते हैं. ये लोग युवती के न मानने पर उस की जान लेने से भी पीछे नहीं हटते. आसिफ ने पहले से शादीशुदा होते हुए हिंदू बन कर फरजी नाम राजकुमार रखा और नेहा को पे्रमजाल में फंसाया और उस से हिंदू रीतिरिवाज से विवाह कर लिया. शादी के बाद दिल्ली पहुंचने पर नेहा के सामने राजकुमार का असली नाम और रूप तब आया, जब आसिफ की पत्नी अर्शी उस के पास रहने के लिए आई.

नेहा अभी उस के विधर्मी होने के झटके को नहीं सह पाई थी कि उस के शादीशुदा और एक बच्चे का बाप होने की बात पता लगी तो उस पर जैसे वज्रपात हो गया. आसिफ के दिए धोखे से नेहा सन्न थी. इस के बाद नेहा और आसिफ में रोज विवाद होने लगा. एक दिन नेहा ने अपने भाई आशीष को फोन कर के आसिफ की सच्चाई बताई और घर वापस आने की इच्छा जाहिर की. लेकिन आशीष ने उस से कोई संबंध न होने की बात कह कर फोन काट दिया. इस से नेहा आसिफ के साथ रहने को मजबूर हो गई. मजबूरी में नेहा आसिफ और उस की पहली पत्नी अर्शी के साथ रह रही थी. नेहा को उन के साथ रहना दुश्वार लग रहा था. इसलिए आए दिन किसी न किसी समय उस का मूड उखड़ जाता तो वह आसिफ से भिड़ जाती थी.

आसिफ उस की चिकचिक से तंग आने लगा था. वैसे भी नेहा के साथ वह भरपूर समय बिता चुका था. उसे नेहा गले में फंसी हड्डी की तरह लगने लगी थी. इसी बीच लौकडाउन शुरू हो गया. सारा कामकाज बंद हो गया. कमाई न होने से खाने के लाले पड़ने लगे. आसिफ की पहली पत्नी अर्शी अपने मायके आगरा चली गई. कोई सहारा न देख आसिफ नेहा के साथ घर वापस लौटने की सोचने लगा. लौकडाउन में वह नेहा को ले कर अपने गांव शेखूपुर पहुंच गया. वहां भी नेहा से उस का विवाद होता रहता था. ऐसे में आसिफ उस की पिटाई कर देता था. कुछ समय पहले वह नेहा को ले कर नोएडा गया और एक फरनीचर की दुकान पर काम करने लगा. शातिरदिमाग आसिफ ने अपने मोबाइल में एक रिकौर्डिंग कर के नेहा को सुनाई कि उस के भाई उन दोनों को मारना चाहते हैं. इस के लिए इधरउधर से धमकियां दी जा रही हैं. नेहा ने उस की बात पर फिर से भरोसा कर लिया.

आसिफ ने नेहा से एक औडियो रिकौर्ड करवाई, जिस में वह अपने भाइयों का नाम ले कर कह रही है कि यहां से जल्दी चलो. उस के भाई के पास तमंचा है. उस ने इसी तरह की और भी कई औडियो नेहा की रिकौर्ड करवा कर अपने मोबाइल में रख लीं. शातिरदिमाग आसिफ नेहा से हमेशा के लिए छुटकारा पाने और अपने आप को बचाने की तैयारी में लगा था. आसिफ ने उस से कहा कि बदायूं चलते हैं वहां कालेज से तुम अपनी मार्कशीट निकाल लेना, मेरा भी कुछ काम है, मैं उसे निपटा लूंगा. नेहा ने हामी भर दी. 25 सितंबर की दोपहर दोनों बदायूं पहुंचे. आसिफ ने उसे मार्कशीट निकलवाने के लिए कालेज में छोड़ दिया. वह खुद अपने गांव शेखूपुर गया. वहां से अपने चचेरे भाई सलमान की बाइक ले कर अपने दोस्त तौफीक उर्फ बबलू के घर जाने के लिए निकल गया.

तौफीक बदायूं के कस्बा उझानी के मोहल्ला अयोध्यागंज में रहता था और सब्जी का ठेला लगाता था. आसिफ ने उसे अपनी योजना के बारे में बता दिया था. आसिफ बबलू के घर पहुंचा और वहां से तमंचा ले कर गांव जाने के बजाए वह गांव से पहले ही एक जगह रुक गया. नेहा के फोन करने पर आसिफ ने उसे आटो से गांव आने की बात कही. तब तक अंधेरा हो चुका था. नेहा आटो में बैठ कर गांव के लिए चल दी. रास्ते में आसिफ का फोन आने पर वह मीरासराय और शेखूपुर के बीच में उतर गई. वह सुनसान इलाका था. नेहा आटो से उतरी तो आसिफ वहां पहले से मौजूद था. नेहा के पास आते ही उस ने तमंचा निकाल कर नेहा के सीने पर दिल की जगह पर गोली मार दी. गोली लगते ही नेहा जमीन पर गिर कर तड़पने लगी. आसिफ वहां से अपने गांव चला गया.

घर में तमंचा छिपाने के बाद उस ने सलमान की बाइक उसे लौटा दी. फिर अपने मोबाइल से नेहा के मोबाइल पर काल करने लगा. उधर जहां नेहा को गोली मारी गई थी, वहां से गुजर रहे कुछ राहगीरों ने गोली लगी नेहा को बेहोशी की हालत में देखा तो वहां रुक गए. उस के मोबाइल की घंटी बजी तो एक राहगीर ने फोन उठा कर काल रिसीव कर ली. दूसरी ओर से आसिफ बोला तो राहगीर ने उस के घायल होने की बात बताई. इस पर योजना के तहत आसिफ आटो ले कर वहां पहुंच गया. नेहा को आटो में लिटा कर वह रात 8 बजे जिला अस्पताल पहुंचा. वहां डाक्टरों ने नेहा को देख कर मृत घोषित कर दिया. डाक्टरों ने पुलिस केस कह कर नेहा की लाश मोर्चरी में रखवा दी और आसिफ से पुलिस को सूचना देने को कहा.

आसिफ वहां से सीधा सिविल लाइंस थाने पहुंचा. उस समय इंसपेक्टर सुधाकर पांडेय अपने औफिस में मौजूद थे. आसिफ ने उन्हें बताया कि उस की पत्नी नेहा को उस के भाइयों ने गोली मार दी है. नेहा से उस ने प्रेम विवाह किया था, इसलिए वे नाराज थे. अपनी बात को साबित करने के लिए उस ने अपने मोबाइल में पड़ी औडियो रिकार्डिंग सुनाई, जिस में नेहा अपने भाइयों से जान का खतरा जता रही थी. काम नहीं आया शातिराना अंदाज उस की बातें सुनने के बाद इंसपेक्टर पांडेय पुलिस टीम के साथ आसिफ को ले कर जिला अस्पताल गए. वहां नेहा की लाश को देखा. नेहा के शरीर पर किसी प्रकार की चोट के निशान नहीं थे. दिल की जगह पर गोली लगने का गहरा घाव था. डाक्टर से आवश्यक पूछताछ के बाद इंसपेक्टर पांडेय आसिफ को ले कर घटनास्थल पर गए. वहां लोगों से पूछताछ की तो कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिला, जिस ने हमला होते हुए देखा हो. सभी ने नेहा को सड़क पर घायल पडे़ हुए देखा था.

आसिफ को साथ ले कर इंसपेक्टर पांडेय नेहा के घर पहुंचे और आसिफ द्वारा बताए अनुसार नेहा के सगे भाई आशीष और तहेरे भाई राज को थाने ले आए. रात में ही थाने में आसिफ, आशीष और राज से कई बार पूछताछ की गई. पूछताछ के दौरान इंसपेक्टर पांडेय ने तीनों के चेहरों पर विशेष नजर रखी, जिस से आसिफ शक के घेरे में आ गया. बाद में जब उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उस ने अपना जुर्म कुबूल करते हुए पूरी कहानी बयां कर दी. पूछताछ के बाद नेहा के दोनों भाइयों को छोड़ दिया गया. आशीष से लिखित तहरीर ले कर इंसपेक्टर पांडेय ने 26 सितंबर को आसिफ और तौफीक उर्फ बबलू के खिलाफ भादंवि की धारा 302/120बी के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. सुधाकर पांडेय ने आसिफ की निशानदेही पर आसिफ के घर से हत्या में प्रयुक्त तमंचा और सलमान के घर से हत्या में इस्तेमाल उस की बाइक बरामद कर ली.

कागजी खानापूर्ति करने के बाद 27 सितंबर को आसिफ को न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया. 28 सितंबर को इंसपेक्टर पांडेय ने शहर के गांधी ग्राउंड से तौफीक उर्फ बबलू को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. यह लव जिहाद का मामला उन युवतियों के लिए सबक है जो बिना सोचेसमझे बिना जांचेपरखे बिना हकीकत जाने किसी भी युवक से दिल लगा बैठती हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

UP Crime : पत्नी के प्रेमी की हत्या फिर शव को तिरपाल में लपेटकर कुएं में फेंका

UP Crime : तेज रफ्तार से दौड़ते आज के जमाने में पतिपत्नी के रिश्ते को सात जन्मों का बंधन कहना या बताना बेमानी है. अब तो एक जन्म ही ईमानदारी से गुजर जाए, बड़ी बात है. ऐसे में अगर किसी तीसरे की घुसपैठ हो जाए तो…

घर वालों को लवकुश की तलाश करते हुए 5 दिन हो गए थे, लेकिन उस का कोई पता नहीं चल रहा था. आखिर थकहार कर 9 अगस्त, 2020 को उस के छोटे भाई रामू शर्मा ने पचोखरा थाने जा कर लवकुश के लापता होने की जानकारी दी. इस पर पुलिस ने उस का मोबाइल नंबर ले कर सर्विलांस पर लगवा दिया. जिला फिरोजाबाद के थाना पचोखरा क्षेत्र के गांव नगला गंगाराम का रहने वाला 26 वर्षीय लवकुश शर्मा 5 अगस्त, 2020 को घर से बिना बताए चला गया था. वह देर रात तक घर नहीं लौटा तो घर वाले परेशान हो गए. उस का मोबाइल फोन भी बंद था. इस से घर वालों की चिंता और भी बढ़ गई.

कुछ परिचितों को साथ ले कर घर वालों ने रात में ही लवकुश की तलाश शुरू कर दी. वे लोग उसे काफी रात तक खोजते रहे, लेकिन उस का कोई पता नहीं चला. दूसरे दिन से लवकुश के घर वालों ने उस की तलाश के लिए भागदौड़ कर रिश्तेदारियों में भी पता किया लेकिन उस का कोई सुराग नहीं मिला. 12 अगस्त को रामू शर्मा फिर थाने गया और भाई के बारे में जानकारी हासिल की. इस पर पुलिस ने तहरीर देने को कहा. तब रामू ने कुलदीप की गुमशुदी दर्ज करा दी. पुलिस ने रामू से पूरे घटनाक्रम की जानकारी ली. रामू ने बताया, ‘‘लवकुश 5 अगस्त की शाम को घर वालों को बिना बताए कहीं गया था. लेकिन आज 8 दिन बाद भी उस का कोई पता नहीं चल रहा है. उस का मोबाइल भी बंद है. हम ने उसे हर जगह तलाशा लेकिन उस का कोई सुराग नहीं मिला.’’

पुलिस लवकुश की तलाश में जुट गई. जांच कर रही पचोखरा थाने की पुलिस को जानकारी मिली कि लवकुश के गांव के ही रहने वाले उस के दोस्त कुलदीप की पत्नी मधुरिमा (परिवर्तित नाम) से प्रेमिल रिश्ते थे. कुलदीप उस का दूर के रिश्ते का भाई था. पत्नी से लवकुश के प्रेमिल रिश्ते से परेशान हो कर कुलदीप ने काफी दिनों पहले गांव छोड़ दिया था. वह अपने परिवार के साथ आगरा के खंदौली क्षेत्र स्थित मुड़ी चौराहे के पास किराए के मकान में रह रहा था. उस की ससुराल भी वहां से कुछ ही दूर थी. पुलिस ने लवकुश का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर पहले ही लगा दिया था. उस के मोबाइल की अंतिम लोकेशन खंदौली क्षेत्र की ही मिली थी.

13 अगस्त, 2020 को सीओ देवेंद्र सिंह के निर्देश पर पचोखरा थाने के थानाप्रभारी संजय सिंह पुलिस टीम के साथ खंदौली के मुड़ी चौराहे पहुंच गए और कुलदीप को उठा लिया. पुलिस ने उस से लवकुश के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया कि लवकुश उस का दोस्त है. काफी दिन से कोरोना के कारण हम लोग मिले नहीं थे. मेरा उस से मिलने का मन था तो 5 अगस्त को मैं ने उसे फोन कर मिलने के लिए खंदौली बुलाया था. उस दिन अधिक रात होने के कारण वह मेरे घर पर ही रुक गया था. दूसरे दिन सुबह लगभग 9 बजे वह अपने घर वापस चला गया था. उस के बाद वह कहां गया, उसे नहीं पता. कुलदीप समझ रहा था कि पुलिस उस की बताई कहानी को सच मान लेगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

थानाप्रभारी संजय सिंह ने कहा, ‘‘देखो कुलदीप, तुम पुलिस को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हो. मैं तुम से आखिरी बार पूछता हूं कि लवकुश कहां है?’’

थानाप्रभारी तमतमा गए. उन्होंने आगे कहा, ‘‘लवकुश के मोबाइल पर तुम्हारी पत्नी ने फोन किया था. उस के खंदौली आने के बाद उस का मोबाइल बंद कैसे हो गया? अगर वह कहीं चला गया था तो अपना मोबाइल तो चालू रख सकता था.’’

पुलिस ने तेवर दिखाए तो कुलदीप टूट गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि लवकुश अब इस दुनिया में नहीं है. उस ने अपने साले भोला के साथ मिल कर उस की हत्या कर दी है.

‘‘उस की लाश कहां है?’’ थानाप्रभारी के पूछने पर उस ने बताया, ‘‘सर, उस की हत्या करने के बाद हम ने उस की लाश तिरपाल में लपेट कर यहां से डेढ़ किलोमीटर दूर गांव नगला हरसुख के पास स्थित एक सूखे कुएं में डाल दी थी और उस का मोबाइल फोन बंद कर के रास्ते में फेंक दिया था.’’

पुलिस कुलदीप को ले कर उस कुएं के पास पहुंची, जिस में उस ने लाश डालने की बता कही थी. थानाप्रभारी ने कुएं में झांका तो वास्तव में कुएं में तिरपाल में लिपटी लाश पड़ी थी. पुलिस ने फोन कर के लवकुश के घर वालों को भी बुला लिया. पुलिस ने लवकुश की लाश निकलवाने के लिए रस्से आदि का प्रबंध किया. तब तक कुएं में लाश पड़ी होने की खबर पूरे इलाके में फैल गई थी. वहां पर लोगों का हुजूम जुट गया. सूखे कुएं में एक आदमी को उतारा गया. उस ने तिरपाल के दोनों सिरों को 2 रस्सों से बांध दिया. इस के बाद लोगों ने खींच कर शव को बाहर निकाल लिया. तिरपाल को खोला गया तो उस में लवकुश की लाश निकली. एक हफ्ते तक तिरपाल में बंद रहने से लाश फूल गई थी, जिस से चेहरा पहचानने में नहीं आ रहा था. मृतक के बड़े भाइयों मनोज और अतुल ने कपड़ों से मृतक की शिनाख्त अपने भाई लवकुश के रूप में कर ली.

पुलिस ने जरूरी काररवाई कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने शव घर वालों को सौंप दिया. लाश की पक्की शिनाख्त के लिए डीएनए टेस्ट हेतु सैंपल ले लिया गया था.उधर पुलिस  की दूसरी टीम कुलदीप के साले भोला को मुड़ी चौराहे के पास स्थित उस के घर से गिरफ्तार कर चुकी थी. चूंकि हत्या का खुलासा हो चुका था और दोनों आरोपी गिरफ्तार कर लिए गए थे, इसलिए एसएसपी सचिंद्र पटेल ने पुलिस लाइन सभागार में प्रैस कौन्फ्रैंस आयोजित की और केस का खुलासा कर हत्यारोपियों की गिरफ्तारी की जानकारी दी. पुलिस पूछताछ में कुलदीप और उस के साले भोला ने हत्या की जो दास्तान बताई, वह इस प्रकार थी—

थाना पचोखरा क्षेत्र के गांव नगला गंगाराम निवासी रामप्रकाश शर्मा के 4 बेटे व एक बेटी थी. रामप्रकाश के पास खेती की जमीन थी. साल 2007 में उन का निधन हो गया था. 2 बेटों मनोज व अतुल की शादी हो चुकी थी, जबकि तीसरा 26 वर्षीय लवकुश व उस से छोटा रामू अविवाहित थे. छोटी बहन अभी पढ़ रही थी. लवकुश को क्रिकेट खेलने का शौक था, इसलिए उस का पढ़ाई में मन नहीं लगा. वह 8वीं जमात से आगे नहीं पढ़ सका. वह खेतीकिसानी के काम में भाइयों की मदद करने लगा. लवकुश की दूर के रिश्ते की बुआ सरोज देवी का बेटा 28 वर्षीय कुलदीप भारद्वाज कई साल पहले अपनी पत्नी मधुरिमा व 2 बच्चों के साथ लवकुश के पड़ोस में किराए के मकान में रहा था. उस का परिवार हर तरह से सुखी था. हमउम्र व रिश्तेदार होने के कारण कुलदीप के साथ लवकुश की गहरी दोस्ती हो गई थी. टाइम पास करने के लिए वह अकसर अपने दोस्त कुलदीप के घर चला जाता था.

कुलदीप वैल्डिंग का काम करता था. कुलदीप की पत्नी मधुरिमा लवकुश की रिश्ते में भाभी लगती थी. लवकुश जहां बांका जवान था, वहीं मधुरिमा सुंदर व चंचल थी. लवकुश भाभी से हंसीमजाक करता रहता था. धीरेधीरे देवरभाभी एकदूसरे के आकर्षण में बंध गए और एकदूसरे को चाहने लगे. एक शादीशुदा औरत के इश्क में लवकुश ऐसा डूबा कि पूरी तरह उसी का हो कर रह गया. उस का हाल ऐसा हो गया कि कुलदीप के काम पर जाते ही वह मधुरिमा से मिलने पहुंच जाता. दो जवां दिल एक लय में धड़के तो जल्दी ही दोनों एकदूसरे को पूरी तरह समर्पित हो गए.

कुलदीप को इस की भनक लगी तो उस ने मधुरिमा को समझाया, ‘‘मैं ने सुना है, मेरी गैरमौजूदगी में लवकुश सारे दिन घर में पड़ा रहता है.’’

‘‘हां, कभीकभी किसी काम से आ जाता है, बच्चों से मिलने के लिए.’’ मधुरिमा ने पति से झूठ बोल दिया.

‘‘तुम्हें पता है, मोहल्ले वाले तुम दोनों को ले कर किस तरह की बातें करने लगे हैं?’’

‘‘लवकुश तुम्हारा भाई है, वह मुझ से भाभी के रिश्ते से हंसबोल लेता है तो इस में क्या बुरी बात है. पड़ोसियों का क्या है, वे किसी को खुश कहां देख सकते हैं, इसी के चलते वे मनगढ़ंत किस्से तुम्हें सुनाते हैं. तुम भी उन पर आंख मूंद कर यकीन कर लेते हो.’’

इस पर कुलदीप शांत हो गया. इस के बाद भी जब दोनों ने मिलनाजुलना बंद नहीं किया, तो कुलदीप परेशान हो गया. उस ने इस की शिकायत लवकुश के घर वालों से की. उस ने धमकी दी कि यदि लवकुश ने उस के घर आनाजाना बंद नहीं किया तो इस के गंभीर परिणाम होंगे. मामला बढ़ने पर पंचायत हुई और इस के बाद लवकुश सोनीपत चला गया. वहां वह एक प्रिंटिंग प्रैस में काम करने लगा. घटना से 2 साल पहले लवकुश सोनीपत से अपने गांव वापस आ गया. आते ही वह कुलदीप से बड़ी आत्मीयता से मिला. कुलदीप ने भी सोचा कि लवकुश पुरानी बातों को भूल चुका होगा. कुछ दिन सब ठीक रहा. लेकिन 2 साल बाद पुराने प्रेमीप्रेमिका जब रूबरू हुए तो उन की कामनाएं जाग उठीं और वह बिना मिले नहीं रह सके.

सोनीपत में रह कर भी लवकुश और मधुरिमा मोबाइल पर बातचीत करते रहते थे. दोनों एकदूसरे से फिर से मोबाइल पर बातचीत करने लगे. मौका मिलते ही दोनों मुलाकात भी कर लेते. लेकिन उन का यह खेल ज्यादा दिनों तक नहीं चल सका. उन के फिर से मिलने की बात कुलदीप को पता चल गई. कुलदीप पत्नी को समझा चुका था. लेकिन वह मान नहीं रही थी, लिहाजा उस ने निर्णय लिया कि अब वह यहां नहीं रहेगा. कुछ दिन बाद ही वह बिना किसी को बताए पत्नी व बच्चों को ले कर गांव से चला गया. लवकुश को भी जानकारी नहीं मिली कि उस की प्रेमिका अब कहां है. क्योंकि उस का फोन स्विच्ड औफ आ रहा था. लवकुश मधुरिमा के चले जाने से उदास रहने लगा.

सावन का सुहाना मौसम भी उसे अच्छा नहीं लग रहा था. उस का दिन काटे से नहीं कटता था. बारिश का मौसम होने से वह दोस्तों के साथ क्रिकेट भी नहीं खेल पा रहा था. एक दिन उस की खुशियों को जैसे पंख लग गए. दोपहर के समय उस के मोबाइल पर मधुरिमा का फोन आया.

‘‘कैसे हो माई लव?’’

‘‘इतने दिनों बाद पूछ रही हो मेरा हाल. एकएक पल तुम्हारे बिना सालों की तरह गुजर रहा है. तुम बिना बताए चली गईं. अब कहां हो? तुम्हारा नंबर भी नहीं मिल रहा.’’

मधुरिमा ने लवकुश को तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘इतना बेकरार क्यों हो रहे हो. हम लोग दिल्ली आ गए हैं. ये काम पर गए हुए हैं. मौका मिलते ही तुम्हें फोन लगाया है. फोन इसलिए नहीं मिल रहा होगा क्योंकि कुलदीप ने मेरा नंबर बदल दिया है.’’

उस ने लवकुश को अपना पता बता दिया. बिना पानी के जैसे मछली तड़पती है, वैसे ही तड़परहे लवकुश की मधुरिमा से बात हुई तो सुकून मिला. कुछ दिन बाद लवकुश अपनी प्रेमिका से मिलने दिल्ली जा पहुंचा. कुलदीप को पता चल गया कि लवकुश दिल्ली में भी मधुरिमा से मिलने आने लगा है. उस ने पत्नी को लवकुश से न मिलने की हिदायत दी. इसी बीच कुलदीप का एक व्यक्ति से झगड़ा हो गया. ऐसे में दिल्ली में वह अकेला पड़ गया. मजबूर और परेशान हो कर 2 महीने बाद ही कुलदीप पत्नी और दोनों बच्चों को ले कर टूंडला आ गया और वहीं कामधंधा करने लगा. उस ने पत्नी को हिदायत दी कि अगर अब उस ने लवकुश से मोबाइल पर बात की या उसे अपना पताठिकाना बताया तो ठीक नहीं होगा.

पति के तेवर देख कर मधुरिमा डर गई. लेकिन कहते हैं प्यार अंधा होता है. मधुरिमा भी लवकुश को दिलोजान से चाहती थी. इतने दिन साथ रही थी, लेकिन अब उस की कमी उसे अखरने लगी थी. इस बीच वह तीसरे बच्चे की मां भी बन गई थी. इस के बावजूद प्रेमी लवकुश को वह चाह कर भी नहीं भुला पा रही थी. दिल्ली से आने के कुछ महीने बाद उस ने फोन कर लवकुश को बताया कि वह दिल्ली से अब टूंडला आ गई है. लवकुश वहां भी पहुंच गया. मधुरिमा प्रेमी को उस समय घर बुलाती जब उस का पति काम पर गया होता था. एक दिन कुलदीप ने लवकुश को घर के पास देख लिया. घर आ कर उस ने पत्नी से लवकुश के आने की बात पूछी, पर मधुरिमा ने स्पष्ट मना कर दिया. लवकुश को टूंडला में देख कर कुलदीप का माथा ठनका.

उस ने सोचा कि आखिर लवकुश को यह कैसे पता चल जाता है कि वह किस जगह रह रहा है. वह समझ गया कि उस की पत्नी ही लवकुश को फोन कर जानकारी दे देती है. उस ने कई बार पत्नी का मोबाइल भी चैक किया लेकिन उस का शक निराधार निकला. मधुरिमा अत्यधिक चालाक थी वह दूसरे सिम से बात कर प्रेमी लवकुश को अपना पता बता देती थी. तब लवकुश उस जगह पहुंच जाता था. दोनों मौका देख कर घर के बाहर मिल लेते थे. कुलदीप पत्नी के प्रेमी से अपने घर को बचाने के लिए लगातार घर बदलता रहा. जब इस बात का पता चला कि लवकुश अब भी उस का पीछा नहीं छोड़ रहा है तो वह टूंडला से आगरा आ गया और खंदौली क्षेत्र के मुंडी चौराहा पर पत्नी व बच्चों के साथ अपने साले भोला के चाचा गोविंद के यहां किराए पर रहने लगा. मुंडी चौराहे पर ही भोला रहता था. कुलदीप वहीं काम करने लगा.

उस ने सोचा कि अब उसे ससुरालवालों का सहारा मिलेगा तो लवकुश यहां आने की हिम्मत नहीं करेगा. लेकिन लवकुश और उस की प्रेमिका मधुरिमा पर तो प्यार का भूत सवार था. वे किसी भी कीमत पर एकदूसरे से दूर नहीं रह पाते थे. इस के चलते लवकुश खंदौली मुंडी चौराहा स्थित उस के घर भी चोरीछिपे आनेजाने लगा. सीधेसादे पति कुलदीप को इस बात का पता चल गया. पत्नी से लवकुश के संबंधों का कुलदीप पुरजोर विरोध करता था. अपने रिश्ते में आए ‘वो’ से अपने घर को बचाने के लिए गांव नगला गंगानगर से दिल्ली, वहां से टूंडला और फिर टूंडला से खंदौली. भागतेभागते कुलदीप थक गया. वह समझ गया कि इस सब के पीछे उस की पत्नी का ही हाथ है. क्योंकि वह चाहती तो लवकुश को उस के घर का पता नहीं चलता.

अब कुलदीप का काम पर जाने का मन नहीं होता था. उस के मन में डर बना रहता था कि उस के घर से बाहर जाते ही मधुरिमा अपने प्रेमी को फोन कर बुला लेगी. कुलदीप बदनामी के डर से पुलिस में लवकुश की शिकायत नहीं करना चाहता था. वह चाहता था कि बस किसी तरह लवकुश से उस की पत्नी का पीछा छूट जाए. सभी उपाय नाकाम साबित होने के बाद आखिर उस ने लवकुश से छुटकारा पाने का निर्णय कर लिया. उस ने अपने साले भोला को पूरी बात बताई. भोला उस का साथ देने को तैयार हो गया. योजनानुसार कुलदीप ने पत्नी से 5 अगस्त को लवकुश को फोन करा कर मिलने के लिए खंदौली बुला लिया. वह मधुरिमा से मिलने उस के घर पहुंच गया. लवकुश मधुरिमा से बात कर ही रहा था कि घर में छिपे बैठे कुलदीप ने पीछे से लवकुश के सिर पर जोर से डंडा मारा.

डंडे का वार इतना घातक और सटीक था कि लवकुश नीचे गिर गया. उस के फर्श पर गिरते ही कुलदीप और भोला उस पर पागलों की तरह लगातार वार करते रहे. फलस्वरूप कुछ ही देर में उस की मृत्यु हो गई. लवकुश के मरने पर कुलदीप, भोला और मधुरिमा घबरा गए. उस की हत्या में वे लोग फंस न जाएं, इसलिए कुलदीप ने उस की जेब से मोबाइल निकाल कर स्विच्ड औफ कर दिया. फिर कुलदीप और भोला ने एक तिरपाल में उस की लाश लपेट दी. इस बीच अंधेरा हो गया था. दोनों ने लाश को मोटरसाइकिल पर रखा और वहां से कोई डेढ़ किलोमीटर दूर सूखे कुएं में डाल आए. उस का मोबाइल फोन उन्होंने रास्ते में ही फेंक दिया.

थानाप्रभारी संजय सिंह ने अभियुक्तों की निशानदेही पर लवकुश की हत्या में प्रयुक्त डंडा और लाश ठिकाने लगाने के लिए इस्तेमाल हुई मोटरसाइकिल बरामद कर ली. आवश्यक कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद दोनों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. लवकुश की हत्या में मधुरिमा की संलिप्तता न पाए जाने पर पुलिस ने उसे पूछताछ के बाद छोड़ दिया था.

—कथा परिजनों व पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

पति चाहिए पैसा नही : बच्चे को अगवा कर पत्नी ने जताया दर्द

Kidnapping Case : किसी का अपहरण करने का मकसद होता है फिरौती की मोटी रकम. लेकिन मंशा ने अपनी जानकार शिवानी के 3 साल के बेटे मृत्युंजय का अपहरण किसी दूसरे मकसद से किया था. फिरौती के रूप में उस ने शिवानी से जो मांग की, उसे जान कर पुलिस भी हैरान रह गई…

शाम 7 बजे शिवानी बाजार से घर आई. उस ने सामान वाला थैला कमरे में रखा फिर चारों ओर नजर दौड़ाई. जब उसे छोटा बेटा मृत्युंजय दिखाई नहीं पड़ा, तब उस ने बड़े बेटे से पूछा, ‘‘गोलू, मृत्युंजय कहां है? नजर नहीं आ रहा है. जब मैं बाजार गई थी, तब तुझ से कह कर गई थी कि उस का खयाल रखना. पर तुझे खेलने से फुरसत मिले तब न.’’

गोलू सहम कर बोला, ‘‘मम्मी, तुम्हारे जाने के कुछ देर बाद मृत्युंजय सो गया था. तब मैं दोस्तों के साथ गली में खेलने चला गया था. उस के बाद वह कहां गया, मुझे पता नहीं.’’

3 वर्षीय मासूम मृत्युंजय शिवानी का छोटा बेटा था. उसे घर से नदारद पा कर शिवानी घबरा गई. वह घर से बाहर निकली और गली में बेटे को खोजने लगी. जब वह गली में कहीं नहीं दिखा, तब शिवानी ने आसपड़ोस के घरों में उस की खोजबीन की, पर उस का कुछ भी पता नहीं चला. उस ने गली के कई दुकानदारों से भी पूछा, पर सभी ने ‘न’ में गरदन हिलाई. कानपुर के बर्रा क्षेत्र की जिस गली में शिवानी रहती थी, उसी गली के आखिरी मोड़ पर शिवानी की ननद श्यामा रहती थी. शिवानी ने सोचा कि कहीं वह बुआ के घर न चला गया हो. वह तुरंत ननद के घर पहुंची, लेकिन मृत्युंजय वहां भी नहीं था. फिर ननदभौजाई ने मिल कर कई गलियां छान मारीं, लेकिन मृत्युंजय का पता न चला. शिवानी के मन में तरहतरह की आशंकाएं उमड़नेघुमड़ने लगी थीं, मन घबराने लगा था.

शिवानी का पति दुर्गेश सोनी एक स्वीट हाउस में काम करता था. उस समय वह ड्यूटी पर था. शिवानी ने उसे मृत्युंजय के गायब होने की जानकारी देने के लिए अपना फोन ढूंढा, पर उस का मोबाइल गायब था. शिवानी समझ गई कि घर में कोई आया था, जो मृत्युंजय के साथसाथ उस का मोबाइल भी साथ ले गया है. अब शिवानी की धड़कनें और भी तेज हो गई थीं. उस ने अपने दूसरे मोबाइल फोन से उस फोन नंबर पर काल की जो गायब था, तो वह स्विच्ड औफ था. घबराई शिवानी ने पति को सारी जानकारी दी और तुरंत घर आने को कहा. अपने मासूम बेटे मृत्युंजय के गायब होने की जानकारी पा कर दुर्गेश घबरा गया. वह तुरंत घर आ गया. उस ने आसपास पूछताछ की लेकिन किसी से उसे कोई सुराग न मिला.

उस की चिंता बढ़ गई. उस ने स्कूटर से आसपास की सड़कों और गलियों के चक्कर लगाए, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. आखिरकार निराश हो कर वह घर लौट आया. उस के मन में बारबार सवाल उठ रहा था कि 3 साल का नन्हा सा बच्चा कहां चला जाएगा. यदि वह भटक भी गया होता, तो वह उसे ढूंढ लेते. उस के मन में विचार आया, कहीं किसी ने उस के बेटे का अपहरण तो नहीं कर लिया. दुर्गेश कुमार सोनी और शिवानी का विवाह करीब 10 साल पहले हुआ था. शिवानी के 2 बच्चे थे. पहला 8 साल का गोलू और दूसरा 3 साल का मृत्युंजय. मृत्युंजय चंचल स्वभाव का था, दुर्गेश और शिवानी भी उसे भरपूर प्यार देते थे. शिवानी के लिए मृत्युंजय जिगर के टुकड़े जैसा था.

दुर्गेश कुमार सोनी ने जब घर आ कर बताया कि मृत्युंजय का कहीं पता नहीं लग रहा है. तब घर में रोनाधोना शुरू हो गया. आसपड़ोस के लोग भी आ गए. मृत्युंजय के गायब होने से सभी चिंतित थे. शिवानी का तो रोरो कर बुरा हाल था. वह बारबार पति से अनुरोध कर रही थी कि जैसे भी संभव हो, उस के जिगर के टुकड़े को वापस लाओ. दुर्गेश शिवानी को धैर्य बंधा रहा था. यह बात 28 जुलाई, 2020 की है. शिवानी और दुर्गेश ने पूरी रात आंखों आंखों में बिताई. सवेरा होते ही पूरे बर्रा क्षेत्र में मासूम मृत्युंजय के गायब होने की खबर फैल गई. लोग दुर्गेश के घर पर जुटने शुरू हो गए. दुर्गेश अपने बेटे के गायब होने के संबंध में पड़ोसियों से विचारविमर्श कर ही रहा था कि उस के मोबाइल पर काल आई. काल पत्नी के उसी नंबर से आई थी, जो घर से गायब था.

दुर्गेश ने काल रिसीव की तो दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘दुर्गेश, जरा अपनी रंगीली बीवी को फोन दो. मैं उसी से बात करूंगी.’’

फोन करने वाली युवती की बात सुन कर दुर्गेश चौंका. उसे यी आवाज कुछ जानीपहचानी सी लगी. जिज्ञासावश उस ने फोन शिवानी को पकड़ा दिया, ‘‘हां, हैलो, मैं शिवानी बोल रही हूं. आप कौन?’’ शिवानी बोली. युवती खिलखिला कर हंसी फिर बोली, ‘‘मैं मंशा गुप्ता बोल रही हूं. कैसी हो शिवानी, आजकल तो खूब मौज कर रही होगी.’’

‘‘मंशा, मैं बहुत परेशानी में हूं. बीती शाम से मेरा बेटा गायब है. उस का कुछ भी पता नहीं चल रहा है.’’ कहते हुए शिवानी सुबकने लगी.

मंशा गुस्से से बोली, ‘‘शिवानी, तुम ने भी तो मेरे पति प्रह्लाद को अपने पल्लू से बांध रखा है. क्या तुम्हें मेरी परेशानी का अंदाजा नहीं है?’’

‘‘यह कैसी बातें कर रही हो मंशा, मुझ पर झूठा इलजाम मत लगाओ. मैं वैसे ही परेशान हूं.’’ शिवानी ने कहा.

‘‘झूठ मत बोलो शिवानी, वह जब भी मुझ से झगड़ता है, तुम्हारे पहलू में ही आता है. कल भी वह झगड़ा कर के तुम्हारे पास ही आया होगा. खैर, मैं तुम से एक सौदा करना चाहती हूं.’’ मंशा बोली.

‘‘ कैसा सौदा मंशा?’’ शिवानी ने अटकते हुए पूछा.

‘‘यही कि तुम मेरे पति को अपने पल्लू से छोड़ दो, मैं तुम्हारे जिगर के टुकड़े को तुम्हें वापस कर दूंगी. मुझे मृत्युंजय की फिरौती में रुपया नहीं पति चाहिए.’’ मंशा ने सीधे कहा.

‘‘तुम्हारा पति प्रह्लाद मेरे घर नहीं आया. वह कहीं और गया होगा. मंशा, मेरे बेटे को मुझे वापस कर दो. मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूं, पैर पड़ती हूं.’’ शिवानी गिड़गिड़ाई.

‘‘शिवानी झूठ मत बोल. मेरी बात कान खोल कर सुन ले, मेरे पति को जिंदा या मुर्दा भेज या मैं तेरे बेटे की मुंडी काट कर भेजूं.’’ कहते हुए मंशा ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया. मंशा गुप्ता प्रह्लाद की पत्नी थी. वह विवेकानंद स्कूल के पास वाली बस्ती में रहती थी. शिवानी की जानपहचान प्रह्लाद से थी. उस का शिवानी के घर आनाजाना था. मंशा को शक था कि उस के पति प्रह्लाद का शिवानी से नाजायज रिश्ता है. वह उस से जलन की भावना रखती थी और उस से झगड़ती रहती थी. जब यह बात पता चल गई कि मासूम मृत्युंजय का अपहरण मंशा ने किया है तो शिवानी अपने पति दुर्गेश के साथ थाना बर्रा पहुंच गई. उस समय सुबह के 10 बज रहे थे और थानाप्रभारी हरमीत सिंह थाने में मौजूद थे.

दुर्गेश ने थानाप्रभारी को अपनी व्यथा बताई और मंशा गुप्ता के खिलाफ अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर बेटे को सहीसलामत बरामद करने की गुहार लगाई. मासूम बालक के अपहरण की बात सुन कर थानाप्रभारी हरमीत सिंह सतर्क हो गए. दरअसल, बर्रा क्षेत्र के संजीत अपहरण कांड में बर्रा पुलिस की घोर लापरवाही सामने आई थी, जिस के कारण संजीत की हत्या हो गई थी और फिरौती के 30 लाख रुपए भी अपहर्त्ता ले गए थे. इस लापरवाही में थानेदार से ले कर एसपी व सीओ तक पर शासन की गाज गिरी थी और उन्हें निलंबित कर दिया गया था. इसी किरकिरी से बचने के लिए थानाप्रभारी हरमीत सिंह ने मासूम बालक मृत्युंजय के अपहरण को बेहद गंभीरता से लिया और पुलिस अधिकारियों को अवगत कराते हुए आननफानन में दुर्गेश कुमार की तहरीर पर भादंवि की धारा 364 के तहत मंशा पत्नी प्रह्लाद, निवासी बस्ती, बर्रा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर काररवाई शुरू कर दी.

चूंकि मामला मासूम बच्चे के अपहरण का था, अत: रिपोर्ट दर्ज होने के बाद एसपी (साउथ) दीपक भूकर तथा सीओ विकास पांडेय बर्रा आ गए. उन्होंने बच्चे के मातापिता से जानकारी हासिल की फिर बच्चे को बरामद करने के लिए पुलिस टीम का गठन किया. इस टीम में थानाप्रभारी हरमीत सिंह, एसआई सतीश कुमार, आदेश कुमार, महिला एसआई छवि, महिला सिपाही संगीता यादव, कांस्टेबल कृष्णकांत, देवेंद्र सिंह, विनोद गर्ग तथा सर्विलांस टीम को सम्मिलित किया गया. टीम की कमान सीओ विकास पांडेय को सौंपी गई. गठित विशेष पुलिस टीम ने मृत्युंजय की खोज शुरू की. टीम ने सब से पहले मृत्युंजय की मां शिवानी तथा पिता दुर्गेश से अपहरण के संबंध में पूरी जानकारी हासिल की. शिवानी ने बताया कि मंशा उस का मोबाइल फोन भी अपने साथ ले गई है. उसी नंबर से उस ने दुर्गेश के फोन पर बच्चे के अपहरण की जानकारी दी थी. फिर उस ने मोबाइल स्विच्ड औफ कर लिया था.

यह जानकारी मिलते ही टीम ने शिवानी का मोबाइल फोन नंबर जो मंशा के पास था, सर्विलांस पर लगा दिया. उस की लोकेशन उन्नाव बाईपास की मिली. पता चला उन्नाव में मंशा का मायका है. मंशा को पकड़ने तथा मासूम मृत्युंजय को सहीसलामत बरामद करने के मकसद से पुलिस टीम उन्नाव पहुंच गई. पर मंशा को पकड़ नहीं पाई. कारण मंशा ने फोन बंद कर दिया था, जिस से पुलिस भटक गई थी. शाम 5 बजे पुलिस टीम वापस कानपुर रवाना लौटने वाली थी, तभी सर्विलांस टीम से जानकारी मिली कि मंशा की लोकेशन रायबरेली शहर की मिल रही है. इस सूचना पर पुलिस टीम रायबरेली पहुंच गई. लेकिन रायबरेली पहुंचने पर पुलिस टीम को पता चला कि मंशा कानपुर की ओर लौट रही है और उस की लोकेशन जायस व तकिया के बीच की मिल रही है. लोकेशन का पीछा करते हुए पुलिस टीम भी मंशा के पीछे लगी रही.

कानपुर गंगापुल तक मंशा की लोकेशन मिलती रही, उस के बाद बंद हो गई. शायद उस ने मोबाइल फोन बंद कर लिया था. लेकिन इतना तय था कि मंशा कानपुर शहर में ही है. 30 जुलाई, 2020 की सुबह बर्रा थानाप्रभारी हरमीत सिंह को किसी ने फोन पर सूचना दी कि एक महिला दामोदर नगर नहरिया पर मौजूद है. उस के साथ एक मासूम बच्चा भी है, जो रो रहा है. महिला हावभाव से संदिग्ध लग रही है. सूचना अतिमहत्त्वपूर्ण थी, थानाप्रभारी हरमीत सिंह पुलिस टीम के साथ दामोदर नगर नहरिया पहुंचे और उस महिला को हिरासत में ले कर थाना बर्रा लौट आए. थाने में जब उस महिला से पूछताछ की गई तो उस ने अपना नाम मंशा गुप्ता पति का नाम प्रह्लाद निवासी बस्ती बर्रा बताया. उस ने यह भी बताया कि उस के साथ जो बच्चा है, वह शिवानी का है. शिवानी कर्रही में रहती है. उस ने ही बच्चे का अपहरण किया था. वह शिवानी को सबक सिखाना चाहती थी.

थानाप्रभारी हरमीत सिंह ने मासूम मृत्युंजय को सहीसलामत बरामद करने तथा अपहर्त्ता मंशा गुप्ता को गिरफ्तार करने की सूचना अधिकारियों तथा बच्चे के मातापिता को दे दी. सूचना पाते ही एसपी (साउथ) दीपक भूकर, सीओ विकास पांडेय तथा बच्चे के मातापिता थाना बर्रा आ गए. महिला एसआई छवि कुमारी ने जब मासूम मृत्युंजय को उस की मां की गोद में दिया तो शिवानी की आंखों में खुशी के आंसू छलक पड़े. पुलिस अधिकारियों ने अपहर्त्ता मंशा गुप्ता से बच्चे के अपहरण के संबंध में विस्तृत पूछताछ की. साथ ही अपहरण का मकसद भी पूछा. जवाब में मंशा गुप्ता ने बताया कि मृत्युंजय के अपहरण का उद्देश्य फिरौती नहीं था, बल्कि वह अपने पति की रिहाई चाहती थी. जिसे शिवानी ने अपने प्यार के जाल में फंसा लिया था. वह शिवानी को सबक सिखाना चाहती थी कि किसी का प्यार छीनने का दर्द कितना गहरा होता है.

चूंकि मंशा ने बच्चे के अपहरण करने का जुर्म स्वीकार लिया था और उस के खिलाफ पहले से अपहरण की रिपोर्ट भी दर्ज थी, अत: थानाप्रभारी हरमीत सिंह ने उसे विधिसम्मत गिरफ्तरी की लिया. पुलिस पूछताछ में मंशा गुप्ता ने दिल को झकझोर देने वाली अपहरण की कहानी बताई. मंशा गुप्ता मूलरूप से उन्नाव की रहने वाली थी. उस के पिता रामऔतार गुप्ता उन्नाव स्थिति टेनरी में काम करते थे और उन्नाव बाईपास पर किराए के मकान में रहते थे. परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां थीं, जिस में मंशा गुप्ता सब से बड़ी थी. टेनरी में मिलने वाले वेतन से ही वह घर खर्च चलाते थे. लगभग 10 साल पहले रामऔतार ने मंशा का विवाह सूरज के साथ किया था. सूरज उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर का रहने वाला था और भाईबहनों में सब से बड़ा था. कानपुर शहर में वह संजय नगर में रहता था और दादा नगर स्थित एक प्लास्टिक फैक्ट्री में काम करता था.

शादी के बाद कुछ दिनों तक सूरज ने मंशा को शाहजहापुर में रखा फिर अपने साथ कानपुर ले आया. विवाह के साल भर बाद ही मंशा गुप्ता ने बेटे मोहित को जन्म दिया और उस के 3 साल बाद वह बेटी मोहिनी की मां बन गई. 2 बच्चों के जन्म के बाद सूरज ने अपने पतिधर्म की इतिश्री मान ली. उस का विचार था कि पत्नी को जब मातृत्व की प्राप्ति हो जाती है, तब उस का पूरा ध्यान बच्चों पर रहता है. संजनेसंवरने और पति की संगत की लालसा नहीं रह जाती. मंशा का मन भी भोगविलास में नहीं रह गया होगा. सूरज का ऐसा सोचना गलत था. पति की उपेक्षा मंशा का जी जलाती थी वह मन मसोस कर दिन गुजारती रही. पति से थोड़ाबहुत प्यार मिलता था, उस से ही वह संतोष करती रही. मंशा गुप्ता संजय नगर स्थित जिस मकान में किराए पर रहती थी. हाल ही में वहां एक नया किराएदार रहने आया. उस का नाम था प्रह्लाद. मंशा गुप्ता ने प्रह्लाद को देखा तो देखती ही रह गई.

उस दिन से प्रह्लाद के प्रति मंशा की सोच बदल गई. वह उसे लालच की नजरों से देखने लगी. प्रह्लाद को मंशा की नीयत समझते देर नहीं लगी. वह भी उसे चाहत की नजरों से देखने लगा. चूंकि चाहत दोनों ओर से थी, सो उन के बीच नाजायज रिश्ता बनने में ज्यादा समय न लगा. फिर तो अकसर दोनों का मिलन होने लगा. प्रह्लाद और मंशा ज्यादा से ज्यादा एकदूसरे के निकट रहने का प्रयास करने लगे. जब भी मौका मिलता, दोनों एकाकार हो जाते. परिणाम यह हुआ कि जल्द ही दोनों बदनाम हो गए.  लेकिन इस बदनामी की चिंता न मंशा को थी और न ही प्रह्लाद को. दोनों शादी करने के मंसूबे बना रहे थे. सूरज को जब प्रह्लाद व मंशा के नाजायज रिश्तों की बात पता चली तो उस ने पत्नी को समझाया, बच्चों का वास्ता दिया पर प्रेम दीवानी मंशा नहीं मानी.

उस ने एक रोज पति से साफ कह दिया, ‘‘अब न तुम जोशीले रहे, न रसीले, तुम्हारे साथ जवानी जलाते रहने से क्या फायदा? मैं तो प्रह्लाद के साथ रहूंगी.’’

मंशा ने जो कहा, कर दिखाया. एक रोज वह प्रह्लाद के साथ गोविंद नगर स्थित दुर्गा मंदिर पहुंची और प्रह्लाद के गले में माला पहना कर प्रेम विवाह कर लिया. फिर विवेकानंद स्कूल के पास कच्ची बस्ती बर्रा में प्रह्लाद के साथ रहने लगी. उस के पूर्वपति सूरज ने अपमान और ग्लानि से कानपुर शहर छोड़ दिया और अपने दोनों बच्चों को साथ ले कर घर शाहजहांपुर आ कर रहने लगा. परिवार की मदद से वह बच्चों का भरणपोषण करने लगा. दूसरी ओर मंशा गुप्ता प्रह्लाद से प्रेम विवाह करने के बाद 3 साल तक हंसीखुशी से रही. उस के बाद दोनों के बीच नोंकझोंक होने लगी. दरअसल मंशा फैशनपरस्त थी. वह प्रह्लाद की आधी से अधिक कमाई अपने फैशन और मौजमस्ती में खर्च कर देती थी, जिस से प्रह्लाद को घर चलाना मुश्किल हो जाता था. पैसों को ले कर दोनों में झगड़ा होने लगा था.

प्रह्लाद फैक्ट्री में काम करता था. उसे मासिक वेतन ही मिलता था. प्रह्लाद का एक दोस्त था रामू. वह बर्रा थाने के कर्रही मोहल्ले में किराए पर रहता था. जब भी प्रह्लाद का पत्नी से झगड़ा होता था, वह दोस्त के घर आ जाता था और अपनी व्यथा साझा कर मन हल्का कर लेता था. इसी मकान में शिवानी अपने पति दुर्गेश के साथ किराए पर रहती थी. दुर्गेश गोविंद नगर की एक मिठाई की दुकान पर कारीगर था. उस के बेटे थे गोलू और मृत्युंजय थे. एक रोज प्रह्लाद दोस्त रामू के घर पहुंचा तो शिवानी और मकान मालिक में किराए को ले कर झगड़ा हो रहा था. शिवानी कह रही थी कि पति को वेतन मिलेगा तब किराया चुकता करेगी जबकि मकान मालिक को तुरंत किराया चाहिए था. मकान मालिक ने शिवानी को इतना जलील किया कि वह रोने लगी थी.

प्रह्लाद से देखा नहीं गया तो वह शिवानी के आंसू पोंछने पहुंच गया. प्रह्लाद ने उस रोज शिवानी के आंसू ही नहीं पोंछे, बल्कि 2 हजार का नोट मकान मालिक को थमा कर किराया भी चुकता कर दिया. इस सहानुभूति के बाद प्रह्लाद का शिवानी के घर आनाजाना शुरू हो गया. शिवानी भी उसे भाव देने लगी. धीरेधीरे दोनों के बीच मधुर संबंध बन गए. प्रह्लाद बच्चों के बहाने शिवानी को भी उपहार लाने लगा. जिन्हें वह नानुकुर के बाद स्वीकार कर लेती. प्रह्लाद के शिवानी से मधुर संबंध बने तो वह मंशा की उपेक्षा करने लगा. उस से बातबेबात झगड़ने लगा. वह उसे एकएक पैसे को भी तरसाने लगा. घर कभी आता, कभी नहीं भी आता. कभीकभी तो 2-2 दिन गायब हो जाता था. मंशा पूछती तो कोई न कोई नया बहाना बना देता. मंशा उस की बातों पर सहज ही विश्वास कर लेती.

लेकिन विश्वास की भी एक सीमा होती है. मंशा का विश्वास डगमगाया तो उस ने पति की निगरानी शुरू कर दी. तब उसे पता चला कि उस के पति प्रह्लाद के शिवानी से नाजायज संबंध हैं. वह अपनी कमाई उसी पर खर्च करता है और उसे पाईपाई को तरसाता है. शिवानी को ले कर दोनों में झगड़ा होने लगा. लड़झगड़ कर प्रह्लाद शिवानी के घर पहुंच जाता और वहीं पड़ा रहता. कई बार मंशा ने प्रह्लाद को शिवानी के घर पकड़ा भी. तब उस ने शिवानी और पति को जलील किया. किंतु वे दोनों नहीं माने. 28 जुलाई, 2020 की दोपहर भी शिवानी को ले कर मंशा का पति से झगड़ा हुआ. गुस्से में प्रह्लाद ने मंशा को पीटा और उस का मोबाइल ले कर घर से चला गया. मंशा घंटों तक आंसू बहाती रही और अपने भाग्य को कोसती रही. उसे पति से ज्यादा शिवानी पर गुस्सा आ रहा था.

मंशा को शक था कि उस का पति प्रह्लाद शिवानी के घर ही पड़ा होगा. अत: वह उस की खोज में शाम 6 बजे शिवानी के घर पहुंची. शिवानी उस समय घर पर न थी. उस का 3 साल का बेटा मृत्युंजय पलंग पर पड़ा सो रहा था. मंशा ने सोचा कि शिवानी उस के पति के साथ ऐश करने गई होगी. उस ने पलक झपकते ही शिवानी को सबक सिखाने की ठानी. उस ने सामने अलमारी में रखा शिवानी का मोबाइल फोन कब्जे में किया फिर मृत्युंजय को गोद में उठा कर चुपके से फरार हो गई. शिवानी घरेलू सामान खरीदने कर्रही बाजार गई थी. वह शाम 7 बजे घर वापस आई तो मृत्युंजय गायब था. उस ने पहले बेटे की हर संभव खोज की, नहीं मिला तो पति दुर्गेश को फोन कर घर बुलाया. दुर्गेश शिवानी रात भर बेटे की खोज में जुटे रहे. अगली सुबह जब मंशा ने दुर्गेश को फोन किया तब मृत्युंजय के अपहरण की जानकारी हुई.

उस के बाद दुर्गेश पत्नी शिवानी के साथ थाना बर्रा पहुंचा और मंशा गुप्ता के खिलाफ अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी. थाना बर्रा पुलिस ने 36 घंटे में मृत्युंजय को सहीसलामत बरामद कर अपहर्त्ता मंशा गुप्ता को गिरफ्तार कर लिया. 31 जुलाई, 2020 को थाना बर्रा पुलिस ने अभियुक्ता मंशा गुप्ता को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया. मंशा गुप्ता का पति प्रह्लाद पुलिस के डर से फरार था. उसे डर था कि कहीं पुलिस उसे भी दोषी न ठहरा दें.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Love Crime Story : प्रेम में अंधी पत्नी ने रात को प्रेमी से करवाया पति का कत्ल

Love Crime Story : सीआरपीएफ के जवान बलवीर सिंह चौहान की पत्नी रेखा 3 बच्चों की मां थी. उसे किसी भी तरह की आर्थिक समस्या नहीं थी. इस के बावजूद ऐसा क्या हुआ कि रेखा ने सीआरपीएफ के ही दूसरे जवान रवि कुमार पनिका के साथ मिल कर…

सूरज सिर पर चढ़ जाने के बावजूद बलवीर सिंह चौहान सो कर नहीं उठे तो उन की पत्नी रेखा को चिंता हुई. दीवार पर टंगी घड़ी में उस समय सुबह के 9 बज चुके थे. अपनी दिनचर्या के मुताबिक, वह सुबह 6 बजते ही उठ जाते थे. 54 वर्षीय बलवीर सिंह चौहान सीआरपीएफ में हेडकांस्टेबल थे. रेखा ने छत के फर्श पर दरी बिछा कर सो रहे पति को पहले तो आवाज दे कर जगाने की कोशिश की. लेकिन जब वह नहीं उठे तो उस ने पति को हिलाडुला कर उठाने की कोशिश की. लेकिन बलवीर के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई तो रेखा समझ गई कि अब वह दुनिया में नहीं रहे. उन की मौत हो चुकी थी.

पति के शव के पास बैठी रेखा जोरजोर से रोने लगी. मां के रोने की आवाज सुन कर उस के तीनों बच्चे दौडे़भागे छत पर पहुंचे. मां को रोते देख वे भी हकीकत समझ गए, इसलिए वे भी पिता की मौत पर रोने लगे. अचानक बलवीर के घर में रोने की आवाज सुन कर पड़ोसी उन के घर पहुंचने लगे. लेकिन यह बात किसी के गले नहीं उतर रही थी कि चौहान साहब की अचानक मृत्यु कैसे हो गई. जिस ने भी बलवीर सिंह की मौत की खबर सुनी, हैरान रह गया. रेखा ने फोन कर के पति की मौत की सूचना सीआरपीएफ के अधिकारियों को दे दी थी. हेडकांस्टेबल बलवीर की अचानक मौत की सूचना पा कर अधिकारी भी चकित रह गए. मामला संदिग्ध था, अधिकारियों ने स्थानीय पुलिस को सूचना दी.

बलवीर की मौत की सूचना मिलने के कुछ देर बाद माधवनगर थाने के इंसपेक्टर रघुवीर सिंह, एएसपी अमरेंद्र सिंह और एसपी (सिटी) रविंद्र वर्मा बलवीर के घर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने सब से पहले छत का मुआयना किया, जहां बलवीर सिंह चौहान का शव बिस्तर पर पड़ा हुआ था. पुलिस अधिकारियों ने बारीकी से लाश का मुआयना किया. लाश देख कर ऐसा नहीं लग रहा था कि बलवीर की मौत स्वाभाविक रूप से हुई है. क्योंकि खून कान से निकल कर नाक की ओर बहा था, जो पतली रेखा के रूप में जम कर सूख गया था. गले पर दाहिनी ओर चोट जैसा निशान दिख रहा था. कुल मिला कर बलवीर की मौत रहस्यमई लग रही थी, जबकि मृतक की पत्नी रेखा पुलिस अधिकारियों के सामने चीखचीख कर बारबार यही कह रही थी कि ड्यूटी से देर रात घर लौट कर इन्होंने कपड़े बदले, फ्रैश होने के बाद खाना खाया.

फिर ज्यादा गरमी की वजह से कमरे में न सो कर छत पर सोने चले आए थे, जबकि वह बेटी के साथ कमरे में सो गई थी. दोनों बेटे रमेश और चंदन दूसरे कमरे में सो रहे थे. आदत के मुताबिक वह रोज सुबह 6 बजे उठ जाते थे. जब सुबह के 9 बजे भी वह छत से नीचे नहीं आए तो चिंता हुई. उन्हें जगाने छत पर पहुंची तो देखा वह बिस्तर पर मरे पड़े थे. कहतेकहते रेखा फिर से रोने लगी. खैर, पुलिस ने कागजी काररवाई पूरी कर के मृतक बलवीर की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही बलवीर की मौत की सही मिल सकती थी. यह 18 जून, 2020 की बात है.

हेडकांस्टेबल बलवीर सिंह चौहान की रहस्यमय मौत से पूरी बटालियन में शोक था.खुशमिजाज और अपनी बातों से सभी को गुदगुदाने वाले चौहान साहब सदा के लिए खामोश हो चुके थे. पुलिस अधिकारियों को जिस बात की आशंका थी, वह पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सच साबित हुई. बलवीर की मौत स्वाभाविक नहीं थी, बल्कि उन की गला दबा कर हत्या की गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में साफतौर पर बताया गया था बलवीर की मौत गले की हड्डी टूट कर सांस रुकने से हुई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ जाने के बाद आईजी राकेश गुप्त ने एसपी (सिटी) रवींद्र वर्मा को घटना का जल्द से जल्द परदाफाश करने का आदेश दिया.

आईजी का आदेश मिलने के बाद एसपी (सिटी) रवींद्र वर्मा ने उसी दिन अपने औफिस में मीटिंग बुलाई. मीटिंग में एएसपी अमरेंद्र सिंह और माधवनगर थाने के इंसपेक्टर रघुवीर सिंह भी शामिल थे. रवींद्र वर्मा ने एएसपी अमरेंद्र सिंह के नेतृत्व में एक टीम का गठन कर दिया. घटना की मौनिटरिंग एएसपी अमरेंद्र सिंह को करनी थी. थानाप्रभारी रघुवीर सिंह के साथसाथ अमरेंद्र सिंह खुद भी घटना के एकएक पहलू पर नजर गड़ाए हुए थे. इधर रिपोर्ट में हत्या की बात सामने आने के बाद पुलिस ने मृतक की पत्नी रेखा की तहरीर पर अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. जांच की जिम्मेदारी इंसपेक्टर रघुवीर सिंह को सौंपी गई.

रघुवीर सिंह ने फूंकफूंक कर एकएक कदम आगे बढ़ाते हुए जांच शुरू की. उन के सामने सब से बड़ा सवाल यह था कि बलवीर की हत्या किस ने और क्यों की? उन की मौत से सब से ज्यादा फायदा किसे होने वाला था? इन सवालों का जवाब बलवीर के घर से ही मिल सकता था. इसलिए उन्होंने चौहान की मौत की वजह उन के घर से ही खोजनी शुरू की. विवेचना के दौरान मृतक की पत्नी रेखा का चरित्र संदिग्ध लगा तो पुलिस की नजर उस के क्रियाकलापों पर जम गई. पुलिस ने रेखा का मोबाइल नंबर ले कर सर्विलांस पर लगा दिया. साथ ही उस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर उस के अध्ययन में जुट गई. इसी बीच पुलिस को एक खास जानकारी मिली. पता चला कि रेखा से पहले बलवीर की 2 शादियां हुई थीं. उन की पहली पत्नी ने आत्महत्या कर ली थी, जबकि दूसरी पत्नी की एक हादसे में मौत हो चुकी थी.

सन 2003 में बलवीर ने रेखा से शादी की थी. बलवीर के तीनों बच्चे रेखा से ही जन्मे थे. बलवीर और रेखा की उम्र में करीब 20 साल का अंतर था. इस से भी बड़ी बात यह थी कि पतिपत्नी दोनों के रिश्ते खराब थे. दोनों के बीच झगड़े होते रहते थे. पुलिस ने रेखा के फोन की काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो पता चला कि घटना वाली रात रेखा की एक ही नंबर पर कई बार बातचीत हुई थी. आखिरी बार दोनों के बीच उसी नंबर पर करीब साढ़े 11 बजे बात हुई थी. तमाम सबूत रेखा के खिलाफ थे. वैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर पुलिस यह मान चुकी थी कि बलवीर की हत्या में उस की पत्नी रेखा का ही हाथ है. शक के आधार पर पुलिस रेखा को हिरासत में ले कर थाने ले आई. थानाप्रभारी रघुवीर सिंह ने इस की सूचना एएसपी अमरेंद्र सिंह को दे दी थी.

सूचना मिलते ही एएसपी अमरेंद्र सिंह उस से पूछताछ करने के लिए थाने पहुंच गए. यह 20 जून, 2020 की बात है.

‘‘रेखा, मैं जो सवाल करूंगा, उस का जवाब ठीक से देना, तुम्हारे लिए यही अच्छा होगा.’’ समझाते हुए एएसपी अमरेंद्र ने रेखा से सख्त लहजे में कहा. रेखा बुत बनी बैठी रही तो उन्होंने सवाल किया, ‘‘यह बताओ कि तुम ने बलवीर की हत्या क्यों की?’’

‘‘मैं ने उन की हत्या नहीं की, मैं निर्दोष हूं.’’ रेखा ने सपाट लहजे में जवाब दिया.

‘‘तो तुम ऐसे नहीं बताओगी. ठीक है, मत बताओ. यह तो बता सकती हो कि रवि कौन है और उसे तुम कैसे जानती हो?’’ एएसपी अमरेंद्र ने रेखा की आंखों में झांक कर सवाल किया. सवाल सुन कर रेखा सन्न रह गई.

‘‘क..क..क…कौन रवि.’’ वह हकलाती हुई बोली, ‘‘मैं किसी रवि को नहीं जानती.’’

‘‘वही रवि, जिस से घटना वाले दिन फोन पर तुम्हारी कई बार बात हुई थी.’’

सिर पर एक महिला सिपाही खड़ी थी. एएसपी ने उसे इशारा कर के कहा, ‘‘अगर ये झूठ बोले तो बिना कहे शुरू हो जाना.’’

इस पर रेखा हाथ जोड़ते हुए बोली, ‘‘सर, पति की हत्या मैं ने ही अपने प्रेमी रवि के साथ मिल कर की थी, मुझे माफ कर दीजिए. प्यार में अंधी हो कर मैं ने ही अपने हाथों अपना घर उजाड़ दिया.’’

इस के बाद रेखा पति की हत्या की पूरी कहानी सिलसिलेवार बताती चली गई. हेडकांस्टेबल बलवीर सिंह चौहान की हत्या के मामले से पुलिस ने 72 घंटे के भीतर परदा उठा दिया था. रेखा का प्रेमी रवि भी सीआरपीएफ का जवान था. वह शहडोल में तैनात था. पुलिस जब उसे गिरफ्तार करने शहडोल पहुंची तब तक वह फरार हो गया था. अगले दिन एएसपी अमरेंद्र सिंह और एसपी रवींद्र वर्मा ने मिल कर प्रैसवार्ता की. पत्रकारों के सामने भी रेखा ने अपना जुर्म कबूल लिया. उस ने पति की हत्या की जो कहानी बताई, चौंकाने वाली थी—

54 वर्षीय बलवीर सिंह चौहान मूलरूप से उज्जैन में माधवनगर के रहने वाले थे. उन के परिवार में पत्नी रेखा के अलावा 2 बेटे रमेश और चंदन और एक बेटी शालिनी थी. कहने को तो बलवीर का दांपत्य जीवन खुशहाल था लेकिन हकीकत में वह अपनी पत्नी रेखा से खुश नहीं रहते थे. रेखा ने जब बलवीर के जीवन में कदम रखा, तब से उन के जीवन में खुशियां ही खुशियां थीं. रेखा उन की तीसरी पत्नी थी. बलवीर सिंह चौहान की 2 शादियां पहले भी हुई थीं. बलवीर की पहली पत्नी किरन थी. जब वह ब्याह कर ससुराल आई थी, बलवीर की किस्मत का ताला खुल गया था. शादी के बाद उन की सीआरपीएफ में नौकरी पक्की हुई थी.

बलवीर की नईनई शादी हुई थी. घर में नई दुलहन आई थी. अभी किरन के हाथों की मेहंदी का रंग फीका भी नहीं पड़ा था कि उसे अकेले घर पर छोड़ बलवीर नौकरी चले गए. रात में पत्नी जब बिस्तर पर होती तो पति के बिना बिस्तर काटने को दौड़ता था. वह बेचैन हो जाती थी. पति की दूरियां उस से बरदाश्त नहीं हो रही थीं. जब सब कुछ बरदाश्त के बाहर हो गया तो किरन ने कमरे के पंखे से झूल कर आत्महत्या कर कर ली. पत्नी की आत्महत्या से बलवीर बुरी तरह टूट गए. वह बेपनाह मोहब्बत करते थे. लेकिन नौकरी के फर्ज और घर की जिम्मेदारी के बीच पिस कर उन्होंने 28 साल की उम्र में पत्नी को गंवा दिया था. पत्नी की मौत के बाद से बलवीर गुमसुम रहने लगे. पूरी जिंदगी सामने थी. अकेले काटना मुश्किल था. इसी नजरिए से मांबाप उन की दूसरी शादी की सोचने लगे. बलवीर सरकारी नौकरी में थे, इसलिए उन की दूसरी शादी के लिए कई प्रस्ताव आए. काफी सोचने के बाद मांबाप ने उस की दूसरी शादी आभा से करवा दी.

जब आभा बलवीर की जिंदगी में पत्नी बन कर आई, तो धीरेधीरे बलवीर के जीवन में बदलाव आने लगा. लेकिन बलवीर की ये खुशी भी ज्यादा दिनों तक टिकी नहीं रही. एक सड़क हादसे ने बलवीर से आभा को भी छीन लिया. एक बार फिर अकेले पड़ गए. 2-2 पत्नियों की मौत से बलवीर जीवन से निराश होने लगे. कुछ दिनों बाद बलवीर की जिंदगी में रेखा तीसरी पत्नी बन कर आई. वह दोनों की यह शादी साल 2003 में मंदिर में हुई थी. दोनों की उम्र में करीब 20 साल का फासला था. रेखा के आने से बलवीर की जिंदगी फिर से संवर गई. पहले की दोनों बीवियों से बलवीर की कोई संतान नहीं थी, लेकिन रेखा से बलवीर के यहां 3 बच्चे पैदा हुए. 2 बेटे रमेश व चंदन और एक बेटी शालिनी. रेखा भले ही बलवीर के 3 बच्चों की मां बन गई थी, लेकिन वह पति के प्यार से संतुष्ट नहीं थी. इसी के चलते रेखा के पांव बहक गए.

शहडोल जिले के उमरिया की रहने वाली रेखा को अपना पुराना प्यार याद आ गया. उस का नाम था रवि कुमार पनिका. रवि और रेखा कालेज के जमाने से एकदूसरे को जानते थे. उन्हीं दिनों दोनों में प्यार हुआ था. लेकिन दोनों के सपने पूरे नहीं हुए थे. रेखा बलवीर की जिंदगी की डोर से बंध गई थी. यह बात घटना से करीब 4 साल पहले की है. रेखा का वही प्यार एक बार फिर से जवां हो गया. उस के तीनों बच्चे 10-12 साल के हो चुके थे. पति अकसर ड्यूटी पर घर से बाहर रहते थे. इस बीच रेखा घर पर अकेली रहती थी. इस अकेलेपन के दौरान वह रवि के साथ फोन पर चिपकी रहती थी. कभीकभार बलवीर जब बच्चों का हालचाल लेने के लिए पत्नी को फोन लगाता तो वह अकसर व्यस्त मिलता था. यह देख कर बलवीर की त्यौरी चढ़ जाती थी कि आखिर दिन भर वह फोन पर किस से चिपकी रहती है.

35 वर्षीय रवि कुमार पनिका सीआरपीएफ का जवान था. वह रायपुर के जगदलपुर में तैनात था, शादीशुदा. उस के भी बालबच्चे थे. उस का परिवार उमरिया में रहता था. बीचबीच में छुट्टी मिलने पर वह घर जाता था.  रेखा रवि की पुरानी प्रेमिका थी. कालेज के दिनों में दोनों एकदूसरे से जुनूनी हद तक प्यार करते थे. उस समय तो दोनों एक नहीं हो सके थे लेकिन अब दोनों एक होने को लालायित थे. जब से रेखा ने प्रेमी रवि को दिल से पुकारा था, रवि का दीवानापन हद से ज्यादा बढ़ गया था. रायपुर से नौकरी से छुट्टी ले कर रवि रेखा से मिलने उज्जैन स्थित उस के घर पहुंच जाता था. दोनों अपनी जिस्मानी आग ठंडी करते और फिर रवि रायपुर लौट जाता. रेखा प्रेमी रवि को घर तभी बुलाती थी जब उस के तीनों बच्चे स्कूल में होते थे और पति नौकरी पर.

रेखा की इस आशनाई का खेल सालों तक चलता रहा. अब रेखा पति को देख कर वैसा आनंदित नहीं होती थी, जैसे पहले हुआ करती थी. पहले की अपेक्षा रेखा के तेवर और रूपरंग में भी बदलाव आ गया था. उस के बदलेबदले तेवर और रूपरंग को देख कर बलवीर को उस पर शक गया. ऊपर से हर समय उस के फोन का बिजी आना. ये उस के शक को और बढ़ावा दे रहा था. वह ठहरा एक पुलिस वाला, जिन की एक आंख में शक तो दूसरी आंख में यकीन होता है. ऐसे में रेखा पति की नजरों से कहां बचने वाली थी. एक दिन बलवीर ने पत्नी से पूछ ही लिया, ‘‘तुम्हारा फोन अक्सर बिजी क्यों रहता है. जब भी फोन लगाओ तुम किसी से बात करती मिलती हो, किस से बात करती रहती हो? कौन है वो?’’

पति का इतना पूछना था कि रेखा बिदक गई, ‘‘आप मुझ पर शक करते हो. मैं ऐसीवैसी औरत नहीं हूं जो पति की गैरमौजूदगी में यहांवहां मुंह मारती फिरूं.’’

रेखा ने पति की आंखों के सामने ज्यामिति की ऐसी टेढ़ीमेढ़ी रेखा खींची कि उस की बोलती बंद कर दी. भले ही रेखा ने अपने त्रियाचरित्र से पति की आंखों पर परदा डाल दिया था, लेकिन बलवीर को यकीन हो चुका था कि पत्नी का किसी गैरपुरुष से नाजायज रिश्ता है. इस बात को ले कर अकसर दोनों के बीच विवाद होता रहता था. रेखा जान चुकी थी कि पति को उस पर शक हो गया है. लेकिन पति नाम के कांटे को वह अपने जीवन से कैसे निकाले, समझ नहीं पा रही थी. बात पिछले साल दिसंबर 2019 की है. बलवीर अपने जानकारों से जान चुके थे कि पत्नी का नाजायज रिश्ता उस के पुराने आशिक रवि कुमार पनिका से बन गया है. इसे ले कर दोनों के बीच खूब लड़ाई हुई. घर में शांति और सुकून जैसे गायब हो गया था. जब देखो पतिपत्नी के बीच विवाद होता रहता था. मांबाप के झगड़ों से बच्चे भी परेशान हो चुके थे. लेकिन वे कर भी क्या सकते थे, चुप रहने के अलावा.

पति से नाराज हो कर रेखा प्रेमी रवि के पास रायपुर चली गई. अगले 25 दिनों तक वह उसी के साथ रही. इस दौरान दोनों ने जबलपुर, कटनी, मंडसला और रायपुर के अलगअलग होटलों में रातें रंगीन कीं. इसी दौरान दोनों ने बलवीर सिंह चौहान को रास्ते से हटाने की खतरनाक योजना बनाई. योजना ऐसी कि बलवीर की मौत स्वाभाविक लगे और दोनों का लाखों का फायदा हो. रवि ने रेखा को बताया कि बलवीर का एक बड़ी रकम का जीवन बीमा करा दिया जाए. उस की मौत के बाद वह रकम उस की पत्नी यानी तुम्हें मिल जाएगी. उस रकम को हम दोनों आधाआधा बांट लेंगे. किसी को हम पर शक भी नहीं होगा और हमारा काम भी हो जाएगा. इस तरह साला बूढ़ा तेरे जीवन से भी निकल जाएगा. फिर हमें मौजमस्ती करने से कोई नहीं रोक सकेगा.

पूरी योजना बन जाने के बाद रेखा घर लौट आई और घडि़याली आंसू बहाते हुए पति के पैरों में गिर कर अपनी गलती की माफी मांग ली. बलवीर ने उसे माफ कर दिया लेकिन उसे अपना नहीं सके. सामाजिक मानप्रतिष्ठा के चलते बलवीर ने समझदारी से काम लिया. उन्होंने बच्चों को देखते हुए रेखा को घर में पनाह तो दे दी, लेकिन दोनों के बीच गहरी खाई खुद चुकी थी, जो पट नहीं सकती थी. रेखा को पति की भावनाओं से कोई लेनादेना नहीं था. बच्चों से भी उस का कोई वास्ता नहीं था. वह तो योजना बना कर अपने रास्ते के कांटे को सदा के लिए हटाने के लिए आई थी. योजना के अनुसार, रवि और रेखा ने मिल कर 54 साल के बलवीर का 40 लाख रुपए का जीवन बीमा करा दिया, जिस की किस्त 45 हजार रुपए वार्षिक बनी. पहली किस्त के रूप में रवि ने 25 हजार और रेखा ने 20 हजार यानी 45 हजार रुपए फरवरी महीने में जमा करा दिए और निश्चिंत हो गए.

अब बारी थी बलवीर को रास्ते से हटाने की. दोनों बेकरार थे कि उन्हें कब सुनहरा मौका मिलेगा. आखिरकार उन्हें वह अवसर मिल ही गया. मई, 2020 के आखिरी सप्ताह में बलवीर कुछ दिनों की छुट्टी ले कर घर आए. रेखा यह सुनहरा अवसर अपने हाथों से जाने नहीं देना चाहती थी. 29 मई को फोन कर के उस ने रवि को बता दिया कि शिकार हलाल होने के लिए तैयार है, आ जाओ. प्रेमिका की ओर से हरी झंडी मिलते ही रवि तैयार हो गया. रवि उन दिनों अपने घर शहडोल आया हुआ था. शहडोल से उज्जैन की दूरी 738 किलोमीटर थी. सड़क मार्ग से ये दूरी करीब 18 घंटे में तय की जा सकती थी. रेखा के हां करते ही रवि 30 मई, 2020 को अपनी मोटरसाइकिल से शहडोल से उज्जैन रवाना हो गया.

अगले दिन 31 मई को वह उज्जैन पहुंच गया और एक होटल में ठहरा. फिर फोन कर के रेखा को बता दिया कि वह उज्जैन पहुंच चुका है. आगे की योजना बताओ. रेखा ने रात ढलने तक होटल में ही रुके रहने को कहा. साथ ही यह भी कि जब वह फोन करे तो घर आ जाए. होटल से रेखा का घर कुछ ही दूरी पर था. रेखा ने रात साढ़े 11 बजे फोन कर के रवि को घर बुला लिया. साथ ही बता भी दिया कि घर का मुख्यद्वार खुला रहेगा. चुपके से घर में आ जाए. उस समय बलवीर नीचे अपने कमरे में सोए हुए थे और तीनों बच्चे दूसरे कमरे में सो रहे थे. बेचैन रेखा बिस्तर पर करवटें बदल रही थी. ठीक साढ़े 11 बजे रवि रेखा के घर पहुंच गया और दबेपांव घर में घुस आया. वैसे भी वह घर के कोनेकोने से वाकिफ था.

रवि को आया देख वह खुशी से उछल पड़ी और उस की बांहों में समा गई. थोड़ी देर बाद रेखा जब होश में आई तो बिस्तर पर पति को सोता देख उस ने नफरत भरी नजर डाली और रवि को इशारा किया. फिर इशारा मिलते ही रवि ने अपने हाथों से बलवीर का गला तब तक दबाए रखा, जब तक उस की मौत हुई. बलवीर की मौत हो चुकी थी. हत्या की घटना को दोनों स्वाभाविक मौत दिखाना चाहते थे. इसलिए दोनों ने योजना बनाई. रेखा छत पर बिस्तर लगा आई. फिर दोनों बलवीर की लाश उठा कर छत पर ले गए और बिस्तर पर ऐसे लिटा दिया जैसे वह खुद वहां आ कर सो गए हों. रेखा और रवि के रास्ते का कांटा हट गया था. सुबह होते ही जब रवि जाने लगा तो रेखा ने उस से कहा कि वह उसे कमरे में बंद कर दरवाजे पर बाहर से सिटकनी चढ़ा दे. रवि ने वही किया, जैसा रेखा ने करने को कहा था.

सुबह जब बच्चे उठे तो मां का कमरा बाहर से बंद देख चौंके. उन्होंने कमरे की सिटकनी खोल दी. बच्चों ने देखा उन के पिता कमरे में नहीं थे. पापा के बारे में मां से पूछा तो उस ने बच्चों से झूठ बोलते हुए कहा कि तुम्हारे पापा देर रात लौटे थे और छत पर सो गए. वहीं सो रहे होंगे. उस के बाद रेखा समय का इंतजार करने लगी ताकि अपना ड्रामा शुरू करे. रेखा और रवि ने बलवीर की हत्या को इस तरह अंजाम दिया था कि उस की मौत स्वाभाविक लगे, लेकिन पुलिस तहकीकात ने उन के सारे राज से परदा उठा दिया. उन के 40 लाख के सपने धरे के धरे रह गए. रेखा तो गिरफ्तार कर ली गई, लेकिन रवि कुमार पनिका फरार था. रवि को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस ने कई जगह दबिश दी लेकिन वह पुलिस की पकड़ में नहीं आ सका.

72 घंटे के भीतर घटना का खुलासा करने पर आईजी राकेश गुप्ता ने पुलिस टीम को 25 हजार रुपए नकद देने की घोषणा की. कथा लिखे जाने तक रेखा जेल में थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Extramarital Affair : गन्ने के खेत में बुला कर पत्नी ने कराई हत्या

Extramarital Affair : पतिपत्नी के बीच सब से बड़ी डोर विश्वास होती है, जिस के सहारे घरगृहस्थी चलती है. इसी विश्वास के नाते लाखों लोग घर से सैकड़ोंहजारों किलोमीटर दूर नौकरियां करते हैं. लेकिन जब किसी तीसरे की वजह से विश्वास की डोर कमजोर पड़ती है तो कई जिंदगियों में जलजला सा…

जिला मुरादाबाद से करीब 19 किलोमीटर दूर है थाना मूंढापांडे. इसी थाना क्षेत्र का एक गांव है जैतपुर विशाहट. रोहित सिंह इसी गांव का मूल निवासी था. वैसे वह अपनी पत्नी अन्नू के साथ मुरादाबाद शहर में रहता था. मुरादाबाद की पीतल बस्ती के कमल विहार में उस ने 400 वर्गगज में अपना मकान बनवा रखा था. रोहित पेशे से ट्रक ड्राइवर था और बरेली की एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में नौकरी करता था. रोहित हफ्ते में कम से कम एक बार अपने गांव जैतपुर जरूर जाता था. गांव में उस के पिता सत्यभान सिंह परिवार के साथ रहते थे. रोहित का गांव मूंढापांडे कस्बे से करीब 6 किलोमीटर दूर था, इसलिए वह गांव से बाइक से मूंढापांडे तक आता था और वहां पर भारतीय स्टेट बैंक के पास एक मोटर मैकेनिक की दुकान पर बाइक खड़ी कर के बस से बरेली चला जाता था.

23 अगस्त, 2020 को रोहित बरेली जाने के लिए अपने गांव जैतपुर विशाहट से दोपहर करीब 12 बजे बाइक ले कर  निकला. रात करीब 8 बजे रोहित के पिता सत्यभान सिंह ने रोहित को फोन किया तो उस का फोन बंद मिला. पिता ने उसे कई बार फोन मिलाया लेकिन हर बार फोन बंद मिला. ऐसा कभी नहीं होता था, इसलिए फोन न मिलने से सत्यभान सिंह चिंतित हुए. उन्होंने बरेली की उस ट्रांसपोर्ट कंपनी में फोन किया, जहां रोहित नौकरी करता था. पता चला रोहित उस दिन अपनी ड्यूटी पर पहुंचा ही नहीं था. सत्यभान परेशान हो गए. उन्होंने मुरादाबाद में रह रही रोहित की पत्नी अन्नू से पूछा तो उस ने  बताया कि वह मुरादाबाद नहीं आए, अपनी ड्यूटी पर ही होंगे. जबकि रोहित ड्यूटी पर नहीं पहुंचा था.

बेटे की चिंता में सत्यभान और उन के घर वालों को रात भर नींद नहीं आई. सुबह होने पर वह उस मोटर मैकेनिक की दुकान पर पहुंचे, जहां रोहित अपनी बाइक खड़ी किया करता था. मैकेनिक ने बताया कि रोहित ने उस के यहां बाइक खड़ी नहीं की थी और न ही आया था. उधर अन्नू भी पति का फोन बंद मिनने से परेशान थी. अपनी चिंता वह ससुर से व्यक्त कर रही थी. सत्यभान ने अपने तमाम रिश्तेदारों के यहां भी फोन कर के रोहित के बारे में  पता किया, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. अंतत: सत्यभान ने 24 अगस्त, 2020 को थाना मूंढापांडे में बेटे रोहित की गुमशुदगी दर्ज करा दी. थानाप्रभारी नवाब सिंह ने गुमशुदगी दर्ज होने के बाद जरूरी काररवाई  शुरू कर दी.

2 दिन हो गए, रोहित का कहीं पता नहीं चला. घरवाले उस की चिंता में परेशान थे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें. 25 अगस्त, 2020 मंगलवार  के अखबारों में अमरोहा देहात थाना क्षेत्र में एक व्यक्ति की लाश मिलने की खबर छपी. लाश गांव कंकरसराय के गन्ने के एक खेत से मिली थी. उस का सिर कुचला हुआ था. सत्यभान के एक रिश्तेदार अमरोहा में रहते थे. रिश्तेदार ने सत्यभान को गन्ने के खेत में लाश मिली होने की जानकारी दी. साथ ही यह भी बताया कि मृतक के हाथ पर रोहित लिखा हुआ है, इसलिए आप अमरोहा देहात थाने आ कर लाश देख लें.

खबर मिलते ही सत्यभान सिंह 26 अगस्त को परिवार के लोगों के साथ अमरोहा देहात थाने पहुंच गए. थानाप्रभारी ने सत्यभान को बरामद लाश के फोटो व कपड़े दिखाए. कपड़ों से सत्यभान ने पहचान लिया कि कपड़े उन के बेटे रोहित के हैं. थानाप्रभारी लाश की शिनाख्त के लिए उन्हें जिला अस्पताल ले गए. मोर्चरी में रखी लाश देखते ही सत्यभान फूटफूट कर रोने लगे. वह लाश उन के बेटे रोहित की ही थी. लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद थानाप्रभारी ने राहत की सांस ली. पोस्टमार्टम हो जाने के बाद लाश उसी दिन मृतक के घर वालों को सौंप दी गई. पोस्टमार्टम में पता चला कि रोहित की मौत गला दबाने से हुई थी. इस के अलावा उस के सिर और लिंग को ईंट से बुरी तरह कुचला गया था. चूंकि गुमशुदगी का मामला थाना मूंढापांडे में दर्ज हुआ था, इसलिए पोस्टमार्टम रिपोर्ट थाना मूंढापांडे पुलिस के पास आ गई.

थानाप्रभारी नवाब सिंह मामले को सुलझाने में जुट गए. पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ने के बाद वह इस नतीजे पर पहुंचे कि हत्यारे की मृतक रोहित से कोई गहरी दुश्मनी थी, इसलिए उस ने इतनी क्रूरता दिखाई. उन्होंने मृतक के पिता से पूछा कि उन की किसी से कोई रंजिश वगैरह तो नहीं है? अगर उन्हें किसी पर कोई शक हो तो बता दें. सत्यभान सिंह ने मुरादाबाद की पीतल बस्ती के कमल विहार निवासी अजय पाल व 2 अन्य लोगों पर शक जताया. इस के बाद थानाप्रभारी ने एक टीम गठित की और 28 अगस्त को नामजद आरोपी अजय पाल और उस के साथी कुलदीप सैनी को मुरादाबाद स्थित उन के घरों से गिरफ्तार कर लिया. उन दोनों से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने मान लिया कि रोहित की हत्या उन्होंने ही की थी और यह सब कुछ मृतक की पत्नी अन्नू के इशारे पर किया था.

पुलिस ने अन्नू और अजय पाल के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि घटना के दिन दोनों ने आपस में कई बार बात की थी और एकदूसरे को मैसेज भी भेजे थे. दोनों से पूछताछ के बाद रोहित की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह काफी दिलचस्प थी. करीब 10 साल पहले रोहित सिंह की शादी संभल जिले के गांव भोजपुर की अन्नू के साथ हुई थी. उस समय रोहित मुरादाबाद में आटोरिक्शा चलाया करता था. रोहित का गांव मुरादाबाद शहर से करीब 19 किलोमीटर दूर था, इसलिए उसे रोजाना आनेजाने में परेशानी होती थी. इस परेशानी से बचने के लिए उस ने मुरादाबाद की पीतल बस्ती में 400 वर्गगज का एक प्लौट खरीद लिया.

5 साल पहले उस ने प्लौट पर अपना मकान बनवा लिया. उस की गृहस्थी हंसीखुशी से चल रही थी. उस के 2 बच्चे थे, एक बेटा और एक बेटी. रोहित का एक दोस्त था अजय पाल. वह भी मुरादाबाद में आटोरिक्शा चलाता था. इसलिए दोनों की दोस्ती हो गई थी. शाम को दोनों अकसर साथ बैठ कर शराब पीते थे. अजय पाल का रोहित के घर आनाजाना लगा रहता था. बाद में रोहित सिंह की बरेली की एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में नौकरी लग गई. वह ट्रांसपोर्ट कंपनी का ट्रक चलाता था, जिस की वजह से वह कईकई दिन बाद घर लौटता था. उसी दौरान अजय पाल के रोहित की पत्नी अन्नू से अवैध संबंध बन गए. पति की गैरमौजूदगी में अन्नू अपने प्रेमी के साथ खूब मौजमस्ती करती थी. उसे रोकनेटोकने वाला कोई नहीं था, इसलिए किसी का डर भी नहीं था.

रोहित जब बरेली से घर लौटता तो पत्नी को फोन कर के सूचना दे देता था. अन्नू सतर्क हो जाती और प्रेमी से भी सतर्क रहने के लिए कह देती थी. घर लौटने के बाद रोहित की अपने दोस्त अजय पाल के साथ महफिल सजती थी. रोहित दोस्त पर विश्वास करता था, यह अलग बात थी कि वही दोस्त विश्वास की आड़ में उस के घर में सेंध लगा चुका था. 2-3 दिन घर रुकने के बाद रोहित मातापिता से मिलने अपने गांव जैतपुर वशाहट जाता और फिर अगले दिन वहीं से ड्यूटी पर बरेली चला जाता था. उधर अन्नू और अजय पाल के संबंध गहरे होते जा रहे थे. उन्होंने जीवन भर साथ रहने की कसम खा ली थी. अजय अन्नू पर घर से भाग चलने का दबाव डालता था, लेकिन अन्नू घर से भागने को मना कर देती. वह कहती थी कि घर से भागने की जरूरत क्या है, यदि रोहित का काम तमाम कर दो तो रास्ता अपने आप साफ हो जाएगा.

अन्नू के प्यार में अंधे हो चुके अजय पाल को प्रेमिका की यह सलाह बहुत अच्छी लगी. उस ने अन्नू से वादा कर दिया कि वह रोहित का काम तमाम करा देगा. इस के बाद अन्नू और अजय पाल ने रोहित को ठिकाने लगाने की योजना बनानी शुरू कर दी. अजय ने इस बारे में अपने दोस्त कुलदीप सैनी से बात की. वह भी अजय का साथ देने को तैयार हो गया. फिर वे उचित मौके का इंतजार करने लगे. 23 अगस्त, 2020 को उन्हें यह मौका मिल गया. क्योंकि उस दिन रोहित ड्यूटी से अपने घर मुरादाबाद आया हुआ था और उसी दिन उसे मुरादाबाद से अपने गांव जैतपुर वशाहट जाना था. सुबह 9 बजे नाश्ता करने के बाद वह बाइक से गांव जाने के लिए निकल गया.

अन्नू ने यह जानकारी फोन से अजय को दे दी. योजना के अनुसार अजय पाल अपने साथी कुलदीप सैनी को ले कर पीतल बस्ती के आगे गुलाबबाड़ी में सड़क किनारे खड़े हो कर रोहित के आने का इंतजार करने लगा. रोहित वहां पहुंचा तो अजय ने हाथ दे कर उस की बाइक रुकवाई. अजय ने कुलदीप का परिचय रोहित से कराते हुए कहा कि इस की बहन मूंढापांडे में रहती है. हम लोग वहीं जा रहे हैं. तुम हमें मूंढापांडे छोड़ कर अपने गांव निकल जाना. रोहित दोस्त की बात नहीं टाल सका. वह दोनों को अपनी बाइक पर बैठा कर चल दिया. अजय पाल और कुलदीप को मूंढापांडे छोड़ने के बाद रोहित अपने गांव जैतपुर विशाहट चला गया. उस ने अजय को बता दिया कि वह मातापिता से मिलने के बाद आज ही ड्यूटी पर बरेली चला जाएगा. उस का गांव मूंढापांडे से करीब 6 किलोमीटर दूर था.

अजय पाल को अपनी योजना को अंजाम देना था, इसलिए वह मूंढापांडे में ही रोहित के लौटने का इंतजार करने लगा. अजय को यह बात पता थी कि रोहित अपनी बाइक मूंढापांडे में एक मैकेनिक के पास खड़ी कर के बस से बरेली जाता है, इसलिए अजय और कुलदीप उस के आने का इंतजार करने लगे. मातापिता से मिलने के बाद रोहित ड्यूटी पर जाने के लिए घर से निकल गया. उसे अपनी बाइक मैकेनिक के पास खड़ी करनी थी, लेकिन उस से पहले ही रास्ते में उसे अजय पाल और कुलदीप  खड़े मिले. उन्हें देखते ही रोहित ने बाइक  रोक दी. उस ने पूछा, ‘‘तुम लोग अभी तक यहीं हो.’’

‘‘हां, हम तुम्हारे आने का इंतजार कर रहे थे.’’ अजय बोला.

‘‘क्यों, क्या कोई खास बात है?’’ रोहित ने पूछा.

‘‘हां भाई, बात खास है तभी तो तुम्हारा इंतजार कर रहे थे.’’ अजय ने कहा.

‘‘बताओ क्या बात है?’’

‘‘रोहित बात यह है कि यहां पर कुलदीप के किसी के पास मोटे पैसे फंसे हुए थे. आज सारे पैसे मिल गए. इसलिए हम लोग बहुत खुश हैं और इसी खुशी में आज पार्टी करना चाहते हैं.’’ अजय बोला.

‘‘नहीं यार, अभी तो मैं ड्यूटी पर जा रहा हूं. फिर कभी पार्टी कर लेंगे.’’

‘‘अरे यार, एकएक पेग लेने में क्या बुराई है.’’ अजय ने जोर डाला.

रोहित अपने दोस्त की बात को टाल नहीं सका. तभी अजय का दोस्त कुलदीप सैनी एक बोतल और पकौड़े ले आया. तीनों ने पकौड़े के ठेले पर ही शराब पीनी शुरू कर दी. रोहित पर नशा ज्यादा चढ़ गया तो वह बोला, ‘‘आज मैं ड्यूटी नहीं जाऊंगा.’’ वे तीनों बाइक से दलपतपुर जीरो पौइंट हाइवे पर आ गए. हाइवे से सटा हुआ एक गांव है मछरिया. वहीं पर कुलदीप ने रोहित का मोबाइल ले कर उस की बैटरी निकाल दी, ताकि उस का किसी से संपर्क न हो सके.

इस के बाद तीनों हाइवे से होते हुए कस्बा पाकवड़ा पहुंचे. पाकवड़ा में तीनों ने फिर शराब पी और खाना खाया. खाना खाने के बाद रोहित ने घर चलने को कहा तो अजय बोला, ‘‘अभी चलते हैं. हमें अमरोहा में कुछ जरूरी काम है. अमरोहा यहां से थोड़ी ही दूर है. बस, काम निपटा कर आ जाएंगे.’’

अजय और कुलदीप अपनी योजना के अनुसार रोहित को अमरोहा ले गए. रात करीब 10 बजे तीनों अमरोहा देहात के गांव कंकरसराय पहुंचे. उस समय तक रोहित को ज्यादा नशा चढ़ चुका था. नशे की हालत में दोनों उसे गन्ने के खेत में ले गए और गला दबा कर उस की हत्या कर दी. रोहित की हत्या करने के बाद उन्होंने उस का सिर ईंट से कुचल दिया, जिस से उस का चेहरा पहचान में न आ सके. इस के अलावा उन्होंने उस के लिंग को भी ईंट से कुचल दिया. हत्या से पहले अजय के मोबाइल पर रोहित की पत्नी अन्नू का फोन आया था. अंजू ने उस से कहा था कि किसी भी हालत में रोहित को जिंदा मत छोड़ना.

मरने से पहले रोहित दोनों के सामने गिड़गिड़ाया था कि यार मुझ से क्या गलती हो गई, मुझे क्यों मार रहे हो लेकिन उन का दिल नहीं पसीजा. कुलदीप ने रोहित की टांगें पकड़ लीं और अजय ने गला दबा कर उस की हत्या कर दी थी. अजय ने हत्या की जानकारी अन्नू को दे दी थी. हत्यारों को  विश्वास था कि यहां रोहित की लाश कुछ दिनों में सड़गल जाएगी और पुलिस उन तक कभी नहीं पहुंचेगी लेकिन उन की यह सोच गलत साबित हुई. वे पुलिस के हत्थे चढ़ ही गए. अभियुक्त अजय पाल और कुलदीप सैनी से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें रोहित की हत्या कर शव छिपाने के आरोप में गिरफ्तार कर 28 अगस्त, 2020 को कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया.

इस मामले में मृतक रोहित की पत्नी अन्नू का भी हाथ था, इसलिए पुलिस ने 29 अगस्त को अन्नू को भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में अन्नू ने भी अपना गुनाह कबूल कर लिया. पुलिस ने उसे भी न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime Stories : पत्नी ने पति को लॉकअप में बंद करने की दी धमकी तो पति ने कर दी हत्या

Crime Stories : मानव मन की मनमानी उड़ान तभी तक ठीक होती है, जब तक मर्यादा में रहे. जबजब मन की उड़ान ने मर्यादाओं की देहरी को लांघा, तबतब वजूद मिटे हैं. प्रियंका ने भी…

प्रियंका कानपुर जिले के गांव मझावन निवासी राजकुमार विश्वकर्मा की सब से छोटी बेटी थी. सन 2015 में उस की शादी अशोक विश्वकर्मा से हो गई. अशोक कानपुर शहर की इंदिरा बस्ती में किराए के मकान में रहता था और लोडर चलाता था. खूबसूरत पत्नी पा कर अशोक अपने को खुशकिस्मत समझ रहा था, जबकि प्रियंका दुबलेपतले सांवले अशोक को पा कर मन ही मन अपनी बदकिस्मती पर रोती थी. पत्नी खूबसूरत हो, तो पति उस के हुस्न का गुलाम बन जाता है. अशोक भी प्रियंका का शैदाई बन गया. प्रियंका ने अशोक की कमजोरी का फायदा उठा कर उसे अपनी अंगुलियों पर नचाना शुरू कर दिया. वह सुबह 8 बजे घर से निकलता और फिर रात 8 बजे ही घर लौटता था. वह पूरी पगार प्रियंका के हाथ पर रख देता था.

अशोक मूलरूप से सरसौल का रहने वाला था. उस के 2 भाई सर्वेश व कमलेश थे. मातापिता की मृत्यु के बाद तीनोें भाइयों में घर, खेत का बंटवारा हो गया था. कमलेश खेती करता था, जबकि सर्वेश प्राइवेट नौकरी कर रहा था. अशोक की अपने भाई कमलेश से नहीं पटती थी, इसलिए अशोक ने अपने हिस्से की जमीन बंटाई पर दे रखी थी. घर में प्रियंका को रोकनेटोकने वाला कोई नहीं था. पहली बात तो यह थी कि पति कम कमाता था, ऊपर से वह स्मार्ट भी नहीं था. अत: वह पत्नी के दबाव में रहता था. प्रियंका को सिर्फ इस बात की खुशी थी कि पति उस की जीहुजूरी करता है. अपनी दूसरी हसरतें पूरी न हो पाने की वजह से वह मन ही मन खिन्न रहती थी.

अशोक विश्वकर्मा का एक दोस्त था राकेश. हृष्टपुष्ट, हंसमुख व स्मार्ट. वह बिजली मेकैनिक था. किदवई नगर में वह रामा इलैक्ट्रिकल्स की दुकान पर काम करता था. जिस दिन अशोक काम पर नहीं जाता था, उस दिन वह दुकान पर पहुंच जाता. दोनों खातेपीते और खूब बतियाते. खानेपीने का इंतजाम राकेश ही करता था. एक सुबह अशोक ड्यूटी पर जाने को निकला, तो राकेश को कह गया कि उस के घर की बिजली बारबार चली जाती है, जा कर फाल्ट देख आए. दोपहर को समय निकाल कर राकेश, अशोक के घर पहुंचा, तो उस समय भी बिजली नहीं आ रही थी. गरमी के दिन थे और उमस भी खूब हो रही थी. पसीने से बेहाल प्रियंका अपनी साड़ी के आंचल को ही पंखा बना कर हवा कर रही थी. उस का खुला वक्षस्थल राकेश की आंखों के आगे कामना की रोशनी बिखेरने लगा.

राकेश को आया देख कर प्रियंका ने आंचल संभाला और चहकती हुई बोली, ‘‘वाह देवर जी, शादी के दिन दिखे, उस के बाद कभी घर नहीं आए.’’

‘‘अब आ तो गया हूं, भाभी.’’ राकेश मुसकराया.

‘‘वह तो बिजली ठीक करने आए हो, तुम्हारे पास हम जैसे गरीबों से मिलने का वक्त कहां है.’’

‘‘ऐसी बात नहीं है भाभी, काम में इतना व्यस्त रहता हूं कि समय नहीं मिलता. फिर भैया से कभीकभी मुलाकात हो ही जाती है.’’

राकेश ने अपने औजारों का थैला टेबल पर रखा और बिजली की लाइन पर नजर डाली, ‘‘भाभी एक स्टूल तो दो.’’

प्रियंका फटाफट स्टूल ले आई. स्टूल रखने को वह झुकी, तो आंचल गिर गया. एक बार फिर से राकेश की आंखों में हुस्न की चांदनी कौंधी. प्रियंका ने आंचल संभाला फिर हंसती हुई बोली, ‘‘मैं तो तंग आ गई हूं इस बिजली से. कभीकभी रात को 2-2 घंटे अंधेरे में रहना पड़ता है.’’

राकेश ने टकटकी लगा कर प्रियंका की आंखों में देखा, ‘‘शादी वाले दिन तो आप को ठीक से देखा नहीं था. खूबसूरत तो तब भी थी आप, पर अब तो आप के हुस्न में गजब का निखार आ गया है. आप तो खुद ही रोशनी का खजाना हैं, आप के आगे बिजली की क्या हैसियत?’’

राकेश ने प्रशंसा का पुल बना कर प्रियंका के दिल में घुसपैठ करनी चाही.

‘‘हटो, बहुत मजाक करते हो तुम.’’ प्रियंका हया से लजाई, ‘‘फटाफट लाइन जोड़ दो. देखो मैं पसीने से भीगी जा रही हूं.’’

राकेश ने लाइन जोड़ कर स्विच औन किया तो पंखा चल पड़ा और कमरा रोशनी से भर गया. प्रियंका ने प्रशंसा भरी निगाहों से उसे देखा और बोली, ‘‘मैं तुम्हारे लिए शरबत बनाती हूं.’’

प्रियंका ने प्यार से राकेश को शरबत पिलाया. दोनों के बीच कुछ देर बातें हुईं फिर राकेश सामान थैले में रख कर जाने लगा तो प्रियंका ने पूछा, ‘‘अच्छा ये तो बताओ, कितने पैसे हुए?’’

‘‘किस बात के?’’

‘‘अरे तुम ने बिजली ठीक की है.’’

‘‘अच्छा भाभी, अपनों से भी कोई पैसे लेता है. एक मिनट में बेगाना बना दिया. देना ही है तो कोई ईनाम दो.’’ राकेश के होंठों पर अर्थपूर्ण मुसकान तैरने लगी.

‘‘मांगो क्या चाहिए?’’

‘‘तुम्हारा प्यार चाहिए भाभी. पहली ही नजर में तुम मेरी आंखों में रचबस गई हो.’’

‘‘धत पहली ही बार में सब कुछ पा लेना चाहते हो.’’ कह कर प्रियंका ने नजरें झुका लीं.

‘‘ठीक है, दूसरी बार में पा लूंगा. जब मुझे ईनाम देने का मन हो फोन कर के बुला लेना.’’ राकेश ने एक पर्चे पर अपना मोबाइल नंबर लिख कर प्रियंका को दे दिया. उस के बाद अपना थैला उठाया और फिर चला गया.

जब राकेश अपने प्यार का ट्रेलर दिखा गया, तो प्रियंका के कदम क्यों नहीं बहकते. पूरी रात वह राकेश के बारे में सोचती रही. अभी एक सप्ताह भी न बीता था कि प्रियंका ने राकेश का नंबर मिला दिया. उस ने फोन उठाया तो प्रियंका ने खनकती आवाज में झूठ बोला, ‘‘बिजली फिर चली गई है, ठीक कर जाओ.’’

राकेश इसी इंतजार में बैठा था. उस ने भी सांकेतिक शब्दों में कहा, ‘‘ठीक है भाभी, अपने हुस्न की रोशनी बिखेर कर रखो. मै अभी आ रहा हूं.’’

राकेश दोस्त के घर पहुंचा तो बिजली आ रही थी. उस ने चाहत भरी नजरों से प्रियंका को देखा, जो मंदमंद मुसकरा रही थी. राकेश ने पूछा, ‘‘भाभी, झूठ क्यों बोला?’’

‘‘झूठ कहां बोला,’’ प्रियंका ने मदभरी नजरों से उसे देखा, ‘‘बत्ती आ रही है पर मेरे मन में अंधेरा है. पंखा चल रहा है, पर मैं अंदर से पसीने से तर हूं.’’

खुला आमंत्रण पा कर राकेश 2 कदम आगे बढ़ा और प्रियंका को अपनी बांहों में भर लिया. फिर तो कमरे में अनीति का अंधेरा गहराता चला गया. प्रियंका की चूडि़यां राकेश की पीठ पर बजने लगीं और दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कर लीं. अविवाहित राकेश ने पहली बार यह सुख पाया था. इसलिए वह तो निहाल हो ही गया. प्रियंका भी राकेश की कायल हो गई. थकी सांसों वाले अशोक से वह पहले ही ऊब गई थी, राकेश का साथ मिला तो प्रियंका अपनी सारी मर्यादा भूल गई. अवैध संबंधों का सिलसिला एक बार शुरू हुआ तो वक्त के साथ बढ़ता ही गया. जिस रात अशोक लोडर पर माल लाद कर दूसरे शहर जाता, उस रात प्रियंका फोन कर राकेश को घर बुला लेती फिर रात भर दोनों रंगरलियां मनाते.

अशोक को इस बात की भनक भी नहीं थी कि उस का दोस्त उस की बीवी का बिस्तर सजा रहा है. राकेश का बारबार अशोक के घर आना पासपड़ोस के लोगों को खलने लगा. उन के बीच कानाफूसी होने लगी कि राकेश और अशोक की बीवी प्रियंका के बीच नाजायज रिश्ता है. एक कान से दूसरे कान होते हुए जब यह बात अशोक के कानों तक पहुंची तो उस का माथा ठनका. उस ने इस बाबत प्रियंका से जवाब तलब किया तो वह साफ मुकर गई. यही नहीं वह त्रियाचरित्र दिखा कर अशोक पर ही हावी हो गई. अशोक उस समय तो चुप हो गया परंतु उस के मन में शक जरूर पैदा हो गया. अब वह घर पर नजर रखने लगा. इस का परिणाम भी जल्द ही उस के सामने आ गया.

उस रोज अशोक दोपहर को घर आया तो राकेश उस के घर की तरफ से आता दिखा. उस ने आवाज दे कर राकेश को रोकने का प्रयास भी किया. पर वह उस की आवाज अनसुनी कर स्कूटर से भाग गया. घर पहुंच कर अशोक ने पत्नी से पूछा, ‘‘प्रियंका, क्या राकेश घर आया था?’’

‘‘नहीं तो. यह तुम राकेश…राकेश क्या रटते रहते हो. क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं. क्या मैं बदचलन हूं, वेश्या हूं? हे भगवान! मुझे मौत दे दो.’’

औरत के आंसू मर्द की कमजोरी बन जाते है. जब प्रियंका आंसू बहाने लगी तो अशोक को झुकना पड़ा. उस ने वादा किया कि अब वह उस पर शक नहीं करेगा. आंसुओं से प्रियंका ने अशोक का शक तो दूर कर दिया, किंतु मन ही मन वह डर भी गई थी. उस ने राकेश को भी बता दिया कि अशोक उन दोनों पर शक करने लगा है, हमें अब सतर्कता बरतनी होगी. इंदिरा बस्ती में अशोक का एक रिश्तेदार शिव रहता था. एक रोज उस ने बताया कि राकेश उस के घर अकसर आता है. प्रियंका का उस से लगाव है. उस के आते ही प्रियंका दरवाजा बंद कर लेती है. बंद दरवाजे के पीछे क्या होता होगा, यह तो तुम भी जानते हो और मैं भी जानता हूं. इसलिए प्रियंका को समझाओ कि वह घर की इज्जत नीलाम न करे.

शिव की बात अशोक को तीर की तरह चुभी. वह शराब के ठेके पर गया और जम कर शराब पी. नशे में धुत हो कर वह घर पहुंचा और पत्नी से पूछा, ‘‘प्रियंका, सचसच बता, तेरा राकेश के साथ टांका कब से भिड़ा है?’’

‘‘नशे में तुम यह कैसी बहकीबहकी बातें कर रहे हो. मैं तुम्हें सुबह जवाब दूंगी.’’ प्रियंका बोली.

‘‘नहीं, मुझे अभी और इसी वक्त जवाब चाहिए.’’ अशोक ने जिद की.

‘‘राकेश से मेरा कोई गलत संबंध नहीं हैं.’’ प्रियंका ने सफाई दी.

‘‘साली, बेवकूफ बनाती है. पूरी बस्ती जानती है कि तू राकेश के साथ गुलछर्रे उड़ा रही है. आज मैं भी जान गया, इसलिए तुझे ऐसी सजा दूंगा कि तू बरसों तक नहीं भूलेगी.’’ कहते हुए अशोक ने प्रियंका को जम कर पीटा. कहते हैं शक की विषबेल बहुत जल्दी पनपती है. अशोक के साथ भी यही हुआ. दिन पर दिन उस का शक बढ़ता गया. आए दिन दोनों के बीच कलह व मारपीट होने लगी. कभी प्रियंका भारी पड़ती तो कभी अशोक प्रियंका की देह सुजा देता. इस कलह के कारण राकेश ने प्रियंका से मिलना तथा उस के घर आना बंद कर दिया था. अशोक राकेश को भी खूब खरीखोटी सुनाता था. कई बार उस ने दुकान पर जा कर भी उसे सब के सामने जलील किया था.

9 जुलाई, 2020 की शाम अशोक को पता चला कि दोपहर में राकेश उस के घर के आसपास मंडरा रहा था. इस पर उसे शक हुआ कि वह जरूर प्रियंका से मिलने आया होगा. अत: राकेश को ले कर अशोक और प्रियंका में पहले तूतूमैंमैं हुई फिर अशोक ने प्रियंका की पिटाई कर दी. गुस्से में प्रियंका थाना किदवई नगर जा कर पति प्रताड़ना की शिकायत कर दी. शिकायत मिलते ही थानाप्रभारी धनेश कुमार ने 2 सिपाहियों को भेज कर अशोक को थाने बुलवा लिया. थाने पर उस ने सच्चाई बताई, परंतु पुलिस ने उस की एक न सुनी और हवालात में बंद कर दिया. अशोक रात भर हवालात में रहा. सुबह माफी मांगने तथा फिर झगड़ा न करने पर उसे थाने से घर जाने दिया गया.

पत्नी द्वारा थाने में बंद करवाना अशोक को नागवार लगा था. वह मन ही मन जलभुन उठा था. 10 जुलाई की सुबह जब वह घर पहुंचा तो प्रियंका पड़ोस की महिलाओं से पति को पिटवाने और बंद करवाने की शेखी बघार रही थी. पति को सामने देख कर उसे सांप सूंघ गया. वह घर के अंदर चली गई. दोपहर लगभग 12 बजे दोनों में फिर राकेश को ले कर बहस होने लगी. इसी बीच प्रियंका ने दोबारा लौकअप में बंद कराने की धमकी दी तो अशोक का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. उस ने कमरे में रखी लोहे की रौड उठाई और प्रियंका पर प्रहार करने लगा. रौड के प्रहार से प्रियंका का सिर फट गया. वह चीखतेचिल्लाते घर के बाहर निकली और गली में गिर पड़ी. कुछ ही देर में उस की सांसें थम गईं. हत्या करने के बाद अशोक फरार हो गया.

मकान मालिक कमल कुमार व अन्य लोग बाहर निकले तो खून से सना प्रियंका का शव गली में पड़ा था. इस के बाद तो इंदिरा बस्ती में सनसनी फैल गई. सैकड़ों लोगों की भीड़ उमड़ आई. इसी बीच मकान मालिक कमल कुमार ने थानाप्रभारी धनेश कुमार को इस की सूचना दे दी. थानाप्रभारी ने अपने आला अधिकारियों को इस घटना से अवगत करा दिया. कुछ ही देर में एसपी (साउथ) दीपक भूकर, तथा एसएसपी प्रीतिंदर सिंह घटनास्थल आ गए. उन्होंने शव का निरीक्षण किया फिर मकान मालिक कमल कुमार तथा अन्य लोगों से पूछताछ की. उस के बाद शव पोस्टमार्टम के लिए हैलट अस्पताल भिजवा दिया.

चूंकि पूछताछ से यह बात साफ हो गई थी कि अशोक ने ही अपनी पत्नी प्रियंका की हत्या की है. इसलिए थानाप्रभारी धनेश कुमार ने मकान मालिक कमल कुमार की तहरीर पर भादंवि की धारा 302 के तहत अशोक विश्वकर्मा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और उस की गिरफ्तारी के प्रयास में जुट गए. रात 10 बजे धनेश कुमार को पता चला कि अशोक सोंटा वाले मंदिर के पास मौजूद है. इस सूचना पर वह पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए और हत्यारोपी अशोक को हिरासत में ले लिया. उसे थाना किदवई नगर लाया गया.

थाने में जब उस से प्रियंका की हत्या के संबंध में पूछा गया तो उस ने सहज ही जुर्म कबूल कर लिया. यही नहीं उस ने हत्या में प्रयुक्त लोहे की रौड भी बरामद करा दी, जो उस ने घर के अंदर छिपा दी थी. पूछताछ में अशोक ने बताया कि प्रियंका बदचलन थी, अपनी गलती मानने के बजाय वह उस पर हावी हो जाती थी. इसलिए उस ने गुस्से में उस की हत्या कर दी. उसे इस गुनाह की सजा का खौफ नहीं है. 11 जुलाई, 2020 को थानाप्रभारी ने अभियुक्त अशोक विश्वकर्मा को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Rajasthan Crime News : गहनों के लालच में दोस्तों ने वकील की कर दी गला घोंटकर हत्या

Rajasthan Crime News : वकील नारायण सिंह राठौड़ को सोने के आभूषण पहनने का शौक था, लेकिन उन लोगों की तरह नहीं जो सोने की चेन, कड़ा या ब्रैसलेट पहनते हैं. वह सवाडेढ़ किलो सोने के आभूषण पहनते थे. इतना ही नहीं, वकील साहब पैसे ले कर इच्छुक लोगों के साथ फोटो भी खिंचाते थे. लेकिन उन का दिखावे का यही शौक…

इसी साल मई की बात है. तारीख थी 28. जगह राजस्थान के पाली जिले का सोजत सिटी. सोजत सिटी की मेहंदी पूरे देश में प्रसिद्ध है. इसी सोजत सिटी थाना क्षेत्र में चंडावल के पास एक गांव है छितरिया. इस गांव की सरहद में मुख्य सड़क मार्ग से सटी हुई एक बावड़ी है. गरमी का मौसम होने के कारण आसपास के गांवों के लोग सुबह इस बावड़ी की तरफ टहलने चले जाते हैं. उस दिन टहलने आए लोगों ने बावड़ी के पानी में एक इंसान की लाश तैरती देखी. लोगों ने लाश को पहचानने की कोशिश की, लेकिन आसपास के गांवों का कोई भी व्यक्ति उस की शिनाख्त नहीं कर सका. लोगों ने इस की सूचना पुलिस को दे दी.

सूचना मिलने पर सोजत सिटी थाना पुलिस मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने गांव वालों की मदद से बावड़ी से लाश निकलवाई. मृतक के सिर और गले में चोटों के गंभीर घाव थे. पुलिस ने वहां मौजूद लोगों से लाश के बारे में पूछा. कुछ पता नहीं चलने पर आसपास के गांवों के लोगों को बुला कर लाश की शिनाख्त कराने का प्रयास किया गया, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. इस पर सोजत सिटी थानाप्रभारी रामेश्वरलाल भाटी ने उच्चाधिकारियों को इस घटना की सूचना दे दी. इस से पहले 27 मई की रात को करीब 9-साढ़े 9 बजे पाली जिले में ही जैतारण थाना इलाके के चांवडिया कलां, अगेवा के पास मेगा हाइवे पर एक जलती हुई कार मिली थी. इस जलती हुई कार का वीडियो रात को ही सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था.

पुलिस को सूचना मिली, तो मौके पर पहुंची. वहां पुलिस ने आसपास पता करने का प्रयास किया, लेकिन न तो यह पता चला कि कार किस की है और न ही इस बात की जानकारी मिली कि कार में किस ने आग लगाई थी. पुलिस को कार के आसपास कोई आदमी भी नहीं मिला. रात ज्यादा हो गई थी. इसलिए एक कांस्टेबल को मौके पर छोड़ कर जैतारण थाना पुलिस थाने लौट गई थी. जलती हुई कार मिलने के दूसरे दिन सुबह ही बावड़ी में लाश मिलने की सूचना पर सोजत सिटी डीएसपी डां. हेमंत जाखड़ और एसपी राहुल कोटोकी मौके पर पहुंचे. उन्होंने भी मौकामुआयना किया, लोगों से पूछताछ की. लाश के कपड़ों की तलाशी ली गई, लेकिन ऐसी कोई चीज नहीं मिली जिस से उस शख्स की पहचान हो पाती. अंतत: पुलिस ने लाश को सोजत अस्पताल भिजवा दिया.

पुलिस अधिकारियों को संदेह हुआ कि जलती हुई मिली कार और बावड़ी में मिली लाश का आपस में कोई संबंध हो सकता है. हालांकि इन दोनों जगहों के बीच करीब 15 किलोमीटर का फासला था. फिर भी संदेह की अपनी वजह थी. पाली जिले के पुलिस अफसर दोनों मामलों की कडि़यां जोड़ने के प्रयास में जुटे थे, इसी बीच सूचना मिली कि जोधपुर जिले के बिलाड़ा में रहने वाले वकील नारायण सिंह राठौड़ 27 मई की दोपहर से लापता हैं. इस सूचना से पुलिस को संदेह हुआ कि लाश कहीं वकील साहब की ही तो नहीं है. पाली जिले की पुलिस ने जोधपुर जिले की पुलिस को इत्तला कर वकील नारायणसिंह के परिवार वालों को सोजत सिटी बुलवाया.

दोपहर में वकील साहब के परिवार वाले सोजत सिटी पहुंच गए. पुलिस ने उन्हें सुबह चंडावल के पास छितरिया गांव की सरहद में बावड़ी में मिली लाश दिखाई. लाश देखते ही परिवार वालों ने रोनापीटना शुरू कर दिया. लाश वकील साहब की ही थी. लाश की शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने वकील साहब के परिवार वालों को जैतारण ले जा कर वह कार दिखाई, जो एक दिन पहले रात को चांवडि़या कलां की अगेवा सरहद में मेगा हाइवे पर जलती हुई हालत में मिली थी. कार वकील साहब की ही निकली. पाली पुलिस ने जोधपुर के बिलाड़ा से आए वकील साहब के बेटे सतपाल सिंह राठौड़ से वकील साहब के लापता होने के बारे में सारा किस्सा पूछा.

सतपाल सिंह राठौड़ ने रोतेबिलखते बताया कि उन के 68 वर्षीय पिता नारायण सिंह बिलाड़ा के जानेमाने वकील रहे हैं. वकील साहब सोने का हार और अन्य भारीभरकम आभूषण पहनने के शौकीन थे. वे करीब सवा, डेढ़ किलो सोने के आभूषण पहनते थे. इसलिए उन्हें बिलाड़ा और आसपास ही नहीं जोधपुर तक के लोग ‘गोल्डन मैन’ के नाम से जानते थे.  सोने के आभूषण पहन कर वे लोगों के साथ फोटो सेशन भी कराते थे. वे फोटो सेशन का 2-4 हजार रुपया भी लेते थे.

कहां गए, वकील साहब बेटे सतपाल सिंह ने पुलिस को बताया कि उन के पिता नारायण सिंह 27 मई को दोपहर करीब एक बजे किसी पार्टी में जाने की बात कह कर घर से गए थे. वे दोपहर ढाई बजे वापस घर लौट आए थे. इस के कुछ ही देर बाद उन के पास किसी का फोन आया था. फोन आने के बाद वकील नारायण सिंह ने घर पर करीब एक किलो वजनी सोने का हार, साफे पर लगने वाली सोने की कलंगी सहित सोने के अन्य आभूषण पहने. इस के बाद दोपहर करीब 3-पौने 3 बजे वह परिवार वालों को यह कह कर घर से निकले कि किसी ने फोटो खिंचवाने के लिए बुलाया है. फोटो खिंचवा कर वापस लौट आऊंगा. वे घर से अपनी नैनो कार में गए थे.

दोपहर करीब 3 बजे घर से निकले वकील साहब जब रात तक वापस घर नहीं पहुंचे, तो परिवार वालों को चिंता हुई. चिंता होना स्वाभाविक था. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था कि वकील साहब बिना बताए घर से बाहर रहे हों. अगर उन्हें बाहर रहना भी पड़ता था, तो परिवार वालों को इस की सूचना जरूर देते थे. उस दिन न तो वकील साहब ने कोई सूचना दी और न ही यह बता कर गए कि कहां जा रहे हैं. परिवार वालों ने उन के मोबाइल पर बात करने का प्रयास किया, लेकिन काफी प्रयासों के बाद भी बात नहीं हो सकी. वकील साहब की चिंता में परिवार वालों ने पूरी रात सोतेजागते गुजारी. चिंता इस बात की थी कि वकील साहब ने सवा-डेढ़ किलो सोने के आभूषण पहने हुए थे.

रात तो जैसेतैसे निकल गई. दूसरे दिन 28 मई को सुबह भी घर वालों को वकील साहब की कोई खैरखबर नहीं मिली. न ही उन से मोबाइल पर बात हुई. थकहार कर परिवार वालों ने सुबह ही बिलाड़ा पुलिस थाने में वकील साहब की गुमशुदगी दर्ज करा दी. इस बीच, पाली जिले से पुलिस की सूचना मिलने के बाद वकील साहब के परिवार वाले सोजत आ गए थे. लाश और कार की पहचान होने के बाद वकील साहब के बेटे सतपाल सिंह राठौड़ ने उसी दिन सोजत सिटी थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी. उन्होंने रिपोर्ट में कहा कि उन के पिता नारायण सिंह की हत्या लूट के मकसद से की गई थी. वे करीब सवा किलो सोने के आभूषण पहने हुए थे.

पुलिस ने सतपाल सिंह से उन के पिता की हत्या में किसी पर शक के बारे में पूछा. चूंकि सतपाल सिंह को यह पता ही नहीं था कि उन के पिता किस के बुलावे पर फोटो खिंचवाने गए थे, इसलिए उन्होंने किसी पर सीधा शक नहीं जताया, लेकिन यह जरूर बताया कि उन के पिता ने एक व्यक्ति के खिलाफ जोधपुर के बिलाड़ा थाने में जमीन को ले कर धोखाधड़ी के 2 मामले दर्ज कराए थे. सोजत पुलिस ने सतपाल सिंह से वकील साहब के बारे में और जरूरी बातें पूछीं. इस के बाद अस्पताल में शव का पोस्टमार्टम कराने के बाद उन को सौंप दिया. दोनों जगह मौके के हालात और सतपाल सिंह की ओर से सोजत थाने में दर्ज कराई गई रिपोर्ट के आधार पर यह बात साफ हो गई कि वकील साहब की हत्या उन के कीमती आभूषण लूटने के लिए की गई है.

परिचित ने ही फंसाया जाल में लूटपाट के लिए वकील की हत्या का मामला गंभीर था. इसलिए पाली के एसपी राहुल कोटोकी ने एडिशनल एसपी तेजपाल, सोजत सिटी डीएसपी डा. हेमंत जाखड़ और जैतारण डीएसपी सुरेश कुमार के नेतृत्व में एक टीम बनाई, जिस में सोजत सिटी थानाप्रभारी रामेश्वर लाल भाटी, जैतारण थानाप्रभारी सुरेश चौधरी, सायबर तथा स्पैशल टीम के साथसाथ 25 पुलिसकर्मियों को शामिल किया गया. पाली पुलिस को वकील साहब का मोबाइल न तो लाश के साथ मिला और न ही जली हुई कार में. उन के मोबाइल से हत्या का खुलासा हो सकता था. पुलिस ने सब से पहले वकील नारायण सिंह के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स के आधार पर पता लगाया गया कि 27 मई को वकील साहब की किनकिन लोगों से बात हुई थी.

पुलिस ने उन लोगों से पूछताछ की. इस के अलावा जोधपुर के बिलाड़ा में वकील साहब के परिचितों से भी कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां जुटाई गईं. लोगों से की गई पूछताछ और तकनीकी सहायता से पुलिस ने दूसरे ही दिन यानी 29 मई को 3 लोगों उमेश सोनी, प्रभु पटेल और अर्जुन देवासी को गिरफ्तार कर लिया. इन में उमेश सोनी बिलाड़ा का ही रहने वाला था, जबकि प्रभु पटेल बिलाड़ा के पास हांगरों की ढीमड़ी का और अर्जुन देवासी बिलाड़ा के पास हर्ष गांव का रहने वाला था. ये तीनों दोस्त थे. इन तीनों से पुलिस की पूछताछ के बाद गोल्डनमैन वकील की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इन के लालच के साथ विश्वासघात की भी कहानी थी.

बिलाड़ा का रहने वाला उमेश सोनी वकील नारायण सिंह का अच्छा परिचित था. अदालतों में उमेश के कुछ मुकदमे चल रहे थे, नारायण सिंह ही उस के मुकदमों की पैरवी करते थे. उमेश को वकील साहब के सोने के आभूषण पहनने के शौक से ले कर घरपरिवार की तमाम बातों की जानकारी थी. उसे यह भी पता था कि वकील साहब 4-5 हजार रुपए ले कर सोने के आभूषण पहन कर फोटो खिंचवाते हैं. ऐसे फोटो सेशन करवाने के लिए एकदो बार वह भी वकील साहब के साथ गया था. वकील साहब को सवा-डेढ़ किलो सोने के आभूषण पहने देख कर उस के मन में लालच आ गया था. सोने के उन आभूषणों की कीमत करीब 60 लाख रुपए थी. वकील साहब को सोने के आभूषण पहने देख कर उमेश भी सपने में खुद आभूषण पहने हुए देखने लगा.

अपने सपनों को पूरा करने के लिए उमेश ने अपने दोस्त प्रभु पटेल को वकील साहब के सोने के आभूषण के शौक के बारे में बताया. बिलाड़ा के पास के ही रहने वाले प्रभु पटेल को पहले से ही वकील साहब के इस शौक का पता था. टैक्सी चलाने वाला प्रभु भी वकील साहब के सोने के आभूषणों के सपने में खोया रहता था. अर्जुन इन दोनों का दोस्त था और इन के साथ ही रहता था. तीनों दोस्तों ने मिल कर वकील साहब के सोने के आभूषण हथियाने की योजना बनाई. लेकिन आभूषण हथियाना आसान काम नहीं था. कई दिन विचार करने के बाद तीनों दोस्तों ने वकील साहब को फोटो खिंचवाने के बहाने बुलाने और उन की हत्या कर सोने के आभूषण हथियाने का फैसला किया.

योजना के अनुसार, 27 मई को दोपहर में उमेश सोनी ने नारायण सिंह को फोन किया. उस ने वकील साहब से कहा कि एक आदमी उन के साथ सोना पहन कर सेल्फी लेना चाहता है. इस के बदले में वह ढाई हजार रुपए देगा. पहले से अच्छी तरह परिचित उमेश की बात पर भरोसा कर वकील नारायण सिंह ने घर से निकलवा कर 940 ग्राम सोने का बड़ा हार, 250 ग्राम वजनी सोने का दूसरा हार और 140 ग्राम वजनी सोने का पट्टा पहना. सोने के ये आभूषण पहन कर वे दोपहर करीब पौने 3 बजे घर से अपनी नैनो कार में निकले. उमेश ने फोन पर कहा था कि वह उन के घर से कुछ दूर रास्ते में मिल जाएगा. फिर साथ चलेंगे. वकील साहब के घर से निकलने के बाद कुछ ही दूरी पर उमेश सोनी मिल गया.

उस के साथ प्रभु पटेल के अलावा एक युवक और था. प्रभु पटेल को भी वकील साहब पहले से जानते थे. उमेश ने तीसरे युवक का परिचय कराते हुए वकील साहब को बताया कि यह अर्जुन देवासी है. अर्जुन का एक जानकार आदमी आप के साथ सेल्फी लेना चाहता है. परिचय कराने के बाद उमेश, प्रभु और अर्जुन वकील साहब की ही कार में बैठ गए. उमेश ने बिलाड़ा से अटबड़ा सड़क मार्ग पर रास्ते में बीयर की बोतलें खरीद ली. वकील साहब सहित चारों ने कार में बैठ कर बीयर पी. इस के बाद उमेश ने नशा होने की बात कह कर वकील साहब को कार की ड्राइविंग सीट से उठाया और खुद कार चलाने लगा. उस ने वकील साहब को आगे की सीट पर अपने पास बैठा लिया. पीछे की सीट पर प्रभु पटेल और अर्जुन देवासी बैठे थे.

बिलाड़ा से करीब 10 किलोमीटर दूर अटबड़ा के पास सड़क पर सुनसान जगह देख कर कार में पीछे बैठे प्रभु और अर्जुन ने गमछे से वकील साहब का गला दबा दिया. आगे ड्राइविंग सीट पर बैठे उमेश ने उन के दोनों हाथ पकड़ लिए. गमछे से दबा होने के कारण वकील साहब के मुंह से आवाज भी नहीं निकल सकी. कुछ देर छटपटाने के बाद उन के प्राण निकल गए. यह दोपहर करीब साढ़े 3-4 बजे के बीच की बात थी. जब तीनों को विश्वास हो गया कि वकील साहब जीवित नहीं हैं, तब उन्होंने उन के गले में पहना हार और साफे पर लगी कलंगी सहित सोने का पट्टा उतार कर अपने पास रख लिए.

अभी दिन का समय था, इसलिए लाश को ठिकाने लगाना भी मुश्किल था. इसलिए तीनों दोस्त वकील साहब की कार में उन की लाश को ले कर सड़क के किनारे पेड़ों की ओट में छिप कर खड़े रहे. शाम को जब अंधेरा होने लगा, तब कार में पड़ी वकील साहब की लाश की निगरानी के लिए अर्जुन को छोड़ कर उमेश और प्रभु किसी वाहन से बिलाड़ा आ गए. वजह यह थी कि नैनो कार में पैट्रोल कम था. बिलाड़ा से उमेश ने अपनी इंडिका कार ली. साथ ही एक जरीकेन में 5 लीटर पैट्रोल भी रख लिया. लौट कर उमेश और प्रभु वापस वहां पहुंच गए, जहां अर्जुन को छोड़ा था. तब तक शाम के करीब साढ़े 7 बज गए थे. इन लोगों ने जरीकेन से वकील साहब की कार में पैट्रोल भरा.

लाश ठिकाने लगा कर कार भी फूंकी अब उन के पास वकील साहब की कार के अलावा उमेश की कार भी थी. एक कार उमेश ने चलाई और दूसरी प्रभु ने. तीनों लोग 2 कारों से छितरिया गांव के पास बावड़ी पर पहुंचे. वहां उन्होंने वकील साहब की लाश कार से निकाल कर बावड़ी में फेंक दी. इस के बाद वे वकील साहब की कार साथ ले कर चांवडि़या-अगेवा सरहद में मेगा हाइवे पर पहुंचे. हाइवे पर सुनसान जगह देख कर उन्होंने वकील साहब की कार एक साइड रोकी और जरीकेन से पैट्रोल छिड़क कर उस में आग लगा दी. पैट्रोल की तेज लपटों से अर्जुन देवासी का मुंह और एक हाथ भी जल गया. यह बात रात करीब साढ़े 8-9 बजे की है. वकील साहब की लाश ठिकाने लगाने और उन की कार जलाने के बाद उमेश, प्रभु और अर्जुन अपने घरों के लिए चल दिए.

रास्ते में तीनों ने तय किया कि फिलहाल प्रभु इन आभूषणों को अपने घर पर रख लेगा. एकदो दिन बाद बंटवारा कर लेंगे. सारी बातें तय कर के उमेश और प्रभु ने अर्जुन को उस के गांव के बाहर छोड़ दिया. उमेश को बिलाड़ा में छोड़ कर प्रभु पटेल ने सोने के आभूषण अपने फार्म पर बने कमरे के रोशनदान में छिपा कर रख दिए. प्रभु पटेल ने दूसरे दिन सुबह उमेश सोनी की मदद से वकील साहब से लूटे 140 ग्राम वजनी सोने के पट्टे में से एक टुकड़ा तोड़ कर गला दिया. सोने का यह 46 ग्राम का टुकड़ा उस ने 29 मई को जोधपुर में एक ज्वैलर को सवा लाख रुपए में बेच दिया. पाली के सोजत सिटी थाने में वकील साहब की हत्या की रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस ने जांचपड़ताल शुरू की, तो काल डिटेल्स के आधार पर सब से पहले उमेश सोनी को पकड़ कर पूछताछ की.

सख्ती से पूछताछ में उमेश ने सारा राज उगल दिया. बाद में उसी दिन प्रभु पटेल और अर्जुन देवासी को भी पकड़ लिया गया. पुलिस ने बाद में इन से पूछताछ के आधार पर वकील साहब से लूटे गए सारे आभूषण और उमेश सोनी की इंडिका कार बरामद कर ली. इस के अलावा प्रभु पटेल से सोना खरीदने वाले जोधपुर के बनाड़ इलाके के लक्ष्मण नगर निवासी ज्वैलर धर्मेश सोनी को भी गिरफ्तार किया गया. आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने उन के कोरोना जांच सैंपल दिलवाए. दूसरे दिन 30 मई को जांच रिपोर्ट मिली. इस में एक आरोपी उमेश सोनी पौजिटिव निकला. उस के पौजिटिव निकलने से जोधपुर के बिलाड़ा और पाली की जैतारण व सोजत सिटी थाना पुलिस सहित अधिकारियों में हड़कंप मच गया.

इस का कारण यह था कि आरोपियों को पकड़ने में तीनों ही थानों की पुलिस ने आपस में समन्वय बनाए रखा था. अधिकारियों ने भी इन से पूछताछ की थी. डाक्टरों की सलाह पर जैतारण और सोजत सिटी के डीएसपी सहित दोनों थानों के प्रभारी और करीब 20 पुलिसकर्मियों को होम क्वारेंटाइन कर दिया गया. सतर्कता के तौर पर बिलाड़ा में 49 लोगों के सैंपल लिए गए. मृतक वकील नारायण सिंह के परिवार सहित हत्या के तीनों आरोपियों के परिवारजनों को भी होम आइसोलेट कर दिया गया. बहरहाल, वकील के कातिल पकड़े गए. उन की निशानदेही पर आभूषणों की बरामदगी भी हो गई. खास बात यह रही कि वकील के बेटे ने पुलिस में दर्ज कराई रिपोर्ट में एक किलो 330 ग्राम सोने के आभूषण लूटे जाने की बात कही थी, लेकिन बरामद हुए आभूषणों का वजन करीब डेढ़ किलो निकला.

इस का कारण यह था कि वकील के बेटे को भी पिता के पहने आभूषणों का सही वजन पता नहीं था. आमतौर पर जेवर, नकदी की लूट में सारे माल की बरामदगी पुलिस के लिए टेड़ी खीर होती है, क्योंकि मुलजिम सब से पहले लूटी हुई कीमती चीजों को खुदबुर्द करते हैं. इस मामले में आरोपी 24 घंटे में ही पकड़े गए. इसलिए उन को आभूषण ठिकाने लगाने का समय नहीं मिल सका. इसी कारण सारी ज्वैलरी बरामद हो गई. सोने का जो टुकड़ा ज्वैलर को बेचा था, वह भी बरामद हो गया. सोने के आभूषणों के लालच में उमेश, प्रभु और अर्जुन ने वकील की हत्या का जो जघन्य अपराध किया, उस की सजा उन्हें कानून देगा. गोल्डनमैन की हत्या दिखावा करने वालों के लिए एक सबक है.