Agra Crime News : कोल्ड ड्रिंक में कीटनाशक मिलाकर पत्नी के प्रेमी को पिलाया

Agra Crime News : कर्ज वसूलने के चक्कर में शिशुपाल का सोहनवीर के घर आनाजाना हुआ तो उसी दौरान सोहनवीर की पत्नी चंचल से उस के संबंध बन गए. इस का जो नतीजा निकला वह…

चंचल, जैसा नाम वैसा ही स्वभाव था उस 35 वर्षीय खूबसूरत नारी का. 12 वर्ष पहले उस का विवाह आगरा के सिकंदरा थाना क्षेत्र के गांव पनवारी में रहने वाले सोहनवीर सिंह से हुआ था. सोहनवीर प्राइवेट नौकरी करता था. उस की इतनी कमाई नहीं थी कि घर का खर्च आसानी से चल पाता. चंचल इस से खुश नहीं थी लेकिन अपना भाग्य मान कर वह पति सोहनवीर के साथ निर्वाह कर रही थी. सोहनवीर पत्नी भक्त था, वह चंचल से बेइंतहा प्यार करता था. पति के इस बर्ताव ने आहिस्ताआहिस्ता चंचल के स्वभाव को बदल दिया. एक शाम जब सोहनवीर लौटा तो चंचल ने उसे हाथपैर धोने के लिए गरम पानी दिया. हाथमुंह धो कर सोहनवीर रसोई में चंचल के पास ही बैठ गया, जहां चंचल उस के लिए गरम रोटियां सेंक रही थी.

खाना खा कर सोहनवीर उठा और बैड पर जा कर लेट गया. सारा काम खत्म करने के बाद चंचल भी उस के पास आ कर बैड पर लेट गई. चंचल को पति के मुंह से शराब की गंध महसूस हुई तो बोली, ‘‘तुम ने शराब पी है?’’

‘‘हां आज ज्यादा ठंड लग रही थी इसीलिए, लेकिन कल से नहीं पीऊंगा, वादा करता हूं.’’ सोहनवीर गलती मान कर बोला.

‘‘आज माफ किए देती हूं, आइंदा शराब पी कर घर में आए तो घर में घुसने नहीं दूंगी. फिर ठंड में सारी रात बाहर ही ठिठुरते रहना, समझे.’’ चंचल ने आंखें दिखा कर कहा.

उस रात सोहनवीर ने चंचल से वादा तो किया कि दोबारा शराब को हाथ नहीं लगाएगा, लेकिन वो वादा रात के साथ ही कहीं खो गया. अगले दिन सोहनवीर शराब के नशे में घर लौटा तो पतिपत्नी के बीच कहासुनी हो गई. इस के बाद चंचल फिर से पति सोहनवीर से चिढ़ने लगी. अब सोहनवीर चंचल को जरा भी नहीं सुहाता था. वह उस से हमेशा कटीकटी रहने लगी. सोहनवीर चूंकि चंचल का पति था, इसलिए वह चाहे जैसा भी था, उसे उस के साथ रहना ही था. दिन गुजरते गए, समय पंख लगा कर उड़ने लगा. लाख कोशिशों के बाद भी चंचल सोहनवीर की शराब छुड़वा पाने में असफल रही. समय के साथ चंचल एक बेटे और एक बेटी की मां भी बन गई.

इस बीच सोहनवीर शराब का आदी हो गया था. शराब के चक्कर में उस ने कई लोगों से पैसे भी उधार लिए थे. वह पहले उधार लिए गए पैसे चुका नहीं पाता था, फिर से उधार मांगने लगता था. इसी के चलते लोगों ने उसे उधार देना बंद कर दिया था. लोग तगादा करते तो सोहनवीर उन के सामने आने से बचने लगा. इस पर लोग उस के घर के बाहर आ कर तगादा करने लगे. सोहनवीर घर नहीं होता तो लोग चंचल को ही बुराभला बोल कर चले जाते थे. चंचल चुपचाप सब के ताने सुनती, फिर दरवाजा बंद कर के रोती रहती. पति से कुछ कहती तो उस के सितम उस के जिस्म पर उभर कर दिखाई देने लगते. एक दिन दोपहर में सोहनवीर कमरे में खाना खा रहा था. तभी किसी ने जोरजोर से दरवाजे की कुंडी बजाई. सोहनवीर समझ गया कि कोई लेनदार दरवाजे पर आया है. उस ने चंचल से कहा, ‘‘तुम जा कर देखो और मुझे पूछे तो दरवाजे से ही चलता कर देना.’’

‘‘हां, यही काम तो है मुझे कि हर किसी से झूठ बोलती रहूं.’’ कह कर चंचल झल्ला कर उठी.

सोहनवीर उसे लाल आंखों से घूर रहा था. चंचल ने दरवाजा खोला तो सामने एक व्यक्ति खड़ा था. उसे देख कर चंचल ने पूछा, ‘‘आप कौन हैं?’’

‘‘मैं शिशुपाल सिंह हूं. कहां है सोहनवीर, जब से पैसा लिया है, दिखाई ही नहीं दे रहा.’’ शिशुपाल रूखे स्वर में बोला.

‘‘वो तो घर पर नहीं हैं, आप बाद में आ जाना.’’

‘‘मेरा यही काम है क्या. लोगों को पैसा दे कर भलाई करूं और जब पैसे लेने का वक्त आए तो देनदार घर से गायब मिले. कहे देता हूं, इस तरह नहीं चलेगा. अपने आदमी को कहना मेरा पैसा वापस कर दे, वरना अच्छा नहीं होगा.’’ शिशुपाल कड़क कर बोला.

‘‘आप नाराज क्यों होते हैं, वो आएंगे तो मैं बोल दूंगी. मैं ने तो आप को पहली बार देखा है.’’ चंचल बोली.

और भी हिदायतें दे कर शिशुपाल सिंह वहां से चला गया. चंचल ने दरवाजा बंद किया और फिर से आ कर रोटियां सेंकने लगी.

‘‘सारी उम्र लोगों की गालियां सुनवाते रहना लेकिन ये दारू मत छोड़ना.’’ चंचल गुस्से में पति से बोली.

‘‘ऐ तू मुझे आंखें दिखाती है, साली मैं तेरा मर्द हूं. जानती है पति परमेश्वर होता है. तू है कि मुझे ही आंखें दिखा रही है.’’ सोहनवीर चिल्ला कर बोला.

‘‘पति के अंदर परमेश्वर वाले गुण हों तभी तो. तुम में पति जैसा है कुछ.’’ चंचल बोली तो सोहनवीर उस के बाल पकड़ कर रसोई से बाहर ले आया और लातघूंसों से बुरी तरह पिटाई करने लगा. चंचल रोतीबिलखती खुद को पति के हाथों से छुड़ाती रही लेकिन सोहनवीर उसे तब तक पीटता रहा, जब तक खुद थक नहीं गया. चंचल रात भर दर्द से तड़पती रही और सोहनवीर शराब पी कर एक ओर लुढ़क गया. 3-4 दिन बाद शिशुपाल एक बार फिर से पैसों की वसूली के लिए सोहनवीर के घर आया तो इत्तेफाक से दरवाजा खुला था. शिशुपाल भीतर घुसता चला आया. चंचल आइने में देख कर बाल संवार रही थी. शिशुपाल पर नजर पड़ी तो उस ने मुसकरा कर कहा, ‘‘अरे शिशुपालजी आप! अरे आप खड़े क्यों हैं, बैठिए न.’’

शिशुपाल चुप था और एकटक चंचल की ओर देख रहा था. चंचल उस के करीब आई और कुरसी उठा कर उस की ओर सरकाते हुए बोली, ‘‘आप बैठिए, मैं आप के लिए चाय बना कर लाती हूं.’’

‘‘नहीं, मुझे चाय नहीं पीनी. मैं तो सोहनवीर से मिलने आया था. कहां है वो मेरे पैसे कब देगा?’’ शिशुपाल ने पूछा.

‘‘आप के पैसे मिल जाएंगे, चिंता मत कीजिए.’’ चंचल अब भी मुसकरा रही थी. वह रसोई में चली गई और 2 कप चाय और प्लेट में बिस्कुट, नमकीन ले आई. उस ने शिशुपाल की ओर चाय का कप बढ़ाते हुए कहा, ‘‘कितने रुपए हैं आप के?’’

‘‘आप को नहीं मालूम.’’ शिशुपाल ने कप हाथ में ले कर पूछा.

‘‘जब पति पत्नी को सारी बातें बताए, तभी उसे हर बात की जानकारी रहती है. जो आदमी पत्नी को सिवाय पैर की जूती के कुछ नहीं समझता वो…खैर जाने दीजिए मैं भी कहां आप से अपना रोना ले कर बैठ गई.’’ चंचल बोल रही थी, शिशुपाल खामोशी से उस की बातें सुन रहा था. काफी देर तक इंतजार के बाद भी सोहनवीर घर नहीं आया तो शिशुपाल जाने लगा. चंचल ने उसे थोड़ी देर और रुकने के लिए कहा, लेकिन वह नहीं रुका. चंचल ने उस का मोबाइल नंबर ले लिया और बोली, ‘‘वो आएंगे तो मैं आप को फोन कर के बता दूंगी.’’

शिशुपाल वहां से चला गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि सोहनवीर की पत्नी चंचल उस पर इतनी मेहरबान क्यों हो गई. फिर उस ने सिर को झटका और सोचने लगा कि उसे तो अपने पैसे चाहिए चाहे पत्नी दे या पति. सोचता हुआ वह अपने घर पहुंच गया. शिशुपाल सिंह संपन्न किसान था. करीब 18 साल पहले उस का विवाह सीता से हुआ था. सीता से उसे 2 बेटे और एक बेटी हुई. करीब डेढ़ साल पहले आपसी विवाद के कारण सीता हमेशा के लिए घर छोड़ कर चली गई. शिशुपाल अकेला पड़ गया. गांव के लोगों को वह ब्याज पर पैसा देता था. एक दिन सोहनवीर ने उस से किसी जरूरी काम के लिए पैसे उधार मांगे तो शिशुपाल ने दे दिए. पैसे उधार मिलने के बाद सोहनवीर ने शिशुपाल की तरफ जाना ही छोड़ दिया. काफी समय बीतने के बाद सोहनवीर शिशुपाल से नहीं मिला तो शिशुपाल सोहनवीर के घर तक पहुंच गया.

सोहनवीर घर पर नहीं मिला तो चंचल ने शिशुपाल की आवभगत की. शिशुपाल उस दिन ये कह कर चला गया कि 4 दिन बाद फिर आएगा. 4 दिन गुजर गए. चंचल को आज शिशुपाल का इंतजार था. पति और बच्चे तो सुबह ही चले गए थे. उन के जाने के बाद चंचल ने घर का सारा काम खत्म किया और खुद सजसंवर कर बैठ गई. अपने बताए समय पर शिशुपाल सोहनवीर के घर पहुंच गया. दरवाजे की कुंडी खड़की तो चंचल ने घड़ी की ओर देखा, ठीक 11 बज रहे थे. चेहरे पर मुसकान बिखेर कर एक बार वह आइने के सामने आ कर मुसकराई, फिर मन ही मन लजाई, उस ने साड़ी के पल्लू से खुद को लपेटा और सामने के बालों को गोल कर गालों पर गिरा लिए. चंचल का निखरा गोरा बदन दूध की तरह दमक रहा था.

उस ने दरवाजा खोला तो सामने शिशुपाल खड़ा था. उसे देखते ही चंचल ने मुसकान बिखेरी और निगाहें नीची कर लीं. फिर आहिस्ता से बोली, ‘‘अंदर आइए न.’’

‘‘जी, सोहनवीर नहीं है क्या?’’ शिशुपाल ने हिचकिचा कर पूछा.

‘‘मैं तो हूं, आप की ही राह देख रही थी.’’ चंचल बोल पड़ी.

‘‘जी आप मेरी राह!’’ शिशुपाल चौंका तो चंचल ने बिना किसी हिचक के उसे हाथ बढ़ा कर अंदर आने का इशारा किया. शिशुपाल अंदर आ गया तो चंचल ने अंदर से कुंडी लगा दी और पलट कर शिशुपाल से बोली, ‘‘आप अभी तक खड़े हैं.’’

चंचल ने कुरसी निकाल कर देनी चाही तो शिशुपाल बोला, ‘‘आज मैं अपने पैसे ले कर ही जाऊंगा, बुलाओ सोहनवीर को जो मुंह छिपा कर बैठा है.’’

‘‘आप के तो दिमाग में दिन रात पैसा ही पैसा सवार रहता है. ये देखो कितना पैसा है मेरे पास.’’ चंचल ने स्वयं ही साड़ी का पल्लू हटा कर उस से कहा. यह देख शिशुपाल ठगा सा देखता रह गया. उस की निगाहें चंचल के तराशे हुए जिस्म पर थीं. वह अपलक देखे जा रहा था.

‘‘सचमुच सांचे में तराशा हुआ बदन है तुम्हारा.’’ शिशुपाल बोला. चंचल ने झट से पल्लू से खुद को लपेट लिया. शिशुपाल चंचल के दिल की मंशा जान चुका था. उस ने चंचल को लपक कर अपनी ओर खींचा और बाजुओं में जकड़ लिया. चंचल के सारे बदन में एक अजीब सा रोमांच उठने लगा. उस ने दोनों बांहें शिशुपाल के कंधों पर जमा लीं. शिशुपाल ने चंचल को बांहों में उठा कर पलंग पर लिटा दिया. वह सुहागन हो कर भी शादीशुदा औरत की सारी मर्यादाएं भूल कर वासना के अंधे कुंए में कूद पड़ी थी, जिस में कूदने के बाद चंचल ने असीम आनंद का अनुभव किया.

वह शिशुपाल की दीवानी हो गई. उस ने कहा, ‘‘अब बताओ इस दौलत में सुख है या फिर तुम्हारी तिजोरी वाली दौलत में?’’

‘‘सच कहूं तो मैं ने जब पहली बार तुम्हें देखा था तो तिजोरी की दौलत को भूल गया था और तुम्हारी इस दौलत का दीवाना हो गया था.’’

शिशुपाल की बांहों की गरमी पा कर चंचल को लगने लगा था कि अब उसे दुनिया की सारी खुशियां मिल गईं. चंचल अब शिशुपाल के वश में हो चुकी थी. जब जी करता दोनों एकदूसरे में समा जाते थे. 21 जुलाई, 2020 की सुबह शिशुपाल खेत से चारा लाने की बात कह कर घर से निकला लेकिन दोपहर तक नहीं लौटा. घरवालों ने उसे सभी जगह तलाशा, लेकिन कोई पता नहीं चला. कई दिन बाद भी जब शिशुपाल का पता नहीं लगा तो उस के भाई नवल सिंह ने 30 जुलाई को सिकंदरा थाने में शिशुपाल के गुम होने की सूचना दी. जिस पर इंसपेक्टर अरविंद कुमार ने गुमशुदगी दर्ज कर जांच एसआई अमित कुमार को सौंप दी.

पुलिस ने हर जगह शिशुपाल का पता किया लेकिन कुछ पता नहीं लगा. इस पर पुलिस ने जानकारी जुटा कर पता किया कि शिशुपाल से कौनकौन मिलने आता है और शिशुपाल कहांकहां जाता था. इसी जांच में सोहनवीर पुलिस के शक के दायरे में आ गया. पता चला कि शिशुपाल हर रोज सब से ज्यादा समय सोहनवीर के घर बिताता था. शिशुपाल और सोहनवीर के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स की जांच की गई तो जानकारी मिली कि घटना वाले दिन सुबह साढ़े 10 बजे दोनों के बीच बात हुई थी. फोन सोहनवीर ने किया था. उसी के बाद से शिशुपाल लापता हो गया था.

12 अगस्त, 2020 को इंसपेक्टर अरविंद कुमार ने पुलिस टीम के साथ जा कर सोहनवीर सिंह को उस के घर से हिरासत में ले लिया. थाने  ला कर जब उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उस ने शिशुपाल की हत्या कर देने की बात स्वीकार कर ली. इंसपेक्टर अरविंद कुमार ने उस की निशानदेही पर अंशुल एपीआई के पास निर्माणाधीन इमारत के पास सीवर नाले से शिशुपाल की लाश बरामद कर ली. लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के बाद वह थाने लौट आए. पुलिस ने सोहनवीर के खिलाफ भादंवि की धारा 302/201 के तहत मुकदमा दर्ज करने के बाद उस से विस्तृत पूछताछ की.

पूछताछ में पता चला कि शिशुपाल और चंचल के नाजायज रिश्ते की इमारत जैसेजैसे बनती गई, वह लोगों की नजरों में आने लगी थी. लोगों की नजरों में बात आई तो सोहनवीर तक पहुंचते देर नहीं लगी. तब सोहनवीर ने अपने घर की इज्जत पर हाथ डालने वाले शिशुपाल को जान से मार देने का फैसला कर लिया.  उस ने घटना से 1-2 दिन पहले मोबाइल पर शिशुपाल से बात की और कहा कि कुछ परेशानी थी, इस वजह से वह उस का पैसा नहीं दे पाया लेकिन अब जल्द ही दे देगा. शिशुपाल तो वैसे भी अपनी दी गई रकम का ब्याज उस की पत्नी के बदन से वसूल रहा था. इसलिए उस ने कह दिया कि ठीक है जब पैसा हो जाए दे देना.

21 जुलाई, 2020 की सुबह शिशुपाल चारा लाने के लिए घर से खेत की तरफ जाने के लिए निकला. वह खेत पर था तब करीब साढ़े 10 बजे सोहनवीर ने फोन कर के उसे मिलने के लिए बुलाया. शिशुपाल उस के पास पहुंचा तो सोहनवीर उसे अंशुल एपीआई के पास निर्माणाधीन इमारत में ले गया. वहीं पर उस ने कोल्ड ड्रिंक में कीटनाशक मिला कर शिशुपाल को पिला दी, जिसे पीने के कुछ ही देर में शिशुपाल की मौत हो गई. सोहनवीर ने शिशुपाल की लाश इमारत के पास वाले सीवर नाले में डाल दी और घर चला गया. कागजी खानापूर्ति करने के बाद इंसपेक्टर अरविंद कुमार ने सोहनवीर को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

(कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में चंचल परिवर्तित नाम है)

 

Love Crime : इश्क में अंधी बेटी ने प्रेमी के संग मिलकर मां को डंडे से पीट कर मार डाला

Love Crime : जावेद से शादी हो जाने के बाद भी सबीना ने शादी से पहले के प्रेमी मोइन से संबंध बनाए रखे. यही उस की सब से बड़ी भूल साबित हुई. फिर एक दिन…

10 अगस्त, 2020 की सुबह. जिला कौशांबी के गांव चपहुआ के लोग अपने खेतों की ओर जा रहे थे. तभी कुछ लोगों की नजर नाले के पास उगी झाडि़यों की तरफ गई. वहां कुछ था. उन लोगों ने करीब जा कर देखा तो किसी महिला की लाश पड़ी थी. ध्यान से देखने पर पता चला कि लाश उन के गांव की रहने वाली 45 वर्षीय गुडि़या की है. गुडि़या बब्बू हसन की पत्नी थी, जो पिछले 2 दिनों से घर से गायब थी. काफी खोजबीन के बाद भी जब उस का पता नहीं चल पाया था तो बब्बू के साले यानी गुडि़या के भाई आफताब ने चरवा कोतवाली में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी.

गुडि़या की गुमशुदगी दर्ज होते ही चरवा थाने की पुलिस उस की खोजबीन में जुट गई थी. पुलिस तो उस का पता नहीं लगा पाई, लेकिन 10 अगस्त को नाले के पास झाडि़यों में उस की लाश मिल गई. लाश मिलने की सूचना किसी ने चरवा थाने को दे दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी संतशरण सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए और इस बात से एएसपी समरबहादुर को भी अवगत करा दिया. थानाप्रभारी ने लाश की बारीकी से जांचपड़ताल की तो पाया कि मृतका के सिर पर किसी भारी चीज से प्रहार कर उसे मौत के घाट उतारा गया था. मौके की काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने गुडि़या की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

इस के बाद पुलिस ने मृतका के भाई आफताब की तहरीर पर भादंवि की धारा 302, 201 के तहत अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. मृतका गुडि़या की हत्या की रिपोर्ट दर्ज होने के बाद एएसपी समरबहादुर के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई गई, जिस में थानाप्रभारी संतशरण सिंह, एसआई शिवशरण, हेडकांस्टेबल शिवसागर, कांस्टेबल श्रवण कुमार, छाया शर्मा आदि को शामिल किया गया. इंसपेक्टर संतशरण सिंह ने सब से पहले मृतका की शादीशुदा बेटी सबीना से पूछताछ की, लेकिन उस का रोरो कर बुरा हाल था.  वह ठीक से कुछ नहीं बता पाई.पता चला कि सबीना अपनी बहनों रुबीना, गुलिस्ता और छोटे भाई हसनैन में दूसरे नंबर की थी.

करीब 4 साल पहले उस की शादी कौशांबी के ही दारानगर निवासी जावेद अहमद से हुई थी. पुलिस ने काफी कोशिश की, लेकिन हत्या को एक सप्ताह बीत जाने के बाद भी कुछ पता नहीं चल सका. एएसपी समरबहादुर मामले की प्रगति की बराबर रिपोर्ट ले रहे थे. थानाप्रभारी संतशरण सिंह ने इस बात का पता लगाना शुरू किया कि सबीना अपने पति को छोड़ कर मायके में क्यों रह रही थी, जबकि उस का अपने पति से तलाक भी नहीं हुआ था. पता चला कि सबीना का पति जावेद उम्रदराज था, जिसे वह पसंद नहीं करती थी, इसी वजह से वह अपने बच्चों को ले कर मायके में मां के पास रहती थी.

मुखबिरों का जाल बिछाया गया तो परतें खुलने लगीं, जिस में पुलिस को सबीना संदिग्ध नजर आई. पता चला कि सबीना का आए दिन अपनी मां गुडि़या के साथ विवाद होता था. मांबेटी के बीच विवाद की क्या वजह थी, इस दिशा में पड़ताल की गई तो जानकारी मिली कि शादी के बाद भी सबीना का अपने ही गांव के मोइन से इश्क चल रहा था. अपनी मां की आंखों में धूल झोंक कर वह मोइन से खेतों में मिला करती थी. पुलिस के लिए इतनी जानकारी पर्याप्त थी. चूंकि सबीना शुरू से ही संदेह के दायरे में थी, इसलिए आगे की काररवाई के लिए सबीना और उस के प्रेमी मोइन को पूछताछ के लिए थाने लाया गया और दोनों से पूछताछ की गई.

संदेह पर पुलिस की नजर पूछताछ के दौरान शुरू में सबीना और उस का प्रेमी मोइन अपने आप को निर्दोष बताते रहे. मोइन ने तो यहां तक कहा कि हम दोनों एक ही गांव के रहने वाले हैं, इस लिहाज से हमारा रिश्ता भाईबहन जैसा है. हां, पड़ोसी होने के नाते मेरा इस के घर में शुरू से ही आनाजाना था. लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि यह मेरी माशूका है. मैं इसे अपनी बहन मानता हूं. किसी ने आप को गलत सूचना दे कर हमें फंसाने और बदनाम करने की साजिश की है. सबीना भी पीछे रहने वाली नहीं थी. उस ने भी मोइन की हां में हां मिलाते हुए कहा, ‘‘साहब, मृतका मेरी सौतेली नहीं, सगी मां थी, जिस ने मुझे जन्म दिया था. मैं भला अपनी मां की हत्यारिन कैसे हो सकती हूं.’’

सबीना आवाज में थोड़ा तीखापन लाते हुए आगे बोली, ‘‘मोइन भाई से मेरा कोई ऐसावैसा संबंध नहीं है. आप लोग सुनीसुनाई बातों में आ कर नाहक हमें रुसवा करने पर तुले हैं. मैं आप की इस हरकत की शिकायत बड़े अधिकारियों से करूंगी.’’

थाने के अंदर मोइन और सबीना का यह ड्रामा काफी देर तक चला. लेकिन पुलिस के पास दोनों के अवैध संबंधों की पुख्ता जानकारी थी. इसलिए पुलिस ने जब अपना हथकंडा अपनाया तो दोनों थोड़ी ही देर में टूट गए और अपना गुनाह कबूल कर लिया. दोनों से पूछताछ के बाद गुडि़या की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार थी. जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही सबीना मोइन को चाहने लगी थी, मोइन उस का हमउम्र और पड़ोसी था. प्यार की छलांग में दोनों काफी आगे निकल चुके थे. उन्हें किसी की परवाह नहीं थी न गांव वालों की और न ही अपनेअपने घर वालों की. दोनों एकदूसरे से प्यार करते थे, उन का प्यार आंखों की बेकरारी से उतर कर शारीरिक संबंधों तक पहुंच गया था.

जिस की जानकारी सबीना की मां गुडि़या को हुई तो उस ने बेटी को काफी समझाया पर सबीना कहां मानने वाली थी. उस पर तो मोइन के प्यार का नशा चढ़ा था, जिस की वह कोई भी कीमत अदा करने को तैयार थी. जब वह नहीं मानी तो घर वालों ने उस की शादी कौशांबी जिले के दारानगर निवासी जावेद से तय कर दी. जावेद उम्र में उस से काफी बड़ा था. सबीना ने इस शादी का विरोध किया लेकिन मांबाप, बहनोंबहनोइयों, नातेरिश्तेदारों के आगे उस की एक न चली और आननफानन में जावेद अहमद के साथ उस का निकाह हो गया. सबीना के सारे अरमान धरे रह गए. समय अपनी गति से आगे बढ़ता रहा. देखतेदेखते सबीना 3 बच्चों की मां बन गई. लेकिन उस के दिल को मोइन की मोहब्बत और साथ हमेशा सालता रहा.

अब उसे पति जावेद बूढ़ा नजर आने लगा था. किसी न किसी बात पर सबीना उस से झगड़ती रहती थी. फिर एक दिन वह भी आया जब पति से उस की कुछ ज्यादा ही कहासुनी हो गई. वह पति से नाराज हो कर अपने मायके आ गई. करीब साल भर से वह मायके में ही रह रही थी. सबीना के मायके लौट आने से मोइन की तो जैसे लाटरी लग गई. फिर से दोनों का मिलन होने लगा. अब दोनों बेखौफ हो कर एकदूसरे से मिलते, सबीना की मां गुडि़या इस का पुरजोर विरोध करती थी. लेकिन सबीना के आगे उस की एक नहीं चलती थी. सबीना मां को सफाई दे कर मोइन के साथ मौजमस्ती करती रही.

एक दिन गुडि़या ने सबीना को मोइन के साथ रंगरलियां मनाते रंगेहाथों पकड़ लिया. खेतों से लौट कर उस ने सबीना को अपने पति के पास लौट जाने को कहा, लेकिन सबीना मोइन के प्रेम में दीवानी थी. उस पर मां की बातों का कोई असर नहीं हुआ. उलटे वह मां से लड़नेझगड़ने लगी.

फिर तो आए दिन मांबेटी के बीच झगड़ा होने लगा. मां उसे बारबार अपनी ससुराल जाने को कहती लेकिन वह ससुराल जाने से मना कर देती थी. हत्या की योजना आखिरकार रोजरोज की चिकचिक से आजिज सबीना ने एक कठोर निर्णय ले लिया. मोइन के प्यार में पागल, दीवानी बेटी ने अपनी मां की हत्या की साजिश रच डाली. उसे प्रेमी का प्रेम या हवस के आगे मां सब से बड़ी दुश्मन नजर आने लगी. सबीना ने मां गुडि़या की हत्या की योजना प्रेमी मोइन को बता दी. पहले तो उस ने ऐसा करने से मना किया, लेकिन बाद में हत्या की योजना में शामिल हो गया. सबीना की तरह प्यार में अंधा मोइन प्रेमिका के लिए कुछ भी करने को तैयार था. मोइन ने अपनी योजना में अपने दोस्तों मोनू और मोहम्मद सद्दाम से बात की तो वे उस का साथ देने को तैयार हो गए थे.

तय योजना के अनुसार 8 अगस्त, 2020 को मोइन और उस के साथियों मोनू और मोहम्मद सद्दाम ने मिल कर गुडि़या को उस समय मौत के घाट उतार दिया, जब वह घूमने के लिए खेतों की तरफ निकली थी, उस की हत्या डंडे से पीटपीट कर की गई थी. सिर में भी डंडा मारा गया था जो जानलेवा साबित हुआ. अभियुक्तों की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या के लिए प्रयुक्त डंडा, मृतका की एक जोड़ी चप्पलें बरामद कीं. गुडि़या की हत्या के आरोप में उस की बेटी सबीना, उस के आशिक मोइन मोनू उर्फ निहाल और मोहम्मद सद्दाम को जिला न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.

Moradabad News : 4 बच्चों की मां ने कराई पति की हत्या

Moradabad News : शादीशुदा और 4 बच्चों की मां रीनू ने पहली गलती कपिल से अवैध संबंध बना कर की, दूसरी गलती उस ने इस संबंध को स्थाई बनाने के लिए अपनी छोटी बहन की शादी कपिल से करा कर की. उस की तीसरी गलती कपिल को रिश्तेदार बना कर घर में रखने की थी. और चौथी गलती पति शिवकुमार को मौत के घाट उतरवाने की. इतनी गलतियां करने के बाद…

20 जून, 2020 की सुबह की बात है. मुरादाबाद शहर के सिरकोई भूड़ की रहने वाली वीरवती रोजाना कीतरह सुबह की सैर के लिए निकली थीं. लेकिन उन्होंने मोहल्ले में जो कुछ देखा, उसे देख वह हक्कीबक्की रह गईं. वीरवती जब गली नंबर एक के पास पहुंचीं तो वहां एक युवक की लाश पड़ी थी. जिज्ञासावश वह लाश के नजदीक पहुंचीं तो उन की चीख निकल गई, क्योंकि वह लाश उन के सगे भांजे  शिवकुमार की थी. शिवकुमार उसी गली में रहता था, जिस गली में उस की लाश पड़ी थी. वीरवती रोती हुई शिवकुमार के घर पहुंचीं और यह खबर दी. शिवकुमार के पिता रामकुमार परिवार के लोगों के साथ तुरंत घटनास्थल पर पहुंच गए.

शिवकुमार का सिर कुचला हुआ था और पास में ही खून से सनी एक ईंट पड़ी थी. ईंट को देख कर वह समझ गए कि उसी से शिवकुमार का सिर कुचला गया है. घर वालों की चीखपुकार सुन कर मोहल्ले के और लोग भी वहां जमा हो गए. कुछ ही देर में शिवकुमार की हत्या की खबर पूरे मोहल्ले में फैल गई. फिर क्या था, थोड़ी ही देर में वहां लोगों का हुजूम जमा हो गया. लोग समझ नहीं पा रहे थे कि शिवकुमार की हत्या किस ने और क्यों की. इसी दौरान किसी ने फोन कर के इस की सूचना थाना मझोला पुलिस को दे दी. थानाप्रभारी राकेश कुमार सिंह उसी समय रात्रि गश्त से लौटे थे, हत्या की खबर सुन कर वह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने लाश और घटनास्थल का मुआयना किया.

उन्होंने फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया और यह सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को भी दे दी. फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल से सुबूत जुटाए. पुलिस ने खून से सनी ईंट अपने कब्जे में ले ली. सूचना मिलने के बाद एसपी (सिटी) अमित कुमार आनंद और तत्कालीन एएसपी दीपक भूकर भी वहां आ गए. मृतक के घर वाले वहां मौजूद थे, मृतक की शिनाख्त हो चुकी थी. हत्यारे ने जिस तरह से शिवकुमार का सिर कुचला था, उसे देख कर लग रहा था कि हत्यारे की उस से कोई गहरी रंजिश रही होगी. मृतक के घर वालों और अन्य लोगों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने शिवकुमार का शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पूछताछ में मृतक की पत्नी रीनू ने बताया कि उस के पति ने 2 लोगों से कर्ज ले रखा था. कर्ज न चुकाने की वजह से वे शिवकुमार को काफी तंग कर रहे थे. रीनू ने आरोप लगाया कि शायद उन्हीं लोगों ने उस के पति की हत्या की होगी.

जबकि मृतक के छोटे भाई राजकुमार ने हत्या का शक मृतक के साढ़ू कपिल उर्फ मोनू पर जताया. इतना ही नहीं, उस ने थाने पहुंच कर कपिल उर्फ मोनू के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज करा दी. नामजद रिपोर्ट दर्ज होते ही पुलिस ने काररवाई शुरू कर दी. संदिग्ध आरोपी कपिल मुरादाबाद शहर के ही लाइनपार इलाके के प्रकाशनगर में रहता था. पुलिस जब उस के घर पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला. इस से उस पर पुलिस का शक बढ़ गया. कपिल से पूछताछ जरूरी थी, लिहाजा पुलिस ने उस की खोजबीन शुरू कर दी. थानाप्रभारी ने कपिल की तलाश में मुखबिर भी लगा दिए. इस का नतीजा यह निकला कि 23 जून, 2020 को एक मुखबिर से मिली सूचना के बाद पुलिस ने शिवकुमार के साढ़ू कपिल उर्फ मोनू को मुरादाबाद दिल्ली हाइवे पर स्थित बस स्टाप से  गिरफ्तार कर लिया. वह दिल्ली भागने की फिराक में था.

थाने ला कर कपिल से शिवकुमार की हत्या के बारे में सख्ती से पूछताछ की गई, तो उस ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि शिवकुमार की हत्या में उस की पत्नी रीनू भी शामिल थी. कपिल उर्फ मोनू से पूछताछ के बाद शिवकुमार की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह चौंकाने वाली थी—

महानगर मुरादाबाद का एक मोहल्ला है सिरकोई भूड़. रामकुमार अपने परिवार के साथ इसी मोहल्ले में रहते थे. उन के परिवार  में 4 बेटियों के अलावा 2 बेटे थे. रामकुमार मुरादाबाद के जलकल विभाग में नलकूप औपरेटर थे. इस नौकरी से ही वह परिवार का पालनपोषण करते थे. उन्होंने सन 2007 में बड़े बेटे शिवकुमार की शादी मुरादाबाद जिले के ही  गांव मझरा निवासी नरेश कुमार की बेटी रीनू के साथ की थी. जैसेजैसे रामकुमार का रिटायरमेंट का समय नजदीक आता जा रहा था, वैसेवैसे उन की चिंता बढ़ती जा रही थी. वजह यह थी कि उन के दोनों बेटों में से कोई भी पढ़लिख कर काबिल नहीं बन सका था. करीब 2 साल पहले रामकुमार रिटायर हो गए, लेकिन इस से पहले उन्होंने नगर आयुक्त संजय चौहान से अनुरोध कर बड़े बेटे शिवकुमार को जलकल विभाग में संविदा के तौर पर नलकूप चालक की नौकरी दिलवा दी थी.

शिवकुमार की ड्यूटी उस के घर से कुछ ही दूर पर कांशीराम नगर में थी. उस का काम नलकूप चला कर पानी का टैंक भरने का था. बेटे की नौकरी लग जाने के बाद रामकुमार ने राहत की सांस ली. मुरादाबाद विकास प्राधिकरण द्वारा विकसित किए गए कांशीराम नगर के पास ही बुद्धा पार्क है. इस पार्क में सैकड़ों लोग घूमने आते हैं, जिस से सुबहशाम चहलपहल रहती है. इसी पार्क के बाहर कपिल उर्फ मोनू फास्टफूड का काउंटर लगाता था. वह शहर के लाइनपार स्थित प्रकाश नगर में रहता था. कपिल बहुत स्वादिष्ट फास्टफूड बनाता था, उस के पास ग्राहकों की भीड़ लगी रहती थी. शिवकुमार की पत्नी रीनू अकसर कपिल का फास्टफूड खाने जाती थी. कपिल बहुत बातूनी था. रीनू को भी उस से बात करना अच्छा लगता था. बातचीत के दौरान दोनों की दोस्ती हो गई.

इस के बाद कपिल रीनू के कहने पर उस के घर पर ही बर्गर, पिज्जा आदि देने के बहाने जाने लगा. दोनों जब फुरसत में होते तो फोन पर खूब बातें करते थे. बातचीत का दायरा बढ़ा तो दोनों का एकदूसरे की तरफ झुकाव हो गया, दोनों एकदूसरे को चाहने लगे. रीनू यह भी भूल गई कि वह शादीशुदा ही नहीं, 4 बच्चों की मां भी है. वह जो कर रही है वह सही नहीं है. वह कपिल के आकर्षण में बंध चुकी थी. इस का नतीजा यह हुआ कि दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए. रीनू का पति शिवकुमार अकसर रात की ड्यूटी करता था. उस के ड्यूटी चले जाने के बाद मीनू फोन कर के कपिल को अपने घर बुला लेती थी. उस के बाद दोनों अपनी हसरतें पूरी करते थे.

ढूंढ लिया स्थाई जुगाड़ पिछले करीब 2 साल से उन का यही सिलसिला चल रहा था. रीनू किसी भी तरह कपिल से दूर नहीं होना चाहती थी. इस के लिए उस ने एक योजना बनाई. इस योजना के तहत उस ने कपिल के सामने प्रस्ताव रखा कि यदि वह उस की छोटी बहन रिंकी से शादी कर ले तो इस रिश्ते की आड़ में उन के संबंध यूं ही बने रहेंगे और उन पर किसी को शक भी नहीं होगा. यह बात कपिल की समझ में आ गई. रीनू और कपिल ने अपने संबंधों को बनाए रखने के लिए योजना तो बना ली थी, लेकिन यह योजना शिवकुमार के बिना साकार नहीं हो सकती थी. लिहाजा एक दिन रीनू ने पति से कहा, ‘‘हम लोग काफी दिनों से रिंकी के लिए लड़का तलाश रहे हैं, लेकिन अभी तक कहीं कोई बात नहीं बनी. हम लोग बुद्धा पार्क के पास जिस कपिल के पास फास्टफूड खाने जाते हैं, वह मुझे सही लगा. तुम उस से बात कर के देखो.’’

शिवकुमार को पत्नी की चाल का पता नहीं था. उसे कपिल अच्छा लड़का नजर आया, क्योंकि वह अच्छा कमा रहा था. उस ने सोचा कि अगर रिंकी की शादी कपिल से हो जाएगी तो वह सुख से रहेगी. सोचविचार कर शिवकुमार ने कपिल के सामने अपनी साली रिंकी के साथ शादी का प्रस्ताव रखा. इस पर कपिल ने कहा कि पहले वह लड़की को देखेगा, उस के बाद ही कोई जवाब देगा. निर्धारित समय पर रीनू ने अपने घर पर ही लड़की दिखाने का प्रोग्राम निश्चित कर लिया. कपिल अपने घर वालों के साथ रीनू के घर पहुंचा. उन्होंने लड़की को पसंद कर लिया. आगे की बातचीत करने के बाद रिंकी से कपिल की शादी हो गई. यह करीब डेढ़ साल पहले की बात है. शिवकुमार ने साली की शादी में दिल खोल कर पैसा खर्च किया.

रिंकी से शादी हो जाने के बाद कपिल का रीनू के घर आनाजाना बढ़ गया. अब दोनों रिश्तेदार हो गए थे, इसलिए दोनों के रिश्ते पर किसी को शक नहीं हुआ. लेकिन गलत काम ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाता. एक न एक दिन पोल खुल ही जाती है.कोरोना महामारी के बाद पूरे देश में लौकडाउन लग गया. लौकडाउन लगने के बाद कपिल का फास्टफूड का काउंटर भी बंद हो गया था. इस के बाद वह अकसर रीनू के घर पर ही पड़ा रहने लगा. शिवकुमार को शक हुआ कि वह उस के घर पर ही क्यों पड़ा रहता है. उस ने कपिल पर निगाह रखनी शुरू कर दी. अपनी पत्नी और कपिल के व्यवहार से शिवकुमार को शक हो गया कि दोनों के बीच जरूर कोई चक्कर चल रहा है.

शिवकुमार की नजरों में चढ़ा कपिल इस बारे में उस ने पत्नी से बात की तो रीनू ने उसे समझाया कि लौकडाउन में काम बंद पड़ा है, इसलिए कपिल यहां आ जाता है. लेकिन शिवकुमार पत्नी की इस बात से संतुष्ट नहीं हुआ. तब उस ने पत्नी के साथ सख्ती बरती. उस ने अपने साढ़ू कपिल से भी कह दिया कि वह घर न आया करे. पति की यह बात रीनू को बहुत बुरी लगी. वह कपिल के पक्ष में खड़ी हो गई. उस ने कहा कि जब ये हमारे रिश्तेदार हैं तो इन्हें आने से कैसे रोक सकते हैं. इस बात को ले कर शिवकुमार और कपिल के बीच कई बार झगड़ा हुआ. इस के बाद भी कपिल ने रीनू के पास आना बंद नहीं किया. शिवकुमार रात को जब अपनी ड्यूटी पर चला जाता, कपिल उस के घर पहुंच जाता था.

19-20 जून, 2020 की रात को करीब 12 बजे शिवकुमार अपनी ड्यूटी पर चला गया. पति के जाते ही मीनू ने फोन कर के कपिल को घर बुला लिया. इस के बाद दोनों अपनी हसरतें पूरी करने में जुट गए. उधर 3-4 घंटे में पानी का टैंक भरने के बाद शिवकुमार सुबह करीब 4 बजे घर लौट आया. दरवाजा खुलवाने के लिए उस ने रीनू को आवाज दी. लेकिन वह कपिल के साथ रंगरलियां मना रही थी. शिवकुमार की आवाज सुन कर दोनों हड़बड़ा गए. अपने कपड़े संभालती हुई रीनू दरवाजा खोलने आई. उस समय शिवकुमार शराब के नशे में था. उस ने कमरे में कपिल को देखा तो आगबबूला हो गया. उसे समझते देर न लगी कि कमरे में क्या हो रहा था.

गुस्से में आगबबूला शिवकुमार कपिल से भिड़ गया. रीनू उस का बचाव करने के लिए सामने आई, तो शिवकुमार ने पत्नी को भी गालियां दीं. शोरशराबा हुआ तो रीनू और कपिल को विश्वास हो गया कि अब उन की पोल खुल जाएगी. लिहाजा दोनों ने एकदूसरे की ओर देख कर आंखों ही आंखों में इशारा कर एक षडयंत्र रच लिया. फंस गया शिवकुमार इस षडयंत्र के तहत कपिल ने शिवकुमार को बिस्तर पर गिरा लिया और उस के सीने पर सवार हो गया. तभी रीनू ने तकिया उठा कर कपिल को दे दिया. कपिल ने तकिया शिवकुमार के मुंह पर रख कर जोरों से दबाया. रीनू ने पति के पैर दबा रखे थे. सांस घुटने से कुछ ही देर में शिवकुमार की मौत हो गई.

खुद को बचाने के लिए दोनों ने  शिवकुमार की लाश गली में डाल दी. वह कहीं जीवित न रह जाए, इसलिए कपिल ने गली में पड़ी एक ईंट से शिवकुमार के सिर को बुरी तरह से कुचल दिया. इस काम को अंजाम देने के बाद कपिल अपने घर चला गया. सुबह करीब 5 बजे जब शिवकुमार की मौसी वीरवती घर से सैर के लिए निकलीं, तब उन्होंने गली में शिवकुमार की लाश देखी. इस के बाद उन्होंने शोर मचा कर हत्या की जानकारी घर वालों को दी. कपिल से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने रीनू को भी गिरफ्तार कर लिया. रीनू ने भी पुलिस के सामने अपना जुर्म कबूल कर लिया. पुलिस ने 23 जून,2020 को कपिल कुमार उर्फ मोनू और रीनू को शिवकुमार की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जिला जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Hardoi News : पत्नी से संबंध बना रहा था भाई, पति ने देखा तो कर दी हत्या

Hardoi News : एक कलंकित रिश्ता परिवार को बिखेर सकता है, अपने ही खून के हाथों खून करा सकता है. ऐसा ही कुछ…

शिवराज कुशवाहा जनपद हरदोई के गांव देहीचोर अंटवा में अपने परिवार के साथ रहते थे. काम था खेतीकिसानी का. परिवार में पत्नी कैलाशा देवी और 3 बेटे थे— अर्जुन, अमर सिंह और कैलाश. अर्जुन लखनऊ में एक ट्रैक्टर एजेंसी में काम करता था. अमर सिंह नोएडा की किसी फैक्टरी में कार्यरत था और कैलाश गांव में खेती करता था. शिवराज ने तीनों का विवाह कर के जमीन का बंटवारा कर दिया था. तीनों भाई परिवार के साथ अपनेअपने हिस्से में रहते थे. करीब 6 साल पहले अमर सिंह का विवाह विनीता से हुआ था. उस के 2 बच्चे थे. कैलाश की शादी 4 साल पहले कंचनलता से हुई थी. उस के 2 बच्चे थे.

घर से दूर नोएडा में रहने की वजह से अमर सिंह की पत्नी विनीता का गांव में मन नहीं लगता था. पति 2-3 महीने में घर का चक्कर लगाता था, फलस्वरूप विनीता पति से मिलने वाले सुख के लिए बेचैन रहती थी. काफी समय तक पति सुख से वंचित रहने के कारण उस का तन विद्रोह करने लगा था. विनीता का देवर कैलाश घर पर ही रहता था. जब वह उस से हंसीमजाक करता तो कभीकभी अपनी सीमाएं लांघ जाता था. विनीता समझ गई कि कैलाश भले ही शादीशुदा है, लेकिन उसे शायद घर की दाल में मजा नहीं आ रहा, इसलिए वह बाहर की बिरयानी खाने की जुगत में है. इसी वजह से वह उस पर डोरे डालने की कोशिश कर रहा है.

कैलाश भी जानता था कि उस का बड़ा भाई अमर सिंह बाहर रहता है, इसलिए उस की भाभी प्यासी मछली की तरह तड़पती होंगी. वह अपनी भाभी को अपने आगोश में लेने के लिए सारे जतन कर रहा था.  विनीता भी उस की मंशा भांप कर खुश थी. क्योंकि उस प्यासी के लिए तो कुआं घर में ही मौजूद था, बाहर तलाशने की जरूरत नहीं थी. दोनों ही एकदूसरे में समाने को आतुर हुए तो विनीता ने मिलन का रास्ता भी\ बना लिया. एक दिन दोपहर के समय विनीता चारपाई पर लेटी थी तभी कैलाश वहां आ गया. उसे देख कर विनीता पैरों में दर्द का बहाना कर के कराहने लगी. उस ने साड़ी को घुटने तक खींच लिया. कैलाश ने उस की हालत देखी तो बोला, ‘‘क्या हुआ भाभी, ऐसे कराह क्यों रही हो?’’

‘‘क्या बताऊं…पैरों में बड़ी जोर से दर्द हो रहा है.’’ विनीता अपने हाथ से दायां पैर दबाने की कोशिश करती हुई बोली.

‘‘अरे आप क्यों परेशान हो रही हैं, मैं दबा देता हूं पैर.’’ कह कर कैलाश उस के नग्न पैरों को अपने हाथों से दबाने लगा. इस पर विनीता उस को तेल की शीशी देते हुए बोली, ‘‘इस तेल से मालिश कर दो, कुछ आराम मिल जाएगा.’’

कैलाश ने उस के हाथों से तेल की शीशी ले कर थोड़ा तेल निकाला और भाभी के पैरों की मालिश करने लगा. पराए मर्द के हाथों के स्पर्श से विनीता के तन में चिंगारियां फूटने लगीं. तनबदन मचल उठा. जैसेजैसे कैलाश मालिश कर रहा था, विनीता साड़ी को थोड़ाथोड़ा ऊपर खींचते हुए मालिश करने को कहती गई, ‘‘थोड़ा और ऊपर मालिश कर दो. जैसेजैसे मालिश कर रहे हो, दर्द नीचे से ऊपर की ओर बढ़ता जा रहा है.’’ मस्ती से सराबोर हो कर विनीता ने कहा. इस के बाद उस ने साड़ी को कूल्हों तक खींच लिया.

कैलाश कोई नादान नहीं था. वह भाभी की मंशा समझ गया और मालिश करतेकरते अपना नियंत्रण खोने लगा. उस के हाथ आगे बढ़ते गए. अंतत: विनीता ने उसे अपने ऊपर खींच लिया. उस के बाद उन के बीच की सारी दूरियां खत्म हो गईं और उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कर लीं. इस के बाद दोनों के बीच संबंधों का यह सिलसिला चलने लगा. लेकिन ऐसे संबंध एक न एक दिन उजागर हो ही जाते हैं. अमर सिंह को अपनी पत्नी व भाई के बीच के नाजायज संबंधों का पता चल गया तो वह गांव आ गया. उस ने गुस्से में विनीता को तो जम कर पीटा ही, कैलाश के साथ भी मारपीट की. विनीता और बच्चों को वह अपने साथ नोएडा ले गया.

विनीता के चले जाने के बाद कैलाश भी काम के सिलसिले में हैदराबाद चला गया. कैलाश की पत्नी कंचनलता 2 बच्चों के साथ घर पर रह रही थी. कंचनलता को घर में अकेले देख कर कैलाश का चचेरा भाई रमाकांत उस के पास आने लगा. रमाकांत पड़ोस में ही रहता था और अविवाहित था. उस की चाय समोसे की दुकान थी. कंचनलता की कंचन काया छरहरी थी. रमाकांत उस पर आसक्त हो गया. 2 बच्चों की मां कंचनलता अपने हुस्न से तमाम लड़कियों को मात दे सकती थी. खूबसूरत हुस्न की मालकिन कंचन पति कैलाश के बिना मुरझाईमुरझाई सी रहने लगी. वह हंसती तो लगता जैसे दिखावटी हंसी हंस रही हो. रमाकांत उस के मुरझाने का कारण बखूबी समझता था. इसलिए रमाकांत उस के पास जाता तो उसे हंसाने की कोशिश करता. कंचनलता को भी उस की बातें अच्छी लगती थीं. वह उस से घुलनेमिलने लगी.

एक दिन बातोंबातों में रमाकांत कंचनलता के दर्द को अपनी जुबां पर ले आया, ‘‘भाभी, मैं देख रहा हूं कि जब से कैलाश भैया गए हैं, तब से आप उदास सी रहने लगी हो.’’

‘‘तो क्या करूं, उन के जाने पर नाचूं या हंसू?’’ कंचनलता ने बड़ी कड़वाहट से जवाब दिया.

‘‘आप को भी उन के साथ चले जाना चाहिए था, आखिर आप की भी अपनी कुछ जरूरतें और इच्छाएं हैं.’’

‘‘उन को मेरी चिंता ही कहां है.’’ वह बुझे मन से बोली.

‘‘जब उन्हें आप की चिंता नहीं है तो आप भी अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जिओ. आप को भी पूरी आजादी है, मैं आप का हर तरह से साथ देने को तैयार हूं.’’ रमाकांत बोला. यह सुन कर कंचनलता मुसकराई और अपनी नजरें झुका लीं. रमाकांत ने अपने दाएं हाथ से कंचनलता की ठोढ़ी पकड़ कर चेहरा ऊपर उठाया और उस की आंखों में देखा. इस पर कंचनलता कुछ देर यूं ही उस की आंखों में देखती रही. फिर उस के अंदाज की कायल हो कर उस से लिपट गई. रमाकांत ने भी कंचनलता को अपनी बांहों में भर लिया. फिर उन के बीच की सारी मर्यादाएं टूट गईं, दोनों के जिस्म एक हो गए. उन के बीच यह खेल निरंतर खेला जाने लगा.

देश में लौकडाउन हुआ तो अमर सिंह को सपरिवार नोएडा से गांव आना पड़ा. कैलाश भी हैदराबाद से गांव वापस लौट आया. सभी के घर आ जाने के बाद कैलाश और विनीता ने मौका मिलने पर फिर से संबंध बनाने शुरू कर दिए. कैलाश रोज रात में 11 बजे गर्रा नदी किनारे अपने मक्का के खेत की रखवाली के लिए चला जाता था और सुबह 4 बजे घर लौटता था. लेकिन 22 अगस्त, 2020 की सुबह कैलाश काफी देर तक घर नहीं लौटा तो कंचनलता उसे बुलाने खेतों पर गई. वहां खेत में उसे पति की लाश पड़ी मिली. उस ने रोतेपीटते घर वालों को घटना की सूचना दी. कुछ ही देर में घर वाले और गांव के लोग वहां एकत्र हो गए.

कैलाश के दोनों भाई भी वहां पहुंच गए थे. वह समझ नहीं पा रहे थे कि कैलाश की हत्या किस ने कर दी. भाई अमर सिंह ने सांडी थाना पुलिस को घटना की सूचना दी. सूचना पा कर इंसपेक्टर अखिलेश यादव पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. थाने से रवाना होते समय उन्होंने उच्चाधिकारियों को घटना की सूचना दे दी थी. घटनास्थल पर पहुंच कर इंसपेक्टर यादव ने लाश का निरीक्षण किया. मृतक के सिर व हाथों पर किसी तेज धारदार हथियार के घाव थे. आसपास का निरीक्षण करने पर उन्हें कोई सुबूत हाथ नहीं लगा. उन्होंने कंचनलता, अमर सिंह व अन्य घरवालों से आवश्यक पूछताछ की. इसी बीच एएसपी (पूर्वी) अनिल सिंह यादव और सीओ बिलग्राम एस.आर. कुशवाहा भी मौके पर पहुंच गए. उच्चाधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया, उस के बाद उन्होंने मृतक के घर वालों से पूछताछ की. फिर इंसपेक्टर अखिलेश यादव को आवश्यक दिशानिर्देश दे कर चले गए.

घटनास्थल की जरूरी काररवाई पूरी करने के बाद इंसपेक्टर यादव ने लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल स्थित मोर्चरी भेज दी और अमर सिंह को साथ ले कर थाने लौट गए. थाने पहुंच कर उन्होंने अमर सिंह की तरफ से अज्ञात के विरुद्ध भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. इंसपेक्टर यादव ने केस की जांच शुरू की. घर वालों ने मामला जमीनी रंजिश का बताया था, लेकिन वैसा लग नहीं रहा था. गांव वालों व पड़ोसियों से पूछताछ के बाद घटना की वजह कुछ और ही नजर आ रही थी. इंसपेक्टर यादव ने कैलाश के घर आनेजाने वालों व घर के बराबर में रहने वाले कैलाश के भाईबंधुओं के बारे में पता किया, तब उन्हें पता चला कि लाश मिलने के एक दिन पहले रात में अमर सिंह और उस के चचेरे भाई रमाकांत को एक साथ गांव के बाहर जाते देखा गया था.

यह भी पता चला कि रमाकांत कैलाश की गैरमौजूदगी में उस के घर में ही घुसा रहता था. कैलाश के संबंध अमर सिंह की पत्नी से थे, जिस की वजह से अमर सिंह पत्नी को नोएडा ले गया था. यह महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलने के बाद इंसपेक्टर यादव ने अमर सिंह और रमाकांत को 30/31 अगस्त की रात करीब ढाई बजे गांव बरोलिया के मंदिर के पास से गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर जब दोनों से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और हत्या के पीछे की पूरी कहानी बयां कर दी. लौकडाउन में घर वापस आने के बाद कैलाश और विनीता में फिर से संबंध बनने लगे तो यह बात छिप न सकी. अमर सिंह को भी यह जानकारी मिल चुकी थी. अमर सिंह गुस्से से आगबबूला हो उठा.

उस ने अपने छोटे भाई कैलाश को काफी समझाया, पर उन दोनों पर उस के समझाने का कोई असर नहीं पड़ा. कैलाश बड़े भाई की बात मानने को तैयार नहीं था. ऐसे में अमर सिंह ने उसे मौत की नींद सुलाने का फैसला कर लिया. एक बार अमर सिंह ने चचेरे भाई रमाकांत को कैलाश की पत्नी कंचनलता से संबंध बनाते देख लिया था. तब रमाकांत ने अमर सिंह से माफी मांग ली थी और अमर सिंह भी चुप हो गया. अमर सिंह को कैलाश की हत्या में साथ देने के लिए एक साथी की जरूरत थी. वह साथी उसे रमाकांत के रूप में मिल गया. अमर सिंह ने भाई कैलाश की हत्या में रमाकांत से मदद मांगी तो वह मना करने लगा. इस पर अमर सिंह ने कहा कि उन दोनों के रास्ते का कांटा एक ही है. वह उसे इसलिए मारना चाहता है क्योंकि वह उस की पत्नी से संबंध बना कर उस का घर खराब कर रहा है. कैलाश के रास्ते से हटने पर उस का रास्ता साफ हो जाएगा, फिर वह बेरोकटोक कंचनलता से मिल सकेगा.

अमर सिंह की बात रमाकांत के भेजे में घुस गई और रमाकांत अमर सिंह का साथ देने को तैयार हो गया. 21 अगस्त, 2020 की रात 11 बजे कैलाश अपने मक्के की फसल की रखवाली के लिए घर से निकल गया. योजनानुसार रात साढे़ 12 बजे के करीब अमर सिंह और रमाकांत घर से निकले. दोनों अपने साथ एक कुल्हाड़ी भी लाए थे. दोनों खेत पर पहुंचे तो कैलाश को गहरी नींद में सोते पाया. यह देख अमर सिंह ने कुल्हाड़ी से उस के सिर पर वार किया. इस के बाद उस ने कई वार किए. रमाकांत ने भी उस से कुल्हाड़ी ले कर उस पर कई वार किए.

लहूलुहान कैलाश चारपाई से नीचे गिर गया. लेकिन कुल्हाड़ी के अनगिनत वारों के कारण कैलाश की सांसें ज्यादा देर तक चल न सकीं और उस की मौत हो गई. उसे मौत के घाट उतारने के बाद उन्होंने अपने खून सने कपड़े उतारे और दूसरे कपड़े पहन कर रक्तरंजित कपड़ों और कुल्हाड़ी को एक जगह छिपा दिया और घर वापस लौट आए. लेकिन गुनाह छिप न सका और वे पकड़े गए. उन की निशानदेही पर पुलिस ने कुल्हाड़ी और खून से सने कपड़े बरामद कर लिए. फिर कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के दोनोें को सीजेएम कोर्ट में पेश किया गया, वहां से उन्हें जेल दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Uttar Pradesh News : नईनवेली दुलहन प्रगति ने दी पति की मौत की सुपारी

Uttar Pradesh News : प्रगति की बड़ी बहन पारुल की शादी एक करोड़पति परिवार में हुई थी. फिर प्रगति ने भी बहन के 21 वर्षीय देवर दिलीप यादव को अपने प्यार के जाल में फांस कर उस से शादी कर ली. शादी के 2 हफ्ते बाद ही ऐसा क्या हुआ कि 19 वर्षीय नईनवेली दुलहन प्रगति ने मुंहदिखाई में मिले पैसों से सुपारी दे कर पति की हत्या करा दी?

शादी के बाद 5 दिन ससुराल में रह कर प्रगति यादव अपने मायके आ गई. उस का भाई आलोक चौथी चला कर ससुराल से उसे लाया था. वह ससुराल से आई तो बेहद खुश थी. ससुराल से कोई शिकायत भी नहीं आई थी, इसलिए प्रगति के फेमिली वाले भी खुश थे. लेकिन प्रगति के दिमाग में क्या बवंडर चल रहा है, उस की खुशी में कितना जहर घुला है, इस का अंदाजा फेमिली वाले नहीं लगा सके. मायके आने के दूसरे रोज ही प्रगति ने अपने प्रेमी अनुराग उर्फ मनुज से मोबाइल फोन पर बात की और उसे मिलने के लिए औरैया हाइवे स्थित होटल बांकेबिहारी बुलाया. कुछ ही देर बाद अनुराग होटल पहुंच गया. वहां प्रगति उस का बेसब्री से इंतजार कर रही थी. होटल में बैठ कर उन के बीच बातचीत शुरू हुई.

प्रगति बोली, ”मनुज, प्लान के मुताबिक मैं ने दिलीप से शादी कर ली और उस की दुलहन बन गई. किसी को शक न हो, इसलिए सुहागरात को भी किसी तरह का विरोध नहीं किया. हालांकि सुहाग सेज पर मुझे तुम्हारी याद सताती रही, लेकिन अब मैं अधिक दिनों तक इंतजार नहीं कर सकती. आगे का प्लान क्या है?’’

अनुराग उर्फ मनुज प्रगति का हाथ अपने हाथ में लेता हुआ बोला, ”प्रगति, तुम चिंता मत करो. तुम्हारे पति दिलीप को ठिकाने लगाने के लिए मैं ने अपने मौसेरे भाई दुर्लभ के जरिए सुपारी किलर को खोज लिया है, लेकिन समस्या रुपयों की है?’’

”रुपयों की चिंता तुम मत करो. उस का इंतजाम हो गया है. मुंहदिखाई रस्म में दिलीप के घरवालों और रिश्तेदारों ने लगभग 70 हजार रुपए मुझे दिए हैं. इस के अलावा 30 हजार रुपए दिलीप ने मुझे खर्च के लिए दिए हैं. इस तरह मेरे पास एक लाख रुपया नकद और 8 लाख रुपए कीमत के गहने हैं. तुम सुपारी किलर को बुला लो. आमनेसामने बैठ कर पति की मौत का सौदा हो जाएगा.’’

इस के बाद अनुराग उर्फ मनुज ने दुर्लभ यादव के माध्यम से औरैया जिले के थाना अछल्दा के गांव रामनगर निवासी कुख्यात अपराधी रामजी नागर उर्फ चौधरी से बात की. वह होली के 2 दिन पहले ही जेल से छूट कर आया था. उसे पैसों की सख्त जरूरत थी, इसलिए वह सुपारी लेने को राजी हो गया था. 17 मार्च, 2025 को अनुराग व प्रगति फिर से होटल बांकेबिहारी पहुंचे. वहां अनुराग ने दुर्लभ के माध्यम से सुपारी किलर रामजी नागर उर्फ चौधरी को भी बुलवा लिया. फिर आमनेसामने बैठ कर प्रगति ने पति की हत्या का सौदा तय करना शुरू किया.

रामजी नागर ने 3 लाख रुपए मांगे, लेकिन प्रगति अधिक रकम की बात कह कर राजी नहीं हुई. बाद में दुर्लभ के माध्यम से दिलीप की मौत का सौदा 2 लाख रुपए में तय हो गया. एडवांस के तौर पर प्रगति ने एक लाख रुपया नकद सुपारी किलर रामजी नागर को दे दिए तथा शेष काम होने के बाद देने का वादा किया. पति की मौत की सुपारी देने के बाद प्रगति पति दिलीप से रसभरी मीठीमीठी बातें करने लगी. कभी काल कर तो कभी वीडियो कालिंग के जरिए बात करती. दिलीप भी नईनवेली पत्नी की बातों में खूब दिलचस्पी लेता. दिलीप को महसूस नहीं हुआ कि पत्नी का प्यार छलावा है. उस की रसभरी बातों में जहर भरा है.

19 मार्च, 2025 की सुबह 10 बजे प्रगति ने दिलीप से मोबाइल फोन पर बात की तो उस ने बताया कि वह इस समय कन्नौज के उमर्दा कस्बे में है. पुल निर्माण का काम चल रहा है. वह भी हाइड्रा (क्रेन) ले कर आया था. उस का काम आज खत्म हो गया है. कुछ देर बाद वह घर के लिए निकलने वाला है.

हत्या होने तक किलर के संपर्क में रही प्रगति

प्रगति ने तत्काल इस की सूचना अपने प्रेमी अनुराग को दी. अनुराग ने सुपारी किलर रामजी नागर को सूचित किया. रामजी नागर अपने 2 साथियों शिवम व दुर्लभ के साथ बाइक से बेला चौराहे पर पहुंच गया. दोपहर लगभग डेढ़ बजे दिलीप ने बेला चौराहा पार किया और दिबियापुर की ओर रवाना हुआ. तभी रामजी नागर व उस के 2 साथियों शिवम और दुर्लभ ने उस का पीछा किया. पटना नहर पुल के आगे पहुंचने पर एक ढाबे पर खाना खाने के लिए दिलीप रुका. पीछे से रामजी नागर भी आ गया. खाना खाते समय दिलीप ने अपने बड़े भाई संदीप को फोन किया कि वह हाइड्रा (क्रेन) ले कर वापस आ रहा है. पटना नहर पुल के पास स्थित ढाबे पर खाना खा रहा है. एक घंटे में घर पहुंच जाएगा.

इधर खाना खाने के बाद दिलीप ढाबे के बाहर निकला तो रामजी नागर ने पूछा, ”भाईसाहब, यह हाइड्रा (क्रेन) आप की है?’’

”हमारी है. कुछ काम है?’’ दिलीप ने पूछा.

”हां, बहुत जरूरी काम है. दरअसल, हमारी कार बेकाबू हो कर नहर पटरी फांद कर नहर में गिर गई है. उसे निकालना है. आप मेरे साथ चल कर रास्ता देख लें. फिर क्रेन से उसे निकाल देना. आप जो पैसे कहेंगे, हम चुकता कर देंगे.’’

दिलीप यादव लालच में आ गया. उस ने सोचा छोटे से काम के हजार-2 हजार रुपए मिल जाएंगे. अत: वह उस के साथ जगह देखने को राजी हो गया. रामजी नागर व उस के साथी शिवम और दुर्लभ दिलीप को बाइक पर बीच में बिठा कर चल पड़े. लगभग 7 किलोमीटर का सफर तय कर उन की बाइक पलिया गांव के पास नहर पटरी पर रुकी. बाइक से उतरते ही रामजी नागर, शिवम और दुर्लभ ने दिलीप को दबोच लिया और उसे घसीटते हुए नहर पटरी से कुछ दूर गेहूं के खेत में ले गए. वहां मारपीट कर तथा धारदार हथियार से हमला कर दिलीप को लहूलुहान कर दिया. लेकिन अब भी दिलीप की सांसें चल रही थीं.

फिर रामजी नागर ने कमर में खोंसा तमंचा निकाल लिया और दिलीप की कनपटी से सटा कर फायर कर दिया. उस के बाद उसे मरा समझ कर तीनों बाइक से फरार हो गए. इस बीच प्रगति प्रेमी व सुपारी किलर से मोबाइल फोन के जरिए संपर्क में रही. शाम 4 बजे पलिया गांव के कुछ लोगों ने नहर किनारे गेहूं के खेत में एक युवक को मरणासन्न हालत में पड़े देखा तो सूचना डायल 112 पुलिस को दी. पुलिस मौके पर पहुंची और सूचना थाना सहार को दी. सूचना पाते ही थाना सहार के एसएचओ पंकज मिश्रा सहयोगी पुलिसकर्मियों के साथ घटनास्थल पर पहुंचे. उस समय युवक की सांसें चल रही थीं. अत: जान बचाने के लिए युवक को बिधूना ले गए और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में भरती करा दिया.

इधर जब 2 घंटे तक दिलीप घर नहीं पहुंचा तो उस के भाई संदीप ने उसे काल लगाई. काल इंसपेक्टर पंकज मिश्रा ने रिसीव की. उन्होंने संदीप को बताया कि यह मोबाइल फोन जिस युवक का है, वह मरणासन्न हालत में सामुदायिक स्वास्थ केंद्र बिधूना में भरती है. यह सुनते ही संदीप घबरा गया. उस ने एसएचओ को बताया कि घायल युवक उस का भाई दिलीप है. वह जल्द ही बिधूना अस्पताल पहुंच रहा है. इस के बाद संदीप ने दिलीप के घायल होने की खबर अपने भाइयों, मम्मीपापा तथा दिलीप की ससुराल में दी. फिर भाई अक्षय के साथ बिधूना पहुंच गया. अस्पताल में उस ने भाई दिलीप की हालत देखी तो डाक्टरों से उस ने बात की. गंभीर हालत देख कर डाक्टरों ने दिलीप को मैडिकल कालेज सैफई रेफर कर दिया.

सैफई मैडिकल कालेज में जब दिलीप का इलाज शुरू हुआ और मस्तिष्क का सीटी स्कैन हुआ तो पता चला कि कनपटी में गोली फंसी है. अब तक दिलीप का पूरा परिवार मैडिकल कालेज आ पहुंचा था. दिलीप की पत्नी प्रगति भी अपने भाई आलोक के साथ आई थी. पति की हालत देख कर वह फफक पड़ी और बोली, ”अभी तो मेरे हाथों से मेहंदी का रंग भी नहीं छूटा और भगवान तूने ये क्या गजब ढा दिया. इन को कुछ हो गया तो मैं कैसे जिंदा रहूंगी.’’

भाई आलोक ने किसी तरह बहन को संभाला. हालांकि उसे सब पता था कि यह नाटक कर रही है.

करोड़पति बाप की औलाद निकला मृतक

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दिलीप को गोली लगने की सूचना पुलिस के आला अधिकारियों को लगी तो एसपी अभिजीत आर. शंकर, एएसपी आलोक मिश्रा, डीएसपी भरत पासवान तथा एसएचओ पंकज मिश्रा सैफई मैडिकल कालेज पहुंचे और घायल दिलीप यादव के फेमिली वालों से बातचीत की. वहीं अधिकारियों को पता चला कि दिलीप एक करोड़पति व्यापारी का बेटा है. उस की अभी हाल में ही शादी हुई थी. पर सवाल था कि दिलीप की जान कौन लेना चाहता था? इस का सही जवाब दिलीप के फेमिली वालों के पास भी नहीं था.

दूसरे रोज सैफई मैडिकल कालेज में दिलीप की हालत बिगड़ी तो घर वाले उसे ग्वालियर के अस्पताल ले गए. वहां मन नहीं भरा तो उसे आगरा ले गए. अंत में उन्होंने औरैया के चिचौली मैडिकल कालेज में भरती कराया. लेकिन 21 मार्च की सुबह दिलीप ने अंतिम सांस ली. मौत के बाद दिलीप के शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया गया. पोस्टमार्टम के बाद शव को उस के घर वालों को सौंप दिया गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार दिलीप के शरीर में 9 गंभीर चोटों के निशान मिले, जो किसी धारदार हथियार के थे. सिर के पीछे 315 बोर की गोली निकली थी.

पोस्टमार्टम के बाद फेमिली वाले दिलीप का शव पैतृक गांव नगला दीपा ले गए. शव पहुंचते ही गांव में कोहराम मच गया. बेटे की लाश देख कर पापा सुमेर सिंह व मम्मी सुमन देवी बिलख पड़ीं. अन्य घर वालों की आंखों से भी आंसू बहने लगे. मृतक दिलीप की पत्नी प्रगति भी ससुराल में ही थी. प्रगति ने पति के शव पर इतने आंसू बहाए कि देखने वालों का कलेजा कांप उठा. किसी तरह उस की बहन पारुल ने उसे संभाला. फिर शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

इधर सहार थाने के एसएचओ पंकज मिश्रा ने संदीप यादव की तहरीर पर पहले दिलीप पर जानलेवा हमले (बीएनएस की धारा 109) की रिपोर्ट दर्ज की, फिर मौत होने पर इस रिपोर्ट को हत्या (बीएनएस की धारा 103) में तरमीम कर दिया. चूंकि हत्या का यह मामला एक बड़े कारोबारी के बेटे का था, अत: औरैया के एसपी अभिजीत आर. शंकर ने इस मामले को बड़ी गंभीरता से लिया और इस ब्लाइंड मर्डर का रहस्य खोलने के लिए एएसपी आलोक मिश्रा तथा डीएसपी भरत पासवान की निगरानी में एक पुलिस टीम का गठन किया. इस टीम में इंसपेक्टर पंकज मिश्रा, स्वाट टीम प्रभारी राजीव कुमार, तेजतर्रार पुलिसकर्मियों तथा सर्विलांस टीम को शामिल किया गया.

पुलिस कप्तान द्वारा गठित इस पुलिस टीम ने बड़ी तेजी से काम शुरू किया. टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया, फिर ढाबा मालिक व वहां के कर्मचारियों से पूछताछ की. उस के बाद पुलिस टीम ने ढाबा से पलिया गांव तक, जहां दिलीप गेहूं के खेत में मरणासन्न अवस्था में पड़ा था, बारीकी से निरीक्षण किया तथा लगभग 7 किलोमीटर की दूरी तक सड़क व नहर पटरी पर लगे सीसीटीवी कैमरों की जांच की. इसी जांच में पटना नहर पुल पर लगे सीसीटीवी कैमरे में एक सफेद रंग की बाइक पर 4 लोग पलिया गांव की ओर जाते दिखे, लेकिन वापसी में 3 लोग ही दिखे. इस फुटेज में एक का चेहरा साफसाफ दिख रहा था.

सुपारी किलर ऐसे चढ़ा पुलिस के हत्थे

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सीसीटीवी कैमरे की इस फुटेज को पुलिस टीम ने अन्य थानों से साझा किया तो अछल्दा थाने की पुलिस से महत्त्वपूर्ण जानकारी मिली. थाना अछल्दा पुलिस ने टीम को बताया कि फुटेज में बाइक चलाने वाला युवक कुख्यात अपराधी रामजी नागर उर्फ चौधरी है, जो अछल्दा थाने के ही गांव रामनगर का रहने वाला है. उस पर 10 मुकदमे दर्ज हैं. अभी एक सप्ताह पहले ही उसे गैंगस्टर एक्ट में जमानत मिली है. इस समय वह जेल से बाहर है.

पुलिस टीम समझ गई कि दिलीप की हत्या में गैंगस्टर रामजी नागर का हाथ जरूर है, अत: उसे पकडऩे के लिए पुलिस ने उस के गांव रामनगर में छापा मारा. लेकिन वह हाथ नहीं आया. इंसपेक्टर पंकज मिश्रा व स्वाट टीम प्रभारी राजीव कुमार ने तब रामजी नागर की टोह में अपने खास मुखबिरों को लगा दिया तथा खुद भी छापेमारी करते रहे. 24 मार्च, 2025 को दोपहर 12 बजे इंसपेक्टर पंकज मिश्रा को एक खास मुखबिर ने थाने आ कर खबर दी कि गैंगस्टर रामजी नागर इस समय हरपुरा मोड़ पर मौजूद है. वह किसी युवक से पैसे के लेनदेन को ले कर बहस कर रहा है. अगर तुरंत दबिश दी जाए तो उसे पकड़ा जा सकता है.

चूंकि सूचना अतिमहत्त्वपूर्ण थी, अत: एसएचओ पंकज मिश्रा पुलिस टीम के साथ हरपुरा मोड़ पहुंचे. पुलिस देख कर 2 युवक तेजी से भागे. लेकिन पुलिस टीम ने उन दोनों को दबोच लिया. उन्हें थाना सहार लाया गया. थाने में जब उन से पूछताछ की तो एक ने अपना नाम रामजी नागर उर्फ चौधरी पिता का नाम महेश नागर निवासी रामनगर, दूसरे युवक ने अपना नाम अनुराग उर्फ मनुज यादव पुत्र राम मनोहर यादव निवासी सियापुर हजियापुर थाना फफूंद, जिला औरैया बताया.

इंसपेक्टर पंकज मिश्रा ने जब रामजी नागर की जामातलाशी ली तो उस के पास से 315 बोर का एक तमंचा, 2 जीवित कारतूस, एक मोबाइल फोन, एक चाकू तथा 2 हजार रुपए नकद बरामद किए. अनुराग उर्फ मनुज की जामातलाशी में 315 बोर का एक तमंचा, 2 जीवित कारतूस, एक मोबाइल फोन तथा एक हजार रुपया नकद मिले. बरामद सामान को पुलिस ने सुरक्षित कर लिया. रामजी नागर ने हरपुरा मोड़ से वह बाइक भी बरामद करा दी, जिसे उस ने दिलीप की हत्या में प्रयोग किया था.

पुलिस टीम ने हाइड्रा चालक दिलीप यादव की हत्या के संबंध में रामजी नागर उर्फ चौधरी से पूछताछ की तो वह साफ मुकर गया. इंसपेक्टर पंकज मिश्रा समझ गए कि रामजी नागर आसानी से कुछ नहीं बताएगा, अत: उन्होंने उस पर सख्ती की. कुछ ही देर बाद रामजी नागर टूट गया और उस ने दिलीप की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. उस ने बताया कि दिलीप की हत्या की सुपारी उस की नईनवेली पत्नी प्रगति यादव व उस के आशिक अनुराग उर्फ मनुज ने अपने मौसेरे भाई दुर्लभ के माध्यम से दी थी. सौदा 2 लाख में तय हुआ था और एक लाख रुपया एडवांस मिला था. बाकी के रुपए लेने के लिए आज उस ने अनुराग को बुलाया था, तभी पुलिस द्वारा पकड़ा गया.

पूछताछ के दौरान रामजी नागर की चीखें अनुराग के कानों से भी टकरा रही थीं, जिस से वह घबरा उठा था. अत: जब पुलिस टीम ने अनुराग उर्फ मनुज से पूछताछ की तो वह सहज ही टूट गया. उस ने बताया कि प्रगति और वह एकदूसरे से प्यार करते हैं. शादी के बाद दिलीप उस के प्यार में बाधक बनता, इसलिए उस ने व प्रगति ने सुपारी दे कर दिलीप की हत्या करवा दी. चूंकि दिलीप की हत्या उस की नईनवेली दुलहन प्रगति यादव ने ही सुपारी दे कर कराई थी, अत: उसे गिरफ्तार करने के लिए पुलिस टीम प्रगति के गांव सियापुर हजियापुर पहुंची, लेकिन वह मायके में नहीं थी. उस के भाई आलोक ने बताया कि प्रगति अपनी ससुराल नगला दीपा गांव में है.

उस के बाद पुलिस टीम नगला दीपा गांव पहुंची और प्रगति यादव को गिरफ्तार कर लिया. बहू की गिरफ्तारी का ससुराल वालों ने विरोध किया तो एसएचओ पंकज मिश्रा ने उन्हें बताया कि उन की बहू प्रगति ने ही सुपारी दे कर उन के बेटे दिलीप को मरवाया है. यह जान कर परिजन सन्न रह गए. उस के बाद प्रगति को थाना सहार लाया गया, जहां उस का सामना अपने प्रेमी अनुराग व सुपारी किलर रामजी नागर से हुआ तो वह समझ गई कि पति की हत्या का राज खुल गया है. उस ने बिना किसी हीलाहवाली के अपना जुर्म कुबूल कर लिया.

इंसपेक्टर पंकज मिश्रा ने दिलीप की हत्या का परदाफाश करने तथा हत्यारोपियों को पकडऩे की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो एसपी अभिजीत आर. शंकर ने एएसपी आलोक मिश्रा के साथ औरैया पुलिस लाइन में प्रैसवार्ता की और दिलीप की हत्या का खुलासा किया. चूंकि हत्यारोपियों ने जुर्म कुबूल कर लिया था, अत: पुलिस ने मृतक के बड़े भाई संदीप यादव को वादी बना कर बीएनएस की धारा 103(1) तथा 61(2) के तहत रामजी नागर, अनुराग उर्फ मनुज यादव तथा प्रगति यादव के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा उन्हें विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

चूंकि आरोपी रामजी नागर व अनुराग के पास से तमंचा व कारतूस भी बरामद हुए थे, अत: पुलिस ने धारा 3/25 के तहत भी उन दोनों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की. पुलिस की जांच, आरोपियों के बयान तथा अन्य सूत्रों से मिली जानकारी के आधार पर एक ऐसी युवती की कहानी प्रकाश में आई, जिस ने प्रेमी के साथ जिंदगी बिताने के लिए शादी के 14 दिन बाद ही अपने पति को सुपारी दे कर मरवा दिया.

पिता के दुश्मन के बेटे को दिल दे बैठी थी प्रगति

उत्तर प्रदेश के औरैया जनपद के फफूंद थानांतर्गत एक गांव है-सियापुर हजियापुर. इसी गांव में हरिगोविंद सिंह यादव सपरिवार रहते थे. उन के परिवार में पत्नी कमला देवी के अलावा 3 बेटे आलोक, आशुतोष, संतोष तथा 2 बेटियां पारुल व प्रगति थीं. हरिगोविंद सिंह पहले औरैया के दिबियापुर कस्बे के संजय नगर मोहल्ले में रहते थे. बाद में वह गांव आ कर रहने लगे थे. वह प्राइवेट नौकरी कर परिवार का भरणपोषण करते थे. हरिगोविंद सिंह यादव के तीनों बेटे आलोक, आशुतोष व संतोष पढऩे में तेज थे. उन्होंने औरैया के तिलक कालेज से बीएससी पास की, फिर बाहर जौब करने लगे. आशुतोष उज्जैन में एक प्राइवेट स्कूल में शिक्षक था. तीनों विवाहित थे और परिवार सहित बाहर रहते थे. तीजत्योहारों या शादीविवाह में ही वे पैतृक गांव आते थे.

हरिगोविंद सिंह की बेटी पारुल व प्रगति भी पढऩे में तेज थीं. उन दोनों ने 8वीं कक्षा तक की पढ़ाई आदर्श शिक्षा निकेतन दिबियापुर से की, फिर इंटरमीडिएट की परीक्षा औरैया के कालेज से पास की. उस के बाद मम्मी कमला देवी ने दोनों की पढ़ाई बंद करा दी और घर के कामकाज में लगा लिया. पारुल अब तक 18 साल की हो चुकी थी, इसलिए हरिगोविंद सिंह को उस के हाथ पीले करने की चिंता सताने लगी थी. वह बेटी का विवाह ऐसे घर में करना चाहते थे, जहां संपन्नता हो और किसी चीज का अभाव न हो. काफी हाथपैर मारने के बाद उन्हें संदीप पसंद आ गया.

संदीप के पिता सुमेर सिंह यादव मैनपुरी जिले की तहसील भोगांव के अंतर्गत आने वाले गांव नगला दीपा के रहने वाले थे. उन के परिवार में पत्नी सुमन देवी के अलावा 4 बेटे संदीप, अक्षय, दिलीप व सचिन तथा एक बेटी प्रियंका थी. अभी तक उन के किसी भी बेटे की शादी नहीं हुई थी, अत: वह बड़े बेटे संदीप की शादी को लालायित थे. सुमेर सिंह यादव करोड़पति धनाढ्य व्यापारी थे. उन का हाइड्रा और क्रेन मशाीन का कारोबार था. उन के पास 10 हाइड्रा व 12 क्रेन मशीनें थीं. उन का बड़ा बेटा संदीप अपने भाइयों के साथ जेसीबी और हाइड्रा जैसे उपकरणों को किराए पर चलाता था. उस की ज्यादातर मशीनें सेतु निगम में लगी रहती थीं.

सुमेर सिंह यादव का एक मकान औरैया के दिबियापुर कस्बे में सेहुद मंदिर के पास है. संदीप यादव इसी मकान में भाइयों के साथ रह कर कारोबार चलाता था. उस ने मकान के भूतल पर ‘एसएस यादव क्रेन सर्विस’ के नाम से औफिस खोल रखा था. उस का यह व्यापार औरैया से लखनऊ तक फैला था. संदीप व उस के कारोबार को देख कर हरिगोविंद सिंह ने उसे अपनी बेटी पारुल के लिए पसंद कर लिया. फिर 9 फरवरी, 2019 को पारुल का विवाह संदीप के साथ धूमधाम से कर दिया. पारुल दुलहन बन कर ससुराल आ गई. आते ही उस ने घर संभाल लिया.

पारुल से छोटी प्रगति थी. वह अपनी बड़ी बहन से ज्यादा सुंदर थी. सत्रहवां बसंत पार करते ही उस की सुंदरता में और भी निखार आ गया था. गोरा रंग, बड़ीबड़ी कजरारी आंखें और चंचल चितवन किसी को भी अपनी ओर खींच लेती थी. प्रगति के घर से 100 कदम की दूरी पर अनुराग उर्फ मनुज रहता था. उस के पिता राममनोहर यादव प्राइवेट नौकरी व खेती करते थे. परिवार में बेटे अनुराग के अलावा 2 बेटियां पप्पी व बबली थीं. बबली की शादी हो चुकी थी. वह उमर्दा में पति के साथ रहती थी.

25 वर्षीय अनुराग उर्फ मनुज आकर्षक युवक था. बीएससी पास करने के बाद उस ने नौकरी का प्रयास किया. असफल होने पर वह ट्रैक्टर चलाने लगा. अनुराग ठाटबाट से रहता था और गांव में बाइक से घूमता था. पड़ोसी होने के नाते जब कभी प्रगति व अनुराग की आंखें चार होतीं तो उन की आंखों में प्यार का समंदर उमड़ पड़ता. लेकिन चाह कर भी दोनों आपस में बात न कर पाते. क्योंकि उन्हें घर वालों का डर सताता था. यह बात कोरोना काल की है.

दरअसल, हरिगोविंद सिंह व राममनोहर के बीच 5 बीघा जमीन को ले कर विवाद चल रहा था, जिस से दोनों परिवारों के बीच दुश्मनी थी. उन का हुक्कापानी भी बंद था. लेकिन प्रगति व अनुराग एकदूसरे को मन ही मन चाहने लगे थे. प्रगति मनुज के ठाटबाट से प्रभावित थी. मनुज भी प्रगति की खूबसूरती का दीवाना था. चाहत दोनों तरफ से थी. धीरेधीरे उन की चाहत बढ़ी तो उन का मिलन घर के बाहर होने लगा. प्रगति की मौसी का घर औरैया में था. प्रगति मौसी के घर जाती फिर साईं मंदिर जाने का बहाना कर घर से निकलती और बांकेबिहारी होटल पहुंच जाती. वहीं अनुराग भी आ जाता. फिर घंटों बैठ कर दोनों प्यार भरी बातें करते.

इसी होटल में एक रोज प्रगति और अनुराग ने अपने प्यार का इजहार किया और साथ जीनेमरने का वादा किया. दुश्मनी के कारण दोनों नेे प्यार की भनक घर वालों को नहीं लगने दी. प्रगति का आनाजाना अपनी बहन पारुल की ससुराल में लगा रहता था. वह बहन व उस के परिवार के वैभव से प्रभावित थी. उस का मन करता कि उस का प्रेमी अनुराग भी ऐसा ही अमीर होता तो वह भी उस से शादी कर खुशी से जीवन बिताती. इसी सोच में उस ने एक रोज खतरनाक प्लान बना लिया और अपने प्लान से प्रेमी अनुराग को भी अवगत करा दिया.

बहन के करोड़पति देवर को ऐसे फांसा जाल में

प्रगति का प्लान था कि वह अपनी दीदी पारुल के देवर दिलीप को अपने प्यार के जाल में फंसाएगी और शादी करने के बाद उस का मर्डर करा देगी. उस के बाद प्रौपर्टी में उसे उस का हिस्सा मिल जाएगा फिर वह दोबारा प्रेमी से शादी रचा लेगी और शानोशौकत से जिंदगी बिताएगी. अनुराग को प्रगति के इस प्लान पर पहले तो आश्चर्य हुआ, लेकिन दोहरा फायदा देख कर अनुराग भी प्रगति का साथ देने को राजी हो गया. इस प्लान के बाद प्रगति का पारुल की ससुराल आनाजाना बढ़ गया. वह दिलीप पर डोरे डालने लगी. 21 वर्षीय दिलीप भी प्रगति की ओर आकर्षित होने लगा. दिलीप हाइड्रा चलाता था और दिबियापुर में रहता था.

प्रगति किसी न किसी बहाने दिबियापुर पहुंच जाती और दिलीप के साथ घूमती. धीरेधीरे दोनों का प्यार परवान चढऩे लगा. फिर एक रोज ऐसा भी आया कि दोनों एकदूसरे से ब्याह करने को उतावले हो उठे. इसी बीच घर वालों ने दिलीप का विवाह कहीं और तय कर दिया. दिलीप को शादी की बात पता चली तो उस ने साफ इंकार कर दिया. दिलीप ने फेमिली वालों को साफ बता दिया कि वह और प्रगति एकदूसरे से प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं. उस की शादी कहीं और की गई तो वह आत्महत्या कर लेगा.

दिलीप की इस धमकी से घर वाले डर गए. उस के बाद सुमेर सिंह यादव ने प्रगति व उस के पिता हरिगोविंद सिंह व भाई आलोक से शादी के संबंध में बात की. दोनों परिवारों की रजामंदी के बाद दिलीप का रिश्ता प्रगति के साथ तय हो गया. हालांकि इस शादी को पारुल राजी नहीं थी. शादी की तारीख तय हुई 5 मार्च 2025. इधर शादी तय होने की बात अनुराग उर्फ मनुज को मालूम हुई तो वह नाराज हुआ. इस पर प्रगति ने अनुराग से कहा कि वह ज्यादा दिनों तक ससुराल में नहीं रहेगी. आते ही वह प्लान को पूरा करेगी. वह तब तक सुपारी किलर का इंतजाम कर ले. प्रगति के इस आश्वासन पर मनुज मान गया.

5 मार्च, 2025 को दिबियापुर के ‘राधाकृष्ण मैरिज हाल’ में प्रगति का विवाह दिलीप के साथ बड़ी धूमधाम से हो गया. प्रगति दिलीप की दुलहन बन कर ससुराल नगला दीपा आ गई. यहां उस की खूब आवभगत हुई. मुंहदिखाई रस्म में उसे सोनेचांदी के उपहार के अलावा लगभग 70 हजार रुपए नकद मिले. सुहागरात को दिलीप ने भी उसे घूंघट उठाई पर सोने की अंगूठी व 30 हजार रुपए दिए. सामाजिक रीतिरिवाज के अनुसार नई दुलहन ससुराल में जलती होली नहीं देखती. अत: उस का भाई आलोक आया और 10 मार्च को प्रगति की चौथी रस्म अदा कर प्रगति को लिवा लाया. मायके आने के दूसरे रोज ही प्रगति ने अपने प्रेमी अनुराग उर्फ मनुज को होटल बुला कर बात की, फिर पति की हत्या की सुपारी 2 लाख में सुपारी किलर रामजी नागर को दे दी.

प्रगति के कुकृत्य से उस का भाई आलोक बेहद खफा है. मामला खुलने के बाद उस ने कहा कि प्रगति ने जो पाप किया है, उस की सजा उसे फांसी होनी चाहिए. जेल में वह व उस के परिवार का कोई सदस्य उस से मिलने नहीं जाएगा. न ही किसी तरह की पैरवी उसे जेल से रिहा कराने के लिए की जाएगी. पुलिस उस का एनकाउंटर कर दे तो वह उस के शव पर हाथ भी नहीं लगाएगा. मृतक दिलीप के मम्मीपापा व भाइयों ने भी प्रगति को फांसी की सजा देने की मांग की है. फांसी से कम सजा उन्हें मंजूर नहीं है. 25 मार्च, 2025 को पुलिस ने हत्यारोपी रामजी नागर, अनुराग उर्फ मनुज व प्रगति को इटावा कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

27 मार्च, 2025 की रात इंसपेक्टर पंकज मिश्रा ने चेकिंग के दौरान सुपारी किलर रामजी नागर के साथी शिवम व दुर्लभ यादव को भी गिरफ्तार कर लिया. दोनों दिलीप हत्याकांड में वांछित थे. उन के पास से 2 तमंचे तथा 4 कारतूस बरामद हुए. उन दोनों को भी जेल भेज दिया गया.

 

 

Extramarital Affair : सरिता क्यों बनी पति की कातिल

Extramarital Affair : पति की एक्सीडेंट में मौत हो जाने के बाद 34 वर्षीय सरिता ने कुख्यात बदमाश सोनू नागर से शादी कर ली थी. कुछ दिनों बाद ही ऐसा क्या हुआ कि सरिता को सोनू नागर की हत्या की सुपारी देनी पड़ी? पढ़ें, फेमिली क्राइम की यह खास स्टोरी.

मोबाइल फोन की घंटी लगातार रुकरुक कर बज रही थी. गुरमीत उस समय बाथरूम में था. जैसे ही फोन की घंटी की आवाज गुरमीत के कानों में पड़ी तो वह फटाफट नहा कर बाथरूम से बाहर आ गया. गुरमीत ने मोबाइल की स्क्रीन पर फ्लैश होते नाम को देखा तो उस के चेहरे पर मुसकान तैर गई. उस ने तुरंत काल रिसीव कर ली.

”हैलो बग्गा! आज सुबहसुबह कैसे याद आ गई अपने यार की?’’ गुरमीत ने चहक कर पूछा.

”तुझे तो मैं हर वक्त दिल में रखता हूं गुरप्रीत.’’ बग्गा सिंह दूसरी ओर से बोला, ”फिर याद तो अपनों को ही किया जाता है.’’

”ठीक है.’’ गुरमीत हंसा, ”बोल, कैसे फोन किया?’’

”एक मुरगे को टपकाना है गुरमीत.’’

”टपका देंगे.’’ गुरमीत ने लापरवाही से गरदन झटकी, ”मुरगा वजनदार तो है ना?’’

”मैं वजनदार मुरगा ही हलाल करता हूं गुरमीत. पूरे डेढ़ लाख में सौदा किया है.’’

”वाह!’’ गुरमीत ने होंठों पर जुबान फिराई, ”मोटी कटेगी यार, लेकिन सौदा फिफ्टीफिफ्टी का रहेगा बग्गा भाई.’’

”नहीं, पार्टी मेरी है इसलिए मैं तुम्हें 50 हजार दूंगा.’’ बग्गा सिंह की आवाज में अडिय़लपन था, ”देख, जब तेरी पार्टी होती है तो मैं भी वही लेता हूं जो तू देता है.’’

गुरमीत ने बात काट दी, ”वो सब ठीक है बग्गा, लेकिन 50 कुछ कम है.’’

”चल मैं 10 हजार और बढ़ा देता हूं.’’ बग्गा ने कहा, ”अब कुछ नहीं कहना.’’

”ओके.’’ गुरमीत ने गहरी सांस ली, ”मुरगा कहां टपकाना है?’’

”दिल्ली में.’’ बग्गा सिंह ने धीमी आवाज में कहा, ”तू आज ही दिल्ली पहुंच. मैं भी घर से निकल रहा हूं.’’

”तू इस वक्त कहां है?’’

”मैं भटिंडा में हूं, लेकिन हर हाल में शाम तक दिल्ली पहुंच जाऊंगा. तू मुझे फोन कर लेना. हमें कहां मिलना है, कहां ठहरना है, मैं तुझे बता दूंगा. अब तू तैयार हो, मैं काल काट रहा हूं.’’ बग्गा की तरफ से कहा गया. फिर संपर्क काट दिया गया.

गुरमीत ने मोबाइल टेबल पर रखा और दिल्ली जाने की तैयारी करने लगा. आधा घंटा बाद ही वह बैग ले कर घर से निकला और बसअड्ïडे के लिए आटो से रवाना हो गया.

3 फरवरी, 2025 की सुबह उत्तरी दिल्ली में शक्ति नगर के एफसीआई गोदाम के पास बहने वाले नाले में एक युवक औंधे मुंह पड़ा हुआ था. वहां से गुजर रहे एक व्यक्ति ने उस युवक को देखा तो वह ठिठक गया. उसे लगा कि शायद कोई शराबी नशे में गिर गया होगा. वह उसे गौर से देखने लगा. वह व्यक्ति नाले में औंधे मुंह पड़ा था, लेकिन उस के शरीर में कोई हरकत नहीं दिखी तो उस ने अनुमान लगा लिया कि शायद इस की मौत हो चुकी है. उस ने अपना शक दूर करने के लिए दूर खड़े 2 व्यक्तियों को इशारे से अपने पास आने को कहा. वे दोनों व्यक्ति आपस में बातें कर रहे थे. इशारा मिलने पर वह उस व्यक्ति के पास आ गए.

”क्या आप हमें जानते हैं?’’ उन में से एक व्यक्ति ने पूछा.

”नहीं भाई, मैं आप दोनों को नहीं जानता. मुझे तो यहां नाले में पड़े इस युवक को देख कर संदेह हो रहा है कि वह युवक जीवित भी है या नहीं. आप देख कर बताएं.’’

नाले में मिली लाश

दोनों व्यक्ति नाले में देखने लगे. वहां पड़े युवक को देख कर वे घबरा गए. उन में से एक बोला, ”नूर, सरक ले यहां से. यह लाश है, यदि पुलिस आ गई तो बेकार के लफड़े में फंस जाएंगे हम लोग.’’

उस के साथ वाला व्यक्ति यह सुनते ही तेजी से एक तरफ चल पड़ा. उस के साथ वाला व्यक्ति उस के पीछे लपका. वहां खड़ा पहले वाला व्यक्ति जिम्मेदार नागरिक था. वह वहां से नहीं भागा, बल्कि उस ने जेब से मोबाइल निकाल कर वहां पड़ी लाश की सूचना दिल्ली पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. कंट्रोल रूम से उसे वहीं खड़े रहने को कह दिया गया. करीब आधा घंटा बाद पुलिस वैन वहां सायरन बजाती हुई आ गई. इस वैन में रूपनगर थाने के एसएचओ रमेश कौशिक थे. उन के साथ पुलिस के 5 कांस्टेबल भी थे. सभी सावधानी से नाले में उतर गए. वह लाश औंधे मुंह पड़ी थी, उसे सीधा करने से पहले उस लाश की बहुत बारीकी से जांच की गई.

पीठ की ओर उन्हें कोई जख्म नजर नहीं आया. इसी एंगल से उस की मोबाइल द्वारा फोटो खींची गईं, फिर उसे सीधा किया गया. यह कोई 40-45 साल का व्यक्ति था. उस के शरीर पर पैंटशर्ट थी. उस के चेहरे पर गौर से देखने पर खिंचाव महसूस हो रहा था. एसएचओ रमेश कौशिक को लगा कि वह व्यक्ति जान निकलते समय बहुत तड़पा है. ऐसा उस हाल में होता है जब किसी का गला घोंटा जाता है. सांसें रुकने से व्यक्ति छटपटाता है और तड़पते हुए उस के प्राण निकलते हैं. कौशिक ने उस आदमी के गले का निरीक्षण किया तो उन का अनुमान सही साबित हुआ. उस के गले पर दबाब के कारण लाल निशान पड़ गए थे, जो साफ दिखाई दे रहे थे.

लाश की जेबों की तलाशी ली गई तो उस की जेब में कुछ नहीं मिला. इस से अनुमान लगाया गया कि इस की हत्या करने के बाद जेब से सारा सामान निकाल लिया गया है, ताकि कोई सुराग पुलिस के हाथ न आ पाए. रमेश कौशिक की सूचना पर नौर्थ डिस्ट्रिक्ट के डीसीपी राजा बांठिया और एसीपी (सिविल लाइंस) विनीता त्यागी भी थोड़ी देर में मौके पर पहुंच गईं. उस से पहले एसएचओ रमेश कौशिक ने एक बार और मृतक की जेबें टटोलीं. हाथ की कलाई देखी, ताकि कोई गुदा हुआ नाम दिख जाए. लेकिन न जेबों में कुछ मिला, न उस की कलाई पर कुछ गुदा हुआ था.

नाले के ऊपर अब तक लाश की सूचना पा कर काफी लोग एकत्र हो गए थे. रमेश कौशिक ने ऊपर आ कर उन लोगों से लाश की पहचान करने को कहा, लेकिन किसी ने भी उस युवक को नहीं पहचाना. इस से यह अनुमान लगाया गया कि इस की हत्या कहीं और कर के उसे यहां ला कर फेंक दिया गया है, इस क्षेत्र में इस आदमी की लाश को शायद ही कोई पहचान पाएगा. यह व्यक्ति इस क्षेत्र का नहीं है. काफी पूछताछ करने के बाद भी उस व्यक्ति की पहचान नहीं हो पाई. उसी दौरान फिंगरप्रिंट्स एक्सपर्ट की टीम भी वहां पहुंच चुकी थी. 2 फोटोग्राफर्स भी इस टीम में थे.

आते ही यह टीम अपने काम में लग गई. एसएचओ ने डीसीपी को बताया कि लाश की शिनाख्त नहीं हो पा रही है, लगता है इसे कहीं और मारा गया है. पहचान न हो, इसलिए इस की लाश को यहां ला कर नाले में फेंक दिया गया है.

”इंसपेक्टर कौशिक, लाश की पहचान तो आवश्यक है. अपराधी तक हम तभी पहुंचेंगे, जब इस की पहचान होगी.’’ डीसीपी गंभीर स्वर में बोले.

”जी सर.’’ एसएचओ ने सिर हिलाया, ”हम पूरी कोशिश कर रहे हैं.’’

डीसीपी बांठिया ने युवक की लाश का निरीक्षण किया. गले पर लाल निशान देख कर वह समझ गए थे कि इस की हत्या गला घोंट कर की गई है. वहां ऐसे सुराग नजर नहीं आ रहे थे, जिस से समझा जा सके कि इसे यहीं खत्म किया गया है. हत्या कहीं और कर के इस की लाश को यहां फेंक दिया गया है.

पूरा निरीक्षण कर लेने के बाद डीसीपी ने इंसपेक्टर कौशिक से कहा, ”मामला पेचीदा लग रहा है. मैं आप की हैल्प के लिए स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर रोहित को भी बुला लेता हूं.’’

”यह उचित रहेगा सर. स्पैशल स्टाफ के आने से यह केस आसानी से सौल्व हो जाएगा. आप रोहितजी को बुलवा लीजिए.’’

डीसीपी बांठिया ने स्पैशल स्टाफ (नौर्थ डिस्ट्रिक्ट) के इंसपेक्टर रोहित से बात की और पूरी बात बता कर उन्हें घटनास्थल पर बुला लिया. इंसपेक्टर रोहित अपनी टीम के साथ कुछ ही देर में वहां आ गए. उन की टीम ने युवक की लाश का बारीकी से निरीक्षण किया. इंसपेक्टर रोहित ने फिंगरप्रिंट्स एक्सपर्ट से बात कर के कुछ निर्देश दिए और इंसपेक्टर कौशिक को लाश पोस्टमार्टम हेतु हिंदूराव हौस्पिटल भेजने को कह दिया.

दिशानिर्देश दे कर डीसीपी और एसीपी भी घटनास्थल से चले गए. इंसपेक्टर कौशिक लाश का पंचनामा बनाने में जुट गए. यह काम पूरा होने तक स्पैशल स्टाफ वहां नहीं रुक सकता था, वे आगे की जांच के लिए वहां से निकल गए. इंसपेक्टर कौशिक ने लाश की शेष काररवाई निपटा कर पोस्टमार्टम के लिए हिंदूराव हौस्पिटल भेज दी और थाना रूपनगर लौट आए. यह केस बहुत पेचीदा था. मरने वाला व्यक्ति कौन है, उसे किस ने गला घोंट कर मारा, उस का कुसूर क्या था. इन सभी बातों का जवाब तभी मिल सकता था, जब उस की पहचान हो जाती. उस की लाश उस के परिजनों के लिए पोस्टमार्टम करवा कर सुरक्षित रखवा दी गई थी. अभी तक उस की पहचान नहीं हुई थी.

मृतक था दिल्ली का घोषित बदमाश

उस की पहचान करने के लिए इंसपेक्टर कौशिक और स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर रोहित पूरी कोशिश कर रहे थे, लेकिन कोई सूत्र हाथ नहीं लग रहा था, लाश को ज्यादा दिनों तक रखा भी नहीं जा सकता था. पुलिस ने उस के शव की शिनाख्त के लिए पैंफ्लेट छपवा कर शक्ति नगर, रूपनगर और आसपास के क्षेत्र मे चस्पा कर दिए थे. अखबारों में भी शव की पहचान करने की अपील छपवाई गई, लेकिन कोई रिस्पौंस नहीं मिला. अब स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर रोहित सारस्वत ने आखिरी उपाय करने के लिए युवक के फिंगरप्रिंट्स को कमला मार्किट क्रिमिनल रिकौर्ड औफिस (सीआरओ) भेजा गया. आशा नहीं थी, यह उपाय कारगर सिद्ध होगा, लेकिन ऐसा करने से पुलिस को सफलता मिल गई. उस के फिंगरप्रिंट्स क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो में पहले से दर्ज फिंगरप्रिंट्स से मेल खा गए.

पहले वाले फिंगरप्रिंट्स सोनू नागर नाम के अपराधी के थे. यह युवक हौजकाजी थाने का घोषित बदमाश था और इस पर 10 से अधिक आपराधिक मामले कई थानों में दर्ज थे, विशेष कर हौजकाजी थाने में. यहां से उस के घर का एड्रैस मिल गया. यह युवक गुलाबी बाग, सीनियर सैकेंड्री गवर्नमेंट स्कूल के पास टाइप वन के क्वार्टर में रहता था. क्वार्टर का नंबर 570 था. इंसपेक्टर रमेश कौशिक और स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर रोहित सारस्वत, मनोज कुमार और हैडकांस्टेबल जितेंद्र के साथ उस क्वार्टर पर पहुंच गए. क्वार्टर 570 में एक महिला मिली. इस का नाम सरिता था. उस की उम्र करीब 34 साल थी. दरवाजे पर पुलिस को देख कर उस के चेहरे का रंग सफेद पड़ गया, किंतु तुरंत ही उस ने खुद को संभाल कर प्रश्न कर दिया, ”आप कोई अच्छी खबर ले कर आए हैं मेरे लिए.’’

इंसपेक्टर रोहित सारस्वत उस महिला के चेहरे पर नजरें जमाए हुए थे. पुलिस को सामने वाले के चेहरे के उतारचढ़ाव से उस की मनोस्थिति का अनुमान लगाना सिखाया जाता है. इंसपेक्टर रोहित मन ही मन मुसकराए. प्रत्यक्ष में वह चौंकने का अभिनय करते हुए बोले, ”अच्छी खबर! क्या तुम्हें उम्मीद थी कि पुलिस तुम्हारे दरवाजे पर अच्छी खबर ले कर आने वाली है?’’

”जी हां.’’ सरिता ने सिर हिलाया, ”मेरे पति कुछ दिनों से गुम हैं. मैं समझ रही हूं कि आप उन के बारे में अच्छी खबर ले कर आए हैं.’’

”तुम्हारे पति गुम हैं?’’ इंसपेक्टर ने चौंकते हुए कहा, ”क्या नाम है तुम्हारे पति का?’’

”सोनू… सोनू नागर पूरा नाम है जी.’’

”वह कब से लापता है?’’

”2 फरवरी की रात से.’’ सरिता ने बताया.

”क्या तुम ने सोनू नागर के गुम होने की सूचना लिखवाई है?’’

”हां साहब,’’ सरिता ने सिर हिलाया, ”मैं ने 7 फरवरी को थाना गुलाबी बाग में पति के गुम होने की सूचना लिखवा दी थी. वह 2 फरवरी की रात 10 बजे घर से गए थे, तब से वापस नहीं लौटे हैं. क्या वह आप को मिल गए हैं?’’

”मिले तो हैं लेकिन,’’ इंसपेक्टर रोहित ने बात अधूरी छोड़ दी.

”लेकिन क्या साहब, जल्दी बताइए… मेरा दिल बैठा जा रहा है.’’

”तुम्हारा पति अब इस दुनिया में नहीं रहा है, उस की डैडबौडी हमें शक्तिनगर में गंदे नाले के पास मिली है.’’

”ओहऽऽ नहींऽऽ’’ सरिता जोर से चीखी और दहाड़े मार कर रोने लगी.

उस की रोने की आवाज सुन कर अंदर से एक महिला निकल कर बाहर आ गई. सरिता को रोती देख कर उस ने घबरा कर पूछा, ”क्या हुआ बहू, तू रो क्यों रही है?’’

”मांजी हम लुट गए, बरबाद हो गए. पुलिस को तुम्हारे बेटे की लाश मिल गई है.’’ सरिता ने रोते हुए बताया.

वह महिला भी रोने लगी. पुलिस ने उन का मन हलका होने दिया. फिर सरिता को टोका, ”हमें सोनू नागर की हत्या की जांच करनी है. तुम हमारे साथ थाने चलो, वहीं तुम से कुछ बात करनी है.’’

”चलिए साहब. अब तो यही सब होगा, मेरा पति जान से गया है. मुझे अन्य सभी टोकेंगे.’’

पुलिस ने कोई ध्यान नहीं दिया कि वह क्या बोल रही है. वह तो दोनों को ले कर थाने में आ गए. सरिता की सास का नाम मिथिलेश था. फिलहाल उन दोनों का रोनाधोना थम गया था. इंसपेक्टर रोहित सारस्वत ने सरिता से पूछा, ”2 फरवरी की रात को तुम्हारा पति सोनू नागर घर से गया तो क्या वह तुम्हें कुछ बता कर गया था?’’

”सिर्फ इतना कहा था साहब, मैं बाहर ही हूं, इन से बात कर के मैं आ रहा हूं. फिर वह उन दोनों व्यक्तियों के साथ बाहर चले गए थे. तब से उन का कुछ पता नहीं चल रहा था.’’

”वह 2 व्यक्ति आखिर कौन थे

जिन के साथ तुम्हारे पति सोनू नागर बाहर

गए थे?’’ इंसपेक्टर रोहित सारस्वत ने पूछा.

”मैं उन्हें नहीं जानती. वे दोनों साढ़े 11 बजे बाइक से मेरे घर आए थे. उन से मेरे पति की कुछ बातें हुईं. क्या बातें हुईं, यह मैं नहीं सुन सकी. मेरे पति उन के साथ घर से निकलते हुए इतना ही बोले कि मैं थोड़ी देर में वापस आ रहा हूं. लेकिन काफी देर बीत जाने पर भी वह नहीं लौटे तो मुझे चिंता होने लगी. मैं ने उन्हें फोन लगाया, लेकिन उस वक्त उन की काल नहीं लगी. यह सोच कर कि वह किसी काम में उलझ गए होंगे, मैं सो गई थी.’’

”फिर अगले दिन तुम्हारे पति नहीं लौटे तो क्या तुम ने उन्हें तलाश करने की जरूरत नहीं समझी?’’ सारस्वत ने प्रश्न किया.

”दूसरे दिन मैं ने उन्हें तलाश किया था साहब. दोस्तों, रिश्तेदारी सब जगह तलाश किया था, लेकिन वह नहीं मिले.’’ सरिता ने बताया, ”उन को 2-4 दिन और ढूंढा, फिर हार कर गुलाबी बाग थाने में रिपोर्ट दर्ज करवा दी.’’

”वह 2 व्यक्ति दिखने में कैसे लग रहे थे?’’ इंसपेक्टर रमेश कौशिक ने पूछा.

”उन की उम्र 35-40 के बीच की थी. रंग सांवला था. सामान्य कदकाठी के थे. एक के सिर पर ब्लैक कलर की कैप थी, जिस के हेड पर क्करू्र लिखा था.’’

”हूं, तुम मोबाइल इस्तेमाल करती हो?’’ कौशिक ने प्रश्न किया.

”जी हां.’’ सरिता ने कह कर अपना मोबाइल दिखाया.

मोबाइल फोन में मिले अहम सबूत

इंसपेक्टर कौशिक ने वह मोबाइल ले लिया और बाहर निकल गए. बाहर आ कर उन्होंने मोबाइल से की गई काल लिस्ट देखी, उस में काफी नंबर थे. इंसपेक्टर ने 2 और 3 तारीख की आउटगोइंग काल्स देखी. वह चौंक पड़े. 2 फरवरी की रात को सरिता की ओर से 12 बजे रात को किसी एक नंबर पर फोन किया गया था. वही नंबर बाद में भी था. यानी सरिता ने उस नंबर पर रात में 3-4 बार अलगअलग समय पर काल कर के काफी देरदेर तक बातें की थी.

इंसपेक्टर रमेश कौशिक के चेहरे पर कुटिल मुसकान तैर गई. वह अंदर आ गए और सरिता से बोले, ”तुम्हारा मोबाइल हम कस्टडी में ले रहे हैं. इस की जांच करनी है हमें.’’

”ज…जी, मेरे फोन में ऐसा क्या है साहब,’’ सरिता अचकचा कर बोली.

”वह बाद में मालूम हो जाएगा. तुम यह बताओ, यह सोनू नागर तुम्हारी जिंदगी में कैसे आया? यह तो यहां के हौजकाजी थाने का घोषित अपराधी था. इस पर 10 अपाराधिक मामले दर्ज हैं.’’

सरिता ने नीचे सिर झुका लिया. कुछ देर वह खामोश रही, फिर एक गहरी सांस भर कर वह बोली, ”साहब, मेरा नाम सरिता है. मेरी शादी पहले किसी और से हुई थी. उस से मुझे एक लड़की और एक लड़का हुआ. मेरा पति तीस हजारी कोर्ट के पास पान की दुकान लगाता था. यहां पर सोनू नागर आताजाता रहता था. यहीं से मैं सोनू नागर को जानने लगी.

”अभी 8 महीने पहले मेरे पति की एक एक्सीडेंट में मौत हो गई. तब सोनू मेरी मदद के लिए आगे आया. मैं उस के अहसान तले दब गई और उस के सहारे रहने लगी. फिर मैं ने उस से शादी कर ली. नियति को मुझ से न जाने क्या नाराजगी है, उस ने मेरा यह दूसरा पति भी मुझ से छीन लिया.’’ कहतेकहते सरिता भावुक हो गई और रोने लगी.

”अपने आप को संभालो और घर जाओ, जरूरत पड़ी तो बुलवा लेंगे.’’ इंसपेक्टर रोहित सारस्वत ने उस से कहा और उठ कर खड़े हो गए.

सरिता अपनी सास के साथ थाने से बाहर निकल गई. उन के जाने के बाद इंसपेक्टर रमेश कौशिक ने कहा, ”मुझे सरिता पर संदेह है. इस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाइए. इस ने पति के लापता होने वाली रात यानी 2 फरवरी को रात में 3-4 बार एक ही नंबर पर बातें की थीं. मालूम करना है वह नंबर किस का और क्या सरिता पहले भी इस नंबर के संपर्क में रही है?’’

इंसपेक्टर सारस्वत ने हैडकांस्टेबल जितेंद्र कुमार को मोबाइल दे दिया और जनवरीफरवरी माह की तमाम काल डिटेल्स निकलवा कर लाने का आदेश दे दिया. अगले दिन उन की टेबल पर सरिता के मोबाइल की जनवरी-फरवरी माह की काल डिटेल्स रखी थी. उस को बहुत बारीकी से देखा गया. सरिता द्वारा एक नंबर पर जनवरी फरवरी माह की 10 तारीख तक कईकई बार बातें की गई थीं. इस नंबर की फोन प्रदाता कंपनी से जांच की गई तो यह नंबर पंजाब के किसी बग्गा सिंह नाम के व्यक्ति का निकला. उस का एड्रैस भी मिल गया. यह था गांव लांबी, जिला श्रीमुक्तसर साहिब, पंजाब. इस के बाद गुप्तरूप से सोनू नागर के घर गुलाबी बाग के आसपास इस नंबर की जांच की गई तो पुलिस की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. 2 फरवरी की रात साढ़े 11 बजे से 12 बजे तक इस नंबर की लोकेशन वहां थी.

इस तरह सरिता ने खोला राज

यह विश्वास हो जाने के बाद कि बग्गा सिंह का सोनू नागर की हत्या में कोई न कोई रोल है, श्रीमुक्तसर साहिब जा कर बग्गा सिंह को घर से उठा लिया गया. उसे दिल्ली लाया गया. थाने में जब 19 वर्षीय बग्गा सिंह से सरिता से संबंध के विषय में पूछा गया तो पहले वह किसी सरिता को पहचानने से इंकार करता रहा, लेकिन जब पुलिस ने सख्ती की तो वह कांपते हुए बोला, ”साहब, मैं सरिता को पहचानता हूं. उस से मेरी मुलाकात एक महीने पहले भटिंडा में हुई थी.’’

”सरिता वहां क्या करने गई थी?’’ इंसपेक्टर रोहित सारस्वत ने पूछा.

”वहां उस की बहन रहती है.’’

”हूं.’’ इंसपेक्टर ने सिर हिलाया, ”सरिता तुम से किस मकसद से मिली थी?’’

”साहब, वह मुझ से अपने पति का खून करवाना चाहती थी.’’ बग्गा सिंह ने चौंकाने वाला खुलासा किया.

”ओह!’’ इंसपेक्टर हैरानी से बोले, ”यानी सरिता अपने पति सोनू नागर की हत्या तुम से करवाना चाहती थी.’’

”जी साहब.’’ बग्गा ने सिर हिलाया.

”इस सुपारी की तुम्हें कितनी रकम मिली बग्गाï?’’

”डेढ़ लाख रुपए में यह सौदा हुआ था. सरिता ने 50 हजार रुपए पेशगी दी थी.’’

”पेशगी लेने के बाद तुम ने सोनू की हत्या कैसे की, अब यह भी बता दो हमें.’’ बग्गा के चेहरे पर नजरें जमा कर इंसपेक्टर रमेश कौशिक ने पूछा.

”साहब, मेरा एक दोस्त है गुरमीत, वह भी सुपारी किलर है. मैं ने उसे फोन कर के 2 फरवरी को दिल्ली पहुंचने को कहा. मैं भी दिल्ली आ गया. हम कश्मीरी गेट बस अड्ïडा पर मिले, वहां से एक होटल में ठहर गए. सरिता से संपर्क कर के हम ने उसे बता दिया कि हम दिल्ली आ गए हैं. सरिता ने हमें सोनू नागर का काम तमाम करने के लिए रात को आने को कहा. हम ने दिन में ही सरिता के मकान की रेकी कर ली थी और रात को साढ़े 11 बजे हर ओर सन्नाटा होने पर उस के दरवाजे पर पहुंच गए.

”सरिता ने चुपके से घर का कुंडी खोल दी. हम दबे पांव अंदर घुसे. सोनू नागर उस वक्त सो चुका था. हम ने सोते हुए सोनू नागर को दबोच लिया. सरिता ने पांव पकड़े. गुरमीत ने सोनू नागर के हाथ पकड़े. मैं ने छाती पर चढ़ कर सोनू की गरदन दबा कर उस की हत्या कर दी.

”सोनू नागर की हत्या करने के बाद उस की लाश को हम ने बाइक पर बीच में इस तरह बिठा लिया, जैसे वह जीवित हो और हम कहीं जा रहे हों. हम सोनू की लाश ले कर शक्ति नगर के एरिया में आए और सुनसान पड़े नाले में इस लाश को फेंक दिया. इस के बाद सरिता को सब बता कर हम होटल चले गए. अगले दिन हम सरिता से रुपए ले कर श्रीमुक्तसर साहिब गुरमीत के घर आ गए.’’

बग्गा सिंह का यह बयान कलमबद्ध कर लिया गया. सरिता को पकड़ कर थाने लाने के लिए इंसपेक्टर रमेश कौशिक अपनी पुलिस टीम के साथ गुलाबी बाग पहुंच गए. सरिता घर में ही थी. उसे महिला पुलिस ने पकड़ कर पुलिस की गाड़ी में बिठा लिया. सरिता चिल्लाई, ”मुझे इस तरह पकड़ कर पुलिस की गाड़ी में क्यों बिठाया गया है? इंसपेक्टर साहब, यह कैसी बेहूदगी है?’’

”बेहूदगी कहां है सरिताजी, हम तो तुम्हें थाने ले जा रहे हैं, वहां हम ने तुम्हारे पति के कातिल को पकड़ कर बिठा लिया है. तुम्हें वही दिखाने ले जा रहे हैं.’’ इसपेक्टर कौशिक ने मुसकरा कर कहा. सरिता यह सुन कर खामोश बैठ गई.

थाने में उसे जब बग्गा सिंह के सामने ला कर खड़ा किया गया तो उस के चेहरे का रंग उड़ गया, वह धम्म से कुरसी पर बैठ गई. सरिता ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. पूछताछ में उस ने कहा कि पहले पति की मौत के बाद उस की जिंदगी में सोनू नागर आ गया. कुछ दिनों तक वह सोनू नागर के साथ लिवइन रिलेशनशिप में रही, फिर उस से शादी कर ली. शादी के बाद उसे मालूम हुआ कि सोनू नागर अपराधी प्रवृत्ति का आदमी है, उस की नजर उस की दुकान और मकान पर थी. वह उन्हें बेचने के चक्कर में था.

उस ने मेरी बेटी, जो स्कूल में पढ़ती थी, उस की इज्जत पर भी हाथ डाला. मैं सोनू से डरती थी, इसलिए खून का घूंट पी कर रह गई. सोनू मुझ से गालीगलौज और मारपीट भी करने लगा था. मुझे यह भी लगा कि मेरी जायदाद के लिए वह मेरी हत्या कर सकता है, इसलिए तंग आ कर मैं ने बग्गा सिंह को उस के कत्ल की सुपारी डेढ़ लाख रुपए में दे दी.

बग्गा ने अपने साथी गुरमीत के साथ

सोनू की हत्या 2 फरवरी, 2025 की रात को कर दी और लाश शक्ति नगर ले जा कर नाले में फेंक दी, जो 3 फरवरी को रूपनगर पुलिस को मिली थी. सरिता के इकबालिया बयान के बाद इस अपराध को भारतीय न्याय संहिता की धारा-103(1) के तहत सरिता और सुपारी किलर बग्गा सिंह को सक्षम न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया. गुरमीत को पकडऩे के लिए पुलिस टीम श्री मुक्तसर साहिब में छापेमारी करने गई तो वह फरार हो गया था. कथा लिखे जाने तक वह पुलिस के हाथ नहीं आया था.

 

 

UP News : गीता हुई भतीजे के प्यार में दीवानी

UP News : 28 वर्षीय गीता का पति प्रकाश कनौजिया मुंबई में था. वह मायके में रहते हुए 2 बच्चों की जिम्मेदारियां संभाले हुए थी. निजी जिंदगी जैसेतैसे तनहाई में गुजर रही थी. हमउम्र भतीजे विकास का जरा सा सहारा क्या मिला, उसी से दिल लगा बैठी. एक तरफ प्रेम की दीवानगी थी, अनैतिक संबंध और वासना का उफान था तो दूसरी तरफ पैसे की तंगी भी थी. फिर जो कुछ हुआ, उस में गेहूं के साथ घुन पिसने की कहावत चरितार्थ हो गई. क्या हुआ, कैसे हुआ, पढ़ें मांबेटी हत्याकांड की पूरी कहानी…

मलीहाबाद में मिर्जागंज बाजार स्थित एक चर्चित कपड़े की दुकान ‘प्रेम वस्त्रालय’ में बैठा विकास बारबार आ रहे फोन काल से परेशान हो गया था. त्यौहार का सीजन था. ग्राहकों की भीड़ थी. 2 दिन बाद ही करवाचौथ आने वाला था. वह ग्राहक को देखे या फिर फोन सुने. तंग आ कर उस ने मोबाइल ही स्विच औफ कर दिया.

दुकान पर जब ग्राहकों की भीड़ कम हुई, तब उस ने लंच करने के लिए अपने टिफिन का थैला उठाया और दुकान के पीछे छोटे से गोदाम में चला गया. लंच बौक्स खोला, साथ ही अपने मोबाइल को औन किया. मोबाइल औन होते ही स्क्रीन पर पर 22 मिस काल और 8 वाट्सऐप मैसेज चमकने लगे. ये सभी मिस्ड काल और मैसेज गीता के थे. कुछ घंटे पहले गीता ही लगातार उसे काल पर काल किए जा रही थी. काल करने के बजाए उस ने मैसेज पढऩा शुरू किया. विकास का मन कड़वा हो गया. सोचा खाना खाने के बाद या दुकान से छुट्टी होने पर गीता को काल कर लेगा. उस ने फटाफट 5-7 मिनट में लंच कर लिया.

लंच बौक्स संभालते वक्त गीता के 2 और वाट्सऐप मैसेज आ गए. मैसेज क्या थे, पूरी शिकायत थी. उस में धमकी भी शामिल थी. लिखा था, ”मैं आ रही हूं दुकान पर, देखती हूं कि तुम मुझे कैसे कपड़े नहीं दिलवाते हो?’’

मैसेज पढ़ कर वह भुनभुनाया, ”कहां से कपड़े दिलवाऊं? वैसे ही दुकान का मालिक पिछला बकाया मांग रहा है…’’

वह झुंझला उठा था. उस के मन में बेचैनी आ गई थी. सिर खुजलाता हुआ किसी तरह खुद को सहज बनाने की कोशिश की और दुकान पर जा बैठा. वहां ग्राहकों की भीड़ लग गई थी. वह जल्दीजल्दी उन्हें निपटाने के लिए अपने सहयोगी सेल्समैन का हाथ बंटाने लगा. अचानक उस की नजर सामने सड़क की ओर गई. उस ने गीता को दुकान में घुसते देखा तो सकपका गया. दुकान के एक किनारे चला गया. तब तक गीता वहां पहुंच गई. आते ही शिकायती लहजे में बोल पड़ी, ”तुम ने फोन क्यों नहीं उठाया, कितनी बार काल किया.’’

”देख रही हो दुकान पर कितने ग्राहक हैं!’’ विकास बोला.

”तुम ने फोन ही बंद कर दिया, लाओ कहां है मेरी साड़ी?’’ गीता सीधे अपनी बात पर आ गई थी.

विकास रिश्ते में गीता का भतीजा था. वह कपड़े की दुकान में सेल्समैन की नौकरी करता था. उसे उस ने 2 दिन पहले ही करवाचौथ के लिए साड़ी लाने को कहा था. विकास गीता की बातों का कोई जवाब नहीं दे पाया था.

”अब मुझे टुकुरटुकुर क्या देख रहे हो. साड़ी दो उस में फाल लगवानी है. मैचिंग ब्लाउज भी सिलवाना है. पेटीकोट भी बनवाना है.’’ गीता बोलने लगी.

”गीता, तुम अभी घर जाओ, मैं शाम को साड़ी लेता आऊंगा. पूजा का सामान भी ला दूंगा.’’ विकास बोला.

”यह तो तुम हफ्ते भर से बोल रहे हो, नहीं ले कर आए, तभी तो मुझे यहां आना पड़ा.’’ गीता बोली.

”अभी तुम जाओ, प्लीज तुम यहां से चली जाओ. दुकान पर बहुत काम है!’’ विकास बोला.

”ठीक है, जाती हूं. लेकिन साड़ी, पूजा का सामान ले कर आना और कुछ पैसे भी देना.’’ बोलती हुई गीता वहां से चली गई.

विकास ने राहत की सांस ली. कुछ पल वह मौन बना रहा. फिर काम में लग गया.

दुुकान से निकल कर गीता मायूस थी. वह सोचती हुई जा रही थी, विकास के व्यवहार में कितना बदलाव आ गया है. जो विकास एक समय में उस की हर बात को तुरंत मान लेता था, एक पैर पर खड़े हो कर उस का हर काम करने के लिए तैयार हो जाता था. लेकिन अब वह क्यों बदल गया है. उसे अपनी बदहाल और अभावग्रस्त जिंदगी को ले कर रोना आ रहा था. खुद को कोस रही थी. खुद से बातें करती घर जा रही थी, ‘आखिर वह किस अधिकार से करवाचौथ के लिए उस से साड़ी मांगने गई थी, जबकि उस का पति प्रकाश मुंबई में बैठा था. उस ने त्यौहार के मौके पर छुट्टी नहीं मिलने के कारण घर नहीं आने की खबर कर दी थी. उसी ने विकास से कपड़े आदि खरीदवाने को कहा था. इसी आस में वह विकास से उम्मीद लगा बैठी थी.’

प्रेमी के प्रति गीता के मन में क्यों हुई नफरत

दूसरी तरफ विकास दुकान में अपनी अंगुलियों पर हिसाब लगा रहा था. वह कर्ज के बोझ की चिंता में डूबा था. वह समझ नहीं पा रहा था कि दुकान के मालिक से कैसे साड़ी और कुछ पैसे उधार देने की मांग करे. उस ने पहले से ही जो कर्ज ले रखा था, उसे चुकाने में कई महीने लग जाएंगे. वह और कर्ज लेने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था. गीता ने करवाचौथ के मौके पर बेमन से आए दिन पहनने वाली साड़ी में ही चावल, बतासे और जल से चंद्रमा को अघ्र्य दे कर छोटीमोटी रस्में पूरी कर लीं. छलनी से पति की तसवीर को निहार लिया. चंद्रमा को प्रणाम किया और व्रत तोडऩे के बाद पास बैठी 6 वर्षीय बेटी दीपिका को प्रसाद खाने के लिए दे दिया.

आधी रात का वक्त होने को आया था. गीता भूखीप्यासी थी. उसे नींद नहीं आ रही थी. अचानक दरवाजे पर किसी के आने की आहट सुनाई दी. उस ने कमरे के बाहर जा कर देखा. सामने विकास उसे देख कर मुसकरा रहा था. खाली हाथ उसे देख रहा था.

”अब यहां क्या लेने आया है, वह भी आधी रात को, चलो भागो यहां से. जाओ, आज के बाद से मेरे घर में कदम मत रखना. मुझे तुम्हारी कोई जरूरत नहीं है.’’ गीता विकास को देखते ही आंखे तरेर कर बोली.

”गीता, मेरी मजबूरी तो समझो…’’ विकास के आगे बोलने से पहले ही गीता भद्ïदी सी गाली के साथ बोली, ”हरामी कहीं का, जब देखो मुंह उठाए मेरे यहां चला आता है और जब मुझे जरूरत होती है, तब मुंह फेर लेता है.’’

गीता लगातार गालियां दिए जा रही थी और विकास बेशरमी से सुनता रहा. वह अजीबोगरीब स्थिति में था. जबकि गीता उसे बोलने का मौका ही नहीं दे रही थी. वह ऐसे कर रही थी, जैसे उसे चबा ही जाएगी. भूखी शेरनी की तरह गुर्राने के कारण विकास के बोल नहीं निकल पा रहे थे. बोलते हुए उस के शब्द अटक रहे थे. बोलतेबोलते गीता एक झटके से मुड़ी और कमरे का दरवाजा भीतर से बंद कर लिया. बाहर विकास कुछ सेकेंड तक ठिठका रहा, फिर वापस अपने घर लौट आया. उधर गीता ने सौगंध ले ली कि वह भविष्य में विकास को यहां कभी आने नहीं देगी और न ही वह उस से कभी मिलेगी.

हुआ भी ऐसा ही. हफ्तों बीत गए, गीता ने विकास से मिलना तो दूर उसे फोन तक करना मुनासिब नहीं समझा. यहां तक कि नए साल की शुभकामनाओं का मैसेज तक नहीं दिया. जबकि विकास गीता को फोन करता था, लेकिन गीता उस का फोन कट कर देती थी. विकास के घर आने पर वह बेरुखी से तुरंत दरवाजा बंद कर लेती थी. विकास जब भी दुकान पर होता, तब उस की बारबार बाहर जाने वाली नजर गीता को तलाशती रहती थी. वह उसे एक बार मिल कर बता देना चाहता था कि उस की  मजबूरियां क्या हैं? वह उसे कितना प्यार करता है. उस पर कितना खर्च करता रहा है और उस कारण वह किस कदर कर्जदार बना हुआ है.

विकास को एक दिन संयोग से गीता बाजार में खरीदारी करती दिख गई. वह अपने पापा सिद्धनाथ, बेटे दीपांशु और बेटी के साथ थी. दरअसल, उस की ससुराल ईशापुर में है. पति प्रकाश मुंबई में प्राइवेट नौकरी करता है. लखनऊ से 6 किलोमीटर की दूरी पर उस का मायका दिलावर नगर है. उस के पापा सिद्धनाथ अकसर गीता की देखरेख करने और जरूरत की चीजें दिलवाने के लिए उस की ससुराल आया करते थे. उस दिन विकास गीता को बाजार में देख कर दुकान से तुरंत उतर कर पीछे से गीता के सामने जा कर खड़ा हो गया. उस वक्त गीता अकेली एक कौस्मेटिक्स की दुकान के सामने खड़ी थी. विकास गीता का हाथ पकड़ कर एक किनारे ले गया.

”क्या इरादा है तुम्हारा? क्यों तुम मेरे हाथों मरना चाहती हो?’’ विकास ने एक सांस में ही गीता को बहुत खरीखोटी सुना दी. उस ने यहां तक कह दिया, ”या तो तुम मेरी जान ले लो या मैं तुम्हारी जान ले लूं!’’ गीता मौके की नजाकत को देख कर विकास की बात को सुनती रही. कुछ देर में विकास खुद शांत हो गया. तब गीता बच्चों को साथ ले कर चुपचाप अपने घर चली गई.

दोहरे मर्डर से सकते में आई पुलिस

बात 17 जनवरी, 2025 की है. मलीहाबाद पुलिस के बीट प्रभारी एसआई अमन श्रीवास्तव को सुबहसुबह ईशापुर गांव में एक महिला और 6 वर्षीय बच्ची की मकान के अंदर हत्या किए जाने की सूचना मिली. उन्होंने इस की सूचना एसएचओ सतीशचंद्र साहू को दे दी. साहू ने भी फौरी काररवाई करते हुए अमन श्रीवास्तव को पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर जाने के आदेश दिए.

थोड़ी देर में ही एसीपी अमोल मुरकर और पुलिस टीम घटनास्थल पर पहुंच गई. अमन श्रीवास्तव के साथ एसआई अश्वनी कुमार और विवेक कुमार के अलावा सिपाही गौरीशंकर यादव, उत्तम राठी और हैडकांस्टेबल कामरान खान भी ईशापुर पहुंच गए थे. घर के भीतर दोहरे हत्याकांड की मौके पर की गई जांच के दौरान पुलिस ने पाया कि मृतका की उम्र 28 साल थी और उस का नाम गीता और 6 साल की बच्ची उस की बेटी दीपिका है. दोनों की हत्या धारदार हथियार से की गई थी. मौके पर गीता की गरदन कटी पाई गई.

पुलिस की जांच में रात 2 से 3 बजे के बीच घटना को अंजाम दिए जाने की आशंका जताई गई. पुलिस दल ने दोनों लाशों का पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पुलिस ने जांच में गीता की ससुराल ईशापुर और मायका दिलावर नगर के बीच 2 केंद्र चिह्निïत किए. हत्यारे का पता लगाने के लिए सर्विलांस टीम और डौग स्क्वायड ने दिन में 12 बजे ईशापुर गांव जा कर जांच की. खोजी कुत्ता घर से 20 मीटर की दूरी तक लखनऊ रेलवे लाइनों के किनारे कुछ दूर गया और ठहर कर वापस लौट आया. पुलिस ने अनुमान लगाया कि रेलवे ट्रैक के सहारे किनारेकिनारे हमलावर आए होंगे और पैदल गीता के घर तक गए होंगे.

पुलिस ने इस हत्याकांड में किसी परिचित के शामिल होने की आशंका जताई. ग्रामीणों ने पूछताछ में पुलिस को बताया कि गीता के घर में ज्यादातर उस के परिवार के लोगों का ही आनाजाना था, जो ससुराल और मायके के होते थे. वैसे इस हत्याकांड की सूचना गीता के पापा सिद्धनाथ कनौजिया को भेज दी गई थी. वह लखनऊ में दिलावर नगर, रहीमाबाद थाने के रहने वाले हैं. उन की तहरीर पर मलीहाबाद थाने में धारा 103(1) बीएनएस के तहत केस दर्ज कर लिया गया.  इस की आगे की जांच के लिए डीसीपी (पश्चिम) विश्वजीत श्रीवास्तव द्वारा पुलिस की टीमों का गठन किया गया.

डीसीपी और एडीसीपी धनंजय कुमार कुशवाहा ने क्राइम टीम के सर्विलांस की टीम को इंसपेक्टर सतीशचंद्र साहू के साथ शामिल कर दिया. पुलिस कमिश्नर कार्यालय के इंसपेक्टर शिवानंद मिश्रा, एसआई आशुतोष पांडेय, शुभम पाराशर और हबीब के अलावा पवन, दिलीप व सूरज सिंह सिपाहियों को ले कर 5 टीमें बनाई गईं.

प्रकाश घर क्यों नहीं आ पाता था पत्नी से मिलन

सभी जांच टीमों की मेहनत ने 12 घंटे में रंग दिखा दिया. गीता के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स मालूम हो चुकी थी. उस के मुताबिक गीता के मोबाइल फोन पर एक साल के भीतर 1100 काल विकास के द्वारा किए गए थे. फिर क्या था, घटना के अगले दिन ही 17 जनवरी, 2025 को ईशापुर निवासी राजेश के बेटे विकास को मलीहाबाद में हाइवे के किनारे से पकड़ लिया गया.

विकास से थाने में सख्ती से पूछताछ की जाने लगी. जल्द ही उस ने स्वीकार कर लिया कि वह गीता से बहुत प्यार करता था, लेकिन कुछ दिनों से उस की बेरुखी से तंग आ गया था. उस के बाद वारदात की तह में छिपी कहानी इस तरह बताई—

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के अंतर्गत 24 राजमार्ग के किनारे मलीहाबाद से 3 किलोमीटर की दूरी पर ईशापुर गांव में प्रकाश कनौजिया का परिवार रहता है. प्रकाश के पापा का नाम रामखिलावन था. उस के घर की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर थी. गांव में रह कर गुजरबसर होनी काफी मुश्किल थी. इस कारण रामखिलावन का भाई रामविलास सन 2010 में गांव से मुंबई चला गया था. किसी तरह वहां कामधंधा किया. बाद में उस ने वहां एक लौंड्री की दुकान खोल ली. जल्द ही लौंड्री का व्यवसाय चलने लगा. धंधा जमते ही रामविलास अपने बुजुर्ग मम्मीपापा के गुजरबसर के लिए हर महीने कुछ पैसा भेजने लगा. रामखिलावन ने रामविलास के कहने पर 2014 में प्रकाश का विवाह दिलावर नगर निवासी सिद्धनाथ कनौजिया की बेटी गीता के साथ करवा दिया.

शादी के बाद गीता अपनी ससुराल ईशापुर आ गई. प्रकाश और गीता का दांपत्य जीवन हंसीखुशी से शुरू हुआ. शादी के एक साल बाद गीता ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम दीपांशु रखा गया. रामविलास के मुंबई जाने के बाद घर के खर्चों की जिम्मेदारी प्रकाश पर आ गई. प्रकाश चाहता था कि वह भी कोई कामधंधा शुरू करे. लेकिन उस के सामने मजबूरी थी. वह पत्नी और मम्मीपापा को अकेला नहीं छोडऩा चाहता था. शादी के 3 साल बाद गीता ने एक बेटी को जन्म दिया. प्रकाश और गीता को अब दोनों बच्चों के भविष्य की चिंता सताने लगी. गीता प्रकाश पर मुंबई जा कर रामविलास के साथ ही कोई कामधंधा करने के लिए दबाव बनाने लगी.

इस बारे में गीता ने अपने ससुर से भी बात कर उन्हें राजी कर लिया. साल 2018 की होली के मौके पर रामविलास अपने घर आया, तब गीता ने उस से भी प्रकाश को साथ ले जाने की विनती की. वह खुशीखुशी तैयार हो गया. होली के बाद अप्रैल, 2018 के पहले सप्ताह में प्रकाश भी मुंबई के उपनगर कल्याण पहुंच गया. रामविलास ने उस के लिए एक छोटी खोली किराए पर ले ली और उस की भी लौंड्री की दुकान खुलवा दी. प्रकाश ने खूब मेहनत की और अपने मधुर व्यवहार से धंधा जमा लिया. किंतु इस बीच वह गीता और बच्चों को एकदम से भूल गया. हालांकि वह चाहता था कि कमाई से पैसा जमा करे और दीवाली के मौके पर ढेर सारा पैसा ले कर घर जाए.

हालांकि करीब 6 महीने बाद प्रकाश पैसा देने के लिए एक रात के लिए अपने गांव  आया और अगले दिन ही मुंबई लौट गया. गीता को पति का इस तरह जल्दी में जाना अच्छा नहीं लगा, लेकिन वह उसे चाह कर भी नहीं रोक पाई. धीरेधीरे एक साल बीतने को आया. प्रकाश गांव नहीं आ पाया. साल 2020 के आते ही कोरोना काल आ गया. लौकडाउन लग गया. वह चाह कर भी गांव नहीं जा पाया.

2022 के फरवरी-मार्च में होली पर प्रकाश ने एक बार फिर गांव ईशापुर आने की तैयारी की. लेकिन दोबारा लौकडाउन के चलते वह मुंबई में ही फंसा रहा. पत्नी और बच्चों से मिलने नहीं आ सका. इस का असर उस के धंधे पर भी हुआ. कमाई बहुत कम हो गई.

चाची का विकास पर कैसे आया दिल

गीता को भी घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया. प्रकाश ने उसे जो पैसे भेजे थे, वे सब खर्च हो गए थे. गीता को अपने परिवार के भरणपोषण के लिए परेशान रहने लगी. इसी बीच प्रकाश ने अपने रिश्ते के चचेरे भाई राजेश के बेटे विकास से मदद मांगी. उसे  अपनी चाची गीता और दोनों बच्चों का खयाल रखने का अनुरोध किया. इस बारे में प्रकाश ने गीता को भी फोन पर बता दिया कि वह बेझिझक विकास से किसी भी तरह की मदद ले सकती है. उस के बाद से विकास और गीता का मिलनाजुलना होने लगा था. विकास गीता से मिलने घर पर बेरोकटोक आने लगा था. उन के बीच चाचीभतीजे का रिश्ता था, इस वजह से पासपड़ोस और मायके के लोगों को उन के मिलनेजुलने पर कोई आपत्ति नहीं थी.

चाचा प्रकाश से किए वायदे को विकास अच्छी तरह निभा रहा था. विकास जब भी काम से फुरसत पाता, चाची गीता से मिलने चला आता था. दोनों घंटों साथ बैठ कर बातें करते रहते थे. विकास उसे जरूरत की चीजें भी ला कर दे दिया करता था. गरमी के दिन थे. रात के 9 बज रहे थे. धीरेधीरे रात पैर पसार रही थी. गीता के दोनों बच्चे आंगन में पड़ी चारपाई पर सो रहे थे. सन्नाटे में घर के अंदर दोनों अकेले थे. विकास जब अपने घर को चलने को हुआ तो गीता ने कहा कि आज रात को खाना यहीं खा कर यहीं सो जाओ.

विकास गीता की बात सुन कर कुछ ठिठक सा गया. जेहन में एक विचार कौंध गया. लालटेन की मध्यम रोशनी में वह गौर से गीता के गोरे चेहरे को निहारने लगा. तभी विकास का कुंवारापन जाग उठा था. वह 25 साल का नवयुवक था. काफी देर तक उस का चेहरा निहारने के बाद बोला, ”आज मुझे घर जाने दो. मैं कल शाम को अपनी मां से यहां रुकने के लिए कह कर आऊंगा.’’

विकास की बात सुन कर गीता मुसकराई और बोली, ”कल जरूर आ कर रुकना, तुम्हें मेरी कसम है.’’

गीता के आग्रह के साथ बोलने और कसम देने की बात कहने पर विकास का दिलदिमाग और भी झनझना उठा था. वह उस की चाहत को समझ गया था. जातेजाते बोला, ”यहीं आ कर रात को रुकूंगा और खाना भी यहीं खाऊंगा.’’

विकास मलीहाबाद में एक कपड़े की दुकान में नौकरी करता था और रोजाना की तरह बाजार से शाम को अपने घर वापस लौटते समय अकसर गीता से बातें करने के लिए उस के पास चला जाता था. उस का मन धीरेधीरे उस की आकर्षित होने लगा था.

एक झटके में टूट गई मर्यादा की दीवार

अगले दिन विकास पूरी तैयारी के साथ गीता के पास गया. उस ने नौनवेज खरीदा. इस के अलावा शराब की एक बोतल भी खरीद कर रख ली. ये चीजें दिन में बाइक से गीता के घर जा कर दे आया और रात में आने को बोल गया. रात के 10 बजे विकास गीता के घर पहुंचा. गीता खाना खाने का इंतजार कर रही थी. विकास ने खाना खाने के पहले शराब के 2 पैग लेने की योजना बनाई. जब तक गीता खाना गर्म करने रसोई में गई, तब तक विकास ने शराब के पैग पीने शुरू कर दिए.

जब खाना ले कर गीता आई, तब उस ने नशे की हालत में गीता को भी जबरन 2 पैग शराब पिला दी. उस रात दोनों पर शराब का नशा इस कदर हावी हो गया कि वे आपस में छेड़छाड़ और नोकझोंक करते हुए वासना की आग में तप गए. एक बार जब उन के बीच रिश्ते की पवित्रता पर धूल पड़ी, तब उस के बाद वे इस के लिए अपनी मनमरजी के मालिक बन गए. गीता को पति से यौनसुख नहीं मिल पा रहा था. विकास भी कुंवारा था. इस में गीता ने खुले विचार से विकास का साथ दिया. बदले में विकास उस की जरूरतों को पूरा करने लगा.

प्रकाश का पिछले साल जनवरी के महीने में लखनऊ आना हुआ. एक सप्ताह घर पर रहने के बाद वह मुंबई वापस चला गया. पति के मुंबई चले जाने के बाद गीता अपने मायके में आ कर रहने लगी थी. इस बार अक्तूबर, 2024 से अपने मायके नहीं आई थी. वह ससुराल में अलग से बने बाग के मकान में अपने बच्चों के साथ रहने चली गई थी. वह मकान रामविलास और प्रकाश ने मिल कर बनवाया था. इसी मकान के आगे बाग की सीमा खत्म हो जाती थी और उस से सटी रेलवे लाइन गुजरती थी. गीता और विकास अकसर वहीं मिलने लगे थे.

गीता उस से मोहब्बत करने लगी थी. दिन निकलने के पहले विकास गीता के घर से चला जाता था और झटपट दोपहर का खाना ले कर मलीहाबाद दुकान पर रवाना हो जाता था. वह रोजाना शाम को जब भी अपने गांव वापस लौटता तो वह गीता के पास जा कर के प्यारमोहब्बत की बातों में मशगूल हो जाता था. विकास जब भी बाजार से घर आता तो गीता के बच्चे उस की जेब में हाथ डाल देते थे. गीता के पास बेटी दीपिका ही रहती थी, जबकि बेटा दीपांशु अपने नाना के पास था.

विकास और गीता की मोहब्बत काफी गहरी हो चुकी थी. वे एकदूसरे के बिना नहीं रह पाते थे. विकास गीता की आशनाई में अपनी नौकरी की कमाई उस पर खर्च करने लगा था. जबकि विकास के परिवार में उस के अलावा 2 बहनें और थीं. पूरे परिवार का खर्च उस की नौकरी पर निर्भर था. फेमिली वालों से उस की हरकतें छिपी न रहीं. उन्होंने  विकास को गीता के मकडज़ाल से मुक्त करवाने की योजना बनानी शुरू की. वे उसे लखनऊ से दूर कहीं दूसरे शहर भेजने की योजना बनाने लगे. विकास गीता पर पैसे खर्च करने के चक्कर में कर्जदार बन गया था.

अपने पापा के कहने पर 2023 में वह साढ़े 3 लाख रुपया खर्च कर कुवैत चला गया. इस बीच गीता अकेली रह गई. विकास के कुवैत में नौकरी करते कुल 2 महीने ही बीते थे कि गीता अपने फोन से उसे रोजाना रात को फोन कर देती थी. फोन पर वह अपना दुखड़ा सुनाने लगती थी. उसे ईशापुर लौटने के लिए कहती थी. गीता के लगातार जिद करने पर केवल 2 महीने में ही वह कुवैत से वापस आ गया. कुवैत से लखनऊ वापस आने के कारण विकास लगभग 4 लाख रुपए का कर्जदार हो चुका था. गीता की जिद पर विकास जब अपने गांव वापस आया तो वह कपड़ों के उसी शोरूम पर जा कर फिर से नौकरी करने लगा.

अक्तूबर, 2024 में करवाचौथ से 2 दिन पहले विकास गीता से मिलने गया था. गीता ने त्यौहार पर आने वाले खर्च की फरमाइशें सुना दीं. साथ ही उस ने बताया कि उस के चाचा प्रकाश इस मौके पर भी नहीं आ रहे हैं, इसलिए पूजा का सामान और साड़ी उसे ही ला कर देनी होगी. उस के सारे कपड़े और गहने मायके में ही रखे हैं. इस पर विकास ने आश्वासन दिया, साथ ही पैसा नहीं होने की मजबूरी बताई. उस ने कहा कि वह अभी बहुत कर्ज में डूबा हुआ है. इसी आश्वासन को पा कर गीता करवाचौथ के दिन विकास से रुपया लेने के लिए दुकान पर गई थी.

विकास के व्यवहार से नाराज हो कर गीता ने उस सेे संबंध तोडऩे का मन बना लिया था. वह विकास को फोन करना भी बंद कर चुकी थी. गीता की इस बेरुखी से तंग आ कर विकास दिनरात परेशान रहने लगा था.

एक के चक्कर में ऐसे हुए 2 मर्डर

15 जनवरी, 2025 की रात को विकास ने अपनी प्रेमिका चाची गीता को फोन किया और उस से मिलने के लिए कहा तो गीता ने फोन पर दोटूक उत्तर देते हुए कहा, ”मैं तुम्हारी ब्याहता थोड़े हूं. मेरे यहां अब मत आना, तुम मेरा बोझ नहीं उठा सकते हो तो तुम्हें कोई हक नहीं है. मुझ से अब कोई उम्मीद मत रखो.’’ इतना कह कर गीता ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया.

विकास फोन पर गीता की बातें सुनने के बाद बुरी तरह तिलमिला कर रह गया. उस ने गीता को सबक सिखाने के लिए योजना बना डाली. रात के करीब एक बजे विकास गीता के घर के पास लगे बिजली के खंभे के सहारे चढ़ कर उस के मकान के अंदर घुस गया. गीता के कमरे के सामने पहुंच कर उस ने गीता से कमरा खोलने के लिए कहा. विकास की आवाज पहचान गई थी, इसलिए उस ने अंदर से ही कहा कि वह वहां से चला जाए. करीब आधा घंटा बीतने के बाद भी दरवाजा नहीं खुला तो विकास किचन के अंदर जा कर बरतनों को इधरउधर फेंकने लगा. ऐसा करते हुए उसे एक बड़ा चाकू हाथ लग गया. उस ने उसे अपने पास छिपा लिया.

इसी दौरान गीता बरतनों की आवाज सुन कर बाहर आई और उसे डांटने लगी. पहले से ही तिलमिलाया हुआ विकास गुस्से में बोला,  ”आज मैं अपना और तुम्हारा दुख दूर किए देता हूं.’’

इतना कह कर विकास ने हाथ में लिए डंडे से गीता के सिर पर हमला कर दिया. वह उस पर तब तक हमला करता रहा, जब तक कि वह बुरी तरह बेहोश नहीं हो गई. गीता  के जमीन पर गिरते ही वह अपनी कमर में खोंसे चाकू से उस की गरदन रेतने लगा. इसी बीच गीता की बेटी दीपिका जाग गई. उस ने विकास को इतने गुस्से में पहली बार देखा था. वह तेजी से रोने लगी. विकास ने उसे पकड़ कर चाकू से उस की भी हत्या कर दी. आंगन में रखी बाल्टी में हाथपैर धोने के बाद वह खंभे के सहारे ही मकान से उतर कर बाहर आया और रेलवे लाइन के किनारे होता हुआ फरार हो गया.

विकास ने पुलिस को हत्या में प्रयोग की गई बाइक नंबर यूपी32 जीयू1335, चाकू और कुछ गहने, 760 रुपए नकद बरामद करवा दिए. उस ने पुलिस टीम के सामने स्वीकार किया कि वह गीता से बहुत प्यार करता था और उस के ऊपर गीता की खातिर 4 लाख रुपए का कर्ज हो गया था. उस ने कर्जा उतारने के लिए ही उस ने गीता के गहने चुराने का प्लान भी बनाया था.

विकास से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

 

 

UP Crime : 5 बीवियों वाला नूरी बाबा मदरसे में छापता था नकली नोट

UP Crime : पुलिस ने जब मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा को पकड़ा तो यह देख कर दंग रह गई कि दिन में तो वह मदरसे में बच्चों को मजहब की तालीम देता था, जबकि रात को उसी मदरसे में नकली नोट छापे जाते थे. 5 बीवियों के शौहर नूरी बाबा ने आखिर मदरसे को ही क्यों बनाया जुर्म का अड्डा?  

उत्तर प्रदेश के जनपद श्रावस्ती के थाना हरदत्त नगर गिरंट के एसएचओ शैलकांत उपाध्याय दोपहर को अपने कार्यालय में आवश्यक कार्यों में व्यस्त थे, तभी उन का मोबाइल फोन की घंटी बजी. एसएचओ ने मोबाइल स्क्रीन पर नंबर देखा तो उन्होंने तुरंत काल रिसीव कर ली. वह काल उन के एक खास मुखबिर की थी.

”कहो सुरेश (काल्पनिक नाम) क्या खास खबर है. कई महीनों से तो तुम चुपचाप बैठे थे. मैं ने तो सोचा कि कहीं तुम साइलेंट मोड में तो नहीं चले गए हो.’’ एसएचओ ने कहा.

”साहबजी, ऐसी खबर है कि जिस के लिए मैं ने पूरे 7 महीने खर्च किए हैं. देखो साहब, मेरा इस काम में बहुत पैसा भी खर्च हो चुका है. मुझे मेरी मेहनत का पैसा मिल जाए, मेरे लिए तो वही बहुत है.’’ सुरेश ने कहा.

”सुरेश, तुम मुझे यह बताओ कि तुम ने मुझे आज तक जो भी खबर दी है, मैं ने अपने ऊपर के अधिकारियों से कह कर तुम्हारा पूरा हक दिलवाया है न! ऐसी बात तो मत कहो,’’ एसएचओ ने कहा.

”साहब, आप के ऊपर विश्वास है, इसीलिए तो आप को यह खबर मैं दे रहा हूं.’’ सुरेश बोला.

”देखो सुरेश, अब पहेलियां बिलकुल भी मत बुझाओ, खबर क्या है बस मुझे तुरंत बता दो.’’ एसएचओ ने कहा.

मुखबिर ने जो कुछ बताया, उसे सुन कर तो एकबारगी एसएचओ शैलकांत उपाध्याय भी चौंक गए. सचमुच बात ही कुछ ऐसी थी. शैलकांत उपाध्याय ने मुखबिर को उस संदिग्ध व्यक्ति और उस की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखने के लिए कहा और इस विशेष खबर की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को तुरंत दे दी.

मदरसे में ही क्यों छापता था नकली नोट

मुखबिर द्वारा मिली सूचना पर एसपी घनश्याम चौरसिया के निर्देश पर एएसपी प्रवीण कुमार यादव व सीओ (भिनगा) संतोष कुमार की देखरेख में एसओजी प्रभारी नितिन यादव, एसएचओ शैलकांत उपाध्याय, एसआई विशाल शुक्ला, अंकुर वर्मा, छैल बिहारी, अनीष गोड़, हैडकांस्टेबल जितेंद्र कुमार यादव, भोला सिंह, कांस्टेबल विवेक सिंह, संजीत कुमार, प्रवीण पांडेय, अभिषेक सिंह, अवनीश, विक्रम सिंह, वीरेंद्र यादव आदि को शामिल किया.

यह टीम पहली जनवरी, 2025 को लक्ष्मणपुर के मदरसे में पहुंची तो वहां पर काम कर रहे लोगों में अफरातफरी मच गई और वे सब वहां से बाहर की ओर भागने लगे. लेकिन दूसरी तरफ पूरी पुलिस टीम चौकन्नी थी. उन्होंने मदरसे को चारों ओर से घेर रखा था, इसलिए पुलिस ने उन्हें दबोच लिया.

पुलिस टीम ने मदरसे से 5 लोगों को हिरासत में ले लिया. गिरफ्तार लोगों ने अपने नाम रामसेवक, धर्मराज शुक्ला, जलील अहमद निवासी बहराइच, अवधेश कुमार, मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा निवासी श्रावस्ती बताया.

मौके से पुलिस को नकली नोट बनाने के उपकरण सहित 1 प्रिंटर, 2 लैपटाप, 4 इंक बोतल, 35,400 रुपए के नकली नोट, 14,500 रुपए के असली नोट, एक देसी तमंचा .315 बोर व एक जिंदा कारतूस .315 बोर, एक कैंची, एक स्केल, 3 असली नोट चिपके हुए फर्मा, एक बाइक, 5 मोबाइल फोन आदि सामान मिला. पुलिस सभी अभियुक्तों को गिरफ्तार कर थाने ले आई.

इस संबंध में उन के खिलाफ मुकदमा अपराध संख्या 02/2025 धारा 178, 179, 180, 181, 3 (5) बीएनएस व 3/25 आयुध अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

पुलिस द्वारा जब सभी पांचों अभियुक्तों से सख्ती से पूछताछ की गई तो आरोपियों ने बताया कि उन्होंने यूट्यूब देख कर नकली नोट छापने के तरीके सीखे थे, जिस में उन्हें समय तो लगा, मगर वे अपने मकसद में कामयाब हो गए, जिस के बाद वे नकली नोटों को मशीन से प्रिंट करने लगे और फिर स्कैनर से नोटों की अन्य रूपरेखाओं को असली नोट की तरह तैयार करने लगे.

इस के बाद तैयार किए गए नकली नोटों को वह जनपदों और विभिन्न ग्रामीण इलाकों में जगहजगह असली नोटों में मिला कर चलाने लगे. इस के अलावा वह लोगों में रकम दुगनी करने का लालच दे कर उन के असली नोटों के बदले में दुगने नकली नोटों का धंधा भी करने लगे थे. इस गैंग का सरगना मदरसा संचालक मुबारक अली उर्फ बाबा था.

गिरफ्तार करने के बाद जब पुलिस ने आरोपियों की हिस्ट्री खंगाली तो और भी चौंकाने वाले खुलासे हुए.

क्या है आरोपियों का काला इतिहास

जब पुलिस ने आरोपियों के आपराधिक इतिहास की गहनता से जांचपड़ताल की तो कुछ आरोपियों का काफी काला और रहस्यमयी इतिहास सामने आया.

आरोपी जलील अहमद निवासी काशीजीत जनपद बहराइच पर 2 गंभीर केस पहले से ही दर्ज हैं. जिन में पहला मुकदमा अपराध संख्या 220/2021 भादंवि की धारा 325, 323, 504 के तहत थाना पयागपुर में चल रहा है. जबकि उस के ऊपर दूसरा केस मुकदमा अपराध संख्या 829/2014 भादंवि की धारा 308, 323 और 504 के तहत थाना पयागपुर में चल रहा है. आरोपी रामसेवक निवासी गांव बेगमपुर रामगांव जनपद बहराइच पर 3 आपराधिक केस दर्ज हैं.

तीसरे आरोपी अवधेश कुमार पांडेय निवासी गांव ककंधू जनपद श्रावस्ती पर एक मुकदमा अपराध संख्या 32/2019 धारा 3/25 आयुध अधिनियम थाना सोनवा जनपद श्रावस्ती में दर्ज पाया गया.

जबकि इस नकली नोटों के गिरोह के सरगना मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा पुत्र असगर अली निवासी लक्ष्मणपुर, श्रावस्ती के खिलाफ 3 आपराधिक मुकदमे दर्ज पाए गए. पूछताछ के बाद मदरसे में नूरी बाबा के नकली नोट छापने की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

कैसे बना कबाड़ी से मदरसा संचालक

उत्तर प्रदेश की मशहूर नदी राप्ती के किनारे पर बसे लक्ष्मणपुर गंगापुर जनपद श्रावस्ती से निकला मुबारक अली पहले कबाड़ी बना, फिर मौलाना बना और उस के बाद फैजुर नबी मदरसा का संचालक भी बन गया. इतना ही नहीं, दीनी तालीम और झाडफ़ूंक की आड़ में इस ने काफी अय्याशियां भी की. पकड़े जाने पर निकाह कर बचने का प्रयास भी खूब किया. यह भी कहा जाता है कि नकली नोटों से नहीं बल्कि मदरसे की फंडिंग ने मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा को रातोंरात करोड़पति बना डाला था.

श्रावस्ती जनपद के मल्हीपुर थाना क्षेत्र लक्ष्मणपुर गंगापुर गांव एवं गांव में मौजूद आवासीय मदरसा दारुल उलूम फैजुर्रनबी आज उत्तर प्रदेश में ही नहीं, बल्कि पूरे भारत में एक चर्चा का विषय बन चुका है. इसे इतनी सुर्खियों में लाने वाले मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा की पूरी स्टोरी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है.

मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा ने अपने अब्बू की मौत के बाद अपने और परिवार के जीवनयापन के लिए सब से पहले गांवगली, मोहल्ले जा कर कबाड़ खरीदने से शुरुआत की थी. कबाड़ खरीदने के बाद मुबारक अली ने मल्हीपुर के वीरगंज बाजार में एक कबाड़ की दुकान खरीद ली, जहां पर वह चोरी से लोहे की पोल काट कर लाते समय पुलिस द्वारा पकड़ा गया.

उस के बाद इस कबाड़ के कारोबार से उस का मोहभंग हो गया. फिर अपने आप को एक पत्रकार व मंडलीय ब्यूरो का परिचय दे कर गांव वालों व आसपास के लोगों में अपना रौब गांठने लगा था.

ताज्जुब की बात तो यह है कि इस के निजी वाहनों पर आज भी मीडिया लिखा हुआ है. इस बीच मुबारक अली मदरसे का कामकाज भी देखता रहा. वह इस मदरसे में पढऩे व पढ़ाने के लिए आने वाली युवतियों को भी तरहतरह से प्रताडि़त कर उन का यौनशोषण भी करने लगा था. इस का खुलासा तब हुआ, जब 2 जनवरी, 2025 को एसएसपी की जांच में मदरसे के अंदर काफी संख्या में कामोत्तेजक दवाएं बरामद की गईं.

उसी जांच के दौरान गांव के एक व्यक्ति ने पुलिस को यह भी बताया कि कुछ समय पहले मदरसे में रह रही गोंडा निवासी एक युवती के पिता ने थाने में मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा पर अपनी बेटी के यौनशोषण का आरोप भी लगाया था. मगर जेल जाने से बचने के लिए मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा ने उस युवती के साथ निकाह कर लिया, जोकि मौजूदा समय में गोंडा में है.

इसी बीच नेपाल सीमा क्षेत्र से सटे मुबारक अली के एक गांव निवासी रिश्तेदार ने मुबारक अली की पहचान बहराइच के पयागपुर थाना क्षेत्र के काशीजोत जलील अहमद उर्फ जलील बाबा से करा दी, जिसे नूरी बाबा ने मदरसे में नौकरी देने के बहाने अपने खास आदमियों में रख कर नकली नोट छापने का कारोबार शुरू कर दिया.

मुबारक अली को बचपन से ही थी करोड़पति बनने की ख्वाहिश

लक्ष्मणपुर गंगापुर निवासी मुबारक अली बचपन से ही करोड़पति बनने की ख्वाहिश रखता था. इस के लिए वह किसी भी हद तक जाने के लिए हमेशा तैयार भी रहता था. मदरसा चलाना तो उस का बस एक बहाना भर ही था. उस का असली मकसद तो विदेशी फंडिंग जुटाने का था.

नूरी बाबा ने सब से पहले अपना कामधंधा कबाड़ से शुरू किया था. उस के घर के बाहर खड़ी 2 ठेलियां आज भी इस की गवाही दे रही हैं. इस के बाद इस शातिर बदमाश ने धर्म अथवा मजहब का रास्ता चुना और इस ने मदरसा खोलने की तैयारी शुरू कर दी. वह अपने इस खेल में भी आसानी से कामयाब हो गया. इस अपराधी ने मदरसे के नाम पर मोटा चंदा भी इकट्ठा कर लिया था और उस के बाद का सारा खेल मदरसे के भीतर ही रचा गया.

मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा को जब पुलिस ने गिरफ्तार किया तो इस के तथाकथित मदरसे से पुलिस को कई सैक्सवर्धक दवाइयां भी मिलीं. इस सब को देख कर तो एकबारगी पुलिस की टीम भी हैरान रह गई थी. मुबारक अली की 5 बीवियों की जानकारी भी पुलिस को मिली है, जिन में से एक पत्नी मदरसा संभालती है.

वैसे आमतौर पर मदरसे में महिलाएं नहीं होती हैं, लेकिन मुबारक अली के इस मदरसे में उस की पांचों बीवियों के अतिरिक्त अन्य कई युवतियों का आनाजाना भी लगा रहता था.

इन का नकली नोट छापने का यह मकसद था कि मजहब के नाम पर नौजवानों को जोडऩा और उस के बाद उन का कनैक्शन पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ जोडऩा था.

मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा कभी फकीर बन कर जकात मांगता तो कमी रमजान के महीने में मसजिद व मदरसा के लिए चंदा वसूलता था. कभी नेपाल तो कभी पश्चिम बंगाल में जा कर तकरीर करता था. लोगों से खुद को जोडऩे के लिए वह अपने कट्टर मुसलमान होने का भी प्रमाण देता था.

नूरी बाबा का पाकिस्तान प्रेम भी आया सामने

बताया जाता है कि नूरी बाबा ने केवल 10 सालों में नकली नोटों की अवैध कमाई और विदेशों से मिल रही अवैध फंडिंग से करीब 60 बीघा जमीन नेपाल सीमा में खरीदी थी.

मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा के सोशल मीडिया प्लेटफार्म और फेसबुक पर 7 अक्तूबर, 2017 को उस के द्वारा डाली गई पोस्ट भी उस के पाकिस्तान प्रेम को उजागर कर रही है. इस पोस्ट में मुबारक अली ने पाकिस्तानी ध्वज के साथ अपनी फोटो भी पोस्ट की थी, जोकि आज भी उस के सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर मौजूद है. ऐसे में अब यह अंदाजा भी लगाया जा रहा कि कहीं मुबारक अली का संबंध आईएसआई के साथ तो नहीं है.

आखिरकार नूरी बाबा ये सब क्यों और किस के लिए और किस की शह पर कर रहा था? इस का मंसूबा आखिर क्या था? आखिर कौन था इस शातिर के निशाने पर?

सब से बड़ी बात तो यह है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पुलिस इस केस को बाकी केसों से अलग एक संदिग्ध केस समझ कर इस की विस्तृत जांचपड़ताल में लगी है. इस कहानी में आखिर ऐसा क्या है, जिस का अंदाजा लगाना उत्तर प्रदेश पुलिस के बस का भी नहीं था.

इस केस की जांच में कई सिंघम आईपीएस पुलिस अधिकारी और कई इंसपेक्टरों को लगा दिया. पुलिस कर्मचारी इस नूरी बाबा के पीछे क्यों पड़े थे? आखिर मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा ने ऐसा क्या किया था कि उस की तलाश नेपाल से ले कर महाराष्ट्र तक होने लगी और फिर पुलिस को पता चला है कि यह नूरी बाबा तो दिल्ली में है.

उस के बाद नूरी बाबा का कनेक्शन प्रयागराज से मिला. आखिरकार इस की सही और एग्जेक्ट लोकेशन पुलिस को मिली तो उसे दबोच लिया गया. इस शातिर अपराधी की गिरफ्तारी के बाद का सच ऐसा था कि इस शातिर अपराधी की जानकारी उत्तर प्रदेश के एटीएस चीफ अमिताभ यश तक पहुंचाई गई.

मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा को अब सूली पर चढ़ाने की तैयारी उत्तर प्रदेश पुलिस कर रही है. इस की बाकी बुरके वाली बीवियां कहां हैं, इन सब की तलाश अभी भी जारी है. मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा के फोन से पाकिस्तानी संगठनों के साथ बातचीत के ठोस सबूत भी पुलिस के हाथ लगे हैं.

उत्तर प्रदेश व देश के अन्य राज्यों में कोई न कोई मौलवी या बाबा आए दिन पकड़ा जाता है. लेकिन इन सब के बीच में मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा का मंसूबा काफी खतरनाक था. यह शातिर अपनी ही तरह और लोगों को ट्रेंड कर रहा था. उस का असली मकसद क्या था, यह तो अब पुलिस पूछताछ में पता चलेगा.

बीवी और बहन के पुलिस पर आरोप

मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा का पहला निकाह राबिका से हुआ था, जिस से उस की 4 बेटियां और 3 बेटे हैं. इस के साथ वह गांव में ही रहता है, जबकि दूसरी बीवी बहराइच के मदरसा जामिया नूरिया मसजिद में टीचर है. वहीं अन्य 3 बीवियां अलगअलग स्थानों पर रहती हैं, जिस की जानकारी गांव वालों को भी नहीं है.

नूरी बाबा की बीवी राबिका ने मीडिया से कहा कि मेरे पति मुबारक अली पर जो भी आरोप लगाए गए हैं, वे सारे गलत हैं. मैं उन के साथ इतने सालों से रह रही हूं, मैं ने तो उन्हें कभी नोट छापते हुए नहीं देखा. अब जो कुछ भी मदरसे में हुआ है, मैं ने अपनी आंखों से तो नहीं देखा है तो इस के बारे में क्या बता

सकती हूं.

जब उस से यह सवाल किया गया कि गांव वाले तो कहते हैं कि आप मदरसे में काफी आतीजाती रहा करती थीं, तब राबिका ने कहा कि मैं अपने छोटे बच्चे को मदरसे में छोडऩे और लाने के लिए आती थी. जब यह पूछा गया कि मदरसे में बाहरी महिलाओं का भी तो बहुत आनाजाना लगा रहता था तो राबिका ने बताया कि जिन बच्चों के दाखिले मदरसे में होते थे, वही महिलाएं यहां आतीजाती थीं.

उस ने यह भी बताया कि रमजान के महीने में मुबारक अली मुंबई जाते थे. नेपाल आतेजाते रहते थे, इस बात का उसे कुछ पता नहीं था. वहीं दूसरी ओर मुबारक अली की बहन समीरा ने तो पुलिस टीम पर ही आरोप लगा दिए.

समीरा ने मीडिया से बातचीत में बताया कि पुलिस मेरे भाई मुबारक अली को फरजी बाबा कह कर फंसा रही है. हमारा गांव में एक आदमी से 10-12 साल से विवाद चल रहा है. वही आदमी मेरे भाई को फंसा रहा है.

पुलिस के अनुसार मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा का इतिहास और चरित्र शुरू से ही संदिग्ध रहा है. कबाड़ी नूरी बाबा रमजान माह में मुंबई में रह कर चंदा वसूल करता था. कभी पश्चिम बंगाल तो कभी नेपाल जाता था. कबाड़ी से शुरू हुआ उस का यह सफर नकली नोट छापने तक पहुंच गया.

अपने काले कारनामों को छिपाने के लिए ही मुबारक अली मदरसा संचालक बना था, ताकि उस के कारनामे कभी भी उजागर न हो सकें. इस के लिए उस ने गांव के ही 5 भाइयों से उन के हिस्से की जमीन ले कर 8 साल पहले मदरसा खोला. जिस की आड़ में वह हर गलत काम करता था, जो उसे तथा उस के काले कारनामों से बचाने का माध्यम बना.

Extramarital Affair : देवर के साथ मिलकर किया पति का कत्ल

Extramarital Affair : कुछ लोग स्वभाव से सीधे होते हैं, जबकि आज के परिवेश में सीधे व्यक्ति को मूर्ख समझा जाता है. प्रियंका और मोहन ने सीधे स्वभाव के सत्यशील को मूर्ख समझ कर अपने रास्ते से हटा तो दिया, लेकिन…

16 जुलाई, 2020 की रात के 2 बजे सांती गांव के चौकीदार रामनरेश ने थाना मक्खनपुर में फोन कर के बताया कि सिक्सलेन बाईपास पर सांती पुल के पास सर्विस रोड पर एक युवक का शव पड़ा है. इस सूचना पर थानाप्रभारी मक्खनपुर विनय कुमार मिश्र पुलिस टीम ले कर रात में ही घटनास्थल पर पंहुच गए. प्रभारी निरीक्षक ने शव व घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. मृतक की उम्र 28-29 साल के आसपास थी. शव देखने से ऐसा लग रहा था जैसे मृतक को किसी वाहन ने रौंदा हो. उस की मौत हो चुकी थी. मृतक के सीधे हाथ की कलाई पर प्रमोद यादव गुदा (लिखा) हुआ था.

इस से यह तो पता चल गया कि मृतक का नाम प्रमोद यादव है लेकिन नाम से यह पता नहीं चल सकता था कि वह कहां का रहने वाला था. इस बीच सुबह हो गई थी. सर्विस रोड पर पुलिस को देख आसपास के लोग एकत्र हो गए. पुलिस ने उन से शव की शिनाख्त कराने का प्रयास किया लेकिन कोई भी मृतक को नहीं पहचान सका. मौके की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने  मृतक की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल फिरोजाबाद भेज दी. पुलिस ने मृतक की शिनाख्त के लिए उस का फोटो और दाहिनी बांह जिस पर उस का नाम था, का फोटो सोशल मीडिया पर डाल कर शिनाख्त कराने का प्रयास किया. 17 जुलाई की सुबह मृतक की शिनाख्त फिरोजाबाद जिला के गांव जेबड़ा निवासी 30 वर्षीय सत्यशील उर्फ प्रमोद यादव के रूप में हो गई.

मृतक के घर वालों ने उस की शिनाख्त मोर्चरी जा कर की. जब गांव वालों को सत्यशील की मौत की बात पता चली, तो गांव में मातम छा गया. सत्यशील सीधासादा युवक था, वह रात में सांती पुल पर क्या करने गया था, यह बात किसी की समझ में नहीं आ रही थी. दूसरे दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई. रिपोर्ट देख कर पुलिस के होश उड़ गए. पुलिस जिसे अब तक दुघर्टना मान रही थी, वह हत्या थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में युवक की मौत का कारण विषैले पदार्थ का सेवन और गला घोंटना बताया गया था. मृतक की शिनाख्त होने के बाद 19 जुलाई को मृतक  के चाचा लालता प्रसाद ने थाना मक्खनपुर में प्रमोद की पत्नी प्रियंका और सत्यशील के ममेरे भाई मोहन सिंह के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई. मोहन सिंह गांव बनकट का रहने वला था.

रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि मृतक सत्यशील के ममेरे भाई मोहन से मृतक की पत्नी प्रियंका के अवैध संबंध थे. इस की जानकारी सत्यशील को हो गई थी. इसे ले कर सत्यशील और प्रियंका में आए दिन झगड़ा होता था. रास्ते का कांटा निकालने के लिए दोनों ने षडयंत्र रच कर सत्यशील की हत्या करा दी है. उधर पति की दुर्घटना में आकस्मिक मौत पर प्रियंका का रोरो कर बुरा हाल था. जबकि ससुराल वालों द्वारा पति की हत्या में उस का हाथ होने की बात से वह बुरी तरह आहत थी. पुलिस ने चाचा की तहरीर पर भादंवि की धारा 302,201,120बी, 328, 34 के तहत हत्या का मुकदमा  दर्ज करने के बाद गहनता से जांच शुरू कर दी. इस संबंध में पुलिस ने सब से पहले मृतक की पत्नी प्रियंका से पूछताछ की. उस ने बताया, 15 जुलाई की शाम साढ़े 7 बजे सत्यशील किसी कारखाने में काम करने की बात करने के लिए घर से निकले थे.

जब वह देर रात तक लौट कर नहीं आए तो उसे चिंता हुई और उस ने रात में ही अपने मायके वालों को फोन कर इस संबंध में बताया था. उस ने मोहन से अवैध संबंधों की बात सिरे से नकार दी. उस ने पुलिस को बताया कि मोहन उस का ममेरा देवर है और सत्यशील से मिलने घर आता था. पुलिस ने प्रियंका के बयानों की सच्चाई जानने के लिए उस के मोबाइल को खंगाला. उस के फोन नंबर की काल डिटेल्स में एक ऐसा नंबर शक के दायरे में आया, जिस पर प्रियंका सब से ज्यादा बातें करती थी. पुलिस ने उस नंबर को ट्रेस किया तो नंबर मोहन का निकला. पता चला कि 15/16 जुलाई की घटना वाली रात प्रियंका और मोहन की कई बार बातें हुई थीं.

शक के दायरे में प्रियंका प्रियंका को संदेह के दायरे में लाने के लिए इतना ही काफी था. पुलिस ने उसे हिरासत में ले कर पूछताछ की. प्रियंका  बारबार अपने बयान बदलती रही. इस से वह पूरी तरह संदेह के घेरे में आ गई. महिला सिपाही ने जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो प्रियंका टूट गई. वह थाने में ही फूटफूट कर रोने लगी. उस ने अपना जुर्म कबूल करते हुए पुलिस को बताया कि मोहन ने उसे 15 जुलाई को फोन किया था कि सत्यशील को शाम 7 बजे कारखाने में नौकरी की बात करने के बहाने मेरे पास पायनियर तिराहे पर भेज देना. मोहन के कहे अनुसार उस ने पति को पायनियर तिराहे पर भेज दिया था. पति की हत्या कैसे और कहां करनी है, ये काम मोहन को करना था. पुलिस समझ गई कि सत्यशील की हत्या प्रियंका और उस के प्रेमी मोहन ने षडयंत्र रच कर योजनाबद्ध तरीके से की थी.

एसएसपी सचिंद्र पटेल ने इस केस के मुख्य आरोपी मोहन की गिरफ्तारी की जिम्मेदारी एसपी (ग्रामीण) राजेश कुमार को सौंपी. साथ ही उन्होंने क्षेत्राधिकारी शिकोहाबाद इंदुप्रभा सिंह और थाना मक्खनपुर के प्रभारी विनय कुमार मिश्र की मदद के लिए एक पुलिस टीम का गठन किया. इस टीम के सहयोग के लिए सर्विलांस टीम को भी लगा दिया गया. पुलिस टीम मुख्य आरोपी मोहन की गिरफ्तारी के लिए पूरी तैयारी के साथ जुट गई. क्योंकि उस की गिरफ्तारी के बाद ही हत्या के इस रहस्य से परदा उठ सकता था. 21 जुलाई को थानाप्रभारी विनय कुमार  मिश्र पुलिस टीम के साथ क्षेत्र में गश्त पर थे. तभी मुखबिर ने सूचना दी कि सत्यशील की हत्या में शामिल नामजद मोहन हाईवे स्थित उसायनी मंदिर पर खड़ा है.

इस सूचना पर पुलिस उसायनी मंदिर के पास पहुंच गई. वहां आरोपी मोहन कार के पास खड़ा था. पुलिस को देख कर वह भागने लगा साथ ही कार में बैठे उस के 2 अन्य साथी भी भागे. पुलिस ने घेराबंदी कर तीनों को गिरफ्तार कर लिया. मोहन सिंह के साथ पकड़े गए उस के दोस्त थे. इन में नीरज मिश्रा नगला सदा का रहने वाला था और जयवीर, गांव कुतकपुर जारखी में रहता था. हत्यारोपियों को गिरफ्तार करने वाली पुलिस टीम में थानाप्रभारी विनय कुमार मिश्र, सब इंस्पेक्टर धीरेंद्र सिंह, कास्टेबल सुमनेश कुमार, राहुल चौधरी, पवन कुमार, महिला कास्टेबल रेनू सिंह शामिल थे.

पुलिस ने सत्यशील की हत्या में शामिल पत्नी प्रियंका उस के प्रेमी मोहन, दोस्त नीरज व जयवीर को गिरफ्तार कर के सभी से पूछताछ की. आरोपियों ने सत्यशील की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया. प्रियंका को पसंद नहीं था पति का सीधापन एसएसपी सचिंद्र पटेल ने पुलिस लाइन, दबरई में प्रैसवार्ता में हत्यारोपियों की गिरफ्तारी की जानकारी दी. कहानी यह निकल कर सामने आई कि अपने पति सत्यशील के सीधेपन से प्रियंका शादी के 2 साल बाद ही ऊब गई थी. मोहन का प्रियंका के घर काफी दिनों से आनाजाना था. 23 साल का मोहन उम्र में प्रियंका से 2 साल छोटा था. वह रिश्ते में उस का ममेरा देवर था, प्रियंका उस की रोमाटिंक बातों में खूब रस लेती थी.

भाभी के प्रेम में दीवाना मोहन प्यार की राह में आ रहे कांटे को हटाने के लिए तैयार था. प्रियंका और मोहन ने मिल कर सत्यशील की हत्या का षडयंत्र रचा. मोहन ने इस में अपने 2 दोस्तों को भी शामिल कर लिया. हत्यारोपियों ने इस खौफनाक हत्याकांड की जो कहानी बताई, वह इस तरह थी—

उत्तर प्रदेश के शहर फिरोजाबाद का एक थाना है मक्खनपुर. जेबड़ा गांव इसी थाना क्षेत्र में आता है. सत्यशील उर्फ प्रमोद यादव अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी प्रियंका के अलावा 3 बेटियां और वृद्ध मां थीं. सत्यशील मांबाप का इकलौता बेटा था. शादी से पहले वह अकसर गांव बनकट स्थित अपने मामा पप्पू के घर चला जाता था. वहां वह कईकई दिन ठहरता था. उस के मामा के दूसरे नंबर के 23 वर्षीय बेटे मोहन सिंह से उस की खूब पटती थी. सत्यशील के हाईस्कूल कर लेने के बाद घर वालों ने उस की शादी गांव भढ़ाईपुरा निवासी एक युवती से कर दी.

शादी के बाद सत्यशील के 2 बेटियां हुईर्ं. उस की बड़ी बेटी मानसी इस समय 7 साल की व मानवी 6 साल की हैं. तीसरी डिलीवरी के दौरान सत्यशील की पत्नी की मृत्यु हो गई. दोनों बेटियां छोटी थीं. उन की परवरिश करने वाला घर में कोई नहीं था. सत्यशील के पिता महेश चंद्र की मौत हो चुकी थी जबकि मां दिमाग से कमजोर होने के कारण घरगृहस्थी का काम नहीं कर पाती थी. इस के चलते सत्यशील के ससुराल वालों ने 2 साल पहले उस की शादी गांव उतरारा की अपनी जानकार 25 वर्षीय प्रियंका से करा दी. प्रियंका की एक साल की एक बेटी है किट्टू. सत्यशील के पास ढाई बीघा जमीन थी. वह अपनी खेती के साथ बटाई पर जमीन ले कर खेतीकिसानी करता था. इसी से उस के परिवार की गुजरबसर होती थी. सत्यशील ने बच्चों के लिए घर में गाय भी पाल ली थी. सबकुछ ठीकठाक चल रहा था.

सत्यशील फसल की सिंचाई व देखभाल के लिए रात में अकसर खेतों पर चला जाता था. आराम करने के लिए खेतों पर झोपड़ी बनी थी. कभीकभी वह उस झोपड़ी में ही सो जाता था. सुबह होने पर वह घर आ जाता था. ममेरे भाई मोहन के पास निजी टीयूवी कार थी, जिसे वह टैक्सी के रूप में चलाता था. वह अकसर सत्यशील के गांव जेबड़ा आताजाता रहता था. दोनों भाइयों में खूब पटती थी. प्रियंका मोहन की भाभी थी, सो दोनों अकसर एकदूसरे से दिल्लगी करते रहते थे. बातों ही बातों में एक बार मोहन बोला, ‘‘भाभी, रात में भैया तो खेतों पर सोने चले जाते हैं, तुम्हें नींद कैसे आती है?’’

इंटरमीडिएट तक पढ़ी प्रियंका देवर की शरारत समझ कर भी अनजान बनी रही. बोली, ‘‘जैसे तुम्हें नींद आ जाती है वैसे ही मुझे आ जाती है.’’ प्रियंका ने कहा, ‘‘वैसे मोहन, अब तुम शादी कर लो.’’

एक दिन मोहन रात में गाड़ी चलाने के बाद सत्यशील के घर आ गया. सत्यशील खाना खा कर खेत की सिंचाई के लिए जाने वाला था. मोहन के आने पर उस ने प्रियंका से कहा, ‘‘कल्लू को खाना खिला देना.’’ फिर उस ने कल्लू से कहा, ‘‘मुझे खेत पर जाने के लिए देर हो रही है. इसलिए जाता हूं.’’

सत्यशील खेतों पर चला गया.  प्रियंका ने मोहन के लिए खाना बनाया. फिर देवर को बड़े प्यार से खिलाया. खाना खाते और बातचीत करते कब समय निकल गया दोनों को पता ही नहीं चला. प्रियंका ने मोहन से कहा, ‘‘रात ज्यादा हो गई है, सुबह चले जाना.’’

इस पर मोहन ने कहा, ‘‘ठीक है, मैं अपनी गाड़ी में सो जाऊंगा.’’

इस पर प्रियंका ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम्हें घर में सोने के लिए कौन मना कर रहा है. इतना बड़ा घर है और सोओगे गाड़ी में.’’

प्रियंका की बातों से मोहन को मन की मुराद पूरी होती लगी. उस रात प्रियंका और मोहन दोनों अपनेअपने बिस्तर पर करवटें बदलबदल कर सोने का प्रयास करने लगे. मगर 2 जवान दिलों की बढ़ती धड़कनों ने उन्हें सोने नहीं दिया. प्रियंका के पैरों की पायल की रूनझुन ने मोहन की आंखों से नींद उड़ा दी थी. आखिर जब मोहन से नहीं रहा गया तो वह अपने बिस्तर से उठ कर बोला, ‘‘भाभी, नींद नहीं आ रही क्या?’’

प्रियंका मुसकरा कर बोली, ‘‘तुम्हें आ रही है?’’

मोहन बोला, ‘‘तुम्हारे बिना कैसे आएगी?’’

फिर प्यासी नदी के 2 किनारों को मिलने में देर नहीं लगी. इस के बाद जब भी मौका मिलता दोनों मिल लेते थे. उन्हें रोकने टोकने वाला घर में कोई नहीं था.

लौकडाउन में तो मोहन रोज ही सत्यशील के घर जाता था. इस बीच सत्यशील कहीं भी आजा नहीं रहा था. यहां तक कि पुलिस के डर से रात में अपने खेतों पर सोने भी नहीं जाता था. इस के चलते प्रेमी युगल को क्वालिटी टाइम स्पेंड करने का मौका नहीं मिल पा रहा था. दोनों के दिलों में सुलग रही आग बाहर आने लगी थी. बाद में दोनों ने राह के कांटे को हमेशा के लिए निकालने की खौफनाक साजिश रची. दोनों ने इस षडयंत्र को 15/16 जुलाई को अंजाम भी दे दिया. मक्खनपुर क्षेत्र में कांच के कई कारखाने हैं. साजिश के तहत प्रियंका ने अपने पति सत्यशील से कहा, ‘‘तुम किसी कारखाने में काम कर लो. मोहन तुम्हारा काम लगवा देगा. इस से घर का खर्च भी अच्छी तरह चल जाएगा.’’

सीधासादा सत्यशील पत्नी की शतरंजी चाल को समझ नहीं पाया. प्रियंका ने 15 जुलाई की शाम साढ़े 7 बजे सत्यशील को काम के बहाने मोहन के पास भेज दिया. पायनियर तिराहे पर मोहन पहले से ही अपनी कार में अपने 2 साथियों के साथ सत्यशील का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. जैसे ही वह वहां पहुंचा मोहन ने उसे कार में बैठा लिया. आगे चल कर मोहन ने एक होटल से कोल्ड ड्रिंक की 4 बोतलें खरीदीं. पीछे बैठे उस के दोनों साथियों ने पहले से साथ लाई नशे की गोलियां एक बोतल में मिला दीं. आगे की सीट पर मोहन की बगल में बैठे सत्यशील को इस का पता नहीं चला. कोल्ड ड्रिंक पीने के कुछ देर बाद सत्यशील पर बेहोशी छाने लगी.

मोहन का इशारा मिलते ही जयवीर व नीरज ने मिल कर सत्यशील के गले में पड़े सफेद रंग के अंगोछे से उस का गला दबा कर गाड़ी में ही हत्या करने की कोशिश की.  लेकिन उस के मुंह से खून आने लगा. इस पर मोहन गाड़ी को सांती पुल के नीचे ले गया और सत्यशील को सर्विस रोड पर फेंक दिया. उस की मौत की पुष्टि के लिए इन लोगों ने कार 2 बार उस के ऊपर चढ़ाई. जब उन्हें पूरी तसल्ली हो गई कि सत्यशील मर चुका है, तब मोहन ने प्रियंका को रात में ही फोन कर के बता दिया कि काम हो गया है. इस पर प्रियंका ने कहा, कार चढ़ाने के बाद तुम ने देख भी लिया है कि उस की मौत हुई या नहीं. मोहन ने उसे तसल्ली दी कि तुम किसी बात की चिंता मत करो.

नहीं बना पाए दुर्घटना मोहन ने हत्या को दुर्घटना दिखाने के लिए सत्यशील के ऊपर 2 बार कार चढ़ाई थी. मुख्य आरोपी मोहन ने हत्या की योजना में शामिल करने के लिए दोनों साथियों को 15 हजार रुपए देने का प्रलोभन दिया था. साथ ही नीरज मिश्रा को एक मोबाइल भी खरीद कर दिया था. पुलिस ने उस मोबाइल के साथ ही मृतक का सैमसंग मोबाइल, प्रियंका का मोबाइल, मृतक की चप्पलें, हत्यारोपियों के कब्जे से खून से सना सत्यशील का गमछा, कोल्ड ड्रिंक की 4 बोतलें, हत्या में इस्तेमाल टीयूवी कार आदि चीजें बरामद कर लीं. पुलिस ने सत्यशील की हत्या करने के आरोप में प्रियंका, मोहन, नीरज व जयवीर को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

प्रियंका की बेटी किट्टू व गाय को प्रियंका की मां अपने साथ ले गई. जबकि पहली पत्नी के मायके वाले दोनों बेटियों को अपने साथ ले गए. प्रियंका ने आशनाई के चक्कर में अपने सुहाग व सुखी गृहस्थी को अपने ही हाथों उजाड़ लिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Crime Story : हंसिए से काट डाली प्रेमिका के पिता और मां की गर्दन

Crime Story : बबीता और लालमणि भले ही अलगअलग बिरादरी के थे, लेकिन उन का प्यार अटूट था. लालमणि ने बबीता के मातापिता से जब शादी के बारे में बात की तो उन्होंने शादी करने से इनकार कर दिया. इस के बाद ऐसा क्या हुआ कि बबीता के घर में एक नहीं, बल्कि 2 हत्याएं हुईं?

थाना गोसाईगंज के थानाप्रभारी एस.के. सिंह को सुबहसुबह सलारपुर गांव में डबल मर्डर की सूचना मिली तो वह विचलित हो उठे. उन्होंने वारदात की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी फिर पुलिस टीम के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. यह बात 25 मई, 2020 की सुबह 8 बजे की है. एस.के. सिंह को दोहरे हत्याकांड की सूचना सलारपुर गांव के किसी व्यक्ति ने मोबाइल फोन से दी थी. उस ने अपना नाम तो नहीं बताया था, पर यह जरूर बताया था कि गांव के बुजुर्ग दंपति की निर्मम हत्या हुई है. एस.के. सिंह कुछ और पूछते, उस से पहले ही फोन डिसकनेक्ट कर दिया गया था. सलारपुर गांव से थाना गोसाईगंज 8 किलोमीटर दूर था. पुलिस को वहां पहुंचने में करीब आधा घंटा लगा.

सलारपुर पहुंचते ही एस.के. सिंह को पता चल गया कि हत्या राममिलन व उस की बीवी राजकुमारी की हुई है. उस समय घटनास्थल पर लोगों की भीड़ जुटी थी. पूछने पर पता चला कि शव घर की छत पर पड़े हैं. एस.के. सिंह साथी पुलिसकर्मियों के साथ छत पर पहुंचे. वहां एक 20-22 वर्षीय युवती चीखचीख कर रो रही थी. वह मृतक दंपति की बेटी वंदना थी. थानाप्रभारी ने उसे समझाबुझा कर शव से अलग किया फिर निरीक्षण में जुट गए. राममिलन और उस की पत्नी राजकुमारी के शव अगलबगल पड़े थे. शवों के पास ही खून सना हंसिया पड़ा था. संभवत: उसी हंसिया से वार कर दोनों को मौत के घाट उतारा गया था. दोनों के गले पर गहरे जख्म थे. चेहरों पर भी वार किए गए थे.

मृतक राममिलन की उम्र 60 वर्ष के आसपास थी, जबकि उस की पत्नी राजकुमारी 55 वर्ष के आसपास थी. पुलिस ने साक्ष्य के तौर पर आला कत्ल हंसिया जाब्ते में लिया. थानाप्रभारी एस.के. सिंह अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी शिवहरी मीणा, एएसपी (ग्रामीण) शिवराज तथा सीओ दलबीर सिंह भी आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल पर फोरैंसिक टीम तथा डौग स्क्वायड को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने जहां घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, वहीं फौरेंसिक टीम ने जांच कर साक्ष्य जुटाए और कई जगह से फिंगरप्रिंट उठाए. डौग स्क्वायड ने खोजी कुतिया लूसी को मौका ए वारदात पर छोड़ा.

लूसी दोनों शवों को सूंघ कर छत से जीने के रास्ते घर के बाहर आई और भौकते हुए आगे बढ़ी फिर प्राथमिक पाठशाला के पास लगे हैंडपंप पर जा कर रुक गई.

उस ने हैंडपंप को कई बार सूंघा और भौंकने लगी. इस के बाद वह वापस लौट आई. टीम के सदस्यों ने अनुमान लगाया कि हत्यारों ने हत्या करने के बाद हाथपैरों पर लगे खून को संभवत: इसी हैंडपंप पर धोया होगा. घटनास्थल पर मृतक की बेटी वंदना मौजूद थी. उस की आंखों बहते आंसुओं का सैलाब थम नहीं रहा था. पुलिस अधिकारियों ने उस से पूछताछ की तो वंदना ने बताया कि उस के मांबाप का कातिल कोई और नहीं उस का प्रेमी लालमणि उर्फ लल्लू है. वह पड़ोसी गांव कसमऊ का रहने वाला है. वह बीती रात 8 बजे घर आया था. उस ने मातापिता पर शादी करने का दबाव डाला था, लेकिन उन्होंने साफ इंकार कर दिया था. इस से नाराज हो कर वह वापस चला गया था.

आधी रात के बाद लगभग 3 बजे वह घर से सटे पेड़ पर चढ़ कर छत पर आया और छत पर सो रहे मातापिता की हंसिया से वार कर हत्या कर दी और फरार हो गया. आप उसे जल्दी गिरफ्तार कर लीजिए वरना वह मुझे भी मार डालेगा.

‘‘लालमणि के अलावा कोई और भी उस के साथ था?’’ सीओ दलबीर सिंह ने वंदना से पूछा.

‘‘नहीं साहब, कोई दूसरा उस के साथ नहीं था. उस ने अकेले ही घटना को अंजाम दिया है.’’ वंदना बोली.

वंदना से पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल की काररवाई पूरी कर राममिलन और राजकुमारी के शव पोस्टमार्टम के लिए सुलतानपुर के जिला अस्पताल भिजवा दिए. इस के बाद वंदना की तहरीर पर थाना गोसाईगंज थाने में भादंवि की धारा 302 के तहत लालमणि उर्फ लल्लू के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया. चूंकि मामला डबल मर्डर का था और क्षेत्र में दहशत थी. इसलिए हत्यारोपी को पकड़ने के लिए एसपी शिवहरी मीणा ने एएसपी शिवराज की अगुवाई में एक पुलिस टीम का गठन किया. इस टीम में गोसाईगंज थानाप्रभारी एस.के. सिंह, सीओ दलबीर सिंह, एसआई जगदेव सिंह, रामकुमार, आरक्षी अनूप कुमार तथा सिपाही लाल को सम्मिलित किया गया. टीम के साथ सर्विलांस टीम को भी लगा दिया गया.

गठित पुलिस टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया, वंदना का बयान दर्ज किया तथा उस नीम के पेड़ का जायजा लिया, जिस पर चढ़ कर हत्यारा छत पर आया था. टीम ने वंदना के पड़ोसियों और उस के चाचा गिरिराज व चाची सरिता से भी पूछताछ की और उन के बयान दर्ज किए. लालमणि की तलाश इस के बाद देर रात पुलिस टीम ने कसमऊ गांव निवासी लालमणि के घर छापा मारा. लालमणि घर से फरार था, पुलिस टीम ने उस के पिता तुलसीराम से उस के बेटे के बारे में सख्ती से पूछताछ की. तुलसीराम ने टीम को उन ठिकानों की जानकारी दी जहां लालमणि छिप सकता था.

जानकारी हासिल करने के बाद पुलिस टीम ने उन ठिकानों पर ताबड़तोड़ छापे मारे लेकिन लालमणि हाथ नहीं लगा. उस ने अपना मोबाइल फोन भी बंद कर लिया था, जिस से सर्विलांस टीम उस की लोकेशन पता नहीं कर पा रही थी. पुलिस टीम ने खास मुखबिर भी लगाए पर हत्यारोपी का पता न चल सका. 2 जून, 2020 की शाम सर्विलांस टीम को लालमणि की लोकेशन गोपालगंज और कसमऊ गांव के बीच की मिली. लोकेशन ट्रेस होते ही पुलिस टीम ने उस का पीछा किया और रात 8 बजे उसे कसमऊ गांव के बाहर से धर दबोचा. वह अपने पिता तुलसीराम से रात के अंधेरे में मिलने जा रहा था. पुलिस टीम उसे पकड़ कर थाना गोसाईगंज ले आई.

थाने में जब लालमणि से दोहरे हत्याकांड के बारे में पूछा गया तो वह साफ मुकर गया. उस ने कहा कि वह तो वंदना से प्यार करता है, भला उस के मातापिता की हत्या कैसे कर सकता है. वंदना के मांबाप की हत्या उस के परिवार वालों ने की है. वे लोग उन की जमीन और घर हड़पना चाहते थे. उसे झूठा फंसाया जा रहा है. उस के इस झूठ पर थानाप्रभारी एस.के. सिंह को गुस्सा आ गया. उन्होंने उस से सख्ती के साथ पूछताछ की. इस के बाद वह टूट गया और दोहरी हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. यही नहीं उस ने खून से सने कपड़े भी बरामद करा दिए, जो उस ने अपने खेत के पास झाडि़यों में छिपा दिए थे. उस ने बताया कि वह वंदना से शादी करना चाहता था.

दोनों एक दूसरे से मोहब्बत करते थे. लेकिन वंदना के मांबाप राजी नहीं थे. इसलिए उस ने दोनों को मौत की नींद सुला दिया. चूंकि लालमणि ने दोहरी हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, उस ने खून सने कपड़े भी बरामद करा दिए थे. इस के अलावा पुलिस आला कत्ल हंसिया पहले ही बरामद कर चुकी थी. अत: पुलिस ने उसे हत्या के जुर्म में विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस जांच में प्यार के प्रतिशोध में हुई दोहरी हत्या की सनसनीखेज घटना प्रकाश में आई—

सुलतानपुर जिले का गांव सलारपुर, थाना गोसाईगंज क्षेत्र में आता है. राममिलन अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी राजकुमारी के अलावा 3 बेटियां गीता, अनीता और वंदना थीं. राममिलन के पास उपजाऊ खेती की जमीन तो नाम मात्र की थी, लेकिन वह पंपिंग मशीन का बेहतरीन कारीगर था. अपने हुनर से वह अपने परिवार का पालनपोषण करता था. मशीनरी का कारीगर होने के कारण राममिलन आसपास के दरजनों गांव में चर्चित था. लोग उस की इज्जत करते थे. राममिलन ने गीता और अनीता की शादी कर दी थी. लालमणि बना राममिलन का शागिर्द वंदना राममिलन की सब से छोटी बेटी थी. वह अपनी 2 बहनों से ज्यादा खूबसूरत थी, सादे कपड़ों और बिना मेकअप के भी उस की सुंदरता पहली ही नजर में मन में उतर जाती थी.

उस ने गांव के गांधी स्मारक माध्यमिक विद्यालय से हाईस्कूल पास किया था. इस के बाद उस की पढ़ाई पर विराम लग गया था. वह मां के घरेलू कामों में हाथ बंटाने लगी थी. एक रोज राममिलन पंपिंग इंजन ठीक  करने पड़ोसी गांव कसमऊ गया. वहां उस की मुलाकात युवा लालमणि उर्फ लल्लू से हुई. लालमणि कसमऊ गांव निवासी तुलसीराम का बेटा था. तुलसीराम राजमिस्त्री था. उस के 2बच्चों में लालमणि बड़ा था. इंटर पास लालमणि नौकरी की कोशिश में लगा था. राममिलन ने चंद घंटों में इंजन की मरम्मत कर उसे   चालू कर दिया और मालिक से 1000 रुपए मेहनताना ले लिया. राममिलन के इस हुनर को देख कर लालमणि प्रभावित हुआ और उसे अपने घर ले गया.

घर ला कर लालमणि ने राममिलन का खूब आदरसत्कार किया फिर बोला, ‘‘चाचा, आप हुनरमंद हैं. आप अपने इस हुनर को मुझे भी सिखा दें तो मेरी बेरोजगारी दूर हो जाएगी. मैं जीवन भर आप का एहसान मानूंगा.’

‘‘एहसान किस बात का, पर तुम्हें हुनर सीखने के लिए मेहनत और लगन से काम करना होगा, समय भी देना होगा. भूखप्यास से भी जूझना पड़ सकता है.’’ राममिलन ने उसे टटोला.

‘‘मुझे आप की हर शर्त मंजूर है, बस आप अपना हुनर सिखा दीजिए.’’ लालमणि बेताब हो कर बोला.

इस के बाद लालमणि, राममिलन के साथ जाने लगा. राममिलन उसे इंजन खोलना, बांधना सिखाने लगा. लालमणि में हुनर सीखने का जज्बा था. साल बीततेबीतते वह हुनर सीख गया. अब राममिलन बैठा रहता और लालमणि इंजन को सुधारने का काम करता. लालमणि की मेहनत व लगन से राममिलन खुश था. उसे जो भी मेहनताना मिलता, उस का आधा लालमणि को दे देता. लालमणि राममिलन के घर भी आनेजाने लगा था. घर आतेजाते ही उस की निगाह उस की खूबसूरत जवान बेटी वंदना पर पड़ी. वंदना पहली ही नजर में लालमणि के दिल में रचबस गई. वह उसे मन ही मन प्यार करने लगा. वंदना भी लालमणि से प्रभावित थी.

जब भी दोनों का आमनासामना होता तो एकदूसरे को देख कर मुसकरा देते थे. लेकिन अपने प्यार का इजहार करने की हिम्मत दोनों में से कोई नहीं जुटा पाता था. एक रोज वंदना घर की साफसफाई कर रही थी, तभी लालमणि दरवाजे पर आ कर खड़ा हो गया और टकटकी लगा कर वंदना को निहारने लगा. लालमणि को अपनी ओर निहारते देख वंदना के चेहरे पर मुसकान तैर गई, ‘‘आइए लल्लूजी आइए.’’ आंखें मिली तो दोनों के दिल के तार झनझना उठे.

‘‘चाचा नहीं दिखाई पड़ रहे, कहीं गए हैं क्या?’’ लालमणि ने वंदना से पूछा.

‘‘हां, पापा गोसाईगंज बाजार गए हैं. दोपहर बाद ही लौट पाएंगे.’’

‘अच्छा, तो मैं चलता हूं, चाचा आ जाएं तो बता देना लल्लू आया था.’

‘‘अरे, ऐसे कैसे चले जाओगे. चायनाश्ता कर लो, फिर चले जाना. नहीं तो पापा नाराज होंगे. कहेंगे उन का शागिर्द आया था और तुम ने चायपानी को भी नहीं पूछा.’’ कहते हुए वंदना ने आंगन में कुरसी डाल दी.

लालमणि कुरसी पर बैठ गया. वंदना उस समय साधारण कपड़ों में थी. लेकिन उस सादगी में भी वह गजब की खूबसूरत लग रही थी. लालमणि के मन में आया कि वह उस के सौंदर्य की जी भर कर प्रशंसा करे, मगर संकोच के झीने परदे ने उस के होंठों को हिलने से रोक लिया. हालांकि मनमस्तिष्क में जज्बातों की खुशनुमा हवाएं काफी देर तक हिलोरें लेती रहीं. दिल में एक आशंका यह भी आ रही कि कही वंदना ने किसी दूसरे को अपने दिल में न बसा रखा हो. ऐसा हुआ तो उस के अरमानों को ग्रहण लगने का खतरा हो सकता था. इश्क हर किसी से तो नहीं होता, बस एक बार और फिर आर या पार.

आंगन में कुरसी पर बैठे लालमणि के मस्तिष्क में सुखद विचारों का मंथन चल रहा था. उधर वंदना के दिलोदिमाग में एक अलग तरह की हलचल मची हुई थी. उन्हीं विचारों में खोई वंदना चायनाश्ता ले कर आ गई, ‘‘लीजिए गरमागरम चाय पीजिए.’’

उस रोज वंदना के हाथों बनाई चाय पीते समय लालमणि की आंखें लगातार उस के शबाबी जिस्म का जायजा लेती रहीं. दिन के उजाले में ही लालमणि की आंखें उस के हुस्न के दरिया में डूब जाने के सपने देखने लगी. इस मुलाकात के बाद वंदना की मोहब्बत की आस में उस पर ऐसी दीवानगी सवार हुई कि वह उसे अपनी आंखों का काजल बना बैठा. कुछ ही दिनों में आंखों से उठ कर वंदना ने लालमणि की रूह में आशियाना बना लिया. लालमणि जैसा ही हाल वंदना का भी था. रात में वह सोने के लिए बिस्तर पर लेटती तो नींद के भौरे पलकों पर आआ कर चले जाते. वे उड़ जाते तो लालमणि का मुसकराता चेहरा पलकों में आ कर छिप जाता. तब वह रोमांचित हो उठती और सुखद अनुभूति महसूस करती.

प्यार का इजहार आखिर जब लालमणि से नहीं रहा गया तो एक रोज उस ने प्यार का इजहार कर ही दिया, ‘‘वंदना, मैं तुम से बेहद प्यार करता हूं. तुम्हारे बिना अब मैं खुद को अधूरा समझता हूं. तुम मेरे दिल में रचबस गई हो. तुम्हारे अलावा मुझे कुछ सूझता ही नहीं.’’

वंदना कुछ क्षण मौन रही फिर बोली, ‘‘लल्लू, प्यार तो मैं भी तुम से करती हूं, पर हम दोनों के बीच ऊंचनीच, बिरादरी का मतभेद है. पता नहीं मेरे मांबाप इस रिश्ते को स्वीकार करेंगे भी या नहीं. मुझे इस बात का डर सता रहा है.’’

‘‘तुम डरो नहीं वंदना, हम चाचाचाची को मना लेंगे. मुझे उम्मीद है वह मेरी बात मान जाएंगे. क्योंकि चाचा राममिलन जानते हैं कि अब मैं कमाने लगा हूं. मुझ में नशाखोरी जैसा कोई ऐब भी नहीं है. सब से बड़ी बात हम दोनों हमउम्र हैं और दोनों एकदूसरे को प्यार करते हैं.’’ लालमणि बोला. इस के बाद वंदना और लालमणि का प्यार परवान चढ़ने लगा. उन के बीच की दूरियां कम होने लगीं. फिर उन का शारीरिक मिलन भी होने लगा. लालमणि ऐसे समय पर घर आता जब राममिलन घर के बाहर होता. वंदना मां की आंखों में धूल झोंक कर प्रेमी से मिलन कर लेती. उन्हें घर में मौका न मिलता तो खेतखलिहान, बागबगीचे में भूख मिटा लेते. इस मिलन का परिणाम यह हुआ कि गांव भर में दोनों के अवैध संबंधों की चर्चा होने लगी.

वंदना के बहकते कदमों की खबर जल्द ही उस के पिता राममिलन और मां राजकुमारी के कानों तक जा पहुंची. दोनों को जमीन घूमती हुई नजर आई. इज्जत ही गरीब की दौलत होती है और उसी दौलत को उन की बेटी नीलाम करने पर उतारू थी. यह बात उन्हें भला कैसे गवारा होती. लिहाजा दोनों ने बेटी डांटाफटकारा भी और समझाया भी, ‘‘वंदना, लल्लू छोटी जाति का है. उस से तुम्हारा रिश्ता हरगिज नहीं हो सकता. अगर तूने मनमानी की तो बिरादरी के लोग हमारा हुक्कापानी बंद कर देंगे. उस हालात में हमारा जीना दूभर हो जाएगा. इसलिए तू अपना रास्ता बदल ले.’’

मांबाप की नसीहत सौ फीसदी सच थी, इसलिए वंदना ने उन की बात मान ली और लालमणि से मिलनाजुलना बंद कर दिया. उस ने लल्लू को बता भी दिया कि उस के मांबाप उस के साथ शादी को राजी नहीं हैं. यह पता चलते ही लालमणि का गुस्सा फट पड़ा. वह राममिलन तथा राजकुमारी को अपने प्यार में बाधक मानने लगा. जब उस का गुस्सा शांत होता तो वह वंदना के घर पहुंच जाता और चाचाचाची के पैर छू कर उन्हें शादी के लिए मनाता. इतना ही नहीं, उन के न मानने पर अंजाम भुगतने की धमकी भी देता. उस ने वंदना पर भाग कर शादी करने का भी दबाव डाला, पर वंदना राजी नहीं हुई. इस से लालमणि वंदना से भी नाराज रहने लगा.

24 मई, 2020 की रात 8 बजे भी लालमणि, राममिलन के घर पहुंचा और उस पर तथा उस की पत्नी राजकुमारी पर उस से वंदना की शादी करने का दबाव डाला. लेकिन वह दोनों राजी नहीं हुए. इस पर लालमणि ने उन्हें धमकी दी कि इस का परिणाम अच्छा नहीं होगा. लालमणि की धमकी बनी काल धमकी देने के बाद लालमणि ने प्यार के प्रतिशोध में वंदना के मातापिता को शादी का रोड़ा मानते हुए ठिकाने लगाने का निश्चय कर लिया और घर चला गया. उस ने घर में पहले से रखी शराब पी फिर आधी रात के बाद घर से निकला और वंदना के घर पहुंच गया. राममिलन के घर का मुख्य दरवाजा बंद था. इस पर वह घर के पिछवाड़े पहुंचा और नीम के पेड़ पर चढ़ कर वंदना के घर की छत पर पहुंच गया.

वंदना नीचे कमरे में सोई थी. छत पर राममिलन व उस की पत्नी राजकुमारी गहरी नींद में सो रहे थे. जीने के रास्ते लालमणि किचन में चाकू लाने पहुंचा, पर उसे चाकू नहीं मिला, तभी उस की निगाह सामने रखी हंसिया पर पड़ी. वह हंसिया ले कर छत पर आया और सो रहे राममिलन की गरदन पर हंसिया से वार पर वार करने लगा. हंसिया के वार से राममिलन की गरदन कट गई और खून बहने लगा. कुछ देर तड़पने के बाद राममिलन की मौत हो गई. इस के बाद इसी तरह उस ने राजकुमारी पर हंसिया से वार किया तो वह चीख पड़ी. उस की चीख सुन कर वंदना छत पर आ गई, लेकिन तब तक वह राजकुमारी को भी मौत के घाट उतार चुका था.

वंदना को आया देख कर लालमणि ने हंसिया वहीं फेंक दिया और पेड़ के रास्ते छत से नीचे आ गया. उस ने प्राइमरी स्कूल के पास जा कर खून सने हाथपांव और मुंह धोया, फिर घर जा कर कपड़े बदले. इस के बाद उस ने खून सने कपड़े अपने खेत के पास झाडि़यों में छिपा दिए. सवेरा होने से पहले ही वह घर से फरार हो गया. इधर वंदना मांबाप की लाशें देख कर चेतनाशून्य हो गई. जब उसे होश आया तो उस ने चीखनाचिल्लाना शुरू किया. उस की चीख सुन कर पासपड़ोस के लोग आ गए. फिर तो सूरज की किरण बिखरते ही पूरे गांव में डबल मर्डर का शोर मच गया.

इसी बीच किसी व्यक्ति ने मोबाइल फोन से डबल मर्डर की सूचना गोसाईगंज पुलिस को दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी एस.के. सिंह घटनास्थल पर आ गए. लालमणि उर्फ लल्लू से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे 3 जून, 2020 को सुलतानपुर की जिला अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक लालमणि की जमानत स्वीकृत नहीं हुई थी. वंदना अपनी बड़ी बहन गीता के साथ उस की ससुराल अमेठी चली गई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित