कविता ने लिखी खूनी कविता – भाग 1

एक दिन कविता पटेल मोबाइल के कौंटैक्ट नंबर देख रही थी, तभी उसे शादी से पहले के प्रेमी बृजेश का नंबर दिखा. नंबर देखते ही उसे पुराने दिन याद आने लगे. वह बृजेश से बात करने की कोशिश तो करती, लेकिन कुछ सोच कर रुक जाती थी.

आखिरकार एक दिन उस ने बृजेश से बात करने की गरज से फोन किया तो बृजेश बर्मन ने काल रिसीव करते हुए कहा, “हैलो कौन?’’

“बृजेश, पहचाना नहीं मुझे. तुम तो बहुत जल्दी बदल गए, अब तो मेरी आवाज भी भूल गए.’’ कविता ने शिकायती लहजे में कहा.

“जानेमन तुम्हें कैसे भूल सकता हूं. इस अननोन नंबर से काल आई तो पहचान नहीं सका.’’ बृजेश सफाई देते हुए बोला.

“तुम ने तो मेरी शादी के बाद कभी काल भी नहीं की,’’ कविता बोली.

“कविता, मैं तुम्हें दिल से चाहता था, इसलिए मैं तुम्हारा बसा हुआ घर नहीं उजाड़ना चाहता था. मैं ने अपने दिल पर पत्थर रख कर तुम्हारी खुशियों की खातिर समझौता कर लिया था,’’ बृजेश बोला.

“सचमुच इतना प्यार करते हो तो मुझ से मिलने दमोह आ जाओ, मुझ से तुम्हारी जुदाई बरदाश्त नहीं हो रही.’’ कविता ने फिर से उस के प्रति चाहत दिखाते हुए कहा.

इतना सुनते ही बृजेश का दिल बागबाग हो गया. फिर एक दिन वह कविता से मिलने उस की ससुराल पहुंच गया. कई महीने बाद बृजेश और कविता ने अपने दिल की बातें कीं तो उन का पुराना प्यार जाग गया. उस के बाद दोनों की मेलमुलाकात का सिलसिला चल निकला. बृजेश से जब कविता का दोबारा संपर्क हुआ तो उस समय वह टेंट हाउस में काम करने लगा था. कविता से उस की मुलाकात अकसर कालेज जाते समय होती थी.

प्रेमी को बताती थी मुंहबोला भाई

जब बृजेश कविता की ससुराल भी आने लगा तो कविता ने अपने ससुर और पति से उस का परिचय मुंहबोले भाई के तौर पर कराया. वैसे तो कविता को दीपचंद जैसा नेक पति मिल गया था, परंतु पति के शादी के बाद नौकरी के लिए चले जाने से कविता का पुराना प्यार जाग गया था.

दीपचंद को जब कविता और बृजेश के प्रेम संबंधों का पता चला तो हंसते खेलते परिवार में कलह होते देर न लगी. लाख समझाने के बाद भी जब कविता नहीं मानी तो दीपचंद ने कविता पर सख्त पहरा लगा दिया. इस का अंजाम यह हुआ कि कविता के कहने पर बृजेश ने कविता की मांग का सिंदूर मिटा दिया.

22 जुलाई, 2023 दोपहर के करीब 2 बज रहे थे. मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड अंचल के दमोह जिले के गैसाबाद थाने में टीआई विकास सिंह चौहान अपने कक्ष में बैठे कुछ जरूरी फाइल देख रहे थे. तभी अधेड़ उम्र के एक व्यक्ति ने उन के कक्ष के बाहर से आवाज लगाई, “साब, क्या मैं अंदर आ सकता हूं?’’

टीआई चौहान ने एक नजर सामने खड़े उस व्यक्ति पर डालते हुए कहा, “हां, आ जाइए. बैठिए.’’

जब वह व्यक्ति कुरसी पर बैठ गया तो उन्होंने पूछा, “बताइए, क्या काम है?’’

“साहब, मेरा नाम हाकम पटेल है और मैं खैरा गांव का रहने वाला हूं. मेरा बेटा पिछले 3 दिनों से लापता है.’’

टीआई विकास सिंह चौहान ने एक कर्मचारी को पानी लाने का इशारा करते हुए हाकम पटेल से कहा, “आप इत्मीनान से मुझे पूरी बात विस्तार से बताइए.’’

“जी साहब, 19 जुलाई, 2023 की शाम 7 बजे मेरा 26 साल का इकलौता बेटा दीपचंद पटेल घर से निकला था. तब से उस का कुछ पता नहीं चल रहा है. उस का मोबाइल भी बंद आ रहा है.’’ यह कहते हुए हाकम ने कर्मचारी के हाथ से पानी का गिलास ले लिया.

“शादी हो गई बेटे की?’’ टीआई चौहान ने पूछा.

“हां साहब, 2021 में उस की शादी हो गई. बेटेबहू में किसी तरह का कोई मनमुटाव भी नहीं था.’’ गटागट पानी पीने के बाद हाकम ने बताया.

“किसी पर शक है तुम्हें, किसी से कोई रंजिश तो नहीं थी?’’

“नहीं साहब, हमारी किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी, इसलिए किसी पर शक भी नहीं है.’’

दीपचंद की गुमशुदगी दर्ज कराते हुए टीआई चौहान ने हाकम को भरोसा दिलाया कि पुलिस जल्द ही उस के बेटे दीपचंद को खोज निकालेगी. दीपचंद के लापता होने की खबर उस के ससुराल दमोह से सटे हुए पन्ना तक पहुंची तो दीपचंद के ससुर और साले के साथ कुछ नातेरिश्तेदार भी दमोह पहुंच गए. वे हाकम के साथ मिल कर दामाद की तलाश में जुट गए.

जैसेजैसे दिन बीत रहे थे, टीआई विकास सिंह चौहान को दीपचंद के बिना वजह लापता होने की बात खटक रही थी. दमोह जिले के एसपी सुनील तिवारी के निर्देश पर एसडीओपी (हटा) नितिन पटेल ने दीपचंद की खोजबीन के लिए एक पुलिस टीम गठित कर टीआई चौहान को पतासाजी करने के निर्देश दिए.

हाकम पटेल अपनी करीब 8-10 एकड़ जमीन पर खेतीबाड़ी करते हैं. हाकम ने 2 शादियां की थीं. पहली पत्नी से कोई बच्चा नहीं हुआ और कुछ समय बाद बीमारी के चलते उस की मौत हो गई तो हाकम ने दूसरी शादी कर ली तो दूसरी पत्नी से दीपचंद पैदा हुआ.

दीपचंद जब छोटा ही था कि उस की मां घर छोड़ कर किसी दूसरे मर्द के साथ चली गई. पिता हाकम ने दीपचंद को लाड़प्यार से पालापोसा. दीपचंद केवल 12वीं कक्षा तक ही पढ़ाई कर पाया था. जवान होते ही दीपचंद की शादी पन्ना जिले के सुनवानी गांव की कविता से कर दी गई.

कविता के कदम दीपचंद के घर में पड़ते ही बाप बेटे काफी खुश थे, क्योंकि लंबे अरसे बाद घर में कोई महिला आई थी. दोनों चूल्हा फूंकफूंक कर थक चुके थे, ऐसे में कविता ने जब इस घर की दहलीज पर कदम रखा तो जल्द ही वह दोनों की आंखों का तारा हो गई. ससुर हाकम उसे बेटी की तरह दुलारते तो दीपचंद भी उस की हर ख्वाहिश पूरी करता.

पुलिस के लिए दीपचंद की गुमशुदगी एक पहेली बनी हुई थी. दीपचंद की न तो किसी से रंजिश थी और न ही कोई दुश्मनी. गांव में पूछताछ के दौरान भी कोई सुराग पुलिस के हाथ नहीं लगा, जिस से दीपचंद का पता चल सके. पुलिस की आखिरी उम्मीद दीपचंद की काल डिटेल्स रिपोर्ट पर टिकी हुई थी.

पुलिस ने जब दीपचंद के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि दीपचंद की 19 जुलाई की शाम आखिरी बार पन्ना के लोहरा गांव में रहने वाले बृजेश बर्मन उर्फ कल्लू से बात हुई थी. इस के बाद पुलिस ने बृजेश बर्मन के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि बृजेश की सब से ज्यादा बात चिकला निवासी गणेश विश्वकर्मा से हुई थी. दीपचंद समेत तीनों के फोन नंबर भी टावर लोकेशन में एक साथ खैरा गांव में मिले. इस से साफ हो गया था कि घर से दीपचंद इन दोनों के साथ ही निकला था.

दीपचंद का मोबाइल बंद होने से पहले की आखिरी टावर लोकेशन गांव वर्धा की थी. इसी टावर लोकेशन में गणेश विश्वकर्मा व बृजेश बर्मन के मोबाइल फोन भी बंद हो गए थे. यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस टीम को पूरा भरोसा हो गया कि दीपचंद के लापता होने के बारे में इन दोनों को जरूर कुछ पता होगा.

पुलिस टीम के लिए एक चौंकाने वाली बात यह पता चली कि बृजेश बर्मन उर्फ कल्लू की काल डिटेल्स में दीपचंद की पत्नी कविता का नंबर भी मिला. 19 जुलाई, 2023 को भी बृजेश और कविता के बीच बातचीत हुई थी. इस के पहले भी दोनों के बीच लगातार बात होने की पुष्टि हुई.

पुलिस ने बृजेश बर्मन और फिर गणेश विश्वकर्मा को हिरासत में ले कर पूछताछ की. पहले तो बृजेश ने यह कह कर पुलिस को बरगलाने की कोशिश की कि वह कविता को बहुत पहले से जानता है वह उस के मायके में किराए पर रह चुका है. इसी जानपहचान के चलते कविता से बात करता रहता था. पुलिस को उस की बात पर भरोसा नहीं हुआ. पुलिस के संदेह की सुई बृजेश के इर्दगिर्द घूम रही थी.

पुलिस ने तुक्का मारते हुए बृजेश से कहा, “कविता ने सब कुछ बता दिया है, अब तुम्हारी बारी है. सच बताओगे तो ठीक नहीं तो दूसरा ही तरीका अपनाना पड़ेगा.’’

आखिरकार, तीर निशाने पर लगा और पुलिस की सख्ती के आगे बृजेश बर्मन टूट गया. बृजेश ने दीपचंद की हत्या की पूरी साजिश और हत्या की जो कहानी सुनाई, वह पुराने प्रेम संबंधों की कहानी निकली, जिस में अपने प्रेमी के लिए कविता ने अपनी मांग का सिंदूर ही मिटा दिया. बहू की यह करतूत जान कर दीपचंद के पिता हाकम पटेल के पैरों से तो जैसे जमीन ही खिसक गई.

जहां मां बाप ही करते हैं बेटियों का सौदा

छिप कर की जाने वाली जिस्मफरोशी भले ही अंधेरे में होती हो, लेकिन इस धंधे में उतारी गई लड़कियों की सौदेबाजी खुलेआम होती है. हैरानी तो इस बात की है कि मासूम बच्चियों की बोलियां लगाने वाले उस के परिवार के अपने ही लोग होते हैं. कहीं मां तो कहीं भाई या फिर कहीं दूसरे करीबी चाचा मामा, यहां तक कि बाप भी उस की कीमत तय कर बेटी को सैक्स के बाजार में ढकेल देते हैं. ऐसा मध्य प्रदेश और राजस्थान के जिन इलाके में होता है, उस का चौंकाने वाला खुलासा एक स्टिंग आपरेशन के जरिए हुआ…

दिल्ली के एक बड़े मीडिया हाउस का एक रिपोर्टर खास रिपोर्टिंग के लिए खाक छानता हुआ राजस्थान के एक गांव के बौर्डर पर जा पहुंचा था. धुंधलका गहराने में अभी कुछ वक्त था. उस की एक व्यक्ति से मुलाकात हुई. उस ने अपना नाम लाखन बताया. रिपोर्टर से उस के बारे में पूछा.

गांव आने का कारण पूछा, हालांकि रिपोर्टर ने अपनी असली पहचान और आने का सही कारण बताने के बजाए कुछ और ही बताया. जब वह व्यक्ति उस की बातों से संतुष्ट हुआ, तब उस ने खुद को पास के गांव का निवासी बताया और यह भी आश्वासन दिया कि उस के मकसद को वही पूरा कर सकता है.

फिर दोनों के बीच औपचारिक बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया, “आप को लड़कियां चाहिए? हां, भेज देंगे. बहुत सारी लड़कियां हैं गांव में. कम से कम 50 से 60 लड़किया हैं.”

बातूनी लाखन बोला.

“अरे उतनी का क्या करना है, सिर्फ 2-4. उन की कितनी उम्र होगी?” रिपोर्टर ने झिझकते हुए पूछा.

“कम से कम 14 साल या 15 साल,” लाखन बोला.

रिपोर्टर हामी भरता हुआ बोला, “ठीक है.”

“अभी चल सकते हैं, लड़कियां दिखा दूंगा… जो पसंद आए बता देना. लडक़ी के मांबाप से बात कर लेंगे.”

“ठीक है, चलो मिलवाओ उन से. लेकिन यह बताओ कि आप लोग जब लड़कियों को भेजते हो तो लिखापढ़ी में क्या लिखते हो?” रिपोर्टर ने पूछा.

“जी, लिखापढ़ी पूरी सही करते हैं. हम यहां लिखते हैं कि लड़कियों को नाचनेगाने के लिए होटल में भेजा जा रहा है,” लाखन बोला.

“लेकिन ऐसा क्यों?” रिपोर्टर ने पूछा.

“अरे साहब जी, आप नहीं समझते. यही तो हमारी कलाकारी है. ऐसा बताना तो अपना बहाना है. अगर कोई पुलिस वाला देख ले या उसे शक हो जाए तो ऐसा बोलते हैं.” लाखन ने समझाया.

“अच्छा! बड़े समझदार हो और होशियार भी.” रिपोर्टर ने आश्चर्य जताया.

“लड़कियों को जबरदस्ती थोड़े ही भेज रहे हैं. उन के मांबाप से राय लेंगे. उन के मांबाप को पैसे देंगे. कोई ऐसे ही लड़कियों को उठा के थोड़े ही भेज देंगे कहीं भी.”

“तो लड़कियों को भेजने के लिए एग्रीमेंट क्या लडक़ी के मांबाप करेंगे?” रिपोर्टर पूछा.

“हां, लडक़ी के मांबाप ही करेंगे,” लाखन बोला.

बिचौलिए करा देते हैं लड़कियों का सौदा

इस तरह से बिचौलिया लाखन और ग्राहक बने रिपोर्टर के बीच लड़कियों की सौदेबाजी की बुनियादी शुरुआत हो गई. लाखन ने कथित ग्राहक को आश्वासन दिया कि वह सब कुछ बहुत आसानी से करवा देगा. कहीं कोई मुश्किल नहीं आएगी. कौन्ट्रैक्ट के नाम पर खानापूर्ति भी पूरी करवा देगा. सब से बड़ी बात कि लड़कियां अपनी मरजी से साथ जाएंगी या फिर उस के बताई जगह पर पहुंचा दी जाएंगी.

यह सब राजस्थान के बूंदी जिले के एक गांव रामनगर में हुआ था, जहां हर तरफ गरीबी का आलम साफ नजर आ रहा था. रिपोर्टर को इतना तो अहसास हो ही गया था कि गांव के लोग चंद रुपयों की खातिर अपनी बेटियों को बेचने को तैयार हो जाते हैं. उस के साथ सौदेबाजी की पहल करने वाला गांव में लाखन गरीब परिवारों का बिचौलिया है.

बिचौलिया लाखन ने बताया कि वह लड़कियों की सौदेबाजी तय होने के बाद कैसे लड़कियों को काफी आसानी से ठिकाने पर पहुंचा देगा. सारा काम बहुत आसानी से चुटकी बजाते हुए ऐसे करवा देगा कि किसी को कानोकान खबर तक नहीं होगी, पुलिस को भनक लगनी तो दूर की बात है.

ग्राहक और खुद के बचाव के कौन्ट्रैक्ट की खानापूर्ति भी हो जाएगी. उन्हें यह बताया जाएगा कि लड़कियों को होटल में नाचगाने के लिए भेजा गया है. यह सब जान कर रिपोर्टर को बेहद हैरानी हुई. उसे मालूम हुआ कि बिचौलिए लड़कियों से वेश्यावृत्ति कराने के लिए कैसे आंखों में धूल झोंकते हैं. यही नहीं, बाकायदा बेटियों को बेचने के लिए मांबाप कौन्ट्रैक्ट करते हैं.

दरअसल, एक राष्ट्रीय न्यूज चैनल ने पिछले दिनों मानव तसकरी की जमीनी हकीकत जानने के लिए इनवैस्टिगेशन टीम बनाई थी. टीम पहले राजस्थान के 3 गांवों में गई थी. उन्होंने स्टिंग औपरेशन किया. उन्होंने जिस्मफरोशी के लिए बेटियों से की जाने वाली सौदेबाजी को अपने कैमरे में रिकौर्ड किया था. उस से पता चला कि राजस्थान के उन गांवों में बेटियों की बोलियां लगाई जा रही हैं.

इन की जम कर सौदेबाजी हो रही है और वहां एक तरह से बेटियों का बाजार बन चुका है, जिन में बिचौलियों की भी भरमार हो चुकी है. टीम द्वारा नाबालिग लड़कियों की तसकरी और वेश्यावृत्ति का सच उजागर होने के क्रम में कई तरह के खुलासे हुए. इस में रिश्ते नाते और समाज का एक बदसूरत चेहरा भी उजागर हो गया.

मालूम हुआ कि बेटियों की बोली लगाने वालों में कहीं मां, कहीं चाचा, कहीं भाई तो कहीं दूसरे करीबी रिश्तेदार हैं. बिचौलिए राजस्थान के बूंदी जिले के अंतर्गत एक गांव रामनगर के बारे में बताया कि वहां 50-60 लड़कियां बेचे जाने को तैयार हैं.

परिवार के लोग भी तैयार हुए नाबालिग का सौदा करने को

मीडिया की जांच टीम को बिचौलिए ने नाबालिग लड़कियों के रिश्तेदारों से भी बातचीत करवाई. उन में लडक़े की मां, चाचा, बुआ और भाई तक थे. इन्हीं में भतीजी को बेचने के लिए सौदेबाजी कर रहे चाचा ने अपना नाम जितेंद्र बताया. साथ ही उस ने रिपोर्टर को 2 नाबालिग लड़कियां दिखाईं. उस ने बताया कि एक नाबालिग लडक़ी की कीमत 6 से 7 लाख रुपए है और इसी के साथ उस ने एक साल के कौन्ट्रैक्ट की बात की.

“लडक़ी की उम्र क्या होगी?” ग्राहक बन रिपोर्टर ने जितेंद्र से पहला सवाल पूछा.

“15-16 साल,” जितेंद्र की जगह लाखन तुरंत बोला.

“उम्र कम नहीं है? कानूनी बाधा आई तो…” रिपोर्टर ने फिर सवाल किया.

इस बार जवाब जितेंद्र ने दिया, “कोई दिक्कत की बात नहीं है, अदालत से नोटरी करवा लेना. एक साल के लिए रख लो… लेकिन हां, पैसे 6 से 7 लाख देने होंगे.”

“ऐं! 6 से 7 लाख रुपए. लडक़ी एक साल बाद वापस भी आ जाएगी.” रिपोर्टर बोला.

“हांहां! और नहीं तो क्या? जैसे ही टाइम पूरा होगा, लडक़ी अपने घर आ गई. एक साल के बाद दूसरी लडक़ी खरीद देंगे, फिर हम पर विश्वास हो जाएगा, तब आप जितना बोलोगे, उतनी भिजवा देंगे.” जितेंद्र ने समझाते हुए रिपोर्टर को अपने विश्वास में ले लिया. इस तरह से उन के बीच बात पक्की हो गई. रिपोर्टर मिलने का समय तय कर चला गया और अपनी टीम से जा मिला.

3 लाख में बहन का सौदा करने को तैयार हुआ भाई

उस के बाद जांच टीम का अगला पड़ाव राजस्थान का ही सवाई माधोपुर था. वहां के अदलवाड़ा गांव में रिपोर्टर की मुलाकात किसी बिचौलिए या रिश्तेदार से नहीं, बल्कि लडक़ी के मांबाप से ही हो गई. वे अपनी एक नहीं, बल्कि दोनों बेटियों की बोली लगाने को तैयार बैठे थे. लडक़ी की मां तन्नो ने एक बेटी की कीमत 3 लाख रुपए लगाई, जो उन के पास में थी, जबकि दूसरी मुंबई में थी.

रिपोर्टर ने तन्नो से जब पूछा कि वह बेटियों के बदले में मिले पैसे का क्या करेगी, तब इस के जवाब में उस ने बताया कि बेटी को बेचना उस की मजबूरी है. उसे मकान बनवाना है. उस का मकान नहीं है, इसलिए बेच रही है.

मीडिया इनवैस्टीगेशन का सिलसिला यहीं नहीं रुका. वह राजस्थान के टोंक जिले के जयसिंह गांव भी गई. वहां उन्हें लडक़ी की बोली लगाने वाला उस का मामा मिला. लडक़ी नाबालिग थी, जबकि बाप की उम्र के मामा ने उस की बोली एक लाख 70 हजार रुपए लगा दी. उस ने भी एग्रीमेंट बनवा कर देने की बात कही.

जांच टीम को न केवल राजस्थान, बल्कि मध्य प्रदेश में भी कई परिवार अपनी बेटियों की सौदेबाजी करने वाले मिले. मध्य प्रदेश के ऐसे ही एक गांव बोरखेड़ी में रिपोर्टर को विजय नाम का युवक मिला, जो अपनी ही बहन की सौदेबाजी कर रहा था. उस की बहन मात्र 16 साल की थी. उस के बदले में उस ने 3 लाख रुपए मांगे.

इतना ज्यादा पैसा मांगे जाने को ले कर विजय ने बताया कि उस की बहन कोई नखरे नहीं करेगी, इसे चाहो तो एक दिन में 4 ग्राहकों के पास भेज दो या फिर किसी के पास ही पूरी रात के लिए भेज सकते हो. रिपोर्टर के लिए अपनी ही बहन के बारे में विजय द्वारा किया गया दावा बेहद हैरान करने वाला लगा, फिर भी उन्होंने पूछ लिया, “इस का एग्रीमेंट कैसे होगा?”

जवाब में विजय बोला, “स्टांप पेपर पर.”

“एग्रीमेंट पर साइन कौन करेगा?”

यह पूछे जाने पर विजय बोला, “एग्रीमेंट लडक़ी के नाम पर बनेगा, उस पर मैं साइन करूंगा. दूसरा साइन तुम्हारे नाम के साथ होगा.”

“एग्रीमेंट में क्या लिखा जाएगा?”

“उस में पैसा उधार लेने के बारे में लिखा जाएगा. पैसे चुकाने की शर्त लिखी होगी, लेकिन हां, याद रखना लडक़ी का चार्ज एक दिन के हिसाब से 10 हजार होगा.” विजय ने समझाया.

मध्य प्रदेश के बरदिया गांव में भी बेटियों को बेचने वाले लोग मिल गए. वहां के एक बिचौलिए ने तो अपने परिवार और रिश्तेदारों की कई लड़कियों की सौदेबाजी की बात कही. बबलू नाम के बिचौलिए ने रिपोर्टर को बताया कि उस के पास मौजूद लड़कियों की उम्र 15 के आसपास है. उन की संख्या भी 15 है, लेकिन उन में सिर्फ 5 ही सौदे के लिए तैयार हैं.

मध्य प्रदेश के ही रतलाम जिले में पिपलिया जोधा गांव की एक औरत किरण अपनी भतीजी की सौदेबाजी के लिए सामने आई. उस ने बताया कि उसे अपनी बहन की बेटी के लिए 2 लाख रुपए चाहिए. पूरा पेमेंट वही लेगी. उस के लिए कोई विरोध नहीं करेगा. न मांबाप और न ही कोई दूसरा करीबी रिश्तेदार. किरण ने बताया कि लडक़ी का एग्रीमेंट स्टांप पेपर पर होगा.

इस तरह की वेश्यावृति को बढ़ाने वाले मानव तस्करी को ले कर खबर आने के बाद संसद तक में सवाल उठे. राज्यसभा सांसद किरोड़ी लाल मीणा ने सवाल उठाए. इस तरह के मामले को ले कर पहले भी कलेक्टर के पास जा चुके हैं, लेकिन पिछले 4 साल में मामले और भी बढ़ गए हैं.

—संवाददाता

मानव तस्करी पर चिंता

सालोंसाल से चली आ रही मानव तस्करी में कमी आने के बजाय बढ़ती ही जा रही है, जबकि इसे रोकने के लिए कानून बने हैं. वैश्विक प्रयास किए जा रहे हैं और इस में शामिल यौन अपराधों की रोकथाम के लिए भी कई कानून हैं.

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मदन बी. लोकुर ने इसे ले कर चिंता जताई और कहा कि देश में मानव तस्करी के मामलों में ज्यादातर आरोपी बरी हो जाते हैं. जैसे 2020-2021 में 89 प्रतिशत का बरी हो जाना बेहद ही चिंता का विषय है. उन्होंने केरल न्यायिक अकादमी द्वारा मानव तस्करी विरोधी विषय पर आयोजित एकदिवसीय न्यायिक संगोष्ठी में कहा कि पिछले साल केरल में दर्ज किए गए 201 मामलों में से केवल एक को दोषी ठहराया गया.

पुलिस अकसर बड़ी संख्या में मानव तस्करी के मामलों को अपहरण और लापता व्यक्तियों के मामलों के रूप में गलत तरीके से रिपोर्ट कर देती है. कोई भी यह मानने को तैयार नहीं होता कि मानव तस्करी के मामले भी होते हैं. साइबर जगत में तो और भी प्रचलित हो गया है. इस से जबरन विवाह, बाल विवाह, बंधुआ मजदूरी और आर्थिक कारणों को बल मिला है.

इस बारे में आई 2022 की रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि मानव तस्करी के 2,189 मामले में 6,533 पीडि़त शामिल थे. उन में 4,062 महिलाएं और 2,877 नाबालिग थे.

मानव तस्करी में यौन शोषण, जबरन श्रम, घरेलू दासता, जबरन भीख मांगना, ऋण बंधन और बच्चों या किशोरों को उन की इच्छा के विरुद्ध सेवा करने के लिए मजबूर करना शामिल हैं. इस के व्यापक रूप के मूल कारणों को समझना महत्त्वपूर्ण है. वैसे इस का मुख्य कारण गरीबी, शिक्षा तक सीमित पहुंच, लैंगिक असमानता और बेरोजगारी है.

रोकने के कानून

मानव तस्करी के कई पहलू हैं. जैसे जालसाजी, जोरजबरदस्ती, धमकी, अवैध यात्राएं, अनैतिक भर्तियां, स्थानांतरण, आश्रय, घरेलू नौकरी, निजी सेवा, स्वागत आदि. इन का मुख्य उद्देश्य ही व्यक्तियों का शोषण करना होता है. यह शोषण वेश्यावृत्ति, अंग तस्करी , यौन शोषण, जबरन श्रम, गुलामी और दासता सहित विभिन्न रूपों में होता है.

कहने को तो यह मामला विश्व स्तर पर मौजूद है. जिस में अफ्रीका, मध्य एशिया और दक्षिण एशिया जैसे कुछ क्षेत्र विशेष रूप से प्रभावित हैं. भारत की स्थिति भी चिंताजनक है.

यूनिसेफ का अनुमान है कि हर साल दुनिया भर में लगभग 1.2 मिलियन बच्चों की तस्करी की जाती है और भारत इस का बड़ा स्रोत है. भारत में बाल तस्करी से सब से अधिक प्रभावित राज्यों में पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र शामिल हैं.

इस मुद्दे के समाधान के लिए कई अंतरराष्ट्रीय पहल की गई हैं. संयुक्त राष्ट्र वैश्विक पहल (यूएन जीआईएफटी: यूनाइटेड नेशंस ग्लोबल इनिशिएटिव टू फाइट ह्यूमन ट्रैफिकिंग) मानव तस्करी को रोकने के लिए बनाया गया है.

इसी तरह से बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कनवेंशन (सीआरसी) की स्थापना 1989 में की गई थी. साल 2000 में भारत ने पलेर्मो प्रोटोकाल पर हस्ताक्षर किए थे, जिस में इस से निपटने में सहायता के लिए तसकरी की स्पष्ट परिभाषा बताई गई है.

भारत सरकार ने बाल तसकरी को संबोधित करने और बच्चों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करने के लिए कई कानून और नियम बनाए हैं. वे हैं—

—अनैतिक तस्करी (रोकथाम) अधिनियम, 1956 (आईटीपीए): यह कानून व्यावसायिक यौन शोषण के उद्ïदेश्य से तस्करी  को अपराध मानता है और पीडि़तों के बचाव, पुनर्वास और स्वदेश वापसी का प्रावधान करता है.

—यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम, 2012: यह अधिनियम विशेष रूप से बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों से संबंधित है और जांच और परीक्षण के दौरान उन की सुरक्षा प्रदान करता है.

—यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम 2012: 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्तियों के खिलाफ किए गए यौन अपराधों को संबोधित करता है, जिन्हें कानूनी तौर पर बच्चा माना जाता है.

—बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976: यह अधिनियम बंधुआ मजदूरी पर रोक लगाता है, जिसे अकसर बाल तस्करी से जोड़ा जाता है.

—किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015: यह अधिनियम बच्चों की देखभाल, सुरक्षा और पुनर्वास पर केंद्रित है, जिस में तस्करी की रोकथाम और नियंत्रण के प्रावधान भी शामिल हैं.

मानव तस्करी की शिकायत को गंभीरता से ले कर स्थानीय पुलिस थाने, प्रशासनिक अधिकारी जैसे कि स्थानीय सबडिवीजनल मजिस्ट्रैट (एसडीएम) या उपनिरीक्षक जनरल (स्क्कत्र) को की जा सकती है. अगर शिकायत गंभीर है और संबंधित राज्य की स्थिति में है तो शिकायत को राज्य सरकार के गृह (आंतरिक मामले) विभाग में भी दर्ज किया जा सकता है. ऐसी शिकायतों को गंभीरता से लिया जाएगा और उचित जांच की जाएगी.

खुद ही लिख डाली मौत की स्क्रिप्ट

खुद ही लिख डाली मौत की स्क्रिप्ट – भाग 3

परिवार के साथ बैठ कर बनाया प्लान

कल्लू ऐशोआराम पर बड़ी रकम खर्च करता था. यही कारण रहा कि उस पर कर्ज बढ़ता चला गया. जिन से कर्ज लिया था, वह आए दिन तगादा करने घर पर आते थे. इस वजह से कल्लू का घर से निकलना मुश्किल हो गया था.

कल्लू जब लिए गए कर्ज की मासिक किस्त नहीं भर पा रहा था तो प्राइवेट बैंक के लोन वसूली करने वाले कर्मचारी उसे मकान नीलाम करने की धमकी देने लगे थे. जिस बैंक से कल्लू ने कार लोन लिया था, वह भी कार खींच कर ले जाने की तैयारी में थे. कर्ज में कल्लू बुरी तरह डूब चुका था. आसपास रहने वाले लोगों की नजर में उस के ऐशोआराम की जिंदगी की पोल खुल गई. इन सब कारणों से अब कल्लू को कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था.

एक दिन उस ने अपनी पत्नी से कहा, “मुझ पर कर्ज बढ़ता ही जा रहा है, मेरे मन में एक विचार आ रहा है.”

“कैसा विचार? कुछ उलटापुलटा मत कर लेना. कामधंधा अच्छे से करो. पैसा आएगा तो धीरेधीरे कर्ज भी पटा देंगे.” प्रियंका ने उसे ढांढस बंधाते हुए कहा.

“नहीं प्रियंका, इतना कर्ज अब कामधंधा करने से नहीं चुकेगा. यदि किसी तरह मैं अपने आप को मरा हुआ साबित कर दूं तो कर्ज से मुक्ति मिल जाएगी और जो हम ने बीमा पौलिसी ले रखी हैं, उस से तुम्हें लाखों रुपए भी मिल जाएंगे.” कल्लू ने अपना प्लान समझाते हुए कहा.

कल्लू ने अपने इस प्लान की जानकारी साथ में रहने वाले छोटे भाई दीनदयाल को भी बताई तो उस ने भी सहमति दे दी. इस साजिश में उस की पत्नी और परिवार ने भी साथ देने का वादा किया. कल्लू ने खुद को मरा साबित करने के लिए टीवी पर कई क्राइम शो देखे और अपने प्लान को अंतिम रूप दिया.

13 अप्रैल, 2023 को कल्लू ने पत्नी प्रियंका, छोटे भाई दीनदयाल चढ़ार के साथ भोपाल के भानपुर स्थित अपने घर पर यह प्लान बनाया कि पत्नी और भाई पड़ोसियों को यह कह देंगे कि कल्लू की एक्सीडेंट में मौत हो गई है. इस के बाद कल्लू भानपुर भोपाल स्थित अपने घर से इंद्रपुरी स्थित एक होटल में गया और रूम ले लिया. पत्नी प्रियंका और छोटा भाई दीनदयाल भानपुर स्थित घर पर ही रुक गए.

मौका देख कर दोनों ने रोनापीटना शुरू कर दिया. जब पड़ोसियों ने उन से रोने का कारण पूछा तो बोल दिया कि कल्लू का विदिशा में एक्सीडेंट हो गया है और मौत हो गई है. उन्होंने पड़ोसियों को बताया कि हम गांव के लिए निकल रहे हैं. यहां से दोनों अपने गांव पहुंचे और गांव जा कर रहने लगे.

कल्लू ने मोबाइल सिम प्रियंका के मोबाइल में डाल दी और खुद नया नंबर ले लिया. जब कर्जदारों के फोन आए तो पत्नी ने उन्हें भी कल्लू की मौत की कहानी सुना दी.

दोस्त को बनाया बलि का बकरा

कल्लू ने खुद को मृत घोषित करने के लिए प्लान तो बना लिया, लेकिन इस के लिए उसे एक लाश की जरूरत थी. भोपाल के आरिफ नगर, करोंद निवासी 25 साल के सलमान खान से उस की दोस्ती थी. कुछ साल पहले दोनों भोपाल के शिखा होटल में काम करते थे.

सलमान मूलरूप से विदिशा के गंज बासौदा का रहने वाला था. वह अपनी बहन के पास भोपाल के आरिफ नगर में रहता था. एक ही जिले के होने के कारण सलमान की दोस्ती कल्लू से हो गई. कल्लू ने अपने ही दोस्त से दगाबाजी कर उस की हत्या की प्लानिंग कर डाली.

सलमान नौकरी की तलाश में था. सलमान की इसी कमजोरी का फायदा उठाते हुए कल्लू ने नौकरी दिलाने का झांसा देते हुए कहा, “सलमान भाई, उदयपुरा में एक अस्पताल में मेरा एक परिचित है, वह तुम्हारी नौकरी लगवा देगा. तुम मेरे साथ उदयपुरा चलो.”

अंधा क्या चाहे दो आंखें. सलमान झट से तैयार हो गया. 19 अप्रैल को दोनों भोपाल से बस में सवार हो कर उदयपुरा रवाना हो गए. रात करीब 9 बजे वे बस से सिलवानी पहुंचे और एक ढाबे पर दोनों ने खाना खाया. खाना खा कर रात करीब 11 बजे कल्लू सलमान से बोला, “भाई, रात में उदयपुरा के लिए बस तो मिलेगी नहीं, सडक़ पर पैदल चलते हैं, रास्ते में कोई ट्रक मिलेगा तो लिफ्ट ले कर उदयपुरा चलेंगे.

सिलवानी से रात करीबन 11 बजे पैदल उदयपुरा जाने के लिए दोनों पठापोड़ी गांव के तिराहा पर पहुंच गए. वहां पहुंच कर कल्लू ने सलमान से कहा, “पैदल चल कर काफी थक गए हैं थोड़ा आराम कर लेते हैं, फिर आगे बढ़ते हैं.”

इस के बाद दोनों तिराहे पर जगह देख कर बैठ गए. कुछ देर बाद कल्लू ने कहा, “यहां बैठना खतरे से खाली नहीं है, कोई हमें चोर न समझ बैठे. आगे खेत में आराम से बैठेंगे.”

इस के बाद दोनों एक खेत पर पहुंचे. खेत में मूंग की फसल थी और वहां ठंडक का अहसास भी हो रहा था. कल्लू ने सलमान से कहा, “कुछ देर लेट कर आराम कर लेते हैं, फिर उदयपुरा चलेंगे.”

यहां सलमान ने सहमति देते हुए खेत में रुमाल आंखों पर डाल कर आंखें बंद कर लीं. कल्लू भी बगल में सो गया, मगर नींद उस से कोसों दूर थी. सलमान के गले में अंगोछा डला हुआ था. थकान की वजह से सलमान को जल्द ही नींद आ गई. कल्लू ने मौका पा कर सलमान के गले में पड़े अंगोछे को कस कर खींच दिया, फिर उस ने उसे पीछे की ओर इतनी जोर से खींचा कि वह बेसुध हो गया यानी उस की मौत हो गई.

कल्लू ने खेत के किनारे पड़े बड़े पत्थर को उठा कर सलमान के चेहरे पर 3-4 बार दे मारा. चेहरा बुरी तरह से कुचलने के बाद उस का मोबाइल, पर्स समेत सब कुछ निकाल लिया. इस के बाद कल्लू ने अपना आधार कार्ड और पाकेट डायरी, जिस में उस ने अपने घर का मोबाइल नंबर लिखा था, वह सलमान की जेब में रख दिया और सलमान की लाश को खेत पर ही छोड़ कर भोपाल लौट आया. भोपाल आ कर उस ने फोन कर के गांव में रह रही अपनी पत्नी प्रियंका को सलमान को मारने की पूरी बात बता दी.

अपराधी कितना भी शातिर क्यों न हो, कानून के लंबे हाथ उस तक पहुंच ही जाते हैं. ऐसा ही कल्लू चढ़ार के मामले में हुआ. पुलिस ने कल्लू की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त पत्थर, सलमान का पर्स और मोबाइल भी बरामद कर लिया.

23 अप्रैल, 2023 को तीनों आरोपियों कल्लू चढ़ार, दीनदयाल चढ़ार और प्रियंका के खिलाफ धारा 302 और 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें रायसेन जेल भेज दिया गया.

24 अप्रैल को रायसेन जिले के सिलवानी पुलिस थाने में एसपी विवेक साहबाल ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर घटना का खुलासा किया. चादर से ज्यादा पैर पसारने की कल्लू की फितरत ने उसे संगीन जुर्म करने पर मजबूर कर दिया. अपने दोस्त का कत्ल कर उस परिवार का चिराग बुझा दिया और खुद को पत्नी, भाई के साथ जेल की सलाखों के पीछे जाना पड़ा.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

खुद ही लिख डाली मौत की स्क्रिप्ट – भाग 2

21 अप्रैल की शाम कल्लू की पत्नी प्रियंका अपने देवर और सास के साथ सिलवानी थाने पहुंची, जहां से उन्हें सिविल अस्पताल ले जाया गया. अस्पताल की मोर्चरी में रखे शव और कपड़ों के आधार पर तीनों ने बताया कि यह लाश कल्लू चढ़ार की ही है.

जब टीआई भारत सिंह ने दीनदयाल और उस की मां से कहा कि घर पर खबर कर दो कि परिवार के लोग अंतिम संस्कार की तैयारी कर लें तो दीनदयाल बोला, “साहब, हमारे पिताजी को यह खबर सुन कर हार्टअटैक आ सकता है. हम तो घर जा कर ही सब बताएंगे.”

पुलिस को तीनों के हावभाव देख कर यह नहीं लग रहा था कि कल्लू की मौत से किसी को सदमा पहुंचा हो. दूसरी बात मरने वाले की उम्र 25 साल के करीब थी, जबकि जेब में मिले आधार कार्ड में उम्र 34 साल थी.

पुलिस को पूरा मामला संदिग्ध लग रहा था, इसी वजह से सिलवानी थाने के टीआई भारत सिंह ने एसडीओपी राजेश तिवारी, एडीशनल एसपी अमृत मीणा और एसपी विवेक कुमार साहबाल को मामले की जानकारी देते हुए डैडबौडी के साथ उन के गांव थाना क्षेत्र त्योंदा के गांव बागरोद जाने का निर्णय लिया था.

पुलिस ने चिता से उठाया शव

गांव वालों की तस्दीक के बाद टीआई भारत सिंह, एसआई आरती धुर्वे को जब पूरी तरह यकीन हो गया कि यह डैडबौडी कल्लू की नहीं है तो उन्होंने श्मशान में मौजूद लोगों से कहा, “जिस कल्लू चढ़ार का क्रियाकर्म करने आप लोग आए हैं, यह डैडबौडी उस की नहीं है. डैडबौडी को चिता से हटाइए, अब इस का अंतिम संस्कार नहीं होगा.”

पुलिस की इस काररवाई से वहां मौजूद कल्लू के परिवार के लोग भौंचक रह गए. चिता पर लेटे युवक को मुखाग्नि देने की तैयारी चल ही रही थी कि पुलिस ने शव को चिता से बाहर निकाला. पुलिस ने शव को अपने कब्जे में लिया और इस की सूचना एसपी विवेक कुमार साहबाल को दे दी. इस के बाद कल्लू चढ़ार की पत्नी प्रियंका, भाई दीनदयाल और मां कलाबाई को ले कर थाने आ गई.

तब तक लाश की हालत काफी खराब हो चुकी थी, इस वजह से आवश्यक काररवाई कर रात में ही पुलिस ने वार्ड नं 3 इंदिरा आवास कालोनी के मुक्तिधाम में जेसीबी मशीन से गड्ढा खुदवा कर लाश को दफना दिया, क्योंकि मृतक मुसलिम लग रहा था.

पूछताछ में हुआ चौंकाने वाला खुलासा

दूसरे दिन 22 अप्रैल को पुलिस ने तीनों से सख्ती से पूछताछ की तो उन्होंने यह स्वीकार कर लिया कि यह डैड बौडी कल्लू की नहीं है. तीनों ने बताया कि यह लाश भोपाल में रहने वाले सलमान खान की है.

इस के बाद पुलिस ने सलमान भोपाल के पास करोंद का रहने वाला था. सलमान खान के पिता साबिर खान को घटना की सूचना दी गई और तहसीलदार की उपस्थिति में 22 अप्रैल को लाश को गड्ढे से बाहर निकाला गया.

सलमान के घर वालों की शिनाख्त के आधार पर डैडबौडी उन के सुपुर्द कर दी गई. पुलिस पूछताछ में तीनों ने पुलिस को यह भी बताया कि कल्लू जिंदा है और कल्लू ने ही अपने दोस्त मोहम्मद सलमान खान का कत्ल किया है.

एसपी विवेक कुमार साहबाल के निर्देश पर हत्यारोपी की तलाश हेतु सिलवानी एसडीओपी राजेश तिवारी के नेतृत्व में एक टीम का गठन किया गया, टीम में टीआई भारत सिंह, एसआई आरती धुर्वे, संतोष कुमार दांगी, एएसआई संतोष रघुवंशी, साइबर सेल से एएसआई सुरेंद्र, हैडकांस्टेबल योगेंद्र सिंह राजपूत, कांस्टेबल नीतू चंदेल, नवीन पांडे, मुकेश यादव को शामिल किया गया.

पुलिस ने कल्लू की पत्नी प्रियंका से कल्लू का मोबाइल नंबर और फोटो ले कर उस की तलाश शुरू कर दी. साइबर सेल की मदद से कल्लू की लोकेशन भोपाल के पास भानपुर की मिल रही थी. पुलिस टीम ने दिनरात मेहनत कर के सलमान खान के हत्यारे कल्लू चढ़ार को खोज निकाला.

पुलिस की एक टीम कल्लू की तलाश में जब तक भोपाल पहुंची, उस समय कल्लू भोपाल के बस स्टैंड पर सागर जाने वाली बस में बैठा हुआ था. पुलिस ने मोबाइल लोकेशन के आधार पर कल्लू को धर दबोचा. पुलिस टीम जब कल्लू को भोपाल से सिलवानी ले कर आ रही थी तो कल्लू ने चलती गाड़ी में गेट खोल कर भागने की कोशिश की, परंतु पुलिस ने उसे पकड़ लिया.

चलती गाड़ी से कूदने पर घायल हुए कल्लू का पहले पुलिस ने सिलवानी अस्पताल में इलाज करवाया. इस के बाद सिलवानी थाने आ कर जब पुलिस ने उस से सख्ती के साथ पूछताछ की तो कल्लू ने जो कहानी सुनाई, वह काफी सनसनीखेज निकली.

ऐशोआराम के लिए ले रखा था कर्ज

विदिशा जिले के बागरोद गांव में रहने वाले भगवान दास चढ़ार के 2 बेटों और 2 बेटियों में कल्लू सब से बड़ा था. उस का रंग काला होने के कारण लोग बचपन में उसे कल्लू कह कर बुलाते थे और बाद में यही उस का असली नाम हो गया. जवान होतेहोते कल्लू गलत संगत में पड़ गया.

जब वह 19 साल का था, तब गांव के एक पंडित से विवाद होने पर उसे चाकू मार कर फरार हो गया था. बाद में पुलिस के सामने सरेंडर कर वह जेल भेज दिया. फिर जमानत मिलने के बाद वह भोपाल चला गया था. कल्लू 20 साल की उम्र में गांव छोड़ कर भोपाल चला गया और कैटरिंग का काम करने लगा था.

कैटरिंग का काम करने के दौरान उस का संपर्क एक तलाकशुदा महिला से हुआ, उस महिला का एक बेटा भी था. बाद में उस महिला के साथ वह लिवइन रिलेशनशिप में रहने लगा. कुछ साल बाद घर वालों ने कल्लू की शादी प्रियंका से कर दी और प्रियंका भी 2 बच्चों की मां बन गई.

भोपाल के करोंद इलाके में खुद का मकान बना कर रह रहे कल्लू का रहनसहन और शौक किसी रईस से कम नहीं थे. अपने ऐशोआराम के लिए उस ने बैंक और साहूकारों से कर्ज ले रखा था. कल्लू ने प्राइवेट बैंक से लोन ले कर कार खरीद ली थी. कल्लू अपनी दोनों बीवी और बच्चों का खर्च उठा रहा था.

शराब और अय्याशी के शौक के चलते उस का हाल आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैया की तरह था. अपने शौक पूरा करने के लिए उस ने कुछ लोगों से लाखों रुपए का कर्ज ब्याज पर ले रखा था. कर्ज देने वाले जब उस से रुपए मांगते तो वह किसी दूसरे से रुपए ले कर उस का कर्ज चुका देता.

कल्लू के शौक और खर्च कम नहीं हो रहे थे और आमदनी घटती जा रही थी. कल्लू भोपाल और आसपास के इलाकों में शादीविवाह के फंक्शन में हलवाई का काम करता था. उस ने मकान खरीदने के लिए 13 लाख रुपए, 9 लाख की गाड़ी और किराना की दुकान खोलने के लिए 5 लाख रुपए का कर्ज बैंकों से ले रखा था. कुछ साहूकारों से लिए गए 6-7 लाख के कर्ज को मिला कर करीब 30 से 35 लाख रुपए का कर्ज कल्लू पर था. आए दिन कर्ज देने वाले घर पर आ कर उसे उलाहना देने लगे. कल्लू की पत्नी भी इस से परेशान रहने लगी.

कर्ज से छुटकारा पाने के लिए कल्लू ने क्या योजना बनाई? पढ़िए कहानी के अगले अंक में.

खुद ही लिख डाली मौत की स्क्रिप्ट – भाग 1

सुबह खेतखलिहान के काम से अपने घरों से निकले लोगों को गांव में एंबुलेंस गाड़ी के सायरन की आवाज सुनाई दी तो लोग किसी अनहोनी की आशंका से भयभीत हो गए. घरों से बाहर निकले लोगों ने देखा कि एंबुलेंस के पीछे पुलिस की गाड़ी चल रही थी. यह देख कर लोगों की आपस में कानाफूसी होने लगी. कुछ लोग स्थिति को भांपने के लिए पुलिस की गाड़ी के पीछेपीछे चलने लगे.

एंबुलेंस और पुलिस की गाड़ी गांव के बाहर बने भगवान दास चढ़ार के घर के ठीक सामने खड़ी हो गईं. जैसे ही एंबुलेंस का गेट खुला तो सब से पहले गाड़ी से गांव के कल्लू चढ़ार की पत्नी प्रियंका, उस का भाई दीनदयाल और मां कलाबाई उतरे और उन्होंने रोनापीटना शुरू कर दिया.

लोगों की नजरें कुछ भांपने की कोशिश कर ही रही थीं कि पुलिस गाड़ी से उतरते ही थाना सिलवानी के टीआई भारत सिंह ने आसपास जमा लोगों को बताया कि कल्लू चढ़ार की किसी ने हत्या कर दी है. पोस्टमार्टम के बाद अब उस की डैडबौडी लाए हैं. घर के आसपास के लोगों ने एंबुलेंस से शव को बाहर निकाला और कल्लू के घर के आंगन में लिटा दिया. यह बात 21 अप्रैल, 2023 की है.

मध्य प्रदेश के विदिशा जिले के गांव बांगरोद के रहने वाले कल्लू चढ़ार की मौत की खबर आग की तरह पूरे गांव में फैल गई और छोटे से गांव में मातम छा गया. कल्लू की मौत को ले कर तरहतरह की चर्चाएं होने लगीं.

कल्लू के घर में उस के अंतिम संस्कार की तैयारी होने लगी. गांव की महिलाओं के साथ पुरुषों की काफी भीड़ कल्लू के घर पर जमा हो गई थी. जैसे ही अर्थी उठने की तैयारी हो रही थी गांव की एक बुजुर्ग महिला ने कहा, “कल्लू की बहू प्रियंका को अर्थी के पास ले आओ और उस की चूडिय़ां तोड़ दो.”

घर के भीतर से कुछ महिलाएं प्रियंका को पकड़ कर बाहर अर्थी के पास ले आईं. प्रियंका काफी देर तक अर्थी के पास सिर रख कर रोती रही, मगर प्रियंका ने अपनी चूडिय़ां नहीं तोड़ीं. महिलाएं बारबार चूड़ी तोडऩे के लिए प्रियंका का हाथ पकड़ रही थीं, तभी कल्लू की मां कलाबाई ने यह कह कर सब को चुप करा दिया, “अब बहू का सुहाग उजड़ ही गया है तो चूडिय़ां तोडऩे से क्या होगा, अब तो जल्दी से अर्थी उठाओ और बहू को और मत रुलाओ.”

इस के बाद परिवार के लोगों ने बिना देर किए अर्थी को कंधा दिया और शवयात्रा ले कर शमशान घाट के लिए निकल पड़ी.

चिता पर ही करने लगे कल्लू की शिनाख्त

पुलिस की टीम भी शवयात्रा के साथ चल रही थी. जैसे ही शवयात्रा श्मशान घाट पहुंची, वहां पहले से ही लकडिय़ों की चिता सजी हुई थी. रीतिरिवाज के अनुसार जैसे ही क्रियाकर्म की रस्म अदायगी कर कल्लू के शव को चिता पर लिटाया गया तो वहां पर मौजूद टीआई भारत सिंह ने गांव वालों से कहा, “आप सभी लोग कल्लू की बौडी को अच्छी तरह से देख लें, क्योंकि हमें शक है कि यह डैडबौडी कल्लू की नहीं है.”

टीआई के इतना कहते ही लोग चौकन्ने हो गए. अंतिम संस्कार के लिए आए कुछ लोगों ने कल्लू के शरीर से कपड़े भी हटा दिए और शव को बारीकी से देखने लगे.

गांव में रहने वाला कल्लू का एक हमउम्र युवक बोला, “साहब, कल्लू के एक पैर की 2 अंगुलियां जुड़ी हुई थीं, लेकिन इस डैडबौडी के किसी भी पैर की अंगुलियां जुड़ी हुई नहीं हैं.”

गांव का एक व्यक्ति बोला, “कल्लू का रंग तो काला है और वह शरीर से भी मोटा है, जबकि चिता पर जो लाश रखी है, उस का रंग गोरा है और वह दुबलापतला है.”

गांव के एक बुजुर्ग ने शव के हाथों को देख कर कहा, “कल्लू कैटरिंग का काम करता था और उस के एक हाथ पर जले का निशान था, मगर जिसे चिता पर लिटाया गया है उस के दोनों हाथों में इस तरह का कोई निशान नहीं है.”

गांव में रहने वाले एक मुसलिम युवक ने कहा, “यह डैडबौडी तो किसी मुसलिम युवक की लग रही है, क्योंकि इस का खतना हुआ है.”

मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के सिलवानी थाने की पुलिस टीम जिस आशंका के चलते कल्लू के गांव बांगरोद आई थीं, वह निराधार नहीं थी. दरअसल, 20 अप्रैल, 2023 को पुलिस को यह सूचना मिली थी कि गैरतगंज गाडरवारा स्टेट हाइवे 44 पर सिलवानी से 10 किलोमीटर दूर पठा गांव के मोड़ के पास देवेंद्र रघुवंशी के खेत में एक व्यक्ति की डैडबौडी पड़ी हुई है. यह सूचना गांव के ललित रघुवंशी ने दी थी.

सूचना पा कर थाने के टीआई भारत सिंह ने मौके पर जा कर देखा तो करीब 24-25 साल के नवयुवक का शव मूंग के खेत में पड़ा हुआ था. शव का सिर बुरी तरह से कुचला गया था. मृतक के गले में निशान मिले थे. शव के पास ही एक खून से सना हुआ पत्थर पड़ा हुआ था. मृतक के पास उस के जूते और एक रुमाल भी मिला था.

शव की हालत देख कर लग रहा था कि पहले गला घोंट कर हत्या की गई और फिर पहचान छिपाने के लिए मृतक का चेहरा कुचल दिया गया था. शव को घटनास्थल से ला कर सिलवानी अस्पताल की मोर्चरी में रखवाते वक्त पुलिस ने मृतक युवक के पैंट की जेबों की तलाशी ली तो पीछे के जेब में एक डायरी और आधार कार्ड मिला. आधार कार्ड में युवक का नाम कल्लू चढ़ार, उम्र 34 साल, पता करोंद भोपाल का लिखा हुआ था.

पुलिस ने डायरी खोल कर देखी, जिस में एक मोबाइल नंबर मिला. डायरी में मिले मोबाइल नंबर पर जब एसआई आरती धुर्वे सिंह ने बात की तो फोन एक महिला ने उठाया.

“आप कौन बोल रही हैं. कल्लू चढ़ार कौन है, जानती हैं?” एसआई ने पूछा.

“मैं बांगरोद गांव से किरण बोल रही हूं. वो मेरे पति हैं.”

“मैं सिलवानी थाने से बोल रही हूं. कल्लू कहां है, कुछ पता है आप को?”

“वो 2 दिन पहले घर से बोरास घाट नर्मदा स्नान के लिए गए हुए हैं.”

“आप के घर में कोई पुरुष सदस्य हो तो उन से बात कराइए.”

“हां मेरे देवर हैं, उन से बात कराती हूं.” किरण ने अपने देवर दीनदयाल को फोन देते हुए कहा.

“हां मेम, मैं कल्लू का छोटा भाई दीनदयाल बोल रहा हूं.”

“तुम्हारे भाई कल्लू का सिलवानी के पास मर्डर हो गया है, सिलवानी थाने आ जाइए और शव की पहचान कर लीजिए.” एसआई ने फोन रखते हुए कहा.

वो लाश कल्लू की नहीं थी तो किस की थी? जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग.

बदले की आग में 6 लोगों की हत्या

फरेब के जाल में फंसी नीतू

बदले की आग में 6 लोगों की हत्या – भाग 3

आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए एसपी राय सिंह नरवरिया ने एक पुलिस टीम बनाई. टीम में कोतवाली प्रभारी योगेंद्र सिंह, एसएचओ (महुआ) ऋषिकेश शर्मा, एसएचओ (दिमनी) मंंगल सिंह, एसएचओ (रामपुर), पवन भदौरिया, एसएचओ (सिहोरिया) रूबी तोमर को शामिल किया गया. आपसी रंजिश के चलते बदला लेने की जंग के 6 आरोपियों को पुलिस गिरफ्तार कर चुकी है.

पुलिस एनकाउंटर के बाद 9 मई को मुख्य आरोपी अजीत और उस के चचेरे भाई भूपेंद्र से पूछताछ में सामने आया कि पिछले एक दशक से वे बदले की आग में जल रहे थे. उस के परिवार ने इस नरसंहार की व्यूह रचना काफी समय पहले से तैयार कर रखी थी, लेकिन उन्होंने अपने इस खतरनाक इरादे को कभी जाहिर नहीं होने दिया. बस उन्हें बेसब्री से मौके का इंतजार था.

रिश्तेदारों के अनुरोध पर 3 मई को गजेंद्र सिंह तोमर का परिवार अहमदाबाद से मुरैना आ गय था, यहां वे थके मांदे होने की वजह से अपने रिश्तेदार के यहां ठहरे और 5 मई, 2023 की सुबह लोडिंग वाहनों में गृहस्थी के सामान सहित लेपा गांव पहुंचे.

अहमदाबाद से गजेंद्र सिंह के साथ उन की पत्नी कुसुमा देवी, बेटा वीरेंद्र उस की पत्नी केश कुमारी, नरेंद्र और उस की पत्नी बबली, संजू साधना, राकेश व सीमा, सुनील व मधु, सत्यप्रकाश सहित रंजना, सचिन, अनामिका, इशू, परी, आकाश, शिवा, खुशबू, सान्या, नातीनातिन तथा रघुराज सिंह और उन की पत्नी सरोज आए थे.

इन सभी को साथ ले कर गजेंद्र सिंह तोमर अपनी 10 साल से सूनी पड़ी खानदानी हवेली का ताला खोलने से पहले हवेली की देहरी पूजने के लिए शगुन का नारियल फोड़ा ही था, तभी विरोधी पक्ष के भूरे और जगराम लाठी, फरसा ले कर आ धमके और कहने लगे तुम लोग लेपा कैसे आ गए.

विरोधी पक्ष का यह व्यवहार देख कर गजेंद्र सिंह और उस का परिवार दंग रह गया. विरोधी पक्ष के अजीत सिंह, भूपेंद्र सिंह श्यामू ने चुन चुन कर गजेंद्र सिंह तोमर (64) और उस के 2 बेटे संजू सिंह (45), सत्यप्रकाश (38) और 3 बहुओं केश कुमारी (46), बबली (36) सहित मधु (30) को गोलियों से छलनी कर दिया गया.

जिस देहरी को छोड़ कर गजेंद्र सिंह का परिवार अहमदाबाद चला गया था, 10 साल बाद उसी हवेली की देहरी पर पहुंचते ही परिवार के आधा दरजन लोगों को मौत मिली.

आईजी जोन ने डाला गांव में डेरा

गजेंद्र सिंह तोमर परिवार के 6 सदस्यों की हत्या की सूचना मिलते ही सिहोनिया थाने की एसएचओ रूबी तोमर ने घटना की गंभीरता से पुलिस के आला अधिकारियों को अवगत करा दिया था. इसी सूचना पर पुलिस आईजी (चंबल जोन) सुशांत सक्सेना, डीएम अंकित अस्थाना, एसपी रायसिंह नरवरिया, एसडीएम एल.के. पांडेय लेपा पहुंच गए थे.

घटनास्थल और लाशों का निरीक्षण करने के बाद घायलों को अस्पताल पहुंचाने के साथ ही तनावपूर्ण स्थिति को देखते हुए पुलिस फोर्स तैनात कर दी थी. पुलिस अधिकारियों ने अपराधियों को जल्द पकडऩे का वादा कर किसी तरह हंगामा कर रहे गजेंद्र के परिजनों और रिश्तेदारों को शांत किया. घटनास्थल से अधिकारियों के जाते ही एसएचओ ने घटनास्थल की जरूरी काररवाई निपटा कर सभी लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

हालांकि घटना वाले दिन से ही मृतकों के परिजन अंतिम संस्कार नहीं करने की हठ पर अड़े हुए थे, उन की मांग थी कि उन्हें शस्त्र लाइसेंस स्वीकृति करने के साथ ही परिवार को पुलिस सुरक्षा एवं आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई जाए. आरोपियों के मकान ध्वस्त किए जाएं.

पीडि़त परिवार ने अंतिम संस्कार करने से किया इंकार

मुरैना में पोस्टमार्टम के बाद एंबुलैंस से जैसे ही आधा दरजन शव गजेंद्र सिंह की पैतृक हवेली के सामने पहुंचे, गजेंद्र के बेटे राकेश सिंह और नरेंद्र सिंह तोमर सहित परिवार की महिलाओं ने पुलिस को शवों को एंबुलेंस से नहीं उतरने दिया.

देर रात तक जिला प्रशासन और एसपी शैलेंद्र सिंह चौहान के काफी समझाने के बावजूद परिजन शवों को अंतिम संस्कार करने के लिए लेने को तैयार नहीं हुए तो रात गहराने पर पुलिस ने शवों को एंबुलेंस में ही रखा रहने दिया और एंबुलेंस को भारी पुलिस बल की मौजदूगी में लेपा के शासकीय स्कूल में खड़ा करवा दिया.

अगले दिन सुबह एक बार फिर जिला प्रशासन और पुलिस अधिकारियों ने मृतकों के परिजनों और रिश्तेदारों से मुलाकात की और उन्हें भरोसा दिलाया कि उन की सभी मांगों को मान लिया गया है, तब कहीं जा कर परिजन और रिश्तेदार अंतिम संस्कार के लिए तैयार हुए.

पुलिस 3 एंबुलेंस में सभी शवों को ले कर आसन नदी के किनारे बने श्मशान घाट पहुंची, जहां सभी का एक साथ अंतिम संस्कार कर दिया गया. पुलिस ने इस बहुचर्चित मामले में मुख्य आरोपी अजीत सिंह तोमर व भूपेंद्र सिंह तोमर को गिरफ्तार करने के साथ ही फरार 10 आरोपियों में से अब तक 6 आरोपियों को दबोच लिया है. वहीं भूमिगत आरोपियों पर पुलिस आईजी (चंबल जोन) सुशांत सक्सेना ने 30-30 हजार का इनाम घोषित कर दिया है.

इस कथा के लिखे जाने तक पुलिस धीर सिंह और रज्जो देवी को लेपा गांव से मुख्य आरोपी अजीत को पिता की हत्या का बदला लेने के लिए अपने बेटे के साथ में बंदूक थाम कर धिक्कारने वाली पुष्पा को इटावा से और सोनू तोमर को सीकर से, अजीत और भूपेंद्र तोमर को उसैद घाट से गिरफ्तार कर व्यापक पूछताछ के बाद भूपेंद्र तोमर की निशानदेही पर सिहोनिया पुलिस ने लेपा गांव में गजेंद्र सिंह तोमर परिवार की हत्या में प्रयुक्त की गई अवैध राइफल को गिरवी रखे मकान में भूसे में छिपा कर रखी बंदूक को भी जब्त कर चुकी हैं.

वहीं सोनू तोमर से भी पुलिस ने उस के बताए हुए स्थान से 315 बोर का एक कट्टा बरामद कर लिया है. रिमांड अवधि पूरी होने पर लेपा हत्याकांड के आधा दरजन आरोपियों को अंबाह कोर्ट में पेश कर जेल भेज चुकी है.

पुलिस भूमिगत हो गए 4 अन्य आरोपी धीर सिंह तोमर के तीनों बेटे रामू, श्याम सिंह, मोनू सिंह सहित मुंशी सिंह के भाई सूर्यभान की सरगरमी से तलाश कर रही थी. साथ ही साल 2013 में वीरभान तोमर व सोबरन तोमर की हत्या के मामले फरियादी पक्ष व गवाहों द्वारा गजेंद्र सिंह तोमर के परिवार से मोटी रकम व मकान ले कर राजीनामा कर न्यायिक काररवाई को प्रभावित करने वाले लोगों को कोर्ट से सजा दिलवाने के केस को रीओपन करने की प्रक्रिया में लग गई है.

हालांकि जो औरतें विधवा हो गईं, बच्चे अनाथ हो गए, वे जब तक जिंदा रहेंगे उन का खून खौलता रहेगा. लेपा में एक ही परिवार के आधा दरजन लोगों की हत्या का जो लाइव वीडियो बना है, वह पीडि़त परिवार को कभी ये भूलने नहीं देगा. यह सोच कर दिल घबराता है कि ये सब देख कर गजेंद्र सिंह तोमर के परिवार के बच्चे बड़े होंगे तो क्या करेंगे?

सनक में कर बैठी प्रेमी के दोस्त की हत्या