
विजय के साथी ने आंखों से कोई इशारा किया तो विजय ने प्रीति की ओर देखते हुए कहा, ‘‘प्रीति, तुम थोड़ी देर के लिए बाहर चली जाओ. हमें एक जरूरी बात करनी है.’’
विजय की इस बात पर प्रीति हैरान रह गई. उस की समझ में नहीं आया कि ऐसी कौन सी बात है, जो आधी रात को होनी है, सुबह नहीं हो सकती. बात करने का यह भी कोई समय है.
प्रीति उतनी रात को बाहर नहीं जाना चाहती थी, लेकिन विजय जिद पर अड़ गया. आधी रात को कोई तमाशा न खड़ा हो, यह सोच कर प्रीति गुस्से से पैर पटकती हुई बाहर निकल गई. प्रीति कमरे से बाहर निकली ही थी कि एक धमाका हुआ. वह गोली चलने की आवाज थी. गोली चलने की आवाज सुन कर वह तुरंत लौट पड़ी. वह कमरे के दरवाजे पर ही पहुंची थी कि अंदर से वह लड़का तेजी से प्रीति को धक्का दे कर निकल गया. उस के हाथ में पिस्तौल थी. पिस्तौल देख कर ही वह सारा मामला समझ गई.
तभी एक धमाका ऊपर हुआ. उस ने ऊपर की ओर देखा तो सीढि़यों से उस का दूसरा साथी उतर रहा था. दोनों लड़के नीचे मिले और बाहर गली में खड़े उस के स्कूटर को स्टार्ट किया. पीछे वाले लड़के ने प्रीति को पिस्तौल दिखा कर कहा, ‘‘हम लोगों के जाने तक चुप रहना. अगर शोर मचाया तो तुझे भी गोली मार दूंगा.’’
दोनों लड़के उसी के स्कूटर से चले गए. प्रीति असमंजस की स्थिति में किसी बुत की तरह खड़ी यह सब देखती रही. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. लड़कों के जाने के बाद वह भाग कर कमरे में गई. अंदर की हालत देख कर उस की सांस थम सी गई. बेड पर उस के पति की खून से लथपथ लाश पड़ी थी. उस के सीने से खून बह रहा था. यह देख कर उस के होश उड़ गए.
प्रीति चीखती चिल्लाती हुई मदद के लिए ऊपर के कमरे की ओर भागी. हड़बड़ाहट में उसे खयाल ही नहीं रहा कि ऊपर भी एक धमाका हुआ था. बेड पर पड़ी नरेश की लाश देख कर उसे उस धमाके की याद आ गई. नरेश की लाश उसी तरह पड़ी थी, जिस तरह विजय की लाश पड़ी थी. 2-2 लाशें देख कर प्रीति पागलों की तरह मदद के लिए चीखने लगी.
प्रीति का चीखनाचिल्लाना सुन कर आसपास वाले अपनेअपने घरों से बाहर आ गए, लेकिन हत्यारे तो कब के भाग चुके थे. पड़ोसी प्रीति को सांत्वना देने लगे.
इतनी जानकारी मिलने के बाद मैं ने प्रीति से हत्यारों का हुलिया जानना चाहा तो उस ने बताया, ‘‘दोनों की उम्र 30 साल के आसपास रही होगी. उन की लंबाई ठीकठाक थी. उन के सिर के बाल छोटेछोटे थे. एक ने जींस पर शर्ट पहन रखी थी तो दूसरे ने टीशर्ट.’’
प्रीती से पूछताछ के बाद एक बार फिर मैं ने प्रीति के पड़ोसियों से पूछताछ की. पड़ोसियों ने बताया था कि आधी रात को गोलियों के चलने की आवाज से उन की आंखें खुल गई थीं. उस के बाद स्कूटर स्टार्ट होने की आवाज आई थी. स्कूटर के चले जाने के कुछ देर बाद प्रीति के चीखनेचिल्लाने की आवाज आई तो सभी घर से बाहर आ कर उस की ओर दौड़ पड़े थे.
लुधियाना का मुंडियां कलां अभी नया बस रहा मोहल्ला था. इसलिए वहां के ज्यादातर प्लौट खाली पड़े थे. लेकिन यह मोहल्ला सुनसान भी नहीं था. प्रीति जिस गली नंबर 3 के मकान में रहती थी, उस गली में कोई भी प्लौट खाली नहीं था. मैं ने इंचार्ज सबइंसपेक्टर वरनजीत सिंह और हेडकांस्टेबल हरभजन सिंह को गुप्तरूप से इस मामले की जांच करने का आदेश दिया.
अब तक की जांच से यह पता चल गया था कि हत्यारे मारे गए लोगों की जानपहचान के थे. लेकिन बाद में जो जानकारियां मिलीं, वे चौंकाने वाली थीं. पड़ोसियों ने बताया था कि प्रीति का असली नाम कमलजीत कौर था. पतिपत्नी में लगभग रोज ही झगड़ा होता था. लेकिन वे इस झगड़े की वजह नहीं बता सके थे. मैं ने अंदाजा लगाया कि झगड़े की वजह नरेश भी हो सकता था, क्योंकि वह शुरू से ही उन दोनों के साथ रह रहा था.
पड़ोसियों ने यह भी बताया था कि विजय और नरेश कोई खास कामधंधा नहीं करते थे. इस के बावजूद उन के खर्च शाही थे. इस का अंदाजा तो उन के घर को देख कर भी लगाया जा सकता था. क्येंकि घर में सुखसुविधा का हर सामान मौजूद था. इस का मतलब यह हुआ कि कहने को वे डोरविंडो फिटिंग का काम करते थे, लेकिन उन का असली काम कुछ और ही था. उन का रहनसहन, खानपान, पहनावा और खर्च देख कर कहीं से भी नहीं लगता था कि वे मेहनतमजदूरी करने वाले साधारण लोग थे.
बहरहाल, अब तक मेरी और सबइंसपेक्टर वरनजीत सिंह की जांच एवं पड़ोसियों से मिली जानकारी से यही नतीजा निकल रहा था कि इस दोहरे हत्याकांड की वजह कहीं न कहीं से अवैध संबंध हैं, क्योंकि अब तक यह स्पष्ट हो गया था कि ये हत्याएं लूटपाट या आपसी रंजिश की वजह से नहीं हुई थीं. अगर ये हत्याएं रंजिश की वजह से हुई होतीं तो हत्यारे प्रीति को भी जिंदा न छोड़ते.
क्योंकि कोई भी अपराधी यह कभी नहीं चाहेगा कि उस के किए अपराध का कोई चश्मदीद गवाह जिंदा रहे. यह सोचने वाली बात थी कि घर के 2 लोगों की हत्या कर के हत्यारे प्रीति को जिंदा क्यों छोड़ गए? यह पता लगाना जरूरी था. क्योंकि इसी के पीछे विजय और नरेश की हत्या का रहस्य छिपा था. इसी बात को ध्यान में रख कर मैं ने अपनी जांच आगे बढ़ाई.
मैं ने कुछ विश्वसनीय और तेजतर्रार पुलिस वालों की एक टीम बना कर प्रीति के बारे में पता लगाने के साथ अपने कुछ मुखबिरों की भी मदद ली. टीम को मैं ने मारे गए विजय और नरेश के कामधंधे एवं उन के चरित्र के बारे में भी पता करने को कहा था. आखिर मेहनत रंग लाई और कुछ ही दिनों में जो नतीजा सामने आया, वह चौंकाने वाला था. मजे की बात यह थी कि इस दोहरे हत्याकांड की साजिश रचने वाली खुद प्रीति उर्फ कमलजीत कौर ही थी.
मेरे कहने पर सबइंसपेक्टर वरनजीत सिंह प्रीति को थाने ले आए. मैं ने उस से पूछताछ शुरू की तो वह उस हर बात से मना करती रही, जो मैं ने अपने सूत्रों से पता किया था. मैं ने उस पर दबाव बनाने की कोशिश की तो वह पुलिस को बुराभला कहते हुए बोली, ‘‘मेरे ही पति की हत्या हुई है. आप लोग हत्यारों को ढूंढ़ने के बजाय मुझे ही दोषी ठहराने पर तुले हैं.’’
जब मुझे लगा कि सीधी अंगुली से घी निकलने वाला नहीं है तो मैं ने पुलिसिया दांव आजमाने का मन बनाया. मैं ने उसे महिला पुलिस जसबीर कौर और सिमरन कौर के हवाले कर दिया. फिर तो थोड़ी ही देर में प्रीति अपना अपराध स्वीकार कर के इस दोहरे हत्याकांड की सच्चाई बताने को तैयार हो गई. इस के बाद उस ने विजय और नरेश की हत्याओं के पीछे की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी:
प्रीति उर्फ कमलजीत कौर मूलरूप से हरियाणा के करनाल की रहने वाली थी. उस के परिवार में मातापिता के अलावा एक भाई जोगा सिंह था. मातापिता का नाम बताना इसलिए उचित नहीं है, क्योंकि वे शरीफ, सज्जन और इज्जतदार लोग हैं. जोगा सिंह और प्रीति, दोनों बचपन से उच्च महत्त्वाकांक्षी और स्वच्छंद प्रवृत्ति के थे. मौजमस्ती में डूबे रहने की वजह से दोनों ही ज्यादा पढ़लिख नहीं सके तो अपनी महत्त्वाकांक्षा पूरी करने के लिए अपराधियों से संबंध बना लिए और अपहरण, लूटपाट, डकैती और हत्याओं जैसे जघन्य अपराधों को अंजाम देने लगे.
इलाके की गश्त से लौटते लौटते मुझे सुबह के 4 बज गए थे. थाने आते ही मैं ने एक सिपाही से चाय बना कर लाने को कहा. पूरी रात गश्त करने की वजह से काफी थकान महसूस हो रही थी, इसलिए कमर सीधी करने की गरज से मैं रेस्टरूम में पड़े बेड पर लेट गया.
सिपाही चाय बना कर लाता, उस के पहले ही मुंशी ने मेरे पास आ कर कहा, ‘‘सर, अभीअभी मुंडियां चौकी से वायलैस संदेश आया है कि गुरु तेगबहादुर नगर की गली नंबर-3 में किसी की हत्या कर दी गई है.’’
चूंकि संदेश स्पष्ट नहीं था, इसलिए अधिक जानकारी नहीं मिल सकी थी. लेकिन उस के बाद चौकीइंचार्ज सबइंसपेक्टर वरनजीत सिंह ने फोन कर के मुझे जल्दी घटनास्थल पर पहुचंने को कहा है. मुंशी अपना काम कर के चला गया था. हत्या की जानकारी मिलने पर चाय पीने का होश कहां रहा. चाय की बात भूल कर मैं उठा और परिसर में खड़ी जीप पर सवार हो कर ड्राइवर से मुंडिया चौकी की ओर चलने को कहा. मेरे जीप पर सवार होते ही मेरे साथ गश्त कर रहे सिपाही भी जीप पर सवार हो गए थे. सब के सवार होते ही जीप चल पड़ी थी.
मुंडिया चौकी, लुधियाना-चंडीगढ़ रोड पर मुंडियां गांव से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर थी. सड़क से गांव जाने वाली टूटीफूटी सड़क पर हम हिचकोले खाते हुए लगभग 25 मिनट में मुंडिया चौकी पहुंचे. चौकी का मुंशी हेडकांस्टेबल सुखविंदर सिंह चौकी पर ही मिल गया था. उसे साथ ले कर मैं घटनास्थल पर जा पहुंचा.
चौकीइंचार्ज वरनजीत सिंह और हेडकांस्टेबल हरभजन सिंह वहां पहले ही पहुंच गए थे. जिस घर में वारदात हुई थी, उस के सामने काफी भीड़ जमा थी. उन्हीं लोगों के बीच 24-25 साल की एक खूबसूरत औरत दहाड़े मार कर रो रही थी. पूछने पर पता चला कि इस का नाम प्रीति है और इसी के पति की हत्या हुई है.
‘‘जिस की हत्या हुई है, उस का नाम क्या है?’’ मैं ने सबइंसपेक्टर वरनजीत से पूछा तो उस ने बताया, ‘‘सर, एक नहीं, 2 लोग मारे गए हैं. यह महिला रो रही है, इस के पति का नाम विजय कुमार था. दूसरा उस का साथी नरेश था. उस की लाश ऊपर के कमरे में पड़ी है.’’
एक ही मकान में 2-2 हत्याओं की बात सुन कर मैं चकरा गया. प्रीति का रोरो कर बुरा हाल था. वह छाती पीटपीट कर रो रही थी. आसपड़ोस की औरतें उसे संभालने की कोशिश कर रही थीं. फिलहाल वह कुछ बताने की स्थिति में नहीं थी, इसलिए मैं ने मोहल्ले वालों से घटना के बारे में पूछना शुरू किया. उन लोगों ने बताया कि 2 गोलियां चली थीं.
उस के बाद प्रीति गली में खड़ी हो कर चिल्ला रही थी, ‘‘मार दिया रे, मेरे पति को गोली मार दिया रे… पकड़ो… गोली मार कर वे भागे जा रहे है.’’
उस की चीखपुकार सुन कर ही लोग बाहर आए थे. मैं उन लोगों से जानना चाहता था कि गोली मारने वाले कौन थे, कहां से आए थे, उन्होंने दोनों को गोली क्यों मारी? लेकिन इस बारे में आसपड़ोस वाले कुछ नहीं बता सके थे. इस घटना की सूचना अधिकारियों को देने के साथ सुबूत जुटाने के लिए मैं ने क्राइम टीम को भी घटनास्थल पर बुला लिया. चौकीइंचार्ज वरनजीत सिंह के साथ मैं ने घटनास्थल और लाशों का बारीकी से निरीक्षण किया.
लगभग 35-40 गज का वह 2 मंजिला मकान था. भूतल पर एक कमरा, रसोई, टायलेट था, तो ऊपर वाली मंजिल पर सिर्फ एक कमरा और उस के सामने बरामदा बना हुआ था. मारा गया विजय कुमार पत्नी प्रीती के साथ भूतल पर रहता था. ऊपर वाले कमरे में उस का दोस्त नरेश अकेला ही रहता था. वह विजय के साथ ही काम करता था और उस का खानापीना भी उसी के साथ होता था.
विजय कुमार की लाश नीचे वाले कमरे में बेड पर पड़ी थी. वह 26-27 साल का अच्छाखासा जवान था. उस के सीने पर एक सुराख था, जिस से उस समय तक खून रिस रहा था. सीने के उस सुराख को देख कर लग रहा था कि हत्यारे ने उस पर एकदम करीब से गोली चलाई थी.
मैं ने कमरे में एक नजर डाली. कमरे का सारा सामान यथावत था. किसी भी चीज के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं हुई थी. अच्छी तरह निरीक्षण करने के बाद भी वहां से ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला, जिस से हत्यारों तक पहुंचने में मदद मिलती.
इस के बाद मैं सबइंसपेक्टर वरनजीत सिंह के साथ ऊपर वाले कमरे में गया. उस कमरे का हाल भी लगभग नीचे वाले कमरे जैसा ही था. नरेश की उम्र भी 26-27 साल थी. उस की भी सीने में गोली मर कर हत्या की गई थी. कमरे में पड़े बेड के पास ही 3 कुरसियां और एक टेबल रखी थी. टेबल पर कांच के 4 खाली गिलास, बीयर की 4 खाली बोतलें, एक शराब की खाली बोतल, पानी का जग और एक प्लेट रखी थी, जिस में शायद खानेपीने का कोई सामान रखा गया था. इस का मतलब था कि हत्याएं होने से पहले सब ने एकसाथ बैठ कर शराब पी थी.
मेरे कहने पर वरनजीत सिंह ने वह सारा सामान कब्जे में ले लिया. क्राइम टीम ने भी अपना काम निबटा लिया तो अन्य औपचारिक काररवाई पूरी कर के मैं ने दोनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भिजवा दीं. इस के बाद थाने लौट कर मैं ने अज्ञात लोगों के खिलाफ इस मामले का मुकदमा दर्ज करा कर जांच शुरू कर दी.
प्रीति का बयान लेने की गरज से उसी दिन दोपहर को मैं उस के घर पहुंचा. सांत्वना दे कर मैं ने उस से पूरी घटना के बारे में विस्तार से बताने को कहा.
प्रीति गुरु तेगबहादुर नगर की गली नंबर 3 निहाल सिंह वाली मुंडियां में स्थित मकान में अपने पति विजय कुमार के साथ किराए पर रहती थी. विजय कुमार ने वह पूरा मकान किराए पर ले रखा था. इसी मकान के ऊपर वाले कमरे में उस का दोस्त नरेश रहता था.
विजय अपने साथी नरेश के साथ मकानों और औफिसों में एल्युमिनियम की खिड़कीदरवाजे लगाने का काम करता था. काम न होने की वजह से उस दिन सुबह से ही दोनों घर पर थे. प्रीति एक ब्यूटीपार्लर में काम करती थी. उस दिन उस की साप्ताहिक छुट्टी थी, इसलिए वह भी घर पर थी.
करीब 3 बजे विजय ने प्रीति से कहा, ‘‘तुम 2-3 घंटे के लिए ब्यूटीपार्लर वाली अपनी सहेली के यहां चली जाओ. बाहर से मेरे कुछ दोस्त आ रहे हैं. उन से हमें कुछ व्यक्तिगत बातें करनी हैं, जो तुम्हारे सामने नहीं हो सकतीं.’’
विजय कुमार के कहने पर प्रीति अपनी सहेली के घर चली गई. उसी के साथ विजय और नरेश भी स्कूटर से अपने आने वाले दोस्तों को लेने के लिए समराला चौक की ओर रवाना हो गए थे. शाम 7 बजे के आसपास प्रीति वापस आई तो ऊपर वाले कमरे से बातचीत और हंसने की आवाजें आ रही थीं. प्रीति ने ऊपर जा कर कमरे में झांक कर देखा तो विजय और नरेश के साथ 2 लड़के बैठे थे. सब शराब पीते हुए आपस में हंसीमजाक कर रहे थे.
विजय के साथ बैठे उन लड़कों को प्रीति ने इस के पहले कभी नहीं देखा था. उसे देख कर विजय उठा और उस के पास आ कर बोला, ‘‘अच्छा हुआ तुम आ गईं. मैं तुम्हें फोन करने वाला था. तुम नीचे जाओ और सभी के लिए खाने का इंतजाम करो.’’
प्रीति नीचे आ गई और खाना बनाने लगी. 10 बजे तक उस का खाना बन गया तो वह बेड पर लेट गई, क्योंकि अभी तक ऊपर उन लोगों की महफिल जमी हुई थी. रात करीब 11 बजे विजय ने प्रीति से खाना लगाने को कहा तो उस ने खाना लगा दिया. खाना खा कर नरेश और बाहर से आए दोनों लड़के ऊपर वाले कमरे में सोने चले गए तो विजय और प्रीति नीचे वाले कमरे में लेट गए.
नशे में होने की वजह से विजय तुरंत सो गया, लेकिन प्रीति को नींद नहीं आ रही थी. लगभग आधे घंटे बाद विजय के दोनों दोस्तों में से एक ने नीचे आ कर कमरे का दरवाजा खटखटाया. प्रीति ने सोचा किसी को पानी वगैरह चाहिए, इसलिए उस ने दरवाजा खोल दिया. विजय का वह दोस्त धीरे से अंदर आ गया और कमरे में पड़े बेड पर बैठ गया. खटर पटर से विजय की भी आंख खुल गई थी. दोस्त को देख कर वह भी उठ कर बैठ गया.
शिवचरन खून का घूंट पी कर रह गया. उस समय उस ने न तो नीलम से कुछ कहा और न ही जगराम सिंह से. लेकिन उस के हावभाव से नीलम समझ गई कि उस के मन में क्या चल रहा है. उस ने अपने भयभीत चेहरे पर मुसकान लाने की कोशिश तो बहुत की, लेकिन तनाव में होने की वजह से सफल नहीं हो पाई.
शिवचरन सोच ही रहा था कि वह क्या करे, तभी जगराम जम्हुआई लेते हुए उठा और शिवचरन को देख कर बोला, ‘‘अरे तुम इतनी जल्दी कैसे आ गए, तबीयत तो ठीक है?’’
शिवचरन ने जगराम सिंह के चेहरे पर नजरें जमा कर दबे स्वर में कहा, ‘‘तबीयत तो ठीक है, लेकिन दिमाग ठीक नहीं है.’’
इतना कह कर ही शिवचरन बाहर चला गया. उस ने जिस तरह यह बात कही थी, उसे सुन कर जगराम ने वहां रुकना उचित नहीं समझा और चुपचाप बाहर निकल गया. उस के जाते ही शिवचरन वापस लौटा और नीलम की चोटी पकड़ कर बोला, ‘‘बदलचन औरत, इस उम्र में तुझे यह सब करते शरम भी नहीं आई? वह भी उस आदमी के साथ जो तेरा भाई लगता है.’’
नीलम की चोरी पकड़ी गई थी, इसलिए वह कुछ बोल नहीं पाई. गुस्से में तप रहे शिवचरन ने नीलम को जमीन पर पटक दिया और लात घूसों से पिटाई करने लगा. नीलम चीखतीचिल्लाती रही, लेकिन शिवचरन ने उसे तभी छोड़ा, जब वह उसे मारते मारते थक गया.
इस के बाद शिवचरन नीलम पर नजर रखने लगा था. उस ने बेटों से भी कह दिया था कि जब भी मामा घर आए, वे उस से बताएं. जिस दिन शिवचरन को पता चलता कि जगराम आया था, उस दिन शिवचरन नीलम पर कहर बन कर टूटता था. अब जगराम और नीलम काफी सावधानी बरतने लगे थे. वह तभी नीलम से मिलने आता था, जब उसे पता चलता था कि घर पर न बेटे हैं और न शिवचरन.
इसी बात की जानकारी के लिए जगराम सिंह ने नीलम को एक मोबाइल फोन खरीद कर दे दिया था. इस से दोनों की रोजाना बातें तो होती ही रहती थीं, इसी से मिलने का समय भी तय होता था. एक दिन शिवचरन ने नीलम को जगराम से बातचीत करते पकड़ लिया तो मोबाइल फोन छीन कर पटक दिया. लेकिन अगले ही दिन जगराम ने उसे दूसरा मोबाइल फोन खरीद कर दे दिया.
काफी प्रयास के बाद भी शिवचरन नीलम और जगराम को अलग नहीं कर सका तो उस ने जगराम के घर जा कर उस की पत्नी लक्ष्मी से सारी बात बता दी. इस के बाद जगराम के घर कलह शुरू हो गई. यह कलह इतनी ज्यादा बढ़ गई कि लक्ष्मी ने बच्चों के साथ आत्मदाह करने की धमकी दे डाली.
पत्नी की इस धमकी से जगराम डर गया. उस ने पत्नी से वादा किया कि अब वह नीलम से संबंध तोड़ लेगा. उस ने नीलम से मिलना कम कर दिया तो इस से नीलम नाराज हो गई. इधर उस ने पैसों की मांग भी अधिक कर दी थी, जिस से जगराम को परेशानी होने लगी थी.
एक ओर जगराम सिंह अपनी पत्नी और बच्चों को छोड़ नहीं सकता था. दूसरी ओर अब नीलम से भी पीछा छुड़ाना आसान नहीं रह गया था. वह बदनाम करने की धमकी देने लगी थी. उस की धमकी और मांगों से तंग आ कर जगराम सिंह ने नीलम से पीछा छुड़ाने के लिए अपने साले लक्ष्मण के साथ मिल कर उसे खत्म करने की योजना बना डाली.
संयोग से उसी बीच नीलम ने बच्चों की ड्रेस, फीस, कापीकिताब और घर के खर्च के लिए जगराम से 10 हजार रुपए मांगे. जगराम ने कहा कि पैसों का इंतजाम होने पर वह उसे फोन से बता देगा.
24 जुलाई, 2014 की शाम 4 बजे जगराम सिंह ने नीलम को फोन किया कि पैसों का इंतजाम हो गया है, वह श्यामनगर चौराहे पर आ कर पैसे ले ले. फोन पर बात होने के बाद नीलम ने बेटों से कहा कि वह उन की ड्रेस लेने दर्जी के पास जा रही है और उधर से ही वह घर का सामान भी लेती आएगी.
नीलम श्यामनगर चौराहे पर पहुंची तो जगराम अपने साले लक्ष्मण सिंह के साथ कार में बैठा था. नीलम को भी उस ने कार में बैठा लिया. कार चल पड़ी तो नीलम ने जगराम से पैसे मांगे. लेकिन उस ने पैसे देने से मना कर दिया. तब नीलम नाराज हो कर उसे बदनाम करने की धमकी देने लगी.
नीलम की बातों से जगराम को भी गुस्सा आ गया. वह उस से छुटकारा तो पाना ही चाहता था, इसलिए पैरों के नीचे रखी लोहे की रौड निकाली और नीलम के सिर पर पूरी ताकत से दे मारा. उसी एक वार में नीलम लुढ़क गई. इस के बाद जगराम ने नीलम की साड़ी गले में लपेट कर कस दी. नीलम मर गई तो चाकू से उस के चेहरे को गोद दिया.
जगराम अपना काम करता रहा और लक्ष्मण कार चलाता रहा. चलती कार में नीलम की बेरहमी से हत्या कर के जगराम और लक्ष्मण ने देर रात उस की लाश को नौबस्ता ले जा कर हाईवे के किनारे फेंक दिया और खुद कार ले कर अपने घर चले गए.
पूछताछ के बाद 10 जुलाई, 2014 को थाना नौबस्ता पुलिस ने अभियुक्त सबइंसपेक्टर जगराम सिंह को कानपुर की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उस की जमानत नहीं हुई थी. उस का साला लक्ष्मण फरार था. पुलिस उस की तलाश में जगहजगह छापे मार रही थी.
— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
जगराम सिंह ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया तो थाना नौबस्ता पुलिस ने शिवचरन सिंह भदौरिया की ओर से नीलम की हत्या का मुकदमा सबइंसपेक्टर जगराम सिंह और उस के साले लक्ष्मण सिंह के खिलाफ दर्ज कर लिया. इस के बाद जगराम सिंह ने नीलम की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह जिस्म के नाजायज रिश्तों में जिंदगी लेने वाली थी.
उत्तर प्रदेश के जिला फतेहपुर के कस्बा खागा के रहने वाले राम सिंह के परिवार में पत्नी चंदा के अलावा 2 बेटे पप्पू, बब्बू और बेटी नीलम उर्फ पिंकी थी. राम सिंह पक्का शराबी था. अपनी कमाई का ज्यादा हिस्सा वह शराब में उड़ा देता था. बाप की देखा देखी बड़े बेटे पप्पू को भी शराब का शौक लग गया. जैसा बाप, वैसा बेटा. पप्पू कुछ करता भी नहीं था.
नीलम उर्फ पिंकी राम सिंह की दूसरे नंबर की संतान थी. वह सयानी हुई तो राम सिंह को उस की शादी की चिंता हुई. उस के पास कोई खास जमापूंजी तो थी नहीं, इसलिए वह इस तरह का लड़का चाहता था, जहां ज्यादा दानदहेज न देना पड़े.
उस ने तलाश शुरू की तो जल्दी ही उसे कानपुर शहर के थाना चकेरी के श्यामनगर (रामपुर) में किराए पर रहने वाला शिवचरन सिंह भदौरिया मिल गया. शिवचरन सिंह शहर के मशहूर होटल लिटिल में चीफ वेटर था. राम सिंह को शिवचरन पसंद आ गया. उस के बाद अपनी हैसियत के हिसाब से लेनदेन कर के उस ने नीलम की शादी शिवचरन सिंह के साथ कर दी.
नीलम जैसी खूबसूरत पत्नी पा कर शिवचरन बेहद खुश था. से समय गुजरने लगा. समय के साथ नीलम 2 बेटों सचिन और शिवम की मां बनी. बच्चे होने के बाद खर्च तो बढ़ गया, जबकि आमदनी वही रही. शिवचरन को 5 हजार रुपए वेतन मिलता था, जिस में से 2 हजार रुपए किराए के निकल जाते थे, हजार, डेढ़ हजार रुपए नीलम के फैशन पर खर्च हो जाते थे. बाकी बचे रुपयों में घर चलाना मुश्किल हो जाता था. इसलिए घर में हमेशा तंगी बनी रहती थी.
पैसों को ले कर अक्सर शिवचरन और नीलम में लड़ाईझगड़ा होता रहता था. रोजरोज की लड़ाई और अधिक कमाई के चक्कर में शिवचरन ने नीलम की ओर ध्यान देना बंद कर दिया. पत्नी की किचकिच की वजह से वह तनाव में भी रहने लगा. इस सब से छुटकारा पाने के लिए वह शराब पीने लगा. संयोग से उसी बीच शिवचरन के घर उस के बड़े भाई के चचेरे साले यानी नीलम की जेठानी प्रीति के चचेरे भाई जगराम सिंह का आनाजाना शुरू हुआ.
जगराम सिंह अपने परिवार के साथ बर्रा कालोनी में रहता था. वह हेडकांस्टेबल था, लेकिन इधर प्रमोशन से सबइंस्पेक्टर हो गया था. उस की ड्यूटी लखनऊ में दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री सुदीप रंजन सेन के यहां थी.
नीलम जगराम सिंह की मीठीमीठी बातों और अच्छे व्यवहार से काफी प्रभावित थी. एक तरह से नीलम उस की बहन थी, लेकिन 2 बच्चों की मां होने के बावजूद नीलम की देहयष्टि और सुंदरता ऐसी थी कि किसी भी पुरुष की नीयत खराब हो सकती थी. शायद यही वजह थी कि भाई लगने के बावजूद जगराम सिंह की भी नीयत उस पर खराब हो गई थी.
घर आनेजाने से जगराम सिंह को नीलम की परेशानियों का पता चल ही गया था, इसलिए उस तक पहुंचने के लिए वह उस की परेशानियों का फायदा उठाते हुए हर तरह से मदद करने लगा. नीलम जब भी उस से पैसा मांगती, वह बिना नानुकुर किए दे देता. अगर कभी शिवचरन पैसे मांग लेता तो वह उसे भी दे देता.
शिवचरन भले ही जगराम की मन की बात से अंजान था, लेकिन नीलम सब जानती थी. वह जान गई थी कि जगराम उस पर इतना क्यों मेहरबान है. उस की नजरों से उस ने उस के दिल की बात जान ली थी. एक तो नीलम को पति का सुख उस तरह नहीं मिल रहा था, जिस तरह मिलना चाहिए था, दूसरे जगराम अब उस की जरूरत बन गया था.
इसलिए उसे जाल में फंसाए रखने के लिए नीलम उस से हंसी मजाक ही नहीं करने लगी, बल्कि उस के करीब भी आने लगी थी. आसपड़ोस में सभी लोगों को उस ने यही बता रहा था कि यह उस के जेठानी का भाई है. इसलिए नीलम को लगता था कि उस के आने जाने पर कोई शक नहीं करेगा.
नीलम की मौन सहमति पा कर एक दिन उसे घर में अकेली पा कर जगराम सिंह ने उस का हाथ पकड़ लिया. बनावटी नानुकुर के बाद उस ने जगराम को अपना शरीर सौंप दिया. जगराम से उसे जो सुख मिला, उस ने रिश्तों की मर्यादा को भुला दिया.
इस के बाद नीलम और जगराम जब भी मौका पाते, एक हो जाते. नीलम को जगराम सिंह के साथ शारीरिक सुख में कुछ ज्यादा ही आनंद आता था, इसलिए वह उस का भरपूर सहयोग करने लगी थी. कभीकभी तो जगराम से मिलने वाले सुख के लिए वह बच्चों को बहाने से घर के बाहर भी भेज देती थी.
कुछ सालों तक तो उन का यह संबंध लोगों की नजरों से छिपा रहा, लेकिन जगराम सिंह का शिवचरन के घर अक्सर आना और घंटो पड़े रहना, लोगों को खटकने लगा. नीलम और उस के सबइंसपेक्टर भाई के हावभाव और कार्यशैली से लोगों को विश्वास हो गया कि उन के बीच गलत संबंध है.
जगराम सिंह बेहद चालाकी से काम ले रहा था. वह जब भी शिवचरन की मौजूदगी में आता, काफी गंभीर बना रहता. वह इस बात का आभास तक न होने देता कि उस के और नीलम के बीच कुछ चल रहा है. तब वह पूरी तरह से रिश्तेदार बना रहता. लेकिन एकांत मिलते ही वह रिश्तेदार के बजाय नीलम का प्रेमी बन जाता.
जब मामला कुछ ज्यादा ही बढ़ गया तो पड़ोसियों ने शिवचरन के कान भरने शुरू किए. उसने अतीत में झांका तो उसे भी संदेह हुआ. फिर एक दिन जगराम घर आया तो वह होटल जाने की बात कह कर घर से निकला जरूर, लेकिन आधे घंटे बाद ही वापस आ गया. उस ने देखा कि दोनों बेटे बाहर खेल रहे हैं और कमरे की अंदर से सिटकनी बंद है.
उस ने सचिन से पूछा, ‘‘क्या बात है, कमरे का दरवाजा क्यों बंद है, तुम्हारी मम्मी कहां हैं.?’’
‘‘मम्मी और मामा कमरे में हैं. हम कब से उन्हें बुला रहे हैं, वे दरवाजा खोल ही नहीं रहे हैं.’’ सचिन ने कहा.
शिवचरन को संदेह तो था ही, अब विश्वास हो गया. वह नीलम को आवाज दे कर दरवाजा पीटने लगा. अचानक शिवचरन की आवाज सुन कर दोनों घबरा गए. वे जल्दी से उठे और अपने अपने कपड़े ठीक किए. इस के बाद नीलम ने आ कर दरवाजा खोला. नीलम की हालत देख कर शिवचरन सारा माजरा समझ गया. उसे कुछ कहे बगैर वह कमरे के अंदर आया तो देखा जगराम सोने का नाटक किए चारपाई पर लेटा था.