बैंक मैनेजर ने ही कर दिए अकाउंट साफ – भाग 2

प्रकाश उन की बातों को ध्यान से सुनने लगा था. बैंक के बारे में निराशाजनक बातें सुन कर वह भीतर ही भीतर कुछ असहज महसूस करने लगा था. आखिर रहा नहीं गया, तब उस ने एक से पूछ लिया, “भाई साहब, यहां की सर्विस खराब क्यों हैï?”

“खराब! अजी बहुत खराब कहिए. स्टाफ ही नहीं है. 2-4 लोगों के सहारे बैंक चल रहा है. उन में एक तो चपरासी ही है.”

“हां, सही कह रहे हैं. क्लर्क ही मैनेजर और खजांची है. वे भी 11-11 बजे तक आते हैं और 3 बजते ही चले जाते हैं.”

यह सुनते ही प्रकाश तपाक से बोल पड़ा, “आज तो अभी तक मैनेजर आया ही नहीं है.”

“कौन कहता है नहीं आया है, वही तो बैठा है सब से किनारे वाली सीट पर.”

“वही, जिस के पास दूसरे कर्मचारी बारबार जा रहे हैं? लेकिन सामने वाले ने तो बताया कि आज मैनेजर हैड औफिस गया है. वहां कोई मीटिंग है.”

“अजी काहे की मीटिंग, यह तो उन की रोज की बात है.” प्रकाश के ठीक बगल में बैठा व्यक्ति खीझता हुआ बोला, “वैसे भी हमें उन की मीटिंग से क्या लेनादेना.”

“आप ठीक कह रहे हो. चलो, हम सभी उस से पूछते हैं. बैंक का काम कब शुरू होगा.” प्रकाश बोला.

“हां…हां, चलो.” यह कहते हुए तीनों उठ खड़े हो गए. वे सीधा सब से किनारे बैठे बैंककर्मी के पास जा पहुंचे. एक ने पूछा,

“मैनेजर साहब, बैंक का काम शुरू होने में और कितनी देर लगेगी?”

“देर लगेगी? काहे की देर! काम तो शुरू हो चुका है. उधर देखो. जाओ, पैसे जमा करवाओ.”

“लेकिन मुझे तो पैसे निकलवाने हैं,” प्रकाश बीच में ही बोल पड़ा.

“पैसे निकलवाने हैं? छोटी राशि होगी तो वह निकल जाएगी, अगर बड़ी हुई तो उस के लिए 2 दिन बाद आना होगा. किंतु निकासी का चैक आज ही जमा कर देना होगा.”

“आज क्यों नहीं निकलेगी?” प्रकाश ने सवाल किया.

“क्योंकि बड़ी रकम के लिए हमें पहले हैड औफिस को सूचित करनी होती है. वहां से परमिशन मिलने पर ही उस की निकासी होती है. यह कोई सरकारी बैंक तो है नहीं कि जब चाहो, जितना चाहो निकाल लो. हमारे पास पैसे रखने और लाने ले जाने का कोई इंतजाम भी नहीं है. हम तो आप के जमा पैसे का ही लेनदेन करते हैं.” मैनेजर की तरह बैंककर्मी ने प्रकाश को समझाया.

“लेकिन साहब, 2 दिन बाद रविवार है.”

“सोमवार को आ जाना,” बैंककर्मी बोला.

“मैनेजर साहब कब आएंगे?” प्रकाश ने पूछा.

“आज नहीं आएंगे.”

“आप मैनेजर नहीं हो?” प्रकाश के साथ खड़े व्यक्ति ने पूछा.

“नहीं. हमारे हेड एक और हैं. तुम्हारा क्या काम है?” बैंककर्मी बोला.

“ मुझे भी पैसे निकलवाने हैं.”

“5 हजार तक है तो चैक उस काउंटर पर जमा कर दो. 5 मिनट में पेमेंट हो जाएगा. उस से बड़ी है तो तुम भी सोमवार को आना.” बैंककर्मी बोला.

“लेकिन मुझे तो 25 हजार निकलवाने हैं.” ग्राहक बोला.

“कोई बात नहीं उस की चैक मुझे दे दो.”

“आप को दे दूं? इधरउधर हो गया तो?” ग्राहक ने अविश्वास जताया.

“इधरउधर कैसे हो जाएगा? बगैर तुम्हारे साइन के कोई और कैसे ले जाएगा?”

“मैं तो अंगूठा लगाता हूं.” ग्राहक बोला.

“कोई बात नहीं, उस पर गवाह का साइन चाहिए होगा. पेमेंट के दिन उसे भी लाना होगा.”

“मुझे भी अम्मा का अंगूठा ही लगवाना है.” प्रकाश बोला.

“कोई बात नहीं. तुम चैक लाए हो?”

“हां, यह लीजिए.” कहते हुए उस ने 2 चैक बैंककर्मी के सामने बढ़ा दिए.

“अरे, इस में तो बहुत बड़ी रकम है. एक बार में एक चैक का ही पेमेंट होगा. दूसरे चैक में पीछे अंगूठे का निशान मेरे सामने ही लगाना होगा. उस के साथ गवाह का साइन जरूरी है.”

“लेकिन अम्मा तो चली गईं,” प्रकाश बोला.

“कोई बात नहीं, साइन वाला रख लेता हूं और दूसरा कल जमा करवा देना.” बैंककर्मी के कहने पर प्रकाश ने वही किया जो उस ने बताया और फिर प्रकाश भी उस रोज वापस घर लौट आया.

भुगतान करने में बैंककर्मी करने लगे आनाकानी

अगले रोज अम्मा को ले कर दोबारा बैंक गया. बैंककर्मी के कहे मुताबिक उस के सामने ही अम्मा का अंगूठा लगवा कर चैक जमा कर दिया. बैंककर्मी ने उस चैक पेमेंट के बारे में पूरे 4 दिन बाद की तारीख बाताई. प्रकाश अम्मा के साथ घर लौट आया. वह 2 लाख रुपए निकासी के लिए जमा चैक का पेमेंट के लिए 2 दिन बाद समय पर बैंक पहुंच गया. सीधा उसी बैंककर्मी के पास जा पहुंचा, जिसे चैक दिया था.

उसे देखते ही वह बोला, “इतनी सुबह आ गए. तुम्हें दोपहर बाद तक ही पेमेंट की उम्मीद है.”

“दोपहर तक? इतनी देर क्यों?”

“अरे भाई, कल रविवार था. आज दिन में हैडऔफिस के खजाने से पैसा आएगा. उस में वक्त लगेगा. तब तक दोपहर तो हो ही जाएगी. इसलिए तुम्हें कोई और काम है तो निपटा लो.” बैंककर्मी ने समझाया.

“कोई बात नहीं, मैं यहीं बैठता हूं.” प्रकाश बोला.

“नहीं, बैंक में किसी को 10-15 मिनट से अधिक बैठने की परमिशन नहीं है.”

“ठीक है साहबजी, मैं डेढ़ बजे आ जाऊंगा.” प्रकाश बोला.

प्रकाश दोबारा ठीक डेढ़ बजे बैंक पहुंच गया. वह सीधा उसी बैंककर्मी के पास गया, जिसे उस ने चेक दिए थे. बैंककर्मी उसे देखते ही बोला, “लगता है तुम्हारा पेमेंट आज नहीं हो पाएगा. यहां सर्वर ही नहीं चल रहा है.”

“कब तक होगा?” प्रकाश ने जिज्ञासा से पूछा.

“कोई भरोसा नहीं, सर्वर चल पड़ा तो तुरंत, वरना नहीं. वैसे एक घंटा हो गया है सर्वर के ब्रेक हुए. कभी आ रहा है कभी जा रहा है. बहुत स्लो चल रहा है. किसी का अकाउंट ही नहीं खुल पर रहा है.” बैंककर्मी समझाने लगा.

“मैं क्या करूं?” प्रकाश ने पूछा.

“तुम क्या कर सकते हो, मेरी तरह सर्वर चलने का इंतजार करो.”

प्रकाश बेंच पर जा कर बैठ गया. बैंक में इक्कादुक्का ग्राहक ही नजर आ रहे थे. उस ने देखा बैंक का मैनेजर अपने केबिन में बैठा है. मोबाइल फोन पर बातें कर रहा है. उस ने सोचा क्यों न मैनेजर से मिल लिया जाए. वह उठा और मैनेजर के केबिन तक जाने लगा, लेकिन उसे चपरासी ने रोक दिया. बोला, “देखते नहीं हो, साहब फोन पर बात कर रहे हैं. क्या काम है?”

प्रकाश हकलाता हुआ बोला, “प..प… पेमेंट लेना है.”

“तो वहां जाओ, पेमेंट वहां मिलेगा.” चपरासी डपटता हुआ बोला.

प्रकाश जा कर बेंच पर बैठ गया. थोड़ी देर बाद वह बैंककर्मी के पास गया. उस ने वही पहले वाली बात दुहराई और सीट से उठ कर मैनेजर के केबिन में चला गया. प्रकाश वहीं खड़ा रहा. कुछ समय में ही बेंच पर आ कर बैठ गया. करीब एक घंटे से अधिक समय हो गया था. तब तक बैंक के लंच का समय हो गया था. प्रकाश उस रोज बैंक में करीब 3 बजे तक रुका रहा. उस के सामने ही धीरेधीरे कर सभी बैंककर्मी जाने लगे. सिर्फ मैनेजर और चपरासी रुका था. प्रकाश भी अपने घर लौट आया.

अगले रोज प्रकाश अपने भाई कमलेश के साथ बैंक गया. उस वक्त दिन के 12 बज चुके थे. बैंक में पूरी गहमागहमी थी. उस काउंटर पर भीड़ भी थी, जहां उस ने चैक जमा करवाए थे, लेकिन वहां कोई और क्लर्क बैठा था. प्रकाश थोड़ा असहज हो गया. दुविधा में आ गया, क्या करे, क्या न करे! फिर सोचा जब बैंक आया है तो क्लर्क से पूछना तो पड़ेगा ही.

कैशियर की बात पर प्रकाश हुआ हैरान

कुल 8 ग्राहकों के बाद प्रकाश का नंबर आया. उस ने अपने जमा चैक के बारे में पूछा, जो बीते शुक्रवार को दिए थे. क्लर्क ने उस के बारे में हामी भरी और नीचे की दराज से उस का चैक निकाल लिया. अपना चैक देख कर प्रकाश की आंखों में चमक आ गई. उस ने महसूस किया कि उस का पेमेंट आज जरूर हो जाएगा.

                                                                                                                                              क्रमशः

बैंक मैनेजर ने ही कर दिए अकाउंट साफ – भाग 1

मार्च का महीना बीतने वाला था. होली का त्यौहार खत्म हो चुका था. हिंदू रीतिरिवाज और परंपरा के मुताबिक शुभ कार्य करने के दिन आ चुके थे. इसे देखते हुए मध्य प्रदेश के जिला नर्मदापुरम के पोलगांव की रहने वाली राजकुंवर बाई ने अपने बेटे प्रकाश राजपूत और कमलेश राजपूत को बुलाया.

प्रकाश पहले आया और पूछा, “जी अम्मा, आप ने बुलाया? कोई विशेष बात है तो बोलो, मैं शहर जा रहा हूं.”

“तू शहर जा रहा है, अच्छी बात है, लेकिन मैं ने दूसरे काम के लिए बुलाया है. कमलेश को भी आवाज लगा दे.” राजकुंवर बोली.

“जी अम्मा,” प्रकाश बोला और ‘कमलेश…कमलेश’ की 2-3 आवाज लगा दी.

कमलेश भी आ गया. आते ही पूछा, “जी अम्मा, आप ने बुलाया है?”

“हां बेटा, मैं ने आज तुम दोनों को एक खास काम के लिए बुलाया है. मैं ने शिवपुर वाले जमीन के लिए पंडितजी से मुहूर्त निकलवा दिया है. यूं ही बेकार में पड़ी है. वहां तुम दोनों मिल कर एक अच्छा मकान बनवाने की तैयारी कर लो, तुम दोनों का परिवार भी बड़ा बन चुका है. बच्चे बड़े हो रहे हैं, वहां उन की पढ़ाई भी अच्छे से होगी.” रामकुंवर बाई ने कहा.

“लेकिन अम्मा उस जमीन पर मकान बनवाने में बहुत पैसा लगेगा, सडक़ से भी नीचे है. गड्ढा भरवाने और ऊंचा बनाने में ही बहुत पैसा खर्च हो जाएगा,” कमलेश दुविधा भरे लहजे में बोला.

“अरे कमलेश, तू हमेशा हां-ना में रहता है. उस में कितना पैसा खर्च हो जाएगा. मकान बनाने लायक तो तुम दोनों ने अपनेअपने पैसे बैंक में जमा कर ही रखे हैं. मेरे खाते में भी पड़े हैं. उस में से भी कुछ निकाल लेना.” रामकुंवर समझाती हुई बोलीं, “प्रकाश, तू कमलेश को समझा और मकान बनाने का खर्च निकाल, नक्शा बनवाङ”

प्रकाश ‘जी अम्मा’ बोल कर कमलेश से जमीन की स्थिति, आसपास के माहौल, सुविधाएं और चौहद्ïदी के बारे में बातें करने लगा. काफी समय तक दोनों भाई बनाए जाने वाले नए घर के बारे में बातें करते रहे. उस पर आने वाले खर्च का भी हिसाब लगाया. मोटामोटी आने वाला खर्च 25 लाख से ऊपर का बैठा. इतने में एक 4 कमरे, रसोई, स्टोररूम, पूजा घर आदि के साथ एक बरामदा, 2 टायलेट आदि बन सकता था.

मकान बनाने की बनाई योजना

यदि वे 15 लाख और खर्च कर लेते तो एक मंजिल और बनाई जा सकती थी. इस पर प्रशांत ने निर्णय किया कि दोनों भाई कुल खर्च का आधाआधा लगाएंगे. इसी बीच अम्मा बोलीं कि जमीन के गड्ढे की भराई का खर्च उस के पैसे से हो जाएगा. अगर जरूरत पड़ी तो ऊपर की मंजिल के लिए भी उस का पैसा इस्तेमाल किया जा सकता है.

उन्होंने मकान के लिए एक रूपरेखा तैयार कर ली थी. उसे बनाए जाने की शुरुआत के लिए भूमिपूजन की तारीख की जिम्मेदारी अम्मा ने ले ली. अम्मा ने दोनों बेटों को किसी मकान बनाने वाले ठेकेदार से बात करने के लिए कहा और उन्हें उसी वक्त से इस काम में लग जाने के निर्देश दिए.

सब कुछ समय से हो रहा था. एक हफ्ते के भीतर नए मकान बनाने की योजना बन गई. अब कुछ पैसे बैंक से निकाल कर ठेकेदार को एडवांस देने और जमीन में मिट्टी भराई का काम शुरू करना था. अप्रैल माह के दूसरे सप्ताह में प्रकाश और कमलेश अपनी मां की बैंक पासबुक और चैकबुक ले कर बैंक गए. तीनों का खाता शिवपुर की जिला सहकारी केंद्रीय बैंक मर्यादित में था.

प्रकाश और कमलेश खेतीबाड़ी करते थे. उन्होंने खेती से हुई आमदनी का पैसा बैंक में जमा करवा रखा था. छोटेमोटे खर्च के लिए बीचबीच में पैसे की निकासी करते रहते थे, लेकिन राजकुंवर के खाते से पैसे कब निकाले गए, इस का पता शायद ही दोनों भाइयों को हो. तीनों समय रहते बैंक पहुंच गए चुके थे.

सहकारी बैंक होने के कारण वहां न तो काफी बैंककर्मी थे और न ही ग्राहक. दिन के पौने 11 होने को आए थे, लेकिन बैंक के मैनेजर नहीं आए थे, जबकि वहां स्टाफ के 3 लोग आ गए थे. उन में एक चपरासी ही था. पूछने पर मालूम हुआ कि मैनेजर साहब आज थोड़ा लेट आएंगे. हैड औफिस गए हैं. वहां कोई मीटिंग है. उन के आने के बाद ही पैसे निकासी का काम हो सकता है, लेकिन पैसे जमा का काम किया जा सकता है. यह जान कर राजकुंवर उदास हो गईं.

उन्हें महसूस हुआ कि आज उन का काम नहीं हो पाएगा. कमलेश ने चिंतित मां को देख कर उन्हें आश्वस्त किया और कहा कि अगर वह यहां अधिक देर नहीं बैठ सकती हैं तो उस के साथ घर चलें. यहां उस के बड़े भाई सब कुछ संभाल लेंगे. राजकुंवर ने एक बार फिर बैंक के एक कर्मचारी से पूछा कि मैनेजर साहब कब तक आंएगे?

इस पर उस ने बताया कि वह लंच के बाद आ सकते हैं. वैसे कुछ कहा नहीं जा सकता है. अगर उन की मीटिंग लंबी चली तो नहीं भी आ सकते हैं. यह सुन कर राजकुंवर अपने छोटे बेटे के साथ वापस घर लौट आईं. प्रकाश वहीं रुका रहा.

प्रकाश राजपूत पहुंचा बैंक

प्रकाश बैंक में ही स्टील की बेंच पर बैठ गया था. बैंक की गतिविधियों को देखने लगा था. उस ने देखा कि बैंक का एक कर्मचारी बाकी कर्मचारियों से ज्यादा एक्टिव था. सभी उस से ही हर बात पर संपर्क करते थे. इस बीच उस की तरह ही कुछ और ग्राहक आ गए. 2 लोग प्रकाश की बगल में बैठ गए. उन में एक कुनमुनाता हुआ बोलने लगा, “बहुत ही बेकार का बैंक है. मुझ से गलती हो गई जो इस में खाता खुलवाया…”

इस पर दूसरा बोल पड़ा, “हां…हां, तुम सही कह रहे हो. यहां आधा प्रतिशत अधिक ब्याज के लालच में खाता खुलवा लेते हैं और बाद में पछताते हैं. इन की सर्विस अच्छी नहीं है. अपना ही पैसा निकालने के लिए चक्कर लगाने पड़ते हैं. 5 हजार से अधिक की राशि तो बगैर 8-10 चक्करों के देता ही नहीं है.”

                                                                                                                                              क्रमशः

बेलगाम दिल का हश्र

11जुलाई, 2014 को सुबह साढ़े 10 बजे इंदौर के स्काई होटल के मालिक दर्शन पारिख ने अपने कर्मचारी को होटल के कमरा नंबर 202 में ठहरे व्यक्ति से 500 रुपए लाने को कहा. एक दिन पहले इस कमरे में रोहित सिंह अपनी छोटी बहन के साथ ठहरा था. कमरा बुक कराते समय उस ने कहा था कि वह कमरे में पहुंच कर फ्रैश होने के बाद पैसे दे देगा.

पैसे लेने के लिए कर्मचारी कमरा नंबर 202 पर पहुंचा तो उसे कमरे का दरवाजा अंदर से बंद मिला. उस ने कालबेल का बटन दबाया. बटन दबाते ही कमरे के अंदर लगी घंटी के बजने की आवाज उस के कानों तक आई तो वह दरवाजा खुलने का इंतजार करने लगा.

कुछ देर बाद तक दरवाजा नहीं खुला तो उस ने दोबारा घंटी बजाई. इस बार भी दरवाजा नहीं खुला और न ही अंदर से कोई आहट सुनाई नहीं पड़ी. फिर उस ने दरवाजा थपथपाया. इस के बाद भी किसी ने दरवाजा नहीं खोला तो वह कर्मचारी अपने मालिक दर्शन पारिख के पास पहुंचा और उन्हें दरवाजा न खोलने की बात बता दी. उस ने यह भी बता दिया कि कई बार घंटी बजाने के बाद भी कमरे में कोई हलचल नहीं हुई.

उस की बात सुन कर दर्शन पारिख खुद रूम नंबर 202 पर पहुंच गया और उस ने भी कई बार दरवाजा थपथपाया. उसे भी कमरे से कोई हलचल सुनाई नहीं दी. उसे शंका हुई कि कहीं मामला गड़बड़ तो नहीं है. उस ने उसी समय थाना खजराना फोन कर के इस बात की सूचना दे दी.

ऐसी कंडीशन में ज्यादातर कमरे के अंदर लाश मिलने की संभावना होती है. इसलिए सूचना मिलते ही थानाप्रभारी सी.बी. सिंह एसआई पी.सी. डाबर और 2 सिपाहियों को ले कर बाईपास रोड पर बने नवनिर्मित होटल स्काई पहुंच गए. उन्होंने भी रूम नंबर 202 के दरवाजे को जोरजोर से खटखटाया. जब दरवाजा नहीं खुला तो पुलिस ने दर्शन पारिख से दूसरी चाबी ले कर दरवाजा खोला. अंदर फर्श पर एक लड़का और लड़की आलिंगनबद्ध मिले.

उन की सांसों को चैक किया तो लगा कि उन की सांसें टूट चुकी हैं. दर्शन पारिख ने उन दोनों को पहचानते हुए कहा कि कल जब यह लड़का आया था तो इस ने इस लड़की को अपनी बहन बताया था और इस समय ये इस हालत में पड़े हैं. कहीं उन की सांसें बहुत धीरेधीरे न चल रही हों, यह सोच कर पुलिस ने उन्हें अस्पताल भेजा. लेकिन अस्पताल के डाक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया.

इस के बाद पुलिस ने होटल के उस कमरे का बारीकी से निरीक्षण किया. मौके पर फोरेंसिक अधिकारी डा. सुधीर शर्मा को भी बुला लिया गया. कमरे में मिठाई का एक डिब्बा, केक, जलेबी आदि खुले पड़े थे.  जिस जगह लाशें पड़ी थीं, वहीं पास में एक पुडि़या में पाउडर रखा था. उसे देख कर डा. सुधीर शर्मा ने बताया कि यह हाई ब्रोस्वोनिक नाम का जहरीला पदार्थ हो सकता है. इन्होंने मिठाई वगैरह में इस पाउडर को मिला कर खाया होगा. जिस की वजह से इन की मौत हो गई.

एसआई पी.सी. डाबर ने सामान की तलाशी ली तो उस में जो कागजात मिले, उन से पता चला कि उन के नाम रोहित सिंह और मीनाक्षी हैं. वहीं 20 पेज का एक सुसाइड नोट भी मिला. उस से पता चला कि वे मौसेरे भाईबहन के अलावा प्रेमी युगल भी थे. पुलिस ने कमरे में मिले सुबूत कब्जे में ले लिए.

कागजात की जांच से पता चला कि लड़की का नाम मीनाक्षी था. वह खंडवा जिले के नेहरू चौक सुरगांव के रहने वाले महेंद्र सिंह की बेटी थी, जबकि लड़के का नाम रोहित था. वह हरदा के चरवा बावडि़या गांव के रहने वाले सोहन सिंह का बेटा था. पुलिस ने दोनों के घरवालों को खबर कर दी तो वे रोतेबिलखते हुए अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने लाशों की पहचान रोहित और मीनाक्षी के रूप में कर दी. उसी दिन पोस्टमार्टम के बाद दोनों लाशें उन के परिजनों को सौंप दी गईं.

दोनों के घर वालों से की गई बातचीत और सुसाइड नोट के बाद पुलिस जान गई कि रोहित और मीनाक्षी के बीच प्रेमसंबंध थे. उन के प्रेमप्रसंग से ले कर सुसाइड करने तक की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

मध्य प्रदेश के हरदा शहर के चरवा बावडि़या गांव के रहने वाले सोहन सिंह के पास खेती की अच्छीखासी जमीन थी. उन के परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटी और 2 बेटे थे. रोहित सिंह उन का दूसरे नंबर का बेटा था. बेटी को पढ़ानेलिखाने के बाद वह उस की शादी कर चुके थे. रोहित इंटरमीडिएट पास कर चुका था. उस की तमन्ना कृषि वैज्ञानिक बनने की थी, इसलिए पिता ने भी उस से कह दिया था कि उस की पढ़ाई में वह किसी तरह की रुकावट नहीं आने देंगे.

करीब 3 साल पहले की बात है. रोहित अपने परिजनों के साथ इंदौर से करीब 30 किलोमीटर दूर अपनी मौसेरी बहन की शादी में गया था. उस शादी में रोहित की दूसरी मौसी की बेटी मीनाक्षी भी अपने घर वालों के साथ आई हुई थी.

मीनाक्षी बेहद खूबसूरत और हंसमुख थी. वह जीवन के 22 बसंत पार कर चुकी थी. मजबूत कदकाठी का 17 वर्षीय रोहित भी बहुत हैंडसम था. पूरी शादी में मीनाक्षी रोहित के साथ रही थी, दोनों ने शादी में काफी मस्ती भी की. मीनाक्षी की रोहित के प्रति दिलचस्पी बढ़ती जा रही थी. चूंकि वे मौसेरे भाईबहन थे, इसलिए दोनों के साथसाथ रहने पर किसी को कोई शक वगैरह नहीं हुआ.

शादी के बाद दोनों अपनेअपने घर चले गए. घर जाने के बाद मीनाक्षी के मन में उथलपुथल होती रही. शादी में रोहित के साथ की गई मस्ती के वह पल उस के दिमाग में घूम रहे थे. समझदार होने के बाद इतने ज्यादा समय तक मोहित उस के साथ पहली बार रहा था. मौसेरा भाई होने के बावजूद मीनाक्षी का उस की तरफ झुकाव हो गया. दोनों के पास एकदूसरे के फोन नंबर थे. समय मिलने पर वे फोन पर बात करते और एसएमएस भेजते रहते.

मीनाक्षी उसे अपने प्रेमी के रूप में देखने लगी. एक दिन उस ने फोन पर ही रोहित से अपने प्यार का इजहार कर दिया. रोहित भी जवानी की हवा में उड़े जा रहा था. उस ने उस का प्रस्ताव मंजूर कर लिया. उस समय वे यह भूल गए कि आपस में मौसेरे भाईबहन हैं. फिर क्या था, दोनों के बीच फोन पर ही प्यार भरी बातें होने लगीं. बातचीत, मेलमुलाकातों के साथ करीब 3 साल तक प्यार का सिलसिला चलता रहा. इस दौरान उन के बीच की दूरियां भी मिट चुकी थीं.

कहते हैं कि प्यार को चाहे कितना भी छिपाने की कोशिश की जाए, वह छिप नहीं पाता, लेकिन मीनाक्षी और रोहित के संबंधों पर घर वालों को जल्दी से इसलिए शक नहीं हुआ था, क्योंकि वे आपस में मौसेरे भाईबहन थे.

भाईबहन का रिश्ता होते हुए भी घर वालों ने जब उन्हें सीमाओं को लांघते देखा तो उन्हें शक हो गया. फिर क्या था, उन के संबंधों को ले कर घर में चर्चा होने लगी. पहले तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ. लेकिन उन की हरकतें ऐसी थीं कि संदेह पैदा हो रहा था. इस के बावजूद घर वाले लापरवाह बने रहे.

उधर मीनाक्षी और रोहित का इश्क परवान चढ़ता जा रहा था. अब मीनाक्षी 25 साल की हो चुकी थी और रोहित 20 साल का. वह रोहित से 5 साल बड़ी थी. इस के बावजूद दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया था.   दोनों ने शादी का फैसला तो कर लिया, लेकिन उन के सामने समस्या यह थी कि अपनी बात घर वालों से कहें कैसे.

सच्चे प्रेमियों को अपने प्यार के आगे सभी चीजें बौनी नजर आती हैं. वे अपना मुकाम हासिल करने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं. हालांकि उन्हें इस बात की उम्मीद नहीं थी कि उन के घर वाले उन की बात मानेंगे, लेकिन वे यह बात कह कर घर वालों को यह बता देना चाहते थे कि वे एकदूसरे को प्यार करते हैं. मौका पा कर रोहित और मीनाक्षी ने अपनेअपने घर वालों से साफसाफ कह दिया कि वे एकदूसरे को प्यार करते हैं और अब शादी करना चाहते हैं.

यह सुन कर घर वाले सन्न रह गए कि ये आपस में सगे मौसेरे भाईबहन हैं और किस तरह की बात कर रहे हैं? ऐसा होना असंभव था. घर वालों ने उन्हें बहुत लताड़ा और समझाया भी कि सगेसंबंधियों में ऐसा नहीं होता. मोहल्ले वाले और रिश्तेदार जिंदगी भर ताने देते रहेंगे. लेकिन रोहित और मीनाक्षी ने उन की एक न सुनी. उन्होंने आपस में मिलनाजुलना नहीं छोड़ा. घर वालों को जब लगा कि ये ऐसे नहीं मानेंगे तो उन्होंने उन पर सख्ती करनी शुरू कर दी.

मीनाक्षी और रोहित बालिग थे. उन्होंने अपनी गृहस्थी बसाने की योजना पहले ही बना ली थी. फिर योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए 15 जून, 2014 को वे अपने घरों से भाग कर इंदौर पहुंच गए. घर से भागने से पहले रोहित अपने दादा के पैसे चुरा कर लाया था तो वहीं मीनाक्षी भी घर से पैसे व जरूरी कपड़े आदि बैग में रख कर लाई थी. वे इंदौर आए और 3 दिनों तक एक होटल में रहे. इस के बाद उन्होंने राज मोहल्ला में एक मकान किराए पर ले लिया.

मीनाक्षी के अचानक गायब होने पर घर वाले परेशान हो गए. उन्होंने सब से पहले उस का फोन मिलाया. वह बंद आ रहा था. फिर उन्होंने अपने खास लोगों को फोन कर के उस के बारे में पता किया. मामला जवान बेटी के गायब होने का था, इसलिए बदनामी को ध्यान में रखते हुए वे अपने स्तर से ही उसे ढूंढते रहे. बाद में जब उन्हें पता चला कि रोहित भी घर पर नहीं है तो उन्हें बात समझते देर नहीं लगी. फिर मीनाक्षी के पिता महेंद्र सिंह ने बेटी के लापता होने की थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी.

घर से भाग कर गृहस्थी चलाना कोई आसान काम नहीं होता. खास कर तब जब आमदनी का कोई स्रोत न हो. वे दोनों घर से जो पैसे लाए थे, वे धीरेधीरे खर्च हो चुके थे. अब पैसे कहां से आएं, यह उन की समझ में नहीं आ रहा था. एक दिन रोहित ने मीनाक्षी से कहा, ‘‘मैं घर जा कर किसी तरह पैसा लाता हूं. वहां से लौटने के बाद हमें गुजरबसर के लिए कुछ करना होगा.’’

मीनाक्षी को इंदौर में ही छोड़ कर रोहित अपने गांव चला गया. वह खंडवा रेलवे स्टेशन पर पहुंचा था कि तभी इत्तफाक से मीनाक्षी के भाई ने उसे देख लिया. उस ने उसे वहीं पर पकड़ लिया. वहां भीड़ जमा हो गई. भीड़ में उस के कुछ परिचित भी थे. उन्होंने रोहित से मीनाक्षी के बारे में पूछा, लेकिन रोहित ने कुछ नहीं बताया तो वह अपने परिचितों के सहयोग से उसे पकड़ कर थाने ले गया.

पुलिस ने रोहित से मीनाक्षी के बारे में पूछा तो उस ने बता दिया कि वह इंदौर में है. पुलिस उसे ले कर इंदौर के राज मोहल्ले में पहुंची. इस से पहले कि वह उस के कमरे पर पहुंच पाती, रोहित पुलिस को झांसा दे कर रफूचक्कर हो गया. पुलिस से छूट कर वह तुरंत अपने कमरे पर पहुंचा और वहां से मीनाक्षी को ले कर खिसक गया. कमरा छोड़ कर वे इंदौर के रेडिसन चौराहे के पास स्थित स्काई होटल पहुंचे.

उन के पास अब ज्यादा पैसे नहीं थे. होटल मालिक दर्शन पारिख से मीनाक्षी ने रोहित को अपना छोटा भाई बताया था. दर्शन पारिख ने जब कमरे का एडवांस किराया 500 रुपए जमा करने को कहा तो उस ने कह दिया कि पैसा हम सुबह दे देंगे, अभी जरा थोड़ा आराम कर लें.

कमरे में सामान रखने के बाद वे खाना खाने बाहर गए. वापस आते समय कुछ मिठाइयां आदि ले कर आए और सुबह होटल के कमरे में उन की लाशें मिलीं. अब संभावना यह जताई जा रही है कि उन्होंने मिठाइयों में वही जहरीला पदार्थ मिला कर खाया होगा, जो घटनास्थल पर मिला था.

कमरे से 20 पेज का जो सुसाइड नोट मिला है, उस में दोनों ने 5-5 पेज अपनेअपने घर वालों को लिखे हैं. रोहित ने लिखा है कि पापा मेरी आखिरी इच्छा है कि आप शराब पीना छोड़ दें. गांव में जा कर दादादादी के साथ रहें. मम्मी के लिए उस ने लिखा कि आप पापा, दादादादी, भैया का खयाल रखना. तुम मुझ से सब से ज्यादा प्यार करती हो, अब मैं यहां से जा रहा हूं.

मीनाक्षी ने भी अपने पिता को लिखा था कि पापा, मैं जो कुछ कह रही हूं, जो कुछ किया है, वह शायद किसी को अच्छा नहीं लगेगा कि मौसी के लड़के से प्यार करती हूं. आप के और रोहित के साथ रहना चाहती थी, लेकिन आप ने अनुमति नहीं दी, इसीलिए मैं ने यह कदम उठाया है. आप अपनी सेहत का ख्याल रखना और कमर दर्द की दवा बराबर लेते रहना. उस ने मां के लिए लिखा था कि आप पापा से झगड़ा मत करना.

उन्होंने सामूहिक सुसाइड नोट में लिखा था कि हमारे पत्र के साथ हमारे फोटो भी हैं. आत्महत्या का समाचार हमारे फोटो के साथ अखबारों में छापा जाए.

रोहित और मीनाक्षी की मौत के बाद उन के घर वाले सकते में हैं. सुसाइड नोट के बाद यह बात साबित हो गई थी कि वे दोनों एकदूसरे से प्यार करते थे. यह बात जगजाहिर होने के बाद दोनों के घर वालों का समाज के सामने सिर झुक गया. क्योंकि रोहित और मीनाक्षी के बीच जो संबंध थे, उसे हमारा समाज मान्यता नहीं देता.

बहरहाल, रोहित के पिता सोहन सिंह का बेटे को कृषि वैज्ञानिक बनाने का सपना धराशाई तो हो ही गया, साथ ही बेटा भी हमेशा के लिए उन से जुदा हो गया. इस के अलावा महेंद्र सिंह को भी इस बात का पछतावा हो रहा है कि जैसे ही उन्होंने मीनाक्षी और रोहित के बीच चक्कर चलने की बात सुनी थी, उसी दौरान वह उस की शादी कहीं और कर देते तो शायद यह दुखद समाचार सुनने को नहीं मिलता. द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है.

कामुक पति की पांचवीं पत्नी का खेल

मध्य प्रदेश के जिला सिंगरौली के गांव बदरघटा के रहने वाले वीरेंद्र गुर्जर की पांचवीं पत्नी कंचन गुर्जर किचन में थी. रात का खाना बना रही थी. सब्जी गैस के एक चूल्हे पर चढ़ी हुई थी. वह खड़े हो कर चूल्हे के पास में ही आटा गूंथ रही थी. थकी हुई महसूस कर रही थी. हलकाहलका पेट में दर्द भी हो रहा था. आटा गूंथते हुए बीचबीच में बाएं हाथ से पेट पकड़ लेती थी.

दूसरी तरफ घर के एक कमरे में उस का पति वीरेंद्र गुर्जर शराब के पैग बना चुका था. उस ने कंचन से उबले अंडे को फ्राई करने की फरमाइश की थी. बाजार से खरीद कर लाए आधा दरजन उबले अंडे पौलीथिन में रखे थे. रोटी पकाने से पहले उन्हें फ्राई भी करना था. हालांकि भूखे बच्चे सब्जी पकने का इंतजार कर रहे थे, कंचन की भी कोशिश थी कि सब्जी जल्द पक जाए और वह अंडे फ्राई करने से पहले कुछ रोटियां सेंक ले.

बच्चों में घुलमिल गई कंचन

वह नहीं चाहती थी बच्चे उसे सौतेली मां की नजर से देखें. वह कुछ माह पहले ही उस घर में ब्याह कर आई थी. बच्चे वीरेंद्र की पहली पत्नियों के थे, जो छोड़ कर अपने प्रेमियों के साथ भाग गई थीं. 4 पत्नियों से उस के 4 बच्चे हुए थे. यह बात उस के 45 वर्षीय पति वीरेंद्र ने ही शादी से पहले बताई थी. तब उस ने बताया था कि उस ने बच्चों की खातिर ही उस के साथ शादी की है. बच्चों की अच्छी देखभाल करना उस का खयाल रखने से अधिक जरूरी है.

आटा गूंथते हुए कई बातें दिमाग में उभर रही थीं. बच्चे, पति, ससुराल, परिवार, सुखी संसार. सच तो यह था वह सब कुछ भी उसे नहीं मिल पाया था. फिर भी एक आज्ञाकारी पत्नी की तरह उम्र में 15 साल बड़े पति की सेवा में वह कोई कसर नहीं छोडऩा चाहती थी.

सर्दी का समय था. रात के 9 बजने वाले थे. वह अस्वस्थ महसूस कर रही थी, शरीर गर्म तो नहीं था, लेकिन बुखार जैसा लग रहा था. हालांकि इस स्थिति से वह पहले भी गुजर चुकी थी. जो उसे अमूमन हर माह 2-3 दिनों में अपनेआप ठीक हो जाती थी. कई विचारों में खोई कंचन का ध्यान अचानक चूल्हे पर चढ़े प्रेशर कुकर की सीटी से टूट गया.

इधर कुकर ने सब्जी पक जाने के लिए लंबी सीटी बजा दी, उधर कमरे से वीरेंद्र की आवाज आई थी, “अरे कंचन, अभी तक अंडे फ्राई नहीं हुए क्या, कब से इंतजार कर रहा हूं. और हां, उन्हें अच्छी तरह फ्राई करना. चटखदार तीखा बनाना… प्याज अलग से भून लेना.”

“हूं, लगता है मेरे 4 हाथ हैं,” कंचन भुनभुनाती हुई प्रेशर कुकर को चूल्हे से उतारते हुए बुदबुदाई और उस पर तवा रख दिया.

उस के कानों में फिर तीखी आवाज गूंजी, “जरा तेजी से हाथ चला ले, बच्चे भी भूखे होंगे. उन के लिए भी कुछ अंडे बगैर मिर्च के निकाल लेना.”

कंचन ने वीरेंद्र की बातें अनसुनी कर चकला और बेलन निकाल लिया. रोटी बनाने के लिए लोई बनाने लगी थी. उसी वक्त 10 साल की बेटी कंचन के पास आ गई. वह बोली, “मम्मी, थाली निकाल लूं?”

“हां निकाल ले. कुकर भी खोल ले, भाई के लिए भी सब्जी निकाल लेना. दोनों साथ में खा लेना.”

“जी, दीदीजी.” लडक़ी बोली.

“फिर दीदी! कितनी बार कहा है मम्मी बोलो.”

“अब क्या करूं, तुम दीदी की तरह लगती हो. जुबान से दीदी ही निकल आती है. वैसे भी पापा ने तुम्हारे आने से पहले कहा था कि कोई दीदी आने वाली है. तभी से…” लडक़ी सफाई देने लगी.

“चल…चल, ठीक है, यह ले एक रोटी.” तवे से सीधे थाली में रोटी पलटती हुई कंचन बोली.

“और कितनी देर लगेगी अंडे फ्राई होने में… अभी तक मसाले की गंध भी नहीं आई है?” वीरेंद्र फिर तेज आवाज में बोला. कंचन कुछ बोले बगैर सिर्फ लडक़ी को देखने लगी. लडक़ी ने भी कंचन को देखा. दोनों की नजरें मिल गईं. उन के चेहरे के भाव बता रहे थे कि वीरेंद्र की बातें उन्हें अच्छी नहीं लगीं.

“एक रोटी और ले लो…” कुछ पल ठहर कर कंचन बोली और लडक़ी भी “जी मम्मी,” बोल कर दोनों हाथों से थाली उठा कर किचन से बाहर चली गई. उस के जाते ही वीरेंद्र किचन में आ घुसा. पीछे से कंचन को पकड़ लिया. अचानक दोनों हाथों से पकड़ में आने पर वह लडख़ड़ा गई. बेली हुई रोटी तवे पर डालने वाली थी. वह चूल्हे पर जा गिरी. कुछ नहीं बोली. सिर्फ उस का हाथ हटाने की कोशिश करने लगी.

“आज का मूड बना हुआ है, जल्दी अंडे लाओ, साथ में 2 पैग तुम भी लगा लेना.” वीरेंद्र रोमांटिक अंदाज में बोला.

“क्या करते हो, बेटी अभीअभी यहीं से गई. रोटियां लेने के लिए आने वाली होगी.” कंचन बोली.

“आ जाने दो न, क्या फर्क पड़ता है. इसे मसलने का मन हो रहा है…” बोलने के साथ ही वीरेंद्र ने कंचन के ब्लाउज में हाथ डाल दिया था.

“अभी जाओ यहां से,” कंचन के बोलते ही बेटी की आवाज आई, “मम्मी, रोटी लेने आ जाऊं?”

“आ जाओ,” कंचन तुरंत बोली. वीरेंद्र भी अपने कमरे में चला गया.

कामुक दरिंदा था वीरेंद्र गुर्जर

रात के 11 बज चुके थे. रसोई का सारा काम निपटा कर कंचन बैडरूम में आई थी. कमरे में वीरेंद्र नशे में धुत पड़ा हुआ था. शराब की बोतल बैड के नीचे लुढक़ी हुई थी, उस ने आधी बोतल खत्म कर ली थी. फ्राई अंडे प्लेट में बचे हुए थे. रोटी और सब्जी तो जस की तस पड़ी थी. कमरे में खानेपीने के बिखरे सामान को समेटती हुई कंचन सिर्फ अपना मुंह ही बना रही थी. उस के चेहरे से परेशानी साफ झलक रही थी, जिसे देखनेसमझने वाला उस वक्त कोई नहीं था. बच्चे भी दूसरे कमरे में सो गए थे.

बरतन समेटते हुए स्टील का ग्लास फर्श पर गिर पड़ा. झन्नऽऽ की तेज आवाज हुई. आवाज सुन कर वीरेंद्र की अचानक आंखें खुल गईं. एक नजर से कंचन को देखा और दूसरी नजर से दरवाजे को. वह उठा और पाजामे के नाड़े को ढीला करता हुआ सीधा बाथरूम की ओर चला गया.

उस के बाथरूम से वापस आने तक कंचन बिछावन की चादर ठीक कर चुकी थी. कमरे से जूठे बरतन आदि किचन में रख आई थी. बैड का तकिया और कंबल सहेजने लगी थी. अपने लिए अलग कंबल निकाल लिया था. तब तक वीरेंद्र भी बाथरूम से आ चुका था. कंचन ने पीछे मुड़ कर देखा, वह बगैर पाजामे के अंडरवियर में खड़ा दरवाजे की कुंडी लगा रहा था.

“मत बंद करो, मुझे भी बाथरूम जाना है,” कंचन बोली और बाथरूम चली गई. वीरेंद्र दोनों टांगें फैला कर बैड पर पसर गया. कंचन आ कर मुसकराती हुई बोली, “सर्दी में भी गरमी लग रही है, दारू की गरमी है.”

“अरे नहीं मेरी जान, तुम्हारा सैक्सी शरीर देख कर ही तो गरमी आ जाती है. जब सैक्स करूंगा, तब न जाने क्या होगा?”

“नहीं, आज वह सब कुछ नहीं होगा. 3 दिन तक तो एकदम नहीं,” कंचन बोली.

“क्यों नहीं होगा, मैं तो करूंगा. मैं तो सैक्स के बगैर एक दिन भी नहीं रह सकता ” वीरेंद्र बोला.

“मैं ने कह दिया कि आज नहीं तो नहीं. वैसे भी मुझे भीतर से बुखार जैसा लग रहा है. थोड़ी देर पहले तक पेट में हलकाहलका दर्द भी महसूस हो रहा था,” कंचना बोली.

“अभी तो ठीक है न, मेरे मूड को खराब मत कर…” वीरेंद्र बोला और बैड से उठ कर कंचन को अपनी ओर खींचने लगा. कंचन खुद को नहीं संभाल पाई. वीरेंद्र ने उस के साथ छेड़छाड़ शुरू कर दी. चूमने लगा. कपड़े खोलने लगा. कंचन उस की बाहों की गिरफ्त से निकलने की कोशिश करती रही. बोलती रही, “आज नहीं, माहवारी का पहला दिन है…”

जबरदस्ती बनाए अप्राकृतिक संबंध

वीरेंद्र ने उस की एक नहीं सुनी और अपनी जिद पर अड़ा रहा. उस रात उस ने जबरन कंचन के साथ अप्राकृतिक सैक्स संबंध बनाए. कंचन को उल्टियां भी हो गईं. देह चूरचूर हो गई. शराब की गंध नथुने में भर गई. जीभ पर शराब का तीखापन भरा हुआ था.

अप्राकृतिक सैक्स संबंध  से काफी पीड़ा हो रही थी. उस की आंखें सूज गई थीं. गालों पर थप्पड़ों के निशान भी पड़ गए थे. शरीर पर नाखूनों से नोचे जाने की खरोंचें भी थीं. किसी तरह से उस ने कपड़े पहने. कंबल घिसटते हुए बच्चों के कमरे में आ गई. तब तक वीरेंद्र निढाल हो चुका था, कंबल में खर्राटे भरने लगा था.

कंचन वीरेंद्र गुर्जर की पांचवीं पत्नी थी. वीरेंद्र अव्वल दरजे का शराबी था. साथ ही अय्याश किस्म का व्यक्ति था. वह कहने को इंसान था, लेकिन उस के चरित्र में हैवानियत शामिल थी. कामुकता से भरा हुआ था. सैक्स की बातों से उबलता रहता था. बातबात में घूमफिर कर सैक्स की बातें ही उस के जुबान से निकल पड़ती थीं. मांबहन की भद्ïदी गालियों के साथसाथ यौनाचार संबंधी गालियां तो उस की जुबान पर रहती थीं.

पोर्न फिल्में देखना था पसंद

मोबाइल पर अश्लील तसवीरें, वीडियो और पोर्न फिल्में देखना, द्विअर्थी चुटकुले सुना कर मजे लेता था. राह चलती लड़कियों को निहारना, औरतों के साथ बातें करने की कोशिश करना, औरतों की भीड़ में घुस जाना आदि उस की आदतें थीं. उस की अश्लील बातों से उसे जानने वाले लोगों को कई शिकायतें थीं, उस की पत्नी को भी उस से काफी शिकायतें थीं. यही कारण था कि उसे 4 बीवियां छोड़ कर जा चुकी थीं. कंचन पांचवीं पत्नी थी. वह भी कुछ महीने में ही उस की हरकतों से ऊब गई थी.

उस रात तो वीरेंद्र ने हद ही कर दी थी, जिस से उस का दिल टूट गया था. मन दुखी हो गया था. उस ने मन ही मन उसे सबक सिखाने की ठान ली. वह उस से खौफ खाने लगी थी. अप्राकृतिक यौन संबंध कायम करना उस की आदत बन चुकी थी, जिस से छुटकारा पाने के लिए साजिश की एक व्यूह रचना कर डाली.

कंचन ने वीरेंद्र को छोड़ कर जाने वाली पत्नियों के कारण के बारे में पता किया था. उसे पता चला कि वीरेंद्र गुर्जर की पहली शादी कृष्णा नाम की युवती से हुई थी. उस से एक बेटी पैदा हुई. तब उस ने दूसरी शादी लीला से की. उस से 2 बेटे पैदा हुए.

तीसरी शादी उस ने संगीता से की. चौथी शादी उस ने भूलीबाई से की, जिस से एक बेटी पैदा हुई. चारों पत्नियां उस की अय्याशी से आजिज आ कर उसे छोड़ गई थीं. जैसे ही एक पत्नी छोड़ कर चली जाती तो वह फिर शादी कर लेता था.

पांचवीं शादी उस ने कंचन से की थी. उस की कंचन से मुलाकात अक्तूबर, 2022 में भांडा की गुफा घूमने के दौरान हुई थी. वीरेंद्र दबंग प्रवृत्ति का था. वह ब्याज पर पैसे देने का धंधा करता था. उन के साथ भी वीरेंद्र उसी तरह पेश आता था, जैसा उस रात कंचन के साथ आया था. वे चारों उस की प्रताडऩा से ऊब चुकी थीं.

ऊब चुकी थी अय्याश पति से

सुबह का समय था. तारीख थी 21 फरवरी, 2023. कंचन को एक ग्रामीण ने बताया कि उस के पति की लाश गौभा चौकी के पास जंगल में पड़ी है. कंचन यह खबर सुनते ही भागीभागी जंगल की ओर गई. वहां वीरेंद्र की अर्धनग्न अवस्था में लाश पड़ी थी. वह रोने लगी और उपस्थित लोगों को बताया कि उस का पति 2 दिन पहले लकड़ी काटने के लिए गया था.

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किसी व्यक्ति ने जंगल में लाश पाए जाने की सूचना सिंगरौली थाने को भी दे दी. वहां से टीआई अरुण कुमार पांडेय और सीएसपी देवेश पाठक पूरी टीम के साथ गांव बदरघटा से कुछ देर जंगल में घटनास्थल पर पहुंच गए. इस की सूचना उच्च अधिकारियों को भी दे दी गई. साथ ही एसपी सिंगरौली वीरेंद्र सिंह और एएसपी शिवकुमार वर्मा भी वहां पहुंच गए. मौकामुआयना करने के बाद एसपी ने देवेश पाठक के नेतृत्व में एक जांच टीम बनाई.

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घटनास्थल पर पहुंची टीम ने लाश का मुआयना करने पर पाया कि अर्धनग्न लाश का प्राइवेट पार्ट काटा गया था. इस आधार पर टीम ने अनुमान लगाया कि उस की हत्या किसी अवैध संबंध का अंजाम है. इस का पता लगाने के लिए सब से पहले पूछताछ उस की पत्नी कंचन से की जाने लगी. उस ने पुलिस को बताया कि उस के पति के कई औरतों से अवैध संबंध थे. और उस की पहले की 4 बीवियों का भी वह दुश्मन बना हुआ था.

पांचवीं पत्नी ने कुल्हाड़ी से की हत्या

जांच अधिकारी को कंचन की बात अधूरी और बनावटी लगी. उस की उम्र और पति की उम्र के बीच का अंतर भी कई संदेह पैदा कर रहा था. उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने जल्द ही भेद खोलते हुए बताया कि वीरेंद्र की हत्या उसी ने की है.

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ऐसा करने के पीछे उस ने एकमात्र कारण बताया कि वह उसे काफी प्रताडि़त करता था. उसे शराब के नशे में मारतापीटता था. इस कारण ही 4 पत्नियां उसे छोड़ कर जा चुकी थीं. उस की सहनशक्ति समाप्त हो चुकी थी और उस के चंगुल से निकलने के लिए खौफनाक साजिश रच डाली थी.

हत्या को अंजाम देने के बारे में उस ने बताया कि पहले पति के खाने में नींद की 20 गोलियां मिली दीं. जिसे खाने के बाद वह गहरी नींद में सो गया. इस के बाद उस ने उस की गला घोंट कर हत्या कर दी. हालांकि असली खेल उस ने बाद में किया, जिस से उम्मीद थी वह पुलिस से बच जाएगी. वह खेल अवैध संबंध साबित करने का था.

योजना बना कर कंचन पति की हत्या के बाद उस की लाश को साइकिल पर लाद कर एक सुनसान जगह पर ले गई. वहां उस ने कुल्हाड़ी से उस का गला काटा और फिर गुप्तांग को भी कुल्हाड़ी से काट कर सडक़ पर फेंक दिया. इस के बाद चुपचाप घर आ गई. उस ने बताया कि ऐसा इसलिए किया ताकि जब पुलिस को लाश मिले, तब उसे अवैध संबंध के शक में हत्या का मामला लगे.

कंचन द्वारा अपराध स्वीकारे जाने के बाद पुलिस ने उसे 3 मार्च, 2023 को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

शादी की जिद में पति मिला न प्रेमी

फोन नंबर अपडेट न कराने पर खाते से 24 लाख गायब – भाग 3

यहां आ कर मयंक ने औनलाइन बिजनैस करने वाली एक कंपनी में काम की शुरुआत की. कंपनी के दफ्तर में वह कंप्यूटर के जरिए प्रोडक्ट्स के औनलाइन पेमेंट का काम देखता था. कंपनी का आसपास के इलाकों के साथ उज्जैन, देवास, इंदौर जैसे शहरों में अपना अच्छाखासा कारोबार था. कंपनी की तरफ से उसे 25 हजार रुपए की सैलरी मिलती थी.

मयंक के शौक बड़े मंहगे थे, जिस के चलते उस का खर्च इस सैलरी से पूरा नहीं होता था. उज्जैन में रहते हुए वह जल्दी रुपए कमाने के चक्कर में सट्टेबाजी के खेल में शामिल हो गया. वह आईपीएल औनलाइन सट्टे में बड़ेबड़े दांव लगाने लगा था और नशे का भी आदी हो गया था. जब उस के अपने खर्चे पूरे नहीं हुए तो वह अपने दोस्तों से कर्ज लेने लगा.

जालसाजी से बनवाया एटीएम कार्ड

जुलाई, 2022 में मयंक ने एयरटेल कंपनी की एक नई सिम ली थी. सिम एक्टीवेट होने के करीब एक सप्ताह बाद उस के मोबाइल पर यूको बैंक से 5 लाख रुपए एकाउंट में जमा होने का मैसेज आया तो उसे आश्चर्य हुआ. क्योंकि उस का इस बैंक में कोई एकाउंट नहीं था.

उस ने उज्जैन में यूको बैंक जा कर पता किया तो उसे मालूम हुआ कि जिस बैंक एकाउंट में 5 लाख रुपए जमा हुए हैं, वह एकाउंट सालीचौका के पुरुषोत्तम मिश्रा का है. उस ने औनलाइन मैसेज भेज कर यह भी जानकारी कर ली कि इस बैंक एकाउंट में 24 लाख रुपए से अधिक रकम जमा है. इतनी बड़ी रकम एकाउंट में देख कर मयंक के मन में लालच की भावना आ गई और यहीं से उस के शातिर दिमाग में फ्रौड करने का आइडिया आया.

वह अगस्त, 2022 में उज्जैन से सालीचौका आया और 2-3 दिन यहीं रुक कर बैंक और पोस्ट औफिस की रैकी की. इस के बाद उस ने सालीचौका यूको बैंक जा कर एटीएम कार्ड जारी करने की एप्लीकेशन दे दी. बैंक में ड्यूटी करने वाले क्लर्क ने उस से कहा, “एटीएम कार्ड के लिए औनलाइन रिक्वेस्ट भेज दीजिए. सप्ताह भर के अंदर एटीएम आप के पते पर पहुंच जाएगा. पते में आप का मोबाइल नंबर रहेगा.”

मयंक ने मोबाइल फोन के जरिए औनलाइन रिक्वेस्ट भेज दी और उज्जैन चला गया. करीब एक सप्ताह के बाद मयंक के मोबाइल पर काल आई और काल करने वाले ने बताया, “मैं सालीचौका पोस्ट औफिस से पोस्टमैन बोल रहा हूं. आप के नाम का एक लिफाफा आया है, इसे पोस्ट औफिस आ कर ले लीजिए.”

मयंक समझ गया कि एटीएम कार्ड आ चुका है, इसलिए उस ने पोस्टमैन को फोन पर कहा, “मैं आज बाहर हूं, कल पोस्ट औफिस आ कर लिफाफा ले लूंगा.”

बैंककर्मी के शामिल होने की संभावना

इस के बाद वह बाइक से उज्जैन सालीचौका के लिए निकल पड़ा. करीब 400 किलोमीटर का सफर तय कर के वह दूसरे दिन सालीचौका पोस्ट औफिस पहुंच गया. उस ने पोस्ट औफिस से लिफाफा रिसीव कर लिया और चुपचाप यूको बैंक पहुंच गया. बैंक में उस समय भीड़भाड़ ज्यादा थी, इसी का फायदा उठाते हुए मयंक ने जब एटीएम कार्ड एक्टीवेट करने का निवेदन किया तो बैंक कर्मचारी नरेंद्र राजपूत ने खाताधारक की पहचान को नजरंदाज कर मयंक को एटीएम कार्ड एक्टीवेट करने और पासवर्ड जनरेट करने के लिए ग्रीन पिन दे दी और मयंक ने बैंक के बाहर लगे एटीएम मशीन से एटीएम कार्ड एक्टीवेट भी कर लिया.

यहां पर यह बात हजम नहीं हो रही कि बैंककर्मी ने बिना केवाईसी वेरिफाई किए एटीएम का फार्म क्यों जमा किया और पासवर्ड जनरेट के लिए उसे ग्रीन पिन भी दे दी. एटीएम कार्ड एक्टीवेट होने के बाद मयंक ने सालीचौका के यूको बैंक के एटीएम से 40 हजार रुपए निकाले और उज्जैन रवाना हो गया. इस के बाद उस ने उज्जैन और इंदौर के एटीएम से 40-40 हजार की रकम 8 बार निकाल कर लैपटौप और आईफोन खरीद लिए.

बाकी रकम उस ने मोबाइल बैंकिंग के जरिए अपने आईसीआईसीआई बैंक एकाउंट में ट्रांसफर कर ली. बाद में करीब 10 लाख रुपए उस ने चैक बुक के द्वारा अपने एकाउंट से निकाल लिए. इस के बाद मयंक इस एकाउंट से एटीएम कार्ड के जरिए लगातार पैसे निकालने लगा. जिन लोगों से उस ने कर्ज ले रखा था, उन के बैंक खातों में मयंक ने मोबाइल बैंकिंग के जरिए रुपए ट्रांसफर कर अपना कर्ज चुका दिया था.

इधर पुरुषोत्तम मिश्रा घर बैठे निश्चिंत थे कि उन के जमा रुपए बैंक में सुरक्षित हैं. उन के खाते से उन का नया मोबाइल नंबर लिंक न होने की वजह से किसी तरह के मैसेज भी उन्हें नहीं मिल रहे थे. पुरुषोत्तम मिश्रा की बेटी की शादी यदि न होती तो उन्हें कभी पता भी नहीं चलता कि उन के बैंक एकाउंट से रुपए निकाले गए हैं.

बैंक एकाउंट से लाखों रूपए पार करने वाले शातिर अपराधी मयंक को जब पुलिस ने गिरफ्तार किया तो उस की निशानदेही के आधार पर मयंक सिंह के कब्जे से नकद 5 लाख रुपए, घटना में प्रयुक्त वीवो कंपनी के 2 मोबाइल, एक सीडी डीलक्स बाइक जिस का रजिस्ट्रेशन नंबर यूपी32 एलआर5770 है, एक आईफोन 13 प्रो, एटीएम कार्ड, पासबुक मौके पर जब्त किए गए.

आरोपी मयंक सिंह उर्फ प्रताप को यूको बैंक सालीचौका ले जा कर भी पूछताछ की गई. इस के बाद आरोपी को माननीय न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उसे नरसिंहपुर जेल भेज दिया गया.

इस बैंक धोखाधड़ी में इस बात पर भी शक होता है कि औनलाइन बैंकिंग रजिस्ट्रेशन के लिए मयंक के पास खाताधारक पुरुषोत्तम मिश्रा की पर्सनल जानकारी कहां से आई. बिना पर्सनल जानकारी के औनलाइन बैंकिंग रजिस्ट्रेशन नहीं हो सकता.

पुलिस यदि निष्पक्ष रूप से इस मामले की जांच करे तो वह मयंक का साथ देने वाले अन्य साजिशकर्ताओं तक भी पहुंच सकती है.

—कथा पुलिस सूत्रों और पीडि़त पुरुषोत्तम मिश्रा के परिवार से बातचीत पर पर आधारित

इस तरह बचें ऐसी ठगी से

डिजिटल युग में ठगों ने भी खुद को अपग्रेड कर लिया है. यह लोगों की थोड़ी सी भी लापरवाही का फायदा उठा लेते हैं. जैसे पुरुषोत्तम मिश्र ने अपना फोन नंबर अपने बैंक खाते से अपग्रेड करने में लापरवाही की, जिस का जालसाज मयंक ने फायदा उठाया.

मयंक को बैंक से एटीएम जारी होने और ग्रीन पिन के जरिए एटीएम कार्ड एक्टीवेट करने में किसी बैंक कर्मचारी की भूमिका भी हो सकती है, जिस की जांच पुलिस टीम कर रही है. इस फ्रौड में यदि कोई बैंक कर्मचारी दोषी पाया जाता है तो उस के खिलाफ भी अवश्य कानूनी काररवाई की जाएगी.

साइबर फ्रौड से बचने के लिए डिजिटल युग में बैंक कस्टमर का अलर्ट रहना बेहद जरूरी है. औनलाइन फ्रौड का शिकार होने से बचने के लिए बैंक में समयसमय उपस्थित हो कर ईकेवाईसी कराने के साथ अपने मोबाइल नंबर पर मैसेजिंग सर्विस भी एक्टीवेट करानी चाहिए. यदि किसी का मोबाइल नंबर गुम हो जाए या किसी वजह से बंद हो जाए तो पुलिस कंप्लेंट कर संबंधित फोन कंपनी से उसी नंबर की दूसरी सिम प्राप्त कर लेनी चाहिए. यदि पुराना नंबर लंबे समय तक बंद रहे तो बैंक जा कर अपना नया नंबर बैंक एकाउंट से लिंक जरूर कराना चाहिए.

ईकेवाईसी, पैन कार्ड का आधार कार्ड से लिंक कराने आदि के लिए आप के पास कोई लिंक आए तो उस लिंक पर कभी क्लिक न करें. औनलाइन ट्रांजैक्शन करते समय बहुत सावधानी बरतें. अपने एटीएम का नंबर, पासवर्ड, सीवीवी और बैंक एकाउंट डिटेल्स किसी व्यक्ति से शेयर न करने आदि से आप साइबर ठगी से बच सकते हैं. यदि इस के बावजूद आप साइबर ठगी का शिकार हो जाते हैं तो इस की सूचना तुरंत स्थानीय पुलिस को दें.

—सचि पाठक

एसडीपीओ, गाडरवारा

फोन नंबर अपडेट न कराने पर खाते से 24 लाख गायब – भाग 2

  • अंकित के इतना कहते ही चाची के होश उड़ गए. वह अपना सीना पीटते हुए बोली, “हम तो बरबाद हो गए. अब बेटी पूजा की शादी कैसे होगी.”

बैंक एकाउंट से रुपयों की ठगी की जानकारी पुरुषोत्तम मिश्रा के घर के आसपास रहने वाले लोगों को भी लग चुकी थी और उन के घर में शुभचिंतकों की भीड़ लग गई थी. पुरुषोत्तम मिश्रा को अपनी एक गलती का आभास आज हो रहा था. वे बारबार यही सोच कर अफसोस जता रहे थे कि

“काश! उन्होंने अपना नया मोबाइल नंबर एकाउंट से लिंक करा लिया होता तो इस ठगी से बच जाते.”

दरअसल, पुरुषोत्तम मिश्रा के बैंक एकाउंट में एयरटेल कंपनी का जो मोबाइल नंबर दर्ज था, वह मोबाइल खो जाने की वजह से बंद हो गया था. पुरुषोत्तम मिश्रा ने उसी मोबाइल नंबर की दूसरी सिम प्राप्त करने के बजाय नया नंबर ले लिया था और उसे बैंक एकाउंट से लिंक नहीं कराया था. उन की यही गलती आज उन्हीं पर भारी पड़ी थी. जीवन भर तिनकातिनका इकट्ठा कर जोड़ी हुई जमापूंजी साइबर ठग ने पार कर दी थी.

एसपी के आदेश पर रिपोर्ट दर्ज

पुरुषोत्तम मिश्रा और अंकित को इस पूरी कवायद में एक बात समझ में आ गई थी कि उन के साथ साइबर ठगी हुई है. अपने साथ हुए इस साइबर फ्रौड की उन्होंने बैंक में लिखित शिकायत की, मगर बैंक मैनेजर और स्टाफ का रवैया उन्हें ठीक नहीं लगा. बैंक स्टाफ उन्हें यह जानकारी उपलब्ध नहीं करा रहा था कि आखिर उन के नाम से एटीएम किसे जारी किया गया है. मामला सुलझता न देख पुरुषोत्तम मिश्रा ने पूरे मामले की लिखित शिकायत स्थानीय पुलिस थाना, साइबर ब्रांच और रिजर्व बैंक में कर दी थी.

पुरुषोत्तम मिश्रा अपने भतीजे अंकित को ले कर नरसिंहपुर जिले के एसपी अमित कुमार से मिले और उन्हें विस्तार से पूरी जानकारी देते हुए कहा, “सर, 5 जून में मेरी बिटिया की शादी है और मेरे खाते में एक फूटी कौड़ी भी नहीं है. किसी ठग ने मेरे नाम का एटीएम कार्ड ले कर और मोबाइल नंबर लिंक करा कर मेरा एकाउंट खाली कर दिया है.”

एसपी अमित कुमार ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा, “आप चिंता न करें, आप के साथ हुए इस फ्रौड का हम जल्द ही परदाफाश करेंगे और आप की गाढ़ी कमाई की रकम आप को वापस दिलाएंगे.”

एसपी से मिलने के बाद दोनों घर आ कर शादी की तैयारियों में जुट गए. पुरुषोत्तम मिश्रा की तो रातों की नींद छिन गई थी, उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि बगैर रुपयों के कैसे बेटी के हाथ पीले होंगे.

नरसिंहपुर जिले में पिछले कुछ दिनों से साइबर क्राइम के बढ़ते मामलों से पुलिस परेशान थी. ऐसे में एसपी अमित कुमार ने 24 लाख की धोखाधड़ी करने वाले आरोपी की पतासाजी के लिए एडीशनल एसपी सुनील कुमार शिवहरे, एसडीपीओ सचि पाठक के निर्देशन में एक टीम का गठन किया.

इस टीम में टीआई (गाडरवारा) राजपाल सिंह बघेल, एसआई श्रीराम रघुवंशी, वर्षा धाकड़, एएसआई भूपेंद्र सोनी, हैडकांस्टेबल आशीष मिश्रा, संजय पांडे, कांस्टेबल दिनेश पटेल, ऐश्वर्य वेंकट, साइबर सेल (नरसिंहपुर) लेडी कांस्टेबल कुमुद पाठक को शामिल किया गया.

एसपी के निर्देश पर गठित टीम ने सब से पहले खेरुआ गांव के पीडि़त 54 वर्षीय पुरुषोत्तम मिश्रा द्वारा की गई शिकायत की जांच के दौरान यूको बैंक सालीचौका से प्रार्थी के खाता नंबर एवं उस में लिंक मोबाइल नंबर एटीएम कार्ड के संबंध में जानकारी प्राप्त की. बैंक से मिली जानकारी से पता चला कि पुरुषोत्तम मिश्रा के खाते में जो मोबाइल नंबर दर्ज है, उस नंबर की सिम उन के पास नहीं है और न ही उन्होंने कभी बैंक से एटीएम कार्ड लिया है.

अगस्त, 2022 में किसी अज्ञात व्यक्ति द्वारा अपना मोबाइल नंबर फरजी तरीके से लिंक करा कर एटीएम कार्ड जारी करा लिया. बाद में इसी एटीएम धोखाधड़ी के जरिए उस ने इंदौर एवं उज्जैन के अलगअलग एटीएम मशीनों से लाखों रुपए की रकम निकाली थी. शातिर अपराधी ने मोबाइल बैंकिंग के माध्यम से भी कुछ राशि दूसरे बैंक खातों में ट्रांसफर कर ली थी और पूरा एकाउंट खाली कर दिया. पुलिस के लिए आरोपी तक पहुंचना किसी चुनौती से कम नहीं था.

जालसाज तक पहुंची पुलिस

बैंक खाते से दर्ज संदिग्ध मोबाइल नंबर के संबंध में साइबर सेल के माध्यम से जानकारी प्राप्त की गई. मोबाइल नंबर के आधार पर जांच करने पर 8 मई, 2023 को गाडरवारा पुलिस ने आरोपी की पहचान मयंक सिंह पुत्र प्रकाश सिंह निवासी लक्ष्मण नगर कालोनी वार्ड नंबर 23 जिला देवास के रूप में कर ली. आरोपी ने जिन खातों में उक्त राशि ट्रांसफर की थी, उन सभी खातों के संबंध में भी दूसरे बैंकों से जानकारी प्राप्त की गई.

इसी जानकारी के आधार पर पुलिस जांच में यह बात सामने आई कि पुरुषोत्तम मिश्रा के यूको बैंक के खाते से लिंक बंद मोबाइल नंबर मयंक सिंह ने चालू करा कर यूको बैंक के उन के एकाउंट की डिटेल्स प्राप्त कर सालीचौका ब्रांच आ कर एटीएम कार्ड प्राप्त किया था.

पिछले 6-7 महीने में उसी एटीएम कार्ड व मोबाइल बैंकिंग के माध्यम से पुरुषोत्तम मिश्रा के खाते से 24 लाख 4 हजार 199 रुपए निकाल लिए गए. थाना गाडरवारा में आरोपी मयंक सिंह के खिलाफ भादंवि की धारा 420, 467, 468, 471 के तहत दर्ज कर लिया गया.

अपराध की गंभीरता और आरोपी के फरार होने की संभावना को देखते हुए एसपी अमित कुमार द्वारा एडिशनल एसपी सुनील शिवहरे एवं एसडीपीओ गाडरवारा सचि पाठक के मार्गदर्शन में आरोपी की गिरफ्तारी के लिए एक टीम उज्जैन भेजी गई.

गाडरवारा पुलिस ने उज्जैन पहुंच कर स्थानीय पुलिस की मदद से आरोपी मयंक सिंह के संबंध में जानकारी एकत्र की. तकनीकी साक्ष्यों एवं मुखबिर से मिली सूचना के आधार पर आरोपी मयंक सिंह की लोकेशन उस समय उज्जैन के सेठी नगर में मिल रही थी. सूचना प्राप्त होते ही पुलिस टीम ने स्थानीय मुखबिर की मदद से 13 मई, 2023 को उज्जैन के सेठी नगर में स्थित एक मकान की घेराबंदी कर ठग मयंक सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया.

पुलिस पूछताछ में उस ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. साइबर ठगी के इस मामले की कहानी चौंकाने वाली निकली—

28 साल का मयंक सिंह उर्फ प्रताप मूलरूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ के इंदिरा नगर सेक्टर 14 का रहने वाला है. पिता ज्ञान प्रकाश सिंह का दूसरे नंबर का बेटा मयंक ग्रैजुएशन करने के बाद नौकरी के लिए भटक रहा था. नौकरी पाने के सिलसिले में वह 3 साल पहले देवास आया था.

फोन नंबर अपडेट न कराने पर खाते से 24 लाख गायब – भाग 1

54 साल के पुरुषोत्तम मिश्रा नरसिंहपुर जिले के सालीचौका नगर परिषद के अंतर्गत आने वाले खैरुआ गांव में रहते हैं. अपने गांव में उन का खेतीकिसानी का काम है, इस के साथ ही आसपास के इलाकों में पूजापाठ करने से उन्हें साल भर में अच्छीखासी आमदनी हो जाती है.

पुरुषोत्तम मिश्रा के परिवार में पत्नी सहित एक बेटा और 2 बेटियां हैं. गांवकस्बों में बेटियों की शादी में खूब दहेज देना पड़ता है, तब जा कर कहीं अच्छा रिश्ता मिलता है. इसी बात को ध्यान में रख कर पुरुषोत्तम ने भी अपनी बेटियों के विवाह के लिए धीरेधीरे करीब 24 लाख रुपए की रकम इकट्ठा कर ली थी.

इस जमापूंजी से वह अपनी बेटियों की शादी करना चाहते थे. वह जानते थे कि घर में बड़ी रकम रखना खतरे से खाली नहीं है, इस लिहाज से अपने रुपयों को उन्होंने सालीचौका जिस का पुराना नाम बाबई कला है, की यूको बैंक में जमा किए हुए थे. उन का सपना था कि इस रकम से वह अपनी दोनों बेटियों का विवाह धूमधाम से करेंगे.

वक्त के साथ उन की बेटियां जवान होने लगीं और उन की बड़ी बेटी पूजा का रिश्ता तय हो गया. 5 जून, 2023 को पूजा की शादी होने वाली थी और इस के लिए उन के परिवार ने शादी की तैयारियां शुरू कर दी थीं. शादी के लिए मैरिज गार्डन, कैटरिंग आदि की बुकिंग के साथ दहेज का सामान लाने के लिए जब पैसों की जरूरत पड़ी तो अप्रैल महीने के आखिरी हफ्ते में वह यूको बैंक की शाखा में अपने रुपए निकालने के लिए पहुंचे.

विदड्राल फार्म में उन्होंने 5 लाख रुपए की रकम भर कर वाउचर बैंक के क्लर्क को दिया तो बैंक क्लर्क बोला, “मिश्राजी, आज तो इतने कैश की व्यवस्था नहीं हो पाएगी, 1-2 दिन बाद रुपए ले जाना. अभी जरूरत हो तो 40-50 हजार रुपए का विदड्राल भर दीजिए.”

“ठीक है, अभी जरूरत नहीं है, मैं 1-2 दिन बाद आ कर रुपए निकाल लूंगा. लेकिन मुझे अपने खाते का बैलेंस तो बता दीजिए. बैंक की पासबुक प्रिटिंग मशीन तो कई दिनों से बंद पड़ी है.” मिश्राजी ने पासबुक क्लर्क की ओर बढ़ाते हुए कहा.

गांव कस्बों की बैंक शाखाओं में ज्यादा रकम खाते से निकालने में यह समस्या बनी रहती है, इसलिए मिश्राजी ने 1-2 दिन बाद रुपए निकालने की सोच कर संतोष कर लिया. बैंक क्लर्क ने कंप्यूटर में मिश्राजी के बैंक एकाउंट नंबर को डाल कर बैलेंस चैक करते हुए कहा, “आप के एकाउंट में तो केवल 314 रुपए जमा हैं.”

एकाउंट हो गया खाली

बैंक क्लर्क की बात पर उन्हें भरोसा ही नहीं हो रहा था. उन्होंने बैंक क्लर्क से हंसते हुए कहा, “मजाक मत कीजिए साहब, अच्छे से चैक कर के बैंलेंस बता दीजिए. ब्याज वगैरह मिला कर करीबन 24 लाख रुपए की रकम तो जमा होनी ही चाहिए.”

“मैं मजाक नहीं कर रहा मिश्राजी, आप के खाते में इतना ही बैलेंस है.” बैंक क्लर्क ने गंभीरतापूर्वक कहा. बैंक क्लर्क के इतना कहते ही मिश्राजी चौंक गए. जीवन भर कड़ी मेहनत से जुटाई रकम अचानक कहां चली गई, उन्हें समझ नहीं आ रहा था. उन्होंने अपने आप को संभालते हुए बैंक क्लर्क को बताया, “सर, मैं ने तो बैंक से कोई रकम निकाली ही नहीं, फिर मेरे खाते में जमा 24 लाख रुपए किस ने निकाल लिए.”

“अभी मेरे पास इतना समय नहीं है. मुझे दूसरे कस्टमर का काम करने दीजिए, आप के खाते के ट्रांजैक्शंस की जानकारी मैं बाद में बताऊंगा.” बैंक क्लर्क बोला.

पुरुषोत्तम मिश्रा पसीने से तरबतर हो गए. वे काउंटर छोड़ कर सामने पड़ी कुरसी पर बैठ गए. थोड़ी देर में जब वे सामान्य हुए तो तत्काल अपने भतीजे अंकित को काल कर के उसे तुरंत बैंक बुला लिया. अंकित मिश्रा उस समय एक मंदिर में पूजापाठ कर रहा था, जैसे ही चाचा ने उसे फोन कर तत्काल बैंक आने को कहा तो वे कुछ ही देर में यूको बैंक पहुंच गया.

पुरुषोत्तम मिश्रा ने अपने भतीजे को पूरी जानकारी दी तो अंकित भी सदमे में आ गया. बहन की शादी के ऐन वक्त पर पाईपाई जोड़ कर जुटाई गई रकम बैंक जैसी सुरक्षित जगह से गायब होने पर वह खुद परेशान था. उस ने बैंक मैनेजर के पास पहुंच कर चाचा के खाते से निकाले गए रुपयों की जानकारी मांगी.

बैंक मैनेजर ने एकाउंट चैक कर उन्हें बताया, “आप के खाते से पिछले 7-8 महीनों में एटीएम कार्ड और मोबाइल बैंकिंग के जरिए कई बार पैसे निकाले गए हैं.”

“लेकिन सर, मैं ने तो बैंक से कभी एटीएम कार्ड लिया ही नहीं.” आश्चर्य व्यक्त करते हुए पुरुषोत्तम मिश्रा बोले.

“लेकिन आप के नाम से तो अगस्त 2022 में एटीएम कार्ड जारी हुआ और आप का मोबाइल नंबर भी खाते में दर्ज है.” मोबाइल नंबर बोलते हुए बैंक मैनेजर ने कहा.

“ये मोबाइल नंबर तो कब से बंद है. और न ही कभी मैं ने एटीएम के लिए एप्लाई किया है सर,” पुरुषोत्तम मिश्रा ने कहा.

बैंक मैनेजर भी पसोपेश में पड़ गए कि आखिर माजरा क्या है. बैंक एकाउंट की डिटेल्स में ज्यादातर ट्रांजैक्शन एटीएम कार्ड के जरिए इंदौर, उज्जैन के एटीएम से किए गए थे और अलगअलग ट्रांजैक्शन में अगस्त, 2022 से मार्च, 2023 तक कुल 24 लाख 4 हजार 199 रुपए खाते से निकाले गए थे. पुरुषोत्तम मिश्रा और भतीजा अंकित हैरान थे कि आखिर ऐसा कौन शख्स है, जो इंदौर, उज्जैन में उन का एटीएम कार्ड यूज कर रहा है.

फोन नंबर अपडेट न कराने पर हुई धोखाधड़ी

जब पुरुषोत्तम मिश्रा भतीजे अंकित के साथ बैंक से घर पहुंचे तो घर में पत्नी व बच्चे उन का इंतजार ही कर रहे थे. आते ही पत्नी ने पूछा, “बैंक से रुपए ले आए?”

पुरुषोत्तम मिश्रा के मुंह से कोई शब्द नहीं निकल पाया. वह निढाल हो कर कमरे में पड़ी कुरसी पर बैठ गए. पत्नी ने उन की हालत देख कर फिर पूछा, “लगता है, बैंक से रुपए नहीं मिले, इस बैंक का यही हाल है. जरूरत के समय पैसे नहीं मिलते. अब 2-4 दिन चक्कर काटने पड़ेंगे, तब कहीं जा कर रुपए हाथ में आएंगे.”

तब तक उन का भतीजा अंकित भी बाइक को बाहर खड़ी कर घर के अंदर दाखिल हो चुका था. उस ने आ कर चाची को बताया, “चाचाजी के एकाउंट से किसी ने पूरे रुपए निकाल लिए हैं, हमारे खाते में किसी ने सेंधमारी की है.”

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शादी की जिद में पति मिला न प्रेमी – भाग 3

शादी नहीं, मौजमस्ती ही चाहता था गिरिजा शंकर

कहते हैं कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते, दोनों के प्रेम प्रसंग की स्टोरी की जानकारी घर वालों को हो गई. धनराज ने सोचा कि समाज में उस की बदनामी हो, इस के पहले बेटी के हाथ पीले कर देना चाहिए. यही सोच कर पूर्णिमा की शादी गांव सारद सिवनी में अशोक नाम के लडक़े से तय कर दी. 22 अप्रैल, 2023 को पूर्णिमा की शादी होने वाली थी, किंतु वह प्रेम संबंध के चलते अपनी भाभी के भाई गिरिजा शंकर पर शादी करने का दबाव बना रही थी.

उस ने गिरिजा शंकर से साफतौर पर कह दिया था कि वह शादी करेगी तो सिर्फ उसी से. और गिरिजा शंकर पूर्णिमा से शादी करने का इच्छुक नहीं था, क्योंकि उसे अपनी बहन का घर उजडऩे का डर था. गिरिजा शंकर जानता था कि समाज के कानूनकायदे पूर्णिमा से विवाह की इजाजत नहीं देंगे. गिरिजा शंकर की बहन शारदा को उस के पूर्णिमा के साथ संबंधों की जानकारी थी. उस ने भी भाई से कहा था, “भैया कोई ऐसा कदम न उठाना कि मेरा घर उजड़ जाए.”

इधर पूर्णिमा गिरिजा शंकर पर शादी का दबाव बना रही थी. उस का कहना था कि 22 तारीख के पहले हम लोग भाग कर शादी कर लेते हैं. गिरिजा शंकर के सामने एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई थी. वह कोई निर्णय नहीं ले पा रहा था. आखिर में उसे अपनी बहन के सुखी दांपत्य जीवन का खयाल आया और उस ने पूर्णिमा को अपने रास्ते से हटाने की योजना बनाई.

पूर्णिमा लगातार गिरिजा शंकर पर जल्द शादी करने का दबाव बना रही थी. ऐसे में योजना के मुताबिक 5 अप्रैल को गिरिजा शंकर ने पूर्णिमा को फोन कर के कहा, “आज कहीं घूमने चलते हैं, वहां मिल कर शादी करने का प्लान बनाते हैं.”

“लग्न होने की वजह से घर वाले अब बाहर घूमने से मना करते हैं.” पूर्णिमा ने जवाब दिया.

“सिलाई क्लास का बहाना बना कर आ जाओ, मैं बाइक ले कर गांव के बाहर पीपल के पेड़ के पास मिलता हूं.” गिरिजा शंकर ने राह सुझाते हुए कहा.

“ओके, तुम गांव आ कर फोन करना, मैं मम्मी को मनाती हूं.” पूर्णिमा ने कह कर फोन काट दिया.

गिरिजा शंकर ने प्यार में किया विश्वासघात

दोपहर करीब एक बजे गिरिजा शंकर लिम्देवाड़ा गांव पहुंच गया और पूर्णिमा को फोन कर के बुला लिया. पूर्णिमा ने मां से सिलाई सीखने का बहाना किया और सिर और मुंह को दुपट्ïटे से ढंक कर गांव के बाहर पीपल के पेड़ के पास पहुंच गई. गिरिजा शंकर ने पूर्णिमा को बाइक पर बिठाया और गांव से निकल पड़ा.

रास्ते में प्यारमोहब्बत की बातें करते हुए वे गांगुलपरा और बंजारी गांव के बीच पडऩे वाले जंगल की पहाड़ी पर पहुंच गए. वहां पहुंच कर जब पूर्णिमा ने गिरिजा शंकर से शादी करने की बात कही तो गिरिजा शंकर ने पूर्णिमा को अपने आगोश में लेते हुए भरोसा दिलाया कि वह 22 अप्रैल के पहले उस से शादी कर लेगा. पूर्णिमा ने उस की बातों पर भरोसा कर लिया. उस के बाद उन्होंने 2 बार शारीरिक संबंध बनाए.

संबंध बनाने के बाद वे पेड़ की छांव में एक चट्ïटान पर बैठ कर आराम कर रहे थे, तभी गिरिजा शंकर ने पूर्णिमा के गले में पड़े दुपट्ïटे से उस की गला घोंट कर हत्या कर दी. इस के पहले पूर्णिमा कुछ समझ पाती, पलभर में ही उस की जुबान बाहर निकल आई और उस की मौत हो गई.

प्रेमिका का मर्डर करने के बाद कातिल प्रेमी गिरिजा शंकर ने पूर्णिमा का मोबाइल तोड़ कर दुपट्ïटे के साथ वहीं फेंक दिया. पूर्णिमा के शरीर के ऊपर सूखे पत्ते का ढेर लगा कर गिरिजा शंकर वहां से बाइक ले कर वापस किरनापुर आ गया. जब पूर्णिमा शाम तक घर नहीं लौटी तो गिरिजा शंकर की बहन शारदा ने मोबाइल पर उस से पूर्णिमा के संबंध में पूछताछ की तो उस ने साफ मना करते हुए कह दिया कि उसे पूर्णिमा के संबंध में कोई जानकारी नहीं है.

मगर पुलिस की पैनी नजर से वह ज्यादा दिनों तक नहीं बच सका और पूर्णिमा के कत्ल का जुर्म कुबूल कर लिया. आज भी समाज के ज्यादातर तबकों में यही परंपरा है कि जिस घर में लड़कियों को ब्याहा जाता है, उस घर की लडक़ी को अपने घर की बहू नहीं बनाते हैं. लेकिन कहते हैं कि इश्क और जंग में सब जायज है.

पूर्णिमा भी समाज के नियमों के विपरीत अपने भाई के साले को दिल दे बैठी और उस के साथ घर बसाने का सपना देख रही थी. गिरिजा शंकर तो केवल पूर्णिमा के शरीर का सुख भोग रहा था, उस के साथ शादी करने को वह कतई तैयार नहीं था.

पुलिस ने गिरिजा शंकर की निशानदेही पर पूर्णिमा की हत्या में प्रयुक्त बाइक और उस का मोबाइल भी घटनास्थल से बरामद किया और 17 अप्रैल को रिमांड की अवधि खत्म होने पर गिरिजा शंकर को पुलिस ने कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे बालाघाट जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित