मर्यादा की हद से आगे – भाग 3

भाभी की बात सुन कर कल्लू को भी गुस्सा आ गया. वह घर में तोड़फोड़ करने लगा. दयाशंकर ने कल्लू को समझाने का प्रयास किया तो वह उस से भी भिड़ गया. इस पर दयाशंकर को गुस्सा आ गया. उस ने कल्लू को मारपीट कर घर से बाहर कर दिया.

भाई की पिटाई से कल्लू का नशा हिरन हो गया था. रात भर वह घर के बाहर पड़ा रहा. उस ने मन ही मन निश्चय कर लिया कि अब वह भैयाभाभी का रोटी का एक टुकड़ा भी मुंह में नहीं डालेगा. कमा कर ही खाएगा.

वंदना की तीखी जुबान लक्ष्मी के सीने को छलनी कर देती थी. कल्लू के प्रति उस का दुर्व्यवहार भी दिल में दर्द पैदा करता था, लेकिन वह लाचार थी. अत: उस ने कल्लू को समझाया, ‘‘बेटा, तू जवान है. हट्टाकट्टा है. कहीं भी चला जा और अपमान की रोटी खाने के बजाए इज्जत की रोटी कमा कर खा.’’

मां की बात कल्लू के दिल में उतर गई. उस के बाद उस ने फैजाबाद छोड़ दिया और नौकरी की तलाश में कानपुर आ गया. कुछ दिनों के प्रयास के बाद रमाशंकर उर्फ कल्लू को पनकी गल्ला मंडी में पल्लेदारी का काम मिल गया. शुरू में तो कल्लू को पीठ पर बोझ लादने में परेशानी हुई, लेकिन बाद में अभ्यस्त हो गया.

गल्ला मंडी में गेहूं चावल के 3 बड़े गोदाम हैं. इन्हीं गोदामों में गेहूं चावल का भंडारण होता है. ट्रक आते ही पल्लेदार बोरा उतरवाई की मजदूरी तय कर के माल गोदाम में उतार देते हैं. रमाशंकर उर्फ कल्लू भी ट्रक से माल लोड अनलोड का काम करने लगा.

कुछ महीने बाद कल्लू की मेहनत रंग लाने लगी. अब वह मांबहन को भी पैसा भेजने लगा और खुद भी ठीक से रहने लगा. यही नहीं, जब वह घर जाता तो मांबहन के साथसाथ भैयाभाभी के लिए भी कपड़े वगैरह ले जाता.

कल्लू के काम पर लग जाने से जहां मांबहन खुश थीं, वहीं वंदना और दयाशंकर ने भी राहत की सांस ली थी. वंदना अब मन ही मन सोचने लगी थी कि जिसे वह खोटा सिक्का समझ बैठी थी, वह सोने का सिक्का निकला.

कल्लू पनकी नहर किनारे बसी कच्ची बस्ती में किराए पर रहता था. कुछ दिनों बाद मकान मालिक ने अपना कमरा 5 हजार रुपए में बेचने की पेशकश की तो जोड़जुगाड़कर के कल्लू ने कमरा खरीद लिया. इस कमरे के आगे कुछ जमीन खाली पड़ी थी.

कल्लू ने वह भी अपने कब्जे में ले ली. बाद में कल्लू ने इस खाली पड़ी जमीन पर मिट्टी का एक कमरा और बना लिया, उस कमरे की छत उस ने खपरैल की बना ली. मतलब अब उस का अपना स्थाई निवास बन गया था.

रमाशंकर उर्फ कल्लू पनकी गल्लामंडी स्थित जिस गोदाम में पल्लेदारी करता था, उसी गोदाम में पवन पाल भी पल्लेदारी करता था. पवन मूलरूप से कानपुर देहात के थाना नर्वल के अंतर्गत आने वाले गांव दौलतपुर का रहने वाला था.

पवन पाल के पिता देवी चरनपाल तहसील कर्मचारी थे, जबकि बड़ा भाई दयाशंकर खेती करता था. पवन पाल शहरी चकाचौंध से प्रभावित था. वह पल्लेदारी का काम करते हुए पनकी गंगागंज में किराए के कमरे में रहता था.

पवन व कल्लू दोनों हमउम्र थे. पल्लेदारी का काम भी साथसाथ करते थे. दोनों में जल्दी ही गहरी दोस्ती हो गई. कल्लू भी खानेपीने का शौकीन था और पवन पाल भी. शाम को दिहाड़ी मिलने के बाद दोनों शराब के ठेके पर पहुंचे जाते.

खानेपीने का खर्चा 2 बराबर हिस्सों में बंटता था. रविवार को गोदाम बंद रहता था. उस दिन पवन पाल अपने गांव चला जाता था. कभीकभी वह कल्लू को भी अपने साथ गांव ले जाता था. वहां भी दोनों की पार्टी होती थी.

एक रोज कल्लू के बड़े भाई दयाशंकर ने फोन पर उसे बताया कि मां की तबीयत खराब है. एक महीने से उस का बुखार नहीं उतर रहा है. मां की बीमारी की जानकारी मिलने पर कल्लू चिंतित हो उठा. उस ने अपने दोस्त पवन से विचारविमर्श किया और फिर मां का इलाज कानपुर के हैलट अस्पताल में कराने का निश्चय किया.

इस के बाद वह फैजाबाद गया और मां को कानपुर ले आया. मां की देखभाल के लिए वह बहन मानसी को भी साथ ले आया था. कल्लू ने मां को हैलट अस्पताल में दिखाया. डाक्टर ने लक्ष्मी को देख कर अस्पताल में भरती तो नहीं किया, लेकिन कुछ जांच और दवाइयां लिख दीं. इस तरह घर रह कर ही लक्ष्मी का इलाज शुरू हो गया.

कल्लू के पल्लेदार दोस्त पवन को जब पता चला कि कल्लू अपनी मां को इलाज के लिए कानपुर ले आया है तो वह उस की बीमार मां से मिलने उस के घर पहुंचा. कल्लू ने अपनी मां और बहन मानसी से उस का परिचय कराया. पवन ने खूबसूरत मानसी को देखा तो पहली ही नजर में वह उस के दिल की धड़कन बन गई. पवन ने सपने में भी नहीं सोचा था कि काले कलूटे भाई की बहन इतनी खूबसूरत होगी.

पवन पाल अब कल्लू की बीमार मां को देखने के बहाने उस के घर आने लगा. जब भी वह आता, फल वगैरह ले कर आता. इस दरम्यान उस की नजरें मानसी पर ही टिकी रहतीं. जब कभी दोनों की नजरें आपस में टकरातीं तो मानसी की पलकें शरम से झुक जातीं.

पवन जब मानसी की मां लक्ष्मी से बतियाता तो वह मानसी के रूपसौंदर्य की खूब तारीफ करता. मानसी अपनी तारीफ सुन कर मन ही मन खुश होती. इस तरह आतेजाते पवन मानसी पर डोरे डालने लगा.

पवन पाल शरीर से हृष्टपुष्ट व सजीला युवक था. कमाता भी अच्छा था. रहता भी खूब ठाटबाट से था. मानसी को भी पवन का घर आना अच्छा लगने लगा था. वह भी उसे मन ही मन चाहने लगी थी. कभीकभी पवन बहाने से उस के अंगों को भी छूने की कोशिश करने लगा था. इस छुअन से मानसी सिहर उठती थी.

आखिर पवन और मानसी का प्यार परवान चढ़ने लगा. कभी कभी पवन पाल उस से शारीरिक छेड़छाड़ के साथ हंसीमजाक भी करने लगा था. मानसी दिखावे के लिए छेड़छाड़ का विरोध करती थी, लेकिन अंदर ही अंदर उसे सुख की अनुभूति होती थी. प्यार की बयार दोनों तरफ से बह रही थी, लेकिन प्यार का इजहार करने की हिम्मत दोनों में से एक की भी नहीं थी.

आखिर जब पवन से नहीं रहा गया तो उस ने एक रोज एकांत पा कर मानसी का हाथ थाम कर कहा, ‘‘मंजू, मैं तुम से बेइंतहा प्यार करता हूं. तुम्हारे बिना मुझे सब कुछ सूनासूना लगता है. तुम्हारी चाहत ने मेरा दिन का चैन और रातों की नींद छीन ली है.’’

मानसी अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली, ‘‘पवन, पहली ही मुलाकात में तुम मेरी पसंद बन गए थे. लेकिन मैं अपने प्यार का इजहार नहीं कर सकी. अब जब तुम ने प्यार का इजहार कर ही दिया तो मैं मन ही मन खुशी से झूम उठी. मुझे भी तुम्हारा प्यार स्वीकार है. मैं तुम्हारा साथ दूंगी.’’

मानसी की बात सुन कर पवन खुशी से झूम उठा. वह उसे बांहों में भर कर बोला, ‘‘मुझे तुम से यही उम्मीद थी.’’

उधार की बीवी बनी चेयरमैन : रहमत ने नसीम को ठगा – भाग 3

दादू की हालत देख कर नसीम भी समझ गया था कि उस के पैसे किसी भी कीमत पर नहीं मिलने वाले. वह बीच मंझधार में खड़ा था. एक तरफ उस का पैसा था, जो दादू के बेटे की बीमारी पर खर्च हो चुका था. जबकि दूसरी ओर उस की मोहब्बत रहमत जहां थी, जिसे वह दिलोजान से चाहने लगा था. रहमत जहां भी नसीम को दिल से चाहती थी. उसे नसीम के साथ कभी भी कहीं भी जाने से ऐतराज नहीं था.

उस वक्त दादू आर्थिक तंगी से गुजर रहा था. उस के पास नवीन अनाज मंडी के सामने हाईवे के किनारे जुतासे की कुछ जमीन थी, जो आर्थिक तंगी के चलते उस ने पहले ही बेच दी. अब उस के पास केवल जुआ खेलने और शराब पीने के अलावा कोई काम नहीं था. ऐसी स्थिति में नसीम ने दादू से अपने पैसों के बदले उस की बेटी का हाथ मांगा तो वह राजी हो गया.

रहमत जहां हो गई नसीम की

दादू जानता था कि नसीम और उस की बेटी एकदूसरे को चाहते हैं. अगर उस ने बेटी की शादी उस की रजामंदी के खिलाफ की तो उस का अंजाम ठीक नहीं होगा. यही सोचते हुए उस ने नसीम से अपनी बेटी रहमत जहां का निकाह कर दिया.

रहमत जहां से निकाह के बाद नसीम उसे अपनी दूसरी बीवी बना कर अपने घर ले आया. इस में रहमत जहां ने ऐतराज नहीं किया. वह उस के घर में दूसरी बीवी की तरह रहने लगी. नसीम अहमद भी काफी दिनों से शराब का आदी था.

शराब और शबाब के चक्कर में उस ने अपनी जुतासे की सारी जमीन दांव पर लगा दी थी. रहमत जहां के प्यार में पड़ कर उस ने उस से निकाह तो कर लिया था, लेकिन जब 2 बीवियां होने से खर्च बढ़ा तो उस का दिमाग घूमने लगा. वह बहुत परेशान रहने लगा.

शफी उर्फ बाबू का पहले से ही बाबरखेड़ा आनाजाना था. वजह यह कि शफी अहमद की एक बुआ का निकाह बाबरखेड़ा में हुआ था. वह अपनी बुआ के घर आताजाता था. शफी अहमद की बुआ का एक लड़का था याकूब, जो नसीम का अच्छा दोस्त था. याकूब के घर पर ही शफी अहमद की जानपहचान नसीम से हुई.

नसीम शफी अहमद के बारे में सब कुछ जान चुका था. जब उसे यह पता चला कि शफी भोजपुर कस्बे का नगर पंचायत चेयरमैन है तो वह खुश हुआ. वैसे भी शफी उस के दोस्त याकूब का ममेरा भाई था. गांव में अपना रुतबा बढ़ाने के लिए नसीम कई बार उसे अपने घर भी ले गया था. घर आनेजाने के चक्कर में शफी की नजर नसीम की बीवी रहमत जहां पर पड़ी तो वह उस की खूबसूरती पर फिदा हो बैठा.

हालांकि उस वक्त चेयरमैन शफी के घर में पहले से ही एक से बढ़ कर एक 2 खूबसूरत बीवियां थीं. लेकिन रहमत जहां पर उन की नजर पड़ी तो वह अपने पर काबू नहीं रख सके. इसी चक्कर में उन का नसीम के घर आनाजाना और भी बढ़ गया.

कुछ ही दिनों में शफी अहमद के स्वार्थ की नींव पर नसीम से पक्की दोस्ती हो गई. जब कभी शफी अहमद अपने यहां पर कोई प्रोग्राम कराते तो नसीम और उस की बीवी को बुलाना नहीं भूलते थे. इसी आनेजाने के दौरान शफी अहमद और रहमत जहां के बीच प्यार का रिश्ता बन गया.

मोबाइल ने जल्दी ही शफी अहमद और रहमत जहां के बीच की दूरी खत्म कर दी. रहमत जहां शफी अहमद के बारे में सब कुछ जान चुकी थी. चेयरमैन के घर में पहले से ही 2 बीवियां मौजूद हैं, यह बात रहमत जहां जानती थी, लेकिन शफी अहमद की ओर से इशारा मिलने पर उस का दिल भी मजबूर हो गया.

शफी अहमद के पास धनदौलत, ऐशोआराम, इज्जत सभी कुछ था. रहमत जहां ने कई बार शफी अहमद से निकाह करने को कहा. लेकिन समाज में अपनी साख खत्म होने की बात कह कर शफी ने मना कर दिया था. इस के बावजूद रहमत जहां अपने दिल को समझा नहीं पा रही थी. नसीम के 2 बच्चों की मां बनने के बावजूद रहमत जहां शफी के प्यार में पड़ गई थी.

रहमत को शफी अहमद में दिखा भविष्य

इत्तफाक से उसी समय भोजपुर नगर पंचायत का चुनाव आ गया. अब तक नगर पंचायत अध्यक्ष की सीट शफी अहमद के पास थी, लेकिन चुनाव करीब आने पर पता चला कि इस बार सीट ओबीसी के लिए आरक्षित है. शफी अहमद चूंकि सामान्य जाति में आते थे, इसलिए चेयरमैन की सीट उन के हाथ से निकलने का डर था.

शफी अहमद जानते थे कि नसीम की जाति ओबीसी के तहत आती है. बीवी होने के नाते रहमत जहां भी उसी जाति में आती थी. यह बात मन में आते ही शफी अहमद ने तिकड़मबाजी लगानी शुरू की. उन्हें पता था कि अगर नसीम से इस बारे में बात की जाए तो वह उन की बात नहीं टालेगा.

हालांकि बात बहुत असंभव सी थी, फिर भी शफी अहमद ने बाबरखेड़ा जा कर नसीम और उस की बीवी रहमत जहां के सामने अपनी परेशानी रखते हुए इस बारे में बात की. पर नसीम ने इस मामले में उन का साथ देने से साफ इनकार कर दिया. नसीम अंसारी जानता था कि रहमत जहां को चुनाव लड़ने के लिए शफी की बीवी बन कर भोजपुर में रहना होगा.

भला वह अपनी बीवी को शफी के पास कैसे छोड़ सकता था. नसीम के दो टूक फैसले के बाद शफी अहमद के सपनों पर पानी फिर गया. फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. उन की रहमत जहां से मोबाइल पर बात होती रहती थी.

शफी ने इस मामले में सीधे रहमत जहां से बात की तो उस के मन में लड्डू फूटने लगे. वह पहले से ही शफी के प्यार में पागल थी. यह बात सुन कर तो उस के दिल में खुशियों के फूल महकने लगे. वह जानती थी कि अगर वह भोजपुर की चेयरमैन बन गई तो उस की किस्मत सुधर जाएगी.

शफी अहमद के दिल की बात जान कर उस ने नसीम को प्यार से समझाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं चाहता था कि उस की बीवी किसी और की बन कर रहे. नसीम को यह भी मालूम था कि ऐसे काम इतनी आसानी से नहीं होते. इस के लिए कानूनी काररवाई पूरी करना जरूरी है. फिर भी उस ने अपनी आर्थिक तंगी के चलते शफी अहमद से समझौता कर के अपनी बीवी चुनाव लड़ने के लिए उन्हें दे दी.

नसीम अंसारी के अनुसार आपसी समझौते के तहत शफी अहमद ने कहा था कि चुनाव जीतने के बाद वह उस की बीवी उसे वापस कर देगा. उस के बाद जो भी हुआ करेगा, रहमत जहां भोजपुर जा कर काम निपटा लिया करेगी. यह बात नसीम को भी अच्छी लगी.

समझौते के बाद नसीम ने अपनी बीवी रहमत जहां को चुनाव लड़ने की अनुमति दे दी. शफी अहमद ने रहमत जहां को अपनी बीवी दर्शाने के लिए उस के साथ कोर्टमैरिज कर ली. कोर्टमैरिज के बाद रहमत जहां कानूनन शफी अहमद की बीवी बन गई.

रहमत जहां को बीवी का दरजा मिलते ही शफी अहमद ने चुनाव की तैयारियां शुरू कर दीं. सन 2017 में जब नामांकन किया जा रहा था, शफी अहमद अपनी नई पत्नी रहमत जहां को पिछड़ी जाति की महिला के रूप में सामने ले आए. यह देख विरोधी उम्मीदवार हैरान रह गए. लेकिन लोगों को विश्वास नहीं हो रहा था कि वह उन की बीवी है.

रहमत जहां बन गई चेयरमैन

शफी अहमद रहमत जहां को अपनी बीवी बता कर नामांकन कराने कलेक्टरेट पहुंचे तो विपक्षियों में खलबली मच गई. लेकिन शफी ने रहमत जहां के पिछड़ी जाति के प्रमाणपत्र प्रस्तुत कर के विपक्षियों की नींद उड़ा दी. निकाह के बावजूद लोगों को भरोसा नहीं था कि पिछड़ी की रहमत जहां जीत पाएगी. फिर भी शफी अहमद ने हार नहीं मानी. किसी पार्टी से टिकट नहीं मिला तो उन्होंने रहमत जहां को निर्दलीय चुनाव लड़ाने का फैसला किया. इस सीट पर वह पिछले 5 सालों से काबिज थे. उन्हें पूरा यकीन था किजनता उन का साथ देगी.

शफी अहमद ने फिर से चेयरमैन की कुरसी पर कब्जा जमाने के लिए दिनरात मेहनत की. फलस्वरूप वह रहमत जहां के नाम पर चुनाव जीत गए. सन 2017 के लिए नगर पंचायत भोजपुर की चेयरमैन का सेहरा रहमत जहां के सिर पर बंध गया.

अभी इस चुनाव को जीते हुए 8 महीने भी नहीं हो पाए थे कि नसीम अहमद ने अपनी बीवी रहमत जहां को पाने के लिए कोर्ट में दावेदारी ठोक दी. इस से पहले नसीम अंसारीने अपनी बीवी वापस करने के लिए शफी अहमद से दोस्ती के नाते प्यार से बात की थी, लेकिन जब मामला ज्यादा उलझ गया तो उसे अदालत की शरण लेनी पड़ी.

नसीम के प्रार्थनापत्र पर जसपुर के न्यायिक मजिस्ट्रैट प्रकाश चंद ने थाना कुंडा पुलिस को भोजपुर के पूर्व चेयरमैन शफी अहमद, उन के बहनोई नईम चौधरी, भाई जिले हसन और साथी मतलूब के खिलाफ रहमत जहां और उस के 2 बच्चों का अपहरण करने और बंधक बना कर जबरन निकाह करने के आरोप में केस दर्ज कर के जांच करने के आदेश दे दिए.

कुंडा पुलिस दर्ज केस के आधार पर जांच में जुट गई. इस मामले में नसीम अंसारी का कहना था कि शफी अहमद ने उस की आर्थिक तंगी का लाभ उठा कर उस से उस के बीवीबच्चों को छीन लिया. वह अपने बीवीबच्चों को हासिल करने के लिए अंतिम सांस तक लड़ेगा.

कई पेंच हैं मामले में

वहीं दूसरी ओर नसीम अहमद की बीवी रहमत जहां का कहना था कि उस के निकाह के कुछ समय बाद ही नसीम को शराब पीने की लत पड़ गई थी. जिस के चलते उस ने अपनी जुतासे की पुश्तैनी जमीन भी बेच दी थी. उस के बाद उसे अपने 2 बच्चे पालने के लिए भी भुखमरी के दिन देखने पड़े.

रहमत जहां के अनुसार उस ने नसीम को कई बार समझाने की कोशिश की लेकिन उस ने उस की एक नहीं सुनी. उस ने नसीम के शराब पीने का विरोध किया तो उस ने सन 2010 में उसे तलाक दे दिया था. नसीम के तलाक देने के बाद उस ने अपने दोनों बच्चों को साथ ले कर अपने पिता दादू के गांव सरबरखेड़ा में जा कर दिन गुजारे.

रहमत जहां का कहना था कि नसीम के तलाक देने के बाद उस ने 2011 में भोजपुर निवासी शफी अहमद से निकाह कर लिया. उस के बाद भी वह काफी दिनों तक अपने मायके में ही रही. बाद में वह चुनाव लड़ कर चेयरमैन बन गई तो नसीम के मन में लालच आ गया.

नसीम अंसारी ने शफी अहमद से अपने खर्च के लिए कुछ रुपयों की मांग की, जिस के न मिलने पर उस ने यह विवाद खड़ा कर दिया. रहमत जहां का कहना था कि उस ने शफी अहमद के साथ निकाह किया है. नसीम उसे पहले ही तलाक दे चुका था. जिस के बाद उस का नसीम के साथ कोई भी संबंध नहीं रह गया था. फिलहाल कुंडा पुलिस मामले की जांच कर रही है. रहमत किस की होगी, यह अभी भविष्य के गर्त में है.

प्रेम कहानी का दर्दनाक अंत

29 जुलाई, 2017 की रात साहिल उर्फ शुभम वोल्वो बस पकड़ कर लखनऊ से जौनपुर जा रहा था. उस के साथ उस का भाई सनी भी था. रात गहराते ही बस की लगभग सभी सवारियां सो गई थीं. रात 2 बजे फोन की घंटी बजी तो साहिल की आंखें खुल गईं. उस ने मोबाइल स्क्रीन देखी, नंबर उस की भाभी शिवानी का था. उस ने जैसे ही फोन रिसीव कर के कान से लगाया, दूसरी ओर से शिवानी ने रोते हुए कहा, ‘‘साहिल, राहुल अब नहीं रहा. मैं भी उस के बिना नहीं रह सकती.’’

‘‘कैसे, क्या हुआ, कहां है राहुल?’’ साहिल ने परेशान हो कर पूछा.

‘‘राहुल ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली है. वह परदे की रस्सी बना कर उसी से लटक गया है.’’ शिवानी ने रोतेरोते कहा.

उस समय साहिल लखनऊ से काफी दूर बस में था. वह खुद कुछ कर नहीं सकता था, इसलिए वह सोचने लगा कि शिवानी की मदद कैसे की जाए. एकाएक उस की समझ में कुछ नहीं आया तो उस ने कहा, ‘‘भाभी, आप जल्दी से राहुल भैया को उतारिए.’’

‘‘साहिल, मैं हर तरह से कोशिश कर चुकी हूं, पर उतार नहीं पाई. मैं ने घर से बाहर जा कर कालोनी वालों को आवाज भी लगाई, पर कोई भी मेरी मदद के लिए नहीं आया. अब तुम्हीं बताओ मैं क्या करूं. मैं राहुल के बिना कैसे रहूंगी?’’ शिवानी ने रोते हुए साहिल से मदद मांगी.

‘‘भाभी, मैं तो लखनऊ से बहुत दूर हूं. आप एक काम करें, वहीं मेज पर लाइटर रखा होगा, आप उस से परदे की गांठ में आग लगा दीजिए, परदा जल कर टूट जाएगा. आप इतना कीजिए, तब तक मैं मदद के लिए किसी से बात करता हूं.’’

कह कर साहिल ने फोन काट दिया. इस के बाद उस ने अपने कुछ दोस्तों को फोन किए, पर किसी से बात नहीं हो सकी. इस के बाद उस ने लखनऊ पुलिस को फोन किया. उस वक्त रात के करीब ढाई बजे थे. लखनऊ पुलिस को फोन कर के साहिल ने बताया कि उस का भाई राहुल और भाभी शिवानी विनयखंड, गोमतीनगर के मकान नंबर 3/137 में रहते हैं, जो होटल आर्यन के पास है. उस के भाई को कुछ हो गया है. वह जौनपुर से विधायक और एक बार सांसद रह चुके कमला प्रसाद सिंह का पोता है.

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कमला प्रसाद सिंह की जौनपुर में अच्छी साख थी. वह 2 बार जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुके थे. जमुई में उन का इंटर कालेज भी है. उन के 2 बेटे विनय और अनिल हैं. राहुल अनिल का बड़ा बेटा था. पुलिस को जैसे ही पता चला कि विधायक और सांसद रहे कमला प्रसाद सिंह के घर का मामला है तो पुलिस तुरंत हरकत में आ गई.

पुलिस की पीआरवी टीम के कमांडर रामनरेश गौतम सबइंसपेक्टर सुशील कुमार और ड्राइवर निहालुद्दीन के साथ विनयखंड पहुंच कर आर्यन होटल के पास मकान नंबर 3/137 खोजने लगे. रात का समय था, कालोनी में सन्नाटा पसरा था, इसलिए मकान मिल नहीं रहा था.  पुलिस को फोन करने के बाद साहिल ने शिवानी को फोन किया. लेकिन उस का फोन बंद हो चुका था. साहिल ने इस बात की जानकारी घर वालों को भी दे दी थी. जैसे ही घर वालों को इस घटना का पता चला, उन्होंने शिवानी को फोन करने शुरू कर दिए. लेकिन तब तक शिवानी का फोन बंद हो चुका था. इस से सब परेशान हो गए.

साहिल ने एक बार फिर पुलिस को फोन किया. पुलिस ने बताया कि वे मकान तलाश रहे हैं, लेकिन मकान मिल नहीं रहा है. इस पर साहिल ने कहा, ‘‘मेरे मकान का दरवाजा खुला होगा, क्योंकि भाभी ने बताया था कि वह दरवाजा खोल कर बाहर आई थीं.’’

जैसे फिल्मों और क्राइम सीरियलों में पुलिस समय पर नहीं पहुंचती, उसी तरह यहां भी हुआ. उधर साहिल से बात करने के बाद शिवानी ने अपना मोबाइल फोन बंद कर लिया था. वह लाइटर से परदे को जला रही थी, तभी राहुल की गरदन में फंसा फंदा खुल गया और वह नीचे गिर गया. उस के शरीर में कोई हरकत होती न देख शिवानी परेशान हो गई. उसे समझते देर नहीं लगी कि राहुल मर गया है.

पति को मरा देख कर वह वहां रखी प्लास्टिक की कुरसी पर चढ़ गई और परदे के दूसरे छोर में फंदा बना कर गले में डाला और पैर से कुरसी गिरा दी. इस के बाद वह भी लटक गई. थोड़ी देर पहले जो हाल राहुल का हुआ था, वही हाल शिवानी का भी हुआ. इस तरह पुलिस के पहुंचने से पहले ही उस ने भी मौत को गले से लगा लिया.

आखिरकार पुलिस तलाश करती हुई उस घर तक पहुंच गई, जिस का मेनगेट और दरवाजा खुला था. पुलिस ने खिड़की से झांक कर देखा तो पता चला कि एक औरत रस्सी से लटक रही थी और एक पुरुष की लाश फर्श पर पड़ी थी. पुलिस ने कमरे के दरवाजे को धक्का दिया तो वह खुल गया.

मामला एक सांसद के परिवार का था. इसलिए मौके पर पहुंची पुलिस टीम ने तत्काल एएसपी (उत्तरी) अनुराग वत्स, सीओ (गोमतीनगर) दीपक कुमार सिंह, थाना गोमतीनगर के थानाप्रभारी विश्वजीत सिंह को भी इस घटना की सूचना दे दी. उस समय सभी अधिकारी गश्त पर थे, इसलिए सूचना मिलते ही घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस ने जल्दी से लाश उतार कर फर्श पर लेटा दी. पुलिस की गाड़ी देख कर कालोनी वाले भी इकट्ठा होने लगे थे. पुलिस को उन से पूछताछ में पता चला कि ज्यादातर यह मकान खाली ही रहता था. कभीकभी ही कोई उस में रहने आता था. इसलिए आसपास रहने वालों से उन लोगों का कोई खास संबंध नहीं था. आमनेसामने पड़ जाने पर दुआसलाम जरूर हो जाती थी.

सांसद के पौत्र और पौत्रवधू की मौत की खबर पा कर पूरी कालोनी में हड़कंप मच गया था. पुलिस ने घर वालों से बातचीत कर के सच्चाई का पता लगाने की कोशिश की. लेकिन कोई ऐसी बात सामने नहीं आई, जिस से आत्महत्या पर शक किया जा सकता. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भी स्पष्ट हो गया था कि मामला आत्महत्या का ही है. पोस्टमार्टम के बाद शिवानी और राहुल की लाशें जौनपुर के लाइनबाजार स्थित कमला प्रसाद सिंह के घर पहुंचीं तो वहां हड़कंप मच गया. घर के सभी लोगों का रोरो कर बुरा हाल था. जौनपुर में ही दोनों का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

मामले की जांच के लिए पुलिस ने शिवानी और साहिल के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस से भी पहले से दिए गए बयान और हालात मिलते नजर आए. शिवानी और राहुल के बीच दोस्ती कालेज में पढ़ाई के दौरान हुई थी. जल्दी ही यह दोस्ती प्यार में बदल गई थी. उस के बाद दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया.

शिवानी के पिता सेना से रिटायर हो चुके थे. वह लखनऊ के कैंट एरिया में रहते थे. सन 2015 में घर वालों की मरजी से शिवानी और राहुल की शादी हुई थी. राहुल जौनपुर के केराकत इंटर कालेज में क्लर्क था. शादी के बाद राहुल परिवार के साथ जौनपुर में रहता था. वहीं से वह केराकत जा कर अपनी नौकरी करता था.

कभीकभी राहुल लखनऊ भी आता रहता था. लखनऊ में वह जमीन का कारोबार करने लगा था, जिस से उसे अलग से आमदनी होने लगी थी. लखनऊ के विनयखंड स्थित मकान का उपयोग किसी के आनेजाने पर ही होता था. प्राप्त जानकारी के अनुसार, 2 दिन पहले ही राहुल लखनऊ आया था. जबकि शिवानी पहले से अपने मायके में रह रही थी. क्योंकि कुछ महीनों से राहुल और शिवानी के बीच संबंध ठीक नहीं थे.

पढ़ाई के दौरान एकदूसरे पर जान छिड़कने वाले राहुल और शिवानी के बीच कुछ समय से तनाव रहने लगा था. दोनों को एकदूसरे से दूर रहना गंवारा नहीं था, इसलिए पढ़ाई के बाद कैरियर बनाने के बजाय दोनों ने शादी कर ली थी. शादी के बाद राहुल ने जौनपुर के केराकत स्थित एक इंटर कालेज में नौकरी कर ली थी, जिस की वजह से उसे जौनपुर में रहना पड़ रहा था, जबकि शिवानी को वहां रहना पसंद नहीं था. इस बात को ले कर अकसर दोनों में कहासुनी होती रहती थी.

प्यार के बाद दोनों को ही शादी की हकीकत उतनी प्यारी नहीं लग रही थी, जितनी लगनी चाहिए थी. जौनपुर में मन न लगने से शिवानी लखनऊ में अपने मातापिता के यहां रह रही थी. राहुल जब भी लखनऊ आता, विनयखंड के मकान में ही रुकता था. उस के आने पर शिवानी भी आ जाती थी.

राहुल गुस्सैल स्वभाव का था, इसलिए जराजरा सी बात में दोनों के बीच लड़ाई हो जाती थी. शिवानी राहुल को बहुत प्यार करती थी, जिस की वजह से वह उस के गुस्से के बाद भी उस से अलग नहीं रहना चाहती थी. जबकि शिवानी कभी खुद के बारे में सोचती थी तो उसे लगता था कि अपने कैरियर को ले कर उस ने जो सपने देखे थे, वे सब बिखर गए. इसे ले कर वह भी तनाव में रहती थी.

शिवानी अपनी खुद की पहचान बनाना चाहती थी, पर शादी के बाद इस बात का कोई मतलब नहीं रह गया था. उस का यह द्वंद्व उस के संबंधों पर भारी पड़ रहा था. शिवानी राहुल से कभी कुछ कहती तो आपस में बहस के बाद दोनों में लड़ाई हो जाती थी. ऐसे में तनाव कम होने के बजाय और बढ़ जाता था.

29 जुलाई, 2017 की शाम को साहिल उर्फ शुभम अपने चचेरे भाई सनी के साथ राहुल से मिलने विनयखंड स्थित घर पर आया. भाइयों के आने की खुशी में पार्टी हुई, जिस में शराब भी चली. पुलिस को वहां मेज पर सिगरेट का एक खाली पैकेट, एक भरा पैकेट, शराब और बीयर की खाली बोतलें मिली थीं. बैड का बिस्तर भी बेतरतीब था. साहिल और सनी के जौनपुर चले जाने के बाद भी राहुल संभवत: शराब पीता रहा था.

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यह बात शिवानी को अच्छी नहीं लगी होगी. उस ने रोका होगा तो दोनों में बहस होने लगी होगी. नशे में होने की वजह से राहुल को गुस्सा आ गया होगा. इस के बाद शिवानी अपने कमरे में जा कर सो गई होगी. रात में 2 बजे के करीब जब उस की नींद खुली होगी तो उस ने देखा होगा कि राहुल परदे की रस्सी का फंदा बना कर उस में लटका है. पति को उस हालत में देख कर शिवानी की कुछ समझ में नहीं आया होगा. नशे में गुस्से की वजह से राहुल ने यह कदम उठा लेगा, यह शिवानी ने कभी नहीं सोचा था. वह परेशान हो गई होगी.

बहुत सारी शिकायतों के बाद भी शिवानी राहुल के बिना जिंदगी नहीं गुजार सकती थी. शायद यही वजह थी कि उस ने भी उस के साथ मरने का फैसला कर लिया. परदे से बनी जिस रस्सी के फंदे पर लटक कर राहुल ने अपनी जान दी थी, उसी के दूसरे सिरे पर फंदा बना कर शिवानी ने भी लटक कर जान दे दी. साथ जीनेमरने की कसम खाने वाली शिवानी ने अपना वचन निभा दिया.

राहुल और शिवानी की मौत अपने पीछे तमाम सवाल छोड़ गई है. प्यार करना, उस के बाद शादी करना कोई गुनाह नहीं है. प्यार के बाद शादी के बंधन को निभाने के लिए पतिपत्नी के बीच जिस भरोसे, प्यार और संघर्ष की जरूरत होती है, वह राहुल और शिवानी के बीच नहीं बन पाया. लड़ाईझगड़े में जान देने जैसे फैसले मानसिक उलझन की वजह से होते हैं. अगर राहुल ने नशे में यह फैसला नहीं लिया होता तो वह भी आज जिंदा होता और शिवानी भी.

राहुल की मौत के बाद शिवानी ने भी खुद को खत्म कर लिया. उन दोनों के इस फैसले से उन के परिवार वालों पर क्या गुजरेगी, उन दोनों ने नहीं सोचा. इस तरह की मौत का दर्द परिवार वालों को पूरे जीवन दुख देता रहता है. ऐसे में अगर पतिपत्नी के बीच कोई अनबन होती है तो जल्दबाजी में कोई फैसला लेना ठीक नहीं होता.

पत्नी की खूनी साजिश : प्यार में पागल लड़की ने प्रेमी से करवाई पति की हत्या – भाग 3

डब्लू के लिए किसी की जान लेना मुश्किल काम नहीं था. सुषमा के कहने के बाद वह विवेक की हत्या की योजना बनाने लगा. सुषमा भी योजना में शामिल थी. दोनों विवेक की हत्या इस तरह करना चाहते थे कि उन का काम भी हो जाए और उन का बाल भी बांका न हो. यानी वे पकड़े न जाएं. वे विवेक की हत्या को एक्सीडेंट दिखाना चाहते थे. इस के लिए डब्लू ने टाटा सफारी कार की व्यवस्था कर ली थी. यह कार उस के पिता की थी. इस के बाद वे घटना को अंजाम देने का मौका तलाशने लगे.

22-23 मई, 2017 की रात सुषमा सिंह ने योजना के तहत डब्लू को बुला लिया. डब्लू टाटा सफारी कार यूपी52ए के5990 से अपने 3 साथियों राधेश्याम मौर्य, अनिल मौर्य और सुनील तेली के साथ विशुनपुरा पहुंच गया. उन्होंने कार घर से कुछ दूरी पर स्थित प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के औफिस के सामने खड़ी कर दी. कार का ड्राइवर अशोक उसी में बैठा था.

डब्लू अपने साथियों के साथ विवेक के घर पहुंचा तो सुषमा दरवाजा खोल कर सभी को बैडरूम में ले गई. बैड पर विवेक बेटे के साथ सो रहा था. विवेक की हत्या के लिए सुषमा ने एक ईंट पहले से ही ला कर कमरे में रख ली थी. कमरे में पहुंचते ही डब्लू ने विवेक का गला दबोच लिया. विवेक छटपटाया तो उस के साथियों ने उसे काबू कर लिया. उन्हीं में से किसी ने सुषमा द्वारा रखी ईंट से सिर पर प्रहार कर के उसे मौत के घाट उतार दिया.

धक्कामुक्की और छीनाझपटी में पिता के बगल में सो रहे आयुष की आंखें खुल गईं. उस ने देखा कि कुछ लोग उस के पापा को पकड़े हैं तो वह चिल्ला उठा. उस के चीखने पर सब डर गए. डब्लू ने उसे डांटा तो उस की आवाज गले में फंस कर रह गई. इस के बाद वह आंखें मूंद कर लेट गया. एक बार सभी ने विवेक को हिलाडुला कर देखा, जब उस के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई तो सब समझ गए कि यह मर चुका है.

इस के बाद उन्होंने लाश उठाई और ऊपर से ही नीचे फेंक दी. फिर दबेपांव सीढ़ी से नीचे आ गए. डब्लू ने बरामदे में खड़ी विवेक की मोटरसाइकिल निकाली और खुद चलाने के लिए बैठ गया. जबकि राधेश्याम विवेक की लाश को ले कर इस तरह बैठ गया, जैसे वह बीच में बैठा है. बाकी के उस के 2 साथी अनिल और सुनील पैदल ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के औफिस की ओर चल पड़े. क्योंकि  उन की कार वहीं खड़ी थी.

लेकिन जब वे प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास पहुंचे तो कार वहां नहीं थी. सभी परेशान हो उठे. दरअसल हुआ यह था कि उन के जाने के कुछ ही देर बाद गश्त करते हुए 2 सिपाही वहां आ पहुंचे थे. उन्होंने आधी रात को कार खड़ी देखी तो ड्राइवर अशोक से पूछताछ करने लगे. घबरा कर ड्राइवर अशोक कार ले कर भाग गया. ड्राइवर डब्लू को फोन करता रहा, लेकिन फोन बंद होने की वजह से बात नहीं हो पाई.

डब्लू के आने पर वहां कार नहीं मिली तो उसे चिंता हुई. वह ड्राइवर को फोन करने ही जा रहा था कि पुलिस चौकी रामगढ़ताल के 2 सिपाही वहां आ पहुंचे. उन्होंने उन से पूछताछ शुरू की तो वे सही जवाब नहीं दे सके. सिपाहियों ने थाना कैंट फोन कर के थानाप्रभारी ओमहरि वाजपेयी को इस की सूचना दे दी.

ओमहरि वाजपेयी मौके पर पहुंचे तो उन्हें मामला संदिग्ध लगा. उन्होंने बीच में बैठे विवेक को हिलाडुला कर देखा तो पता चला कि वह तो लाश है. डब्लू और राधेश्याम से सख्ती से पूछताछ की गई तो विवेक की हत्या का राज खुल गया.

दूसरी ओर जब सभी विवेक की लाश ले कर चले गए तो सुषमा कमरे में फैला खून साफ करने लगी. उस ने जल्दी से चादर और तकिए भी बदल दिए थे. उस ने सबूत मिटाने की पूरी कोशिश की थी. तब शायद उसे पता नहीं था कि उस ने जो किया है, उस का राज तुरंत ही खुलने वाला है.

आयुष अपने पापा विवेक प्रताप सिंह की हत्या का चश्मदीद गवाह है. उस ने पुलिस को बताया कि जब अंकल लोग उस के पापा को पकड़े हुए थे तो वह चीखा था. तब एक अंकल ने उस का मुंह दबा कर डांट दिया था. उन लोगों ने पापा का गला तो दबाया ही, उन्हें ईंट से भी मारा था.

वे पापा को ले कर चले गए तो मम्मी कमरे में फैला खून साफ करने लगी थीं. वे उसे भी मारना चाहते थे, तब मम्मी ने एक अंकल से कहा था, ‘यह तो तुम्हारा ही बेटा है, इसे मत मारो.’ इस के बाद अंकल ने उसे छोड़ दिया था.

विवेक की लाश उस की मोटरसाइकिल से इसलिए ला रहे थे, ताकि उसे सड़क पर उस की मोटरसाइकिल सहित कहीं फेंक कर यह दिखाया जा सके कि उस की मौत सड़क दुर्घटना में हुई है.

पुलिस ने अनिल और सुनील को गिरफ्तार कर लिया था. लेकिन ड्राइवर अशोक अभी पकड़ा नहीं जा सका है. टाटा सफारी कार बरामद हो चुकी है. पुलिस ने विवेक की हत्या में प्रयुक्त खून से सनी ईंट, खून सने कपड़े आदि भी बरामद कर लिए थे. विवेक की मोटरसाइकिल तो पहले ही बरामद हो चुकी थी.

सारी बरामदगी के बाद पुलिस ने अदालत में सभी को पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. मजे की बात यह है कि सुषमा को पति की हत्या का जरा भी अफसोस नहीं है. वह जेल से बाहर आने के बाद अब भी अपने प्रेमी डब्लू के साथ जीवन बिताने के सपने देख रही है.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अंकिता भंडारी मर्डर : बाप की सियासत के बूते बेटे का अपराध – भाग 3

अंकिता ने मजबूरी में की थी रिजौर्ट में नौकरी

परिवार आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहा था. इस कारण उस ने उस के फील्ड की जो नौकरी पहले मिली, उसे ही चुन लिया था और रिसैप्शनिस्ट का काम करने लगी थी.

यह किसी को नहीं पता था कि उस की पहली नौकरी ही ऐसी आखिरी  होगी, जिस में उसे पहले माह का वेतन भी नहीं मिल पाएगा. वह अपने मातापिता की सब से छोटी संतान थी. उस का बड़ा भाई दिल्ली में काम करता है और परिवार की जरूरतों को किसी तरह से पूरा कर पाता है.

उस के घर वाले बताते हैं कि एक अच्छे करिअर का सपना देखने के बावजूद इस 19 वर्षीय लड़की ने घर की आर्थिक स्थिति के कारण रिसैप्शनिस्ट की नौकरी का विकल्प चुना था. मृतका की बुआ के अुनसार अंकिता के पिता बेहद मामूली किसान हैं. परिवार की आर्थिक परेशानी के चलते वह नौकरी करने को मजबूर हो गई थी.

इस मामले में 6 लोगों को हिरासत में लेते हुए पुलिस ने रिजौर्ट में ताला जड़ दिया था. साथ ही लक्ष्मण झूला पुलिस ने रिजौर्ट के मालिक पुलकित आर्य, प्रबंधक सौरभ भास्कर और सहायक प्रबंधक अंकित गुप्ता को हिरासत में लिया था. तब तक पुलिस और दूसरे सूत्रों से अंकिता गुमशुदगी को ले कर कई विरोधाभासी बातें सामने आ चुकी थीं.

इसे ले कर पुलिस भी अस्पष्ट जानकारी दे रही थी. साथ ही रिजौर्ट का मालिक पुलकित कार्य भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राज्यमंत्री विनोद आर्य का बेटा था. इस कारण इस वारदात की कई बातें सोशल मीडिया पर भी अंकिता की मौत की सूचना के साथ वायरल हो गई थीं. फिर तो पूरे देश में इस पर कोहराम मच गया.

गुस्साई भीड़ ने आरोपियों की पिटाई कर फाड़े कपड़े

23 सितंबर, 2022 की सुबह एसएचओ संतोष कुंवर ने पुलकित, सौरभ और अंकित का मैडिकल करवाने और अदालत में पेश करने की योजना बनाई थी. दिन में 11 बजे जैसे ही लक्ष्मण झूला पुलिस तीनों आरोपियों को मैडिकल करवाने के लिए थाने से निकली, वैसे ही बाहर आक्रोशित बेकाबू भीड़ पुलिस की गाड़ी पर ही टूट पड़ी.

उन में गुस्से से भरी महिलाएं बड़ी संख्या में थीं. वे पुलिस की गाड़ी के सामने अचानक आ गईं और उन के खिलाफ नारे लगाने लगीं. भीड़ ने पुलिस की गाड़ी पर पथराव भी कर दिया.

इस हंगामे में भीड़ ने कब और कैसे पुलिस की गाड़ी से तीनों आरोपियों को बाहर खींच लिया, पता ही नहीं चला. आक्रोशित लोगों ने उन के कपड़े फाड़ डाले और उन की जम कर धुनाई कर दी.

बड़ी मुश्किल से उन्हें बेकाबू भीड़ के चुंगल से छुड़ाया गया. किसी तरह उन्हें चीला मार्ग होते हुए कोटद्वार अदालत में पेश किया गया. कोर्ट ने तीनों आरोपियों को तुरंत हिरासत में ले कर पौड़ी जेल भेज दिया.

जब अंकिता को नहर में फेंकने की सूचना अंकिता की मां सोना देवी को मिली, तब वह भी गहरे सदमे में डूब गई. परिवार में चाची और बुआ ने किसी तरह उन्हें संभाला.

सभी अंकिता की एक झलक पाने को बेचैन थे. दूसरी ओर एसडीआरएफ की टीम और जल पुलिस द्वारा चीला की शक्ति नहर में अंकिता को तलाश करने का काम तेजी से चल रहा था. इस काम में 2 दिन निकल गए, लेकिन अंकिता के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई थी.

24 सितंबर, 2022 को एसडीआरएफ ने नहर से अंकिता का शव बरामद कर लिया था. इस की सूचना मिलते ही  पुलिस के आला अधिकारी मौके पर पहुंच गए और शव का पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए कड़ी सुरक्षा में एम्स अस्पताल ऋषिकेश भेज दिया गया.

मीडिया में अंकिता का शव मिलने की खबर आते ही गढ़वाल मंडल में उबाल आ गया. गुस्साए लोगों की भीड़ ने भाजपा नेता पुलकित आर्य की फैक्ट्री व रिजौर्ट में तोड़फोड़ कर दी. रिजौर्ट के कई कमरे तहसनहस कर डाले. उत्तराखंड के कई शहरों की कई संस्थाओं ने अंकिता की मौत पर दुख प्रकट किया और कैंडल मार्च भी निकाला.

यमकेश्वर की भाजपा विधायक रेणु बिष्ट भी अंकिता की मौत पर दुख प्रकट करने के लिए एम्स जा पहुंची थी. किंतु वहां मौजूद आक्रोशित भीड़ ने उन की गाड़ी में तोड़फोड़ कर दी. रेणु बिष्ट किसी तरह खुद को बचाती हुई चली गईं.

गुस्साई भीड़ की शिकार राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष कुसुम कंडवाल भी हुईं. उन्हें भी बैरंग लौटा दिया गया. यहां तक कि विनोद आर्य, जो भाजपा नेता और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में भी पदाधिकारी हैं, की फैक्ट्री स्वदेशी फार्मेसी में भी आग लगा दी.

4 डाक्टरों के पैनल ने किया पोस्टमार्टम

अंकिता कांड ने पूरे शहर में तूल पकड़ लिया था. शहर में प्रदर्शन का जोर था. यहां तक कि एम्स के बाहर भी हजारों प्रदर्शनकारी पोस्टमार्टम रिपोर्ट सार्वजनिक करने और आरेपियों को फांसी देने की मांग जोरशोर से कर रहे थे.

शव का पोस्टमार्टम 4 डाक्टरों के पैनल द्वारा किया गया, जिस की  वीडियोग्राफी भी की गई. भीड़ को शांत करने के लिए  उत्तराखंड के डीजीपी अशोक कुमार ने अंकिता भंडारी मामले की निष्पक्ष जांच का आश्वासन देते हुए डीआईजी की मौनिटरिंग वाली एसआईटी (स्पैशल इन्वैस्टीगेशन टीम) गठन करने की बात कही.

पोस्टमार्टम के बाद अंकिता का शव उस के घर वालों को सौंप दिया गया. वहां मौजूद भीड़ अंकिता के शव को गांव ले जाने नहीं दे रही थी. परिजनों की भी मांग थी कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए. सभी उत्तराखंड की भाजपा सरकार के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे. बड़ी मुश्किल से पुलिस प्रशासन ने अंकिता के परिजनों और भीड़ को समझाया. तब तक पूरा दिन निकल गया था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट सार्वजनिक होने पर ही देर रात अंकिता का अंतिम संस्कार हो पाया, जो अलकनंदा घाट पर संपन्न हुआ.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में अंकिता की मौत का कारण पानी में डूबना बताया गया था. साथ ही उस के शरीर पर पिटाई से बनी कई चोटें थीं. यानी रिपोर्ट के मुताबिक उसे नहर में फेंकने से पहले बुरी तरह पीटा गया था.

यह रिपोर्ट 27 सितंबर को पुलिस को सौंप दी गई.

एक तरफ अंकिता भंडारी की गुमशुदगी से ले कर मर्डर, लाश मिलने, मामले का खुलासा होने के बाद पोस्टमार्टम और अंतिम संस्कार तक लोग सड़कों पर उतरे हुए थे, दूसरी तरफ आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद आधी रात के समय रिजौर्ट पर बुलडोजर चलाने के आदेश जारी कर दिए गए थे.

इसे ले कर भी लोगों के मन में कई सवाल खड़े हो गए थे. इस मामले पर स्थानीय विधायक और प्रशासन आमनेसामने आ गए थे. अंकिता के पिता ने बुलडोजर ऐक्शन की आड़ में सबूतों को मिटाने के आरोप लगाए.

हैरानी की बात यह थी कि डीएम डा. विजय कुमार जोगदंडे को इस की कोई जानकारी ही नहीं थी. उन्होंने कहा कि बुलडोजर चलाने के निर्देश संबंधी उन को कोई जानकारी ही नहीं, लेकिन वह इस की जांच करवाएंगे.

मुख्यमंत्री धामी ने दिया न्याय का भरोसा

स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार यमकेश्वर सीट से बीजेपी विधायक रेणु बिष्ट बुलडोजर वाली रात करीब डेढ़ बजे रिजौर्ट पर पहुंची थीं. तब तक काफी हिस्सा तोड़ा जा चुका था. बुलडोजर ड्राइवर ने बताया कि प्रशासन की तरफ से आदेश मिला था.

प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस की सुनवाई फास्टट्रैक कोर्ट में कराने की घोषणा की. साथ ही राज्य पुलिस ने डीआईजी पी. रेणुका देवी के नेतृत्व में एसआईटी का गठन कर दिया, जिस का जिम्मा साइबर सेल के इंचार्ज इंसपेक्टर राजेंद्र सिंह खोलिया को बनाया गया.

मर्यादा की हद से आगे – भाग 2

मृतक पवन पाल के दोस्त कल्लू के संबंध में क्लू मिला तो अजय प्रताप सिंह ने रमाशंकर उर्फ कल्लू की तलाश शुरू कर दी. उन्होंने कच्ची बस्ती जा कर कल्लू पल्लेदार के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि वह नहर किनारे अपनी मां और बहन के साथ रहता है. अजय प्रताप सिंह उस के घर पहुंचे तो पता चला कि कल्लू एक हफ्ते से घर में ताला लगा कर कहीं चला गया है.

दोस्त की हत्या के बाद रमाशंकर उर्फ कल्लू का घर में ताला लगा कर गायब हो जाना, संदेह पैदा कर रहा था. अजय प्रताप सिंह समझ गए कि पवन की हत्या का राज उस के दोस्त कल्लू के पेट में ही छिपा है.

कल्लू शक के घेरे में आया तो उन्होंने उस की तलाश में कई संभावित स्थानों पर छापे मारे, लेकिन वह उन की पकड़ में नहीं आया. हताश हो कर उन्होंने उस की टोह में अपने खास मुखबिर लगा दिए.

10 जुलाई को शाम 4 बजे एक मुखबिर ने थानाप्रभारी अजय प्रताप सिंह को बताया कि मृतक पवन पाल का दोस्त कल्लू पल्लेदार इस समय पनकी इंडस्ट्रियल एरिया के नहर पुल पर मौजूद है.

मुखबिर की सूचना महत्त्वपूर्ण थी. थानाप्रभारी अजय प्रताप सिंह ने एसआई दयाशंकर त्रिपाठी, उमेश कुमार, हैडकांस्टेबल रामकुमार और सिपाही गंगाराम को साथ लिया और जीप से नहर पुल पर जा पहुंचे.

जीप रुकते ही एक व्यक्ति तेजी से रेलवे लाइन की तरफ भागा. लेकिन पुलिस टीम ने उसे कुछ ही दूरी पर दबोच लिया. पकड़े गए व्यक्ति ने अपना नाम रमाशंकर उर्फ कल्लू निषाद बताया. पुलिस उसे थाना पनकी ले आई.

थाने पर जब रमाशंकर उर्फ कल्लू निषाद से पवन पाल की हत्या के बारे में पूछा गया तो उस ने कहा, ‘‘पवन पाल मेरा जिगरी दोस्त था. दोनों साथ काम करते थे और खातेपीते थे. भला मैं अपने दोस्त की हत्या क्यों करूंगा? मुझे झूठा फंसाया जा रहा है.’’

लेकिन पुलिस ने उस की बात पर यकीन नहीं किया और उस से सख्ती से पूछताछ की. कल्लू पुलिस की सख्ती ज्यादा देर बरदाश्त नहीं कर सका. उस ने अपने दोस्त पवन पाल की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

यही नहीं, कल्लू ने हत्या में इस्तेमाल लोहे का वह हुक (बोरा उठाने वाला) भी बरामद करा दिया, जिसे उस ने घर के अंदर छिपा दिया था. मृतक के मोबाइल को कल्लू ने कूंच कर नहर में फेंक दिया था, जिसे पुलिस बरामद नहीं कर सकी.

थानाप्रभारी अजय प्रताप सिंह ने ब्लाइंड मर्डर का रहस्य उजागर करने तथा कातिल को पकड़ने की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ ही देर में एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन तथा सीओ (कल्याणपुर) अजीत कुमार सिंह थाना पनकी आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने भी रमाशंकर उर्फ कल्लू निषाद से पूछताछ की. उस ने बताया कि पवन ने उस की इज्जत पर हाथ डाला था. उस ने उसे बहुत समझाया, हाथ तक जोड़े लेकिन जब वह नहीं माना तो उसे मौत की नींद सुला दिया.

रमाशंकर उर्फ कल्लू ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था. थानाप्रभारी अजय प्रताप सिंह ने मृतक पवन के बड़े भाई जगत पाल को वादी बना कर भादंवि की धारा 302 के तहत रमाशंकर उर्फ कल्लू निषाद के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया. उसे विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस जांच तथा अभियुक्त के बयानों के आधार पर दोस्त द्वारा दोस्त की हत्या करने की सनसनीखेज घटना इस तरह सामने आई.

फैजाबाद शहर के थाना कैंट के अंतर्गत एक मोहल्ला है रतिया निहावा. रामप्रसाद निषाद इसी मोहल्ले में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी लक्ष्मी के अलावा 2 बेटे दयाशंकर, रमाशंकर उर्फ कल्लू तथा 2 बेटियां रजनी व मानसी थीं. रामप्रसाद निषाद सरयू नदी में नाव चला कर अपने परिवार का भरणपोषण करता था.

रामप्रसाद का बड़ा बेटा दयाशंकर पढ़ालिखा था. वह बिजली विभाग में नौकरी करता था. उस की शादी जगदीशपुर निवासी झुनकू की बेटी वंदना से हुई थी. वंदना तेजतर्रार युवती थी.

ससुराल में वह कुछ साल तक सासससुर के साथ ठीक से रही, उस के बाद वह कलह करने लगी. कलह की सब से बड़ी वजह थी वंदना का देवर रमाशंकर उर्फ कल्लू.

कल्लू का मन न पढ़नेलिखने में लगता था और न ही किसी काम में. वह मोहल्ले के कुछ आवारा लड़कों के साथ घूमने लगा, जिस की वजह से वह नशे का आदी हो गया. शराब पी कर लोगों से गालीगलौज और मारपीट करना उस की दिनचर्या बन गई. आए दिन घर में कल्लू की शिकायतें आने लगीं.

वंदना भी कल्लू की हरकतों से परेशान थी. उसे यह कतई बरदाश्त नहीं था कि उस का पति कमा कर लाए और देवर मुफ्त की रोटी खाए. कलह का दूसरा कारण था, संयुक्त परिवार में रहना.

वंदना को दिन भर काम में व्यस्त रहना पड़ता था. इस सब से वह ऊब गई थी और संयुक्त परिवार में नहीं रहना चाहती थी. वह कलह तो करती ही थी साथ ही पति दयाशंकर पर अलग रहने का दबाव  भी बनाती थी.

रामप्रसाद भी छोटे बेटे कल्लू की नशाखोरी से परेशान था. वह उसे समझाने की कोशिश करता तो वह बाप से ही भिड़ जाता था. घर की कलह और बेटे की नशाखोरी की वजह से रामप्रसाद बीमार पड़ गया. बड़े बेटे दयाशंकर ने रामप्रसाद का इलाज कराया. लेकिन वह उसे नहीं सका.

पिता की मौत पर कल्लू ने खूब ड्रामा किया. शराब पी कर उस ने भैयाभाभी को खूब खरीखोटी सुनाई. साथ ही ठीक से इलाज न कराने का इलजाम भी लगाया.

पिता की मौत के बाद मां व बहन का बोझ दयाशंकर के कंधों पर आ गया. उस की आमदनी सीमित थी और खर्चे बढ़ते जा रहे थे. ससुर की मौत के बाद वंदना ने भी कलह तेज कर दी थी. वह पति का तो खयाल रखती थी, लेकिन अन्य लोगों के खानेपीने में भेदभाव बरतती थी. सास लक्ष्मी कुछ कहती तो वंदना गुस्से से भर उठती, ‘‘मांजी, गनीमत है जो तुम्हारा बेटा तुम्हें रोटी दे रहा है. वरना तुम सब को मंदिर के बाहर भीख मांग कर पेट भरना पड़ता.’’

बहू की जलीकटी बातें सुन कर लक्ष्मी खून का घूंट पी कर रह जाती, क्योंकि वह मजबूर थी. छोटी बेटी मानसी भी जवानी की दहलीज पर खड़ी थी. उसे ले कर वह कहां जाती.

लक्ष्मी ने छोटे बेटे रमाशंकर उर्फ कल्लू को समझाया कि अब तो सुधर जाए. कुछ काम करे और चार पैसे कमा कर लाए. किसी दिन वंदना ने खानापानी बंद कर दिया तो हम सब भूखे मरेंगे. लेकिन कल्लू पर मां की बात का कोई असर नहीं हुआ. वह अपनी ही मस्ती में मस्त रहा.

उन्हीं दिनों एक रोज रमाशंकर देर शाम शराब पी कर घर आया. आते ही उस ने खाना मांगा. इस पर वंदना गुस्से से बोली, ‘‘कमा कर रख गए थे, जो खाना लगाने का हुक्म दे रहे हो. आज तुम्हें खाना नहीं मिलेगा. एक बात कान खोल कर सुन लो. इस घर में अब तुम्हें खाना तभी मिलेगा, जब कमा कर लाओगे.’’

मोहब्बत रास न आई – भाग 2

धीरेधीरे समय गुजरता गया. गीता अपने सौतेले बाप और भाई के जुल्म सहन करतीकरती जवानी की दहलीज पर आ खड़ी हुई थी. लेकिन दोनों बापबेटों ने उसे व उस के घर वालों को बंधुआ मजदूर बना कर रख दिया था.

जब यह सब भावना देवी से सहन नहीं हुआ तो उस ने एक दिन गीता को प्यार से समझाया, ‘‘बेटी, तू अब समझदार हो गई है. तू इन लोगों के जुल्म कब तक सहती रहेगी. अब तू मेरी चिंता छोड़. तू किसी अच्छे सीधेसादे लड़के को देख कर उस के साथ शादी कर अपना घर बसा ले.’’

मां की तरफ से शादी की छूट मिलते ही गीता का हौसला बढ़ा. गीता ने उसी दिन अपनी मां की बात दिमाग में बैठा ली.

फिर वह एक ऐसे ही लड़के की तलाश में लग गई. लेकिन काफी प्रयास करने के बाद भी उसे कोई ऐसा लड़का नहीं मिल रहा था, जो उसे अपनी जीवनसंगिनी बना कर उसे खुश रख सके.

एक साल पहले की बात है. गीता किसी काम से भिकियासैंण गई हुई थी. भिकियासैंण के बाजार में ही उस की मुलाकात जगदीश चंद्र से हुई. जगदीश ग्राम पनुवाधोखन निवासी केसराम का बेटा था. वह अनुसूचित जाति का था. उसे देखते ही वह पास आया और गीता के बारे में जानकारी ली.

उसे देखते ही गीता को लगा कि जगदीश एक सीधासादा युवक है. उस दिन दोनों में जानपहचान हुई. बातों ही बातों में एकदूसरे के परिवार की जानकारी ली.

जगदीश ने उसी मुलाकात में बताया था कि वह ठेकेदार कविता मनराल के ठेके में ‘हर घर नल, हर घर जल’ मिशन के अंतर्गत घरघर नल लगवाने का काम करता है. जगदीश चंद्र ने उसे यह भी बता दिया था कि अभी उस की शादी नहीं हुई है. उस के घर वाले उस के लिए लड़की तलाश रहे हैं.

जगदीश को दिल में बसा लिया

जगदीश चंद्र की बात सुनते ही गीता को लगा कि जिस सपनों के राजकुमार की उसे तलाश थी, वह उसे मिल गया. उस के स्वभाव को देख कर लगा कि वही एक ऐसा शख्स है, जिस के साथ शादी कर के वह अपनी जिंदगी हंसीखुशी के साथ काट सकती है.

उस छोटी सी मुलाकात के दौरान गीता ने जगदीश का मोबाइल नंबर भी ले लिया था. उस के बाद वह अपने घर चली आई.

घर आने के बाद हर वक्त जगदीश का चेहरा उस की आंखों के सामने घूमने लगा था. लेकिन गीता की एक मजबूरी थी कि उस के पास उस वक्त मोबाइल फोन नहीं था. जिस से वह उस से संपर्क साधने में असमर्थ थी.

कुछ समय के बाद ही जगदीश चंद्र एक दिन हर घर नल, हर घर जल अभियान के तहत काम करने भिकियासैंण के बोली न्याय पंचायत क्षेत्र में पहुंचा. जगदीश चंद्र को देखते ही गीता ने उसे पहचान लिया. उसे देखते ही गीता का चेहरा खिल उठा. उस दिन दोनों की दूसरी मुलाकात थी. उस वक्त जोगा सिंह और उस का लड़का गोविंद सिंह खेतों पर गए हुए थे.

गीता को जगदीश से बात करने का पूरा मौका मिला तो उस ने उसे अपनी मां भावना का मोबाइल नंबर भी दे दिया था. जिस के माध्यम से दोनों आपस में बातचीत करने लगे थे. वही मुलाकात धीरेधीरे प्यार में तब्दील हो गई थी.

कुछ ही दिनों में गीता ने भी एक मोबाइल खरीद लिया था. उस के बाद दोनों के बीच बातों का सिलसिला शुरू हो गया था. दोनों के बीच प्रेम प्रसंग होते ही बात शादी तक जा पहुंची थी. गीता तो पहले ही जगदीश के साथ शादी करने के लिए तैयार बैठी थी. लेकिन जगदीश को उस से शादी करने के लिए अपने घर वालों को समझाना पड़ा.

जगदीश के हठ के सामने उस के घर वाले भी मना नहीं कर सके. इस के बाद दोनों ने शादी करने की तैयारी भी शुरू कर दी थी. वैसे तो दोनों ही शादी के लिए बालिग थे. लेकिन दोनों की शादी के लिए कुछ प्रमाणपत्र अधूरे थे.

उसी शादी के प्लान के अनुसार 26 मई, 2022 को गीता जगदीश के साथ अल्मोड़ा आ गई. उस दिन दोनों को शादी के लिए कुछ कपड़े और सामान खरीदना था. बाजार में खरीदारी करते वक्त जोगा सिंह के एक परिचित ने दोनों को एक साथ देख लिया तो उस ने तुरंत ही गोविंद सिंह को फोन से यह जानकारी दे दी.

यह जानकारी मिलते ही गोविंद सिंह तुरंत ही बाजार पहुंच गया. उस के बाद उस ने गीता और जगदीश चंद्र दोनों को भलाबुरा कहा. जगदीश को आगे न मिलने की चेतावनी देते हुए गीता को वह अपने साथ ले गया.

घर पहुंचते ही गोविंद सिंह ने गीता को बहुत मारापीटा और उसे चेतावनी दी कि अगर उस ने दोबारा उस से मिलने की कोशिश की तो वह उस की जान ले लेगा. उस दिन के बाद वह पहले के मुकाबले गीता पर और अधिक ध्यान देने लगा. साथ ही बातबात पर वह उस के साथ मारपीट भी करने लगा था.

लेकिन उस की मां भावना भी गोविंद सिंह के आगे मजबूर हो गई थी. फिर भी वह गीता को घर से निकालने का मौका देती रहती थी.

7 अगस्त, 2022 को गीता को थोड़ा सा मौका मिला तो वह घर से निकल गई. घर से निकलते ही वह जगदीश के पास पहुंची. जगदीश चंद्र जानता था कि गोविंद सिंह कभी भी उसे ढूंढता हुआ उस के पास आ सकता है. यही सोच कर अगले ही दिन दोनों अल्मोड़ा पहुंच गए.

एडवोकेट नारायण राम ने दी पनाह

अल्मोड़ा पहुंचते ही जगदीश चंद्र ने अधिवक्ता नारायण राम से संपर्क किया. जगदीश चंद्र और गीता ने उन के सामने अपनी परेशानी रखी तो उन्होंने हर तरह से सहायता करने का आश्वासन दिया. उस के साथ ही दोनों की सहायता करने के लिए उन्हें अपने घर में भी शरण दी.

8 अगस्त, 2022 को जब गीता के घर से भागने की सूचना जोगा सिंह को पता चली तो वह बौखला गया. उसे पता था कि वह भाग कर सीधे जगदीश चंद्र के पास गई होगी. जोगा सिंह अपने बेटे गोविंद सिंह और पत्नी भावना देवी को साथ ले कर गीता की तलाश में जगदीश के घर पहुंचा.

उन्होंने जगदीश के घर जा कर उस के घर वालों को भी भलाबुरा कहा. उस के बाद जगदीश को जान से मारने की धमकी देते हुए वहां से चले आए. वहां से आने के बाद वे गीता और जगदीश को इधरउधर तलाशने लगे.

जगदीश चंद्र के घर वालों ने यह बात उसे फोन कर के बता दी थी. जिस के बाद गीता को लगने लगा था कि उस के परिवार वाले जगदीश चंद्र के साथ कुछ भी कर सकते हैं. यह जानकारी मिलते ही 22 अगस्त, 2022 को दोनों ने शादी करने का निर्णय लिया. फिर उसी दिन जिला अल्मोड़ा के गैराड़ गोलज्यू मंदिर में हिंदू रीतिरिवाज से शादी कर ली. फिर वे पतिपत्नी के रूप में रहने लगे.

मां और सौतेले पिता हो गए खून के प्यासे

उन की शादी करने वाली बात जल्दी ही जोगा सिंह को पता चल गई थी. गीता की एक दलित युवक के साथ शादी की जानकारी मिलते ही जोगा सिंह और उस का परिवार भड़क उठा. तभी से जोगा सिंह का परिवार जगदीश चंद्र के खून का प्यासा हो गया था.

गीता ने अपनी और अपने पति की जान को खतरे में देखते हुए 27 अगस्त, 2022 को अल्मोड़ा में पुलिस और प्रशासन को अपने मायके वालों के खिलाफ तहरीर दी.

गीता ने तहरीर में बाकायदा सौतेले पिता जोगा और सौतेले भाई गोविंद से जगदीश चंद्र और स्वयं की जान का खतरा होने का अंदेशा जताया था. लेकिन पुलिस प्रशासन की तरफ से उन की शिकायत पर कोई भी काररवाई नहीं की गई.

आखिर क्या था बेलगाम ख्वाहिश का अंजाम – भाग 2

दोहरे हत्याकांड से पूरे शहर में सनसनी फैल चुकी थी. राजेश की बहन गीता की तहरीर के आधार पर पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 201, 120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

पुलिस ने मृतक राजेश व उस की पत्नी दीपिका के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो राजेश के मोबाइल की आखिरी लोकेशन 4 मार्च, 2017 की तड़के लाडपुर क्षेत्र में मिली जोकि कुंआवाला के नजदीक था. इस से पुलिस चौंकी, क्योंकि दीपिका ने उन के जाने का समय सुबह करीब 9 बजे बताया था.

काल डिटेल्स से यह स्पष्ट हो गया कि दीपिका ने पुलिस से झूठ बोला था. इस से वह शक के दायरे में आ गई. पुलिस ने दीपिका से पूछताछ की तो वह अपने बयान पर अडिग रही. इतना ही नहीं, उस ने अपने 8 साल के बेटे नोनू को भी आगे कर दिया. उस ने भी पुलिस को बताया कि पापा को जाते समय उस ने बाय किया था.

पुलिस ने नोनू से अकेले में घुमाफिरा कर चौकलेट का लालच दे कर पूछताछ की तब भी वह अपनी बात दोहराता रहा. ऐसा लगता था कि जैसे उसे बयान रटाया गया हो. शक की बिनाह पर पुलिस ने दीपिका के घर की गहराई से जांचपड़ताल की लेकिन वहां भी कोई ऐसा सबूत या असामान्य बात नहीं मिली जिस से यह पता चलता कि हत्याएं वहां की गई हों. लेकिन पुलिस इतना समझ गई थी कि दीपिका शातिर अंदाज वाली महिला थी.

पुलिस ने दीपिका के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स की फिर से जांच की तो उस में एक नंबर ऐसा मिला जिस पर उस की अकसर बातें होती थीं. 3 मार्च की रात व 4 को तड़के साढ़े 5 बजे भी उस ने इसी नंबर पर बात की थी. पुलिस ने उस फोन नंबर की जांच की तो वह योगेश का निकला. योगेश शहर के ही गांधी रोड पर एक रेस्टोरेंट चलाता था.

योगेश के फोन की काल डिटेल्स जांची तो उस की लोकेशन भी उसी स्थान पर पाई गई, जहां शव बरामद हुए थे. माथापच्ची के बाद पुलिस ने कडि़यों को जोड़ लिया. इस बीच पुलिस को यह भी पता चला कि दीपिका और योगेश के बीच प्रेमिल रिश्ते थे जिस को ले कर घर में अकसर झगड़ा होता था.

इतने सबूत मिलने के बाद पुलिस अधिकारियों ने एक बार फिर से पूछताछ की तो वह सवालों के आगे ज्यादा नहीं टिक सकी. वह वारदात की ऐसी षडयंत्रकारी निकली, जिस की किसी को उम्मीद नहीं थी. अपने अवैध प्यार को परवान चढ़ाने और प्रेमी के साथ दुनिया बसाने की ख्वाहिश में उस ने पूरा जाल बुना था. इस के बाद पुलिस ने उस के प्रेमी योगेश को भी गिरफ्तार कर लिया. दोनों से पूछताछ की गई तो चौंकाने वाली कहानी निकल कर सामने आई.

दरअसल, राजेश से शादी के बाद दीपिका की जिंदगी आराम से बीत रही थी. दोनों के बीच प्यार भरे विश्वास का मजबूत रिश्ता था. राजेश सीधासादा युवक था जबकि दीपिका ठीक इस के उलट तेजतर्रार व फैशनपरस्त युवती थी. 2 साल पहले योगेश ने रायपुर स्थित स्पोर्ट्स स्टेडियम में ठेके पर कुछ काम किया था. इस दौरान वह एक गेस्टहाउस में रहा. वह गेस्टहाउस राजेश के घर के ठीक पीछे था.

योगेश मूलरूप से हरियाणा के करनाल शहर का रहने वाला था और देहरादून में छोटेमोटे ठेकेदारी के काम करता था. वह राजेश की दुकान पर भी आता था. इस नाते दोनों के बीच जानपहचान हो गई थी. दीपिका जब भी छत पर कपड़े सुखाने जाती तो योगेश उसे अपलक निहारा करता था. पहली ही नजर में उस ने दीपिका को हासिल करने की ठान ली थी. दीपिका को पाने की चाहत में योगेश ने धीरेधीरे राजेश से दोस्ती गांठ ली. दोस्ती मजबूत होने पर वह उस के घर भी जाने लगा.

इस दौरान उस की मुलाकात दीपिका से भी हुई. कुछ दिनों में ही दीपिका ने योगेश की आंखों में अपने लिए चाहत देख ली. दोनों के बीच दोस्ती हो गई और वे मोबाइल पर बातें करने लगे. राजेश को पता नहीं था कि जिस दोस्त पर वह आंख मूंद कर विश्वास करता है, वह आस्तीन का सांप बन कर उस के घर की इज्जत तारतार करने की शुरुआत कर रहा है.

जब दीपिका योगेश के आकर्षण में बंध गई तो दोनों ने अपने रिश्ते को प्यार का नाम दे दिया. अब दीपिका बहाने से घर से बाहर जाती और योगेश के साथ घूमती. इस बीच योगेश ने तहसील चौक के पास अपना रेस्टोरेंट खोल लिया और खुद गोविंदगढ़ में रहने लगा.

दीपिका पति को धोखा दे कर योगेश के सपने देखने लगी. एक वक्त ऐसा भी आया जब उन के बीच मर्यादा की दीवार गिर गई. इस के बाद तो जब कभी राजेश व प्रेम सिंह बाहर होते तो वह योगेश के साथ अपना समय बिताती. राजेश को पता ही नहीं था कि उस की पत्नी उस से बेवफाई कर के क्या गुल खिला रही है.

अपने नाजायज रिश्ते को प्यार का नाम दे कर योगेश व दीपिका साथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे. दोनों के रिश्ते भला कब तक छिपते. आखिर एक दिन राजेश के सामने यह राज उजागर हो ही गया. उस ने अपने ही घर में दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया.

पत्नी की बेवफाई पर राजेश को गुस्सा आ गया. उस ने दीपिका की पिटाई कर दी और योगेश को भी खरीखोटी सुना कर अपनी पत्नी से दूर रहने की हिदायत दी.

कुछ दिन तो सब ठीक रहा लेकिन बाद में दोनों ने फिर से गुपचुप ढंग से मिलना शुरू कर दिया. पर राजेश से कोई बात छिपी नहीं रही. नतीजतन इन बातों को ले कर घर में आए दिन झगड़ा होने लगा.

दीपिका चाहती थी कि उस पर किसी तरह की बंदिश न हो और वह प्रेमी के साथ खुल कर जिंदगी जिए. वह ढीठ हो चुकी थी. अपनी गलती मानने के बजाए वह पति से बहस करती. राजेश अपना घर बरबाद होते नहीं देखना चाहता था. लिहाजा वह समयसमय पर परिवार और बच्चे का वास्ता दे कर दीपिका को समझाने की कोशिश करता. पर उस के दिमाग में पति की बात नहीं धंसती बल्कि एक दिन तो बेशरमी दिखाते हुए उस ने पति से कह दिया, ‘‘मेरे पास एक रास्ता है कि तुम मुझे तलाक दे कर आजाद कर दो. फिर तुम्हें कोई दिक्कत नहीं होगी.’’

राजेश को पत्नी से ऐसी उम्मीद नहीं थी. वह सारी हदों को लांघ गई थी. उस की बात सुन कर उसे गुस्सा आ गया तो उस ने दीपिका की पिटाई कर दी. दीपिका राह से इतना भटक चुकी थी कि वह राजेश को भूल कर योगेश से जुनून की हद तक प्यार करती थी. कई दौर ऐसे आए जब उस ने योगेश को नकद रुपए भी दिए. यह रकम ढाई लाख तक पहुंच चुकी थी.

पत्नी की खूनी साजिश : प्यार में पागल लड़की ने प्रेमी से करवाई पति की हत्या – भाग 2

इस की वजह यह थी कि डब्लू को रमेश सिंह से भाई की मौत का बदला लेना था. इस के लिए उस ने रमेश सिंह से दोस्ती गांठ ली. फिर एक दिन गांव के पास ही वह रमेश सिंह के साथ शराब पीने बैठा. उस ने जानबूझ कर रमेश सिंह को खूब शराब पिलाई.

जब रमेश सिंह नशे में बेकाबू हो गया तो डब्लू ने हंसिए से उस का गला धड़ से अलग कर दिया. इस के बाद रमेश सिंह का कटा सिर लिए वह मां के पास पहुंचा और सिर उन के सामने कर के बोला, ‘‘देखो मां, यही भैया का हत्यारा था. आज मैं ने इस के किए की सजा दे दी. इसे वहां भेज दिया, जहां इसे बहुत पहले पहुंच जाना चाहिए था.’’

यह सन 2011 की बात है.   इस के बाद रमेश सिंह का कटा सिर लिए डब्लू पूरे गांव में घूमा. डब्लू के दुस्साहस को देख कर गांव में दहशत फैल गई. पुलिस उस तक पहुंच पाती, उस से पहले ही वह रमेश सिंह का सिर फेंक कर फरार हो गया. लेकिन पुलिस के चंगुल से वह ज्यादा समय तक नहीं बच पाया. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.

जमानत पर जेल से बाहर आने के बाद डब्लू को लगा कि गांव के ही रहने वाले रमेश सिंह के करीबी पूर्व ग्रामप्रधान शातिर बदमाश अरुण सिंह उस की हत्या करवा सकते हैं. फिर क्या था, वह उन्हें ठिकाने लगाने की योजना बनाने लगा.

25 अप्रैल, 2013 को किसी काम से अरुण सिंह अपनी मोटरसाइकिल से कहीं जा रहे थे, तभी मचिया चौराहे पर घात लगा कर बैठे डब्लू ने गोलियों से भून डाला. घटनास्थल पर ही उन की मौत हो गई. उस समय तो वह फरार हो गया था, लेकिन बाद में पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था.

बात उस समय की है, जब सुषमा कालेज में पढ़ती थी. संयोग से उसी कालेज में डब्लू भी पढ़ता था. चूंकि दोनों एक ही गांव के रहने वाले थे, इसलिए कालेज आतेजाते अकसर दोनों की मुलाकात हो जाती थी. सुषमा खूबसूरत तो थी ही, डब्लू भी कम स्मार्ट नहीं था. साथ आनेजाने में ही दोनों में प्यार हो गया. सुषमा डब्लू के आपराधिक कारनामों के बारे में जानती थी, इस के बावजूद उस से प्यार करने लगी.

सुषमा और डब्लू की प्रेमकहानी जल्दी ही गांव वालों के कानों तक पहुंच गई. फिर तो इस की जानकारी सुरेंद्र बहादुर सिंह को भी हो गई. बेटी की इस करतूत से पिता का सिर शरम से झुक गया. उन्होंने सुषमा को डब्लू से मिलने के लिए मना तो किया ही, उस के घर से निकलने पर भी पाबंदी लगा दी. इस का नतीजा यह निकला कि एक दिन वह मांबाप की आंखों में धूल झोंक कर डब्लू के साथ भाग गई. इस के बाद दोनों ने मंदिर में शादी कर ली. यह 7-8 साल पहले की बात है.

crime story

सुषमा के भाग जाने से सुरेंद्र बहादुर सिंह की काफी बदनामी हुई. डब्लू आपराधिक प्रवृत्ति का था, इसलिए वह उस का कुछ कर भी नहीं सकते थे. फिर भी उन्होंने पुलिस के साथसाथ बिरादरी की मदद ली. पुलिस और बिरादरी के दबाव में डब्लू ने सुषमा को उस के घर वापस भेज दिया. सुषमा के घर वापस आने के बाद सुरेंद्र बहादुर सिंह ने उस के घर से बाहर जाने पर सख्त पाबंदी लगा दी.

संयोग से उसी बीच रमेश सिंह की हत्या के आरोप में डब्लू जेल चला गया तो सुरेंद्र बहादुर सिंह ने राहत की सांस ली. डब्लू की जो छवि बन चुकी थी, उस से वह काफी डरे हुए थे. वह जेल चला गया तो उन्होंने इस मौके का फायदा उठाया और आननफानन में सुषमा की शादी गोरखपुर के रहने वाले संपन्न और सभ्य देवेंद्र प्रताप सिंह के बेटे विवेक प्रताप सिंह उर्फ विक्की से कर दी.

यह शादी इतनी जल्दी में हुई थी कि देवेंद्र प्रताप सिंह बहू के बारे में कुछ पता नहीं कर सके. जेल में बंद डब्लू को जब सुषमा की शादी के बारे में पता चला तो वह सुरेंद्र बहादुर सिंह पर बहुत नाराज हुआ. लेकिन वह सुषमा के पिता थे, इसलिए वह उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता था. पर उस ने यह जरूर तय कर लिया था कि वह सुषमा को खुद से अलग नहीं होने देगा. इस के लिए उसे कुछ भी करना पड़े, वह करेगा.

सुषमा ने भले ही विवेक से शादी कर ली थी, लेकिन उस का तन और मन डब्लू को ही समर्पित था. हर घड़ी वह उसी के बारे में सोचती रहती थी. जल्दी ही वह विवेक के बेटे आयुष की मां बन गई. जनवरी, 2013 में जब डब्लू जमानत पर जेल से बाहर आया तो सुषमा से मिलने गोरखपुर स्थित उस की ससुराल पहुंच गया.

डब्लू को देख कर सुषमा बहुत खुश हुई. उस का प्यार उस के लिए फिर जाग उठा. इस के बाद वे किसी न किसी बहाने एकदूसरे से मिलने लगे. फोन पर तो बातें होती ही रहती थीं. उसी बीच 25 अप्रैल, 2013 को डब्लू ने पूर्वप्रधान अरुण सिंह की हत्या कर दी तो वह एक बार फिर जेल चला गया. इस बार वह 5 सालों बाद 18 मार्च, 2017 को जेल से बाहर आया तो एक बार फिर उस का सुषमा से मिलनाजुलना शुरू हो गया.

डब्लू बारबार सुषमा से मिलने आने लगा तो विवेक प्रताप सिंह को पत्नी के चरित्र पर संदेह हो गया. इस के बाद पतिपत्नी में अकसर झगड़ा होने लगा. वह डब्लू को अपने यहां आने से मना करने लगा. लेकिन सुषमा उस की एक नहीं सुनती थी. पत्नी के इस व्यवहार से विवेक काफी परेशान रहने लगा. रोजरोज के झगड़े से बेटा भी परेशान रहता था. डब्लू को ले कर पतिपत्नी में संबंध काफी बिगड़ गए. दोनों के बीच मारपीट भी होने लगी.

सुषमा विवेक की कोई बात नहीं मानती थी. रोजरोज के झगड़े से परेशान विवेक अपने दुख को किसी से न कह कर फेसबुक पर पोस्ट किया करता था. दूसरी ओर सुषमा भी पति से ऊब चुकी थी. अब वह उस से छुटकारा पाने के बारे में सोचने लगी. जब उस ने यह बात डब्लू से कही तो उस ने आश्वासन दिया कि उसे चिंता करने की जरूरत नहीं है. वह जब चाहेगा, उसे विवेक से छुटकारा दिलवा देगा. उस के बाद दोनों एक साथ रहेंगे.