नफरत की इंतहा : प्रेमी बना गृहस्थी में ग्रहण – भाग 1

तकरीबन 26-27 साल की उस युवती ने अपना नाम प्रियंका बताया था. हलका सा घूंघट होने के बावजूद उस का आंसुओं से भीगा चेहरा साफ नजर आ रहा था. उस का रंग गेहुंआ था. बड़ीबड़ी आंखें और सुतवां नाक घूंघट की ओट से साफ नजर आ रही थी. थानाप्रभारी बदन सिंह के सामने आते ही वह फफक पड़ी, ‘‘साब मेरा तो सुहाग ही उजड़ गया. बच्चों को भी अनाथ कर गया.’’

फिर चेहरा हाथों में छिपा कर रोने लगी, ‘‘साहब, एक तो मेरा मरद खुदकुशी कर मुझे बेसहारा छोड़ गया. अब घरपरिवार वाले कह रहे हैं कि उस की हत्या हो गई. कोई क्यों करेगा उस की हत्या? हमारा तो किसी से बैर भी नहीं था.’’

इतना कहतेकहते उस ने हिचकियां लेनी शुरू कर दीं. थानाप्रभारी बदन सिंह  ने उसे शांत रहने का संकेत करते हुए कहा, ‘‘आप रोएं नहीं. हम हकीकत का खुलासा कर के रहेंगे. आप पूरी बात को सिलसिलेवार बताइए ताकि हमें अपराधी को गिरफ्तार करने में मदद मिल सके.’’

कुछ पलों के लिए गला भर आने के कारण प्रियंका चुप हो गई. फिर उस ने कहना शुरू किया, ‘‘सच्ची बात तो यह है साब कि हमारा मर्द कुछ दिनों से पैसों की देनदारी और तगादों से परेशान था. उधारी चुकाने की कोई सूरत कहीं से नजर नहीं आ रही थी. दिनरात शराब में डूबा रहता था. कल तो सुबह से ही शराब पी रहा था. शायद दारू के नशे की झोंक में ही जान दे बैठा…’’ प्रियंका की रुलाई फिर फूट पड़ी, ‘‘तगादों से परेशान हो कर जान देने की क्या जरूरत थी?’’

थानाप्रभारी बदन सिंह ने उसे ढांढस बंधाते हुए कहा, ‘‘आप को किसी पर शक है? मेरा मतलब है, जिस के तगादे से परेशान हो कर आप के पति ने आत्महत्या की या उस की हत्या हो गई?’’

‘‘हत्या की बात कौन कह रहा है साब!’’ प्रियंका ने प्रतिवाद करते हुए कहा.

तभी वहां खड़े कुछ लोगों में से एक युवक बोल पड़ा, ‘‘हम कहते हैं साब.’’

इस के साथ ही वह शख्स बुरी तरह उबल पड़ा, ‘‘हमें तो इस कुलच्छिनी पर ही शक है. साहब, इस ने ही मरवाया है अपने पति को… यह आत्महत्या का नहीं बल्कि हत्या का मामला है.’’

इस से पहले कि थानाप्रभारी बदन सिंह उस युवक को तवज्जो देते, प्रियंका चिल्ला पड़ी, ‘‘नहीं… यह झूठ है, हम से दुश्मनी निकालने के लिए यह झूठे इलजाम लगा रहा है.’’

थानाप्रभारी बदन सिंह ने युवक की तरफ देखा, ‘‘कौन हो तुम? तुम कैसे कह सकते हो कि इस की हत्या हुई है और इस के पीछे प्रियंका का हाथ है?’’

‘‘मेरा नाम रामदीन है साहब, रिश्ते में मृतक बुद्धि प्रकाश मेरा चचेरा भाई था.’’ उस के चेहरे की तमतमाहट कम नहीं हुई थी. वह बुरी तरह फट पड़ा, ‘‘साहब बुद्धि प्रकाश का किसी से कोई लेनदेन था ही नहीं. फिर तगादे की बात कहां से आ गई? मेरा भाई मजबूत दिल गुर्दे वाला आदमी था, कायर नहीं था कि आत्महत्या कर लेता. जरूर उस की हत्या हुई है.’’

‘‘तो इस में प्रियंका कहां से आ गई?’’ थानाप्रभारी बदन सिंह ने सवाल दागा.

‘‘आप पूरी जांच कर लो साहब. दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.’’ वहीं मौजूद परिजनों और बस्ती के लोगों ने एक स्वर में कहा, ‘‘साहब, घर में प्रियंका के अलावा और कौन रहता है? बुद्धि प्रकाश ने जिंदगी में कभी शराब नहीं पी, लेकिन पिछले 2 सालों से तो जैसे दारू में डुबकी मार रहा था. अगर उस ने आत्महत्या जैसा कदम उठाया है तो हमारी समझ से बाहर है.’’

इस बीच पड़ोस के कुछ लोग भी बोल पड़े, ‘‘पतिपत्नी के संबंध भी अच्छे नहीं थे. दिनरात झगड़े की आवाज सुनाई देती थी. पड़ोस के नाते हम ने प्रियंका से पूछा भी, लेकिन इस ने मुंह बिचका दिया. कहती थी, नशेड़ी को न घर की चिंता होती है और न ही घरवाली की. दारू पी कर खेतखलिहान में पड़ा रहेगा तो घर में झगड़े ही होंगे.’’

थानाप्रभारी बदन सिंह ने गहरी नजरों से मृतक के परिजनों और पड़ोसियों की तरफ देखा फिर कहा, ‘‘दिनरात दारू में डुबकी मारने की नौबत तो तब आती है जब कोई गहरे तनाव में हो? पतिपत्नी के बीच रोज की खटपट भी इस की वजह हो सकती है? लेकिन आत्महत्या तो बहुत बड़ा कदम होता है.’’

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लेकिन इस सवाल पर परिजनों की खामोशी ने रहस्य का कुहासा और गहरा कर दिया. थानाप्रभारी बदन सिंह के दिमाग में एक सवाल हथौड़े की तरह टकरा रहा था, आखिर मृतक की पत्नी प्रियंका क्यों इस बात पर अड़ी हुई है कि यह आत्महत्या का मामला है.

उन्होंने थोड़े सख्त स्वर मे प्रियंका से पूछा, ‘‘तुम्हें कब और कैसे पता चला कि तुम्हारे पति ने आत्महत्या कर ली है?’’

प्रियंका की रुलाई फिर फूट पड़ी, ‘‘साहब हम तो रोज की तरह तड़के दिशामैदान के लिए चले गए थे. तब भी हमारा मरद ऐसे ही सो रहा था. लौट कर आए तब भी ऐसे ही सोता मिला. हमें बड़ा अटपटा लगा. ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ. हम ने हिलायाडुलाया, कोई हरकत नहीं हुई. दिल की धड़कनें भी गायब थीं. हमारा दिल धक से रह गया. लगा जरूर कुछ गड़बड़ है… हम ने फौरन पड़ोसियों को पुकार लगाई.’’

चौधरी की भूलभुलैया : अपनी ही बनाई योजना में फंसा – भाग 2

मुझे मुखतारा की बात को सच मानना पड़ा. चौधरी बोला, ‘‘मलिक साहब, आप जानते नहीं, सुग्गी किस तरह की औरत थी. छलफरेब उस की नसनस में था. जो औरत अपने पति की नहीं हुई, वह किसी और की कैसे हो सकती है.’’

मैं ने कहा, ‘‘ठीक है चौधरी साहब, आप ने यह तो साबित कर दिया कि सुग्गी को आप ने हवेली पर नहीं बुलाया था, पर मैं ने सुना है कि वह आप की हवेली के अकसर चक्कर लगाती थी.’’

‘‘हां मलिक साहब, वह हफ्ते में 1-2 बार हवेली आती थी.’’ वह थोड़ा रुक कर बोला, ‘‘बात यह है मलिक साहब, मेरी पत्नी का नीचे का हिस्सा पैरलाइज है. सुग्गी को तेल मालिश करने के लिए बुलाया जाता था.’’

उस का बयान सुन कर मैं ने कहा, ‘‘ठीक है चौधरी साहब, अब मैं चलता हूं. लेकिन कल आप मुराद को थाने जरूर भेज दें, उस का बयान लेना है.’’

मैं जीप में बैठ कर गांव के अंदर की ओर जा रहा था, क्योंकि मुझे बशारत के घर के आगे से जाने पर पता लग जाता कि वह आया या नहीं. अभी तांगा चल ही रहा था कि एक औरत जीप के आगे आई. ड्राइवर बोला, ‘‘इस का खसम तो हराम की मौत मारा गया, अब पता नहीं यह क्या चाहती है?’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘क्या यह मुश्ताक की पत्नी बिलकीस है?’’

वह कहने लगा, ‘‘हां, वही है.’’

‘‘मुझे मौत चाहिए दारोगाजी, जब मेरा पति नहीं रहा तो मैं जी कर क्या करूंगी. डायन मेरे पति को खा गई.’’ बोलतेबोलते उस का गला रुंध गया. बिलकीस को देख कर मुझे हैरानी हुई, क्योंकि मुश्ताक बड़ा सुंदर था लेकिन वह छोटे कद की सांवली औरत थी.

मैं ने उस से पूछा, ‘‘बीबी, तुम बिलकीस हो, क्या तुम उस डायन के बारे में कुछ बताओगी?’’

वह बोली, ‘‘आइए थानेदार साहब, मेरे घर आओ, मैं सब कुछ बताऊंगी.’’

मैं ने उस की बात मान ली.

‘‘तुम ने सुग्गी को डायन कहा, वास्तव में वह डायन ही थी.’’ मैं ने उस से हमदर्दी जताते हुए कहा, ‘‘अब मुझे बताओ, उन दोनों के बीच यह चक्कर कब से चल रहा था?’’

‘‘थानेदारजी, मैं बहुत दुखी औरत हूं.’’ वह सिसकते हुए बोली, ‘‘मैं एक कालीकलूटी औरत हूं. मुश्ताक को गोरीचिट्टी औरत चाहिए थी. मैं ने उस से कई बार कहा कि किसी सुंदर सी औरत से निकाह कर ले. मैं नौकरानी बन कर रह लूंगी, लेकिन वह नहीं माना. मुझे क्या पता था कि वह इस तरह घर से बाहर क्या गुल खिलाता फिर रहा है.’’

मैं ने उस से कहा, ‘‘बिलकीस, अगर तुम चाहती हो कि मैं तुम्हारे पति के हत्यारे को पकड़ूं तो मुझे बताओ कि उन दोनों के बीच यह चक्कर कब से चल रहा था?’’

‘‘यह तो पता नहीं. लेकिन मुझे कुछ दिनों पहले ही पता लगा था.’’

‘‘तुम्हें यह बात किस से पता लगी?’’

‘‘मुझे मुराद ने एक महीने पहले बताया था. उस ने कहा था कि अपने पति की देखभाल करो, वह सुग्गी से मिलता है और सुग्गी उस से मिलने डेरे पर जाती है.’’

‘‘तो तुम ने उस पर नजर रखी?’’

‘‘नहीं जी, मैं ने मुश्ताक पर भरोसा किया और समझा कि सुग्गी को ले कर तो किसी को भी बदनाम किया जा सकता है. लेकिन आज की घटना से मुझे पूरा यकीन हो गया कि मुराद की बात सच थी.’’

मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम्हें मुश्ताक से इस बात की पुष्टि करनी चाहिए थी.’’

वह बोली, ‘‘दरअसल, मुराद ने मुझे कसम दे रखी थी.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘अच्छा, यह बताओ तुम्हें किसी पर शक है?’’

वह बोली, ‘‘जब मैं ने देखा ही नहीं तो किस का नाम लूं. लेकिन इस सब का जिम्मेदार मैं सुग्गी को समझती हूं.’’

उठते हुए मैं ने कहा, ‘‘अच्छा बिलकीस, मैं तुम्हारे पति के हत्यारे को जरूर पकड़ूंगा. इस बीच अगर तुम्हें कुछ पता लगे तो मुझे जरूर बताना.’’

उस ने पूछा कि पति की लाश कब मिलेगी. इस पर मैं ने उसे बताया कि जैसे ही लाश अस्पताल से आएगी, मैं खबर कर दूंगा.

वहां से मैं सीधा बशारत के घर पहुंचा. वहां फरमान मिला, उस ने बताया कि वह अभी तक नहीं आया है. मैं ने उस से कहा कि जैसे ही वह आए, मुझे खबर कर देना.

मैं रात का खाना खा कर घर पर बैठा था कि कांस्टेबल आफताब ने आ कर बताया, ‘‘सर, बशारत आया है. उस के साथ उस का साढ़ू भी है. वे चारे से लदी बैलगाड़ी पर आए हैं.’’

मैं थाने पहुंचा और दोनों को अपने कमरे में बुलाया. मैं ने फरमान से पूछा, ‘‘तुम्हारी इस से कोई बात हुई?’’

वह बोला, ‘‘बातें तो बहुत हुई हैं जनाब, लेकिन वही बात जो मैं कह रहा था, उन की हत्या में इस का कोई हाथ नहीं है.’’

मैं ने बशारत की ओर देखते हुए कहा, ‘‘मुझे सचसच बताओ कि तुम ने ये हत्याएं क्यों कीं?’’

उस ने कहा कि इस में उस का कोई हाथ नहीं है.

मैं ने कहा, ‘‘अच्छा तो तुम शराफत की जबान नहीं समझते. तुम्हारे साथ कोई दूसरा तरीका आजमाना पड़ेगा.’’

मैं ने हवलदार को आवाज लगाई. बशारत यह सुन कर कांप गया और रोनी सूरत बना कर कहने लगा, ‘‘जनाब, एक तो मेरी पत्नी की हत्या हो गई और उल्टा आप मुझे ही दबा रहे हैं.’’

‘‘सारे कायदेकानून तुम्हें अभी पढ़ाए जाएंगे, तुम आसानी से छूटने वाले नहीं हो.’’

बशारत की उम्र 40 के लगभग होगी. छोटा कद, चेहरे पर चेचक के दाग, एक टांग से लंगड़ा, पतलादुबला, किसी भी तरह सुग्गी के मेल का नहीं था. ऐसा ही बिलकीस और मुश्ताक का जोड़ था.

हवलदार चमन कमरे में आया तो मैं ने फरमान से कहा कि वह कमरे से बाहर जा कर बैठे. जब जरूरत होगी, बुला लेंगे. वह चला गया तो मैं ने बशारत की ओर देख कर कहा, ‘‘हां भाई, आसानी से बताएगा या सच उगलवाने के लिए हमें मेहनत करनी पड़ेगी.’’

वह कांपते हुए बोला, ‘‘हुजूर, मैं बिलकुल निर्दोष हूं, मैं ने किसी की हत्या नहीं की है.’’

मैं ने उस से कहा, ‘‘चौधरी के डेरे पर जो घटना घटी, वह तुम्हें पता है या मैं बताऊं?’’

‘‘मुझे पता है चौधरी के डेरे पर किसी ने मेरी पत्नी और मुश्ताक की हत्या कर दी है और उस का आरोप मेरे ऊपर लगाया जा रहा है.’’

‘‘स्थिति के हिसाब से शक तो तुम पर ही जाएगा.’’

‘‘हुजून, मुझे क्या पता. मेरे घर से तो दोपहर में वह ठीकठाक गई थी.’’ कहते हुए उस ने गरदन झुका ली.

उस की गरदन झुकी देख कर मैं समझ गया कि वह इस घटना से बहुत दुखी है, इसलिए मैं ने उसे धीरेधीरे कुरेदना शुरू किया. मैं ने उस से पूछा, ‘‘सुग्गी, खाना ले कर तुम्हारे पास कब पहुंची थी?’’

उस ने बताया, ‘‘उस वक्त दोपहर का एक बजने वाला था.’’

‘‘तुम्हारे पास वह कितनी देर रही?’’

उसे कुछ हिम्मत सी हुई, उस ने निर्भीक हो कर कहा, ‘‘यही कोई 20-25 मिनट यानी कोई डेढ़ बजे दोपहर तक.’’

मैं ने उस की आंखों में झांकते हुए कहा, ‘‘तुम रोज सूरज छिपने से पहले घर आ जाते हो, आज इतनी देर कैसे हो गई, कहां थे तुम?’’

‘‘मैं लंगरवाल चला गया था. शफी से अपने पैसे लेने. यह बात मैं ने सुग्गी को भी बता दी थी कि मैं रात तक घर पहुंचूंगा.’’

मैं ने हवलदार चमन को कमरे से बाहर जाने के लिए कहा, क्योंकि वह उस की मौजूदगी में डराडरा बोल रहा था. उस के जाते ही मैं ने उसे बैठने को कहा.

‘‘तुम लंगरवाल कितने बजे गए थे? यह समझ लेना कि मैं आंखें मूंद कर तुम्हारी बातों पर यकीन नहीं कर लूंगा. मैं एक आदमी भेज कर शफी से तुम्हारी बातों की पुष्टि करवाऊंगा.’’

‘‘आप कैसे भी पता कर लें, मैं वहां करीब 4 बजे गया था.’’

मैं ने धीरे से पूछा, ‘‘तुम्हें सुग्गी और मुश्ताक के संबंधों का पता था?’’

वह धीरे से बोला, ‘‘नहीं हुजूर, मुझे इस बारे में कुछ नहीं पता था.’’

‘‘तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है. मैं तुम्हारी बात किसी से नहीं कहूंगा. सचसच बताओ, तुम्हें कुछ पता था?’’

‘‘थानेदारजी, मैं ने आप से कसम खाई है, मुझे कुछ भी पता नहीं था.’’

‘‘तुम्हारी शादी को कितने दिन हो गए?’’

‘‘कोई 7 साल.’’

‘‘फिर तो तुम अपनी पत्नी को अच्छी तरह समझते होगे?’’

वह कुछ उलझ सा गया और मेरी ओर देख कर बोला, ‘‘जी?’’

‘‘देखो, बुरा मत मानना. हम केस की तफ्तीश बड़ी गहराई से करते हैं और हर तरह के सवाल करते हैं. मैं ने तुम्हारी पत्नी के बारे में कुछ अच्छी बातें नहीं सुनीं.’’

वह पलक झपकते ही मेरी बात की गहराई तक पहुंच गया. वह बोला, ‘‘आप ने ठीक ही सुना है.’’

‘‘तुम तो उस के पति थे, तुम उसे समझाते.’’

उस ने अपना चेहरा दोनों हाथों में छिपा लिया और टूटे हुए दिल से बोला, ‘‘मैं उसे क्या समझाता, उस पर मेरा जोर नहीं चलता था.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘हुजूर, दुनिया मुझे उस का पति कहती है, लेकिन यह बात नहीं है.’’ वह रोनी सूरत बना कर कहने लगा, ‘‘असल बात यह है कि आज तक सुग्गी ने मुझे अपने पास तक नहीं आने दिया.’’

‘‘तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं है बशारत, तुम 5 साल के बेटे नवेद के बाप हो.’’

उस ने बड़े दुख से कहा, जैसे उस की आवाज किसी कुएं से आ रही हो, ‘‘थानेदार साहब, भाग्य में अगर औलाद लिखी हो तो मिल ही जाती है, कभी बाप की कोशिश से और कभी मां के जरिए से.’’

बशारत हिचकियों से रोने लगा. वह रोता रहा और अपनी कहानी सुनाता रहा. ऐसी कहानी जो सुग्गी ने उस से जूते की नोक पर लिखवाई थी. जब से उस का विवाह सुग्गी के साथ हुआ था, वह उस की सुंदरता के आगे सिर झुकाए रहता था. जैसा वह कहती थी, वह वही करता था.

मैं ने उस के साढ़ू फरमान को बुलवा कर कहा, ‘‘आज की रात बशारत लौकअप में रहेगा, कल मैं एक सिपाही लंगरवाल भेज कर इस के जाने की पुष्टि कराऊंगा. इस की बात सच हुई तो मैं इसे छोड़ दूंगा.’’

अगले दिन सुबह मैं सरकारी काम से हैडक्वार्टर चला गया. जब दोपहर को वापस थाने आया तो हवलदार चमन ने बताया, ‘‘सरजी, आप के लिए अच्छी खबर है. जिस रिवौल्वर से हत्या की गई थी, वह मिल गया है.’’

मैं उछल पड़ा, ‘‘कहां है रिवौल्वर, कहां से मिला?’’

हवलदार ने बताया कि फरमान दे कर गया है, वह कह रहा था कि यह जानवरों के चारे के ढेर से मिला था. वह अभी कुछ देर में थाने आने के लिए कह कर गया है.

मैं ने जो सिपाही लंगरवाल भेजा था, वह आ गया और उस ने शफी से बशारत के वहां पहुंचने की पुष्टि करा ली थी. मैं ने बशारत को बुला कर कहा, ‘‘बशारत, हत्या में इस्तेमाल रिवौल्वर मिल गया है.’’

उस ने पूछा, ‘‘कहां से मिला?’’

‘‘तुम्हारी बैलगाड़ी पर लदे चारे के ढेर से.’’

वह हकला कर बोला, ‘‘गाड़ी में…किस ने रखा?’’

‘‘यह तो तुम ही बताओगे,’’ मैं ने कपड़े में लिपटे हुए रिवौल्वर की एक झलक उसे दिखाते हुए कहा, ‘‘इसे तुम्हारा साढ़ू चारे के ढेर से लाया है. इसे या तो तुम ने चारे में रखा होगा या फरमान ने.’’

‘‘मैं…मैं ने तो नहीं छिपाया, लेकिन…’’ वह बोलतेबोलते रुक गया, जैसे उसे कोई बात याद आ गई हो.

मैं ने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘लेकिन के बाद तुम्हारी जबान को ब्रेक क्यों लग गया?’’

‘‘मुझे लगता है, यह मुराद का कारनामा है.’

मुराद के नाम से मैं चौंक पड़ा. मैं ने उस से पूछा, ‘‘क्या कहना चाहते हो?’’

वह माथे पर हाथ मार कर बोला, ‘‘यह बात मुझे कल रात क्यों याद नहीं आई?’’

‘‘अब याद आ गई है तो बताओ.’’

‘‘हुजूर, नहीं भूलूंगा, अब मुझे याद आया. जब मैं चारा बैलगाड़ी पर लाद रहा था तो मुराद मेरे पास आया था. उस ने कहा, ‘चाचा, लाओ घास बैलगाड़ी पर लादने में तुम्हारी मदद करता हूं.’ फिर वह चारा लादने लगा. मुझे 101 प्रतिशत यकीन है, मेरी नजर बचा कर उसी ने रिवौल्वर चारे में रख दिया होगा.’’

वह आगे बोला, ‘‘वह मेरे पास करीब साढ़े 3 बजे आया था. मैं ने उस से पूछा कि डेरे की ओर से गोलियां चलने की आवाजें आ रही थीं. सब ठीक तो है न. इस पर उस ने बताया कि उसे कुछ नहीं पता, क्योंकि वह नहर पार वाले खेतों से आ रहा है. फिर वह मेरे पास ज्यादा देर नहीं रुका. मैं भी लंगरवाल चला गया.’’

‘‘तुम ने गोलियों की आवाज मुराद के आने से पहले किस समय सुनी थी?’’

‘‘उस के आने से कोई एक घंटा पहले.’’

मैं ने फरमान और बशारत को जाने के लिए कहा, क्योंकि मुझे इस हत्या में उन का हाथ नहीं लग रहा था. उन के जाने के बाद मैं ने हवलदार से पूछा कि क्या मुराद आया था. उस ने इनकार कर दिया.

‘‘नहीं आया तो अब आएगा.’’ हवलदार मेरा इशारा समझ गया.

‘‘अभी आया सर, उसे लाता हूं.’’

‘‘देखो, 2 कांस्टेबलों को साथ ले कर सीधे चौधरी के डेरे पर जाओ. इस समय वह वहीं मिलेगा. उसे गिरफ्तार कर के ले आओ. और हां, मुराद को चौधरी से नहीं मिलने देना और न ही बात करने देना.’’

शाम से कुछ देर पहले हवलदार चमन मुराद को गिरफ्तार कर के ले आया. मैं ने पूछा, ‘‘इस सरकारी सांड को गिरफ्तार करने में कोई परेशानी तो नहीं हुई?’’

वह बोला, ‘‘परेशानी तो नहीं हुई, लेकिन अपने आप को बहुत तीसमारखां समझ रहा है. मुझे डीएसपी, एसपी की धमकियां दे रहा था.’’

‘‘तुम समझे नहीं चमन, राजा का कुत्ता भी प्रजा को बहुत नीच समझता है.’’

‘‘मेरे लिए क्या हुकुम है सर?’’

‘‘अभी तुम इसे मेरे पास छोड़ जाओ, मैं इसे शराफत का पाठ सिखाऊंगा.’’

चौधरी की भूलभुलैया : अपनी ही बनाई योजना में फंसा – भाग 1

उन दिनों मैं नजीबाबाद में तैनात था. एक दिन एक दोहरे हत्याकांड का मामला सामने आया. मैं एक कांस्टेबल को ले कर घटनास्थल पर पहुंच गया. मई का महीना था. तेज गरमी पड़ रही थी. हत्या की वारदात चौधरी गनी के डेरे पर हुई थी, जो गांव टिब्बी का रहने वाला था. उस डेरे में नीची छतों के कमरे थे और एक कमरे में दोनों मृतकों की लाशें चारपाई पर रखी थीं, जो एक चादर से ढंकी थीं.

कमरे में जितने लोग थे, चौधरी ने सब को बाहर कर के दरवाजा बंद कर दिया. इस के बाद उस ने लाशों के ऊपर से चादर खींच दी. मेरी नजर लाशों पर पड़ी तो मैं ने शरम से नजरें दूसरी ओर फेर लीं. लाशें मर्द और औरत की थीं और दोनों नग्न हालत में एकदूसरे से लिपटे हुए थे. चौधरी ने कहा, ‘‘मैं ने इसीलिए सब को बाहर निकाला था.’’

मैं ने पूछा, ‘‘कौन हैं ये दोनों?’’

उस ने मर्द की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘यह तो मुश्ताक है, मेरा नौकर और यह औरत बशारत की पत्नी सुगरा है.’’

मैं ने दोनों लाशों का बारीकी से निरीक्षण किया. जांच से पता लगा कि दोनों जब एकदूसरे में खोए हुए थे, तभी किसी ने दोनों पर पूरा रिवौल्वर खाली कर दिया था. दोनों के शरीर का ऊपरी भाग खून में नहाया हुआ था. पहली नजर में यह बदले की काररवाई लगती थी. दोनों जवान और सुंदर थे. देखने के बाद मैं ने लाशों पर चादर डाल दी.

‘‘यह किस का काम हो सकता है?’’ मैं ने चौधरी गनी से पूछा.

वह अपनी एक टांग को दबाते हुए बोला, ‘‘यह आप जांच कर के पता लगा सकते हैं.’’

‘‘लेकिन आप का दिमाग क्या कहता है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘मुझे बशारत मतलब सुगरा के पति पर शक है.’’

‘‘क्या आप ने बशारत से पूछताछ की है?’’

‘‘मैं ने एक आदमी उस के घर भेजा था, लेकिन वह घर पर नहीं मिला.’’

‘‘इस का मतलब उसे अभी तक इस घटना का पता नहीं लगा.’’

‘‘मलिक साहब, वह खुद ही इधरउधर निकल गया होगा.’’

चौधरी की बात से मैं समझ गया कि वह बशारत को मुश्ताक और सुगरा का हत्यारा समझ रहा है. मैं ने उस की आंखों में देखते हुए कहा, ‘‘चौधरी साहब, आप इस घटना के बारे में क्या जानते हैं?’’

‘‘कुछ ज्यादा नहीं.’’ उस का एक हाथ फिर अपनी बाईं टांग की ओर गया.

‘‘आप की टांग में क्या हो गया है, जो आप बारबार हाथ लगा रहे हैं.’’

‘‘मेरी टांग में कुछ दिनों से बहुत दर्द हो रहा है.’’ वह कुछ रुक कर बोला, ‘‘मैं तो यहां हवेली में आराम कर रहा था कि मुराद दौड़ते हुए आया. उस ने बताया कि मुश्ताक और सुगरा को किसी ने मार दिया है. मैं ने डेरे पर जा कर लाशों को देखा और एक आदमी बशारत को देखने के लिए भेज दिया. फिर हवेली पहुंच कर मंजूरे को आप के पास थाने भेजा और मुश्ताक की पत्नी को भी खबर कर दी. वह बेचारी रोपीट रही है.’’

मुश्ताक की पत्नी बिलकीस लाशों को देखने के लिए कहती रही, लेकिन मुराद ने उस से कह दिया कि जब तक पुलिस काररवाई नहीं हो जाती, वह उसे देखने नहीं देगा.

मैं ने जरूरी काररवाई कर के लाशों को जिला अस्पताल भिजवा दिया और कमरे की बारीकी से जांच की. कमरे में एक ओर खिड़की थी, खिड़की में कोई जाली या सरिए नहीं लगे थे. वहां एक चारपाई थी, जिस पर दोनों की लाशें रखी थीं.

चारपाई को रंगते हुए खून नीचे फर्श पर गिरा था, जो जम गया था. हत्या करने का कोई भी हथियार अथवा कोई भी ऐसी चीज नहीं मिली, जो हत्या की जांच में मदद कर पाती. कमरे के बाहर कुछ लोग खडे थे. मैं ने उन में से एक समझदार से आदमी की ओर इशारा कर के उसे बुलाया. मैं ने उस से पूछा, ‘‘चाचा, तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘जी, रहमत…रहमत अली.’’

‘‘क्या तुम भी इसी गांव में रहते हो?’’

उस ने हां में जवाब दिया तो मैं ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘चाचा, तुम मेरे साथ आओ.’’

मैं उसे एक कमरे में ले गया, जिस में खेती का सामान और कबाड़ रखा था. उस सामान में मैं हत्या करने वाला हथियार देख रहा था, साथ ही चाचा से भी बात कर रहा था.

इस के बाद मैं ने 2 और कमरों की तलाशी ली, लेकिन काम की कोई चीज नहीं मिली. मेरे पास सरकारी ताला था, मैं ने उस कमरे में ताला लगा कर उसे सील कर दिया, जिस में उन दोनों की लाशें मिली थीं.

कुछ और लोगों से बात कर के मैं रहमत को साथ ले कर डेरे से निकल कर टिब्बी गांव की ओर चल दिया. मैं चलतेचलते उस से बात कर रहा था. उस से काम की कई बातें पता लगीं, जो मैं आगे बताऊंगा.

चौधरी गनी ने मुझ से कहा था कि घटनास्थल से सीधा हवेली आऊं, लेकिन मैं ने पहले बशारत से मिलने की सोची. मैं पूछतेपूछते बशारत के घर तक पहुंच गया.

बशारत का घर गांव के बीचोबीच था, लेकिन वह घर में नहीं था. एक आदमी फरमान ने बताया कि वह खेतों में भी नहीं है. हम सब उस का इंतजार कर रहे हैं. उस ने गली में इधरउधर देखते हुए कहा, ‘‘आप अंदर आ जाएं सरकार, कुछ देर और खड़े रहे तो यहां मेला लग जाएगा.’’

‘‘तुम्हारे साढ़ू ने कारनामा ही ऐसा किया है, मेला तो लगेगा ही.’’

वह परेशान सा हो कर बोला, ‘‘समझ नहीं आ रहा, उस ने ऐसा काम कैसे कर दिया.’’

मैं अंदर एक कमरे में बैठ गया, जहां पहले से ही फरमान की पत्नी और बच्चे बैठे थे.

में ने उन्हें अपना परिचय दे कर बताया कि मैं कस्बा नजीबाबाद के थाने का इंचार्ज हूं. गांव टिब्बी मेरे ही थाने में आता है.

फरमान ने सिर हिला दिया, लेकिन उस की पत्नी कुबरा चुप नहीं रही. वह बोली, ‘‘थानेदार साहब, आप ने काररवाई करने में इतनी जल्दी क्यों की? कम से कम बशारत के आने का तो इंतजार कर लेते. लाशों को बाद में भी अस्पताल भिजवाया जा सकता था. हम अपनी बहन का मुंह भी नहीं देख सके.’’ इतना कह कर वह रोने लगी.

‘‘पागलों जैसी बातें न कर कुबरा, ऐसी हालत में उन का मुंह देखती. कुछ शरम है कि नहीं?’’ फरमान ने उसे झिड़का.

‘‘मैं गरमी की वजह से लाशों को अधिक देर तक नहीं रख सकता था.’’ मैं ने कुबरा से कहा, ‘‘तसल्ली रखो, पोस्टमार्टम के बाद लाशों को आप के हवाले कर दिया जाएगा, फिर आप अच्छी तरह अपनी बहन का मुंह देख लेना.’’

वह बोली, ‘‘थानेदार साहब हम चौधरियों के डेरे तक गए थे, लेकिन उस कमीने मुराद ने हमें कमरे के अंदर नहीं जाने दिया.’’

‘‘तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है कुबरा, हालात को समझने की कोशिश करो. तुम्हारी छोटी बहन ने ऐसी हरकत कर के हमारी नाक कटवा दी, अब तुम बाकी की कसर भी पूरी करना चाहती हो.’’ फरमान ने उसे डांटते हुए कहा.

मैं ने कुबरा को तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘बीवी, मैं तुम्हारा दुश्मन नहीं हूं, चौधरी गनी ने ही मुराद को वहां खड़ा किया था. मृतक मुश्ताक की पत्नी भी अपने पति का मुंह देखने वहां पहुंची थी, लेकिन मुराद ने उसे भी अंदर नहीं जाने दिया.’’ फरमान ने मेरी ओर देखते हुए कहा, ‘‘मलिक साहब, आप की बातों से लग रहा है कि आप इस हत्या में बशारत पर शक कर रहे हैं.’’

‘‘क्या मैं बशारत पर शक करने के मामले में सही नहीं हूं?’’ मैं ने उसे जवाब देने के बजाय उल्टा सवाल कर दिया.

मेरा सवाल सुन कर वह इधरउधर देखने लगा, फिर बोला, ‘‘मेरा मतलब यह है कि बशारत…इतना हिम्मत वाला नहीं है.’’

सुगरा यानी सुग्गी के बेखौफ व्यवहार के बारे में मुझे रहमत अली ने भी बताया था. अब फरमान की बातों से लग रहा था कि वह अपनी साली के कारनामों से खुश नहीं था.

‘‘फरमान, पत्नी का मामला ऐसा होता है कि कमजोर आदमी भी अपनी इज्जत के लिए टार्जन बन जाता है. अगर उस ने हत्या नहीं की तो गायब क्यों हो गया?’’

‘‘यह बात तो मेरी समझ में भी नहीं आ रही. मैं ने उसे खेतों में भी देखा और गांव में भी, लेकिन उस का कहीं पता नहीं लगा. वह आज बैलगाड़ी भी ले गया था. कह रहा था कि वापसी में अपने और मेरे जानवरों के लिए चारा ले आएगा, लेकिन अभी तक नहीं आया.’’

कुबरा कहने लगी, ‘‘हम भी बशारत के इंतजार में अपना घर छोड़े बैठे हैं, छोटे बच्चे की भी तो समस्या है.’’

‘‘कौन सा छोटा बच्चा?’’

वह बोली, ‘‘सुग्गी का एक ही तो बच्चा है नवेद. उसे किस के पास छोड़ें. फरमान कहते हैं इसे अपने साथ ले चलो, वैसे भी वह हमारे ही घर में रहता है.’’

मैं ने नवेद के बारे में कुरेद कर पूछा तो कुछ बातें सामने आने लगीं. कुबरा ने बताया, ‘‘आज दोपहर सुग्गी जब बशारत के लिए खेतों पर खाना ले कर जाने लगी तो उस ने 5 साल के नवेद को मेरे पास छोड़ दिया था. वह हमारे घर खुशी से रहता है.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘क्या वह रोज इसी वक्त खाना ले कर जाती थी?’’

‘‘जी हां, वह इसी समय खाना ले कर जाती थी,’’ वह संकोच से बोली, ‘‘और जाते वक्त नवेद को हमारे घर छोड़ जाती थी.’’

‘‘क्या बात है कुबरा, तुम इतनी बेचैन क्यों हो?’’ मैं ने उस के अंदर की उलझन को पहचान कर कहा, ‘‘तुम मुझे उलझी हुई दिखाई दे रही हो. अगर कोई परेशानी हो तो बताओ.’’

‘‘दरअसल, मैं एक बात बताना भूल गई. पता नहीं उस बात का कोई महत्त्व है भी या नहीं.’’

मैं ने जल्दी से कहा, ‘‘बताओ तो सही.’’

‘‘आज सुग्गी ने जाते हुए कहा था कि उसे वापस लौटने में देर हो जाएगी.’’ वह रोते हुए बोली, ‘‘मुझे क्या पता था कि उसे इतनी देर हो जाएगी कि वापस ही नहीं लौटेगी.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘कुबरा बीबी, यह बताओ सुग्गी ने यह क्यों कहा था कि देर हो जाएगी, क्या उस ने कारण बताया था?’’

उस ने आंसू पोंछते हुए कहा कि सुग्गी ने बताया था कि बशारत को खाना खिलाने के बाद वह चौधरियों की हवेली जाएगी.

मैं ने पूछा, ‘‘वह चौधरियों की हवेली क्यों जाना चाहती थी?’’

‘‘चौधरी गनी ने उसे किसी काम के लिए बुलाया था.’’

मैं ने पूछा, ‘‘कौन सा काम?’’

‘‘यह तो उस ने नहीं बताया, लेकिन चौधरी गनी इस गांव के मालिक हैं, वह किसी को भी तलब कर सकते हैं.’’

मैं सोचने लगा, जब चौधरी गनी से मैं बात कर रहा था तो उस ने सुग्गी को बुलाने के बारे में नहीं बताया था. मुझे लगा कि कहीं कोई गड़बड़ जरूर है. मैं ने उस से पूछा, ‘‘सुग्गी से बुलाने की बात किस ने कही थी?’’

‘‘मासी मुखतारा आई थी.’’

‘‘मासी मुखतारा कौन है और कहां रहती है?’’

‘‘मासी मुखतारा हवेली में काम करती है और वहीं रहती है.’’

मैं ने मुखतारा को भी अपने दिमाग में रखा. इस से पहले 3 और नाम थे चौधरी गनी, बशारत और मुराद. यहां से निपट कर मुझे हवेली जाना था. मैं चौधरी गनी की हवेली की ओर जाने लगा तो फरमान भी मेरे साथ चलने लगा. तभी एक छोटा सा गोराचिट्टा बच्चा घर से निकल कर आया और बोला, ‘‘खालू, मेरे अब्बाअम्मा कब आएंगे?’’

फरमान चौधरी की हवेली तक मेरे साथ आया. मैं ने उस से कहा कि तुम बशारत के घर में ही रहना और जैसे ही वह आए, मुझे खबर कर देना. मैं इधर चौधरी की हवेली में बैठा हूं.

चौधरी ने बड़े तपाक से मेरा स्वागत किया. उस ने अपनी बैठक में बिठाया. उस की बैठक की सजावट देख कर लगा कि वास्तव में वह उस इलाके का राजा था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘मुराद कहां है?’’

चौधरी बोला, ‘‘वह डेरे पर गया है, मंजूर भी उस के साथ है. दोनों वहीं रहेंगे, सोएंगे भी वहीं.’’

‘‘डेरे के कमरे पर तो मैं ने ताला डाल दिया है.’’

‘‘वहां 2 कमरे और भी हैं. वैसे आजकल गरमी है, वे अहाते में ही सोते हैं.’’ इतना कह कर चौधरी ने पूछा, ‘‘आप बशारत के घर काफी देर तक रहे हैं, कोई नुक्ता हाथ लगा या नहीं?’’

‘‘हां, एक सिरा हाथ तो लगा है, देखो उस से काम चलता है या नहीं.’’

सुन कर चौधरी के कान खड़े हो गए. वह तुरंत बोला, ‘‘आप कौन से सिरे की बात कर रहे हैं?’’

‘‘चौधरी साहब, जो सिरा मेरे हाथ लगा है, उस के दूसरे किनारे पर आप खड़े हैं.’’

‘‘मतलब?’’ वह चौंका.

मैं ने क हा, ‘‘मुझे पता लगा है कि आप ने सुग्गी को कल दोपहर अपने डेरे पर बुलाया था.’’

उस के चेहरे का रंग फीका पड़ गया. वह बोला, ‘‘आप को यह बात किस ने बताई?’’

‘‘पहले आप इस बात की पुष्टि करें, फिर उस का नाम बताऊंगा.’’

‘‘नहीं, मैं ने उसे नहीं बुलाया था.’’

मैं ने कहा, ‘‘आज दोपहर जब सुग्गी बशारत का खाना ले कर खेतों पर जा रही थी, तो उस ने अपने बेटे नवेद को फरमान के घर छोड़ा और उस की पत्नी कुबरा से कहा कि वापस लौटने में उसे देर हो जाएगी, क्योंकि उसे मासी मुखतारा ने कहा है कि चौधरी की हवेली जाना है.’’

वह गुस्से से बोला, ‘‘उस दुष्ट औरत ने झूठ बोला है, आप उसे जानते नहीं. वह औरत…लेकिन छोड़ो मरने वाले को बुरा नहीं कहना चाहिए.’’

‘‘तो चौधरी साहब आप इस बात से इनकार करते हैं कि मासी मुखतारा उसे बुलाने नहीं गई थी?’’

‘‘हां, बिलकुल मैं इनकार करता हूं. आप को अभी पता लग जाएगा.’’ उस ने मुखतारा को बुलाया तो वह तुरंत आ गई. देखने में वह बहुत तेज औरत लग रही थी. उस ने आते ही कहा, ‘‘नहीं, मैं ने कुछ नहीं कहा, पिछले 3 दिन से तो मैं ने सुग्गी की शक्ल भी नहीं देखी.’’

प्रेमिका की खातिर : अपने ही परिवार का कातिल

ठीक 3 साल पहले 26 अप्रैल, 2018 की सुबह के करीब साढ़े 11 बज रहे थे. उत्तर प्रदेश के कासगंज में थाना ढोलना क्षेत्र के पास रेलवे ट्रैक पर बकरियां चराते हुए एक आदमी चला जा रहा था. ट्रैक के दोनों ओर झाड़जंगल की वजह से वह आदमी लगभग हर दिन इसी ट्रैक के पास अपनी बकरियां चराने के लिए आता था.

लेकिन उस दिन उस ने कुछ ऐसा देखा जिस से उस की रूह कांप गई थी. रेलवे ट्रैक पर एक व्यक्ति की लाश पड़ी थी. उस लाश की स्थिति इतनी भयानक थी, जिसे देख कर उस का दिल दहशत से भर गया था. उस लाश का न तो सिर था और न ही दोनों हाथों की हथेलियां.

यह देख बकरियां चराता हुआ यह शख्स अपनी बकरियां उसी ट्रैक पर छोड़ कर सीधा अपने घर की ओर भागा. उस लाश को देख कर वह इतना डर गया था कि उस के गले से आवाज तक नहीं निकल रही थी.

थोड़ा समय बीता तो वह उसी ट्रैक पर ढोलना थाने के पुलिसकर्मियों की टीम को ले कर पहुंचा और उस ने पुलिसकर्मियों को दूर से उस जगह की ओर इशारा कर के दिखाया, जहां पर वह लाश पड़ी थी.

ढोलना थाने की पुलिस लाश के पास पहुंची और उन्हें भी अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हुआ. वैसे भी बिना गरदन और हथेलियों वाली डैड बौडी हर दिन देखने को नहीं मिलती.

मौके पर पहुंची पुलिस की टीम ने आसपास के इलाके की घेराबंदी कर तुरंत जांच शुरू कर दी.

कुछ ही देर में देखते ही देखते उस इलाके में और अधिक पुलिसकर्मी आ पहुंचे और उन के साथ फोरैंसिक की पूरी टीम आ पहुंची. नियमित छानबीन करते हुए पुलिस को लाश के शरीर पर पहने कपड़ों की जेब से एक आधार कार्ड और एलआईसी का एक कागज भी मिला.

आधार कार्ड पर मृत शख्स का नाम राकेश था. आधार कार्ड को बेस बना कर पुलिस ने जल्द ही आधार कार्ड पर दिए पते पर संपर्क साधा और मृत व्यक्ति के पिता बनवारी लाल को लाश की पहचान करने के लिए जल्द से जल्द आने के लिए कहा.

कुछ ही घंटों में बनवारी लाल अपने 2 बेटों, राजीव और प्रवेश के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. तीनों का शरीर पसीने से लथपथ था.

बनवारी लाल एक रिटायर्ड पुलिसकर्मी होने के नाते मामले की गंभीरता को बहुत अच्छे से समझ सकते थे. लेकिन बात लाश की पहचान की थी, वह भी तब जब उन्हें अपने बेटे की लाश की पहचान करनी थी तो उन का दिल जोरों से धड़क रहा था.

वह घटनास्थल पर मौजूद पुलिसकर्मियों से हांफते हुए बोले, ‘‘साहब, आप ने मुझे याद किया?’’

ढोलना थानाप्रभारी ने बनवारी लाल से कहा, ‘‘जी हां, आप को एक लाश की पहचान करने के लिए बुलाया गया है. क्योंकि मृत व्यक्ति की जेब से बरामद आधार कार्ड में राकेश का नाम दिया हुआ था और कुछ एलआईसी के कागजात भी थे.’’

बनवारी लाल हांफते स्वर में डरते हुए बोले, ‘‘जी साहब, आप हमें लाश के पास ले कर चलिए.’’

यह कहते हुए वह पुलिस टीम के साथ चल दिए. पुलिस की एक टीम बनवारी लाल और उन के दोनों बेटों को वहां ले गई, जहां पर मृत लाश को नीले रंग की प्लास्टिक की शीट में लपेट कर रखा गया था.

बनवारी लाल ने की लाश की शिनाख्त

लाश के पास खड़े व्यक्ति ने बनवारी लाल और अन्य 2 लोगों को आते हुए देख कर नीली शीट में लगी चेन को नीचे की ओर पैरों तक खींचा और बनवारी लाल को मृतक को देखने देने के लिए खुद साइड में खड़ा हो गया.

मृत व्यक्ति का सिर नहीं होने की वजह से बनवारी लाल उसे एक नजर देख कर डर से कांप गए. लेकिन अगले ही पल उन का डर शोक में तब तब्दील हो गया, जब उन्होंने मृत व्यक्ति की लाश के पहने कपड़ों को देखा.

ये वही कपड़े थे जो बनवारी लाल ने कुछ महीनों पहले अपने बेटे राकेश को उस के जन्मदिन पर गिफ्ट किए थे.

कपड़े देख कर बनवारी लाल अचानक से फूटफूट कर रोनेबिलखने लगे और जोर से चिल्लाचिल्ला कर राकेश का नाम ले कर चीखने लगे.

अपने भाई की लाश की ऐसी हालत और पिता को रोताबिलखता देख कर राजीव और प्रवेश की आंखों से आंसू रोके नहीं रुके. लेकिन फिर भी पिता का सहारा बनते हुए दोनों ने बनवारी लाल को लाश से दूर किया.

कुछ देर में थानाप्रभारी वहां आए और उन्होंने रोते हुए बनवारी लाल को ढांढस बंधाया. उन्होंने बनवारी लाल से कहा, ‘‘मुझे अफसोस है आप के बेटे की मौत पर. हमारी तफ्तीश जारी है. केस को सुलझाने के लिए हमें आप से राकेश को ले कर कुछ जरूरी सवाल करने हैं. आप थाने में पहुंचिए हम यहां पर अपनी जांच कर के थाने लौट कर आप से बात करेंगे.’’

सिर और हथेलियां कटी लाश को पहचानना किसी के वश की बात नहीं थी, इसलिए थानाप्रभारी ने लाश की पहचान को पुख्ता करने के लिए लाश की डीएनए जांच करवाना जरूरी समझा.

उन्होंने जल्द ही राकेश के मातापिता से संपर्क कर उन का डीएनए सैंपल लिया और उसे आगरा स्थित विधि विज्ञान प्रयोगशाला में भेज दिया.

इस घटना को तीन साल हो गए और साल 2021 की अगस्त में एक दिन अचानक से कासगंज के ढोलना थाने में आगरा के विधि विज्ञान प्रयोगशाला से डीएनए रिपोर्ट का रिजल्ट आया.

डीएनए रिपोर्ट ने बढ़ाई पुलिस की बेचैनी

रिपोर्ट खोल कर जब थानाप्रभारी ने देखा तो उन की आंखें खुली की खुली रह गईं. उन के मन में हजारों सवाल तूफान की तरह खड़े हो उठे. 3 साल से ठंडे बस्ते में पड़ा मामला अचानक से अब एक नया मोड़ ले चुका था.

दरअसल, जिस डीएनए रिपोर्ट का इतने लंबे समय से इंतजार हो रहा था, उस रिपोर्ट में मृत व्यक्ति का डीएनए बनवारी लाल और इंद्रावती के डीएनए से कोई मैच ही नहीं था.

यह देख कर थानाप्रभारी ने 3 साल पुरानी इस केस की फाइलें निकलवाईं. मृत व्यक्ति की पहचान का पता लगाने के लिए उन्होंने अप्रैल, 2018 में उस इलाके से गुमशुदा लोगों की लिस्ट निकलवाई.

राकेश की उम्र के लोगों में उस इलाके से सिर्फ एक ही आदमी गायब हुआ था, वह था गांव नौगवां, थाना गंगीरी, अलीगढ़ का रहने वाला राजेंद्र उर्फ कलुआ.

बिलकुल समय न गंवाते हुए पुलिस तुरंत कलुआ के घर पहुंची और उन से कलुआ के बारे में पूछताछ की. कलुआ तो नहीं मिला लेकिन पुलिस को कई ऐसे तार मिल गए जोकि इस केस से जुड़े हो सकते थे.

कलुआ के मातापिता ने बताया कि उन के बेटे की दोस्ती राकेश के साथ थी. 25 अप्रैल को गायब होने के एक दिन पहले राकेश कलुआ को ले कर अपने बीवीबच्चों को ढूंढने का नाम ले कर उसे अपने साथ ले गया था. जिस के बाद कलुआ फिर कभी घर नहीं लौटा.

कलुआ के मांबाप से उन का डीएनए का सैंपल ले कर पुलिस ने फिर से आगरा स्थित विधिविज्ञान प्रयोगशाला भेज दिया. इस बार डीएनए की रिपोर्ट जल्द ही आ गई थी.

रिपोर्ट से यह साफ हो गया था कि 3 साल पहले रेलवे ट्रैक पर मरने वाला व्यक्ति राकेश नहीं बल्कि राजेंद्र उर्फ कलुआ था, क्योंकि डीएनए के सैंपल कलुआ के मांबाप से मिल गए थे.

पूरे मामले में कुछ इस तरह से मोड़ आना किसी को भी अपना सिर पकड़ने पर मजबूर कर सकता था जोकि थानाप्रभारी ने किया भी.

थानाप्रभारी ने 3 साल पहले अपने मन में उठने वाले सवालों को एक बार फिर से महसूस किया. उन्हें अचानक से वह सवाल याद आया कि सिर कटी लाश को देख कर बनवारी लाल ने एक पल में कैसे पहचान लिया कि यह उन के बेटे की लाश थी?

कलुआ से किस की कैसी दुश्मनी हो सकती थी? इस के अलावा इसी तरह के और भी कई सवाल थानाप्रभारी के मन में उठने लगे थे. इन सभी सवालों को ढूंढने के लिए पुलिस की टीम ने तत्परता से काम करना शुरू कर दिया था.

अगस्त के आखिरी दिनों तक पुलिस ने इस मामले की छानबीन के लिए प्रदेश में अपने मुखबिरों को सतर्क कर दिया था. उसी दौरान 31 अगस्त, 2021 के दिन पुलिस के एक ऐसे ही मुखबिर ने बताया कि वे जिस व्यक्ति की तलाश कर रहे हैं, उसे उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा से 10 किलोमीटर दूर बिसरख गांव में देखा गया है. यह व्यक्ति खुद राकेश ही था.

ढोलना पुलिस बिना किसी देरी के मुखबिर की दी हुई सूचना पर बिसरख गांव जाने के लिए निकल पड़ी. उसी बीच ढोलना थानाप्रभारी ने बिसरख थाने की पुलिस को इस की सूचना दी.

करीब 2 घंटे बाद मुखबिर के बताए हुए पते पर छापा मार कर पुलिस की टीम ने दिलीप शर्मा नाम के एक शख्स को पकड़ लिया, जिस का हुलिया काफी हद तक राकेश की तरह था.

दिलीप नाम का यह शख्स इलाके में प्रेमिका रूबी के घर में मौजूद था और वे दोनों कमरे में बंद हो कर एकदूसरे के साथ प्रेम प्रसंग में लीन थे. मामले की गंभीरता को देखते हुए ढोलना थानाप्रभारी बिसरख थाने में दिलीप को पूछताछ के लिए ले आए.

पूछताछ के दौरान पहले तो दिलीप ने खुद की पहचान दिलीप के नाम से बताई, लेकिन जब पुलिस की टीम ने उस की फोन लोकेशन, वाट्सऐप चैट इत्यादि के रिकौर्ड के आधार पर पूछताछ करनी शुरू की तो वह चारों खाने चित्त हो गया और अपना असली नाम राकेश बताते हुए पुलिस के सामने अपना गुनाह कुबूल कर लिया.

उस ने सिर्फ अपने दोस्त कलुआ की ही हत्या नहीं, बल्कि अपनी पत्नी और 2 बच्चों की हत्या का जुर्म भी कुबूल कर लिया, जिसे सुन कर सब की आंखें खुली की खुली रह गईं. इस शातिर कातिल के कत्ल की कहानी सुन कर किसी की भी रूह कांप जाए.

नौगवां, गंगीरी अलीगढ़ का रहने वाला राकेश ग्रेटर नोएडा में एक डाइग्नोसिस सेंटर में लैब टेक्नीशियन था. वह अपने छोटे से परिवार, जिस में उस की पत्नी रत्नेश, 3 साल की बेटी अवनि और डेढ़ साल के बेटे अर्पित के साथ ग्रेटर नोएडा से 10 किलोमीटर दूर चिपयाना गांव की पंचविहार कालोनी में रहता था. यह उस का अपना घर था.

उस के छोटे से परिवार में खुशियों की कोई कमी नहीं थी, लेकिन राकेश अपने शादीशुदा जीवन से खुश नहीं था. राकेश की शादी साल 2012 में उत्तर प्रदेश के एटा की रहने वाली रत्नेश से हुई थी. लेकिन यह शादी उस ने अपने परिवार के दबाव में की थी.

राकेश प्रेमिका से करना चाहता था शादी

दरअसल, राकेश बिसरख गांव की रहने वाली रूबी को अपनी शादी से पहले से प्यार करता था. दोनों किसी समय में साथ में पढ़ते थे. लेकिन परिवार की जिम्मेदारियों के बोझ की वजह से उस ने पहले प्राइवेट इंस्टीट्यूट से लैब टेक्नीशियन का कोर्स किया और ग्रेटर नोएडा में जौब करने लगा.

परिवार के दबाव में उस ने रत्नेश से शादी तो कर ली लेकिन रूबी के साथ उस का प्रेम संबंध खत्म नहीं हुआ, बल्कि वक्त के साथ उन का प्यार परवान चढ़ता गया. इसी दौरान रुबी की उत्तर प्रदेश में कांस्टेबल के पद पर नौकरी लग गई. राकेश के रत्नेश के साथ बच्चे भी हो गए. पहले अवनि फिर अगले साल अर्पित.

अपने परिवार में इतना उलझा हुआ होने के बावजूद वह रूबी से मिलने के लिए समय निकाल लिया करता था. रूबी और राकेश अकसर वाट्सऐप के जरिए अश्लील चैट भी किया करते थे, जिस से राकेश के मन में रूबी के लिए प्यार का तूफान उमड़ पड़ता था.

साल 2018 की वैलेनटाइंस डे (14 फरवरी) के दिन जब राकेश इसी तरह से रूबी के साथ वाट्सऐप पर सैक्स चैट में लीन था तो उस की पत्नी रत्नेश ने राकेश को उसे पीछे से रंगेहाथों पकड़ लिया. उस दिन राकेश और रत्नेश का खूब झगड़ा भी हुआ.

प्रेमिका की खातिर पत्नी व 2 बच्चों की हत्या कर आंगन में गाड़ा

दोनों के बीच झगड़ा अपने चरम पर पहुंच चुका था और राकेश ने अपना आपा खो दिया. राकेश ने आव देखा न ताव, रत्नेश पर लोहे की रौड से वार कर उस का सिर फाड़ दिया. रत्नेश की वहीं मौके पर मौत हो गई.

लेकिन रत्नेश की मौत के बाद मामला यहीं ठंडा नहीं हुआ. उस ने इस मौके का फायदा उठाया और अपने बच्चों से भी अपना पिंड छुड़ाने के बारे में विचार किया. उस ने जिस लोहे की रौड से रत्नेश की हत्या की थी, उसी से अपने दोनों बच्चों को भी मौत के घाट उतार दिया.

उस ने रातोंरात उन तीनों के लाशों को छिपाने के लिए अपने ही घर के आंगन में गहरा गड्ढा खोद दिया और उन तीनों को उसी में दफना दिया.

अगले दिन उस ने मजदूरों को बुलवा कर अपने घर के आंगन में सीमेंट की पुताई कर फर्श बनवा दिया.

यही नहीं, उस ने उसी दिन अपने स्थानीय इलाके के पुलिस थाने में जा कर अपने बीवी बच्चों की गुमशुदगी की सूचना भी दर्ज करवा दी. और यह सब उस ने अकेले नहीं किया, बल्कि अपनी प्रेमिका कांस्टेबल रूबी के दिए प्लान के अनुसार किया.

कुछ दिनों बाद जब रत्नेश के मायके से राकेश को फोन आने लगे तो पहले तो राकेश उन की बात यूं ही टालता रहा, लेकिन जब मायके वालों की तरफ से जोर बढ़ता गया तो उस ने अपनी प्रेमिका रूबी को यह बात बताई.

रूबी ने इस से बचने के लिए एक और प्लान सुझाया. जिस को सफल बनाने के लिए राकेश को एक और कत्ल करना था, जोकि उसी की उम्र और कदकाठी का होना चाहिए था. इस के लिए उस ने अपने गांव के बचपन के दोस्त राजेंद्र उर्फ कलुआ को चुना.

वह अगले दिन गांव जा कर अपनी बीवीबच्चों की तलाश करने के बहाने अपने साथ कलुआ को ले कर निकल गया. उस ने कलुआ को रास्ते में दारू भी पिलाई और खाना भी खिलाया.

जब वे रेलवे ट्रैक के पास सुनसान इलाके में पहुंचे तो राकेश ने मौका देख कर पहले से जंगलों में छिपा कर रखे गंडासे से कलुआ पर प्रहार कर दिया. कलुआ राकेश के पहले ही हमले को नहीं सह पाया और बेहाल हो कर नीचे गिर पड़ा.

राकेश ने घर वालों को किया साजिश में शामिल

राकेश ने मौके का फायदा उठा कर कलुआ पर इतने वार कर दिए कि उस की जान वहीं पर ही निकल गई.

राकेश ने उस के बाद कलुआ का सिर और हाथ के पंजे काट दिए ताकि लाश की पहचान न हो सके.

अपने इस काले कत्ल की दास्तान में उस ने अपने घरवालों को भी शरीक कर लिया. राकेश ने अपने घर वालों को लालच दिया कि अगर उस की शादी रूबी से हो गई तो मोटा पैसा दहेज में मिलेगा.

उस ने लाश की पहचान करने के लिए अपने पिता को राजी कर लिया. जिस के बाद ये सारी कहानी शुरू हुई.

इस बीच राकेश ने अपनी पहचान छिपाने के लिए एक फरजी आधार कार्ड भी बनवा लिया, जिस में उस ने अपना नाम दिलीप शर्मा रखा. रूबी की मदद से उस ने प्राइवेट अस्पताल से कुछ दिनों में कहीं बाहर जा कर अपने नाक की प्लास्टिक सर्जरी भी करवा ली. लेकिन अंत में वह पकड़ा ही गया.

पकड़े जाने के बाद पुलिस ने राकेश की निशानदेही पर पंचविहार कालोनी में उस के घर के आंगन में गड्ढा खुदवा कर उस की पत्नी और दोनों बच्चों के कंकाल और उस लोहे की रौड को बरामद कर लिया, जिस से उस ने अपने पूरे परिवार का खात्मा कर दिया था.

उस के बाद राकेश को साथ ले कर रेलवे स्टेशन के पास उस जगह पर छापा मारा, जहां पर उस ने कलुआ का कत्ल कर गंडासा छिपाया था.

पुलिस ने इस पूरे मामले में अभी तक कुल 6 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है. जिन में राकेश, उस की प्रेमिका रूबी, पिता बनवारी लाल, माता इंद्रावती व दोनों भाई राजीव और प्रवेश शामिल हैं. वे सभी फिलहाल जेल की सलाखों के पीछे हैं.

नरमुंड का रहस्य-भाग 1 : पत्नी का खतरनाक अवैध संबंध

औडियो में सुने पूरी कहानी

मुरादाबाद आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग पर एक गांव है शिमलाठेर, जो थाना कुंदरकी के अंतर्गत आता है. 9 सितंबर, 2017 को इसी गांव के रहने वाले 2 भाई लक्ष्मण और ओमकार अपने भतीजे शिवम के साथ अपने खेत में पानी लगाने पहुंचे. उन्हें दिन में ही पानी लगाना था, लेकिन दिन में बिजली नहीं थी, इसलिए वे रात में गए थे. रात होने की वजह से वे टौर्च भी ले गए थे.

वे खेत पर पहुंचे तो उन्हें कुछ आहट सी सुनाई दी. टौर्च की रोशनी में उन्होंने देखा तो वहां 4 आदमी खड़े थे. उन के हाथों में हथियार थे. उन्होंने गांव के ही बबलू को बांध कर बैठा रखा था. बबलू संपन्न आदमी था. उन्हें समझते देर नहीं लगी कि ये बदमाश हैं. डर के मारे वे जाने लगे तो एक बदमाश ने उन पर टौर्च की रोशनी डालते हुए चेतावनी दी, ‘‘अगर भागे तो गोलियों से छलनी कर दिए जाओगे. जहां हो, वहीं रुक जाओ.’’

तीनों निहत्थे थे, इसलिए अपनीअपनी जगह खड़े हो गए. बदमाश उन को वहीं ले आए, जहां बबलू बंधा बैठा था. उन्होंने उन्हें भी बांध कर बबलू के साथ बैठा दिया. बदमाशों ने बबलू के साथ मंत्रणा कर के लक्ष्मण को खोल दिया. 3 बदमाश लक्ष्मण को ले कर चले गए और एक राइफलधारी बदमाश बंधे हुए लोगों के पास चौकसी से खड़ा रहा.

कुछ देर बाद वह लक्ष्मण को ले कर लौटा तो उन में से एक ने कहा, ‘‘लड़का तो अच्छा है.’’

इस के बाद बदमाशों ने आपस में कुछ बातें की और वही 3 बदमाश उसे फिर से ले कर जंगल में चले गए. करीब 20 मिनट बाद वे लौटे तो उन के साथ लक्ष्मण नहीं था. उन में से एक बदमाश ने कहा, ‘‘काम हो गया.’’

बदमाश के मुंह से यह बात सुन कर ओमकार और शिवम घबरा गए. लक्ष्मण को ले कर उन के दिमाग में तरहतरह के खयाल उठने लगे.

इस के बाद बदमाशों ने बबलू, ओमकार और शिवम की तलाशी ली. उन के पास जो मिला, उसे ले कर उन बदमाशों ने तीनों को औंधे मुंह लिटा कर उन के ऊपर चादर डाल कर धमकी दी कि वे अपनी खैर चाहते हैं तो इसी तरह पड़े रहें. डर की वजह से वे उसी तरह पड़े रहे.

जब उन्हें लगा कि बदमाश चले गए हैं तो बबलू ने चादर हटा कर इधरउधर देखा. वहां कोई नहीं दिखा तो उस ने ओमकार और शिवम से कहा, ‘‘लगता है, वे चले गए.’’

जब मिली लक्ष्मण की सिरकटी लाश

किसी तरह बबलू ने अपने हाथ खोल कर उन दोनों के हाथ भी खोले. इस के बाद सभी तेजी से गांव की ओर भागे. गांव जा कर उन्होंने बताया कि बदमाशों ने उन्हें बंधक बना कर लूट लिया और लक्ष्मण को अपने साथ ले गए हैं. उन के इतना कहते ही गांव में शोर मच गया. लाठीडंडा व अन्य हथियार ले कर गांव वाले खेतों की तरफ दौड़ पड़े.

सब लक्ष्मण और बदमाशों को खोजने लगे. थोड़ी देर में एक खेत के पुश्ते पर गड्ढे में लक्ष्मण की सिरकटी लाश मिल गई. इस की सूचना बबलू ने वहीं से फोन द्वारा थाना कुंदरकी को दे दी. उस समय थानाप्रभारी धीरज सिंह सोलंकी हाईवे पर गश्त पर थे. सूचना मिलते ही वह घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने इस वारदात की जानकारी एसएसपी प्रीतिंदर सिंह, एसपी (देहात) उदयशंकर सिंह, सीओ (बिलारी) अर्चना सिंह को दे दी.

लक्ष्मण की हत्या की बारे में पता चलने पर उस के घर में कोहराम मच गया था. उस की पत्नी अमरवती और दोनों बच्चे बिलख रहे थे. एसएसपी के निर्देश पर रात में ही घटनास्थल के आसपास सघन चैकिंग अभियान शुरू कर दिया गया, लेकिन न बदमाशों का सुराग मिला और न ही लक्ष्मण का सिर.

सवेरा होने पर पुलिस ने घटनास्थल की जरूरी काररवाई पूरी कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए मुरादाबाद भिजवा दिया. हालांकि बबलू लक्ष्मण के घर वालों के दुख में शरीक हो कर हर काम में बढ़चढ़ कर भाग ले रहा था, लेकिन उन्हें यही लग रहा था कि लक्ष्मण की हत्या में बबलू का हाथ है, क्योंकि वह उन से अदावत रखता था.

जैसेजैसे आसपास के गांवों में बदमाशों द्वारा शिमलाठेर गांव के लक्ष्मण का सिर काट कर ले जाने वाली बात पता चली, वे घटनास्थल की तरफ चल पड़े.

वहां पहुंच कर पता चला कि इस घटना के विरोध में लोग शिमलाठेर गांव में जमा हो रहे हैं तो वे भी वहीं चले गए. लक्ष्मण के घर के सामने इकट्ठा लोगों का पुलिस के प्रति गुस्सा बढ़ता जा रहा था. लक्ष्मण का सिर न मिलने से लोगों का गुस्सा फूट पड़ा और उन्होंने मुरादाबादआगरा राजमार्ग पर जाम लगा दिया.

कुछ ही देर में राजमार्ग के दोनों तरफ कई किलोमीटर लंबा जमा लग गया. सूचना मिलने पर थाना पुलिस के अलावा सीओ अर्चना सिंह भी वहां पहुंच गईं. उन्होंने भीड़ को समझाने की कोशिश की, पर लोग वहां से नहीं हटे. तब एसएसपी प्रीतिंदर सिंह और एसपी (देहात) उदयशंकर सिंह भी वहां पहुंच गए. एसएसपी ने प्रदर्शनकारियों से कहा कि पुलिस को कुछ समय दो, लक्ष्मण का सिर व कातिल जल्द से जल्द पकड़े जाएंगे.

उन के समझाने के बाद उत्तेजित लोगों ने जाम खोल दिया. 10 सितंबर को पोस्टमार्टम के बाद लक्ष्मण का शव उस के घर वालों को सौंप दिया गया तो उसी दिन उन्होंने उस का अंतिम संस्कार कर दिया. उस समय भारी संख्या में पुलिस भी मौजूद थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया था कि लक्ष्मण का सिर किसी तेज धारदार हथियार से एक ही झटके में काटा गया था. मरने से पहले उस ने बचाव के लिए संघर्ष किया था, क्योंकि उस की कलाइयों पर गहरे चोट के निशान थे.

मृतक के भाई ओमकार की तहरीर पर पुलिस ने गांव के ही बबलू और 4 अज्ञात लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 34 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली. अगले दिन यह मामला अखबारों की सुर्खियों में आया तो इलाके में सनसनी फैल गई.

उधर एसपी देहात उदयशंकर सिंह व सीओ अर्चना सिंह जंगलों में सर्च औपरेशन चला कर लक्ष्मण का सिर ढूंढ रहे थे. जब सफलता नहीं मिली तो एसएसपी प्रीतिंदर सिंह ने सीओ अर्चना की अध्यक्षता में एक पुलिस टीम का गठन कर दिया.

टीम में थानाप्रभारी धीरज चौधरी, एसआई राजेश कुमार पुंडीर, ऋषि कपूर, कांस्टेबल अफसर अली, मोहम्मद नासिर, केशव त्यागी, कपिल कुमार, वेदप्रकाश दीक्षित के अलावा सर्विलांस टीम के एसआई नीरज शर्मा, कांस्टेबल अजय, राजीव कुमार, रवि कुमार, चंद्रशेखर आदि को शामिल किया गया था. एसओजी को भी टीम के साथ लगा दिया गया था. टीम का निर्देशन एसपी (देहात) उदयशंकर सिंह कर रहे थे.

चूंकि रिपोर्ट बबलू के नाम दर्ज थी, इसलिए पूछताछ के लिए उसे थाने ले आया गया. पूछताछ में वह खुद को बेकसूर बताने के अलावा यह भी कह रहा था कि वह दिशामैदान के लिए गया था, तभी बदमाशों ने उसे बंधक बना लिया था. उस ने बताया कि बदमाश उस की जेब से 3 हजार रुपए निकाल ले गए हैं. जब बबलू से कोई क्लू नहीं मिला तो पुलिस ने उसे घर भेज दिया.

परनारी के मोह में : फरीदा के जाल में कैसे फंसा इदरीस

मुरादाबाद से करीब 30 किलोमीटर दूर स्थित कस्बा कांठ के मोहल्ला पट्टीवाला के रहने वाले कारोबारी इदरीस 11 जनवरी, 2018 को गायब हो गए. दरअसल, इदरीस की कांठ में ही कपड़ों की सिलाई की फैक्ट्री है. उन की फैक्ट्री में सिले कपड़े कई शहरों के कारोबारियों को थोक में सप्लाई होते हैं.

11 जनवरी को वह प्रतापगढ़ और सुलतानपुर के कारोबारियों से पेमेंट लेने के लिए घर से निकले थे. जब भी वह पेमेंट के टूर पर जाते तो फोन द्वारा अपने परिवार वालों के संपर्क में रहते थे. घर से निकलने के 2 दिन बाद भी जब उन का कोई फोन नहीं आया तो उन की पत्नी कनीजा ने बड़े बेटे शहनाज से पति को फोन कराया तो इदरीस का फोन स्विच्ड औफ मिला. शहनाज ने अब्बू को कई बार फोन मिलाया, लेकिन हर बार फोन बंद ही मिला. इस पर कनीजा भी परेशान हो गई.

इदरीस की फैक्ट्री के रिकौर्ड में उन सारे कारोबारियों के नामपते व फोन नंबर दर्ज थे, जिन के यहां फैक्ट्री से तैयार माल जाता था. चूंकि इदरीस प्रतापगढ़ और सुलतानपुर के लिए निकले थे, इसलिए शहनाज ने प्रतापगढ़ और सुलतानपुर के कारोबारियों को फोन कर के अपने अब्बू के बारे में पूछा.

कारोबारियों ने शहनाज को बता दिया कि इदरीस उन के पास आए तो थे लेकिन वह 11 जनवरी को ही पेमेंट ले कर चले गए थे. पता चला कि दोनों कारोबारियों ने इदरीस को 5 लाख रुपए दिए थे. यह जानकारी मिलने के बाद इदरीस के घर वाले परेशान हो गए. सभी को चिंता होने लगी.

इदरीस ने जानपहचान वाले सभी लोगों को फोन कर के अपने अब्बू के बारे में पूछा लेकिन उसे उन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. तभी कनीजा शहनाज के साथ प्रतापगढ़ पहुंच गईं. वहां के एसपी से मुलाकात कर उन्होंने पति के गायब होने की बात बताई.

एसपी ने इदरीस का फोन सर्विलांस पर लगवा दिया. इस से उस की अंतिम लोकेशन अमरोहा जिले के गांव रायपुर कलां की पाई गई. यह गांव अमरोहा देहात थाने के अंतर्गत आता है. प्रतापगढ़ पुलिस ने उन्हें अमरोहा देहात थाने में संपर्क करने की सलाह दी.

30 जनवरी, 2018 को शहजाद और कनीजा थाना अमरोहा देहात पहुंचे. उन्होंने इदरीस के गुम होने की जानकारी थानाप्रभारी धर्मेंद्र सिंह को दी. थानाप्रभारी ने शहनाज की तरफ से उस के पिता की गुमशुदगी दर्ज कर ली. शहनाज ने शक जताया कि उस के घर के सामने रहने वाली फरीदा और उस के पति आरिफ ने ही उस के पिता को कहीं गायब किया होगा.

रहस्य से उठा परदा

मामला एक कारोबारी के गायब होने का था, इसलिए थानाप्रभारी ने सूचना एसपी सुधीर यादव को दे दी. एसपी सुधीर यादव ने सीओ मोनिका यादव के नेतृत्व में एक जांच टीम गठित की. टीम में थानाप्रभारी धर्मेंद्र सिंह, एसआई सुनील मलिक, डी.पी. सिंह, महिला एसआई संदीपा चौधरी, कांस्टेबल सुखविंदर, ब्रजपाल सिंह आदि को शामिल किया गया.

पुलिस ने सब से पहले इदरीस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकाली तो पता चला कि इदरीस के घर के सामने रहने वाली फरीदा ने 13 जनवरी को इदरीस के मोबाइल पर 50 बार काल की थी. शहनाज ने भी फरीदा और उस के पति पर शक जताया था, इसलिए पुलिस को भी फरीदा पर शक हो गया.

पुलिस ने फरीदा और उस के पति आरिफ को पूछताछ के लिए उठा लिया. उन दोनों से पुलिस ने इदरीस के बारे में सख्ती से पूछताछ की. पुलिस की सख्ती के आगे फरीदा और उस के पति ने स्वीकार कर लिया कि उन्होंने शहजाद की हत्या कर उस की लाश बशीरा के आम के बाग में दफन कर दी है.

थानाप्रभारी धर्मेंद्र सिंह ने इदरीस का कत्ल हो जाने वाली बात एसपी को बता दी. यह जानकारी पा कर एसपी सुधीर कुमार थाना अमरोहा देहात पहुंच गए. उन की मौजूदगी में थानाप्रभारी ने अभियुक्तों को रायपुर कलां निवासी बशीरा के आम के बाग में ले जा कर खुदाई कराई तो इदरीस की लाश करीब 5 फीट नीचे दबी मिली.

पुलिस ने वह लाश अपने कब्जे में ले ली. जरूरी काररवाई कर के पुलिस ने इदरीस की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. फरीदा और आरिफ ने पूछताछ के दौरान इदरीस की हत्या की जो कहानी बताई, वह अवैध संबंधों पर आधारित निकली—

इदरीस की कांठ में ही कपड़ों की सिलाई करने की फैक्ट्री थी. उस की फैक्ट्री में फरीदा नाम की महिला भी सिलाई करती थी. वह इदरीस के घर के सामने ही रहती थी. उस का पति साइकिल मरम्मत करता था. अन्य कारीगरों के मुकाबले इदरीस फातिमा का बहुत खयाल रखता था.

इतना ही नहीं, वह अन्य कारीगरों से उसे ज्यादा पेमेंट करता था. इस मेहरबानी की वजह यह थी कि इदरीस फरीदा को चाहने लगा था. इदरीस की कोशिश रंग लाई और उस के फरीदा से प्रेम संबंध बन गए.

इदरीस और फरीदा दोनों ही बालबच्चेदार थे, जहां इदरीस के 5 बच्चे थे, वहीं फरीदा भी 2 बच्चों की मां थी. करीब डेढ़ साल से दोनों के नाजायज संबंध चले आ रहे थे. इसी दौरान फरीदा एक और बेटे की मां बन गई. इदरीस फरीदा के छोटे बेटे को अपना बेटा बताता था, इसलिए वह उस का कुछ खास ही खयाल रखता था. इदरीस फरीदा को बहुत चाहता था. वह चाहता था कि फरीदा जिंदगी भर के लिए उस के साथ रहे, इसलिए वह फरीदा पर निकाह करने का दबाव बना रहा था.

समझाने पर भी नहीं माने फरीदा और इदरीस

उधर इदरीस और फरीदा के प्रेमसंबंधों की जानकारी पूरे मोहल्ले को थी. फरीदा के पति आरिफ ने भी फरीदा को बहुत समझाया कि उस की वजह से परिवार की मोहल्ले में बदनामी हो रही है. वह इदरीस से मिलना बंद कर दे. उधर इदरीस के पिता बाबू ने भी इदरीस को समझाया कि वह क्यों अपनी घरगृहस्थी और कारोबार को बरबाद करने पर तुला है. फरीदा को भूल कर वह अपने परिवार पर ध्यान दे.

लेकिन इदरीस फरीदा के प्रेमजाल में ऐसा फंसा था कि उसे छोड़ने के लिए तैयार नहीं था. उस के सिर पर एक ही धुन सवार थी कि फरीदा अपने पति को तलाक दे कर उस के साथ निकाह कर ले. वह यही दबाव फरीदा पर लगातार बना रहा था, पर फरीदा ऐसा करने को मना कर रही थी. वह कह रही थी कि जैसा चला आ रहा है, वैसा ही चलता रहने दे.

घटना के करीब 15 दिन पहले जब रात में फरीदा के पास इदरीस का फोन आया तो फोन की घंटी बजने से आरिफ की नींद खुल गई. फरीदा लिहाफ के अंदर ही इदरीस से बातें करने लगी. किसीकिसी फोन के स्पीकर की आवाज इतनी तेज होती है कि पास का आदमी भी बातचीत सुन सकता है.

फरीदा के पास भी ऐसा ही फोन था. वह अपने प्रेमी इदरीस से जो भी बात कर रही थी, वह आरिफ भी सुन रहा था. इदरीस उस से कह रहा था कि वह अपने पति आरिफ को ठिकाने लगवा दे. इस काम में वह उस की पूरी मदद करेगा. उस के बाद हम दोनों निकाह कर लेंगे.

अपनी हत्या की बात सुन कर आरिफ के होश उड़ गए. उस ने उस समय पत्नी से कुछ भी कहना मुनासिब नहीं समझा. सुबह होते ही आरिफ ने इस बारे में पत्नी से बात की. वह झूठ बोलने लगी. इस बात पर दोनों के बीच नोकझोंक भी हुई.

इस के बाद आरिफ ने फरीदा को विश्वास में लिया और घरगृहस्थी का वास्ता दे कर कहा, ‘‘देखो फरीदा, इदरीस कितना गिरा हुआ आदमी है, वह मेरी हत्या कराने पर तुला है. अपने स्वार्थ में वह तुम्हारी भी हत्या करवा सकता है. तुम खुद सोच लो कि अब क्या चाहती हो. यहां रहोगी या उस के साथ?’’

फरीदा ने अपने बच्चों का वास्ता दे कर आरिफ से कहा, ‘‘मैं इसी घर में तुम्हारे और बच्चों के साथ रहूंगी. उस के साथ नहीं जाऊंगी.’’

बन गई कत्ल की भूमिका

आरिफ ने सोचा कि आज नहीं तो कल इदरीस उस के लिए नुकसानदायक साबित होगा, इसलिए उस ने तय कर लिया कि वह इदरीस को सबक सिखाएगा. इस काम में उस ने पत्नी फरीदा को भी मिला लिया. फरीदा ने पति को यह भी बता दिया कि इदरीस पार्टियों से पेमेंट लेने के लिए प्रतापगढ़ और सुलतानपुर गया हुआ है. इस पर आरिफ ने उस से कहा कि किसी बहाने से उसे बुला लो तो बाकी का काम वह कर देगा.

आरिफ के साले फरियाद को यह पता था कि इदरीस की वजह से उस की बहन के घर में तनाव रहता है, इसलिए आरिफ के कहने पर फरियाद भी इदरीस की हत्या के षडयंत्र में शामिल हो गया.

उधर प्रतापगढ़ और सुलतानपुर के कारोबारियों से करीब 5 लाख रुपए का कलेक्शन कर के इदरीस 13 जनवरी को कांठ लौट रहा था. सफर में उस ने अपना फोन साइलेंट मोड पर लगा लिया था. फरीदा ने इदरीस से बात करने के लिए फोन किया पर इदरीस को इस का पता नहीं चला. फरीदा उसे लगातार फोन कर रही थी.

कांठ पहुंचने पर इदरीस ने जैसे ही अपना फोन देखा तो प्रेमिका की 50 मिस्ड काल देख कर चौंक गया. उसे लगा कि पता नहीं क्या बात है जो उस ने इतनी बार फोन मिलाया. इदरीस ने फरीदा को फोन कर के कहा, ‘‘फरीदा, मेरा फोन साइलेंट मोड पर था, इसलिए तुम्हारी काल के बारे में पता नहीं लगा. बताओ, क्या बात है?’’

‘‘मैं ने तय कर लिया है कि मैं आरिफ को तलाक दे कर तुम से निकाह करूंगी. इसी बारे में तुम से बात करना चाह रही थी.’’ फरीदा बोली, ‘‘मैं चाहती हूं कि तुम अभी कांठ बसअड्डे पर आ जाओ, वहीं पर हम बात कर लेंगे.’’

प्रेमिका के मुंह से अपने मन की बात सुन कर इदरीस खुश हो गया. उस ने कहा, ‘‘फरीदा, मैं कुछ देर में ही वहां पहुंच रहा हूं. तुम भी जल्द पहुंच जाना.’’

‘‘ठीक है, तुम आ जाओ, मैं वहीं मिलूंगी.’’ फरीदा बोली.

इदरीस थोड़ी देर में बसअड्डे पर पहुंच गया. फरीदा अपने पति के साथ वहां पहले से ही मौजूद थी. औपचारिक बातचीत के बाद फरीदा ने कहा, ‘‘रायपुर खास गांव में मेरे भाई के यहां खाने का इंतजाम है. वहां चलते हैं, वहीं बातचीत हो जाएगी.’’

इदरीस खानेपीने का शौकीन था. उस समय भी वह शराब पिए हुए था, इसलिए फरीदा के साथ रायपुर खास गांव जाने के लिए तैयार हो गया. जब वह वहां पहुंचा तो फरीदा के भाई फरियाद ने इदरीस का गर्मजोशी से स्वागत किया. उस ने चिकन बना रखा था.

कुछ देर बातचीत के बाद फरियाद ने उस से खाना खाने को कहा तो शराब के शौकीन इदरीस ने शराब पीने की इच्छा जताई. इस पर फरियाद ने कहा कि यह सब घर पर संभव नहीं है. पीनी है तो कांठ बसअड्डे पर ठेका है, वहीं पर पी लेंगे.

इदरीस को मिली मौत की दावत

इदरीस बसअड्डे पर जाने के लिए तैयार हो गया. इदरीस और आरिफ फरियाद की मोटरसाइकिल पर बैठ कर कांठ बसअड्डे पहुंच गए. इदरीस ने पैसे दे कर एक बोतल रम मंगा ली. फरियाद एक बोतल रम और पकौड़े ले आया तो आरिफ बोला, ‘‘चलो, बाग में बैठ कर पिएंगे. उस के बाद खाना खाएंगे. वहीं बात भी हो जाएगी.’’

शराब की बोतल और पकौड़े ले कर तीनों मोटरसाइकिल से आम के बाग में पहुंच गए. बाग में बैठ कर तीनों ने शराब पी. योजना के अनुसार आरिफ व फरियाद ने कम पी और इदरीस को कुछ ज्यादा ही पिला दी थी.

इदरीस जब ज्यादा नशे में हो गया तो आरिफ इदरीस से बोला, ‘‘देखो इदरीस भाई, तुम पैसे वाले हो. मैं छोटा सा एक साइकिल मैकेनिक हूं. मेरी तुम्हारी क्या बराबरी. तुम यह बताओ कि मेरा घर क्यों बरबाद कर रहे हो. तुम्हारी वजह से वैसे भी मोहल्ले में मेरी बहुत बदनामी हो गई है. अब तो पीछा छोड़ दो.’’

‘‘देखो आरिफ, तुम एक बात ध्यान से सुन लो. मैं फरीदा से बहुत प्यार करता हूं. अब फरीदा मेरी है. उसे मुझ से कोई भी अलग नहीं कर सकता. तुम्हें यह भी बताए देता हूं कि उस का जो 5 महीने का बच्चा है, वह मेरा ही है.’’

आरिफ भी नशे में था. यह सुनते ही उस का और फरियाद का खून खौल उठा. दोनों ने उस से कहा कि लगता है तू ऐसे नहीं मानेगा. इस के बाद दोनों ने इदरीस के गले में पड़े मफलर से उस का गला घोंट दिया, जिस से उस की मौत हो गई.

इदरीस की हत्या करने के बाद उन्होंने उस की लाश मोटरसाइकिल से बाग के बीचोबीच ले जा कर डाल दी. तलाशी लेने पर इदरीस की जेब से 5 लाख रुपए और एक मोबाइल फोन मिला. दोनों ही चीजें उन्होंने निकाल लीं.

उस के बाद फरियाद घर से फावड़ा ले आया. आरिफ और फरियाद ने करीब 5 फुट गहरा गड्ढा खोद कर इदरीस की लाश दफन कर दी. लाश ठिकाने लगा कर वे अपने घर लौट गए. इदरीस की जेब से मिले पैसे दोनों ने आपस में बांट लिए.

पुलिस ने फरीदा, उस के पति आरिफ के बाद फरियाद को भी गिरफ्तार कर लिया. उन की निशानदेही पर पुलिस ने 70 हजार रुपए, इदरीस का मोबाइल फोन और फावड़ा बरामद कर लिया.

पुलिस ने 11 फरवरी, 2018 को तीनों अभियुक्तों को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक तीनों अभियुक्त जेल में बंद थे.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

एक शादीशुदा, दूसरी तलाकशुदा : प्यार के चक्कर में गंवाई जान

एलएलबी की छात्रा रितु की 2 महीने पहले ही शादी हुई थी, लेकिन फोटोग्राफर 3 बच्चों के पिता अजय सैनी के प्यार में फंस कर वह पति को तलाक देने को तैयार हो गई. फिर गले में फंसी हड्डी को निकालने के लिए अजय ऐसा गुनाह कर बैठा कि…

सितंबर की पहली तारीख थी. रितु ने अपने प्रेमी अजय को फोन कर अपनी मां की तरफ से माफी मांगते हुए मिलने के लिए विनती की. जबकि अजय उस से मिलने में आनाकानी कर रहा था. उस ने अपने स्टूडियो में काम अधिक होने का बहाना बनाया. रितु के बारबार माफी मांगने पर अजय उस से मिलने को तैयार हो गया. लेकिन उस ने शर्त रखी कि उस के लिए बीयर का इंतजाम करना होगा.

‘‘अजय, मैं लड़की हूं. तुम्हारे लिए बीयर कहां से लाऊंगी. बताओ, मैं शराब की दुकान पर जाऊंगी तो अच्छा लगेगा?’’ रितु बोली.

इस पर अजय ने साफ लहजे में कह दिया कि वह चाहे जैसे भी लाए. उस का मूड बहुत ही खराब है. बगैर बीयर के ठीक होने वाला नहीं है. रितु ने इस बारे में और उस से ज्यादा जिरह नहीं की और फोन डिसकनेक्ट करने से पहले मिलने की जगह और समय बता दिया.

रितु एलएलबी की छात्रा थी. उस का  मोहल्ले में ही रहने वाले युवक अजय सैनी उर्फ बंटी के साथ काफी समय से प्रेम संबंध चल रहा था. यह बात रितु की मां सुशीला को पसंद नहीं थी. उन के प्रेम संबंध के खिलाफ जा कर सुशीला ने रितु की एक साल पहले ही शादी करवा दी थी.

लेकिन शादी के 2 महीने बाद ही रितु पति से तलाक की बात कह कर मां सुशीला के पास ही आई थी, उन के तलाक का मामला कोर्ट में लंबित था. इस की वजह यह थी कि रितु पर अजय के प्यार का भूत सवार था. जबकि अजय के लिए रितु मौजमजे के अलावा कुछ और नहीं थी. अजय रितु से मिलने उस के घर पर भी जाता रहता था.

प्रेमी की बात को रितु भला कैसे टाल सकती थी. लिहाजा वह हिम्मत कर शराब की दुकान से उस के लिए 2 बीयर की बोतलें खरीद लाई.

इस के बाद शाम करीब साढ़े 5 बजे रितु हरिद्वार में चावमंडी स्थित गौशाला के सामने पहुंच कर अजय के आने का इंतजार करने लगी. उस दिन सितंबर की पहली तारीख थी. सड़क किनारे अपनी स्कूटी पर बैठी रितु मोबाइल सर्फिंग कर रही थी. तभी अचानक से अजय आ गया. इस का रितु को पता भी न चला. अजय ने शरारत करते हुए उस के कान के काफी नजदीक मुंह ला कर हैलो कहा.

रितु अचानक तेज आवाज सुन कर हड़बड़ा गई और स्कूटी से गिरतेगिरते बची. नाराजगी भरे लहजे में बोली, ‘‘तुम्हारी यही हरकत मुझे पसंद नहीं, मैं गिर जाती तो!’’

‘‘कैसे गिर जाती, मैं यहां नहीं था क्या?’’ अजय बोला.

‘‘क्या करते तुम? आज ही तुम ने घर पर भी ऐसा ही किया था, तब मुझे गिरने से बचा पाए. वह तो गनीमत थी कि मैं सामने बैड पर गिरी थी.’’

‘‘कुछ हुआ तो नहीं था न,’’ अजय ने सफाई दी.

‘‘कैसे कुछ नहीं हुआ था, तुम मुझ पर गिर पड़े थे, तभी वहां मां आ गई थीं. मां ने हमें गलत समझ लिया था. उस वक्त तुम्हें तो मां ने डांटडपट कर भगा दिया, लेकिन तुम्हारे जाने के बाद मेरी तो पूरी वाट लगा दी थी. और अब देखो, उसी वजह से तुम नाराज हो गए. उस के चलते मुझे तुम से माफी मांगनी पड़ी है. बदले में मैं ने जैसेतैसे कर तुम्हारे लिए 2 बोतल बीयर का इंतजाम किया है.’’ रितु नाराजगी के साथ एक सांस में सब कुछ बोल गई.

‘‘तुम्हारी मां तो मुझ से वैसे भी नाराज ही रहती हैं. उन को मेरा तुम्हारे घर आनाजाना पसंद नहीं है.’’ अजय बोला.

‘‘आज मैं तुम से एक फैसला करने आई हूं.’’ रितु बोली.

‘‘फैसला…कैसा फैसला?’’ अजय चौंकते हुए बोला.

‘‘रोजरोज की टेंशन मुझ से अब सहन नहीं होती, आज तुम क्लीयर करो कि शादी कब करोगे?’’ रितु एक झटके में तेवर दिखाती हुई बोली.

‘‘रितु, अचानक तुम्हें क्या हो गया है, तुम ने सुबह फोन पर भी सुनाया, फिर माफी मांगी. और अब यह फिर से पुराना राग अलापना शुरू कर दिया,’’ अजय बोला.

‘‘पुराना राग?’’ रितु चौंकती हुई बोली.

‘‘पुराना नहीं तो और क्या, मैं ने तुम से पहले भी कई बार कहा है कि मैं शादीशुदा हूं. मेरे 3 बच्चे हैं.’’ अजय ने उसे समझाने की कोशिश की.

‘‘अजय, लोग चाहे जो कुछ बोलें, मैं परवाह नहीं करती, लेकिन मुझे तुम से शादी करनी है. मैं ने तुम से शादी करने के लिए पति को छोड़ा है. तलाक लिया है. तुम मुझे पसंद हो. मैं ने तुम से प्यार किया है.’’

दोनों पहुंचे लवर्स पौइंट पर

रितु जब लगातार बोलने लगी तब अजय उस के मुंह पर हाथ रखते हुए बोला, ‘‘यहां बीच सड़क पर क्यों हंगामा खड़ा कर रही हो. चलो कहीं बैठ कर बातें करते हैं.’’

उस के बाद रितु और अजय स्कूटी से अपनी जानीपहचानी जगह की ओर चले गए, जो उन के लिए पसंदीदा गंगनहर के किनारे लवर्स मीट पौइंट था. वहीं बैठ कर दोनों ने बीयर पी.

उधर रितु घर नहीं पहुंची तो उस की मां सुशीला को उस की बहुत चिंता हुई. उस का फोन भी नहीं मिल रहा था. रात को उस का इंतजार करतेकरते पता नहीं कब उन्हें झपकी आ गई.

2 सितंबर को सुशीला की सुबह 7 बजे आंखें खुलीं. वह बेहद तनाव में थीं. पूरी रात रितु के इंतजार में जागी हुई थीं. सुबह के समय आंख लग गई थी. उन की बेटी रितु शाम से ही नहीं लौटी थी. वह मां की डांट खा कर दुखी थी.

रात में तो उन्होंने सोचा कि शायद वह किसी रिश्तेदार के यहां चली गई होगी, हालांकि रितु के बारे में जानने के लिए रिश्तेदारों को फोन नहीं किया था.

सुशीला खुद को कोस रही थीं कि उन्होंने कल अजय को बेटी के सामने कुछ ज्यादा ही भलाबुरा कह दिया था. डांटने तक तो ठीक था, उसे घर से जबरन निकाल कर खदेड़ना नहीं चाहिए था. उस ने खामख्वाह रितु को काफी जलीकटी सुना दी थी. वह सोच में पड़ गईं कि अब वह क्या करे.

थानाप्रभारी को बताई हकीकत

स्कूटी ले कर निकली रितु के घर वापस नहीं आने के कारण मां सुशीला का मन अनजाने भय से कांपने लगा था. अंतत: उन्होंने इस की जानकारी पुलिस को देना ही सही समझी. उस के बाद वह कोतवाली जाने के लिए घर से निकल पड़ीं.

आधे घंटे बाद वह हरिद्वार की गंगनहर कोतवाली पहुंच गईं. थानाप्रभारी प्रवीण सिंह कोश्यारी उस समय थाने में थे. पहले सुशीला ने उन्हें अपना परिचय दिया. बताया कि वह स्व. कंवर पाल की पत्नी है. इसी कोतवाली क्षेत्र के मोहल्ला गांधीनगर की 3 नंबर की गली में रहती है. उन की बेटी रितु पाल एलएलबी की पढ़ाई कर रही है. वह काफी समय से  आजाद नगर मोहल्ले में फोटोग्राफी की दुकान चलाने वाले अजय सैनी के प्रेम जाल में फंस गई थी.

इसी सिलसिले में उन्होंने यह भी बताया कि वह उन के प्रेम का वह विरोध करती है. वह कई बार रितु और अजय से के संबंधों का विरोध भी जता चुकी है. मगर रितु व अजय उस की बात अनसुनी कर जाते हैं.

सुशीला ने बताया कि कल अजय उस के घर आया था. उस की हरकत को ले कर उन्होंने अजय को रितु से मिलने पर फटकारा था. इस पर वह उल्टे उसे देख लेने की धमकी देने लगा था.

सुशीला की बात ध्यान से सुनते हुए थानाप्रभारी बीच में बोले, ‘‘लेकिन आप आज किसलिए आई हैं. क्या उन के साथ कोई अप्रिय घटना हो गई है?’’

‘‘जी हुजूर, कल शाम से मेरी बेटी घर वापस नहीं लौटी है. मुझे पूरा संदेह है कि अजय ही मेरी बेटी को कहीं भगा कर ले गया है.’’

‘‘तो आप का कहना है कि आप की बेटी का अपहरण हो गया है?’’ कोश्यारी बोले.

‘‘जी साहब!’’ सुशीला बोली.

‘‘ठीक है, यह लीजिए प्लेन पेपर इस पर अभी जो आप ने बताया, वह सब लिख कर ले आइए.’’ कहते हुए कोश्यारी ने कंप्यूटर प्रिंटर से एक पेपर निकाल कर सुशीला को दे दिया.

सुशीला ने पेपर ले कर कोश्यारी से एक कलम मांगा और अलग जा कर बेंच पर बैठ गईं और तहरीर लिख कर थानाप्रभारी को दे दी, जिस में उन्होंने रितु के अपहरण का दोषी सीधेसीधे अजय को ही ठहराया.

सुशीला की तहरीर पर अपहरण की रिपोर्ट दर्ज हो गई. थानाप्रभारी ने यह जानकारी सीओ विवेक कुमार और एसपी (देहात) प्रमेंद्र डोभाल को भी दे दी.

प्राथमिकी दर्ज होने के बाद गंगनहर पुलिस सक्रिय हो गई. रितु की सकुशल बरामदगी के लिए सीओ ने एक टीम गठित कर दी, जिस में थानाप्रभारी प्रवीण सिंह कोश्यारी के नेतृत्व में एसएसआई देवराज शर्मा, एसआई सुनील रमोला, सुखपाल मान आदि को शामिल किया गया.

पुलिस टीमें जुटीं जांच में

पुलिस ने रितु के अकसर आनेजाने वाले जगहों के निरीक्षण के साथसाथ उस से मिलनेजुलने वालों से पूछताछ की. इसी सिलसिले में मुख्य आरोपी अजय को भी थाने बुला कर पूछताछ शुरू हुई. सीसीटीवी कैमरे की फुटेज की जांच शुरू की.

इस के अलावा दूसरी टीम में एसआई अजय शाह व सिपाहियों हरी सिंह राठौर, शिवचरण, अनूप, अनिल, रविंद्र, चेतन, संदीप व यशपाल भंडारी को रितु व अजय सैनी के चालचलन के बारे में जानकारी जुटाने के लिए लगा दिया.

उन्हें दोनों के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकालने का कार्य सौंपा गया. उन के कुछ कार्य हो जाने के बाद पुलिस की दोनों टीमों की जानकारियों के विश्लेषण का काम शुरू किया गया.

अगले दिन शाम को पुलिस ने कोतवाली सिविललाइंस क्षेत्र की पीरबाबा कालोनी से रितु की स्कूटी, उस का मोबाइल तथा आधार कार्ड लावारिस हालत में बरामद कर लिया था.

स्कूटी लावारिस हालत में मिलने पर पुलिस व रितु की मां ने दूसरा संदेह जताया कि कहीं रितु ने गंगनहर में कूद कर आत्महत्या तो नहीं कर ली. इस एंगल से भी पुलिस जांच करने लगी. किंतु रितु व अजय के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स से उन की एक अहम बातचीत हाथ लग गई.

उस आधार पर 4 सितंबर, 2021 को पुलिस ने पूछताछ के लिए अजय सैनी को कोतवाली बुलाया. उस से रितु के लापता होने के बारे में गहन पूछताछ की गई.

अजय ने पुलिस को बताया कि वह बीते 3 सालों से रितु को जानता है. उस से उस की जानपहचान उस समय हुई थी, जब वह उस के स्टूडियो पर फोटो खिंचवाने आई थी.

तब उस ने उस की तसवीर को हीरोइन की तरह ग्लैमर से भरा बना दिया था. उस के बाद वह अकसर उस के स्टूडियो पर आनेजाने लगी थी. इस कारण उस की रितु से दोस्ती हो गई थी. बाद में यह दोस्ती कब प्यार में बदल गई, पता ही नहीं चला. अजय शादीशुदा था, यह जानते हुए भी रितु उस से प्यार करने लगी.

अजय ने बताया कि वह उस के घर पर गया था. तब रितु के घर पर उस की मां सुशीला से उस की नोकझोंक भी हुई थी. उस के बाद वह अपने स्टूडियो पर वापस आ गया था. रितु अपने घर से कहां गई थी, इस की उसे कोई जानकारी नहीं है.

रितु की मिली लाश

पुलिस को इतनी जानकारी दे कर अजय कोतवाली से चला गया. उस के बाद पुलिस ने गोताखोरों की मदद से गंगनहर में रितु को काफी तलाशा, मगर उस का कुछ पता नहीं चल सका.

रितु की मां और उस के रिश्तेदार हर रोज गंगनहर की आसफनगर झाल पर जाते थे. वह 7 सितंबर 2021 का दिन था. सुबह के 10 बज रहे थे. आसफनगर झाल पर तैनात सिंचाई विभाग के एक कर्मचारी ने गंगनहर पुलिस को सूचना दी कि झाल पर एक युवती का शव बह कर आया है.

सूचना पाते ही थानेदार अजय शाह ने इस की जानकारी रितु की मां को दी. लगभग आधे घंटे बाद पुलिस टीम व सुशीला अपने रिश्तेदारों के साथ झाल पर पहुंच गए. सुशीला ने जैसे ही झाल में अटकी लाश देखी, दहाड़ मार कर रोने लगीं. दरअसल, वह लाश रितु की ही थी.

उस के बाद पुलिस ने लाश को झाल से बाहर निकाला और उस का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम के लिए जे.एन. सिन्हा राजकीय अस्पताल रुड़की भेज दिया.

रितु की लाश बरामद होने के बाद उस के परिजन हंगामा करते हुए अजय के खिलाफ तुरंत काररवाई की मांग करने लगे. तभी वहां पहुंचे सीओ विवेक कुमार ने कोतवाली पहुंच कर अजय से पूछताछ की तो वह रितु के बारे में अनभिज्ञता जताने लगा.

तभी सीओ ने कहा, ‘‘फिर सफेद झूठ बोल रहा है. अभीअभी तूने बताया कि अपने पसंदीदा लवर्स पौइंट की ओर गए. बीयर की बोतल का क्या हुआ, जो तूने मंगवाई थी. रितु तभी से लापता है. उस की मां सुशीला ने तेरे खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई है.’’

पुलिस से पूछताछ के दौरान अजय ने सिरे से कुछ और बताने से इनकार कर दिया. इस पर वहीं खड़े थानाप्रभारी कोश्यारी को काफी गुस्सा आ गया, उन्होंने एक जोरदार थप्पड़ लगाते हुए कहा, ‘‘उस की आज ही नहर में तैरती हुई लाश बरामद हुई है. पता है तुझे?’’

रितु की लाश की बात सुन कर अजय के चेहरे का रंग फीका पड़ गया. पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि रितु की मौत का जिम्मेदार अजय ही है. फिर उस से सख्ती से पूछताछ की जाने लगी.

थानाप्रभारी कोश्यारी ने फिर वही सवाल किया, स्कूटी पर बैठ कर तुम दोनों कहां गए? अजय ने एक लाइन में बताया कि दोनों पीरबाबा कालोनी के पास गंगनहर के किनारे आ गए थे. उस समय वहां अंधेरा छा गया था. वहीं हम ने साथसाथ बीयर पी थी. फिर मैं वापस अपने घर आ गया था और रितु भी लौट आई थी.

इस के बाद पुलिस ने उसे रितु की लाश दिखाई. रितु की लाश देख कर वह टूट गया और समझ गया कि अब उस का बचना मुश्किल है. इस के बाद उस ने बताया कि उस ने किस तरह से रितु को बीयर पिला कर गंगनहर में धक्का दिया था.

पुलिस ने अजय सैनी निवासी ग्राम किशनपुर थाना भगवानपुर जिला हरिद्वार के बयान नोट कर लिए. उस के बाद पुलिस ने अजय की निशानदेही पर रितु के गले की सोने की चेन और पेंडेंट भी बरामद कर लिया, जो अजय ने धक्का देने से पहले रितु के गले से निकाल लिया था.

एसपी (देहात) प्रमेंद्र डोभाल ने अजय को प्रैसवार्ता के दौरान मीडिया के सामने पेश कर के इस घटना की विस्तृत जानकारी दी.

अगले दिन पुलिस ने अजय सैनी को कोर्ट में पेश कर दिया. वहीं से उसे जेल भेज दिया गया. अजय सैनी के पिता शिक्षक हैं.

कथा लिखे जाने तक आरोपी अजय सैनी रुड़की जेल में बंद था. पुलिस को रितु की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई थी, जिस में  उस की मौत का कारण पानी में डूब कर दम घुटना बताया गया था.

इस प्रकरण की विवेचना अजय शाह द्वारा की जा रही थी.

कथा लिखे जाने तक इस प्रकरण में अजय के विरुद्ध साक्ष्य जुटा कर उस के विरुद्ध चार्जशीट अदालत में भेजने की तैयारी की जा चुकी थी.

—पुलिस सूत्रों पर आधारित

नाकाम साजिश : बहू ने बनाई सास की हत्या की योजना

कुलदीप कौर पिछले कई महीनों से परेशान थी, लेकिन परेशानी की वजह उस की समझ में नहीं आ रही थी. उस का मन हर समय बेचैन रहता था. अजीबोगरीब विचार मन को उलझाए रखते थे. वह कितना भी अच्छा सोचने की कोशिश करती, मन सकारात्मक सोच की ओर न जा कर नकारात्मक सोच में ही डेरा जमाए रहता था.

बुरे विचारों से जैसे कुलदीप का नाता जुड़ गया था. मन को समझाने और बुरे विचारों से दूर रहने के लिए वह अपना अधिकांश समय गुरुद्वारे में व्यतीत करने लगी थी.

कुलदीप कौर की चिंता का विषय सात समंदर पार पंजाब में बैठी अपनी मां राजविंदर कौर थीं. हालांकि 57 वर्षीय राजविंदर कौर की देखभाल के लिए गांव के घर में उस की भाभी शगुनप्रीत कौर थी, लेकिन भाभी पर उसे भरोसा नहीं था.

कुलदीप के पति मनमोहन सिंह ने उसे कई बार समझाया भी था कि बेकार में चिंता करने से कोई फायदा नहीं है. अगर मन इतना ही परेशान है तो इंडिया का चक्कर लगा आओ. वहां अपनी मां से मिल लेना. लेकिन समस्या यह थी कि उन दिनों कुलदीप गर्भवती थी. डाक्टरों ने ऐसी हालत में हवाई यात्रा करने से मना कर रखा था. बहरहाल, इसी उधेड़बुन में कुलदीप कौर के दिन गुजर रहे थे.

भरापूरा परिवार था बलदेव सिंह का

कुलदीप कौर मूलत: गांव बुट्टर सिविया, थाना मेहता, जिला अमृतसर, पंजाब की रहने वाली थी. उस के जीवन के 16 बसंत भी अपने गांव बुट्टर में ही गुजरे थे. गांव में रहते ही उस ने जवानी की दहलीज पर पांव रखे थे. कुलदीप का छोटा सा परिवार था.

पिता बलदेव सिंह और मां राजविंदर कौर के अलावा उस के 2 भाई थे गगनदीप सिंह और सरबजीत सिंह. तीनों भाईबहनों का आपस में बहुत प्यार था. वे तीनों बहनभाई कम दोस्त ज्यादा लगते थे. आपस में इन की कोई बात एकदूसरे से छिपी नहीं रहती थी.

बलदेव सिंह जाट सिख किसान थे. उन के पास खेती की ज्यादा जमीन तो नहीं थी, पर जितनी थी वह परिवार की हर जरूरत पूरी करने के लिए काफी थी. इसीलिए बलदेव सिंह ने अपने तीनों बच्चों को सिर उठा कर आजादी से जीना सिखाया था.

उन्होंने तीनों बच्चों को अपनी हैसियत के हिसाब से पढ़ाया था. बच्चों के लिए अभी वह और भी बहुत कुछ करना चाहते थे, पर साल 2002 में उन की मौत हो गई.

बलदेव सिंह की मौत के बाद पूरे परिवार की जिम्मेदारियां राजविंदर कौर के कंधे पर आ गई थीं. उस वक्त उन का बड़ा बेटा गगनदीप जवानी की दहलीज पर कदम रख चुका था. वह मां का हाथ बंटा कर उस का सहारा बन गया. घर की गाड़ी फिर से अपनी स्पीड से दौड़ने लगी थी.

साल 2008 इस परिवार के लिए अच्छा साबित हुआ. इसी साल कुलदीप कौर के लिए एक अच्छे परिवार का रिश्ता आया, लड़के का नाम मनमोहन सिंह था. वह अच्छे घर का पढ़ालिखा गबरू जाट था और आस्ट्रेलिया में अपना कारोबार करता था. राजविंदर कौर को मनमोहन और उस का परिवार कुलदीप के लिए पसंद आया. कुलदीप को भी मनमोहन सिंह पसंद था. दोनों परिवारों की रजामंदी के बाद सन 2008 में कुलदीप कौर और मनमोहन सिंह की शादी धूमधाम से संपन्न हो गई. इस शादी से सभी लोग खुश थे.

अचानक हो गई गगनदीप की मौत

खुशी का माहौल था, पर कहीं अनहोनी मुंह पसारे इस परिवार की खुशियों को लीलने के लिए घात लगाए बैठी थी. कुलदीप की शादी के कुछ दिनों बाद ही इस परिवार को तब बड़ा झटका लगा, जब अचानक गगनदीप की मौत हो गई.

गगनदीप की मौत का सदमा उस की मां राजविंदर कौर और उस के छोटे भाईबहन को भीतर तक तोड़ गया. कुलदीप की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसे नाजुक मौके पर वह अपनी मां और छोटे भाई सरबजीत को अकेला छोड़ कर पति के साथ आस्ट्रेलिया जाए या यहीं रह कर उन का साथ दे.
संसार का नियम है, यहां लोग आतेजाते हैं, सब कुछ समय की गति से चलता रहता है. जबकि समय का चक्र और संसार के कामकाज कभी नहीं रुकते. वक्त का मरहम बड़े से बड़ा घाव भर देता है. बहरहाल, अपनी मां और भाई को दिलासा दे कर कुलदीप कौर अपने पति मनमोहन सिंह के साथ आस्ट्रेलिया चली गई. कुलदीप को आस्ट्रेलिया गए 10 साल बीत गए थे.

इस बीच वह सरताज सिंह और सम्राट सिंह 2 बच्चों की मां बन गई थी. उस के पीछे मायके में छोटे भाई सरबजीत सिंह की भी शगुनप्रीत कौर के साथ शादी हो गई थी. सरबजीत भी 2 बच्चों बेटी मनतलब कौर और बेटे वारिसदीप सिंह का बाप बन गया था.

कुलदीप की अपनी मां और भाई से हर हफ्ते फोन पर बातें होती रहती थीं. सभी अपनीअपनी जिंदगी में मशगूल थे कि साल 2015 की एक मनहूस खबर ने कुलदीप को अंदर तक तोड़ कर रख दिया. इस घटना से राजविंदर कौर की तो जैसे दुनिया ही उजड़ गई थी. उसे अपने पति और बड़े बेटे गगनदीप की मौत का इतना दुख नहीं हुआ था, जितना दुख सरबजीत की मौत का हुआ.

सरबजीत की मौत बड़े रहस्यमय तरीके से हुई थी. वह रात को खाना खा कर ऐसा सोया कि सोता ही रह गया. सरबजीत अपने परिवार का एकमात्र सहारा था. उस की मौत से परिवार की गाड़ी पूरी तरह लड़खड़ा गई.

वक्त ने ताजा जख्मों पर एक बार फिर से मरहम लगाया. राजविंदर कौर ने अपने आप को पूरी तरह से अकेला मान कर जीना सीख लिया था. समय का चक्र फिर से अपनी रफ्तार से चलने लगा. कुलदीप मां को फोन करकर के सांत्वना देती रहती थी. सैकड़ों मील दूर बैठी कुलदीप और कर भी क्या सकती थी. इसी तरह दिन गुजरते गए थे और साल 2016 आ गया.
दूसरे बेटे की मौत से टूट गई मां

कुलदीप कौर ने महसूस किया कि सरबजीत सिंह की मौत के बाद गांव से उस की मां के जो फोन आते थे, वह काफी मायूसी भरे होते थे. सुन कर कुलदीप को ऐसा लगता था, जैसे उस की मां बहुत परेशान और दुखी हैं. उस ने बहुत बार मां से इस बारे में पूछा भी था, पर मां ने उसे कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया था. वह बहुत दुखी लग रही थीं. ज्यादा कुरेद कर पूछने पर राजविंदर ने सिर्फ इतना ही बताया कि पिछले कुछ समय से शगुन का चालचलन ठीक नहीं है.

कुलदीप कौर ने जब शगुन से इस बारे में बात की तो उस ने बताया, ‘‘दीदी, ऐसी कोई बात नहीं है. बीजी को एक तो बेटे की मौत का सदमा है, ऊपर से अकेलापन परेशान करता है. कभीकभी शुगर की बीमारी की वजह से भी उन्हें घबराहट होने लगती है. आप चिंता न करें, मैं सब संभाल लूंगी.’’

शगुन की गोलमोल बातें कुलदीप की समझ से बाहर थीं. वह अच्छी तरह जानती थी कि शगुन बहुत चालाक है. वह सच्ची बात कभी नहीं बताएगी. इसीलिए कुलदीप ने अपने गांव के कुछ खास लोगों को फोन कर के विनती की कि वे उस के घर हो रहे क्रियाकलापों पर नजर रखें. गांव के जानकार लोगों ने कुलदीप कौर की बात मान कर राजविंदर के घर पर नजर रखनी शुरू कर दी.

बाद में उन्होंने कुलदीप को बताया कि उस की मां के घर में सामने से तो सब कुछ ठीक नजर आता है. शगुन लोगों के सामने तो राजविंदर कौर का बहुत खयाल रखती है. बाकी उन की पीठ पीछे घर में सासबहू का आपस में कैसा बर्ताव है, कुछ कहा नहीं जा सकता. बहरहाल, ऐसा जवाब सुन कर कुलदीप कौर मन मसोस कर रह जाती थी और अपनी मां की सलामती की दुआ करती थी.

29 अक्तूबर, 2016 को शगुन ने कुलदीप कौर को आस्ट्रेलिया फोन कर के खबर दी कि बीजी का देहांत हो गया है. शगुन ने मौत की वजह राजविंदर का शुगर लेवल कम हो जाना बताया था. उन दिनों कुलदीप गर्भवती थी, डाक्टरों ने उसे यात्रा के लिए मना कर रखा था सो अपने घर के एकांत में कुलदीप ने छाती पीट कर मां की मौत का मातम मना लिया. अब उस के मायके के परिवार में सिवाय उस के कोई और नहीं बचा था.

राजविंदर की मौत के बाद 2-4 बार शगुन के फोन उसे आए थे, पर वह बिना सिरपैर की बातें ही किया करती थी. एक बात थी जो हर समय कुलदीप को परेशान कर रही थी. उसे हर समय ऐसा लगता था जैसे उस की मां की मौत स्वाभाविक नहीं थी. जरूर उस के साथ कोई अनहोनी घटी थी, पर क्या हुआ और कैसे यह बात उस की समझ में नहीं आती थी.

मां सरबजीत की मौत के बाद शगुन गांव की कोठी और सारी जमीन की मालकिन बन गई थी. कुलदीप अकसर यह भी सोचा करती थी कि कहीं उस की मां की मौत किसी षडयंत्र की वजह से तो नहीं हुई.
बहरहाल, कुलदीप ने एक बार फिर से अपने गांव के भरोसेमंद लोगों से अपनी मां की मौत से परदा उठाने के लिए विनती की. इस बात का पता लगाने में गांव के कुछ खास लोगों को पौने 2 साल का समय लग गया.

जुलाई 2018 में कुलदीप कौर को सूचना मिली थी कि उस की मां राजविंदर कौर की मौत में उस की भाभी शगुन का हाथ था. यह सुन कर वह ज्यादा हैरान नहीं हुई, क्योंकि उसे शगुन पर शुरू से ही शक था. यह तो दूर का मामला था, अगर वह कहीं पास होती तो कब की अपनी मां की मौत से परदा उठा देती.
खैर, अब भी देर नहीं हुई थी और अब वह पूरी तरह से यात्रा करने लायक थी. बीती जुलाई के दूसरे सप्ताह में वह आस्ट्रेलिया से भारत अपने गांव पंजाब पहुंच गई. जब अपने मायके के घर पहुंच कर उस ने वहां का नजारा देखा तो हैरान रह गई. उस की मां के घर 2 अनजान आदमी बैठे शगुन के साथ हंसीमजाक कर रहे थे.

गुस्से से बिफरते हुए जब कुलदीप कौर ने पूछा, ‘‘भाभी, ये लोग कौन हैं?’’ तो शगुन ने मिमियाते हुए जवाब दिया, ‘‘दीदी, तुम्हारे भाई की मौत के बाद ये दोनों खेतों में काम करने में मदद करते हैं.’’

कुलदीप को शक हुआ भाभी पर

कुलदीप अच्छी तरह जानती थी कि शगुन जो बता रही है, बात वह नहीं है. पर उस वक्त उस ने चुप रहना ही बेहतर समझा. कुलदीप के आने की वजह से वे दोनों व्यक्ति वहां से चले गए. अगले दिन सुबह उठ कर कुलदीप नहाईधोई और गुरुद्वारे चली गई.

अरदास के बाद वह अपने मौसा हरदयाल सिंह को साथ ले कर सीधे एसएसपी (देहात) अमृतसर परमपाल सिंह के पास जा पहुंची. कुलदीप ने अपनी मां की हत्या का शक जताते हुए उन्हें बताया कि मां की मौत में उस की भाभी और कुछ अन्य लोगों का हाथ है.

एसएसपी परमपाल सिंह ने कुलदीप द्वारा दिए प्रार्थनापत्र पर नोट लिख कर उसे संबंधित थाना मेहता भेज दिया. साथ ही उन्होंने थानाप्रभारी अमनदीप सिंह को फोन कर आदेश दिया कि इस मामले की गुत्थी जल्द से जल्द सुलझाएं. कुलदीप कौर ने उसी दिन थानाप्रभारी अमनदीप से मिल कर आस्ट्रेलिया जाने से ले कर अपनी गैरहाजिरी में अपने भाई और मां की मौत का सारा हाल विस्तार से कह सुनाया.

कुलदीप कौर की पूरी बात सुनने के बाद अमनदीप सिंह ने तत्काल अपने खास मुखबिरों को शगुन और उस के साथियों की कुंडली खंगालने के काम पर लगा दिया. जल्दी ही उन्हें रिपोर्ट भी मिल गई.

एसएसपी के आदेश पर उन्होंने कुलदीप कौर की शिकायत को आधार बना कर उसी दिन यानी 30 जुलाई, 2018 को राजविंदर कौर की हत्या का मुकदमा भादंसं की धारा 302, 201, 120बी और 34 पर दर्ज कर के काररवाई शुरू कर दी.

अमनदीप सिंह ने उसी दिन एएसआई कमलबीर सिंह, हवलदार जतिंदर सिंह, महिंदरपाल सिंह, कांस्टेबल महकप्रीत सिंह और लेडी हवलदार हरजिंदर कौर को साथ ले कर बुट्टर गांव पहुंचे और देर शाम शगुनप्रीत कौर और उस के आशिक सतनाम सिंह को हिरासत में ले लिया.

हत्या के इस मामले का तीसरा आरोपी जसबीर सिंह भाग निकला था. संभवत: उसे पुलिस काररवाई की भनक लग गई थी. जसबीर की गिरफ्तारी के लिए पुलिस लगातार छापेमारी कर रही थी, पर वह पुलिस के हाथ नहीं लगा.

पुलिस ने की काररवाई

थानाप्रभारी अमनदीप सिंह ने जब शगुनप्रीत और सतनाम सिंह से पूछताछ की तो दोनों आरोपियों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. इस के बाद उसी दिन राजविंदर कौर की हत्या के आरोप में शगुन और सतनाम सिंह को अदालत में पेश कर आगामी पूछताछ के लिए पुलिस रिमांड पर ले लिया गया. रिमांड के दौरान पूछताछ में राजविंदर की मौत की जो कहानी पता चली, वह कुछ इस तरह थी—
शगुनप्रीत कौर बचपन से ही दिलफेंक और महत्त्वाकांक्षी थी. शादी से पहले अपने गांव में उस के कई युवकों के साथ नाजायज संबंध थे. अपने पति सरबजीत की मौत से पहले भी उस का गांव के कई युवकों के साथ नैनमटक्का चल रहा था, पर परदे के पीछे. क्योंकि तब उसे अपने पति का डर था.
लेकिन पति की मौत के बाद उस ने सरेआम यारियां जोड़नी शुरू कर दी थीं. अब उसे रोकनेटोकने वाला नहीं था. शगुन के अपने गांव के ही एक युवक सतनाम सिंह के साथ नाजायज संबंध बन गए थे. सतनाम आवारा आदमी था और नशीली वस्तुएं बेचता था.

शगुन ने प्रेमी के साथ बनाई योजना

जसबीर सिंह सतनाम के नशे के धंधे में उस का भागीदार था. उसे जब शगुन और सतनाम के संबंधों का पता चला तो बहती गंगा में हाथ धोने के लिए वह भी मचलने लगा. शगुन को इस बात से कोई ऐतराज नहीं था, बल्कि वह खुश थी कि उस के 2-2 चाहने वाले हैं. सरबजीत की मौत के बाद सतनाम सिंह शगुन के ही घर पर रहने लगा था.

यह बात राजविंदर को मंजूर नहीं थी. सतनाम के वहां रहने का वह विरोध करती थी. शगुन अपनी मनमानी पर उतर आई थी. उसे न तो सास का कोई डर था और न शरम. वह तो बस हवा में उड़ी चली जा रही थी.
जब राजविंदर कौर का विरोध बढ़ गया तो शगुन ने उसे रास्ते से हटाने की योजना बना डाली. इस के 2 फायदे थे, एक तो राजविंदर की मौत के बाद उसे कोई रोकनेटोकने वाला नहीं रहता और दूसरे सारी जमीनजायदाद उस के नाम हो जाती.

यह अलग बात थी कि राजविंदर की मौत के बाद सब कुछ उसे ही मिलने वाला था, पर उसे सब्र नहीं था. दूसरे उसे यह भी डर था कि मरने से पहले राजविंदर जायदाद किसी और के नाम न कर जाएं.
शगुनप्रीत और उस के आशिक सतनाम सिंह ने मिल कर राजविंदर कौर की हत्या की योजना बनाई. इस के लिए उन्होंने गांव के ही जसबीर सिंह को चुना और उसे ढाई लाख रुपए देने का वादा कर के तैयार कर लिया.

अपनी योजना के अनुसार, 28 अक्तूबर 2016 की आधी रात को तीनों ने मिल कर सोते समय राजविंदर कौर को गला दबा कर मार डाला. अगली सुबह योजना के तहत शगुन ने कुछ देर गांव वालों के सामने राजविंदर की बीमारी का नाटक रचा और बाद में शोर मचा कर यह खबर फैला दी कि शुगर लेवल कम होने की वजह से राजविंदर की मौत हो गई है.

इतना ही नहीं, वह इतनी शातिर निकली कि रिश्तेदारों को बताए बिना ही जल्दबाजी में गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर सास का अंतिम संस्कार भी करा दिया. बाद में उस ने कुलदीप कौर को भी फोन कर के इस की खबर दे दी थी.

राजविंदर कौर की हत्या की योजना में शगुन और सतनाम सिंह ने ढाई लाख रुपए की सुपारी दे कर जसबीर को अपने साथ शामिल तो कर लिया था, पर हत्या के बाद उन्होंने उसे पैसे देने से इनकार कर दिया था.

जसबीर काफी समय तक उन से पैसे मांगता रहा, जब उन्होंने पैसे देने से बिलकुल इनकार कर दिया तो गुस्से में आ कर उस ने गांव के कुछ लोगों के सामने इस बात का खुलासा कर दिया. गांव वाले पहले से ही तीनों पर नजर रखे हुए थे, सो उन्होंने यह खबर फोन द्वारा कुलदीप को दे दी.

रिमांड की अवधि समाप्त होने पर थानाप्रभारी अमनदीप सिंह ने शगुनप्रीत कौर और उस के प्रेमी सतनाम सिंह को अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जिला जेल भेज दिया गया. इस अपराध का तीसरा आरोपी जसबीर सिंह फरार था.

पुलिस सूत्रों पर आधारित

ब्लैकमेलिंग का साइड इफेक्ट : हैरान कर देगी ये कहानी

‘‘रजनी, क्या बात है आजकल तुम कुछ बदलीबदली सी लग रही हो. पहले की तरह बात भी नहीं करती.

मिलने की बात करो तो बहाने बनाती हो. फोन करो तो ठीक से बात भी नहीं करतीं. कहीं हमारे बीच कोई और तो नहीं आ गया.’’ कमल ने अपनी प्रेमिका रजनी से शिकायती लहजे में कहा तो रजनी ने जवाब दिया, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है, मेरे जीवन में तुम्हारे अलावा कोई और आ भी नहीं सकता.’’

रजनी और कमल लखनऊ जिले के थाना निगोहां क्षेत्र के गांव अहिनवार के रहने वाले थे. दोनों का काफी दिनों से प्रेम संबंध चल रहा था.

‘‘रजनी, फिर भी मुझे लग रहा है कि तुम मुझ से कुछ छिपा रही हो. देखो, तुम्हें किसी से भी डरने की जरूरत नहीं है. कोई बात हो तो मुझे बताओ. हो सकता है, मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकूं.’’ कमल ने रजनी को भरोसा देते हुए कहा.

‘‘कमल, मैं ने तुम्हें बताया नहीं, पर एक दिन हम दोनों को हमारे फूफा गंगासागर ने देख लिया था.’’ रजनी ने बताया.

‘‘अच्छा, उन्होंने घर वालों को तो नहीं बताया?’’ कमल ने चिंतित होते हुए कहा.

‘‘अभी तो उन्होंने नहीं बताया, पर बात छिपाने की कीमत मांग रहे हैं.’’ रजनी बोली.

‘‘कितने पैसे चाहिए उन्हें?’’ कमल ने पूछा.

‘‘नहीं, पैसे नहीं बल्कि एक बार मेरे साथ सोना चाहते हैं. वह धमकी दे रहे हैं कि अगर उन की बात नहीं मानी तो वह मेरे घर में पूरी बात बता कर मुझे घर से निकलवा देंगे.’’ रजनी के चेहरे पर चिंता के बादल छाए हुए थे.

‘‘तुम चिंता मत करो, बस एक बार तुम मुझ से मिलवा दो. हम उस की ऐसी हालत कर देंगे कि वह बताने लायक ही नहीं रहेगा. वह तुम्हारा सगा रिश्तेदार है तो यह बात कहते उसे शरम नहीं आई?’’ रजनी को चिंता में देख कमल गुस्से से भर गया.

‘‘अरे नहीं, मारना नहीं है. ऐसा करने पर तो हम ही फंस जाएंगे. जो बात हम छिपाना चाह रहे हैं, वही फैल जाएगी.’’ रजनी ने कमल को समझाते हुए कहा.

‘‘पर जो बात मैं तुम से नहीं कह पाया, वह उस ने तुम से कैसे कह दी. उसे कुछ तो शरम आनी चाहिए थी. आखिर वह तुम्हारे सगे फूफा हैं.’’ कमल ने कहा.

‘‘तुम्हारी बात सही है. मैं उन की बेटी की तरह हूं. वह शादीशुदा और बालबच्चेदार हैं. फिर भी वह मेरी मजबूरी का फायदा उठाना चाहते हैं.’’ रजनी बोली.

‘‘तुम चिंता मत करो, अगर वह फिर कोई बात करे तो बताना. हम उसे ठिकाने लगा देंगे.’’ कमल गुस्से में बोला.  इस के बाद रजनी अपने घर आ गई पर रजनी को इस बात की चिंता होने लगी थी.

ब्लैकमेलिंग में अवांछित मांग

38 साल के गंगासागर यादव का अपना भरापूरा परिवार था. वह लखनऊ जिले के ही सरोजनीनगर थाने के गांव रहीमाबाद में रहता था. वह ठेकेदारी करता था. रजनी उस की पत्नी रेखा के भाई की बेटी थी.

उस से उम्र में 15 साल छोटी रजनी को एक दिन गंगासागर ने कमल के साथ घूमते देख लिया था. कमल के साथ ही वह मोटरसाइकिल से अपने घर आई थी. यह देख कर गंगासागर को लगा कि अगर रजनी को ब्लैकमेल किया जाए तो वह चुपचाप उस की बात मान लेगी. चूंकि वह खुद ही ऐसी है, इसलिए यह बात किसी से बताएगी भी नहीं. गंगासागर ने जब यह बात रजनी से कही तो वह सन्न रह गई. वह कुछ नहीं बोली.

गंगासागर ने रजनी से एक दिन फिर कहा, ‘‘रजनी, तुम्हें मैं सोचने का मौका दे रहा हूं. अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो घर में तुम्हारा भंडाफोड़ कर दूंगा. तुम तो जानती ही हो कि तुम्हारे मांबाप कितने गुस्से वाले हैं. मैं उन से यह बात कहूंगा तो मेरी बात पर उन्हें पक्का यकीन हो जाएगा और बिना कुछ सोचेसमझे ही वे तुम्हें घर से निकाल देंगे.’’

रजनी को धमकी दे कर गंगासागर चला गया. समस्या गंभीर होती जा रही थी. रजनी सोच रही थी कि हो सकता है उस के फूफा के मन से यह भूत उतर गया हो और दोबारा वह उस से यह बात न कहें.

यह सोच कर वह चुप थी, पर गंगासागर यह बात भूला नहीं था. एक दिन रजनी के घर पहुंच गया. अकेला पा कर उस ने रजनी से पूछा, ‘‘रजनी, तुम ने मेरे प्रस्ताव पर क्या विचार किया?’’

‘‘अभी तो कुछ समझ नहीं आ रहा कि क्या करूं. देखिए फूफाजी, आप मुझ से बहुत बड़े हैं. मैं आप के बच्चे की तरह हूं. मुझ पर दया कीजिए.’’ रजनी ने गंगासागर को समझाने की कोशिश की.

‘‘इस में बड़ेछोटे जैसी कोई बात नहीं है. मैं अपनी बात पर अडिग हूं. इतना समझ लो कि मेरी बात नहीं मानी तो भंडाफोड़ दूंगा. इसे कोरी धमकी मत समझना. आखिरी बार समझा रहा हूं.’’ गंगासागर की बात सुन कर रजनी कुछ नहीं बोली. उसे यकीन हो गया था कि वह मानने वाला नहीं है.

रजनी ने यह बात कमल को बताई. कमल ने कहा, ‘‘ठीक है, किसी दिन उसे बुला लो.’’

इस के बाद रजनी और कमल ने एक योजना बना ली कि अगर वह अब भी नहीं माना तो उसे सबक सिखा देंगे. दूसरी ओर गंगासागर पर तो किशोर रजनी से संबंध बनाने का भूत सवार था.

सुबह होते ही उस का फोन आ गया. फूफा का फोन देखते ही रजनी समझ गई कि अब वह मानेगा नहीं. कमल की योजना पर काम करने की सोच कर उस ने फोन रिसीव करते हुए कहा, ‘‘फूफाजी, आप कल रात आइए. आप जैसा कहेंगे, मैं करने को तैयार हूं.’’

रजनी इतनी जल्दी मान जाएगी, गंगासागर को यह उम्मीद नहीं थी. अगले दिन शाम को उस ने रजनी को फोन कर पूछा कि वह कहां मिलेगी. रजनी ने उसे मिलने की जगह बता दी.

अपने आप बुलाई मौत

18 जुलाई, 2018 को रात गंगासागर ने 8 बजे अपनी पत्नी को बताया कि पिपरसंड गांव में दोस्त के घर बर्थडे पार्टी है. अपने साथी ठेकेदार विपिन के साथ वह वहीं जा रहा है.

गंगासागर रात 11 बजे तक भी घर नहीं लौटा तो पत्नी रेखा ने उसे फोन किया. लेकिन उस का फोन बंद था. रेखा ने सोचा कि हो सकता है ज्यादा रात होने की वजह से वह वहीं रुक गए होंगे, सुबह आ जाएंगे.

अगली सुबह किसी ने फोन कर के रेखा को बताया कि गंगासागर का शव हरिहरपुर पटसा गांव के पास फार्महाउस के नजदीक पड़ा है. यह खबर मिलते ही वह मोहल्ले के लोगों के साथ वहां पहुंची तो वहां उस के पति की चाकू से गुदी लाश पड़ी थी. सूचना मिलने पर पुलिस भी वहां पहुंच गई. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और गंगासागर के पिता श्रीकृष्ण यादव की तहरीर पर अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया.

कुछ देर बाद पुलिस को सूचना मिली कि गंगासागर की लाल रंग की बाइक घटनास्थल से 22 किलोमीटर दूर असोहा थाना क्षेत्र के भावलिया गांव के पास सड़क किनारे एक गड्ढे में पड़ी है. पुलिस ने वह बरामद कर ली.

जिस क्रूरता से गंगासागर की हत्या की गई थी, उसे देखते हुए सीओ (मोहनलाल गंज) बीना सिंह को लगा कि हत्यारे की मृतक से कोई गहरी खुंदक थी, इसीलिए उस ने चाकू से उस का शरीर गोद डाला था ताकि वह जीवित न बच सके.

पुलिस ने मृतक के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवा कर उस का अध्ययन किया. इस के अलावा पुलिस ने उस की सालियों, साले, पत्नी सहित कुछ साथी ठेकेदारों से भी बात की. एसएसआई रामफल मिश्रा ने काल डिटेल्स खंगालनी शुरू की तो उस में कुछ नंबर संदिग्ध लगे.

लखनऊ के एसएसपी कलानिधि नैथानी ने घटना के खुलासे के लिए एसपी (क्राइम) दिनेश कुमार सिंह के निर्देशन में एक टीम का गठन किया, जिस में थानाप्रभारी अजय कुमार राय के साथ अपराध शाखा के ओमवीर सिंह, सर्विलांस सेल के सुधीर कुमार त्यागी, एसएसआई रामफल मिश्रा, एसआई प्रमोद कुमार, सिपाही सरताज अहमद, वीर सिंह, अभिजीत कुमार, अनिल कुमार, राजीव कुमार, चंद्रपाल सिंह राठौर, विशाल सिंह, सूरज सिंह, राजेश पांडेय, जगसेन सोनकर और महिला सिपाही सुनीता को शामिल किया गया.

काल डिटेल्स से पता चला कि घटना की रात गंगासागर की रजनी, कमल और कमल के दोस्त बबलू से बातचीत हुई थी. पुलिस ने रजनी से पूछताछ शुरू की और उसे बताया, ‘‘हमें सब पता है कि गंगासागर की हत्या किस ने की थी. तुम हमें सिर्फ यह बता दो कि आखिर उस की हत्या करने की वजह क्या थी?’’

रजनी सीधीसादी थी. वह पुलिस की घुड़की में आ गई और उस ने स्वीकार कर लिया कि उस की हत्या उस ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर की थी.

उस ने बताया कि उस के फूफा गंगासागर ने उस का जीना दूभर कर दिया था, जिस की वजह से उसे यह कदम उठाना पड़ा. रजनी ने पुलिस को हत्या की पूरी कहानी बता दी.

गंगासागर की ब्लैकमेलिंग से परेशान रजनी ने उसे फार्महाउस के पास मिलने को बुलाया था. वहां कमल और उस का साथी बबलू पहले से मौजूद थे. गंगासागर को लगा कि रजनी उस की बात मान कर समर्पण के लिए तैयार है और वह रात साढ़े 8 बजे फार्महाउस के पीछे पहुंच गया.

रजनी उस के साथ ही थी. गंगासागर के मन में लड्डू फूट रहे थे. जैसे ही उस ने रजनी से प्यारमोहब्बत भरी बात करनी शुरू की, वहां पहले से मौजूद कमल ने अंधेरे का लाभ उठा कर उस पर लोहे की रौड से हमला बोल दिया. गंगासागर वहीं गिर गया तो चाकू से उस की गरदन पर कई वार किए. जब वह मर गया तो कमल और बबलू ने खून से सने अपने कपड़े, चाकू और रौड वहां से कुछ दूरी पर झाड़ के किनारे जमीन में दबा दिया.

दोनों अपने कपड़े साथ ले कर आए थे. उन्हें पहन कर कमल गंगासागर की बाइक ले कर उन्नाव की ओर भाग गया. बबलू रजनी को अपनी बाइक पर बैठा कर गांव ले आया और उसे उस के घर छोड़ दिया. कमल ने गंगासागर की बाइक भावलिया गांव के पास सड़क किनारे गड्ढे में डाल दी, जिस से लोग गुमराह हो जाएं. पुलिस ने बड़ी तत्परता से केस की छानबीन की और हत्या का 4 दिन में ही खुलासा कर दिया. एसएसपी कलानिधि नैथानी और एसपी (क्राइम) दिनेश कुमार सिंह ने केस का खुलासा करने वाली पुलिस टीम की तारीफ की.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में रजनी परिवर्तित नाम है.