दिलजलों का खूनी प्रतिशोध – भाग 4

पुलिस ने बरामद सिम नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस में पुलिस को कुछ नंबरों पर संदेह हुआ. पुलिस ने उन नंबरों को सर्विलांस पर लगवा दिया. आखिर सर्विलांस के माध्यम से मिली जानकारी के आधार पर शाहजहांपुर पुलिस की एक टीम दिल्ली पहुंची और थाना कमला मार्केट पुलिस से संपर्क किया. थाना कमला मार्केट के थानाप्रभारी ने एएसआई प्रमोद जोशी को कुछ सिपाहियों के साथ शाहजहां से गई पुलिस टीम की मदद के लिए लगा दिया.

शाहजहांपुर से गई पुलिस टीम ने एएसआई प्रमोद जोशी की मदद से 18 नवंबर को एक आदमी को गिरफ्तार किया. उसे कमला मार्केट थाने ला कर पूछताछ की गई तो उस ने अपना नाम दीपक शर्मा बताया. वह हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के थाना डेरा के रहने वाले रामपाल शर्मा का बेटा था. वह काफी समय से दिल्ली में रह रहा था और सुपारी ले कर हत्याएं करता था. उस पर दिल्ली में हत्या के कई मामले दर्ज थे.

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दीपक से पूछताछ के बाद शाहजहांपुर पुलिस के सामने विश्वजीत हत्याकांड की पूरी सच्चाई तो सामने आ गई, लेकिन शाहजहांपुर पुलिस उसे अपने साथ शाहजहांपुर नहीं ला पाई. क्योंकि दिल्ली पुलिस ने अपने यहां दर्ज एक मामले में उसे अदालत में पेश किया तो अदालत ने उसे जेल भेज दिया. पुलिस दीपक को भले ही अपने साथ नहीं ला पाई थी, लेकिन उस ने उन लोगों के नाम पुलिस को बता दिए थे, जिन्होंने विश्वजीत की हत्या कराई थी. वे दोनों कोई और नहीं, विश्वजीत के रैनबसेरा में सोने वाले उस के दोस्त नूरी और हामिद थे. पुलिस को दीपक से शाहजहांपुर का उन का पता भी मिल गया था.

पुलिस ने नूरी और हामिद की गिरफ्तारी के प्रयास किए तो 23 नवंबर की सुबह शाहजहांपुर रेलवे स्टेशन से नूरी को गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस ने उस से पूछताछ की तो उस ने मोना के प्यार से ले कर विश्वजीत की हत्या तक की कहानी सुना दी. पुलिस ने पूछताछ कर के उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

इस के बाद पुलिस हामिद की गिरफ्तारी के प्रयास में लग गई. थोड़ी मेहनत के बाद 29 नवंबर की सुबह पंचपीर तिराहे से हामिद को भी गिरफ्तार कर लिया गया. हामिद ने हत्या की पूरी कहानी सुनाने के बाद वह चाकू भी बरामद करा दिया, जिस से विश्वजीत की हत्या की गई थी. पूछताछ के बाद उसे भी जेल भेज दिया गया. इस पूछताछ में विश्वजीत की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.

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मोना विश्वजीत में प्यार हुआ तो मोना ने नूरी और हामिद से मिलना जुलना बंद कर दिया. उस ने उन से फोन पर भी बातें करनी बंद कर दीं. इस से उन्हें समझते देर नहीं लगी कि अब मोना को उन में जरा भी रुचि नहीं रह गई है. वह पूरी तरह विश्वजीत की हो गई है. साफ था, जेब से कड़के नूरी और हामिद अब उस के किसी काम के नहीं रह गए थे. इसीलिए उस ने उन से दूरी बना ली थी.

नूरी ने विश्वजीत से मोना से दूर रहने की बात कही तो वह उस पर भड़क उठा. उस ने गालीगलौज करते हुए उसे ही धमकी दे दी. नूरी उस का कुछ नहीं कर सकता था, इसलिए उस ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘विश्वजीत भाई, मोना मेरी गर्लफ्रेंड है, इसलिए मुझ पर दया कर के तुम उसे छोड़ दो.’’

‘‘अब वह तेरी नहीं, मेरी गर्लफ्रेंड है. उसे मुझ से कोई नहीं छीन सकता. और हां, अब अगर तू ने उस से मिलने की कोशिश की तो ठीक नहीं होगा. कहीं ऐसा न हो कि प्रेमिका के चक्कर में जान से हाथ धो बैठो.’’ विश्वजीत ने आंखें तरेरते हुए कहा.

इस के बाद नूरी और हामिद ने विश्वजीत को मोना से अलग करने की कई बार कोशिश की, उन के बीच मारपीट भी हुई, लेकिन विश्वजीत के सामने उन की एक न चली. तब वे सुपारी किलर दीपक शर्मा की शरण जा पहुंचे. दीपक से नूरी की अच्छी दोस्ती थी, इसलिए बिना पैसे के ही वह उस का काम करने को तैयार हो गया.

नूरी और हामिद विश्वजीत की हत्या ऐसी जगह करना चाहते थे, जहां कोई उसे पहचान न सके. इस के लिए वे उसे शाहजहांपुर ले जाना चाहते थे. नूरी और हामिद ने विश्वजीत से माफी मांग कर पुरानी बातें भूलने को कहा तो पुरानी दोस्ती को की वजह से विश्वजीत ने उन्हें माफ कर दिया. उन में फिर से अच्छे संबंध बन गए.

इस के बाद नूरी और हामिद ने उस से लखनऊ घूमने की बात कही तो विश्वजीत चलने को तैयार हो गया. उन्होंने दीपक को विश्वजीत से मिला कर कहा कि यह भी हमारे साथ लखनऊ चलेगा तो विश्वजीत ने मना नहीं किया. वह मना भी क्यों करता, क्योंकि वह अपने खर्च पर जा रहा था.

15 नवंबर को चारों टे्रन द्वारा नई दिल्ली से लखनऊ के लिए रवाना हुए. रास्ते में ताजिया दिखाने की बात कह कर नूरी ने विश्वजीत को शाहजहांपुर में उतार लिया. इस के बाद नूरी और हामिद उसे दीपक के साथ अपने घर ले गए. देर रात खाना खा कर टहलने के बहाने नूरी और हामिद विश्वजीत तथा दीपक को साथ ले कर सुभाषनगर-खुदरई मार्ग पर निकले. यह रास्ता रात में सुनसान रहता है.

मौका देख कर एक जगह नूरी और हामिद ने विश्वजीत को धक्का दे कर सड़क के किनारे गिरा दिया तो दीपक फुर्ती से उस के सीने पर सवार हो गया. विश्वजीत हाथपैर चलाता, उस के पहले ही दीपक ने चाकू से उस के गले पर कई वार कर दिए.

विश्वजीत छटपटाता रहा. तभी दीपक ने उस का सिर धड़ से अलग कर के सड़क के दूसरी ओर फेंक दिया. बाद में पैंट भी उतार कर वहां से दूर छिपा दी, जिस से पुलिस को कोई सुराग न मिले. इस के बाद नूरी और हामिद ने दीपक को दिल्ली भेज दिया और इस मामले में क्या होता है, यह जानने के लिए नूरी और हामिद शाहजहांपुर में ही रुक गए. लेकिन उन की होशियारी धरी की धरी रह गई और तीनों पुलिस के हत्थे चढ़ गए.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

आशा की चाह में टूटा सपना – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला उन्नाव के थाना औरास के अंतर्गत आने वाले गांव गागन बछौली का रहने वाला उमेश कनौजिया बहुत ही हंसमुख और मिलनसार स्वभाव का था. इसी वजह से उस का सामाजिक और राजनीतिक  दायरा काफी बड़ा था. उन्नाव ही नहीं, इस से जुड़े लखनऊ और बाराबंकी जिलों तक उस की अच्छीखासी जानपहचान थी.

वह अपने सभी परिचितों के ही सुखदुख में नहीं बल्कि पता चलने पर हर किसी के सुखदुख में पहुंचने की कोशिश करता था. उस की इसी आदत ने ही उसे इतनी कम उम्र में क्षेत्र का नेता बना दिया था. मात्र 25 साल की उम्र में वह जिला पंचायत सदस्य बना तो इस उम्र का कोई दूसरा सदस्य पूरे जिले में नहीं था.

नेता बनने की यह उस की पहली सीढ़ी थी. वह और आगे बढ़ना चाहता था, इसलिए उस ने अपना दायरा बढ़ाना शुरू कर दिया था. वैसे तो उस ने यह चुनाव भाजपा के समर्थन से जीता था, लेकिन उस के संबंध लगभग हर पार्टी के नेताओं से थे. इस की वजह यह थी कि उस की कोई ऐसी पारिवारिक पृष्ठभूमि नहीं थी कि लोग उसे नेता मान लेते. उस के पिता सूबेदार कनौजिया दुबई में नौकरी करते थे.

उमेश भी पढ़लिख कर नौकरी करना चाहता था, लेकिन जब उसे कोई ढंग की नौकरी नहीं मिली तो वह छुटभैया नेता बन कर गांव वालों की सेवा करने लगा. उसी दौरान उस की जानपहचान कुछ नेताओं से हुई तो वह भी नेता बनने के सपने देखने लगा. उस का यह सपना तब पूरा होता नजर आया, जब जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ने पर भाजपा ने उस का समर्थन कर दिया.

उमेश अपनी मेहनत और जनता की सेवा कर के नेता बना था. वह राजनीति में लंबा कैरियर बनाना चाहता था, इसलिए अपने क्षेत्र की जनता से ही नहीं, क्षेत्र के लगभग सभी पार्टी के नेताओं से जुड़ा था. उस का सोचना था कि कभी भी किसी की जरूरत पड़ सकती है. ऐसे में उस के निजी संबंध ही काम आएंगे. इस का उसे लाभ भी मिल रहा था. बसपा के सांसद ब्रजेश पाठक उसे भाई की तरह मानते थे.

उन्नाव के विकास खंड औरासा के वार्ड नंबर 2 से जिला पंचायत सदस्य चुने जाने के बाद उमेश ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा था. अपनी कार्यशैली की वजह से ही वह कम समय में लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हो गया था.

उत्तर प्रदेश का जिला उन्नाव लखनऊ और कानपुर जैसे 2 बड़े शहरों को जोड़ने का काम करता है. यह लखनऊ से 60 किलोमीटर दूर है तो कानपुर से मात्र 20 किलोमीटर दूर. एक तरफ प्रदेश की राजधानी है तो दूसरी ओर कानपुर जैसा महानगर है. इस के बावजूद इस की गिनती पिछड़े जिलों में होती है. शायद यही वजह है कि यहां नशा और अपराध अन्य शहरों की अपेक्षा ज्यादा हैं.

जिला भले ही पिछड़ा है, लेकिन कानपुर और लखनऊ की सीमा से जुड़ा होने की वजह से यहां की जमीन काफी महंगी है. इसलिए यहां के लोग अपनी जमीनें बेच कर अय्याशी करने लगे हैं. इस के अलावा गांवों के विकास के लिए पंचायती राज कानून लागू होने की वजह से गांवों में सरकारी योजनाओं का पैसा भी खूब आ रहा है, जिस से पंचायतों से जुड़े लोग प्रभावशाली बनने लगे हैं.

यही सब देख कर युवा चुनाव की ओर आकर्षित होने लगे हैं. वे चुनाव जीत कर समाज और राजनीति में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहते हैं. उमेश कनौजिया भी कुछ ऐसा ही सोच नहीं रहा था, बल्कि इस राह पर उस ने कदम भी बढ़ा दिए थे. लेकिन उस का यह सपना पूरा होता, उस के साथ एक हादसा हो गया.

14 नवंबर, 2013 की सुबह उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के थाना मलिहाबाद के गांव गढ़ी महदोइया के लोगों ने गांव के बाहर शारदा सहायक नहर के किनारे एक लाश पड़ी देखी. मृतक यही कोई 25-26 साल का था. वह धारीदार सफेदनीला स्वेटर, नीली जींस और हरे रंग की शर्ट पहने था. उस के दाहिने हाथ में कलावा बंधा था, जिस का मतलब था कि वह हिंदू था. उस के गले पर रस्सी का निशान साफ नजर आ रहा था. जिस से साफ था कि उस की हत्या की गई थी. हालांकि उस के दाहिने गाल से खून भी बह रहा था.

लाश से थोड़ी दूरी पर एक पैशन प्रो मोटरसाइकिल भी पड़ी थी, जिस का नंबर यूपी 32 ईवाई 1778 था. उस में चाबी लगी थी. पहली नजर में देख कर यही कहा जा सकता था कि यह दुर्घटना का मामला है. लेकिन गले पर जो रस्सी का निशान था, उस से अंदाजा साफ लग रहा था कि यह एक्सीडेंट नहीं, हत्या का मामला  है.

जिन लोगों ने लाश देखी थी, उन्हें लगा कि यह हत्या का मामला है तो उन्होंने इस बात की सूचना ग्रामप्रधान को दी. उस समय सुबह के यही कोई 7 बज रहे थे. ग्रामप्रधान के पति राजेश कुमार ने नहर के किनारे लाश पड़ी होने की सूचना थाना मलिहाबाद पुलिस को दी तो एसएसआई श्याम सिंह सिपाहियों को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए.

लाश और घटनास्थल का निरीक्षण कर उन्होंने लाश की शिनाख्त करानी चाही, तो वहां जमा लोगों में से कोई भी उस की पहचान नहीं कर सका. लाश के कपड़ों की तलाशी में भी ऐसा कोई सामान नहीं मिला, जिस से उस की पहचान हो पाती.

मोटरसाइकिल के नंबर से अंदाजा लगाया गया कि मृतक लखनऊ का रहने वाला है, क्योंकि उस पर पड़ा नंबर लखनऊ का ही था. संयोग से मोटरसाइकिल की डिग्गी खोली गई तो उस में से उस के कागजात मिल गए. मोटरसाइकिल उमेश कनौजिया के नाम रजिस्टर्ड थी. उस पर पता एकतानगर, थाना ठाकुरगंज, लखनऊ का था. इस से साफ हो गया कि मारा गया युवक लखनऊ का ही रहने वाला था.

थाना मलिहाबाद पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए लखनऊ मेडिकल कालेज भिजवा दिया. इस के बाद एसएसआई श्याम सिंह ने घटना की सूचना देने के लिए 2 सिपाहियों को एकता नगर भेज दिया.

थाना मलिहाबाद के सिपाहियों ने थाना ठाकुरगंज के एकतानगर पहुंच कर उमेश कनौजिया के बारे में पता किया तो वहां पर उस की मौसी शशिकला मिलीं. पुलिस वालों ने जब उमेश की लाश मिलने की बात उन्हें बताई तो वह बेहोश हो गईं.

घर वाले पानी के छींटे मार कर उन्हें होश में ले आए तो उन्होंने बताया, ‘‘उमेश हमारी बहन का बेटा है. वह उन्नाव का रहने वाला है. जब वह मेरे यहां रह कर पढ़ाई कर रहा था, तभी उस ने यह मोटरसाइकिल खरीदी थी. इसीलिए उस के कागजातों में मेरा पता लिखा है.’’

दिलजलों का खूनी प्रतिशोध – भाग 3

जिस दिन मोना और विश्वजीत एकदूसरे से मिले, उन की नजरें एक हुए बिना नहीं रह सकीं. स्मार्ट विश्वजीत को पहली ही बार देख कर मोना होश खो बैठी. अभी तक वह दूसरों की चाहत थी, लेकिन विश्वजीत को देख कर पहली बार उसे अपनी चाहत का अहसास हुआ. उस का दिल इस तरह मचल उठा था कि वह विश्वजीत के सीने से लग जाए. यही वजह थी कि उस की चाहत उस की नजरों से साफ झलक उठी थी. जिसे विश्वजीत को पढ़ने में देर नहीं लगी.

विश्वजीत मोना की झील-सी आंखों में डूबता चला गया. उस दिन नूरी ने दोनों का परिचय कराया तो कुछ बातें भी हुईं. इस के बाद फिर मिलने का वादा कर के दोनों अपनेअपने रास्ते चले गए. लेकिन वे एकदूसरे को पलभर के लिए भी भुला नहीं सके. दोनों में दोबारा मिलने की चाहत थी, इसलिए जल्दी ही उन की दोबारा मुलाकात हो गई. इस बार केवल वही दोनों थे. विश्वजीत मोना को एक महंगे रेस्टोरेंट में ले गया. विश्वजीत ने बातचीत में मोना को बताया था कि उस का खुद का एक होटल है और गांव में उस के पास काफी पुश्तैनी जमीनजायदाद है. इसलिए उसे किसी बात की चिंता नहीं है.

विश्वजीत के मोहपाश में बंधी मोना ने उस की बातों पर आंख मूंद कर विश्वास कर लिया. विश्वजीत बहुत बड़ा खिलाड़ी तो नहीं था, लेकिन इतना तो जानता ही था कि लड़कियों को किस तरह जाल में फंसाया जाता है. उस ने मोना के सामने अपनी रईसी के ऐसे झंडे इस तरह गाड़े थे कि वह उसे अपना हमसफर बनाने के बारे में सोचने लगी थी. मोना के हिसाब से विश्वजीत सुंदर और स्मार्ट तो था ही, साथ ही उस के पास पैसा और पावर भी था. इसलिए उस में वह जरूरत से ज्यादा रुचि लेने लगी.

विश्वजीत को जब पूरा विश्वास हो गया कि मोना अब पूरी तरह उस के प्रभाव में आ गई है तो उस ने मोना के हाथ को अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘मोना, मैं ने जिस तरह की लड़की की कल्पना की थी, तुम ठीक वैसी हो. जब से तुम से दोस्ती हुई है, मेरी सोच ही नहीं बदल गई, बल्कि जीने का ढंग भी बदल गया है. तुम खूबसूरत ही नहीं, सलीके वाली भी हो. तुम्हारी आदतें, बातचीत इतनी प्यारी लगती हैं कि मन करता है, हर पल तुम्हारे ही साथ रहूं. तुम से अलग होने पर एकएक पल सदियों जैसा लगता है. मैं यह जानना चाहता हूं कि जो भावनाएं मेरे मन में हैं, क्या वहीं तुम्हारे मन में भी हैं?’’

विश्वजीत के इन जज्बातों को सुन कर मोना ने विश्वजीत की आंखों में झांकते हुए कहा, ‘‘विश्वजीत तुम्हारे लिए मेरे मन में भी वही सब है, जो तुम्हारे मन में है. मैं तुम से मन की बात कहना भी चाहती थी, लेकिन यह सोच कर कह नहीं पाती थी कि तुम मेरे बारे में पता नहीं क्या सोचोगे. क्योंकि अगर तुम मेरे मन की बात समझ न पाए तो मैं टूट जाऊंगी. आज तुम्हारे मन की बात जान कर बहुत खुश हूं. मैं भी तुम्हारे साथ जिंदगी बिताने का सपना देख रही थी, जो आज सच हो गया.’’

इस के बाद दोनों का प्यार तेजी से परवान चढ़ने लगा. विश्वजीत को पता था कि मोना की नूरी और हामिद से भी दोस्ती थी. फिर भी उस के मन में उन के लिए कोई दुर्भावना नहीं थी. वह मोना के प्यार को पाना चाहता था, इसलिए उस के सामने उस ने स्वयं को बहुत बड़ा रईस बताया था. लेकिन जब उस का प्यार बढ़ा तो उस ने सोचा कि वह मोना को अपनी सच्चाई बता देगा, जिस से बाद में कोई भ्रम न रहे. लेकिन उसी बीच कुछ ऐसा हुआ कि यह सब बताने के पहले ही सब खत्म हो गया.

16 नवंबर की सुबह 9 बजे उत्तर प्रदेश के जिला शाहजहांपुर की कोतवाली पुलिस को सुभाष नगर-खुदराई मार्ग पर किसी युवक की सिरकटी लाश पड़ी होने की सूचना मिली तो इंसपेक्टर आलोक सक्सेना पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. सड़क के किनारे ही खून से सना धड़ पड़ा था. सिर का अता पता नहीं था. सिरविहीन धड़ पर चाकुओं के जख्म साफ नजर आ रहे थे. पुलिस ने जख्मों को गिना तो वे 14 थे. पुलिस ने सिर की तलाश शुरू की तो थोड़े प्रयास के बाद सड़क के दूसरी ओर सिर भी मिल गया.

कोतवाली पुलिस घटनास्थल और लाश का निरीक्षण कर ही रही थी कि क्षेत्राधिकारी राजेश्वर सिंह भी मौके पर पहुंच गए. अब तक घटनास्थल पर शहर और आसपास के गांवों के तमाम लोग इकट्ठा हो गए थे. पुलिस ने वहां एकत्र लोगों से मृतक की शिनाख्त करानी चाही, लेकिन कोई भी उसे पहचान नहीं सका. इस से पुलिस को लगा कि यह यहां का रहने वाला नहीं है. इसे यहां ला कर मारा गया है. लाश पर जो कपड़े थे, वे ब्रांडेड थे. इस से अंदाजा लगाया गया कि मृतक ठीकठाक घर का लड़का था.

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हत्या बड़ी ही बेरहमी से की गई थी. यह देख कर पुलिस को लगा कि यह हत्या प्रतिशोध के लिए की गई है. मामला प्रेमप्रसंग का नजर आ रहा था. पुलिस ने डाग स्क्वायड को भी बुला लिया था. लेकिन कुत्ता लाश सूंघ कर थोड़ी दूर जा कर रुक गया. वहां पुलिस को खून सनी एक पैंट मिली. पुलिस ने पैंट की तलाशी ली तो उस में से एक सिम बरामद हुआ, जिसे पुलिस ने कब्जे में ले लिया. इस के बाद पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

थाने लौट कर इंसपेक्टर आलोक सक्सेना ने चौकीदार राधेश्याम को वादी बना कर भादंवि की धारा 302/201 के तहत अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया और मामले की जांच की जिम्मेदारी स्वयं संभाल ली.

पुलिस के पास जांच का एक ही जरिया था, मृतक की जेब से बरामद सिम. बरामद सिम की डिटेल्स निकलवाई गई तो पता चला कि वह उत्तर प्रदेश के जिला गाजीपुर के थाना मरदह के गांव डंडापुर के रहने वाले ओमप्रकाश सिंह के बेटे विश्वजीत सिंह का है. पुलिस ने उक्त पते पर संपर्क कर के परिजनों को बुलाया तो उन्होंने शव की शिनाख्त विश्वजीत सिंह के रूप में कर दी. पूछताछ में उन से पता चला कि विश्वजीत दिल्ली में रह कर नौकरी करता था.

दिलजलों का खूनी प्रतिशोध – भाग 2

एक दिन नूरी मोना के घर पहुंचा तो उस ने ऐसे कपड़ों में दरवाजा खोला कि नूरी उसे देखता ही रह गया. उस ने उसे अंदर आने को कहा, लेकिन वह मोना के उस रूप में इस तरह खो गया था कि उस की बात सुनी ही नहीं. उस का मन कर रहा था कि वह मोना को बांहों में भर ले. नूरी की नजरें उस के शरीर पर ही जमी थीं. उस की नजरों का आशय समझ कर मोना मुसकरा उठी.

उस ने नूरी की आंखों के सामने हाथ नचाते हुए कहा, ‘‘कहां खो गए डियर, अंदर भी आओगे या बाहर से इसी तरह ताकते रहोगे?’’

नूरी हड़बड़ा कर बोला, ‘‘सौरी डियर. तुम इस समय कुछ ज्यादा ही खूबसूरत लग रही हो, इसलिए तुम्हें देखता ही रह गया.’’

‘‘मजाक मत करो. लड़कों की आदत का मुझे अच्छी तरह पता है. वह इसी तरह लड़कियों की तारीफ कर के उन की कमजोरी का फायदा उठाना चाहते हैं.’’ मोना ने कहा.

‘‘मैं सच कह रहा हूं मोना. तुम सचमुच बहुत खूबसूरत लग रही हो. एकदम गजब ढा रही हो.’’ अंदर आ कर नूरी ने कहा, ‘‘मोना मेरी बात तुम्हें अजीब जरूर लगेगी, लेकिन सच्चाई यही है कि मेरी तुम्हारे प्रति चाहत बढ़ती जा रही है. मुझे तुम से लगाव सा हो गया है. यह भी कहा जा सकता है कि मुझे तुम से प्यार हो गया है. अगर ऐसा है तो क्या तुम मेरे प्यार को स्वीकार करोगी?’’

मोना ने मुसकराते हुए अपना एक हाथ उस के कंधे पर रख कर कहा, ‘‘नूरी, मुझे भी कुछ ऐसा ही लगता है. तुम भी मुझे बहुत अच्छे लगते हो.’’

मोना के इन शब्दों ने नूरी के मन पर कुछ ऐसा असर किया कि उस ने  उसे अपनी बांहों में भर लिया और अपने होठों की मुहर उस के गालों पर लगा दी. मोना भी पीछे नहीं रही. लेकिन जब नूरी ने इस मौके का फायदा उठाना चाहा तो मोना ने खुद को बेकाबू होने से रोका और नूरी को धक्का दे कर अलग किया.

मोना की यह हरकत नूरी को अच्छी तो नहीं लगी, लेकिन उस समय उस ने बुरा नहीं माना. उस ने सोचा, आज यहां तक पहुंचे हैं तो किसी दिन हद भी पार कर लेंगे. दूसरी ओर मोना सामान्य हुई तो बोली, ‘‘प्लीज नूरी, यहां तक तो ठीक है, लेकिन इस के आगे बढ़ने की कभी कोशिश मत करना.’’

‘‘ठीक है, लेकिन जब हमारे दिल मिल चुके हैं तो शरीरों के मिलने में क्या दिक्कत है?’’

‘‘नहीं, मैं इसे अच्छा नहीं समझती. शारीरिक मिलन के बाद दिल का नहीं, शरीर का प्यार रह जाता है, जो धीरेधीरे खत्म हो जाता है. प्रेमी जब भी मिलते हैं, शरीर के लिए मिलते हैं. मुझे यह पसंद नहीं है.’’

मोना ने नूरी को कुछ इस तरह समझा दिया कि वह बुरा भी न माने और उसे अपनी जरूरत पूरी करने का जरिया भी न बनाए. क्योंकि मोना उस के साथ प्यार का खेल कुछ इस तरह खेल रही थी कि उसे इस खेल का कभी अहसास नहीं हो सका.

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नूरी के साथ ही हामिद भी उसी बार में वेटर था. यही नहीं, वह भी उसी रैनबसेरा में सोता था, जहां नूरी सोता था. वह रहने वाला भी उसी के मोहल्ले का था, इसलिए दोनों में पक्की यारी थी. यही वजह थी कि दोनों एकदूसरे से कोई भी बात नहीं छिपाते थे. ऐसे में नूरी और मोना के प्रेमसंबंध वाली बात भला हामिद से कैसे छिपी रह सकती थी. जब हामिद ने नूरी से कहा कि वह उसे भी मोना से मिलवा दे तो वह मना नहीं कर सका.

इस के बाद नूरी मोना से मिलने गया तो साथ में हामिद को भी ले गया. मोना को देख कर हामिद भी नूरी की तरह सुधबुध खो बैठा. वह अपने लिए जिस तरह की लड़की की कामना करता था, मोना हुबहू वैसी थी. हामिद जब उसे एकटक देखता रहा गया तो उस की इस हालत पर नूरी ने मुसकराते हुए उस के कानों के पास फुसफुसा कर कहा, ‘‘क्यों बेटा, मेरी पसंद देख कर होश उड़ गए न?’’

‘‘हां यार, यह तो सचमुच बहुत सुंदर है. तेरी तो किस्मत खुल गई.’’

‘‘किस्मत अच्छी है. तभी तो इस नूरी को इतना खूबसूरत नूर मिला है’’

दोनों को खुसरफुसर करते देख मोना ने पूछा, ‘‘तुम दोनों आपस में इस तरह क्या खुसरफुसर कर रहे हो?’’

‘‘कुछ नहीं मोना, तुम्हें देख कर यह होश खो बैठा है, इसलिए इसे होश में ला रहा था.’’

यह सुन कर मोना खिलखिला कर हंस पड़ी. उस की हंसी ने दोनों के दिलों पर तीर चला दिए. उस दिन हामिद और मोना में भी दोस्ती हो गई. उस के बाद हामिद भी मोना से अकेले में मिलने लगा. उसे भी मोना से मोहब्बत हो गई तो वह भी अपनी कमाई उस पर लुटाने लगा. मोना उस से भी बड़े प्यार से पेश आती थी, जिसे हामिद अपने लिए प्यार समझने लगा था. दोनों दोस्त एक ही लड़की के साथ समय बिताने के साथसाथ जिंदगी बिताने के सपने देखने लगे थे. जबकि मोना को उन दोनों में से किसी से प्यार नहीं था.

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नूरी और मोना के बीच चल रहे चक्कर के बारे में जल्दी ही उस के तीसरे दोस्त विश्वजीत सिंह को भी पता चल गया. वैसे भी इस तरह की बातें कहां जल्दी छिपती हैं. खास कर दोस्तों के बीच तो बिलकुल नहीं.

विश्वजीत सिंह उत्तर प्रदेश के जिला गाजीपुर के थाना मरहद के गांव डंडापुर का रहने वाला था. उस के पिता ओमप्रकाश सिंह एक स्थानीय इंटर कालेज में चपरासी थे. परिवार में मां ममता के अलावा एक बड़ी बहन संध्या और एक छोटा भाई सर्वजीत था. संध्या का विवाह हो चुका था, जबकि सर्वजीत अभी पढ़ाई कर रहा है.

22 वर्षीय विश्वजीत बीकौम कर के दिल्ली आ गया था. दिल्ली में उसे अजमेरी गेट के पास एक रैनबसेरा में केयरटेकर की नौकरी मिल गई. उसे वहां से जो भी वेतन मिलता था, वह उसे अपने ऊपर खर्च करता था. उसे महंगे कपड़े पहनने और अच्छा खानेपीने का शौक था. ठीकठाक कपड़े पहन कर वह किसी रईसजादे से कम नहीं लगता था. इस की एक वजह यह भी थी वह स्मार्ट तो था ही, पढ़ालिखा भी था.

विश्वजीत को देख कर लोग यही अंदाजा लगाते थे कि यह किसी अच्छे घर का लड़का है. वह रहता भी रौब के साथ था. दबंगई उस के स्वभाव में थी, इसलिए जल्दी उस से कोई उलझने की कोशिश नहीं करता था. वैसे भी वह किसी से नहीं डरता था.

उसी रैनबसेरा में सोने आते थे, जहां का केयरटेकर विश्वजीत था. इस तरह रोजरोज मिलने जुलने में नूरी किसी लड़की से मिलताजुलता है, इस बात की जानकारी विश्वजीत को हुई तो उस ने भी नूरी से कहा कि वह उसे भी उस लड़की से एक बार मिलवा दे. नूरी उसे इनकार नहीं कर सकता था, इसलिए उसे विश्वजीत को मोना से मिलवाना ही पड़ा.

दिलजलों का खूनी प्रतिशोध – भाग 1

दो पहर का खाना खा कर आराम कर रही मोना की नजर दीवार घड़ी पर पड़ी तो वह झटके से उठी और अलमारी खोल कर अपनी पसंद के कपड़े निकालने लगी. उन कपड़ों को पहन कर वह आईने के सामने खड़ी हुई तो  अपने आप पर मुग्ध हो कर रह गई. सफेद टौप और काली स्किन टाइट जींस में वह सचमुच बहुत खूबसूरत लग रही थी. अपनी उस खूबसूरती पर उस के होंठ स्वयं ही खिल उठे.

मोना तैयार हो कर घर से निकली तो खुद ब खुद उस के कदम उस ओर बढ़ गए, जहां वह रोज अपने ब्वायफ्रेंड विश्वजीत से मिलती थी. जब वह उस जगह पहुंची तो विश्वजीत उसे बैठा मिला. वह उस का इंतजार कर रहा था. वह दबे विश्वजीत के पीछे पहुंची और उस की आंखों को अपनी दोनों हथेलियों से बंद कर लिया. अचानक घटी इस घटना से विश्वजीत हड़बड़ाया जरूर, लेकिन तुरंत ही जान गया कि मोना आ गई. उस ने मोना के हाथों को आंखों से हटा कर उस की ओर देखा तो देखता ही रह गया.

मोना ने चुटकी लेते हुए कहा, ‘‘इस तरह क्या देख रहे हो, पहले कभी नहीं देखा क्या?’’

‘‘क्या बात है भई, आज तो तुम बिजली गिरा रही हो?’’

‘‘लगता है, आज सुबह से तुम्हें बेवकूफ बनाने के लिए कोई और नहीं मिला.’’

‘‘मोना, मैं तुम्हें बेवकूफ नहीं बना रहा हूं. सचमुच आज तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो. हीरे को अपनी चमक का अहसास थोड़े ही होता है, उसे तो जौहरी ही पहचानता है.’’

‘‘अच्छा जौहरी साहब, अब आप ने हीरे की पहचान कर ली है तो अब जरा यह भी बता दीजिए कि हीरा असली है या नकली.’’

‘‘हीरा नकली होता तो मैं उसे हाथ ही न लगाता. हां,  हीरा भले ही असली था, लेकिन अभी तक तराशा नहीं था, इसलिए पत्थर जैसा था. अब मैं ने इसे तराश दिया है तो इस की खूबसूरती और चमक दोगुनी हो गई है.’’ विश्वजीत ने मोना की आंखों में आंखें डाल कर कहा.

मोना को उस की बात की गहराई समझते देर नहीं लगी. इसलिए लजा कर उस ने नजरें झुका कर कहा, ‘‘यह हीरा तुम्हारे गले में सजना चाहता है.’’

विश्वजीत ने मोना का हाथ अपने हाथ में ले कर बड़े विश्वास के साथ कहा, ‘‘मोना, हम दोनों की यह चाहत जरूर पूरी होगी. हम अपने बीच किसी को नहीं आने देंगे. अगर किसी ने आने की कोशिश की तो उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा.’’

मोना विश्वजीत के प्यार के जुनून को देख कर जहां खुश हुई, वहीं उन दोनों को छिप कर देख रही 2 आंखों में खून उतर आया. इस के बाद उस ने जो निश्चय किया, वह विश्वजीत के लिए ठीक नहीं था. आगे क्या हुआ, यह जानने से पहले आइए थोड़ा इस कहानी के पात्रों के बारे में जान लेते हैं.

मोना दिल्ली के कड़कड़डूमा की रहने वाली थी. उस के पिता वकालत करते थे. वह हिंदू थे, जबकि उन की पत्नी यानी मोना की मां मुस्लिम थीं. वकील साहब की यह दूसरी शादी थी. मोना उन की एकलौती संतान थी, जिसे वे बड़े लाडप्यार से पाल रहे थे. मांबाप के लाडप्यार और विचारों का मोना पर पूरा असर था. लड़कों से दोस्ती करना उन के साथ घूमना उस के लिए आम बात थी.

पहले तो मोना का मन पढ़ाई में खूब लगता था. लेकिन जैसे ही उस ने जवानी की दहलीज पर कदम रखा और लड़कों ने उसे खूबसूरत होने का अहसास कराया, उस का मन पढ़ाई से उचटने लगा. वह सतरंगी सपनों की दुनिया में खोई रहने लगी. महानगर में पलबढ़ रही मोना के मन में भी अन्य लड़कियों की तरह अच्छे रहनसहन की ललक थी.

यही वजह थी कि वह अपनी सहेलियों को कईकई लड़कों के साथ घूमतेफिरते देखती तो उन की किस्मत से जल उठती. जबकि उस की वे सहेलियां उस की खूबसूरती के आगे कुछ भी नहीं थीं. इतनी खूबसूरत होने के बावजूद भी मोना का कोई ब्वायफ्रेंड नहीं था. जबकि उस की उन सहेलियों के ब्वायफे्रंड की लिस्ट काफी लंबी थी.

मोना की मां की कोई दूर की रिश्तेदारी उत्तर प्रदेश के जिला शाहजहांपुर के थाना सदर बाजार के शहबाजनगर निवासी बाबू खां के यहां थी. उन का बेटा नूरी उर्फ नूर मियां नई दिल्ली के जीबी रोड स्थित एक बार में वेटर का काम करता था. दिन में वह नौकरी करता था और रात में अजमेरी गेट के पास के एक रैनबसेरा में गुजारता था. रिश्तेदारी होने की वजह से नूरी का मोना के यहां आनाजाना था.

इसी आनेजाने में नूरी मोना को पसंद करने लगा. वह जब भी मोना के यहां आता, उस के आसपास ही मंडराता रहता. नूरी को पता ही था कि मांबाप के काम पर जाने के बाद मोना घर में अकेली रहती है, इसलिए वह ऐसे ही समय उस के पास आनेजाने लगा, जब वह घर में अकेली होती. ऐसे में वह उस से खूब बातें करता और घुमाने भी ले जाता, जहां उसे अच्छीअच्छी चीजें खिलाता. इस से मोना को उस का साथ अच्छा लगने लगा. मोना इतनी भोली नहीं थी कि यह न समझ पाती कि नूरी उस में इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहा है? सब कुछ जानते हुए  वह उस की ओर आकर्षित होने लगी.

मिसकाल बनी काल

नादानी का नतीजा

प्यार ने बना दिया नागिन

दोस्त के प्यार पर डाका – भाग 4

प्रेमिका की याद में घुट रहा था नवीन

नंदिनी भले ही अपने दिल से नवीन की यादें मिटा दी थीं, लेकिन नवीन उसे अभी भी भुला नहीं पाया था. उस के दिल में अब भी नंदिनी के साथ बिताए सुनहरे पल की यादें जवां थी. उस की एकएक सांस पर प्रेमिका का नाम लिखा हुआ था. जब उस की याद आती थी, उस की पलकें भीग जाती थीं. घुटता था वह दिल ही दिल में. आज भी वह इस बात को सोच कर परेशान हो जाता था कि नंदिनी ने किस कुसूर के लिए उसे अपने दिल से निकाल दिया.

तभी तो 2 साल बाद हिम्मत जुटा कर एक दिन नवीन ने नंदिनी को मैसेज किया. सालों बाद आए मैसेज को पढ़ कर वह हैरान रह गई थी. उस ने नवीन के भेजे गए मैसेज का कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि उस ने यह बात हरिहर कृष्णा को बता दी.

हरिहर कृष्णा ने जैसे ही सुना कि नवीन ने प्रेमिका को मैसेज किया है, वह सतर्क हो गया और डर भी गया कि सालों से पड़ा परदा नंदिनी के सामने कहीं उठ न जाए. वरना बना बनाया खेल बिगड़ सकता है, उस की सच्चाई जान कर नंदिनी उस से दूर चली जाएगी. वह ऐसा होने नहीं देना चाहता था.

उस ने प्रेमिका को समझाया कि वह उस के किसी भी मैसेज का जवाब नहीं दे. इस के बाद भी अगर वह मैसेज करता है तो कोई और रास्ता निकालना होगा.

उस दिन के बाद से नवीन नंदिनी को मैसेज बराबर भेजने लगा था. उस के बारबार मैसेज आने से वह बुरी तरह परेशान हो गई थी और हरिहर कृष्णा से एकएक बात बताती थी. नवीन के प्यार भरे मैसेज भेजने से वह जलभुन उठता था. उसे इस बात का डर सताने लगा था कि कहीं नंदिनी उस के हाथ से निकल न जाए.

नंदिनी ने नवीन से पीछा छुड़ाने की कोई कारगर युक्ति निकालने की बात कही तो उस ने उसे यकीन दिलाया कि जल्द ही नवीन नाम के कांटे से छुटकारा दिला देगा, इस की वह चिंता न करे.

हरिहर कृष्णा भी यही चाहता था कि नवीन जो उस के प्रेम की राह में कांटा बना हुआ है, उस कांटे को सदा के लिए रास्ते से उखाड़ फेंके. फिर प्रेमिका ने तो फरमान ही जारी कर दिया था तो भला उस के फरमान को वह कैसे पूरा न करता.

शातिर दिमाग वाला हरिहर कृष्णा ने फैसला कर लिया था उसे क्या करना है. उस ने मन ही मन खतरनाक योजना भी बना ली थी. योजना थी नवीन की हत्या. अब इसे यह तय करना था कि नवीन को नेलगोंडा से हैदराबाद कैसे बुलाया जाए. क्योंकि इस ने नवीन की हत्या की पटकथा इसी शहर में लिखी थी यानी उसे यहीं मारने का प्लान बनाया था.

अपनी योजना में उस ने नंदिनी को भी शामिल कर लिया था. उसे इस की हर गतिविधियों की पलपल की जानकारी दी.

दोस्त ने ही नवीन को लगा दिया ठिकाने

सूत्रों के अनुसार, 17 फरवरी 2023 की सुबह हरिहर कृष्णा ने नवीन को फोन किया और धोखे से उसे पुराने दोस्तों के साथ गेट टुगेदर पार्टी के लिए हैदराबाद बुलाया. इस पर नवीन ने अपनी तरफ से हां कह दिया और दोस्त (रूम पार्टनर) प्रदीप से हैदराबाद जाने और हरिहर कृष्णा के साथ पार्टी करने की बात कह कर हैदराबाद के लिए रवाना हो गया.

हरिहर कृष्णा ने जैसे ही सुना कि नवीन आ रहा है, उस ने छोटे आकार के पिट्ठू बैग में एक जोड़ा दस्ताना, नायलौन की रस्सी और फलदार चाकू रख लिया था ताकि मौका मिलते ही उसे रास्ते से हटा देगा.

सुबह 10 बजे के करीब नवीन हैदराबाद बस स्टैंड पहुंचा. वहां बाइक लिए हरिहर कृष्णा पहले से ही उस का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. बस से नीचे उतरते हुए दोस्त को देख कर हरिहर कृष्णा बुरी तरह जलभुन उठा, लेकिन चेहर ेपर जहरीली मुसकान थिरक रही थी.

दोस्त नवीन को बाइक पर बैठा कर हरिहर कृष्णा रेस्टोरेंट ले गया. वहां दोनों ने छक कर शराब पी. थोड़ी देर बाद शराब ने जब अपना रंग नवीन पर दिखाना शुरू कर दिया तो दिल में भरा गुब्बार फूट गया. उस ने अपनी प्रेमिका के छीनने का आरोप जब हरिहर कृष्णा पर मढ़ दिया तो हरिहर कृष्णा आगबबूला हो उठा और दोनों आपस में भिड़ गए.

एक पल को हरिहर कृष्णा उसे वहीं खत्म कर देने का मन बना लिया, लेकिन वहां भीड़ काफी थी, उसे अपने पकड़े जाने का भय सताने लगा था, इसलिए उस ने चुप रहने में ही भलाई समझी और बड़ी चालाकी से माहौल को दूसरी ओर घुमा दिया था.

फिर हरिहर कृष्णा नवीन को बाइक पर बैठा कर इधरउधर घुमाता रहा ताकि अंधेरा हो जाए. शाम 6 बजे के करीब बाइक ले कर वह अब्दुल्लापुरमेट थानाक्षेत्र के पेड्डा अंबरपेट की घनी झाडिय़ों के पास पहुंचा, जहां चारों ओर सन्नाटा और दूरदूर तक अंधेरा फैला था.

झाडिय़ों के पास उस ने बाइक रोक दी और दोनों पास स्थित रमादेवी पब्लिक स्कूल की ओर बढ़े, जहां पार्टी चलने की बात हरिहर कृष्ण ने बताई. आगेआगे लडख़ड़ाता हुआ नवीन चल रहा था, जबकि हरिहर कृष्णा उस के पीछेपीछे. यही सही मौका था. उस ने धीरे बैग से नायलौन की रस्सी निकाली और नवीन का गला घोंट कर उसे मौत के घाट उतार दिया. उस के बाद उस ने नफरत से एक लंबी हुंकार भरी.

हरिहर ने दिखा दी नफरत की इंतहा

फिर पिट्ठू बैग से दस्ताना निकाल कर हाथों में पहना और चाकू से उस का गला काट कर सिर धड़ से अलग कर दिया और मोबाइल की टार्च की रोशनी में मोबाइल कैमरे से फोटो खींचा और नंदिनी के वाट्सऐप पर भेज दिया. पुराने प्रेमी का कटा सिर देख कर नंदिनी बहुत खुश हुई.

हरिहर कृष्णा की नफरत की इंतहा यहीं खत्म नहीं हुई थी, उस ने उसी चाकू से नवीन का पेट फाड़ कर दिल बाहर दिया और नफरत व गुस्से से कहा, “ये दिल मेरी नंदिनी के लिए धडक़ता था न?” चाकू से दिल के कई टुकड़े कर डाले.

फिर उस ने कहा, “इन्हीं अंगुलियों से तू मेरी नंदिनी को मैसेज भेजता था न?” फिर उस ने दोनों हाथों की दसों अंगुलियों को काट कर अलग कर दिया.

फिर उस ने कहा, “तू मेरी नंदिनी के साथ शादी कर बच्चे पैदा करना चाहता था न?” उस के बाद उस ने उस के प्राइवेट पार्ट को भी काट कर अलग कर दिया और सबूत के तौर फोटो मोबाइल में उतार कर प्रेमिका के वाट्सऐप पर भेज दिया.

फिर उस की लाश को जला दिया ताकि कोई सबूत न मिले और रूमाल से अपने हाथों आदि पर खून पोंछ कर, चाकू, ग्लव्स वहीं फेंक दिया. उस के बाद वह अपने दोस्त हसन के कमरे पर पहुंचा. तब तक काफी रात हो चुकी थी, उस ने उसे सारी बात बता दी थी.

हरिहर कृष्णा की बात सुन कर वह सन्न रह गया था. फिर वह उस के वाशरूम में नहाया और उस के कपड़े पहने. उसी रात वह शहर छोड़ कर भाग जाना चाहता था तो उस ने नंदिनी से पैसे मांगे तो उस ने अपने मोबाइल से 1500 रुपए उस के अकांउट में ट्रांसफर किए और वह दूसरे शहर को फरार हो गया.

नवीन ने एक चालाकी की थी. हौस्टल से हैदराबाद के लिए निकलते समय उस ने बता दिया था कि अपने दोस्त हरिहर कृष्णा के पास पार्टी में जा रहा है. शाम तक वापस लौट आएगा. जब वह रात तक हौस्टल नहीं लौटा तो रूम पार्टनर प्रदीप ने पूरी बात उस के पिता शंकराय को बता दी थी. इसी वजह से पुलिस को यह केस खोलने में आसानी हुई.

पुलिस ने हरिहर कृष्णा से पूछताछ करने के बाद उस की प्रेमिका नंदिनी और दोस्त हसन को भी गिरफ्तार कर लिया. तीनों आरोपियों को कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.

कथा लिखने पुलिस कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल कर चुकी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में नंदिनी परिवर्तित नाम है.

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