देवर-भाभी का खूनी प्यार

पहली अप्रैल, 2021 को सुबह के करीब पौने 8 बज रहे थे. राजस्थान के अलवर जिले के बहरोड़ थाने  के थानाप्रभारी विनोद सांखला को फोन पर सूचना मिली कि जखराना बसस्टैंड के पास एक बाइक और स्कौर्पियो गाड़ी की भिड़ंत हो गई है.

सूचना मिलते ही विनोद सांखला पुलिस टीम ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल पर काफी भीड़ जमा थी. पुलिस को देखते ही भीड़ थोड़ा हट गई. पुलिस ने देखा कि वहां एक व्यक्ति की दबीकुचली लाश सड़क पर पड़ी थी. थोड़ी दूरी पर मृतक की मोटरसाइकिल गिरी पड़ी थी.

घटनास्थल पर प्रत्यक्षदर्शियों ने पुलिस को बताया कि नीमराना की तरफ से स्कौर्पियो गाड़ी आई थी. स्कौर्पियो में सवार लोगों ने जानबूझ कर मोटरसाइकिल को टक्कर मारी थी. बाइक सवार स्कौर्पियो की टक्कर से उछल कर दूर जा गिरा. तब स्कौर्पियो यूटर्न ले कर आई और बाइक से गिरे युवक को कुचल कर चली गई.

गाड़ी के टायर युवक के सिर से गुजरे तो सिर का कचूमर निकल गया. जब स्कौर्पियो सवार निश्चिंत हो गए कि बाइक सवार की मौत हो गई है, तब वे वापस उसी रोड से भाग गए.वहां मौजूद लोगों ने थानाप्रभारी विनोद सांखला को बताया कि यह दुर्घटना नहीं बल्कि हत्या है. स्कौर्पियो में सवार अज्ञात लोगों ने बाइक सवार को जानबूझ कर टक्कर मार कर हत्या की है.

थानाप्रभारी ने घटना की खबर उच्च अधिकारियों को दे दी. खबर पा कर बहरोड़ के सीओ और एसडीएम घटनास्थल पर आ गए. बाइक सवार युवक की पहचान कृष्णकुमार यादव निवासी भुंगारका, महेंद्रगढ़, हरियाणा के रूप में हुई.

कृष्णकुमार यादव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय जखराना में अपर डिविजन क्लर्क के पद पर कार्यरत था. कृष्णकुमार के एक्सीडेंट होने की खबर पा कर विद्यालय के प्रधानाचार्य ने बताया कि कृष्णकुमार यादव अपने पिताजी की औन ड्यूटी मृत्यु होने पर उन की जगह मृतक आश्रित कोटे से नौकरी पर लगा था.

कृष्णकुमार अपने मांबाप का इकलौता बेटा था. वह अपने गांव भुंगारका से रोजाना बाइक द्वारा ड्यूटी आताजाता था. सीओ देशराज गुर्जर ने भी घटनास्थल का मुआयना किया और उपस्थित लोगों से जानकारी ली. जानकारी में यही सामने आया कि कृष्णकुमार की हत्या की गई है.

पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज निकाले. फुटेज से पता चला कि प्रत्यक्षदर्शियों ने जो बातें बताई थीं, वह सच थीं. हत्यारे कृष्णकुमार की हत्या को दुर्घटना दिखाना चाह रहे थे. मगर लोगों ने यह सब अपनी आंखों से देखा था.

मृतक के परिजनों को भी हत्या की खबर दे दी गई. खबर मिलते ही मृतक के घर वाले एवं रिश्तेदार घटनास्थल पर आ गए. उन से भी पुलिस ने पूछताछ की और शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पुलिस ने शव का पोस्टमार्टम कराने के बाद वह परिजनों को सौंप दिया. मृतक के परिजनों की तरफ से कृष्णकुमार की हत्या का मामला बहरोड़ थाने में दर्ज करा दिया गया.

थानाप्रभारी विनोद सांखला, एसआई सुरेंद्र सिंह और अन्य पुलिसकर्मियों की टीम ने सीसीटीवी फुटेज और स्कौर्पियो गाड़ी के नंबरों के आधार पर जांच शुरू की. पुलिस ने स्कौर्पियो गाड़ी का नंबर दे कर सभी थानों से इस नंबर की गाड़ी की जानकारी देने को कहा.

तभी जयपुर पुलिस ने सूचना दी कि इस नंबर की स्कौर्पियो गाड़ी पावटा जयपुर में खड़ी है. पुलिस टीम ने पावटा पहुंच कर वहां से स्कौर्पियो गाड़ी सहित 2 युवकों अशोक और पवन मेघवाल को भी हिरासत में ले लिया. गाड़ी के मालिक अजीत निवासी भुंगारका सहित कुछ और संदिग्ध युवकों को भी पुलिस ने पूछताछ के लिए उठा लिया.

थाने में इन सभी से पूछताछ की. अशोक व पवन मेघवाल एक ही रट लगाए थे कि उन की कृष्णकुमार से कोई दुश्मनी नहीं थी. अचानक वह गाड़ी से टकरा गया था. बाइक के एक्सीडेंट के बाद हड़बड़ाहट में गाड़ी घुमाई तो कृष्णकुमार पर गाड़ी चढ़ गई.

उन्होंने बताया कि उन्हें इस बात का डर लग रहा था कि लोग उन्हें पकड़ कर मार न डालें, इस डर के कारण वे गाड़ी भगा ले गए. मगर आरोपियों की यह बात पुलिस के गले नहीं उतर रही थी. भुंगारका निवासी अजीत ने पुलिस को बताया कि उस ने अपनी स्कौर्पियो गाड़ी एक लाख 80 हजार रुपए में सन्नी यादव को बेच दी. सन्नी ने अशोक के नाम पर यह गाड़ी खरीदी थी.

अजीत ने पुलिस को सन्नी का नाम बताया. तब तक पुलिस को लग रहा था कि अजीत का इस मामले से कोई संबंध नहीं है. अशोक और पवन मेघवाल 4 दिन तक पुलिस को एक ही कहानी बताते रहे कि अचानक बाइक से गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया था. पुलिस को भी लगने लगा था कि मामला कहीं दुर्घटना का ही तो नहीं है. मगर सीसीटीवी फुटेज में जो एक्सीडेंट का दृश्य था, वह बता रहा था कि कृष्णकुमार की साजिश के तहत हत्या की गई थी. हत्या को उन्होंने साजिश के तहत दुर्घटना का रूप देने की कोशिश की थी.

तब पुलिस अधिकारियों ने अपना पुलिसिया रूप दिखाया. बस फिर क्या था. पुलिस का असली रूप देख कर वे टूट गए और स्वीकार कर लिया कि उन्होंने जानबूझ कर कृष्णकुमार यादव की हत्या की थी, फिर उन्होंने हत्या की कहानी बता दी.

हरियाणा के नांगल चौधरी इलाके के भुंगारका गांव में कृष्णकुमार यादव अपनी पत्नी कुसुमलता (35 वर्ष) के साथ रहता था. कृष्णकुमार की 4 बहनें हैं, जिन की शादी हो चुकी थी. वे सब अपनी ससुराल में हैं. पिता की औनड्यूटी मृत्यु होने के बाद आश्रित कोटे के तहत कृष्णकुमार की क्लर्क पद पर सरकारी स्कूल में नौकरी लग गई थी. वह अपने मातापिता का इकलौता बेटा था.

कृष्णकुमार के पड़ोस में उस के चाचा मुकेश यादव रहते थे. उन का बड़ा बेटा सन्नी 10वीं कक्षा में फेल हो गया तो उस ने स्कूल छोड़ दिया. वह कोई कामधंधा नहीं करता था. कृष्णकुमार के परिवार के ठाठबाट देखता तो उसे जलन होती थी. क्योंकि कृष्णकुमार के पास करोड़ों रुपए की संपत्ति थी.

कृष्णकुमार के नाम करीब 50 बीघा जमीन थी. जोधपुर, राजस्थान के फलोदी में 17 बीघा जमीन, बहरोड़ में 2 कामर्शियल प्लौट, भुंगारका गांव में 32 बीघा जमीन व आलीशान मकान था. यह सब कृष्णकुमार के नाम था. सन्नी ने योजना बनाई कि अगर कुसुमलता को वह प्यार के जाल में फंसा क र कृष्णकुमार को रास्ते से हटा दे तो वह कुसुमलता से विवाह कर के उस की करोड़ों की प्रौपर्टी का मालिक बन सकता है.

आज से करीब 3 साल पहले सन्नी ने कुसुमलता पर डोरे डालने शुरू किए. कुसुमलता रिश्ते में उस की भाभी लगती थी. सन्नी से कुसुमलता उम्र में 10 साल बड़ी थी. मगर वह जायदाद हड़प कर करोड़पति बनने के चक्कर में अपने से 10 साल बड़ी भाभी के आसपास दुम हिलाने लगा. कृष्णकुमार ड्यूटी पर चला जाता तो कुसुमलता घर में अकेली रह जाती थी. कृष्णकुमार की गैरमौजूदगी में सन्नी उस की बीवी के पास चला आता था. सन्नी कुसुमलता के चाचा ससुर का बेटा था.

वह भाभी से हंसीमजाक करतेकरते उसे बांहों में भर कर बिस्तर तक ले आया. कुसुमलता भी जवान देवर की बांहों में खेलने लगी. वह सन्नी की दीवानी हो गई. सन्नी की मजबूत बांहों में कुसुमलता को जो शारीरिक सुख का चस्का लगा, वह दोनों को पतन के रास्ते पर ले जा रहा था.

सन्नी ने कुसुमलता को अपने रंग में ऐसा रंगा कि वह उस के लिए पति के प्राण तक लेने पर आमादा हो गई. आज से करीब डेढ़ साल पहले सन्नी ने कुसुमलता से कहा, ‘‘कुसुम, तुम रात में कृष्णकुमार को बिजली के करंट का झटका दे कर मार डालो. इस के बाद हम दोनों के बीच कोई तीसरा नहीं होगा. पति की जगह तुम्हारी नौकरी भी लग जाएगी. फिर मैं तुम से विवाह कर लूंगा और फिर हम मौज की जिंदगी जिएंगे.’’

‘‘ठीक है सन्नी, मैं पति को रास्ते से हटाने का इंतजाम करती हूं.’’ कुसुमलता ने हंसते हुए कहा. वह देवर के प्यार में पति की हत्या करने करने का मौका तलाशने लगी. एक दिन कृष्णकुमार रात में गहरी नींद में था. तब कुसुमलता ने उसे बिजली का करंट दिया. करंट का कृष्णकुमार को झटका लगा तो वह जाग गया. तब बीवी ने कूलर में करंट आने का बहाना बना दिया. कृष्णकुमार को करंट का झटका लगा जरूर था, मगर वह मरा नहीं.

यह सुन कर सन्नी बोला, ‘‘कुसुम, जल्द से जल्द कृष्ण का खात्मा करना होगा.’’  ‘‘तुम ही यह काम किसी से करा दो. मैं तुम्हारे साथ हूं मेरी जान.’’ कुसुमलता बोली.कुसुमलता और सन्नी जल्द से जल्द कृष्णकुमार को रास्ते से हटाना चाहते थे. कृष्ण के ड्यूटी जाने के बाद वाट्सऐप कालिंग पर दोनों बातचीत करते थे. सन्नी ने अपने छोटे भाई की शादी कर दी थी. खुद शादी नहीं की थी. उस का मकसद तो करोड़ों की मालकिन कुसुमलता से शादी करना था. सन्नी भाभी से शादी कर के वह जल्द से जल्द करोड़पति बनना चाहता था.

एक दिन सन्नी और कुसुमलता के संबंधों की जानकारी किसी ने कृष्णकुमार को दे दी. बीवी और चचेरे भाई के संबंधों की बात सुन कर कृष्णकुमार को बहुत गुस्सा आया. उस ने अपनी बीवी से इस बारे में बात की तो वह त्रियाचरित्र दिखाने लगी. आंसू बहाने लगी. मगर कृष्णकुमार के मन में संदेह पैदा हुआ तो वह उन दोनों पर निगाह रखने लगा.

इस के बाद कुसुमलता ने सन्नी को सचेत कर दिया. दोनों छिप कर मिलने लगे. मगर उन्हें हर समय इसी बात का डर लगा रहता कि कृष्णकुमार को कोई बता न दे. कृष्णकुमार ने सन्नी से भी कह दिया था कि वह उस के घर न आए. यह बात कृष्ण, कुसुम और सन्नी के अलावा कोई नहीं जानता था. किसी को पता नहीं था कि कृष्ण अपनी बीवी और सन्नी पर शक करता है.

ऐसे में कुसुमलता और सन्नी ने उसे एक्सीडेंट में मारने की योजना बनाई ताकि उन पर कोई शक भी न करे और राह का कांटा भी निकल जाए. सन्नी ने इस काम में कुछ खर्चा होने की बात कही तो कुसुमलता ने खुद के नाम की 4 लाख रुपए की एफडी मार्च 2021 के दूसरे हफ्ते में तुड़वा दी. 4 लाख रुपए कुसुम ने सन्नी को दे दिए.

सन्नी ने योजनानुसार 18 मार्च, 2021 को भुंगारका के अजीत से एक लाख 80 हजार रुपए में एक स्कौर्पियो गाड़ी एग्रीमेंट के तहत अशोक कुमार के नाम से खरीदी. अशोक को उस ने 2 छोटे मोबाइल व सिम दिए. इन्हीं सिम व मोबाइल के जरिए अशोक की बात सन्नी से होती थी. कृष्णकुमार को मारने के लिए सन्नी ने अशोक को डेढ़ लाख रुपए भी दे दिए.

उसी स्कौर्पियो गाड़ी से अशोक ने सन्नी के कहने पर कृष्णकुमार का एक्सीडेंट करने की कई बार कोशिश की मगर वह सफल नहीं हुआ. तब 26 मार्च, 2021 को राहुल अपने दोस्त पवन मेघवाल को भुंगारका के हरीश होटल पर ले आया. यहां अशोक से पवन की जानपहचान कराई.

रात में तीनों शराब पी कर खाना खा कर होटल पर रुके और सुबह चले गए. 30 मार्च, 2021 को अशोक ने पवन से कहा कि मुझे स्कौर्पियो से एक आदमी का एक्सीडेंट करना है. तुम मेर साथ गाड़ी में रहोगे तो मैं तुम्हें 40 हजार रुपए दूंगा.

पवन की अशोक से नई दोस्ती हुई थी और वैसे भी पवन को सिर्फ गाड़ी में बैठे रहने के 40 हजार रुपए मिल रहे थे, इसलिए 40 हजार रुपए के लालच में पवन ने हां कर दी. 31 मार्च, 2021 को अशोक और पवन मेघवाल स्कौर्पियो गाड़ी ले कर जखराना आए लेकिन उस दिन कृष्णकुमार ड्यूटी पर नहीं गया.अशोक रोजाना की बात सन्नी को बता देता था. सन्नी अपनी प्रेमिका भाभी कुसुमलता को सारी बात बता देता था. पहली अप्रैल 2021 को सुबह साढ़े 7 बजे कृष्णकुमार अपने गांव भुंगारका से ड्यूटी पर जखराना निकला. यह जानकारी कुसुमलता ने अपने देवर प्रेमी सन्नी को दी. सन्नी ने अशोक को यह सूचना दे दी. अशोक कुमार गाड़ी में पवन को ले कर जखराना बसस्टैंड पहुंच गया. जैसे ही कृष्णकुमार मोटरसाइकिल से जखराना बसस्टैंड से स्कूल की ओर जाने लगा, तभी अशोक ने स्कौर्पियो से कृष्णकुमार को सीधी टक्कर मार दी. टक्कर लगते ही कृष्णकुमार उछल कर दूर जा गिरा.

इस के बाद अशोक ने गाड़ी को यूटर्न लिया और कृष्णकुमार के ऊपर एक बार चढ़ा दी, जिस के बाद उस की मौके पर ही मौत हो गई. इस के बाद सूचना पा कर बहरोड़ पुलिस आई. प्रत्यक्षदर्शियों ने इसे हत्या बताया. तब पुलिस ने जांच कर हत्या के इस राज से परदा हटाया.

अशोक कुमार और पवन मेघवाल से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने इस हत्याकांड में शामिल रहे सन्नी और उस की प्रेमिका कुसुमलता को भी गिरफ्तार कर लिया. इन दोनों ने भी कृष्णकुमार की हत्या में शामिल होने का अपराध स्वीकार कर लिया.

पूछताछ के बाद कुसुमलता, सन्नी यादव, अशोक यादव और पवन मेघवाल को बहरोड़ कोर्ट में पेश किया, जहां से सभी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

भौजाई से प्यार, पत्नी सहे वार

19 जनवरी, 2017 को उत्तर प्रदेश के जिला सिद्धार्थनगर के थाना जोगिया उदयपुर के थानाप्रभारी शमशेर बहादुर सिंह औफिस में बैठे मामलों की फाइलें देख रहे थे, तभी उन की नजर करीब 4 महीने पहले सोनिया नाम की एक नवविवाहिता की संदिग्ध परिस्थितियों में ससुराल में हुई मौत की फाइल पर पड़ी. सोनिया की मां निर्मला देवी ने उस के पति अर्जुन और उस की जेठानी कौशल्या के खिलाफ उस की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई थी. घटना के बाद से दोनों फरार चल रहे थे. उन की तलाश में पुलिस जगहजगह छापे मार रही थी. लेकिन कहीं से भी उन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली थी.

आरोपियों की गिरफ्तारी को ले कर एसपी राकेश शंकर का शमशेर बहादुर सिंह पर काफी दबाव था, इसीलिए वह इस केस की फाइल का बारीकी से अध्ययन कर आरोपियों तक पहुंचने की संभावनाएं तलाश रहे थे. संयोग से उसी समय एक मुखबिर ने उन के कक्ष में आ कर कहा, ‘‘सरजी, एक गुड न्यूज है. अभी बताऊं या बाद में?’’

‘‘अभी बताओ न कि क्या गुड न्यूज है,ज्यादा उलझाओ मत. वैसे ही मैं एक केस में उलझा हूं.’’ थानाप्रभारी ने कहा, ‘‘जो भी गुड न्यूज है, जल्दी बताओ.’’

इस के बाद मुखबिर ने थानाप्रभारी के पास जा कर उन के कान में जो न्यूज दी, उसे सुन कर थानाप्रभारी का चेहरा खिल उठा. उन्होंने तुरंत हमराहियों को आवाज देने के साथ जीप चालक को फौरन जीप तैयार करने को कहा. इस के बाद वह खुद भी औफिस से बाहर आ गए. 5 मिनट में ही वह टीम के साथ, जिस में एसआई दिनेश तिवारी, सिपाही जय सिंह चौरसिया, लक्ष्मण यादव और श्वेता शर्मा शामिल थीं, को ले कर कुछ ही देर में मुखबिर द्वारा बताई जगह पर पहुंच गए. वहां उन्हें एक औरत और एक आदमी खड़ा मिला.

पुलिस की गाड़ी देख कर दोनों नजरें चुराने लगे. पुलिस जैसे ही उन के करीब पहुंची, उन के चेहरों पर हवाइयां उड़ने लगीं. शमशेर बहादुर सिंह ने उन से नाम और वहां खड़े होने का कारण पूछा तो वे हकलाते हुए बोले, ‘‘साहब, बस का इंतजार कर रहे थे.’’

‘‘क्यों, अब और कहीं भागने का इरादा है क्या?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘नहीं साहब, आप क्या कह रहे हैं, हम समझे नहीं, हम क्यों भागेंगे?’’ आदमी ने कहा.

‘‘थाने चलो, वहां हम सब समझा देंगे.’’ कह कर शमशेर बहादुर सिंह दोनों को जीप में बैठा कर थाने लौट आए. थाने में जब दोनों से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपने नाम अर्जुन और कौशल्या देवी बताए. उन का आपस में देवरभाभी का रिश्ता था.

अर्जुन अपनी पत्नी सोनिया की हत्या का आरोपी था. उस की हत्या में कौशल्या भी शामिल थी. हत्या के बाद से दोनों फरार चल रहे थे. थानाप्रभारी ने सीओ महिपाल पाठक के सामने दोनों से सोनिया की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उन्होंने सारी सच्चाई उगल दी. सोनिया की जितनी शातिराना तरीके से उन्होंने हत्या की थी, वह सारा राज उन्होंने बता दिया. नवविवाहिता सोनिया की हत्या की उन्होंने जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले का एक थाना है जोगिया उदयपुर. इसी थाने के अंतर्गत मनोहारी गांव के रहने वाले जगदीश ने अपने छोटे बेटे अर्जुन की शादी 4 जुलाई, 2013 को पड़ोस के गांव मेहदिया के रहने वाले रामकरन की बेटी सोनिया से की थी. शादी के करीब 3 सालों बाद 25 अप्रैल, 2016 को गौने के बाद सोनिया ससुराल आई थी.

पति और ससुराल वालों का प्यार पा कर सोनिया बहुत खुश थी. अपने काम और व्यवहार से सोनिया घर में सभी की चहेती बन गई. सब कुछ ठीकठाक चल रहा था कि अचानक सोनिया ने पति अर्जुन में कुछ बदलाव महसूस किया. उस ने गौर करना शुरू किया तो पता चला कि अर्जुन पहले उसे जितना समय देता था, अब वह उसे उतना समय नहीं देता.

पहले तो उस ने यही सोचा कि परिवार और काम की वजह से वह ऐसा कर रहा होगा. लेकिन उस की यह सोच गलत साबित हुई. उस ने महसूस किया कि अर्जुन अपनी भाभी कौशल्या के आगेपीछे कुछ ज्यादा ही मंडराता रहता है. वह भाभी के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताता है.

जल्दी ही सोनिया को इस की वजह का भी पता चल गया. अर्जुन के अपनी भाभी से अवैध संबंध थे. भाभी से संबंध होने की वजह से वह सोनिया की उपेक्षा कर रहा था. कमाई का ज्यादा हिस्सा भी वह भाभी पर खर्च कर रहा था. यह सब जान कर सोनिया सन्न रह गई.

कोई भी औरत सब कुछ बरदाश्त कर सकती है, लेकिन यह हरगिज नहीं चाहती कि उस का पति किसी दूसरी औरत के बिस्तर का साझीदार बने. भला नवविवाहिता सोनिया ही इस बात को कैसे बरदाश्त करती. उस ने इस बारे में अर्जुन से बात की तो वह बौखला उठा और सोनिया की पिटाई कर दी. उस दिन के बाद दोनों में कलह शुरू हो गई.

सोनिया ने इस बात की जानकारी अपने मायके वालों को फोन कर के दे दी. उस ने मायके वालों से साफसाफ कह दिया था कि अर्जुन का संबंध उस की भाभी से है. शिकायत करने पर वह उसे मारतापीटता है. यही नहीं, उस से दहेज की भी मांग की जाती है. सोनिया की परेशानी जानते हुए भी मायके वाले उसे ही समझाते रहे.

वे हमेशा उस के और अर्जुन के संबंध को सामान्य करने की कोशिश करते रहे, पर अर्जुन ने भाभी से दूरी नहीं बनाई, जिस से सोनिया की उस से कहासुनी होती रही, पत्नी की रोजरोज की किचकिच से अर्जुन परेशान रहने लगा. उसे लगने लगा कि सोनिया उस के रास्ते का रोड़ा बन रही है. लिहाजा उस ने भाभी कौशल्या के साथ मिल कर एक खौफनाक योजना बना डाली.

24-25 सितंबर, 2016 की रात अर्जुन और कौशल्या ने साजिश रच कर सोनिया के खाने में जहरीला पदार्थ मिला दिया. अगले दिन यानी 25 सितंबर की सुबह जब सोनिया की हालत बिगड़ने लगी तो अर्जुन उसे जिला अस्पताल ले गया.

उसी दिन सुबह सोनिया के पिता रामकरन को मनोहारी गांव के किसी आदमी ने बताया कि सोनिया की तबीयत बहुत ज्यादा खराब है, वह जिला अस्पताल में भरती है. यह खबर सुन कर वह घर वालों के साथ सिद्धार्थनगर स्थित जिला अस्पताल पहुंचा. तब तक सोनिया की हालत बहुत ज्यादा खराब हो चुकी थी. डाक्टरों ने उसे कहीं और ले जाने को कह दिया था.

26 सितंबर की सुबह 4 बजे पता चला कि सोनिया की मौत हो चुकी है. बेटी की मौत की खबर मिलते ही रामकरन अपने गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर बेटी की ससुराल मनोहारी गांव पहुंचा तो देखा सोनिया के मुंह से झाग निकला था. कान और नाक पर खून के धब्बे थे. हाथ की चूडि़यां भी टूटी हुई थीं. लाश देख कर ही लग रहा था कि उस के साथ मारपीट कर के उसे कोई जहरीला पदार्थ खिलाया गया था.

बेटी की लाश देख कर रामकरन की हालत बिगड़ गई. उन के साथ आए गांव वालों ने पुलिस कंट्रोल रूम को हत्या की सूचना दे दी. सूचना पा कर कुछ ही देर में थाना जोगिया उदयपुर के थानाप्रभारी शमशेर बहादुर सिंह पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने सोनिया के शव को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

बेटी की मौत से रामकरन को गहरा सदमा लगा था, जिस से उन की तबीयत खराब हो गई थी. उन्हें आननफानन में इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया. इस के बाद पुलिस ने सोनिया की मां निर्मला की तहरीर पर अर्जुन और उस की भाभी कौशल्या के खिलाफ भादंवि की धारा 498ए, 304बी, 3/4 डीपी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया था.

2 दिनों बाद जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो पता चला कि सोनिया के साथ मारपीट कर के उसे खाने में जहर दिया गया था. घटना के तुरंत बाद अर्जुन और कौशल्या फरार हो गए थे. लेकिन पुलिस उन के पीछे हाथ धो कर पड़ी थी. उन दोनों की गिरफ्तारी न होने से लोगों में आक्रोश बढ़ रहा था.

आखिर 4 महीने बाद मुखबिर की सूचना पर अर्जुन और कौशल्या गिरफ्तार कर लिए गए थे. पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें सक्षम न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. कथा लिखे तक दोनों की जमानतें नहीं हो सकी थीं.

पुलिस अधीक्षक राकेश शंकर ने घटना का खुलासा करने वाली पुलिस टीम की हौसलाअफजाई करते हुए 2 हजार रुपए का नकद इनाम दिया है.

भाभी के चक्कर में अर्जुन ने अपना घर तो बरबाद किया ही, भाई का भी घर बरबाद किया. इसी तरह कौशल्या ने देह की आग को शांत करने के लिए देवर के साथ मिल कर एक निर्दोष की जान ले ली.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्यार किसी का मौत किसी को

7 मई, 2017 को मध्य प्रदेश के जिला झाबुआ की कोतवाली के प्रभारी आर.सी. भास्करे को हाथीपावा पहाड़ी पर चल रहे श्रमदान में जाना था. वहां एसपी महेशचंद जैन तथा जिलाधिकारी भी आ रहे थे, इसलिए वह समय से वहां पहुंच गए थे.

लेकिन आर.सी. भास्करे जैसे ही वहां पहुंचे, उन्हें किसी ने बताया कि नयागांव और डगरा फलिया के बीच सड़क पर एक लाश पड़ी है, जो नयागांव के रहने वाले तूफान थामोर की है. उस की मोटरसाइकिल भी वहीं पड़ी है. शायद रात को शराब पी कर वह मोटरसाइकिल से घर जा रहा था, तभी उस का एक्सीडेंट हो गया है.

आर.सी. भास्करे ने यह बात एसपी महेशचंद जैन को बताई तो उन्होंने दिशानिर्देश दे कर तुरंत उन्हें घटनास्थल पर पहुंचने को कहा. जब वह घटनास्थल पर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि मोटरसाइकिल गिरी पड़ी है. लाश उसी मोटरसाइकिल के नीचे पड़ी थी. उन्होंने गौर से मोटरसाइकिल और लाश का निरीक्षण किया तो उन्हें यह देख कर हैरानी हुई कि न तो मोटरसाइकिल में किसी तरह की टूटफूट हुई थी और न ही मृतक को कहीं चोट लगी थी.

वहां मोटरसाइकिल के घिसटने का भी कोई निशान नहीं था. जबकि अगर एक्सीडेंट हुआ होता तो मृतक को तो गंभीर चोट आई ही होती, मोटरसाइकिल भी उस के ऊपर गिरने के बजाय कहीं दूर पड़ी होती, साथ ही उस के घिसटने या गिरने के निशान भी होते.

मृतक और मोटरसाइकिल की स्थिति देख कर आर.सी. भास्करे को समझते देर नहीं लगी कि यह हत्या का मामला है. तूफान की हत्या कर के उस के ऊपर मोटरसाइकिल रख कर उसे एक्सीडेंट का रूप देने की कोशिश की गई है. आर.सी. भास्करे ने मृतक के घर सूचना भिजवा दी थी. सूचना पा कर मृतक की पत्नी रेमुबाई रोती हुई आ पहुंची. वह लाश पर सिर पटकपटक कर रो रही थी. पुलिस ने सांत्वना दे कर उसे अलग किया.

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आर.सी. भास्करे लाश और मोटरसाइकिल का निरीक्षण कर रहे थे कि एसपी महेशचंद्र जैन भी आ गए. उन्होंने भी लाश एवं घटनास्थल का निरीक्षण किया. आर.सी. भास्करे ने उन्हें अपने मन की बात बताई तो उन्होंने भी उन की बात का समर्थन किया. एसपी साहब थानाप्रभारी को आवश्यक निर्देश दे कर चले गए.

इस के बाद आर.सी. भास्करे के साथ आए एसआई पी.एस. डामोर, एम.एल. भाटी, एएसआई अनीता तोमर, आरक्षक रामकुमार व गणेश की मदद से घटनास्थल की काररवाई निपटाने लगे. उन्होंने सारी औपचारिकताएं पूरी कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

अब तक मृतक की पत्नी रेमुबाई काफी हद तक शांत हो गई थी. आर.सी. भास्करे ने उस से पूछताछ शुरू की तो उस ने बताया कि उस के पति की मौत एक्सीडेंट से हुई है. पुलिस ने जब उस से कहा कि तूफान की मौत एक्सीडेंट से नहीं हुई, किसी ने उस की हत्या की है तो उस ने हैरानी से कहा, ‘‘साहब, मेरे पति की कोई हत्या क्यों करेगा? उन की तो किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं थी. आप को गलतफहमी हो रही है. रात में वह रोज शराब पी कर लौटते थे. कल भी शराब पी कर आ रहे होंगे, रास्ते में दुर्घटना हो गई होगी.’’

‘‘जब तुम्हारे पति रात में घर नहीं पहुंचे तो तुम ने उन की खोजखबर नहीं ली?’’ आर.सी. भास्करे ने पूछा.

‘‘साहब, खोजखबर क्या लेती, यह कोई एक दिन की बात थोड़े ही थी. अकसर शराब पी कर वह रात को घर से गायब रहते थे. कल वह घर नहीं पहुंचे तो मैं ने यही समझा कि हमेशा की तरह आज भी कहीं रुक गए होंगे.’’ रेमुबाई ने कहा.

रेमुबाई जिस तरह आत्मविश्वास के साथ पुलिस के सवालों का जवाब दे रही थी, वह भी हैरानी की बात थी. जिस औरत का पति मर गया हो, उस का इस तरह जवाब देना पुलिस को शक में डाल रहा था. क्योंकि इस स्थिति में तो औरत को कुछ कहनेसुनने का होश ही नहीं रहता.

बहरहाल, इस पूछताछ में पता चला था कि मृतक तूफान झाबुआ के बसस्टैंड के पास स्थित नीरज राठौर के टेंटहाउस में काम करता था. उस दिन शाम को घर आने के बाद साढ़े 10 बजे के करीब थोड़ी देर में लौट आने को कह कर वह मोटरसाइकिल ले कर घर से निकला तो लौट कर नहीं आया था.

आर.सी. भास्करे ने टेंटहाउस के मालिक नीरज राठौर और उस के यहां काम करने वाले कर्मचारियों से पूछताछ की तो उन सभी ने भी यही बताया कि तूफान बहुत ही मेहनती और सीधासादा आदमी था. ऐसे आदमी की भला किसी से क्या दुश्मनी होगी, जो उस की हत्या कर दी जाए.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, तूफान की मौत मारपीट की वजह से हुई थी. अब पूरी तरह से साफ हो गया था कि यह एक्सीडेंट का मामला नहीं था. इस के बाद कोतवाली पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी.

आर.सी. भास्करे जल्द से जल्द इस मामले का खुलासा करना चाहते थे, लेकिन 3 दिनों की जांच में उन के हाथ कोई सुराग नहीं लगा. अंत में उन्होंने मुखबिरों की मदद ली. किसी मुखबिर से उन्हें पता चला कि तूफान की हत्या के बाद से उस की पत्नी रेमुबाई ने अपना मोबाइल फोन बंद कर लिया है.

यह सुन कर आर.सी. भास्करे सोच में पड़ गए कि रेमुबाई ने आखिर अपना मोबाइल फोन क्यों बंद कर लिया है? उन्हें कुछ गड़बड़ लगा तो उन्होंने तूफान के बेटे को कोतवाली बुला कर पूछताछ की. एक सवाल के जवाब में बच्चा गड़बड़ाया तो उस का जवाब उन्होंने अपनी मां से पूछ कर बताने को कहा.

इस पर बच्चे ने कहा कि उस की मां का मोबाइल फोन बंद है, इसलिए वह उन से सवाल का जवाब नहीं पूछ सकता. थानाप्रभारी की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसी कौन सी वजह है कि रेमुबाई ने अपना मोबाइल फोन बंद कर दिया है.

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अब उन्हें तूफान की हत्या में रेमुबाई का हाथ होने का शक हुआ. उन्होंने यह बात एसपी महेशचंद्र जैन को बताई तो उन्होंने तुरंत रेमुबाई को थाने बुला कर पूछताछ करने का आदेश दिया.

थाने बुला कर रेमुबाई से पूछताछ शुरू हुई तो वह एक ही जवाब दे रही थी कि उसे नहीं मालूम कि उस रात क्या हुआ था? उसे सिर्फ यही पता है कि वह रात को घर से निकले तो लौट कर नहीं आए. घर आते समय उन का एक्सीडेंट हो गया था.

जब आर.सी. भास्करे ने पूछा कि तूफान की मौत के बाद उस ने अपना मोबाइल फोन क्यों बंद कर लिया तो इस का जवाब देने में रेमुबाई बगलें झांकने लगी. घबराहट उस के चेहरे पर साफ नजर आने लगी.

फिर तो थानाप्रभारी को समझते देर नहीं लगी कि तूफान की हत्या में किसी न किसी रूप में इस का भी हाथ है.  उन्होंने रेमुबाई को एएसआई अनीता तोमर के हवाले कर दिया. उन्होंने सख्ती से उस से पूछताछ शुरू की तो रेमुबाई ने पति की हत्या का अपना अपराध स्वीकार करने में देर नहीं लगाई. इस के बाद उस ने पति की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस तरह थी—

मध्य प्रदेश के जिला झाबुआ की कोतवाली के अंतर्गत रहने वाले तूफान की पत्नी रेमुबाई के पेट में ऐसा दर्द उठा कि कई डाक्टरों के इलाज के बाद भी ठीक नहीं हुआ. तभी उस के एक परिचित ने बताया कि झाबुआ से ही जुड़े गुजरात के जिला दाहोद के थाना कतवारा के गांव खगेला का रहने वाला तांत्रिक मंथूर उस का इलाज कर सकता है.

उसे पूरा विश्वास है कि उस की झाड़फूंक से वह निश्चित रूप से ठीक हो जाएगी. यह करीब 4 साल पहले की बात है. रेमुबाई पति तूफान को ले कर तांत्रिक मंथूर के पास पहुंची. रेमुबाई पर एक गहरी नजर डाल कर तांत्रिक मंथूर ने कहा कि उसे 16 शनिवार बिना नागा लगातार आना पड़ेगा. तूफान नौकरी करता था, इसलिए वह पत्नी को हर शनिवार ले कर तांत्रिक के यहां नहीं जा सकता था. इसलिए रेमुबाई अकेली ही तांत्रिक मंथूर के यहां हर शनिवार झाड़फूंक कराने जाने लगी.

तांत्रिक मंथूर ने 4 शनिवार तक नीम की पत्तियों से उस की झाड़फूंक की. 5वें शनिवार को उस ने रेमुबाई से अपने कपड़े ढीले कर के फर्श पर लेट जाने को कहा. रेमुबाई को किसी तरह का कोई शकशुबहा तो था नहीं, इसलिए वह कपड़े ढीले कर फर्श पर लेट गई. करीब 2 घंटे तक मंथूर मंत्र पढ़ते हुए उस के शरीर पर हाथ फेरते हुए उस की बीमारी भगाता रहा.

रेमुबाई के अनुसार, मंथूर भले ही अधेड़ था, लेकिन उस के हाथों में ऐसी तपिश थी कि जब वह उस के शरीर पर हाथ फेरता था तो उसे अजीब सा सुख मिलता था.

7वें शनिवार को मंथूर ने उस से सारे कपड़े उतार कर लेटने को कहा तो रेमुबाई मना नहीं कर सकी. वह कपड़े उतार कर लेटने लगी तो तांत्रिक मंथूर ने दवा के नाम पर उसे थोड़ी शराब पीने को दी.

इस के बाद तांत्रिक ने भी शराब पी. झाड़फूंक करतेकरते मंथूर रेमुबाई के ऊपर लेट गया तो तांत्रिक प्रक्रिया समझ कर रेमुबाई ने कोई विरोध नहीं किया. इस तरह तांत्रिक मंथूर ने उस के साथ शारीरिक संबंध बना लिए.

इस के बाद रेमुबाई जब भी उस के यहां इलाज कराने जाती, मंथूर उसे शराब पिला कर उस के साथ शारीरिक संबंध बनाता. मंथूर के प्यार में तूफान से ज्यादा जोश और गरमी थी, इसलिए उसे उस के साथ शारीरिक संबंध बनाने में आनंद आने लगा. दूसरी ओर मंथूर भी रेमुबाई का दीवाना हो चुका था. अब वह इलाज के बहाने उस के घर भी आने लगा था.

16 शनिवार पूरे हो गए तो तूफान ने पत्नी से कहा, ‘‘अब तो तुम्हारा इलाज पूरा हो चुका है, अब तुम तांत्रिक के यहां क्यों जाती हो?’’

तांत्रिक के प्यार में उलझी रेमुबाई ने कहा, ‘‘अभी मैं पूरी तरह स्वस्थ नहीं हुई हूं, इसलिए अभी मुझे इलाज की और जरूरत है.’’

आखिर कब तक रेमुबाई बहाने बना कर तांत्रिक के पास जाती रहती. मंथूर भी उस के घर लगातार आता रहा. इन्हीं बातों से तूफान को पत्नी पर शक हुआ तो वह पत्नी को मंथूर के यहां जाने से रोकने लगा. अब इलाज तो सिर्फ बहाना था, रेमुबाई तो मंथूर से मिलने जाती थी, इसलिए पति के मना करने के बावजूद वह नहीं मानी.

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रेमुबाई की जिद से तूफान को चिंता हुई. फिर तो दोनों में झगड़ा होने लगा. रेमुबाई को लगा कि इलाज और बीमारी के नाम पर अब यह खेल ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकता. जबकि वह मंथूर के प्यार में इस कदर कैद हो चुकी थी कि अब उस के बिना नहीं रह सकती थी, इसलिए वह उस के लिए कुछ भी कर सकती थी.

शायद यही वजह थी कि उस ने मंथूर से तूफान को रास्ते से हटाने के लिए कह दिया. मंथूर भी रेमुबाई के लिए कुछ भी करने को तैयार था. इसलिए उस के कहने पर वह भी तूफान की हत्या करने को तैयार हो गया.

योजना बना कर 6 मई, 2017 को मंथूर अपने दोस्त गोरचंद के साथ नयागांव डूंगरा के जंगल में पहुंचा और एक पेड़ की आड़ में छिप कर बैठ गया. रेमुबाई को उस ने यह बात बता दी, इसलिए जैसे ही तूफान घर आया, उस ने बहुत ज्यादा पेट में दर्द होने की बात कह कर कहा, ‘‘मंथूर किसी का इलाज करने झाबुआ आया है, मैं ने उसे फोन किया था, वह आने को तैयार है, इसलिए तुम डूंगरा जा कर उसे ले आओ.’’

तूफान बिना देर किए मोटरसाइकिल ले कर तांत्रिक मंथूर को लेने चला गया. नयागांव और डूंगरा के बीच मंथूर गोरचंद के साथ बैठा तूफान के आने का इंतजार कर रहा था.

जैसे ही तूफान उन के करीब पहुंचा, दोनों ने लाठियों से पीटपीट कर उस की हत्या कर दी. इस के बाद उस की लाश को मोटरसाइकिल के नीचे रख दिया, ताकि देखने से लगे कि इस का एक्सीडेंट हुआ है.

लेकिन उन की यह चाल कामयाब नहीं हुई और थानाप्रभारी आर.सी. भास्करे को सच्चाई का पता चल गया.

रेमुबाई की गिरफ्तारी के बाद आर.सी. भास्करे ने तांत्रिक मंथूर और उस के साथी गोरचंद को भी गिरफ्तार कर लिया था. इस के बाद तीनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. जेल जाने के बाद रेमुबाई के हाथ से वह सब भी निकल गया, जो था. आखिर पति के साथ उसे ऐसी क्या तकलीफ थी, जो अधेड़ तांत्रिक के प्यार में पड़ कर अपना सब लुटा बैठी.

हवस की खातिर मिटा दिया सिंदूर

ढेलाणा गांव के बहुचर्चित संतोष हत्याकांड की अदालत में करीब 2 साल तक चली सुनवाई के बाद  माननीय न्यायाधीश ने 10 जुलाई, 2017 को फैसला सुनाने का दिन मुकर्रर कर दिया. लिहाजा उस दिन जोधपुर के अपर सेशन न्यायाधीश नरेंद्र सिंह मालावत की अदालत दर्शकों से खचाखच भरी हुई थी.

जज साहब के अदालत में बैठने के बाद लोग आपस में कानाफूसी करने लगे. जज साहब ने अपने सामने रखे फैसले के नोट्स व्यवस्थित किए तो फुसफुसाहटें थम गईं और अदालत में एक पैना सन्नाटा छा गया. सभी के दिमाग में एक ही सवाल घूम रहा था कि पता नहीं रामेश्वरी और उस के प्रेमी भोम सिंह को क्या सजा मिलेगी.

इन दोनों ने जिस तरह का अपराध किया था, उसे देखते हुए लोग चाह रहे थे कि उन्हें फांसी होनी चाहिए. आखिर रामेश्वरी और भोम सिंह ने ऐसा कौन सा अपराध किया था, जिस की सजा को जानने के लिए तमाम लोग अदालत में समय से पहले ही पहुंच गए थे. यह जानने के लिए हमें घटना की पृष्ठभूमि में जाना होगा.

राजस्थान के जिला जोधपुर के लोहावट थाने में 12 फरवरी, 2015 को कुनकुनी दोपहरी में अच्छीखासी गहमागहमी थी. एडिशनल एसपी सत्येंद्रपाल सिंह एसडीएम राकेश कुमार के साथ थाने के दौरे पर थे. उस समय दोनों अधिकारी थाने में एक जरूरी मीटिंग ले रहे थे. मीटिंग इलाके में बढ़ती आपराधिक वारदातों को ले कर बुलाई गई थी.

मीटिंग में सीओ सायर सिंह तथा लोहावट के थानाप्रभारी निरंजन प्रताप सिंह भी मौजूद थे. मीटिंग के दौरान ही थाने के बाहर हो रहे शोर की ओर अचानक अधिकारियों का ध्यान गया. शोर थमने के बजाय तेज होता जा रहा था. एडिशनल एसपी ने थानाप्रभारी को शोर के बारे में पता लगाने का इशारा किया. थानाप्रभारी तुरंत यह कहते हुए बाहर की तरफ लपके, ‘‘सर, मैं पता करता हूं.’’

कुछ ही मिनटों में थानाप्रभारी बड़ी अफरातफरी में लौट आए. उन्होंने बताया, ‘‘सर, बाहर सुतारों की बस्ती के कुछ लोग हैं, जो किसी के कत्ल की रिपोर्ट लिखाने आए हैं. जब उन्हें कुछ देर इंतजार करने को कहा तो वे बुरी तरह उखड़ गए. वे मीटिंग से पहले रिपोर्ट लिखाने की मांग कर रहे हैं.’’

थानाप्रभारी की बात सुनने के बाद एडिशनल एसपी के चेहरे पर उत्सुकता जाग उठी. सहमति जानने के लिए उन्होंने एसडीएम राकेश कुमार की ओर देखा और फिर थानाप्रभारी से बोले, ‘‘ठीक है, उन में से 1-2 खास लोगों को बुला लाओ.’’

थानाप्रभारी भीड़ में से एक आदमी को बुला लाए. एएसपी ने उस अधेड़ शख्स को कुरसी पर बैठने का इशारा किया. उस के बैठने के बाद उन्होंने पूछा, ‘‘बताओ, क्या मामला है?’’

उस आदमी ने अपना नाम कैलाश बता कर बोला कि वह ढेलाणा गांव की सुतार बस्ती में रहता है. उस के घर के पास ही उस के चाचा संतोष का मकान है, जहां वह अपनी पत्नी रामेश्वरी और 3 बेटियों व एक बेटे के साथ रहते थे. चाची रामेश्वरी उर्फ बीबा के नाजायज संबंध गांव के ही भोम सिंह के साथ हो गए थे. इस की जानकारी संतोष को भी थी.

6 फरवरी से चाचा संतोष रहस्यमय तरीके से गायब हैं. चाचा के खून से सने अधजले कपड़े ग्रेवल रोड के पास पड़े हैं. इस से मुझे लगता है कि चाची ने भोम सिंह के साथ मिल कर चाचा की हत्या कर लाश को कहीं ठिकाने लगा दिया है.

एएसपी सत्येंद्रपाल सिंह कुछ देर तक फरियादी को इस तरह देखते रहे, जैसे उस की बातों की सच्चाई जानने का प्रयास कर रहे हों. इस के बाद एसडीएम राकेश कुमार से निगाहें मिला कर अपने मातहतों की तरफ देखते हुए बोले, ‘‘चलो, ग्रेवल रोड की ओर चल कर देखते हैं.’’

लगभग आधे घंटे में ही एएसपी पूरे अमले के साथ कैलाश द्वारा बताई गई जगह पर पहुंच गए. कैलाश ने हाथ का इशारा करते हुए कहा, ‘‘साहब, वो देखिए, वहां पड़े हैं कपड़े.’’

एएसपी समेत पुलिस अधिकारियों ने आगे बढ़ कर नजदीक से देखा तो उन्हें यकीन आ गया कि कैलाश ने गलत नहीं कहा था. वास्तव में ग्रेवल रोड की ढलान पर खून सने अधजले कपड़े पड़े थे. खून आलूदा कपड़ों से जाहिर था कि मामला हत्या का न भी था तो जहमत वाला जरूर था.

पुलिस को देख कर वहां गांव वालों की भीड़ लगनी शुरू हो गई. एएसपी ने थानाप्रभारी से कपड़ों को सील करने के आदेश दिए. इस के बाद कैलाश को करीब बुला कर तसल्ली करनी चाही, ‘‘तुम पूरे यकीन के साथ कैसे कह सकते हो कि ये कपड़े तुम्हारे चाचा संतोष के ही हैं?’’

‘‘साहब, आप एक बार रामेश्वरी और भोम सिंह से सख्ती से पूछताछ करेंगे तो हकीकत सामने आ जाएगी. दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.’’ कैलाश ने हाथ जोड़ कर विनती के स्वर में कहा, ‘‘आप रामेश्वरी की बेटियों से पूछताछ करेंगे तो इस मामले में और ज्यादा जानकारी मिल सकती है.’’

थाने पहुंच कर एएसपी ने रामेश्वरी और उस की बेटियों मनीषा, भावना और अंकिता को थाने बुलवा लिया. पुलिस ने रामेश्वरी को अलग बिठा कर उस की बेटियों से पूछताछ की तो उन्होंने अपने पिता की नृशंस हत्या किए जाने का आंखों देखा हाल बयां कर दिया. उन्होंने बताया कि पापा की हत्या मम्मी और भोम सिंह ने की थी. तीनों बहनों की बात सुन कर सभी अधिकारी सन्न रह गए.

रामेश्वरी थाने में ही बैठी थी. एएसपी के आदेश पर थानाप्रभारी भोम सिंह के घर पहुंच गए. वह घर पर ही मिल गया. वह उसे गिरफ्तार कर के थाने ले आए. थाने में रामेश्वरी और उस के बच्चों को देख कर उस के चेहरे का रंग उड़ गया. वह समझ गया कि इन लोगों ने पुलिस को सब कुछ बता दिया होगा, इसलिए उस ने पुलिस पूछताछ में सारी कहानी बयां कर दी. उस ने बताया कि उसी ने तलवार से काट कर संतोष की हत्या की थी. भोम सिंह से पूछताछ के बाद हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

संतोष कुमार लकड़ी के इमारती काम का हुनरमंद कारीगर था. इस छोटी सी ढाणी में या आसपास उसे उस के हुनर के अनुरूप मजदूरी नहीं मिल पाती थी, इसलिए 2 साल पहले वह एक जानकार के बुलाने पर मुंबई चला गया था, जहां उसे अच्छाखासा काम मिल गया था.

संतोष के परिवार में पत्नी रामेश्वरी के अलावा 3 बेटियां और एक बेटा था. बेटा सब से छोटा था, जबकि बड़ी बेटी मनीषा 13 साल की है, भावना 10 साल की और अंकिता 8 साल की. संतोष काम के सिलसिले में ज्यादातर घर से बाहर ही रहता था.

इसी दौरान गांव के ही 28 साल के भोम सिंह के साथ 50 साल की रामेश्वरी का चक्कर चल गया. उस का रामेश्वरी के यहां आनाजाना बढ़ गया. भोम सिंह एक आवारा युवक था, इसलिए रामेश्वरी के ससुराल वालों ने उस के बारबार घर आने पर आपत्ति जताई. मोहल्ले के लोग भी तरहतरह की बातें करने लगे.

डर की वजह से कोई भी सीधे भोम सिंह से कहने की हिम्मत नहीं कर पाता था. संतोष कुमार जब मुंबई से लौटा, तब उसे लोगों के द्वारा पत्नी के कदम बहक जाने की जानकारी मिली. नतीजा यह हुआ कि संतोष ने रामेश्वरी की जम कर खबर ली.

इत्तफाक से भोम सिंह एक दिन ऐसे वक्त में रामेश्वरी से मिलने उस के घर आ टपका, जब घर में संतोष मौजूद था. संतोष तो पहले ही उस से खार खाए बैठा था. उस ने भोम सिंह को बुरी तरह आड़े हाथों लिया और उसे चेतावनी दे दी कि आइंदा वह इस घर की ओर रुख करेगा तो अच्छा नहीं होगा.

अच्छीखासी लानतमलामत होने के बावजूद भी भोम सिंह ने उस के घर आना न छोड़ा और न ही रामेश्वरी ने उसे घर आने से मना किया. संतोष की मजबूरी थी कि वह ज्यादा दिन छुट्टी नहीं ले सकता था और मुंबई में रिहायशी दिक्कत के कारण परिवार को साथ नहीं ले जा सकता था. लिहाजा उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे.

एक बार संतोष ने पत्नी और भोम सिंह को फिर रंगेहाथों पकड़ लिया. लेकिन भोम सिंह फुरती से वहां से भाग गया. जातेजाते वह कह गया कि वह इस बेइज्जती का बदला ले कर रहेगा.

फरवरी, 2015 में संतोष मुंबई से घर लौटा. उस के आने के बाद रामेश्वरी की इश्क की उड़ान में व्यवधान पैदा हो गया. रास्ते में रोड़ा बने पति से छुटकारा पाने के बारे में उस ने प्रेमी से बात की. फिर दोनों ने संतोष को ठिकाने लगाने की योजना बना ली. उन्होंने तय कर लिया कि इस बार वे संतोष को ठिकाने लगा कर ही रहेंगे.

योजना के अनुसार 6 फरवरी, 2015 की आधी रात को भोम सिंह छिपतेछिपाते संतोष के घर पहुंच गया. उस समय संतोष गहरी नींद में सो रहा था, जबकि रामेश्वरी प्रेमी के आने के इंतजार में जाग रही थी. उसी समय भोम सिंह ने सोते संतोष के ऊपर तलवार से वार कर दिया.

संतोष की मर्मांतक चीख सुन कर तीनों बेटियां हड़बड़ा कर उठ बैठीं. वे भाग की भीतरी चौक में पहुंचीं और जो भयानक नजारा देखा तो उन्हें जैसे काठ मार गया. भोम सिंह उन के पिता पर तलवार से वार कर रहा था और वह गिरतेपड़ते छोड़ देने की मिन्नतें कर रहे थे. लेकिन उस शैतान का दिल नहीं पसीजा.

रामेश्वरी पास में खड़ी सब कुछ देख रही थी. मनीषा ने पिता को बचाने की कोशिश की तो भोम सिंह ने धमका कर उसे परे धकेल दिया और कहा कि अगर किसी को भी बताया तो तीनों को तलवार से काट देगा.

संतोष की हत्या के बाद भोम सिंह ने उस के कपड़े उतार दिए और लाश एक पौलीथिन में लपेट कर बोरी में भर दी. बाद में उस बोरी को एक ड्रम में डाल कर कमरे में रख दी.

इस के बाद भोम सिंह चला गया. अगले दिन रात को वह बैलगाड़ी ले कर आया, तब रामेश्वरी और भोम सिंह ने मिल कर ड्रम को गाड़ी में डाला. वे लाश को शिवपुरी रोड पर घने जंगल में दफन कर आए. रामेश्वरी ने घर लौटने के बाद रात को पति के खून सने कपड़े चूल्हे में डाल कर जलाने की कोशिश की, लेकिन कपड़े खून से गीले होने के कारण पूरी तरह से जल नहीं पाए. फिर 11 फरवरी की रात को रामेश्वरी अधजले कपड़ों को ग्रेवल रोड पर फेंक आई.

बाद में वह शोर मचाने लगी कि मेरे भरतार (पति) के खून सने कपड़े ग्रेवल रोड पर पड़े हैं, लेकिन उन का कहीं पता नहीं चल रहा है. उस की चीखपुकार सुन कर अड़ोसीपड़ोसी भी आ गए. उसी दौरान संतोष का भतीजा कैलाश भी आ गया. उस ने ग्रेवल रोड पर चाचा के खून सने अधजले कपड़े देखे तो उसे शक हो गया.

इस से पहले कैलाश व अन्य पड़ोसियों को संतोष कई दिनों तक दिखाई नहीं दिया तो पड़ोसियों ने भी रामेश्वरी से पूछा. पर रामेश्वरी ने यह कह कर टाल दिया कि यहीं कहीं होंगे. पर उस के जवाब से कोई संतुष्ट नहीं था. बच्चों ने बताया कि डर की वजह से उन्होंने भी मुंह नहीं खोला.

भोम सिंह और रामेश्वरी से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन की निशानदेही पर संतोष की लाश और तलवार बरामद कर ली. पुलिस ने सारे सबूत जुटा कर दोनों अभियुक्तों के खिलाफ भादंवि की धारा 450, 302, 201, 120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें जेल भेज दिया.

पुलिस ने फोरैंसिक एक्सपर्ट की रिपोर्ट व अन्य साक्ष्यों के अलावा निर्धारित समय में आरोपपत्र तैयार कर कोर्ट में पेश कर दिया. करीब 2 सालों तक अदालत में केस की सुनवाई चली. तमाम साक्ष्य पेश करने के साथ गवाह भी पेश हुए. 10 जुलाई, 2017 को न्यायाधीश नरेंद्र सिंह मालावत ने केस का फैसला सुनाने का दिन निश्चित किया.

सजा सुनाने के पहले माननीय न्यायाधीश नरेंद्र सिंह ने कहा कि अभियोजन पक्ष प्रत्यक्षदर्शी साक्ष्यों, परिस्थितिजन्य साक्ष्यों एवं बरामदगियों से इस घटना की कड़ी से कड़ी जोड़ने में सफल रहा है. इसी प्रकार घटना से ताल्लुक रखती फोरैंसिक रिपोर्ट में मकतूल की पत्नी अभियुक्ता रामेश्वरी के कपड़ों पर पाए गए खून के छींटे भी मकतूल संतोष कुमार के खून से मिलते पाए गए.

ऐसी स्थिति में अभियुक्तों का बचाव संभव नहीं है. एक पल रुकते हुए विद्वान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘मौकाएवारदात पर मौजूद मकतूल की तीनों बेटियां अंकिता, भावना और मनीषा प्रत्यक्षदर्शी थीं.

‘‘अंकिता और भावना ने अभियोजन पक्ष की कहानी की पूरी तस्दीक की है, इसलिए बचाव पक्ष की इस दलील पर घटना को झूठा नहीं माना जा सकता कि अभियोजन पक्ष ने मनीषा को पेश नहीं किया. लड़कियां मुलजिम भोम सिंह की इस धमकी से बुरी तरह डरी हुई थीं. उन्होंने पुलिस के आने के बाद ही मुंह खोला.’’

विद्वान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘कोर्ट इस सच्चाई से वाकिफ है कि पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में मकतूल की मौत की वजह सिर तथा शरीर के अन्य हिस्सों पर घातक चोटें आना बताया गया है. वारदात में इस्तेमाल की गई तलवार की बरामदगी भी मुलजिम के कब्जे से होना उस के आपराधिक षडयंत्र को पुख्ता करती है.

‘‘हालांकि यह मामला विरल से विरलतम की श्रेणी में नहीं आता, किंतु ऐसे गंभीर अपराध की दोषसिद्धि में अपराधियों को कोई रियायत देना उचित नहीं है. इसलिए तमाम सबूतों और गवाहों के बयान के आधार पर अदालत मृतक की पत्नी रामेश्वरी और उस के प्रेमी भोम सिंह को दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाती है.’’

सजा सुनाए जाने के बाद पुलिस ने दोनों मुजरिमों को अपनी कस्टडी में ले लिया. अदालत में मौजूद लोगों और मृतक की बेटियों ने इस सजा पर तसल्ली व्यक्त की.

2 भाइयों की करतूत : परिवार से ही लिया बदला – भाग 1

12 दिसंबर, 2019 की सुबह तिर्वा-कन्नौज मार्ग पर आवागमन शुरू हुआ तो कुछ लोगों ने ईशन नदी पुल के नीचे एक महिला का शव पड़ा देखा. कुछ ही देर में पुल पर काफी भीड़ जमा हो गई. पुल पर लोग रुकते और झांक कर लाश देखने की कोशिश करते और चले जाते.

कुछ लोग ऐसे भी थे जो पुल के नीचे जाते और नजदीक से शव की शिनाख्त करने की कोशिश करते. यह खबर क्षेत्र में फैली तो भुडि़या और आसपास के गांवों के लोग भी आ गए. भीषण ठंड के बावजूद सुबह 10 बजे तक सैकड़ों लोगों की भीड़ घटनास्थल पर जमा हो गई. इसी बीच भुडि़यां गांव के प्रधान जगदीश ने मोबाइल फोन से यह सूचना थाना तिर्वा को दे दी.

सूचना मिलते ही तिर्वा थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने लाश मिलने की सूचना जिले के पुलिस अधिकारियों को दी, और लाश का निरीक्षण करने लगे. महिला का शव पुल के नीचे नदी किनारे झाडि़यों में पड़ा था. उस की उम्र 25-26 साल के आसपास थी. वह हल्के हरे रंग का सलवारकुरता और क्रीम कलर का स्वेटर पहने थी, हाथों में मेहंदी, पैरों में महावर, चूडि़यां, बिछिया पहने थी और मांग में सिंदूर. लगता जैसे कोई दुलहन हो.

मृतका का चेहरा किसी भारी चीज से कुचला गया था, और झुलसा हुआ था. उस के गले में सफेद रंग का अंगौछा पड़ा था. देख कर लग रहा था, जैसे महिला की हत्या उसी अंगौछे से गला कस कर की गई हो. पहचान मिटाने के लिए उस का चेहरा कुचल कर तेजाब से जला दिया गया था.

महिला की हत्या पुल के ऊपर की गई थी और शव को घसीट कर पुल के नीचे झाडि़यों तक लाया गया था. घसीट कर लाने के निशान साफ दिखाई दे रहे थे. महिला के साथ बलात्कार के बाद विरोध करने पर हत्या किए जाने की भी आशंका थी.

थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा अभी शव का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह, एएसपी विनोद कुमार तथा सीओ (तिर्वा) सुबोध कुमार जायसवाल घटनास्थल आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम प्रभारी राकेश कुमार को बुलवा लिया. फोरैंसिक टीम प्रभारी ने वहां से सबूत एकत्र किए.

अब तक कई घंटे बीत चुके थे, घटनास्थल पर भीड़ जमा थी. लेकिन कोई भी शव की शिनाख्त नहीं कर पाया. एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह ने महिला के शव के बारे में भुडि़या गांव के ग्राम प्रधान जगदीश से बातचीत की तो उन्होंने कहा, ‘‘सर, यह महिला हमारे क्षेत्र की नहीं, कहीं और की है. अगर हमारे क्षेत्र की होती तो अब तक शिनाख्त हो गई होती.’’

एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह को भी ग्राम प्रधान की बात सही लगी. उन्होंने थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा को आदेश दिया कि वह जल्द से जल्द महिला की हत्या का खुलासा करें.

थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने आवश्यक काररवाई करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए कन्नौज भिजवा दी. किसी थाने में मृतका की गुमशुदगी दर्ज तो नहीं है, यह जानने के लिए उन्होंने वायरलैस से सभी थानों में अज्ञात महिला की लाश मिलने की सूचना प्रसारित करा दी.

इस के साथ ही उन्होंने क्षेत्र के सभी समाचार पत्रों में महिला की लाश के फोटो छपवा कर लोगों से उस की पहचान करने की अपील की.

इस का परिणाम यह निकला कि 13 दिसंबर को अज्ञात महिला के शव की पहचान करने के लिए कई लोग पोस्टमार्टम हाउस पहुंचे. लेकिन उन में से कोई भी शव को नहीं पहचान पाया. शाम 4 बजे 3 डाक्टरों के एक पैनल ने अज्ञात महिला के शव का पोस्टमार्टम शुरू किया.

मिला छोटा सा सुराग

पोस्टमार्टम के पहले जब महिला के शरीर से कपड़े अलग किए गए तो उस की सलवार के नाड़े के स्थान से कागज की एक परची निकली, जिस पर एक मोबाइल नंबर लिखा था. डाक्टरों ने पोस्टमार्टम करने के बाद रिपोर्ट के साथ वह मोबाइल नंबर लिखी परची भी थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा को दे दी.

दूसरे दिन थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अवलोकन किया. रिपोर्ट के मुताबिक महिला की हत्या गला दबा कर की गई थी. चेहरे को भारी वस्तु से कुचला गया था और उसे तेजाब डाल कर जलाया गया था. बलात्कार की पुष्टि के लिए 2 स्लाइड बनाई गई थीं.

थानाप्रभारी ने परची पर लिखे मोबाइल नंबर पर फोन मिलाया तो फोन बंद था. उन्होंने कई बार वह नंबर मिला कर बात करने की कोशिश की लेकिन वह हर बार वह नंबर स्विच्ड औफ ही मिला.

टी.पी. वर्मा को लगा कि यह रहस्यमय नंबर महिला के कातिल तक पहुंचा सकता है, इसलिए उन्होंने उस फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई, जिस से पता चला कि घटना वाली रात वह नंबर पूरी रात सक्रिय रहा था. इतना ही नहीं, रात 1 से 2 बजे के बीच इस नंबर की लोकेशन भुडि़या गांव के पास की मिली. इस नंबर से उस रात एक और नंबर पर कई बार बात की गई थी. उस नंबर की लोकेशन भी भुडि़या गांव की ही मिल रही थी.

थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने दोनों नंबरों की जानकारी निकलवाई तो पता चला कि वे दोनों नंबर विजय प्रताप और अजय प्रताप पुत्र हरिनारायण, ग्राम पैथाना, थाना ठठिया, जिला कन्नौज के नाम से लिए गए थे. इस से पता चला कि विजय प्रताप और अजय प्रताप दोनों सगे भाई हैं.

15 दिसंबर, 2019 की रात 10 बजे थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने पुलिस टीम के साथ थाना ठठिया के गांव पैथाना में हरिनारायण के घर छापा मारा. छापा पड़ते ही घर में भगदड़ मच गई.

एक युवक को तो पुलिस ने दबोच लिया, किंतु दूसरा मोटरसाइकिल स्टार्ट कर भागने लगा. इत्तफाक से गांव की नाली से टकरा कर उस की मोटरसाइकिल पलट गई. तभी पीछा कर रही पुलिस ने उसे दबोच लिया. मोटरसाइकिल सहित दोनों युवकों को थाना तिर्वा लाया गया.

थाने पर जब उन से नामपता पूछा गया तो एक ने अपना नाम विजयप्रताप उर्फ शोभित निवासी ग्राम पैथाना थाना ठठिया जिला कन्नौज बताया. जबकि दूसरा युवक विजय प्रताप का भाई अजय प्रताप था.

अजय-विजय को जब मृतका के फोटो दिखाए गए तो दोनों उसे पहचानने से इनकार कर दिया. दोनों के झूठ पर थानाप्रभारी वर्मा को गुस्सा आ गया. उन्होंने उन से सख्ती से पूछताछ की तो विजय प्रताप ने बताया कि मृत महिला उस की पत्नी नीलम थी. हम दोनों ने ही मिल कर नीलम की हत्या की थी और शव को ईशन नदी के पुल के नीचे झाडि़यों में छिपा दिया था.

अजय और विजय ने हत्या का जुर्म तो कबूल कर लिया. किंतु अभी तक उन से आला ए कत्ल बरामद नहीं हुआ था. थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने इस संबंध में पूछताछ की तो उन दोनों ने बताया कि हत्या में प्रयुक्त मफलर तथा खून से सनी ईंटें उन्होंने ईशन नदी के पुल के नीचे झाडि़यों में छिपा दी थीं.

थानाप्रभारी उन दोनों को ईशन नदी पुल के नीचे ले गए. वहां दोनों ने झाडि़यों में छिपाई गई ईंट तथा मफलर बरामद करा दिया. पुलिस ने उन्हें साक्ष्य के तौर पर सुरक्षित कर लिया.

विजय प्रताप के पास मृतका नीलम के मामा श्यामबाबू का मोबाइल नंबर था. उस नंबर पर टी.पी. वर्मा ने श्यामबाबू से बात की और नीलम के संबंध में कुछ जानकारी हासिल करने के लिए थाना तिर्वा बुलाया. हालांकि उन्होंने श्यामबाबू को यह जानकारी नहीं दी कि उस की भांजी नीलम की हत्या हो गई है.

श्यामबाबू नीलम को ले कर पिछले 2 सप्ताह से परेशान था. वजह यह कि उस की न तो नीलम से बात हो पा रही थी और न ही उस के पति विजय से. थाना तिर्वा से फोन मिला तो वह तुरंत रवाना हो गया.

मामा ने बताई असल कहानी

कानपुर से तिर्वा कस्बे की दूरी लगभग सवा सौ किलोमीटर है, इसलिए 4 घंटे बाद श्यामबाबू थाना तिर्वा पहुंच गया. थाने पर उस समय थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा मौजूद थे. वर्मा ने उसे एक महिला का फोटो दिखते हुए पूछा, ‘‘क्या तुम इस महिला हो पहचानते हो?’’

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

2 भाइयों की करतूत : परिवार से ही लिया बदला – भाग 2

श्यामबाबू ने फोटो गौर से देखा फिर बोला, ‘‘सर, यह फोटो मेरी भांजी नीलम की है. इस की यह हालत किस ने की?’’

‘‘नीलम को उस के पति विजय प्रताप ने अपने भाई अजय की मदद से मार डाला है. इस समय दोनों भाई हवालात में हैं. 2 दिन पहले नीलम की लाश ईशन नदी पुल के नीचे मिली थी.’’ थानाप्रभारी ने बताया.

नीलम की हत्या की बात सुनते ही श्यामबाबू फफक पड़ा. वह बोला, ‘‘सर, मैं ने पहले ही नीलम को मना किया था कि विजय ऊंची जाति का है. वह उसे जरूर धोखा देगा. लेकिन प्रेम दीवानी नीलम नहीं मानी और 4 महीने पहले घर से भाग कर उस से शादी कर ली. आखिर उस ने नीलम को मार ही डाला.’’

थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने बिलख रहे श्यामबाबू को धीरज बंधाया और उसे वादी बना कर भादंवि की धारा 302, 201 के तहत विजय प्रताप व अजयप्रताप के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. इस के बाद उन्होंने कातिलों के पकड़े जाने की जानकारी एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह तथा सीओ (तिर्वा) सुबोध कुमार जायसवाल को दे दी.

जानकारी पाते ही एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह ने प्रैसवार्ता कर के कातिलों को मीडिया के सामने पेश कर घटना का खुलासा कर दिया.

रमेश कुमार अपने परिवार के साथ  लखनऊ के चारबाग में रहता था. उस के परिवार में पत्नी सीता के अलावा एकलौती बेटी थी नीलम. रमेश रोडवेज में सफाईकर्मी था और रोडवेज कालोनी में रहता था. रमेश और उस की पत्नी सीता नीलम को जान से बढ़ कर चाहते थे.

रमेश शराब बहुत पीता था. शराब ने उस के शरीर को खोखला कर दिया था. ज्यादा शराब पीने के कारण वह बीमार पड़ गया और उस की मौत हो गई. पति की मौत के बाद पत्नी सीता टूट गई, जिस से वह भी बीमार रहने लगी. इलाज के बावजूद उसे भी बचाया नहीं जा सका. उस समय नीलम महज 8 साल की थी.

नीलम के मामा श्यामबाबू कानपुर शहर के फीलखाना थाना क्षेत्र के रोटी गोदाम मोहल्ले में रहते थे. बहनबहनोई की मौत के बाद श्यामबाबू अपनी भांजी को कानपुर ले आए और उस का पालनपोषण करने लगे. चूंकि नीलम के सिर से मांबाप का साया छिन गया था, इसलिए श्यामबाबू व उस की पत्नी मीना, नीलम का भरपूर खयाल रखते थे, उस की हर जिद पूरी करते थे. नीलम धीरेधीरे मांबाप की यादें बिसराती गई.

वक्त बीतता रहा. वक्त के साथ नीलम की उम्र भी बढ़ती गई. नीलम अब जवान हो गई थी. 19 वर्षीय नीलम गोरे रंग, आकर्षक नैननक्श, इकहरे बदन और लंबे कद की खूबसूरत लड़की थी. वह साधारण परिवार में पलीबढ़ी जरूर थी, लेकिन उसे अच्छे और आधुनिक कपड़े पहनने का शौक था.

नीलम को अपनी सुंदरता का अंदाजा था, लेकिन वह अपनी सुंदरता पर इतराने के बजाए सभी से हंस कर बातें करती थी. उस के हंसमुख स्वभाव की वजह से सभी उस से बातें करना पसंद करते थे.

नीलम के घर के पास एक प्लास्टिक फैक्ट्री थी. इस फैक्ट्री में विजय प्रताप नाम का युवक काम करता था. वह मूलरूप से कन्नौज जिले के ठठिया थाना क्षेत्र के गांव पैथाना का रहने वाला था. उस के पिता हरिनारायण यादव किसान थे.

3 भाईबहनों में विजय प्रताप उर्फ शोभित सब से बड़ा था. उस का छोटा भाई अजय प्रताप उर्फ सुमित पढ़ाई के साथसाथ खेती के काम में पिता का हाथ बंटाता था. विजय प्रताप कानपुर के रावतपुर में किराए के मकान में रहता था और रोटी गोदाम स्थित फैक्ट्री में काम करता था.

फैक्ट्री आतेजाते एक रोज विजय प्रताप की निगाहें खूबसूरत नीलम पर पड़ीं तो वह उसे अपलक देखता रह गया. पहली ही नजर में नीलम उस के दिलोदिमाग में छा गई. इस के बाद तो जब भी विजय प्रताप फैक्ट्री आता, उस की निगाहें नीलम को ही ढूंढतीं.

नीलम दिख जाती तो उस के दिल को सकून मिलता, न दिखती तो मन उदास हो जाता था. नीलम के आकर्षण ने विजय प्रताप के दिन का चैन छीन लिया था, रातों की नींद हराम कर दी थी.

तथाकथित प्यार में छली गई नीलम

ऐसा नहीं था कि नीलम विजय की प्यार भरी नजरों से वाकिफ नहीं थी. जब वह उसे अपलक निहारता तो नीलम भी सिहर उठती थी. उसे उस का इस तरह निहारना मन में गुदगुदी पैदा करता था. विजय प्रताप भी आकर्षक युवक था. वह ठाठबाट से रहता था. धीरेधीरे नीलम भी उस की ओर आकर्षित होने लगी थी. लेकिन अपनी बात कहने की हिम्मत दोनों में से कोई नहीं जुटा पा रहा था.

जब से विजय प्रताप ने नीलम को देखा था, उस का मन बहुत बेचैन रहने लगा था. उस के दिलोदिमाग पर नीलम ही छाई रहती थी. धीरेधीरे नीलम के प्रति उस की दीवानगी बढ़ती जा रही थी. वह नीलम से बात कर के यह जानना चाहता था कि नीलम भी उस से प्यार करती है या नहीं. क्योंकि नीलम की ओर से अभी तक उसे कोई प्रतिभाव नहीं मिला था.

एक दिन लंच के दौरान विजय प्रताप फैक्ट्री के बाहर निकला तो उसे नीलम सब्जीमंडी बाजार की ओर जाते दिख गई. वह तेज कदमों से उस के सामने पहुंचा और साहस जुटा कर उस से पूछ लिया, ‘‘मैडम, आप अकसर फैक्ट्री के आसपास नजर आती हैं. पड़ोस में ही रहती हैं क्या?’’

‘‘हां, मैं पड़ोस में ही अपने मामा श्यामबाबू के साथ रहती हूं.’’ नीलम ने विजय प्रताप की बात का जवाब देते हुए कहा, ‘‘अब शायद आप मेरा नाम पूछोगे, इसलिए खुद ही बता देती हूं कि नीलम नाम है मेरा.’’

‘‘मेरा नाम विजय प्रताप है. आप के घर के पास जो फैक्ट्री है, उसी में काम करता हूं. रावतपुर में किराए के मकान में रहता हूं. वैसे मैं मूलरूप से कन्नौज के पैथाना का हूं. मेरे पिता किसान हैं. छोटा भाई अजय प्रताप पढ़ रहा है. मुझे खेती के कामों में रुचि नहीं थी, सो कानपुर आ कर नौकरी करने लगा.’’

इस तरह हलकीफुलकी बातों के बीच विजय और नीलम के बीच परिचय हुआ जो आगे चल कर दोस्ती में बदल गया. दोस्ती हुई तो दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने मोबाइल नंबर दे दिए. फुरसत में विजय प्रताप नीलम के मोबाइल पर उस से बातें करने लगा. नीलम को भी विजय का स्वभाव अच्छा लगता था, इसलिए वह भी फोन पर उस से अपने दिल की बातें कर लेती थी. इस का परिणाम यह निकला कि दोनों एकदूसरे के काफी करीब आ गए.

प्यार का नशा कुछ ऐसा होता है जो किसी पर एक बार चढ़ जाए तो आसानी से नहीं उतरता. नीलम और विजय के साथ भी ऐसा ही हुआ. अब वे दोनों साथ घूमने निकलने लगे. रेस्टोरेंट में बैठ कर साथसाथ चाय पीते और पार्कों में बैठ कर बतियाते. उन का प्यार दिन दूना रात चौगुना बढ़ने लगा.

एक दिन मोतीझील की मखमली घास पर बैठे दोनों बतिया रहे थे, तभी अचानक विजय नीलम का हाथ अपने हाथ में लेते हुए बोला, ‘‘नीलम, मैं तुम्हें बेइंतहा प्यार करता हूं. मैं अब तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊंगा. मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं. बोलो, मेरा साथ दोगी?’’

नीलम ने उस पर चाहत भरी नजर डाली और बोली, ‘‘विजय, प्यार तो मैं भी तुम्हें करती हूं और तुम्हें अपना जीवन साथी बनाना चाहती हूं, लेकिन मुझे डर लगता है.’’

‘‘कैसा डर?’’ विजय ने अचकचा कर पूछा.

‘‘यही कि हमारी और तुम्हारी जाति अलग हैं. तुम्हारे घर वाले क्या हम दोनों के रिश्ते को स्वीकार करेंगे?’’

विजय प्रताप नीलम के इस सवाल पर कुछ देर मौन रहा फिर बोला, ‘‘नीलम, आसानी से तो घरपरिवार के लोग हमारे रिश्ते को स्वीकार नहीं करेंगे लेकिन जब हम उन पर दबाव डालेंगे तो मान जाएंगे. फिर भी न माने तो बगावत पर उतर जाऊंगा. मैं तुम से वादा करता हूं कि तुम्हें मानसम्मान दिला कर ही रहूंगा.’’

लेकिन इस के पहले कि वे दोनों अपने मकसद में सफल हो पाते, नीलम के मामा श्यामबाबू को पता चल गया कि उस की भांजी पड़ोस की फैक्ट्री में काम करने वाले किसी युवक के साथ प्यार की पींगें बढ़ा रही है. श्यामबाबू नहीं चाहता था कि उस की भांजी किसी के साथ घूमेफिरे, जिस से उस की बदनामी हो.

मामा का समझाया नहीं समझी नीलम

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

2 भाइयों की करतूत : परिवार से ही लिया बदला – भाग 3

उस ने नीलम को डांटा और सख्त हिदायत दी कि विजय के साथ घूमनाफिरना बंद कर दे. नीलम ने डर की वजह से मामा से वादा तो कर दिया कि अब वह ऐसा नहीं करेगी. लेकिन वह विजय को दिल दे बैठी थी. फिर उस के बिना कैसे रह सकती थी. सोचविचार कर उस ने तय किया कि अब वह विजय से मिलने में सावधानी बरतेगी.

नीलम ने विजय प्रताप को फोन पर अपने मामा द्वारा दी गई चेतावनी बता दी. लिहाजा विजय भी सतर्क हो गया. मिलना भले ही बंद हो गया लेकिन दोनों ने फोन पर होने वाली बात जारी रखी. जिस दिन नीलम का मामा घर पर नहीं होता, उस दिन वह विजय से मिल भी लेती थी. इस तरह उन का मिलने का क्रम जारी रहा.

नीलम की जातिबिरादरी का एक लड़का था सुबोध. वह नीलम के घर के पास ही रहता था. वह नीलम को मन ही मन प्यार करता था. नीलम भी उस से हंसबोल लेती थी. उस के पास नीलम का मोबाइल नंबर भी था. इसलिए जबतब वह नीलम से फोन पर बतिया लेता था.

सुबोध नीलम से प्यार जरूर करता था, लेकिन प्यार का इजहार करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया था. नीलम जब विजय प्रताप से प्यार करने लगी तो सुबोध के मन में प्यार की फांस चुभने लगी. वह दोनों की निगरानी करने लगा.

एक दिन सुबोध ने नीलम को विजय प्रताप के साथ घूमते देखा तो उस ने यह बात नीलम के मामा श्यामबाबू को बता दी. श्यामबाबू ने नीलम की पिटाई की और उस का घर के बाहर जाना बंद करा दिया. नीलम पर प्रतिबंध लगा तो वह घबरा उठी.

उस ने इस बाबत मोबाइल फोन पर विजय से बात की और घर से भाग कर शादी रचाने की इच्छा जाहिर की. विजय प्रताप भी यही चाहता ही था, सो उस ने रजामंदी दे दी. इस के बाद दोनों कानपुर छोड़ने की तैयारी में जुट गए.

विजय प्रताप का एक रिश्तेदार दिल्ली में यमुनापार लक्ष्मीनगर, मदर डेयरी के पास रहता था और रेडीमेड कपड़े की सिलाई का काम करता था. उस रिश्तेदार के माध्यम से विजय प्रताप ने दिल्ली में रहने की व्यवस्था बनाई और नीलम को दिल्ली ले जा कर उस से शादी करने का फैसला कर लिया. उस ने फोन पर अपनी योजना नीलम को भी बता दी.

4 अगस्त, 2019 को जब श्यामबाबू काम पर चला गया तो नीलम अपना सामान बैग में भर कर घर से निकली और कानपुर सेंट्रल स्टेशन जा पहुंची. स्टेशन पर विजय प्रताप उस का पहले से इंतजार कर रहा था. उस समय दिल्ली जाने वाली कालका मेल तैयार खड़ी थी. दोनों उसी ट्रेन पर सवार हो कर दिल्ली रवाना हो गए.

उधर देर रात को श्यामबाबू घर आया तो घर से नीलम गायब थी. उस ने फोन पर नीलम से बात करने का प्रयास किया, लेकिन उस का फोन बंद था. श्यामबाबू को समझते देर नहीं लगी कि नीलम अपने प्रेमी विजय प्रताप के साथ भाग गई है. इस के बाद उस ने न तो थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई और न ही उसे खोजने का प्रयास किया.

उधर दिल्ली पहुंच कर विजय प्रताप अपने रिश्तेदार के माध्यम से लक्ष्मीनगर में एक साधारण सा कमरा किराए पर ले कर रहने लगा. एक हफ्ते बाद उस ने नीलम से प्रेम विवाह कर लिया और दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे. नीलम ने विजय से विवाह रचाने की जानकारी अपने मामा श्यामबाबू को भी दे दी. साथ ही यह भी बता दिया कि वह दिल्ली में रह रही है.

इधर विजय प्रताप के परिवार वालों को जब पता चला कि विजय ने नीलम नाम की एक दलित लड़की से शादी की है तो उन्होंने विजय को जम कर फटकारा और नीलम को बहू के रूप में स्वीकार करने से साफ मना कर दिया.

यही नहीं, परिवार वालों ने उस पर दबाव डालना शुरू कर दिया कि वह नीलम से रिश्ता तोड़ ले. पारिवारिक दबाव से विजय प्रताप परेशान हो उठा. उस का छोटा भाई अजय प्रताप भी रिश्ता खत्म करने का दबाव डाल रहा था.

हो गई कलह शुरू

नीलम अपने पति विजय के साथ 2 महीने तक खूब खुश रही. उसे लगा कि उसे सारा जहां मिल गया है. लेकिन उस के बाद उस की खुशियों में जैसे ग्रहण लग गया. वह तनावग्रस्त रहने लगी. नीलम और विजय के बीच कलह भी शुरू हो गई. कलह का पहला कारण यह था कि नीलम सीलन भरे कमरे में रहते ऊब गई थी.

वह विजय पर दबाव डालने लगी थी कि उसे अपने घर ले चले. वह वहीं रहना चाहती है. लेकिन विजय प्रताप जानता था कि उस के घर वाले नीलम को स्वीकार नहीं करेंगे. इसलिए वह उसे गांव ले जाने को मना कर देता था.

कलह का दूसरा कारण था नीलम का फोन पर किसी से हंसहंस कर बतियाना. जिस से विजय को शक होने लगा कि नीलम का कोई प्रेमी भी है. हालांकि नीलम जिस से बात करती थी, वह उस के मायके के पड़ोस में रहने वाला सुबोध था. उस से वह अपने मामा तथा घर की गतिविधियों की जानकारी लेती रहती थी. कभीकभी वह मामा से भी बात कर लेती थी.

एक तरफ परिवार का दबाव तो दूसरी तरफ शक. इन बातों से विजय प्रताप परेशान हो गया. मन ही मन वह नीलम से नफरत करने लगा. एक दिन देर शाम नीलम सुबोध से हंसहंस कर बातें कर रही थी, तभी विजय प्रताप कमरे में आ गया.

उस ने गुस्से में नीलम का मोबाइल तोड़ दिया और उसे 2 थप्पड़ भी जड़ दिए. इस के बाद दोनों में झगड़ा हुआ. नीलम ने साफ कह दिया कि अब वह दिल्ली में नहीं रहेगी. वह उसे ससुराल ले चले. अगर नहीं ले गया तो वह खुद चली जाएगी.

नीलम की इस धमकी से विजय प्रताप संकट में फंस गया. उस ने फोन पर इस बारे में अपने छोटे भाई अजय से बात की. अंतत: दोनों भाइयों ने इस समस्या से निजात पाने के लिए नीलम की हत्या की योजना बना ली. योजना बनने के बाद विजय प्रताप ने नीलम से कहा कि वह जल्दी ही उसे गांव ले जाएगा. वह अपनी तैयारी कर ले.

11 दिसंबर, 2019 की सुबह विजय प्रताप ने नीलम से कहा कि उसे आज ही गांव चलना है. नीलम चूंकि पहली बार ससुराल जा रही थी, इसलिए उस ने साजशृंगार किया, पैरों में महावर लगाई, फिर पति के साथ ससुराल जाने के लिए निकल गई.

विजय प्रताप नीलम को साथ ले कर बस से दिल्ली से निकला और रात 11 बजे कन्नौज पहुंच गया. विजय की अपने छोटे भाई अजय से बात हो चुकी थी. अजय प्रताप मोटरसाइकिल ले कर कन्नौज बसस्टैंड पर आ गया.

नीलम ने दोनों भाइयों को एकांत में खुसरफुसर करते देखा तो उसे किसी साजिश का शक हुआ. इसी के मद्देनजर उस ने कागज की परची पर पति का मोबाइल नंबर लिखा और सलवार के नाड़े के स्थान पर छिपा लिया.

रात 12 बजे विजय प्रताप, नीलम और अजय प्रताप मोटरसाइकिल से पैथाना गांव की ओर रवाना हुए. जब वे ईशन नदी पुल पर पहुंचे तो अजय प्रताप ने मोटरसाइकिल रोक दी. उसी समय विजय प्रताप ने नीलम के गले में मफलर लपेटा और उस का गला कसने लगा. नीलम छटपटा कर हाथपैर चलाने लगी तो अजय प्रताप ने उसे दबोच लिया और पास पड़ी ईंट से उस का चेहरा कुचल दिया.

हत्या करने के बाद दोनों नीलम के गले में अंगौछा डाल बांध कर शव को घसीट कर पुल के नीचे नदी किनारे ले गए और झाडि़यों में फेंक दिया. पहचान मिटाने के लिए उस का चेहरा तेजाब डाल कर जला दिया. तेजाब की बोतल अजय प्रताप ले कर आया था. शव को ठिकाने लगाने के बाद दोनों भाई मोटरसाइकिल से अपने गांव पैथाना चले गए.

17 दिसंबर, 2019 को थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने अभियुक्त विजय प्रताप तथा अजय प्रताप को कन्नौज कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जिला जेल भेज दिया गया.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित