True Crime Stories : स्टूडेंट के प्यार में सैनिक पति को उतारा मौत के घाट

True Crime Stories :  दोपहर 3 बजे के करीब दिल्ली पुलिस के कंट्रोल रूम को सुब्रतो पार्क स्थित एयरफोर्स मैडिकल सेंटर से सूचना दी गई कि एक सैनिक की मौत हो गई है, इसलिए थाना पुलिस भेजी जाए. यह मैडिकल सेंटर दक्षिणपश्चिमी दिल्ली के थाना कैंट के अंतर्गत आता है, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम ने तत्काल यह जानकारी थाना कैंट को वायरलेस द्वारा दे दी. यह 10 अप्रैल, 2014 की बात है.

चूंकि उस दिन दिल्ली में लोकसभा चुनाव का मतदान चल रहा था. इसलिए दिल्ली पुलिस के ज्यादातर पुलिसकर्मी चुनाव ड्यूटी पर थे. पुलिस चौकी सुब्रतो पार्क के चौकीप्रभारी के.बी. झा की भी ड्यूटी क्षेत्र के पोलिंग बूथ पर लगी थी. पुलिस कंट्रोल रूम द्वारा वायरलेस से जो संदेश प्रसारित किया गया था, उसे उन्होंने सुन लिया था. इस के अलावा थानाप्रभारी ने भी उन्हें वहां जाने का निर्देश दिया था. इसलिए चौकीप्रभारी के.बी. झा एयरफोर्स मैडिकल सेंटर की ओर रवाना हो गए. दूसरी ओर सूचना मिलने पर थाना कैंट से भी एएसआई देवेंद्र कांस्टेबल सचिन के साथ एयरफोर्स अस्पताल के लिए चल पड़े थे.

पुलिस के अस्पताल पहुंचने तक डाक्टरों ने लाश को सफेद कपड़े में बंधवा दिया था. चौकीप्रभारी ने जब वहां के डाक्टरों से मृतक और उस की लाश के बारे में पूछा तो उन्होंने सफेद कपड़ों में बंधी उस (True Crime Stories) लाश को दिखाते हुए बताया कि यही एयरफोर्स के सार्जेंट रमेशचंद्र की लाश है. चौकीप्रभारी के.बी. झा ने पूछा कि रमेशचंद्र की मौत कैसे हुई तो डाक्टर ने बताया कि करीब एक घंटे पहले इन्हें इन की पत्नी सुधा एंबुलेंस से ले कर आई थीं. अस्पताल आने पर सुधा ने बताया था कि इन्हें हार्टअटैक आया था, लेकिन जब इन की जांच की गई तो पता चला कि इन की मौत हो चुकी है.

मृतक रमेशचंद्र की पत्नी सुधा गुप्ता वहीं थी. चौकीप्रभारी के.बी. झा ने पूछा कि यह सब कैसे हुआ तो उस ने कहा, ‘‘सर, यह शराब के आदी थे. कल रात यानी 9 अप्रैल की रात 10 बजे के करीब जब यह घर आए तो काफी नशे में थे. यह इन की रोजाना की  आदत थी, इसलिए मैं कुछ नहीं बोली. खाना खाने के बाद जब यह सोने के लिए लेटे तो कहा कि सीने में दर्द हो रहा है. मैं ने सोचा कि दर्द गैस की वजह से हो रहा होगा, क्योंकि इन्हें गैस की शिकायत थी.

‘‘मैं ने इन्हें पानी पिलाया और वहीं पास में बैठ गई. काफी देर तक इन्हें हलकाहलका दर्द होता रहा. उस के बाद यह सो गए तो मैं ने सोचा कि शायद इन्हें आराम हो गया है. फिर मैं भी इन्हीं के बगल में सो गई.

‘‘सुबह 9 बजे जब यह सो कर उठे तो मैं ने इन से तबीयत के बारे में पूछा. इन्होंने बताया कि अब ठीक है. नहाधो कर इन्होंने नाश्ता किया और वोट डालने की तैयारी करने लगे. यह तैयार हो कर घर से निकलने लगे तो इन्हें चक्कर आ गया. उस समय मैं किचन में थी. दौड़ कर मैं ने इन्हें संभाला और इन्हें ले जा कर बैड पर लिटा दिया.

‘‘एक बजे के करीब इन के सीने में फिर से दर्द उठा और वह दर्द भी वैसा ही था, जैसा रात में हो रहा था. मैं ने इन्हें पानी पिलाया. लेकिन इस बार दर्द कम होने का नाम नहीं ले रहा था. उस समय क्वार्टर में मैं अकेली थी. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं? मैं कुछ करती, दर्द अचानक काफी तेज हो गया, फिर यह बेहोश हो गए.

‘‘मैं ने इन्हें हिलायाडुलाया, लेकिन इन का शरीर एकदम ढीला पड़ चुका था. इन के चेहरे पर पानी के छींटे मार कर होश में लाने की कोशिश की, लेकिन इन्हें होश नहीं आया. मैं घबरा गई, भाग कर पड़ोस में रहने वाले एयरफोर्स औफिसर एम.पी. यादव के यहां पहुंची. उन्हें पूरी बात बता कर मैं ने इन्हें अस्पताल ले चलने के लिए कहा. उन्होंने फोन कर के एयरफोर्स की एंबुलैंस बुलवाई और इन्हें यहां लाया गया. यहां आने पर डाक्टरों ने बताया कि इन की मौत हो चुकी है.’’

सुधा गुप्ता से बातचीत करते हुए चौकीप्रभारी के.बी. झा ने देखा कि इस स्थिति में जहां महिलाओं का रोरो कर बुरा हाल होता है और वे किसी से बात करने की स्थिति में नहीं होती हैं, वहीं इस के चेहरे पर लेशमात्र का भी दुख नजर नहीं आ रहा. वह बातचीत भी इस तरह से कर रही है, जैसे सब कुछ सामान्य हो. चूंकि उस समय उस के पति की लाश अस्पताल में रखी थी, इसलिए उन्होंने उस से ज्यादा पूछताछ करना ठीक नहीं समझा.

रमेशचंद्र की लाश सफेद कपड़े में लिपटी थी, इसलिए चौकीप्रभारी लाश को भी नहीं देख सके थे. उन्हें यह मामला संदिग्ध लग रहा था, इसलिए उन्होंने सारी जानकारी थानाप्रभारी सुरेश कुमार को दी तो वह भी अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने भी सुधा गुप्ता और अस्पताल  के डाक्टरों से बात की. इस के बाद उन्होंने लाश को पोस्टमार्टम के लिए सफदरजंग अस्पताल भिजवा दिया. सूचना पा कर सार्जेंट रमेशचंद्र के घर वाले भी इलाहाबाद से सफदरजंग अस्पताल पहुंच गए थे. पुलिस ने उन से भी पूछताछ की थी. लेकिन उन से कोई खास जानकारी नहीं मिली. पोस्टमामर्टम के बाद पुलिस ने लाश मृतक के भाई सुरेश शाहू को सौंप दी.

सुधा से बातचीत के बाद थानाप्रभारी को भी शक हो गया था, इसलिए उन्होंने चौकीप्रभारी के.बी. झा को एयरफोर्स कालोनी में जा कर गुप्त रूप से मामले की छानबीन करने को कहा था. चौकीप्रभारी के.बी झा ने एयरफोर्स कालोनी जा कर अपने ढंग से सार्जेंट रमेशचंद्र की मौत के बारे में पता करना शुरू किया. इसी पता करने में उन्हें एयरफोर्स के एक अधिकारी ने बताया कि पूरी कालोनी में इस बात की चरचा है कि मृतक रमेशचंद्र की पत्नी सुधा गुप्ता का पड़ोस में ही रहने वाले 17 वर्षीय अमित से (True Crime Stories) प्रेमसंबंध है. यह बात कहां तक सच है, वह कुछ कह नहीं सकते.

कालोनी में रहने वाले एयरफोर्स कर्मचारियों की पत्नियों ने अपना एक एसोसिएशन बना रखा था. उस एसोसिएशन में सुधा गुप्ता भी थी. चौकीप्रभारी सार्जेंट की मौत के बारे में पता करने के लिए जब एसोसिएशन की महिलाओं के पास पहुंचे तो उन्होंने सार्जेंट की मौत पर अपना संदेह जाहिर करते हुए उन से सुधा गुप्ता के आचरण के बारे में पूछा तो संयोग से वहां मौजूद सुधा गुप्ता बोल पड़ी, ‘‘सर, मेरे ही पति की मौत हुई है और आप मेरे ही ऊपर इस तरह का आरोप लगा कर मुझे बदनाम कर रहे हैं. यह अच्छी बात नहीं है.’’

‘‘मैडम, हमारी आप से कोई दुश्मनी नहीं है कि हम आप को बदनाम करेंगे. जिस तरह की बातें हमें सुनने को मिल रही हैं, हम उसी के आधार पर यह बात कर रहे हैं. बहरहाल पोस्टमार्टम की रिपोर्ट मिल जाए, उस के बाद हम आप से बात करेंगे.’’ चौकीप्रभारी ने कहा.

चौकीप्रभारी ने कालोनी में रहने वाले कुछ एयरफोर्स के अधिकारियों से सुधा गुप्ता और अमित पर नजर रखने को कहा था. उन्हें डर था कि कहीं दोनों भाग न जाएं. 4 मई, 2014 को सार्जेंट रमेशचंद्र की पोस्टमार्टम रिपोर्ट पुलिस को मिली. रिपोर्ट पढ़ कर पुलिस हैरान रह गई. सुधा गुप्ता ने बताया था कि उस के पति की मौत हार्टअटैक से हुई थी, जबकि पोस्टमार्टम के अनुसार उस की मौत गला दबाने से हुई थी. इस रिपोर्ट से पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि यह सब सुधा और अमित ने ही साजिश रच कर किया होगा.

आगे की काररवाई करने से पहले चौकीप्रभारी ने सफदरजंग अस्पताल के उन डाक्टरों से बात की, जिन्होंने सार्जेंट रमेशचंद्र की लाश का पोस्टमार्टम किया था. डाक्टरों ने बताया था कि उस की मौत सांस की नली दबाने यानी गला घोंटने से हुई थी, उन्होंने यह भी बताया था कि उस की गले की हड्डी में फै्रक्चर भी था. ऐसा गला दबाने पर ही हुआ होगा. डाक्टरों ने पुलिस को यह भी बताया था कि रमेशचंद्र की जेब से एक परची मिली थी, जो उन्होंने एयरपोर्ट अथौरिटी को पहली अप्रैल को लिखी थी. उस में लिखा था, ‘मेरा कुछ दिनों से पारिवारिक क्लेश चल रहा है. मुझे नहीं पता कि मैं कितने दिन और रहूंगा. अगर मेरे साथ कुछ हो जाता है तो मेरी संपत्ति का आधा हिस्सा गरीबों में बांट दिया जाए, बाकी मेरी बेटी के लालनपालन पर खर्च किया जाए.’

पोस्टमार्टम रिपोर्ट और डाक्टरों की बातचीत से साफ हो गया था कि रमेशचंद्र की मौत हार्टअटैक से नहीं, गला दबाने से हुई थी. यानी उस की हत्या की गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट और उस परची के बारे में पुलिस उपायुक्त को भी अवगत कराया गया. उन के निर्देश पर 6 मई, 2014 को थाना दिल्ली कैंट में सार्जेंट रमेशचंद्र गुप्ता की हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया. इस के बाद इस मामले को सुलझाने के लिए डीसीपी सुमन गोयल ने एक पुलिस टीम बनाई, जिस में थानाप्रभारी सुरेश कुमार वर्मा, सुब्रतो पार्क चौकी के प्रभारी के.बी. झा, एसआई रामप्रताप, जी.आर. मीणा, एएसआई देवेंद्र, हेडकांस्टेबल अनिल, सचिन, महिला कांस्टेबल सुनीता, निर्मला आदि को शामिल किया गया.

चौकीप्रभारी के.बी. झा ने जब अस्पताल में सुधा गुप्ता से बात की थी, तभी उन्हें रमेशचंद्र की मौत पर शक हो गया था. लेकिन उस समय लाश कपड़े में बंधी हुई थी, इसलिए वह उसे देख नहीं पाए  थे. लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट और परची ने उन का संदेह सच में बदल दिया था. उन्हें कालोनी वालों से सुधा गुप्ता और 17 वर्षीय अमित के संबंधों के बारे में पता चल गया था. अब उन्हें लग रहा था कि इन्हीं संबंधों की वजह से सुधा गुप्ता और अमित ने रमेशचंद्र को ठिकाने लगाया था. चूंकि सुधा गुप्ता तेजतर्रार और उच्चशिक्षित महिला थी इसलिए पुलिस पूरे सुबूतों के साथ ही अब उस से पूछताछ करना चाहती थी.

पुलिस को सुधा गुप्ता और अमित के मोबाइल नंबर मिल गए थे. पुलिस ने दोनों नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. पता चला कि दोनों ने पिछले एक महीने में एकदूसरे को करीब डेढ़ हजार फोन किए थे. दोनों ने इतनी काल्स किसी अन्य नंबर पर नहीं की थीं. इस काल डिटेल्स ने पुलिस के शक को और मजबूत कर दिया था. पुलिस को पर्याप्त सुबूत मिल गए तो सुधा को पूछताछ के लिए थाने बुलाने की तैयारी होने लगी. सुधा एयरफोर्स कालोनी के कवार्टर नंबर जी-28 में रहती थी. अमित भी वहीं पास में रहता था. पूछताछ के लिए बुलाने की खातिर पुलिस जब दोनों के क्वार्टरों पर पहुंची तो दोनों ही अपने क्वार्टरों से गायब मिले. इस से यही अंदाजा लगाया गया कि पुलिस की जांच सही दिशा में जा रही थी.

दोनों कहीं दूर न चले जाएं, इसलिए पुलिस टीम सरगर्मी से उन की तलाश करने लगी. इधरउधर भागादौड़ी करने के बाद पता चला कि सुधा गुप्ता और अमित वसंत विहार के वसंत गांव में रह रहे हैं. आखिर पुलिस उन के ठिकाने पर पहुंच ही गई. सुधा को जरा भी उम्मीद नहीं थी कि पुलिस वहां पहुंच जाएगी, इसलिए पुलिस को देख कर वह हैरान रह गई. सुधा ने वह फ्लैट किराए पर ले रखा था. पुलिस को देख कर मकान मालिक भी आ गया था. पूछताछ में मकान मालिक ने बताया कि फ्लैट किराए पर लेते समय सुधा ने अमित को अपना पति बताया था. इस तरह पुलिस को सुधा के खिलाफ एक और सुबूत मिल गया था. पुलिस सुधा और अमित को ले कर थाने आ गई.

थाने में आते ही थानाप्रभारी ने सुधा से पूछा, ‘‘सचसच बताओ, तुम ने अपने पति को क्यों मारा?’’

‘‘सर, मैं भला अपने पति को क्यों मारूंगी, उन की मौत तो हार्टअटैक से हुई थी.’’

‘‘तुम यह बात इतने दावे के साथ कैसे कह सकती हो? तुम्हें कैसे पता चला कि मौत हार्टअटैक से हुई थी?’’ थानाप्रभारी सुरेश कुमार वर्मा ने पूछा.

‘‘उन के सीने में जिस तरह से दर्द हुआ था, उस से मैं ने अंदाजा लगाया था कि उन्हें हार्टअटैक आया था.’’

‘‘हमारे पास जो पोस्टमार्टम रिपोर्ट है, उस में साफ लिखा है कि रमेशचंद्र की मौत गला दबाने से हुई थी.’’

‘‘यह कैसे हो सकता सर? मेरे सामने उन्हें हार्टअटैक आया था. सीने में दर्द से ही वह बेहोश हुए थे.’’ सुधा गुप्ता ने कहा.

थानाप्रभारी कुछ और पूछते, इस से पहले वहीं बैठे चौकीप्रभारी के.बी. झा बोले, ‘‘अच्छा, सुधा यह बताओ कि अमित से तुम्हारा क्या संबंध है?’’

‘‘अमित मेरा स्टूडेंट है. मैं उसे ट्यूशन पढ़ाती हूं.’’ सुधा ने कहा.

‘‘यह तो हमें भी पता है कि तुम उसे ट्यूशन पढ़ाती थी. लेकिन मैं उस संबंध के बारे में पूछ रहा हूं, जो सब की नजरों से छिपा रखा था. तुम पढ़ीलिखी और समझदार हो, फिर भी इस तरह का गलत काम कर रही थी. क्यों उस बच्चे की जिंदगी बरबाद कर रही हो?’’

‘‘सर, आप क्यों बिना मतलब हमें बदनाम कर रहे हैं?’’

‘‘हम बदनाम नहीं कर रहे हैं, बल्कि सही कह रहे हैं. तुम अपने फोन की काल डिटेल्स देखो.’’ चौकीप्रभारी ने उसे काल डिटेल्स दिखाते हुए कहा, ‘‘तुम दोनों ने पिछले एक महीने में डेढ़ हजार से ज्यादा फोन किए हैं. ऐसा कौन सा काम था, जो तुम उस से रातदिन बातें करती रहती थीं?

‘‘इस के अलावा वसंत गांव में तुम ने जो फ्लैट ले रखा था. तुम उस में उसे अपना पति बता कर रह रही थी. मेरे खयाल से तुम्हें अब पता चल गया होगा कि मुझे सब जानकारी मिल गई है. इसलिए अब तुम्हें सच्चाई बता देनी चाहिए, वरना तुम्हें पता ही है कि पुलिस चाहेगी तो सच्चाई उगलवा लेगी.’’

चौकीप्रभारी के इतना कहते ही सुधा रो पड़ी. हथेलियों से आंसू पोंछते हुए उस ने कहा, ‘‘सर, वह तो केवल नाम के पति थे. किसी भी औरत को सिर्फ पैसा ही नहीं चाहिए. पैसे के अलावा भी उस की तमाम जरूरतें होती हैं. इस बात को वह समझते ही नहीं थे, बल्कि इधर घर में काफी क्लेश करने लगे थे.’’

इस के बाद सुधा ने पति की हत्या के पीछे की जो कहानी पुलिस को सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी—

रमेशचंद्र मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला इलाहाबाद के गांव लालबिहारा के रहने वाले थे. 19 साल पहले वह एयरफोर्स में सार्जेंट के रूप में भरती हुए थे. अनेक जगह नौकरी करने के बाद उन का तबादला दिल्ली हुआ तो उन्हें रहने के लिए सुब्रतो पार्क स्थित एयरफोर्स कालोनी में जी-28 नंबर का फ्लैट आवंटित हुआ.

दूसरी मंजिल पर स्थित इस फ्लैट में वह अकेले ही रहते थे. करीब 5 साल पहले उन की शादी गोरखपुर के सैनिक कुंज में रहने वाली सुधा गुप्ता से हुई थी. सुधा के पिता भी भारतीय वायु सेना में नौकरी करते थे. बीकौम पास सुधा की जब शादी हुई थी, तब वह 23 साल की थी, जबकि रमेशचंद्र 35 साल के थे. दोनों की उम्र में 12 साल का अंतर था.

शादी के बाद सुधा पति के साथ दिल्ली आ कर सरकारी क्वार्टर में रहने लगी थी. कुछ दिनों तक उन की गृहस्थी ठीकठाक चली. उसी बीच सुधा एक बेटी की मां बनी. शादी के बाद भी सुधा अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती थी. इस के लिए उस ने पति से बात की तो उस ने इजाजत दे दी. सुधा कानपुर यूनिवर्सिटी से पत्राचार द्वारा एमकौम करने लगी. रमेशचंद्र रोज शराब पीते थे. एक तरह से वह शराब के आदी थे. शाम को घर लौटते तो शराब के नशे में धुत होते थे. सुधा ने उन्हें बहुत समझाया, लेकिन उन्होंने अपनी आदत नहीं बदली. रोजरोज एक ही बात कहने से रमेशचंद्र चिढ़ने लगा.

इस के अलावा सुधा की सब से बड़ी समस्या यह थी कि रमेशचंद्र उस की जरूरतों पर बिलकुल ध्यान नहीं देते थे. घर में हर तरह की सुखसुविधा थी, लेकिन रमेशचंद्र यह नहीं समझते थे कि सुखसुविधाओं के अलावा भी पत्नी की अन्य जरूरतें भी होती हैं. रमेशचंद्र नशे में धुत आते और खाना खा कर सो जाते. पत्नी की भावनाओं पर वह बिलकुल ध्यान नहीं देते. सुधा कभी पहल करती, तब भी वह उसे संतुष्ट नहीं कर पाते थे. लिहाजा वह तड़प कर रह जाती थी.

सुधा की यह ऐसी समस्या थी, जिसे वह किसी से कह भी नहीं सकती थी. उस की और रमेशचंद्र की उम्र में जो 12 साल का अंतर था, उसे अब वह साफ महसूस कर रही थी. पति की इन उपेक्षाओं से वह चिड़चिड़ी सी हो गई थी. पति के ड्यूटी पर चले जाने पर सुधा बेटी के साथ मन बहलाने की कोशिश करती. अब तक सुधा की एमकौम की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी. खुद को व्यस्त रखने के लिए सुधा पास ही संकुल कोचिंग सेंटर में पढ़ाने जाने लगी. इस से उस का समय भी कट जाता था, साथ ही चार पैसे भी मिल रहे थे.

उसी कोचिंग सेंटर में अमित पढ़ने आता था. 11वीं में पढ़ने वाले अमित को सुधा कौमर्स पढ़ाती थी. अमित के पिता भी एयरफोर्स में थे. रहने के लिए उन्हें जो फ्लैट मिला था, वह सुधा के फ्लैट के करीब ही था. इसलिए सुधा अमित को अच्छी तरह से जानती थी.

अमित की उम्र 17 साल जरूर थी, लेकिन हष्टपुष्ट होने की वजह से वह अपनी उम्र से काफी बड़ा लगता था. वह थोड़ा मजाकिया स्वभाव का था, इसलिए उस की चुलबुली बातें सुधा को बहुत अच्छी लगती थीं. पति से असंतुष्ट सुधा अमित में दिलचस्पी लेने लगी थी. उसे लगा कि जो ख्वाहिश उसे बेचैन किए है, वह अमित से पूरी हो सकती है. लिहाजा उम्र में 11 साल छोटे अमित को वह प्यार के जाल में फांसने की कोशिश करने लगी. अब वह पढ़ाई के बहाने अमित को अपने कमरे पर बुलाने लगी.

अमित भले ही नाबालिग था, लेकिन अपनी टीचर सुधा के हावभाव और बातों से उस के मन की बात को समझ गया था, इसलिए सुधा की पहल से वह खुद पर नियंत्रण नहीं रख पाया और एक दिन उस ने वही कर डाला, जो सुधा चाहती थी. यह करीब 6 महीने पहले की बात है. एक बार उन्होंने सीमाएं लांघी तो यह रोज का नियम बन गया. रमेशचंद्र के ड्यूटी पर चले जाने के बाद सुधा अमित को अपने क्वार्टर पर पढ़ाने के बहाने बुला लेती. बेटी छोटी थी, वह खापी कर सो जाती. इस के बाद दोनों को किसी की चिंता नहीं रहती थी.

सुधा को जिस चीज की जरूरत थी, अब वह अमित से मिल रही थी. इसलिए उसे अब पति से कोई शिकायत नहीं रह गई थी. उस ने पति से लड़नाझगड़ना भी बंद कर दिया था. रमेशचंद्र यह नहीं जान पाए कि पत्नी में अचानक यह बदलाव कैसे आ गया.

उन्हें लगता था कि सुधा अब समझदार और जिम्मेदार हो गई है. बहरहाल घर की रोजरोज की किचकिच बंद होने से वह खुश थे. इस तरह अमित और सुधा को रमेशचंद्र से कोई दिक्कत नहीं हो रही थी. सुधा अमित को इस कदर चाहने लगी कि वह उस से शादी करने के बारे में सोचने लगी. अमित भी इस के लिए तैयार था. लेकिन यह भी सच है कि यह खेल कितना भी छिपा कर खेला जाए, इस की भनक लग ही जाती है.

रमेशचंद्र की गैरमौजूदगी में अमित का रोजरोज उन के घर जाने से लोगों को शक होने लगा. सुधा और अमित को ले कर एयरफोर्स कालोनी में तरहतरह की चरचा होने लगी. जब इस बारे में रमेशचंद्र को पता चला तो उन्होंने सुधा को समझाया कि वह अमित को अपने घर न आने दे, क्योंकि उसे ले कर लोग उस पर शक कर रहे हैं.

‘‘लोग जो कहते हैं, तुम ने उस  पर विश्वास कर लिया.’’ सुधा तुनक कर बोली, ‘‘अगर वह मेरे पास पढ़ने आता है तो लोगों को न जाने क्यों तकलीफ होती है? लोगों से अपना घर तो संभलता नहीं, दूसरों के घरों में ताकझांक करते हैं. मेरे सामने कोई कहे तो मैं बताऊं.’’

‘‘मेरे खयाल से तुम अमित को पढ़ाना बंद कर दो, वैसे भी तुम्हें पैसों की क्या जरूरत है? हमारी एक ही तो बेटी है. जो मैं कमाता हूं, वह हमारे परिवार के लिए काफी है.’’ रमेशचंद्र ने कहा.

‘‘तुम चुप रहो,’’ सुधा गुस्से में बोली, ‘‘मैं किसी के कह देने से शांत हो कर घर में नहीं बैठ जाऊंगी. मैं ने पढ़ाई घर में बैठने के लिए नहीं की है. लोग कुछ भी कहें, मैं अमित को पढ़ाना बंद नहीं करूंगी.’’

सुधा को नाराज होते देख रमेशचंद्र चुप हो गए. क्योंकि उन्हें लगा कि बात बढ़ाने से बेकार ही झंझट होगा. बात जहां से शुरू हुई थी, वहीं की वहीं रह गई. पति के समझाने का सुधा पर कोई असर नहीं हुआ. वह अमित से पहले की ही तरह मिलतीजुलती रही. कालोनी वालों की बातें सुन सुन कर रमेशचंद्र परेशान हो चुके थे. इन बातों से वह खुद को अपमानित महसूस करते थे. वह सुधा को समझाते थे. लेकिन वह रवैया बदलने को तैयार नहीं थी. वह जब भी उस से कुछ कहते, वह लड़ने को तैयार हो जाती.

सुधा और अमित ने शादी करने का फैसला कर लिया था. लेकिन रमेशचंद्र के रहते यह संभव नहीं था. इसलिए सुधा ने अमित के साथ मिल कर रमेशचंद्र को खत्म करने की योजना बना डाली. 10 अप्रैल, 2014 को साढे़ 10 बजे के करीब सुधा ने योजना के अनुसार, प्रेमी अमित को अपने क्वार्टर पर बुला लिया. उस समय रमेशचंद्र कमरे में ही थे. जैसे ही उन्होंने अमित को अपने क्वार्टर में देखा, भड़क उठे. अमित ने आगे बढ़ कर पूरी ताकत से सार्जेंट रमेशचंद्र की गरदन पर एक घूंसा मारा. उसी घूंसे में नशेड़ी रमेशचंद्र गिर पड़े.

वह गिर ही नहीं पड़े, बल्कि बेहोश हो गए. अमित को लगा इस का खेल खत्म हो गया है. लेकिन सुधा ने पति की नाक पर हाथ रख कर देखा तो सांस चल रही है. उस ने कहा, ‘‘अमित अभी इस की सांस चल रही है. इसे खत्म कर दो. अगर यह जिंदा रहा तो हम बेमौत मारे जाएंगे.’’

अमित झुका और रमेशचंद्र की गरदन पकड़ कर पूरी ताकत से दबा दी. थोड़ी देर में गरदन लुढ़क गई. यानी उस का खेल खत्म हो गया. दोनों ने रमेशचंद्र की लाश को उठा कर बैड पर रखा. सुधा ने पति की लाश को रजाई ओढ़ाते हुए कहा, ‘‘अमित, अब तुम जाओ, आगे का काम मैं कर लूंगी.’’

अमित चला गया तो सुधा पड़ोस में रहने वाले एम.पी. यादव के यहां पहुंची और पति को हार्टअटैक आने की बात कही. उन्होंने एंबुलैंस बुला कर रमेशचंद्र को अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. सुधा ने सोचा था कि हार्टअटैक की बात बताने पर वह बच जाएगी. शुरू में उसे लगा था कि वह अपनी योजना में सफल हो गई है. पुलिस से बचने के लिए उस ने दक्षिणी दिल्ली के वसंत गांव में एक फ्लैट किराए पर ले लिया था. जिस में अमित के साथ रह रही थी. पति की हत्या के 10 दिनों बाद वह अमित के साथ अमृतसर भी घूमने गई थी. दोनों वहां 3 दिनों तक एक होटल में रुके थे.

थाना कैंट पुलिस को सुधा के हावभाव पर पहले ही शक हो गया था, लेकिन सुबूत के अभाव से उस समय पुलिस कोई काररवाई नहीं कर सकी थी. परंतु पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली तो पुलिस के हाथ एक बड़ा सुबूत लग गया. इस के बाद सुधा को पति की (True Crime Stories) हत्या की बात स्वीकार करनी पड़ी. सुधा से पूछताछ के बाद पुलिस ने अमित से भी पूछताछ की. उस ने भी वही सब बताया, जो सुधा ने बताया था. इस के बाद पुलिस ने रमेशचंद्र की हत्या के आरोप में सुधा को गिरफ्तार कर 9 मई, 2014 को पटियाला हाउस में महानगर दंडाधिकारी धीरज मित्तल की अदालत में पेश किया, जहां से उसे 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया.

जबकि नाबालिग अमित को दिल्ली गेट स्थित बाल सुधार गृह भेज दिया गया. 2 दिनों बाद 11 मई को पुन: सुधा को अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

सुधा के साथ उस की ढाई साल की बेटी भी उस के साथ जेल चली गई, क्योंकि उस ने ससुराल वालों को बेटी सौंपने से मना कर दिया था. लिहाजा मां के गुनाह की वजह से बेटी भी जेल की चारदीवारी में कैद है. मामले की जांच थानाप्रभारी सुरेश कुमार वर्मा कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित. अमित परिवर्तित नाम है.

Valentine Day पर साली ने किया जीजा का कत्ल

Valentine Day : दक्षिणी दिल्ली के वसंत कुंज इलाके में एमसीडी के कर्मचारी गटर की सफाई कर रहे थे. सफाई करते हुए वे सी-2 ब्लौक में वसंत  वाटिका पार्क पहुंचे तो गटर के एक मेनहोल के पास तीक्ष्ण गंध महसूस हुई. वह गंध सीवर की गंध से कुछ अलग थी. जिस मेनहोल से बदबू आ रही थी, उस पर ढक्कन नहीं था. सफाई कर्मचारी उस मेनहोल के पास पहुंचे तो बदबू और ज्यादा आने लगी. अपनी नाक पर कपड़ा रख कर उन्होंने जब मेनहोल में झांक कर देखा तो उन की आंखें फटी की फटी रह गईं. उस में एक आदमी की लाश पड़ी थी.

लाश मिलने की खबर उन्होंने अपने सुपरवाइजर को दी. उधर से गुजरने वालों को जब गटर में लाश पड़ी होने की जानकारी मिली तो वे भी उस लाश को देखने लगे. थोड़ी ही देर में खबर आसपास के तमाम लोगों को मिली तो वे भी वसंत वाटिका पार्क में पहुंचने लगे. थोड़ी ही देर में वहां लोगों का हुजूम लग गया. इसी बीच किसी ने खबर पुलिस कंट्रोलरूम को दे दी. यह 25 फरवरी, 2014 दोपहर 1 बजे की बात है.

यह इलाका दक्षिणी दिल्ली के थाना वसंत कुंज (नार्थ) के अंतर्गत आता है, इसलिए गटर में लाश मिलने की खबर मिलते ही थानाप्रभारी मनमोहन सिंह, एसआई नीरज कुमार यादव, कांस्टेबल संदीप, बलबीर को ले कर वसंत वाटिका पार्क पहुंच गए. थानाप्रभारी ने जब गटर के मेनहोल से झांक कर देखा तो वास्तव में उस में एक आदमी की लाश पड़ी थी. वह सड़ गई थी जिस से वहां तेज बदबू फैली हुई थी.

पुलिस ने लाश बाहर निकाल कर जब उस का निरीक्षण किया तो उस का गला कटा हुआ था और पेट पर दोनों साइडों में गहरे घाव थे. लाश की हालत देख कर लग रहा था कि उस की हत्या कई दिनों पहले की गई होगी. जहां लाश मिली थी, उस से कुछ दूर ही रंगपुरी पहाड़ी थी, जहां झुग्गी बस्ती है.

लाश मिलने की खबर जब इस झुग्गी बस्ती के लोगों को मिली तो वहां से तमाम लोग लाश देखने के लिए वसंत वाटिका पार्क पहुंच गए. उन्हीं में प्रताप सिंह भी था.

प्रताप सिंह का छोटा भाई करतार सिंह भी 14 फरवरी, 2014 से लापता था. जैसे ही उस ने वह लाश देखी, उस की चीख निकल गई. क्योंकि वह लाश उस के भाई करतार सिंह की लग रही थी. अपनी संतुष्टि के लिए उस ने उस लाश का दायां हाथ देखा. उस पर हिंदी में करतार-सीमा गुदा हुआ था. यह देख कर उसे पक्का यकीन हो गया कि लाश उस के भाई की ही है. सीमा करतार की पहली बीवी थी.

करतार सिंह के घर के अन्य लोगों को भी पता चला कि उस की लाश गटर में मिली है तो वे घर से वसंत वाटिका पार्क पहुंच गए. वे भी करतार की लाश देख कर रोने लगे.

कुछ देर बाद पुलिस ने मृतक करतार के पिता पिल्लूराम से पूछा तो उन्होंने बताया, ‘‘यह 14 फरवरी से लापता था. इस की पत्नी किरण ने आज ही इस की गुमशुदगी थाने में लिखवाई थी. इस का यह हाल न जाने किस ने कर दिया?’’

‘‘जब यह 14 फरवरी से गायब था तो गुमशुदगी 12 दिन बाद क्यों कराई?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘पता नहीं साहब, हम ने तो इसे सब जगह ढूंढा था. इस का मोबाइल फोन भी बंद था.’’ पिल्लूराम ने रोते हुए बताया.

‘‘तुम चिंता मत करो, हम इस बात का जल्दी पता लगा लेंगे कि इस की हत्या किस ने की है.’’

‘‘साहब, हमारा तो बेटा चला गया. हम बरबाद हो गए.’’

थानाप्रभारी ने किसी तरह पिल्लूराम को समझाया और उन्हें भरोसा दिया कि वह हत्यारे के खिलाफ कठोर काररवाई करेंगे.

कोई भी लाश मिलने पर पुलिस का पहला काम उस की शिनाख्त कराना होता है. शिनाख्त के बाद ही पुलिस हत्यारों का पता लगा कर उन तक पहुंचने की काररवाई करती है. गटर में मिली इस लाश की शिनाख्त उस के घर वाले कर चुके थे. इसलिए पुलिस ने लाश का पंचनामा कर के उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

मामला मर्डर का था इसलिए दक्षिणी दिल्ली के डीसीपी भोलाशंकर जायसवाल ने थानाप्रभारी मनमोहन सिंह के निर्देशन में एक पुलिस टीम बनाई जिस में सबइंसपेक्टर नीरज कुमार यादव, संदीप शर्मा, कांस्टेबल बलबीर सिंह, संदीप, विनय आदि को शामिल किया गया.

मृतक करतार सिंह की पत्नी किरण ने 25 फरवरी, 2014 को उस की गुमशुदगी की सूचना थाने में लिखाई थी. जिस में उस ने कहा था कि उस का पति 14 फरवरी से लापता है. पुलिस ने उस से मालूम भी किया था कि सूचना इतनी देर से देने की वजह क्या है.

तब किरण ने बताया था कि पति के गायब होने के बाद से ही वह उसे हर संभावित जगह पर तलाशती रही. उस के जानकारों से भी पूछताछ की थी, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. उस ने सुबह के समय गुमशुदगी लिखाई थी और दोपहर में लाश मिल गई. इसलिए पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ हत्या कर लाश छिपाने का मामला दर्ज कर लिया.

पुलिस टीम ने सब से पहले मृतक के घर वालों से पूछताछ की तो पता चला कि करतार अपनी किराने की दुकान पर बैठता था. उस की किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं थी इसलिए कहा नहीं जा सकता कि उस की हत्या किस ने की है. पिता पिल्लूराम ने बताया कि करतार के गायब होने के 2 दिन पहले उस का झगड़ा रामबाबू से हुआ था.

‘‘यह रामबाबू कौन है?’’ थानाप्रभारी मनमोहन सिंह ने पिल्लूराम से पूछा.

‘‘साहब, रामबाबू की बीवी और किरण एक ही गांव की हैं. उसी की वजह से रामबाबू करतार के पास आता था. करतार के गायब होने के 2 दिन पहले ही उस की रामबाबू से किसी बात पर कहासुनी हो गई थी.’’ पिल्लूराम ने बताया.

‘‘…और रामबाबू रहता कहां है?’’

‘‘साहब, ये तो मुझे पता नहीं. लेकिन किरण को जरूर पता होगा. क्योंकि वह उस के यहां जाती थी.’’

थानाप्रभारी ने किरण को थाने बुलवाया. पति की लाश मिलने के बाद उस का रोरो कर बुरा हाल था. थानाप्रभारी ने उस से पूछा, ‘‘तुम रामबाबू को जानती हो? वह कहां रहता है और करतार से उस का जो झगड़ा हुआ था, उस की वजह क्या थी?’’

‘‘रामबाबू की बीवी और हम एक ही गांव के हैं, इसलिए वह कभीकभी हमारे यहां आता रहता था. वह महिपालपुर में रहता है. करतार और रामबाबू 12 फरवरी को साथसाथ शराब पी रहे थे, उसी समय किसी बात पर दोनों के बीच झगड़ा हो गया था.’’ किरण ने बताया.

चूंकि करतार का झगड़ा रामबाबू से हुआ था इसलिए पुलिस सब से पहले रामबाबू से ही पूछताछ करना चाहती थी. पुलिस किरण को ले कर महिपालपुर स्थित रामबाबू के कमरे पर पहुंची. लेकिन उस का कमरा बंद मिला. पड़ोसियों से जब उस के बारे में पूछा तो उन्होंने भी उस के बारे में अनभिज्ञता जताई. इस से पुलिस के शक की सुई रामबाबू की तरफ घूम गई.

करतार रंगपुरी पहाड़ी पर रहता था. महिपालपुर से लौटने के बाद पुलिस ने रंगपुरी पहाड़ी पर पहुंच कर वहां के लोगों से करतार के बारे में जानकारी जुटानी शुरू कर दी. इस से पुलिस को कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां मिलीं, जिस के बाद किरण और उस की छोटी बहन सलीना भी शक के दायरे में आ गईं.

दोनों बहनों को पुलिस ने उसी दिन पूछताछ के लिए थाने बुलवा लिया. किरण और सलीना को जब अलगअलग कर के पूछताछ की तो करतार के मर्डर की कहानी खुल गई. दोनों बहनों ने स्वीकार कर लिया कि उस की हत्या उन दोनों ने ही की थी और लाश रामबाबू के आटो में रख कर वसंत वाटिका पार्क में लाए और उसे वहां के गटर में डाल कर अपनेअपने घर चले गए थे. पति की हत्या की जो कहानी किरण ने बताई, वह प्रेम से सराबोर निकली.

पिल्लूराम मूलरूप से हरियाणा के गुड़गांव जिले के मेवात क्षेत्र स्थित नूनेरा गांव के रहने वाले थे. अब से तकरीबन 40 साल पहले अपनी पत्नी रतनी और 2 बेटों के साथ वे दिल्ली आए थे और दक्षिणी दिल्ली के वसंत कुंज इलाके में स्थित रंगपुरी पहाड़ी पर रहने लगे. उन से पहले अनेक लोगों ने इसी पहाड़ी पर तमाम झुग्गियां डाल रखी थीं.

दिल्ली की चकाचौंध ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि वह यहीं पर बस गए. छोटेमोटे काम कर के वह परिवार को पालने लगे. दिल्ली आने के बाद रतनी 4 और बेटों की मां बनी. अब उन के पास 6 बेटे हो गए थे जिन में करतार सिंह तीसरे नंबर का था.

पिल्लूराम की हैसियत उस समय ऐसी नहीं थी कि वे बच्चों को पढ़ा सकें. फिर भी उन्होंने सरकारी स्कूलों में बच्चों का दाखिला कराया लेकिन सभी ने पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी. कोई भी बच्चा उच्चशिक्षा हासिल नहीं कर सका, तब पिल्लूराम ने उन्हें अलगअलग कामों में लगा दिया.

सभी बच्चे कमाने लगे तो घर के हालात सुधरने लगे. पैसा जमा करने के बाद करतार सिंह ने रंगपुरी पहाड़ी पर ही किराना स्टोर और चाय की दुकान खोल ली. कुछ ही दिनों में करतार सिंह का काम चल निकला तो उसे अच्छी आमदनी होने लगी. तब पिल्लूराम ने उस की शादी सीमा नाम की एक लड़की से कर दी.

शादी के बाद हर किसी के जीवन की एक नई शुरुआत होती है. यहीं से एक नए परिवार की जिम्मेदारी उठाने की कोशिश शुरू हो जाती है. सीमा से शादी करने के बाद करतार ने भी गृहस्थ जीवन की शुरुआत की. वह सीमा से बहुत खुश था. सीमा सपनों के जिस राजकुमार से शादी करना चाहती थी, करतार वैसा ही था. इसलिए उस ने बहुत जल्द ही करतार के दिल को काबू में कर लिया था.

इस दौरान सीमा एक बेटी और एक बेटे की मां बनी. उस का परिवार हंसीखुशी से चल रहा था. इसी बीच परिवार में ऐसा भूचाल आया जिस का दुख उसे सालता रहा.

करीब 4-5 साल पहले सीमा की कैंसर से मौत हो गई. करतार ने उस का काफी इलाज कराया था. लाख कोशिश करने के बाद भी वह ठीक नहीं हो सकी और परिवार को हमेशा हमेशा के लिए छोड़ कर चली गई.

सीमा की मौत पर वैसे तो पूरे परिवार को दुख हुआ था लेकिन सब से ज्यादा दुख करतार ही महसूस कर रहा था. होता भी क्यों न, वह उस की अर्द्धांगिनी जो थी. जीवन के जितने दिन उस ने पत्नी के साथ गुजारे थे, उन्हीं दिनों को याद करकर के उस की आंखों में आंसू भर आते थे.

36 साल का करतार दुकान पर बैठेबैठे खाली समय में अपने वैवाहिक जीवन की यादों में खोया रहता था. उस के मांबाप भी उसे काफी समझाते रहते थे. खैर, जैसेजैसे समय गुजरता गया, करतार सिंह भी सामान्य हो गया.

उसी दौरान उस की मुलाकात किरण नाम की एक युवती से हुई जो झारखंड के केरल गांव की थी. वह भी रंगपुरी पहाड़ी पर रहती थी. किरण वसंत कुंज इलाके में कोठियों में बरतन साफ करने का काम करती थी. करतार एकाकी जीवन गुजार रहा था. किरण को देख कर उस का झुकाव उस की ओर हो गया. किरण भी अकसर उस के पास आने लगी. उसे भी करतार से बातचीत करने में दिलचस्पी होने लगी. दोनों ने एकदूसरे को अपने फोन नंबर दे दिए थे.

फिर तो करतार जब भी फुरसत में होता, किरण को फोन मिला देता. दोनों में बातचीत का सिलसिला शुरू हो जाता और काफी देर तक बातें होती रहतीं. बातों ही बातों में वे एकदूसरे से खुलते गए. यह नजदीकी उन्हें प्यार के मुकाम तक ले गई.

चूंकि किरण भी अकेली ही थी और करतार उस की नजरों में सही था. उस की किराने की दुकान अच्छी चल रही थी इसलिए उस ने काफी सोचनेसमझने के बाद ही उस की तरफ प्यार का हाथ बढ़ाया था. करतार ने उस के सामने पूरी जिंदगी साथ रहने की पेशकश की तो किरण ने सहमति जता दी. इस के बाद किरण करतार के साथ पत्नी की तरह रहने लगी. यह करीब 4 साल पहले की बात है.

करतार की जिंदगी फिर से हरीभरी हो गई थी. किरण के प्यार ने उस के बीते दुखों को भुला दिया था. दोनों की उम्र में करीब 8 साल का अंतर था इस के बाद भी किरण उस से खुश थी.

इन 4 सालों में किरण मां नहीं बन सकी थी. करतार सिंह की पहली पत्नी से 2 बच्चे थे. इसलिए किरण के बच्चा पैदा न होने पर करतार को कोई मलाल नहीं था. लेकिन किरण इस चिंता में घुलती जा रही थी. वह चाहती थी कि उस के भी बच्चा हो. उस की गोद भी भर जाए.

किरण के कहने पर करतार ने उस का इलाज भी कराया. इस के बावजूद भी उस की इच्छा पूरी नहीं हुई तो करतार ने अपने एक संबंधी की एक साल की बेटी गोद ले ली जिस से किरण का मन लगा रहे. किरण उस गोद ली हुई बेटी की परवरिश में लग गई.

किरण के गांव की ही प्रभा नाम की एक लड़की की शादी महिपालपुर में रहने वाले रामबाबू के साथ हुई थी. रामबाबू आटोरिक्शा चलाता था. एक ही गांव की होने की वजह से किरण प्रभा से फोन पर बात भी करती रहती थी. कभी प्रभा उस के यहां तो कभी वह प्रभा के घर जाती रहती थी. एकदूसरे के यहां आनेजाने से करतार और रामबाबू के बीच भी दोस्ती हो गई थी. दोनों साथसाथ खातेपीते थे.

इसी बीच किरण का झुकाव रामबाबू की ओर हो गया. वह उस से हंसीमजाक करती रहती थी. किरण की ओर से मिले खुले औफर को भला रामबाबू कैसे ठुकरा सकता था. शादीशुदा होने के बावजूद भी उस ने अपने कदम किरण की ओर बढ़ा दिए. दोनों ही अनुभवी थे इसलिए उन्हें एकदूसरे के नजदीक आने में झिझक महसूस नहीं हुई.

किरण और रामबाबू के बीच एक बार जिस्मानी संबंध बनने के बाद उन का सिलसिला चलता रहा. लेकिन ज्यादा दिनों तक सिलसिला कायम न रह सका. करतार सिंह को पत्नी के हावभाव से उस पर शक होने लगा. उसे रामबाबू का उस के यहां ज्यादा आना अच्छा नहीं लगता था. इस बात का ऐतराज उस ने पत्नी से भी जताया और कहा कि वह रामबाबू को यहां आने से मना कर दे. लेकिन किरण ने ऐसा नहीं किया.

इसी बात को ले कर पत्नी से करतार की नोकझोंक होती रहती थी. उसी दौरान किरण की छोटी बहन सलीना भी उस के पास रहने के लिए आ गई. 22 साल की सलीना खूबसूरत थी. जवान साली को देख कर करतार की भी नीयत डोल गई. वह उस पर डोरे डालने लगा लेकिन घर में अकसर पत्नी के रहने की वजह से उस की दाल नहीं गल पाई.

उधर किरण और रामबाबू के अवैध संबंध का खेल कायम रहा और 7 फरवरी को वह रामबाबू के साथ भाग गई. बदनामी की वजह से करतार ने इस की रिपोर्ट थाने में भी नहीं लिखवाई. करीब एक हफ्ते तक दोनों इधरउधर घूम कर मौजमस्ती कर के घर लौट आए. करतार ने किरण को आडे़ हाथों लिया तो किरण ने पति के पैरों में गिर कर माफी मांग ली. पत्नी के घडि़याली आंसू देख कर करतार का दिल पसीज गया और उस ने पत्नी को माफ कर दिया.

13 फरवरी की शाम को रामबाबू करतार के यहां आया. करतार को पता था कि उस की पत्नी को रामबाबू ही भगा कर ले गया था इसलिए उस के घर आने पर वह मन ही मन कुढ़ रहा था. फिर भी उस ने उस से कुछ कहना जरूरी नहीं समझा.

उस ने उस की खातिरदारी की और उस के साथ शराब भी पी. शराब पीने के दौरान ही बातोंबातों में उन का झगड़ा हो गया. झगड़ा बढ़ने पर रामबाबू वहां से चला गया. किरण ने इसे अपने प्रेमी रामबाबू की बेइज्जती समझा और उलटे वह भी पति से झगड़ने लगी.

अगले दिन 14 फरवरी को वैलेंटाइन डे (Valentine Day) था. प्यार का इजहार करने के इस दिन का तमाम लोगों को बेसब्री से इंतजार रहता है. 40 साल का करतार भी अपनी 22 साल की साली सलीना को मन ही मन चाहता था. उस दिन सलीना किरण के साथ महिपालपुर में रामबाबू के घर चली गई थी. इस बात की जानकारी करतार सिंह को थी.

करतार सिंह ने भी वैलेंटाइन डे के दिन ही सलीना को अपने प्यार का इजहार करने का फैसला कर लिया. वह दुकान पर अपने बेटे को बिठा कर रामबाबू के कमरे पर पहुंच गया. उस समय वहां रामबाबू नहीं था. वह किरण और सलीना को कमरे पर छोड़ कर किसी काम से घर से बाहर चला गया था और उस की पत्नी प्रभा मायके गई हुई थी.

करतार सलीना के लिए बेचैन हुआ जा रहा था. जिस समय किरण किचन में कोई काम कर रही थी, सलीना कमरे में थी, तभी मौका देख कर करतार ने सलीना का हाथ पकड़ लिया.

सलीना घबरा गई. जब उस ने हाथ छुड़ाने की कोशिश की तो करतार ने उस के सामने प्यार (Valentine Day) का इजहार करते हुए उसे किस कर दी और वह उस के साथ अश्लील हरकतें करने लगा. सलीना चीखी तो किचन से किरण आ गई. पति की हरकतों को देख कर उसे भी गुस्सा आ गया. तब सलीना ने किसी तरह खुद को उस के चंगुल से छुड़ा लिया और किचन की ओर भाग गई.

उधर किरण पति को डांट ही रही थी तभी सलीना किचन से चाकू ले आई. इस से पहले कि वह कुछ समझ पाता, सलीना ने करतार के पेट में चाकू घोंप दिया.

चाकू लगते ही करतार के पेट से खून का फव्वारा फूट पड़ा. सलीना ने उसी चाकू से एक वार उस के पेट की दूसरी साइड में कर दिया. इस के बाद करतार सिंह फर्श पर गिर गया और बेहोश हो गया.

बहन के इस कदम पर किरण भी हैरान रह गई. जो हो चुका था, उस में अब वह कुछ नहीं कर सकती थी. उस ने छोटी बहन से कुछ नहीं कहा. बल्कि वह यह सोच कर खुश हुई कि करतार के मरने के बाद वह रामबाबू के साथ बिना किसी डर के रहेगी. करतार कहीं जिंदा न रह जाए, इसलिए किरण ने उसी चाकू से उस का गला काट दिया. इस के बाद किरण ने फोन कर के रामबाबू को करतार की हत्या करने की खबर दे दी. उस ने उसे बुला लिया.

दोनों बहनों द्वारा करतार की हत्या करने पर वह भी हैरान रह गया. अब उन तीनों ने उस की लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. सब से पहले उन्होंने उस की बौडी के खून को साफ किया फिर लाश को प्लास्टिक के कट्टे में रख लिया.

अंधेरा होने के बाद रामबाबू ने उस की लाश अपने आटोरिक्शा में रख ली. किरण और सलीना भी आटो में बैठ गईं. रामबाबू आटो को वसंत कुंज इलाके की तरफ ले गया. वसंत वाटिका पार्क के पास उन्हें बिना ढक्कन का एक मेनहोल दिखा तो उसी मेनहोल में उन्होंने लाश गिराने का फैसला ले लिया.

आटो से कट्टा उतार कर उस मेनहोल के पास ले गए और कट्टे का मुंह खोल कर लाश उस मेनहोल में गिरा दी और कट्टा वहीं फेंक कर वे उसी कमरे पर चले गए जहां करतार की हत्या की गई थी.

तीनों ने फर्श धो कर खून के धब्बे साफ किए फिर किरण और सलीना वहां से करतार के कमरे पर आ गईं. उन्हें देख कर घर का कोई भी सदस्य यह अनुमान तक नहीं लगा पाया कि वे कोई जघन्य अपराध कर के आई हैं.

जब देर रात तक करतार घर नहीं पहुंचा तो उस के घर वालों ने किरण से उस के बारे में पूछा. तब किरण ने यही जवाब दिया कि उसे करतार के बारे में कुछ नहीं पता. घर वालों के साथ वह भी करतार को इधरउधर ढूंढती रही.

10-12 दिनों तक घर वाले परेशान होते रहे, लेकिन करतार का कहीं पता नहीं चला. करतार के घर वाले जब उस के गुम होने की रिपोर्ट दर्ज कराने की बात करते तो किरण उन्हें यह कह कर मना करती कि वह कहीं गए होंगे. अपने आप लौट आएंगे. घर वालों के दबाव देने पर किरण ने 25 फरवरी को थाना वसंत कुंज (नार्थ) जा कर पति की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखा दी.

उधर करतार सिंह के मातापिता का कहना है कि सलीना ने उन के बेटे पर छेड़खानी का जो आरोप लगाया है वह सरासर गलत है. हकीकत यह है कि सलीना करतार के साथ पहले से ही उस के कमरे में सोती थी. जब किरण रामबाबू के साथ भाग गई थी तब सलीना करतार के साथ ही सोती थी.

हफ्ता भर तक जब जीजासाली बंद कमरे में सोए थे तो उन्होंने भजनकीर्तन तो किया नहीं होगा. जाहिर है उन्होंने सीमाएं भी लांघी होंगी. ऐसे में उस के द्वारा छेड़छाड़ का आरोप लगाने वाली बात एकदम गलत है.

उन्होंने आरोप लगाया कि करतार की हत्या रामबाबू, किरण और सलीना ने साजिश के तहत की है. तीनों के खिलाफ सख्त काररवाई की जानी चाहिए.

बहरहाल अब यह बात अदालत ही तय करेगी कि करतार सिंह का हत्यारा कौन है. किरण और सलीना से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने एक बार फिर रामबाबू के यहां दबिश दी, लेकिन वह नहीं मिला.

पुलिस को पता चला कि करतार की लाश ठिकाने लगाने में रामबाबू ने अपने जिस आटोरिक्शा का प्रयोग किया था, वह किसी के यहां खड़ा है. पुलिस उस जगह पर पहुंच गई जहां उस का आटोरिक्शा खड़ा था. उस आटोरिक्शा को ले कर पुलिस थाने लौट आई.

पुलिस ने किरण और सलीना को भादंवि की धारा 302 (हत्या करना), 201 (हत्या कर के लाश छिपाने की कोशिश) और 120बी (अपराध की साजिश रचने) के तहत गिरफ्तार कर के उन्हें न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया.

कथा संकलन तक दोनों अभियुक्त जेल में बंद थीं जबकि रामबाबू की तलाश में पुलिस अनेक स्थानों पर दबिश डाल चुकी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

Love story : लिव इन पार्टनर की हत्या कर सूटकेस में डाली लाश

Love story : किसी तरह से जब सूटकेस खुला, तब पुलिस टीम देख कर चौंक गई. क्योंकि उस में थोड़े से  कपड़ेलत्तों के बीच एक युवती का शव था. शव को किसी तरह से ठूंस कर सूटकेस को बंद किया गया था. उस के बाल और दुपट्टे का एक कोना सूटकेस की चेन में फंसा हुआ था.

सूटकेस में मिली लाश की खबर मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच को दे दी गई. शव की हालत देख कर यह निश्चित था कि युवती की हत्या कर उसे ठिकाने लगाने की कोशिश की गई है.

कोरोना काल 2020 का समय चरम पर था. पूरे देश में लौकडाउन लग चुका था. सभी तरह के यातायात ठप थे. दुकानें, औफिस, छोटेबड़े कलकारखाने सब बंद कर दिए गए थे. सुनसान सड़कों पर केवल वही गाडिय़ां दौड़ रही थीं, जिन में खानेपीने और रोजमर्रा के जरूरी सामान, हरी सब्जियां, दूध, दवाइयां आदि होते थे या फिर सुरक्षा में जुटे पुलिसकर्मी और मरीजों को अस्पतालों तक पहुंचाने वाली एंबुलेंस आदि थी.

दूरदराज से रोजीरोटी के लिए आए शहरों और महानगरों में लाखों लोग हर हाल में जल्द से जल्द अपने घर जाना चाहते थे. उन्हीं दिनों मजदूरों के लिए मुंबई से अलगअलग राज्यों के मुख्य शहरों तक जाने वाली कुछ स्पैशल ट्रेनें चलाई गई थीं. मुंबई से ओडिशा तक जाने वाली खचाखच भरी एक स्पैशल ट्रेन में मनोज किसी तरह से सवार हो गया था.

उस ने बड़ी मुश्किल से बैठने के लिए सीट पर जगह बना ली थी. पसीने से लथपथ था. बोगी में काफी शोरगुल था. छोटे तौलिए से अपना मुंह पोंछने के बाद सीट के नीचे घुसाए अपने बैग से पानी की बोतल निकालने के लिए झुका ही था कि इसी बीच एक लड़की उसे डपटती हुई बोली, ”अरे! तुम मेरी सीट पर कैसे बैठ गए? यहां तो मैं बैठी थी.’’

”तुम कैसे बैठी थी. यहां पहले से 5 लोग थे. मैं किसी तरह से बैठ पाया हूं. तुम्हारा सामान कहां है?’’ मनोज बोला.

”मैं एक बैग सीट पर रख कर दूसरा बड़ा सामान लाने गई थी. तुम ने मेरे बैग को सीट के नीचे डाल दिया और मजे में बैठ गए. गलत बात है.’’ लड़की नाराजगी से बोली.

बैठने को ले कर बहस होते देख सामने बैठी एक महिला बोली, ”कोई बात नहीं, सभी को जाना है, तुम भी इसी में किसी तरह जगह बना लो. दिल में जगह होनी चाहिए, बस!’’

”कहां जगह है?’’ लड़की बोली.

तभी मनोज के बगल में बैठा आदमी बोल पड़ा, ”यहां बैठ जाना, मैं ट्रेन चलने पर ऊपर चला जाऊंगा.’’

”चलो, हो गया इंतजाम. लाओ दूसरा सामान, इसे सीट के नीचे डाल देता हूं.’’ मनोज बोला.

थोड़ी देर में ट्रेन चल पड़ी. लड़की को भी बैठने की जगह मिल गई थी. बगल में बैठे मनोज ने पूछा, ”तुम्हें कहां जाना है?’’

”आखिरी स्टेशन तक, ओडिशा!’’ लड़की बोली.

”वहां से?’’ मनोज दोबारा पूछा.

”वहां से अपने गांव…पता नहीं वहां जाने के लिए कोई सवारी मिलेगी या नहीं?’’ लड़की गांव का नाम बताती हुई वहां तक पहुंचने को ले कर चिंतित भी हो गई.

”चिंता की कोई बात नहीं है, कोई न कोई गाड़ी तो मिल ही जाएगी?’’ मनोज बोला.

इसी के साथ मनोज ने बताया कि वह ओडिशा के एक गांव का रहने वाला है, लेकिन बेंगलुरु में काम करने गया था. वहां मन लायक काम नहीं मिला, तब कुछ समय पहले ही काम की तलाश में मुंबई आया था, लेकिन वहां आ कर वह फंस गया था.

बातों बातों में दोनों अपनीअपनी समस्याएं बताने लगे. बोलचाल की भाषा और लहजे से मालूम हुआ कि दोनों एक ही प्रदेश के हैं, लेकिन उन के गांव अलगअलग हैं. उन के बीच दोस्ती हो गई. लड़की ने मनोज को अपना नाम प्रतिमा पवल किस्पट्टा बताया. उस ने कहा कि मुंबई में काफी समय से हाउसकीपिंग का काम कर रही है.

ट्रेन के सफर में हुई जानपहचान के दौरान ही उन्हें मालूम हुआ कि वे दोनों क्रिश्चियन समुदाय से हैं. उन्होंने अपनेअपने फोन में एकदूसरे का नंबर सेव कर लिया. साथ ही मनोज ने मुंबई में उस के लिए कोई काम तलाशने का आग्रह किया.

स्पैशल ट्रेन काफी देरी से ओडिशा की राजधानी पहुंच गई थी. वहां से दोनों अपनेअपने गांव चले गए. उन के बीच फोन पर बातें होती रहीं. उन्होंने फोन पर ही अपनी मोहब्बत का इजहार भी कर दिया था. कोरोना का दौर खत्म होने में काफी वक्त लग गया था. पूरी तरह से लौकडाउन खत्म होने के बाद ही प्रतिमा मुंबई काम के लिए साल 2022 के शुरुआती माह में लौट पाई थी. वहां उस की बहन अपने परिवार समेत पहले से रहती थी. उस की मदद से उसे हाउसकीपिंग का काम मिल गया था.

इस बीच उस की फोन पर मनोज से भी बात होती रहती थी. वह मनोज से प्यार करने लगी थी, लेकिन उसे ओडिशा में कोई ढंग का काम नहीं मिल पाया था. काम की तलाश में बेंगलरु चला गया था, लेकिन उसे वहां भी पहले जैसा काम नहीं मिल पाया था.

कारण बिल्डिंग कंस्ट्रशन का काम पूरी तरह से शुरू नहीं हो पाया था. इस बारे में उस ने प्रेमिका को फोन पर ही अपनी समस्याएं गिनाई थीं. एक दिन प्रतिमा ने उस से कहा, ”मनोज, अगर वहां रेगुलर काम नहीं मिल रहा है तो क्यों नहीं मुंबई आ जाते हो.’’

”कोरोना से पहले मुंबई गया था, लेकिन वहां भी काम नहीं मिला था. कंस्ट्रक्शन वाले उन कंपनियों के बंदों को लेते हैं, जिन का मुंबई में काम चल रहा हो.’’ मनोज ने अपनी समस्या बताई.  ”कोई बात नहीं, यहां की किसी कंपनी में तुम्हारा रजिस्ट्रैशन मैं करवाने का इंतजाम करती हूं.’’ प्रतिमा बोली.

”अगर ऐसा हो जाए, तब मुझे वहां काम मिल सकता है.’’ मनोज खुशी से बोला.

”तुम आज ही मुंबई के लिए ट्रेन पकड़ लो. यहां आते ही कोई न कोई काम मिल जाएगा. तुम्हें नहीं पता मुंबई एक मायावी नगरी है, यहां कोई भी भूखा नहीं सोता. मेहनत और ईमानदारी से काम करने पर दो पैसे जरूर मिलते हैं.’’ प्रतिमा समझाने लगी.

बीच में ही मनोज बोल पड़ा, ”ठीक है, ठीक है मैं कल की किसी ट्रेन से मुंबई के लिए निकल पड़ूंगा. अपना एड्रेस और लोकेशन भेज देना.’’ मनोज ने कहा.

कुछ ही देर में मनोज को प्रतिमा ने मुंबई का एड्रैस भेज दिया. उस ने तुरंत मुंबई जाने की तैयारी की और अगले रोज मुंबई जाने वाली ट्रेन की लोकल बोगी में सवार हो गया.

सूटकेस खुलते ही क्यों चौंकी पुलिस

बात बीते साल 2023 में नवंबर माह के 19 तारीख की है. मुंबई के कुर्ला इलाके में मेट्रो कंस्ट्रक्शन साइट पर गश्त करती पुलिस को एक लावारिस सूटकेस मिला. संदिग्ध सूटकेस में विस्फोटक होने की आशंका के साथ इस की सूचना निकट के थाने को दे दी गई.

सूचना पाते ही बम स्क्वायड पहुंच गया. सूटकेस के नंबर वाला लौक बड़ी मुश्किल से खुल पाया. उस की चेन भी भीतर पड़े कपड़े और महीन धागे से फंस गई थी. सूटकेस खुला तो उस के अंदर एक युवती की लाश निकली. क्राइम ब्रांच के सामने सब से पहला सवाल था कि लाश किस की है?

इस की तहकीकात के लिए क्राइम ब्रांच के डीसीपी राज तिलक रौशन ने अलगअलग टीमें बनाईं. लावारिस लाश भरा सूटकेस उस वक्त मिला था, जब पूरे देश की निगाहें क्रिकेट वल्र्ड कप के फाइनल मुकाबले पर टिकी थीं.

आरोपी तक कैसे पहुंची पुलिस

पुलिस की एक जांच टीम मौके पर लगे सीसीटीवी कैमरे और इंटेलीजेंस की मदद से तहकीकात में जुट गई, जबकि दूसरी टीम लाश की पहचान के लिए उस की शिनाख्त करने लगी.

मामला कुर्ला पुलिस स्टेशन में दर्ज कर लिया गया था. शव को राजावाड़ी अस्पताल ले जाया गया. वहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. उस के बाद महिला के शव को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दिया गया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में महिला की गला दबा कर हत्या की बात सामने आई. उस आधार पर कुर्ला पुलिस धारा 302, 201 आईपीसी के तहत मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी गई. इस दौरान मृत महिला के गले में क्रास और शरीर पर कपड़ों से पुलिस ने उस के ईसाई समाज के मध्यमवर्गीय परिवार से होने का अंदाजा लगाया.

पुलिस की टीम ने मौके पर लगे हुए सीसीटीवी कैमरों और इंटेलीजेंस की मदद से आरोपी के बारे में पता लगाना शुरू किया. सूचना के आधार पर पुलिस ने आरोपी की तलाश शुरू की.

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अपराध शाखा के संयुक्त आयुक्त लखमी गौतम, अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (अपराध) शशि कुमार मीना के आदेशानुसार एवं पुलिस उपायुक्त राज तिलक रौशन के मार्गदर्शन में गठित कुल 8 टीमें लावारिस लाश की गुत्थी सुलझाने में जुट गई थीं. सभी सीसीटीवी फुटेज की जांच करने लगीं. गुप्त खबरची के माध्यम से मृतका के पहचान की भी कोशिश होने लगी. उस की तसवीरें सोशल मीडिया पर अपलोड कर दी गईं. जल्द ही इस के नतीजे भी सामने आ गए. मृतका की बहन ने लाश की पहचान कर ली. मृतका की पहचान प्रतिमा पवल किस्पट्टा के रूप में हुई. उस की उम्र 25 साल के करीब थी.

उन से मिली जानकारी के अनुसार मृतका धारावी में किराए की एक खोली (कमरा) में रह रही थी. उस के साथ पति भी रहता था. पति मूलत: ओडिशा के एक गांव का रहने वाला था. उस के बारे में आसपास के लोगों से पूछताछ के बाद सिर्फ यही मालूम हो पाया कि वह गांव गया हुआ है. उस ने पड़ोसियों को बताया था कि उस की बहन बीमार है. लोगों ने पति का नाम मनोज बताया.

पड़ोसियों से मालूम हुआ कि पहले प्रतिमा अकेली ही थी, लेकिन वह बीते एक माह से मनोज उस के साथ रह रहा था. उस के बारे में पुलिस को यह भी मालूम हुआ कि वह 18 नवंबर, 2023 के बाद नहीं देखा गया था.

इस तहकीकात के साथसाथ सीसीटीवी खंगालने वाली दूसरी टीम को मनोज के कुछ सुराग हाथ लग गए थे. 18 नवंबर की रात को वह एक आटो धारावी से ले कर आसपास के कुछ इलाके में घूमता नजर आया था. आटो किसी रेलवे स्टेशन के रास्ते पर जाने के बजाए कुर्ला में एक कंस्ट्रक्शन साइट पर रुक गया था. उस के बाद उस का पता नहीं चल पाया था.

जांच की एक अन्य टीम मुंबई के रेलवे स्टेशनों पर भी जा पहुंची थी, उन में मुंबई का लोकमान्य तिलक टर्मिनस खास था. वहां पुलिस टीम को एक घबराया हुआ युवक दिख गया, जिस का हुलिया दूसरी जांच टीम से मिली जानकारी से मेल खाने वाला था. उस के पास पुलिस तुरंत जा पहुंची. पास आई पुलिस को देख कर युवक भागने लगा, जिसे पुलिस ने दौड़ कर पकड़ लिया.

पकड़ा गया युवक मनोज बारला था. उसे ठाणे पुलिस ला कर पूछताछ की गई. जब सूटकेस वाली लावारिस महिला की लाश के बारे में उस से पूछा गया, तब वह खुद को रोक नहीं पाया. रोने लगा. एक पुलिसकर्मी ने उसे पीने के लिए पानी दिया. कुछ सेकेंड बाद पानी पी कर जब वह सामान्य हुआ, तब उस से दोबारा पूछताछ की जाने लगी. फिर उस ने लाश के साथ अपने संबंध के बारे में जो कुछ बताया, वह काफी दिल दहला देने वाला था.

दरअसल, यह अभावग्रस्त जिंदगी से तंग आ चुके प्रेमियों की कहानी थी, जो बीते एक माह से बिना शादी किए रह रहे थे. इसे पुलिस रिकौर्ड में लिवइन रिलेशन दर्ज कर लिया गया. उन का प्रेम खत्म हो चुका था और प्रेमी सलाखों के पीछे जाने के काफी करीब था. उस ने जो आगे की कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली—

मनोज ने पुलिस को बताया कि मुझे दुख है कि मैं ने अपने हाथों से अपनी ( Love story ) प्रेमिका प्रतिमा पवल किस्पट्टा का गला घोंट दिया. उसी प्रेमिका को मार डाला, जिस ने मुझ से प्रेम किया और मुझे नौकरी दिलाने के लिए ओडिशा से यहां बुलाया था.

उस ने बताया कि प्रतिमा के कहने पर ही वह मुंबई में आया था. मुंबई में स्थित वड़ापाव की एक मशहूर दुकान पर काम करना शुरू कर दिया था. वह एमजी नगर रोड, धारावी में प्रेमिका प्रतिमा के साथ ही रहने लगा था. उन्होंने शादी नहीं की थी, लेकिन प्रतिमा उसे अपना पति बना चुकी थी. इस तरह से उन के लिवइन रिलेशनशिप की शुरुआत हो गई थी.

उन्होंने साथ रहते हुए भविष्य के सुनहरे सपने देखे थे. किंतु वे आर्थिक तंगी से भी गुजर रहे थे. पैसे की कमी को ले कर उन के बीच कभीकभार बहस भी हो जाती थी.

मनोज शिकायती लहजे में बताने लगा, ”सर, प्रतिमा मेरी प्रेमिका जरूर थी, पैसा भी कमाती थी. मैं जब भी अपने खर्चे के लिए मांगता था, तब किचकिच करने लगती थी. इसी बात पर मेरी उस से लड़ाई हो जाती थी. वह बारबार कहती थी कि अपना खर्च कम करो, अपनी कमाई के पैसे लाओ, फिर मुझ से मांगना.’’

इसी के साथ मनोज ने प्रतिमा के चरित्र पर भी शंका के लहजे में बोला, ”सर, प्रतिमा का कोई यार भी था. उस से बहुत देर तक वह फोन पर बातें करती थी. मैं सब समझता हूं सर! एक समय में कभी वह मुझ से भी फोन पर देरदेर तक बातें करती थी…’’

हत्या की बताई चौंकाने वाली वजह

इस शिकायती और संदेह वाली बातों पर पुलिस ने पूछा, ”तुम ने इस बारे में कभी पता लगाने की कोशिश की कि उस के पास पैसे हैं या नहीं? हो सकता है उस के पास उस वक्त पैसे नहीं हों, जब तुम मांगते होगे.’’

”नहीं सर, उस के पास पैसे होते थे, लेकिन नहीं देती थी.’’ मनोज बोला.

”चलो मान लिया, उस के पास पैसे होते थे, लेकिन उसी ने तुम्हें काम पर भी रखवाया था. वहां से पैसे मिले होंगे…उस का तुम ने क्या किया?’’ पुलिस ने पूछा.

”एक माह के ही मिले थे, सारे पैसे मैं ने अपने घर भेज दिए थे.’’ मनोज बोला.

”प्रतिमा को कुछ भी नहीं दिया?’’

”उसे क्यों देता, उसे भी तो पैसे मिले थे?’’ मनोज बोला.

”तुम्हें उस ने साथ रखा था, पति की तरह रहते थे. तुम्हारी भी तो घर चलाने की जिम्मेदारी थी.’’ पुलिस ने समझाया.

”लेकिन सर, वह अपने पैसे दूसरों पर खर्च करती थी, मुझे मालूम था वह कोई रिश्तेदार नहीं था. उस का एक प्रेमी था.’’ मनोज फिर प्रेमिका के चरित्र पर शंका के लहजे में बोला.

”इस का तुम ने कुछ पता किया या फिर यूं ही संदेह करते रहे?’’

”मैं क्या उस के बारे में पूछता. एक बार कुछ बोलने वाला ही था कि वह चीखने लगी… ताने मारने लगी… मुझे ही भलाबुरा कहने लगी थी.’’

”मुझे तो मालूम हुआ है कि प्रतिमा की कुछ माह से नौकरी छूट गई थी.’’

”हां, इस की जिम्मेदार भी वही थी. झगड़ालू स्वाभाव था. अपने मालिक से बातबात पर झगड़ पड़ती थी. उसे नौकरी से निकाल दिया था.’’ मनोज ने बताया.

”हो सकता है, दूसरे काम की तलाश में लोगों से फोन पर बात करती हो और तुम उसी को ले कर शक करने लगे हो.’’

”मैं इतना बुद्धू नहीं हूं सर, जो किसी लड़की के फोन पर हंस हंस कर बात करने का मतलब नहीं समझ पाऊं.’’ मनोज बोला.

”खैर, छोड़ो इन बातों को, सचसच बताओ 18 नवंबर, 2023 को क्या हुआ था?’’ पुलिस अब असली मुद्दे पर आ गई थी.

”असल में 18 तारीख को उस ने मुझ से कमरे का किराया देने के लिए पैसे मांगे. मेरे पास पैसे नहीं थे. इस पर उस ने मुझे दुकान से एडवांस मांगने को कहा, जो मुझ से नहीं हो सकता था. कारण, वहां से पहले ही एडवांस ले चुका था.’’

”फिर तुम ने क्या किया?’’

”मैं क्या करता, पैसे मेरे पास नहीं थे. इस बात को ले कर काफी बहस होने लगी. मैं परेशान हो गया. उस ने मुझे गालियां देनी शुरू कर दीं. दोपहर से हमें झगड़ते हुए शाम घिर आई. मैंं गुस्से से घर से बाहर निकल पड़ा. कुछ समय में ही वापस लौट आया. आते ही वह बरस पड़ी, ”आ गए, आटा लाए?’’

इस पर मैं ने जैसे ही कहा कि मेरे पास पैसे नहीं है तो वह एक बार फिर बरस पड़ी. गालियां देती हुई बोली, ”नहीं है तो भूखे रहो… मरो यहीं, मैं चली.’’

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इत्मीनान से रखी सूटकेस में लाश

मनोज ने आगे बताया, ”तब तक रात के साढ़े 9 बज चुके थे. प्रतिमा ने अपना बैग उठाया और पैर पटकती हुई घर से जाने लगी. मैं ने तुरंत उस का हाथ खींच लिया, जिस से उस का संतुलन बिगड़ गया और गिरने को हो आई. उस के बाद प्रतिमा और भी गुस्से में आ गई. आंखें लाल करती हुई गालियां देने लगी. मेरे खानदान तक को कोसने लगी.’’

मनोज ने आगे बताया, ”असल में उस का हाथ खींचने से चुन्नी उस के गले में फंस गई थी. इस कारण उस ने समझा कि मैं ने उस का गला जानबूझ कर कसने की कोशिश की है. गालियां देती हुई  मुझ पर आरोप लगा दिया कि मैं उसे गला कस कर मारना चाहता हूं.

”यह बात मेरे दिमाग में बैठ गई और उस की हत्या की बात कीड़े की तरह पलक झपकते ही दिमाग में कुलबुलाने लगी. फिर क्या था, ऐसा हुआ कि मानो मैं ने अपना होश खो दिया हो…

”मेरा गुस्सा चरम पर पहुंच चुका था. मैं ने 2-3 जोरदार थप्पड़ जड़ दिया. थप्पड़ खा कर वह जमीन पर गिर गई. तिलमलाती हुई वह उठने लगी, लेकिन जब तक वह उठ पाती, मैं ने दोनों हाथों से उस का गला दबा दिया. अपनी भाषा में गाली दी और हाथों की पकड़ मजबूत कर दी.

”कुछ सेकेंड बाद ही दुबलीपतली प्रतिमा बेजान हो चुकी थी. उस की चीख भी बंद हो चुकी थी. गुस्से में आ कर उस की हत्या तो हो गई, लेकिन उस के बाद मैं घबरा गया.’’

”और इस तरह तुम ने अपनी प्रेमिका (  Love story ) की हत्या कर डाली. उस के बाद तूने क्या किया?’’ जांच अधिकारी ने पूछा.

”रात के 10 बजने को हो आए थे. मैं अपने हाथों से प्रतिमा (Love story) की हत्या से घबरा गया था. थोड़ी देर तक उस के पास बैठा सोचता रहा, उस की मौत का मातम मनाता रहा, लेकिन पकड़े जाने, कड़ी सजा होने…जैसे खयाल मन में आने लगे. इसी बीच मेरी नजर घर में रखे उसी के एक बड़े सूटकेस पर गई. मैं ने झट उसे खाली किया और कपड़ों की तह के बीच जैसेतैसे कर के उस की लाश को ठूंस दिया.

”उस सूटकेस को ले कर कमरे पर से निकल गया. उस वक्त रात के करीब पौने 12 हो चुके थे. सायन से आटोरिक्शा लिया और कुर्ला लोकमान्य तिलक टर्मिनस जा पहुंचा. मैं सूटकेस को रेलवे स्टेशन के किसी इलाके में छोडऩा चाहता था, लेकिन लोगों की भीड़ देख कर ऐसा नहीं कर पाया. वापस लौट आया…’’ मनोज बोलतेबोलते रुक गया.

”आगे बताओ,’’ जांच अधिकारी ने कहा.

”उस के बाद मैं और भी घबरा गया क्योंकि आटोरिक्शा वाला बारबार मुझ से कह रहा था कि साहब जल्दी उतरो स्टेशन आ गया है. मैं पशोपेश में था कि क्या करना है और क्या नहीं! आखिरकार मैं ने आटो वहीं छोड़ दिया.

”वापस कमरे पर जाने के बारे में सोचते हुए दूसरा आटोरिक्शा लिया और सीएसटी पुल के नीचे सार्वजनिक शौचालय के सामने चेंबूर सांताक्रुज चैनल कुर्ला पश्चिम में एक जगह पर आया. वहां मेट्रो का काम चल रहा था. रात का समय था. एकदम सुनसान. वह जगह मुझे उचित लगी.’’

मनोज ने आगे बताया, ”मैं ने आटो वहीं छोड़ दिया. उस के जाने के बाद इधरउधर देखा. कहीं कोई नजर नहीं आ रहा था. वहां मेट्रो का काम चल रहा था. आम लोगों को जाने से रोकने के लिए कई बैरिकेड्स लगे थे. मैं ने तुरंत एक बैरिकेड को थोड़ा खिसका कर सूटकेस को अंदर सरका दिया. कुछ देर वहां रुकने के बाद मैं आगे बढ़ गया और आटो ले कर सायन धारावी लौट आया.’’

आगे की जानकारी देता हुआ मनोज बारला बोला, ”मैं कमरे पर जा कर फिर गहरी नींद में सो गया. अगले रोज 19 नवंबर को देर से नींद खुली. फटाफट तैयार हुआ और सुबह 11 बजे के करीब ओडिशा जाने के लिए रेलवे स्टेशन चला आया, किंतु ट्रेन पकडऩे से पहले ही क्राइम ब्रांच द्वारा पकड़ लिया गया.’’

पुलिस ने मनोज बारला के इस बयान को दर्ज कर लिया गया. आगे की काररवाई के बाद उसे गिरफ्तार कर मजिस्ट्रैट के सामने हाजिर कर दिया गया. वहां से जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime stories : शादी का झांसा देता फरजी सीबीआई अधिकारी

Crime stories : 12 दिसंबर, 2017 को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के थाना अशोका गार्डन में काफी भीड़भाड़ थी. धीरेधीरे यह भीड़ बढ़ती जा रही थी. लोग यह जानने के लिए उस भीड़ का हिस्सा बनते जा रहे थे कि आखिर यहां हो क्या रहा है? लोग उत्सुकता से एकदूसरे का मुंह भी ताक रहे थे कि यहां हो क्या रहा है? उधर से गुजरने वाला हर आदमी बिना ठिठके आगे नहीं बढ़ रहा था.

इस की वजह यह थी कि शायद माजरा उस की समझ में आ जाए. जब उन्हें सच्चाई का पता चला तो सभी के सभी हक्केबक्के रह गए. एक लड़की, जिस की उम्र 23-24 साल रही होगी, वह एक लड़के का गिरेबान पकड़ कर कह रही थी, ‘‘सर, इस ने मेरी जिंदगी बरबाद कर दी. इस ने मेरे साथ बहुत बड़ा धोखा किया है.’’

इस के बाद उस लड़की ने थाना पुलिस को जो बताया, उस के अनुसार उस लड़के ने फरजी आईपीएस अधिकारी बन कर उसे शादी का झांसा दिया था. काफी समय तक वह उस की इज्जत को तारतार करते हुए उस के भरोसे से खेलता रहा. यही नहीं, शादी करने के नाम पर उस ने उस से लाखों रुपए भी लिए थे.

लड़की को जब लड़के की सच्चाई का पता चला तो उस ने फरार होने की कोशिश की, लेकिन लड़की ने घर वालों की मदद से उसे पकड़ लिया और थाने ले आई. हर मांबाप की यही ख्वाहिश होती है कि वह अपनी औलाद को पढ़ालिखा कर इस काबिल बना दे कि वह खूब तरक्की करे.

ऐसी ही ख्वाहिश याकूब मंसूरी की भी थी. वह अपनी बेटी जेबा को गेट की तैयारी करवा रहे थे. जबकि मुसलमानों में आमतौर पर यही माना जाता है कि लड़कियों को ज्यादा पढ़ालिखा कर उन से नौकरी थोड़ी ही करानी है. लेकिन याकूब मंसूरी की सोच इस के विपरीत थी. वह जेबा को पढ़ालिखा कर कुछ करने के लिए प्रेरित करने के साथसाथ हर तरह से उस की मदद भी कर रहे थे.

जेबा मंसूरी भी अपने वालिद के सपनों को साकार करने में पूरी ईमानदारी से जुटी थी. वह परीक्षा की तैयारी मेहनत से कर रही थी. वह पढ़ने में भी काफी होशियार थी. उसे पूरी उम्मीद थी कि इस साल वह गेट की परीक्षा पास कर लेगी. इस के लिए वह रातदिन मेहनत कर रही थी. लेकिन जो सपने उस ने बुने थे, उस पर समीर खान की नजर लग गई.

मैट्रीमोनियल साइट से हुई दोस्ती

जवान होती लड़की के लिए हर मांबाप की यही ख्वाहिश होती है कि उन की बेटी के लिए किसी भी तरह एक अच्छा सा लड़का मिल जाए. इस के लिए मांबाप लड़के वालों की तमाम तरह की मांगों को पूरी करने की कोशिश भी करते हैं. अच्छे रिश्ते के लिए ही याकूब मंसूरी ने शादी डाटकौम पर बेटी जेबा की प्रोफाइल बनाई थी.

उन्होंने ऐसा बेटी के सुखद भविष्य के लिए किया था. लेकिन हो गया उल्टा. शायद इसीलिए जहां शादी की शहनाई बजनी थी, वहां अब मातम पसरा था. समाज में आज इतना बदलाव आ गया है कि लड़केलड़कियां अपनी पसंद से शादी करने लगे हैं. इस में कोई बुराई भी नहीं है. क्योंकि जब लड़के और लड़की को जीवन भर साथ रहना है तो पसंद भी उन्हीं की होनी चाहिए.

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इसीलिए अब परिचय सम्मेलन आयोजित किए जाने लगे हैं. इस से सब से बड़ा फायदा यह हुआ है कि लड़के के साथ लड़की को भी अपनी पसंद का जीवनसाथी मिल जाता है. चूंकि जमाना हाइटेक हो चुका है, इसलिए अब विवाह के लिए जीवनसाथी तलाशने का काम औनलाइन भी होने लगा है. कई प्लेटफार्म लोगों की शादी के लिए अच्छा जरिया बन गए हैं.

जेबा मंसूरी ने थाना अशोका गार्डन पुलिस को जो तहरीर दी थी, उस के अनुसार शादी के नाम पर उस के साथ धोखा हुआ था. जेबा ने नए साल में अपने लिए तरहतरह के जो अरमान पाले थे, नए साल के कुछ दिनों पहले ही उस के साथ जो हुआ, उस से उस के सारे अरमान एक ही झटके में चकनाचूर हो गए.

उस ने क्या सोचा था और उस के साथ क्या हो गया. शादी के नाम पर उस लड़के ने उस के साथ बहुत भयानक खेल खेला था, जिसे वह चाह कर भी इस जनम में नहीं भुला पाएगी. जेबा ने जो शिकायत दर्ज कराई है, उस के अनुसार उस के शादी के नाम पर धोखा खाने की कहानी कुछ इस प्रकार है—

जेबा प्रतियोगी परीक्षा गेट की तैयारी कर रही थी. जवान होती बेटी की शादी के लिए पिता याकूब मंसूरी ने शादी डाटकौम पर प्रोफाइल बना दी थी. शादी डाटकौम के जरिए शादी के लिए उस की प्रोफाइल पर एक रिक्वेस्ट आई. रिक्वेस्ट में दिए मोबाइल नंबर पर याकूब मंसूरी ने बात की.

इस बातचीत में उस ने अपना नाम समीर खान बताया था. उस ने बताया कि वह चेन्नई में सीबीआई में बतौर अंडरकवर डीएसपी नौकरी करता है. याकूब ने उस के घर वालों से बात करने की इच्छा जाहिर की तो उस ने अपने पिता अनवर खान का नंबर दे दिया. अनवर खान से समीर खान के बारे में जानकारी ली गई तो पता चला कि उन का बेटा समीर सीबीआई में अंडरकवर डीएसपी है. फिलहाल उस की पोस्टिंग चेन्नई में है.

बातचीत के लिए जेबा को ले गया होटल में

इस के बाद समीर ने याकूब मंसूरी से जेबा का मोबाइल नंबर यह कह कर मांग लिया कि वह उस से बात करेगा. अगर वह उसे पसंद आ गई तो वह इस जानपहचान को जल्दी ही शादी जैसे खूबसूरत रिश्ते में बदल देगा. याकूब मंसूरी ने समीर की बातों पर विश्वास कर के उसे जेबा का नंबर दे दिया.

अक्तूबर महीने में एक दिन जेबा के मोबाइल पर समीर ने फोन किया. दोनों में काफी देर तक बातें हुईं. दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने घर परिवार और विचारों के बारे में बताया. समीर ने ऐसी लच्छेदार बातें कीं कि जेबा उस के दिखाए सब्जबाग में फंस गई. इस के बाद अकसर उन की बातें होने लगीं. वाट्सऐप पर भी संदेशों का आदानप्रदान होने लगा.

ऐसे में ही एक दिन समीर ने भोपाल आ कर जेबा से मिलने की ख्वाहिश जाहिर की, जिसे वह मना नहीं कर सकी. समीर के भोपाल आने की बात पर एक ओर जहां जेबा खुश हो रही थी, वहीं दूसरी ओर अंजाना सा डर भी सता रहा था. क्योंकि किसी से फोन पर बात करना अलग बात होती है और आमनेसामने मिलना अलग.

लेकिन शादी का मामला था, इसलिए जेबा ने मिलना मुनासिब समझा. आखिर वह समीर को लेने भोपाल रेलवे स्टेशन पर पहुंच गई.  यह 22 नवंबर, 2017 की बात है. दोनों ने एकदूसरे को देखा तो पहली नजर में ही पसंद कर लिया.

समीर ने जेबा के घर जाने के बजाय उस के साथ स्टेशन से सीधे नूरउससबा पैलेस होटल पहुंचा. जबकि जेबा उसे घर ले जाना चाहती थी. लेकिन समीर की मरजी के आगे उस की एक न चली.

होटल में उस ने डबलबैड कमरा लिया था, जिस में दोनों 2 दिनों तक रुके. इस बीच समीर ने अपने परिवार के बारे में जेबा को खूब बढ़ाचढ़ा कर बताया. उस के बताए अनुसार, उस के परिवार के ज्यादातर लोग सरकारी नौकरियों में हैं. कोई जज है तो कोई इसी तरह की अन्य सरकारी नौकरी में. अपने पिता के बारे में उस ने बताया कि उन का मुंबई में कपड़ों का बहुत बड़ा बिजनैस है, इसलिए वह वहीं रहते हैं. वह बनारस का रहने वाला है, जहां उस की काफी जमीनजायदाद है.

समीर ने पसंद किया जेबा को

अपने घरपरिवार के बारे में बता कर समीर ने जेबा से कहा कि वह उसे पसंद है और उस से शादी के लिए तैयार है. समीर अच्छे घर का लड़का था और  (CBI )सीबीआई में अफसर था, इसलिए जेबा ने भी हामी भर दी. जेबा के हां करते ही समीर उस से छेड़छाड़ करने लगा. इस के बाद सारी मर्यादाएं लांघते हुए उस ने उस के साथ शारीरिक संबंध बना लिए.

जेबा भी उस के बहकावे में आ कर गुनाहों के ऐसे दलदल में जा फंसी, जहां से निकलना किसी भी लड़की के लिए बहुत मुश्किल होता है. भोपाल में 2 दिन रुकने के बाद समीर ने कहा कि औफिशियल काम से उसे दिल्ली जाना है. इस से जेबा को लगा कि वाकई उसे वहां जरूरी काम होगा.

लेकिन बाद में पता चला कि वह सब झूठ था. यह सब जेबा काफी बाद में जान पाई. दिल्ली जाने के बाद समीर ने उसे फोन किया. डरते हुए उस ने बताया कि उन के होटल में रुकने का पता उस के घर वालों को चल गया है, जिस से वे काफी नाराज हैं. उस की बातें सुन कर जेबा शौक्ड रह गई. वह यह क्या कह रहा है, अब क्या होगा, उस की कितनी बदनामी होगी?

समीर ने जेबा को समझाते हुए कहा कि वह बिलकुल परेशान न हो. यह बात भोपाल में किसी को पता नहीं है, सिर्फ उस के घर वालों को ही पता है. इस बात से वे काफी नाराज हैं. लेकिन घबराने की कोई बात नहीं है. कुछ दिनों में वह सब संभाल लेगा. वह बिलकुल परेशान न हो. वह उन्हें मना लेगा. वह फिर भोपाल आ रहा है. 2 दिन बाद समीर फिर भोपाल आया और नूरउससबा होटल के उसी कमरे में ही रुका. लेकिन इस बार जेबा होटल में उस के साथ नहीं रुकी, लेकिन उस से मिलने रोज आती रही.

अंत में जब समीर ने दबाव डाला तो वह 8 नवंबर से 23 नवंबर तक होटल में रुकी. समीर से उस के शारीरिक संबंध बन ही चुके थे, इसलिए इस बार भी वह उस से शारीरिक संबंध बनाता रहा.

जेबा ने ऐतराज जताया तो उस ने होटल में ही काजी को बुला लिया और उन के सामने कहा कि वह उस से निकाह कर के उसे अपनी बीवी मान रहा है. इस तरह से जेबा का निकाह समीर से हो गया. वह समीर की बीवी बन कर रहने लगी, जबकि उन के इस निकाह का कोई लिखित सबूत नहीं था.

इतने दिनों तक होटल में साथ रुकने के बाद जेबा समीर को अपने मम्मीपापा से मिलवाने के लिए सागर ले गई, जहां मकरोनिया सागर में उस का पुश्तैनी मकान था. वहां भी वह अपनी लच्छेदार बातों के जाल में फंसा कर जेबा के घर वालों के सामने एक अच्छा लड़का बना रहा. याकूब मंसूरी और उन की पत्नी को भी समीर पसंद आ गया था. अब इस रिश्ते में कोई अड़चन नहीं थी. कुछ समय तक सागर में रुक कर दोनों भोपाल लौट आए. समीर भोपाल स्थित जेबा के घर पर भी कई दिनों तक रुका. वहां भी दोनों ने जिस्मानी रिश्ते बनाए.

ट्रेनिंग के लिए जाने की बात कह कर ठगे लाखों रुपए

समीर ने जेबा के साथसाथ उस के घर वालों को भी इस बात का पक्का यकीन दिला दिया था कि वह सीबीआई में अंडरकवर डीएसपी है और उस का सिलेक्शन आईपीएस के रूप में हो गया है, जिस की ट्रेनिंग हैदराबाद में होनी है. आईपीएस की ट्रेनिंग पर वह इसलिए नहीं जा पा रहा था, क्योंकि किसी वजह से स्टे लगा था. लेकिन अब स्टे हट गया है, इसलिए उसे ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद जाना है.

ऐसे में ही जेबा ने उस से पूछ लिया कि वह वरदी क्यों नहीं पहनता तो उस ने कहा कि वह सीबीआई अफसर है, इसलिए उसे पहचान छिपा कर रखनी पड़ती है. जब कभी औफिस जाना होता है तो वह वरदी पहनता है.

जेबा के कहने पर एक दिन समीर ने उसे आईपीएस की वरदी पहन कर दिखाते हुए कहा कि जब कभी औफिशियल मीटिंग होती है, तब वह यह वरदी पहन कर जाता है. जेबा को उस वरदी पर संदेह हुआ, क्योंकि उस पर सीनियर अफसरों के बैज लगे थे. इस के बाद समीर ने उसे सील लगे हुए कई दस्तावेज दिखाए.

एक दिन समीर परेशान सा सोफे पर चुपचाप बैठा था. जेबा ने परेशानी की वजह पूछी तो उस ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘क्या बताऊं, मुझे ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद जाना है, जिस के लिए काफी पैसों की जरूरत है. होटल में मिलने को ले कर पापा अभी तक नाराज हैं, इसलिए उन से किसी तरह की मदद की उम्मीद नहीं है. अब परेशानी यह है कि ट्रेनिंग का खर्च कहां से आएगा.’’

समीर की बातों में आ कर जेबा ने कहा, ‘‘आप परेशान मत होइए, मैं आप के लिए पैसों का इंतजाम कर दूंगी.’’

समीर मना करता रहा, इस के बावजूद कई बार में जेबा ने तकरीबन 2 लाख रुपए उसे दे दिए. क्योंकि उसे कभी उस पर संदेह नहीं हुआ था.

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परिवार से मिलवाने की बात को टाल जाता था

जब भी जेबा समीर से घर वालों के बारे में पूछती या मिलवाने की बात कहती, वह कोई न कोई बहाना बना कर टाल जाता. जेबा को उस से मिले करीब 2 महीने हो गए थे, लेकिन उस ने अपने मम्मीपापा से मिलवाने की कौन कहे, फोन पर बात तक नहीं करवाई थी.

इन्हीं बातों से जेबा को उस पर शक होने लगा. संदेह गहराया तो उस ने अपने पापा से समीर के बारे में पता करने को कहा. उस ने और उस के मम्मीपापा ने समीर से उस की नौकरी और पढ़ाई के कागजात मांगे तो वह टालमटोल करने लगा. याकूब मंसूरी ने अपने कई परिचितों को समीर के बारे में पता करने के लिए लगा दिया. नतीजा यह निकला कि उस की असलियत का पता चल गया.

समीर को पता नहीं कैसे भनक लग गई कि उस की पोल खुल गई है. वह अपना बैग ले कर घर से भागने की फिराक में था, तभी जेबा ने कहा, ‘‘समीर, हमें तुम्हारी असलियत का पता चल गया है. अब मैं तुम्हें पुलिस के हवाले करूंगी, जिस से तुम्हारी जिंदगी जेल में कटेगी.’’

समीर डर गया. उस ने कहा, ‘‘अगर तुम लोगों ने मेरी शिकायत पुलिस में की तो मैं तुम सभी को जान से मार दूंगा.’’

लेकिन उस की इस धमकी से न जेबा डरी और न उस के मम्मीपापा. याकूब मंसूरी ने अपने दोस्तों की मदद से समीर को पकड़ लिया और थाना अशोका गार्डन ले गए, जहां वह खुद को पुलिस अधिकारी होने का भरोसा दिलाता रहा और वादा करता रहा कि जेबा से ही शादी करेगा.

लेकिन शादी का झांसा दे कर शारीरिक शोषण करने के साथ लाखों रुपए ऐंठने वाले समीर की असलियत जेबा को पता चल गई थी, इसलिए उस ने उस की किसी बात पर भरोसा नहीं किया. मामले की नजाकत को भांपते हुए अशोका गार्डन पुलिस ने समीर को तुरंत हिरासत में ले लिया.

समीर को हिरासत में लेने के बाद पुलिस ने याकूब मंसूरी के घर में रखे उस के बैग को कब्जे में ले कर तलाशी ली तो उस में से राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, सीबीआई सहित कई संस्थानों की फरजी मोहरें मिलीं. यही नहीं, उस के पास से डीआईजी रैंक के पुलिस अधिकारी की वरदी भी मिली. समीर ने एक गलती यह की थी कि उस ने जो वरदी खरीदी थी, वह डीआईजी रैंक के पुलिस अधिकारी की थी. 3 स्टार और अशोक चक्र लगी वरदी को पुलिस ने कब्जे में ले लिया था. पूछताछ में उस ने बताया कि यह वरदी उस ने बिहार के भागलपुर से खरीदी थी.

शातिर दिमाग है ठग समीर खान

एएसपी हितेश चौहान के अनुसार, समीर अनवर खान बहुत ही शातिर दिमाग था. उस ने बड़ी चालाकी से शादी डाटकौम पर अपनी प्रोफाइल बना कर जेबा मंसूरी जैसी पढ़ीलिखी लड़की को अपने जाल में फांस लिया था. बाद में पता चला कि उस ने ऐसा ही कारनामा पंजाब में किया था. मध्य प्रदेश पुलिस ने पंजाब पुलिस से जानकारी हासिल की तो पता चला कि ऐसे ही मामले में वह वहां भी गिरफ्तार किया गया था. जमानत पर रिहा होने के बाद वह फरार हो गया था.

पुलिस द्वारा की गई पूछताछ के अनुसार, समीर मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला वाराणसी का रहने वाला था. उस ने दिखावे के लिए एमटेक में अप्लाई कर रखा था. उस के पिता मुंबई में झुग्गीझोपड़ी में रहते थे और फेरी में कपड़े बेच कर गुजरबसर करते थे. उस ने जेबा से बताया था कि वाराणसी में उस की तमाम जमीनजायदाद है, लेकिन यह सब झूठ था.

मजे की बात यह थी कि उस ने पंजाब में जो धोखाधड़ी की थी, उस में उस ने 40-50 लाख रुपए की चपत लगाई थी. लेकिन कहीं से भी नहीं लगता था कि इतना पैसा उस के पास होगा.

थाना अशोका गार्डन पुलिस ने समीर के खिलाफ भादंवि की धारा 170, 419, 420, 471, 472, 473, 376 और 506 के तहत मुकदमा दर्ज किया था. कथा लिखे जाने तक समीर पुलिस रिमांड पर था. पुलिस उस से कई पहलुओं पर पूछताछ कर रही थी. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में समीर ने जो बताया है, उस से जाहिर होता है कि वह छोटामोटा अपराधी नहीं है.

होटल प्रबंधन को भी लगाया लाखों का चूना

समीर कितना शातिरदिमाग है, इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह भोपाल के सब से मशहूर होटल नूरउससबा में 2 नवंबर, 2017  से 23 नवंबर, 2017 तक लड़की के साथ रुका रहा, लेकिन होटल प्रबंधन को उस की कारगुजारियों की तनिक भी भनक नहीं लगी. वह इतने बड़े होटल को लाखों का चूना लगा कर रफूचक्कर हो गया था.

अच्छा हुआ कि वक्त रहते जेबा मंसूरी को उस पर शक हो गया, वरना हाथ से निकलने के बाद फिर शायद ही कभी वह चंगुल में फंसता. नूरउससबा पैलेस होटल में 20 दिनों से ज्यादा रहने के बाद भी वह पैसे दिए बिना  वहां से फरार हो गया था. होटल प्रबंधन के बताए अनुसार, 2 नवंबर से 23 नवंबर, 2017 तक होटल में रहने और खानेपीने का बिल 2 लाख 15 हजार 311 रुपए बना था.

समीर ने चालाकी से काम लेते हुए होटल प्रबंधन को भरोसे में लेने के लिए 20 हजार रुपए एडवांस जमा करा दिए थे. उसे वहां 24 नवंबर तक रुकना था, लेकिन एक दिन पहले ही वह अपना बोरियाबिस्तर समेट कर वहां से चलता बना.

पंजाब में आईएएस बन कर कर चुका है फरजीवाड़ा

समीर के बताए अनुसार, उस ने पंजाब के कपूरथला में भी एक बीएससी की छात्रा के साथ जालसाजी की थी. वहां भी उस ने कुछ ऐसी ही कहानी गढ़ी थी. उस ने वहां बताया था कि उस का सिलेक्शन ( Crime stories ) आईएएस में हो गया है. इस तरह उस के बहकावे में आ कर उस लड़की ने समीर से सन 2016 में निकाह कर लिया था. वहां उस ने अपना नाम शमशेर बताया था.

जब फरजी आईएएस का झूठ सामने आया तो कपूरथला के थाना फगवाड़ा पुलिस ने जनवरी, 2016 में शमशेर के खिलाफ धोखाधड़ी, दहेज अधिनियम और धमकाने की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर के उसे गिरफ्तार कर लिया था. शमशेर उर्फ समीर वहां 2 महीने तक जेल में बंद रहा. उस की दादी ने जमानत कराई तो जेल से बाहर आते ही वह फरार हो गया.

अब देखना यह है कि मध्य प्रदेश के साथसाथ पंजाब पुलिस समीर उर्फ शमशेर को धोखाधड़ी, पैसे ऐंठने, शारीरिक शोषण और फरजी पदों का गलत इस्तेमाल करने के अपराध में कितनी सजा दिलवा सकती है. पुलिस यह भी पता कर रही है कि यह काम समीर अकेला ही करता था या उस के साथ और कोई भी था.

काजल का असली रंग : बेटे को पढ़ाने वाले Teacher से बनाए संबंध

Tuition Teacher : वासना की आग ऐसी भड़की कि पतिपत्नी के उस रिश्ते को भी भूल गई, जिस के लिए 12 साल पहले उस ने सात जन्मों का बंधन निभाने का वादा किया था. उस ने प्रेमी संग मिल कर पति की हत्या कर डाली. प्रेमी ने योजना तो ऐसी बनाई थी कि पति की हत्या में मायके वाले ही फंस जाएं और वह प्रेमिका संग मौज मनाता रहे. लेकिन उन के मंसूबों पर तब पानी फिर गया, जब उन की काल डिटेल्स में 13 सौ बार बातचीत करने का पता चला.

35 वर्षीय दिलीप कुमार पाठक बिहार के बेगूसराय जिले के थाना तेघरा के गांव रानीटोल में अपनी ससुराल आया था. उस की पत्नी काजल उर्फ कंचन एकलौते बेटे अंश को ले कर सालों से मायके में रह रही थी. अंश मामा के घर रह कर ही पढ़ता था. काजल भी वहीं रहते हुए एक नर्सरी स्कूल में पढ़ाती थी.

वैसे भी दिलीप की माली हालत ठीक नहीं थी. वह प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था. प्रौपर्टी डीलिंग के इस धंधे में उस ने अपनी सारी जमापूंजी लगा दी थी. इस धंधे में उसे इतना घाटा हुआ था कि वह पैसेपैसे के लिए मोहताज हो गया था. अपनी स्थिति सुधारने के लिए ही उस ने पत्नी और बेटे को ससुराल भेजा था.

उस ने सोचा था कि जब तक हाथ खाली है, तब तक पत्नी और बच्चे को मायके में रहने दे. पैसों का थोड़ा इंतजाम हो जाने के बाद उन्हें वापस बुला लेगा. इसीलिए उस ने काजल और बेटे अंश को रहने के लिए ससुराल भेज दिया था.

उस दिन 25 नवंबर, 2017 की तारीख थी. शाम साढ़े 6 बजे के करीब दिलीप घर से अकेला ही बेटे की कौपी खरीदने चौर बाजार के लिए निकला. उस ने पत्नी से कहा कि कौपी खरीद कर थोड़ी देर में लौट आएगा. उसे घर से निकले काफी देर हो चुकी थी. देखतेदेखते रात के 10 बज गए, लेकिन दिलीप लौट कर घर नहीं आया. इस से काजल और अंश दोनों परेशान हो गए. दोनों की समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें. इतनी रात गए उसे कहां ढूंढें.

परेशान काजल को जब कुछ नहीं सूझा तो उस ने देवर विनीत के पास ससुराल फोन कर के पूछा कि दिलीप वहां तो नहीं गए हैं? शाम 5 बजे के करीब बाजार जाने के लिए कह कर घर से पैदल ही निकले थे, लेकिन अभी तक लौट कर नहीं आए. मेरा तो सोचसोच कर दिल बैठा जा रहा है.

भाभी के मुंह से भाई के बारे में ऐसी बात सुन कर विनीत भी परेशान हो गया कि आखिर बिना कुछ बताए भाई कहां चला गया. फिर उस ने बड़े भाई दिलीप के फोन पर काल की तो उस का फोन स्विच्ड औफ था. उस ने कई बार उस से बात करने की कोशिश की लेकिन हर बार फोन बंद मिला. आखिर उस ने यह बात घर वालों को भी बता दी.

दिलीप के घर वाले जिला समस्तीपुर में रहते थे. वहां से बेगूसराय थोड़ी दूरी पर था. विनीत ने सोचा अब तो सुबह ही कुछ हो सकता है. उस ने रात तो जैसेतैसे काट ली. सुबह होते ही वह भाई का पता लगाने रानीटोल पहुंच गया.

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वहां पहुंच कर उसे पता चला कि रानीटोल से सटी बूढ़ी गंडक नदी के किनारे हृष्टपुष्ट गोरे रंग और औसत कदकाठी के एक युवक की लाश पाई गई है. लाश का जो हुलिया बताया जा रहा था, वह काफी कुछ उस के भाई दिलीप से मेल खा रहा था. यह सुन कर विनीत थोड़ा विचलित हो गया कि कहीं लाश भाई की तो नहीं है. हो सकता है, उस के साथ कोई घटना घट गई हो.

जितनी भी जल्दी हो सकता था, वह मौके पर पहुंच गया. वहां काफी भीड़ जमा थी. भीड़ को चीरता हुआ वह लाश तक पहुंच गया. लाश दाईं करवट पड़ी थी. हत्यारों ने उस की गरदन पर किसी तेज धारदार हथियार से पीछे से वार किया था. पास ही पूजा की सामग्री पड़ी थी और लाश के ऊपर अधखुली पीली मखमली चादर पड़ी थी.

ऐसा लग रहा था, जैसे मृतक जब पूजा कर रहा था, तभी हत्यारे ने मौका देख कर उस पर पीछे से वार कर दिया हो. विनीत लाश देख कर पहचान गया कि लाश उस के भाई की है. वह भाई की लाश से लिपट कर बिलखबिलख कर रोने लगा.

गांव वाले भी लाश को देखते ही पहचान गए थे कि काजल के पति दिलीप की लाश है. जैसे ही काजल को पति की हत्या की सूचना मिली तो वह गश खा कर गिर गई. घर में रोनापीटना शुरू हो गया. घर वाले वहां पहुंच गए, जहां दामाद का शव पड़ा था.

जहां से दिलीप का शव बरामद हुआ था, वह इलाका समस्तीपुर जिले के थाना मुफस्सिल में पड़ता था. थाना मुफस्सिल को घटना की सूचना मिल चुकी थी. थानाप्रभारी पवन सिंह पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए थे. पवन सिंह ने इस बात की सूचना पुलिस अधीक्षक दीपक रंजन और डीएसपी मोहम्मद तनवीर अहमद को दे दी थी. वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी वहां पहुंच गए. घटनास्थल और लाश का निरीक्षण करने के बाद थानाप्रभारी पवन सिंह ने मृतक के भाई से पूछताछ की तो उस ने बताया कि दिलीप के पास उस का एक सेलफोन था, जो गायब है.

घटनास्थल पर पूजा की सामग्री के अलावा दूसरी कोई चीज नहीं मिली थी. पुलिस ने पूजा सामग्री और चादर अपने कब्जे में ले ली. कागजी काररवाई करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई. फिर पुलिस थाने लौट आई.

विनीत ने अपने भाई दिलीप की हत्या की तहरीर थाने में दे दी, जिस के आधार पर पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 34 के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के जांच शुरू कर दी.

दिलीप पाठक हत्याकांड का खुलासा करने के लिए एसपी दीपक रंजन ने डीएसपी तनवीर अहमद के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी. डीएसपी तनवीर अहमद ने घटनास्थल का दौरा कर के स्थिति को समझने की कोशिश की. परिस्थितियां बता रही थीं कि हत्या के इस मामले में मृतक का कोई अपना ही शामिल था. वह कौन था, इस का पता लगाना जरूरी था.

पुलिस ने मृतक के भाई विनीत पाठक से दिलीप की किसी से दुश्मनी के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि उस की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. काजल ने भी यही कहा. इसी दौरान एक मुखबिर ने चौंकाने वाली जानकारी दी. उस ने बताया कि दिलीप और उस की पत्नी काजल के बीच काफी मनमुटाव चल रहा था. प्रारंभिक जांच के दौरान तनवीर अहमद को काजल की हरकतें खटकी भी थीं, लेकिन उस के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं थे, इसलिए उन्होंने उस से सीधे बात करना ठीक नहीं समझा था.

डीएसपी मोहम्मद तनवीर अहमद ने दिलीप और काजल के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. काजल के फोन की डिटेल्स देख कर उन के होश उड़ गए. उस के फोन पर डेढ़ महीने में एक ही नंबर से 13 सौ फोन आए थे. कई काल तो ऐसी थीं, जिन में उसी नंबर से 2 से 3 घंटे तक बातचीत की गई थी.

यह नंबर पुलिस के शक के दायरे में आ गया. पुलिस ने उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो वह नंबर लक्ष्मण कुमार पासवान, निवासी रातगांव करारी, थाना-तेघरा, जिला बेगूसराय का निकला. पुलिस ने बिना समय गंवाए उसी दिन लक्ष्मण के घर पर दबिश दी और उसे पूछताछ के लिए थाने ले आई. पूछताछ में लक्ष्मण टूट गया. उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि उस ने काजल के कहने पर उस के पति दिलीप की हत्या की थी. काजल उस की प्रेमिका थी. यह सुन कर सभी अधिकारी स्तब्ध रह गए. क्योंकि देखने में भोलीभाली लगने वाली औरत नागिन से भी जहरीली निकली, जिस ने इश्क के नशे में अपने पति को ही डंस लिया.

काजल को यह समझते देर नहीं लगी कि उस के गुनाहों की पोल खुल चुकी है. ऐसे में भलाई सच बताने में ही है. काजल ने भी अपना जुर्म कबूल कर लिया कि उसी के कहने पर लक्ष्मण ने दिलीप की हत्या की थी. काजल ने हत्या की पूरी कहानी कुछ ऐसे बयां की—

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35 वर्षीय दिलीप कुमार पाठक मूलत: बिहार के समस्तीपुर जिले के थाना भगवानपुर के गांव बुढ़ीवन तैयर का रहने वाला था. पिता अनिल पाठक की 4 संतानों में वह सब से बड़ा था. हंसमुख स्वभाव का दिलीप मेहनतकश था. उस ने प्रौपर्टी डीलिंग का काम शुरू किया था, उस का यह धंधा सही चल निकला था.

दिलीप अपने पैरों पर खड़ा हो चुका था और ईमानदारी से पैसा कमा रहा था. पिता ने 12 साल पहले उस की शादी बेगूसराय के तेघरा, रानीटोल की रहने वाली काजल के साथ कर दी थी. शादी के कई साल बाद उस के घर में एक बेटा पैदा हुआ, जिस का नाम अंश रखा गया. समय के साथ प्रौपर्टी के धंधे में दिलीप को काफी नुकसान हुआ. इस के बाद उस का धंधा धीरेधीरे और भी मंदा होता गया. स्थिति यह आई कि प्रौपर्टी के बिजनैस में उस ने जितनी पूंजी लगाई थी, सब डूब गई. यह करीब 3 साल पहले की बात है.

पति की माली हालत खराब देख काजल बेटे को ले कर अपने मायके रानीटोल चली गई और वहीं मांबाप के साथ रहने लगी. पत्नी का यह रवैया दिलीप को काफी खला, क्योंकि मुसीबत के वक्त साथ देने के बजाय वह उसे अकेला छोड़ कर चली गई. वह मन मसोस कर रह गया और सब कुछ वक्त पर छोड़ दिया.

उधर काजल ने बेटे को वहीं के एक कौन्वेंट स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया. दिलीप बीचबीच में पत्नी और बेटे से मिलने ससुराल जाता रहता था. ससुराल में 1-2 दिन रह कर वह अपने घर लौट आता था. अंश जिस कौन्वेंट स्कूल में पढ़ता था, वहां की किताबें भाषा में काफी मुश्किल होती थीं. कभीकभी अंगरेजी के कुछ शब्दों के अर्थ काजल को भी पता नहीं होते थे, जबकि वह अच्छीभली पढ़ीलिखी थी. बेटे की पढ़ाई में कोई परेशानी न आए, इसलिए उस ने अंश के लिए घर पर ही एक ट्यूटर लगा दिया. यह पिछले साल जुलाईअगस्त की बात है.

ट्यूटर ( Tuition Teacher ) का नाम लक्ष्मण कुमार पासवान था. रातगांव करारी का रहने वाला 21 वर्षीय लक्ष्मण कुमार एकदम साधारण शक्लसूरत और सांवले रंग का युवक था. लक्ष्मण की वाकपटुता से काजल काफी प्रभावित थी. अंश को भी वह खूब मन लगा कर पढ़ाता था. थोड़े ही दिनों में लक्ष्मण उस परिवार का हिस्सा बन गया. बेटे को पढ़ाते समय काजल लक्ष्मण के पास ही बैठी रहती थी. लक्ष्मण जवान था. ऊपर से कुंवारा भी. जब काजल उस कमरे में आ कर बैठती थी, जिस में वह अंश को पढ़ाता था तो लक्ष्मण उसे कनखियों से निहारता रहता था. काजल भी लक्ष्मण के पास बैठने के लिए बेकरार रहती थी.

एक दिन लक्ष्मण अंश को (Tuition Teacher) ट्यूशन पढ़ाने उस के घर पहुंचा. उस समय शाम का वक्त था. उस रोज काजल काफी परेशान थी. उस ने अपने दुखों का पिटारा उस के सामने खोल कर रख दिया. लक्ष्मण काजल की दुखभरी व्यथा सुन कर भावनाओं में बह गया.

काजल ने उस से कहा कि वह उस के लिए कोई छोटीमोटी नौकरी ढूंढने में मदद करे. लक्ष्मण मना नहीं कर सका. बाद में लक्ष्मण ने अपने एक परिचित के माध्यम से एक नर्सरी स्कूल में उसे अध्यापिका की नौकरी दिलवा दी. काजल लक्ष्मण के अहसानों की कायल थी. धीरेधीरे वह उस की ओर झुकती गई. लक्ष्मण भी उस की ओर आकर्षित होता गया. धीरेधीरे दोनों में प्यार हो गया. प्यार भी ऐसा कि एकदूसरे को देखे बिना रह न सके. यह बात भी जुलाई अगस्त 2016 की है. 2 महीने के प्यार के बाद लक्ष्मण और काजल ने चुपके से मंदिर में विवाह कर लिया. काजल ने इस की भनक किसी को नहीं लगने दी, पति तक को नहीं.

9 वर्ष का अंश भले ही छोटा था, लेकिन उस में इतनी अक्ल थी कि वह अच्छे और बुरे में फर्क महसूस कर सके. उस ने अपनी मम्मी और ट्यूटर के बीच के रिश्तों को महसूस कर लिया था. उसे लगता था कि कहीं कुछ गलत हो रहा है, जो घरपरिवार के लिए अच्छा नहीं है. अंश ने यह बात अपने पापा दिलीप को बता दी. बेटे की बात सुन कर उस के तनबदन में आग लग गई. बहरहाल, सूचना मिलने के अगले दिन दिलीप ससुराल रानीटोल पहुंच गया. उस दिन (Tuition Teacher) ट्यूटर लक्ष्मण को ले कर पतिपत्नी के बीच काफी झगड़ा हुआ. काजल पति को समझाने के लिए झूठ पर झूठ बोले जा रही थी. उस ने सफाई देते हुए कहा कि उस के और लक्ष्मण के बीच कोई संबंध नहीं है.

लक्ष्मण को उस ने बेटे को ट्यूशन पढ़ाने के लिए रखा है. ट्यूटर आता है और बच्चे को ट्यूशन पढ़ा कर चला जाता है. उस रोज काजल अपने त्रियाचरित्र के दम पर पति को काबू करने में कामयाब हो गई थी. जैसेतैसे मामला शांत तो हो गया, लेकिन दिलीप पत्नी पर नजर रखने लगा.

पति को उस पर शक हो गया है, काजल ने यह बात लक्ष्मण को फोन कर के बता दी थी. उस ने लक्ष्मण को यह कहते हुए सावधान कर दिया था कि पति जब तक घर पर रहे, तब तक वह बच्चे को(Tuition Teacher) ट्यूशन पढ़ाने भी न आए. लक्ष्मण उस की बात मान गया और वैसा ही किया, जैसा उस ने करने को कहा था. काजल लक्ष्मण से मिलने के लिए बेचैन रहती थी. पति के रहते उन के मिलन में बाधा पड़ रही थी. काजल से लक्ष्मण की जुदाई बरदाश्त नहीं हो रही थी. उस ने पति को रास्ते से हटाने के लिए लक्ष्मण पर दबाव बनाया कि वह उस की हत्या कर दे. उस के बाद रास्ते में रुकावट पैदा करने वाला कोई नहीं रहेगा. काजल को पाने के लिए लक्ष्मण उस की बात मानने के लिए तैयार हो गया.

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लक्ष्मण जानता था कि दिलीप की माली हालत अच्छी नहीं है, इसलिए कुछ ऐसा चक्कर चलाया जाए, जिस से वह उस के काबू में आ जाए. इस के लिए उस ने काजल को धोखे में रखते हुए एक और खेल खेलने की सोची.

उस ने सोचा कि दिलीप की हत्या का ऐसा तानाबाना बुना जाए, जिस से पूरा शक काजल और काजल के मायके वालों पर ही जाए. कभी मामले का खुलासा हो भी तो वह शक के दायरे से बचा रहे. दिलीप ने लक्ष्मण को कभी नहीं देखा था, इसलिए वह उसे जानतापहचानता नहीं था. लक्ष्मण और काजल ने इसी बात का फायदा उठाते हुए योजना बनाई कि दिलीप को भरोसा दिलाया जाए कि एक ऐसी पूजा है, जिसे ध्यानमग्न हो कर करने पर पूजा की जगह पर ही 25 हजार रुपए मिल जाते हैं.

योजना बनाने के बाद काजल ने पति को इस पूजा के लिए मना लिया. दिलीप इसलिए तैयार हुआ था क्योंकि उस की आर्थिक स्थिति एकदम जर्जर हो चुकी थी. वह पैसेपैसे के लिए मोहताज था. उस ने सोचा कि संभव है ऐसा करने पर उसे आर्थिक लाभ मिल जाए. बहरहाल, सब कुछ योजना के मुताबिक चल रहा था. काजल ने 25 नवंबर, 2017 को दिन में एक तेज धार वाला गंडासा दिलीप की मोटरसाइकिल की डिक्की में छिपा कर रख दिया. उस ने यह बात फोन कर के लक्ष्मण को बता दी. अब केवल योजना को अमलीजामा पहनाना बाकी था. लक्ष्मण ने काजल को भरोसा दिलाया कि आज काम तमाम हो जाएगा.

25 नवंबर की शाम साढ़े 6 बजे के करीब दिलीप बेटे के लिए कौपी खरीदने के लिए घर से अकेला निकला. घर से निकल कर जब वह चौर बाजार पहुंचा तो पीछे से लक्ष्मण पंडित बन कर उस की मोटरसाइकिल के पास पहुंच गया.

दरअसल, दिलीप के घर से निकलते ही काजल ने लक्ष्मण को फोन कर के बता दिया था कि शिकार घर से निकल चुका है. चौर में उस से मुलाकात हो जाएगी. आगे क्या करना है, यह उसे पता था ही. चौर बाजार में उस की मुलाकात दिलीप से हुई तो उस ने काजल का परिचय देते हुए उसे पूजा वाली बात बताई. दिलीप समझ गया कि यह वही पंडित है, जिस से पूजा करानी है. लक्ष्मण उसे बाइक पर बैठा कर चौर (तेघरा) से समस्तीपुर ले आया, जहां उस ने पूजा की सामग्री खरीदी. सामग्री खरीदने के बाद वह दिलीप को ले कर मोटरसाइकिल से रानीटोल स्थित माधोपुर बूढ़ी गंडक नदी के किनारे पहुंच गया. यह इलाका जिला समस्तीपुर में आता था.

योजना के अनुसार, लक्ष्मण ने पहले दिलीप से पूजा करवाई. पूजा की प्रारंभिक विधि समाप्त होने के बाद उस ने पैसे पाने के लिए दिलीप से 15 मिनट तक आंखें बंद कर ध्यानमग्न होने को कहा. साथ यह भी कहा कि आंखें बंद करने के बाद ही पैसे मिलेंगे.

दिलीप ध्यानमग्न हो गया. तभी लक्ष्मण बाइक की डिक्की में रखा धारदार गंडासा ले आया. उस ने पीछे से दिलीप की गरदन पर जोरदार वार किया. गरदन कटने से दिलीप की मौके पर ही मौत हो गई. दिलीप की हत्या करने के बाद लक्ष्मण वहां से बाइक से वापस बेगूसराय लौट गया. बेगूसराय जाते वक्त लक्ष्मण ने दिलीप का मोबाइल फोन गरुआरा चौर की झाडि़यों में फेंक दिया. वहां से आगे जा कर उस ने गंडासा दलसिंहसराय के पास एनएच-28 के किनारे एक झाड़ी में फेंक दिया, ताकि पुलिस उस तक कभी न पहुंच सके.

इत्मीनान होने के बाद वह मोटरसाइकिल ले कर प्रेमिका काजल के घर रानीटोल पहुंचा. काजल उस के आने का बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रही थी. लक्ष्मण को देखते ही उस का चेहरा खुशी से खिल उठा. घर में सभी सो गए थे. उस ने दबे पांव मोटरसाइकिल बरामदे में चढ़ा दी. उस वक्त रात के करीब 10 बज रहे थे.

मोटरसाइकिल खड़ी करवाने के बाद काजल ऊपर खाली पड़े कमरे में गई तो पीछेपीछे लक्ष्मण भी हो लिया. वहां दोनों एकदूसरे की बांहों में समा गए. बाद में लक्ष्मण अपने घर चला गया.

दोनों के रास्ते का रोड़ा साफ हो चुका था. दोनों यह सोच कर खुश थे कि पुलिस उन तक कभी नहीं पहुंच पाएगी. लेकिन कानून के लंबे हाथों ने उन के मंसूबों पर पानी फेर दिया और दोनों वहां पहुंच गए, जहां उन का असली ठिकाना था यानी जेल की सलाखों के पीछे. अंश अपने दादा अनिल के साथ अपने पैतृक गांव बूढ़ीवन आ गया और दादादादी के साथ रह रहा है.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Film ‘दृश्सम’ की तर्ज पर प्रेमिका को तड़पा कर मारा

Film पति से तलाक होने के बाद 32 वर्षीय ज्योत्सना प्रकाश आकरे फौजी अजय वानखेड़े के संपर्क में आई. होटल में हसरतें पूरी करने के बाद फौजी ने उस से शादी करने का वायदा किया, लेकिन इस दौरान इन के बीच ऐसा क्या हो गया कि फौजी अजय ने न सिर्फ ज्योत्सना की हत्या कर दी, बल्कि घटना को फिल्म ‘दृश्यम’ की कहानी का रूप देने की कोशिश की?

28 अगस्त, 2024 को अजय वानखेड़े ने अपनी प्लानिंग के मुताबिक एक दूसरे फोन से ज्योत्सना से बात करने के बाद उसे नागपुर के वर्धा रोड पर आने के लिए कहा. उस ने ज्योत्सना को कहा कि वह उस से शादी करने को बिलकुल तैयार है, मगर उस से पहले वह शादी की कुछ जरूरी बातचीत अकेले में करना चाहता है.

इस बारे में वह अपने घर वालों को अभी कुछ न बताए, क्योंकि इस मामले में कुछ अड़चन सामने आ गई है, जोकि दोनों की आपसी बातचीत से ही सुलझ सकती है. ज्योत्सना ने प्रेमी अजय की बातों पर विश्वास कर लिया और उस ने प्रेमी से मिलने के लिए हामी भर दी. फिर ज्योत्सना ने अपने पिता और भाई को झूठ बोलते हुए यही बताया कि वह अपनी दोस्त अमृता उगे के घर किसी काम से जा रही है और वह रात को उसी के घर पर रुकेगी.

अजय ने होटल में कमरा पहले से ही बुक कर रखा था. जैसे ही ज्योत्सना वहां पहुंची तो अजय उसे पहले होटल में ले गया, फिर वह होटल में सामान रख कर घूमने के बहाने ज्योत्सना को अपनी कार में ले कर होटल से बाहर निकल गया. अजय ने रास्ते में टोल प्लाजा के पास ज्योत्सना को नशीली कोल्डड्रिंक पिला दी और फिर ज्योत्सना के बेहोश होते ही उस ने पहले ज्योत्सना की गला घोंट कर हत्या कर दी. इस के बाद उस ने आधी रात को न सिर्फ जंगल में गड्ढा खोदा, बल्कि उस में ज्योत्सना की लाश को दफन करने के बाद अपने साथ लाए सीमेंट से लाश वाले गड्ढे को पूरी तरह से बंद कर दिया.

इस के बाद कातिल प्रेमी अजय वानखेड़े ने ‘दृश्यम’ फिल्म की तर्ज पर सभी को उलझाने के लिए एक और काम किया. उस ने कत्ल करने के बाद ज्योत्सना के मोबाइल को एक चलते ट्रक में फेंक दिया, ताकि पुलिस इस कत्ल की साजिश का कभी भी परदाफाश न कर सके. इस के बाद उस ने एक और शातिराना चाल चली और इस वारदात को अंजाम देने के बाद वह तुरंत पुणे के आर्मी अस्पताल में भरती हो गया, ताकि कोई भी उस पर वारदात में शामिल होने को ले कर शक न कर सके.

फौजी के बायोडाटा से क्यों इंप्रैस हुई ज्योत्सना

 

32 वर्षीय ज्योत्सना प्रकाश आकरे तीखे नाकनक्श की खूबसूरत युवती थी. वह हुडको कालोनी कमलेश्वर नागपुर की रहने वाली थी. ज्योत्सना के घर पर उस के पापा कमल आकरे व एक छोटा भाई सिद्धेश्वर आकरे था. उस की मम्मी की काफी पहले मृत्यु हो चुकी थी. ज्योत्सना ने ग्रैजुएशन करने के बाद कंप्यूटर में भी 3 साल का कोर्स कर रखा था. पढ़ीलिखी थी तो उसे नागपुर में ही एक आटोमोबाइल कंपनी में जौब मिल गई थी. वर्ष 2019 में ज्योत्सना का विवाह अनूप नामक युवक से हुआ था, लेकिन पति से अनबन के कारण एक साल बाद ही दोनों में तलाक हो गया था.

उस के बाद ज्योत्सना ने विवाह करने का विचार लगभग छोड़ ही दिया था, लेकिन दूसरी ओर उस के पापा की उम्र बढ़ती जा रही थी इसलिए उस के पापा और भाई ज्योत्सना से विवाह करने के लिए अकसर कहते रहते थे. ज्योत्सना के पापा कमल आकरे ने तो एक दिन उस से कह ही दिया, ”देख बेटी ज्योत्सना, घर में तेरी मम्मी भी अब जीवित नहीं रहीं. एक तेरा छोटा भाई सिद्धेश्वर है, जिस की नौकरी लग चुकी है. एक दिन उस का विवाह भी हो जाएगा. मेरी उम्र अब इतनी अधिक हो चुकी है कि न जाने कब ऊपर वाले का बुलावा आ जाए. मेरे मरने के बाद तेरा क्या होगा, यही सोचसोच कर मैं चिंता में रहता हूं. मांबाप के बाद बेटी को भाई, बहन या भाभी या दूसरे रिश्तेदार कोई भी नहीं पूछते. अब तू बता कि तुझे शादी करनी है या नहीं?’’

इस के बाद ज्योत्सना ने भी अपने पापा से कह ही दिया, ”पापा, आप इतने दुखी व परेशान न रहा करें. मैं अपना बायोडाटा शादी डौटकौम पर डाल देती हूं, अगर मुझे कोई लड़का पसंद आ गया तो आप की सहमति से उस के साथ विवाह कर लूंगी. अब तो आप थोड़ा मुसकरा दीजिए.’’ और यह कहते हुए अपने पापा के गले लग गई थी. उस के बाद हंसमुख ज्योत्सना ने शादी डौटकौम पर अपनी फोटो और अपना पूरा विवरण अपलोड कर दिया और फिर इसी के जरिए अप्रैल 2024 में अजय वानखेड़े ने उस से संपर्क किया. अजय वानखेड़े न्यू कैलाश नगर, मानेवाड़ा, नागपुर का ही रहने वाला था. मैट्रीमोनियल साइट से अब दोनों की बातचीत होने लगी थी. ज्योत्सना को अजय वानखेड़े की बातचीत काफी अच्छी लगने लगी थी.

अजय और ज्योत्सना आकरे के बीच अब काफी बातचीत भी होने लगी थी. एक दिन कुरिअर से ज्योत्सना को एक पत्र मिला, भेजने वाले का नाम अजय वानखेड़े था और पता नागालैंड का था. ज्योत्सना को बड़ा आश्चर्य हुआ कि अजय वानखेड़े ने तो बातचीत में कभी नागालैंड का जिक्र तक नहीं किया था. उत्सुकतावश उस ने लिफाफा फाड़ा और पत्र गौर से पढऩे लगी. अजय ने पत्र में लिखा था, ‘मेरी प्रिय ज्योत्सनाजी, आप की फोटो और आप की बातें दिनरात सताती रहती हैं. ऐसा कोई भी पल नहीं होता, जब तुम्हारी याद मेरे ऊपर हावी नहीं होती, अगर आप मेरी इस सूनी जिंदगी में नहीं आतीं तो मेरा क्या होता? इस कल्पना से ही मेरा कलेजा मुंह को आ जाता है.

‘ज्योत्सना मैं ने तुम से अपनी कुछ बातें छिपाई हैं, जो मैं तुम्हें अपने पत्र मैं खुल कर बताना चाहता हूं, ताकि कल तुम मेरे ऊपर कोई तोहमत न लगा सको. पहली बात तो यह है कि भले ही मैं पोस्ट ग्रैजुएट हूं, लेकिन मैं भारतीय सेना में फार्मेसिस्ट हूं. फौज की नौकरी में मैं आप को सारे सुख दे भी पाऊंगा या नहीं, मैं कह नहीं सकता.

‘दूसरा, मैं एक बार शादी भी कर चुका हूं और मेरा पत्नी से तलाक हो गया. अब इस मुकाम पर आ कर कभीकभी मेरे दिलोदिमाग में यह विचार आता है कि मेरी इस सूनी जिंदगी के इस नाजुक मोड़ पर अगर तुम भी मुझे छोड़ दोगी तो फिर मेरा क्या होगा? मैं तो जीते जी मर जाऊंगा. तुम मुझे छोड़ोगी तो नहीं न?

‘सौरी ज्योत्सना, मैं आप से तो अब तुम पर भी आ गया. इसलिए कि मैं तुम्हें काफी अपना समझने लगा हूं और तुम्हें तो अब अपने दिल के काफी करीब भी मानने लगा हूं. देखो, मैं अगले महीने की 10 तारीख को एक महीने की छुट्टी पर नागपुर आ रहा हूं. एक बार तुम से मिलना चाहता हूं. मुझ से मिलोगी न तुम?

तुम्हारा अजय’

अजय का पत्र पढ़ कर ज्योत्सना भावविभोर हो उठी थी. उसे सब से अच्छी बात तो अजय की यह लगी कि उस ने अपने अतीत की सारी बातें सचसच पत्र में लिख डाली थीं. दूसरा वह उस की फोटो देख कर ही ज्योत्सना से इतना अधिक प्यार करने और चाहने लगा था. इसलिए उसी दिन शाम को ज्योत्सना ने अजय को फोन कर के बता दिया कि वह भी उसे पसंद करने लगी है. बाकी सारी बातें मिलने पर एकदूसरे को देख कर आपस में बातचीत कर के हो जाएंगी. उस ने अजय से ये भी कह दिया कि उसे फौजी बहुत पसंद हैं और वह अजय से मिलने के लिए बेसब्री से प्रतीक्षा कर रही है.

होटल में मिला नजदीक से जानने का मौका

10 जनवरी, 2024 को पहली बार अजय और ज्योत्सना की मुलाकात एक होटल में हुई. दोनों एकदूसरे से बातचीत करते और कुछ ही देर के बाद उन्हें ऐसा लगा कि वे दोनों तो वर्षों एकदूसरे को जानते हैं. इस के बाद एक दिन अजय ने ज्योत्सना से कहा कि एक दिन एक होटल में कमरा ले कर रुकते हैं. इस से हमें एकदूसरे को नजदीक से जानने का मौका भी मिल सकेगा. ज्योत्सना ने अजय की बात बात मान ली.

”हां अजयजी, यहां पर आप क्या बात कहना चाहते हैं. यहां पर आ कर भला हमारे बीच नजदीकियां कैसे बढ़ सकती हैं?’’ होटल में आ कर ज्योत्सना ने अजय से पूछा.

”ज्योत्सनाजी, आज आप को अपने सामने देख कर मैं अपने आप को दुनिया का सब से बड़ा भाग्यशाली व्यक्ति समझ रहा हूं. तुम्हारे सौंदर्य के सामने तो स्वर्ग की अप्सराएं भी कुछ नहीं हैं. कभीकभी तो मुझे विश्वास ही नहीं हो पा रहा है कि दुनिया की सब से सुंदर नारी मेरी बांहों में है.’’ यह कहतेकहते अजय ने ज्योत्सना को अपनी दोनों बांहों में ले लिया.

यह सुन कर और अजय की एकाएक बांहों में आ कर ज्योत्सना के गालों पर गुलाबी सुर्खी छा गई थी. भावावेश में आ कर ज्योत्सना ने अपना सिर अजय के कंधों पर रख दिया था. तभी उन के कमरे में बैरा कोल्डड्रिंक्स और स्नैक्स ले कर आ गया तो अजय ने फुरती से एक गिलास में नशे की गोली मिला दी थी. अजय की यह एक शातिराना चाल थी. अगले ही पल उस ने वह गिलास ज्योत्सना के हाथों में थमा दिया और कहा, ”ज्योत्सना, आज की हमारी पहली मुलाकात का एक छोटा सा जाम!’’

”अरे अजयजी, आप जाम की बात कहां करने लगे, मैं तो इस से दूर रहती हूं.’’ कहते हुए ज्योत्सना ने गिलास थाम लिया और उसे धीरेधीरे पीने लगी.

थोड़ी ही देर के बाद उसे एक अजीब सा नशा छाने लगा था और फिर वह अचेत हो गई. अजय ने इस का भरपूर फायदा उठाते हुए ज्योत्सना के साथ बेहोशी की अवस्था में संबंध स्थापित कर लिए. ज्योत्सना की बेहोशी पूरे 2 घंटे के बाद टूटी तो उस ने अपने आप को निर्वस्त्र अजय की बांहों में पाया. अजय उस समय चैन की नींद सो रहा था. ज्योत्सना ने उसे झिंझोड़ कर उठा दिया और जब अजय की आंखें खुलीं तो ज्योत्सना उस के ऊपर बुरी तरह से भड़क गई थी.

”अजय, तुम इतने गिरे हुए इंसान निकलोगे, ऐसा कभी मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था. तुम ने तो मुझे कहीं पर भी मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा. शादी से पहले ही तुम ने मेरे साथ इतना बड़ा धोखा आखिर क्यों किया?’’ ज्योत्सना ने गुस्से से कहा.

”ज्योत्सना, मैं सचमुच तुम्हारे सौंदर्य को देख कर बहक गया था. अपने आप पर बिलकुल ही काबू नहीं रख सका. इस के लिए मैं तुम से दिल से माफी मांगता हूं. मैं तुम्हें वचन देता हूं कि मैं केवल तुम्हारे साथ ही शादी करूंगा.’’ अजय ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

सब कुछ लुटाने के बाद भी ज्योत्सना ने फौजी को क्यों किया माफ

उस के बाद दोनों मिलते रहे. ज्योत्सना उसे हर बार अपने घर में आने के लिए कह चुकी थी, मगर अजय कुछ न कुछ बहाना कर के उसे टालता रहता था. एक दिन ज्योत्सना उसे जबरदस्ती अपने घर ले कर आ गई. उस समय ज्योत्सना के घर पर उस के पापा और भाई सिद्धेश्वर भी था. ज्योत्सना ने अजय की तारीफों के पुल बांधते हुए अपने पापा से उस का परिचय कराते हुए कहा, ”पापा, यही अजय वानखेड़े है. अजय भारतीय सेना में फार्मेसिस्ट हैं. मैं ने इन के बारे में पहले भी आप को बताया था. अजय बहुत ही अच्छे इंसान हैं. मुझ से बहुत प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं.’’

उस के बाद ज्योत्सना चाय बना कर ले आई. अजय से ज्योत्सना के भाई और पापा ने काफी देर बातचीत भी की. कुछ देर के बाद अजय अपने घर चला गया. उस के बाद ज्योत्सना के पापा ने उस से कहा, ”बेटी, आजकल किसी पर इतनी जल्दी विश्वास करना ठीक नहीं है. तुम ने उस के बारे में पता किया है कि वह कौन है, उस के परिवार में कौनकौन लोग हैं, उस के परिवार का और उस का क्या इतिहास रहा है?’’

”पापा, मैं ने अजय के बारे में सब कुछ जान लिया है. मुझे तो वह हर तरह से योग्य लगता है, उस का भविष्य भी मुझे काफी उज्जवल दिखता है,’’ ज्योत्सना ने कहा.

”देख बेटी, मेरा अनुभव तो यह कहता है कि वह ठीक इंसान नहीं है, पहली ही नजर में वह मुझ से नजरें चुराने लगा था. इसलिए मैं तो कहता हूं कि जरा सोचसमझ कर फैसला लेना. एक बार शादी कर के तुम देख चुकी हो, इस बार कहीं धोखा मत खा जाना.’’ कमल आकरे ने उसे समझाते हुए कहा. उधर ज्योत्सना ने अजय को अपना तन समर्पित कर दिया तो वह उस पर शादी का दबाव बनाने लगी. सच्चाई यह थी कि अजय उस से शादी नहीं करना चाहता था. वह तो केवल उसे मौजमस्ती का साधन समझ रहा था. इसलिए उस ने ज्योत्सना से दूरी बनानी शुरू कर दी.

ज्योत्सना जब कभी उसे फोन करती तो वह उस की काल रिसीव नहीं करता. ज्योत्सना बहुत परेशान रहने लगी. वह वह वाट्सऐप पर भी चैटिंग का जवाब नहीं देता. एक दिन ज्योत्सना ने अपनी एक परिचित महिला, जो अजय की भी रिश्तेदार थी, से उसे मैसेज भिजवाया कि अजय उस से जल्द बातचीत करे नहीं तो वह उस की सारी करतूतें नागालैंड में अजय के कमांड अधिकारी को बता कर उस के खिलाफ कानूनी काररवाई करवा देगी. इस से अजय वानखेड़े घबरा गया और वह ज्योत्सना से पीछा छुड़ाने के उपाय तलाशने लगा. फिर उस ने ‘दृश्यम’ फिल्म की तरह ज्योत्सना को खत्म करने की प्लानिंग तैयार कर ली. और 28 अगस्त को उसे मिलने के बहाने बुला कर उस की हत्या कर दी.

29 अगस्त, 2024 को बेलतरोड़ी थाने के सीनियर पुलिस इंसपेक्टर मुकुंदा कावड़े सुबहसुबह अपने औफिस में बैठे ही थे कि तभी एक युवक बदहवास सा उन के कार्यालय में आ गया. उस ने अपना नाम सिद्धेश्वर आकरे निवासी हुडको कालोनी कमलेश्वर, नागपुर बताया. उस ने बताया कि उस की बड़ी बहन ज्योत्सना आकरे बेसा में रहने वाली अपनी सहेली अमृता उगे के घर में रात को रुकने को कह कर कल दोपहर में निकली थी. आज सुबह अमृता उगे का फोन मेरे मोबाइल पर आया और उस ने ज्योत्सना के बारे में पूछा. इस पर मैं ने उसे बताया कि ज्योत्सना तो कल रात तुम्हारे घर पर रहने को कह कर घर से निकली थी.

अमृता ने बताया कि ज्योत्सना तो कल उस के घर आई ही नहीं थी, उस का फोन भी नहीं लग रहा था. अमृता ने सिद्धेश्वर से कहा कि ज्योत्सना कभी झूठ नहीं बोलती, इसलिए वह जरूर किसी मुसीबत में फंस गई होगी, तुम उस को अपने रिश्तेदारों में और पुलिस में रिपोर्ट कर दो. सिद्धेश्वर ने एसएचओ को बताया कि वह अपने सारे नातेरिश्तेदारों व जानपहचान वाले लोगों से संपर्क कर चुका है, मगर मेरी बहन का कहीं कुछ पता नहीं चला. यह कह कर वह जोरजोर से रोने लगा.

सीनियर पुलिस इंसपेक्टर मुकुंदा कावड़े ने रोते हुए सिद्धेश्वर आकरे को ढांढस बंधाया और तुरंत उस की तरफ से लिखित रिपोर्ट दर्ज कर ली. बेल्तारोड़ी पुलिस ही 29 अगस्त, 2024 को ज्योत्सना की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर ली. इस के बाद ज्योत्सना आकरे को ढूंढने से जुट गई. इधर दूसरी तरफ ज्योत्सना के पिता, भाई, रिश्तेदार और दोस्त भी उसे अपनेअपने स्तर पर ढूंढ रहे थे.

पुलिस ने ज्योत्सना का मोबाइल ट्रैकिंग पर लगा दिया था, उस का मोबाइल फोन तो औन था, मगर फोन कोई रिसीव नहीं कर रहा था. दूसरी तरफ फोन की लोकेशन लगातार बदलती जा रही थी. ऐसे में पुलिस कुछ भी अनुमान नहीं लगा पा रही थी. इस तरह 2 हफ्ते से ज्यादा का समय गुजर गया.

मोबाइल की लोकेशन से क्यों उलझी पुलिस

18 सितंबर, 2024 को सिद्धेश्वर आकरे फिर थाने पहुंचा. उस पर नजर पड़ते ही एसएचओ ने उसे पास बैठने को कहा.

”देखो, हम लोग ज्योत्सना को दिनरात ढूंढने में व्यस्त हैं. मगर अभी तक हमें कोई सफलता नहीं मिल सकी है. आप फिर भी निश्चिंत रहें, हम जरूर कामयाब होंगे.’’ एसएचओ मुकुंदा कावड़े ने कहा.

”इंसपेक्टर साहब, हमें यह मामला किडनैपिंग का लग रहा है. मेरी दीदी बालिग लड़की है, पढ़ीलिखी आत्मनिर्भर भी. इसलिए आप अपहरण का केस दर्ज कर लीजिए.’’ कहते हुए सिद्धेश्वर ने अपने दोनों हाथ जोड़ दिए थे.

पुलिस को भी यह मामला कुछ अजीब सा ही लग रहा था, क्योंकि ज्योत्सना आटोमोबाइल के एक शोरूम में काम करती थी और दूसरी बात यह थी कि वह हमेशा अपने घर वालों के संपर्क में रहती थी, ऐसी स्थिति में उस का अचानक से गायब हो जाना और पिछले 20 दिनों से किसी से भी फोन पर बात न करना पुलिस को भी अखर रहा था. इंसपेक्टर मुकुंदा कावड़े ने इस बात की सूचना तुरंत अपने उच्च अधिकारियों को दे दी. बेलतरोड़ी पुलिस थाने में 18 सितंबर, 2024 को ज्योत्सना की गुमशुदगी का मामला अपहरण के रूप में दर्ज कर लिया गया और नागपुर पुलिस कमिश्नर रविंद्र सिंघल के आदेश पर तुरंत एक विशेष पुलिस टीम का गठन कर दिया गया.

नागपुर पुलिस की विशेष टीम ने सीसीटीवी फुटेज, काल डिटेल्स और मोबाइल फोन का डंप डाटा निकाल कर ये समझने की कोशिश की कि ज्योत्सना की आखिरी बार किस से बातचीत हुई थी और उस की लास्ट लोकेशन कहां थी. काफी छानबीन के बाद भी पुलिस को कोई सुराग नहीं मिल सका. पुलिस ने मोबाइल की लोकेशन ट्रैस की तो उस की लोकेशन अलगअलग जगहों की आ रही थी. लोकेशन के अनुसार पुलिस महाराष्ट्र से ले कर हैदराबाद और छत्तीसगढ़ तक ढूंढती रही, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली.

नागपुर पुलिस ज्योत्सना के मोबाइल की लोकेशन का पता लगाते हुए एक ट्रक ड्राइवर के पास पहुंची तो पता चला कि उस ने ज्योत्सना के मोबाइल सिम कार्ड निकाल कर अपना सिम लगा लिया था और काम के सिलसिले में वह देश भर में घूम रहा था. ड्राइवर ने उसे बताया कि यह मोबाइल उसे उस के ट्रक में पड़ा मिला था. पुलिस ने ड्राइवर से ज्योत्सना का सिम कार्ड ले कर जब उस की जांच की तो पता चला कि ज्योत्सना ने अंतिम काल अजय वानखेड़े को की थी. पुलिस ने अजय वानखेड़े के बारे में जांच की तो पता चला कि वह सेना में फार्मेसिस्ट है और उस की पोस्टिंग नागालैंड में है. पुलिस को उस पर 3 वजहों से शक हुआ, जो बाद में सही भी निकला.

पहली वजह तो यह कि अजय उन्हीं दिनों पुणे के सेना अस्पताल में भरती हुआ था, जिन दिनों ज्योत्सना गायब हुई थी. हालांकि वह नागालैंड में पोस्टेड था, परंतु सेना का अधिकारी या जवान जो सेना में वर्तमान में कार्य कर रहा है, वह छुट्टी के दौरान भी किसी एक्सीडेंट या किसी अन्य कारण से अस्वस्थ महसूस करता है तो वह अपने नजदीकी किसी भी सेना के अस्पताल में भरती हो कर अपना इलाज करा सकता है. अजय वानखेड़े अपनी शुगर की बीमारी को दिखा कर दक्षिणी कमान के सेना के अस्पताल जोकि पुणे में स्थित था, वहां पर भरती हो गया था.

दूसरी वजह यह थी कि गुमशुदगी के दिन यानी कि 28 अगस्त, 2024 को ज्योत्सना और अजय वानखेड़े की लोकेशन एक जगह पर थी और तीसरी वजह यह थी कि अजय वानखेड़े की ज्योत्सना के अलावा और भी कई अन्य गर्लफ्रैंड थीं. ऐसे में पुलिस को उस की हरकतों पर शक होने लगा था. नागपुर की विशेष टीम ने जब विस्तृत जांच की तो पता चला कि सेना में फार्मेसिस्ट की नौकरी करने वाला अजय वानखेड़े की असल में पहले भी 2 शादियां हो चुकी थीं और वह अब तीसरी बीवी की तलाश में था. उस का उस का दोनों पत्नियों से तलाक हो चुका था, जबकि ज्योत्सना आकरे का भी पहले एक बार तलाक हो चुका था.

ज्योत्सना के परिजनों से भी पुलिस को यह मालूम हो चुका था कि ज्योत्सना और अजय एकदूसरे के संपर्क में काफी समय से थे और शादी भी करना चाहते थे. अब नागपुर पुलिस अजय वानखेड़े के पीछे पड़ गई थी. अजय वानखेड़े की तलाश करते हुए नागपुर पुलिस को पता चला कि अजय डाइबिटीज की शिकायत को ले कर पुणे के आर्मी अस्पताल में भरती है. चूंकि अब अजय पुलिस की रडार पर आ चुका था, इसलिए नागपुर पुलिस ने सेना अस्पताल से रिक्वेस्ट की कि हमें इस जवान पर शक है, इसलिए इस के ऊपर कड़ी निगरानी रखी जाए और जैसे ही यह अस्पताल से डिस्चार्ज हो, उसे तुरंत नागपुर पुलिस के हवाले कर दिया जाए.

मगर अजय वानखेड़े इतना शातिर निकला कि वह सेना के अस्पताल से ही फरार हो गया और नागपुर पुलिस और सेना भी भौचक्की हो कर रह गई पुलिस अब पूरी तरह से अजय वानखेड़े के पीछे पड़ चुकी थी. इसी बीच पुलिस का शक तब और भी गहरा हो गया, जब अजय वानखेड़े ने नागपुर के सत्र न्यायालय में अग्रिम जमानत के लिए आवेदन किया, लेकिन उस की याचिका खारिज कर दी गई. उस के बाद अजय वानखेड़े ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया.

एडवोकेट श्रीरंग भंडारकर और एडवोकेट एस.पी. सोनवाने ने अजय वानखेड़े की ओर से उच्च न्यायालय में पैरवी की, लेकिन न्यायमूर्ति उर्मिला जोशी फाल्के ने 15 सितंबर, 2024 को अजय वानखेड़े की ओर से दायर याचिका को खारिज कर दिया.

अजय ने किया पुलिस के सामने सरेंडर और फिर खुला ज्योत्सना मर्डर का राज

तब आखिरकार उस ने खुद ही नागपुर पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया. इस के बाद पुलिस ने उस से पुलिसिया अंदाज में पूछताछ की. दरअसल, ज्योत्सना कहीं गायब नहीं हुई थी बल्कि उस की नृशंस हत्या की गई थी और हत्या करने वाला भी कोई और नहीं बल्कि खुद अजय वानखेड़े ही था. अजय ने ज्योत्सना की हत्या की बात कुबूल करने के साथ ही उस की लाश को जंगल में दफनाने की बात भी कही.

उस के बाद पुलिस ने अजय की निशानदेही पर नागपुर के बाहरी इलाके में मौजूद एक सुनसान जगह से ज्योत्सना की जमीन में दफन सड़ीगली लाश बरामद की. फौजी अजय वानखेड़े ने ज्योत्सना की लाश जहां पर दफनाई थी, उस जगह को उस ने सीमेंट डाल कर सील कर दिया था, ताकि किसी भी कीमत पर लाश का राज कभी भी न खुल सके. बस यूं समझ लीजिए कि अजय देवगन और तब्बू द्वारा अभिनीत Film फिल्म ‘दृश्यम’ की तर्ज पर ही अजय वानखेड़े ने इस कत्ल की साजिश और प्लानिंग की थी. मगर इतनी सारी कोशिशें करने के बावजूद आखिरकार पुलिस ने उस की हरकतों, उस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स, उस की लोकेशन और ज्योत्सना के भाई के बयान के आधार पर उसे पकड़ ही लिया. और इस मर्डर मिस्ट्री का परदाफाश हो गया.

यह घटना एक बार फिर साबित करती है कि अपराध चाहे कितनी भी चतुराई से क्यों न किया जाए, कानून से बच पाना असंभव है. कहानी लिखे जाने तक पुलिस आरोपी फौजी अजय वानखेड़े को जेल भेज चुकी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है

 

 

Extramarital Affair : भाभी को लेकर भागा देवर

Extramarital Affair  30 वर्षीय पूनम ने 40 साल के दिनेश अवस्थी से प्रेम विवाह कर जरूर लिया था, लेकिन वह उस से खुश नहीं थी. फिर पूनम ने हमउम्र देवर मनोज अवस्थी को प्यार के जाल में फांस लिया. यह बात जब दिनेश को पता चली तो उस ने क्या किया? क्या पति के सामने पूनम देवर के साथ रहती रहीï? जानने के लिए पढ़ें यह दिलचस्प कहानी.

एक रोज दिनेश ने पत्नी पूनम को अपने छोटे भाई मनोज की बांहों में समाए हुए देख लिया. तब उस ने दोनों को खूब फटकार लगाई. उस समय उन दोनों ने दिनेश से माफी मांग ली. कुछ दिनों बाद पूनम और मनोज दोबारा पकड़े गए, तब दिनेश ने दोनों की जम कर पिटाई की. इस के बाद पूनम और मनोज ने बाधक बन रहे भाई दिनेश को ठिकाने लगाने का निश्चय किया.

भाई का काम तमाम करने के लिए मनोज बिधनू बाजार गया और वहां से डेढ़ सौ रुपए में तेज धार वाला चाकू खरीदा और उसे कमरे में ला कर छिपा दिया. पूनम ने पत्थर पर रगड़ कर उस चाकू की धार तेज कर दी. 23 अप्रैल, 2024 की रात 8 बजे दिनेश घर आया. वह नशे में था और आते ही चारपाई पर लुढ़क गया. दिनेश गहरी नींद सो गया तो उस की पत्नी पूनम देवर मनोज के कमरे में पहुंच गई. उस के बाद वे दोनों मस्ती में डूब गए. आधी रात को मनोज के कमरे का दरवाजा भड़ाक से खुला तो दिनेश सामने खड़ा था.

शायद उस की नींद खुल गई थी और वह पूनम को ढूंढते हुए कमरे में आ पहुंचा था. पत्नी को छोटे भाई मनोज के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देख कर उस का खून खौल उठा था. उस ने गुस्से में पत्नी पूनम पर हाथ उठाया तो मनोज से रहा नहीं गया और उस ने बड़े भाई दिनेश का हाथ पकड़ कर मरोड़ दिया. इसी समय पूनम बोली, ”मनोज, देख क्या रहे हो. आज इस बाधा को दूर कर दो. हम दोनों का जीना हराम कर दिया है इस ने.’’

इस के बाद मनोज और पूनम ने मिल कर दिनेश को दबोच लिया और फिर चाकू से गोद कर उस का काम तमाम कर दिया. हत्या करने के बाद उस के हाथपैर रस्सी से बांधे, फिर शव को बोरी में भर कर साइकिल पर लाद कर गांव के बाहर तालाब में फेंक दिया. सुबह उन दोनों ने मिल कर खून के धब्बे साफ किए और खून लगी काटन और कपड़े चारपाई के नीचे छिपा दिए. चाकू उस ने टांड पर छिपा दिया.

26 अप्रैल की सुबह वह तालाब पर गया तो दिनेश की लाश तालाब में उतरा रही थी. उस ने लाश को डंडे से दबाने का प्रयास किया, लेकिन असफल रहा. उसी समय उसे गांव के कुछ लोग तालाब की तरफ आते दिखाई दिए तो वह डर गया और फिर डर की वजह से घर में ताला लगाया और पूनम को साथ ले कर फरार हो गया.

2 दिन दोनों बुआ के घर लखीमपुर रहे. फिर वहां से चित्रकूट पहुंचे, चित्रकूट में कुछ दिन रहे. उस के बाद बागेश्वर धाम आश्रम आ गए. पकड़े जाने के डर से उन दोनों ने अपने मोबाइल फोन बंद कर लिए थे. बागेश्वर धाम आश्रम उन्हे छिपने के लिए उचित लगा, इसलिए वे वहीं रहने लगे. जीवन चलाने के लिए उन दोनों ने आश्रम के बाहर एक चाय स्टाल पर नौकरी खोज ली. दिन भर दोनों चाय स्टाल पर रहते और रात में आश्रम आ कर सो जाते.

दिनेश की क्यों नहीं हो रही थी शादी

उत्तर प्रदेश के कानपुर जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर बिधनू थाना अंतर्गत एक गांव है- खेरसा. बिधनू कस्बा से सटे इस गांव के लोग या तो खेती करते हैं या फिर व्यापार. पढ़ेलिखे लोग सरकारी/प्राइवेट नौकरी भी करते हैं. इस गांव में बिजली पानी जैसी सभी भौतिक सुविधाएं उपलब्ध हैं. गांव के आसपास कई ईंट भट्ठे हैं, जहां सैकड़ों मजदूर काम करते हैं. अन्य प्रदेशों के मजदूर भी यहां काम की तलाश में आते हैं.

इसी खेरसा गांव में स्थित अपनी ननिहाल में दिनेश अवस्थी रहता था. दिनेश अवस्थी के पिता राजकुमार अवस्थी, लखीमपुर जनपद के मूलगांव कुडऱीरूप सेनारूप के मूल निवासी थे. उन के परिवार में पत्नी सावित्री के अलावा 3 बेटे दिनेश, मनोज व मयानंद उर्फ अशनी थे. बड़ा बेटा दिनेश अपने भाई मनोज के साथ ननिहाल (खेरसा गांव) में रहने लगा था, जबकि सब से छोटा मयानंद पिता के साथ गांव में रहता था.

दिनेश अवस्थी ट्रक चलाता था, जबकि मनोज बिधनू के ईंट भट्ठे पर काम करता था. दोनों भाइयों की अभी तक शादी नहीं हुई थी. दिनेश का कहीं रिश्ता तय नहीं हो पा रहा था. उस की शादी के लिए उस के मातापिता भी चिंतित थे. क्योंकि वह 40 वर्ष की उम्र पार कर चुका था. इन्हीं दिनों एक रोज दिनेश की मुलाकात पूनम उर्फ गुडिय़ा से हुई. पूनम के पिता रघुवर सीतापुर जनपद के गांव लहरापुर के रहने वाले थे. पूनम उन की बिगड़ैल बेटी थी. आवारा युवकों के साथ घूमना, उन के साथ मौजमस्ती करना उस का शौक था. इसी बदनामी के कारण उस का रिश्ता नहीं हो पा रहा था. रघुवर बेटी के चालचलन से बहुत दुखी थे.

दिनेश की रिश्तेदारी लहरापुर गांव में थी. रिश्तेदार के घर आतेजाते ही दिनेश की मुलाकात पूनम से हुई थी. 30 वर्षीय पूनम दिनेश को ऐसी भाई कि वह उस के पीछे ही पड़ गया. पूनम भी घर बसाना चाहती थी, इसलिए वह भी दिनेश को लिफ्ट देने लगी. दोनों के बीच मुलाकातें बढ़ीं और बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तो नजदीकियां भी बढऩे लगीं.

वर्ष 2023 की जनवरी माह में दिनेश ने पूनम उर्फ गुडिय़ा से बारादेवी मंदिर में जयमाला पहना कर प्रेम विवाह कर लिया. इस विवाह की जानकारी न तो दिनेश के घरवालों को हुई और न ही पूनम के घर वालों को. हालांकि बाद में दोनों परिवारों को उन के विवाह की भनक लग गई थी. लेकिन विरोध किसी की तरफ से नहीं किया गया. शादी के वक्त पूनम की उम्र 30 वर्ष थी, जबकि दिनेश अवस्थी 40 वर्ष पार कर चुका था. शादी के बाद दिनेश खेरसा गांव में पूनम के साथ रहने लगा. चूंकि अधेड़ उम्र में दिनेश ने प्रेम विवाह किया था, अत: वह पत्नी पूनम को बेहद प्यार करता था और उस की हर डिमांड पूरी करता था.

विवाह के बाद के दिन मौजमस्ती में बीतते हैं. पूनम दिनेश से मिलने वाले सुख से इस कदर आनंदित होती रही कि किसी दूसरी ओर उस का ध्यान ही नहीं गया. लेकिन एक महीने बाद जब दिनेश काम पर जाने लगा और देर रात घर वापस आने लगा तो पूनम के दिमाग में फितूर समाना शुरू हो गया. वह सोचने लगी कि दिनेश न उसे कहीं सैरसपाटा कराने ले जाता है और न शौपिंग कराने. न कभी कोई उपहार ला कर दिया है. पत्नी को खुश रखने का न तो उसे हुनर आता है, न तमीज है. दिनेश से शादी होते ही उस के अरमानों को घुन लग गया और किस्मत का बेड़ा गर्क हो गया.

बीतते दिनों के साथ पति से पूनम का मन खट्टा होने लगा. उस ने पति की परवाह करनी छोड़ दी. न वह उस की जरूरतों का ध्यान रखती, न उस की कोई बात सुनती. दिनेश अपनी कोई जरूरत बताता तो वह एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल देती. इस के बावजूद दिनेश उस पर प्यार उड़ेलता. दिनेश ट्रक चलाता था. शराब का भी लती था. अत: वह जब घर लौटता तो नशे में झूमता आता. कभीकभी शराब की बोतल साथ भी ले आता, फिर घर में बैठ कर पीता. शराब पीने को ले कर दोनों के बीच बहस होती, फिर झगड़ा होता.

दिनेश और पूनम में झगड़ा होने लगा तो पूनम सोचने लगी कि उस ने अधेड़ उम्र के शराबी से प्रेम विवाह रचा कर बड़ी भूल की है. वह उसे देह सुख प्रदान नहीं कर सकता. पूनम अपनी हसरतों का गला नही घोंटना चाहती थी. उस ने अपने सुख के साधन की तलाश शुरू की तो नजरें मनोज पर ठहर गईं. मनोज पूनम के पति दिनेश का छोटा भाई था. रिश्ते में वह उस का सगा देवर. दोनों भाई साथ ही रहते थे. मनोज पूनम का हमउम्र था. आखों, चेहरे, Extramarital Affair  जिस्म व बातों से उस का कुंवारापन साफ झलकता था. पूनम जब भी मनोज को देखती, उस की लार टपकने लगती.

वह सोचती, मनोज से उस की शादी हुई होती तो हर दिन होली होती और हर रात दिवाली होती. दिन को चाहत के रंग बिखरते, कहकहों का गुलाल उड़ता और रात को हसरतों की फुलझडिय़ां. पूनम ने जो करना था, तय कर लिया. पूनम के दिल में देवर आया तो मनोज को रिझाने के लिए पूनम ने उसी तरह डोरे डालने शुरू कर दिए, जिस तरह देह सुख की प्यासी औरत डाला करती है. कभी वह वक्षों से आंचल गिरा देती, कभी सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट में ही मनोज के सामने आ जाती. कभी सजधज कर उसे रिझाने की कोशिश करती.

पूनम के खुलेपन और छेड़छाड़ से मनोज का मन गुदगुदाता था. वह यह भी समझ गया था कि भाभी उस से क्या चाहती है? मनोज भी यही चाहने लगा था. मगर उसे बड़े भाई दिनेश का डर सता रहा था. इसलिए पहल करने से डरता था. धीरेधीरे दोनों की नजदीकियां बढऩे लगीं. पूनम देवर मनोज के साथ बिधनू कस्बे के बाजारहाट भी जाने लगी. मनोज अपनी कमाई के कुछ पैसे भाभी के हाथ पर भी रखने लगा. इस से पूनम का लगाव और भी बढऩे लगा. मनोज की अब भाभी से खूब पटती थी. देवरभाभी के बीच हंसीमजाक व ठिठोली भी होती थी. मनोज को भाभी की सुंदरता और अल्हड़पन खूब भाता था. कभीकभी वह उसे एकटक प्यार भरी नजरों से देखा करता था.

अपनी ओर टकटकी लगाए देखते समय जब कभी पूनम की नजर उस से टकरा जाती तो दोनों मुसकरा देते थे. मनोज दिनेश से ज्यादा सुंदर और अच्छी कदकाठी का था, इसलिए पूनम उस पर पूरी तरह से फिदा हो गई थी.

पूनम के देवर की तरफ क्यों बढ़े कदम

मनोज भी पूनम को चाहने लगा था. चूंकि वे देवरभाभी थे, इसलिए दोनों के साथ रहने पर दिनेश को कोई शक नहीं होता था. दिनेश सरल स्वभाव का था. पत्नी पर विश्वास भी करता था. पत्नी और भाई के बीच क्या खिचड़ी पक रही है, इस की दिनेश को कोई जानकारी नहीं थी. वह अपने में ही मस्त रहता था. देह सुख पाने की लालसा दोनों में दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी. आखिर जब मनोज से नहीं रहा गया तो उस ने एक रोज मजाकमजाक में भाभी पूनम को बाहों में भर लिया और शारीरिक छेड़छाड़ शुरू कर दी. इस छेड़छाड़ का पूनम Extramarital Affair ने विरोध नहीं किया. उस ने भी दोनों हाथों से मनोज को जकड़ लिया.

मनोज ने इस मूक आमंत्रण का फायदा उठाते हुए उस पर चुंबनों की झड़ी लगा दी. इस के बाद अपनी मर्यादाओं को लांघते हुए दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं. चूंकि मनोज घर में ही रहता था. इसलिए कुछ दिनों तक दोनों का खेल पूरी तरह से चलता रहा. दिनेश को पता तक नहीं चला कि उस के पीछे घर में क्या हो रहा है. आसपड़ोस के लोग भी यही समझते रहे कि दोनों देवरभाभी हैं. इसलिए उन पर शक नहीं हुआ.

पूनम अब देवर मनोज के साथ खुल कर खेलने लगी थी और देह सुख का भरपूर आनंद उठाने लगी थी. उसे दिन दोपहर शाम जब भी इच्छा होती, वह देवर के कमरे में पहुंच जाती और उस के साथ बिस्तर पर बिछ जाती. कभीकभी तो वह रात में भी पति को बिस्तर पर नशे में धुत सोता छोड़ कर देवर के पास पहुंच जाती और देह की प्यास बुझा कर वापस पति के बिस्तर पर आ जाती.

पूनम देवर के प्यार में इतनी अंधी बन गई थी कि उसे पति नकारा और देवर प्यारा लगने लगा था. वह पति की हर तरह से उपेक्षा भी करने लगी थी. न उस का खानेपीने का ध्यान रखती थी और न ही उस से हमदर्दी जताती थी. जब कभी दिनेश कामसुख की कामना करता तो वह कोई न कोई बहाना बना देती. दिनेश की समझ में नहीं आ रहा था कि पूनम ऐसा बरताव क्यों कर रही है. गलत काम कैसा भी हो, उस की उम्र लंबी नहीं होती. पूनम और मनोज के साथ भी ऐसा ही हुुआ. एक दोपहर पड़ोस में रहने वाली ठकुराइन ने दोनों को आपत्तिजनक हालत में देख लिया.

ठकुराइन ने इस पाप की जानकारी आसपड़ोस की महिलाओं को दी. उस के बाद पहले पड़ोस में चर्चाएं शुरू हुईं, फिर उन के संबंधों की चर्चा पूरे गांव में खुल कर होने लगी. ये चर्चाएं दिनेश के कानों तक पहुंचीं तो उस ने पूनम से जवाब मांगा.

पोल खुली तो पूनम ने बहाए घडिय़ाली आंसू

ऐसे मामलों में जैसा कि होता है, कोई महिला आसानी से अपनी चरित्रहीनता स्वीकार नहीं करती. पूनम भी साफ मुकर गई, ”लोगों ने कह दिया और तुम ने मान लिया. मुझ पर लांछन लगाते हुए तुम्हें जरा भी शरम नहीं आई.’’

”किसी एक ने कहा होता तो मैं उस का मुंह तोड़ देता, लेकिन पूरा गांव कह रहा है कि तूने मेरे भाई को यार बना लिया है.’’ दिनेश ने डंडा उठा लिया, ”सच बोल, वरना तेरी हड्डियां तोड़ दूंगा.’’

पूनम सच बोलती तो शामत, सच न बोलती तो भी शामत. अत: उस ने सच ही बोलने का निश्चय कर लिया. उस ने घडिय़ाली आंसू बहाते हुए दिनेश के पांव पकड़ लिए, ”मुझ से गलती हो गई. माफ कर दो. वायदा करती हूं कि आइंदा मनोज से संबंध नहीं रखूंगी.’’

पहली गलती समझ कर तथा बदनामी के डर से दिनेश ने पत्नी को माफ कर दिया. डर कर पूनम ने पति से वादा तो कर लिया, पर वह उस पर अमल करने को मानसिक रूप से राजी नहीं थी. दरअसल, पूनम के दिल में पति की जगह देवर बस गया था, इसलिए वह उस से नाता तोडऩा नहीं चाहती थी. इधर भेद खुला तो मनोज डर की वजह से गांव चला गया. दिनेश ने फोन पर बात की, तभी वह वापस आया. आते ही उस ने भी दिनेश के पैर पकड़ लिए, ”भैया, मुझे माफ कर दो. बड़ी भूल हो गई. आइंदा ऐसी भूल नहीं होगी.’’

दिनेश ने रहम करते हुए भाई मनोज को माफ कर दिया. इस के कुछ दिनों तक तो पूनम और मनोज ठीक रहे, लेकिन मौका मिलने पर वे अपनीअपनी हसरतें पूरी कर लेते थे.

भाई के सीधेपन की वजह से मनोज की हिम्मत बढ़ गई थी. अब मनोज अपनी भाभी से शादी रचाने के ख्वाब देखने लगा था. उस ने अपने मन की बात भाभी Extramarital Affair से कही तो वह भी देवर से शादी रचाने को राजी हो गई. इधर दिनेश को विश्वास हो गया था कि पूनम को अपने किए का पछतावा है. इसी कारण उस ने मनोज से यारी तोड़ दी है. एक रोज दोपहर को वह बेवक्त घर लौटा तो फिर से एक बार उस की आंखों के आगे अंधेरा सा छा गया.

उस ने देखा कि पूनम मनोज की बांहों में पड़ी है. यह देख कर उस ने मनोज और पूनम की जम कर पिटाई कर डाली. पिटने के बाद मनोज तो भाग निकला, लेकिन पूनम कहां जाती. वह रात भर अपनी चोटों को सहलाती रही और नफरत की आग में जलती रही. दिनेश का विश्वास चकनाचूर हुआ तो वह पूनम पर निगरानी रखने लगा. दिनेश अब हमेशा उसे नजरों के पहरे में रखता था. इस कारण वह देवर से मिल नहीं पाती थी. इस का उपाय उस ने यह निकाला कि जिस रोज दिनेश ज्यादा शराब पी लेता और धुत हो कर सो जाता, वह मनोज के कमरे में पहुंच जाती. फिर सारी रात दोनों जिस्म की आग में तपते रहते.

एक रात मनोज की बांहों में लेटी पूनम ने मन की बात कह डाली, ”मनोज, हम इस तरह कब तक आंखमिचौली खेलते रहेंगे. कोई ऐसा रास्ता नहीं है, जिस से दिनेश हम दोनों के बीच से हमेशा के लिए हट जाए.’’

मनोज को तो जैसे इसी बात का इंतजार था. उस ने पूनम के गालों को सहलाते हुए कहा, ”चिंता मत करो भाभी, तुम्हारी यह इच्छा जरूर पूरी होगी.’’

दरअसल, मनोज पूनम को अपनी जागीर समझने लगा था. वह उसे अपनी पत्नी बनाना चाहता था. लेकिन भाई दिनेश बाधक था. भाई की पिटाई से भी वह आहत था. जब पूनम को अपने मन की बात उसे बताई तो उस ने भाई का काम तमाम करने का मन बना लिया. पूनम भी उस का साथ देने को तैयार थी.

26 अप्रैल, 2024 को खेरसा गांव के लोगों ने गांव के बाहर तालाब में उतराती एक लाश देखी. ग्राम प्रधान राजेश कुमार ने फोन के जरिए सूचना थाना बिधनू पुलिस को दी. सूचना पाते ही एसएचओ जितेंद्र प्रताप सिंह सहयोगी पुलिसकर्मियों के साथ घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने गांव के 2 युवकों तथा पुलिसकर्मियों के सहयोग से तालाब में उतराती लाश को बाहर निकलवाया, साथ ही सूचना पुलिस अधिकारियों को दी.

बंद कमरे में मिले खून के निशान

लाश को देखते ही गांव वालों ने उस की पहचान कर ली. ग्राम प्रधान राजेश कुमार ने बताया कि लाश दिनेश अवस्थी की है. वह पत्नी पूनम Extramarital Affair व भाई मनोज के साथ ननिहाल में रहता था. वह मूल निवासी लखीमपुर के मूलगांव कुडऱीरूप सेनारूप का है. मनोज अपनी भाभी पूनम के साथ फरार है. घर में ताला पड़ा है. जबकि उसे सुबह तालाब के पास देखा गया था. पड़ोसी युवक राजू दूबे के पास दिनेश के छोटे भाई मयानंद उर्फ अशनी का मोबाइल नंबर था. पहले वह भी ननिहाल मे ही रहता था. तभी राजू की दोस्ती उस से हो गई थी. लेकिन 2 साल पहले वह गांव चला गया था. राजू की बात उस से फोन पर होती रहती थी.

एसएचओ जितेंद्र प्रताप सिंह ने राजू से मोबाइल नंबर ले कर मयानंद उर्फ अशनी को उस के बड़े भाई दिनेश की हत्या की सूचना दी और तत्काल ननिहाल आने को कहा. इस के बाद जितेंद्र प्रताप सिंह ने शव का बारीकी से निरीक्षण किया. दिनेश की हत्या किसी नुकीले हथियार से की गई थी. उस के गले, सीने व चेहरे पर कई घाव थे. हत्या कर हाथपैर रस्सी से बांध कर शव को बोरी में भर कर तालाब में फेंका गया था. मृतक की उम्र 43 वर्ष के आसपास थी.

एसएचओ जितेंद्र प्रताप सिंह अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर डीसीपी (साउथ) अंकिता शर्मा, एडीसीपी विजेंद्र द्विवेदी तथा एसीपी (घाटमपुर) रंजीत कुमार सिंह घटनास्थल आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तथा घटना के संबंध में इंसपेक्टर जितेंद्र प्रताप सिंह तथा गांव वालों से जानकारी जुटाई. गांव वालों से जो जानकारी मिली थी, उस से स्पष्ट था कि दिनेश की हत्या उस की पत्नी पूनम व भाई मनोज ने ही की है. वे फरार भी थे. साक्ष्य की तलाश में पुलिस अधिकारी मृतक दिनेश के घर पहुंचे. घर पर ताला लगा था.

ताला तोड़ कर पुलिस घर के अंदर दाखिल हुई. वहां कमरे में खून से सनी काटन तथा कुछ कपड़े बरामद हुए. बिस्तर व फर्श पर खून के धब्बे मिले. फर्श को साफ किया गया था. पुलिस ने साक्ष्य के तौर पर काटन, कपड़े सुरक्षित कर लिए. स्पष्ट था कि हत्या कमरे के अंदर ही की गई थी. जांचपड़ताल के बाद पुलिस ने दिनेश के शव का पोस्टमार्टम हेतु लाला लाजपत राय अस्पताल, कानपुर भिजवा दिया.

शाम 5 बजे तक मृतक दिनेश का छोटा भाई मयानंद उर्फ अशनी ननिहाल आ गया. वहां से वह थाना बिधनू पहुंचा. उस ने पुलिस के साथ जा कर मोर्चरी में रखे शव को देखा तो फफक पड़ा. उस ने बताया शव उस के भाई दिनेश का है. उस ने एसएचओ जितेंद्र प्रताप सिंह को बताया कि दिनेश की हत्या उस के भाई मनोज व भाभी पूनम ने की है.

मयानंद उर्फ अशनी की तहरीर पर इंसपेक्टर जितेंद्र प्रताप सिंह ने मृतक की पत्नी पूनम व भाई मनोज के खिलाफ हत्या कर लाश छिपाने की दर्ज कर ली तथा उन की गिरफ्तारी के लिए जुट गए.

जितेंद्र प्रताप सिंह ने आरोपियों को पकडऩे के लिए ताबड़तोड़ छापे मारे. लेकिन वे पकड़ में नहीं आए. उन्होंने नातेदारों के घर सीतापुर, विसवां लखीमपुर तथा चित्रकूट में भी छापा मारा, लेकिन उन का पता नहीं चला. पुलिस ने उन की लोकेशन जानने के लिए उन के मोबाइल फोन नंबर सर्विलांस पर लिए. लेकिन उन के मोबाइल फोन बंद थे.

आरोपियों पर घोषित हुआ ईनाम

हत्यारोपियों की तलाश में धीरेधीरे 3 महीने बीत गए. लेकिन उन का कुछ भी पता नहीं चला. पुलिस अधिकारियों ने आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए उन पर 25-25 हजार का इनाम भी घोषित कर दिया. पुलिस ने उन की फिर तलाश तेज की साथ ही मुखबिरों का भी सहारा लिया. लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी. दरअसल, मनोज व पूनम ने अपनेअपने मोबाइल फोन बंद कर लिए थे. इसलिए उन की कोई जानकारी नहीं मिल पा रही थी. करीब 6 महीने बाद नवंबर, 2024 की 5 तारीख को मनोज का मोबाइल फोन चालू हुआ तो पुलिस को उस की लोकेशन मध्य प्रदेश के छतरपुर (गढ़ा) स्थित बागेश्वर धाम आश्रम की मिली.

इंसपेक्टर जितेंद्र प्रताप सिंह तत्काल अपनी टीम के साथ बागेश्वर धाम आश्रम के लिए रवाना हो गए. पुलिस टीम यहां 3 दिन तक डेरा जमाए रही. उस के बाद टीम को सफलता मिल गई. टीम ने आश्रम के बाहर एक चाय के स्टाल से दोनों को गिरफ्तार कर लिया. मनोज व पूनम को थाना बिधनू लाया गया. इंसपेक्टर जितेंद्र प्रताप सिंह ने मनोज और पूनम से दिनेश की हत्या के बारे में पूछताछ की तो वे साफ मुकर गए. लेकिन सख्ती करने पर टूट गए और हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. यही नहीं, मनोज ने आलाकत्ल चाकू भी बरामद करा दिया, जिसे उस ने घर में ही छिपा दिया था. जानकारी होने पर पुलिस अधिकारियों ने भी उन से विस्तार से पूछताछ की.

दिनेश की हत्या किए हुए 6 महीने बीत गए. अब पूनम और मनोज को लगने लगा था कि शायद मामला ठंडा पड़ गया है. अत: मनोज ने अपना मोबाइल फोन चालू किया और किसी से बात की. उस का फोन पुलिस ने सर्विलांय पर लगा रखा था, इसलिए फोन चालू होते ही उस की लोकेशन बागेश्वर धाम की मिल गई और पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने उन दोनों के बयान दर्ज कर उन्हें विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. 10 नवंबर, 2024 को पुलिस ने आरोपी मनोज व पूनम को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हे जिला जेल भेज दिया गया.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

जंगल में जोड़ियों की अश्लील वीडियो बनाकर करता था Blackmail

Blackmail अपनी प्रेमिका के साथ जो युवक नेवरी पहाड़ी के जंगल में मौजमस्ती करते, अरुण त्रिपाठी पेड़ की आड़ में छिप कर उन की वीडियो बना लेता था. फिर उन युवकों को ब्लैकमेल कर उन से मोटी रकम वसूलता था. संजू और ऋतिक के भी उस ने उन की प्रेमिकाओं के साथ अश्लील फोटो खींच लिए. ये फोटो उस की जान पर ऐसी मुसीबत बन कर आए कि...

3 अक्तूबर, 2024 को शरद नवरात्र का पहला दिन था. रीवा जिले के नारसाखुर्द गांव में दुर्गा पंडाल में संजू

और ऋतिक की मुलाकात कृष्णा लखेरा व अन्य दोस्तों से हुई. वहीं पर संजू और ऋतिक ने उन्हें बताया, ”यार, इस समय हम दोनों बड़ी मुसीबत में फंसे हुए हैं. समझ नहीं आ रहा कि क्या किया जाए?’’

”कैसी मुसीबत बताओ?’’ कृष्णा लखेरा ने पूछा.

”बात दरअसल यह है कि हम दोनों जंगल में अपनीअपनी गर्लफ्रैंड के साथ मौजमस्ती कर रहे थे, तभी अरुण त्रिपाठी ने छिप कर हमारी वीडियो बना ली. वो हम से अब 10 हजार रुपए मांग रहा था. हम ने 2 हजार तो उसे दे दिए, लेकिन 8 हजार और मांग रहा है. इस के बाद ही वो वीडियो डिलीट करेगा. हमारी समझ में नहीं आ रहा कि क्या करें?’’

”बस, इतनी सी बात पर तुम लोग परेशान हो रहे हो. ऐसा करो, तुम लोग पैसे देने के बहाने उसे उसी जंगल में बुला लेना. हम अपने दोस्तों को ले कर वहां पहुंच जाएंगे, फिर उस से जबरदस्ती उस का फोन छीन कर वीडियो डिलीट कर उस का फोन लौटा देंगे.’’ कृष्णा ने कहा.

”हां, यह ठीक रहेगा.’’ संजू और ऋतिक एक साथ बोले.

उसी समय साजन उर्फ संजू साकेत, ऋतिक साकेत, अमित साकेत, कृष्णा लखेरा आदि 9 दोस्त 3 बाइकों पर सवार हो कर अरुण के खेत पर पहुंचे. वहीं से संजू और ऋतिक ने अरुण को पैसे देने के बहाने फोन कर बुला लिया. अरुण को फोन करते ही बाकी सभी दोस्त इधरउधर छिप गए थे. अरुण के वहां पर पहुंचते ही सारे दोस्त उस के सामने आ खड़े हुए. अपने सामने 9 युवकों को खड़ा देख अरुण की थोड़ी हिम्मत टूटी भी, लेकिन उस ने हार नहीं मानी. जैसे ही सभी ने उस से उस का मोबाइल छीनने की कोशिश की, अरुण अपने डंडे से गुप्ती निकालने लगा.

तभी संजू और ऋतिक ने उस के हाथ से वह गुप्ती छीन ली. फिर भी अरुण उस डंडे से उन पर वार करने लगा. तभी संजू ने गुप्ती से उसे डराने की कोशिश की. उसी विवाद के बढ़ते गुप्ती अरुण के सीने में घुस गई, जिस के कुछ समय बाद ही अरुण ने दम तोड़ दिया. अरुण के खत्म होते ही संजू ने उस का मोबाइल और उस की गुप्ती अपने पास रखी और सभी दोस्तों के साथ अपने गांव आ गया था.

इस घटना से एक दिन पहले 2 अक्तूबर, 2024 को अरुण त्रिपाठी अपने घर में काफी खुश था. उस दिन उस का ध्यान पूरी तरह से मोबाइल पर ही टिका हुआ था. कई बार वह अपने परिवार की नजरों से बच कर मोबाइल खोलता, फिर वह उस में पड़ी वीडियो को देखने लगता था. जिस को देख कर उस के चेहरे की आभा और भी बढ़ जाती थी. उस के हावभाव को देख कर उस की पत्नी सुमन समझ चुकी थी कि आज अरुण ने फिर से किसी नए जोड़े को अपने चंगुल में फंसा लिया है, जिस के कारण वह काफी खुश नजर आ रहा था.

उस शाम अरुण की पत्नी सुमन ने जल्दी खाना तैयार कर लिया था. फिर सभी को खाना खिला कर अपना काम भी खत्म कर लिया था. रात होते ही उस के बच्चे खाना खापी कर अपनेअपने कमरों में आराम करने चले गए थे. अपने काम से छुटकारा पाने के बाद सुमन जिस वक्त अपने कमरे में पहुंची, अरुण अपने मोबाइल में किसी वीडियो को देखने में मस्त था.

”लगता है, आज फिर कोई नई पोर्न वीडियो लौंच हो गई,’’ सुमन ने हंसते हुए पति की तरफ देखते हुए कहा.

”हां, आओ मेरी रानी, मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था. वीडियो लौंच भी हो गई और 10 हजार रुपए में बिक भी गई. यह लो उस के 2 हजार एडवांस.’’ कहते ही अरुण ने खुशी से पत्नी को अपनी बाहों में भर लिया. उस के बाद अरुण ने अपने मोबाइल में पड़ी फोटो और वीडियो एकएक कर पत्नी को दिखानी शुरू की, जो उस ने उसी दिन बनाई थीं. उस दिन अरुण ने एक साथ 2 प्रेमी जोड़ों के कुछ फोटो और वीडियो बनाई थीं, जिस में दोनों ही जोड़े अलगअलग जगहों पर निर्वस्त्र हो कर दुनियादारी से बेखबर हो कर काम वासना में लिप्त थे.

अरुण ने बहुत ही चालाकी से छिपतेछिपाते दोनों की अश्लील फोटो Blackmail और वीडियो अपने मोबाइल में कैद कर ली थीं, जिन के माध्यम से दोनों जोड़ों को ब्लैकमेल किया जा सके. अरुण का यह कोई पहला काम नहीं था. इस से पहले भी वह न जाने कितने प्रेमी जोड़ों की वीडियो व फोटोग्राफी कर चुका था. उन्हीं फोटो व वीडियो के सहारे वह कितने लोगों को ब्लैकमेल कर उन से मोटी रकम ऐंठ चुका था. अरुण हर रोज नेवरी पहाड़ी के जंगलों में मौजमस्ती करने वालों की चोरी से फोटो खींचता, फिर उन्हें दिखा कर उन को वायरल करने की धमकी दे कर उन से काफी मोटी कमाई करता आ रहा था.

अरुण लोगों से मोटी रकम वसूल कर उन्हें विश्वास दिलाने के लिए कुछ फोटो व वीडियो अपने मोबाइल से डिलीट भी कर देता, लेकिन उस से पहले ही उन को किसी दूसरे ऐप में सेव कर लेता था. ताकि वह आगे भी उन को दिखा कर उन से फिर से मोटी रकम ऐंठ सके. यह सिलसिला काफी समय से चला आ रहा था. अरुण त्रिपाठी हमेशा ही अपनी बाइक में एक ठोस बांस का मोटा डंडा बांध कर रखता था, जिस के एक छोर पर उस ने गुप्ती (दोनों तरफ तेज धार वाला लंबा चाकू) फिट करा रखी थी. इसी को दिखा कर वह उस से उलझने वालों को डराधमका लेता था. वह मजबूत कदकाठी का व्यक्ति था, जिस के कारण कोई भी ऐसावैसा व्यक्ति उस से भिडऩे की हिम्मत नहीं कर पाता था.

ब्लैकमेल करना अरुण को क्यों पड़ा भारी

Blackmail 3 अक्तूबर, 2024 को सुबह से ही अरुण का ध्यान पूरी तरह से मोबाइल पर ही लगा हुआ था. उस के मन में एक उल्लास भरी खुशी थी कि कब वे लोग उसे फोन करें और वह 8 हजार रुपए ले कर घर वापस आए. तब तक दोपहर हो चली थी. लेकिन उन लोगों का कोई फोन नहीं आया. फोन काल का इंतजार करतेकरते अरुण खाना खाने बैठ गया. वह अभी पूरी तरह से खाना खा भी नहीं पाया था, तभी उस के मोबाइल पर किसी का फोन आया.

फोन सुनते ही उस के चेहरे पर मुसकान उभर आई. उस ने तुरंत ही खाना खाना बीच में ही छोड़ दिया. उस के तुरंत बाद ही उस ने अपनी बाइक स्टार्ट की और पीछे अपने बड़े बेटे को बिठा कर अपने खेतों की तरफ निकल गया. अपने बेटे को खेतों पर छोड़ कर वह बाइक से जंगल की तरफ चला गया. जाते समय बेटे से वह कह गया था कि थोड़ी देर में लौट कर आता है. जंगल में उसे संजू और उस के साथी मिले. संजू और उस के दोस्तों ने उस से मोबाइल से वीडियो डिलीट करने को कहा तो इसी बात पर दोनों में गरमागरमी हो गई. इसी बीच अरुण की गुप्ती से ही अरुण की मौत हो गई.

उधर काफी देर तक अरुण नहीं लौटा तो उस के बेटे ने फोन किया, जो बंद आ रहा था. फिर बेटा भी घर लौट आया. मध्य प्रदेश के जिला सतना के सभापुर थानांतर्गत एक गांव पड़ता है मचखेड़ा. 40 वर्षीय अरुण त्रिपाठी इसी गांव का रहने वाला था. गांव से कुछ ही दूरी पर नेवरी मचखेड़ा की पहाडिय़ों पर फैले घने जंगलों के किनारे अरुण त्रिपाठी का खेत था. वह खेती करने के साथ ही इसी इलाके में बंद पड़ी एक फैक्ट्री में चौकीदारी का काम भी करता था. फिर भी इन दोनों कामों से उस की आय सीमित ही थी. लेकिन जिस तरह से वह खुले हाथों से खर्च करता था, लोग उस से जलते थे. आखिर वह इतना पैसा लाता कहां से है.

उस वक्त दिन के कोई ढाई बजे का समय था. थाना सभापुर के टीआई रविंद्र द्विवेदी को स्थानीय लोगों ने मोबाइल पर सूचना दी कि सतीक्षण आश्रम के पास नेवरी में सड़क के किनारे एक युवक का शव पड़ा हुआ है. सूचना पाते ही टीआई रविंद्र द्विवेदी तुरंत ही पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचे. मृतक युवक औंधे मुंह पड़ा हुआ था. उस के आसपास काफी खून पड़ा हुआ था. घटनास्थल से कोई 50 मीटर दूर एक बाइक पड़ी हुई थी. पुलिस टीम ने उस युवक की जांचपड़ताल की तो उस के चेहरे पर काफी घाव होने के साथसाथ उस के सीने पर गोली मारे जाने जैसा घाव बना हुआ था.

मोबाइल में छिपा मिला अरुण की हत्या का राज

यह सब जानकारी जुटाने के बाद रविंद्र द्विवेदी ने इस घटना की जानकारी एएसपी विक्रम सिंह कुशवाह और एसपी (सतना) आशुतोष गुप्ता को दी. तब तक मौके पर जमा लोगों ने उस युवक की पहचान मचखेड़ा निवासी अरुण त्रिपाठी के रूप में कर दी थी. उसी समय घटनास्थल के पास कुछ चरवाहे मवेशी चरा रहे थे. पुलिस ने उन से भी इस मामले में पूछताछ की, लेकिन उन से भी हत्या से जुड़ा कोई सुराग नहीं मिला.

जिस के तुरंत बाद ही पुलिस ने उस के परिवार को भी सूचित कर दिया था. सूचना पाते ही उस के परिवार वाले रोतेबिलखते घटनास्थल पर पहुंच गए थे. पुलिस ने इस मामले में उस के घर वालों के साथसाथ गांव वालों से भी गहन पूछताछ की, जिस से पता चला कि इन के परिवार में जमीन को ले कर विवाद चल रहा था. अरुण त्रिपाठी की जमीन के बीचोबीच उस की भाभी की जमीन थी, जो कुछ समय पहले उस ने वह जमीन किसी रिटायर फौजी को बेच दी थी. जिस पर जाने के लिए उस की फौजी से आए दिन तकरार होती रहती थी.

गांव वालों को शक था कि शायद उसी फौजी ने अरुण की हत्या करा थी. लेकिन पुलिस इस मामले में कोई भी कदम जल्दबाजी में नहीं उठाना चाहती थी. मृतक के घर वालों ने पुलिस को बताया कि किसी का फोन आने पर अरुण बाइक से घर से निकला था, जिस का राज उस के मोबाइल में ही कैद था. जो इस वक्त बंद आ रहा था. उस के बाद पुलिस ने अपनी काररवाई को आगे बढ़ाते हुए अरुण की लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि अरुण के सीने पर गोली मारे जाने का निशान नहीं, बल्कि गुप्ती जैसे हथियार का गहरा घाव था. जिस के लगने से ही उस की मौत हुई थी. तभी उस के घर वालों ने पुलिस को जानकारी दी कि वह एक गुप्ती हमेशा ही अपने साथ रखता था, जो घटना के बाद से गायब थी. पुलिस ने अनुमान लगाया कि उस की गुप्ती ही उस की मौत का कारण बन गई थी. उस के बाद पुलिस को यह भी लगा कि उस की हत्या में एक से अधिक लोग शामिल रहे होंगे.

अरुण की हत्या खेतों पर की गई थी, जहां पर आसपास कोई सीसीटीवी कैमरा भी नहीं लगा था. जिस के कारण यह केस पुलिस के लिए एक चुनौती बन गया था. इस हत्याकांड के खुलासे के लिए एसपी आशुतोष गुप्ता ने कई थानों के स्टाफ की टीमें बनाईं, जिस में एडिशनल एसपी (देहात) विक्रम सिंह कुशवाह, एसडीओपी (चित्रकूट) रोहित राठौर, वैज्ञानिक अधिकारी डा. महेंद्र सिंह, सभापुर के टीआई रविंद्र द्विवेदी, इंसपेक्टर उमेश प्रताप सिंह, विजय सिंह, एसआई अजीत सिंह व अन्य पुलिसकर्मी शामिल थे.

इतना ही नहीं, एसपी (सतना) आशुतोष गुप्ता ने इस केस के शीघ्र खुलासे के लिए 10 हजार का इनाम भी घोषित कर दिया था. पुलिस ने अपनी जांचपड़ताल शुरू करते ही उस जंगल से घिरे ग्रामीण इलाके में लगे सीसीटीवी कैमरे खंगाले. जिस में घटना के समय 3 बाइकें दौड़ती नजर आईं. तीनों बाइकों पर 9 लोग सवार थे. लेकिन उन कैमरों से न तो उन लोगों की पहचान ही हो पा रही थी और न ही गाडिय़ों के नंबर साफ नजर आ रहे थे.

उस के बाद पुलिस टीम आगे बढ़ी तो बीरसिंहपुर चौराहे पर लगे कैमरे चैक किए. जहां पर उन तीनों बाइकों के नंबर भी ट्रेस हो गए. साथ ही उन 9 लोगों में से 3 की पहचान भी हो गई. इन में से 2 युवक ऋतिक साकेत और साजन उर्फ संजू साकेत रीवा जिले के सुरसाखुर्द गांव के रहने वाले थे. पुलिस ने अगले ही दिन सुबहसुबह उन के घरों की घेराबंदी करते हुए दोनों को उठा लिया. दोनों युवकों से कड़ी पूछताछ की तो उन्होंने अरुण की हत्या वाली बात स्वीकार भी कर ली. उस के साथ ही अपने अन्य 7 साथियों के नाम भी बता दिए थे.

पुलिस ने तुरंत ही थाना कर्चुलियान जिला रीवा से अमित साकेत, कृष्णा लखेरा के अलावा 4 माइनर्स को भी गिरफ्तार कर लिया. उन की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त मृतक की गुप्ती, मृतक का टूटा हुआ मोबाइल फोन व हत्या में प्रयुक्त बाइकें भी बरामद कर ली थीं. हालांकि जिस तरह से सुनसान पहाड़ी इलाके में इस हत्या को अंजाम दिया गया था, इस केस की तह तक जाना पुलिस के लिए बहुत ही सिरदर्दी भरा काम था. लेकिन सीसीटीवी कैमरों से मिले सुराग से पुलिस ने 24 घंटे में आरोपियों तक पहुंचने में सफलता हासिल कर ली थी.

हालांकि इस हत्याकांड को अंजाम देने में 9 व्यक्ति शामिल थे. लेकिन इस हत्याकांड की मुख्य भूमिका में संजू सब से बड़ा सूत्रधार था. संजू से पुलिस पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार थी.

अय्याशी के गर्त में कैसे पहुंचा संजू

मध्य प्रदेश के रीवा जिले के कर्चुलियान थाना इलाके के सरसाखुर्द गांव निवासी साजन उर्फ संजू किशोर उम्र से ही गलत संगत में पड़ गया था. संजू के पापा कामता प्रसाद के पास गांव में ही कुछ जुतासे की जमीन थी. कामता प्रसाद ने संजू के भविष्य को देखते ही उसे गांव के स्कूल में पढऩे भेज दिया था. संजू जन्म से कामचोर किस्म का था. पढ़ाई में उस का बिलकुल भी मन नहीं लगता था. वह स्कूल में लड़कियों से दोस्ती करने का ज्यादा शौकीन था. यही कारण था कि हर वक्त वह पढ़ाई पर ध्यान न दे कर सुंदर लड़कियों के पीछे पड़ा रहता था.

जब उस की हरकतों का उस के पापा को पता चला तो उन्होंने उस की पढ़ाई बंद कर उसे अपने साथ खेतीबाड़ी के काम में लगा लिया था. लेकिन उस का खेतीबाड़ी में पहले से ही मन नहीं लगता था. पढ़ाई छोडऩे के बाद खेतों पर जाना उस की मजबूरी बन गई थी. संजू ने जैसे ही खेतों पर जाना शुरू किया तो उसे पता चला कि उस के खेतों पर कई महिलाएं काम करने आती थीं. उसी दौरान एक दिन उस की नजर एक खूबसूरत लड़की पर पड़ी जिस का नाम अंजलि था. वह अपनी मां के साथ खेतों पर काम करने आती थी.

अंजलि को देखते ही उस का मन उसे पाने के लिए मचल उठा. फिर वह उस का सान्निध्य पाने के लिए नएनए प्लान बनाने लगा. जब तक अंजलि उस के खेतों पर काम करती, उस की निगाहें उसी पर जमी रहती थीं. अंजलि भी उस की निगाहों से उस के मन की बात भांप चुकी थी. वह उस वक्त कोई 12-13 साल की रही होगी, तभी उसी बाली उम्र में उस के एक नजदीकी रिश्तेदार ने उस का यौनशोषण कर डाला था. जिस के बाद उस के परिवार में काफी हलचल पैदा हो गई थी. तभी से उस की मां उसे हर वक्त अपने साथ ही रखती थी.

यही कारण रहा कि अंजलि को अपने जाल में फंसाने के लिए संजू को कोई ज्यादा हाथपांव नहीं मारने पड़े. अंजलि जल्दी की उस के संपर्क में आ गई और फिर दोनों ने एक दिन हसरतें भी पूरी कर लीं. संजू अंजलि पर आए दिन पैसा लुटाने लगा. उस से संपर्क बनाए रखने के लिए उस ने उसे एक मोबाइल भी खरीद कर दे दिया था, जिस के माध्यम से दोनों के बीच हर वक्त संपर्क बना रहता था.

लगभग एक साल पहले की बात है. संजू और अंजलि गांव के बाहर एक सुनसान जगह पर निर्वस्त्र हो कर कामवासना में लिप्त थे. उसी वक्त ऋतिक की नजर उन दोनों पर पड़ी. ऋतिक संजू के गांव का उस का जिगरी दोस्त था. अंजलि ने उसे देख लिया था. ऋतिक को देखते ही संजू को हटा कर अंजलि ने फटाफट अपने कपड़े पहन लिए. लेकिन संजू की हवस नहीं मिटी. वह फिर भी उस के साथ जोरजबरदस्ती करने लगा. सामने ऋतिक को देख कर संजू सब माजरा समझ गया. उस के बाद अंजलि वहां से चली गई.

उसी शाम संजू की मुलाकात ऋतिक से हुई तो वह भी अंजलि के साथ संबंध बनाने के लिए उस पर दबाव बनाने लगा. संजू जानता था कि अगर उस ने उस की बात नहीं मानी तो वह पूरे गांव में हल्ला मचा देगा. संजू ने अंजलि से ऋतिक के बारे में उस से बात की तो उस ने उस के साथ संबंध बनाने से पूरी तरह से इंकार कर दिया था. लेकिन अंजलि ने संजू को एक रास्ता सुझाया. अंजलि ने बताया कि उस की गांव की एक सहेली सोनिया है. अगर वह चाहे तो वह उस की दोस्ती उस से करा सकती है. संजू ने ऋतिक से इस बारे में बात की तो वह आसानी से मान गया. अगले ही दिन अंजलि अपने साथ अपनी सहेली सोनिया को ले कर संजू और ऋतिक से मिली. उस दिन के बाद दोनों दोस्त अपनीअपनी प्रेमिकाओं के साथ मौजमस्ती करने लगे थे.

फोन में किस ने कैद कर ली संजू की अय्याशी

2 अक्तूबर, 2024 को दोनों दोस्त अपनी प्रेमिकाओं को बाइक पर बिठा कर मौजमस्ती के मकसद से मचखेड़ा गांव के पास नेवरी की पहाड़ी पर स्थित घने जंगलों में जा पहुंचे. वहां पहुंचते ही दोनों ने सड़क के किनारे अपनी बाइकें खड़ी कर दीं. उस के बाद दोनों जोड़े घने जंगल में मौजमस्ती करने के लिए चले गए. तभी अरुण की नजर उन चारों पर पड़ी तो वह उन्हें अपना शिकार बनाने के लिए उन के पीछे लग गया. फिर वह पेड़ों के पीछे छिप कर उन की हरकतों पर नजर रखने लगा. कुछ ही देर बाद दोनों प्रेमी जोड़े निर्वस्त्र हो कर काम वासना में लिप्त हो गए. तभी मौका पाते ही अरुण ने उन दोनों जोड़ों की अश्लील फोटो खीचने के साथसाथ उन की वीडियो Blackmail भी बना ली थी.

अपना काम पूरा करने के बाद अरुण उन के सामने जा खड़ा हुआ. इस तरह अचानक अरुण को अपने सामने देख कर चारों बुरी तरह से घबरा गए. उस के बाद संजू और ऋतिक ने अरुण से माफी मांगी और उस के पैर तक पकड़े. फिर इन चारों ने वहां से जाने की कोशिश की तो अरुण ने कहा, ”जाना चाहते हो तो शौक से जाओ, मैं आप को क्यों रोकूंगा. लेकिन जाने से पहले अपनी यह फोटो और वीडियो देखते जाओ. शायद यह भविष्य में किसी के देखने के काम आए. ये सब वायरल करने के बाद न जाने कहांकहां तक देखी जाएंगी. हो सकता है कि ये सब आप के परिवार वालों के सामने भी जा पहुंचे.’’

अपनी अश्लील फोटो और वीडियो देखते ही चारों बुरी तरह से डर गए. उसी दौरान अरुण ने अपने मोबाइल में रीवा और सतना के कुछ जोड़ों की और वीडियो दिखाते हुए कहा, ”इन सब ने भी पहले पैसा देने से आनाकानी की थी. लेकिन बाद में वे मुझे मेरी फीस चुकता कर के चले गए. उस के बाद भी ये लोग जब कभी भी आते हैं तो मैं इन सब की पूरी सुरक्षा करता हूं. तुम भी मुझे मेरी 10 हजार रुपए फीस दे कर चले जाओ. उस के बाद कभी भी मौजमस्ती करने आओ, मैं तुम लोगों की पूरी सुरक्षा करूंगा.’’

ऋतिक थोड़ा गर्म स्वभाव का था. अरुण की बात सुनते ही वह आगबबूला हो उठा. उस ने एक पैसा भी देने से मना किया तो अरुण ने तुरंत ही अपने डंडे से गुप्ती निकाल कर धमकाने की कोशिश की. चूंकि दोनों के साथ 2 युवतियां भी थीं, इसीलिए विवाद से बचने के लिए संजू और रितिक ने अपने पास से 2 हजार रुपए अरुण को देते हुए मोबाइल से वीडियो और फोटो डिलीट करने को कहा. उस के बाद अरुण ने कहा कि ठीक है यह आप के 2 हजार रुपए मेरे पास एडवांस जमा हैं. कल बाकी 8 हजार रुपए ले कर आ जाना. आप की वीडियो कल ही आप के सामने डिलीट कर दूंगा. फिर चारों अपनी बाइक से अपने घर चले गए. अरुण भी अपने घर चला गया.

संजू और उस के दोस्तों को विश्वास था कि अरुण की हत्या करने के बाद उस का मोबाइल साथ लाने से हत्या का राज खुल ही नहीं पाएगा. लेकिन सीसीटीवी से मिले सुरागों से पुलिस ने 24 घंटे में सभी को गिरफ्तार कर इस मामले का खुलासा कर दिया था. पुलिस ने सभी बालिग आरोपियों से पूछताछ कर उन्हें जेल और चारों नाबालिगों को बाल सुधार गृह भेज दिया. एसपी आशुतोष गुप्ता ने इस केस का खुलासा करने वाली पुलिस टीम को 10 हजार रुपए दे कर सम्मानित किया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में अंजलि और सोनिया परिवर्तित नाम हैं.

 

Extramarital Afaair : 4 साल बाद मिले कंकाल ने बयां की इश्क की कहानी

Extramarital Afaair गाजियाबाद के थाना नंदग्राम के गांव सिकरोड का रहने वाला चंद्रवीर बहुत खुश था. क्योंकि उस ने अपनी पैतृक जमीन का छोटा सा टुकड़ा अच्छे दामों में एक बनिए को जो बेच डाला था. बनिया वहां अपनी दुकान बनाना चाहता था. अब बनिया वहां दुकान खोले या कुछ और बनवाए, चंद्रवीर को इस से कोई मतलब नहीं रह गया था. वह तो नोटों को अपने अंगौछे में बांध कर घर की ओर लौट पड़ा था. रास्ते से उस ने देशी दारू की बोतल भी खरीद कर अंटी में खोंस ली थी.

घर के पास पहुंच कर उस ने अपने पास वाले घर के दरवाजे पर जोर से आवाज लगाई, ‘‘अरुण…ओ अरुण.’’

कुछ ही देर में दरवाजा खोल कर दुबलापतला गोरे रंग का युवक सामने आया. चंद्रवीर के चेहरे की चमक और खुशी देख कर ही वह ताड़ गया कि चंद्रवीर ने बेकार पड़ा जमीन का वह टुकड़ा बेच डाला है, जिसे बेचने की वह पिछले एक महीने से कोशिश कर रहा था. फिर भी अरुण उर्फ अनिल ने पूछा, ‘‘क्या बात है भैया, काहे पुकार रहे थे मुझे? और इतने खुश काहे हो आप?’’

‘‘अरुण, मैं ने अपनी जमीन का बलुआ रेत वाला वह टुकड़ा बनिए को एक लाख रुपए में बेच डाला है. आज मैं बहुत खुश हूं.यह लो 2 सौ रुपए, दौड़ कर चिकन ले आओ. तुम्हारी भाभी से चिकन बनवाएंगे. जब तक चिकन पकेगा, हमारी महफिल में जाम छलकते रहेंगे, आज जी भर कर पीएंगे.’’

अरुण हंस पड़ा, ‘‘होश में रहने तक ही पीनी होगी भैया. ज्यादा पी ली तो भाभी बाहर चौराहे पर चारपाई लगा देंगी.’’

ही..ही..ही.. चंद्रवीर ने खींसें निपोरी, ‘‘होश में ही रहूंगा अरुण, तुम्हारी भाभी के गुस्से का शिकार थोड़े ही होना है. अब तुम देर मत करो, जल्दी चिकन खरीद लाओ.’’

‘‘यूं गया और यूं आया भैया.’’ अरुण ने हाथ नचा कर कहा और भीतर घुस गया.

कुछ ही देर में वह थैला ले कर बाहर आया, ‘‘भैया, आप पानी गिलास तैयार करिए, मैं दौड़ कर चिकन ले आता हूं.’’

अरुण तेजी से मुरगा मंडी की तरफ चला गया तो चंद्रवीर ने अपने घर में प्रवेश किया.

बैठक में पहुंच कर उस ने पत्नी को आवाज लगाई, ‘‘सविता…’’

नहाते समय देख लिया था सविता को

उस की पत्नी चुन्नी के पल्लू से हाथ पोंछती हुई बैठक में आ गई. वह सुंदर और गेहुंए रंग की थी. चेहरे पर अब उम्र की रेखाएं उभरने लगी थीं लेकिन उस के भरे हुए मांसल जिस्म की बनावट के कारण वह प्रौढ़ावस्था में भी जवान ही दिखाई पड़ती थी.

‘‘यह एक लाख रुपया है, संभाल लो. अपने लिए कान के झुमके बनवा लेना. एक अच्छा सा सूट, स्वेटर और शाल भी खरीद लाना. इस में से 500 रुपए मैं ने अपने शौक के लिए लिया है. अरुण को चिकन लेने बाजार भेजा है.’’

‘‘अरुण!’’ सविता ने मुंह बिगाड़ा, ‘‘उसे काहे भेजा बाजार?’’

‘‘भाई है मेरा, वो काम नहीं करेगा तो कौन करेगा?’’ चंद्रवीर ने कहा, ‘‘वैसे तुम काहे इस बात पर नाराज हो रही हो. कुछ कहा क्या उस ने?’’

‘‘आज…’’ सविता कुछ कहतेकहते रुक गई और पति की ओर देखने लगी.

‘‘क्या हुआ आज?’’ चंद्रवीर ने उस की ओर प्रश्नसूचक नजरों से देखा.

‘‘आज मैं ने बालों में डालने के लिए तेल की शीशी उठाई तो उस में तेल खत्म था. मैं ने अरुण को बुला कर तेल लाने के लिए कहा तो वह मना कर के चला गया. कह रहा था कि उसे नींद आ रही है.’’

चंद्रवीर हंस पड़ा, ‘‘अरे नींद आ ही रही होगी उसे, तभी तो मना कर दिया होगा. इस में नाराज क्या होना, जाओ यह रुपए बक्से में रख दो और ताला लगा देना. हां, मिर्चमसाला भी पीस लो, चिकन पकेगा आज.’’

सविता ने रुपए लिए और अंदर के हिस्से में बने उस बैडरूम में आ गई, जिस में वे लोग सोते थे. उस में एक संदूक रखा था. सविता ने रुपए संदूक में संभाल कर रख दिए. इस के बाद सविता किचन में आ गई. उस ने आज पति चंद्रवीर से झूठ बोला था, बात को वह बड़ी सफाई से घुमा गई थी जबकि मामला दूसरा ही था. बात यह थी कि आज जब वह दोपहर में घर के आंगन में लगे हैंडपंप पर नहाने बैठी थी तो उस ने अपने अंगवस्त्र तक उतार कर धोने के लिए डाल दिए थे. वह अपनी देह को मल रही थी. कड़क धूप में बाहर बैठ कर नहाना उसे अच्छा लगता था. उस की पीठ चारदीवारी के दरवाजे की तरफ थी.

उस का देवर अरुण न जाने कब आंगन में आ गया था और उसे बड़ी ललचाई नजरों से नहाते हुए देख रहा था. वह उस के नग्न जिस्म को घूर रहा था. सविता को इस की भनक तक नहीं लगी थी, नहाने के बाद वह तौलिया उठाने के लिए खड़ी हो कर घूमी तो उस की नजर अरुण पर चली गई. वह घबरा गई. उस ने जल्दी से तौलिया उठाया और शरीर पर लपेट कर कमरे की ओर भागी. अरुण उस की बदहवासी देख कर खिलखिला कर हंस पड़ा. सविता ने कमरे में आ कर किवाड़ बंद कर लिए. तौलिया उस के हाथों से नीचे गिर पड़ा. उस ने अपने बदन को देखा तो खुद ही लजा गई. उस की सांसें अभी भी धौंकनी की तरह चल रही थीं.

वह यह सोच कर ही शर्म से जमीन में गड़ी जा रही थी कि उस के इसी नग्न जिस्म को अरुण ने बड़ी बेशर्मी से देखा है. अरुण की आंखों में वासना और चेहरे पर वहशी चमक थी. सविता को उस समय लगा था कि यदि वह क्षण भर भी और आंगन में रह जाती तो अरुण लपक कर उसे बांहों में भर लेता. अरुण उर्फ अनिल था तो चचिया ससुर का लड़का, लेकिन था तो मर्द और यह सविता की जिंदगी का पहला वाकया था कि उस के पति चंद्रवीर के अलावा किसी दूसरे मर्द ने उस की नग्न देह को देखा था.

कमरे में वह काफी देर तक अपनी उखड़ी सांसों को दुरुस्त करती रही, उस के बाद अपने कपड़े पहन कर उस ने दरवाजा खोल कर बाहर झांका था. अरुण आंगन से जा चुका था. सविता ने राहत की सांस ली और बाहर आई थी. फिर वह अपने कपड़े धोने बैठ गई थी. सारा दिन यही सोच कर वह शरम महसूस करती रही कि अब अरुण से वह नजरें कैसे मिलाएगी.

कुसूर इस में अरुण का नहीं था. वह नहाने बैठी थी तो उसे दरवाजा अंदर से बंद कर लेना चाहिए था. अरुण अचानक आ गया तो इस में दोष उस का कैसे हुआ? हां, यदि वह नग्न नहा रही थी तो अरुण को तुरंत वापस चले जाना चाहिए था.

अरुण से नहीं मिलाना चाहती थी नजरें

सविता यह सोच कर सारा दिन पशोपेश में रही कि अरुण से वह नजरें कैसे मिलाएगी. कम से कम दोचार दिन वह अरुण के सामने नहीं जाएगी, सविता ने सोच कर दिल को समझा लिया था, लेकिन चंद्रवीर ने अरुण को शराब की दावत दे कर चिकन लाने बाजार भेज रखा था. अब अरुण घर जरूर आएगा, उस से उस का सामना भी होगा. उफ! सविता का वह दिल फिर तेजी से धड़कने लगा था, जिसे दोपहर में उस ने बड़ी कोशिश कर के काबू में किया था.

रसोई में आ कर वह काम तो कर रही थी, लेकिन सामान्य नहीं थी.

‘‘सविता…’’ उस के कानों में पति की आवाज पड़ी. चंद्रवीर उसे पुकार रहा था, इस का मतलब था अरुण चिकन ले आया था. सविता अरुण के सामने नहीं आना चाहती थी. सविता ने किचन से आवाज लगाई, ‘‘क्या है, क्यों आवाज लगा रहे हो?’’

‘‘अरुण चिकन ले आया है, ले जाओ.’’ चंद्रवीर ने बताया.

‘‘आप ही यहां ला दो, मैं ने मसाला तवे पर डाला है, जल जाएगा.’’

चंद्रवीर थैला ले कर आ गया. थैला रख कर उस ने 2 कांच के गिलास, पानी का लोटा व प्लेट उठाई और चला गया.

सविता ने जैसेतैसे खाना तैयार किया और चंद्रवीर को आवाज लगाई, ‘‘खाना बन गया है, मैं थाली लगा रही हूं. आ कर ले जाओ.’’

‘‘तुम ही ले आओ.’’ चंद्रवीर ने कहा तो सविता को थाली में भोजन रख कर खुद ही बैठक में लाना पड़ा. उस ने उस वक्त चुन्नी को अपने सिर पर इतना खींच लिया था कि अरुण की नजरें उस की नजरों से न मिल सकें.

थालियां पति और अरुण के सामने रखते हुए उस के हाथ कांप रहे थे, उस का दिल बुरी तरह धड़क रहा था और सांसें धौंकनी सी चल रही थीं. उस ने चोर नजरों से देखा. अरुण उसे देख कर बेशर्मी से मुसकरा रहा था.

खाना परोस कर वह तेजी से बैठक से बाहर आ गई. जैसेतैसे चंद्रवीर और अरुण की वह दावत रात के 10 बजे तक खत्म हुई. अरुण चला गया तो सविता की जान में जान आई. दूसरे दिन चंद्रवीर किसी काम से चला गया तो सविता ने कुछ सोच कर अरुण के घर की तरफ कदम बढ़ा दिए. वह रात को ही इस बात का फैसला कर चुकी थी कि अरुण से कल की बेशर्मी भरी हरकत पर सख्ती से बात करेगी. अगर वह चुप रहेगी तो अरुण फिर से वैसी हरकत कर सकता है.

अरुण का दरवाजा ढुलका हुआ था. सविता ने दरवाजा धकेला तो वह अंदर की तरफ खुल गया. सविता सीधा अरुण के कमरे में आ गई. अरुण उस वक्त बिस्तर में लेटा टीवी देख रहा था. आहट पा कर उस ने नजरें घुमाईं तो सविता को देख कर हड़बड़ा कर चारपाई पर उठ बैठा, ‘‘भाभी आप?’’ उस ने हैरानी से कहा.

‘‘हां, मैं.’’ सविता रूखे स्वर में बोली.

‘‘बैठो.’’ अरुण जल्दी से चारपाई से उतर गया.

‘‘मैं बैठने नहीं आई हूं. तुम से कुछ पूछने आई हूं.’’ सविता तीखे स्वर में बोली, ‘‘मुझे यह बताओ, तुम ने वह बेहूदा हरकत क्यों की थी?’’

‘‘कैसी बेहूदा हरकत भाभी?’’ अरुण ने खुद को संभाल कर संयत स्वर में पूछा.

‘‘कल मैं जब नहा रही थी तो तुम अंदर घुस आए और मुझे आंखें फाड़ कर देखते रहे… क्यों?’’

‘‘भाभी,’’ अरुण बेशरमी से मुसकराया, ‘‘आप हो ही इतनी हसीन कि मैं चाह कर भी अपनी नजरें नहीं हटा सका.’’

सविता उस की बात पर अचकचा गई. उसे कुछ नहीं सूझा कि वह क्या कहे.

अरुण अपनी ही धुन में बोलता चला गया, ‘‘भाभी, आप का गदराया यौवन है ही इतना हसीन कि उस पर से कोई मूर्ख ही अपनी नजरें हटाएगा. मैं बेवकूफ और मूर्ख नहीं हूं, कसम ले लो भाभी मैं ने आप की पीठ के तिल भी गिने हैं…’’

सविता शरम से जमीन में जैसे गड़ गई. उस के मुंह से धीरे से निकला, ‘‘चुप हो जाओ अरुण. प्लीज, अब आगे कुछ मत कहना.’’

अरुण ने गहरी सांस ली, ‘‘हकीकत बयां कर रहा हूं भाभी. भले ही आप की शादी हुए 14 साल हो गए, लेकिन आप की सुंदरता एक बेटी की मां बनने के बाद भी कम नहीं हुई है. आप रूप की देवी हो. चंद्रवीर भैया आप की पूजा नहीं करते होंगे. कसम ले लो यदि आप मेरी किस्मत में लिखी होती तो मैं आप को सिंहासन पर बिठा कर पूजता.’’

सविता अपनी तारीफ सुन कर मंत्रमुग्ध हो गई थी. अरुण की एकएक बात उस के रोमरोम को पुलकित कर रही थी. उस के मन में अजीब सी हलचल मच गई थी. उसे अरुण की अंतिम बात ने रोमांच से भर दिया. उसे लगा अरुण उसे शिद्दत से प्यार करता है. उस के यौवन का वह प्यासा भंवरा है, तभी तो उस की चाहत शब्दों के रूप में उस के होंठों पर आ गई है.

शिकायत करतेकरते हो गई शिकार

वह अरुण को डांटने आई थी. अब उस की बातों ने उसे मोह में बांध लिया. सविता से कुछ कहते नहीं बना तो अरुण ने उस की कलाई पकड़ ली और हथेली अपने सीने पर रख कर दीवानों की तरह आह भरते हुए बोला, ‘‘इस सीने में जो दिल है भाभी, वह सिर्फ तुम्हें चाहता है. आज से नहीं बरसों से मैं तुम्हें मन ही मन प्यार करता आ रहा हूं.’’

‘‘तो कहा क्यों नहीं…’’ सविता आंखें बंद कर के धीरे से फुसफुसाई.

‘‘डरता था भाभी, कहीं तुम बुरा न मान जाओ. तुम चंद्रवीर भैया की अमानत हो. मैं अमानत में खयानत करना नहीं चाहता था.’’

‘‘अब क्या कर रहे हो?’’ सविता मदहोशी के आलम में बोली, ‘‘तुम मेरी हथेली सहला रहे हो, यह भी तो गुनाह है न.’’

‘‘आज हिम्मत बटोर ली है भाभी. देखता रहूंगा तो जी जलता रहेगा. आज तुम्हें संपूर्ण पा लेने की इच्छा है, तभी मन में ठंडक पड़ेगी.’’

सविता 35 वर्षीय अरुण की बातों और उस के प्यार भरे स्पर्श से अपना होश गंवा चुकी थी. उस ने आंखें बंद कर के फुसफुसा कर कहा, ‘‘लो कर लो अपने दिल की, तुम्हारे दिल में जो आग भड़क रही है, उसे शांत कर लो.’’

सविता की इजाजत मिली तो अरुण ने उसे बांहों में समेट लिया. देवरभाभी के पवित्र रिश्ते की दीवार को ढहने में फिर वक्त नहीं लगा. सविता जब अरुण के कमरे से निकली तो उस का गुस्सा कपूर की गंध की तरह उड़ चुका था. जिस अरुण ने उसे नहाते हुए नग्न हालत में देखा था, वही अरुण अब उस के तनमन पर छा गया था. सविता बहुत खुश थी. उस ने अपने पति चंद्रवीर के साथ देवर अरुण को भी दिल में जगह दे दी थी. यह बात सन 2017 की है.

42 वर्षीय चंद्रवीर को पैतृक संपत्ति का काफी बड़ा हिस्सा बंटवारे में मिला था. वह उसी संपत्ति का थोड़ाथोड़ा हिस्सा बेच कर अपने परिवार का गुजरबसर कर रहा था. परिवार में 3 ही प्राणी थे— वह, उस की पत्नी सविता और बेटी दीपा (काल्पनिक नाम). चंद्रवीर घर में  किसी चीज की कमी नहीं होने देता था. उस की गृहस्थी की गाड़ी बड़े आराम से चल रही थी.

28 सितंबर, 2018 को चंद्रवीर लापता हो गया. सविता के बताने के अनुसार चंद्रवीर अपने खेत का एक बड़ा हिस्सा बेचने के इरादे से घर से निकला था. शाम ढल गई और अंधेरा जमीन पर उतर आया तो सविता के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं. उस ने अपनी बेटी दीपा को साथ लिया और पति चंद्रवीर को उन जगहों पर तलाश करने निकल गई, जहांजहां वह उठताबैठता था.

सविता और दीपा ने हर संभावित जगहों पर पति की तलाश की, उस के विषय में पूछताछ की लेकिन हर जगह से उन्हें निराशा मिली. चंद्रवीर आज उन जगहों पर नहीं आया था. दोनों घर आ गईं. जैसेतैसे रात गुजर गई. सुबह सविता ने अरुण को बुला कर बताया कि चंद्रवीर कल सुबह से घर से निकला है, अभी तक वापस नहीं लौटा है. उसे रिश्तेदारी में तलाश करो.

अचानक लापता हो गया चंद्रवीर

अरुण अपने साथ 2-3 लोगों को ले कर उन रिश्तेदारियों में गया, जहांजहां चंद्रवीर आनाजाना करता था. उस ने कितनी ही रिश्तेदारियों में मालूम किया, लेकिन चंद्रवीर कई दिनों से उन लोगों से मिलने नहीं आया था. 2 दिन की तलाश करने के बाद अरुण वापस आ गया. उसे मालूम हुआ कि 3 दिन बीत जाने पर भी चंद्रवीर घर नहीं लौटा है. उस ने सविता को बताया कि चंद्रवीर किसी रिश्तेदारी में भी नहीं पहुंचा है. सुन कर सविता दहाड़े मार कर रोने लगी.

अब तक पूरे गांव में यह बात फैल चुकी थी कि चंद्रवीर 3 दिनों से लापता है. गांव वाले चंद्रवीर की तलाश में सविता की मदद के लिए इकट्ठे हो गए. पूरे गांव में चंद्रवीर को ढूंढा जाने लगा. नदी तालाब, खेत खलिहान हर जगह चंद्रवीर को खोजा गया, लेकिन वह नहीं मिला. इन लोगों में चंद्रवीर का भाई भूरे भी था. भूरे से चंद्रवीर की बनती नहीं थी, वह चंद्रवीर के घर आताजाता नहीं था लेकिन चंद्रवीर था तो सगा भाई, इसलिए उस की तलाश में वह भी जान लड़ा रहा था.

चंद्रवीर जब 5 दिन की खोजखबर के बाद भी नहीं मिला तो 5 अक्तूबर, 2018 को भूरे ने गाजियाबाद के नंदग्राम थाने में चंद्रवीर के लापता होने की सूचना दर्ज करवा दी. नंदग्राम थाने के तत्कालीन एसएचओ पुलिस टीम के साथ सिकरोड गांव में स्थित सविता के घर पहुंच गए. सविता 5 दिनों से आंसू बहा रही थी. दीपा भी पिता की याद में सिसक रही थी. वह एकदम बेसुध और बेहाल सी नजर आ रही थी.

एसएचओ ने सविता के सामने पहुंच कर उसे ढांढस बंधाते हुए कहा, ‘‘देखो रोओ मत, चंद्रवीर की तलाश करने में हम लोग पूरी जान लड़ा देंगे. तुम हमें यह बताओ कि चंद्रवीर के घर से जाने से पहले तुम्हारा क्या चंद्रवीर से झगड़ा हुआ था?’’

‘‘नहीं, मैं उन से आज तक नहीं लड़ी, वह भी मुझ से नहीं लड़ते थे. वह दिल के बहुत अच्छे और नेक इंसान थे. मुझे और अपनी बेटी को बहुत प्यार करते थे.’’ सविता ने आंसू पोंछते हुए कहा.

‘‘चंद्रवीर ने जाने से पहले तुम्हें बताया था कि वह कहां और क्यों जा रहा है?’’ एसएचओ ने दूसरा प्रश्न किया.

‘‘कहां जा रहे हैं, यह भी नहीं बताया था. मेरे सामने वह घर से नहीं निकले थे साहब, वह अंधेरे में ही निकल कर चले गए थे. हम मांबेटी तब सोई हुई थीं.’’

‘‘तुम्हें किसी पर संदेह है?’’

‘‘मेरे पति का अपने भाई भूरे से संपत्ति विवाद रहता था. मुझे लगता है कि वो अंधेरे में घर से नहीं गए, बल्कि उन्हें अंधेरे में गायब कर दिया गया है. यह काम भूरे ने किया है साहब. उस ने शायद मेरे पति की हत्या कर दी है.’’

‘‘यह पक्का हो, ऐसा तो नहीं कह सकते. जांच के बाद ही पता चलेगा कि क्या भूरे ने संपत्ति विवाद के कारण चंद्रवीर को लापता करने की हिमाकत की है.’’ एसएचओ ने कहा और उठ कर उन्होंने एसआई को भूरे को पकड़ कर थाने लाने का आदेश दे दिया.

चंद्रवीर के भाई से की पूछताछ

आवश्यक जानकारी जुटा लेने के बाद एसएचओ अकेले ही थाने लौट आए. एसआई अपने साथ 2 कांस्टेबल ले कर भूरे को हिरासत में लेने के लिए निकल गए थे. थोड़ी देर में ही भूरे को ले कर एसआई और कांस्टेबल थाने आ गए. भूरे ने कभी थाना कचहरी नहीं देखा था. वह काफी डरा हुआ था. आते ही उस ने एसएचओ के पांव पकड़ लिए, ‘‘साहब, मुझे क्यों पकड़ा है आप ने? मैं ने ऐसा क्या अपराध किया है?’’

‘‘तुम ने अपने भाई चंद्रवीर को कहां लापता किया है भूरे?’’ एसएचओ ने उसे खुद से परे कर सख्त स्वर में पूछा.

‘‘मैं चंद्रवीर को कहां लापता करूंगा साहब, वह मेरा भाई है.’’

‘‘तुम्हारा अपने भाई से संपत्ति का विवाद था?’’

‘‘नहीं साहब,’’ भूरे तुरंत बोला, ‘‘हमारा आपस में संपत्ति का बंटवारा बहुत प्रेम से हुआ था. कौन कहता है कि हमारा संपत्ति का विवाद था?’’

‘‘सविता कह रही है,’’ एसएचओ ने भूरे को घूरते हुए कहा, ‘‘सविता का कहना है कि संपत्ति विवाद में तुम ने उस के पति को लापता किया है और उस की हत्या कर दी है.’’

यह सुनते ही भूरे ने सिर थाम लिया. कुछ देर तक वह स्तब्ध सा बैठा रहा फिर तैश में आ कर बोला, ‘‘सविता मुझ से जलती है साहब, वह मुझ पर झूठा आरोप लगा रही है. आप ही बताइए, मैं ने यह काम किया होता तो थाने में आ कर खुद उस की गुमशुदगी की रिपोर्ट क्यों लिखवाता?’’

‘‘रिपोर्ट लिखवाने से तुम निर्दोष थोड़ी हो गए. हम तुम्हारे घर की तलाशी लेंगे.’’

‘‘बेशक तलाशी लीजिए साहब, मैं अपने मांबाप की कसम खा कर कहता हूं कि मैं निर्दोष हूं. चंद्रवीर कहां गया, मैं नहीं जानता.’’

एसएचओ को लगा भूरे सच कह रहा है लेकिन वह पूरी तसल्ली कर लेना चाहते थे. उन्होंने भूरे को साथ लिया और उस के घर की तलाशी ली. उन्हें उस के घर में ऐसा कुछ भी नहीं मिला, जिस से यह साबित होता कि भूरे ने चंद्रवीर की हत्या की है या उसे लापता किया है. उन्होंने भूरे को छोड़ दिया. पुलिस कई दिनों तक चंद्रवीर को अपने तरीके से तलाश करती रही. सविता ने इस बीच यह शक भी व्यक्त किया कि उस के पति की हत्या कर के भूरे ने शव उस के घर में या अपने घर में गाड़ दिया है.

अपना शक दूर करने के लिए पुलिस ने भूरे और चंद्रवीर का आंगन और कमरों को खुदवा कर भी देख डाला लेकिन तब भी कोई ऐसा सूत्र नहीं हाथ आया, जिस से समझा जाता कि चंद्रवीर की हत्या कर के उस का शव जमीन में दबा दिया गया है. पुलिस ने चंद्रवीर के मामले में काफी माथापच्ची की, जब कोई सुराग हाथ नहीं आया तो पुलिस ने चंद्रवीर के लापता होने वाली फाइल वर्ष 2021 में बंद कर दी गई. सविता ने दिल पर पत्थर रख लिया. पहले चोरीछिपे अरुण से उस की आशनाई चलती थी अब तो अरुण का ज्यादा समय उसी के घर में बीतने लगा. सविता अपनी बेटी की गैरमौजूदगी में अरुण के साथ रास रचाती.

उस ने यह आसपड़ोस में जाहिर करना शुरू कर दिया था कि चंद्रवीर के बाद अरुण उस के परिवार का सच्चे मन से साथ दे रहा है. लोगों को क्या लेनादेना था. वैसे भी लोगों की नजर में अरुण सविता का चचेरा देवर था, कोई गैर नहीं था.

4 साल बाद फिर खुली फाइल

समय तेजी से सरकता रहा. चंद्रवीर को लापता हुए पूरे 4 साल बीत गए, तब 2021 में बंद हुई एकाएक उस की बंद धूल चाट रही फाइल दोबारा से खुल गई. दरअसल, 4 अप्रैल, 2022 को गाजियाबाद के नए नियुक्त हुए एसएसपी मुनिराज जी. ने वह तमाम फाइलें खुलवाईं, जिन के केस अनसुलझे थे. इन्हीं में एक फाइल चंद्रवीर की भी थी. एसएसपी मुनिराज जी. ने यह फाइल थाना नंदग्राम गेट से ले कर क्राइम ब्रांच की एसपी दीक्षा शर्मा के हवाले कर दी.

दीक्षा शर्मा ने इस केस की जांच इंसपेक्टर (क्राइम ब्रांच) अब्दुर रहमान सिद्दीकी को सौंप दी. क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर ने पूरी फाइल का गहराई से अध्ययन किया तो उन्हें लगा कि चंद्रवीर कोई बच्चा नहीं था जिसे चुपचाप गोद में उठा कर लापता कर दिया गया हो. यह काम 2 या उस से अधिक लोग कर सकते हैं. वह लोग जब चंद्रवीर के घर में आए होंगे तो कुछ शोरशराबा होना चाहिए था. चंद्रवीर को खामोशी से गायब नहीं किया जा सकता. अगर कुछ आहट वगैरह हुई तो सविता और उस की बेटी ने जरूर सुनी होगी. पूछताछ इन्हीं से शुरू की जाए तो कुछ सूत्र हाथ आ सकता है.

इंसपेक्टर अपने साथ पुलिस टीम को ले कर सविता के घर पहुंच गए.

तब सविता घर पर नहीं थी. उस की 16 वर्षीय बेटी दीपा घर में ही थी. इंसपेक्टर ने उस से ही पूछताछ शुरू की. दीपा को सामने बिठा कर उन्होंने गंभीरता से पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम दीपा है न बेटी?’’

‘‘जी,’’ दीपा ने सिर हिलाया.

‘‘तुम्हारे पापा रात के अंधेरे में लापता हुए, क्या यह बात ठीक है?’’

‘‘सर…’’ दीपा गहरी सांस भर कर एकाएक रोने लगी.

इंसपेक्टर ने उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरा, ‘‘मुझे इतना अनुभव तो है बेटी कि कोई बात तुम्हारे सीने में दफन है, जो बाहर आना चाहती है. लेकिन तुम्हारी हिचक उसे बाहर आने से रोक रही है. क्यों, मैं ठीक कह रहा हूं न दीपा?’’

दीपा ने आंसू पोंछे और सिर हिलाया, ‘‘हां सर, मेरे दिल में एक बात 4 साल से दबी पड़ी है. मैं बताती तो किसे, मां को बताने का मतलब होता मेरी भी मौत. चाचा को भी नहीं बता सकती थी, वह मां से मिले हुए हैं. आसपड़ोस में बताती तो मेरे पिता की बदनामी होती…’’

बेटी ने बयां कर दी हकीकत

इंसपेक्टर की आंखों में चमक आ गई. चंद्रवीर के लापता होने का राज दीपा के दिल में छिपा हुआ है, यह समझते ही वह पूरे उत्साह से भर गए. सहानुभूति से उन्होंने दीपा के सिर पर फिर हाथ घुमाया, ‘‘देखो दीपा, मैं चाहता हूं कि तुम्हारे पापा के साथ न्याय हो. मुझे बताओ तुम्हारे मन में कौन सी बात दबी हुई है. डरो मत, अब तुम्हारी सुरक्षा हम करेंगे.’’

‘‘सर, मेरे पिता की हत्या हो चुकी है. मेरी मां और चाचा अरुण ने उन्हें मारा है.’’ दीपा ने बताया, ‘‘यह हत्या मेरी मां के चाचा से अवैध संबंधों के कारण हुई है.’’

‘‘ओह, क्या तुम ने अपनी आंखों से देखा था पिता की हत्या होते हुए?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

‘‘जी हां, उस दिन 28 सितंबर, 2018 की रात थी. अरुण चाचा को मां ने आधी रात को घर बुलाया. पापा गहरी नींद में थे. अरुण चाचा ने साथ लाए तमंचे से मेरे पापा के सिर में गोली मार दी. मैं बहुत डर गई. मैं कंबल में दुबक गई. मुझे नहीं पता कि दोनों ने पापा की लाश का क्या किया. सुबह मां ने पापा के रात में कहीं चले जाने की बात उड़ा दी और उन्हें तलाश करने का नाटक करने लगी.’’

‘‘हूं, मैं तुम्हें सरकारी गवाह बनाऊंगा. तुम्हारी सुरक्षा अब हमारी जिम्मेदारी है बेटी.’’ इंसपेक्टर ने कहा और उठ कर खड़े हो गए.

उन्होंने यह बात तुरंत एसपी (क्राइम ब्रांच) दीक्षा शर्मा को बता कर उन से आदेश मांगा. एसपी दीक्षा शर्मा ने सविता और अरुण को गिरफ्तार करने के आदेश दे दिए. क्राइम ब्रांच टीम ने 13 नवंबर, 2022 को सविता को अरुण के घर से अरुण के साथ ही हिरासत में ले लिया. दोनों को क्राइम ब्रांच के औफिस में लाया गया और उन से सख्ती से पूछताछ की गई तो दोनों टूट गए. सविता ने अपने पति की हत्या अरुण के साथ मिल कर करने की बात कुबूल करते हुए बताया, ‘‘साहब, मेरे अपने देवर अरुण से अवैध संबंध हो गए थे. एक दिन चंद्रवीर ने हमें आपत्तिजनक हालत में देख लिया था. उसी दिन से वह मुझे बातबात पर गाली देता और मारता था.

‘‘मैं कब तक मार खाती. मैं ने अरुण को उकसाया तो उस ने चंद्रवीर की हत्या करने के लिए 28 सितंबर, 2018 का दिन तय किया. वह पहले अपने मांबाप को मेरठ में अपने दूसरे घर में छोड़ आया फिर उस ने अपने घर में गहरा गड्ढा खोदा.

‘‘28 सितंबर की रात को वह तमंचा ले कर मेरे इशारे पर घर में आया. चंद्रवीर तब खापी कर चारपाई पर गहरी नींद सो गया था. अरुण ने उस के सिर में गोली मार दी. मैं ने चंद्रवीर के सिर से निकलने वाले खून को एक बाल्टी में भरने के लिए चारपाई के नीचे बाल्टी रख दी. ऐसा इसलिए किया कि खून से फर्श खराब न हो.’’

‘‘तुम लोगों ने लाश क्या उसी गड्ढे में छिपाई है, जिसे अरुण ने खोद कर तैयार किया था?’’ इंसपेक्टर ने प्रश्न किया.

‘‘जी सर,’’ अरुण ने मुंह खोला, ‘‘मैं ने 7 फुट गहरा गड्ढा अपने घर में खोदा था. लाश और खून सना तकिया उसी में डाल कर मिट्टी भर दी, फिर उस पर पहले की तरह फर्श बनवा दिया.’’

पति की हत्या कर शव ठिकाने लगाने के बाद भी सविता नंदग्राम थाने में हर सप्ताह चक्कर लगा कर पति को ढूंढने की गुहार लगाती थी.

हत्या की बात कुबूल करने के बाद अरुण उर्फ अनिल और सविता को विधिवत हिरासत में ले कर उन पर भादंवि की धारा 302, 201 व 120बी के तहत केस दर्ज कर लिया गया.

पुलिस ने निकलवाया 4 साल पहले दफन किया शव

मजिस्ट्रैट, क्राइम ब्रांच की टीम और एसपी (क्राइम ब्रांच) दीक्षा शर्मा की मौजूदगी में अरुण के कमरे में गड्ढा खुदवाया गया तो उस में तकिया और चंद्रवीर की सड़ीगली लाश मिली गई, जिसे बाहर निकाल कर कब्जे में ले लिया गया. अरुण और सविता को न्यायालय में पेश कर के 2 दिन की पुलिस रिमांड पर ले लिया गया. क्राइम ब्रांच ने रिमांड अवधि के दौरान अरुण से तमंचा और एक कुल्हाड़ी भी बरामद कर ली. वह बाल्टी भी कब्जे में ले ली गई, जिस में चंद्रवीर को गोली मारने के बार सिर से निकलने वाला खून इकट्ठा किया गया था.

खून बाथरूम में बहा कर पानी चला दिया गया था. बाल्टी का इस्तेमाल सविता ने नहीं किया था, उस ने बाल्टी धो कर कोलकी में रख दी थी. कुल्हाड़ी के बारे में पूछने पर अरुण ने बताया, ‘‘सर, चंद्रवीर के हाथ में चांदी का कड़ा था, जिस पर उस का नाम खुदा हुआ था. इस कुल्हाड़ी से मैं ने उस का हाथ काट कर कैमिकल फैक्ट्री के पीछे गड्ढा खोद कर दबा दिया था.’’

‘‘हाथ इसलिए काटा होगा कि कड़े से लाश पहचान ली जाती, क्यों?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

‘‘जी हां, अगर लाश पुलिस के हाथ आती तो तब तक वह सड़ चुकी होती लेकिन इस कड़े से यह पता चल जाता कि लाश चंद्रवीर की है.’’ अरुण ने कुबूल करते हुए बताया.

क्राइम ब्रांच की टीम अरुण को कैमिकल फैक्ट्री के पीछे ले कर गई. वहां अरुण ने एक जगह बताई, जहां पुलिस ने खुदाई कर के हाथ का पिंजर बरामद कर लिया. सभी चीजें सीलमोहर कर कब्जे में ले ली गईं. सविता और अरुण को 2 दिन बाद न्यायालय में पेश किया गया तो वहां से दोनों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने का आदेश दे दिया. पुलिस टीम अब चंद्रवीर की लाश जो अस्थिपंजर के रूप में थी, का डीएनए टेस्ट करवाने के प्रयास में थी ताकि यह साबित किया जा सके कि 7 फुट गहरे गड्ढे से बरामद लाश चंद्रवीर की ही है.

जिस औरत की खुशियों के लिए चंद्रवीर हमेशा एक पांव पर खड़ा रहता था, उसी औरत ने क्षणिक सुख पाने के लिए अपने देवर पर खुद को न्यौछावर कर दिया और उसी के साथ मिल कर अपने पति चंद्रवीर की जघन्य हत्या कर दी.

Love Passion Crime Story : सुहागन बनने से पहले प्रेमिका बनी विधवा

23 वर्षीय गुलशन गुप्ता ड्यूटी से थकामांदा कुछ ही देर पहले घर पहुंचा था, तभी उस ने फोन देखा तो पता चला कि उस के जिगरी यार राहुल सिंह का कई बार फोन आ चुका था. उस ने सोचा कि पता नहीं राहुल ने क्यों फोन किया है. झट से उस ने राहुल को फोन कर वजह पूछी तो राहुल बोला, ”गुलशन, तू घर पहुंच गया हो तो मेरे घर आ जा, कहीं चलना है.’’

”ठीक है, मैं आता हूं.’’ गुलशन ने कहा और उस ने अपनी मम्मी से चाय बनवाई.

वह चाय की चुस्की ले फटाफट हलक के नीचे गरमागरम उतारता गया. मिनटों में चाय की प्याली खाली कर अपनी बाइक निकाली और मम्मी को दोस्त राहुल के घर जाने की बात कह कर चल दिया. कुछ देर बाद वह राहुल के घर पहुंच गया था. यह बात 16 सितंबर, 2023  की है. गुलशन गुप्ता पंजाब के लुधियाना जिले की डाबा थानाक्षेत्र के न्यू गगन नगर कालोनी में मम्मी सोनी देवी और 3 बहनों के साथ रहता था. उस के पापा की पहले ही मृत्यु हो चुकी थी. मां सोनी देवी और खुद गुलशन यही दोनों मिल कर परिवार की जिम्मेदारी संभाले हुए थे.

गुलशन का दोस्त 25 वर्षीय राहुल सिंह लुधियाना के माया नगर में अपने मम्मीपापा के साथ रह रहा था. वह अपने मम्मीपापा की इकलौती संतान था. सब का लाडला था. उस की एक मुसकान से मांबाप की सुबह होती थी. वह अपनी जो भी ख्वाहिश उन के सामने रखता था, वह पूरी कर देते थे. पापा अशोक सिंह एक प्राइवेट कंपनी में थे, पैसों की उन के पास कोई कमी नहीं थी, बेटे पर वह अपनी जान छिड़कते थे.

गुलशन को देख कर राहुल का चेहरा खुशी से खिल उठा था तो गुलशन ने भी उसी अंदाज में राहुल के साथ रिएक्ट किया था. वैसे ऐसा कोई दिन नहीं होता था, जब वे एकदूसरे से न मिलते हों. इन की यारी ही ऐसी थी कि बिना मिले इन्हें चैन नहीं आता था. ये जिस्म से तो दो थे, लेकिन जान एक ही थी. खैर, राहुल गुलशन के ही आने का इंतजार कर रहा था. उस के आते ही उस की बाइक अपने घर के सामने खड़ी कर दी और बाहर खड़ी अपनी एक्टिवा ड्राइव कर गुलशन को पीछे बैठा कर मम्मी से थोड़ी देर में लौट कर आने को कह निकल गया.

दोनों दोस्त कैसे हुए लापता

राहुल सिंह के साथ गुलशन गुप्ता को निकले करीब 4 घंटे बीत गए थे, लेकिन न तो राहुल घर लौटा था और न गुलशन ही घर लौटा था. और तो और दोनों के सेलफोन भी बंद आ रहे थे. राहुल के जितने भी दोस्त थे, पापा अशोक सिंह ने सब के पास फोन कर के उस के बारे में पूछा. यही नहीं लुधियाना में रह रहे अपने रिश्तेदारों और चिरपरिचितों से भी राहुल के बारे में पूछ लिया था, लेकिन किसी ने भी उस के वहां आने की बात नहीं कही.

दोनों के घर वालों ने रात आंखों में काट दी थी. अगले दिन 17 सितंबर को सुबह 10 बजे राहुल के पापा अशोक सिंह और गुलशन की मम्मी सोनी देवी दोनों डाबा थाने जा पहुंचे. उन्होंने राहुल और गुलशन के गायब होने की पूरी बात बता दी. गुलशन की मम्मी सोनी देवी ने बताया कि सर, हमें पूरा यकीन है कि हमारे बच्चों का अमर यादव ने अपहरण किया है.

”क्या..?’’ सोनी देवी की बात सुन कर इंसपेक्टर सिंह उछले, ”अमर यादव ने आप के बच्चों का अपहरण किया है? लेकिन यह अमर यादव है कौन और उस ने दोनों का अपहरण क्यों किया?’’

अमर यादव पर क्यों लगाया अपहरण का आरोप

सोनी देवी ने राहुल और गुलशन के अपहरण किए जाने की खास वजह इंसपेक्टर कुलवीर सिंह को बता दी. उन की बातों में दम था. फिर इंसपेक्टर ने राहुल और गुलशन की एक एक फोटो मांगी तो उन्होंने दोनों के फोटो उन के वाट्सऐप पर सेंड कर दिए. सोनी ने लिखित तहरीर इंसपेक्टर कुलवीर सिंह को सौंप दी थी. इस बीच एक जरूरी काल आने के बाद अशोक सिंह वहां से जा चुके थे. उधर कुलदीप सिंह ने सोनी देवी से तहरीर ले कर अपने पास रख ली और आवश्यक काररवाई करने का आश्वासन दे कर उन्हें वापस घर भेज दिया था.

राहुल सिंह के पिता अशोक सिंह को एक परिचित ने फोन कर के बताया कि टिब्बा रोड कूड़ा डंप के पास लावारिस हालत में राहुल की एक्टिवा खड़ी है और वहीं मोबाइल फोन भी पड़ा है. यह सुन कर वह इंसपेक्टर कुलवीर सिंह से टिब्बा रोड चल दिए थे. वह जैसे ही वहां पहुंचे, सफेद एक्टिवा और मोबाइल देख कर अशोक पहचान गए, दोनों ही चीजें उन के बेटे राहुल की थीं. अभी वह खड़े हो कर कुछ सोच ही रहे थे कि उसी वक्त एक और चौंका देने वाली सूचना उन्हें मिली. टिब्बा रोड से करीब 2 किलोमीटर दूर वर्धमान कालोनी से गुलशन का मोबाइल फोन बरामद कर लिया गया.

राहुल की एक्टिवा और दोनों के लावारिस हालत में पड़े हुए फोन की सूचना अशोक ने डाबा थाने के इंसपेक्टर कुलवीर सिंह को फोन द्वारा दे दी थी. सूचना मिलने के बाद कुलवीर सिंह मय दलबल के मौके पर पहुंच गए, जहां अशोक सिंह खड़े उन के आने का इंतजार कर रहे थे.

दोनों मोबाइल फोन बंद थे. इंसपेक्टर कुलवीर सिंह ने दोनों फोन औन किए. उन्होंने राहुल के फोन की काल हिस्ट्री चैक की तो पता चला कि बीती रात साढ़े 5 बजे के करीब उस के फोन पर एक नंबर से फोन आया था. उसी नंबर से 15 सितंबर को करीब 3 बार काल आई थी.

इंसपेक्टर सिंह ने इस नंबर पर काल बैक किया तो वह नंबर लग गया. काल रिसीव करने वाले से उस का नाम पूछा गया तो उस ने अपना नाम अमर यादव बताया और टिब्बा रोड स्थित रायल गेस्टहाउस का कर्मचारी होना बताया.

अमर यादव का नाम सुन कर वह चौंक गए, क्योंकि सोनी देवी ने भी बच्चों के अपहरण करने की अपनी आशंका इसी के प्रति जताई थी और राहुल के फोन में आखिरी काल भी अमर यादव की ही थी. इस का मतलब था कि राहुल और गुलशन के गायब होने में कहीं न कहीं से अमर यादव का हाथ हो सकता है.

पुलिस ने बरामद कीं दोनों दोस्तों की लाशें

फिर देर किस बात की थी. पुलिस रायल गेस्टहाउस पहुंच गई, जो मौके से कुछ ही दूरी पर स्थित था. गेस्टहाउस पहुंच कर इंसपेक्टर सिंह अमर यादव को पूछते हुए सीधे अंदर घुस गए. मैनेजर वाले कमरे में एक 23 वर्षीय सांवले रंग का दुबलापतला गंदलुम कपड़े पहने युवक बैठा मिला. सामने पुलिस को देख उस को पसीना छूट गया.

”अमर यादव तुम हो?’’ गुर्राते हुए इंसपेक्टर सिंह बोले.

”हां जी सर, मैं ही अमर यादव हूं.’’ बेहद सम्मानित तरीके से उस ने जवाब दिया था, ”बात क्या है, क्यों मुझे खोज रहे हैं.’’

”अभी पता चल जाएगा बेटा. राहुल और गुलशन कहां हैं? तुम ने कहां छिपा कर दोनों को रखा है? सीधे तरीके से बता दे वरना…’’

”बताता हूं सर, बताता हूं. दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं,’’ बिना किसी डर के वह आगे कहता गया, ”मैं ने अपने साथियों के साथ मिल कर दोनों को मौत के घाट उतार दिया है और मैं करता भी क्या. मेरे पास इस के अलावा कोई और रास्ता भी नहीं बचा था.

”राहुल मेरे प्यार को मुझ से छीनने की कोशिश कर रहा था, इसलिए मैं ने अपने रास्ते का कांटा सदा के लिए हटा दिया. यहीं नहीं जो जो भी मेरे प्यार के रास्ते का रोड़ा बनेगा, मैं उसे ऐसे ही मिटाता रहूंगा.’’ और फिर अमर ने पूरी पूरी घटना विस्तार से उन्हें बता दी.

इंसपेक्टर कुलवीर सिंह ने अमर यादव को गिरफ्तार कर लिया और उसी की निशानदेही पर 3 और आरोपियों अभिषेक राय, अनिकेत उर्फ गोलू और नाबालिग मनोज को शेषपुर से गिरफ्तार कर लिया. चारों को हिरासत में ले कर पुलिस ताजपुर रोड स्थित सेंट्रल जेल के पास बहने वाले कक्का धौला बुड्ढा नाला (भामियां) पास पहुंची, जहां आरोपियों ने हत्या कर राहुल और गुलशन की लाश कंबल में लपेट कर बोरे में भर कर फेंकी थीं.

थोड़ी मशक्कत के बाद राहुल और गुलशन गुप्ता की लाशें बरामद कर ली थीं. इस के बाद दोहरे हत्याकांड की घटना पल भर में समूचे लुधियाना में फैल गई थी. घटना से जिले में सनसनी फैल गई थी. लोगबाग कानूनव्यवस्था पर सवाल उठाने लगे थे.

खैर, इस घटना की सूचना मिलते ही पुलिस कमिश्नर मनदीप सिंह सिद्धू, डीसीपी (ग्रामीण) जसकिरनजीत सिंह तेजा, एडीसीपी (सिटी-2) सुहैल कासिम मीर और एसीपी (इंडस्ट्रियल एरिया-15) संदीप बधेरा मौके पर पहुंच गए थे.

खुशियां कैसे बदलीं मातम में

मौके पर पहुंचे पुलिस अधिकारियों ने लाशों का निरीक्षण किया. दोनों में से राहुल की लाश विकृत हो चुकी थी. हत्यारों ने धारदार हथियार से उस की गरदन पर हमला किया था. उसे इतनी बेरहमी से मारा था कि उस की बाईं आंख बाहर निकल गई थी. मौके पर मौजूद मृतक राहुल के पापा ने दिल पर पत्थर रख कर बेटे की पहचान कर ली थी. 4 महीने बाद उस की शादी होने वाली थी, उस से पहले ही वह दुनिया से विदा हो गया. घर में शादी की खुशियां मातम में बदल गई थीं. घर वालों का रोरो कर हाल बुरा हुए जा रहा था.

बहरहाल, पुलिस ने दोनों लाशों का पंचनामा तैयार कर उन्हें पोस्टमार्टम के लिए लुधियाना जिला अस्पताल भेज दिया और चारों आरोपियों को अदालत में पेश कर उन्हें जेल भेज दिया. आरोपियों से की गई कड़ी पूछताछ के बाद इस दोहरे हत्याकांड की जो कहानी पुलिस के सामने आई, वह मंगेतर के बीच मोहब्बत की जंग पर रची हुई थी. 25 वर्षीय राहुल सिंह मम्मीपापा का इकलौता था. वही मांबाप के आंखों का नूर था और उन के जीने का सहारा भी. वह जवान हो चुका था और एक प्राइवेट कंपनी में एचआर की नौकरी भी करता था. अच्छा खासा कमाता था.

चूंकि राहुल जवान भी हो चुका था और कमा भी रहा था, इसलिए पापा अशोक सिंह ने सोचा कि बेटे की शादी वादी हो जाए. घर में बहू आ जाएगी तो उस की मम्मी को भी सहारा हो जाएगा. यही सोच कर अशोक सिंह ने अपने जानपहचान और रिश्तेदारों के बीच में बेटे की शादी की बात चला दी थी कि कोई अच्छी और पढ़ीलिखी बहू मिले जो घरगृहस्थी संभाल सके.

जल्द ही राहुल के लिए कई रिश्ते आए. उन में से जमालपुर थाना क्षेत्र स्थित मुंडिया कलां के रहने वाले अजय सिंह की बेटी स्नेहा घर वालों को पसंद आ गई. खुद राहुल ने भी उसे पसंद किया था. स्नेहा पढ़ीलिखी और सुंदर थी. 2 बहनों और एक भाई में वह सब से बड़ी थी. राहुल और स्नेहा की शादी पक्की हो गई और फरवरी 2023 में दोनों की मंगनी भी हो गई और शादी फरवरी 2024 में होने की बात पक्की हुई.

इंस्टाग्राम के किस फोटो को ले कर हुई कलह

अपनी शादी तय होने से राहुल बहुत खुश था. अपने दिल का हर राज अपने खास दोस्तों गुलशन और सूरज के बीच शेयर करता था. मंगनी के दिन राहुल ने स्नेहा को देखा तो अपनी सुधबुध खो दी थी. वह थी ही इतनी सुंदर. उस की सुंदरता पर वह फिदा था. उस के बाद दोनों के बीच फोन पर अकसर दिल की बातें होती रहती थीं. वह अपने दिल की बात स्नेहा से करता और स्नेहा अपने दिल की बातें मंगेतर से करती. धीरेधीरे दोनों के बीच प्यार हो गया था और वे चाहते थे कि उन का मिलन जल्द से जल्द हो जाए.

लेकिन उन का मिलन होने में अभी 4 महीने बचे थे. जैसे तैसे वे अपने दिल पर काबू किए थे. वह जून-जुलाई, 2023 का महीना रहा होगा, जब राहुल के परिवार पर दुखों के बादल मंडराने लगे थे.

एक दिन की बात थी. इंस्टाग्राम पर गुलशन अपना अकाउंट देख रहा था. अचानक उस की एक नजर ठहर गई और 2 फोटो देख कर वह चौंक गया.फोटो में स्नेहा किसी अमर यादव के साथ गलबहियों में चिपकी पड़ी थी. फिर उस ने फोटो का स्क्रीनशौट ले कर सेव कर लिया और सूरज को दिखाया. फोटो देख कर वह हैरान था, ये तो राहुल की होने वाली पत्नी स्नेहा है. उस के पीठ पीछे क्या गुल खिलाया जा रहा है. दोनों ने राहुल से सारी बातें साफसाफ बता दीं.

फिर राहुल ने समझदारी का परिचय देते हुए इंस्टाग्राम पर स्नेहा का अकाउंट चैक किया तो बात सच साबित हो गई थी. इस के बाद उस ने स्नेहा से बात की. स्नेहा अपनी ओर से सफाई देती हुई बोली, ”आप ने जिस फोटो को देखा था, वो उस का अतीत था. कभी अमर नाम के लड़के से वह प्यार करती थी, लेकिन शादी पक्की होने के बाद से उस ने उस से अपनी ओर से रिश्ता तोड़ लिया है. वह अब अमर से नहीं मिलती. पुरानी बातों को मुद्दा बना कर वह उसे हर समय परेशान करता रहता है.’’

पूर्व प्रेमी और मंगेतर के बीच बढ़ता गया विवाद

राहुल को अपनी मंगेतर स्नेहा की बातों पर पूरा विश्वास हो गया था कि वह जो कह रही है, सच कह रही है. उस के बाद राहुल ने अमर यादव को सावधान करते हुए पोस्ट लिखा कि स्नेहा उस की होने वाली पत्नी है. आने वाले साल 2024 में हमारी शादी होनी है. तुम उस का पीछा करना छोड़ दो. उसे बदनाम न करो वरना इस का परिणाम बुरा हो सकता है.

इस पर अमर यादव ने भी पलट कर जवाब दिया था, ”स्नेहा उस का प्यार है. उसे वह टूट कर प्यार करता है. तेरे कारण उस ने उस से बात करनी बंद कर दी है और दूरदूर रहती है. मुझ से इस की जुदाई, उस की तन्हाई जीने नहीं देती. मेरे और मेरे प्यार के बीच में जो भी रोड़ा बनने की कोशिश करेगा, उसे हमेशा हमेशा के लिए मिटा दूंगा और तू भी समझ ले, अभी वक्त है हम दोनों के बीच से हट जा, उसी में तेरी भलाई है. नहीं तो मैं किस हद तक चला जाऊंगा, मुझे खुद भी नहीं पता.’’

उस दिन के बाद राहुल और अमर यादव के बीच स्नेहा को ले कर वर्चस्व की टेढ़ी लकीर खिंच गई थी. बारबार राहुल इंस्टाग्राम पर फोन कर के स्नेहा से दूर रहने को धमकाता था. वहीं अमर भी स्नेहा से दूर हट जाने को धमकाता था. राहुल ने अप्रत्यक्ष तौर पर अपने घर वालों को बता भी दिया था कि अमर यादव नाम का एक लड़का स्नेहा को बदनाम करने के एवज में उसे परेशान करता रहता है. घर वालों ने इस बात को हल्के में लिया और समझा दिया कि शादी हो जाने के बाद सब ठीक हो जाएगा. नाहक परेशान होने की जरूरत नहीं है. इस के बाद राहुल भी थोड़ा बेफिक्र हो गया था.

शादी के दिन जैसे जैसे नजदीक आ रहे थे, अमर को प्रेमिका स्नेहा से जुदाई के दिन साफ नजर आ रहे थे. यह सोच कर गुस्से से पागल हो जाता था कि उस के जीते जी कोई उस के प्यार को उड़ा ले जाए, ये कैसे हो सकता है. क्यों न रास्ते के कांटे को ही जड़ से ही उखाड़ दिया जाए. न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी.

जैसे ही उस के दिमाग में यह विचार आया, खुशी से उछल पड़ा. उस ने अपने दोस्तों को रायल गेस्टहाउस बुला लिया. यह गेस्टहाउस टिब्बा थाने के टिब्बा रोड पर स्थित था, गेस्टहाउस एक डीसीपी (पुलिस अधिकारी) का था, जो इन दिनों उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में तैनात है.

नौकर क्यों समझता था खुद को डीसीपी

अमर यादव मूलरूप से बिहार के दरभंगा जिले का रहने वाला था, लेकिन सालों से वह लुधियाना के शेषपुर मोहल्ले में किराए का मकान ले कर रहता था. उस के मांबाप घर रहते थे. उज्जवल भविष्य की कामना ले कर ही वह दरभंगा से लुधियाना चला था. पहले से वहां उस के कई परिचित रहते थे. उन्हीं के सहारे वह यहां रहने आया था. देखने में तो वह एकदम दुबलापतला मरियल जैसा लगता था, लेकिन था वह अपराधी प्रवृत्ति वाला. बातबात पर हर किसी से झगड़ जाना उस की आदत थी और अपराधियों और नशे का कारोबार करने वालों से उस की खूब बनती थी.

जिस दिन से डीसीपी के गेस्टहाउस पर काम करना शुरू किया था, खुद को ही अमर डीसीपी समझ बैठा. दूसरों पर डीसीपी जैसा रौब झाड़ता था और इसी गेस्टहाउस के तले नशे का कारोबार भी करता था. कुछ महीनों पहले भी यह गेस्टहाउस खासी चर्चा का विषय बना था. उस के दोस्तों में अभिषेक राय, अनिकेत ऊर्फ गोलू और मनोज खास थे. अमर जब भी कोई जुर्म करता था तो इन्हीं को अपना हमराज बनाता था. इन के मुंह बंद करने के लिए वह इन पर खर्च भी खूब करता था.

बहरहाल, राहुल को रास्ते से हटाने के लिए अमर ने अभिषेक राय, अनिकेत उर्फ गोलू और मनोज को 14 सितंबर, 2023 को रायल गेस्टहाउस बुलाया और चारों ने आपस में बैठ कर मीटिंग की कि राहुल की हत्या कैसे करनी है और फिर लाश को कैसे ठिकाने लगाना है.

सब कुछ तय हो जाने के बाद 15 सितंबर, 2023 को अमर ने बाजार से लोहे का दांत और रौड खरीद लाया और गेस्टहाउस के एक कमरे में छिपा दिए.

15 सितंबर, 2023 की शाम करीब 5 बजे अमर यादव ने राहुल को फोन किया और उसे मिलने के लिए रायल गेस्टहाउस बुलाया. इस पर राहुल ने कोई जवाब नहीं दिया और उस का फोन काट दिया था. इस के बाद उस ने 3 बार और उसे फोन कर के गेस्टहाउस बुलाया, लेकिन राहुल नहीं गया.

किस वजह से राहुल अपने दुश्मन के पास जाने को मजबूर हुआ

16 सितंबर की शाम को अमर यादव ने फिर से राहुल को फोन किया और बताया कि उस के पास स्नेहा के साथ आपत्तिजनक स्थिति का एक वीडियो है, जो उसे देना चाहता है. आ कर ले जा सकता है.

इस पर राहुल ने कहा, ”ठीक है, वह आज मिलने जरूर आएगा.’’

और फिर ड्यूटी से राहुल जल्दी छुट्टी ले कर घर पहुंच आया. ड्यूटी से निकलते हुए राहुल ने गुलशन को भी फोन कर दिया कि अमर ने फोन कर के बताया है कि स्नेहा की कोई खास वीडियो उस के पास है, आ कर ले जाए. मेरे दोस्त, वो वीडियो किसी तरह से हासिल करनी है तो तुम्हें मेरे साथ उस से मिलने टिब्बा रोड रायल गेस्टहाउस चलना होगा.

साढ़े 8 बजे गुलशन गुप्ता जब घर से अपनी बाइक ले कर निकला तो मम्मी को बता दिया था कि वह राहुल से मिलने उस के घर जा रहा है, थोड़ी देर बाद वह लौट आएगा. कौन जानता था इस के बाद वह कभी नहीं आएगा.थोड़ी देर बाद वह राहुल के सामने खड़ा था. दोनों ने चाय की चुस्की ली और अमर से मिलने टिब्बा रोड पहुंच गए. सनद रहे, गुलशन ने अपनी बाइक राहुल के घर खड़ी कर दी थी और राहुल अपनी एक्टिवा ले कर गया था. आधे घंटे बाद राहुल और गुलशन रायल गेस्टहाउस के बाहर खड़े थे. उस ने अपनी एक्टिवा गेस्टहाउस के बाहर खड़ी कर दी थी.

”अमर…अमर…’’ की आवाज लगाते हुए राहुल गेस्टहाउस के अंदर दाखिल हुआ तो गुलशन भी उसी के पीछे हो लिया था. 2 मिनट बाद एक लड़का बाहर निकला और राहुल के सामने खड़ा हो गया. उसे अपनी बातों में उलझा लिया. तब तक वहां अभिषेक राय और मनोज भी पहुंच गए और स्नेहा को ले कर राहुल से भिड़ गए.

अभी यह सब हो ही रहा था कि तभी अचानक अमर यादव लोहे का दांत लिए बाहर निकला और राहुल की गरदन पर जोरदार तरीके से वार किया. वहां कटे वृक्ष के समान हवा में लहराते हुए धड़ाम से फर्श पर जा गिरा. उस के बाद अभिषेक उसे लोहे की रौड से मारता गया.

राहुल को देख कर अमर गुस्से से इतना पागल हो गया था कि लोहे के दांत उस के बाईं आंख में घुसेड़ कर आंख बाहर निकाल दी थी. राहुल मर चुका था. उस के सिर से खून बह रहा था. यह देख गुलशन सन्न रह गया और वहां से भागने लगा लेकिन चारों ने उसे घेर लिया और उसे भी मार डाला. अमर यादव उसे नहीं मारना चाहता था. चूंकि पूरी घटना गुलशन की आंखों के सामने घटी थी और हत्या का वह एकमात्र चश्मदीद गवाह था, इसलिए अमर और उस के साथियों ने उसे भी उसी लोहे के दांत से मौत के घाट उतार दिया था.

इस के बाद चारों ने मिल कर राहुल और गुलशन की लाश कंबल में लपेट दीं. राहुल की ही एक्टिवा पर दोनों की लाश बारीबारी से सेंट्रल जेल के ताजपुर रोड स्थित कक्का धौला बुड्ढा नाले में फेंक आए. फिर गेस्टहाउस में फर्श पर फैले खून को पानी से धो कर सारे सबूत मिटा दिए और राहुल की एक्टिवा टिब्बा रोड कूड़ा डंप के पास खड़ी कर दी. स्विच औफ कर के उस के मोबाइल फोन को भी गाड़ी के बगल में गिरा दिया.

अमर वहीं गेस्टहाउस में ही रुका रहा जबकि अभिषेक राय, मनोज और अनिकेत उर्फ गोलू अपने घर शेषपुर निकल गए. घर जाते हुए तीनों ने गुलशन के मोबाइल को वर्धमान कालोनी में स्विच औफ कर के फेंक दिया था. इश्क की जंग में पागल प्रेमी अमर यादव इस कदर हैवान बन चुका था कि उसे स्नेहा के अलावा कुछ नहीं दिख रहा था जबकि स्नेहा ने उस से अपना संबंध तोड़ लिया था. वह एक नई जिंदगी बसाने का हसीन ख्वाब देख रही थी, लेकिन सुहागन बनने से पहले ही विधवा बन गई.

खैर, कथा लिखे जाने तक पुलिस चारों आरोपियों अमर यादव, अभिषेक राय, अनिकेत उर्फ गोलू और मनोज को गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी थी और हत्या में प्रयुक्त लोहे की दांत, रौड, 2 मोबाइल फोन बरामद कर लिए थे. पुलिस ने अपहरण की धारा को 302, 201, 120बी व 34 आईपीसी में तरमीम कर दिया.