युवाओं का रोल मौडल बना गैंगस्टर दुर्लभ कश्यप – भाग 1

साल 2018 के अक्तूबर महीने की बात है. 2 महीने बाद मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने थे. विधानसभा चुनाव में सुरक्षा के मद्देनजर अपराधियों की धरपकड़ में उज्जैन पुलिस लगी हुई थी. उस समय महाकाल की नगरी उज्जैन शहर में कम उम्र के लड़कों के एक गैंग का तहलका मचा हुआ था. यह गैंग आए दिन शहर में बलवा कर शहर की शांति व्यवस्था को भंग कर रहा था.

इस गैंग का सरगना एक नाबालिग उम्र का मासूम सी सूरत वाला लड़का दुर्लभ कश्यप था, जिसे पुलिस ने शांति भंग करने के अपराध में गिरफ्तार किया था. उज्जैन के तत्कालीन एसपी सचिन अतुलकर एक प्रैस कौन्फ्रैंस कर रहे थे. दुर्लभ कश्यप और उस के 23 साथियों की मीडिया के सामने परेड कराई गई.  सचिन अतुलकर की कोशिश थी कि चुनाव से पहले पेशेवर अपराधियों को नियंत्रण में कर लिया
जाए.

उस वक्त दुर्लभ 18 साल का भी नहीं था और मीडिया वाले उस के चेहरे से भी अनजान थे. प्रैस कौन्फ्रैंस चल ही रही थी कि एक पत्रकार ने सवाल किया, “इन लड़कों में से दुर्लभ कौन है?”

“आप देखिए, वो खुद ही हाथ उठा कर बताएगा,” एसपी ने जबाव दिया.

फिर पुलिस अधिकारियों के पीछे खड़े लड़कों की टोली में से एक फटी शर्ट वाले लड़के ने बहुत अलग अंदाज में अपना हाथ ऊपर उठाया. दुर्लभ के इस अनोखे अंदाज में उठाए हाथ का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. यह वही वक्त था, जिस के साथ दुर्लभ सोशल मीडिया पर लोगों के बीच पहचान हासिल करने में सफल हो गया. दुर्लभ कश्यप ने अपने आप को गैंगस्टर साबित करने के लिए सोशल मीडिया साइट फेसबुक पर बाकायदा इश्तहार दे रखा था.

दुर्लभ कश्यप का जन्म 8 नवंबर, 2000 को उज्जैन में जीवाजीगंज के अब्दालपुरा में हुआ था. वह पिता मनोज कश्यप तथा माता पद्मा का इकलौता बेटा था. दुर्लभ की मां पद्मा कश्यप उज्जैन के क्षीरसागर स्कूल में शिक्षिका थीं. दुर्लभ के पिता मुंबई में नौकरी करने के बाद इंदौर शिफ्ट हो गए.

दुर्लभ का कुछ समय इंदौर में भी बीता. एक संभ्रांत व संपन्न परिवार के मनोज कश्यप ने बाद में अपना व्यवसाय शुरू किया. तब से ही इन का परिवार उज्जैन में रहने लगा था. मनोज कश्यप व पद्मा ने अपने बेटे का नाम ‘दुर्लभ’ भी इसलिए रखा था कि वह बड़ा हो कर कुछ अलग और अच्छा करेगा.

उन की उम्मीद थी कि वह सब से हट कर कुछ बड़ा काम करेगा, जिस से उन का नाम रोशन हो. दुर्लभ पढ़लिख कर डाक्टर या इंजीनियर बने, इस के लिए दुर्लभ की मां पद्मा ने उसे शहर के नामी स्कूल में दाखिला कराया था.

एक दिन दुर्लभ को स्कूल भेजते वक्त मां ने दुर्लभ से कहा, “बेटा, अच्छे से पढ़ाई करना और एक दिन हमारा नाम रोशन करना.”

“मां तुम ने मेरा नाम दुर्लभ रखा है, देखना एक दिन मेरा नाम इस शहर की गलीगली में गूंजेगा.” दुर्लभ ने मां को जबाब देते हुए कहा. दुर्लभ का नाम रोशन हुआ भी, पर अपराध की दुनिया में.

दुर्लभ के मातापिता कुछ निजी समस्याओं के कारण एकदूसरे से अलग रहने लगे थे. दुर्लभ भी कभी अपनी मां के साथ तो कभी अपने पिता के साथ रहता था. मातापिता दोनों ही उसे अपनी जान से ज्यादा प्यार करते थे. घर में किसी भी चीज की कमी नहीं थी. दुर्लभ की हर ख्वाहिश मांबाप पूरी करते थे, जिस का नतीजा यह हुआ कि लाड़प्यार में वह बिगड़ गया.

दुर्लभ सिगरेट पीने का आदी हो गया. काली शर्ट पहने हुए लड़के , आंखों में काजल, माथे पर अलग तरह का खड़ा लाल टीका, कंधे पर काला पंछा या कहें गमछा और एक नाम दुर्लभ कश्यप. फेसबुक पर तलाशेंगे तो इस नाम के कई अकाउंट्स, पेज और ग्रुप सामने आ जाएंगे. युवाओं में दुर्लभ खासा प्रचलित था.

वह अपने गैंग में अकसर कम उम्र के लड़कों को शामिल किया करता था. दुर्लभ वैसे तो बहुत ही शांत स्वभाव का था, लेकिन बचपन में ही बुरी संगत में पड़ गया था. वह कुछ गैंगस्टरों की दबंगई और
ठाठबाट से बहुत प्रभावित हुआ, इसलिए उस ने कच्ची उम्र में ही बड़ा गैंगस्टर बनने का ख्वाब देख लिया और उसी राह पर निकल पड़ा.

आवारा किस्म के लड़के स्कूल में पढ़ते वक्त ही दुर्लभ के फैन बन चुके थे. वे उसे कोहिनूर के नाम से बुलाते थे. महज 15 साल की उम्र में उस ने फेसबुक पर हथियारों के साथ फोटो डालने शुरू कर दिए और अपनी बदमाशी का प्रचार करना शुरू कर दिया. दुर्लभ का मकसद था कि वह अपना खुद का एक गैंग बनाए, जिस में वह कामयाब भी हुआ. कई नाबालिग लड़के उस के साथ जुड़ते चले गए.

दुर्लभ कश्यप कैसे बना गैंगस्टर

दुर्लभ कश्यप ने 15 साल की उम्र में 10वीं क्लास का इम्तिहान दिया, लेकिन 10वीं में फेल होते ही उस की संगति आवारा किस्म के लड़कों के साथ बढऩे लगी. जिस तरह पूत के पांव पालने में दिखाई दे जाते हैं, ठीक उसी तरह दुर्लभ के तौरतरीकों ने स्कूल में पढ़ते समय ही यह साबित कर दिया था कि वह एक दिन अपराधी ही बनेगा.

देखते ही देखते वह उज्जैन का मशहूर हिस्ट्रीशीटर बन गया था. दुर्लभ कश्यप जब 16 साल का हुआ तो पढ़ाई छोड़ उसे गैंगस्टर बनने की धुन सवार हो गई. वह निकल पड़ा ऐसे रास्ते पर जहां जाना तो बड़ा आसान था, लेकिन वहां से वापसी करना बहुत ही मुश्किल था.

उज्जैन में कार्तिक मेले में उठने वाले पार्किंग के ठेके से दुर्लभ के गैंगस्टर बनने की कहानी शुरू होती है. हेमंत बोखला के जरिए दुर्लभ डागर परिवार के करीबी राहुल किलोसिया के कौन्टैक्ट में आया था. किलोसिया को अपना कारोबार चलाने के लिए कुछ लड़कों की जरूरत थी. यहीं से दुर्लभ और उस के साथियों को पनाह दी जाने लगी.

राहुल किलोसिया ने उज्जैन के बाहरी इलाके में मौजूद एक फार्महाउस को दुर्लभ और उस के साथियों के लिए खोल दिया था. गैंग के लड़के यहां आते और शराबगांजे के नशे में डूब कर खूब मौजमस्ती करते. बदले में ये लड़के किसी भी वारदात को अंजाम देने के लिए तैयार रहते थे.

दुर्लभ कश्यप पर जनवरी, 2018 में पहली बार हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ था. 11-12 जनवरी, 2018 की दरमियानी रात दुर्लभ और उस के साथियों का सामना टाक परिवार से जुड़े कुछ लड़कों से हुआ. इस गैंगवार में कई लड़के घायल हुए. दोनों गुट अपनेअपने साथियों को ले कर उज्जैन के सिविल अस्पताल पहुंचे तो यहां फिर से दोनों गैंग आपस में टकरा गए.

दुर्लभ गैंग के लड़कों ने अर्पित उर्फ कान्हा पर चाकू से हमला किया. 13 जनवरी, 2018 को उस की मौत हो गई. इस मामले में दुर्लभ और उस के साथियों को आरोपी बनाया गया. दुर्लभ और उस का साथी राजदीप उस वक्त नाबालिग थे, जिस की वजह से उन्हें उज्जैन के बाल सुधार गृह भेज दिया गया. 4 महीने काटने के बाद दोनों को इस केस में जमानत मिल गई. दुर्लभ को फोटो खिंचवाने का बहुत शौक था. वह उज्जैन के अलगअलग पेशेवर फोटोग्राफर्स से अपनी फोटो खिंचवाता था.

पत्नी और प्रेमी के प्यार में पिसा करन

तुझे राम कहें या राक्षस – भाग 3

मुंबई में शायद वह कामयाब हो भी जाता, लेकिन जिन दिनों वह रवींद्र भवन में काम करता था, उन्हीं दिनों उस की मुलाकात इसी इलाके के 2 बदमाशों उजेब और अजीज उल्ला से हुई थी. ये दोनों नशा करने और कराने के लिए रवींद्र भवन के पास ही मंडराते रहते थे. इन दोनों की संगत में पड़ कर राम नशा करने लगा था. लेकिन इस के एवज में उसे अपना शोषण कराना पड़ता था.

अजीज और उजेब ने उस का पीछा मुंबई तक किया तो वह परेशान हो उठा. उस में इन बदमाशों से टकराने की हिम्मत नहीं थी. मुंबई से पहले वह भोपाल आया और फिर भोपाल से विदिशा आ गया. लेकिन इन दोनों बदमाशों से उसे छुटकारा नहीं मिला. ये दोनों विदिशा जा कर उस का शोषण करने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे. राम नायडू जब बहुत परेशान हो गया तो उस ने अपने भोपाल वाले मामा के साथ मिल कर विदिशा में अजीज उल्ला की हत्या कर दी.

यह सन 2003 की बात है. उस का यह जुर्म छुपा नहीं रह सका. पुलिस ने राम नायडू और उस के मामा को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. सन 2006 में हत्या का आरोप साबित होने पर अदालत ने उसे और उस के मामा को आजीवन उम्रकैद की सजा सुनाई.

सन 2011 तक राम नायडू जेल में रहा. इसी बीच ग्वालियर हाईकोर्ट में दायर राम नायडू और उस के मामा की जमानत याचिका मंजूर हो गई. मामाभांजा दोनों जमानत पर जेल से बाहर आ गए. राम नायडू बाहर तो आ गया, पर उस के सामने हजार तरह की दुश्वारियां मुंह बाए खड़ी थीं. उस के ऊपर कातिल का ठप्पा लगा था. ऐसे में उसे नौकरी मिलना मुश्किल था. जबकि कोई कामधंधा वह जानता नहीं था, जिस से अपना गुजरबसर कर लेता.

जब आदमी को कोई राह नहीं मिलती तो वह अपने लिए टेढ़ी राह चुन लेता है. यही राम नायडू के साथ हुआ. कामधंधा न होने के बावजूद वह हैरतअंगेज तरीके से अमीर होता गया. उस का रहनसहन ठाठबाट देख कर उसे जानने वाले चकित थे कि जेल से छूटे मुजरिम के पास इतना पैसा कहां से आ रहा है.

पूछने पर वह लोगों को बताता था कि वह प्रौपर्टी डीङ्क्षलग का धंधा कर रहा है, जिस से दलाली में अच्छाखासा पैसा मिल जाता है. इसी दौरान भोपाल के कोलार इलाके में उस ने नगद पैसे दे कर एक महंगा फ्लैट खरीद लिया. उन दिनों राम नायडू की रईसी और अय्याशी शबाब पर थी.

हकीकत यह थी कि जेल से जमानत पर छूटने के बाद उस ने नया धंधा चुन लिया था. यह धंधा था उम्रदराज लड़कियों से शादी कर के उन से पैसे झटकने का. मध्य प्रदेश की जिन जगहों में उस ने ठगी की, उन में सागर, ग्वालियर, बीना, ङ्क्षछदवाड़ा, खंडवा, खरगोन और सीहोर सहित दर्जन भर शहरों की लड़कियां शामिल थीं. राम के निशाने पर वे लड़कियां रहती थीं, जो 40 की उम्र के लगभग थीं और उन के घर में कोई पुरुष सदस्य नहीं होता था.

धंधा चल निकला तो वह बीवियों के पैसे से अय्याशी करने लगा. जिस को वह ठगता था, वे रिपोर्ट दर्ज नहीं कराती थीं, क्योंकि इस से सिवाय बदनामी के कुछ हासिल नहीं हो सकता था. इस प्लेबौय की कितनी पत्नियां हैं, इस की गिनती कथा लिखे जाने तक जारी थी. लेकिन हैरानी की बात यह है कि तमाम शहरों की लड़कियां यह तो स्वीकार रही हैं कि इस रंगीनमिजाज नटवरलाल ने उन्हें ठगा, पर रिपोर्ट अभी भी दर्ज नहीं करा रहीं.

सिर्फ एक पीडि़ता विजया उस के खिलाफ खुल कर सामने आई, जो जबलपुर मैडिकल कालेज में नर्स है. हैरानी की बात यह है कि उस ने विजया से शादी मृणालिनी को चूना लगाने के बाद बीते 12 नवंबर को भोपाल के आर्यसमाज मंदिर में की थी. शादी के 2-4 दिनों बाद उस ने विजया को समझाबुझा कर या कहें बेवकूफ बना कर इस बात पर राजी कर लिया था कि वह जबलपुर जा कर नौकरी करे. फिर कहीं सेटल होने के बारे में सोचेंगे.

मृणालिनी से ठगे पैसों से उस ने भोपाल के ही नेहरूनगर इलाके में एक और फ्लैट खरीदा था और साथ ही एक पुरानी कार भी खरीद ली थी. इस के बाद भी उस के पास पैसे बच गए थे, जिन से रंगीनमिजाज ठग राम नायडू सीधा बैंकाक जा पहुंचा, जहां वह एक होटल में ठहरा. इस के लिए उस ने जेल से छूटते ही मामा के घर के पते पर पासपोर्ट बनवा लिया था. बैंकाक में उस ने एक कालगर्ल बुक कर रखी थी. यानी शादी की मृणालिनी और विजया सरीखी दर्जनों लड़कियों से और हनीमून मनाने गया विदेश कालगर्ल के साथ.

पूरी तरह फंसने और पुराने पाप उजागर होने के बाद भी राम नायडू ने पूरी बेशर्मी से स्वीकारा कि वह अखबार में वैवाहिक विज्ञापन देख कर शादी का प्रस्ताव भेजता था, शिकार फांसता था, शादी करता था और पत्नियों से शारीरिक संबंध भी बनाता था. भले ही वे इस से मुकरती रहें.

उस ने एक अजीब बात और भी मानी कि उस ने भले ही कई शादियां कीं, पर विजया आज भी उस का सच्चा प्यार है. उस से उस की मुलाकात जबलपुर में उस वक्त हुई थी, जब उस का एक दोस्त वहां इलाज के लिए भर्ती था.

कई पत्नियों वाले इस राम का लंबा नपना तय है, क्योंकि उस के खिलाफ पुलिस तमाम पुख्ता सबूत हासिल कर चुकी है. दाद देनी होगी मृणालिनी की हिम्मत की, जिस ने लोकलाज की परवाह न कर के पहल की. नहीं तो यह अय्याश ठग न जाने और कितनी लड़कियों की जिंदगी से खिलवाड़ कर के उन के पैसे लूटता रहता.

देश भर में उम्रदराज लड़कियां तख्तियां हाथ में लटका कर नारे लगा रही हैं कि अकेले हैं पर कमजोर नहीं. उन्हें एक दफा राम नायडू की अय्याशी से सबक लेना चाहिए, वजह उस ने जाने कितनी अधेड़ अविवाहित महिलाओं की इज्जत और जज्बातों से खिलवाड़ कर के उन का पैसा लूटा है. इस मामले से यह भी साबित होता है कि अकेली रह रही उम्रदराज लडक़ी भावनात्मक रूप से कमजोर होती ही है, जिस का फायदा राम नायडू जैसे ठग आसानी से उठा लेते हैं.

—कथा में लड़कियों के नाम बदले हुए हैं.

तुझे राम कहें या राक्षस – भाग 2

बातों ही बातों में राहुल ने अपनी आगे की प्लानिंग भी बता दी कि अब वह इंदौर में ही रह कर कोई कारोबार करेगा और काम जमते ही मृणालिनी से शादी कर लेगा. मां तो घरजवांई चाहती ही थीं, लिहाजा उन्होंने तुरंत हां कर दी. दिल के हाथों मजबूर मृणालिनी भी इनकार नहीं कर पाईं. अगले 2 दिनों में ही राहुल ने मृणालिनी को बताया कि वह उस के लिए पिता की करोड़ों की जायदाद छोड़ आया है.

राहुल की लच्छेदार बातों का जादू और उस से भी ज्यादा उस की जरूरत, मांबेटी दोनों के सिर चढ़ कर बोल रही थी, इसलिए दोनों ने आंख मूंद कर उस की बातों पर विश्वास कर लिया. राहुल घर में घुसा तो वहीं का हो कर रह गया.

हफ्ते भर में ही फैसला ले लिया गया कि राहुल को बिजनैस शुरू करने के लिए पैसा मांबेटी देंगी. जब राहुल भी दुकान के लिए भागदौड़ करने लगा तो शक की कोई गुंजाइश नहीं रही. जल्द ही उस ने मृणालिनी को बताया कि न्यू पलासिया इलाके में एक दुकान की बात हो गई है, जिस में वह आटोमोबाइल पाट्र्स का बिजनैस शुरू करेगा.

दुकान का किरायाभाड़ा और पाट्र्स खरीदने के लिए राहुल ने करीब 15 लाख रुपए की जरूरत बताई. अपना सबकुछ राहुल को सौंप चुकी मृणालिनी ने अपनी अब तक की बचत के 5 लाख रुपए और उज्जैन में पड़े एक प्लौट को बेच कर मिले 10 लाख रुपए यानी 15 लाख रुपए राहुल को दे दिए.

जून की भीषण गर्मी खत्म हो चुकी थी. ढलती जुलाई की वह उमस भरी 26 तारीख थी, जब सुबहसुबह राहुल ने घर आ कर बताया कि माल आ गया है. मैं सामान का पेमेंट कर के और दुकान पर सामान लगवा कर कुछ घंटों में आता हूं. तैयारी पहले से हो रही थी, इसलिए मां बेटी ने पैसा देने में कोई ऐतराज नहीं किया. राहुल पैसा ले कर गया तो फिर वापस लौट कर नहीं आया.

रविवार 26 जुलाई, 2015 की देर रात तक मृणालिनी और उन की मां राहुल का इंतजार करती रहीं, पर वह घर नहीं लौटा तो वे चिंता में पड़ गईं. मृणालिनी ने राहुल को फोन किया तो उस का मोबाइल स्विच्ड औफ मिला, इस से मांबेटी और घबरा उठीं.

मन में दबा शक यकीन में बदलने लगा था कि कहीं भोलाभाला, मायूस सा दिखने वाला और मीठीमीठी बातें करने वाला राहुल कोई ठग तो नहीं था, जो उन्हीं के घर में रह कर बड़े इत्मीनान से 15 लाख का चूना लगा गया. जैसेजैसे दोनों इस शक को दबाने की कोशिश करतीं, वैसेवैसे वह उन्हें और ज्यादा डराने लगता.

सदमे की सी हालत में आ चुकीं मृणालिनी बारबार इस उम्मीद के साथ राहुल का नंबर डायल कर रही थीं कि शायद इस बार घंटी जाए और काल रिसीव कर के एक महीने के ही सही राहुल जानेपहचाने अंदाज में कहे कि सौरी मोबाइल खराब हो गया था या उस की बैटरी डिस्चार्ज हो गई थी, इसलिए काल पिक नहीं कर पाया.

पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. मांबेटी ने सारी रात बुरे खयालों के साथ करवटें बदलते काटी. उन्हें जरा बहुत उम्मीद थी कि शायद सुबह को राहुल वापस आ जाए, लेकिन उसे नहीं आना था, सो नहीं आया. नतीजतन जल्द ही उन के सामने यह सच आ गया कि राहुल वाकई एक नंबर का ठग था और उस की बताई सारी बातें झूठी थीं. 15 लाख का तो दुख अपनी जगह था ही, लेकिन उस से भी बड़ा दुख यह था कि राहुल मृणालिनी को कहीं का नहीं छोड़ गया था.

कुछ दिन मृणालिनी और उन की मां ने राहुल के वापस आने की झूठी उम्मीद में काटे. लेकिन धोखा खाई मृणालिनी का दिल जानता था कि उस पर क्या गुजर रही है. मां की भी हालत ठीक नहीं थी. उन्होंने जिस आदमी पर बेटे जैसा भरोसा किया, वही सब कुछ लूट कर भाग गया था. महिलाओं का अकेलापन कभीकभी कैसे अभिशाप बन जाता है, यह मांबेटी की हालत देख कर समझा जा सकता था.

लेकिन मृणालिनी खामोश नहीं बैठी. कुछ ही दिनों में उन्होंने खुद को संभाल लिया और एक दिन ‘वी केयर फार यू’ के दफ्तर जा पहुंची, जो इंदौर में पीडि़त महिलाओं की मदद के लिए जाना जाता है. ‘वी केयर फार यू’ की इंचार्ज इंस्पेक्टर सीमा मलिक ने मृणालिनी की दास्तान सुनी और लिखित दरख्वास्त ले ली. परेशानी यह थी कि मृणालिनी के पास राहुल की कोई पुख्ता पहचान नहीं थी. ईमेल किया हुआ केवल एक फोटो भर था, जिस के सहारे राहुल को ढूंढ़ पाना भूसे के ढेर में सुई ढूंढऩे जैसी बात थी. दूसरा जरिया राहुल का मोबाइल नंबर था, जो लगातार बंद जा रहा था.

लंबे वक्त तक जब वी केयर फार यू मृणालिनी के लिए कुछ नहीं कर पाया तो वह अक्तूबर के शुरू में इंदौर के आईजी संतोष कुमार सिंह से मिलीं और सारी बात उन्हें बताईं. संतोष कुमार सिंह ने इस मामले को पूरी गंभीरता से लेते हुए थाना क्राइम ब्रांच के प्रभारी कैलाशचंद पाटीदार को सौंप दिया. कैलाशचंद पाटीदार ने अपनी टीम बना कर ठग राहुल की खोजबीन शुरू कर दी. राहुल तक पहुंचने का एकमात्र जरिया उस का मोबाइल नंबर था, जो 26 जुलाई से ही बंद था.

पुलिस टीम ने जब उस के नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो हैरान रह गई, क्योंकि उस में जितने भी नंबर थे, वे सभी ऐसी महिलाओं के थे, जो अधेड़ थीं. इन में से कुछ से बातचीत करने पर राहुल का असली चेहरा सामने आ गया. वह एक पेशेवर और शातिर ठग था, जो अखबारों के वैवाहिक विज्ञापन देख कर उम्रदराज और हालात की मारी महिलाओं से संपर्क कर के शादी की पेशकश करता था और जहां बात जम जाती थी, वहां इसी तरह शादी कर लेता था.

लेकिन शादी कर के वह किसी के साथ जन्म भर नहीं, बल्कि 7 दिनों या 7 सप्ताह तक ही रहता था. इसी बीच वह अपनी बीवियों का मालमत्ता लपेट कर रफूचक्कर हो जाता था. मृणालिनी के मामले में भी उस ने ऐसा ही किया था. ज्यादा हैरान कर देने वाली दूसरी बात यह थी कि वह हर एक लडक़ी को अलग मोबाइल नंबर देता था, पर फोटो सभी को एक ही भेजता था. हां, अपना नाम जरूर सब को अलगअलग बताता था.

पुलिस टीम के सामने नई परेशानी यह थी कि ठगी की शिकार लड़कियां पूरा सच बताने में हिचकिचा रहीं थीं. वजह थी लोकलाज और बदनामी का डर. अधिकांश ने यह भी कहा था कि राहुल ने उन्हें ठगा भर है. उन से शारीरिक संबंध नहीं बनाए थे. जैसे ऐसा कहने भर से उन्हें कोई चरित्र प्रमाण पत्र प्राप्त हो रहा हो. जाहिर है, यह खुद को खुद के पाकसाफ होने का दिलासा देने वाली बात थी.

बहरहाल, पुलिस के सामने राहुल की असल पहचान का संकट अभी भी मुंह बाए खड़ा था. कोई भी पीडि़ता पुख्ता तौर पर उस के बारे में जानकारी नहीं दे पा रही थी. आखिरकार काल डिटेल्स खंगालते- खंगालते जांच टीम की नजर एक मिसकाल पर पड़ी. इसे छोड़ कर राहुल ने दूसरे सभी नंबरों पर बात की थी. करने को कुछ और था नहीं, लिहाजा पुलिस वालों ने इसी मिसकाल को टारगेट किया. वजह उस के दूसरे तमाम नंबर फर्जी तरीके से हासिल किए गए निकल रहे थे. हर एक को ठगने या शादी करने के बाद वह इस्तेमाल किया नंबर हमेशा के लिए बंद कर देता था.

जब इस मिसकाल वाले नंबर की जांच की गई तो वह विदिशा का निकला. इस की जानकारी ले कर क्राइम ब्रांच ने विदिशा जा कर दबिश दी तो यह नंबर किसी राम नायडू का निकला, जो विदिशा की कृष्णा कालोनी में रहता था. काफी मशक्कत के बाद इस राम नायडू नाम के शख्स को पुलिस टीम ने इंदौर के ही नौलखा इलाके से गिरफ्तार करने में कामयाबी हासिल कर ली.

राहुल दीक्षित और राम नायडू का क्या संबंध है यह पहेली सुलझाने में पुलिस को ज्यादा देर नहीं लगी. पता चला कि राम नायडू ही राहुल दीक्षित था, जिस के कई और भी नाम थे.

पूछताछ में पता चला कि राम नायडू के पिता पी. वेंकटेश्वर आंध्र प्रदेश के रहने वाले थे. पहले वह नागपुर में सेना में नौकरी करते थे. रिटायरमेंट के बाद वह बीएसएनएल में टैक्नीशियन के पद पर काम करने लगे थे. उन्होंने विदिशा में ही मकान बना लिया था. जब पुलिस ने राम नायडू उर्फ राहुल दीक्षित की जन्मकुंडली टटोली तो कई चौंका देने वाली बातें सामने आईं.

राम नायडू विदिशा में ही पैदा हुआ था, लेकिन उस के पिता ने पढ़ाई के लिए उसे भोपाल में रहने वाले उस के मामा ईश्वर प्रसाद के पास भेज दिया था. भोपाल में उस का दाखिला एक प्राइवेट स्कूल में करा दिया गया था. पढ़ाई में राम नायडू ठीकठाक था.

स्कूली पढ़ाई के बाद उस ने एम.पी. नगर प्रैस कौंप्लेक्स के पास नवीन कालेज में दाखिला ले लिया था. जब वह बीए के दूसरे साल में था तो उसे रंगमंच का शौक लग गया. अपनी चाहत पूरी करने के लिए वह देशभर में मशहूर भोपाल के कला केंद्र रवींद्र भवन से जुड़ गया. यहां उस की मुलाकात मशहूर कलाकार आलोक चटर्जी से हुई.

बड़े और प्रसिद्ध कलाकारों का सान्निध्य और प्रोत्साहन मिला तो उस का ध्यान पढ़ाई से उचट गया. वह मुंबई जा कर फिल्म इंडस्ट्री में जमने के सपने देखने लगा. राम नायडू चूंकि महत्त्वाकांक्षी था, इसलिए वह पढ़ाई अधूरी छोड़ कर मुंबई चला गया.

प्रेमिका बनी ब्लैकमेलर

तुझे राम कहें या राक्षस – भाग 1

‘‘बेटी, कब तक मुझ बूढ़ी की तीमारदारी में अपनी जिंदगी खराब करती रहेगी. मेरी मान तो कोई अच्छा सा लडक़ा देख कर शादी कर ले और अपना घर बसा ले, मेरा क्या है, आज हूं कल नहीं. मैं चैन से तभी मर पाऊंगी, जब तेरा बसा हुआ घर देख लूंगी.’’

प्रोफेसर मृणालिनी (बदला हुआ नाम) जब थकीहारी कालेज से घर लौटती थीं तो उन्हें रोज किसी न किसी रूप में मां के इसी तरह के शब्द सुनने को मिलते थे. धीरेधीरे स्थिति यह हो गई थी कि मां जिस दिन ऐसी कोई बात नहीं कहती थीं, मृणालिनी को उन की तबीयत खराब होने का अंदेशा होने लगता था. 37 वर्षीया मृणालिनी इंदौर के एक नामी कालेज में प्रोफेसर थीं और एरोड्रम इलाके में रहती थीं.

पिता की मौत के बाद मृणालिनी ने मां की सेवा करने की ठान ली थी. ठान ही नहीं ली थी, बल्कि ऐसा कर भी रही थीं. घर में कोई और नहीं था, जो मां की देखभाल कर पाता. ऐसे में मृणालिनी को यह ठीक नहीं लगा कि वह मां को उन के हाल पर अकेला छोड़ कर शादी कर लें और ससुराल चली जाएं. इसलिए वह शादी, प्यार, रोमांस और घरगृहस्थी जैसे लफ्जों को भूल कर बेटे की भूमिका में आ गईं थीं. उन्होंने मां की सेवा और देखभाल को ही अपनी जिंदगी का मकसद बना लिया था.

लेकिन बूढ़ी मां की अपनी अलग परेशानी थी, वह नहीं चाहती थीं कि उन की वजह से अच्छीखासी पढ़ीलिखी और सुंदर बिटिया अविवाहित रह जाए. इसलिए वे तरहतरह से उस पर शादी के लिए दबाव बनाती रहती थीं.

मृणालिनी जैसी मिसाल कायम करने वाली दृढ़विश्वासी बेटियों की समाज में कमी नहीं है, जो अपने सुख से ज्यादा मांबाप की सेवा को प्राथमिकता देती हैं, भले ही उन्हें तन्हा जिंदगी क्यों न गुजारनी पड़े. पिछले कुछ दिनों से जैसेजैसे मां की जिद बढ़ती जा रही थी, उसे देख कर मृणालिनी भी सोचने को मजबूर हो गई थीं.

कभी मृणालिनी शादी के बारे में सोचतीं तो वह भी अन्य युवतियों की तरह अल्हड़ युवती में तब्दील हो जातीं. एक ऐसी युवती जो अपने लिए सुहाने सपने देखती है, पति के साथ घूमतीफिरती है, होटलों और मौल में जाती है. दूरदराज के पर्यटनस्थल पर अपने जीवनसाथी के हाथ में हाथ डाले रूमानी बातें करती हैं.

मृणालिनी चूंकि परिपक्व और जिम्मेदार थीं, इसलिए जल्द ही ऐसे ख्वाबोंखयालों को झटक देती थीं और मां के पास बैठ कर बतियाने लगती थीं. ज्यादा बोरियत होने पर वह सहेलियों से फोन पर बातें कर लेती थीं या फिर टीवी पर अपने पसंदीदा सीरियल देखने बैठ जाती थीं. उन से भी जी भर जाता था तो वह पत्रपत्रिकाओं के पन्ने पलटने लगती थीं.

मृणालिनी की सोच में आ रहा यह बदलाव आखिरकार उन के इरादों पर भारी पड़ा. हालांकि उन की सोच यह थी कि कोई कमाऊ जीवनसाथी मिल जाए तो मां की सेवा और देखभाल की जिम्मेदारी भी पूरी होती रहेगी और गृहस्थी भी बस जाएगी. भले ही वह साथ क्यों न रहें. लेकिन यह महज सोचने भर की बात थी, क्योंकि अभी तक कोई ऐसा प्रस्ताव नहीं आया था. खुद मृणालिनी ने भी अपनी तरफ से इस तरह की कोई पहल नहीं की थी.

जब अरमानों और जज्बातों की लड़ाई में अरमान भारी पडऩे लगे तो बीते साल जून के महीने में मृणालिनी ने यह सोचते हुए एक अखबार में अपनी शादी का विज्ञापन दे दिया कि ढंग का कोई जीवनसाथी मिला तो ठीक, नहीं मिला तो कोई बात नहीं. विज्ञापन देते वक्त एक तरह से उन्होंने उम्मीद के साथ नाउम्मीदी के लिए भी खुद को तैयार कर लिया था.

विज्ञापन का वाजिब असर हुआ. उस के छपते ही मृणालिनी के मोबाइल पर धड़ाधड़ प्रस्ताव आने लगे. लेकिन हर आने वाले फोन के साथ उन का उत्साह ठंडा पडऩे लगा. वजह यह थी कि आने वाले अधिकांश प्रस्ताव उन की चाहत के अनुरूप नहीं थे. कोई तलाकशुदा था तो कोई विधुर, उन में से भी अधिकतर बच्चों वाले थे.

कुछ प्रस्तावों पर तो उन्होंने साफ महसूस किया कि प्रस्ताव भेजने वाले की नजर उन के अच्छेभले वेतन, पद और घर पर थी. कुछ ऐसे फोन भी आए, जिन में उम्मीदवार करता धरता कुछ नहीं था, बस पुरुष भर होना ही उस की योग्यता थी. सलीके के अगर कुछ प्रस्ताव आए भी तो उन्होंने यह जान कर आगे दिलचस्पी नहीं ली कि मृणालिनी के घर उन के अलावा सिर्फ एक बूढ़ी मां हैं.

इस सब से मृणालिनी की समझ में आ गया था कि इस उम्र और हालात में अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करना आसान नहीं है. लिहाजा उन्होंने उम्मीद का दामन छोडऩे की सोच ली. तभी जबलपुर से एक फोन आया. फोन करने वाला राहुल दीक्षित नाम का व्यक्ति था, जिस ने अपना परिचय पूरे आत्मविश्वास और आत्मीयता से दिया था.

राहुल ने खुद को जबलपुर के एक बड़े कारोबारी का एकलौता बेटा बताते हुए मृणालिनी से कहा था कि चूंकि उसे अब तक कोई मनपसंद लडक़ी नहीं मिली, इसलिए शादी नहीं की. दोनों के बीच इधरउधर की कुछ और भी औपचारिक बातें हुईं. फोन पर मृणालिनी की मां ने भी राहुल से बात की.

अब तक आए तमाम प्रस्तावों में से यही एक बेहतर प्रस्ताव था. लिहाजा मांबेटी ने रायमशविरा कर के राहुल को इंदौर आने का न्यौता दे दिया, ताकि आमनेसामने साफसाफ बात हो सकें और वे लडक़े को देख भी लें. इस आमंत्रण पर राहुल ने हां करते हुए कहा कि वह जल्द ही इंदौर आएगा.

चंद दिनों के बाद राहुल मृणालिनी के इंदौर स्थित घर जा पहुंचा. जिंदगी में कई बार ऐसा होता है कि आप पहली बार किसी से मिलते हैं तो यही लगता है कि जिस की तलाश थी, वही यह है. ऐसा ही कुछ मृणालिनी और उन की मां के साथ भी हुआ. राहुल से चंद घंटों की बातचीत के बाद दोनों इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने रिश्ते के लिए हां कर दी.

पूरी बातचीत में राहुल ने कोई शर्त नहीं रखी थी. न ही मृणालिनी की नौकरी और वेतन पर चर्चा के अलावा लेनदेन की कोई बात की थी. अलबत्ता पढ़ेलिखे आदमी की तरह उस ने सारी जानकारी जरूर ले ली थी. यह कोई काबिलेऐतराज बात नहीं थी, क्योंकि रिश्ते के मामले में ये बातें बेहद आम और जरूरी होती हैं. मां बेटी को राहुल औरों से हट कर लगा.

पहली ही मुलाकात में बात औपचारिक से अनौपचारिक हो गई थी. जातेजाते राहुल इशारा कर गया कि उस की तरफ से तो कोई दिक्कत नहीं है. अब आगे की बात घर वाले करेंगे. इस के बाद जो हुआ, वह आजकल के हिसाब से बहुत सामान्य है. मृणालिनी और राहुल फोन पर लंबीलंबी बातें करने लगे. इन बातों में भविष्य के सपने भी होते थे. मृणालिनी की मां तो राहुल जैसा नेक और शरीफ लडक़ा पाने की कल्पना से ही खुश थीं. मांबेटी दोनों साथ बैठ कर बातें करती थीं तो यह खुशी दोगुनी हो जाती थी.

मृणालिनी राहुल को चाहने लगी थीं. वह इंतजार कर रही थीं कि उस के कहे मुताबिक उस के घर वाले बात आगे बढ़ाएं. इस बीच उस में काफी बदलाव आया था. वह खुश रहने लगी थीं और फिर से सपने देखने लगी थीं. अधेड़ उम्र की बेटी को मुद्दत बाद यूं खुश देख मां भी फूली नहीं समाती थीं. उन्हें खुशी इस बात की थी कि जीतेजी बेटी का घर बसते देख लेंगी.

कुछ दिनों बाद एक दिन अचानक राहुल परेशान और बदहवास सा मृणालिनी के घर आ पहुंचा तो मांबेटी दोनों उस की हालत देख न केवल चौंकीं, बल्कि खुद भी परेशान हो उठीं. बारबार पूछने और कुरेदने पर राहुल ने बड़ी मासूमियत से बताया कि उस के घर वाले इस शादी पर राजी नहीं हैं, इसलिए वह हमेशा के लिए घर छोड़ कर आ गया है. साथ ही उस ने यह भी बताया कि वह बिजनैस के लिए घर से 20 लाख रुपए ले कर चला था, लेकिन इटारसी जंक्शन पर उस के पैसे और सामान चोरी हो गया.

उस ने अपनी बात कुछ इस ढंग से कही थी कि मृणालिनी और उन की मां चाह कर भी उस पर अविश्वास नहीं कर पाईं. राहुल खाली हाथ था, इसलिए उसे घर में रहने की अघोषित अनुमति मिल गई.

बेटी बनी गवाह : मां को मिली सजा

प्रेमिका बनी ब्लैकमेलर – भाग 3

यह सब जानकारी मिलने के बाद उसे पहली बार पता चला कि वह बुरी तरह से फंस चुका है. शनीफ ने कई बार प्यार से सिमरन को समझाने की कोशिश की, लेकिन उस ने उस की एक न सुनी. उस का साफ कहना था कि अगर उस ने उसे पैसा नहीं दिया तो वह उसे बुरी तरह से बदनाम कर देगी.

बदनामी के डर से वह बारबार उस की मांग पूरी करता रहा. लेकिन उस की मांग खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी. जिस से शनीफ बुरी तरह से तंग आ चुका था. उसी दौरान शनीफ का रिश्ता महाराष्ट्र की एक युवती के साथ पक्का हो गया. हालांकि उस ने रिश्ते वाली बात पूरी तरह से उस से छिपा कर रखी थी. लेकिन पता नहीं उसे किस तरह से शनीफ के रिश्ते की बात पता चल गई. उस के बाद उस ने फिर से उसे ब्लैकमेल करना चालू कर दिया.

शनीफ ने उसे इस बार पैसा देने से साफ मना किया तो उस ने उस से कहा कि यह आखिरी बार है. तुम्हारा निकाह हो जाने के बाद तुम्हें मेरी जरूर तो होगी नहीं. उस के बाद वह उस से कोई पैसा नही मांगेगी.

सिमरन की बात सुनते ही शनीफ को लगा कि इस बार पैसा देने से उस से हमेशाहमेशा के लिए पीछा छूट जाएगा. यही सोच कर उस ने फिर से उसे मोटी रकम दे दी, लेकिन उस के बावजूद भी वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आई. उस ने कुछ ही दिनों में फिर से उस से पैसों की मांग शुरू कर दी थी. परेशान हो कर शनीफ ने उस का फोन तक अटैंड करना बंद कर दिया था.

सिमरन नहीं मानी तो रेत डाला गला

शनीफ ने पुलिस को बताया कि 3 मई, 2023 को सिमरन उस की दुकान पर आ धमकी. उस वक्त दुकान पर काफी ग्राहक खड़े थे. दुकान के सामने आते ही उस ने अपनी स्कूटी रोकी और फिर उसे इशारे से पास बुलाने लगी. उस ने उसे अनदेखा करते हुए अपने ग्राहकों को निपटाया.

उस ने उस के बुलाने पर नहीं गया तो उस ने शनीफ को मोबाइल दिखा कर इशारा किया. उस के इशारे को शनीफ भलीभांति समझता था. उस वक्त दुकान बंद करने का भी समय हो चुका था. आसपास की अधिकांश दुकानें बंद हो चुकी थीं. फिर भी वह अनचाहे मन से उस के पास पहुंचा.

शनीफ ने उस से काफी मिन्नतें की कि वह उसे माफ कर दे. इस वक्त उस के पास उसे देने के लिए कुछ भी नहीं है, लेकिन उस के बाद भी सिमरन अपनी जिद पर अड़ी रही. उस वक्त उस के पड़ोसी उसे शक की निगाहों से देख रहे थे. बारबार उस की धमकी सुन कर शनीफ बुरी तरह पक चुका था.

सिमरन ने फिर से जैसे ही उसे मोबाइल दिखाने की तो शनीफ उस के हाथ से मोबाइल छीन लिया. उस के बाद उसे सडक़ पर दे मारा. फिर वह जल्दी से दुकान की तरफ लपका. जब तक सिमरन ने अपना मोबाइल समेटा, वह दुकान से मीट काटने का छुरा ले कर उस के पास पहुंच गया. जैसे ही सिमरन ने उस के हाथ में छुरा देखा, उस ने वहां से भागने की कोशिश की. लेकिन उस की स्कूटी स्टार्ट नहीं हुई. मौका पाते ही शनीफ ने छुरे से उस का गला रेत दिया.

उस वक्त कई दुकानदार उसे देख रहे थे. लेकिन उस पर खून का भूत सवार होते देख किसी ने भी बोलने की हिम्मत नहीं की. रात के साढ़े 9 बजे के बाजार में सैंकड़ों की मौजूद भीड़ के बीच एक जवान युवती की जघन्य रूप से हत्या किए जाने से बाजार में अफरातफरी मच गई. उस की हत्या को देख कर खरीदार तो इधरउधर हुए ही, साथ ही दुकानदार भी अपनी दुकानें फटाफट बंद कर वहां से निकल लिए थे.

सिमरन को मौत की नींद सुलाने के बाद शनीफ मलिक ने वह छुरा दुकान में रख दिया और फिर वह भी वहां से फरार हो गया. फिर शनीफ ने अपना मोबाइल भी बंद कर लिया था. उस के बाद वह घर पहुंचा, अपने कपड़े चेंज किए और घर वालों को कुछ भी बताए बगैर फरार हो गया.

इस केस के खुलते ही पुलिस ने आरोपी को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में फातिमा, राशिद परिवर्तित नाम हैं

पत्नी और प्रेमी के प्यार में पिसा करन – भाग 4

शाम तक इस टीम ने आ कर जो कुछ बताया, उस से एसएचओ उत्साह से भर गए. पुलिस टीम के अनुसार राधा का अनुराग से शादी से पहले का संबंध जुड़ा हुआ था. रघु सिंह के पड़ोस में रहने वाली 2-3 महिलाओं ने दबी जुबान में बताया था कि राधा की कलाई पर ब्लेड से खुरच कर अंगरेजी का ‘ए’ अक्षर लिखा हुआ है.

एसएचओ उपेंद्र छारी ने पुलिस टीम को भिंड जिले के चतुर्वेदी नगर से अनुराग चौहान को थाने में लाने को भेज दिया. उस टीम में एसआई शिवप्रताप राजावत, एएसआई सत्यवीर सिंह, सिपाही बनवारीलाल, सविता, बाबू सिंह, महेश कुमार, आरक्षक आनंद दीक्षित, यतेंद्र सिंह राजावत, राहुल यादव, हरपाल चौहान, इरशाद, सुनीता अमर दीप और रामकुमार आदि शामिल थे.

दूसरे दिन 22 वर्षीय अनुराग चौहान को थाने में लाया गया तो उस का चेहरा सफेद पड़ा हुआ था. उपेंद्र छारी ने बगैर समय गंवाए अनुराग से पूछा, “राधा का पति करन कहां है अनुराग?”

“म… मुझे क्या मालूम सर.” अनुराग ने नीचे मुंह कर के कहा. उपेंद्र छारी ने हैडकांस्टेबल प्रमोद पाराशर को इशारा किया.

हैडकांस्टेबल प्रमोद पाराशर ने अनुराग के साथ थोड़ी सख्ती से पूछताछ की तो अनुराग टूट गया. उस ने कहा, “सर, मैं ने करन भदौरिया की हत्या कर के उस की लाश जला दी है.”

इस खुलासे पर सभी चौंक गए. एसएचओ ने अनुराग को घूरा, “तुम ने करन की हत्या क्यों की?”

“सर, मुझे मेरी प्रेमिका राधा भदौरिया ने पति करन की हत्या करने के लिए कहा था. मेरा और राधा का 4 साल से प्रेम संबंध है. राधा की शादी उस की मरजी के खिलाफ करन भदौरिया से 9 मई, 22 को हो गई थी. राधा करन के साथ मजबूरी में रह रही थी, वह मुझे रोज फोन कर के रोते हुए कहती थी, मुझे अपने पास बुला लो, मैं करन को पति का प्यार नहीं दे सकती.

“8 फरवरी, 2023 को राधा ने मुझे फोन कर के बताया कि 14 फरवरी को उस का जन्मदिन है. मैं ने विजयवाड़ा से करन को जन्मदिन सेलिब्रेट करने के लिए कोट पोरसा बुलाया है. वह 9 फरवरी, 2023 को अंडमान एक्सप्रैस से ग्वालियर आ रहा है, उसे निपटा दो.”

पत्नी ने कराया मर्डर

कुछ क्षण रुक कर अनुराग ने आगे बताया, “सर, मैं ने अपने दोस्त करन तोमर को घर बुलाया और उस की बाइक से हम ग्वालियर आ गए. बाइक करन तोमर को सौंप कर मैं ने प्लेटफार्म टिकट खरीदा और प्लेटफार्म पर विजयवाड़ा से ग्वालियर आ रही ट्रेन का इंतजार करने लगा.

“दोपहर में ट्रेन आई तो करन बैग ले कर नीचे उतरा. मैं ने उस का पीछा किया. वह बस में सवार हुआ तो मैं भी बस में सवार हो कर करन से दोस्ती गांठ ली. उस से कहा कि मैं भी पोरसा जा रहा हूं. मेहगांव में मेरे दोस्त कार ले कर खड़े हैं, हम कार से पोरसा चलेंगे. करन मान गया.”

लंबी सांस ले कर अनुराग ने बताया, “मेहर गांव से मैं अपने दोस्त की कार डीई 100 बी 6347 से पोरसा के लिए रवाना हुआ, करन को मैं ने ड्राइविंग कर रहे किशन के साथ आगे बिठाया. मैं शैलेंद्र बघेल के साथ कार की पिछली सीट पर बैठा. मैं ने सुनसान इलाका आते ही करन के गले में गमछा डाल कर उस का गला घोंट कर हत्या कर दी. उस की लाश पांडरी मंदिर के आगे बीहड़ में डाल कर पैट्रोल से जला दी और घर आ गए.

“दूसरे दिन हम तीनों कार ले कर फिर पांडरी मंदिर के बीहड़ में गए. करन की अधजली लाश को एक बोरे में भर कर मैं ने थाना सहसों के आगे चंबल नदी में फेंक दिया और मैं ने राधा को उस के रास्ते का कांटा निकाल फेंकने की बात बता दी.”

अनुराग द्वारा करन भदौरिया की हत्या केस का खुलासा होने के बाद हत्यारिन पत्नी राधा भदौरिया को उस की ससुराल से गिरफ्तार कर लिया गया. उस ने बहुत होहल्ला मचाया, चीखचीख कर बोली, “आप लोग मुझे झूठे आरोप में फंसा रहे हैं. करन मेरा पति था, मैं अपना सुहाग क्यों उजाड़ूंगी.”

एसएचओ उपेंद्र छारी ने जब उस का सामना लौकअप में बंद अनुराग से करवाया तो राधा ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. उसी दिन अनुराग की निशानदेही पर करन तोमर और शैलेंद्र बघेल को भिंड से गिरफ्तार कर के थाना गोहद चौराहा में लाया गया. पुलिस ने हत्या में इस्तेमाल कार और करन तोमर की बाइक भी जब्त कर ली. अनुराग को साथ ले जा कर करन की लाश के कुछ अधजले हिस्से और कपड़े बरामद कर लिए गए.

करन की गुमशुदगी को अब भादंवि की धारा 302, 120बी, 305, 201 व 11/13 एमपीडी एक्ट के तहत दर्ज कर लिया गया. रघुसिंह भदौरिया बेटे की हत्या अपनी ही कुलच्छिनी बहू द्वारा करवाए जाने पर गश खा कर गिर पड़े. वह उस दिन को कोसने लगे, जब राधा को बहू के रूप में उन्होंने पसंद किया था, लेकिन अब क्या हो सकता था. उन का लाडला बेटा करन पत्नी राधा की नफरत का शिकार बन गया था.

एसएचओ उपेंद्र छारी ने करन भदौरिया मर्डर केस के अभियुक्तों राधा भदौरिया, अनुराग चौहान, करन तोमर, किशन, शैलेंद्र बघेल के खिलाफ पुख्ता सबूत एकत्र कर के उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल की राह दिखा दी थी.

प्रेमिका बनी ब्लैकमेलर – भाग 2

समय के साथसाथ जैसे सिमरन बड़ी होती गई, उस की सुंदरता में और भी निखार आता गया. जवान होतेहोते वह रूप की रानी बन गई. होश संभालते ही उस ने भी मोबाइल चलाना सीख लिया था. उसी दौरान उसने फेसबुक, वाट्सऐप व इंस्टाग्राम चलाना सीख लिया था. उस के बाद वह अपनी सुंदर फोटो खींच कर सोशल मीडिया पर अपलोड करने लगी. जिस की अदाएं देख कर फेसबुक पर उस के हजारों दोस्त बन गए.

हजारों लोगों के फालोअर बनते ही उस ने अपने रखरखाव पर और अधिक ध्यान देना शुरू कर दिया था, जिस के कारण दिनबदिन उस के फालोअर्स की संख्या में बढ़ोत्तरी होती गई. उसी दौरान उस की फूफी फातिमा का इंतकाल हो गया. फूफी के इंतकाल के बाद उस ने उस घर को छोड़ दिया और किराए का कमरा ले कर अकेली ही रहने लगी. उसे पहले से ही अपनी खूबसूरती पर नाज था. उसी खूबसूरती के कारण ही उस के आसपास में कई चाहने वाले भी बन गए थे.

उन्हीं चाहने वालों में था उस का एक पड़ोसी राशिद, जिस की शनीफ से अच्छी पटती थी. कई बार राशिद ने शनीफ के सामने सिमरन की सुंदरता की तारीफ की थी. लेकिन वह उस से कभी भी रूबरू नहीं हो पाया था. सिमरन की तारीफ सुन कर कई बार उस का उस से मिलने का मन भी करता, लेकिन समय अभाव के कारण वह मिल नहीं पाया था.

शनीफ मलिक से हुआ प्यार

अब से लगभग डेढ़ साल पहले की बात है. हर रोज की तरह उस दिन भी शनीफ अकेला ही दुकान पर बैठा हुआ था, तभी उस की दुकान के सामने एक स्कूटी आ कर रुकी. उस स्कूटी पर सवार युवती निहायत ही खूबसूरत थी. शनीफ की जैसे ही उस युवती पर नजर पड़ी तो वह उसे देखता ही रह गया. उस ने सोचा भी न था कि वह उस की दुकान से अंडे लेने आई है. लेकिन जैसे ही वह युवती उस की दुकान की ओर बढ़ी, उस के दिल की धडक़न दोगुनी हो चली थी. जैसे ही वह पास आ कर खड़ी हुई, वह उसे देखता ही रह गया.

युवती ने दुकान पर पहुंचते ही अंडे देने को कहा. तभी उस के दिमाग में आया कि कहीं यही तो सिमरन नहीं है. उस ने अंडे गिनतेगिनते कुछ हिम्मत जुटाई, “आप का नाम सिमरन तो नहीं?”

“जी हां, मैं ही सिमरन हूं. पर आप मेरा नाम कैसे जानते हो?”

“यूं ही आप के बारे मे मेरे दोस्त चर्चा करते रहते हैं.”

“कौन है, आप का दोस्त?”

“वही राशिद जो आप के पड़ोस में रहता है.”

“ओहो! तो वह आवारा यहां तक घूमता है. वैसे मैं आप का नाम जान सकती हूं.”

“हां, क्यों नहीं. मुझे शनीफ मलिक कहते है.”

“बहुत अच्छा नाम है आप का. ओके चलती हूं.”

“ठीक है, फिर आगे भी हमारी दुकान की शोभा बढ़ाने के लिए आते रहना.”

“जी जरूर, लेकिन आप के बैठने का समय क्या है? क्योंकि मैं इस से पहले भी कई बार यहां से अंडे खरीद कर ले जा चुकी हूं. लेकिन उस वक्त तो शायद आप के वालिद ही मिलते थे.”

“जी हां, दोपहर तक दुकान वही संभालते हैं. मेरी ड्यूटी शाम को शुरू होती है. आप ये मेरा नंबर रख लीजिए, जब आप को अंडे चाहिए, मुझे फोन पर ही बता देना. मैं तुम्हारे आने से पहले ही ताजे अंडे छांट कर रख लिया करूंगा.”

“तो फिर आप ने जो मुझे अंडे दिए हैं, वो बासी हैं क्या?” युवती ने मजाक के लहजे में प्रश्न किया.

“नहींनहीं, फिर भी जब आप मुझे बता कर आओगी तो मुझे सहूलियत होगी.” कह कर शनीफ ने उसे एक विजिटिंग कार्ड थमा दिया. उस के बाद सिमरन हंसती हुई वहां से चली गई.

पहली मुलाकात में ही शनीफ उस की खूबसूरती का दीवाना हो गया था. उस दिन के बाद वह जल्दी ही मोबाइल पर उस की फेसबुक और इंस्टाग्राम को खंगालने में लग गया और जल्दी ही सिमरन के साथ फेसबुक और दूसरे मीडिया प्लेटफार्म पर जुड़ गया. फिर कुछ ही दिनों में दोनों के बीच दोस्ती गहराने लगी.

शनीफ देखनेभालने में हैंडसम था. धीरेधीरे दोनों में दोस्ती इस कदर पक्की हो गई कि उन्हें एकदूसरे से मिले बिना चैन नहीं पड़ता था. दोनों के बीच प्रेम प्रसंग चालू हुआ तो दोनों ही साथ जीनेमरने की कसमें भी खाने लगे थे. उन्हीं एकांत मुलाकातों में सिमरन ने पूरी तरह से अपना शरीर उसे समर्पित कर दिया. सिमरन को पा कर शनीफ अपने आप को बहुत ही भाग्यशाली समझने लगा था. उसे घमंड इस बात का था कि एक खूबसूरत और मौडर्न लडक़ी उस के इतने करीब थी कि उस ने कभी सोचा भी नहीं था.

सिमरन का खर्च उठाने लगा शनीफ

सिमरन शेख से गहरी दोस्ती हो जाने के बाद शनीफ मलिक उसे खर्च के लिए कुछ पैसे भी देने लगा था. वह पूरी तरह से सिमरन को अपनी मानने लगा था. यही कारण रहा कि उस ने कभी भी उसे पैसे देने से मना नहीं किया. समयसमय पर वह उस के छोटेमोटे खर्च खुद ही वहन करने लगा था.

उसी दौरान कई बार दोनों के बीच शारीरिक संबंध भी बने. उन्हीं अवैध संबंधों के दौरान सिमरन अकसर दोनों की वीडियो यह कह कर बना लेती थी कि यह उस का शौक है. उस के बाद वह उन वीडियो को अन्य फोन में भी सेव कर लेती थी. लेकिन शनीफ उसे इस कदर चाहने लगा था कि उस ने कभी भी किसी भी प्रतिक्रिया पर शक नहीं किया था.

उसी दौरान शनीफ के घर वालों ने उस के निकाह करने की सोची. फिर जल्दी ही शनीफ के घर वाले उस के निकाह की चर्चा करते हुए एक लडक़ी की तलाश में जुट गए. यह बात शनीफ ने सिमरन के सामने रखी. उस ने सिमरन से साफ शब्दों में कहा कि इस से पहले मेरे घर वाले मेरा निकाह किसी और लडक़ी से करें, हम दोनों कोर्ट मैरिज कर लेते हैं.

शनीफ जानता था कि अगर उस ने अपने घर वालों के सामने उस का जिक्र किया तो वह उस के साथ निकाह करने के लिए किसी भी हाल में राजी होने वाले नहीं. लेकिन सिमरन ने उस के साथ निकाह करने से साफ मना कर दिया. सिमरन का कहना था कि अभी निकाह करने की क्या जल्दी है. वह इतनी जल्दी निकाह के बंधन में बंधना नहीं चाहती.

सिमरन की बात सुनते ही शनीफ को बहुत बड़ा झटका लगा. वह उसे किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहता था. उस के लिए उसे चाहे कितनी भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े.

प्रेमिका बन गई ब्लैकमेलर

उस के बाद सिमरन ने नएनए खर्च बता कर शनीफ से मोटी रकम ऐंठनी शुरू कर दी थी. उस ने कई बार उस की मांग पूरी कर भी दी, लेकिन उस की मांग पहले से ज्यादा बढऩे लगी थी. शनीफ ने उस के सामने अपनी मजबूरी बताते हुए पैसे देने से मना किया तो उस ने उसे उस के साथ बनाई गई अश्लील वीडियो दिखा कर धमकाने की कोशिश की.

उस ने साफ शब्दों में कहा कि अगर उस ने उस की मांग पूरी न की तो वह उस की सारी वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड कर देगी, जिस के बाद वह सारी जिंदगी कुंवारा ही बैठा रहेगा. सिमरन ने उस के कई फोन काल भी रिकौर्ड कर रखे थे.