सिपाही की शादी बनी बरबादी – भाग 4

सोनी से भले ही रोशन राय दूर भागता जा रहा था, लेकिन वह अपने कप्तान धवल जायसवाल से दूर नहीं भाग सकता था. उन्होंने वायरलैस सेट के जरिए संदेश भिजवा कर सिपाही रोशन राय को अपने दफ्तर में जल्द से जल्द हाजिर होने का आदेश दिया. अपने कप्तान के आदेश को वह ठुकरा नहीं सकता था, उसे उन के सामने हाजिर होना ही पड़ा. इस तरह सिपाही रोशन राय और सोनी का मामला विभाग में भी फैल गया.

कड़ा रुख अख्तियार करते हुए कप्तान धवल जायसवाल ने सिपाही रोशन राय को फटकार लगाई, ‘‘सोनी नाम की जिस युवती के साथ तुम ने रिश्ते बनाए थे, शादी का झांसा दे कर उस की जिंदगी चौपट की है, उस के साथ न्याय करो. शादी कर के उसे अपना लो वरना जेल में सड़ जाओगे. उस ने तुम्हारे खिलाफ दुष्कर्म का आरोप लगाते हुए प्रार्थना पत्र दिया है.’’

एसपी के आदेश पर की शादी…

उस के बाद एसपी धवल जायसवाल ने रोशन को बहुत समझाया. कप्तान के दबाव में आ कर रोशन राय ने उस समय शादी करने की तो हामी भर दी थी. कप्तान के आदेश पर सोनी से रोशन राय ने 28 नवंबर, 2022 को जटहां बाजार स्थित शिव मंदिर में सोनी अंसारी से शादी कर ली थी और हेतिमपुर के सटर टोला भैंसहा स्थित राजेंद्र सिंह के मकान में ऊपर का कमरा ले कर प्रेमिका से पत्नी बनी सोनी को ले कर रहने लगा.

कभी जिस सोनी पर वह जान छिडक़ता था, आज उसी से बेहद नफरत करने लगा था. उस को इस बात का बेहद मलाल था कि उस ने उस की शिकायत कप्तान से क्यों की? उन की नजरों में उस की क्या इज्जत रह गई? इस की सजा तो उसे भुगतनी ही पड़ेगी. इस बात को ले कर दोनों के बीच झगड़ा होने लगा था. यह झगड़ा बाद में मारपीर में बदल गया था.  बातबात पर रोशन पत्नी सोनी को जलील करता और उसे पीटता था. अपने साथ हो रही हर यातनाओं और जुल्मों को सोनी अपनी मां से कहती थी. मां के पास इस का विकल्प भी नहीं था, क्योंकि उस का ही फैसला था कि शादी जब भी करेगी तो रोशन से ही करेगी, उस ने मां से यही कहा थी.

अब सोनी को अपने फैसले पर बहुत पछतावा हो रहा था कि काश! उस ने मांबाप की बात मान ली होती तो शायद उस की हालत ऐसी नहीं होती, लेकिन अब पछताने से क्या होना था. बहरहाल, पतिपत्नी के बीच रोजरोज के झगड़े, हाथापाई से दोनों का जीवन असहज बन गया था. रोशन ने सोनी को अपने जीवन से हमेशाहमेशा के लिए निकाल कर फेंकने की योजना बना ली थी. वह योजना थी उस की हत्या.

सिपाही ने की पत्नी की हत्या…

17 जनवरी, 2023 को रात में सोनी की बात मां अश्मीना से हुई तो इस बात को ले कर रोशन राय ने सोनी से खूब झगड़ा किया और उसे जम कर लातघूसों से मारा. उस ने सोनी से पहले ही कह दिया दिया था कि उसे अपने मांबाप से कोई रिश्ता नहीं रखना है, अगर उन से रिश्ता रखा तो उस से बुरा कोई नहीं होगा. पति की पिटाई से सोनी रात भर बिस्तर पर दुबक कर सिसकती रही और अपनी किस्मत पर आंसू बहाती रही.

बहरहाल, रात जैसेतैसे बीती. सोनी का रोरो कर बुरा हाल हो गया था, उस की आंखें सूज गई थीं, लेकिन रोशन के दिल में सुलग रही नफरत की आग अभी ठंडी नहीं हुई थी. 18 जनवरी, 2023 की रात उस के और सोनी के बीच फिर लड़ाईझगड़ा हुआ. गुस्से में आ कर उस ने पत्नी सोनी को गला घोट कर मौत के घाट उतार दिया और कमरे की बत्ती औफ कर उसी रात कमरे पर बाहर से ताला लगा कर चला गया. यानी पत्नी की हत्या कर सिपाही फरार हो गया था. आगे क्या हुआ? कहानी में ऊपर वर्णन किया जा चुका है.

खैर, होनी को कौन टाल सकता है जो होना है, सो तो हो कर रहता है. अगर सोनी ने अपने मांबाप का कहना माना होता तो शायद आज वह भी जिंदा होती. आरोपी रोशन राय से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने कोर्ट में पेश कर उसे जेल भेज दिया था. उधर घर वाले जब सोनी अंसारी की लाश कब्रिस्तान में दफनाने के लिए ले गए थे, तब समाज के लोगों ने उस की लाश नहीं दफनाने दी. उन का कहना था कि मृतका ने दूसरे धर्म में शादी की थी. कई थानों की पुलिस के पहुंचने के बाद भी उन लोगों ने शव कब्रिस्तान में नहीं दफनाने दिया. कथा लिखे जाने तक सिपाही रोशन जेल में बंद था. उसे अपने किए पर जरा भी पछतावा नहीं हो रहा था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्यार के लिए अपहरण – भाग 1

हमजा और अयान पास की ही कनफैक्शनरी की दुकान से केक लेने गए थे. काफी देर होने के बाद भी वे घर नहीं लौटे तो मां आसिफा परेशान हो उठीं. घर से दुकान ज्यादा दूर नहीं थी. उतनी देर में बच्चों को आ जाना चाहिए था. वे कहीं खेलने तो नहीं लगे, यह सोच कर वह कनफैक्शनरी की दुकान की ओर चल पड़ी. उसे रास्ते में ही नहीं, दुकान पर भी बच्चे दिखाई नहीं दिए.

उस ने दुकानदार से बच्चों के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि उस के बच्चे तो दुकान पर आए ही नहीं थे. यह सुन कर आसिफा के पैरों तले से जमीन खिसक गई. क्योंकि बच्चे घर से शाम सवा 5 बजे निकले थे और उस समय 6 बज रहे थे. उसे बताए बगैर उस के बच्चे कहीं नहीं जाते थे. वह परेशान हो गई कि बच्चे कहां चले गए.

आसिफा के पति सऊदी अरब में थे. घर पर वह अकेली ही थी. इसलिए बच्चों के न मिलने से वह परेशान थी. उस ने बच्चों को इधरउधर गलियों में ढूंढ़ने के अलावा रिश्तेदारों और जानकारों को फोन कर के पूछा. लेकिन कहीं से भी उसे बच्चों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. यह 24 नवंबर, 2013 की बात है.

आसिफा के बच्चों के लापता होने की बात थोड़ी ही देर में मोहल्ले भर में फैल गई. हमदर्दी में सभी लोग अपनेअपने स्तर से बच्चों को इधरउधर ढूंढ़ने लगे. लेकिन तमाम कोशिश के बावजूद किसी को भी पता नहीं चल सका कि दुकान तक गए बच्चे आखिर कहां चले गए. बच्चों की तलाश कर के थक हार कर आसिफा मोहल्ले के लोगों के साथ रात 8 बजे के आसपास मुरादाबाद शहर की कोतवाली जा पहुंची. क्योंकि वह रेती स्ट्रीट मोहल्ले में रहती थी और यह मोहल्ला कोतवाली के अंतर्गत आता था.

आसिफा ने बच्चों के गायब होने की बात कोतवाली प्रभारी को बताई तो उन्होंने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया. दोनों बच्चों के गायब होने से आसिफा के दिल पर क्या बीत रही थी, इस बात को कोतवाली प्रभारी ने समझने के बजाए सीधा सा जवाब दे दिया कि बच्चे इधरउधर कहीं खेलने चले गए होंगे, 2-4 घंटे में खुद ही लौट आ जाएंगे.

कोतवाली प्रभारी की यह बात आसिफा को ही नहीं, उस के साथ आए लोगों को भी अच्छी नहीं लगी. लिहाजा सभी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक आशुतोष कुमार के पास जा पहुंचे. जब उन लोगों ने 11 साल की हमजा और 6 साल के अयान के गायब होने की जानकारी उन्हें दी तो उन्होंने इस बात को गंभीरता से लिया. इस के बाद उन के आदेश पर कोतवाली में बच्चों की गुमशुदगी दर्ज कर के मामले की जांच शुरू कर दी गई.

जिस दुकान से बच्चे केक खरीदने गए थे, पुलिस उस दुकान के मालिक को पूछताछ के लिए कोतवाली ले आई. दुकानदार ने पुलिस को बताया कि वह सुबह से दुकान पर ही बैठा था, शाम तक उस के यहां कोई भी बच्चा केक खरीदने नहीं आया था.

बच्चों के पिता मोहम्मद शमीम सऊदी अरब में कोई बिजनैस करते थे, इसलिए पुलिस को इस बात की भी आशंका थी कि कहीं फिरौती के लिए तो नहीं बच्चों को उठा लिया गया. लेकिन अगर ऐसी बात होती तो अब तक फिरौती के लिए फोन आ गया होता. बच्चों की चिंता में आसिफा का रोरो कर बुरा हाल था. उस के निकट संबंधी उसे समझाने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन आसिफा की चिंता कम नहीं हो रही थी.

एसएसपी आशुतोष कुमार भी कोतवाली पहुंच गए थे. वहीं पर उन्होंने एसपी सिटी महेंद्र सिंह यादव, क्षेत्राधिकारी रफीक अहमद को बुला कर कोतवाली प्रभारी के साथ मीटिंग की. रेती स्ट्रीट मोहल्ला अतिसंवेदनशील माना जाता है, इसलिए एसएसपी ने इस मामले को जल्द ही खोलने के निर्देश दिए, ताकि मोहल्ले के लोग किसी तरह का हंगामा न खड़ा करें.

क्षेत्राधिकारी रफीक अहमद ने आसिफा से किसी से दुश्मनी या रंजिश के बारे में पूछा तो उस ने कहा कि इस तरह की उस के साथ कोई बात नहीं है. घूमफिर कर पुलिस को यही लग रहा था कि बच्चों का अपहरण शायद फिरौती के लिए किया गया है. इसीलिए पुलिस ने आसिफा से भी कह दिया था कि अगर किसी का फिरौती की बाबत फोन आता है तो वह फोन करने वाले से विनम्रता से बात करेगी और इस की जानकारी पुलिस को अवश्य देगी. रात के 10 बज चुके थे. लेकिन हमजा और अयान का कुछ पता नहीं चला था. बच्चों को ले कर आसिफा के दिमाग में तरहतरह के विचार आ रहे थे, जिस से वह काफी परेशान हो रही थी.

अपहरण की आशंका की वजह से पुलिस इलाके के आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को उठाउठा कर पूछताछ करने लगी. उन से भी बच्चों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी.

24 नवंबर की रात 11 बजे के आसपास एसएसपी आशुतोष कुमार को हरिद्वार के एसपी सिटी सुरजीत सिंह पंवार द्वारा मिली सूचना से काफी राहत मिली. सुरजीत सिंह पंवार ने उन्हें बताया था कि थाना श्यामपुर के रसिया जंगल में 11 साल की एक लड़की हमजा मिली है. उस के शरीर पर कुछ चोट के निशान हैं, लेकिन वह सकुशल है. पूछताछ में उस ने बताया है कि वह मुरादाबाद के मोहल्ला रेती स्ट्रीट की रहने वाली है.

एसएसपी ने यह खबर आसिफा को दी तो वह घर वालों के साथ कोतवाली पहुंच गई. हमजा हरिद्वार कैसे पहुंची, यह बात उस से बात कर के ही पता चल सकती थी. कोतवाली पुलिस रात में ही हरिद्वार के लिए रवाना हो गई और रात दो, ढाई बजे थाना श्यामपुर पहुंच गई.

अनीता की अनीति : मतलबी प्यार – भाग 2

मकान मालिक के पास नीरज शर्मा और उस की पत्नी अनीता का फोन नंबर तो था, लेकिन उस के घरपरिवार के बारे में उसे कुछ पता नहीं था. यह भी पता नहीं था कि वह नौकरी कहां करता था. तब पुलिस ने उस से पूछा कि उस ने उसे अपना मकान किस के कहने पर किराए पर दिया था. इस पर प्रदीप ने बताया कि उस ने पड़ोस में रहने वाले श्यामवीर के कहने पर अपना मकान किराए पर दिया था. वह भी फिरोजाबाद का ही रहने वाला था. शायद उसे नीरज के बारे में पता होगा. क्योंकि उस ने उसी की जिम्मेदारी पर अपना कमरा किराए पर दिया था.

श्यामवीर के बारे में पता किया गया तो वह गांव गया हुआ था. मकान मालिक से नीरज और अनीता के फोन नंबर मिल गए थे. लेकिन जब उन नंबरों पर फोन किया गया तो वे बंद थे. शायद उन्हें पता था कि मोबाइल फोन से पुलिस उन तक पहुंच सकती है, इसलिए उन्होंने फोन बंद कर दिए थे.

जब थानाप्रभारी गोरखनाथ यादव को नीरज और अनीता तक पहुंचने का कोई भी सूत्र नहीं मिला तो उन्होंने फोरेंसिक टीम बुला कर जरूरी साक्ष्य जुटाए और लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. पोस्टमार्टम के बाद 2-3 दिनों तक लाश शिनाख्त के लिए रखी रही, लेकिन सड़ीगली लाश ज्यादा दिनों तक रखी भी नहीं जा सकती थी, इसलिए उस लावारिस लाश का अंतिम संस्कार करवा दिया गया.

जांच की जिम्मेदारी मिलते ही भानुप्रताप सिंह ने नीरज और अनीता के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगवा दिए थे. लेकिन उन के फोन बंद होने की वजह से उन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल रही थी. श्यामवीर गांव से लौट कर आया तो उस से नीरज के घर का पता मिल गया. तब लोनी पुलिस ने फिरोजाबाद जा कर स्थानीय पुलिस की मदद से उस के घर छापा मारा. लेकिन वे दोनों वहां भी नहीं थे. वहां पता चला कि वे वहां आए तो थे, लेकिन कुछ दिनों बाद ही चले गए थे. वहां से जाने के बाद वह कहां है, यह किसी को पता नहीं था.

नीरज शातिर दिमाग है. अब तक यह सीनियर सबइंसपेक्टर भानुप्रताप सिंह की समझ में आ गया था. लेकिन फिलहाल वह इस मामले में कुछ नहीं कर पा रहे थे. लेकिन उन्हें पूरी उम्मीद थी कि एक न एक दिन उन दोनों के मोबाइल फोन जरूर चालू होंगे. और सचमुच ढाई महीने बाद अचानक अनीता का फोन चालू हुआ. साइबर एक्सपर्ट ने जांच अधिकारी भानुप्रताप सिंह को बताया कि अनीता ने अपने मोबाइल फोन में नया सिम डाल कर लोनी की ही रहने वाली किसी सुनीता को फोन किया था. इस के बाद वह फोन फिर बंद कर दिया गया था.

पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो मिली जानकारी के अनुसार वह नंबर सुनीता के नाम से ही लिया गया था. फोन भले ही बंद हो गया था, लेकिन पुलिस को उस तक पहुंचने का रास्ता मिल गया था. पुलिस ने उस नंबर वाली कंपनी से सुनीता का पता ले कर अगले ही दिन लोनी स्थित उस के घर छापा मार दिया.

सुनीता को हिरासत में ले कर पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि अनीता उस की सहेली है और आजकल वह मोहननगर चौराहे के पास किराए के मकान में छिप कर रह रही है. लेकिन उसे यह पता नहीं था कि वह किस मकान में रह रही थी.

पुलिस के लिए इतनी जानकारी काफी थी. पुलिस ने मोहननगर चौराहे के आसपास अपने मुखबिरों का जाल बिछा दिया. इस का परिणाम पुलिस के लिए सुखद ही निकला. मुखबिरों ने कुछ ही दिनों में नीरज और उस की पत्नी अनीता को ढूंढ निकाला. इस के बाद मुखबिरों की सूचना पर थाना लोनी पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर उन से विस्तार से पूछताछ की गई तो उन्होंने राजेश्वर की हत्या का अपराध स्वीकार करते हुए जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी.

राजकुमार अपनी पत्नी बिटई देवी और 4 बच्चों के साथ दिल्ली के दयालपुर की गली नंबर-3 में रहते थे. वह जिस मकान में रहते थे, वह उन का अपना था. गुजरबसर के लिए उन्होंने मकान के ऊपरी हिस्से में कपड़े की छपाई का कारखाना लगा रखा था. इस काम से इतनी आमदनी हो जाती थी कि उन्हें किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ता था.

इसी कमाई से उन्होंने दोनों बड़ी बेटियों की शादी कर दी थी, जो अपनेअपने घरपरिवार की हो चुकी थीं. उन के बाद था बेटा राजेश्वर, जिस ने किसी तरह बारहवीं पास कर लिया था. वह उसे आगे पढ़ाना चाहते थे, लेकिन आगे पढ़ने की उस की हिम्मत नहीं हुई.

राजेश्वर ने पढ़ाई छोड़ दी तो राजकुमार उसे काम से लगाना चाहते  थे. राजकुमार के एक मित्र लोनी में रहते थे, जो उन्हीं की तरह कपड़ों की छपाई का काम करते थे. राजकुमार ने सोचा, बेटा उन के पास रहेगा तो मालिक की तरह रहेगा, इसलिए अगर उसे काम सिखाना है तो कहीं और ही भेजना ठीक रहेगा. इसलिए उन्होंने राजेश्वर को अपने उसी लोनी वाले दोस्त के यहां भेजना शुरू कर दिया.

राजेश्वर जहां जाता था, वहां तमाम लोग काम करते थे. उन्हीं में से एक फिरोजाबाद का रहने वाला नीरज शर्मा था. 35 वर्षीय नीरज शर्मा अच्छा कारीगर था. एक तरह से यह भी कह सकते हैं कि वह छपाई के काम का उस्ताद था. लेकिन उस में एक कमी यह थी कि वह पक्का शराबी था.

चूंकि वह काम में माहिर था, इसलिए मालिक से ले कर साथ काम करने वाले तक उस की इज्जत करते थे. इतनी इज्जत मिलने के बावजूद शराब देखते ही उस के मुंह में पानी आने लगता था. फिर तो वह सारे कामधाम भूल कर शराब का हो जाता था. अधिक शराब पीने की वजह से उस का शरीर एकदम खोखला हो चुका था. सही बात तो यह थी कि अब वह शराब नहीं, बल्कि शराब उसे पी रही थी.

कुछ दिनों तक साथ काम करने के बाद राजेश्वर जान गया कि अगर नीरज से छपाई के गुर सीखने हैं तो इसे इस की पसंद शराब की दावत देनी पड़ेगी. यही सोच कर एक दिन वह शराब की बोतल ले कर उस के घर पहुंच गया. राजेश्वर को शराब की बोतल के साथ अपने घर आया देख कर नीरज की आंखों में चमक आ गई. उस ने उसे अंदर बुला कर प्यार से बैठाया.  राजेश्वर की आवभगत में नीरज की पत्नी अनीता ने भी पति का साथ दिया. राजेश्वर मजबूत कदकाठी का जवान और खूबसूरत लड़का था, इसलिए अनीता की नजरें उस पर जम गईं.

सिपाही की शादी बनी बरबादी – भाग 3

सोनी का दिल प्रेमी रोशन की प्यार भरी बातें सुन कर बागबाग हो गया था. “इतना प्यार करते हैं आप मुझ से?’’

“मैं हनुमान तो नहीं हूं, वरना अपना सीना चीर कर दिखा देता. मेरे दिल में आप ही की तसवीर छपी है. मेरी हर एक सांस पर आप का ही नाम लिखा है. मेरी धडक़नों में, मेरी रगों में और मेरी सांसों में बस आप ही आप हो, इतना प्यार करता हूं मैं आप से.’’

:ओह रोशनजी! मैं कितनी खुशनसीब हूं जो मुझे आप जैसा चाहने वाला सच्चा प्यार मिला. मैं अपने प्यार को पलकों के बीच छिपा कर रखूंगी, ताकि हमारे प्यार को किसी की नजर न लगे.’’

सिपाही का प्यार बढऩे लगा, यही हाल सोनी का भी था. घंटों दोनों ऐसे ही प्यार भरी बातें करते रहे, कब दोपहर से शाम हुई पता ही नहीं चला. दोनों पास के रेस्टोरेंट में गए वहां रोशन ने प्रेमिका सोनी को उस के पसंद की चीजें खिलाईं और उसे बस पर बैठा कर अपने कमरे पर चला गया. वह सोनी से मिल कर बहुत खुश था.

सिपाही रोशन को चुन लिया हमसफर…

सोनी भी बहुत खुश थी. अपने जीवनसाथी को ले कर उस ने जो सपने देखे थे, वे सपने पूरे हो गए थे. फिर सोनी ने एक दिन मौका देख कर अपने मन की बात अम्मी को बता दी. बेटी के मुंह से प्यार वाली बात सुन वह हायतौबा मचाने लगी. बेटी को उस ने खूब खरीखोटी सुनाई. सामाजिक मर्यादा में रहने का सबक भी दिया. यह भी कहा कि उन का परिवार एक मध्यमवर्गीय है. इज्जत हमारा गहना है, अगर एक बार चली जाए, तो समाजबिरादरी में किसी को मुंह नहीं दिखा सकते. हम जीते जी मर जाएंगे.

इस पर सोनी ने मां को भरोसा दिलाया कि वह ऐसा कोई काम नहीं करेगी, जिस से मांबाप की इज्जत और सम्मान पर बट्टा लगे. उसे अपनी मानमर्यादा का सब से ज्यादा खयाल है. लेकिन उस ने अपने जीवनसाथी को चुन लिया है, निकाह करेगी तो रोशन से ही करेगी, रोशन के अलावा हर पुरुष उस के लिए बापभाई के समान होगा. सोनी भले ही सिपाही रोशन के प्यार में अंधी हो गई थी. यूं कह लें कि वह उस से अंधा प्यार करती थी तो इस में कोई दो राय नहीं थी, मगर रोशन सोनी को ले कर बहुत संजीदा नहीं था. लिवइन रिलेशन में खेलना चाहता था के सोनी जिस्म से.

शातिर सिपाही रोशन के दिमाग में प्रेमिका सोनी को  ले कर कुछ और ही चल रहा था. अच्छाई की चादर में लिपटा उस के मन में बड़ा घिनौना और गंदा विचार उमड़घुमड़ रहा था. वह सोनी से नहीं बल्कि उस के खूबसूरत बदन से प्यार करता था. उस के जिस्म को पाने के लिए उस की झूठी तारीफ कर रहा था ताकि सोनी के गदराए जिस्म को नोचनोच कर खाए और मन भर जाने के बाद उसे दूध से मक्खी की तरह निकाल फेंके. रोशन अकसर सुनसान जगह पर मिलने के लिए बुलाया करता था, वह आ भी जाती थी.

बातोंबातों में उस ने उस के जिस्म को पाने की इच्छा भी जाहिर की थी, मगर सोनी ने यह कहते हुए साफ मना कर दिया कि शादी के बाद मैं अपना तनमन सब कुछ अपने शौहर का सौंपूंगी, लेकिन शादी से पहले नहीं. फिर उस ने रोशन पर शादी करने के लिए दबाव बनाया. जिस गदराए जिस्म को पाने के लिए रोशन ने सोनी को अपने प्यार के जाल में फंसाया था, उस का वह मकसद पूरा नहीं हुआ तो वह सोनी से दूरियां बनाने लगा. धीरेधीरे वह उस से दूर भागने लगा था. जो प्रेमी पहले दिन भर में कई बार अपनी प्रेमिका को फोन कर बातें किया करता था, वही अब हफ्तोंहफ्तों उस से बात नहीं करता था. उस के सिर से सोनी के प्यार का भूत जैसे उतर चुका था.

अचानक प्रेमी रोशन में आए बदलाव देख सोनी परेशान रहने लगी थी. जब भी वह उसे फोन करती थी तो उस का फोन काट देता था. वह उस से मिलने कसया जाती तो वह उस से मिलता भी नहीं था. सोनी समझ गई थी कि रोशन ने उसे धोखा दिया है, लेकिन वह इतनी आसानी से अपना प्यार खोने वाली नहीं थी और न ही धोखा दे कर अपना पीछा छुड़ाने वाले रोशन को ही छोडऩे वाली थी.

एसपी से मिलीं मांबेटी…

फिलवक्त सोनी का दिल शीशे के समान चूरचूर हो गया था. प्यार में धोखा खाई वह घायल शेरनी के माफिक हो गई थी. अब तो बेटी के साथ उस की मां भी हो गई थी. मांबेटी दोनों मिल कर उसे सबक सिखाने की तैयारी में जुट गई थीं. कोई बड़ा कदम उठाने से पहले सोनी और उस की मां अश्मीना खातून ठंडे दिमाग से सोच कर एक बार फिर से सिपाही रोशन राय को सोचने का मौका देना चाहती थीं, किंतु वह था कि न तो सोनी की काल रिसीव कर रहा था और न ही अपनी ओर से काल कर के उस से दूरियां बनाने की वजह बता रहा था.

इस पर दोनों मांबेटी मिल कर उसे सबक सिखाने के लिए 23 नवंबर, 2022 को एसपी धवल जायसवाल के दफ्तर पहुंच गईं. उन्होंने उन के सामने अपना दुखड़ा रोते हुए सिपाही रोशन राय की पूरी कलई खोल कर रख दी. एसपी धवल जायसवाल ने सोनी को भरोसा दिलाया कि उस के साथ न्याय किया जाएगा. यदि रोशन ने उस के साथ कुछ गलत किया है तो उसे अपनी करनी का फल भुगतना पड़ेगा.

जैसे ही सोनी एसपी जायसवाल के समक्ष पेश हुई, वैसे ही इस की जानकारी रोशन राय तक पहुंच गई थी. सोनी का दुस्साहस देख कर रोशन का गुस्से से नथुना फूलनेपिचकने लगा था. उसे ऐसी उम्मीद नहीं थी कि वह मामूली लडक़ी एसपी दफ्तर पहुंच कर उस की शिकायत कर देगी. यह बात उसे बहुत बुरी लगी. वह फडफ़ड़ा कर रह गया. इसी बीच बड़ी चालाकी से रोशन राय ने कसया थाने से अपना ट्रांसफर जटहां थाने करवा लिया था, ताकि उस तक जल्दी कोई पहुंच न सके.

सिपाही की शादी बनी बरबादी – भाग 2

पुलिस उस के हर संभावित  ठिकानों पर दबिश दे रही थी, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. पुलिस फिर भी भी हाथ पर हाथ धरे बैठी नहीं रही. उस की सुरागरसी के लिए अपने मुखबिरों को भी लगा दिया था. एक महीने बाद आखिरकार पुलिस की मेहनत रंग लाई और कसया तिराहा से उसे उस समय दबोच लिया गया, जब वह कहीं भागने के फिराक में बस के आने के इंतजार में खड़ा था. पुलिस उसे गिरफ्तार कर के थाने ले आई और उस से पूछताछ करनी शुरू की.

रोशन राय कानून का ही एक मंझा हुआ नुमाइंदा था. कानून के दांवपेंच जानता था, इतनी आसानी से पुलिस के सामने टूटने वाला नहीं था. यह बात इंसपेक्टर सुरेंद्र सिंह भी जानते थे कि रोशन कितना बड़ा घाघ और मक्कार किस्म का इंसान है, आसानी से वह टूटने वाला नहीं था. पुलिस ने जब उस के साथ सख्ती की, तब जा कर वह घुटने टेकने को मजबूर हुआ और कुबूलते हुए पत्नी सोनी की हत्या किए जाने की बात स्वीकार कर ली. फिर उस ने हत्या जो कहानी बयां की, हैरतअंगेज निकली—

सोनी को हुआ प्यार…

22 वर्षीय सोनी अंसारी मूलरूप से उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले की नेबुआ नौरंगिया थानाक्षेत्र के मंसाछापर मंगरुआ गांव की रहने वाली थी. 3 बहनों और एक भाई में वह सब से बड़ी थी. बाकी सब उस से छोटे थे. पिता इब्राहिम खान ट्रक ड्राइवर थे. वह माल सहित ट्रक ले कर जब बाहर जाते थे तो उन्हें घर लौटने में महीनों लग जाते थे. फिर पत्नी अश्मीना खातून परिवार की देखभाल करती थी. अश्मीना खातून के मजबूत कंधों पर बच्चों की परवरिश और उन की देखरेख की जिम्मेदारी थी, सो वह अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा भी रही थी.

अश्मीना के चारों बच्चों में सब से बड़ी बेटी सोनी बेहद समझदार और सुंदर थी. मन से भी, विचारों से भी. लिखनेपढऩे में भी वह ठीकठाक थी. उस के अब्बू इब्राहिम उसे लाड़प्यार भी बहुत करते थे, क्योंकि सोनी उन के दिल के सब से निकट थी. वह भी अपने अब्बू का बहुत खयाल रहती थी . काम से जब भी थकेहारे घर लौटते थे तो सोनी ही सब से पहले गिलास में पानी लिए उन के सामने खड़ी होती थी. बेटी के हाथ से पानी पी कर सारी थकान पल भर में छूमंतर हो जाती थी. ऐसा नहीं था कि वह अपने अब्बू की ही आंखों का तारा थी, बल्कि अपनी अम्मी की भी वह लाडली थी. अब्बू के साथसाथ अम्मी का भी वह खास खयाल रखती थी. जब कभी वह एकदो दिनों के लिए किसी रिश्तेदार के यहां घूमने चली जाती थी तो उस की अम्मी का दिल उदास सा रहता था. उस के घर वापस लौटते ही फिर से घर में वही रौनक लौट आती थी. सब के चेहरे खिल उठते थे.

सोनी, आधुनिक परिवेश में जी रही थी. उस के सपने रंगीन थे क्योंकि वह खुद ही रंगीनमिजाज की युवती थी. कामकाज से जब उसे फुरसत मिलती थी, पिता से मिले फोन में इंस्टाग्राम या फेसबुक खोल कर अपने परिचितों और दोस्तों को कमेंट बाक्स ‘हायहैलो’ लिख कर उन से हालचाल पूछ लिया करती थी. फेसबुक पर बहुत से नए दोस्त फ्रैंड रिक्वेस्ट डाले रहते थे, उन नए दोस्तों में कुछ चेहरे उस के नातेरिश्तेदारों के होते थे तो कुछ बिलकुल ही नए और अंजान चेहरे होते थे. उन्हीं अंजान चेहरों में एक चेहरा कुशीनगर जिले के कसया थाने के सिपाही रोशन राय का भी था.

पता नहीं क्यों सोनी उस चेहरे को देख कर उस पर आकर्षित हो गई थी और उस ने उस की फ्रैंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कल ली थी.

सोनी की ओर से फ्रैंड रिक्वेस्ट स्वीकृत होते ही सिपाही रोशन ने ‘हाय’ का मैसेज डाल दिया तो उस ने भी उसी अंदाज में जवाब दे दिया. उन की ओर से जवाब मिलने के बाद दोनों के बीच मैसेज से बात होनी शुरू हो गई और दोनों के बीच दोस्ती पक्की हुई. यह सोशल मीडिया के प्यार की शुरुआत थी. यह सोशल मीडिया के प्यार की शुरुआत थी. दोस्ती पक्की हुई तो दोनों थोड़े और करीब आ गए. उन्होंने एकदूसरे को अपनाअपना मोबाइल नंबर दे दिया और पर बातचीत शुरू हुई. एकदूसरे का परिचय जब हुआ तो दोनों को ही पता चला कि वे एक ही जिले के रहने वाले हैं. इस से उन के बीच की रहीसही दूरियां और भी कम हो गईं और दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई. वे एकदूसरे से प्यार करने लगे थे.

प्यार में कसमे वादे…

सोनी इस बात पर फूली नहीं समा रही थी कि जिस से वह प्यार करती है, वह एक पुलिस वाला है, यानी अब दुनिया उस की मुट्ïठी में है. सोनी जवान थी, सुंदर थी. फैशनपरस्त भी. उस के गोरे जिस्म पर कोई भी कपड़े उस की सुंदरता में चारचांद लगा देते थे. प्रेमिका की सुंदरता पर रोशन मर मिटता था. उसे अपनी बाइक पर बैठा कर घंटोंघंटों कुशीनगर के प्रसिद्ध बुद्ध मंदिर घुमाता था. उस पर खूब पैसे खर्च करता था. सोनी के कदमों में दुनिया की सारी खुशियां डालता था.

बात साल भर पहले की थी, जब रोशन पहली बार प्रेमिका सोनी को अपनी बाइक पर बैठा कर कुशीनगर के प्रसिद्ध बुद्ध मंदिर लाया था. मंदिर के प्रांगण में दूरदूर तक फैली मुलायम घास पर आमनेसामने बैठे आशिकी भरी नजरों से दोनों एकदूसरे को देखे जा रहे थे, ‘‘ऐसे क्या देख रहे हो आप?’’ दोनों के बीच पसरे सन्नाटे को सोनी ने तोड़ा.

“देख रहा हूं कि चांद जमीं पर उतर आया है.’’ सोनी की खूबसूरती की रोशन ने तारीफ की तो शरम से उस की नजरें झुक गईं. दोनों हथेलियों के बीच उस ने अपना चेहरा छिपा लिया था.

“इस में शरम जैसी क्या बात है? इश्क की आंखों से मैं ने जो देखा, शब्दों की थाली में मैं ने वही परोसा.’’

“वाह! आप तो शायरों जैसी बातें करते हैं. शब्दों की थाली में मैं ने वही परोसा, जुमला सुन कर मुझे बहुत अच्छा लगा है, कह नहीं सकती.’’

“जी शुक्रिया.’’ झुक कर हाथ से महबूबा को सलाम किया और आगे बोला, ‘‘इस नाचीज गरीब बंदे की तारीफ में कसीदे पढऩे के लिए.’’

“बातें करना तो कोई आप से सीखे. माशाअल्लाह! आप किसी से कम खूबसूरत नहीं हैं. आप बहुत सुंदर हैं, तभी तो मेरा दिल आप पर हार गया और मैं आप की बाहों में आ गिरी.’’

“मरते दम तक आप का साथ नहीं छोड़ेंगे, चाहे जमाना हमारा दुश्मन क्यों न बन जाए, चाहे राहों में कांटे क्यों न बिखेर दिए जाएं. चाहे नंगे पांव शोलों पर क्यों न चलना पड़े, दिल से आप को चाहा है, आप से प्यार किया है तो मर कर भी साथ निभाएंगे.’’ रोशन भावनाओं में बह गया था.

सिपाही की शादी बनी बरबादी – भाग 1

उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिला के गांव हेतिमपुर के टोला भैंसहा में जितेंद्र सिंह का अपना निजी 2 मंजिला मकान था. मकानकी दूसरी मंजिल को उन्होंने जटहां थाने में तैनात सिपाही रोशन राय को किराए पर दिया था. रोशन राय अपनी 22 वर्षीयपत्नी सोनी अंसारी के साथ 3 महीने से रह रहा था. उस मकान के नीचे वाले फ्लोर पर और भी किराएदार रहते थे. खुद जितेंद्र सिंह अपने दूसरे मकान में परिवार के साथ रहते थे, सिर्फ किराया वसूलने के लिए ही वह यहां आते थे.

25 जनवरी, 2023 की दोपहर से जितेंद्र सिंह की दूसरी मंजिल से तेज बदबू आ रही थी, जिस में सिपाही रोशन राय अपनीपत्नी के साथ रहता था. पते की बात तो यह थी रोशन राय के उस कमरे पर पिछले कई दिनों से ताला लगा हुआ था.लोगों ने उसे और उस की पत्नी सोनी को अंतिम बार 18 जनवरी, 2023 को देखा था. उस के बाद से किसी ने न तो रोशन राय को ही देखा था और न ही उस की पत्नी को, वे दोनों कहां गए थे, यह बात किसी को पता नहीं थी और उन्हीं के कमरे से दोपहर से तेज बदबू आ रही थी.

जैसेजैसे शाम ढलती गई, बदबू इतनी तेज बढ़ती गई कि पासपड़ोसियों को अपने घर में रहना दुश्वार हो गया था. अंत मेंकिराएदारों ने हार कर इस की जानकारी मकान मालिक जितेंद्र सिंह को दी. सूचना पा कर वे मौके पर पहुंचे और उन्होंने इसकी सूचना जटहां थाने के एसएचओ सुरेंद्र सिंह को दे दी. सभी लोगों को बंद कमरे में लाश होने की आशंका हो रही थी.सूचना पा कर वे दलबल के साथ मौके पर पहुंचे. उन्होंने फोर्स की मदद से कमरे का ताला तुड़वाया.

दरवाजा खोल करपुलिस कमरे में घुसी तो वहां घुप्प अंधेरा था और मांस की सड़ांध ने सभी को नाक पर रुमाल रखने के लिए विवश कर दिया. मोबाइल की टौर्च के द्वारा बिजली का बोर्ड देख कर कमरे की लाइट औन की.एलईडी के प्रकाश से कमरा नहा उठा था. सड़ांध के मारे कमरे में खड़ा होना मुश्किल हुए जा रहा था. इस के बाद कमरे कीतलाशी कर यह देखने में जुट गई कि यह दुर्गंध आ कहां से रही है.

इंसपेक्टर सुरेंद्र सिंह कमरे से अटैच जैसे ही दूसरे कमरे में घुसे, भीतर का दृश्य देख कर उन के पैर वहीं थम गए थे. कमरे में पड़ी बैड के ऊपर किसी महिला की लाश बुरी तरह सड़चुकी थी. बदबू वहीं से आ रही थी. आशंका जताई जा रही थी कि हो न हो यह लाश सिपाही रोशन राय की पत्नी सोनी अंसारी ही होगी, क्योंकि पिछले कईदिनों से सोनी की अम्मी अश्मीना खातून अपनी बेटी को ले कर परेशान थी और वह इस संबंध में थाने में तहरीर भी दे चुकी थी कि पिछली 17 जनवरी को बेटी से मोबाइल पर बात हुई थी. उस के बाद फोन मिलाने पर न बेटी का फोन लग रहा थाऔर न दामाद का ही फोन लग रहा था

बैड के पास ही फर्श पर हड्ïिडयां और अंगरेजी शराब की एक बोतल रखी थी, जिस में कुछ शराब भी थी. इस से पुलिस कोलगा कि घटना से पहले यहां दारू की पार्टी भी हुई थी.यह बात इंसपेक्टर सुरेंद्र सिंह को तुरंत याद आई तो उन्होंने अपना शक दूर करने के लिए अश्मीना खातून को बुलाने के लिए बाइक से 2 सिपाहियों को उस के घर भेज दिया.  अश्मीना खातून इसी कुशीनगर के ही नेबुआ नौरंगिया के मंसाछापरमंगरुआ की रहने वाली थी.

सोनी की लाश की हुई शिनाख्त…

जैसे हो पुलिसकर्मियों ने एक महिला की लाश पाई जाने की सूचना अश्मीना खातून को दी और संग चल कर शिनाख्त करनेकी बात कही, वैसे ही उस का कलेजा धक से कर गया. और बदहवास हो कर इधरउधर टहलने लगी. तभी उस की दूसरी बेटी हाजरा कमरे से बाहर निकली और मां को ऐसी दशा में देख पुलिसकर्मियों से वजह पूछी तो उन्होंने फिर से वही बात दोहराई जो कुछ देर पहले उस से कह चुके थे.

बहरहाल, जैसेतैसे हाजरा ने मां अश्मीना खातून को संभाला और उसे अपने साथ ले कर घटनास्थल पहुंची. वहां मजमा लगा हुआ था. घटना की सूचना पा कर एएसपी रितेश प्रताप सिंह भी पहुंच चुके थे. कमरे के बाहर भीड़ देख कर अश्मीना खातून का कलेजा बैठा जा रहा था. जैसे ही कमरे में दाखिल हुई, लाश के कपड़े और उस की कदकाठी देख कर उसे अपनी बेटी सोनी अंसारी के रूप में शिनाख्त कर ली और छाती पीटपीट कर चीखनेचिल्लाने लगी.

पुलिस की आशंका आखिरकार सच साबित हुई. चूंकि पिछले कई दिनों से सोनी अंसारी लापता थी. न तो उस का फोन लग रहा था और न ही रितेश राय का ही फोन काम कर रहा था, इसलिए अश्मीना के साथसाथ घर वाले उसे ले कर चिंतित थे. आखिरकार, जिस अनहोनी को ले कर उस के घर वाले परेशान थे, वही अनहोनी घट गई. थोड़ी देर में कुशीनगर में सिपाही ने की हत्या की खबर फैल गई. घटना की सूचना एसपी धवल जायसवाल को भी मिल चुकी थी. वह भी कुछ देर बाद मौके पर पहुंच चुके थे.

एफएसएल टीम भी घटनास्थल पर पहुंच कर हत्या के साक्ष्य जुटाने में जुटी हुई थी. पते की बात तो यह थी कि जिस दिन से सोनी अंसारी लापता हुई थी, उसी दिन से सिपाही रोशन राय भी गायब था. उस का फोन बंद आ रहा था और वह ड्यूटी पर भी नहीं जा रहा था. पुलिस को यह समझते देर नहीं लगी थी कि पत्नी सोनी की हत्या में रोशन का हाथ हो सकता है, तभी तो वह फरार हो चुका है. एसपी धवल जायसवाल ने उसी क्षण उसे सस्पेंड कर दिया और उस की खोजबीन में पुलिस लगा दी ताकि वह जल्द से जल्द गिरफ्तार हो सके और पत्नी सोनी की हत्या का कारण सामने आ सके.

सिपाही रोशन राय पर लगाया आरोप…

खैर, पुलिस अपनी काररवाई में जुटी हुई थी. लाश को अपने कब्जे में ले इंसपेक्टर सुरेंद्र सिंह ने उसे पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया और मृतका का विसरा सुरक्षित करा दिया था, क्योंकि उसे मरे कई दिन बीत चुके थे, इसलिए विसरा सुरक्षित रखना पड़ा था ताकि उस रिपोर्ट से हत्या की असल वजह का पता चल सके. इधर पुलिस ने मृतका की मां अश्मीना खातून की तहरीर पर फरार सिपाही व दामाद रोशन राय के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर के रोशन राय की सरगर्मी से तलाश में जुट गए थे.

अंधे प्यार के अंधे रास्ते – भाग 4

हर रोज सुबह को बीना के सासससुर रेस्टोरेंट पर चले जाते थे. थोड़ी देर बाद देवर सुनील भी रेस्टोरेंट पर चला जाता था. एंजल के स्कूल का समय भी वही होता था. उधर सुधीर भी अपने काम के लिए सुबह को निकलता था तो शाम को वापस लौटता था.  सब के जाने के बाद बीना घर में अकेली रह जाती थी. यह समय उस के लिए उपयुक्त था, इसलिए अगले दिन ही उस ने फोन कर के मृदुल को घर बुला लिया.

बातचीत हुई तो मृदुल बीना से बोला, ‘‘एक बार फिर सोच लो, तुम्हें बहुत कठिन परीक्षा से गुजरना होगा जिस में तुम्हें काफी कष्ट सहना पड़ेगा.’’

‘‘मैं अपने पति के लिए किसी भी परीक्षा से गुजरने को तैयार हूं. हर कष्ट सहूंगी मैं. आप बताइए मुझे क्या करना होगा?’’

‘‘दरअसल, मैं काला जादू करूंगा. इस में थोड़ी तकलीफ तो होती है, पर रिजल्ट एक दम परफैक्ट आता है. अगर थोड़ा कष्ट सह सकती हो, तो कोई परेशानी ही नहीं है.’’

‘‘बताइए तो मुझे करना क्या होगा?’’

मृदुल ने कोई जवाब देने के बजाए पूरे मकान में घूम कर देखा. तभी उसे किचन में काफी ऊपर लगा लोहे का एक जंगला नजर आ गया. उसे देख कर वह बीना से बोला, ‘‘मैं इस जंगले में रस्सी बांध कर उस के दूसरे सिरे में फांसी का फंदा बनाऊंगा. वह फंदा गले में डाल कर तुम्हे स्टूल पर खड़ा होना पड़ेगा. फिर मैं तंत्रमंत्र से अपना काला जादू शुरू कर दूंगा. जब मंत्र पूरे हो जाएंगे तो तुम्हें यह कह कर पैर से स्टूल गिरा देना होगा कि मेरे पति के जीवन में कोई प्रेमिका न रहे. स्टूल गिरने से फांसी का फंदा तुम्हारे गले में कस जाएगा और तुम्हें तकलीफ होने लगेगी.’’

घबराई हुई बीना बड़े ध्यान से मृदुल की बात सुन रही थी. उसे शांत देख मृदुल बोला, ‘‘डरने की जरूरत नहीं है, तुम्हें जब ज्यादा तकलीफ होगी तो इशारा कर देना, मैं तुम्हें संभाल कर फंदा गले से निकाल दूंगा. इस क्रिया में होगा यह कि तुम्हारा गला घुटने से जितनी तकलीफ तुम्हें होगी, उस से चार गुना ज्यादा तकलीफ तुम्हारे पति की प्रेमिका को होगी. इस तरह मौत के डर से वह तुम्हारे पति का खयाल अपने मन से निकाल देगी.’’

एक पल रुक कर मृदुल बोला, ‘‘काले जादू का यह अनुष्ठान पूरे 40 दिन चलेगा, लेकिन रोजाना नहीं बल्कि हफ्ते में एक बार. अगर तुम तैयार हो तो हम आज से ही शुरू कर देते हैं. हां, तुम्हें डरने की जरूरत नहीं है. मैं हूं सब कुछ संभालने के लिए.’’

बीना डर तो रही थी, पर पति को बचाने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार थी. इसलिए बिना दूरगामी परिणाम सोचे उस ने हां कर दी. उस की स्वीकृति मिलते ही मृदुल ने जंगले में रस्सी बांध कर उस के दूसरे सिरे पर फांसी का फंदा बना दिया. इस के बाद उस ने बीना को स्टूल पर खड़ा कर के फंदा उस के गले में डाल दिया. शुरू में तो बीना को डर लग रहा था, लेकिन जब मृदुल उस के चारों ओर चक्कर लगा कर मंत्र पढ़ने लगा तो उस का डर कम हो गया.

करीब 20-25 मिनट का आडंबर रचने के बाद मृदुल ने बीना से स्टूल गिराने को कहा तो उस ने पैर से स्टूल गिरा दिया. स्टूल गिरते ही उस का गला रस्से के फंदे में फंस गया, लेकिन मृदुल ने फंदा कुछ इस तरह बनाया था कि उसे तकलीफ तो हो पर गला पूरी तरह न घुटे. इस तरह बीना ने 5-7 मिनट तकलीफ झेली, तत्पश्चात मृदुल ने उसे नीचे उतार लिया. यह सब आडंबर उस ने बीना का विश्वास जीतने के लिए किया था.

बीना का विश्वास जीतने के बाद मृदुल चला गया. बीना को उस पर किसी तरह का कोई संदेह नहीं था. इसी का लाभ उठा कर उस ने ऐसा 2 बार किया. अब बीना स्टूल को लात मार कर बेहिचक नीचे कूदने लगी थी. यानि मृदुल के लिए मैदान साफ था.

योजना पहले ही तैयार थी. 8 जून को रविवार था. उस दिन बीना का फोन आया तो मृदुल शाम 7 बजे अपने पिता श्याम कुमार और मनीष धूसिया के साथ उस के पास पहुंच गया. मनीष को उस ने इसलिए बाहर छोड़ दिया ताकि वह बाहर नजर रख सके. अपने पिता श्याम कुमार के साथ वह अंदर चला गया.

उस दिन मृदुल ने बीना से कहा, ‘‘आज आखिरी पूजा है, इसलिए मैं अपने चेले को भी साथ लाया हूं. आज काम हो जाएगा और अब किसी पूजा पाठ या तंत्रमंत्र की जरूरत नहीं पड़ेगी.’’ सुन कर बीना खुश हो गई. उस दिन भी मृदुल ने पूरी क्रिया दोहराई, लेकिन इस से पहले उस ने रस्सी में बने फांसी के फंदे को थोड़ा ढीला कर के ऐसा बना दिया था कि बीना के बचने की कोई गुंजाइश न रहे. इस बार बीना को न बचाना था, न वह बच सकी. मृदुल और श्याम कुमार के सामने ही उस ने छटपटाते हुए दम तोड़ दिया.

बीना के घर आनेजाने के चक्कर में मृदुल को यह पता चल गया था कि थोड़ी सी कोशिश कर के जीने की कुंडी अंदर की तरह बाहर से भी खोली और बंद की जा सकती है. जाते वक्त उस ने इसी का लाभ उठाया. अपना काम कर के बाप बेटे मनीष धूसिया को ले कर वहां से फार हो गए.

पूरी कहानी पता चलने के बाद पुलिस ने मनीष धूसिया, रूबी यादव और तांत्रिक अकबर शाह उर्फ शाकिर अली को भी गिरफ्तार कर लिया. श्याम कुमार को शुक्लागंज उन्नाव से पकड़ा गया. सभी आरोपियों को पुलिस ने 15 जुलाई को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. फिलहाल सभी जेल में हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अनीता की अनीति : मतलबी प्यार – भाग 1

उत्तरपूर्वी दिल्ली के दयालपुर की गली नंबर 3 के रहने वाले राजकुमार का बेटा राजेश्वर उर्फ मोनी देर रात तक घर लौट कर नहीं आया तो उन्हें बेटे की चिंता हुई. उस का फोन भी बंद था, इसलिए यह भी पता नहीं चल रहा था कि वह कहां है. उन्होंने उस के बारे में जानने की काफी कोशिश की, न जाने कितने फोन कर डाले, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला.

जब उन्हें बेटे के बारे में कुछ पता नहीं चला तो उन का जी घबराने लगा. एक बाप के लिए जवान बेटे का इस तरह लापता होना कितना दुखदाई हो सकता है, यह बात हर बाप को पता होगी. राजकुमार भी परेशान थे, क्योंकि वही उन का भविष्य था.  जब राजेश्वर का कहीं कुछ पता नहीं चला तो उन की बेचैनी बढ़ने लगी. अचानक आई इस आफत में उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें. संयोग से उस समय घर में वही अकेले थे. घर के बाकी लोग शादी के चक्कर में बनारस गए हुए थे.

जब राजकुमार का धैर्य जवाब देने लगा तो उन्होंने राजेश्वर के गायब होने की सूचना पत्नी बिटई देवी को दी. उन्हें जैसे ही यह जानकारी मिली, उन्होंने तुरंत गाड़ी पकड़ी और दिल्ली आ गईं. इस बीच दिल्ली में रहने वाले कुछ रिश्तेदार उन के घर आ गए थे.

राजकुमार और उन के रिश्तेदारों ने राजेश्वर की खोज में दिनरात एक कर दिया, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. अपने हिसाब से खोजतेखोजते 4 दिन बीत गए. लेकिन उस के बारे में कुछ पता न चलने से उन की सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया.

23 अप्रैल, 2014 की दोपहर को राजकुमार अपने कुछ रिश्तेदारों के साथ थाना खजूरी खास पहुंचे और थानाप्रभारी को प्रार्थनापत्र दे कर बेटे की गुमशुदगी दर्ज करने की प्रार्थना की. थाना खजूरी खास के थानाप्रभारी ने राजेश्वर की गुमशुदगी दर्ज कर के राजकुमार को आश्वासन भी दिया कि वह जल्दी से जल्दी उन के बेटे का पता लगाने का प्रयास करेंगे. लेकिन जैसा कि आमतौर पर होता है कि पुलिस गुमशुदगी तो दर्ज कर लेती है, लेकिन खोजने की कोशिश नहीं करती, ऐसा ही इस मामले में भी हुआ. पुलिस ने गुमशुदगी दर्ज कर के समझ लिया था कि उस का फर्ज पूरा हो चुका है.

29 अप्रैल, 2014 दिन रविवार को सुबहसुबह राजकुमार को कहीं से पता चला कि 23 अप्रैल को थाना लोनी पुलिस ने एक मकान से एक युवक की लाश बरामद की थी. यह जानकारी होते ही राजकुमार पत्नी बिटई देवी को साथ ले कर थाना लोनी जा पहुंचे कि कहीं वह लाश उन के बेटे की तो नहीं थी.

उन्होंने थानाप्रभारी गोरखनाथ यादव के सामने राजेश्वर का फोटो रख कर कहा, ‘‘साहब, मेरा नाम राजकुमार है. यह मेरे बेटे राजेश्वर उर्फ मोनी की फोटो है, जो पिछले 10 दिनों से गायब है. मैं ने थाना खजूरी खास में इस की गुमशुदगी भी दर्ज करा रखी है. आज सुबह ही मुझे पता चला है कि 23 तारीख को आप ने एक मकान से एक लड़के की लाश बरामद की थी. मैं उसी के बारे में पता करने आया हूं.’’

थानाप्रभारी गोरखनाथ यादव ने फोटो ले कर गौर से देखा. उस के बाद एक सिपाही को बुला कर कहा कि पुलिस चौकी लालबाग के प्रभारी एसआई विजय सिंह को फोन कर के कहो कि वह 23 तारीख को राजनजर कालोनी में मिली लाश के कपड़े और फोटो ले कर तुरंत थाने आ जाएं.

थोड़ी देर बाद सबइंसपेक्टर विजय सिंह थाने आए तो उन्होंने जो कपड़े और लाश के फोटो राजकुमार और बिटई देवी को दिखाए, उन्हें देखते ही वे दोनों रोने लगे. इस का मतलब था कि राजनगर कालोनी में मिली वह लाश राजकुमार के 25 वर्षीय बेटे राजेश्वर उर्फ मोनी की थी. जवान बेटे की हत्या हो जाने से राजकुमार और बिटई देवी का बुरा हाल था. साथ आए लोगों ने किसी तरह उन्हें संभाला.

थाना लोनी पुलिस ने लाश की शिनाख्त न होने की वजह से अब तक मुकदमा दर्ज नहीं किया था. राजकुमार ने लाश की शिनाख्त कर दी तो उन की ओर से थानाप्रभारी ने हत्या का मुकदमा दर्ज करा कर इस मामले की जांच इंद्रापुरी चौकीप्रभारी सबइंसपेक्टर भानुप्रताप सिंह को सौंप दी.

दरअसल, 23 अप्रैल, 2014 की सुबह थाना लोनी पुलिस को गाजियाबाद की राजनगर कालोनी के रहने वाले प्रदीप उर्फ बबलू ने सूचना दी थी कि उन के मकान के एक किराएदार के कमरे से बहुत ज्यादा बदबू आ रही है. उस कमरे में रहने वाला किराएदार कमरे में ताला बंद कर के 3 दिनों से गायब है. बदबू किसी जानवर के सड़ने जैसी है.

यह सूचना मिलते ही थाना लोनी के थानाप्रभारी गोरखनाथ यादव पुलिस बल के साथ राजनगर कालोनी पहुंच गए थे. उन्होंने उस कमरे का ताला तोड़वा कर अंदर प्रवेश किया तो कमरे में एक युवक की लाश पड़ी मिली. गरमी की वजह से वह फूल कर काफी हद तक सड़ गई थी. मृतक के शरीर पर किसी भी तरह की चोट का निशान नजर नहीं आ रहा था. इस से अनुमान लगाया गया कि हत्या जहर दे कर या गला दबा कर की गई थी.

थानाप्रभारी गोरखनाथ यादव ने मकान मालिक प्रदीप से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस के इस कमरे में उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद का रहने वाला नीरज शर्मा रहता था. उस ने उसे यह कमरा 15 सौ रुपए महीने के किराए पर उसी महीने की 3 तारीख को दिया था. इस में वह अपनी पत्नी अनीता और 3 बच्चों के साथ रहता था.

प्रदीप से मृतक के बारे में पूछा गया तो वह उस के बारे में कुछ नहीं बता सका. मकान के अन्य किराएदार भी उस के बारे में कुछ अधिक नहीं बता सके. उन्होंने इतना जरूर बताया कि मृतक नीरज के घर अकसर आता रहता था. सुबह वह नीरज की पत्नी अनीता को मोटरसाइकिल पर बैठा कर निकल जाता था तो शाम को ही पहुंचाने आता था. इस से पुलिस को लगा कि यह हत्या अवैध संबंधों की वजह से हुई है.

अंधे प्यार के अंधे रास्ते – भाग 3

बीना समझ गई कि उसी की वजह से उस के घर में आग लगी हुई है. वह अपने गुस्से को जब्त नहीं कर सकी और उस ने रूबी के बाल पकड़ कर उस की धुनाई करनी शुरू कर दी. जरा सी देर में आसपड़ोस के लोग जमा हो गए. जब बीना ने उन्हें हकीकत बताई तो रूबी मुंह छिपा कर वहां से चली गई.

पिटपिटा कर रूबी लौट तो आई पर उस ने मन ही मन फैसला कर लिया कि वह बीना से बदला जरूर लेगी. लेकिन सवाल यह था कि कैसे? क्योंकि वह खुलेआम कुछ करती तो सुधीर उस से दूर जा सकता था. दूसरे जेल जाने का भी डर था, इसलिए उस दिन के बाद वह इस मुददे पर गंभीरता से सोचने लगी.

एक दिन सुबह रूबी अखबार पढ़ रही थी तो उस की नजर एक विज्ञापन पर ठहर गई. विज्ञापन बाबा अकबर शाह का था, जिसने विज्ञापन में प्रेमीप्रेमिका को मिलाने का दावा बड़ी गारंटी के साथ किया था. रूबी को तांत्रिक बाबा के दावों में दम नजर आया, तो उस ने बाबा अकबर शाह से मिलने का फैसला कर लिया.

बाबा अकबर शाह ने अपना अड्डा बर्रा में हरी मस्जिद के पास बना रखा था. रूबी उस से जा कर मिली और उसे अपनी और सुधीर की पूरी प्रेमकहानी सुना दी. साथ ही बीना के बारे मे भी बता दिया जिस की वजह से दोनों का मिलना मुमकिन नहीं था. अकबर शाह का असली नाम शाकिर अली था. वह नंबर एक का धूर्त था और रुबी जैसों को अपने जाल में फंसाने को तैयार बैठा रहता था. पूरी कहानी सुन कर उस ने रूबी से कहा, ‘‘इस का एक ही रास्ता है कि बीना को इस दुनिया से विदा करा दे.’’

‘‘अगर मैं ने ऐसा कुछ किया तो मैं तो फंस जाऊंगी. सुधीर तो मुझे क्या मिलेगा, उल्टे जेल जाना पड़ेगा.’’ रूबी ने कहा तो बाबा बोला, ‘‘तुम्हें तुम्हारा प्रेमी मिल जाएगा और जेल भी नहीं जाना पड़ेगा. यह काम मैं करुंगा, तुम नहीं.’’

‘‘मेरे और सुधीर के प्यार की कहानी तमाम लोग जान गए हैं. बीना और मेरा झगड़ा भी हुआ है. अगर उस का कत्ल होगा तो नाम तो मेरा ही आएगा, फिर कैसे बचूंगी मैं?’’

‘‘क्योंकि यह काम मैं तंत्रमंत्र से करूंगा. मेरी भेजी गई मूठ घर बैठे उस की जान ले लेगी, सब के सामने खून उगल कर मरेगी वह. इस तरह की मौत में तुम्हारा नाम कैसे आएगा?’’ बाबा ने कहा तो रूबी को यह युक्ति सही लगी. उस ने सुन रखा था कि तांत्रिक अपने तंत्रमंत्र से मूठ भेज कर किसी की भी जान ले सकते हैं. इसलिए उस ने पूछ लिया, ‘‘मुझे क्या करना होगा बाबा?’’

‘‘कुछ नहीं, बस 30 हजार रुपए खर्च करने हैं.’’

बीना की जान लेने के लिए रूबी को यह सही तरीका लगा. वह एचडीएफसी बैंक में अच्छीभली नौकरी करती थी, पैसों की उस के पास कोई कमी नहीं थी. थोड़ी सौदेबाजी के बाद उस ने बाबा अकबर शाह उर्फ शाकिर अली को 25 हजार रुपए दे दिए. उसे पूरा यकीन था कि अब जल्दी ही बीना उस के रास्ते से हट जाएगी. लेकिन हफ्तों से ज्यादा बीत जाने पर भी जब कुछ नहीं हुआ तो रूबी अकबर शाह के पास गई. उस ने बाबा से शिकायत की तो वह बोला, ‘‘कोशिश कर रहा हूं पर उस के सितारे बहुत अच्छे हैं. तुम चिंता मत करो, मैं ने उस का भी तोड़ निकाल लिया है. इस हफ्ते में बीना जरूर मर जाएगी.’’

रूबी बाबा की बात का यकीन कर के वापस आ गई. लेकिन जब एक हफ्ता बाद भी बीना को कुछ नहीं हुआ तो रूबी को बहुत गुस्सा आया. उस ने 25 हजार रुपए खर्च किए थे. वह गुस्से से दनदनाती हुई बाबा अकबर शाह के औफिस जा पहुंची. लेकिन अकबर शाह उसे नहीं मिला. अलबत्ता, वहां उसे हंसपुरम की आवास विकास कालोनी में रहने वाला मनीष धूसिया जरूर मिल गया. बाबा के पास आतेजाते मनीष धूसिया और रूबी का अच्छा परिचय हो गया था.

बातचीत हुई तो मनीष धूसिया ने रूबी से कहा, ‘‘बाबा की मूठ पता नहीं क्यों काम नहीं कर रही है. तुम चाहो तो मैं तुम्हारा काम दूसरे तरीके से करा सकता हूं. लेकिन इस के लिए 50 हजार रुपए लगेंगे.’’

रूबी किसी भी तरह बीना को रास्ते से हटाना चाहती थी ताकि सुधीर से शादी कर सके. इसलिए उस ने कहा, ‘‘मैं कितने भी पैसे खर्च करने को तैयार हूं, लेकिन तरीका ऐसा होना चाहिए कि उस की मौत कत्ल न लगे. क्योंकि कत्ल के मामले में मैं फंस जाऊंगी.’’

‘‘उस की चिंता छोड़ो, मैं ऐसी योजना बनाऊंगा कि काम भी हो जाएगा और किसी को पता भी नहीं चलेगा कि बीना का कत्ल हुआ है.’’ मनीष ने कहा तो बीना ने उस की बात पर विश्वास कर लिया. उस ने रूबी को जल्दी ही उस आदमी से मिलाने का वादा किया जो उस का काम कर सकता था.

पैसा लेने के बाद जब मनीष धूसिया ने इस मुद्दे पर सोचना शुरू किया तो उस के दिमाग में मृदुल वाजपेयी का नाम आया. गांव राजेपुर, उन्नाव का रहने वाला मृदुल वाजपेयी पेशे से ड्राइवर था और फिलहाल नौबस्ता, कानपुर में रह रहा था. उस का पिता श्याम कुमार वाजपेयी शुक्लागंज, कानपुर में रहता था. मनीष धूसिया को पता था कि मृदुल पैसे के लिए परेशान है, उसे किसी की कर्ज की रकम चुकानी थी.

मनीष ने मृदुल से बात की तो वह पैसे के लिए कुछ भी करने को तैयार हो गया. जब बात हो गई तो मनीष ने मृदुल को रूबी से मिलवा दिया. उस ने इस काम के लिए 50 हजार रुपए मांगे. थोड़ी सौदेबाजी के बाद बीना की मौत की कीमत 40 हजार रुपए तय हो गई. रूबी ने इस शर्त के साथ पैसे दे दिए कि बीना की मौत आत्महत्या लगनी चाहिए ताकि किसी को उस पर शक न हो.

मृदुल और मनीष ने मिल कर बीना को ठिकाने लगाने के लिए एक अनोखी योजना तैयार की. इस योजना में मृदुल ने अपने पिता श्याम कुमार को भी शामिल कर लिया. अपनी इस योजना को अंजाम देने के लिए मृदुल ने सब से पहले फरजी आईडी से एक सिम खरीदा. उस सिम को अपने मोबाइल में डाल कर एक दिन वह बीना से मिलने उस के घर जा पहुंचा. यह उसे पता ही था कि बीना दिन में घर में अकेली होती है.

डोरबेल बजाने पर बीना ने दरवाजा खोला, तो मृदुल ने खुद को तांत्रिक बताते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे पति ने मेरी भांजी को अपने प्रेमजाल में फंसा रखा है. उसे समझा लो, वरना ऐसा तंत्रमंत्र करूंगा कि खून उगलउगल कर मरेगा.’’

बीना अपने पति से प्यार भी करती थी और यह भी जानती थी कि वह रंगीनमिजाज आदमी है. उस ने मृदुल की बातों पर यकीन कर लिया, साथ ही वह घबराई भी. उस ने मृदुल से कहा, ‘‘मैं उन्हें समझाने की कोशिश करूंगी. प्लीज, आप उन का अहित मत सोचिए.’’

‘‘उसे तुम नहीं, मैं ही सुधार सकता हूं. तुम अगर चाहो तो मैं उसे लाइन पर ला सकता हूं. लेकिन इस के लिए तुम्हें भी मेरा साथ देना होगा.’’

‘‘बताइए कैसे?’’ बीना ने पूछा तो मृदुल बोला, ‘‘फिलहाल तो आप अपना मोबाइल नंबर मुझे दे दीजिए. क्योंकि यह मामला इतना आसान नहीं है. इस के लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ेगी. मैं अपना नंबर आप को दे देता हूं. जब भी आप के पास 2 ढाई घंटे का समय हो, मुझे बुला लीजिएगा. मैं अपना काम शुरू कर दूंगा.’’

बीना ने विश्वास कर के मृदुल को अपना फोन नंबर दे दिया. बातचीत के बाद मृदुल चला गया. जब से सुधीर रूबी के चक्कर में फंसा था, पत्नी के प्रति उस का व्यवहार बिल्कुल बदल गया था. दोनों के बीच लड़ाईझगड़े आम बात हो गई थी. बीना को इस बात का तो जरा भी आभास नहीं था कि रूबी सुधीर से शादी का सपना देख रही है. अलबत्ता, मृदुल की बातों से उसे यह जरूर यकीन हो गया था कि सुधीर रूबी की तरह ही किसी और लड़की से भी चक्कर चला रहा होगा. इसलिए वह चाहती थी कि किसी भी तरह उस का पति लाइन पर आ जाए और किसी दूसरी औरत के चक्कर में न पड़े. इस के लिए वह कुछ भी करने को तैयार थी.

अंधे प्यार के अंधे रास्ते – भाग 2

जांच के लिए ओमप्रकाश सिंह ने सुधीर से नंबर ले कर सब से पहले बीना के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. बीना ने आखिरी बार जिस नंबर पर बात की थी, उस पर ओमप्रकाश सिंह की निगाह टिक गई. कारण यह था कि उस नंबर से 31 मई से 8 जून तक 15 बार बातें हुई थीं. ओमप्रकाश सिंह ने वह नंबर सुधीर को दिखा कर पूछा कि वह किस का नंबर है, सुधीर उस नंबर के बारे में कुछ नहीं जानता था.

उस नंबर पर फोन किया गया तो वह बंद मिला. उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो पता चला उस नंबर से जो फोन किए गए थे, वह केवल बीना को ही किए गए थे. बीना ने भी उस नंबर पर कई बार बातें की थीं. बीना की हत्या के बाद उस नंबर से कोई फोन  नहीं हुआ था. इस का मतलब वह सिम केवल बीना से बात करने के लिए खरीदा गया था.

पुलिस ने उस नंबर की सर्विस प्रोवाइडर कंपनी से यह जानकारी ली कि वह नंबर किस का है. जानकारी मिलने पर पुलिस उस आदमी तक पहुंच गई जिस के नाम पर सिम इश्यू हुआ था. लेकिन उस आदमी ने इस बात से इनकार कर दिया कि वह उस नंबर के बारे में कुछ जानता है. अलबत्ता, उस ने यह जरूर माना कि नंबर लेने के लिए फोटो और आईडी उस की ही इस्तेमाल हुई है.

उस व्यक्ति से पूछताछ के बाद यह बात स्पष्ट हो गई कि किसी ने सिम लेने के लिए फरजी तरीके से उस के फोटो और आईडी का इस्तेमाल किया था. इस के बाद यह मामला और भी पेचीदा हो गया.

स्थिति के मद्देनजर एसएसपी सुनील इमैनुएल ने इस मामले की विस्तृत जांच के लिए एक विशेष टीम का गठन किया जिस में एसपी (क्राइम) एम.पी. वर्मा, सीओ ओमप्रकाश सिंह, सबइंसपेक्टर एनुद्दीन, आनंद शर्मा, हेड कांस्टेबल राजकिशोर, सिपाही अरविंद पांडेय, गौरव गुप्ता, भूपेंद्र सिंह और सर्विलांस विशेषज्ञ शिवभूषण को शामिल किया गया.

जिस नंबर से बीना को फोन किए जाते थे, वह चूंकि बंद था, इसलिए शिवभूषण ने सर्विलांस के माध्यम से उस फोन के आईएमईआई नंबर का सहारा लिया जिस में उस नंबर की सिम का इस्तेमाल किया गया था. युक्ति काम कर गई, पुलिस को इससे उस नंबर का पता चल गया जो उस वक्त उस मोबाइल में चल रहा था. उस नंबर का पता चलते ही पुलिस ने सर्विस प्रोवाइडर कंपनी से उस के धारक की जानकारी ले ली. पता चला वह सिम मृदुल वाजपेयी, निवासी नौबस्ता, कानपुर के नाम पर था. इस के बाद पुलिस ने तत्काल मृदुल वाजपेयी को हिरासत में ले कर उस से विस्तृत पूछताछ की.

थोड़ी सी सख्ती के बाद मृदुल वाजपेयी टूट गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि बीना की हत्या उसी ने की थी. साथ ही यह भी बता दिया कि इस मामले में उस के पिता श्याम कुमार वाजपेयी, रूबी यादव, मनीष धूसिया और तांत्रिक शाकिर अली उर्फ बाबा अकबर शाह भी शामिल थे.

पुलिस टीम ने उसी दिन ओमप्रकाश सिंह के निर्देशन में छापा मार कर श्याम कुमार वाजपेयी, मनीष धूसिया, रूबी यादव और बाबा अकबर शाह को गिरफ्तार कर लिया. इन लोगों से पूछताछ में आत्महत्या में हत्या की जो कहानी सामने आई वाकई हैरतअंगेज भी थी और आंखें खोलने वाली भी.

दरअसल सुधीर बिल्डिंग बनवाने के ठेके तो लेता ही था, समाजवादी पार्टी का सक्रिय कार्यकर्ता भी था. समाजवादी युवजन सभा का महासचिव होने के नाते पार्टी के शीर्ष नेताओं तक उस की सीधी पहुंच थी. इस नाते परिचितों, रिश्तेदारों में उस का खूब मानसम्मान था. एक बार सुधीर जब अपने एक रिश्तेदार की शादी में शामिल होने इटावा गया तो वहां उस की मुलाकात रूबी यादव से हुई.

22 साल की रूबी विश्व बैंक कालोनी, कानपुर के रहने वाले प्रमोद कुमार यादव की बेटी थी. वह एचडीएफसी बैंक में अकाउंटेंट कोआर्डिनेटर के पद पर काम कर रही थी. सुधीर और रूबी पहली बार मिले तो दोनों ही एकदूसरे की ओर आकर्षित हुए. बातचीत में दोनों ने अपनेअपने मोबाइल नंबर भी एकदूसरे को दे दिए.

इस मुलाकात के बाद सुधीर और रूबी जब कानपुर लौट आए तो दोनों के बीच फोन पर लंबीलंबी बातें होने लगीं, जिनमें रोमांटिक बातें भी होती थीं. बातों का सिलसिला बढ़ा तो फिर मुलाकातें भी होने लगीं. सुधीर शादीशुदा था और एक बेटी का बाप भी. यह बात रूबी भी अच्छी तरह जानती थी. इस के बावजूद न तो रूबी ने इस बात की परवाह की और न सुधीर को अपनी पत्नी और बेटी का खयाल आया. रूबी के सामने उसे अपनी पत्नी बीना फीकी और उबाऊ लगने लगी थी.

धीरेधीरे सुधीर और रूबी की एकदूसरे के प्रति दीवानगी बढ़ती गई. रूबी का तो यह हाल हो गया कि वह सुधीर को देखे बिना नहीं रह पाती थी. दोनों ही अपनेअपने प्यार का इजहार कर चुके थे. मोबाइल पर बातें होना तो आम बात थी, इस के लिए दोनों ही न दिन देखते थे न रात. इस का नतीजा यह हुआ कि बीना को सुधीर पर शक होने लगा कि उस की जिंदगी में कोई और औरत भी है.

बीना ने जब अपने स्तर पर पता लगने की कोशिश की तो उसे जल्दी ही पता चल गया कि वह रूबी नाम की एक लड़की से इश्क लड़ा रहा है. इस के बाद पतिपत्नी में आए दिन झगड़ेहोने लगे. बीना सद्गृहणी थी, उस की मजबूरी यह थी कि परिवार के सामने पति से खुल कर लड़ भी नहीं सकती थी. किसी से शिकायत करने से भी कोई फायदा नहीं था क्योंकि सुधीर पावरफुल नेता था. घर में भी उस की दंबगई चलती थी.

उधर गुजरते वक्त के साथ रूबी के दिल में सुधीर के लिए प्यार बढ़ता जा रहा था. सुधीर भी शादीशुदा और एक बेटी का बाप होने के बावजूद रूबी से ऐसे प्यार जताता था जैसे उस के बिना रह ही नहीं सकता. कभीकभी वह रूबी के सामने अपनी पत्नी की बुराई भी करता और अपनी मजबूरी जाहिर करते हुए कहता, ‘‘क्या करूं, मेरे मांबाप ने कमउम्र में ही मेरी शादी कर दी, उन की वजह से मैं उसे छोड़ भी नहीं सकता. मैं जैसी पत्नी की कल्पना करता था, तुम बिलकुल वैसी ही हो.’’

सुधीर की अपनत्व भरी प्यारीप्यारी बातें सुन कर रूबी फूली नहीं समाती थी. ऐसी बातें सुन कर उस के दिल में सुधीर के लिए और भी प्यार बढ़ जाता था. नतीजा यह हुआ कि वह सुधीर को सदा के लिए पाने की चाहत पाल बैठी.

इसी बीच एक ऐसी घटना घटी जिस ने रूबी के मन में बीना के प्रति जहर घोल दिया.  दरअसल सुधीर और रूबी प्राय: रोज ही बात किया करते थे. अचानक एक दिन सुधीर का मोबाइल पानी में गिर गया जिससे पानी उस के अंदर चला गया और मोबाइल बंद हो गया. इत्तेफाक से उस दिन सुधीर को लखनऊ जाना था. रूबी का नंबर उस के मोबाइल में तो फीड था, पर वैसे उसे याद नहीं था. इस वजह से वह उसे फोन कर के लखनऊ जाने की बात बता भी नहीं सका. वह उसे बिना बताए ही लखनऊ चला गया.

उधर रूबी बराबर उस का नंबर ट्राई कर रही थी. जब कई घंटे तक उस का फोन नहीं मिला तो वह हकीकत पता लगाने के लिए सुधीर के घर जा पहुंची. उस समय बीना घर में अकेली थी, सासससुर और देवर रेस्टोरेंट पर गए हुए थे. यह बीना और रूबी की पहली मुलाकात थी. बीना ने रूबी से उस का नाम पूछा तो उस ने बता दिया.