देवर पर भारी पड़ा भाभी से संबंध

‘‘अरे वाह देवरजी, तुम तो एकदम मुंबइया हीरो लग रहे हो,’’ सुशीला ने अपने चचेरे देवर शिवम को देख कर कहा.

‘‘देवर भी तो तुम्हारा ही हूं भाभी. तुम भी तो हीरोइनों से बढ़ कर लग रही हो,’’ भाभी के मजाक का जवाब देते हुए शिवम ने कहा.

‘‘जाओजाओ, तुम ऐसे ही हमारा मजाक बना रहे हो. हम तो हीरोइन के पैर की धूल के बराबर भी नहीं हैं.’’

‘‘अरे नहीं भाभी, ऐसा नहीं है. हीरोइनें तो  मेकअप कर के सुंदर दिखती हैं, तुम तो ऐसे ही सुंदर हो.’’

‘‘अच्छा तो किसी दिन अकेले में मिलते हैं,’’ कह कर सुशीला चली गई. इस बातचीत के बाद शिवम के तनमन के तार झनझना गए. वह सुशीला से अकेले में मिलने के सपने देखने लगा. नाजायज संबंध अपनी कीमत वसूल करते हैं. यह बात लखनऊ के माल थाना इलाके के नबी पनाह गांव में रहने वाले शिवम को देर से समझ आई. शिवम मुंबई में रह कर फुटकर सामान बेचने का काम करता था. उस के पिता देवेंद्र प्रताप सिंह किसान थे. गांव में साधारण सा घर होने के चलते शिवम कमाई करने मुंबई चला गया था. 4 जून, 2016 को वह घर वापस आया था.

शिवम को गांव का माहौल अपना सा लगता था. मुंबई में रहने के चलते वह गांव के दूसरे लड़कों से अलग दिखता था. पड़ोस में रहने वाली भाभी सुशीला की नजर उस पर पड़ी, तो दोनों में हंसीमजाक होने लगा. सुशीला ने एक रात को मोबाइल फोन पर मिस्ड काल दे कर शिवम को अपने पास बुला लिया. वहीं दोनों के बीच संबंध बन गए और यह सिलसिला चलने लगा. कुछ दिन बाद जब सुशीला समझ गई कि शिवम पूरी तरह से उस की गिरफ्त में आ चुका है, तो उस ने शिवम से कहा, ‘‘देखो, हम दोनों के संबंधों की बात हमारे ससुरजी को पता चल गई है. अब हमें उन को रास्ते से हटाना पड़ेगा.’’ यह बात सुन कर शिवम के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. सुशीला इस मौके को हाथ से जाने नहीं देना चाहती थी. वह बोली, ‘‘तुम सोचो मत. इस के बदले में हम तुम को पैसा भी देंगे.’’ शिवम दबाव में आ गया और उस ने यह काम करने की रजामंदी दे दी. नबी पनाह गांव में रहने वाले मुन्ना सिंह के 2 बेटे थे. सुशीला बड़े बेटे संजय सिंह की पत्नी थी. 5 साल पहले संजय और सुशीला की शादी हुई थी.

सुशीला उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के महराजगंज थाना इलाके के मांझ गांव की रहने वाली थी. ससुराल आ कर सुशीला को पति संजय से ज्यादा देवर रणविजय अच्छा लगने लगा था. उस ने उस के साथ संबंध बना लिए थे. दरअसल, सुशीला ससुराल की जायदाद पर अकेले ही कब्जा करना चाहती थी. उस ने यही सोच कर रणविजय से संबंध बनाए थे. वह नहीं चाहती थी कि उस के देवर की शादी हो. इधर सुशीला और रणविजय के संबंधों का पता ससुर मुन्ना सिंह और पति संजय सिंह को लग चुका था. वे लोग सोच रहे थे कि अगर रणविजय की शादी हो जाए, तो सुशीला की हरकतों को रोका जा सकता है. सुशीला नहीं चाहती थी कि रणविजय की शादी हो व उस की पत्नी और बच्चे इस जायदाद में हिस्सा लें.

लखनऊ का माल थाना इलाका आम के बागों के लिए मशहूर है. यहां जमीन की कीमत बहुत ज्यादा है. सुशीला के ससुर के पास  करोड़ों की जमीन थी. सुशीला को पता था कि ससुर मुन्ना सिंह को रास्ते से हटाने के काम में देवर रणविजय उस का साथ नहीं देगा, इसलिए उस ने अपने चचेरे देवर शिवम को अपने जाल में फांस लिया. 12 जून, 2016 की रात मुन्ना सिंह आम की फसल बेच कर अपने घर आए. इस के बाद खाना खा कर वे आम के बाग में सोने चले गए. वे पैसे भी हमेशा अपने साथ ही रखते थे. सुशीला ने ससुर मुन्ना सिंह के जाते ही पति संजय और देवर रणविजय को खाना खिला कर सोने भेज दिया. जब सभी सो गए, तो सुशीला ने शिवम को फोन कर के गांव के बाहर बुला लिया.

शिवम ने अपने साथ राघवेंद्र को भी ले लिया था. वे तीनों एक जगह मिले और फिर उन्होंने मुन्ना सिंह को मारने की योजना बना ली. उन तीनों ने दबे पैर पहुंच कर मुन्ना सिंह को दबोचने से पहले चेहरे पर कंबल डाल दिया. सुशीला ने उन के पैर पकड़ लिए और शिवम व राघवेंद्र ने उन को काबू में कर लिया. जान बचाते समय मुन्ना सिंह चारपाई से नीचे गिर गए. वहीं पर उन दोनों ने गमछे से गला दबा कर उन की हत्या कर दी. मुन्ना सिंह की जेब में 9 हजार, 2 सौ रुपए मिले. शिवम ने 45 सौ रुपए राघवेंद्र को दे दिए. इस के बाद वे तीनों अपनेअपने घर चले गए. सुबह पूरे गांव में मुन्ना सिंह की हत्या की खबर फैल गई. उन के बेटे संजय और रणविजय ने माल थाने में हत्या का मुकदमा दर्ज कराया. एसओ माल विनय कुमार सिंह ने मामले की जांच शुरू की. पुलिस ने हत्या में जायदाद को वजह मान कर अपनी खोजबीन शुरू की. मुन्ना सिंह की बहू सुशीला पुलिस को बारबार गुमराह करने की कोशिश कर रही थी. पुलिस ने जब मुन्ना सिंह के दोनों बेटों संजय और रणविजय से पूछताछ की, तो वे दोनों बेकुसूर नजर आए.

इस बीच गांव में यह पता चला कि सुशीला के अपने देवर रणविजय से नाजायज संबंध हैं. इस बात पर पुलिस ने सुशीला से पूछताछ की, तो उस की कुछ हरकतें शक जाहिर करने लगीं. एसओ माल विनय कुमार सिंह ने सीओ, मलिहाबाद मोहम्मद जावेद और एसपी ग्रामीण प्रताप गोपेंद्र यादव से बात कर पुलिस की सर्विलांस सैल और क्राइम ब्रांच की मदद ली. सर्विलांस सैल के एसआई अक्षय कुमार, अनुराग मिश्रा और योगेंद्र कुमार ने सुशीला के मोबाइल को खंगाला, तो  पता चला कि सुशीला ने शिवम से देर रात तक उस दिन बात की थी. पुलिस ने शिवम का फोन देखा, तो उस में राघवेंद्र का नंबर मिला. इस के बाद पुलिस ने राघवेंद्र, शिवम और सुशीला से अलगअलग बात की. सुशीला अपने देवर रणविजय को हत्या के मामले में फंसाना चाहती थी. वह पुलिस को बता रही थी कि शिवम का फोन उस के देवर रणविजय के मोबाइल पर आ रहा था.

सुशीला सोच रही थी कि पुलिस हत्या के मामले में देवर रणविजय को जेल भेज दे, तो वह अकेली पूरी जायदाद की मालकिन बन जाएगी, पर पुलिस को सच का पता चल चुका था. पुलिस ने तीनों को साथ बिठाया, तो सब ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. 14 जून, 2016 को पुलिस ने राघवेंद्र, शिवम और सुशीला को मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया. वहां से उन तीनों को जेल भेज दिया गया. सुशीला अपने साथ डेढ़ साला बेटे को जेल ले गई. उस की 4 साल की बेटी को पिता संजय ने अपने पास रख लिया. जेल जाते समय सुशीला के चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी. वह शिवम और राघवेंद्र पर इस बात से नाराज थी कि उन लोगों ने यह क्यों बताया कि हत्या करते समय उस ने ससुर मुन्ना सिंह के पैर पकड़ रखे थे.

जीजासाली का खूनी इश्क : प्रेम ने तोड़ी सीमा – भाग 3

ससुराल वालों का माथा ठनका. जब नजर रखी तो उन्होंने कविता के साथ अजय की खिचड़ी पकती देखी. इस से पहले कि कोई अनर्थ हो जाए राजेश चंद्र ने बेटी कविता का विवाह कौशांबी के चरवा गांव निवासी नीरज से कर दिया. यह 5 साल पहले की बात है.

विवाह का एक साल बीततेबीतते कविता भी एक बेटी की मां बन गई. अब वह कभीकभार ही मायके आ पाती थी. उस के आने पर अजय ससुराल पहुंच जाता था. दोनों की चाहत तन मिलने से कुछ समय के लिए पूरी हो जाती, लेकिन फिर वही पहले जैसा हाल हो जाता.

दोनों को अपने बीच की दूरी बहुत अखर रही थी. कविता पूरी तरह से अजय के प्यार में रंगी थी. इसलिए उस का ससुराल में मन नहीं लगता था. एक साल पहले वह ससुराल से मायके आई तो वापस लौट कर ससुराल नहीं गई.

अजय की खुशी का ठिकाना न रहा. वह पहले की भांति उस से मिलने जाने लगा. अजय की ससुराल वाले सब जान कर भी कुछ न कर पाते. वह चुपचाप तमाशा देखते रहे.

सरिता को भी अपने पति के अपनी बहन कविता से संबंध की जानकारी हो गई. इस के बाद अजय और सरिता में विवाद होने लगा. अजय एक बहन का पति था तो दूसरे का प्रेमी. वह दोनों के जीवन से खेल रहा था.

13 अक्तूबर को अजय इलैक्ट्रौनिक्स का सामान खरीदने के लिए सुबह प्रयागराज चला गया. शाम 6 बजे जब वह घर लौटा तो दरवाजा अंदर से बंद नहीं था, धक्का देते ही खुल गया. जैसे ही वह अंदर पहुंचा तो कमरे में उस की पत्नी सरिता और 7 वर्षीय बेटी तनु की लाशें पड़ी थीं. यह देख कर वह चीखनेचिल्लाने लगा.

शोर सुन कर आसपास के लोग वहां आ गए. घटना की खबर मिलने पर क्षेत्र के विधायक शीतला प्रसाद पटेल भी वहां पहुंच गए. अजय के कमरे में उस की पत्नी व बेटी की लाशें देखने के बाद उन्होंने सैनी कोतवाली के इंसपेक्टर प्रदीप सिंह को घटना की सूचना दे दी.

इंसपेक्टर प्रदीप सिंह ने अपने उच्चाधिकारियों को दोहरे हत्याकांड की सूचना दे दी. फिर घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. घटनास्थल पर पहुंच कर उन्होंने लाशों का निरीक्षण किया. सरिता की लाश कमरे में मेज के पास जमीन पर पड़ी थी. उस के गले को चाकू से रेता गया था. शरीर पर भी 4-5 घाव के निशान थे.

लाश के पास काफी खून पड़ा था, जो सूख चुका था. लाश अकड़ी हुई थी. दरवाजे के पास सरिता की बेटी तनु की लाश पड़ी थी. उस के गले पर दबाए जाने के निशान मौजूद थे.

तनु की लाश में काफी चींटियां लग गई थीं. निरीक्षण करने के बाद अनुमान लगाया गया कि दिन में किसी वक्त दोनों को मारा गया है. घर में किसी व्यक्ति द्वारा जबरन घुसने का कोई सबूत नहीं मिला. न ही आसपास पड़ोस में किसी ने घटना को अंजाम देने के समय किसी प्रकार का शोरशराबा सुना था. इस का मतलब यह कि हत्यारा कोई परिचित व्यक्ति है.

इसी बीच एसपी अभिनंदन, एएसपी समर बहादुर सिंह और सीओ (सिराथू) श्यामकांत भी डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीम के साथ पहुंच गए. फोरैंसिक टीम साक्ष्य जुटाने में लग गई.

उच्चाधिकारियों ने लाश व घटनास्थल का निरीक्षण किया. तत्पश्चात अजय साहू से पूछताछ की तो उस ने सुबह प्रयागराज जाने और शाम 6 बजे घर आने पर घटना का पता होने की बात बताई.

सीसीटीवी फुटेज देखी गई. लेकिन कोई संदेहास्पद व्यक्ति नहीं दिखा. इंसपेक्टर प्रदीप सिंह को अजय पर ही शक था. उन्होंने अपना शक एसपी अभिनंदन को बताया. एसपी अभिनंदन की सोच भी वही थी. अजय ने बताया था कि वह दोपहर 12 बजे के करीब प्रयागराज गया था. उस के बाद ही लगभग 2-3 बजे घटना हुई होगी. लेकिन 3-4 घंटे में लाश अकड़ नहीं सकती.

ऐसा तभी होता है, जब घटना हुए 10-12 घंटे का समय हो जाए. यानी सुबह के समय तब अजय घर पर ही था. अजय ने ही हत्या कर के सारी कहानी गढ़ी है, इस का विश्वास हुआ तो अजय से और सख्ती से पूछताछ के लिए उसे थाने ले जाया गया. लेकिन इस से पहले दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया गया.

उन्होंने अज्ञात के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज करा दी. पूछताछ करने पर वह चुप ही रहे लेकिन सविता फट पड़ी. उस ने बताया कि कविता दीदी और जीजा का आपस में काफी लगाव था. इंसपेक्टर प्रदीप सिंह का शक सही साबित हुआ.

इस के बाद अजय से थाने में सख्ती से उन्होंने पूछताछ की तो उस ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और इस जुर्म में उस ने साली कविता के भी शामिल होने की बात स्वीकारी. दोनों ने ही मिल कर सरिता की हत्या की साजिश रची थी. इस के बाद कविता को भी हिरासत में ले कर पूछताछ की गई.

पूछताछ में पता चला कि अजय और कविता एकदूसरे से विवाह कर के साथ रहना चाहते थे. सरिता उन के संबंधों का विरोध कर रही थी, वह उन के रास्ते में आ रही थी. इसलिए कविता और अजय ने मिल कर सरिता की हत्या की योजना बनाई. अजय ने कविता से बात करने के लिए दूसरा नंबर ले रखा था, उसी से बराबर कविता से बात करता था.

उसी नंबर से बात कर के उन्होंने हत्या का षडयंत्र रचा. 13 अक्तूबर की सुबह 6 बजे अजय ने घर में रखे सब्जी काटने वाले चाकू से नींद में सोई सरिता का गला काट दिया. सरिता चीख भी न सकी, जमीन पर गिर कर तड़पने लगी. अजय ने फिर उस के शरीर पर कई वार किए, जिस से सरिता की मौत हो गई.

अपने पिता के हाथों मां को मरता देख कर मासूम तनु जाग गई और डर की वजह से रोते हुए बाहर की तरफ भागने लगी. अजय ने दरवाजे तक पहुंचने से पहले ही उसे पकड़ लिया और उस का सिर दीवार पर पटक दिया.

सिर में लगी चोट से तनु बेहोश हो गई. अजय ने फिर उस का गला घोंट कर उस की भी हत्या कर दी. अजय तनु को मारना नहीं चाहता था लेकिन भेद खुलने के डर से उसे बेटी की हत्या करनी पड़ी. उस ने हत्या के बाद कविता से मोबाइल पर बात की और दोनों की हत्या करने की बात बता दी.

इस के बाद वह बाजार गया और कई जगह जानबूझ कर गया, जिस से वह सीसीटीवी कैमरों में कैद में आ जाए. एक जगह उस ने समोसा खरीद कर भी खाया. इस के बाद वह प्रयागराज चला गया.

वहां वह शाहगंज इलाके में कई उन इलैक्ट्रौनिक सामानों की दुकानों पर गया, जहां सीसीटीवी कैमरे लगे थे. अपने प्रयागराज में होने के सबूत छोड़ कर शाम को वह कौशांबी लौट आया. यहां लौटने के बाद भी कुछ जगहों पर गया.

शाम 6 बजे वह कमरे पर पहुंचा और लाश देख कर शोर मचाने लगा. लेकिन काफी होशियारी के बाद भी वह कविता के साथ कानून के शिकंजे में फंस गया. इंसपेक्टर प्रदीप सिंह ने दोनों आरोपियों को न्यायालय में पेश किया, वहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सुलझ न सकी परिवार की मर्डर मिस्ट्री – भाग 3

फोरैंसिक लैब की जांच में पता चला कि बाथरूम में मिले 3 मोबाइलों में एक वाटरप्रूफ था, लेकिन उस पर पैटर्न लौक था, जिस से वह खुल नहीं सका. पुलिस को दूसरे दिन डा. प्रकाश के घर से 2 मोबाइल और मिले. ये मोबाइल भी बंद थे. इन को भी साइबर एक्सपर्ट के पास भेजा गया. उन के फ्लैट से मिले लैपटौप और आईपैड को जांच के लिए सीआईडी की साइबर लैब भेजा गया.

पुलिस ने अदिति के दोस्तों से भी अलगअलग पूछताछ की. उन्होंने बताया कि अदिति ने उन से नौकरी छूटने की वजह से पापा के तनाव में होने की चर्चा की थी. अदिति के दोस्तों से पुलिस को ऐसी कोई ठोस वजह पता नहीं चली जिस से इस मामले की गुत्थी सुलझने में मदद मिलती.

सन फार्मा कंपनी में पूछताछ में पता चला कि डा. प्रकाश ने स्वेच्छा से नौकरी छोड़ी थी. कंपनी में उन का पद और सैलरी पैकेज काफी अच्छा था. कंपनी में किसी से उन का कोई विवाद भी सामने नहीं आया.

डा. सोनू सिंह के बारे में पुलिस को पता चला कि उन का बौद्ध धर्म से जुड़ाव था. उन्होंने अपनी सोसायटी में बौद्ध धर्म के अनुयाइयों की कम्युनिटी भी बनाई हुई थी. इस कम्युनिटी की वह ग्रुप लीडर थीं. सोसायटी में सोनू सिंह को बोल्ड महिला माना जाता था जबकि प्रकाश सिंह सौम्य स्वभाव के थे.

तीसरे दिन भी काफी माथापच्ची और जांचपड़ताल के बावजूद पुलिस को इस मामले में कोई तथ्य हाथ नहीं लगा. यह जरूर पता चला कि सोनू सिंह, अदिति और आदित्य की हत्या में जिस चाकू का उपयोग किया गया था, वह करीब एक साल पहले डा. प्रकाश सिंह द्वारा ही खरीदा गया था.

अदिति ने उस समय सोप डायनामिक्स स्टार्टअप शुरू किया था. वह घर में कौस्मेटिक व कुछ विशेष साबुन बनाती थी. अदिति ने साबुन व अन्य सामान के टुकड़े करने के लिए यह चाकू पिता से मंगवाया था.

डा. प्रकाश के घर मिले 4 कुत्तों को ले कर भी विवाद हो गया. ये कुत्ते अदिति का दोस्त उस की याद के रूप में सहेज कर अपने पास रखना चाहता था जबकि दूसरी तरफ अदिति की मौसी सीमा अरोड़ा इन कुत्तों को अपने साथ ले जाना चाहती थीं.

विवाद बढ़ने पर यह मामला पीपुल फौर एनिमल संस्था के जरिए सांसद मेनका गांधी तक पहुंच गया. मेनका गांधी के हस्तक्षेप से चारों कुत्तों को पुलिस की निगरानी में नैशनल डौग शेल्टर होम भेज दिया गया.

चौथे दिन नौकरानी जूली से पूछताछ में सामने आया कि सन फार्मा की नौकरी छोड़ने के बाद डा. प्रकाश अधिकांश समय घर पर रहते और यूट्यूब पर वीडियो देखते थे. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि डा. प्रकाश ने शायद यूट्यूब देख कर हत्याकांड की योजना बनाई होगी.

नौकरानी ने बताया कि कुछ दिन पहले फ्लैट में फरनीचर का काम हुआ था. उस दौरान कारपेंटर अपना एक हथौड़ा इसी घर में छोड़ गया था. संभवत: उसी हथौड़े से डा. प्रकाश ने परिवार के 3 सदस्यों की जान ली.

पांचवें दिन पुलिस ने दोनों पक्षों के रिश्तेदारों की मौजूदगी में डा. प्रकाश के घर की तलाशी ली. इस की वीडियोग्राफी भी कराई गई. घर की अलमारियों और लौकरों में रखे दस्तावेजों की भी जांच की गई. हालांकि पुलिस को तलाशी और जांचपड़ताल में ऐसा कोई तथ्य नहीं मिला, जिस से डा. प्रकाश की परेशानी और इस हत्याकांड के पीछे के कारणों का पता चलता.

छठे दिन पुलिस को मोबाइल फोनों की जांच रिपोर्ट मिली. इस में बताया गया कि डा. सोनू व अदिति के मोबाइल में डेटा नहीं मिला. वाट्सऐप चैट व गैलरी से फोटो, वीडियो डिलीट थे. इस से यह नया सवाल खड़ा हो गया कि क्या डा. प्रकाश ने हत्या के बाद पत्नी व बेटी के मोबाइल का डेटा डिलीट किया था. अगर उन्होंने डेटा डिलीट किया था तो उस में ऐसे क्या मैसेज व फोटो थे. रिपोर्ट आने के बाद पुलिस ने इन मोबाइल फोनों के डेटा रिकवर करने के लिए साइबर एक्सपर्ट की मदद ली.

बाद में की गई जांच में पुलिस को ऐसा कोई तथ्य नहीं मिला, जिन से इस मामले में रहस्य की कोई परत उजागर हो पाती. इस बीच 8 जुलाई को डा. प्रकाश के परिजनों ने पुलिस उपायुक्त (पूर्व) सुलोचना गजराज को एक पत्र दे कर इस पूरे मामले को एक साजिश का परिणाम बताया और इस की जांच सीबीआई से कराने की मांग की. परिजनों ने सुसाइड नोट की हस्तलिपि पर भी सवाल उठाए.

डा. प्रकाश की बड़ी बहन के दामाद कौशल का कहना था कि इस वारदात के पीछे जमीन का विवाद भी हो सकता है. इस का कारण है कि उन की मामीजी यानी सोनू सिंह के पिता की वाराणसी की जमीन को ले कर सोनू सिंह और उन की बहन के बीच विवाद था.

पलवल वाले स्कूल की जमीन को ले कर भी कुछ विवाद चल रहे थे. यह जमीन डा. प्रकाश ने अपनी बहन शकुंतला से पैसे उधार ले कर खरीदी बताई गई. परिजनों का यह भी कहना था कि डा. प्रकाश का 2 साल पहले मेदांता अस्पताल में बाइपास औपरेशन हुआ था. औपरेशन से उन की जिंदगी तो बच गई थी, लेकिन वे अंदर से पूरी तरह खोखले हो गए थे.

कौशल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और हरियाणा के मुख्यमंत्री को इस मामले में पत्र लिख कर सुसाइड नोट की हस्तलिपि और दस्तखतों पर भी सवाल उठाए. इस के लिए उन्होंने डा. प्रकाश की ओर से कुछ दिन पहले दिए गए एक चैक की फोटोप्रति भी संलग्न की.

कौशल के अनुसार, सुसाइड नोट पर किए हस्ताक्षर पर डा. प्रकाश के जैसे हस्ताक्षर बनाने का प्रयास किया गया है जबकि वे असली हस्ताक्षर नहीं हैं.

यह बात भी सामने आई कि डा. प्रकाश अपनी ससुराल वालों की वाराणसी की जमीन एकडेढ़ करोड़ रुपए में बेचना चाहते थे. इस जमीन पर सोनू सिंह की बहन भी दावा जता रही थीं. जमीन बेचने के सिलसिले में डा. प्रकाश जल्दी ही बनारस भी जाने वाले थे.

चर्चा यह भी है कि डा. प्रकाश पर बैंकों और रिश्तेदारों का काफी कर्ज था. इस कर्ज को ले कर वह तनाव में थे. गुरुग्राम के मकान की किस्तें भी समय पर नहीं चुकाने की बात सामने आई थी.

सन फार्मा की नौकरी छोड़ने के बाद वह अलग से तनाव में थे. हालांकि कहा यही जा रहा है कि उन की हैदराबाद की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में नई नौकरी की बात हो गई थी. इस के लिए वह 3 जुलाई को फ्लाइट से हैदराबाद भी जाने वाले थे, लेकिन इस से पहले ही यह मामला हो गया.

डा. प्रकाश की मौत के बाद उन की संपत्तियों को ले कर अलगअलग दावे जताने की चर्चा भी शुरू हो गई थी. हालांकि औपचारिक रूप से तो किसी पक्ष ने दावे नहीं किए थे, लेकिन दोनों ही पक्षों के लोग अपनेअपने तरीकों से डा. प्रकाश और उन की पत्नी की संपत्तियों और कर्ज के बारे में पता लगा रहे थे.

कहा जा रहा है कि डा. प्रकाश की अधिकांश संपत्तियां उन की पत्नी सोनू सिंह के नाम से हैं. सोनू की बहन सीमा अरोड़ा ने डा. प्रकाश के कुछ स्कूल खोलने के लिए स्टाफ को कह दिया है.

बहरहाल, डा. प्रकाश सिंह का हंसताखेलता खुशहाल परिवार उजड़ गया. कथा लिखे जाने तक पुलिस को इस मामले में कोई ऐसा सुराग नहीं मिला, जिस के जरिए रहस्य का परदा उठ पाता. डा. प्रकाश ने अपनी जान से ज्यादा प्यारी बेटी और बेटे के अलावा पत्नी को मौत के घाट उतारने के बाद खुद आत्महत्या क्यों कर ली, यह रहस्य सा बन कर रह गया है.

पुलिस को कोई चश्मदीद गवाह भी नहीं मिला. डा. प्रकाश के घर के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों से भी पुलिस कोई सुराग नहीं लगा सकी. ऐसे भी कोई साक्ष्य नहीं मिले कि इस वारदात में किसी बाहरी व्यक्ति का हाथ हो. इन सभी कारणों से वैज्ञानिक प्रकाश के परिवार की हत्या और आत्महत्या का मामला फिलहाल मिस्ट्री बन कर रह गया.

सौजन्य: मनोहर कहानियां

सहनशीलता से आगे : जब पत्नी ने लिया बदला – भाग 3

लवकुश शुक्ला और अविनाश यादव मूलत: उत्तर प्रदेश के निवासी थे. लवकुश काफी समय से के. विश्वनाथ शर्मा और उन की पत्नी को जानता था. वह शर्मा दंपति के पंडरी स्थित दुबे नगर के मकान में बतौर किराएदार रहता था. शुक्ला जिंदगी में कुछ कर गुजरना चाहता था. उस की इच्छा थी कि वह फिल्मों में अभिनय करे.

शुक्ला पुणे स्थित फिल्म इंस्टीट्यूट भी गया था ताकि वहां एडमिशन ले कर अभिनय की बारीकियां सीख सके. लेकिन वहां एडमिशन के लिए उसे 5 लाख रुपयों की जरूरत थी. इसी दरम्यान एक दिन मकान मालिक वमसी लता को उस ने अपनी समस्या बताई और भाग्य का रोना भी रोया.

उस की आवश्यकता को ध्यान में रख कर वमसी लता ने उसे औफर दिया और बोली, ‘‘मैं तुम्हारे लिए पैसों का इंतजाम कर सकती हूं.’’ यह सुन कर लवकुश बहुत खुश हुआ. उस ने कहा, ‘‘दीदी, मैं आप का यह अहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगा.’’

‘‘मगर तुम्हें मेरा एक काम करना होगा.’’ वमसी लता ने कहा.

‘‘बताइए, एक क्या 2 काम करूंगा.’’

‘‘सोच लो, मैं पैसे काम होने पर दूंगी, पहले एडवांस में भी कुछ नहीं.’’

थोड़ी देर सोच कर लवकुश ने कहा, ‘‘ठीक है, मुझे आप पर पूरा भरोसा है, मैं तैयार हूं.’’

यह सुन वमसी लता ने उसे अपने भाई जैसा होने का वास्ता दे कर अपनी तारतार जिंदगी का रोना रोते हुए कहा, ‘‘भैया, मैं सीमा के पापा से हद दर्जे तक परेशान हूं. तुम चाहो तो मुझे उन से मुक्ति दिला सकते हो.’’

‘‘मैं समझा नहीं,’’ लवकुश ने कहा.

‘‘तुम्हें उन को मेरे रास्ते से हटाना होगा.’’ वमसी लता ने कहा तो लवकुश अंदर ही अंदर कांप कर रह गया. लेकिन उस की आंखों के आगे 5 लाख रुपए नाच रहे थे. उसे अभिनेता बनने का अपना ख्वाब पूरा होता दिखाई दिया. इसलिए वह मान गया.

उस ने वमसी लता के साथ बैठ कर फूलप्रूफ योजना बनानी शुरू कर दी. के. विश्वनाथ को कब और कैसे रास्ते से हटाया जाए, दोनों ने उसी दिन से सोचना शुरू कर दिया. लवकुश यह अच्छी तरह जानता था कि वह अकेले यह काम नहीं कर सकता, क्योंकि के. विश्वनाथ उस से बलिष्ठ थे. उन के सामने वह बहुत कमजोर था.

इसलिए उस ने इस काम के लिए अपने नौकर अविनाश यादव से बात करने का निश्चय किया. एक दिन अविनाश ने उस से रुपयों की मांग की, क्योंकि उस की बहन रुकमणी का विवाह होना था और इस के लिए उसे मोटी रकम की जरूरत थी.

बहन की शादी के लिए ली सुपारी

अविनाश की जिंदगी अंधेरों से घिरी लौ की तरह टिमटिमा रही थी. नौकरी कर के वह जैसेतैसे परिवार का भरणपोषण करता था. एक बहन थी, रुकमणी जो विवाह योग्य हो चुकी थी. मां को उस की चिंता रहती थी. अविनाश को बहन के ब्याह के लिए डेढ़ लाख रुपयों की जरूरत थी.

एक दिन दुकान पर अच्छा मूड देख कर उसने मालिक लवकुश से अपना दुखड़ा रो कर मदद मांगी. संयोग से लवकुश तैयार हो गया. मगर उस ने कहा, ‘‘अविनाश, इस के बदले तुम्हें एक काम करना होगा. बोलो कर पाओगे?’’ लवकुश ने उसे पूरी योजना बता दी. उस की योजना सुन कर अविनाश घबराया नहीं बल्कि तैयार हो गया.

लवकुश ने उसे आश्वस्त कर कहा, ‘‘सिर्फ एक आदमी को रास्ते से हटाना है. हटाओ और डेढ़ लाख रुपए ले लो.’’

हालात ने बना दिया हत्यारा

अविनाश इस काम के लिए तैयार था. लवकुश ने अविनाश को के. विश्वनाथ शर्मा के संबंध में एकएक कर सारी बातें समझा दीं. इस के बाद दोनों वमसी लता से मिले. बातचीत में तय हुआ कि रात को वे दोनों आएंगे और विश्वनाथ का काम तमाम कर देंगे.

‘‘कैसे किस तरह?’’ लता ने पूछा तो लवकुश ने अविनाश की तरफ देख कर कहा, ‘‘यह जांबाज लड़का है, ऐसे छोटेमोटे काम इस के बाएं हाथ का खेल है. बस दीदी, आप को घर का दरवाजा खुला रखना है. बाकी सब यह देख लेगा.’’

वमसी लता तैयार हो गई. योजनानुसार उस दिन रात को लगभग एक बजे अविनाश और लवकुश को घर के पीछे वाले दरवाजे से प्रवेश करना था. वमसी को केवल पीछे वाला दरवाजा खुला छोड़ देना था. लेकिन योजना में ऐन वक्त पर परिवर्तन हो गया.

लवकुश ने अविनाश के सामने 2 लाख का औफर रखते हुए कहा, ‘‘अविनाश, यह काम अब तुम अकेले करो, और 2 लाख रुपए ले लो. मैं वहां नहीं जाऊंगा.’’

लवकुश के हाथ खड़े करने पर भी अविनाश पीछे नहीं हटा. बल्कि यह सोच कर खुश हुआ कि अब उसे 2 लाख रुपए मिलेंगे. वह अकेला 5 किलो का लोहे का घन ले कर एक्टिवा से विश्वनाथ शर्मा के घर के पिछवाड़े पहुंच गया.

योजना के मुताबिक वहां दरवाजा खुला होना चाहिए था, लेकिन वह बंद था. अविनाश ने वहीं से लवकुश को मोबाइल पर काल की और दरवाजा बंद होने की जानकारी दी. लवकुश ने कहा, ‘‘तुम वहीं रुको मैं अभी बताता हूं, क्या करना है.’’

लवकुश ने मोबाइल पर वमसी लता से बातचीत की तो उस ने कहा, ‘‘दरवाजा नहीं खुलेगा, अविनाश से कहो, बाउंड्री कूद कर आ जाए.’’ लवकुश ने अविनाश को यह बता दिया.

अविनाश बाउंड्री कूद कर घर में पहुंच गया. फिर वह के. विश्वनाथ के कमरे में घुस गया, जिस का दरवाजा वमसी ने पहले ही खुला छोड़ दिया था.

अविनाश ने देखा के. विश्वनाथ अर्द्धनिद्रा में थे और इधरउधर करवट बदल रहे थे. वह घबरा कर बाहर आ गया तो सामने लता खड़ी मिली, उस ने यथास्थिति बताई. लता ने उसे आश्वस्त किया कि शर्माजी शराब पिए हुए हैं और नशे में हैं. तुम अपना काम कर सकते हो. यह सुन कर अविनाश ने कमरे में घुस कर उन के सिर पर घन से 5-6 वार किए. नींद की वजह से विश्वनाथ अपना बचाव भी नहीं कर सके और चीख कर अचेत हो गए.

अविनाश ने खून से लथपथ विश्वनाथ को देख सोचा कि वह मर गए हैं. इस के बाद वह वहां से निकल गया. घन वह अपने साथ घन लेता गया.

तहकीकात के बाद पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त घन शहर के बूढ़ापारा तालाब के पास से बरामद कर लिया. वहीं से 5 मोबाइल और एक एक्टिवा जब्त की गई.

पुलिस ने मृतक के. विश्वनाथ की हत्या की आरोपी मृतक की पत्नी के. वमसी लता, किराएदार लवकुश शुक्ला और नौकर अविनाश यादव को गिरफ्तार कर लिया.

तीनों के खिलाफ रायपुर के गुढि़यारी थाने में भादंवि की धारा 302, 34 के तहत केस दर्ज किया गया. लवकुश शुक्ला उत्तर प्रदेश के गांव बड़ी के मोहल्ला शुक्लान का रहने वाला था. अविनाश भी उत्तर प्रदेश का ही रहने वाला था. उस का घर जिला भदोही के गांव लोहारा, दुर्गागंज में था. पूछताछ के बाद तीनों आरोपियों को रायपुर कोर्ट के न्यायिक दंडाधिकारी के सामने पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

–  कथा पुलिस सूत्रों से बातचीत के आधार पर

कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

मामा का खूनी सिंदूर : परिवार ही बना निशाना – भाग 4

प्रवींद्र की छेड़छाड़ से संगीता भी रोमांचित हो उठी. उस ने भी अपनी बांहें फैला दीं. इस के बाद कमरे में सीत्कार की आवाजें गूंजने लगीं.उसी समय ऊषा की आंखें खुल गईं. वह बाथरूम जाने को आंगन में आई तो उसे संगीता के कमरे से अजीब सी आवाजें सुनाई दीं. वह जान गई कि कमरे में बेटी के साथ कोई और भी है. वह दबेपांव कमरे में पहुंची और दोनों को रंगरलियां मनाते रंगेहाथ पकड़ लिया. ऊषा ने संगीता की चोटी पकड़ कर खींची और गाल पर तड़ातड़ तमाचे जड़ दिए. उसी समय प्रवींद्र ने बहन ऊषा का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘आज तुझे विरोध बहुत महंगा पड़ेगा.’’

इस के बाद प्रवींद्र और संगीता ने ऊषा को दबोच लिया और कमरे में पड़ी चारपाई पर गिरा कर उस के हाथपैर रस्सी से बांध दिए. फिर वे दोनों उस कमरे में पहुंचे, जहां रमेशचंद्र तख्त पर सो रहे थे. उन दोनों ने मिल कर रमेश के भी हाथपांव रस्सी से बांध दिए. इस के बाद संगीता फावड़ा ले आई.उस ने मां की गरदन पर फावड़े से कई वार किए, जिस से उस की गरदन कट गई और बिस्तर खून से तरबतर हो गया. ऊषा की हत्या करने के बाद दोनों रमेश के पास पहुंचे. वहां प्रवींद्र ने फावड़े से गरदन पर वार कर उसे भी मौत की नींद सुला दिया.

2-2 हत्याओं को अंजाम देने के बाद प्रवींद्र और संगीता ने मिल कर पूरे घर को खंगाला. कमरे में रखे बक्सों में लगे तालों की चाबी से खोला. फिर उस में रखी नकदी व जेवर को अपने कब्जे में कर लिए. इस के बाद दोनों इत्मीनान से घर से फरार हो गए.दूसरे दिन सुबह 10 बजे तक जब रमेशचंद्र के घर में कोई हलचल नहीं हुई तो पड़ोसियों में चर्चा शुरू हुई. इसी बीच पड़ोसी राजू गौतम ने थाना गुरसहायगंज पुलिस को मोबाइल द्वारा सूचना दे दी.सूचना पाते ही कोतवाल नागेंद्र पाठक पुलिस टीम के साथ गौरैयापुर गांव स्थित रमेशचंद्र दोहरे के मकान पर आ गए. उन्होंने पुलिस के साथ घर में प्रवेश किया तो अवाक रह गए. 2 अलगअलग कमरों में ऊषा और रमेशचंद्र की निर्मम हत्या की गई थी.

दोनों के हाथपैर भी बंधे हुए थे. खून से सना फावड़ा कमरे में पड़ा था. जाहिर था कि दोनों की हत्या फावड़े से वार कर के की गई थी. कमरे में रखे बक्सों के ताले खुले पड़े थे, सामान बिखरा था. ऐसा लग रहा था जैसे बदमाशों ने हत्या के बाद लूटपाट भी की थी. घर से मृतक दंपति की जवान बेटी संगीता गायब थी.

शुरू में पुलिस भी हुई गुमराह

कोतवाल नागेंद्र पाठक ने डबल मर्डर की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ ही देर बाद एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह तथा एएसपी के.सी. गोस्वामी भी आ गए. उन्होंने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने जहां घटनास्थल का मुआयना किया वहीं फोरैंसिक टीम ने साक्ष्य जुटाए. पुलिस अधिकारियों ने मौकामुआयना कर दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए कन्नौज भिजवा दिया और हत्या में इस्तेमाल रस्सी व फावड़ा जाब्ते में शामिल कर लिए.

एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह को जांच के बाद लगा कि दोहरे हत्याकांड को अंजाम बदमाशों ने दिया है और उस की बेटी संगीता का अपहरण कर लिया है, अत: उन्होंने इसी दिशा में जांच शुरू कराई.

जांच आगे बढ़ी तो पता चला कि मृतका ऊषा देवी के भाई प्रवींद्र का घर में आनाजाना था. यह भी पता चला कि प्रवींद्र भी घर से फरार है. एक बात और भी चौंकाने वाली पता चली. वह यह कि प्रवींद्र और संगीता, जो रिश्ते में मामाभांजी हैं, के बीच नाजायज रिश्ता था और रमेश इस का विरोध करते थे.
प्रवींद्र और संगीता पुलिस की रडार पर आए तो उन की तलाश शुरू हुई. उन की लोकेशन पता करने के लिए पुलिस ने दोनों के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा दिए. लेकिन मोबाइल बंद होने से उन की लोकेशन नहीं मिल पा रही थी. पुलिस ने उन की खोज दिल्ली, हरियाणा, चंडीगढ़ आदि संभावित स्थानों पर की, लेकिन उन का कुछ पता नहीं चला. तब पुलिस ने दोनों पर 25-25 हजार का ईनाम घोषित कर दिया.

इधर प्रवींद्र और संगीता डबल मर्डर करने के बाद बस द्वारा कानपुर आए. फिर ट्रेन से मुंबई पहुंचे. वहां वे एक हजार रुपए दे कर शमशाद नाम के  आटो ड्राइवर की झोपड़ी में रात भर रुके. फिर वहां से ट्रेन द्वारा हुगली शहर आए. हुगली शहर के भद्रेश्वर थानाक्षेत्र के आरबीएस रोड पर प्रवींद्र ने एक झोपड़ी किराए पर ले ली. झोपड़ी मालकिन नगमा को उस ने बताया कि वे दोनों पतिपत्नी हैं. प्रवींद्र वहां मेहनतमजदूरी कर अपना व संगीता का भरणपोषण करने लगा. धीरेधीरे 3 माह बीत गए.

नए साल में प्रवींद्र ने अपने मजदूर साथी से 500 रुपए में एक मोबाइल फोन खरीदा और उस में अपना सिम कार्ड डाल कर चालू किया. मोबाइल फोन चालू होते ही पुलिस को उस की लोकेशन पता चल गई. उस की लोकेशन हुगली शहर की थी. यह जानकारी जब एसपी अमरेंद्र प्रसाद को मिली तो उन्होंने एक पुलिस टीम हुगली रवाना कर दी. वहां पुलिस ने प्रवींद्र व संगीता को हिरासत में ले लिया.

8 जनवरी, 2020 को थाना गुरसहायगंज पुलिस ने अभियुक्त प्रवींद्र तथा संगीता को जिला अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्यार नहीं वासना के अंधे – भाग 3

सादिक अकसर उसे नशीले पदार्थ मुहैया कराता था. कभीकभार जरूरत पड़ने पर नशीले पदार्थ लेने अनूप रुखसार के घर भी जाता था और जब भी जाता था, तब उस का दिल रुखसार को देख कर बेकाबू होने लगता था, एक तो अधेड़, ऊपर से मामूली शक्लसूरत वाले अनूप को रुखसार पसंद नहीं करती थी इसलिए अनूप की दाल उस के सामने कभी नहीं गली.

सादिक और अनूप की मेल मुलाकातें बढ़ने लगीं और दोनों अकसर साथ बैठ कर नशा भी करने लगे. ऐसे में ही एक दिन जज्बाती हो कर सादिक ने उसे सब कुछ बता दिया कि तलाक के बाद भी वह रुखसार के पास जाता है और सेक्स सुख लेता है.

यह सुनते ही अनूप के खुराफाती दिमाग में यह खयाल आया कि अगर सादिक को शीशे में उतार लिया जाए तो रुखसार के संगमरमरी जिस्म पर फिसलने का मौका मिल सकता है. इतना सोचना था कि वह एकाएक अपने इस नशेड़ी दोस्त पर जरूरत से ज्यादा मेहरबान हो उठा और उस पर दिल खोल कर पैसा खर्च करने लगा. दोनों साथसाथ पार्टी करने लगे.

अनूप का पैसा सादिक के लिए सहूलियत वाली बात थी, इसलिए वह उससे दबने लगा और यही अनूप की मंशा भी थी. फिर एक दिन अनूप ने अपनी दिली ख्वाहिश भी सादिक पर जाहिर कर दी कि उसे भी एक बार रुखसार का सुख चाहिए.

इस पर सादिक तुरंत तैयार हो गया और उसे एक बार रुखसार से हमबिस्तर कराने का वादा भी कर डाला. सादिक का डर यह था कि अगर वह न कहेगा तो अनूप पैसे लुटाना बंद कर देगा और वैसे भी रुखसार अब उस की बीवी नहीं थी.

सादिक ने जब रूख्सार को अनूप की मंशा पूरी करने को कहा तो वह नागिन की तरह फुफकार उठी कि वह उसे कतई पंसद नहीं, चाहे कुछ भी हो जाए वह उस के सामने कभी नहीं बिछेगी. इस पर सादिक को खेल बिगड़ता नजर आया जो यह मान कर चल रहा था कि पैसों की खातिर रुखसार इस पेशकश पर इनकार नहीं करेगी.

अकसर अनूप उससे पूछता रहा कि कब मौज करवा रहे हो और हर बार सादिक उसे हिम्मत बंधाता रहता था कि जल्द ही करवा दूंगा, कोशिश कर रहा हूं तुम सब्र रखो. रुखसार कोई ऐसी वैसी औरत नहीं है, इसलिए मनाने में कुछ वक्त तो लगेगा.

लेकिन वह वक्त कभी नहीं आया जब भी सादिक रुखसार से अनूप को खुश करने की बात कहता तो उस का मूड खराब हो जाता था और वह उसे बुरी तरह दुत्कार देती थी. इसी तरह लंबा वक्त गुजर गया तो अनूप को लगा कि रुखसार के साथ सैक्स करने की उस की ख्वाहिश ख्वाब ही रहेगी.

इसलिए एक दिन उस ने थोड़ी कड़ाई से सादिक से बात की तो दोनों ने एक योजना बना डाली कि जब सीधी अंगुली से घी न निकले तो उसे टेढ़ी कर के घी निकाल लेना चाहिए.

इस योजना में तय हुआ कि सादिक रुखसार को नशे में इतना धुत कर देगा कि उसे होश ही न रहे, फिर अनूप अपनी ख्वाहिश पूरी कर लेगा. अनूप पर रुखसार को पाने की जिद सवार थी इसलिए वह कुछ भी करने के लिए तैयार बैठा था.

योजना के मुताबिक पहली अक्तूबर सादिक रुखसार को नशा पार्टी की बात कह कर उसे अनूप के पत्तीपुरा वाले मकान में ले गया, जहां तीनों ने जम कर नशा किया और जानबूझ कर रुखसार को ज्यादा डोज दी. रुखसार को नशे में डूबते देख सादिक ने उस के साथ शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश शुरू कर दी. नशे में धुत रुखसार भी उत्तेजित हो गई और यह भूल गई कि अनूप भी घर में ही है.

जल्द ही दोनों निर्वस्त्र हो कर एकदूसरे में समाने लगे. यह दृश्य देख कर अनूप की कनपटियां गर्म हो उठीं, गला खुश्क होने लगा और नसों में खून 240 की स्पीड से दौड़ने लगा. रुखसार निर्वस्त्र हो कर बिना किसी शर्मोहया के सादिक से संबंध बना रही थी.

हल्की रोशनी में उस का दूधिया बदन अनूप की आंखों के सामने था. यह सोच कर उस का दिल धाड़धाड़ करता सीने के बाहर आने को बेताब हुआ जा रहा था कि सादिक के फारिग होने के बाद उस का नंबर है.

थोड़ी देर बाद सादिक और रुखसार अलग हुए तो वासना की आग में जलता अनूप रुखसार के नजदीक पहुंच गया और उस से संबंध बनाने की कोशिश करने लगा. रुखसार नशे में तो थी लेकिन इतनी भी नहीं कि यह न समझ पाती कि अनूप क्या करने की कोशिश कर रहा है.

रुखसार को अनूप की यह हरकत बेहद नागवार गुजरी तो वह गुस्से से भर उठी और नशे में ही एक जोरदार लात अनूप को मार दी. लड़खड़ाए अनूप ने फिर भी हिम्मत नहीं हारी और वह फिर उस पर छा जाने की कोशिश करने लगा, लेकिन हाथपैर मारती रुखसार ने उसे कामयाब नहीं होने दिया.

अब तक चुपचाप तमाशा देख रहे सादिक को भी गुस्सा आ गया और वह अनूप की मदद के लिए आगे गया. उस ने सख्ती से रुखसार के दोनों पैर पकड़ लिए लेकिन रुखसार में जाने कहां से इतनी हिम्मत और ताकत आ गई थी कि उस ने फिर विरोध किया, जिस से अनूप की मंशा अधूरी रह गई.

वासना में डूबे आदमी की हालत क्या हो जाती है, यह उस वक्त अनूप की हालत देख कर समझी जा सकती थी, जो कभी ताकत से रुखसार को हासिल करने की कोशिश कर रहा था और कामयाब न होने पर उस के सामने गिड़गिड़ा भी रहा था कि बस एक बार…

लेकिन जब उसे समझ आ गया कि रुखसार कैसे भी नहीं मानने वाली तो गुस्से में आ कर उस ने रुखसार का गला दबाना शुरू कर दिया, जिस से कुछ ही देर में वह लाश में तब्दील हो गई.

रुखसार के दम तोड़ते ही अनूप ने सादिक की तरफ देखा तो वह बोला, ‘‘तू चिंता मत कर मैं इस की लाश के छोटेछोटे टुकड़े कर दूंगा, तू बस इन्हें ठिकाने लगा देना.’’

ऐसा हुआ भी सादिक ने अपनी बीवी के लाश के टुकड़ेटुकड़े कर डाले, जिन्हें थैलों में भर कर अनूप नाले के पास फेंक आया. चूंकि एक दिन में यह काम मुमकिन नहीं था इसलिए टुकड़ों को ठिकाने लगाने में 2 दिन लग गए.

पुलिस की जांच में यह सब कुछ उस वक्त उजागर हो गया जब एक सीसीटीवी फुटेज में अनूप थैला ले जाते तो दिखा लेकिन वापस लौटते वक्त उस के हाथ खाली थे. दोनों एक एक कर गिरफ्तार हुए तो पुलिस की सख्ती के सामने उन्होंने सारी कहानी सुना डाली.

इस तरह रुखसार की कहानी और जिंदगी दोनों खत्म हो गए. अपने अंजाम की एक हद तक वह खुद भी जिम्मेदार थी. शादी के बाद वह पति की कमजोरी से समझौता कर उसे कामधंधा करने को तैयार कर लेती तो शायद इस तरह मरने से बच जाती.

सादिक भी कम गुनहगार नहीं जो अपने निकम्मेपन के चलते नशे के कारोबार और लत में अच्छाबुरा सब कुछ भुला कर अपनी ही तलाकशुदा बीवी को दूसरे के हवाले करने को न केवल तैयार हो गया, बल्कि इस के लिए उस ने अनूप की पूरी मदद भी की.

पुलिस ने घटनास्थल से वह धारदार चाकू और सुपारी काटने का सरौता भी बरामद कर लिया, जिस से सादिक ने रुखसार के जिस्म के टुकड़े किए थे. रुखसार की कान की बालियां भी बरामद हो गईं. घटनास्थल पर उस का खून भी फोरैंसिक जांच के लिए भेजा गया. अब दोनों जेल में हैं और तय है उन्हें सजा होगी, क्योंकि जुर्म वे स्वीकार कर चुके हैं और सिलसिलेवार उस की कहानी भी सुना चुके हैं.

अनूप शायद ही कभी समझ पाए कि त्रियाचरित्र को त्रियाचरित्र क्यों कहा जाता है. जो रुखसार उस की मंशा पूरी करने को राजी नहीं हुई तो नहीं हुई. उसे मरना गवारा था, लेकिन अपनी मरजी के खिलाफ उस के साथ हमबिस्तर होना नहीं. नशे की लत आदमी से क्या कुछ नहीं करवा देती, यह भी इस वारदात से समझ आता है.