Love Passion Crime Story : सुहागन बनने से पहले प्रेमिका बनी विधवा

23 वर्षीय गुलशन गुप्ता ड्यूटी से थकामांदा कुछ ही देर पहले घर पहुंचा था, तभी उस ने फोन देखा तो पता चला कि उस के जिगरी यार राहुल सिंह का कई बार फोन आ चुका था. उस ने सोचा कि पता नहीं राहुल ने क्यों फोन किया है. झट से उस ने राहुल को फोन कर वजह पूछी तो राहुल बोला, ”गुलशन, तू घर पहुंच गया हो तो मेरे घर आ जा, कहीं चलना है.’’

”ठीक है, मैं आता हूं.’’ गुलशन ने कहा और उस ने अपनी मम्मी से चाय बनवाई.

वह चाय की चुस्की ले फटाफट हलक के नीचे गरमागरम उतारता गया. मिनटों में चाय की प्याली खाली कर अपनी बाइक निकाली और मम्मी को दोस्त राहुल के घर जाने की बात कह कर चल दिया. कुछ देर बाद वह राहुल के घर पहुंच गया था. यह बात 16 सितंबर, 2023  की है. गुलशन गुप्ता पंजाब के लुधियाना जिले की डाबा थानाक्षेत्र के न्यू गगन नगर कालोनी में मम्मी सोनी देवी और 3 बहनों के साथ रहता था. उस के पापा की पहले ही मृत्यु हो चुकी थी. मां सोनी देवी और खुद गुलशन यही दोनों मिल कर परिवार की जिम्मेदारी संभाले हुए थे.

गुलशन का दोस्त 25 वर्षीय राहुल सिंह लुधियाना के माया नगर में अपने मम्मीपापा के साथ रह रहा था. वह अपने मम्मीपापा की इकलौती संतान था. सब का लाडला था. उस की एक मुसकान से मांबाप की सुबह होती थी. वह अपनी जो भी ख्वाहिश उन के सामने रखता था, वह पूरी कर देते थे. पापा अशोक सिंह एक प्राइवेट कंपनी में थे, पैसों की उन के पास कोई कमी नहीं थी, बेटे पर वह अपनी जान छिड़कते थे.

गुलशन को देख कर राहुल का चेहरा खुशी से खिल उठा था तो गुलशन ने भी उसी अंदाज में राहुल के साथ रिएक्ट किया था. वैसे ऐसा कोई दिन नहीं होता था, जब वे एकदूसरे से न मिलते हों. इन की यारी ही ऐसी थी कि बिना मिले इन्हें चैन नहीं आता था. ये जिस्म से तो दो थे, लेकिन जान एक ही थी. खैर, राहुल गुलशन के ही आने का इंतजार कर रहा था. उस के आते ही उस की बाइक अपने घर के सामने खड़ी कर दी और बाहर खड़ी अपनी एक्टिवा ड्राइव कर गुलशन को पीछे बैठा कर मम्मी से थोड़ी देर में लौट कर आने को कह निकल गया.

दोनों दोस्त कैसे हुए लापता

राहुल सिंह के साथ गुलशन गुप्ता को निकले करीब 4 घंटे बीत गए थे, लेकिन न तो राहुल घर लौटा था और न गुलशन ही घर लौटा था. और तो और दोनों के सेलफोन भी बंद आ रहे थे. राहुल के जितने भी दोस्त थे, पापा अशोक सिंह ने सब के पास फोन कर के उस के बारे में पूछा. यही नहीं लुधियाना में रह रहे अपने रिश्तेदारों और चिरपरिचितों से भी राहुल के बारे में पूछ लिया था, लेकिन किसी ने भी उस के वहां आने की बात नहीं कही.

दोनों के घर वालों ने रात आंखों में काट दी थी. अगले दिन 17 सितंबर को सुबह 10 बजे राहुल के पापा अशोक सिंह और गुलशन की मम्मी सोनी देवी दोनों डाबा थाने जा पहुंचे. उन्होंने राहुल और गुलशन के गायब होने की पूरी बात बता दी. गुलशन की मम्मी सोनी देवी ने बताया कि सर, हमें पूरा यकीन है कि हमारे बच्चों का अमर यादव ने अपहरण किया है.

”क्या..?’’ सोनी देवी की बात सुन कर इंसपेक्टर सिंह उछले, ”अमर यादव ने आप के बच्चों का अपहरण किया है? लेकिन यह अमर यादव है कौन और उस ने दोनों का अपहरण क्यों किया?’’

अमर यादव पर क्यों लगाया अपहरण का आरोप

सोनी देवी ने राहुल और गुलशन के अपहरण किए जाने की खास वजह इंसपेक्टर कुलवीर सिंह को बता दी. उन की बातों में दम था. फिर इंसपेक्टर ने राहुल और गुलशन की एक एक फोटो मांगी तो उन्होंने दोनों के फोटो उन के वाट्सऐप पर सेंड कर दिए. सोनी ने लिखित तहरीर इंसपेक्टर कुलवीर सिंह को सौंप दी थी. इस बीच एक जरूरी काल आने के बाद अशोक सिंह वहां से जा चुके थे. उधर कुलदीप सिंह ने सोनी देवी से तहरीर ले कर अपने पास रख ली और आवश्यक काररवाई करने का आश्वासन दे कर उन्हें वापस घर भेज दिया था.

राहुल सिंह के पिता अशोक सिंह को एक परिचित ने फोन कर के बताया कि टिब्बा रोड कूड़ा डंप के पास लावारिस हालत में राहुल की एक्टिवा खड़ी है और वहीं मोबाइल फोन भी पड़ा है. यह सुन कर वह इंसपेक्टर कुलवीर सिंह से टिब्बा रोड चल दिए थे. वह जैसे ही वहां पहुंचे, सफेद एक्टिवा और मोबाइल देख कर अशोक पहचान गए, दोनों ही चीजें उन के बेटे राहुल की थीं. अभी वह खड़े हो कर कुछ सोच ही रहे थे कि उसी वक्त एक और चौंका देने वाली सूचना उन्हें मिली. टिब्बा रोड से करीब 2 किलोमीटर दूर वर्धमान कालोनी से गुलशन का मोबाइल फोन बरामद कर लिया गया.

राहुल की एक्टिवा और दोनों के लावारिस हालत में पड़े हुए फोन की सूचना अशोक ने डाबा थाने के इंसपेक्टर कुलवीर सिंह को फोन द्वारा दे दी थी. सूचना मिलने के बाद कुलवीर सिंह मय दलबल के मौके पर पहुंच गए, जहां अशोक सिंह खड़े उन के आने का इंतजार कर रहे थे.

दोनों मोबाइल फोन बंद थे. इंसपेक्टर कुलवीर सिंह ने दोनों फोन औन किए. उन्होंने राहुल के फोन की काल हिस्ट्री चैक की तो पता चला कि बीती रात साढ़े 5 बजे के करीब उस के फोन पर एक नंबर से फोन आया था. उसी नंबर से 15 सितंबर को करीब 3 बार काल आई थी.

इंसपेक्टर सिंह ने इस नंबर पर काल बैक किया तो वह नंबर लग गया. काल रिसीव करने वाले से उस का नाम पूछा गया तो उस ने अपना नाम अमर यादव बताया और टिब्बा रोड स्थित रायल गेस्टहाउस का कर्मचारी होना बताया.

अमर यादव का नाम सुन कर वह चौंक गए, क्योंकि सोनी देवी ने भी बच्चों के अपहरण करने की अपनी आशंका इसी के प्रति जताई थी और राहुल के फोन में आखिरी काल भी अमर यादव की ही थी. इस का मतलब था कि राहुल और गुलशन के गायब होने में कहीं न कहीं से अमर यादव का हाथ हो सकता है.

पुलिस ने बरामद कीं दोनों दोस्तों की लाशें

फिर देर किस बात की थी. पुलिस रायल गेस्टहाउस पहुंच गई, जो मौके से कुछ ही दूरी पर स्थित था. गेस्टहाउस पहुंच कर इंसपेक्टर सिंह अमर यादव को पूछते हुए सीधे अंदर घुस गए. मैनेजर वाले कमरे में एक 23 वर्षीय सांवले रंग का दुबलापतला गंदलुम कपड़े पहने युवक बैठा मिला. सामने पुलिस को देख उस को पसीना छूट गया.

”अमर यादव तुम हो?’’ गुर्राते हुए इंसपेक्टर सिंह बोले.

”हां जी सर, मैं ही अमर यादव हूं.’’ बेहद सम्मानित तरीके से उस ने जवाब दिया था, ”बात क्या है, क्यों मुझे खोज रहे हैं.’’

”अभी पता चल जाएगा बेटा. राहुल और गुलशन कहां हैं? तुम ने कहां छिपा कर दोनों को रखा है? सीधे तरीके से बता दे वरना…’’

”बताता हूं सर, बताता हूं. दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं,’’ बिना किसी डर के वह आगे कहता गया, ”मैं ने अपने साथियों के साथ मिल कर दोनों को मौत के घाट उतार दिया है और मैं करता भी क्या. मेरे पास इस के अलावा कोई और रास्ता भी नहीं बचा था.

”राहुल मेरे प्यार को मुझ से छीनने की कोशिश कर रहा था, इसलिए मैं ने अपने रास्ते का कांटा सदा के लिए हटा दिया. यहीं नहीं जो जो भी मेरे प्यार के रास्ते का रोड़ा बनेगा, मैं उसे ऐसे ही मिटाता रहूंगा.’’ और फिर अमर ने पूरी पूरी घटना विस्तार से उन्हें बता दी.

इंसपेक्टर कुलवीर सिंह ने अमर यादव को गिरफ्तार कर लिया और उसी की निशानदेही पर 3 और आरोपियों अभिषेक राय, अनिकेत उर्फ गोलू और नाबालिग मनोज को शेषपुर से गिरफ्तार कर लिया. चारों को हिरासत में ले कर पुलिस ताजपुर रोड स्थित सेंट्रल जेल के पास बहने वाले कक्का धौला बुड्ढा नाला (भामियां) पास पहुंची, जहां आरोपियों ने हत्या कर राहुल और गुलशन की लाश कंबल में लपेट कर बोरे में भर कर फेंकी थीं.

थोड़ी मशक्कत के बाद राहुल और गुलशन गुप्ता की लाशें बरामद कर ली थीं. इस के बाद दोहरे हत्याकांड की घटना पल भर में समूचे लुधियाना में फैल गई थी. घटना से जिले में सनसनी फैल गई थी. लोगबाग कानूनव्यवस्था पर सवाल उठाने लगे थे.

खैर, इस घटना की सूचना मिलते ही पुलिस कमिश्नर मनदीप सिंह सिद्धू, डीसीपी (ग्रामीण) जसकिरनजीत सिंह तेजा, एडीसीपी (सिटी-2) सुहैल कासिम मीर और एसीपी (इंडस्ट्रियल एरिया-15) संदीप बधेरा मौके पर पहुंच गए थे.

खुशियां कैसे बदलीं मातम में

मौके पर पहुंचे पुलिस अधिकारियों ने लाशों का निरीक्षण किया. दोनों में से राहुल की लाश विकृत हो चुकी थी. हत्यारों ने धारदार हथियार से उस की गरदन पर हमला किया था. उसे इतनी बेरहमी से मारा था कि उस की बाईं आंख बाहर निकल गई थी. मौके पर मौजूद मृतक राहुल के पापा ने दिल पर पत्थर रख कर बेटे की पहचान कर ली थी. 4 महीने बाद उस की शादी होने वाली थी, उस से पहले ही वह दुनिया से विदा हो गया. घर में शादी की खुशियां मातम में बदल गई थीं. घर वालों का रोरो कर हाल बुरा हुए जा रहा था.

बहरहाल, पुलिस ने दोनों लाशों का पंचनामा तैयार कर उन्हें पोस्टमार्टम के लिए लुधियाना जिला अस्पताल भेज दिया और चारों आरोपियों को अदालत में पेश कर उन्हें जेल भेज दिया. आरोपियों से की गई कड़ी पूछताछ के बाद इस दोहरे हत्याकांड की जो कहानी पुलिस के सामने आई, वह मंगेतर के बीच मोहब्बत की जंग पर रची हुई थी. 25 वर्षीय राहुल सिंह मम्मीपापा का इकलौता था. वही मांबाप के आंखों का नूर था और उन के जीने का सहारा भी. वह जवान हो चुका था और एक प्राइवेट कंपनी में एचआर की नौकरी भी करता था. अच्छा खासा कमाता था.

चूंकि राहुल जवान भी हो चुका था और कमा भी रहा था, इसलिए पापा अशोक सिंह ने सोचा कि बेटे की शादी वादी हो जाए. घर में बहू आ जाएगी तो उस की मम्मी को भी सहारा हो जाएगा. यही सोच कर अशोक सिंह ने अपने जानपहचान और रिश्तेदारों के बीच में बेटे की शादी की बात चला दी थी कि कोई अच्छी और पढ़ीलिखी बहू मिले जो घरगृहस्थी संभाल सके.

जल्द ही राहुल के लिए कई रिश्ते आए. उन में से जमालपुर थाना क्षेत्र स्थित मुंडिया कलां के रहने वाले अजय सिंह की बेटी स्नेहा घर वालों को पसंद आ गई. खुद राहुल ने भी उसे पसंद किया था. स्नेहा पढ़ीलिखी और सुंदर थी. 2 बहनों और एक भाई में वह सब से बड़ी थी. राहुल और स्नेहा की शादी पक्की हो गई और फरवरी 2023 में दोनों की मंगनी भी हो गई और शादी फरवरी 2024 में होने की बात पक्की हुई.

इंस्टाग्राम के किस फोटो को ले कर हुई कलह

अपनी शादी तय होने से राहुल बहुत खुश था. अपने दिल का हर राज अपने खास दोस्तों गुलशन और सूरज के बीच शेयर करता था. मंगनी के दिन राहुल ने स्नेहा को देखा तो अपनी सुधबुध खो दी थी. वह थी ही इतनी सुंदर. उस की सुंदरता पर वह फिदा था. उस के बाद दोनों के बीच फोन पर अकसर दिल की बातें होती रहती थीं. वह अपने दिल की बात स्नेहा से करता और स्नेहा अपने दिल की बातें मंगेतर से करती. धीरेधीरे दोनों के बीच प्यार हो गया था और वे चाहते थे कि उन का मिलन जल्द से जल्द हो जाए.

लेकिन उन का मिलन होने में अभी 4 महीने बचे थे. जैसे तैसे वे अपने दिल पर काबू किए थे. वह जून-जुलाई, 2023 का महीना रहा होगा, जब राहुल के परिवार पर दुखों के बादल मंडराने लगे थे.

एक दिन की बात थी. इंस्टाग्राम पर गुलशन अपना अकाउंट देख रहा था. अचानक उस की एक नजर ठहर गई और 2 फोटो देख कर वह चौंक गया.फोटो में स्नेहा किसी अमर यादव के साथ गलबहियों में चिपकी पड़ी थी. फिर उस ने फोटो का स्क्रीनशौट ले कर सेव कर लिया और सूरज को दिखाया. फोटो देख कर वह हैरान था, ये तो राहुल की होने वाली पत्नी स्नेहा है. उस के पीठ पीछे क्या गुल खिलाया जा रहा है. दोनों ने राहुल से सारी बातें साफसाफ बता दीं.

फिर राहुल ने समझदारी का परिचय देते हुए इंस्टाग्राम पर स्नेहा का अकाउंट चैक किया तो बात सच साबित हो गई थी. इस के बाद उस ने स्नेहा से बात की. स्नेहा अपनी ओर से सफाई देती हुई बोली, ”आप ने जिस फोटो को देखा था, वो उस का अतीत था. कभी अमर नाम के लड़के से वह प्यार करती थी, लेकिन शादी पक्की होने के बाद से उस ने उस से अपनी ओर से रिश्ता तोड़ लिया है. वह अब अमर से नहीं मिलती. पुरानी बातों को मुद्दा बना कर वह उसे हर समय परेशान करता रहता है.’’

पूर्व प्रेमी और मंगेतर के बीच बढ़ता गया विवाद

राहुल को अपनी मंगेतर स्नेहा की बातों पर पूरा विश्वास हो गया था कि वह जो कह रही है, सच कह रही है. उस के बाद राहुल ने अमर यादव को सावधान करते हुए पोस्ट लिखा कि स्नेहा उस की होने वाली पत्नी है. आने वाले साल 2024 में हमारी शादी होनी है. तुम उस का पीछा करना छोड़ दो. उसे बदनाम न करो वरना इस का परिणाम बुरा हो सकता है.

इस पर अमर यादव ने भी पलट कर जवाब दिया था, ”स्नेहा उस का प्यार है. उसे वह टूट कर प्यार करता है. तेरे कारण उस ने उस से बात करनी बंद कर दी है और दूरदूर रहती है. मुझ से इस की जुदाई, उस की तन्हाई जीने नहीं देती. मेरे और मेरे प्यार के बीच में जो भी रोड़ा बनने की कोशिश करेगा, उसे हमेशा हमेशा के लिए मिटा दूंगा और तू भी समझ ले, अभी वक्त है हम दोनों के बीच से हट जा, उसी में तेरी भलाई है. नहीं तो मैं किस हद तक चला जाऊंगा, मुझे खुद भी नहीं पता.’’

उस दिन के बाद राहुल और अमर यादव के बीच स्नेहा को ले कर वर्चस्व की टेढ़ी लकीर खिंच गई थी. बारबार राहुल इंस्टाग्राम पर फोन कर के स्नेहा से दूर रहने को धमकाता था. वहीं अमर भी स्नेहा से दूर हट जाने को धमकाता था. राहुल ने अप्रत्यक्ष तौर पर अपने घर वालों को बता भी दिया था कि अमर यादव नाम का एक लड़का स्नेहा को बदनाम करने के एवज में उसे परेशान करता रहता है. घर वालों ने इस बात को हल्के में लिया और समझा दिया कि शादी हो जाने के बाद सब ठीक हो जाएगा. नाहक परेशान होने की जरूरत नहीं है. इस के बाद राहुल भी थोड़ा बेफिक्र हो गया था.

शादी के दिन जैसे जैसे नजदीक आ रहे थे, अमर को प्रेमिका स्नेहा से जुदाई के दिन साफ नजर आ रहे थे. यह सोच कर गुस्से से पागल हो जाता था कि उस के जीते जी कोई उस के प्यार को उड़ा ले जाए, ये कैसे हो सकता है. क्यों न रास्ते के कांटे को ही जड़ से ही उखाड़ दिया जाए. न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी.

जैसे ही उस के दिमाग में यह विचार आया, खुशी से उछल पड़ा. उस ने अपने दोस्तों को रायल गेस्टहाउस बुला लिया. यह गेस्टहाउस टिब्बा थाने के टिब्बा रोड पर स्थित था, गेस्टहाउस एक डीसीपी (पुलिस अधिकारी) का था, जो इन दिनों उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में तैनात है.

नौकर क्यों समझता था खुद को डीसीपी

अमर यादव मूलरूप से बिहार के दरभंगा जिले का रहने वाला था, लेकिन सालों से वह लुधियाना के शेषपुर मोहल्ले में किराए का मकान ले कर रहता था. उस के मांबाप घर रहते थे. उज्जवल भविष्य की कामना ले कर ही वह दरभंगा से लुधियाना चला था. पहले से वहां उस के कई परिचित रहते थे. उन्हीं के सहारे वह यहां रहने आया था. देखने में तो वह एकदम दुबलापतला मरियल जैसा लगता था, लेकिन था वह अपराधी प्रवृत्ति वाला. बातबात पर हर किसी से झगड़ जाना उस की आदत थी और अपराधियों और नशे का कारोबार करने वालों से उस की खूब बनती थी.

जिस दिन से डीसीपी के गेस्टहाउस पर काम करना शुरू किया था, खुद को ही अमर डीसीपी समझ बैठा. दूसरों पर डीसीपी जैसा रौब झाड़ता था और इसी गेस्टहाउस के तले नशे का कारोबार भी करता था. कुछ महीनों पहले भी यह गेस्टहाउस खासी चर्चा का विषय बना था. उस के दोस्तों में अभिषेक राय, अनिकेत ऊर्फ गोलू और मनोज खास थे. अमर जब भी कोई जुर्म करता था तो इन्हीं को अपना हमराज बनाता था. इन के मुंह बंद करने के लिए वह इन पर खर्च भी खूब करता था.

बहरहाल, राहुल को रास्ते से हटाने के लिए अमर ने अभिषेक राय, अनिकेत उर्फ गोलू और मनोज को 14 सितंबर, 2023 को रायल गेस्टहाउस बुलाया और चारों ने आपस में बैठ कर मीटिंग की कि राहुल की हत्या कैसे करनी है और फिर लाश को कैसे ठिकाने लगाना है.

सब कुछ तय हो जाने के बाद 15 सितंबर, 2023 को अमर ने बाजार से लोहे का दांत और रौड खरीद लाया और गेस्टहाउस के एक कमरे में छिपा दिए.

15 सितंबर, 2023 की शाम करीब 5 बजे अमर यादव ने राहुल को फोन किया और उसे मिलने के लिए रायल गेस्टहाउस बुलाया. इस पर राहुल ने कोई जवाब नहीं दिया और उस का फोन काट दिया था. इस के बाद उस ने 3 बार और उसे फोन कर के गेस्टहाउस बुलाया, लेकिन राहुल नहीं गया.

किस वजह से राहुल अपने दुश्मन के पास जाने को मजबूर हुआ

16 सितंबर की शाम को अमर यादव ने फिर से राहुल को फोन किया और बताया कि उस के पास स्नेहा के साथ आपत्तिजनक स्थिति का एक वीडियो है, जो उसे देना चाहता है. आ कर ले जा सकता है.

इस पर राहुल ने कहा, ”ठीक है, वह आज मिलने जरूर आएगा.’’

और फिर ड्यूटी से राहुल जल्दी छुट्टी ले कर घर पहुंच आया. ड्यूटी से निकलते हुए राहुल ने गुलशन को भी फोन कर दिया कि अमर ने फोन कर के बताया है कि स्नेहा की कोई खास वीडियो उस के पास है, आ कर ले जाए. मेरे दोस्त, वो वीडियो किसी तरह से हासिल करनी है तो तुम्हें मेरे साथ उस से मिलने टिब्बा रोड रायल गेस्टहाउस चलना होगा.

साढ़े 8 बजे गुलशन गुप्ता जब घर से अपनी बाइक ले कर निकला तो मम्मी को बता दिया था कि वह राहुल से मिलने उस के घर जा रहा है, थोड़ी देर बाद वह लौट आएगा. कौन जानता था इस के बाद वह कभी नहीं आएगा.थोड़ी देर बाद वह राहुल के सामने खड़ा था. दोनों ने चाय की चुस्की ली और अमर से मिलने टिब्बा रोड पहुंच गए. सनद रहे, गुलशन ने अपनी बाइक राहुल के घर खड़ी कर दी थी और राहुल अपनी एक्टिवा ले कर गया था. आधे घंटे बाद राहुल और गुलशन रायल गेस्टहाउस के बाहर खड़े थे. उस ने अपनी एक्टिवा गेस्टहाउस के बाहर खड़ी कर दी थी.

”अमर…अमर…’’ की आवाज लगाते हुए राहुल गेस्टहाउस के अंदर दाखिल हुआ तो गुलशन भी उसी के पीछे हो लिया था. 2 मिनट बाद एक लड़का बाहर निकला और राहुल के सामने खड़ा हो गया. उसे अपनी बातों में उलझा लिया. तब तक वहां अभिषेक राय और मनोज भी पहुंच गए और स्नेहा को ले कर राहुल से भिड़ गए.

अभी यह सब हो ही रहा था कि तभी अचानक अमर यादव लोहे का दांत लिए बाहर निकला और राहुल की गरदन पर जोरदार तरीके से वार किया. वहां कटे वृक्ष के समान हवा में लहराते हुए धड़ाम से फर्श पर जा गिरा. उस के बाद अभिषेक उसे लोहे की रौड से मारता गया.

राहुल को देख कर अमर गुस्से से इतना पागल हो गया था कि लोहे के दांत उस के बाईं आंख में घुसेड़ कर आंख बाहर निकाल दी थी. राहुल मर चुका था. उस के सिर से खून बह रहा था. यह देख गुलशन सन्न रह गया और वहां से भागने लगा लेकिन चारों ने उसे घेर लिया और उसे भी मार डाला. अमर यादव उसे नहीं मारना चाहता था. चूंकि पूरी घटना गुलशन की आंखों के सामने घटी थी और हत्या का वह एकमात्र चश्मदीद गवाह था, इसलिए अमर और उस के साथियों ने उसे भी उसी लोहे के दांत से मौत के घाट उतार दिया था.

इस के बाद चारों ने मिल कर राहुल और गुलशन की लाश कंबल में लपेट दीं. राहुल की ही एक्टिवा पर दोनों की लाश बारीबारी से सेंट्रल जेल के ताजपुर रोड स्थित कक्का धौला बुड्ढा नाले में फेंक आए. फिर गेस्टहाउस में फर्श पर फैले खून को पानी से धो कर सारे सबूत मिटा दिए और राहुल की एक्टिवा टिब्बा रोड कूड़ा डंप के पास खड़ी कर दी. स्विच औफ कर के उस के मोबाइल फोन को भी गाड़ी के बगल में गिरा दिया.

अमर वहीं गेस्टहाउस में ही रुका रहा जबकि अभिषेक राय, मनोज और अनिकेत उर्फ गोलू अपने घर शेषपुर निकल गए. घर जाते हुए तीनों ने गुलशन के मोबाइल को वर्धमान कालोनी में स्विच औफ कर के फेंक दिया था. इश्क की जंग में पागल प्रेमी अमर यादव इस कदर हैवान बन चुका था कि उसे स्नेहा के अलावा कुछ नहीं दिख रहा था जबकि स्नेहा ने उस से अपना संबंध तोड़ लिया था. वह एक नई जिंदगी बसाने का हसीन ख्वाब देख रही थी, लेकिन सुहागन बनने से पहले ही विधवा बन गई.

खैर, कथा लिखे जाने तक पुलिस चारों आरोपियों अमर यादव, अभिषेक राय, अनिकेत उर्फ गोलू और मनोज को गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी थी और हत्या में प्रयुक्त लोहे की दांत, रौड, 2 मोबाइल फोन बरामद कर लिए थे. पुलिस ने अपहरण की धारा को 302, 201, 120बी व 34 आईपीसी में तरमीम कर दिया.

Crime Story : 23 साल बाद मिला साधु के वेश में कातिल प्रेमी

उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी मथुरा के बरसाना का नंदगांव यहीं है कुंजकुटी आश्रम. तपती 25 जून, 2023 को जून की गरमी से बेहाल 3 साधुओं की टोली कुंजकुटी आश्रम के दरवाजे पर आ कर रुक गई. इन के शरीर पर लाल, पीले रंग के साधुओं वाले कपड़े थे, तीनों ने सिर पर सफेद, भगवा अंगौछे बांध रखे थे. गले में रुद्राक्ष की माला और माथे पर चंदन का लेप था. तीनों साधु पसीने से तरबतर थे.

कंधे पर लटक रही लाल रंग की झोली से भगवा रुमाल निकाल कर चेहरे का पसीना पोंछते हुए एक साधु हैरत से बोला, “दरवाजे पर क्यों रुक गए गुरुदेव, भीतर प्रवेश नहीं करेंगे क्या?”

“मछेंद्रनाथ, मैं किसी आश्रम वासी के बाहर आने की राह देख रहा हूं. बगैर इजाजत लिए किसी भी जगह प्रवेश करना उचित नहीं होता.”

“आप का कहना ठीक है गुरुदेव,” मछेंद्रनाथ विचलित हो कर बोला, “लेकिन मुझे जोरों की भूख लग रही है. हम अंदर जाते तो मैं पेट की भूख शांत कर लेता.”

उस की बात पर दोनों साधु हंसने लगे. हंसते हुए गुरुदेव, जिन का नाम हरिहरनाथ था, बोले, “देखा कालीनाथ, इस पेटू मछेंद्र को, इसे खाने के अलावा कुछ नहीं सूझता.”

फिर वह मछेंद्रनाथ की तरफ पलटे और कुछ कहना ही चाहते थे कि आश्रम के दरवाजे पर एक भगवा वस्त्र धारी दुबलापतला साधु आ गया.

“आप दरवाजे पर क्यों रुक गए?” उस साधु के स्वर में हैरानी थी, “कोई और आने वाला है क्या?”

“नहीं महाराज, हम तो अंदर आने की इजाजत की प्रतीक्षा में यहां रुक गए थे.” हरिहरनाथ ने मुसकरा कर कहा.

“यहां इजाजत कौन देगा जी, गुरुजी की ओर से इस आश्रम में हर किसी को आने की छूट है. आप लोग अंदर आ जाइए.”

हरिहरनाथ अपनी साधु टोली के साथ अंदर आ गए. आश्रम में एक ओर रहने के लिए कमरे बने हुए थे. सामने दाहिनी ओर छप्परनुमा शेड था. नीचे चबूतरा था, इस के बीच में अग्निकुंड बना हुआ था. अग्निकुंड में लकडिय़ों की धूनी सुलग रही थी. उस के आसपास कई जटाधारी साधु बैठे हुए थे. कुछ चिलम पी रहे थे. कुछ आपस में बातें कर रहे थे. एक साधु बैठा हुआ कोई धार्मिक ग्रंथ पढऩे में तल्लीन था.

तीनों साधुओं को वहां लाने वाला साधु आदर से बोला, “आप लोग चाहें तो स्नान आदि कर लीजिए. मैं आप के खाने का बंदोबस्त करता हूं, खापी कर आप आराम कर लेना. गुरुदेव अपने कक्ष में हैं, उन से आप की भेंट शाम को 5 बजे होगी.”

“ठीक है महाराज,” हरिहर मुसकरा कर बोले.

वह अपनी टोली के साथ आश्रम के कोने में लगे हैंडपंप पर आ गए. उन्होंने बाहर ही हैंडपंप पर नहानाधोना किया. फिर चबूतरे पर आ गए. उन्हें वहां भोजन परोसा गया. खापी लेने के बाद वे चटाइयों पर विश्राम करने के लिए लेट गए.

अन्य साधुओं से बढ़ाई घनिष्ठता

शाम को उन की मुलाकात इस आश्रम के गुरु महाराज से हुई. वह वयोवृद्ध थे. उन्हें हरिहरनाथ ने हाथ जोड़ कर प्रणाम करने के बाद बताया, “हम काशी विश्वनाथ होते हुए मथुरा आए थे. यहां आप के आश्रम कुंजकुटी की बहुत चर्चा सुनी तो आप के दर्शन करने आ गए. हम यहां कुछ दिन ठहरना चाहेंगे गुरुदेव.”

“आप का आश्रम है हरिहरनाथ, आप अपनी मंडली के साथ ताउम्र यहां रहिए. यह साधुसंतों का डेरा है, यहां कोई भी कभी भी आजा सकता है.”

“धन्यवाद गुरुदेव,” हरिहरनाथ ने कहा.

गुरु महाराज के पास से उठ कर हरिहरनाथ ने चबूतरे के एक कोने में अपने उठने बैठने की व्यवस्था कर ली. तीनों ने वहां चटाइयां बिछा कर बिस्तर लगा लिया.

2-3 दिनों में ही हरिहरनाथ, मछेंद्रनाथ और कालीनाथ वहां आनेजाने और रहने वाले साधुसंतों से घुलमिल गए थे. वह उन से आध्यात्मिक ज्ञान की चर्चा करते. अपना मोक्ष पाने के लिए साधु वेश धारण करने की बात बता कर यह पूछते कि वह साधु क्यों बने? यह वेश धारण कर के उन्हें कैसा अनुभव हो रहा है?

आज उन्हें कुंजकुटी आश्रम में रुके हुए 4 दिन हो गए थे. गुरु हरिहरनाथ आज सुबह से ही उस साधु के साथ चिपके हुए थे जो पहले दिन उन्हें सब से अलग बैठा कोई धार्मिक ग्रंथ पढ़ता दिखाई दिया था. यह 50 वर्ष से ऊपर का व्यक्ति था. दुबलापतला गेहुंए रंग का वह व्यक्ति लाल कुरता, पीली जैकेट और लुंगी पहनता था. उस की दाढ़ीमूंछ के बालों में सफेदी झलकने लगी थी. यह साधु पहले दिन से ही सभी से अलगथलग रहने वाला दिखाई दिया था.

हरिहरनाथ ने शाम को खाना खा लेने के बाद उस के साथ गांजे की चिलम भर कर पी. गांजे का नशा हरिहरनाथ के दिमाग पर छाने लगा तो वह सिर झटक कर बोले, “मजा आ गया आप की चिलम में महाराज, मैं ने पहली बार गांजा की चिलम पी है. यह नशा मेरा सिर घुमा रहा है.”

“मैं रोज पीता हूं हरिहरनाथ. इसे पी लेने के बाद न अपना होश रहता है, न दुनिया की फिक्र.”

“क्यों क्या आप का इस दुनिया में अपना कोई नहीं है?” हरिहरनाथ ने पूछा.

“थे. मांबाप, बहनभाई और…” बतातेबताते वह रुक गया.

“एक पत्नी.” हरिहरनाथ ने उस की बात को पूरा किया, “क्यों मैं ने ठीक कहा न?”

वह साधु हंस पड़ा, “पत्नी नहीं थी, वह मेरी प्रेमिका थी, मैं उसे बहुत प्यार करता था.”

“प्यार करते थे तो पत्नी क्यों नहीं बना सके उसे?”

“वह बेवफा निकली हरिहर,” वह साधु गहरी सांस भर कर बोला, “उस ने किसी और से दिल लगा लिया था.”

“ओह!” हरिहरनाथ ने अफसोस जाहिर किया, “ऐसी बेवफा प्रेमिका को तो सजा मिलनी चाहिए थी. मेरी प्रेमिका ऐसा करती तो मैं उस का गला काट देता.”

“नहीं हरिहर, मैं ने उस बेवफा से सच्ची मोहब्बत की थी. मैं उस के गले पर छुरी नहीं चला सकता था. मैं ने उस को नहीं, उस के प्रेमी को यमलोक पहुंचा दिया.”

“ओह! आप ने अपनी प्रेमिका के यार को ही उड़ा डाला.” हरिहर हैरानी से बोले, “फिर तो आप को कत्ल के जुर्म में सजा हुई होगी.”

गांजे के नशे में आई सच्चाई बाहर

चिलम का एक गहरा कश लगा कर धुंआ ऊपर छोड़ते हुए वह साधु हंसने लगा, “सजा किसे मिलती महाराज, कातिल तो कत्ल कर के फुर्र हो गया था. आज 23 साल हो गए उस बात को, मैं साधु बन कर यहां बैठा हूं, पुलिस वहां मेरे लिए हाथपांव पटक रही है. सुना है, मुझ पर 45 हजार रुपए का इनाम भी घोषित किया है पुलिस कमिश्नर ने.” साधु फिर हा…हा… कर के हंसने लगा.

हंसी थमी तो बोला, “हरिहर, मुझ पर पुलिस 45 हजार क्या 45 लाख का इनाम घोषित कर दे, तब भी वह मुझे नहीं पकड़ पाएगी.”

हरिहर के होंठों पर कुटिल मुसकान तैर गई. वह कमर की ओर हाथ बढ़ाते हुए बोले, “तुम ने सुन रखा होगा मिस्टर पदम, कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं. देख लो, फांसी का फंदा तुम्हारे गले तक पहुंच गया.”

“पदम,” वह साधु चौंक कर बोला, “तुम मेरा नाम कैसे जानते हो हरिहर?”

हरिहर का हाथ कमर से निकल कर बाहर आया तो उस में रिवौल्वर था. रिवौल्वर साधु की कनपटी पर सटा कर हरिहर गुर्राए, “मैं तेरा नाम भी जानता हूं और तेरा भूगोल भी. तू सूरत में विजय साचीदास की हत्या कर के फरार हो गया था. आज 23 साल बाद तू हमारी पकड़ में आया है.”

आप को बताते चलें कि साधु के वेश में यह सूरत की क्राइम ब्रांच के तेजतर्रार एएसआई सहदेव थे, इन के साथ जो 2 साधु वेशधारी मछेंद्रनाथ और कालीनाथ थे, उन के नाम जनार्दन हरिचरण और अशोक थे. ये दोनों भी सूरत की क्राइम ब्रांच में एएसआई और हैडकांस्टेबल के पद पर तैनात हैं.

इन दिनों सूरत की पुलिस ने मोस्टवांटेड अपराधियों को पकडऩे की मुहिम शुरू कर रखी है. पदम उर्फ गोरांग चरण पांडा ने 3 सितंबर, 2001 को विजय साचीदास नाम के युवक की हत्या कर दी थी, वह सूरत से भाग गया था. पुलिस उसे सालों तक सूरत और उस के पैतृक गांव ओडिशा के गंजाम जिले में तलाश करती रही. वह हाथ नहीं लगा तो उस पर 45 हजार रुपए का ईनाम घोषित किया गया. निराश हो कर इस केस की फाइल बंद कर दी गई.

23 साल बाद पकड़ा गया हत्यारा

23 साल बाद विजय साचीदास हत्याकांड की फाइल फिर से खोली गई. पुलिस कमिश्नर अजय कुमार तोमर ने भगोड़े मोस्टवांटेड अपराधियों को पकडऩे की मुहिम शुरू की थी. इसी मुहिम के तहत पीसीबी (प्रिवेशन औफ क्राइम ब्रांच) के 2 एएसआई और एक हैडकांस्टेबल को विजय साचीदास हत्याकांड की फाइल सौंपी गई.

हत्यारे पदम उर्फ गोरांग चरण पांडा के बारे में पुलिस को पता चला कि वह पुलिस से बचने के लिए साधु बन गया है और इस समय उत्तर प्रदेश में रह रहा है. उसे ढूंढते हुए यह टीम मथुरा आई. साधु वेश बना कर इस टीम ने 8 दिनों में 100 से अधिक धार्मिकस्थल, आश्रम और मठों की खाक छानी. इसी दौरान एक सर्विलांस टीम ने सूचना दी कि पदम साधु बना हुआ मथुरा के नंदगांव में रह रहा है, इसलिए यह टीम साधु के वेश में कुंजकुटी आश्रम में पहुंची.

पदम उन्हें कुंजकुटी आश्रम में मिला. साधु वेश धारण कर के 23 साल से वह यहां छिपा बैठा था. तेजतर्रार अपराध शाखा की टीम ने उसे अपनी सूझबूझ से ढूंढ निकाला. पदम उर्फ चरण पांडा की कनपटी पर रिवौल्वर रख कर एएसआई सहदेव ने अपने साथियों को इशारा किया. वह तुरंत पदम के सिर पर पहुंच गए.

पदम को घेर कर हथकड़ी लगा दी गई.

आश्रम में हडक़ंप मच गया. एक साधु जो 23 साल से कुंजकुटी आश्रम में रह रहा था, उस के हाथ में हथकड़ी देख कर सभी आश्रमवासी चौंक गए.

एएसआई सहदेव ने उन्हें इस साधु पदम उर्फ गोरांग चरण पांडा की हकीकत बताई तो सभी दंग रह गए. एक हत्यारा 23 सालों से साधु बन कर वहां रह रहा था. अपराध शाखा की टीम पदम उर्फ चरण पांडा को ले कर 28 जून, 2023 को मथुरा से सूरत के लिए रवाना हो गई. जाने से पहले उन्होंने नंदगांव पुलिस चौकी के इंचार्ज सिंहराज के पास अपनी रवानगी दर्ज करवा दी थी.

पदम को रजनी से हुआ प्यार

पदम उर्फ गोरांग चरण पांडा मूलरूप से ओडिशा के गंजाम जिले के श्रीराम नगर इलाके का निवासी था. उस का मांबाप और बहनभाई का एक बड़ा परिवार था, लेकिन इस परिवार के गुजरबसर के लिए ज्यादा कमाई नहीं थी. पदम के पिता मजदूरी कर के जैसेतैसे परिवार की गाड़ी को धकेल रहे थे.

पदम जवान हुआ तो घर की गरीबी उस से देखी नहीं गई. वह काम की तलाश में ट्रेन में सवार हो कर सूरत शहर आ गया. बहुत कम पढ़ालिखा था, इसलिए कोई अच्छी नौकरी तो मिलने वाली नहीं थी, मेहनत मजदूरी पदम करना नहीं चाहता था. यही करना था तो गंजाम जिले में ऐसे कामों की कमी नहीं थी.

बहुत सोचविचार कर के पदम ने गांधी चौराहे पर थोड़ी सी जगह ढूंढ कर भजिया (पकौड़े) की रेहड़ी लगा ली. पदम का यह काम चल निकला. उस ने शांतिनगर सोसायटी में रहने के लिए एक कमरा किराए पर ले लिया. भजिया रेहड़ी से अच्छी कमाई हो रही थी. पदम बनसंवर कर रहने लगा. कमरे का किराया और अपना खर्चा निकाल कर वह अब गंजाम में अपने मांबाप के पास बचा हुआ पैसा भेजने लगा था.

शांतिनगर सोसायटी में ही किराए पर रजनी नाम की युवती रहती थी. रजनी 23 साल की साढ़े 5 फुट की नवयौवना थी. रंग गोरा, नाकनक्श तीखे, होंठ संतरे के फांक जैसे. जवानी के बोझ से लदी रजनी को देख कर कोई भी फिदा हो सकता था. पदम की नजर सीढिय़ों से उतरते हुए रजनी पर पड़ी तो वह उस के रूपयौवन का दीवाना हो गया. पहली नजर में ही उस को रजनी से प्यार हो गया.

रजनी ने भी किया प्यार का इजहार

वह रोज सीढिय़ों से चढ़ कर ऊपर तीसरी मंजिल पर अपने कमरे में जाता तो रजनी के कमरे के सामने तब तक रुकता था, जब तक रजनी दरवाजे पर नहीं आ जाती थी. रजनी यह भांप चुकी थी कि इसी सोसाइटी में रहने वाला यह युवक उस का दीवाना है. अब वह पदम के शाम को लौट कर आने के वक्त पर खुद दरवाजे पर आ कर खड़ी होने लगी थी.

उस की नजरें पदम से टकरातीं तो वह शरम से नजरें झुका लेती, ठंडी सांस भर कर आह भरता हुआ पदम सीढिय़ां चढ़ जाता था. पदम यह महसूस कर चुका था कि रजनी उसे चाहने लगी है. उस से मेलजोल बढ़ाने के इरादे से एक शाम वह भजिया मिर्च को अखबार में पैक कर के ले आया. रजनी अन्य दिनों की तरह उस दिन भी दरवाजे पर खड़ी मिली. पदम ने हिम्मत बटोर कर भजियामिर्च का पैकेट रजनी की तरफ बढ़ा दिया.

“क्या है इस में?” पहली बार उस की कोयल जैसी आवाज पदम के कानों में पड़ी.

“आप खुद देख लीजिए” पदम कह कर तेजी से सीढ़ियां चढ गया. दिन में रजनी उसे दिखाई नहीं देती थी, शायद वह कहीं काम पर जाती थी, लेकिन सुबह जब पदम सीढ़ियां उतर कर नीचे आया तो रजनी अपने दरवाजे पर खड़ी दिखाई दी.

पदम को देख कर वह मुसकराई, “भजिया स्वादिष्ट थी. कहां से लाए थे?”

“मेरे ठेले की है. मैं गांधी चौक पर भजिया का ठेला लगाता हूं, आप को भजिया स्वादिष्ट लगी है तो मैं रोज शाम को ले आया करूंगा.” पदम के स्वर में उत्साह भरा था.

“नहीं, अब तो मैं तुम्हारे पास गांधी चौक पर आ कर ही भजिया खाया करूंगी,” रजनी ने हंस कर कहा.

“मैं एक शर्त पर आप को भजिया खिलाऊंगा.”

“कैसी शर्त?”

“आप भजिया के पैसे नहीं देंगी.”

“ऐसा क्यों?” हैरानी से रजनी ने पूछा.

“अपनों से कोई पैसा नहीं लेता,” पदम ने हिम्मत बटोर कर कह डाला, “आप को दिल से प्यार करने लगा हूं मिस…”

हया से सिर झुका कर बोली रजनी, “मेरा नाम रजनी है, मैं भी आप को चाहने लगी हूं.”

पदम खुशी से उछल पड़ा. उस ने रजनी का हाथ पकड़ कर चूम लिया. रजनी शरमा कर अंदर भाग गई.

प्यार में मिला धोखा

उस दिन के बाद से रजनी शाम को उस के ठेले पर आने लगी. पदम उसे भजिया खिलाता. इस बीच दोनों प्यार भरी बातें करते. ये मुलाकातें भजिया की ठेली से हट कर सूरत के पिकनिक स्पौट, सिनेमा हाल और रेस्टोरेंट तक पहुंच गईं. पदम जो कमाता था, वह रजनी पर खर्च करने लगा. वह रजनी को सच्चे दिल से चाहने लगा था. रजनी से वह शादी करने का प्लान भी बना रहा था. रजनी से उस ने वादा भी ले लिया था कि वह उस से शादी करेगी.

प्रेम प्रसंग बढ़ने लगा तो पदम अब शादी के लिए रुपए भी जोड़ने लगा था. वह रजनी को पत्नी बना कर अपने घर ओडिशा ले जाना चाहता था, लेकिन एक दिन उस का ख्वाब बिखर गया.उस ने रजनी को एक युवक के साथ हाथ में हाथ डाले शौपिंग माल में खरीदारी करते हुए देखा. पदम वहां अपने लिए शर्ट खरीदने के लिए गया था. वह रजनी को चोरीछिपे देखता रहा.

शाम को उस ने रजनी से उस युवक के बारे में पूछा तो उस ने बड़ी बेशरमी से कहा, “वह विजय साचीदार है. तुम से अच्छा कमाता है. मैं उस के साथ खुश रह सकती हूं.”

“लेकिन तुम ने मेरे साथ शादी करने का वादा किया है रजनी, मुझे तुम छोड़ कर किसी दूसरे से दिल नहीं लगा सकती.”

“दिल मेरा है पदम…” रजनी कंधे झटक कर बोली, “मैं इसे कहीं भी लगाऊं. फिर तुम्हारे पास है भी क्या? किराए का कमरा है, फुटपाथ पर भजिया तलते हो. मैं एक ठेली वाले से शादी कर के अपनी जगहंसाई नहीं करवाना चाहती. अब तुम अपना रास्ता बदल लो.”

“नहीं. मैं अपना रास्ता नहीं बदलूंगा. रास्ता तुम्हें बदलना होगा रजनी. तुम मेरी थी, मेरी ही रहोगी.”

“कोई जबरदस्ती है तुम्हारी.” रजनी गुस्से से चीखी, “मैं विजय से शादी करूंगी, समझे.”

“मैं उस हरामी विजय को काट डालूंगा.” पदम गुस्से से बोला, “देखता हूं तुम कैसे उस से शादी करती हो.”

पदम कहने के बाद गुस्से में भरा वहां से चला गया. वह रात उस ने अपने ठेले पर फुटपाथ पर बिताई. वह विजय साचीदार के विषय में सोच रहा था जो उस के प्यार की राह में कांटा बन गया था. वह कब सोया उसे पता नहीं चला

रजनी के प्रेमी विजय की मिली लाश

4 सितंबर, 2001 दिन मंगलवार को मयूर विहार सोसायटी के शांतिनगर थाने में रजनी ने विजय साचीदार के लापता हो जाने की रिपोर्ट दर्ज करवाते हुए पुलिस के सामने बयान दिया कि विजय साचीदार को जान से मारने की धमकी पदम चरण ने दी थी. पदम चरण शांतिनगर सोसायटी में तीसरी मंजिल पर किराए पर रहता है और गांधी चौक पर भजिया की ठेली लगाता है. विजय साचीदार को लापता करने में पदम चरण का हाथ हो सकता है. उसे गिरफ्तार कर के पूछताछ की जाए.

रजनी द्वारा लिखित रिपोर्ट के आधार पर पुलिस शांतिनगर सोसायटी में पदम चरण के कमरे पर पहुंची. वहां ताला बंद था. पदम चरण की तलाश में उस की भजिया की ठेली (गांधी चौक) पर पुलिस पहुंची तो ठेली पर कोई नहीं था. पदम चरण दोनों जगह से लापता था. इस से उस पर शक गहरा गया कि उस ने विजय साचीदार का अपहरण किया है और कहीं दुबक गया है.

पुलिस पदम चरण का मूल पता लगाने का प्रयास कर ही रही थी कि उसे उधना क्षेत्र (खाड़ी) में विजय साचीदास की लाश मिलने की सूचना कंट्रोल रूम द्वारा दी गई. उधना क्षेत्र की पुलिस को खाड़ी में एक युवक की लाश पड़ी मिली थी. उस युवक की तलाशी में आधार कार्ड मिला, जिस में उस का नाम विजय साचीदार, उस का फोटो और एड्रेस था.

आधार कार्ड से पता चला कि विजय साचीदार शांतिनगर थाना क्षेत्र में रहता था, इसलिए कंट्रोल रूम द्वारा इस थाने को सूचित किया गया. शांतिनगर थाने ने उधना क्षेत्र थाने से यह लाश अपने अधिकार में ले कर जांच की. विजय को गला दबा कर मारा गया था. विजय का पोस्टमार्टम करवा कर लाश उस के घर वालों को सौंप दी गई. इस मामले को भादंवि की धारा 302 में दर्ज कर के पदम चरण की तलाश शुरू कर दी गई.

पदम चरण के बारे में रजनी से बहुत कुछ मालूम हो सकता था. पुलिस ने रजनी को थाने में बुला कर पूछताछ की तो रजनी ने बताया कि पदम का ओडिशा के गंजाम जिले में बरहमपुर इलाके में घर है. इस से अधिक वह कुछ नहीं जानती. रजनी ने पदम से प्रेम करने के दौरान जो फोटो खींचे थे, वे भी उस ने पुलिस को दे दिए.

शांतिनगर थाने की पुलिस पदम की तलाश में ओडिशा गई. वहां उस के मांबाप को श्रीराम नगर में ढूंढ निकाला गया. उन्होंने बताया पदम कई दिनों बाद घर आया था, लेकिन एक रात रुक कर वह चला गया. वह कहां गया, यह उन्हें नहीं मालूम. पुलिस ओडिशा से खाली हाथ वापस आ गई. इस के बाद पदम को सालों पुलिस यहांवहां ढूंढती रही, लेकिन वह कहां छिप गया, पुलिस को पता नहीं चला.

पदम के ऊपर घोषित हुआ ईनाम

पुलिस द्वारा उस के ऊपर 45 हजार का ईनाम भी घोषित कर दिया गया, लेकिन सब व्यर्थ. हताश हो कर विजय साचीदास हत्या केस की फाइल पुलिस को ठंडे बस्ते में डालनी पड़ी. जून 2023 को पुलिस कमिश्नर अजय कुमार तोमर ने सूरत शहर के भगोड़े व मोस्टवांटेड अपराधियों को पकडऩे की लिस्ट तैयार करवाई तो उस में 23 सालों से फरार चल रहे पदम चरण उर्फ चरण पांडा का भी नाम था. उस पर 45 हजार का ईनाम भी घोषित था.

पदम को पकडऩे का जिम्मा अपराध शाखा के एएसआई सहदेव, एएसआई जनार्दन हरिचरण और हैडकांस्टेबल अशोक को सौंपा गया. इस टीम की पहली सफलता यह थी कि 23 साल से फोन बंद कर के बिल में छिपे पदम ने मोबाइल फोन से अपने परिजनों से संपर्क किया था.

ओडिशा के गंजाम जिले में श्रीराम नगर इलाके से गोपनीय जानकारी अपराध शाखा को मिली तो पदम के परिजनों से पदम का नया नंबर ले कर सर्विलांस पर लगा दिया गया. उस की लोकेशन ट्रेस की गई तो वह मथुरा के बरसाना की थी.

क्राइम ब्रांच को बनना पड़ा साधु

अपराध शाखा की टीम मथुरा के बरसाना पहुंची. वहां से टोह लेती हुई नंदगांव पहुंच गई. यहां की पुलिस चौकी के इंचार्ज सिंहराज की मदद से साधु वेश बना कर 8 दिन आश्रमों, मठों में पदम को तलाश करती रही. अपने असली नाम छिपा कर 100 से ज्यादा धार्मिक स्थलों में उसे खोजा गया, फिर कुंजकुटी आश्रम में तलाश करने पंहुचे तो उन्हें साधु वेश में रह रहे पदम चरण को पकडऩे में सफलता मिल गई.

पदम चरण को शांतिनगर थाना (सूरत) में ला कर पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि विजय साचीदास उस के और रजनी के प्रेम में बाधा बन गया था. उसे समझाने पर भी वह नहीं माना तो उस का अपहरण कर के वह उद्यान खाड़ी क्षेत्र में ले गया और वहां गला दबा कर उस की हत्या करने के बाद वह ओडिशा भाग गया.

एक रात रुक कर वह मथुरा आया, यहां नंदगांव के कुंजकुटी में साधु वेश बना कर रहने लगा. उसे लगा कि विजय की हत्या हुए 23 साल गुजर गए हैं, पुलिस खामोश बैठ गई है तो उस ने मोबाइल खरीद कर परिजनों से बात की. इसी क्लू द्वारा पुलिस उस तक पहुंची और वह पकड़ा गया.

पुलिस ने पदम उर्फ गोरांग चरण पांडा को सक्षम न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में रजनी परिवर्तित नाम है.

extramarital affair : नेहा ने तैयार किया मौत का काकटेल

2 बच्चों की मां नेहा शर्मा का हंसताखेलता परिवार था. पति प्रतीक शर्मा को मैडिकल स्टोर से अच्छी कमाई हो रही थी, इस के बावजूद भी पति के दोस्त आयुष शर्मा से नेहा के अवैध संबंध हो गए. इस के बाद प्रेमी के साथ मिल कर नेहा ने ऐसी खौफनाक साजिश रची कि…

अपने प्रेमी के साथ मिल कर पति की मौत की साजिश रचने के बाद नेहा के व्यवहार में बदलाव आ गया. अब वह पति की किसी भी बात का बुरा नहीं मानती. प्रतीक कटाक्ष करता या फिर जलीकटी बातें कहता तो नेहा गुस्सा करने के बजाय हंस कर टाल देती. वह प्रतीक को रिझाती और उस से मीठीमीठी बातें करती. यही नहीं प्रतीक रात को घर लौटता तो नेहा कमरे में उस के साथ बैठती और अपने हाथों से जाम तैयार करती.

पत्नी के इस बदले व्यवहार से प्रतीक का गुस्सा ठंडा पड़ गया. वह नेहा के साथ अच्छा बरताव करने लगा. उस की बात भी मानने लगा. आयुष का घर आना और नेहा से बात करना प्रतीक को कचोटता तो था, लेकिन वह विरोध नहीं करता था. आयुष से उस की दोस्ती बरकरार थी. कभीकभी आयुष के जोर देने पर दोनों की महफिल भी जमती थी.

नेहा आयुष के प्यार में इतनी अधिक दीवानी हो गई थी कि उस ने पति की हत्या करा कर आयुष के साथ जीवन बिताने का निश्चय कर लिया था. वह जब भी फोन पर बात करती, आयुष को पति की हत्या के लिए उकसाती थी. उसे अब और ज्यादा इंतजार बरदाश्त नहीं हो रहा था. अत: उस ने एक बार फिर आयुष के साथ कान से कान जोड़ कर हत्या का प्लान बनाया.

प्लान के मुताबिक नेहा ने पति से मायके जाने की इच्छा जताई तो वह राजी हो गया. 6 मार्च, 2024 को प्रतीक नेहा व बच्चों को छोडऩे अपनी निजी ब्रेजा कार से ससुराल के लिए निकला. देर शाम प्रतीक अपनी ससुराल न्यू कालोनी कुम्हार टोला लालबाग फैजाबाद पहुंचा. वहां बीवीबच्चों को छोड़ कर प्रतीक 7 मार्च को वापस कानपुर आ गया.

इस बीच नेहा फोन के जरिए आयुष के संपर्क में थी. उस ने फोन पर बता दिया था कि प्रतीक उसे 1-2 दिन में लेने फैजाबाद आएगा. वह भी उस के साथ आ जाए. इस के बाद आयुष मैडिकल स्टोर पर पहुंचा. वहां दोनों बातें करते रहे. दुकान बंद करने के बाद आयुष और प्रतीक ने साथ बैठ कर शराब पी. आयुष दवा सप्लायर था. उस के कई अन्य दोस्त भी थे. इन्हीं में से किसी ने उसे बताया था कि अगर 2 अलगअलग तरह की शराब में कोल्ड ड्रिंक मिला कर उस में 11 नींद की गोलियां मिला दी जाएं तो वह 24 घंटे बाद जहरीली शराब हो जाती है. आयुष ने इसी तरीके को अपनाया और जहरीली शराब बना कर सुरक्षित रख ली.

पत्नी ने पति को कैसे लगाया ठिकाने

8 मार्च, 2024 की शाम प्रतीक जब अपनी कार से पत्नी व बच्चों को लाने फैजाबाद के लिए निकला तो आयुष भी साथ हो लिया. प्रतीक व आयुष देर रात अयोध्या पहुंचे. यहां उन्होंने रामपथ पर होटल में एक रूम लिया, फिर वहां दोनों ने खूब शराब पी. रात भर होटल में रुकने के बाद 9 मार्च की सुबह 10 बजे प्रतीक और आयुष कुम्हार टोला स्थित नेहा के मायके पहुंचे. नेहा व उस की मां ने प्रतीक व आयुष का खूब स्वागत किया. दोपहर का भोजन करने के बाद प्रतीक व आयुष नेहा को साथ ले कर कानपुर रवाना हुए. लखनऊ पहुंचने पर नेहा ने प्रतीक से आग्रह किया कि वह लखनऊ घूमना चाहती है. आयुष ने भी नेहा की बात का समर्थन किया.

पत्नी व दोस्त की बात मान कर प्रतीक ने रात में लखनऊ में रुकने का मन बना लिया. प्रतीक ने चारबाग रेलवे स्टेशन के सामने होटल आशीर्वाद में डबलबैड वाला रूम बुक कराया और उसी में सब लोग ठहर गए. आयुष जानता था कि प्रतीक शराब का आदी है. वह ड्रिंक जरूर करेगा. इस के लिए वह तैयार भी था. उस ने एक दिन पहले ही मौत का काकटेल तैयार कर लिया था. रात 10 बजे प्रतीक ने शराब की डिमांड की तो आयुष ने साथ लाई गई शराब की बोतल निकाली फिर उस बोतल को खूब हिलाया ताकि जहर ऊपर आ जाए. इस के बाद नेहा और आयुष ने मिल कर यही शराब प्रतीक को पिला दी.

शराब पीने के एक घंटे बाद प्रतीक बेहोश हो गया और रात 12 बजे उस की मौत हो गई. इस के बाद नेहा ने रोनेधोने का नाटक शुरू किया और आयुष ने होटल मैनेजर की मदद से इमरजेंसी काल कर एंबुलैंस बुला ली. आयुष और नेहा प्रतीक को एंबुलैंस से हजरतगंज स्थित जिला अस्पताल ले गए. वहां डाक्टरों ने प्रतीक को देखते ही मृत घोषित कर दिया.

चूंकि प्रतीक की मौत संदिग्ध परिस्थितियों में हुई थी, अत: अस्पताल से सूचना थाना हजरतगंज पुलिस को दी गई. सूचना पाते ही पुलिस अस्पताल आ गई. पुलिस ने पूछताछ की तो नेहा ने बताया कि मृतक उस का पति प्रतीक शर्मा है. आयुष ने बताया कि मृतक उस का भाई है. वह कानपुर में रहता है. होटल आशीर्वाद में ठहरे थे. ड्रिंक के बाद भाई प्रतीक की तबियत बिगड़ी तो उसे जिला अस्पताल लाए. यहां डाक्टरों ने उन्हें मृत बताया. पूछताछ के बाद पुलिस ने प्रतीक के शव का पोस्टमार्टम हाउस भेज दिया. दूसरे रोज मृतक प्रतीक के शव का पोस्टमार्टम हुआ. पोस्टमार्टम के बाद शव को आयुष को सौंप दिया गया. उस के बाद नेहा और आयुष प्रतीक के शव को गुलाल घाट ले गए और वहां विद्युत शवदाह गृह में शव को सुपुर्द ए खाक कर दिया.

12 मार्च को नेहा अपने बच्चों के साथ किदवई नगर स्थित अपनी ससुराल आ गई और आयुष अपने हंसपुरम आवास विकास में घर चला गया. नेहा और बच्चों के साथ अपने बेटे प्रतीक को न देख कर पुनीत शर्मा का माथा ठनका. उन्होंने पूछा, ”बहू, प्रतीक कहां है? वह तुम्हारे साथ ही गया था?’’

”पापाजी, फैजाबाद से कानपुर लौटते समय रास्ते में कार खराब हो गई थी. वह बाराबंकी में कार ठीक करा रहे हैं. 2-3 दिन में वापस आने को कहा है.’’

बहू की बात उन्हें अटपटी तो लगी, लेकिन उन्होंने कुछ कहा नहीं. इस के बाद उन्होंने अनेक बार प्रतीक को काल की, लेकिन काल रिसीव नहीं हुई.

प्रतीक का मोबाइल नेहा के पास ही था. कई काल आई तो नेहा को लगा कि ससुरजी शक कर रहे हैं. अत: शातिर नेहा ने प्रतीक के मोबाइल से ससुर को मैसेज भेजा कि वह बाराबंकी में है और कार ठीक करा रहा है. सब ठीक है. 2 दिन में वापस आ जाएगा. चिंता न करें. ऐसा ही मैसेज नेहा ने प्रतीक के मोबाइल फोन से अपने फोन पर भी भेजा. इस मैसेज को पढ़ कर पुनीत को कुछ राहत महसूस हुई. लेकिन 2 दिन बीत जाने के बाद भी जब प्रतीक वापस घर नहीं आया और फोन से भी बात नहीं हुई तो पुनीत कुमार शर्मा के मन में बेटे को ले कर गलत विचार आने लगे. इन का उत्तर पाने के लिए उन्होंने नेहा से प्रश्नों की बौछार शुरू कर दी. इन प्रश्नों से नेहा घबरा गई और उसे पकड़े जाने का डर सताने लगा.

घबराई नेहा ने इस बाबत आयुष से बात की, फिर दोनों ने शहर छोडऩे का फैसला किया. 16 मार्च को नेहा ने ससुर पुनीत शर्मा से कहा कि बेटे को बुखार है. वह उसे दवा दिलाने डाक्टर के पास जा रही है. दवा के बहाने नेहा 5 साल की बेटी व 3 साल के बेटे को साथ ले कर घर से निकली, फिर वापस नहीं लौटी. नेहा और आयुष कानपुर से जयपुर पहुंचे, वहां पर रिंगस स्थित मयूर पैलेस में कमरा ले कर रहने लगे. पैसे खत्म होने के बाद उन्होंने वहीं किराए का कमरा ले लिया और वहीं रहने लगे. आर्थिक परेशानी के चलते नेहा ने अपने आभूषण तक बेच दिए थे.

इधर जब नेहा कई दिनों तक घर वापस नहीं आई तो पुनीत कुमार शर्मा घबरा उठेे. उन्होंने नेहा की तलाश हर संभावित स्थान पर की, लेकिन उस का कुछ भी पता न चला. बेटाबहू के लापता होने की खबर पड़ोसियों को भी हो गई थी. वे तरहतरह की चर्चाएं करने लगे थे. खासकर महिलाएं चटखारे ले कर बतियाने लगीं. बेहद परेशान पुनीत कुमार शर्मा 21 मार्च, 2024 को थाना नौबस्ता पहुंचे. उस समय वहां इंसपेक्टर जगदीश प्रसाद पांडेय मौजूद थे. पुनीत ने उन्हें सारी बात विस्तार से बताई और बेटे, बहू व उस के 2 मासूम बच्चों की गुमशुदगी दर्ज करने तथा उन्हें खोजने की गुहार लगाई.

पुनीत की बात गौर से सुनने के बाद एसएचओ जगदीश पांडेय ने पुनीत के बेटे प्रतीक, बहू नेहा व उस के मासूम बच्चों की गुमशुदगी दर्ज कर ली और जल्द ही उन्हें खोजने का आश्वासन दिया. लेकिन इसी बीच होली का त्यौहार आ गया. कानपुर में 8 दिन तक गजब का होली का हुड़दंग रहता है. अत: पुलिस त्यौहार में उलझ गई और गुमशुदगी रिपोर्ट पर पुलिस कुछ नहीं कर सकी. वैसे भी पतिपत्नी का मामला था, सो पुलिस सुस्त बनी रही. जब 15 दिन तक बेटेबहू व बच्चों का कुछ भी पता न चला तो पुनीत कुमार शर्मा ने रविंद्र कुमार (डीसीपी साउथ) को अपनी पीड़ा बताई. चूंकि मामला एक अफसर के बेटेबहू से संबंधित था. सो उन्होंने इस मामले को गंभीरता से लिया और जांच के लिए एक पुलिस टीम एडीसीपी अंकिता शर्मा की निगरानी में गठित कर दी.

इस टीम में एसएचओ (नौबस्ता) जगदीश प्रसाद पांडेय, बसंत विहार चौकी इंचार्ज छत्रपाल सिंह, एसआई राधा किशन, महिला एसआई पूजा सिंह, हैडकांस्टेबल राजवीर व हरगोविंद को शामिल किया गया.

पुलिस को इस तरह मिला आरोपियों का सुराग

गठित पुलिस टीम ने सब से पहले गुमशुदगी दर्ज कराने वाले पुनीत कुमार शर्मा से पूछताछ की और जानकारी जुटाई. उस के बाद टीम ने नेहा और उस के पति प्रतीक के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. नेहा की काल डिटेल्स से पता चला कि वह एक नंबर पर लगभग हर रोज बात करती थी. इस नंबर की टीम ने जांच कराई तो पता चला कि यह नंबर हंसपुरम आवास विकास निवासी आयुष शर्मा का है. पुलिस टीम ने पुनीत कुमार से आयुष शर्मा के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि आयुष शर्मा उन के बेटे प्रतीक का दोस्त है. वह दवा सप्लाई का काम करता है. उस का घर में भी आनाजाना था. नेहा को वह भाभी कहता था. दोनों के बीच मधुर संबंध थे.

पुलिस टीम आयुष के हंसपुरम आवास विकास स्थित घर पहुंची तो वह घर पर नहीं था. घर वालों ने बताया कि 20 दिन से वह घर नहीं आया. एसआई छत्रपाल ने उस को काल लगाई तो उस ने काल रिसीव कर ली. एसआई ने उस से प्रतीक के बारे में बात की तो उस ने बताया कि प्रतीक उस का दोस्त है. लेकिन एक माह से वह उस से नहीं मिला. शायद वह इंदौर में है. उस पर लाखों रुपया कर्ज है. इन दिनों वह बेहद परेशान है. लेकिन आयुष की बात तब गलत साबित हुई, जब पुलिस टीम ने आयुष, नेहा और प्रतीक के मोबाइल फोन सर्विलांस पर लिए. सर्विलांस के जरिए लोकेशन ट्रेस की गई तो वह जयपुर (राजस्थान) के रिंगस की मिली. इस से स्पष्ट था कि तीनों साथ थे.

पुलिस टीम ने सारी जानकारी एडीसीपी अंकिता शर्मा को दी, फिर इजाजत ले कर पुलिस टीम जयपुर रवाना हो गई. 16 अप्रैल को पुलिस टीम ने रिंगस के एक मकान पर छापा मार कर आयुष नेहा को हिरासत में लेे लिया. नेहा के बच्चे भी उस के साथ थे. मकान में वह एक कमरा किराए पर ले कर रह रहे थे. पुलिस टीम उन को ले कर कानपुर आ गई. नेहा मूलरूप से उत्तर प्रदेश के फैजाबाद (अयोध्या) शहर की रहने वाली थी. नेहा के पिता अमृतलाल शर्मा फैजाबाद के लालबाग की न्यू कालोनी कुम्हार टोला में रहते थे. परिवार में पत्नी कनक शर्मा के अलावा बेटी नेहा व बेटा आलोक थे. अमृतलाल शर्मा प्राइवेट नौकरी कर अपने परिवार का पालनपोषण करते थे.

नेहा खूबसूरत थी. कुदरत ने उसे रूपयौवन से नवाजा था. जब उस ने जवानी की डगर पर कदम रखा तो उस का अंगअंग फूलों की तरह खिल उठा. उस की झील सी गहरी आंखें किसी को भी मंत्रमुग्ध कर लेती थीं. जो उसे एक बार देख लेता, देखता ही रह जाता. नेहा फैशनपरस्त चंचल स्वभाव की थी. उस ने विद्यामंदिर डिग्री कालेज से बीएड की पढ़ाई की थी. अमृतलाल शर्मा बेटी की चंचलता और फैशनपरस्ती से परेशान रहते थे. इसलिए वह जल्द से जल्द उस का विवाह कर उसे ससुराल भेजना चाहते थे. वह उस के लिए उचित लड़का खोजने लगे. अमृतलाल शर्मा नेहा की शादी संपन्न घर में करना चाहते थे, ताकि उसे अभावों से जूझना न पड़े. वह यह भी चाहते थे कि परिवार सीमित हो. काफी भागदौड़ के बाद एक रिश्तेदार के माध्यम से उन्हें बेटी के लिए प्रतीक पसंद आ गया.

प्रतीक के पिता पुनीत कुमार शर्मा कानपुर शहर के किदवई नगर में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी मीना के अलावा इकलौता बेटा प्रतीक शर्मा था. पुनीत कुमार शर्मा भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) में अफसर थे. लेकिन वह रिटायर हो चुके थे. उन का अपना आलीशान मकान था. उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. उन का बेटा प्रतीक पढ़ालिखा था. संपन्न घर और पढ़ालिखा लड़का देख कर अमृतलाल शर्मा ने प्रतीक को अपनी बेटी नेहा के लिए पसंद कर लिया था. इस के बाद 10 फरवरी, 2017 को अमृतलाल ने नेहा का विवाह प्रतीक शर्मा के साथ धूमधाम से कर दिया.

खूबसूरत पत्नी पा कर प्रतीक जहां खुश था, वहीं अच्छा घरवर पा कर नेहा भी अपने भाग्य पर इतरा उठी थी. सुंदर बहू पा कर पुनीत कुमार व उन की पत्नी मीना भी सुखद महसूस कर रहे थे. घर में किसी चीज का अभाव नहीं था और प्रतीक भी नेहा का पूरा खयाल रखता था, सो नेहा को कोई शिकवाशिकायत नहीं थी. वह पति की सेवा तो करती ही थी, सासससुर की दिनचर्या का भी पूरा खयाल रखती थी. अत: वे दोनों खुश थे. हंसीखुशी से जीवन के 5 साल बीत गए. इन सालों में नेहा ने एक बेटी और एक बेटे को जन्म दिया. समय बीतते पारिवारिक बोझ बढ़ा तो प्रतीक को आर्थिक चिंता सताने लगी. पापा रिटायर्ड थे और वह खुद कोई ठोस कारोबार नहीं कर रहा था. प्रतीक को मैडिकल लाइन की अच्छी जानकारी थी. वह मैडिकल स्टोर खोलना चाहता था. इस बाबत उस ने अपने पापा से विचारविमर्श किया तो उन्होंने उसे इजाजत दे दी.

पति के दोस्त से नेहा के कैसे हुए संबंध

वर्ष 2023 के जनवरी माह में प्रतीक ने गौशाला स्थित वैदिक अस्पताल के पास एक मैडिकल स्टोर खोल लिया. मैडिकल स्टोर ठीक चले, इस के लिए प्रतीक ने अनेक डाक्टरों से संपर्क किया. डाक्टरों द्वारा लिखे परचे जब उस की दुकान पर आने लगे तो धीरेधीरे मैडिकल स्टोर पर दवाओं की बिक्री होने लगी. मैडिकल स्टोर पर ही एक रोज प्रतीक की मुलाकात आयुष शर्मा से हुई. आयुष शर्मा औनलाइन दवाओं की सप्लाई करता था. आयुष अपने पिता विनोद शर्मा के साथ नौबस्ता के हंसपुरम की आवास विकास कालोनी में रहता था. वह तेजतर्रार युवक था. दवा व्यापार से वह अच्छा पैसा कमाता था. साथ ही ठाटबाट से रहता था.

मैडिकल स्टोर पर आयुष का आनाजाना शुरू हुआ तो प्रतीक की उस से दोस्ती हो गई. चूंकि दोनों एक ही जातिबिरादरी के थे और हमउम्र भी थे, अत: दिन पर दिन उन का दोस्ती बढ़ती गई. दोनों खानेपीने के भी शौकीन थे. सो आए दिन उन की महफिल सजने लगी. दोनों के बीच दोस्ती गहरी हुई तो एक रोज प्रतीक आयुष को अपने घर लाया. यहां आयुष की नजर प्रतीक की खूबसूरत पत्नी नेहा पर पड़ी. नेहा पहली ही नजर में आयुष के दिल में रचबस गई. इस के बाद वह अकसर नेहा से मिलने आने लगा.

चूंकि आयुष हृष्टपुष्ट और सजीला युवक था, बातें भी लच्छेदार करता था. नेहा भी उस की बातों में रुचि लेने लगी थी. धीरेधीरे नेहा आयुष की ओर आकर्षित होने लगी. वह उस के घर आने का इंतजार भी करने लगी. मैडिकल स्टोर पर जाने के लिए प्रतीक सुबह 9 बजे घर से निकलता, फिर देर रात ही घर लौटता. नेहा की सास पूजापाठ में व्यस्त रहती थी और ससुर पुनीत बेटे का हाथ बंटाने मैडिकल स्टोर पर चले जाते थे. इस बीच नेहा घर में अकेली रहती थी. ऐसे ही समय आयुष उस से मिलने आता था. दोस्ती के नाते वह नेहा को भाभी कहता था. नेहा की खूबसूरती पर वह फिदा था और मन ही मन उस से प्यार करता था. प्रतीक की अपेक्षा आयुष स्मार्ट व बलिष्ठ था, सो नेहा भी उस की दीवानी हो गई.

एक रोज आयुष नेहा के घर आया तो वह किसी सोच में डूबी थी. उस की यह हालत देख कर आयुष बोला, ”क्या बात है भाभी, तुम इतनी उदास क्यों हो? भैया से झगड़ा हुआ है क्या?’’

”नहीं, ऐसा कुछ नहीं है. मैं तो अपनी किस्मत को कोस रही हूं, जो तुम्हारे भैया जैसा पति मिला, वह तो कमाने में इतने व्यस्त हो गए हैं कि बीवीबच्चों की तरफ ध्यान ही नहीं देते.’’

”सो तो है भाभी, प्रतीक भैया कारोबार में इतने व्यस्त रहते हैं कि उन्हें पत्नी व बच्चों का खयाल ही नहीं रहता. अरे, काम की भी एक हद होती है. दुकान का काम दुकान में और घर का काम घर में अच्छा लगता है.’’ नेहा से हमदर्दी जताते हुए आयुष बोला.

आयुष ने नेहा से सहानुभूति जताई तो वह मुसकरा कर उसे एकटक ताकने लगी. आयुष के मन में क्या है, यह तो वह पहले से जानती थी, सिर्फ संकोच ही उसे रोके था. नेहा की निगाह को देखते हुए आयुष मदहोश होने लगा. नेहा अचानक बोली, ”बैठ जाओ आयुष. खड़े क्यों हो?’’

आयुष के लिए इतना इशारा काफी था. वह सोफे पर बैठने के बजाय नेहा के बैड पर बैठ गया. उस ने अपना हाथ नेहा की जांघ पर रखा तो फिर वही हुआ, जिस की दोनों को तमन्ना थी. आयुष ने नेहा की देह का पोरपोर चूमते हुए उस के यौवन में गोता लगाने शुरू कर दिए. नेहा भी उस का भरपूर साथ दे रही थी. कुछ देर बाद पसीने में डूबे दोनों अलग हुए तो उन के चेहरों पर असीम सुख की अनुभूति थी. शारीरिक सुख की भूखी नेहा को आयुष का साथ मिला तो उसे कुछ खयाल ही नहीं रहा. वह यह भी भूल गई कि वह शादीशुदा और 2 मासूम बच्चों की मां है. उस की एक मर्यादा है. लेकिन एक बार मर्यादा टूटी तो फिर दोनों अकसर अपनी मन की करने लगे. प्रतीक मैडिकल स्टोर चला जाता तो दोपहर में किसी न किसी बहाने आयुष आ जाता था और नेहा के साथ रंगरलियां मना कर चला जाता था. प्रतीक का दोस्त होने के नाते घरवाले उस के आनेजाने पर ऐतराज नहीं करते थे.

प्रेमी के साथ कातिल क्यों बनी नेहा

आयुष से अनैतिक संबंध बनाने के बाद नेहा पति प्रतीक की उपेक्षा करने लगी. जबकि वह उस की मौजूदगी में खूब हंसीमजाक करती और बतियाती थी. घरवालों ने पहले तो इस ओर ध्यान नहीं दिया पर पड़ोसियों में कानाफूसी शुरू हुई तो बात प्रतीक के कानों तक पहुंची. प्रतीक ने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि उस की पत्नी इतना नीचे गिर जाएगी. उस ने नेहा से सवाल किया, ”यह आयुष मेरी गैरमौजूदगी में यहां क्यों आता है? तुम दोनों के बीच क्या चल रहा है?’’

नेहा डरने व लजाने के बजाय त्योरियां चढ़ा कर बोली, ”आयुष तुम्हारा दोस्त है. तुम्हीं उसे घर ले कर आए थे. में तो उसे बुलाने नहीं गई थी. अब जब वह घर आ जाता है तो मैं उसे कैसे मना करूं. तुम्हें ऐतराज है तो उसे मना कर दो. वैसे लगता है, पड़ोसियों ने तुम्हारे कान भरे हैं, इसलिए मेरे चरित्र पर अंगुली उठा रहे हो.’’

नेहा ने जिस बेबाकी से जवाब दिया था, उस से प्रतीक को लगा कि पड़ोसी बेवजह नेहा पर आरोप लगा रहे हैं. वैसे भी प्रतीक ने उसे आयुष के साथ आंखों से तो देखा नहीं था, इसलिए वह चुप हो गया. एक रोज आयुष दवाई सप्लाई करने प्रतीक के मैडिकल स्टोर पर आया तो उस ने नेहा से नजदीकियों के बारे में आयुष से पूछा. इस पर आयुष दोस्ती की दुहाई देते हुए बोला, ”तुम्हें गलतफहमी हुई है. मैं तो भाभी को मां की तरह मानता हूं.’’

आयुष के इस जवाब से प्रतीक के दिमाग में जो शक था, वह दूर हो गया. वह मान बैठा कि नेहा और आयुष के बीच ऐसावैसा कुछ भी नहीं है. उन की दोस्ती पर भी कोई फर्क नहीं पड़ा. वे साथ खातेपीते और उठतेबैठते रहे. इधर नेहा ने प्रतीक के शक करने पर सावधानी बरतनी शुरू कर दी. उस ने आयुष को दोपहर में घर आने को मना कर दिया. अब उसे जिस रोज मिलना होता, उस रोज वह घर से बाजार जाने का बहाना कर निकलती, फिर किसी होटल में रूम बुक कर वहीं फोन कर आयुष को बुला लेती. होटल रूम में घंटा 2 घंटा आयुष के साथ रंगरलियां मना कर वापस लौट आती.

लेकिन सावधानी के बावजूद एक रोज प्रतीक के एक दोस्त ने नेहा को आयुष की बाइक पर बाजार में देख लिया. उस ने इस की चुगली प्रतीक से कर दी. प्रतीक के दिमाग में तब शक का कीड़ा कुलबुलाने लगा. दिमागी उलझन के चलते प्रतीक शराब के ठेके पर गया. वहां उस ने जम कर शराब पी. फिर देर शाम लडख़ड़ाते कदमों से घर आया. उस ने नेहा से आयुष के साथ जाने को ले कर जवाब सवाल किया तो नेहा भड़क गई. प्रतीक को भी गुस्सा आ गया. उस ने नेहा की जम कर पिटाई कर दी.इस के बाद तो यह सिलसिला ही चल पड़ा. प्रतीक बातबेबात नेहा से उलझता और फिर जवाब देने पर उस की पिटाई करता. पति की शराबखोरी और मारपीट से नेहा परेशान हो उठी. उस के अंदर पति के प्रति नफरत पैदा हो गई. आयुष को भी प्रतीक द्वारा प्रेमिका नेहा की पीटना गलत लगता था. अत: वह भी प्रतीक से मन ही मन घृणा करने लगा था.

नेहा और आयुष की लगभग हर रोज फोन पर बातें होती थीं. पति के द्वारा पीटे जाने की जानकारी वह आयुष को फोन पर ही देती थी. उन्हीं दिनों एक रोज नेहा और आयुष मोतीझील उद्यान पहुंचे. मोतीझील की मखमली घास पर बैठी नेहा अपने प्रेमी से रस भरी बातें कर रही थी. बातें करतेकरते वह अचानक गंभीर हो गई. उस ने भरपूर नजरों से प्रेमी को देखा, फिर बोली, ”आयुष, सचसच बताना, क्या तुम मुझ से हकीकत में प्यार करते हो या फिर मात्र शारीरिक प्यार ही है?’’

”नेहा भाभी, मैं तुम से बेहद प्यार करता हूं. जब से तुम्हें देखा है, तब से तुम मेरे दिल में रचबस गई हो. तुम्हारे लिए मैं हमेशा बेचैन रहता हूं.’’

आयुष की बात सुन कर नेहा का चेहरा खिल उठा. वह मुसकराते हुए बोली, ”आयुष, मुझे भी तुम पसंद हो. तुम्हारा साथ पाने को मैं भी सदैव लालायित रहती हूं. लेकिन…’’

”लेकिन क्या भाभी?’’ आयुष ने अचकचा कर पूछा.

”यही कि हम प्यार भले ही एकदूसरे से करते हैं, लेकिन एक कभी नहीं हो सकते.’’

”क्यों भाभी? हम एक क्यों नहीं हो सकते?’’

”इसलिए कि एक तो मैं शादीशुदा और 2 मासूम बच्चों की मां हूं. दूसरे हम दोनों के प्यार में बाधक मेरा पति प्रतीक है.’’

”भाभी, प्यार में बाधा मुझे बरदाश्त नहीं. तुम्हारा प्यार पाने के लिए मैं हर बाधा दूर करने को तैयार हूं. फिर वह चाहे तुम्हारा पति ही क्यों न हो. लेकिन बाधा दूर करने में तुम्हें मेरा साथ देना होगा.’’

”ठीक है आयुष, तुम्हारा साथ पाने को मैं अपना सिंदूर मिटाने को राजी हूं.’’

इस तरह योजना बना कर उन दोनों ने प्रतीक को बड़ी आसानी से रास्ते से हटा दिया था. उन दोनों से पूछताछ के बाद प्रतीक की लव क्राइम की जो कहानी निकल कर सामने आई, वह इस प्रकार थी—

17 अप्रैल, 2024 को एडीसीपी अंकिता शर्मा ने नेहा और आयुष से पूछताछ की तो उन दोनों ने प्रतीक की हत्या करने व शव को विद्युत शवदाह गृह में खाक करने की जानकारी दी. आयुष शर्मा ने बताया कि प्रतीक उस का दोस्त था. घर आतेजाते उस के नाजायज संबंध दोस्त की पत्नी नेहा से हो गए. कुछ समय बाद प्रतीक पत्नी पर शक करने लगा और उसे मारनेपीटने लगा. प्रतीक मिलन में बाधक बनने लगा तो हम दोनों ने उस की हत्या की योजना बनाई. योजना के तहत चारबाग (लखनऊ) के आशीर्वाद होटल में उसे जहरीली शराब पिलाई, जिस से उस की मौत हो गई. उस के बाद उसे जिला अस्पताल ले गए, जहां डाक्टरों ने मौत की पुष्टि की. पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के बाद उसे सौंपा. बाद में उन दोनों ने दाह संस्कार कर दिया.

चूंकि नेहा व आयुष ने प्रतीक की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया था. अत: थाना नौबस्ता पुलिस ने मृतक के पिता पुनीत कुमार शर्मा की तहरीर पर भादंवि की धारा 328/302/120बी के तहत नेहा व आयुष के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया और दोनों को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. हजरतगंज पुलिस ने इस मामले में कोई काररवाई इसलिए नहीं की थी, क्योंकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण स्पष्ट नहीं था. शक के आधार पर जांच के लिए विसरा सुरक्षित कर लिया था.

18 अप्रैल, 2024 को थाना नौबस्ता पुलिस ने आरोपी नेहा तथा आयुष शर्मा को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. नेहा के दोनों बच्चे अपने दादादादी की अभिरक्षा में पल रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

 

Crime Story : नर्स के चक्कर में फिजियोथेरैपिस्ट ने किया पत्नी और दो बेटियों की हत्या

32 वर्षीय फिजियोथेरैपिस्ट बोदो प्रवीण ने पत्नी कुमारी और 2 बेटियों की हत्या कर इसे एक्सीडेंट का रूप देने की भरसक कोशिश की थी, लेकिन कार की तकनीकी जांच में सारा मामला साफ हो गया. आखिर प्रवीण ने पत्नी और 2 बेटियों का मर्डर क्यों किया? पढ़ें, फैमिली क्राइम की यह खास कहानी.

पत्नी कुमारी और दोनों बेटियों को ले कर लांग ड्राइव पर निकला प्रवीण कुछ दूर पर ही पहुंचा था कि पत्नी कुमारी ने खुद को कुछ असहज महसूस करते हुए प्रवीण से कहा, ”मुझे काफी अनइजीनेस लग रहा है और पेट दर्द हो रहा है.’’

तब प्रवीण के तेलंगाना के बल्लापली गांव के पास कार रोक कर वहां के एक मैडिकल स्टोर से दवा खरीदी. प्रवीण एक फिजियोथेरैपिस्ट था, इसलिए उस ने कुमारी को कार की पीछे की सीट पर बैठा कर इंजेक्शन लगा दिया. दोनों बेटियों को अपने पास आगे की सीट पर बैठा कर वह फिर गांव के लिए चल पड़ा. उस की कार मंचुकोडा गांव के पास पहुंची तो उस का भयानक एक्सीडेंट हो गया. प्रवीण की कार अधिक स्पीड में सड़क किनारे के एक पेड़ से टकरा गई थी. किसी चीज के बहुत तेज टकराने की आवाज सुन कर आसपास के लोग वहां दौड़े आए. कार का आगे का हिस्सा पिचक गया था, इसलिए लोगों ने मदद की तो प्रवीण बाहर आया. उस का हाथ छिल गया था.

गांव वालों में से किसी ने इस दुर्घटना की जानकारी देने के लिए पुलिस को फोन कर दिया. आगे की सीट पर बैठी 4 साल की बेटी कृषिका और ढाई साल की तनिष्का अब जीवित नहीं हैं, इस बात की जानकारी गांव वालों को पहली नजर में ही हो गई थी. पीछे की सीट से 26 साल की कुमारी को लोग उठा कर बाहर लाए तो लोगों को लगा कि इस की भी मौत हो चुकी है. फिर भी गांव वाले किसी दूसरे की कार से सभी को नजदीक के अस्पताल ले गए. 2 युवक प्रवीण को आटो में बैठा कर नजदीक के एक डाक्टर के यहां ले गए और हाथ पर पट्टी बंधवाई. अस्पताल में डाक्टर ने कुमारी की जांच कर के उसे मृत घोषित कर दिया था.

प्रवीण ने अपने घर वालों तथा ससुराल वालों को फोन कर के घटना के बारे बताया तो वे लोग भी वहां दौड़े आए. सूचना पा कर थाना रघुनाथपाल के इंसपेक्टर कोंडल राव भी अपनी पुलिस टीम के साथ वहां आ गए थे. पूछताछ में प्रवीण ने बताया, ”सर, मेरी कार की स्पीड थोड़ी ज्यादा थी और सामने अचानक एक बछड़ा आ गया तो उसे बचाने के लिए कार की स्टीयरिंग थोड़ी घुमाई तो वह सामने पेड़ से जा कर टकरा गई.’’

प्रवीण मासूम बेटियों और पत्नी की लाश को देखदेख कर रो रहा था. पुलिस ने एक्सीडेंट का मुकदमा दर्ज कर के तीनों लाशों का पंचनामा किया और उन्हें पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. कुमारी के मम्मीपापा की हालत खराब थी. जवान बेटी और 2 मासूम नातिनों की मौत से वे टूट गए थे. इंसपेक्टर कोंडल राव दुर्घटनास्थल और दुर्घटनाग्रस्त कार का निरीक्षण कर रहे थे, तभी पतिपत्नी ने उन के पास जा कर हाथ जोड़ कर कहा, ”साहब, यह एक्सीडेंट नहीं है. हमारे दामाद प्रवीण ने इन तीनों की हत्या की है. इसलिए साहब जांच बहुत संभाल कर कीजिएगा. इस नराधम को छोडि़एगा मत.’’

एक्सीडेंट में 3 जिंदगियां खत्म हो गई थीं. मामला शंकास्पद लग रहा था, इसलिए थोड़ी दूर जा कर इंसपेक्टर ने क्राइम ब्रांच के एसीपी रमण मूर्ति को घटना की जानकारी दी. तब रमण मूर्ति ने कहा, ”कार जैसी है, उसे वैसी ही रहने देना. मैं कल सुबह अपनी टीम के साथ वहां आता हूं.’’

पोस्टमार्टम के बाद कुमारी, कृषिका और तनिष्का की लाश को कुमारी के पापा ने अपने कब्जे में लिया और उन का अंतिम संस्कार अपने गांव में करने के लिए कहा. उन लोगों के जाने के बाद प्रवीण भी अपने मम्मीपापा को साथ ले कर वहां गया और अंतिम संस्कार में हाजिर रहा. उस समय भी कुमारी के मम्मीपापा प्रवीण को शक की नजरों से देख रहे थे. एक साथ 3-3 मौतों से पूरा गांव दुखी था. अगले दिन सुबह एसीपी रमण मूर्ति अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचे तो इंसपेक्टर कोंडल राव ने फोन कर के प्रवीण को वहां बुला लिया था.

रमण मूर्ति ने प्रवीण से प्राथमिक पूछताछ करने के बाद उस के गांव और हैदराबाद के अस्पताल, घर का पता, कौंटेक्ट नंबर और ड्राइविंग लाइसेंस नंबर आदि सारी जानकारी ले ली थी. प्रवीण ने उन से विनती करते हुए कहा, ”सर, मैं डाक्टर हूं और किसी तरह छुट्टी ले कर यहां आया था. उसी में यह एक्सीडेंट हो गया. अगर इस एक्सीडेंट के मामले में मेरी जरूरत न हो तो आप मुझे हैदराबाद जाने की आज्ञा दीजिए. आज रात या कल सुबह मेरा हैदराबाद पहुंचना जरूरी है.’’

प्रवीण की बात सुन कर एसीपी ने पहले प्रवीण को फिर इंसपेक्टर कोंडल राव की ओर देखा. दोनों अधिकारियों में आंखों ही आंखों में इशारा हुआ. उस के बाद एसीपी रमण मूर्ति ने कहा, ”ठीक है, आप जाइए. जरूरत पड़ेगी तो आप को बुला लिया जाएगा.’’ अधिकारियों का आभार व्यक्त कर के प्रवीण हैदराबाद चला गया.

ऐसे फंसा डा. प्रवीण पुलिस के शिकंजे में

एक्सीडेंट 25 मई, 2024 को हुआ था. प्रवीण दूसरे दिन रात को हैदराबाद चला गया था. इस के बाद पुलिस ने कभी उसे फोन नहीं किया. ठीक 48 दिन बाद 14 जुलाई, 2024 की दोपहर को थाना रघुनाथपाल की पुलिस हैदराबाद पहुंची और अत्तापुर इलाके से प्रवीण को हिरासत में ले कर थाना रघुनाथपाल लौट आई. 17 जुलाई, 2024 को प्रैस कौन्फ्रैंस आयोजित कर के एसीपी रमण मूर्ति ने पूरे केस का खुलासा कर दिया. पुलिस अधिकारियों को भी कार की हालत, तीनों लाशों की दशा और प्रवीण को आई मामूली चोट देख कर पहली ही नजर में शक हो गया था कि यह मामला एक्सीडेंट का नहीं, बल्कि यह बहुत सोचसमझ कर की गई 3-3 हत्याओं का है.

पुलिस जानती थी कि प्रवीण को अपनी चालाकी पर पूरा विश्वास है, इसलिए वह कहीं भागने की कोशिश नहीं करेगा. सीधीसादी पत्नी और मासूम बेटियों की हत्या कर के वह दूसरे ही दिन हैदराबाद जा कर प्रेमिका सोनी फ्रांसिस के साथ हंसीखुशी से रहने लगा था. पुलिस की नजर में यह बात भी थी. लेकिन उसे सजा दिलाने के लिए पुलिस को पक्के सबूत की जरूरत थी.

मजबूत सबूत हाथ लगते ही पुलिस ने आरोपी नंबर एक प्रवीण को तो पकड़ लिया, लेकिन आरोपी नंबर 2 उस की प्रेमिका सोनी भाग गई थी. प्रवीण से की गई पूछताछ के बाद इस तिहरे मर्डर केस की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

तेलंगाना के जिला खम्मम के अंतर्गत आने वाले बावाजी थंडा के (तेलुगु में थंडा यानी बिखरे घरों वाला एकदम छोटा गांव) रहने वाले बोदो प्रवीण ने 12वीं में खूब मेहनत कर के पढ़ाई की. वह पढ़ाई में ठीकठाक था, इसलिए उस की इच्छा डाक्टर बनने की थी. उस ने मेहनत तो खूब की, पर थोड़ा पीछे रह गया, जिस से मैडिकल के बजाय उस का दाखिला हैदराबाद के कालेज में फिजियोथेरैपिस्ट विभाग में हुआ. पढ़ाई पूरी कर के उस ने डिग्री प्राप्त कर ली. उस की इच्छा अपना फिजियोथेरैपी सेंटर खोलने की थी, लेकिन इस के लिए अनुभव के अलावा पैसे की भी जरूरत थी. ये दोनों चीजें नौकरी कर के ही मिल सकती थीं. इस के लिए उस ने हैदराबाद के अत्तापुर के एक प्राइवेट जर्मनटेन अस्पताल में नौकरी कर ली.

हर मध्यमवर्गीय परिवार में मांबाप की मानसिकता होती है कि बेटा कमाने लगे तो फटाफट उस का विवाह कर दिया जाए. प्रवीण की नौकरी लगते ही उस के मम्मीपापा ने उस के लिए लड़की की तलाश शुरू कर दी. लड़का डाक्टर था, इसलिए खम्मम जिले के ही एक गांव के अच्छे परिवार की खूबसूरत लड़की उन्हें मिल गई. उस संस्कारी लड़की का नाम कुमारी था. कुमारी और प्रवीण ने एकदूसरे को पसंद कर लिया तो साल 2019 में दोनों का धूमधाम से विवाह हो गया. विवाह के बाद कुमारी पति के साथ हैदराबाद आ गई और अपना घरसंसार शुरू कर दिया. दोनों की जिंदगी राजीखुशी से गुजर रही थी. साल 2020 में कुमारी ने एक बेटी को जन्म दिया. गुडिय़ा जैसी उस बिटिया का नाम रखा कृषिका. अब तक प्रवीण का वेतन भी बढ़ गया था. साल 2022 में उस की दुनिया में दूसरी बेटी का आगमन हुआ, जिस का नाम तनिष्का रखा.

कुमारी दोनों बेटियों की देखभाल में व्यस्त रहने लगी थी. उसी बीच प्रवीण के अस्पताल में एक खूबसूरत नर्स आई. केरल से आई उस 22 साल की नर्स का नाम सोनी फ्रांसिस था. प्रवीण के ही विभाग में उसे नर्स की जिम्मेदारी सौंपी गई. इसलिए धीरेधीरे दोनों के बीच प्रेमसंबंध बन गए. शुरुआत में उन की हंसीमजाक के बीच दोस्ती हुई. यह दोस्ती कब प्यार में बदल गई, दोनों को ही पता नहीं चला. केरल से हैदराबाद अकेली आई सोनी को एक मजबूत सहारे की जरूरत थी, जिस के लिए उस ने प्रवीण को पसंद कर लिया. हैदराबाद में अत्तापुर में वह एक बैडरूम के फ्लैट में किराए पर रहती थी. कुमारी को तो घर में दोनों बेटियों की देखभाल से ही फुरसत नहीं मिलती थी. दूसरी ओर प्रवीण उस केरल की नर्स के प्रेम में पड़ चुका था. दोनों के संबंध इस हद तक आगे निकल चुके थे कि नाइट शिफ्ट का बहाना कर के प्रवीण पूरी रात प्रेमिका सोनी के साथ उस के फ्लैट में रहता था.

पति का पैर गड्ढे में चला गया है, इस बात की जानकारी आगेपीछे हर पत्नी को हो ही जाती है. सोनी के साथ के प्रवीण के प्यार की भी जानकारी कुमारी को हो गई. कुमारी प्रवीण के सामने गिड़गिड़ाई कि बेटियों के भविष्य के बारे में सोच कर वह यह सब बंद कर दे. उसे यह सब शोभा नहीं देता. कुमारी पति के सामने हाथ जोड़ती रही, गिड़गिड़ाती रही, झगड़ती रही, पर सोनी के प्यार में गले तक डूबे प्रवीण ने पत्नी और बेटियों की जरा भी परवाह नहीं की. अब सोनी का सान्निध्य ही उसे स्वर्ग लगता था. रोधो कर लाचार कुमारी ने अंत में अपने मम्मीपापा और सासससुर से प्रवीण की शिकायत की. कुमारी और प्रवीण के मम्मीपापा ने मिल कर बात की, पर कोई समाधान नहीं हो सका. कुमारी के मांबाप की शिकायत पर बिरादरी की पंचायत बैठी और उस में भी इस बात की चर्चा हुई.

तब प्रवीण के पापा ने कहा, ”अगर प्रवीण नहीं सुधरता तो मैं हैदराबाद की नौकरी छुड़वा कर उसे हमेशा के लिए गांव बुलवा लूंगा. यहां हमारे घर में रोटी की कमी नहीं है. तेल लेने गई उस की डाक्टरी की नौकरी.’’

यह सारी जानकारी होने के बाद भी पागल प्रेमी की तरह प्रवीण को किसी की परवाह नहीं थी. अंत में प्रवीण के मम्मीपापा ने उसे गांव आने के लिए कह दिया. 17 मई, 2024 को प्रवीण कुमारी और दोनों बेटियों को ले कर बावाजी थंडा आ गया. खूब गुस्सा हो कर पापा ने उसे धमकाया तो अपनी गलती स्वीकार करते हुए प्रवीण ने कहा, ”अब मैं उस अस्पताल को छोड़ कर किसी दूसरे अस्पताल में नौकरी कर लूंगा. अभी तो मैं 15 दिन की छुट्टी ले कर आया हूं. आप सभी के साथ ही रहूंगा.’’

इस तरह पिता को समझा कर प्रवीण ने मामला शांत कर दिया. कुमारी और दोनों बेटियों को ले कर प्रवीण बावाजी थंडा के आसपास घूमने जाता रहा. गांव आने के बाद प्रवीण के बदले व्यवहार से कुमारी की उम्मीद जागी थी कि अब सौतन सोनी से छुटकारा मिल जाएगा. उधर सोनी को पता था कि प्रवीण शादीशुदा है, फिर भी वह उस पर शादी के लिए दबाव डाल रही थी. वह प्रवीण से कह रही थी कि वह अपनी पत्नी से अलग हो जाए. प्रवीण ने उसे वास्तविकता समझाई कि पत्नी से अलग होना यानी उसे छोडऩा इतना आसान नहीं है. इस में सालों लग जाएंगे. फिर इस में तीनों को भरणपोषण के लिए हर महीने पैसे देने होंगे, जिस के बाद वह खाली हो जाएगा.

गले की फांस क्यों बनी प्रेमिका

सोनी के बगैर प्रवीण को जीना असंभव लग रहा था. दूसरी ओर सोनी शादी के लिए इस तरह जिद पकड़े थी कि प्रवीण परेशान था. इसी के साथ सोनी ने यह भी कह दिया था कि वह उस की बेटियों की जिम्मेदारी कभी नहीं लेगी. सोनी से संबंध तोडऩे के लिए घर में उस की पत्नी कुमारी प्रवीण से झगड़ा करती थी. उस ने घर वालों से भी प्रवीण की शिकायत कर दी थी. जब सोनी का दबाव ज्यादा बढ़ा तो प्रवीण ने कहा, ”तुम से ब्याह करने के लिए उन तीनों को खत्म करने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है.’’ तब सोनी ने खुश हो कर कहा, ”फिर देर किस बात की. फटाफट यह काम कर डालो.’’

कार में लंबी यात्रा के दौरान कुमारी हमेशा अनइजीनेस की शिकायत करती थी. उसी के आधार पर प्रवीण ने उसे खत्म करने की योजना बना डाली. गूगल पर सर्च कर के प्रवीण ने पता किया कि एक हाथी को भी मार सके ऐसे एनेस्थेसिया की डोज कितनी है? यह जानने के बाद इंजेक्शन खरीद कर उस ने कार में रख लिया. सभी को गांव ले जाने के बाद वहां से खम्मम जाने का प्लान बनाया.

योजना के अनुसार, 25 मई, 2024 की सुबह प्रवीण ने कुमारी से कहा, ”आज एक काम से मुझे खम्मम जाना है. अगर लांग ड्राइव पर चलने की इच्छा हो तो तुम भी चल सकती हो?’’

दोनों बेटियों को साथ ले कर कुमारी प्रवीण के साथ जाने के लिए तैयार हो गई. खम्मम पहुंच कर प्रवीण ने अपना काम निपटाया. उस के बाद घर आने के लिए वह कार ले कर निकल पड़ा. वहां लौटते समय रास्ते में कुमारी ने तबीयत खराब होने की बात कही तो तुरंत कार रोक कर दवा की दुकान पर जाने का नाटक कर के प्रवीण ने कुमारी को पीछे की सीट पर बैठा कर कार में रखा एनेस्थेसिया का इंजेक्शन उस के बाएं हाथ पर लगा दिया. एनेस्थेसिया की ओवरडोज से 5 मिनट में ही कुमारी की सांसें रुक गईं. उस के बाद बारीबारी से दोनों मासूम बेटियों की नाक और मुंह दबा कर उन्हें खत्म कर दिया. इस के बाद इसे एक्सीडेंट का रूप देने के लिए कार सड़क के किनारे के पेड़ से टकरा दी.

पुलिस की टेक्निकल टीम ने प्रवीण के मोबाइल से उस की गूगल की सर्च की हिस्ट्री खोज निकाली थी. कार की तलाशी के दौरान उस में से इंजेक्शन की सीरींज मिली थी, जिसे फोरैंसिक लैब भेज दिया गया था, जहां से उस कातिल जहर की रिपोर्ट आ गई थी. ओटोप्सी रिपोर्ट ने भी एनेस्थेसिया के ओवरडोज से कुमारी की मौत और दोनों बच्चियों की मौत सांस रुकने से हुई थी.

पुलिस ने तमाम सबूत इकट्ठा कर के एक्सीडेंट के 48 दिन बाद प्रवीण को गिरफ्तार किया था. पुलिस ने बोदो प्रवीण को तो अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया, जबकि प्रेमिका सोनी फ्रांसिस की तलाश कर रही थी. इस तरह अवैध संबंधों की आग में एक सुखी परिवार स्वाहा हो गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Murder Story : भतीजे के इश्क में मारी गई पति के हाथों फरहीन

निकाह के 3 साल बाद जब 28 वर्षीय फरहीन बानो को बच्चा नहीं हुआ तो वह पति गुलफाम की मर्दानगी पर ही सवाल उठाने लगी. इसी दौरान पति से बगावत कर अपनी उम्र से छोटे भतीजे आमिर से संबंध बना लिए. उस से उसे बच्चा तो नहीं मिला, लेकिन उस के जीवन में ऐसा कुछ हो गया कि…

गुलफाम ने बीवी को बेवफाई का सबक सिखाने के लिए पूरी योजना बनाई. उस ने अपनी खतरनाक योजना में घर के किसी सदस्य को शामिल नहीं किया. योजना के तहत वह इटावा के कटरा बाजार गया और 200 रुपए में एक तेज धार वाला बांका खरीद लाया और झोले में रख दिया. 3 सितंबर, 2024 की सुबह 10 बजे गुलफाम झोले में छिपा कर रखा गया बांका ले कर घर से निकला, फिर उझैदी स्थित शराब ठेके पर पहुंचा. वहां उस ने शराब पी, फिर कुछ देर तक बकझक करता रहा. 

लगभग 12 बजे गुलफाम नशे की हालत में अपनी ससुराल नई बस्ती कटरा शमशेर खां, इटावा पहुंचा. उस समय उस की पत्नी फरहीन बानो अपनी बहन रूबी की मासूम बेटी जोया से बातचीत कर रही थी. उस के मां व भाई काम पर गए थे और बहन रूबी पड़ोस में किसी काम से गई थी. शौहर गुलफाम को नशे की हालत में देख कर फरहीन सिहर उठी. वह वहां से उठ कर कमरे में चली गई तो पीछे से गुलफाम भी कमरे में पहुंच गया और उस ने कमरा अंदर से बंद कर लिया. फिर वह बोला, ”फरहीन, मैं तुम्हें आखिरी बार मनाने आया हूं. बोलो, मेरे साथ घर चलोगी या नहीं.’’
मैं एक बार नहीं सौ बार कह चुकी हूं कि मैं तुम्हारे साथ नही जाऊंगी. पता नही क्यों बेशर्म बन कर यहां कुत्ते की तरह पूंछ हिलाते हुए चले आते हो?’’ फरहीन गुस्से से बोली. 

यह तुम्हारा आखिरी फैसला है?’’ गुलफाम ने पूछा.

हां, यह मेरा आखिरी फैसला है.’’ फरहीन ने जवाब दिया. 

तो अब मेरा फैसला भी सुन ले. यदि तू मेरी बीवी बन कर नहीं रह सकती तो मैं तुझे किसी और की बीवी भी नही बनने दूंगा. तुझ जैसी बेवफा औरत को आज मैं सबक सिखा कर ही दम लूंगा.’’ कह कर गुलफाम ने झोले से बांका निकाल लिया. उस का गुस्सा सातवें आसमान पर था. 

शौहर के रूप में साक्षात मौत देख कर फरहीन बचाओ…बचाओचीखने लगी. उस की चीख सुन कर उस की बहन रूबी आ गई. अब तक गुलफाम हमलावर हो चुका था. उस ने बांके से कई वार फरहीन के सिर, गरदन व शरीर के अन्य हिस्सों पर किए. बचाव में फरहीन के दोनों हाथों की अंगुलियां भी कट गई थीं और वह खून से लथपथ हो कर जमीन पर गिर गई थी. बहन रूबी ने यह सब नजारा खिड़की से देखा था. उस ने सोचा गुलफाम भाग न जाए, इसलिए उस ने कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया और फिर मां, भाइयों व पुलिस को सूचना दी. 

सूचना पाते ही सदर कोतवाल विक्रम सिंह कुछ पुलिसकर्मियों को ले कर मौके पर पहुंच गए. हमलावर गुलफाम कमरे में बंद था. पुलिस ने उसे बाहर निकाला. कोतवाल विक्रम सिंह ने उसे आला कत्ल बांका सहित हिरासत में ले लिया. फोरैंसिक टीम को भी मौके पर बुला लिया और सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को भी दे दी. फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल से साक्ष्य एकत्र किए. कुछ देर में एसएसपी (इटावा) संजय कुमार वर्मा, एएसपी अमरनाथ त्रिपाठी और डीएसपी अमित कुमार सिंह भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. कमरे के अंदर एक युवती मरणासन्न स्थिति में पड़ी थी. वहां मौजूद तहमीदा ने बताया कि वह उस की बेटी फरहीन बानो है और हमलावर गुलफाम उस का दामाद है. फरहीन के शरीर पर आधा दरजन घाव थे. पुलिस अधिकारियों ने फरहीन बानो को तत्काल जिला अस्पताल पहुंचाया, जहां इलाज के दौरान उस की मौत हो गई. एसएसपी संजय कुमार वर्मा ने घटना की प्रत्यक्षदर्शी गवाह मृतका की बहन रूबी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह पड़ोस में गई थी. बहन के चीखने की आवाज सुन कर वह घर आई तो कमरे में गुलफाम उस की बहन पर हमलावर था. वह बांके से प्रहार कर रहा था. गुलफाम बहन की हत्या कर भाग न जाए, इसलिए उस ने बाहर से कमरे को बंद कर दिया.

पुलिस आरोपी गुलफाम को थाने ले आई. उस से वारदात के बारे में पूछताछ की तो उस ने पत्नी फरहीन बानो की हत्या की जो कहानी बताई, वह अवैध संबंधों की चाशनी में सराबोर निकली

तहमीदा पर टूट पड़ा दुखों का पहाड़

उत्तर प्रदेश के जिला औरैया का एक कस्बा है- दिबियापुर. रेलवे में यह फफूंद स्टेशन के नाम से जाना जाता है. इसी कस्बे के नहर पुल के समीप लाल मोहम्मद वारिसी सपरिवार रहते थे. उस के परिवार में बीवी तहमीदा बानो के अलावा 4 बेटे नासिर, वाजिद, वारिस, साबिर तथा 4 बेटियां वहीदा, फरहीन, रूबी व शमीम थीं. लाल मोहम्मद कबाड़ का धंधा करते थे. इसी से ही वह अपने भारीभरकम परिवार का पालनपोषण करता था.

लाल मोहम्मद के बच्चे जब बड़े हुए तो वे भी उस के धंधे में हाथ बंटाने लगे. इस से उन की आमदनी बढ़ी और परिवार खुशहाल जीवन व्यतीत करने लगा. वारिसी परिवार के ही कुछ लोग उन से जलते थे, जिस से वे लोग अकसर बातबेबात झगड़ते रहते थे. बेटियों को भी तंग करते थे. आखिर परेशान हो कर लाल मोहम्मद के परिवार ने वहां से हट जाने का निश्चय कर लिया. वर्ष 2017 में उन्होंने दिबियापुर कस्बा छोड़ दिया और इटावा शहर आ गए. यहां उन्होंने सदर कोतवाली क्षेत्र के नई बस्ती कटरा शमशेर खां मोहल्ले में एक मकान किराए पर ले लिया और सपरिवार रहने लगे. 

अब तक उन के बच्चे जवान हो चुके थे. इसलिए वह अपना कारोबार करने लगे थे. 2 बेटे नासिर व वाजिद अलग हो गए थे. वे अपना घर बसा कर अलग रहने लगे. लाल मोहम्मद बड़ी बेटी वहीदा का भी निकाह कर चुके थे. वहीदा से छोटी फरहीन बानो थी. वह अपनी अन्य बहनों से ज्यादा खूबसूरत तथा निपुण थी. वह ज्यादा पढ़ीलिखी तो नहीं थी, लेकिन उस की बातों से लोग यही समझते थे कि वह अच्छीखासी पढ़ीलिखी है. हालांकि 5 जमात पास करने के बाद फरहीन बानो आगे पढऩा चाहती थी, लेकिन अम्मी तहमीदा ने साफ मना कर दिया था. उस के बाद उस ने भी चुप्पी साध ली और अम्मी के घरेलू काम में हाथ बंटाने लगी थी. 

फरहीन बानो शरीर से स्वस्थ व चेहरेमोहरे से खूबसूरत दिखती थी. वह जब भी घर से हाटबाजार के लिए निकलती, हमउम्र लड़के उसे देख कर फिकरे कसते, लेकिन फरहीन बानो उन आवारा लड़कों को लिफ्ट नहीं देती थी. लाल मोहम्मद व उस की बीवी तहमीदा वारिसी को भी अहसास हो गया था कि उन की बेटी जवान हो गई है, अत: वह उस के योग्य लड़के की तलाश में जुट गए. लेकिन इसी बीच लाल मोहम्मद गंभीर बीमार पड़ गए. उसी दौरान उन की मृत्यु हो गई.

शौहर की मौत के बाद परिवार की जिम्मेदारी तहमीदा वारिसी पर आ गई. वह अपने बेटे वारिस व साबिर की मदद से परिवार को संभालने लगी. तहमीदा वारिसी को जवान बेटी फरहीन बानो के निकाह की चिंता सता रही थी. वह इज्जत के साथ उस के हाथ पीले कर उसे ससुराल भेज देना चाहती थी. इस के लिए वह जीजान से जुटी थी. एक रोज एक करीबी रिश्तेदार ने तहमीदा वारिसी को गुलफाम के बारे में बताया. गुलफाम को तहमीदा ने देखा तो उसे अपनी बेटी फरहीन बानो के लिए पसंद कर लिया. गुलफाम उत्तर प्रदेश के ही शहर इटावा की सदर कोतवाली के मोहल्ला उझैदी में रहता था. गल्ला मंडी में वह सब्जी का ठेला लगाता था. फेरी लगा कर भी सब्जी बेचता था. उस के मांबाप का इंतकाल हो चुका था. बस भाई अनवर था, जो परिवार के साथ अलग मकान में रहता था. 

न सासससुर के तानों का झंझट था और न ही जेठजेठानी के झगड़ों का. गुलफाम भी स्वस्थ और कमाऊ था. तहमीदा वारिसी ने सोचा कि ससुराल जाते ही उस की बेटी घर की मालकिन बन जाएगी. अत: अगस्त 2018 की 13 तारीख को तहमीदा वारिसी ने फरहीन बानो का निकाह गुलफाम के साथ कर दिया.
फरहीन बानो निकाह के बाद गुलफाम की जीनत बन कर अपनी ससुराल आ गई. ससुराल आते ही फरहीन ने घर संभाल लिया. गुलफाम हर तरह से बीवी का खयाल रखता था. वह जिस चीज की डिमांड करती, गुलफाम उसे पूरा करता था. वह उसे कभीकभी सैरसपाटे के लिए भी ले जाता. 

गुलफाम मेहनती इंसान था. वह सुबह उठ कर सब्जीमंडी जाता और 8 बजे के आसपास सब्जी खरीद कर वापस आता. फिर मियांबीवी मिल कर ठेले पर सब्जी सजाते. उस के बाद नाश्ता कर गुलफाम सब्जी का ठेला ले कर फेरी पर निकल जाता. शौहर के जाने के बाद फरहीन बानो घर का काम निपटाती, फिर खाना पका कर शौहर के लौटने का इंतजार करने लगती. गुलफाम लगभग 2 बजे वापस लौटता फिर दोनों साथ बैठ कर खाना खाते और खूब बातें करते. 

फरहीन बानो पति से क्यों करने लगी नफरत

इस तरह हंसीखुशी व मौजमस्ती से 3 साल बीत गए. लेकिन इन सालों में फरहीन बानो को कोई औलाद नहीं हुई. औलाद का सुख पाना हर औरत के लिए सौभाग्य की बात होती है. लेकिन फरहीन बानो वंचित थी. उस के मन में सवाल उठने लगे कि आखिर वह इस सुख से क्यों वंचित है. वह यह भी सोचने लगी कि जरूर उस के शौहर में ही कोई कमी है. फरहीन बानो अब उदास रहने लगी. उस का स्वभाव भी चिड़चिड़ा हो गया. वह शौहर से लडऩेझगडऩे भी लगी.

पत्नी को उदास व स्वभाव में परिवर्तन देख कर गुलफाम सोच में पड़ गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि फरहीन उदास क्यों रहती है और क्यों बातबात पर झगड़ती है. आखिर जब उस से नहीं रहा गया तो उस ने पूछा, ”फरहीन, मैं तुम्हारा हर तरह से खयाल रखता हूं, फिर तुम मुझ से बेरुखी से पेश क्यों आती हो?’’

फरहीन बानो शौहर को घूरते हुए बोली, ”सुखसाधन से कोई औरत संतुष्ट नहीं होती, उसे तो संतुष्टि तब मिलती है जब उस की गोद भरती है. हमारी शादी को 3 साल से ज्यादा का समय हो गया है, लेकिन हमारी अभी भी कोई औलाद नहीं है. घरपरिवार की औरतें ताने कसती हैं. वे मुझे बांझ समझने लगी हैं.’’

बीवी की बात सुन कर गुलफाम भी भड़क उठा, ”इस में मेरा क्या दोष है. खुदा जब चाहेगा, तभी औलाद होगी. मुझे विश्वास है कि वह जरूर हम पर रहम करेगा. तुम परेशान न हो. रही बात औरतों के तानों की तो तुम उस पर ध्यान मत दिया करो.’’

फरहीन गुस्से से बोली, ”खुदा को बीच में मत लाओ. सारा दोष तुम्हारा ही है. तुम मर्द होते तो एक नहीं, 2 औलाद हमारी गोद में अब तक होतीं. तुम अपना इलाज कराओ. दुआ ताबीज लो. वरना हमारी तुम्हारे साथ नहीं बनेगी.’’

फरहीन ने मर्दानगी पर चोट की तो गुलफाम भी भड़क उठा, ”मुझ में कोई कमी नही है. जो भी कमी है, वह सब तुझ में है. इसलिए न मैं इलाज कराऊंगा और न ही किसी फकीर के पास दुुआताबीज के लिए जाऊंगा. तुझे ही अपना इलाज कराना होगा.’’

इस के बाद तो आए दिन फरहीन और गुलफाम के बीच औलाद न होने को ले कर तकरार होने लगी. कभीकभी तकरार इतनी अधिक बढ़ जाती कि दोनों के बीच हाथापाई हो जाती. गुस्से में गुलफाम शराब के ठेके पर जाता और जम कर शराब पी कर लौटता. धीरेधीरे गुलफाम की शराब पीने की लत पड़ गई. वह पक्का शराबी बन गया. अभी तक फरहीन और गुलफाम के बीच औलाद को ले कर ही झगड़ा होता था, लेकिन अब शराब पीने को ले कर भी झगड़ा होने लगा. कभीकभी झगड़ा इतना बढ़ जाता कि गुलफाम फरहीन को जानवरों की तरह पीट देता. फरहीन समझ गई कि वह शराबी व नाकाबिल शौहर से कभी औलाद का सुख नहीं पाएगी. अत: वह शौहर से नफरत करने लगी. 

इन्हीं दिनों फरहीन बानो के घर आमिर का आनाजाना शुरू हुआ. रिश्ते में आमिर फरहीन का भतीजा था. वह भी नई बस्ती कटरा शमशेर खां मोहल्ले में रहता था. आमिर शरीर से हृष्टपुष्ट तथा सजीला युवक था. वह जो कमाता था, अपनी ही फैशनपरस्ती में खर्च करता था. फरहीन को वह बुआ कहता था. उम्र में वह फरहीन से छोटा था.

फरहीन को किस तरह हुआ भतीजे से प्यार

28 साल की बुआ फरहीन बानो से आमिर की खूब पटती थी. बुआभतीजे के बीच हंसीठिठोली भी होती थी. आमिर को बुआ की सुंदरता और अल्हड़पन बहुत भाता था. कभीकभी वह उसे एकटक प्यार भरी नजरों से देखा करता था. अपनी ओर टकटकी लगाए देखते समय जब कभी फरहीन की नजरें उस से टकरा जातीं तो दोनों मुसकरा देते थे. आमिर फरहीन के शौहर गुलफाम से ज्यादा स्मार्ट और अच्छी कदकाठी का था. इस से फरहीन का झुकाव आमिर के प्रति बढ़ता गया. 

फरहीन बानो स्वभाव से मिलनसार थी. आमिर बुआ के प्रति सम्मोहित था. जब दोनों साथ चाय पीने बैठते, तब फरहीन उस से खुल कर हंसीमजाक करती. फरहीन का यह व्यवहार धीरेधीरे आमिर को ऐसा बांधने लगा कि उस के मन में फरहीन का सौंदर्यरस पीने की कामना जागने लगी. एक दिन आमिर दोपहर को आया तो फरहीन उस के लिए थाली ले कर आई और जानबूझ कर गिराए गए आंचल को ठीक करते हुए बोली, ”लो आमिर, खाना खा लो. आज मैं ने तुम्हारी पसंद का खाना बनाया है.’’

आमिर को बुआ की यह अदा बहुत अच्छी लगी. वह उस का हाथ पकड़ कर बोला, ”बुआ, तुम भी अपनी थाली परोस लो. साथ खाने में मजा आएगा.’’

खाना खाते वक्त दोनों के बीच बातों का सिलसिला जुड़ा तो आमिर बोला, ”बुआ, तुम खूबसूरत और खिदमतगार हो. लेकिन फूफाजान तुम्हारी कद्र नहीं करते. मुझे पता है कि अभी तक तुम्हारी गोद सूनी क्यों है? वह अपनी कमजोरी की खीझ तुम पर उतारते हैं. लेकिन मैं तुम से बेइंतहा मोहब्बत करता हूं.’’

यह कह कर आमिर ने फरहीन की दुखती रग पर हाथ रख दिया था. सच में फरहीन शौहर से संतुष्ट नहीं थी. उसे न तो औलाद का सुख मिला था और न ही शारीरिक सुख, जिस से उस का मन विद्रोह कर उठा. उस का मन बेइमान हो चुका था. आखिरकार उस ने फैसला कर लिया कि अब वह असंतुष्ट नहीं रहेगी. औलाद के लिए उसे रिश्तों को तारतार क्यों न करना पड़े. उस ने यह भी तय कर लिया कि भले ही उस की कितनी भी बदनामी क्यों न हो. लेकिन वह आमिर का साथ नहीं छोड़ेगी. 

औरत जब जानबूझ कर बरबादी के रास्ते पर कदम रखती है तो उसे रोक पाना मुश्किल होता है. यही फरहीन बानो के साथ हुआ. फरहीन जवान भी थी और शौहर से असंतुष्ट भी. वह औलाद सुख भी चाहती थी. अत: उस ने भतीजे आमिर के साथ नाजायज रिश्ता बनाने का निश्चय कर लिया. आमिर वैसे भी फरहीन का दीवाना था. एक रोज सुबह 9 बजे जैसे ही गुलफाम सब्जी का ठेला ले कर फेरी के लिए निकला, तभी आमिर आ गया. फरहीन उस समय कमरे में चारपाई पर लेटी थी. कमरे में पहुंचते ही वह उस की खूबसूरती को निहारने लगा. फरहीन को आमिर की आंखों की भाषा पढऩे में देर नहीं लगी. फरहीन ने उसे करीब बैठा लिया और उस का हाथ सहलाने लगी. आमिर के शरीर में हलचल मचने लगी.

थोड़ी देर की चुप्पी के बाद होश दुरुस्त हुए तो फरहीन ने आमिर की ओर देख कर कहा, ”आमिर तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो, लेकिन हमारे बीच रिश्ते की दीवार है. अब मैं इस दीवार को तोडऩा चाहती हूं.’’

आमिर ललचाई नजरों से देखता हुआ बोला, ”मैं तुम्हें कभी धोखा नही दूंगा. तुम अपना बनाओगी तो तुम्हारा ही बन कर रहूंगा.’’ कह कर आमिर ने फरहीन को बाहों में भर लिया. ऐसे ही कसमेवादों के बीच संकोच की सारी दीवारें कब टूट गईं, दोनों को पता ही नहीं चला. उस दिन के बाद आमिर और फरहीन बिस्तर पर सामाजिक रिश्तों और मानमर्यादाओं की धज्जियां उड़ाने लगे. वासना की आग ने इन के इन रिश्तों को जला कर खाक कर दिया. 

आमिर अपनी बुआ की मोहब्बत में इतना अंधा हो गया कि उसे जब भी मौका मिलता, वह फरहीन से मिलन कर लेता. फरहीन भी भतीजे के पौरुष की दीवानी थी. उन के मिलन की किसी को कानोंकान खबर नहीं थी. 

इस तरह खुली बुआभतीजे के संबंधों की पोल

कहते हैं कि वासना का खेल कितनी भी सावधानी से खेला जाए, एक न एक दिन भांडा फूट ही जाता है. ऐसा ही फरहीन और आमिर के साथ भी हुआ. एक दोपहर पड़ोस में रहने वाली जेठानी खातून ने रंगरलियां मना रहे आमिर और फरहीन को चोरीछिपे देख लिया. इस के बाद तो इन की पापलीला की चर्चा पड़ोस में होने लगी. गुलफाम को जब फरहीन और उस के भतीजे आमिर के नाजायज रिश्तों की जानकारी हुई तो उस का माथा घूम गया. उस ने इस बाबत फरहीन से बात की तो उस ने नाजायज रिश्तों की बात सिरे से खारिज कर दी. उस ने कहा, ”आमिर उस का भतीजा है. कभीकभार घर आ जाता है तो उस से हंसबोल लेती हूं. चायनाश्ता करने के बाद वह चला जाता है. पड़ोसी इस का गलत मतलब निकालते हैं. उन्होंने ही तुम्हारे कान भरे हैं.’’

गुलफाम ने उस समय तो फरहीन की बात मान ली, लेकिन मन में शक पैदा हो गया. इसलिए वह चुपकेचुपके बीवी पर नजर रखने लगा. परिणामस्वरूप एक दोपहर गुलफाम ने बुआभतीजे को रंगेहाथ पकड़ लिया. आमिर तो भाग गया, लेकिन फरहीन की गुलफाम ने जम कर पिटाई की. साथ ही संबंध तोडऩे की चेतावनी दी. लेकिन इस चेतावनी का असर न तो फरहीन पर पड़ा और न ही आमिर पर. हां, इतना जरूर हुआ कि अब वे सावधानी बरतने लगे. जिस दिन गुलफाम को पता चलता कि आमिर उस के घर के चक्कर लगा रहा था. उस दिन शराब पी कर वह फरहीन को जानवरों की तरह पीटता और भद्दीभद्दी गालियां बकता. 

फरहीन शौहर की पिटाई से तंग आ चुकी थी, अत: मार्च 2024 के पहले सप्ताह में गुलफाम को बिना बताए अपने मायके नई बस्ती कटरा शमशेर खां आ गई. उस ने मां व भाइयों को आंसू बहा कर बताया कि गुलफाम शराब पी कर उसे बेतहासा पीटता था. उसे भूखाप्यासा रखता था. चरित्र पर लांछन लगाता था, जिस से उसका ससुराल में जीना दूभर हो गया था. इसलिए वह मायके आ गई. आंसू देख कर मां व भाइयों ने सहज ही उस की बातों पर भरोसा कर लिया. मां ने उसे धैर्य बंधाया और कहा कि गुलफाम जब आएगा, तब उसे सबक सिखाएगी. उसे जलील करेगी और माफी मांगने पर भी उसे ससुराल नहीं भेजेगी. 

इधर गुलफाम घर आया तो फरहीन घर पर नहीं थी. उस ने उसे फोन किया, लेकिन फरहीन ने काल रिसीव नहीं की. दूसरे ही दिन गुलफाम अपनी ससुराल जा पहुंचा. ससुराल पहुंचते ही गुलफाम की सास तहमीदा वारिसी उस पर बरस पड़ी, ”गुलफाम, तू इंसान नहीं जानवर है. तू शराब पी कर मेरी बेटी को पीटता था और उसे भूखाप्यासा रखता था. चला जा यहां से, वरना अंजाम बुरा होगा.’’

गुलफाम नरमी से बोला, ”सासू मां, फरहीन ने आप को जो कुछ बताया, वह सब सही नहीं है. फरहीन मेरी इज्जत पर धब्बा लगा रही है. भतीजे आमिर से उस के नाजायज ताल्लुकात हैं. में ने मना किया तो मुझ से ही उलझ गई. रंगेहाथ पकड़ा तो शराब के नशे में उसे पीट दिया. नाराज हो कर वह यहां आ गई.’’

गुलफाम ने लाख सफाई दी, लेकिन उस की बात पर किसी ने यकीन नहीं किया. फरहीन के भाई वारिस व साबिर ने भी गुलफाम को खूब खरीखोटी सुनाई, गालियां भी बकी. धमकी भी दी कि यहां से चला जाए वरना कुछ अनर्थ हो जाएगा. ससुराल में अपमान का घूंट पी कर गुलफाम अपने घर वापस आ गया. गम को भुलाने के लिए उस रात उस ने जम कर शराब पी. गुलफाम को अपमानित कर भगाया गया तो फरहीन मन ही मन खुश हुई. अब वह मायके में स्वच्छंद रूप से रहने लगी. भतीजा आमिर भी बेरोकटोक उस से मिलने आने लगा. आमिर अब उसे खर्च के लिए रुपए भी देने लगा. 

जिस दिन मां और भाई घर पर नहीं होते, उस दिन फरहीन फोन कर आमिर को बुला लेती और मिलन कर लेती. घर में मौका न मिलता तो आमिर के साथ होटल चली जाती.

और प्रेमी आमिर के साथ फुर्र हो गई फरहीन

एक रोज फरहीन ने बिस्तर पर मस्ती के दौरान कहा, ”आमिर, हम कब तक इस तरह छिपतेछिपाते मिलते रहेंगे. यदि तुम मुझे अपना बनाना चाहते हो तो मुझे अपने साथ कहीं और ले चलो, जहां हम खुल कर जी सकें.’’

मई 2024 में फरहीन भतीजे आशिक आमिर के साथ मायके से भाग गई. लेकिन मायके वालों ने फरहीन के भाग जाने की जानकारी उस के शौहर गुलफाम को नहीं दी. लेकिन ऐसी बातें छिपती कहां हैं? एक सप्ताह बाद ही गुलफाम को पता चल गया कि फरहीन अपने आशिक आमिर के साथ फरार हो गई है. बेटी के भाग जाने की रिपोर्ट तहमीदा वारिसी ने पुलिस में दर्ज नहीं कराई. वह अपने बेटों के साथ उस की खोज करने लगी. गुलफाम भी अपने स्तर से बीवी की तलाश में जुट गया. लेकिन सफलता नहीं मिली. 

लगभग 3 महीने बाद फरहीन घर वापस आ गई. मां ने डांटाफटकारा तो वह बोली, ”मां, मैं आमिर के साथ धार्मिक स्थानों पर माथा टेकने गई थी. अजमेर शरीफ एक महीने तक रही. दिल्ली, आगरा शहर भी घूमा. इस के बाद वापस आ गई.’’

बेटी की बात सुन कर तहमीदा को गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन वह अपने गुस्से को पी गई और फरहीन को शराफत से रहने की नसीहत दी. उस ने आमिर को भी खूब खरीखोटी सुनाई और फरहीन से मिलने पर रोक लगा दी. इधर गुलफाम बीवी के बिना बेचैन रहता था. अधिक शराब पीने से उस का सब्जी का धंधा चौपट हो गया था. उस पर कर्ज भी चढ़ गया था. एक रोज उसे पता चला कि फरहीन वापस घर आ गई है तो वह उसे मनाने ससुराल पहुंच गया. लेकिन फरहीन ने उस के साथ जाने से साफ मना कर दिया. तहमीदा अब तक जान गई थी कि बेटी के कदम बहक गए हैं, सो वह भी चाहती थी कि वह ससुराल चली जाए. उस ने उसे समझाया भी. लेकिन फरहीन ने शौहर के साथ जाने से इंकार कर दिया. 

इस के बाद तो यह सिलसिला ही चल पड़ा. गुलफाम हर हफ्ते बीवी को मनाने ससुराल जाता. लेकिन वह उसे दुत्कार कर भगा देती. अगस्त के दूसरे सप्ताह में वह अपने बड़े भाई अनवर को भी साथ ले गया. अनवर ने फरहीन की मां व भाइयों से बात की तथा फरहीन को भी समझाया. लेकिन फरहीन राजी नहीं हुई. अपमानित हो कर गुलफाम व अनवर वापस घर आ गए. गुलफाम बखूबी जानता था कि फरहीन पर इश्क का भूत सवार है. वह भतीजे आमिर के प्यार में अंधी हो चुकी है. इसलिए वह उस के साथ आने को नानुकुर कर रही है. काफी सोचविचार के बाद गुलफाम ने सोच लिया कि वह आखिरी बार और फरहीन को मनाने जाएगा. यदि इस बार उस ने इंकार किया तो वह बरदाश्त नहीं करेगा और बेवफा बीवी को सबक सिखा कर ही रहेगा. 

इस के लिए उस ने एक बांका भी खरीद लिया था. फिर वह 3 सितंबर, 2024 को अपनी ससुराल पहुंच गया. उस ने बड़े प्यार से बीवी फरहीन को मनाने की कोशिश की, लेकिन फरहीन ने उस की एक नहीं सुनी. इतना ही नहीं, उस ने पति गुलफाम की उस दिन भी बेइज्जती की. तब गुलफाम ने बांके से वार कर उसे मौत के घाट उतार दिया. गुलफाम से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने मृतका के भाई वारिस की तहरीर पर बीएनएस की धारा 103 के तहत गुलफाम के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और उसे विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. 

4 सितंबर, 2024 को पुलिस ने हत्यारोपी गुलफाम को इटावा कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

 

Love Crime : महिला को गैस नली लगाकर जला डाला जिंदा

अवैध संबंधों की राह बड़ी ढलवां होती है. दीपा ने इस राह पर एक बार कदम रखा तो वह संभल नहीं सकी. फिर इस का जो नतीजा निकला, वह बड़ा ही भयावह था. टना 18 मई, 2018 की है. माधव नगर थाने के थानाप्रभारी गगन बादल अपने औफिस में बैठे विभागीय कार्य निपटा रहे थे तभी उन्हें सूचना मिली कि थाना क्षेत्र के वल्लभ नगर में मां बादेश्वरी मंदिर के सामने रहने वाली दीपा वर्मा के घर से बड़ी मात्रा में धुआं निकल रहा है. शायद वहां आग लग गई है. यह थाना मध्य प्रदेश के जिला उज्जैन के अंतर्गत आता है

थानाप्रभारी ने यह जानकारी दमकल विभाग के अलावा एसपी सचिन अतुलकर को भी दे दी. इस के बाद वह खुद सूचना में बताए गए पते की तरफ रवाना हो गए. जब तक वह मौके पर पहुंचे, तब तक दमकल विभाग की गाड़ी भी वहां पहुंच चुकी थी. पता चला कि दीपा वर्मा के घर में आग लगी थी. इस से पहले कि आग भयावक रूप लेती, दमकलकर्मी वहां पहुंच गए थे. उन्होंने कुछ देर में आग बुझा दी. आग बुझने के बाद दमकल कर्मियों के साथ थानाप्रभारी जब उस मकान के अंदर पहुंचे तो किचिन में लिहाफ गद्दे वगैरह पड़े मिले. वह अधजले थे. उन कपड़ों से धुआं उठ रहा था

दमकलकर्मियों ने उन अधजले लिहाफगद्दों को हटाया तो वहां का नजारा देख कर पुलिस चौंक गई. क्योंकि उन लिहाफगद्दों के नीचे एक महिला का शव औंधे मुंह पड़ा हुआ था. उस की दोनों कलाइयों की नशें भी कटी हुई थीं. साथ ही उस की गरदन पर धारदार हथियार का घाव थामकान मालिक ने मृतका की पहचान 35 वर्षीय दीपा वर्मा के रूप में की. उस ने बताया कि यह 5 महीने से अशोक वर्मा के साथ इस मकान में रह रही थी. अशोक के अलावा इस के पास और भी कई युवक आते थे. कुछ ही देर में एसपी सचिन अतुलकर और एफएसल अधिकारी डा. प्रीति भी टीम के साथ मौके पर पहुंच गईं

पुलिस ने जब जांच की तो बेडरूम में खून के धब्बों के अलावा सामान भी अस्तव्यस्त मिला. बेडरूम का दरवाजा भी टूटा हुआ था. इस से यह अनुमान लगाया कि घटना से पहले दीपा और हमलावर के बीच संघर्ष हुआ होगा. इस के बाद उस की हत्या कर लाश किचिन में ले जा कर जलाने की कोशिश कीलाश को जलाने का तरीका भी अनोखा था. हत्यारे ने दीपा वर्मा की हत्या के बाद एलपीजी गैस सिलेंडर की नली चूल्हे से निकालने के बाद उसे दीपा वर्मा की जांघों के बीच डाल कर ऊपर से लिहाफगद्दे डाल दिए. फिर रैग्युलेटर से गैस औन कर के आग लगाई थी.

इस से इस बात की आशंका को बल मिला कि हत्या का मामला अवैध संबंधों से जुड़ा हो सकता है. दीपा वर्मा की हत्या की सूचना पा कर भैरवगढ़ में जेल रोड की ज्ञान टेकरी पर रहने वाला दीपा का भाई भी मौके पर पहुंच गया. उस ने दीपा के साथ लिवइन रिलेशन में रहने वाले अशोक शर्मा पर उस की हत्या का आरोप लगाया. उस का कहना था कि दीपा पिछले 8 सालों से अशोक के साथ रह रही थी. पुलिस ने दीपा के भाई की तहरीर पर हत्या का मामला दर्ज कर लिया. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के दीपा की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

पुलिस ने दीपा के साथ लिवइन रिलेशन में रहने वाले अशोक के बारे में जानकारी हासिल की. पता चला कि अशोक पहले से शादीशुदा है. उस की ब्याहता गांव में रहती है. वह दीपा के पास 1-2 दिन में चक्कर लगाता था. उधर 3 डाक्टरों के पैनल ने दीपा का पोस्टमार्टम किया जिस में चौंकाने वाली बात यह सामने आई कि दीपा को जिंदा ही जलाया गया था. मरने से पहले दीपा के साथ बलात्कार किया गया था या नहीं इस की जांच के लिए उस की स्लाइड बना कर सागर जिले की लैबोरेटरी भेज दीमामला गंभीर था इसलिए एसपी सचिन अतुलकर ने थाना माधव नगर के थानाप्रभारी गगन बादल के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. एसआई बी.एस. मंडलोई, संजय राजपूत आदि के साथ साइबर सेल प्रभारी इंसपेक्टर दीपिका शिंदे और संतोष राव को उन की टीम में शामिल किया गया

इंसपेक्टर शिंदे ने सब से पहले अशोक को पूछताछ के लिए बुलाया. अशोक ने बताया कि वह पिछले 8 सालों से दीपा के संपर्क में था. इसलिए वह अब उसे क्यों मारेगा. साथ ही उस ने बताया कि मेरी गैरमौजूदगी में दीपा दूसरे कई युवकों को अपने पास बुलाती और उन के साथ मौजमस्ती करती थी. उस ने उसे कई बार समझाया लेकिन दीपा ने अपनी आदत नहीं बदली थी. अशोक ने दीपा के पे्रमियों के नाम भी पुलिस को बता दिए. उन में 2 को पुलिस ने पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. उन दोनों से पूछताछ में दीपा के एक और प्रेमी धर्मेंद्र गहलोत का नाम सामने आया. धर्मेंद्र देवास रोड पर रहता था. इंसपेक्टर दीपिका शिंदे और थानाप्रभारी गगन बादल दोनों टीम के साथ धर्मेंद्र के घर जा धमके

संयोग से धर्मेंद्र घर पर ही मौजूद था. उस के दोनों हाथ की अंगुलियों में ताजे घाव थे. इंसपेक्टर शिंदे उस की चोट देखते ही समझ गईं कि दीपा वर्मा का कातिल उन के हाथ लग चुका है. इसलिए उन्होंने उस से सीधे सवाल किया, ‘‘दीपा को तूने क्यों मारा.’’

धर्मेंद्र को ऐसी उम्मीद नहीं थी कि पुलिस इतनी जल्दी उस तक पहुंच जाएगी. इंसपेक्टर शिंदे का सवाल सुन कर वह हतप्रभ सा रह गया. वह इधरउधर की बातें करने लगा. तभी पुलिस ने उस के घर की तलाशी ली तो घर में छिपा कर रखे खून सने कपड़े और दीपा के दोनों मोबाइल फोन मिल गए. इस के बाद धर्मेंद्र के पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं बचा था. सो उस ने चुपचाप अपना जुर्म कबूल कर लिया.

उस से पूछताछ के बाद दीपा वर्मा की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली

दीपा वर्मा का परिवार उज्जैन का रहने वाला था. भैरवगढ़ इलाके में जेल रोड की ज्ञान टेकरी पर दीपा की मां अपने 2 बेटों के साथ रहती थी. दीपा बेहद खूबसूरत और चंचल स्वभाव की थी. उस के इस स्वभाव को निमंत्रण समझ कर मोहल्ले के युवक उस की गली के चक्कर लगाने लगे थे. बेटी के पैर बहक जाएं, इसलिए महज 14 साल की उम्र में उस के पिता ने दीपा की शादी देवास के जलाल खेड़ी में रहने वाले राकेश वर्मा के साथ कर दी थी. इस तरह खेलनेकूदने की उम्र में ही दीपा पति के साथ वयस्कों की दुनिया देख चुकी थीपति राकेश उस की सुंदरता का कायल था. उम्र बढ़ने के साथ दीपा ने जब जवानी में कदम रखा तो उस की शारीरिक जरूरतें पहले से ज्यादा बढ़ गईं. लेकिन अब तक राकेश वर्मा को घरपरिवार की चिंता सताने लगी थी. इसलिए राकेश रोजीरोटी के चक्कर में यहांवहां भटकने लगा था, इस से परेशान हो कर दीपा ने इधरउधर ताकाझांकी शुरू कर दी

राकेश को जब पता चला तो वह शराब पी कर उस के साथ मारपीट करने लगा. पति की ज्यादती से दीपा बहुत परेशान हो गई थी. शादी के 10 साल बाद 24 साल की दीपा गुस्से में पति को छोड़ कर मायके में कर रहने लगीअपना गुजारा करने के लिए उस ने फ्रीगंज इलाके में फाल, पीको की दुकान कर ली. मायके में कर कुछ समय तक तो दीपा की जिंदगी आराम से कटी लेकिन फिर उसे अपनी शारीरिक जरूरतें महसूस होने लगींयूं तो दीपा चाहती तो उस के बचपन के दीवाने अब भी मोहल्ले में मौजूद थे, जो उसे अभी भी ललचाई नजरों से घूरते रहते थे. लेकिन दीपा अब बच्ची नहीं थी. उस की आंखों को अब ऐसे मर्द की तलाश थी, जो उस की दैहिक के अलावा दूसरी तमाम जरूरतें भी पूरी कर सके.

एक दिन उस की मुलाकात अशोक से हुई तो दीपा ने अशोक के लिए अपने दिल की लगाम ढीली छोड़ दी. राजनीति में दखल रखने वाला अशोक वर्मा शादीशुदा और एक बच्चे का पिता था. लेकिन उस के पास इतना पैसा था कि वह दीपा की जिंदगी भर तमाम जरूरतें पूरी कर सकता था. दीपा का रूप उस के दिल को भा चुका था. इसलिए दीपा को राजी देख उस ने उस के सामने साथ रहने का प्रस्ताव रखा, जिसे दीपा ने तुरंत स्वीकार कर लियातब अशोक ने दीपा को किराए का मकान दिला कर घर की तमाम जरूरतें भी पूरी कर दीं. जिस के बाद दीपा अशोक के साथ बिना शादी किए ही पत्नी की तरह रहने लगी. यह करीब 8 साल पहले की बात है

अशोक राजनीति में भी दखल रखता था. उस के पास पैसा भी खूब था, इसलिए दीपा को काम करने की जरूरत नहीं रह गई थी. फिर भी समय काटने के लिए उस ने फाल लगाने और पीको करने का काम बंद नहीं किया था. लेकिन ऐसे मामले में वही हुआ जो होता हैदीपा के साथ 4-5 साल गुजारने के बाद अशोक का मन उस से भर गया. हालांकि वह अपने वादे से तो नहीं मुकरा, वह दीपा की हर आर्थिक जरूरत पूरी करता रहा. पर दीपा के पास उस का आनाजाना जरूर कम हो गया. अब वह 1-2 दिन बाद दीपा के पास आता. लेकिन दीपा जिस मिट्टी से बनी थी उस के चलते उसे रोजाना पुरुष संग की जरूरत थी. इसलिए अशोक की गैरमौजूदगी का फायदा उठा कर उस ने कई दूसरे युवकों से दोस्ती कर ली. वह उन्हें रात के अंधेरे में अपने घर बुलाने लगी. लेकिन ऐसी बातें छिपती कहां हैं

यानी अशोक को यह बात पता चल गई. अशोक ने उसे बहुत समझाया, पर उस ने अपनी आदत नहीं बदली. अशोक की गैरमौजूदगी में दूसरे युवक दीपा के घर में कर रात गुजारने लगे. अशोक तो दीपा का दीवाना था इसलिए उस के बदचलन होने के बावजूद भी उस ने दीपा का साथ नहीं छोड़ा. जिस मकान में दीपा की हत्या हुई वह मकान इसी साल जनवरी के महीने में अशोक ने ही किराए पर ले कर उसे रहने के लिए दिया था. कोई 3 साल पहले धर्मेंद्र की पत्नी दीपा की दुकान पर अपनी साड़ी पर फाल लगवाने के लिए साड़ी दे कर चली गई थी. बाद में धर्मेंद्र दीपा की दुकान पर वह साड़ी लेने गया था. तभी दीपा से उस की पहली मुलाकात हुई थीवैसे दीपा धर्मेंद्र से उम्र में काफी बड़ी थी. लेकिन उस की खूबसूरती देख कर धर्मेंद्र का मन पागल हो गया. इसलिए उस के हाथ से साड़ी लेते समय उस ने जानबूझ कर उस की अंगुलियों को छू दिया

ऐसा कर के धर्मेंद्र को इस बात का डर था कि कहीं वह बुरा मान जाए. लेकिन दीपा काफी बोल्ड थी. उस ने सीधे कहा, ‘‘बड़े हिम्मत वाले हो जो पहली ही मुलाकात में अंगुली पकड़ रहे हो. इस बार अंगुली पकड़ी है तो लगता है अगली बार सीधे पहुंचा पकड़ोगे.’’ 

यह सुन कर धर्मेंद्र झेंप गया तो वह जोर से हंस दी. जिस के बाद दोनों की दोस्ती हो गई और फोन पर बातें होने लगीं. धर्मेंद्र दीपा से मिलना चाहता था. लेकिन उस से कहने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था. 10-15 दिन बाद एक रोज खुद दीपा ने ही कहा कि कब तक फोन पर बातें कर के आग भड़काते रहोगे, मिलोगे नहीं क्या?

‘‘मिलना तो चाहता हूं पर कहां मिलूं. यह बात समझ में नहीं रही है. अच्छा तुम एक काम करो, कल महाकाल मंदिर जाओ, वहीं मिलते हैं.’’ धर्मेंद्र बोला.

‘‘क्यों, मेरे साथ वहां क्या भजन करना है, जो मंदिर में बुला रहे हो. तुम सीधे मेरे घर जाओ, वहीं घंटा बजाएंगे.’’ कहते हुए दीपा ने अपने घर का पता बता दिया

उसी दिन शाम को धर्मेंद्र दीपा के किराए वाले मकान में पहुंच गया. दोनों ने एकांत का लाभ उठाते हुए अपनी हसरतें पूरी कीं. जल्द ही दीपा ने धर्मेंद्र को अपनी अदाओं से वश में कर लियाइस के बाद धर्मेंद्र उस पर काफी पैसे भी लुटाने लगा था. दीपा से मिलनेजुलने में दिक्कत हो इसलिए धर्मेंद्र ने उस के पति अशोक से भी दोस्ती बना ली थी. जब मन होता दोनों शराब और चिकन की पार्टी भी करते. लेकिन कुछ समय बाद ही धर्मेंद्र को पता चल गया कि अशोक दीपा का पति नहीं है, बल्कि वह उस के साथ रखैल बन कर रह रही है. इतना ही नहीं दूसरे और युवकों के साथ भी दीपा के संबंध होने की जानकारी धर्मेंद्र को लग गई. यहां तक कि धर्मेंद्र जिन दोस्तों को दीपा के यहां ले गया था, उन के साथ भी दीपा ने अवैध संबंध बना लिए थे

धर्मेंद्र ने दीपा को समझाया कि वह ऐसा करे लेकिन उस ने उलटे धर्मेंद्र से ही मिलना बंद कर दिया. धर्मेंद्र उस से मिलने की चाहत व्यक्त करता तो वह किसी किसी बहाने से उसे टाल देती थी. धर्मेंद्र की पत्नी को भी यह जानकारी मिल गई कि उस का पति दीपा नाम की किसी महिला के पास जाता है. धर्मेंद्र पत्नी से लगातार झूठ बोलता रहा. जब उस ने दीपा से मिलना नहीं छोड़ा तो वह उस से झगड़ने लगीएक दिन धर्मेंद्र दीपा के पास गया तो वहां पर उस के 2 दोस्त कुक्कू और रवि मिले. दीपा ने उस दिन धर्मेंद्र को घर से बाहर निकाल कर दरवाजा बंद कर दिया था.

धर्मेंद्र अपने घर वापस गया लेकिन उस की नजरों के सामने दीपा की कुक्कू और रवि के साथ अय्याशी की तसवीरें किसी फिल्म की तरह चलती रहीं. इसलिए सुबह होते ही वह फिर से दीपा के घर पहुंचा. उस समय दीपा अकेली थीकुक्कू और रवि के साथ मस्ती करने के फेर में रात भर शायद वह सोई नहीं थी. इसलिए अपनी नींद में खलल पड़ने से वह धर्मेंद्र पर नाराज होते हुए को उलटासीधा बोलने लगी. यह देख कर धर्मेंद्र का खून खौल उठा और उस ने दीपा की पिटाई की. गुस्से में उस ने उस की दोनों कलाइयों की नसें भी काट दीं, जिस से कमरे में खून फैल गया और वह बेहोश हो गई. अब वह उसे जीवित नहीं छोड़ना चाहता था.

लिहाजा वह उसे खींच कर रसोई में ले गया और उस की सलवार निकाल कर उस ने एलपीजी सिलेंडर का पाइप गैस चूल्हे से निकाल कर उस की दोनों जांघों के बीच फंसा कर ऊपर से लिहाफ, दरी, गद्दा डाल कर रैग्युलेटर से गैस चालू कर दी, फिर आग लगा कर वह वहां से चला गया. उस ने सोचा कि सिलेंडर फटने के बाद लोग इसे दुर्घटना समझेंगे और वह बच जाएगा. लेकिन जब मकान में धुआं निकलना शुरू ही हुआ था, तभी पड़ोसी राकेश वर्मा ने इस की सूचना पुलिस को दे दी. धर्मेंद्र से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. बैडरूम का दरवाजा कैसे टूटा, यह बात पुलिस पता नहीं लगा सकी

उज्जैन के आईजी राकेश गुप्ता ने केस का खुलासा करने वाली पुलिस टीम के कार्य की सराहना करते हुए पुरस्कृत करने की घोषणा की.

   (कथा में कुछ नाम परिवर्तित हैं)

Love Crime : विवाहिता के प्यार में 4 हत्याएं

सरकारी टीचर सुनील गौतम अपनी पत्नी पूनम भारती और 2 बेटियों के साथ अमेठी में रहता था. वह अपने काम से काम रखता था. फिर एक दिन किसी ने सुनील, उस की पत्नी और दोनों बेटियों को घर में घुस कर गोलियों से भून डाला. आखिर कौन था हत्यारा और क्यों की उस ने ये हत्याएं?

चंदन वर्मा ने 12 सितंबर, 2024 को अपने वाट्सऐप पर लिखा, ‘5 लोग मरने वाले हैं. मैं जल्दी कर के दिखाऊंगा (5 people are going to die. I will show you soon.)उस का इशारा अपनी प्रेमिका पूनम व उस के परिवार, स्वयं और पूनम के भाई सोनू की तरफ था. चंदन वर्मा ने इस के लिए अवैध पिस्टल का इंतजाम तो कर लिया था, लेकिन गोलियों का इंतजाम नहीं हो पा रहा था. इस के लिए उस ने जानपहचान के अपराधियों से संपर्क किया और 10 राउंड गोलियों वाली मैगजीन मुंहमांगी कीमत पर खरीद कर रख ली, लेकिन यह इंतजाम करने में उसे 15 दिन का समय लग गया था. 

3 अक्तूबर, 2024 को नवरात्रि का प्रथम दिन था. जगहजगह पंडाल सजे थे. चंदन वर्मा पिस्टल में मैगजीन लोड कर शाम करीब साढ़े 6 बजे बाइक से अमेठी के मंदिर रोड अहोरवा चौराहा स्थित मुन्ना अवस्थी के मकान पर पहुंचा. इसी मकान में पूनम अपने पति सुनील व 2 बच्चों के साथ किराए पर रहती थी. चंदन वर्मा ने घर से करीब 50 मीटर दूर स्थित दीपक की मोबाइल शाप के सामने अपनी बाइक खड़ी कर दी. उस ने दीपक से कहा कि वह मंदिर दर्शन करने जा रहा है. जल्दी ही वापस आ जाएगा. 

इस के बाद वह पूनम के घर पहुंचा. पूनम उस समय घर पर ही थी. वह पति व बच्चों से बतिया रही थी. चंदन वर्मा को देख कर पूनम व सुनील सहम गए. चंदन वर्मा ने जेब से 10-10 के 2 नोट निकाले. उस ने एक नोट सुनील की बेटी 5 वर्षीया सृष्टि के हाथ में तथा दूसरा नोट 2 वर्षीया समीक्षा के हाथ में थमा दिया. इस के बाद वह पूनम की तरफ मुखातिब होते हुए बोला, ”पूनम, तुम मेरे साथ चलो. तुम्हारे बिना मैं जी नहीं पाऊंगा.’’

यह सुनते ही पूनम बोली, ”तुम पागल हो गए हो क्या? मैं अपने पति व बच्चों को छोड़ कर भला कैसे जा सकती हूं. तुम ने तो मेरा जीना हराम कर दिया है. चले जाओ यहां से वरना मैं पुलिस बुला लूंगी.’’

पूनम की धमकी सुन कर चंदन का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. उस ने लोडेड पिस्टल निकाली और 2 गोलियां पूनम के सीने में दाग दीं. सुनील सामने आया तो उस पर भी 3 गोलियां दाग दीं. इस के बाद उस ने सृष्टि और मासूम समीक्षा पर भी एकएक गोली चला दी. सभी खून से लथपथ हो कर जमीन पर बिछ गए. कुछ क्षण बाद ही सभी ने दम तोड़ दिया. चारों को मौत के घाट उतारने के बाद चंदन वर्मा ने सुसाइड करने के लिए खुद को गोली मारनी चाही. लेकिन पिस्टल की स्प्रिंग निकल कर गिर गई, जिस से गोली नहीं चली. इस के बाद वह डर गया और बाइक मोबाइल की दुकान पर ही छोड़ कर घर के पीछे के रास्ते से फरार हो गया.

अवस्थी निवास में ही रोड पर अमित मैडिकल स्टोर था. इस के संचालक रामनारायन यादव ने जब लगातार गोलियों के चलने की आवाज सुनी तो वह घबरा गए. लगभग 100 मीटर की दूरी पर देवी पंडाल सजा था. वहां पुलिस तैनात थी. रामनारायन पुलिस के पास तेज कदमों से पहुंचे और गोलियां चलने की जानकारी दी. यह खबर सुन कर 2 सिपाही मकान के अंदर दाखिल हुए तो वहां 4 लाशें बिछी देख कर उन्होंने पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दे दी.  4 हत्याओं की सूचना मिलते ही अमेठी के शिवरतनगंज थाने की पुलिस अधिकारियों के होश उड़ गए. कुछ देर बाद ही अमेठी के एसपी अनूप कुमार सिंह, एएसपी हरेंद्र सिंह तथा डीएम निशा अनंत घटनास्थल पहुंच गईं. शिवरतनगंज थाने की पुलिस पहले से ही वहां मौजूद थी. सूचना पर मीडियाकर्मियों का भी जमावड़ा लग गया. 

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो उन के माथे पर बल पड़ गए और वे सिहर उठे. घर के अंदर 4 लाशें खून से लथपथ पड़ी थीं. अधिकारियों ने जानकारी जुटाई तो पता चला कि इस मकान में शिक्षक सुनील कुमार गौतम अपनी पत्नी पूनम व 2 बेटियों के साथ किराए पर रहते थे. इन्हीं की गोली मार कर हत्या की गई थी. 

सुनील कुमार व उन की पत्नी पूनम के शव नल के पास पड़े थे, जबकि दोनों बेटियों के शव जीने के पास पड़े थे. मृतक सुनील की उम्र 34 वर्ष के आसपास तथा पूनम की उम्र 30 वर्ष के आसपास थी. उन की बेटियों की उम्र क्रमश: 5 वर्ष और 2 वर्ष थी. निरीक्षण के बाद पुलिस अधिकारियों ने वारदात की सूचना मृतकों के घर वालों को दे दी. 

मुख्यमंत्री योगी क्यों हुए सक्रिय

इसी बीच प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को दलित परिवार की हत्या की जानकारी हुई तो उन्होंने शोक संवेदना प्रकट की और पुलिस के आला अधिकारियों को तत्काल घटनास्थल पर पहुंचने का आदेश दिया. आदेश पाते ही आईजी (अयोध्या जोन) प्रवीण कुमार तथा एडीजी (लखनऊ जोन) एस.वी. शिरोडकर घटनास्थल (अमेठी) पहुंच गए. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया और घटना के संबंध में एसपी अनूप कुमार सिंह से जानकारी हासिल की. 

उन्होंने निरीक्षण और साक्ष्य जुटाने में जुटी फोरैंसिक टीम से भी जानकारी ली. घटनास्थल से टीम ने कारतूस के 9 खोखे, एक जिंदा कारतूस तथा बाइक बरामद की. अब तक सूचना पा कर मृतक सुनील के पिता रामगोपाल गौतम घटनास्थल पर आ चुके थे. बेटाबहू व नातिनों के शवों को देख कर वह बदहवास हो गए. पूछताछ में रामगोपाल ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि इस घटना को अंजाम उस के बेटे सुनील के दोस्त चंदन वर्मा ने दिया है, जो रायबरेली के मटिया इलाके में रहता है.

घटनास्थल की जांच और पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने चारों शवों को पोस्टमार्टम हेतु अमेठी के जिला अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद रामगोपाल की तहरीर पर शिवरतनगंज थाने में बीएनएस की धारा 103 (1) के तहत चंदन वर्मा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. चूंकि मामला दलित परिवार की सामूहिक हत्या का था, अत: पुलिस अधिकारियों ने चंदन वर्मा को गिरफ्तार करने के लिए एसटीएफ की 4 टीमें लगा दीं. ये टीमें आरोपी की टोह में लग गईं. 

पुलिस ने रात में ही चारों शवों का पोस्टमार्टम करा दिया. सीएमओ अंशुमान सिंह की देखरेख में डा. विवेक चौधरी व डा. अभय गोयल की टीम ने पोस्टमार्टम किया. पूनम को 2, सुनील को 3 तथा बेटियों को 1-1 गोली मारी गई थी. पोस्टमार्टम के बाद शव सुनील के पिता रामगोपाल को सौंप दिए गए. 4 अक्तूबर, 2024 की सुबह पुलिस सुरक्षा में चारों शव मृतक शिक्षक सुनील के पैतृक गांव सुदामापुर (रायबरेली) पहुंचे तो गांव मेें कोहराम मच गया. पूरा गांव शवों को देखने उमड़ पड़ा. शवों को देख कर सुनील की मां राजवती तथा पूनम की मां कृष्णावती बदहवास हो गईं. पूजा व सोनू भी बहनबहनोई का शव देख कर बिलख पड़ी थीं. भीड़ में गम व रोष था. वहां पुलिस विरोधी नारे भी गूंजने लगे थे. 

राजनीतिक लाभ पाने की क्यों मची होड़

इस घटना को ले कर राजनीतिक गलियारे में भी भूचाल आ गया था. सब से पहले अमेठी के सांसद किशोरी लाल शर्मा सुदामापुर गांव पहुंचे. उन्होंने मृतक के पिता रामगोपाल को धैर्य बंधाया और राहुल गांधी से उन की मोबाइल पर बात कराई. राहुल गांधी ने कानूनव्यवस्था पर सवाल उठाते हुए रामगोपाल को हरसंभव मदद का आश्वासन दिया. भाजपा के राज्यमंत्री मयंकेश्वर शरण तथा ऊंचाहार के विधायक मनोज पांडेय भी सुदामापुर गांव पहुंचे. उन्होंने पीडि़त परिवार को हरसंभव मदद का भरोसा दिया. यही नहीं, इन दोनो नेताओं ने अंतिम संस्कार के बाद पीडि़त परिवार की मुलाकात लखनऊ ले जा कर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से कराई. 

रामगोपाल गौतम ने मुख्यमंत्री सेे आर्थिक मदद, आवास व बड़े बेटे को सरकारी नौकरी दिलाने की मांग की. मुख्यमंत्री ने सभी मांगों को पूर्ण करने का आश्वासन दिया. इधर एसटीएफ की एक टीम को पता चला कि आरोपी चंदन वर्मा प्रयागराज में है. अत: एसटीएफ की टीम प्रयागराज पहुंच गई. लेकिन वहां पता चला कि वह बस से दिल्ली की ओर रवाना हो चुका है. सर्विलांस के जरिए एसटीएफ की टीम ने उस का पीछा किया और 4 अक्तूबर की अपराह्नï पौने 3 बजे उसे नोएडा के जेवर टोल प्लाजा से गिरफ्तार कर लिया. रात 11 बजे अमेठी के एसपी अनूप सिंह ने प्रैसवार्ता की और इस चौहरे हत्याकांड का खुलासा कर दिया.

5 अक्तूबर, 2024 की सुबहसुबह पुलिस टीम आरोपी चंदन वर्मा को ले कर हत्या में इस्तेमाल पिस्टल बरामद कराने को ले जा रही थी. इस दौरान मोहनगंज थाना क्षेत्र के पियरे विंध्या दीवान नहर पटरी पर पहुंचने पर चंदन वर्मा ने फुरती से थानेदार मदन वर्मा की रिवौल्वर छीन ली और फायर करते हुए भागने की कोशिश करने लगा. पुलिस की जवाबी फायरिंग में उस के पैर में गोली लगी. वह घायल हो गया. पुलिस ने उसे सीएचसी सिंहपुर में भरती कराया. इस मामले की रिपोर्ट थानेदार मदन वर्मा ने थाना मोहनगंज में बीएनएस की धारा 109 के तहत चंदन वर्मा के खिलाफ दर्ज कराई. 

6 अक्तूबर, 2024 की शाम ऊंचाहार क्षेत्र के विधायक मनोज पांडेय, प्रभारी मंत्री राकेश सचान के साथ सुदामापुर गांव पहुंचे. वहां उन्होंने मृतक शिक्षक सुनील कुमार के पिता रामगोपाल गौतम व मां राजवती से मुलाकात की. उन्होंने उन्हें 5 लाख रुपए का चैक दिया. उन्होंने मुख्यमंत्री आवास योजना के तहत एक आवास, 5 बीघा कृषि भूमि का पट्टा आवंटन तथा परिजनों को आयुष्मान व अंत्योदय कार्ड दिए. इस के अलावा अत्याचार से उत्पीडि़त राशि 33 लाख रुपए का चैक भी सौंपा. साथ ही मृतक के भाई को मृतक आश्रित कोटे से सरकारी नौकरी दिलाने का आश्वासन दिया. 

आरोपी चंदन वर्मा से पूछताछ करने के बाद इस चौहरे हत्याकांड के पीछे की जो कहानी सामने आई, वह बहुत हैरान कर देने वाली निकली.

हंसमुख स्वभाव की पूनम ने संभाली घर की जिम्मेदारी

सुनील कुमार के पिता राम गोपाल गौतम उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के सुदामापुर गांव के रहने वाले थे. उन के परिवार में पत्नी राजवती के अलावा 2 बेटे सोनू, सुनील व एक बेटी रूपा थी. राम गोपाल गरीब किसान थे. उन के पास मात्र एक बीघा जमीन थी. इस कम उपजाऊ भूमि से उन के परिवार का भरणपोषण नहीं हो पाता था. अत: वह मेहनतमजदूरी कर किसी तरह परिवार का गुजारा करते थे. रामगोपाल गौतम के दोनों बेटे सोनू व सुनील जब बड़े हुए तो वह भी पिता के साथ मेहनत मजदूरी करने लगे. रामगोपाल अपने बेटों को अच्छे स्कूल में नहीं पढ़ा सके. बड़ा बेटा सोनू तो पढऩे में कमजोर था, लेकिन छोटा बेटा सुनील पढऩे में तेज था. वह मेहनतमजदूरी के साथ पढ़ाई भी करता था. 

चूंकि गांव में मजदूरी कम मिलती थी, इसलिए सोनू का मन गांव में नहीं लगता था. गांव के कुछ लड़के मुंबई में काम करते थे. सोनू भी उन्हीं के साथ मुंबई चला गया और वहीं काम करने लगा. अब वह गांव में तीजत्यौहारों पर ही आता और कुछ दिन तक रुक कर वापस चला जाता था. सुनील पहले बीए करने के बाद सरकारी नौकरी पाने की कोशिश में जुट गया था. अब तक रामगोपाल बड़े बेटे सोनू व बेटी रूपा की शादी कर चुके थे. सब से छोटा सुनील था. वह 20 वर्ष की उम्र पार कर चुका था. अत: रामगोपाल उस की शादी करना चाहते थे. 

एक रोज कृष्णावती अपनी बेटी पूनम भारती का रिश्ता लेकर रामगोपाल के घर आई. कृष्णावती रायबरेली के उत्तर पारा बेला भेला गांव की रहने वाली थी. परिवार में पति राजाराम भारती के अलावा 2 बेटे मोनू व भानू के अलावा 2 बेटियां पूजा व पूनम थीं. बड़ी बेटी पूजा की शादी हो चुुकी थी. छोटी बेटी पूनम थी. वह पढ़ीलिखी व दिखने में सुंदर थी. कृष्णावती ने सुनील को देखा तो उस ने अपनी बेटी पूनम भारती के लिए उसे पसंद कर लिया. उस के बाद पूनम और सुनील ने भी एकदूसरे को देखा और फिर दोनों शादी के लिए राजी हो गए. दोनों परिवारों की रजामंदी के बाद कृष्णावती ने 12 अप्रैल, 2016 को पूनम का विवाह सुनील कुमार के साथ कर दिया. 

वर्ष 2018 में उत्तर प्रदेश सरकार ने 41,250 पदों पर पुलिस भरती निकाली. सुनील ने भी सिपाही पद पर भरती के लिए आवेदन किया. इस के बाद वह जीजान से तैयारी में जुट गया. सुनील की मेहनत रंग लाई. उस का चयन सिपाही पद पर हो गया था. ट्रेनिंग के बाद उसे नियुक्ति मिल गई. इन्हीं दिनों उसे एक और खुशी मिली. पूनम ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम उस ने सृष्टि रखा. सृष्टि के जन्म से उस का घरआंगन किलकारियों से गूंजने लगा था. उस के मातापिता भी खुश थे. 

सुनील पुलिस में भरती तो हो गया था, लेकिन उसे वह नौकरी रास नहीं आ रही थी. क्योंकि एक तो वह परिवार को ज्यादा समय नहीं दे पा रहा था और दूसरे उसे पुलिसिया भाषा अच्छी नहीं लगती थी. पुलिस की नौकरी से मन हटा तो वह शिक्षा विभाग में नौकरी खोजने लगा. बीएड तो वह कर ही चुका था, फिर उस ने बीए शिक्षक पात्रता परीक्षा भी पास कर ली. जब शिक्षक की वैकेंसी निकली तो उस ने भी आवेदन कर दिया. 

शहर जा कर क्यों उडऩे लगी पूनम भारती

10 दिसंबर, 2020 को सुनील कुमार की बेसिक शिक्षा विभाग में शिक्षक की नौकरी लग गई. उस की पहली तैनाती रायबरेली में बेसिक शिक्षा अधिकारी के कार्यालय में हुई. शिक्षा विभाग में नौकरी पाने के बाद सुनील ने सिपाही पद से इस्तीफा दे दिया. शिक्षा विभाग में नौकरी मिलने पर घर में एक बार फिर खुशी की लहर दौड़ गई. सुनील कुमार का गांव सुदामापुर, रायबरेली से 35 किलोमीटर दूर था. नौकरी के लिए उसे रोजाना अपडाउन करना पड़ता था. इस में पैसा तो खर्च होता ही था, समय की बरबादी भी होती थी. इसलिए उस ने रायबरेली के मटिया इलाके में 2 कमरे वाला मकान किराए पर लिया और पत्नी पूनम भारती और बेटी सृष्टि के साथ रहने लगा.

पूनम भारती गांव से शहर आई तो उस के रंगढंग ही बदल गए. वह खूब सजसंवर कर रहने लगी और स्वच्छंद हो कर बाजारहाट घूमने लगी. पति की जिस दिन छुट्टी होती, उस दिन वह बेटी को साथ ले कर पति के साथ सैरसपाटे के लिए निकल जाती. रेस्टोरेंट में खाना खाती. सुनील पत्नी की हर बात मान लेता था. एक तरह से वह सुनील को अपनी अंगुलियों पर नचाने लगी थी. सुनील कुमार गौतम ने मटिया इलाके के जिस मकान में कमरा किराए पर लिया था, उसी मकान के पीछे वाले भाग में चंदन वर्मा नामक युवक किराए पर रहता था. 25-26 वर्षीय चंदन वर्मा मैकेनिकल इंजीनियर था. वह अस्पतालों की एक्सरे, सीटी स्कैन और दूसरी अन्य मशीनों की मरम्मत करता था. इस में उस की अच्छीखासी कमाई हो जाती थी. 

चंदन वर्मा के पिता मायाराम वर्मा मूलरूप से अंबेडकर नगर के टांडा के रहने वाले थे. उस के 7 भाई और थे. मायाराम 1990 के दशक में अपने भाइयों के साथ टांडा छोड़ कर रायबरेली आ गए थे. रायबरेली के तेलिया कोट मोहल्ले में वह भाइयों के साथ अवधेश गुप्ता के मकान में किराए पर रहने लगे थे. साल 2010 में मायाराम वर्मा अपने परिवार के साथ रायबरेली छोड़ कर दिल्ली चले गए, लेकिन उस के अन्य भाई उस के साथ नहीं गए. उन भाइयों ने तेलिया कोट में ही जमीन खरीद कर अपने घर बना लिए. दिल्ली जाने के बाद भाइयों ने मायाराम से दूरियां बना ली. 

लेकिन वर्ष 2019 के नवंबर माह में मायाराम फिर रायबरेली आ गए. इस बार उन्होंने तेलिया कोट के बजाय मटिया इलाके में कमरा किराए पर लिया, जो तेलिया कोट से 2 किलोमीटर दूर था. यहां पर वह अपनी पत्नी व बेटे चंदन के साथ रहने लगा. चूंकि चंदन वर्मा अच्छा कमाता था, अत: उस को कोई चिंता नहीं थी. चूंकि शिक्षक सुनील कुमार गौतम व चंदन वर्मा एक ही मकान में किराएदार थे, अत: उन दोनों के बीच जल्द ही जानपहचान हो गई. धीरेधीरे जानपहचान दोस्ती में बदल गई. सुनील से मिलने के बहाने चंदन वर्मा का पूनम के घर आनाजाना शुरू हो गया. खूबसूरत पूनम पहली ही नजर में चंदन के दिल में रचबस गई थी. नजदीकियां बढ़ाने को वह उस के करीब आने की कोशिश करने लगा था. 

पूनम की बेटी सृष्टि अब तक 2 साल की हो चुकी थी. चंदन वर्मा उसे खिलाने के बहाने अपने साथ ले जाता और खूब लाड़प्यार करता. उसे कभी चौकलेट तो कभी खिलौने ला कर देता. चंदन जब कभी पूनम की गोद से सृष्टि को अपनी गोद में लेता तो जानबूझ कर उस के नाजुक अंगों को छेड़ देता. पूनम तब बनावटी गुस्सा दिखाती फिर हंस कर टाल देती. चंदन पूनम की खूबसूरती की भी खूब तारीफ करता और उसे अपनी लच्छेदार बातों से रिझाने की कोशिश करता. साथ ही वह उस के नजदीक जाने की कोशिश करता. 

घर आतेजाते चंदन वर्मा और पूनम भारती की नजदीकियां बढऩे लगीं. पूनम को भी चंदन के दिल की बात का आभास हो गया था. वह भी उस की ओर आकर्षित होने लगी थी. दोनों के बीच अब हंसीमजाक भी होने लगा था. चंदन ऐसे समय पूनम से मिलने आता था, जब सुनील घर पर नहीं होता था. 

चंदन की बांहों में ऐसे समा गई पूनम

एक दिन चंदन आया तो पूनम सजधज कर बाजार जाने की तैयारी कर रही थी. उस की खूबसूरती देख कर चंदन मचल उठा. उस ने पूनम को बांहों में भर लिया और बोला, ”भाभी, मैं तुम से बेहद प्यार करता हूं. तुम्हारे बिना अब रहा नहीं जाता.’’

चंदन, यह दीवानापन छोड़ो और अब चुपचाप चले जाओ. कहीं मास्टर साहब आ गए तो पता नहीं क्या सोचेंगे.’’ पूनम ने उस की आंखों में झांकते हुए कहा. 

भाभी, मैं चला तो जाऊंगा, लेकिन खाली हाथ नहीं जाऊंगा. आज तो तुम्हारा प्यार ले कर ही जाऊंगा.’’ कहते हुए उस ने पूनम को फिर से बाहों में कैद कर लिया. पूनम ने उस की बांहों से छूटने का बनावटी विरोध किया. उस के बाद स्वयं सहयोग करने लगी. फिर तो उस रोज दोनों के बीच मर्यादा की दीवार ढह गई.

मर्यादा की दीवार टूटी तो पूनम को अपने किए पर पछतावा हुआ था, लेकिन जो नहीं होना चाहिए था, वह हो चुका था. लेकिन पछतावे के बावजूद पूनम के कदम नहीं रुके. जब भी पूनम और चंदन को मौका मिलता, वे सुनील के साथ विश्वासघात करने से नहीं चूकते थे. पूनम और चंदन जो भी करते थे, पूरी चौकसी से करते थे, लेकिन उन के ये संबंध ज्यादा दिनों तक छिपे नहीं रह सके. एक दिन सुनील को पूनम के मोबाइल पर वाट्सऐप चैट दिखी. उसे यकीन हो गया कि दोनों के बीच नाजायज रिश्ता है. उस ने पूनम और चंदन दोनों को समझाया, लेकिन चंदन नहीं माना. वह किसी न किसी बहाने उस के घर आ जाता. 

12 मार्च, 2021 को सुनील कुमार गौतम का तबादला अमेठी हो गया. अमेठी जिले के सिंहपुर ब्लौक के पनहौना प्राथमिक विद्यालय में उसे शिक्षक पद पर तैनाती मिली. दरअसल, सुनील ने अपना परिवार टूटने से बचाने के लिए रायबरेली से दूर अपना ट्रांसफर खुद कराया था, ताकि चंदन वर्मा वहां आजा न सके.  तबादले के बाद सुनील ने रायबरेली वाला कमरा खाली कर दिया और जुलाई, 2024 में अमेठी में मुन्ना अवस्थी के मकान में परिवार के साथ रहने लगा. अमेठी में कुछ माह तो सुकून से बीते, उस के बाद चंदन वर्मा फिर चोरीछिपे वहां आने लगा. पूनम और चंदन के बीच हर रोज मोबाइल फोन पर वीडियो कालिंग के जरिए बात होती. दोनों खूब बतियाते. 

पूनम के प्यार में चंदन वर्मा इतना अंधा हो गया था कि वह पूनम को अपनी पत्नी बनाने का ख्वाब देखने लगा था. वह जो कमाता था, उस का आधा भाग पूनम पर खर्च करता था. उस ने अपने घर के जेवर तक पूनम को दे दिए थे. वह पूनम से कहता भी था कि इस मास्टर को छोड़ दो और उस की बीवी बन जाओ, लेकिन पूनम राजी नहीं होती थी. अप्रैल 2024 में सुनील कुमार ने मकान बनाने के लिए अमेठी में 2 बिस्वा जमीन खरीदी. जमीन की लिखापढ़ी में गवाह की जरूरत थी. पूनम के कहने पर सुनील ने चंदन वर्मा को गवाह बना लिया. इस के बाद चंदन का बेधड़क घर में आनाजाना फिर बढ़ गया. हालांकि चंदन का घर आना सुनील को कांटे की तरह चुभता था. 

सुनील क्यों डरने लगा पत्नी के प्रेमी से

एक रोज सुनील शाम को स्कूल से घर आया तो चंदन घर में मौजूद था. वह पूनम से बतिया रहा था. यह देख कर उस का खून खौल उठा. उस के जाने के बाद सुनील ने पूनम को आड़े हाथों लिया और कहा कि वह चंदन को लिफ्ट न दे. उस से दूरियां बनाए ताकि उस का परिवार न बिखरे. पति की बात मान कर पूनम ने चंदन को लिफ्ट देना बंद कर दिया. वह अब न तो उस से मोबाइल फोन पर बात करती और न ही वीडियो काल पर. इस पर वह घर आ कर पूनम को धमकाता कि वह बात नहीं करेगी तो वह सिर में गोली मार कर आत्महत्या कर लेगा. पूनम तब डर जाती और उस की बात मान लेती. 

अब तक सुनील 2 बेटियों का बाप बन चुका था. बड़ी बेटी सृष्टि 5 साल की थी और छोटी बेटी समीक्षा डेढ़ वर्ष की थी. चंदन वर्मा दबंग था. उस के संबंध अपराधियों से भी थे. शराब पीना तथा दबंगई दिखाना उस का शौक था. वह अपने चाचा के घर तेलिया कोट में भी दबंगई दिखाता था. हालांकि वे लोग चंदन से ज्यादा संपर्क नहीं रखते थे. चंदन पूनम को धमकाता कि मास्टर को छोड़ कर उस से ब्याह रचा ले, अन्यथा तुम्हारे कुछ आपत्तिजनक फोटो मेरे मोबाइल में हैं. मैं उन्हें वायरल कर दूंगा. फिर तुम और मास्टर किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहोगे. 

चंदन वर्मा की धमकी से पूनम और सुुनील डरेसहमे रहने लगे. सुनील ने पूनम से कहा भी कि वह चंदन के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दे. लेकिन पूनम उस सनकी और दबंग चंदन के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज नहीं करा सकी. 18 अगस्त, 2024 को पूनम की बड़ी बेटी सृष्टि की तबियत खराब थी. वह उसे डाक्टर को दिखाने सुनील के साथ रायबरेली के सुमित्रा हौस्पिटल गई. बेटी को दिखाने के बाद जब वह वापस घर आ रही थी तो रास्ते में उसे चंदन मिल गया. वह पूनम को छेडऩे लगा और साथ चलने का दबाव बनाने लगा. 

सुनील ने विरोध किया तो वह उस से भिड़ गया. पहले उस ने जातिसूचक गालियां बकीं, फिर 4-5 थप्पड़ सुनील के गाल पर जड़ दिए. दोनों को जान से मारने की धमकी भी दी. सुनील के सब्र का बांध अब टूट चुका था, अत: वह पूनम को साथ ले कर सीधा सदर कोतवाली पहुंच गया और पूनम से रिपोर्ट दर्ज कराने को कहा. पूनम अब भी रिपोर्ट दर्ज कराने को राजी नहीं थी, लेकिन पति के कहने पर किसी तरह वह राजी हुई. इस के बाद पूनम ने तहरीर दी. तहरीर के आधार पर कोतवाली पुलिस ने चंदन वर्मा के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की धारा 74, 115(2) तथा 352 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली. 

दूसरे रोज पुलिस ने चंदन वर्मा को गिरफ्तार कर लिया. सप्ताह भर के भीतर ही उस की जमानत हो गई. जमानत पर छूटने के बाद चंदन वर्मा ने फिर नौटंकी शुरू की. उस ने आत्महत्या का प्रयास किया. अस्पताल से छुट्टी मिली तो उस ने पूनम व सुनील से माफी मांग ली और भविष्य में ऐसी गलती न करने का वादा किया. लेकिन वह अपनी जुबान से पलट गया. वह फिर पूनम तक पहुंचने का प्रयास करने लगा. वह पूनम से मोबाइल फोन पर बात करने का प्रयास करता, लेकिन पूनम उस की काल रिसीव ही नहीं करती. इस से उस का गुस्सा बढ़ गया. 

उस ने पूनम की उस के साथ खिंची आपत्तिजनक तसवीरें उस के मायके वालों तथा ससुराल वालों को भेज दीं. यही नहीं, उस ने पूनम की मां कृष्णावती व भाई सोनू को भी धमकाया कि वे पूनम को समझा दें. वह उस की बन जाए, अन्यथा अंजाम बुरा होगा. पूनम की बेरुखी से चंदन वर्मा को गहरा आघात पहुंचा था. वह समझ गया था कि पूनम उस के हाथ से फिसल गई है. उस का दिन का चैन और रात की नींद हराम हो गई थी. आखिर उस ने फैसला किया कि वह पूनम व उस के परिवार को मिटा देगा. इस के लिए वह योजना बनाने लगा. अपनी योजना उस ने किसी अन्य के साथ साझा नहीं की. 

फिर 12 सितंबर, 2024 को उस ने न सिर्फ पूनम बल्कि उस के पति सुनील और दोनों बच्चों की गोली मार कर हत्या कर दी. 5 अक्तूबर, 2024 को उपचार के बाद पुलिस ने चंदन वर्मा से विस्तार से पूछताछ करने के बाद उसे जिला सत्र न्यायाधीश के आवास पर पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.  दरअसल, उसे न्यायाधीश के समक्ष कोर्ट में पुलिस को पेश करना था, लेकिन कोर्ट में जनता व वकीलों में भारी रोष था. अनहोनी की आशंका को देखते हुए पुलिस को अपनी रणनीति बदलनी पड़ी.

 

 

प्रेमी संग पति की हत्या कर लाश फेंकी कुएं में

एक बच्चे की मां ज्योति अपने ममेरे देवर सुरेंद्र के साथ खूब गुलछर्रे उड़ा रही थी. एकडेढ़ साल से उन के बीच यह संबंध बिना किसी रुकावट के चल रहे थे. फिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि ज्योति को अपने पति महावीर शरण कौरव की हत्या कराने के लिए मजबूर होना पड़ा?

सुरेंद्र के आगोश में समाई ज्योति को जब संतुष्टि मिल गई तो वह अलग होते हुए बोली, ”हम ऐसे कब तक यूं ही मिलते रहेंगे. आज भी तुम्हारे भैया ने मुझ से मारपीट की. मैं कब तक उस गंजेड़ी के हाथों पिटती रहूंगी, बात अब बरदाश्त से बाहर होती जा रही है.’’ 

पलंग पर लेटे हुए सुरेंद्र ने ज्योति को फिर से अपनी बाहों में खींचते हुए कहा, ”मेरी जान, तुम चिंता क्यों करती हो? महावीर भैया तो बेवकूफ है. वह सारी सच्चाई जानता है, फिर भी तुम पर अत्याचार करता है. अब वह अगर ज्यादा परेशान करे तो उसे पलट कर जवाब देना.’’ 

यह बात तो ठीक है, लेकिन अगर तुम हमेशा के लिए मुझे अपनी बना कर रखना चाहते हो तो इस गंजेड़ी आदमी को मेरी जिंदगी से दूर कर दो,’’ ज्योति ने सुरेंद्र की बाहों में कसमसाते हुए कहा. 

सुरेंद्र ने ज्योति का मन टटोलते हुए पूछा, ”तुम चाहो तो मैं तुम्हें उस से तलाक दिलवा सकता हूं.’’ 

इस पर ज्योति बोली, ”वह इस जन्म में मुझे तलाक नहीं देगा. मेरी मानो तो उसे इस दुनिया से विदा कर दो. इस काम में मैं तुम्हारा पूरा साथ दूंगी.’’ ज्योति की बात सुन कर सुरेंद्र की आंखों में चमक आ गई, फिर भी उस ने नाराजगी जताते हुए कहा कि ज्योति तुम ने तो बहुत दूर की बात सोच ली. महावीर को मरवा कर खुद भी जेल जाओगी और मुझे भी जेल भिजवा दोगी. 

ज्योति ने सुरेंद्र के चेहरे को हाथ से अपनी ओर करते हुए कहा, ”तुम भी क्या बकवास करते हो? मेरी बनाई योजना से उस का टेंटुआ दबाओगे तो तुम्हें कुछ नहीं होगा. अगर इस गंजेड़ी पति से जल्द छुटकारा नहीं मिला तो मैं खुदकुशी कर लूंगी.’’ 

ज्योति के मुंह से खुदकुशी की बात सुन कर सुरेंद्र की आंखों में खून उतर आया. वह तैश में आ कर बोला, ”मैं तुम्हें खुदकुशी करने की नौबत नहीं आने दूंगा. जल्दी ही महावीर का टेंटुआ दबा कर उस का काम तमाम कर दूंगा. तुम चिंता मत करो.’’ 

सुरेंद्र के मुंह से पति को दुनिया से विदा करने की बात सुन कर ज्योति खुश होते हुए बोली, ”ठीक है, मंगलवार को तुम महावीर को ग्वालियर जेल में हत्या के मामले में बंद रिश्तेदार से मिलने के बहाने घर से बुला कर साथ ले जाना और जेल में मुलाकात के बाद ररुआ गांव जाने की बात कह कर रास्ते में सुनसान जगह पर उसे मौत के घाट उतार देना. यह काम तुम्हें बड़ी होशियारी से करना होगा. अगर यह कांटा निकल गया तो जीवन भर मैं तुम्हारी ही बन कर रहूंगी.’’ 

इतना कह कर ज्योति ने सुरेंद्र का हाथ पकड़ लिया. सुरेंद्र ने ज्योति का हाथ अपने सीने पर रख कर कहा कि तुम अपने इस आशिक पर भरोसा रखो, मैं ने तुम से प्यार किया है और मरते दम तक तुम्हारा दामन छोडऩे वाला नहीं हूं. मैं जीवन भर साथ निभाऊंगा. यह कह कर सुरेंद्र ज्योति के घर से चला गया. यह बात 3 सितंबर, 2024 की सुबह की थी. उसी दिन सुबह करीब 10 बजे महावीर अपने घर लौटा तो ज्योति सजधज कर उस का इंतजार कर रही थी. सजीधजी ज्योति को देख कर महावीर को हैरानी हुई. वह कुछ पूछता, इस से पहले ही ज्योति चाय बना कर ले आई और पति महावीर से मीठीमीठी बातें करने लगी. 

ज्योति ने पति से कहा कि तुम्हें मेरा बदला हुआ रूप देख कर अचंभा हो रहा होगा. दरअसल, आज पड़ोस में रहने वाली गुप्ता आंटी के साथ मैं एक ज्योतिषी के पास गई थी. उन्होंने मेरा हाथ देख कर कहा कि तुम्हारा अपने पति से अकसर विवाद होता रहता है.

ऐसे हुई हत्या की प्लानिंग

पत्नी ज्योति की ओर मुखातिब हो कर महावीर ने आंखें दिखाते हुए कहा, ”यह बात ज्योतिषी ने कही या तुम ने खुद उस की चिकनीचुपड़ी बातों में आ कर बताई.’’  इस पर ज्योति बोली, ”भला मैं क्यों ज्योतिषी को ऐसी बातें बताने लगी, वैसे भी हमारे बीच कोई विवाद है ही कहां? मैं तुम्हारे ममेरे भाई सुरेंद्र से थोड़ा हंसबोल लेती हूं. इतनी सी बात पर तुम मुझ से झगड़ा करने लगे और उल्टासीधा बोलने लगे. अब ज्योतिषी ने कहा है कि मैं हमेशा तुम्हारा सहयोग करूं और तुम्हारी सेवा में कोई कमी नहीं छोड़ूं, इस से हमारा प्यार बना रहेगा.’’ 

ज्योति की ये बातें सुन कर महावीर का गुस्सा शांत हो गया. वह चाय पीने के बाद अपने काम में लग गया.  उसी दिन दोपहर करीब 3 बजे योजना के अनुसार सुरेंद्र महावीर के घर पहुंचा. उस ने महावीर से कहा कि मैं ग्वालियर जेल में हत्या के मामले में बंद रिश्तेदार से मुलाकात करने जा रहा हूं, अगर तुम्हारी भी चलने की इच्छा हो तो अपनी बाइक निकालो, दोनों साथ चलते हैं. ग्वालियर जेल में रिश्तेदार से मिलने जाने की बात पर महावीर तैयार हो गया. उस ने अपनी बाइक निकाली. दोनों ग्वालियर के लिए चल दिए. जब वे ग्वालियर जेल पहुंचे, तब तक बंदियों से मुलाकात का समय खत्म हो चुका था. इस पर सुरेंद्र और महावीर ने वह रात रेलवे स्टेशन के बाहर गुजारी. 

अगले दिन यानी 4 सितंबर की सुबह सुलभ शौचालय में दैनिक कार्यों से निवृत्त हो कर उन्होंने नाश्ता किया. इस के बाद दोनों ने ग्वालियर जेल में बंद रिश्तेदार से मुलाकात की. मुलाकात के बाद सुरेंद्र और महावीर चल दिए, तब तक दोपहर हो गई थी. उन्हें भूख भी लग रही थी. दोनों ने एक होटल पर खाना खाया. भोजन के पैसे सुरेंद्र ने दिए. खाना खाने के बाद सुरेंद्र ने ज्योति की योजना के मुताबिक महावीर से कहा कि तुम्हारे गांव ररुआ चलते हैं. मुझे भी बुआफूफा से मिले बहुत समय हो गया है. तुम अपने मातापिता से मिल लेना. ररुआ से मैं अपने गांव मुरावली चला जाऊंगा और तुम अपने घर गुडीगुडा नाका चले जाना. रास्ते में पीने के लिए मैं गांजा खरीद लेता हूं. 

दोनों गांजा पीने के शौकीन थे. इसलिए सुरेंद्र की बात पर महावीर खुश हो गया. सुरेंद्र ने ग्वालियर में ही एक जगह से गांजा खरीदा. इस के बाद वे दोनों बाइक पर ररुआ गांव की तरफ चल दिए.  रास्ते में वे आपस में बातें करते हुए जा रहे थे. उटीला के पास सुरेंद्र के मोबाइल पर ज्योति का 2 बार फोन आया तो सुरेंद्र ने महावीर से कह कर बाइक रुकवाई और ज्योति से हां हूं करते हुए बात की. इस के बाद दोनों फिर चल दिए. कुछ दूर चलने पर भोगीपुरा से आगे सुनसान जगह पर पेड़ों की छाया देख कर सुरेंद्र ने गांजा पीने के बहाने कुएं के पास बाइक रुकवाई. महावीर और सुरेंद्र वहां मंदिर के बाहर बने चबूतरे पर बैठ गए. वे गांजा पीने लगे. इस बीच महावीर ने सुरेंद्र से पूछा कि ज्योति का फोन तेरे मोबाइल पर क्यों आ रहा है

इसी बात पर दोनों में विवाद होने लगा. विवाद के बीच सुरेंद्र ने महावीर के सिर पर बड़े से पत्थर से वार कर दिया. महावीर के सिर पर गहरी चोट लगी और तेजी से खून बहने लगा. महावीर वहीं लुढ़क गया. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई. सुरेंद्र को जब यह पूरा विश्वास हो गया कि महावीर मर चुका है तो वह नफरत से उस पर थूकता हुआ बोला, ”मर गया कमीना. मेरे और ज्योति के बीच का कांटा हमेशा के लिए निकल गया.’’ 

इस के बाद सुरेंद्र ने खुद को संभाला और महावीर की लाश चबूतरे से घसीट कर वहां पास ही बने कुएं में डाल दी. सुरेंद्र को भरोसा था कि दूसरे गांव में महावीर की शिनाख्त नहीं हो पाएगी तो मामला रफादफा हो जाएगा. पूरी तरह निश्चिंत हो कर सुरेंद्र ने ज्योति को फोन किया और कहा कि महावीर का काम तमाम कर दिया है. सबूत मिटाने के लिए सुरेंद्र ने महावीर की बाइक नहर के पास लावारिस छोड़ दी. उस का मोबाइल और खुद के खून सने कपड़े रतनगढ़ माता मंदिर मार्ग पर झाडिय़ों में फेंक दिए. 

इस के बाद रात को सुरेंद्र अपनी प्रेमिका ज्योति के पास पहुंचा. ज्योति भी उस का बेसब्री से इंतजार कर रही थी. दोनों ने मौजमस्ती कर महावीर की मौत का जश्न मनाया. ज्योति और सुरेंद्र ने पूरी रात एकदूसरे की बाहों में गुजारी. सुबह होने पर ज्योति के कहने पर सुरेंद्र अयोध्या घूमने चला गया.

किस की थी कुएं में मिली लाश

5 सितंबर की सुबह रोजाना की तरह चरवाहे अपने पशुओं को ले कर भोगीपुरा में रोड किनारे पिंटू गुर्जर के खेत में बने कुएं पर पानी पिलाने पहुंचे तो एक चरवाहे की नजर अनायास ही कुएं में पड़ी युवक की लाश पर चली गई. लाश देख कर भय के मारे चरवाहे के मुंह से चीख निकल गई. उस ने आवाज लगा कर अपने साथी चरवाहों को वहां बुला लिया और उन्हें भी कुएं में पड़ी लाश दिखाई. लाश देख कर चरवाहे आपस में बतियाने लगे. उन्हीं में से किसी ने उटीला थाने में फोन कर कुएं में युवक की लाश पड़ी होने की सूचना दे दी.

इस सूचना को एसएचओ शिवम राजावत ने गंभीरता से लिया. वह जब तक कुछ सिपाहियों को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंचे, तब तक कुएं में लाश पड़ी होने का पता चलने पर आसपास के गांवों के लोगों की अच्छीखासी भीड़ कुएं के पास जमा हो चुकी थी. इन में महिलाओं से ले कर बड़ेबूढ़े और बच्चे भी शामिल थे. मौके पर पहुंची पुलिस ने लोगों को घटनास्थल से दूर हटाया. वे लोग युवक की लाश को ले कर तरहतरह की चर्चा में मशगूल थे. इस बीच एसएचओ की सूचना पर एसडीआरएफ की टीम भी मौके पर पहुंच गई. 

बेहट एसडीओपी संतोष पटेल और उटीला थाने के एसएचओ शिवम राजावत की मौजूदगी में एसडीआरएफ टीम के एक सदस्य को रस्सी के जरिए कुएं में उतार कर युवक के शव को रस्सी से बांध कर बाहर निकाला गया. अधिकारियों ने शव का निरीक्षण किया तो उस के सिर में एक बड़ा सा घाव दिखाई दिया. इस से यह बात तय हो गई कि युवक की मौत पानी में डूबने से नहीं हुई थी. उस के सिर पर किसी भारी चीज से वार किया गया, जिस से उस की मौत हुई होगी. 

लाश देख कर अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि उस की हत्या 15-16 घंटे पहले की गई होगी. मृतक की उम्र 32 साल से ज्यादा नहीं लग रही थी. शक्लसूरत और पहनावे से वह मध्यमवर्गीय परिवार का लग रहा था. एसएचओ ने मौके पर मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की, लेकिन कोई भी मृतक की पहचान नहीं कर सका. इस से यह बात साफ हो गई कि मृतक आसपास का रहने वाला नहीं है. उस की हत्या करने के बाद लाश को कुएं में फेंका गया था. घटनास्थल की जांचपड़ताल में अधिकारियों को खून लगे पत्थर के अलावा ऐसा कुछ भी नहीं मिला, जिस से यह पता चलता कि मृतक कौन है? उस की हत्या किस ने और क्यों की

पुलिस ने लाश के फोटोग्राफ कराने के बाद जरूरी औपचारिकताएं पूरी कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस बीच ग्वालियर के एडिशनल एसपी शियाज के.एम. ने एसएचओ शिवम राजावत और एसडीओपी संतोष पटेल को फोन कर इस मामले का जल्द खुलासा करने का निर्देश देते हुए बताया कि एसपी राकेश सगर ने इस घटना के हत्यारों पर 10 हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया है. अधिकारियों के सामने लाश की शिनाख्त करना सब से बड़ी चुनौती थी. आमतौर पर ऐसे मामलों में पुलिस आसपास के थानों से गुमशुदा लोगों के बारे में पता करती है. एसएचओ शिवम राजावत ने भी यही किया. उन्होंने ग्वालियर के सभी पुलिस थानों से पता कराया कि कहीं इस हुलिए के किसी युवक की गुमशुदगी तो दर्ज नहीं है. उन की यह कोशिश बेकार गई, क्योंकि इस तरह के हुलिए वाले युवक की ग्वालियर के किसी भी थाने में कोई गुमशुदगी दर्ज नहीं थी. 

इस के बाद उन्होंने एसआई शुभम शर्मा, एएसआई हरिओम शर्मा, हैडकांस्टेबल सुनील गोयल व प्रमोद रावत, कांस्टेबल अनिल शर्मा, मुकेश, शैलेंद्र राजीव, सोनू राजपूत, मनीष राठौर, जितेंद्र, अभिलाष तोमर की टीम गठित कर इस केस को खोलने में लगा दिया. इस के अलावा उन्होंने कत्ल की इस गुत्थी को सुलझाने के लिए अपने भरोसेमंद मुखबिरों की भी मदद ली. साथ ही खुद भी अपने स्तर पर जानकारी जुटाने में जुट गए. यह केस उटीला के एसएचओ शिवम राजावत के लिए किसी अबूझ पहेली से कम नहीं था, क्योंकि घटनास्थल पर उन्हें कोई ऐसा सबूत नहीं मिला था, जिस से लाश की शिनाख्त होती या कत्ल के बारे में कोई सुराग मिलता. 

उन की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर मृतक से हत्यारे की क्या दुश्मनी थी, जो उसे मार कर उस की लाश कुएं में फेंकी गई. इसी केस पर सोचविचार के दौरान 6 सितंबर की सुबह उन के दिमाग में ई-रक्षा ऐप का खयाल आया. 

ई-रक्षा ऐप से हुई लाश की शिनाख्त

एसएचओ ने ई-रक्षा ऐप पर गुम व्यक्तियों के बारे में जानकारी जुटाई तो उन्हें सफलता मिल गई. कुएं से मिली लाश के हुलिए के आधार पर मृतक की शिनाख्त महावीर शरण कौरव निवासी गांव ररुआ आलमपुर भिंड हाल निवास गुड़ीगुडा नाका ग्वालियर के रूप में हो गई. उस की गुमशुदगी की रिपोर्ट 5 सितंबर को भिंड जिले के आलमपुर थाने में दर्ज हुई थी. मृतक की शिनाख्त होते ही एसएचओ ने अज्ञात आरोपियों के खिलाफ बीएनएस की धारा 103 (1) 238 के तहत दर्ज कर जांच शुरू कर दी. अब पुलिस टीम महावीर के हत्यारे की खोज में जुट गई.

एसएचओ शिवम राजावत ने इस मामले की तफ्तीश की शुरुआत भोगीपुरा में तिराहे पर लगे सीसीटीवी फुटेज खंगालने से की. उन्होंने सीसीटीवी से मिले फुटेज महावीर के जानपहचान वालों और रिश्तेदारों को दिखाए और उन से पूछताछ की. इन फुटेज में दिखाई दिए एक युवक की पहचान महावीर के रिश्तेदारों ने सुरेंद्र कौरव के रूप में करते हुए यह भी बताया कि सुरेंद्र के साथ मृतक की पत्नी के अवैध संबंध हैं. अवैध संबंधों की बात सामने आने पर मामले की तह तक जाने के लिए पुलिस ने महावीर की पत्नी ज्योति और सुरेंद्र कौरव निवासी मुरावली को संदेह के घेरे में लेते हुए हिरासत में ले लिया. 

उन्होंने सब से पहले ज्योति से पूछताछ की, लेकिन उस ने महावीर की हत्या और सुरेंद्र से अवैध संबंधों के बारे में कुछ भी नहीं बताया. तब उन्होंने उस के मोबाइल फोन को चैक किया तो वह फार्मेट किया हुआ मिला. इस से यह बात साफ हो गई कि दाल में कुछ काला है. एसएचओ ने अपनी जांचपड़ताल आगे बढ़ाने के लिए ज्योति के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स देख कर वे हैरान रह गए. ज्योति के मोबाइल पर एक ही नंबर से तकरीबन 500 से ज्यादा फोन आए थे. 

तफ्तीश के दौरान पता चला कि मृतक महावीर की पत्नी ज्योति और सुरेंद्र के बीच रोजाना मोबाइल फोन पर लंबी बातचीत होती थी. 3 से 5 सितंबर के बीच भी ज्योति और सुरेंद्र के बीच कई बार काफी देर तक बातचीत हुई थी. जांच के दौरान सुरेंद्र और ज्योति पूरी तरह संदेह के दायरे में आ चुके थे. पुलिस टीम ने सुरेंद्र को दबोचने के लिए कई जगह दबिश डाली, लेकिन वह नहीं मिला. पुलिस ने मुरावली गांव में उस के घर पर भी दबिश दी, लेकिन वह वहां भी नहीं मिला. उस के घर वालों सेे पूछताछ करने पर पुलिस को पता चला कि वह 5 सितंबर को अयोध्या में रामलला के दर्शन करने गया था. 

इस पर पुलिस टीम उस की तलाश में अयोध्या पहुंची. वहां श्रीराम जन्मभूमि तीर्थस्थल और आसपास के घाट सहित अयोध्या के थाना कोतवाली क्षेत्र में सुरेंद्र की तलाश की, लेकिन पुलिस को कोई सफलता नहीं मिली. अयोध्या से पुलिस टीम खाली हाथ लौट आई. लगातार असफलता मिलने के बाद भी पुलिस टीम सरगर्मी से सुरेंद्र की तलाश में जुटी हुई थी. सुरेंद्र के फोटो ले कर पुलिस टीम विभिन्न इलाकों में उस की तलाश कर रही थी. इस बीच मुखबिर ने एसएचओ को महत्त्वपूर्ण जानकारी देते हुए बताया कि सुरेंद्र कौरव इस वक्त रनगवां तिराहे के पास स्थित यात्री प्रतीक्षालय के निकट किसी वाहन के इंतजार में खड़ा है. 

पुलिस टीम तत्काल मुखबिर की बताई जगह पर पहुंची. पुलिस को सुरेंद्र वहां खड़ा मिल गया. वह वहां से वाहन में सवार हो कर कहीं भागने की फिराक में था. पुलिस ने आरोपी सुरेंद्र को हिरासत में ले लिया. थाने ला कर उस से महावीर की हत्या के संबंध में पूछताछ की गई. पहले तो वह साफ मुकर गया, लेकिन जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह टूट गया. उस ने महावीर शरण कौरव की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि महावीर की पत्नी ज्योति के कहने पर उस की हत्या की थी. सुरेंद्र का कुबूलनामा सुन कर एसडीओपी संतोष पटेल और एसएचओ शिवम राजावत हैरान रह गए. देखने में भोलीभली लगने वाली ज्योति नागिन से भी ज्यादा खतरनाक निकली, जिस ने इश्क के नशे में चूर हो कर अपने ही पति को डस लिया. 

सुरेंद्र और ज्योति इस तरह आए करीब

सुरेंद्र और ज्योति से की गई पूछताछ में महावीर की हत्या की लव क्राइम की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार है

महावीर शरण कौरव मध्य प्रदेश के भिंड जिले के गांव ररुआ का रहने वाला था. उस के पिता महेंद्र कौरव गांव में रह कर खेतीकिसानी कर अपने परिवार का भरणपोषण करते थे. महेंद्र का बड़ा बेटा महावीर शादी के बाद अपने हिस्से में मिली 12 बीघा जमीन बंटाई पर दे कर पत्नी ज्योति और 3 साल के बेटे के साथ ग्वालियर के गुडीगुडा नाका क्षेत्र में किराए पर कमरा ले कर रहने लगा था. महावीर और सुरेंद्र आपस में रिश्तेदार थे. इस वजह से सुरेंद्र अकसर महावीर के घर आताजाता रहता था. जब कभी सुरेंद्र फुरसत में होता तो सुबह से ही महावीर के घर पर गांजा ले कर पहुंच जाता था. फिर सुरेंद्र और महावीर पूरे दिन चिलम में गांजा भर कर पीते थे. रात होने पर महावीर के घर से खाना खा कर सुरेंद्र अपने घर चला जाता था. 

इसी दौरान ज्योति की सुरेंद्र से आंखें चार हो गईं. सुरेंद्र जब भी खूबसूरत ज्योति को देखता तो उस के दिल में हलचल मच जाती थी. सुरेंद्र पर दिल आया तो ज्योति ने उस पर डोरे डालने शुरू कर दिए. ज्योति का पति महावीर अनपढ़ और भोलाभाला था. उसे मोबाइल पर इंस्टाग्राम भी चलाना नहीं आता था, जबकि 10वीं फेल ज्योति इंस्टाग्राम की शौकीन थी. महावीर का ममेरा भाई सुरेंद्र भले ही अनपढ़ था, लेकिन उसे इंस्टाग्राम चलाना आता था. इसलिए भी ज्योति सुरेंद्र को पसंद करने लगी थी. ज्योति के जेहन में क्या है, यह बात सुरेंद्र की समझ में जल्दी ही आ गई. ज्योति की निगाहों में जो प्यास झलकती थी, उसे सुरेंद्र ने भांप लिया था. इस के बाद तो ज्योति उसे हूर की परी नजर आने लगी. वह ज्योति की खूबसूरती पर फिदा हो कर उस के मोहपाश में बंधता चला गया. 

कोई डेढ़ साल पहले महावीर 2-4 दिन के लिए अपने गांव ररुआ गया हुआ था. सुरेंद्र को जब इस बात का पता चला तो पूरे दिन उस का मन किसी काम में नहीं लगा. वह ज्योति के बारे में ही सोचता रहा. दिन ढलने के बाद सुरेंद्र महावीर के घर पहुंचा तो ज्योति सजसंवर कर दरवाजे पर खड़ी मिली. उसे देख कर सुरेंद्र का दिल बेकाबू हो गया. सुरेंद्र बिना किसी हिचकिचाहट के घर के अंदर चला गया. सुरेंद्र को घर आया देख कर ज्योति ने अपनी मुसकराहट छिपा ली और भोलेपन से कहा, ”तुम्हारे भैया तो गांव गए हुए हैं.’’

भौजी, यह बात तो हमें पता है. इसीलिए तो आए हैं.’’ सुरेंद्र ने हंस कर जवाब दिया.

सुरेंद्र की बात सुन कर ज्योति बोली, ”भैया, आज आप के पास कोई काम नहीं था क्या?’’

भौजी, काम तो था, लेकिन काम करने में हमारा मन बिलकुल भी नहीं लगा.’’ सुरेंद्र ने कहा.

आखिर ऐसी क्या बात थी?’’ ज्योति ने फिर पूछा.

सच बताऊं भौजी, तुम्हारी खूबसूरती ने मुझे बेचैन कर के रख दिया है,’’ सुरेंद्र बोला.

अरे, ऐसी खूबसूरती किस काम की जिस की कोई कद्र न हो.’’ ज्योति ने बिना किसी लागलपेट के लंबी सांस ले कर कहा.

महावीर भैया आप की जरा भी कद्र नहीं करते क्या भौजी?’’ सुरेंद्र ने ज्योति के मन को टटोलते हुए कहा.

जानबूझ कर अनजान मत बनो सुरेंद्र, तुम अच्छी तरह जानते हो कि तुम्हारे भैया को गांजा पीनेपिलाने से ही फुरसत नहीं मिलती है. ऐसी स्थिति में मेरी रातें कैसे गुजरती हैं, यह मैं ही जानती हूं.’’ ज्योति रुआंसी हो कर बोली. 

भौजी, जो हाल तुम्हारा है, वही मेरा भी है. कैंसर से पत्नी की मौत के बाद उस की याद में रात भर करवट बदलता रहता हूं. यदि दिल से तुम मेरा साथ देने को तैयार हो तो हम दोनों को इस समस्या से छुटकारा मिल सकता है.’’ सुरेंद्र ने यह बात कह कर ज्योति को अपनी बाहों में भर लिया.

ज्योति ने क्यों ठिकाने लगवाया पति

ज्योति तो यही चाहती थी, लेकिन उस ने दिखावे के तौर पर आंखें तरेरते हुए कहा, ”सुरेंद्र भैया, यह क्या कर रहे हो? छोड़ो मुझे. इन बातों का पता घर और मोहल्ले वालों को चल गया तो मैं बदनाम हो जाऊंगी और कहीं भी मुंह दिखाने लायक नहीं रहूंगी.’’

नहीं भौजी, अब यह संभव नहीं है. कोई सिरफिरा ही होगा जो रूपयौवन के इस प्याले के इतने करीब पहुंच कर अपने कदम पीछे खींचेगा.’’ यह कह कर सुरेंद्र ने ज्योति पर अपनी बाहों का कसाव बढ़ा दिया.

दिखावे के लिए ज्योति न.. न… न… करती रही, जबकि वह खुद कामोत्तेजना के चलते सुरेंद्र से लिपटी जा रही थी. सुरेंद्र कोई बच्चा नहीं था जो ज्योति की इच्छा को समझ नहीं पाता. कुछ ही देर में दोनों ने मर्यादा भंग कर दी. एक बार झिझक मिटी तो सिलसिला शुरू हो गया. दोनों को जब भी मौका मिलता, वे उस का फायदा उठाते. ज्योति और सुरेंद्र अब खुश रहने लगे थे, क्योंकि दोनों की शारीरिक भूख मिटने लगी थी.  पुरानी कहावत है इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. ऐसा ही ज्योति और सुरेंद्र के संबंधों में भी हुआ, उन के नाजायज संबंधों को ले कर अड़ोसपड़ोस में बातें होने लगी. कुछ दिनों में इस की भनक महावीर को भी लग गई. 

पहले तो उस ने समाज की ऊं चनीच बता कर ज्योति को समझाया, लेकिन कोई असर न होता देख कर उस ने ज्योति पर सख्ती करनी शुरू कर दी. ज्योति पर पति की सख्ती का कोई असर नही हुआ, क्योंकि पिछले डेढ़ साल में वह सुरेंद्र के प्यार में आकंठ डूब चुकी थी. पति की सख्ती से ज्योति और सुरेंद्र को एकदूसरे से मिलने का मौका नहीं मिल रहा था. ज्योति से न मिल पाने पर सुरेंद्र की तड़प भी बढ़ती जा रही थी. दोनों के लिए यह बरदाश्त से बाहर की बात हो गई थी. आखिर एक दिन पति की गैरमौजूदगी में ज्योति ने सुरेंद्र को बुलाकर सारी बातें बताईं. फिर दोनों ने मिल कर महावीर को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. अपनी योजना पर सुरेंद्र और ज्योति यह सोच कर खुश थे कि पुलिस उन तक कभी नहीं पहुंच पाएगी और वे महावीर की गांव वाली 12 बीघा जमीन बेच कर आराम से शहर में रहेंगे, लेकिन कानून के लंबे हाथों ने उन के मंसूबों पर पानी फेर दिया. 

दोनों जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गए. मृतक महावीर का मासूम बेटा अपने बाबा महेंद्र कौरव के पास पैतृक गांव ररुआ आ गया और दादादादी के साथ रह रहा था.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

 

एनिवर्सरी पर पत्नी ने पति को बालकनी से फेंका

प्रेमिका सोफिया के लिए डिसिल्वा अपनी पैसे वाली पत्नी मैरी को जिस तरह मारना चाहता था, ठीक उसी तरह मैरी ने उसे ही ठिकाने लगा कर शिकारी को ही शिकार बना डाला सुबह नहाधो कर मैरी बाथरूम से निकली तो उस की दमकती काया देख कर डिसिल्वा खुद को रोक नहीं पाया और लपक कर उसे बांहों में भर कर बेतहाशा चूमने लगा. मैरी ने मोहब्बत भरी अदा के साथ खुद को उस के बंधन से आजाद किया और कमर मटकाते हुए किचन की ओर बढ़ गई. उस के होंठों पर शोख मुसमान थी. थोड़ी देर में वह किचन से बाहर आई तो उस के हाथों में कौफी से भरे 2 मग थे. एक मग डिसिल्वा को थमा कर वह उस के सामने पड़े सोफे पर बैठ गई

डिसिल्वा कौफी का आनंद लेते हुए अखबार पढ़ने लगा. उस की नजर अखबार में छपी हत्या की एक खबर पर पढ़ी तो तुरंत उस के दिमाग यह बात कौंधी कि वह अपनी बीवी मैरी की हत्या किस तरह करे कि कानून उस का कुछ बिगाड़ सके. वह ऐसा क्या करे कि मैरी मर जाए और वह साफ बच जाए. वह उस कहावत के हिसाब से यह काम करना चाहता था कि सांप भी मर जाए और लाठी भी टूटे. डिसिल्वा ने 2 साल पहले ही मैरी से प्रेमविवाह किया था. अब उसे लगने लगा था कि मैरी ने उस पर जो दौलत खर्च की है, उस के बदले उस ने उस से अपने एकएक पाई की कीमत वसूल कर ली है. अब उसे अपनी सारी दौलत उस के लिए छोड़ कर मर जाना चाहिए, क्योंकि उस की प्रेमिका सोफिया अब उस का और ज्यादा इंतजार नहीं कर सकती. वह खुद भी उस से ज्यादा दिनों तक दूर नहीं रह सकता.

लेकिन यह कमबख्त मैरी रास्ते का रोड़ा बनी हुई है. इस रोड़े को हटाए बगैर सोफिया उस की कभी नहीं हो सकेगी. लेकिन इस रोड़े को हटाया कैसे जाए? डिसिल्वा मैरी को ठिकाने लगाने के बारे में सोचते हुए इस तरह डूब गया कि कौफी पीना ही भूल गया. डिसिल्वा को सोच में डूबा देख कर मैरी बोली, ‘‘तुम कहां खोए हो कि कौफी पीना भी भूल गए. तुम्हारी कौफी ठंडी हो रही है. और हां, हमारी बालकनी के एकदम नीचे एक गुलाब खिल रहा है. जरा देखो तो सही, कितना खूबसूरत और दिलकश लग रहा है. शाम तक वह पूरी तरह खिल जाएगा. सोच रही हूं, आज शाम की पार्टी में उसे ही अपने बालों में लगाऊं. डार्लिंग, आज हमारी मैरिज एनवरसरी है, तुम्हें याद है ना?’’

‘‘बिलकुल याद है. और हां, गुलाब कहां खिल रहा है?’’ डिसिल्वा ने मैरी की आंखों में शरारत से झांकते हुए हैरानी से पूछा.

‘‘बालकनी के ठीक नीचे जो गमला रखा है, उसी में खिल रहा है.’’ मैरी ने कहा.

बालकनी के ठीक नीचे गुलाब खिलने की बात सुन कर डिसिल्वा के दिमाग में तुरंत मैरी को खत्म करने की योजना गई. उस ने सोचा, शाम को वह गुलाब दिखाने के बहाने मैरी को बालकनी तक ले जाएगा और उसे नीचे खिले गुलाब को देखने के लिए कहेगा. मैरी जैसे ही झुकेगी, वह जोर से धक्का देगा. बस, सब कुछ खत्म. मैरी बालकनी से नीचे गमलों और रंगीन छतरियों के बीच गठरी बनी पड़ी होगी. इस के बाद वह एक जवान गमजदा पति की तरह रोरो कर कहेगा, ‘हाय, मेरी प्यारी बीवी, बालकनी से इस खूबसूरत गुलाब को देखने के लिए झुकी होगी और खुद को संभाल पाने की वजह से नीचे गई.’

अपनी इस योजना पर डिसिल्वा मन ही मन मुसकराया. उसे पता था कि शक उसी पर किया जाएगा, क्योंकि बीवी की इस अकूत दौलत का वही अकेला वारिस होगा. लेकिन उसे अपनी बीवी का धकेलते हुए कोई देख नहीं सकेगा, इसलिए यह शक बेबुनियाद साबित होगा. सड़क से दिखाई नहीं देगा कि हुआ क्या था? जब कोई गवाह ही नहीं होगा तो वह कानून की गिरफ्त में कतई नहीं सकेगा. इस के बाद पीठ पीछे कौन क्या सोचता है, क्या कहता है, उसे कोई परवाह नहीं है. डिसिल्वा इस बात को ले कर काफी परेशान रहता था कि सोफिया एक सस्ते रिहाइशी इलाके में रहती थी. वैसे तो उस की बीवी मैरी बहुत ही खुले दिल की थी. वह उस की सभी जरूरतें बिना किसी रोकटोक के पूरी करती थी. तोहफे देने के मामले में भी वह कंजूस नहीं थी, लेकिन जेब खर्च देने में जरूर आनाकानी करती थी. इसीलिए वह अपनी प्रेमिका सोफिया पर खुले दिल से खर्च नहीं कर पाता था

सोफिया का नाम दिमाग में आते ही उसे याद आया कि 11 बजे सोफिया से मिलने जाना है. उस ने वादा किया था, इसलिए वह उस का इंतजार कर रही होगी. अब उसे जाना चाहिए, लेकिन घर से बाहर निकलने के लिए वह मैरी से बहाना क्या करे? बहाना तो कोई भी किया जा सकता है, हेयर ड्रेसर के यहां जाना है या शौपिंग के लिए जाना है. वैसे शौपिंग का बहाना ज्यादा ठीक रहेगा. आज उस की शादी की सालगिरह भी है. इस मौके पर उसे मैरी को कोई तोहफा भी देना होगा. वह मैरी से यही बात कहने वाला था कि मैरी खुद ही बोल पड़ी, ‘‘इस समय अगर तुम्हें कहीं जाना है तो आराम से जा सकते हो, क्योंकि मैं होटल डाआर डांसिंग क्लास में जा रही हूं. आज मैं लंच में भी नहीं सकूंगी, क्योंकि आज डांस का क्लास देर तक चलेगा.’’

‘‘तुम और यह तुम्हारी डांसिंग क्लासमुझे सब पता है.’’ डिसिल्वा ने मैरी को छेड़ते हुए कहा, ‘‘मुझे लगता है, तुम उस खूबसूरत डांसर पैरी से प्यार करने लगी हो, आजकल तुम उसी के साथ डांस करती हो ?’’

‘‘डियर, मैं तो तुम्हारे साथ डांस करती थी और तुम्हारे साथ डांस करना मुझे पसंद भी था. लेकिन शादी के बाद तो तुम ने डांस करना ही छोड़ दिया.’’ मैरी ने कहा.

‘‘आह! वे भी क्या दिन थे.’’ आह भरते हुए डिसिल्वा ने छत की ओर देखा. फिर मैरी की आंखों में आंखें डाल कर पूछा, ‘‘तुम्हें जुआन के यहां वाली वह रात याद है , जब हम ने ब्लू डेनूब की धुन पर एक साथ डांस किया था?’’ 

डिसिल्वा ने यह बात मैरी से उसे जज्बाती होने के लिए कही थी. क्योंकि उस ने तय कर लिया था कि अब वह उस के साथ ज्यादा वक्त रहने वाली नहीं है. इसलिए थोड़ा जज्बाती होने में उसे कोई हर्ज नहीं लग रहा था.

‘‘मैं वह रात कैसे भूल सकती हूं. मुझे यह भी याद है कि उस रात तुम ने अपना इनाम लेने से मना कर दिया था. तुम ने कहा था, ‘हम अपने बीच रुपए की कौन कहे, उस का ख्याल भी बरदाश्त नहीं कर सकते.’ तुम्हारी इस बात पर खुश हो कर मैं ने तुम्हारा वह घाटा पूरा करने के लिए तुम्हें सोने की एक घड़ी दी थी, याद है तुम्हें?’’

‘‘इतना बड़ा तोहफा भला कोई कैसे भूल सकता है.’’ डिसिल्वा ने कहा. इस के बाद डिसिल्वा सोफिया से मिलने चला गया तो मैरी अपने डांस क्लास में चली गई. डिसिल्वा सोफिया के यहां पहुंचा. चाय पीने के बाद आराम कुर्सी पर सोफिया को गोद में बिठा कर डिसिल्वा ने उसे अपनी योजना बताई. सोफिया ने उस के गालों पर एक चुंबन जड़ते हुए कहा, ‘‘डार्लिंग, आप का भी जवाब नहीं. बस आज भर की बात है, कल से हम एक साथ रहेंगे.’’

दूसरी ओर होटल डाआर में मैरी पैरी की बांहों में सिमटी मस्ती में झूम रही थी. वह अपने पीले रंग के बालों वाले सिर को म्यूजिक के साथ हिलाते हुए बेढं़गे सुरों में पैरी के कानों में गुनगुना रही थी. पैरी ने उस की कमर को अपनी बांहों में कस कर कहा, ‘‘शरीफ बच्ची, इधरउधर के बजाए अपना ध्यान कदमों पर रखो. म्यूजिक की परवाह करने के बजाए बस अपने पैरों के स्टेप के बारे में सोचो.’’

‘‘मैं तुम्हारे साथ डांस कर रही होऊं तो तुम मुझ से इस तरह की उम्मीद कैसे कर सकते हो? फिर यह क्या मूर्खता है, तुम मुझे बच्ची क्यों कह रहे हो?’’

‘‘बच्ची नहीं तो और क्या हो तुम?’’ पैरी ने कहा, ‘‘एक छोटी सी शरीफ, चंचल लड़की, जो अपने अभ्यास पर ध्यान देने के बजाए कहीं और ही खोई रहती है. अच्छा आओ, अब बैठ कर यह बताओ कि रात की बात का तुम ने बुरा तो नहीं माना? रात को मैं ने तुम्हारे पैसे लेने से मना कर दिया था ना. इस की वजह यह थी कि मैं इस खयाल से भी नफरत करता हूं कि हमारी दोस्ती के बीच पैसा आए.’’

‘‘मैं ने बिलकुल बुरा नहीं माना. उसी कसर को पूरा करने के लिए मैं तुम्हारे लिए यह प्लैटिनम की घड़ी लाई हूं, साथ में चुंबनों की बौछार…’’ कह कर मैरी पैरी के चेहरे को अपने चेहरे से ढक कर चुंबनों की बौछार करने लगी. डिसिल्वा ने मैरी को तोहफे में देने के लिए हीरे की एक खूबसूरत, मगर सेकेंड हैंड क्लिप खरीदी थी. उस के लिए इतने पैसे खर्च करना मुश्किल था, लेकिन उस ने हिम्मत कर ही डाली थी. क्योंकि बीवी के लिए उस का यह आखिरी तोहफा था. फिर मैरी की मौत के बाद यह तोहफा सोफिया को मिलने वाला था. जो आदमी अपनी बीवी की शादी की सालगिरह पर इतना कीमती तोहफा दे सकता है, उस  पर अपनी बीवी को कत्ल करने का शक भला कौन करेगा?

डिसिल्वा ने हीरे की क्लिप मैरी को दी तो वाकई वह बहुत खुश हुई. वह  नीचे पार्टी में जाने को तैयार थी. उस ने डिसिल्वा का हाथ पकड कर बालकनी की ओर ले जाते हुए कहा, ‘‘आओ डार्लिंग, तुम भी देखो वह गुलाब कितना खूबसूरत लग रहा है. ऐसा लग रहा है, कुदरत ने उसे इसीलिए खिलाया है कि मैं उसे अपने बालों में सजा कर सालगिरह की पार्टी में शिरकत करूं.’’ डिसिल्वा के दिल की धड़कन बढ़ गई. उसे लगा, कुदरत आज उस पर पूरी तरह मेहरबान है. मैरी खुद ही उसे बालकनी की ओर ले जा रही है. सब कुछ उस की योजना के मुताबिक हो रहा है. किसी की हत्या करना वाकई दुनिया का सब से आसान काम है.

डिसिल्वा मैरी के साथ बालकनी पर पहुंचा. उस ने झुक कर नीचे देखा. उसे झटका सा लगा. उस के मुंह से चीख निकली. वह हवा में गोते लगा रहा था. तभी एक भयानक चीख के साथ सब कुछ  खत्म. वह नीचे छोटीछोटी छतरियों के बीच गठरी सा पड़ा था. उस के आसपास भीड़ लग गई थी. लोग आपस में कह रहे थे, ‘‘ओह माई गौड, कितना भयानक हादसा है. पुलिस को सूचित करो, ऐंबुलेंस मंगाओ. लाश के ऊपर कोई कपड़ा डाल दो.’’ थोड़ी देर में पुलिस गई.

दूसरी ओर फ्लैट के अंदर सोफे पर हैरानपरेशान उलझे बालों और भींची मुट्ठियां लिए, तेजी से आंसू बहाते हुए मैरी आसपास जमा भीड़ को देख रही थी. लोगों ने उसे दिलासा देते हुए इस खौफनाक हादसे के बारे में पूछा तो मैरी ने रोते हुए कहा, ‘‘मेरे खयाल से वह गुलाब देखने के लिए बालकनी से झुके होंगे, तभी…’’ कह कर मैरी फफक फफक कर रोने लगी.

 

क्या प्यार में अंधी सिपाही पत्नी ने फैमिली के 5 लोगों का किया कत्ल

प्रेमी पंकज से विवाह करने के बाद नीतू ठाकुर खुश थी, लेकिन बिहार पुलिस में सिपाही की नौकरी मिल जाने के बाद वह घमंडी हो गई. इसी दौरान उस का सिपाही सूरज ठाकुर के साथ चक्कर चल गया. वासना की आग में वह इतनी अंधी हो गई कि खूनी खेल के नतीजे में 5 मौतों का मंजर सामने आया…

बिहार पुलिस की कांस्टेबल नीतू ठाकुर रात होने पर औफिस से अपने क्वार्टर पर आई थी. उस के 2 बच्चे, सास और पति काफी समय से उस का इंतजार कर रहे थे. छोटी बेटी श्रेया तो सो गई थी. सास आशा कुंवर रसोई में खाना पका रही थीं, पति पंकज कुमार सिंह साढ़े 4 साल के बेटे शिवांश के साथ बैडरूम में था. बाहर खिड़की से कमरे में बाइक की जैसे ही तेज रोशनी आई, शिवांश बोल उठा, ”मम्मी आ गइल…आ गइल.’’

भागता हुआ वह घर के मेन दरवाजे पर जा पहुंचा. मम्मी को देख कर उसे दोनों हाथों से पकड़ लिया. नीतू उसे गोद में उठाते हुए बोली, ”शिब्बू, खाना खइल!’’

ना मम्मी!’’ प्यार से शिकायती लहजे में शिवांश बोला.

ना खइल अभी तक, दादी ने कुछ देले बिया… आ पापा कहां बाडऩ हो बेटा!’’ नीतू गोद में लिए बेटे को पुचकारने लगी.

का हो कनिया, आज फिर देर से अइलू? देख तो श्रेया दूध पीए खातिर तोहरा के इंतजार करतेकरते सुत गइल बिया!’’

काहे, दूध नइखे देवलो होकरा के!’’ नीतू बोली.

कहत रही, महतारी से दूध पीयब!’’ 

सास रसोई में रोटी बेलती हुई बोली.

पंकज का करत रहुवें? हम औफिसो में ड्यूटी करीं और घर संभालीं…आ उहां के घर में खाली पलंग तोडि़हें…कोई काम करत नइखे तो कम से कम बचवन के तो संभाले के चाही!’’

उल्टा! तू रोजरोज देर से घर आवतारु, आ हमरे के ताना मारतारु…आज केकरा साथ अइलू ह! आफिस में तहार ड्यूटी तो सांझे के खत्म हो जा ला!’’ नीतू का पति पंकज नाराजगी के साथ बोला.

तू सरकारी नौकरी करब तबे न पता चली कि केतना काम करे पड़े ला…सीनियर के बात माने पड़े ला… ओकरा के बात नइखे मानब, तब हमार नौकरिए खतरा में पड़ जाई…’’

हमरा के मूरख बनवा तारु? हम नइखे जानत तहरा के काम और आफिस में ड्यूटी!’’ पंकज बोला.

का जान तर हो! जरा हमहूं तो सुनीं? …पुलिस के नौकरी बा कोने प्राइवेट नइखे! पचहत्तर गो काम करे पड़ेला…’’ नीतू बिफरती हुई बोली.

हांहां पचहत्तर गो काम में घूमेफिरे के भी बा… दोस्तयार संगे!’’ पंकज ने ताना मारा.

नीतू ठाकुर (30) बिहार में भागलपुर एसएसपी औफिस के आरटीआई सेक्शन में कांस्टेबल थी. वह रहने वाली भोजपुर जिलांतर्गत बक्सर की थी. उस ने  पुलिस में नौकरी लगने के बाद सवर्ण जाति के युवक पंकज कुमार सिंह (32 वर्ष) से प्रेम विवाह किया था. हालांकि दोनों का प्रेम संबंध काफी पहले से चल रहा था. नीतू की पहली जौइनिंग 2015 में सिपाही के तौर पर नवगछिया में हुई थी. उस के 7 साल बाद 2022 में उस की पोस्टिंग भागलपुर के एसएसपी औफिस स्थित आरटीआई सेक्शन में हो गई थी. इस तैनाती के बाद नीतू पूरे परिवार के साथ भागलपुर पुलिस लाइन के क्वार्टर नंबर सीबी-38 में आ गई थी. 

पंकज पहले अपने पैतृक शहर बक्सर के एक माल में काम करता था. वह भी पत्नी के साथ भागलपुर आ गया था और प्राइवेट जौब करने लगा था. साथ में नीतू की 65 वर्षीया सास और 2 बच्चे भी रहते थे. 

कैसे आगे बढ़ी नीतू की प्रेम कहानी

पंकज ने जब नीतू से शादी करने का फैसला लिया था, तब उसे परिवार के काफी विरोध का सामना करना पड़ा था. उन की प्रेम कहानी भी कुछ कम अनोखी नहीं थी. वे पहली बार बक्सर के एक माल में मिले थे. नीतू की मां शांति देवी जनवरी 2003 में अपने पति के निधन के बाद 4 बेटियों और एक बेटे को ले कर सारण के हरपुर जान गांव से बक्सर आ गई थीं. उन का बक्सर के नई बाजार स्थित तातो मोहल्ले में मायका था. मायके में पिता गणेश ठाकुर और भाई नागेंद्र ठाकुर के परिवार के साथ आ कर अपने पांचों बच्चों की परवरिश के लिए रहने लगी थी. इस तरह से नीतू का बक्सर ननिहाल है. उस की 2 बहनों की शादी हो चुकी थी, जबकि एक कुंवारी थी और भाई सेना में नौकरी करता था.

नीतू ने बक्सर में ही ग्रैजुएशन किया. पंकज कुमार सिंह भोजपुर जिले के मझियांव गांव का रहने वाला था. उस ने भी बक्सर कालेज से पढ़ाई की थी और बक्सर के एक माल में काम करता था. वहीं घरेलू खर्च में सहयोग देने के लिए नीतू भी काम करने आई थी, जहां उस की मुलाकात पंकज से हुई. जल्द ही वे एकदूसरे से प्यार करने लगे. जबकि वे यह जानते थे कि उन की जातियां अलगअलग हैं. पंकज नीतू से प्यार जरूर करता था और शादी भी करना चाहता था, लेकिन उसे आशंका थी कि उस के घर वाले नीतू को पसंद नहीं करेंगे. इस का मुख्य कारण नीतू का पिछड़ी जाति से होना था, जबकि पंकज सवर्ण था.

नीतू का ध्यान प्रेम संबंध को ले कर जितना था, उस से कहीं अधिक वह अपने करिअर को ले कर गंभीर थी. वह बिहार सरकार की प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होती रहती थी. पढ़ाई में अव्वल थी. दिखने में भी सुंदर और कदकाठी भी मजबूत थी. बातचीत का लहजा एकदम से स्पष्ट और ठोस था. बातें बनाना उसे नहीं आता था, लेकिन हर बात का जवाब वह तर्क के साथ देती थी. यह कहना गलत नहीं होगा कि वह एक समझदार और सुलझी हुई युवती थी और किसी को भी अपनी पहली मुलाकात में मोह लेती थी. यह बात पंकज को पसंद थी. पंकज भी कुछ इसी मिजाज का था. घर से सुखीसंपन्न था. खेतीबाड़ी थी. उस ने ठान रखा था कि सरकारी नौकरी मिले न मिले, वह एक दिन अपने पैरों पर खड़ा हो कर कुछ अलग काम करेगा. अपनी पहचान बनाएगा. 

उस के दिमाग में नई योजनाओं का आइडिया चलता रहता था. उस की यह बात नीतू को पसंद थी और उसे अपना दिल दे बैठी थी.

सिपाही बन कर नीतू क्यों हो गई घमंडी

एक दिन नीतू के लिए खुशी की वह घड़ी आ गई, जब उस ने बिहार पुलिस की प्रतियोगिता परीक्षा पास कर ली और कांस्टेबल की नौकरी मिल गई. यह जान कर पंकज भी बहुत खुश हुआ और उस ने ठान लिया कि चाहे जो अड़चन आए, वह उस से शादी जरूर करेगा. पंकज की जिंदगी में एक तरफ खुशी आई थी तो दूसरी तरफ वह तनाव से भी घिर गया था. पत्नी के ड्ïयूटी जाने पर घर संभालने की सारी जिम्मेदारी उस पर आ गई थी. न चाहते हुए उसे वह सब काम करने पड़े जो घरेलू महिलाएं करती हैं. यहां तक कि बच्चों की देखभाल में उन्हें नहलानाधुलाना, उन के कपड़ेलत्ते धोना, मलमूत्र साफ करना आदि जैसे काम भी करने पड़े. 

वह नीतू के लिए महज अपने कामधंधे के खयालों में डूबा रहने वाला एक बेरोजगार पति बन कर रह गया था. हालांकि उस के साथ उस की 65 वर्षीय मां आशा कुंवर भी रहती थीं. जैसेजैसे नीतू पर नौकरी का रंग चढऩे लगा, वैसेवैसे वह खुद को एक रुतबे वाली समझने लगी और पंकज के प्रति उस के व्यवहार में भी रूखापन आने लगा. छोटीछोटी बातों पर पंकज के काम में मीनमेख निकालने लगी थी. कई बार तो वह घर के काम में कोई गलती हो जाने पर पंकज से काफी उलझ जाती थी और बेरोजगारी का ताना मारने लगती थी.

पंकज उस के बदले हुए बरताव को समझ नहीं पा रहा था कि वह अपना बचाव कैसे करे? वह भीतर ही भीतर घुटने लगा था. उस की भावनाएं आहत होने लगी थीं. पुलिस असोसिएशन चुनाव के बाद जब से नीतू डेलिगेट्स बनी, तब से उस के व्यवहार में काफी फर्क आ गया था. उस के प्रति प्रेम में कमी आने लगी थी. इसी बीच कोरोना का दौर भी आ गया. लौकडाउन में नीतू की ड्यूटी सख्त हो गई. पंकज पर भी जिम्मेदारियों का बोझ बढ़ गया. इस दौरान नीतू पंकज पर और अधिक हुकुम जताने लगी. उस के प्रति जरा भी प्यार के बोल नहीं निकलते थे. वह उसे आदेश देने लगी, जिस से वह चिड़चिड़ा हो गया. 

वह भीतरी पीड़ा से आहत था. जब भी समय मिलता, वह अपने दोनों बच्चों संग समय बिता कर या फिर खास दोस्त को दिल की बात बता कर मन हलका कर लिया करता था. नीतू के साथ खराब होते रिश्तों के कारण बच्चों पर भी असर पडऩे लगा था. तब नीतू का तबादला भागलपुर हो गया था. शिवांश की पढ़ाई को ले कर वह चिंतित रहता था. वहीं बेटे के लिए पंकज ने घर पर महिला ट्यूटर को लगा दिया था. बाद में ट्यूशन बंद करने के बाद बेटे का टेक्नो मिशन में एडमिशन करवा दिया था.

भागलपुर के पुलिस लाइन क्वार्टर में रहते पंकज और भी परेशान हो गया था. नीतू के बदले मनमिजाज और घरपरिवार के प्रति लापरवाही को ले कर पंकज ने एक दोस्त अवध को बताया था कि वह किस हद तक बेपरवाह हो गई है. घर आते ही एसी औन कर देती है और बैड पर लेट कर मोबाइल देखने लगती है. मानो उसे किसी से कोई लेनादेना ही न हो. वह बात करते हुए भाव खाती और बातबात पर उसे दुत्कार देती थी. वह उसे कमाने के लिए शहर जाने को कहती और उस की बेरोजगारी पर तंज कसती थी. वह उसे क्वार्टर से जाने के लिए भी दबाव देने लगी थी.

इसी बीच उसे नीतू के चालचलन को ले कर भी संदेह हो गया था. कारण, नीतू का पुलिस विभाग में ही काम करने वाले सूरज ठाकुर से मेलजोल काफी बढ़ गया था. उस के साथ काम करने वाला सूरज बक्सर का ही रहने वाला था. ड्यूटी खत्म होने के बाद नीतू सूरज के साथ समय गुजारने के लिए शहर में घूमने निकल जाती थी. दोनों क्लब, पार्क आदि में घंटों साथ उठतेबैठते थे. देर से क्वार्टर पर आना उस की नियमित आदत बन गई थी. वह अकसर जब सूरज के साथ बाइक पर आती थी, तब आसपास के लोग उसे गलत निगाहों से देखते थे. कई बार पड़ोसियों ने पंकज को टोका भी था और पत्नी को गैरमर्द के साथ अधिक समय तक रहने से मना करने के लिए भी कहा था.

नवगछिया में रहते हुए पंकज नीतू के रूखेपन से आहत था, जबकि भागलपुर में उस के सामने एक नई समस्या उस की बदचलनी की आ गई थी. इस की जानकारी बहुतों को थी. भोजपुर जिले के पीरो का रहने वाला उस का दोस्त अवध भी सब कुछ जानता था. उस ने जब पंकज से कोई कदम उठाने की बात कही. तब वह मायूस हो कर अपनी भाषा में बोला, ”का बोलीं अवध… बहुते प्रयास करनी कि नीतू पहिले जेंखां हो जास, लेकिन कुछो सुने के तैयारे नइखे… अब त हमरा मारे के भी उठ जा तारी… हमरे पर हाथ देत बिया… का करी दोस्त! हम नीतू के खातिर आपन गांवजवार, रिश्तानाता सभे छोड़ देहलीं, इन का के कुछो असरे ना होता…’’

जा एक बार फिर ओकरा के प्यार से समझाव… बालबच्चे के भविष्य की खातिर बोल… शायद मन बदल जाय!!’’ अवध ने सुझाव दिया.

तू कहा तार त, जा तानी आज ड्यूटी खतम होखे समय. सूरजो से बात करब, ओकरा के समझाइब.’’ पंकज बोला.

हां, यही ठीक रही.’’

और घर में मिलीं 5 लाशें

तारीख 12 अगस्त, 2024 की सोमवार का दिन था. पंकज अपने दोस्त के कहने पर शाम के वक्त नीतू के औफिस गया. दोनों वहां नहीं मिले. पता चला कि उन दोनों को साथसाथ क्लब में जाते देखा गया है. पंकज भी वहां जा पहुंचा और सूरज को नीतू के साथ हंसहंस कर बातें करते देखा. उस के इस रोमांस को देख कर पंकज और भी चिढ़ गया. उस ने नीतू को सूरज के साथ रंगेहाथों पकड़ा था. उन्हें देखते ही पंकज आगबबूला हो गया. सूरज को समझाना तो दूर वह नीतू संग ही उलझ गया. जबरदस्त बहस होने लगी. नीतू उसे गालियां देने लगी थी. उसे बेरोजगार और नामर्द तक कह डाला था. दोनों वहीं लडऩेझगडऩे लगे. उन का झगड़ा सड़क पर आ गया.

दोनों के बीच धक्कामुक्की की नौबत आ गई. पंकज नीतू को घर चलने के लिए घसीटने लगा, इस पर नीतू ने उस पर थप्पड़ जड़ दिए थे. अचानक नीतू के इस हमले से पंकज लडख़ड़ा कर गिर पड़ा था. नीतू उस पर पैर चलाने लगी थी. वहां भीड़ जुट गई थी, जबकि मौके की नजाकत को देख कर सूरज वहां से चला गया था. थोड़ी देर बाद नीतू और पंकज अपनेअपने रास्ते चले गए थे. अगले रोज 13 अगस्त, 2024 की सुबह करीब 9 बजे नीतू के घर दूध पहुंचाने वाला दूधिया आया था. काफी देर तक आवाज लगाने के बाद भी किसी ने दरवाजा नहीं खोला, तब तक वहां आसपास के क्वार्टरों में रहने वाले पुलिसकर्मी और उस के परिवार के लोग पहुंच गए. जैसे ही उन में से एक पड़ोसी कादिर ने दरवाजे पर पैर मारा तो वह टूट गया. 

क्वार्टर के पहले कमरे में जहां नीतू की सास आशा कुंवर का गला रेता हुआ शव पड़ा था. वहीं, उस कमरे के भीतर की ओर जाने वाले बरामदे की छत से लगी लकड़ी में नायलौन की रस्सी के फंदे से पंकज का शव लटका हुआ था. बरामदे के साथ के एक दूसरे कमरे में नीतू और उस के दोनों बच्चों के भी गला रेते हुए शव पड़े थे. घटना की जानकारी मिलने पर भागलपुर (पूर्वी क्षेत्र) के डीआईजी विवेकानंद, एसएसपी आनंद कुमार, एसपी (सिटी) राज, डीएसपी (सिटी) अजय कुमार चौधरी, डीएसपी (लाइन) संजीव कुमार सहित कई पुलिस पदाधिकारी मौके पर पहुंच गए. 

घटनास्थल पर पुलिस को महिला कांस्टेबल नीतू ठाकुर (30 वर्ष), उस के 2 बच्चे यानी बेटा शिवांश उर्फ शिब्बू (साढ़े 4 वर्ष) और बेटी श्रेया (साढ़े 3 वर्ष) सहित सास आशा कुंवर (65 वर्ष) का गला रेता हुआ मिला. जबकि, नीतू के पति पंकज कुमार सिंह (32 वर्ष) का शव क्वार्टर के कमरे के बाहर फंदे से लटका हुआ मिला था. पुलिस को मौके से एक सुसाइड नोट भी मिला, जिस में पंकज ने इस बात का उल्लेख किया था कि उस की पत्नी नीतू ने पहले बच्चों और उस की मां आशा कुंवर की गला रेत कर हत्या कर दी थी. इसलिए नीतू की हत्या कर वह खुद फांसी लगा कर खुदकुशी कर रहा है.

पुलिस को घटनास्थल से घटना में प्रयुक्त चाकू और खून से सनी ईंट भी मिली. इस से यह स्पष्ट हो गया था कि नीतू की सास और उस के दोनों बच्चों का गला रेता गया होगा. जबकि नीतू की गला रेतने के बाद ईंट से कूच कर हत्या किए जाने के सबूत मिले. पुलिस इस बात की जांच में जुट गई थी सुसाइड नोट के मुताबिक पहले नीतू ने बच्चों और अपनी सास की हत्या की या फिर सभी की हत्या पंकज ने ही कर के खुदकुशी कर ली. या फिर घर में घुसे किसी अन्य व्यक्ति ने घटना को अंजाम दिया और घर के पीछे आंगन से हो कर वहां से फरार हो गया. यानी कि 4 हत्याएं और एक आत्महत्या का मामला काफी गंभीर था.

सिपाही सूरज ठाकुर के प्यार से परिवार में क्यों घुला जहर

बरामद सुसाइड नोट में पंकज ने क्राइम शाखा में कार्यरत कांस्टेबल सूरज ठाकुर को इस के लिए जिम्मेदार ठहराया था. उस ने पत्नी नीतू का अवैध संबंध होने का जिक्र भी किया था. इस कारण उस पर ही वारदात का संदेह हो गया था. उसी रोज घटना की सूचना में नीतू के मामा नागेंद्र ठाकुर को सूचना दे दी गई. उन्होंने इशाकचक थाने में केस दर्ज करवा दिया. उन्होंने दर्ज शिकायत में पंकज कुमार सिंह को ही सब का हत्यारा बताया. कांस्टेबल सूरज ठाकुर को भी इस मामले में आरोपी बनाया गया. पुलिस इस हत्याकांड की जांच में जुट गई. 

पुलिस ने बीएनएस की विभिन्न धाराओं में मामला दर्ज करते हुए 14 अगस्त, 2024 को आरोपी सूरज ठाकुर को गिरफ्तार कर लिया. उस के बारे में पता चला कि वह उस दिन दोपहर से ड्यूटी से गायब था. किशनगंज जिले के ठाकुरगंज थाना क्षेत्र में भातढाला का रहने वाला आरोपी सिपाही सूरज ठाकुर ने बिना किसी झिझक के नीतू से अपने प्रेमसंबंध कुबूल कर लिए. उस से शारीरिक संबंध की बात स्वीकार कर ली, लेकिन इस बात से इनकार किया कि इस सामूहिक हत्याकांड में उस का कोई हाथ है. सूरज के अनुसार नीतू से उस की जानपहचान भागलपुर में ही तब हुई थी, जब वह नवगछिया से ट्रांसफर हो कर एसएसपी कार्यालय के आरटीआई विभाग में आई थी. सूरज भी उसी कार्यालय के डीसीबी शाखा में तैनात था. दोनों शाखाएं एक ही कमरे में थीं. इस कारण उन की जानपहचान जल्द हो गई. उन के बीच एक संयोग और था कि दोनों एक ही बिरादरी के थे. इस कारण वे जल्द ही एकदूसरे के दोस्त बन गए थे.

सूरज सरकारी क्वार्टर में रहने के बजाय भागलपुर के सुरखीलाल मोहल्ले में किराए पर अकेले रहता था. सितंबर 2023 में सूरज कई दिनों से औफिस नहीं आया था. उसे डेंगू हो गया था. यह जान कर नीतू चिंतित हो गई थी. उन्हीं दिनों वह सूरज के कमरे पर गई. वहां उस की हालत देख कर और भी चिंतित हो गई. उस ने वहां जा कर कुछ घरेलू कामकाज निपटाए, दवाइयां दीं. इस आत्मीयता को पा कर सूरज के मन को काफी संतोष मिला. नीतू का सूरज के घर आनेजाने का सिलसिला कई दिनों तक बना रहा. वह औफिस से छुट्टी होने के बाद सूरज के पास चली जाती थी. सूरज भी उस की तीमारदारी से स्वस्थ होने लगा था. 

इस बीच इधरउधर की बातें कर एकदूसरे का मन बहला लिया करते थे. बातों ही बातों में एक दिन सूरज ने टोक दिया, ”यदि तुम पहले मिली होती तो मैं तुम से शादी कर लेता.’’  इस का जवाब नीतू ने हंसते हुए दिया था, ”अभी भी मैं जवान हूं, कहो तो पंकज को तलाक दे दूं?’’  उस के बाद दोनों हंसने लगे. सूरज बोला, ”और पंकज क्या करेगा?’’

कुछ भी करे, मुझे उस से क्या? कोई अच्छी नौकरी तो कर नहीं रहा.’’ नीतू तुनकती हुई बोली.

सूरज ने उस का हाथ थाम लिया था. धीरे से दबाता हुआ बोला, ”आई लव यू नीतू!’’

सेम टू’’ नीतू शरमाती हुई बोली.

कौन था 4 हत्याओं का जिम्मेवार

उस रोज नीतू और सूरज ने अपनेअपने दिल की बात कह डाली थी. बातों ही बातों में सूरज ने कहा था कि वह तो उसी की बिरादरी का है, चाहे तो वह उस से शादी कर सकता है. यहां तक कि उस ने नीतू और पंकज के बच्चों को अपनाने के लिए भी स्वीकृति दे दी. उस रोज एक तरह से दोनों ने विवाह करने की शपथ ले ली थी. मई 2024 में आम चुनाव होने के दरम्यान नीतू और सूरज को साथ रहने के कई मौके मिले. इसी बीच वे कामाख्या मंदिर भी घूमने गए और मौका मिलते ही दोनों ने शारीरिक संबंध भी बना लिए.

इसी साल दोनों घूमने के लिए जुलाई में दार्जिलिंग गए थे. पति पंकज से नीतू ने झूठ बोला था कि उसे वहां विशेष प्रशिक्षण के लिए बुलाया गया है. वहां भी उन्होंने शारीरिक संबंध बनाए. वारदात के दिन 12 अगस्त को नीतू ने शाम को 6 बजे सूरज को काल कर बताया कि वह पूजा करने मंदिर जा रही है. वहां से लौट कर दोबारा काल करेगी. फिर रात के करीब 8 बजे नीतू का सूरज को काल आया, लेकिन व्यस्तता की वजह से काल रिसीव नहीं कर पाया. अगले रोज जब सूरज औफिस पहुंचा, तब उसे नीतू के परिवार समेत आकस्मिक मौत की खबर मिली. वह भागाभागा नीतू के क्वार्टर पर गया. वहां बहुत भीड़ लगी थी. उस के पहुंचते ही पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया.

लव क्राइम की इस लोमहर्षक वारदात का एकमात्र आरोपी कांस्टेबल सूरज ठाकुर ही था, जिस के खिलाफ कथा लिखे जाने तक इशाकचक एसएचओ उत्तम कुमार की जांच जारी थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह संशय बना हुआ था कि किस की मौत कब हुई और किस ने किसे मारा? रेंज डीआइजी विवेकानंद के निर्देश पर एसपी (सिटी) मिस्टर राज के नेतृत्व में गठित एसआईटी इस दिशा में तेजी से काम कर रही थी. एसएसपी आनंद कुमार स्वयं मामले की मौनिटरिंग कर रहे थे. फोरैंसिक जांच टीम ने घटनास्थल पर मिले खून लगे चाकू, तौलिया के अलावा क्वार्टर के दोनों कमरों के बैड से भी फिंगर प्रिंट के नमूने ले लिए थे.

कथा लिखने तक पुलिस नीतू के प्रेमी कांस्टेबल सूरज से पूछताछ कर रही थी. बहरहाल, नीतू के घमंड और अवैध संबंधों से एक हंसताखेलता परिवार खत्म हो गया.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित