दोस्त के प्यार पर डाका – भाग 3

नंदिनी ने बना ली नवीन से दूरी

हरिहर कृष्णा ने अपना दांव चल दिया था. कान की कच्ची नंदिनी उस की बातों में आ गई थी. वैसे भी नारी यह कब बरदाश्त कर सकती है कि एक म्यान में 2 तलवार रह सके.

हरिहर कृष्णा ने जब से नवीन के खिलाफ उस के कान भरे थे, तब से नंदिनी ने उस से दूरी बना ली. वह न तो उस से बात करती थी और न ही उस की काल रिसीव कर रही थी. अचानक प्रेमिका में आए बदलाव को देख कर नवीन परेशान हो गया था. वह उस से यह जानने की कोशिश करता था कि आखिर उस से ऐसी कौन सी गलती हुई है कि उस ने उस से बातचीत करनी बंद कर दी.

यहां तक कि काल रिसीव करना भी छोड़ दिया था वरना एक घंटी बनते ही झट से उस की काल रिसीव कर लेती थी. नवीन को क्या पता था कि उस की प्रेमिका को अपनी प्रेमिका बनाने के लिए उसी के अजीज यार ने गद्दारी की थी. उसी ने भोलीभाली नंदिनी को उस के खिलाफ भडक़ाया था. बिना सोचेसमझे नंदिनी भी शक के दरिया में रफ्तार से बढ़ गई थी.

इस घटना के महीने भर बाद शाम की छुट्ïटी के बाद एक दिन रास्ते में नवीन ने नंदिनी को रोक लिया, “एक मिनट के लिए नंदिनी, प्लीज मेरी बात सुन लो.” नवीन उस के सामने गिड़गिड़ाया.

“मैं तुम्हारी कोई बात नहीं सुनने वाली. और फिर तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई जो तुम ने मेरा रास्ता रोका?” गुस्से से नंदिनी तमतमा उठी थी.

“प्लीज नंदिनी, गुस्सा मत होओ,” एक बार फिर उस के सामने नवीन गिड़गिड़ाया, “सिर्फ इतना बता दो कि आखिर मुझ से ऐसी क्या गलती हुई है, जो तुम ने मुंह मोड़ लिया. प्लीज नंदिनी, प्लीज एक बार बता दो.”

“मैं ने कहा न, मुझे तुम से कोई बात नहीं करनी है तो नहीं करनी है. प्लीज मेरा रास्ता छोड़ दो. प्लीज.. प्लीज.. प्लीज… मुझे घर पहुंचना है, मम्मी मेरी राह देख रही होगी.”

इस के बाद नवीन ने प्रेमिका के सामने दोनों हाथ जोड़ कर अपने प्यार की दुहाई दी कि उसे उस की गलती तो एक बार बता दो ताकि जीवन में दोबारा वैसी कोई गलती न हो. वह उस के बिना नहीं जी सकता, उस की जुदाई का गम बरदाश्त नहीं कर सकता. लेकिन नंदिनी ने उस से कुछ नहीं कहा तो नहीं कहा. हार कर नवीन ने उसे छोड़ दिया और वहीं खड़ाखड़ा एकटक उसे तब तक देखता रहा, जब तक वह उस की आंखों से ओझल नहीं हुई.

हारे हुए जुआरी की तरह नवीन घर पहुंचा. दिल उस का नंदिनी के लिए सिसकियां भर रहा था, गंगा यमुना की धारा उस की आंखों से छलक रहा था. नंदिनी के वियोग में वह विरह की अग्नि में जल रहा था. आंखों के सामने बारबार नंदिनी का मुसकराता हुआ चेहरा थिरक उठता था.

बस, वह इसी उलझन में जकड़ा रहा कि आखिर उस से कौन सी गलती हुई थी, जो उस ने उसे इतनी बड़ी सजा दी. बहरहाल, क्या हुआ जो उस ने सच नहीं बताया, लेकिन वह भी चुप बैठने वालों में नहीं था. इस बात की सच्चाई पता लगा कर ही रहेगा. इस के बाद दोनों के बीच ब्रेकअप हो गया.

नवीन को छोड़ दोस्त की हो गई नंदिनी

आखिरकार, नवीन ने सच का पता लगा ही लिया था. गद्दार दोस्त हरिहर कृष्णा की सच्चाई जब खुल कर उस के सामने आई तो नवीन आगबबूला हो गया. दुख तो इस बात का था कि उस की प्रेमिका नंदिनी न तो उस की कोई बात सुनने के लिए तैयार थी और न ही उस से मिलना ही चाहती थी.

नवीन सही समय आने के इंतजार में बैठ गया कि एक न एक दिन वह समय आएगा, जब वह हरिहर कृष्णा की कलई उस के सामने खोल कर रख देगा.

शातिर हरिहर कृष्णा अपनी चाल की कामयाबी पर बेहद खुशी महसूस कर रहा था, उस ने अपनी दोगली चाल और दांवपेंच से 2 प्रेमियों को अलग कर दिया था. वह मन ही मन खुश था कि अब नंदिनी को अपना बनाने से कोई रोक नहीं सकता.

नंदिनी के दिल में हरिहर कृष्णा ने नवीन के खिलाफ इतना जहर भर दिया था कि वह उस के नाम से गुस्से की आग में जल उठती थी, ऐसा लगता था नवीन अगर उस के सामने आ जाए तो उस का खून पी जाएगी. हरिहर कृष्णा यही चाहता भी था कि नंदिनी के दिल और दिमाग से उस का पहला प्यार पूरी तरह खाली हो जाए ताकि उस के दिल के कैनवास पर अपने प्यार का मनचाहा रंग भर सके.

भले ही नंदिनी ने अपने दिल और दिमाग से नवीन को निकाल फेंका था, लेकिन जब वह अकेली होती थी तो उस की यादों के बादल और उस के साथ बिताए पल आंखों के सामने उमड़ पड़ते थे. वह उदास हो जाती थी, हरिहर इसी पल का इंतजार करता था ताकि उसे संभालने के बहाने उस के दिल के करीब पहुंच सके और अपने प्यार का मरहम लगा सके.

चतुर खिलाड़ी हरिहर कृष्णा धीरेधीरे नंदिनी के दिल के करीब पहुंचने में कामयाब हो गया. दिल के हरे जख्म को भरने के लिए उस ने सहानुभूति का जो मरहम लगाया था, नंदिनी उस की मुरीद हो गई थी. नंदिनी के दिल पर उस के प्यार का रंग चढऩे लगा था. वह उस के प्यार के रंग में रंगने लगी थी.

नंदिनी और हरिहर कृष्णा दोनों एकदूसरे से टूट कर प्यार करने लगे थे. उस ने नंदिनी के दिल पर अपने प्यार की ऐसी हुकूमत बैठा दी कि उस का दिल हरिहर कृष्णा के अलावा किसी और के बारे में धडक़ने की गुस्ताखी नहीं करता था.

धीरेधीरे 2 साल का समय बीत चुका था नंदिनी को हरिहर कृष्णा का हुए और पहले प्रेमी नवीन से दूरियां बनाए हुए. दोनों ही अपने प्यार की दुनिया में बहुत खुश थे. हरिहर कृष्णा ने जो चाहा था सो पा चुका था.

इधर नवीन ने नंदिनी से ब्रेकअप करने के बाद अपना सारा ध्यान पढ़ाई पर लगा दिया. इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी करने के बाद उस ने नेलगोंडा जिले के महात्मा गांधी इंजीनियरिंग कालेज में दाखिला ले लिया था, जबकि हरिहर कृष्णा जडीगुड़ा के इंजीनियरिंग कालेज से बी.टेक कर रहा था और नंदिनी हैदराबाद में ही रह कर बीएससी की पढ़ाई कर रही थी.

दोस्त के प्यार पर डाका – भाग 2

22 वर्षीय हरिहर कृष्णा मूलरूप से वेरांगल जिले का रहने वाला था. 3 भाईबहनों में वह सब से बड़ा था. उस के पिता एक बिजनैसमैन थे. बेटे की पढ़ाई पर वह खूब पैसे खर्च कर रहे थे. उन का सपना था कि बेटा पढ़लिख कर इंजीनियर बने तो उन का जीवन सार्थक हो जाए. भले ही उस की पढ़ाई पर ज्यादा खर्च आए, इस की कोई चिंता नहीं. उन का सोचना था कि जब हरिहर का जीवन संवर जाएगा तो बाकी दोनों बच्चों का भी भविष्य बन जाएगा.

नवीन और हरिहर कृष्णा एक ही कालेज और एक ही कक्षा में पढ़ते थे. इन दोनों के साथ ही हैदराबाद के हस्तिनापुरम की रहने वाली नंदिनी भी पढ़ती थी.

नंदिनी इकहरी बदन की दुबलीपतली और छरहरी लडक़ी थी. उस में कोई खास आकर्षण भी नहीं था, लेकिन न जाने क्यों नवीन उस की ओर चुंबक की तरह खिंचता चला जा रहा था. शायद नवीन को उस से प्यार हो गया था. तभी तो उस ने अपने दिल का दरवाजा नंदिनी के लिए खोल दिया था.

उस के दीदार के लिए हर घड़ी पलकें बिछाए रहता था. ऐसा नहीं था यह एकतरफा प्यार हो, नंदिनी भी नवीन को बेहद चाहती थी. अपने कोरे दिल पर अपने सपनों के राजकुमार के रूप में नवीन का नाम लिख दिया था. यह बात घटना से करीब 3 साल पहले 2020 की थी.

नंदिनी नवीन का पहला प्यार थी और नवीन भी उस का पहला प्यार. इन दोनों का प्यार ठीक उसी तरह था जैसे बाती बिन दीया नहीं, चांदनी बिन चांद नहीं और तपिश बिन सूरज नहीं. बेपनाह प्यार था दोनों के दिलों में एकदूसरे के लिए.

नंदिनी और नवीन ने एकदूजे को ले कर अपने भविष्य की कुछ सपने देखे थे. साथसाथ रहने की, साथसाथ जीवन के सुनहरे पल बिताने की. पते की बात तो ये थी कि नवीन अपने प्यार की पलपल की स्टोरी अपने अजीज दोस्त हरिहर कृष्णा को बताए बिना नहीं रहता था. इस से एकएक बात शेयर करता था.

हरिहर ने डाला दोस्त के प्यार पर डाका

हरिहर कृष्णा चटखारे ले कर मजे से दोनों की प्रेम कहानी सुनता था. दोनों की प्रेम कहानी सुनतेसुनते भी उस के दिल में दोस्त की प्रेमिका के लिए खास जगह बनने लगी थी. धीरेधीरे वह उस के प्रति आकर्षित होता चला गया था. जबकि हरिहर कृष्णा जानता था कि नंदिनी से उस का दोस्त प्यार करता था. किसी के प्यार को छीनना गलत है, लेकिन उस ने इस बात की परवाह किए बिना ही प्रेम और जंग में सब कुछ जायज है वाली नीति अपनाते हुए उसी ओर अपना कदम बढ़ा दिया था.

सीधासादा नवीन दोस्त हरिहर कृष्णा के मन में क्या चल रहा है, जान ही नहीं सका. वह समझ ही नहीं सका कि वह उस के प्यार पर डाका डालने के लिए कुंडली मार कर बैठा है. उसे अगर तनिक भी अंदेशा होता तो शायद अपने प्यार को दोस्त से कभी भी न तो शेयर करता और न ही उसे कुछ बताता. लेकिन हरिहर कृष्णा के मन में तो कुछ और ही चल रहा था.

नंदिनी को पाने के लिए हरिहर कृष्णा के मन में हसरतें जिंदा हो चुकी थीं. उसे किसी भी तरह हासिल करने की उस ने सौगंध ले ली थी. लेकिन उसे हासिल करे तो करे कैसे, इस जुगत में दिनरात परेशान रहा करता था. आखिरकार दोनों को अलग करने की उस ने तरकीब निकाल ही ली.

शातिर दिमाग वाले हरिहर कृष्णा ने दोनों को अलग करने के लिए उन में इस तरीके से फूट डाल दी थी कि बरसों का प्यार पल भर में रेत के मकान की तरह ढह गया था. एक दिन मौका देख कर हरिहर कृष्णा ने नंदिनी को भडक़ाया, “जानती हो नंदिनी, तुम जितनी भोली हो, नवीन उतना ही कमीना है.”

“तुम्हें शर्म नहीं आती अपने अजीज दोस्त के खिलाफ ऐसी बातें करते हुए.” प्रेमी की बुराई सुन कर नंदिनी गुस्सा हो गई थी.

“तभी तो कहता हूं नंदिनी तुम बहुत भोली हो. दोस्त के दोहरे चेहरे को तुम देख नहीं सकती.” हरिहर कृष्णा ने भडक़ाया.

“क्या मतलब है तुम्हारा, मैं अंधी हूं मुझे कुछ दिखता नहीं है?”

“नाराज क्यों होती हो यार, तुम्हें अपना समझ कर दोस्त की सच्चाई बता रहा हूं. तुम हो कि मेरी बात सुनने के बजाय मुझ पर ही नाराज हो रही हो. पता नहीं क्यों मुझ से तुम्हारे साथ हो रहा धोखा देखा नहीं जा रहा है.” इस बार हरिहर कृष्णा ने तीर निशाने पर लगाया था.

“कौन धोखा दे रहा है मुझे?” नंदिनी ने सवाल किया.

“तुम्हारा प्यार, नवीन. वही तुम्हें धोखा दे रहा है.”

“इसे मैं कतई मानने के लिए तैयार नहीं हूं कि नवीन मुझे कभी धोखा दे सकता है. वो मुझ से बहुत प्यार करता है, अंधा प्यार.”

“इसी बात का तो रोना है. उस ने तुम से अंधे प्यार वाली बात कर दी और तुम भी उसी तरह अंधी हो गई. पर इस में कोई सच्चाई नहीं है कि वो तुम से अंधा प्यार करता है.”

“तो फिर?”

“कई लड़कियों से उस के नाजायज संबंध हैं.”

“क्या?” नंदिनी उस की बात सुन कर बुरी तरह उछली.

“क्या कहते हो तुम? नवीन और कई लड़कियां? मैं और मेरा दिल इसे कभी मानने के लिए तैयार नहीं होगा कि मुझे छोड़ कर वह किसी और लडक़ी से प्यार करता है. नो…नेवर.”

“इसी बात का तो रोना है, तुम मेरी किसी बात को सीरियसली लेती नहीं हो. यह सब तुम्हें बता कर मुझे क्या बेनिफिट होने वाला, जरा सोचो.” इतना कह कर हरिहर कृष्णा ने नंदिनी के चेहरे पर अपनी शातिर नजरें गड़ा दी थीं और उस के हावभाव को पढऩे की कोशिश करने लगा था, जिस से उसे पता चल सके कि अब वह क्या सोच रही है.

कुछ पल के लिए वह गंभीर हुई, फिर कुछ सोच कर उस ने कहा, “पता नहीं क्यों मेरा दिल इसे मानने को तैयार नहीं हो रहा है कि नवीन के और लड़कियों से संबंध होंगे? लेकिन तुम कहते हो तो…”

“मेरा काम तुम्हें एलर्ट करना था, सो मैं ने कर दिया नंदिनी. बाकी मानना, न  मानना तुम्हारा काम. अच्छा चलता हूं. एक सच्चा दोस्त होने का फर्ज निभाया है मैं ने. बाकी सब ऊपर वाले के हाथ में…” कहते हुए वह आगे बढ़ गया.

परदेसी पति की बेवफा पत्नी

उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के थाना कैंपियरगंज के थानाप्रभारी चौथीराम यादव रात की गश्त से लौट कर लेटे ही थे कि उन के फोन की घंटी बजी. बेमन से उन्होंने फोन उठा कर कहा, ‘‘हैलो, कौन?’’

‘‘सर मैं टैक्सी ड्राइवर किशोर बोल रहा हूं.’’ दूसरी ओर से कहा गया.

‘‘जो भी कहना है, सुबह थाने में आ कर कहना. अभी मैं सोने जा रहा हूं.’’

‘‘सर, जरूरी बात है… मोहम्मदपुर नवापार सीवान के पास सड़क के किनारे एक औरत की लाश पड़ी है. उस के सीने से एक छोटा बच्चा चिपका है. अभी बच्चा जीवित है.’’ किशोर ने कहा.

लाश की बात सुन कर थानाप्रभारी की नींद गायब हो गई. उन्होंने कहा, ‘‘ठीक है, मैं पहुंच रहा हूं. मेरे आने तक तुम वहीं रहना. बच्चे का खयाल रखना.’’

‘‘ठीक है सर, आप आइए. आप के आने तक मैं यहीं रहूंगा.’’

कह कर किशोर ने फोन काट दिया.

सूचना गंभीर थी, इसलिए थानाप्रभारी चौथीराम यादव ने तुरंत इस घटना की सूचना अधिकारियों को दी और खुद जल्दीजल्दी तैयार हो कर सबइंसपेक्टर विनोद कुमार सिंह, कांस्टेबल रामउजागर राय, अवधेश यादव और जगरनाथ यादव के साथ घटनास्थल की ओर चल पड़े. अब तक उजाला फैल चुका था. घटनास्थल पर काफी लोग जमा हो चुके थे. घटनास्थल पर पहुंचते ही थानाप्रभारी चौथीराम यादव ने सब से पहले उस बच्चे को उठाया, जो मरी हुई मां के सीने से चिपका सो रहा था.

स्थिति यही बता रही थी कि वह मृतका का बेटा था. उठाते ही बच्चा जाग गया. वह बिलखबिलख कर रोने लगा. चौथीराम ने उसे एक सिपाही को पकड़ाया तो वह उसे चुप कराने की कोशिश करने लगा.

पहनावे से मृतका मध्यमवर्गीय परिवार की लग रही थी. उस की उम्र यही कोई 25 साल के आसपास थी. उस के मुंह और सीने में एकदम करीब से गोलियां मारी गई थीं. मुंह में गोली मारी जाने की वजह से चेहरा खून से सना था. घावों से निकल कर बहा खून सूख चुका था. मृतका की कदकाठी ठीकठाक थी. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारे कम से कम 2 तो रहे ही होंगे.

पुलिस ने घटनास्थल से 315 बोर के 2 खोखे बरामद किए थे. खोखे वही रहे होंगे, जो 2 गोलियां मृतका को मारी गई थीं. घटनास्थल पर मौजूद लोग लाश की शिनाख्त नहीं कर सके थे. इस का मतलब मृतका वहां की रहने वाली नहीं थी.

पुलिस लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने की काररवाई कर रही थी कि अचानक वहां एक युवक आया और लाश देख कर जोरजोर से रोने लगा. उस के रोने का मतलब था, वह मृतका का कोई अपना रहा होगा.

पुलिस ने उसे चुप करा कर पूछताछ की तो पता चला कि वह मृतका का भाई दीपचंद था. मृतका का नाम शीला था. कल सुबह वह ससुराल से अपने बेटे को ले कर मायके जाने के लिए निकली थी. शाम तक वह घर नहीं पहुंची तो उसे चिंता हुई. सुबह वह उसी की तलाश में निकला था. यहां भीड़ देख कर वह रुक गया. पूछने पर पता चला कि यहां एक महिला की लाश पड़ी है. वह लाश देखने आया तो पता चला वह लाश उस की बहन की है. उस के साथ उस का बेटा कृष्णा भी था.

पुलिस ने कृष्णा को उसे सौंप दिया. दीपचंद ने फोन द्वारा घटना की सूचना पिता वृजवंशी को दी तो घर में कोहराम मच गया. गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर वृजवंशी भी वहां पहुंच गया, जहां लाश पड़ी थी. बेटी की लाश और मासूम नाती कृष्णा को रोते देख वृजवंशी भी बिलखबिलख कर रोने लगा. उस से रहा नहीं गया और उस ने नाती को दीपचंद से ले कर सीने से चिपका लिया.

घटनास्थल की सारी काररवाई निपटा कर पुलिस दीपचंद के साथ थाने आ गई. थाने में उस की ओर से शीला की हत्या का मुकदमा अज्ञात के खिलाफ दर्ज कर लिया गया. यह 23 जनवरी, 2014 की बात है.

मुकदमा दर्ज होने के बाद थानाप्रभारी चौथीराम यादव ने जांच शुरू की. हत्यारों ने सिर्फ शीला की हत्या की थी, उस के बच्चे को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया था. इस का मतलब उस का जो कुछ था, वह शीला से ही था. उसे सिर्फ उसी से परेशानी थी. ऐसे में उस का कोई प्रेमी भी हो सकता था, जो उस से पीछा छुड़ाना चाहता रहा हो.

शीला की ससुराल गोरखपुर के थाना गुलरिहा के गांव बनरहा सरहरी में थी. थानाप्रभारी चौथीराम दीपचंद को ले कर शीला की ससुराल जा पहुंचे. बनरहा पहुंचने में उन्हें करीब 2 घंटे का समय लगा. शीला की ससुराल में उस की सास और ससुर थे. पूछताछ में उन्होंने बताया कि 22 जनवरी, 2014 को शीला अपने मुंहबोले भाई पप्पू और उस के दोस्त के साथ मोटरसाइकिल से मायके के लिए निकली थी. कृष्णा को भी वह अपने साथ ले गई थी.

इस के अलावा वे और कुछ नहीं बता सके थे. पूछताछ में सासससुर ने यह भी बताया था कि पप्पू अकसर उन के यहां आता रहता था. चौथीराम यादव ने दीपचंद से पप्पू के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि पप्पू उसी के गांव का रहने वाला था. वह आवारा किस्म का लड़का था.

थानाप्रभारी बनरहा से सीधे दीपचंद के गांव अहिरौली जा पहुंचे. पप्पू के बारे में पता किया गया तो घर वालों ने बताया कि वह 22 जनवरी, 2014 को नौतनवा जाने की बात कह कर घर से निकला था. तब से लौट कर नहीं आया है.

दीपचंद की मदद से पप्पू और शीला का मोबाइल नंबर मिल गया था. पुलिस ने दोनों नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि 22 जनवरी की सुबह शीला ने पप्पू को फोन किया था. उस के बाद पप्पू का मोबाइल फोन बंद हो गया था. काल डिटेल्स से यह भी पता चला कि दोनों में रोजाना घंटों बातें होती थीं. इस से साफ हो गया कि दोनों में संबंध थे. पप्पू ने ही किसी बात से नाराज हो कर दोस्त की मदद से शीला की हत्या की थी.

जांच कहां तक पहुंची है, थानाप्रभारी चौथीराम इस की जानकारी क्षेत्राधिकारी अजय कुमार पांडेय और पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) डा. यस चेन्नपा को भी दे रहे थे. पप्पू के बारे में जब घर वालों से कोई जानकारी नहीं मिली तो थानाप्रभारी ने उस के बारे में पता करने के लिए उस के मोबाइल को सर्विलांस पर लगवा दिया.

आखिर 2 फरवरी, 2014 को घटना के 10 दिनों बाद पुलिस ने मुखबिर के जरिए पप्पू और उस के दोस्त को मोटरसाइकिल सहित लोरपुरवा के पास से उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब दोनों नेपाल की ओर जा रहे थे.

पुलिस पप्पू और उस के दोस्त अवधेश को थाने ले आई. तलाशी में पुलिस को अवधेश के पास से 315 बोर का देशी तमंचा और कारतूस भी मिले. पुलिस ने दोनों चीजों को अपने कब्जे में ले लिया. जबकि पप्पू उर्फ दुर्गेश के पास से सिर्फ 2 सिम वाला मोबाइल फोन मिला था.

पुलिस दोनों से अलगअलग पूछताछ करने लगी. दोनों ने पहले तो शीला की हत्या से इनकार किया, लेकिन पुलिस के पास उन के खिलाफ इतने सुबूत थे कि ज्यादा देर तक वे अपनी बात पर टिके नहीं रह सके और सच्चाई कुबूल कर के शीला की हत्या की पूरी कहानी उगल दी. इस पूछताछ में पप्पू और अवधेश ने शीला की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी.

जिला महाराजगंज के थाना पनियरा के गांव अहिरौली में रहता था वृजवंशी. उस के परिवार में पत्नी फूलवासी के अलावा कुल 7 बच्चे थे. शीला उन में पांचवें नंबर पर थी. वृजवंशी के पास इतनी खेती थी कि उसी से उन के इतने बड़े परिवार का गुजरबसर हो रहा था. लेकिन बेटे बड़े हुए, उन्होंने काफी जिम्मेदारियां अपने कंधों पर ले ली थीं. बेटों की शादियां हो गईं तो बेटों की मदद से वृजवंशी बेटियों की शादियां करने लगा.

शीला जवान हुई तो वृजवंशी को उस की शादी की चिंता हुई. बाप और भाई उस के लिए लड़का ढूंढ पाते उस के पहले ही वह गांव में ही बचपन के साथी दुर्गेश उर्फ पप्पू से आंखें लड़ा बैठी. दोनों साथसाथ खेलेकूदे ही नहीं थे, बल्कि एक ही स्कूल में पढ़े भी थे.

दुर्गेश उर्फ पप्पू के पिता दूधनाथ भी खेती किसानी करते थे. उस के परिवार में पत्नी के अलावा एकलौता बेटा पप्पू और 3 बेटियां थीं. एकलौता होने की वजह से पप्पू को घर से कुछ ज्यादा ही लाडप्यार मिला, जिस की वजह से वह बिगड़ गया. जैसेतैसे उस ने इंटरमीडिएट कर के पढ़ाई छोड़ दी. इस के बाद गांव में घूमघूम कर आवारागर्दी करने लगा.

शीला और पप्पू के संबंधों की जानकारी गांव वालों को हुई तो इस से वृजवंशी की बदनामी होने लगी. तब उसे चिंता हुई कि बात ज्यादा फैल गई  तो बेटी की शादी होना मुश्किल हो जाएगा. अब इस से बचने का एक ही उपाय था, शीला की शादी. वह उस के लिए लड़का ढूंढने लगा. क्योंकि अब देर करना ठीक नहीं था.

उस ने कोशिश की तो गोरखपुर के थाना गुलरिहा के गांव बनरहा का रहने वाला दिनेश उसे पसंद आ गया. उस ने जल्दी से शीला की शादी उस के साथ कर दी. शीला विदा हो कर ससुराल आ गई. दिनेश मुंबई में रहता था. कुछ दिन पत्नी के साथ रह कर वह मुंबई चला गया. शीला को उस ने बूढ़े मांबाप के पास उन की सेवा के लिए छोड़ दिया, ताकि किसी को कुछ कहने का मौका न मिले. क्योंकि उन्हें तो पूरी जिंदगी साथ रहना है.

शीला भले ही 2 बच्चों की मां बन गई थी, लेकिन पति के परदेस में रहने की वजह से वह अपने पहले प्यार दुर्गेश उर्फ पप्पू को कभी नहीं भूल पाई. शादी के बाद भी वह प्रेमी से मिलती रही. शीला का मुंहबोला भाई बन कर वह उस की ससुराल भी आता रहा. उस के सासससुर पप्पू को उस का भाई समझते थे, इसलिए उस के आनेजाने पर कभी रोक नहीं लगाई. जबकि भाईबहन के रिश्ते की आड़ में दोनों कुछ और ही गुल खिला रहे थे.

पप्पू ने बातचीत के लिए शीला को मोबाइल फोन खरीद कर दे दिया था. सासससुर रात में सो जाते तो शीला मिस्डकाल कर देती. इस के बाद पप्पू फोन करता तो दोनों के बीच घंटों बातें होतीं. शीला को कई बार पप्पू से गर्भ भी ठहरा, लेकिन पप्पू ने हर बार उस का गर्भपात करा दिया. बारबार गर्भपात कराने से तंग आ कर शीला उस के साथ रहने की जिद करने लगी.

जबकि पप्पू को शीला से नहीं, सिर्फ उस की देह से प्रेम था. शीला जब भी उस से साथ रखने के लिए कहती, वह कोई न कोई बहाना बना देता. शीला जब उस पर जोर डालने लगी तो वह दूर भागने लगा. उस का कहना था कि घर वाले उसे रहने नहीं देंगे. अपना अलग घर है नहीं. तब शीला ने पप्पू को 1 लाख रुपए जमीन खरीद कर घर बनाने के लिए दिए. इस की जानकारी न तो शीला के पति को थी, न सासससुर को.

पप्पू ने पैसे तो लिए, लेकिन उस ने जमीन नहीं खरीदी. जब भी शीला जमीन और घर के बारे में पूछती, वह कोई न कोई बहाना बना देता. जब शीला को लगने लगा कि पप्पू उसे बेवकूफ बना रहा है तो वह बेचैन हो उठी.

वह समझ गई कि उस से बहुत बड़ी भूल हो गई है. जिस के लिए उस ने घरपरिवार के साथ विश्वासघात किया, वह उस के साथ विश्वासघात कर रहा है. उस ने ठान लिया कि वह ऐसे आदमी को किसी कीमत पर नहीं बख्शेगी. वह पप्पू से अपने रुपए मांगने लगी.

शीला ने जब पैसे के लिए पप्पू पर दबाव बनाया तो वह विचलित हो उठा. उस की समझ में आ गया कि शीला उस की नीयत जान गई है. अब उस की दाल गलने वाली नहीं है. शीला के पैसे उस ने खर्च कर दिए थे.  लाख रुपए की व्यवस्था वह कर नहीं सकता था. इसलिए शीला से पीछा छुड़ाने के लिए उस ने एक खतरनाक योजना बना डाली. शीला की हत्या करना उस के अकेले के वश का नहीं था, इसलिए उस ने एक पेशेवर बदमाश अवधेश से बात की.

अवधेश महाराजगंज के थाना पनियरा के गांव खजुही का रहने वाला था. पप्पू से उस की दोस्ती भी थी. पनियरा थाने में उस के खिलाफ हत्या, हत्या के प्रयास, दुष्कर्म, लूट और राहजनी के कई मुकदमे दर्ज थे.

योजना के मुताबिक, अवधेश ने 315 बोर के देशी कट्टे का इंतजाम किया. इस के बाद दोनों को मौके की तलाश थी. 22 जनवरी, 2014 की सुबह 7 बजे शीला ने पप्पू को फोन कर के पूछा कि इस समय वह कहां है, तो उस ने कहा कि इस समय वह शहर में है. कुछ देर में उस के पास पहुंच जाएगा.

इस के बाद शीला ने फोन काट दिया. जबकि सही बात यह थी कि पप्पू उस समय नौतनवा में मौजूद था. उस ने शीला से झूठ बोला था. शीला से बात करने के बाद उस ने अपना मोबाइल बंद कर दिया.

दुर्गेश उर्फ पप्पू को वह मौका मिल गया, जिस की तलाश में वह था. उस ने अवधेश को तैयार किया और मोटरसाइकिल से शीला की ससुराल बनरहा 11 बजे के आसपास पहुंच गया. शीला उसी का इंतजार कर रही थी. चायनाश्ता करा कर शीला मायके जाने की बात कह कर उन के साथ निकल पड़ी. उस ने सास से कहा था कि 2-1 दिन में वह लौट आएगी.

दिन में कुछ हो नहीं सकता था. इसलिए पप्पू को किसी तरह रात करनी थी. इस के लिए वह कुसुम्ही के जंगल स्थित बुढि़या माई के मंदिर दर्शन करने गया. वहां से निकल कर वह सब के साथ शहर में घूमता रहा. अचानक रात साढ़े 8 बजे पप्पू को कुछ याद आया तो उस ने मोबाइल औन कर के फोन किया. उस समय वह चिलुयाताल के मोहरीपुर में था. इस के बाद वे कैंपियरगंज पहुंचे.

रात साढ़े 10 बजे के करीब पप्पू सब के साथ मोहम्मदपुर नवापार पहुंचा तो ठंड का मौसम होने की वजह से चारों ओर सुनसान हो चुका था. पप्पू ने अचानक मोटरसाइकिल सड़क के किनारे रोक दी. शीला ने रुकने की वजह पूछी तो पप्पू ने कहा कि पेशाब करना है. पेशाब करने के बहाने वह थोड़ा आगे बढ़ गया तो अवधेश शीला के पास पहुंचा और कमर में खोंसा तमंचा निकाला और उस के सीने से सटा कर ट्रिगर दबा दिया.

गोली लगते ही शीला के मुंह से एक भयानक चीख निकली. तभी उस ने कट्टे की नाल उस के मुंह में घुसेड़ कर दूसरी गोली चला दी. इसी के साथ बच्चे को गोद में लिए हुए शीला जमीन पर गिरी और मौत के आगोश में समा गई. उस का मासूम बेटा सीने से चिपका सोता ही रहा.

अपना काम कर के पप्पू और अवधेश चले गए. टैक्सी ड्राइवर किशोर सुबह उधर से गुजरा तो उस ने सड़क किनारे पड़ी शीला की लाश देख कर थानाप्रभारी चौथीराम यादव को सूचना दी.

पुलिस ने हत्या में इस्तेमाल की गई मोटरसाइकिल, 315 बोर का तमंचा और मोबाइल फोन बरामद कर लिया था. थाने की सारी काररवाई निबटा कर थानाप्रभारी चौथीराम ने पप्पू और अवधेश को अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

पत्नी का प्रेमी : क्यों मारा गया किशोर? – भाग 3

पूछताछ में बालकराम ने पुलिस को बताया था कि घर से निकलते समय किशोर ने अपने किसी घनश्याम नाम के दोस्त से मिलने की बात कही थी. पुलिस ने तुरंत घनश्याम के बारे में पता किया. पता चला वह घर में नहीं है. पुलिस ने घरवालों से उस का मोबाइल नंबर ले लिया. जब उस के नंबर की काल डिटेल्स और लोकेशन निकलवाई गई तो पता चला कि उस के फोन की भी लोकेशन उस स्थान की थी, जहां किशोर की हत्या हुई थी.

इस के अलावा जहांजहां की नाई के फोन की लोकेशन थी, वहांवहां घनश्याम उर्फ साहेब के फोन की भी लोकेशन थी. अब शक की कोई गुंजाइश नहीं रह गई थी. साफ हो गया था कि घनश्याम ही किशोर का हत्यारा है. किशोर की कुछ ही दिनों पहले उस से दोस्ती हुई थी.

अभी जल्दी ही किशोर की शादी बाराबंकी में हुई थी. घनश्याम बाराबंकी का था, इस से पुलिस को लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि किशोर की पत्नी घनश्याम को जानती हो. उस का घनश्याम से प्रेमप्रसंग रहा हो, जिस की वजह से किशोर मारा गया हो.

इंसपेक्टर विजयमल यादव ने किशोर की नवब्याहता रिशा से पूछताछ की तो उस ने घनश्याम से अपने प्रेमप्रसंग की बात स्वीकार कर ली. उस ने यह भी बताया कि घनश्याम ने उस से कहा भी था कि वह किशोर को किसी भी सूरत में नहीं छोड़ेगा.

इस के बाद 21 मार्च को इंसपेक्टर विजयमल यादव ने टीम के साथ बाराबंकी जा कर घनश्याम उर्फ साहेब को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. उस की निशानदेही पर उस के घर से पुलिस ने किशोर का मोबाइल फोन भी बरामद कर लिया था.

कोतवाली ला कर घनश्याम से पूछताछ की गई तो उस ने किशोर की हत्या का अपराध स्वीकार कर के उस की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी.

रिशा की शादी हो जाने से घनश्याम उर्फ साहेब काफी बौखलाया हुआ था. क्योंकि वह रिशा से दूरी किसी भी हाल में बरदाश्त नहीं कर पा रहा था. जब साहेब को पता चला कि रिशा मायके आई है तो वह उस से मिलने को बेताब हो उठा. उसे रिशा से अपने सवालों के जवाब लेने के साथ अपना फैसला भी सुनाना था.

रिशा को पता चला तो वह साहेब से मिली. तब साहेब ने उस की आंखों में आंखें डाल कर बेचैनी से पूछा, ‘‘रिशा, जब तुम प्यार मुझ से करती थी तो शादी दूसरे से क्यों कर ली?’’

‘‘मैं एक लड़की हूं, इसलिए घर वालों का विरोध नहीं कर सकी. अगर शादी से मना करती तो पापा मुझे जिंदा नहीं छोड़ते. तब मैं तुम से बहुत दूर चली जाती. हमारे मिलन का सपना अधूरा ही रह जाता.’’

‘‘वैसे भी हमारा मिलन कहां हो रहा है?’’ निराश साहेब ने कहा.

‘‘होगा, जरूर होगा. शादी होने के बावजूद मैं तुम्हारा साथ नहीं छोड़ूंगी. हम दोनों के संबंध पहले की ही तरह चलते रहेंगे.’’ रिशा ने समझाया.

‘‘नहीं रिशा, तुम मेरी हो और सिर्फ मेरी ही रहोगी. मैं तुम्हें किसी और की बांहों में नहीं देख सकता. इसलिए मैं उसे जिंदा नहीं छोड़ूंगा.’’

‘‘नहीं साहेब, उस के साथ कुछ मत करना. उस का इस में क्या दोष है?’’ रिशा ने कहा.

लेकिन साहेब ने उस की बात पर ध्यान नहीं दिया. क्योंकि उस ने तो ठान लिया था कि वह अपने और रिशा के बीच किसी को नहीं आने देगा. यही वजह थी कि उस ने किशोर की हत्या की योजना बना डाली. उसी योजना के तहत उस ने किशोर से दोस्ती गांठ ली. दोस्ती होने के बाद दोनों की शराब की महफिलें जमने लगीं.किशोर को घनश्याम के बारे में कुछ पता तो था नहीं, इसलिए वह उस पर एक दोस्त की तरह ही विश्वास करने लगा था.

14 मार्च को साहेब नाई की दुकान पर बाल कटवाने गया तो काउंटर पर रखे नाई के मोबाइल को देख कर उस की नीयत खराब हो गई. उसे इस तरह के एक मोबाइल की जरूरत भी थी, जिस से फोन कर के वह किशोर को कहीं एकांत में बुला सकें.

क्योंकि वह जानता था कि अगर उस ने अपने मोबाइल से फोन किया तो पकड़ा जाएगा. उस ने नाई को कुछ खरीदने के बहाने बाहर भेज दिया और उस के जाते ही उस का मोबाइल ले कर निकल आया. यह मोबाइल किशोर की हत्या की योजना का एक अहम हिस्सा था.

18 मार्च की दोपहर एक बजे साहेब ने चोरी के मोबाइल से किशोर को फोन कर के पौलिटेक्निक चौराहे पर बुलाया. उस से मिलने के लिए घर से निकलते समय किशोर ने मां को बता दिया था कि वह अपने दोस्त घनश्याम से मिलने जा रहा है. वह पौलिटेक्निक चौराहे पर पहुंचा तो घनश्याम वहां उस का इंतजार करता मिला. घनश्याम उसे साथ ले कर सिटी बस से चिनहट आ गया.

घनश्याम ने शराब की एक दुकान से किशोर के लिए शराब और अपने लिए बीयर खरीदी. घनश्याम उसे छोटा भरवारा मल्हौर रेलवे क्रासिंग के पास ले गया और वहां एक खाली पड़े प्लौट में बैठ गया. घनश्याम ने किशोर को शराब पिलाई, जबकि खुद बीयर पी. शराब पिलाने के बाद उस ने किशोर को साथ लाई भांग भी खिला दी. इस के बाद नशे की अधिकता की वजह से किशोर की आंखें मुंदने लगीं.

घनश्याम ने कहा, ‘‘लगता है, नशा ज्यादा हो गया है. ऐसा करो, लेट कर कुछ देर सो लो. नशा कम हो जाए तो घर चले जाना.’’

किशोर वहीं घास पर लेट गया और कुछ ही देर में बेसुध हो गया. इस के बाद घनश्याम ने वहीं पडे़ भारी पत्थर को उठाया और किशोर के चेहरे पर पटक दिया. इस के बाद उस ने कई बार ऐसा किया. ऐसा करने से किशोर की मौत हो गई. इस तरह किशोर की हत्या कर वह वहां से चला गया.

बाराबंकी जाते हुए घनश्याम ने रास्ते से किशोर के पिता बालकराम को फोन कर के किशोर की लाश के बारे में बता कर उसे वहां से लाने के लिए कह दिया था. इस के बाद उस ने चोरी किए गए मोबाइल से सिम निकाल कर तोड़ दिया और उस के साथ मोबाइल को फेंक दिया.

घनश्याम ने किशोर की हत्या में होशियारी तो बहुत दिखाई, लेकिन उस ने जो होशियारी दिखाई थी, उसी की वजह से पकड़ा गया. उस ने चोरी के मोबाइल के साथ अपना निजी मोबाइल भी साथ रखा था, जिस का उस ने स्विच औफ नहीं किया था. यही गलती उसे भारी पड़ गई.

पूछताछ के बाद पुलिस ने घनश्याम उर्फ साहेब को सीजेएम आनंद कुमार की अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मिसकाल बनी काल – भाग 3

सुवेश सचिन का अच्छा दोस्त था. उस की परेशानी समझ कर उस ने कहा, ‘‘मेरा एक दोस्त है अजय. उस का घर रुचिखंड में है. उस के मकान का ऊपर वाला हिस्सा खाली है. मैं उस से बात करता हूं. अगर अजय तैयार हो गया तो तुम्हें कमरा मिल जाएगा. वह 2 हजार रुपए कमरे का किराया लेगा. साथ ही एक महीने का एडवांस देना होगा.’’

सचिन इस के लिए तैयार हो गया. सुवेश ने अजय से बात की और अजय ने अपने पिता से. अजय का कोई दोस्त अपनी पत्नी के साथ रहेगा यह जान कर अजय के पिता गुलाबचंद राजी हो गए. सचिन ने कमरा देख कर एडवांस किराया दे दिया. इस के बाद उस ने 8 दिसंबर को सोफिया को फोन कर के कहा, ‘‘सोफिया, मैं तुम्हें लखनऊ बुलाना चाहता हूं. मैं 10 तारीख को तुम्हें अजगैन में मिलूंगा. हम 1-2 महीने अकेले रहेंगे. इस बीच मैं अपने घर वालों को राजी कर लूंगा और फिर तुम्हें अपने घर ले जाऊंगा.’’

सोफिया यही चाहती थी. वह पहले से ही सचिन के साथ जिंदगी जीने के सपने देख रही थी. योजनानुसार सोफिया 10 दिसंबर की सुबह अपने घर से निकली तो उस की मां ने पूछा, ‘‘आज स्कूल नहीं जाएगी क्या?’’

‘‘नहीं मां, आज दादी की दवा लेनी है, वही लेने जा रही हूं. थोड़ी देर में लौट आऊंगी.’’ कह कर सोफिया घर से निकल गई. उस ने घर से 10 हजार रुपए और चांदी की एक जोड़ी पायल भी साथ ले ली थी. अपने गांव से वह सीधी अजगैन पहुंची. सचिन उसे तयशुदा जगह पर मिल गया. उस से मिलने की खुशी में 17 साल की सोफिया अपने मांबाप की इज्जतआबरू, मानसम्मान, प्यार और विश्वास सब भूल गई. वहां से दोनों लखनऊ आ गए. सचिन सोफिया को अपने कमरे पर ले गया. खाना वगैरह दोनों ने बाहर ही खा लिया था.

कमरे पर पहुंचते ही सोफिया सचिन से शादी की बात करने लगी. सचिन ने उसे प्यार से समझाया, ‘‘मुझ पर भरोसा रखो. हम जल्द ही शादी भी कर लेंगे. मैं तुम्हें सारी बातें पहले ही बता चुका हूं.’’

दरअसल सचिन किसी भी तरह जल्द से जल्द सोफिया को हासिल कर लेना चाहता था. गहराती रात के साथ सचिन की जवानी हिलोरें मारने लगी तो वह सोफिया के न चाहते हुए भी अकेलेपन का लाभ उठा कर उसे हासिल करने की कोशिश करने लगा. सोफिया ने काफी हद तक खुद को बचाने की कोशिश की. लेकिन धीरेधीरे उस का विरोध कम हो गया और सचिन मनमानी करने में सफल रहा. सोफिया खुद को यह दिलासा दे रही थी कि आज न सही कल शादी तो होनी ही है. जो शादी के बाद होना था वह पहले ही सही.

अगले दिन सोफिया सचिन से शादी करने की जिद करने लगी. जबकि सचिन चाहता था कि वह किसी तरह अपने घर वापस चली जाए. उस ने बहानेबाजी कर के उसे लौट जाने को कहा तो सोफिया बोली, ‘‘घर से भाग कर आने वाली लड़की के लिए घर के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो जाते हैं. मैं अब वापस नहीं लौट सकती.’’

सचिन और सोफिया का वह पूरा दिन प्यार और मनुहार के बीच गुजरा. रात गहरा गई तो सोफिया खाना खा कर सो गई. जबकि सचिन जाग रहा था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि सोफिया से कैसे पीछा छुड़ाए.

उस के मन में खयाल आया कि क्यों न वह गला दबा कर सोफिया को मार डाले. लेकिन उसे लगा कि इस से उस की अंगुलियों के निशान सोफिया के गले पर आ जाएंगे और वह पकड़ा जाएगा. आखिरकार काफी सोचविचार कर उस ने अपने हाथों पर पौलीथिन लपेट ली और सोती हुई सोफिया का गला दबाने लगा.

इस से सोफिया जाग गई और अपना बचाव करने का प्रयास करने लगी. सचिन जवान था और सोफिया से ताकतवर भी. वैसे भी वह योजना बना कर उस की हत्या कर रहा था. सोफिया एक तो शरीर से कमजोर थी, दूसरे उसे सचिन से ऐसी उम्मीद नहीं थी. इस के बावजूद वह पूरा जोर लगा कर बचने की कोशिश करने लगी. इस पर सचिन ने उस के सिर पर जोरो से वार किया. इस से वह बेहोश हो गई. सचिन को मौका मिला तो उस ने सोफिया का गला दबा कर उसे मार डाला.

सोफिया के मरने के बाद सचिन के हाथपांव फूल गए. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह करे तो क्या करे. रात भर वह सोफिया की लाश के पास बैठा रोता रहा. काफी सोचने के बाद जब उसे लगा कि अब वह बच नहीं पाएगा तो वह सुबह 4 बजे आशियाना थाने जा पहुंचा. उस ने अपने बचाव के लिए झूठी कहानी भी गढ़ी, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट और सीओ बबीता सिंह के सामने उस का झूठ टिक नहीं सका.

पुलिस ने मामले की जानकारी सोफिया के घर वालों को दी तो वे लखनऊ आ गए. उन लोगों ने बताया कि सोफिया किसी लड़के के साथ भाग आई थी. उन्हें सोफिया का शव सौंप दिया गया. लंबी पूछताछ के बाद सचिन के बयान की पुष्टि के लिए पुलिस ने मकान मालिक गुलाबचंद और उन के बेटे अजय व उस के दोस्त सुवेश से भी पूछताछ की.

आशियाना पुलिस ने सचिन के खिलाफ भादंवि की धारा 363, 376, 302 और पोक्सो एक्ट (प्रोटेक्शन औफ चिल्ड्रन फ्राम सैक्सुअल आफेंसेज एक्ट) की धारा 3/4 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. पूछताछ के बाद उसे जेल भेज दिया गया.

इस में कोई दो राय नहीं कि सचिन के पास बचने के तमाम रास्ते थे. वह सोफिया को कहीं बाजार में अकेला छोड़ कर भाग सकता था. उसे उस के घर पहुंचा सकता था. सोफिया नादान और नासमझ थी. वह 2 माह पुरानी मोबाइल की दोस्ती पर इतना भरोसा कर बैठी कि परिवार छोड़ कर लखनऊ आ गई. उस ने जिस पर भरोसा किया, वही उस का कातिल बन गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में सोफिया नाम परिवर्तित है.

दोस्त के प्यार पर डाका – भाग 1

हरिहर कृष्णा की नफरत की इंतहा यहीं खत्म नहीं हुई थी, उस ने उसी चाकू से नवीन का पेट फाड़ कर दिल बाहर निकाल दिया और नफरत व गुस्से से कहा, “ये दिल मेरी नंदिनी के लिए धडक़ता था न?” चाकू से दिल के कई टुकड़े कर डाले. 

फिर उस ने कहा, “इन्हीं अंगुलियों से तू मेरी नंदिनी को मैसेज भेजता था न?” फिर उस ने दोनों हाथों की दसों अंगुलियों को काट कर अलग कर दिया. 

फिर उस ने कहा, “तू मेरी नंदिनी के साथ शादी कर बच्चे पैदा करना चाहता था न?” उस के बाद उस ने उस के प्राइवेट पार्ट को भी काट कर अलग कर दिया और सबूत के तौर पर फोटो मोबाइल में उतार कर प्रेमिका के वाट्सऐप पर भेज दिया.

उस समय सुबह के 7 बज रहे थे, जब नवीन हौस्टल में अपने दोस्त प्रदीप के साथ बैठा गप्पें लड़ा रहा था. तभी उस के मोबाइल की घंटी घनघना उठी. मोबाइल फोन उठाते हुए स्क्रीन पर डिसप्ले हो रहे नंबर को ध्यान से देखा. वह नंबर उस के पुराने दोस्त हरिहर कृष्णा का था. झट से काल रिसीव करते हुए नवीन ने कहा, “हैलो कृष्णा, कैसे हाल हैं?”

“बेटर हूं, मस्त हूं मेरे दोस्त,” गर्मजोशी के साथ हरिहर कृष्ण ने उत्तर दिया, “और बता तू कैसा है? अच्छा यह बता, आज शाम क्या कर रहा है?”

“एकदम फर्स्ट क्लास. रही बात शाम की तो शाम में फ्री हूं.” नवीन बोला.

“तो आ जाओ, चल मस्ती वस्ती करते हैं. मेरी तरफ से पार्टी. पार्टी में मैं रहूंगा, तू रहेगा. बड़े मजे होंगे. आ रहा है न मेरे यार.”

“हूंऽऽ अभी फिलहाल पार्टी सार्टी में जाने का मेरा मूड नहीं है, लेकिन जहां बात यार की हो तो मैं… तैयार हूं. बता, कहां मिलना है?”

“ऐसा कर तू पेड्डा अंबरपेट आ जा. तुझे मैं वहीं से रिसीव कर लूंगा और फिर मैं तुझे बाइक से ले कर पिकनिक प्लेस चल दूंगा, जहां पार्टी करनी है.”

“ठीक है भाई, आ रहा हूं मैं. तू बाइक ले कर वहां पहुंच. ..और हां, वापस लौटते समय मेरे को हौस्टल छोडऩा होगा.”

“बस इतनी सी बात?” हरिहर कृष्णा ने आगे कहा, “तेरे लिए तो मेरी जान हाजिर है. गर जान मांगी होती तो वो भी देने के लिए तैयार था. रही बात हौस्टल पहुंचाने की तो निश्चिन्त रह, वापस लौटते हुए तुझे हौस्टल छोड़ते हुए ही घर जाऊंगा.”

“तो फिर ठीक है, कपड़े चेंज कर मैं निकल रहा हूं, तू भी निकल.”

“ओके भाई, मैं भी बाइक ले कर निकल रहा हूं.”

“ओके,” नवीन ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया था. फिर उस ने अपने रूममेट प्रदीप को बता दिया कि दोस्त कृष्णा का फोन आया था. उस ने मुझे पार्टी पर बुलाया है, मैं वहीं जा रहा हूं, मेरा खाना उसी के साथ है. कमरे पर लौटने में देर हो सकती है. ऐसा करना, तुम खाना बना कर खा लेना, मेरा बिलकुल भी इंतजार मत करना. देर रात तक कमरे पर लौट आऊंगा.उस के बाद नवीन हौस्टल से दोस्त हरिहर कृष्ण से मिलने नेलगोंडा से हैदराबाद रवाना हो गया.

रात के करीब 11 बज चुके थे. नवीन अब तक न तो हौस्टल लौटा था और न ही उस का फोन ही काम कर रहा था. काल करने पर वह स्विच औफ आ रहा था. यह देख कर प्रदीप घबरा गया था.

दरअसल, नवीन बीटेक का छात्र था और उस ने नेलगोंडा जिले के महात्मा गांधी इंजीनियरिंग कालेज में दाखिला लिया था और उसी कालेज के छात्रावास में क्लासमेट प्रदीप के साथ रहता था.  नवीन मूलरूप से नगरकुरनूल जिले के सीरिसन गैंड का रहने वाला था. वह एक बिजनेसमैन का बेटा था.

नेलगोंडा थाने में करा दी रिपोर्ट

बहरहाल, नवीन जब घर नहीं लौटा और उस का सेलफोन भी बंद मिला तो वह बुरी तरह परेशान हो गया था. उस की समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि वह क्या करे और कहां जा कर उसे ढूंढे? रात भी पूरे शबाब पर थी. उसे जब कुछ नहीं सूझा तो उस ने उसी रात नवीन के पापा शंकराय को फोन किया और उन से पूरी बात बता दी.

प्रदीप के मुंह से बेटे के बारे में सुन कर शंकराय बुरी तरह चौंक गए और तब उन्हें पता चला कि वह हरिहर कृष्णा से मिलने हैदराबाद गया था.

नवीन और कृष्णा बचपन के दोस्त थे, दोनों के बीच दांत काटी रोटी जैसे यारी भी थी. एक ही कालेज से इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी करने के बाद दोनों अलगअलग शहर में जा बसे थे और अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई में जुट गए थे. लेकिन इन दिनों किसी बात को ले कर दोनों के बीच में मनमुटाव चल रहा था.

इसी बात को ले कर नवीन के पापा शंकराय बुरी तरह डर गए थे. उन्होंने भी अपने स्तर से बेटे के बारे में जानकारी जुटाने और बेटे से मिलने की कोशिश की थी, लेकिन वह भी अपने मकसद में नाकामयाब रहे.

अगले दिन यानी 18 फरवरी, 2023 को शंकराय नेलगोंडा जिले के नारकेत पल्ली थाने पहुंचे और उन्होंने बेटे की गुमशुदगी दर्ज करवा दी. एसएचओ आर. श्रीनिवास रेड्डी ने नवीन की गुमशुदगी दर्ज कर उन्हें आवश्यक काररवाई करने का आश्वासन दे कर घर भेज दिया था. घर वापस लौटने से पहले वह बेटे के गुम होने में उस के बचपन के दोस्त हरिहर कृष्णा की ओर इशारा कर गए थे.

गुमशुदगी दर्ज करने के बाद एसएचओ रेड्डी ने गुमशुदा नवीन के दोस्त हरिहर कृष्णा को टारगेट पर लेते हुए आगे की जांच बढ़ाई. जांच के दौरान पुलिस को पता चला कि नवीन की गुमशुदगी के बाद से हरिहर कृष्णा भी लापता है. इस के बाद पुलिस का शक उस पर गहरा गया और पुलिस उस की तलाश में जुट गई. उस के संभावित ठिकानों पर ताबड़तोड़ दबिश देने लगी थी, लेकिन वह पुलिस की पकड़ से बहुत दूर था.

इधर पुलिस के साथसाथ नवीन के घर वाले भी उस की तलाश में जुट गए. उधर पुलिस नवीन और उस के दोस्त हरिहर कृष्णा के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर अध्ययन में जुटी हुई थी. काल डिटेल्स के अध्ययन से पता चल गया था कि आखिरी बार नवीन से हरिहर कृष्णा की 17 फरवरी, 2023 को सुबह 7 बजे बात हुई थी. उस के बाद कोई बातचीत नहीं हुई थी.

पुलिस ने जब हरिहर कृष्णा के मोबाइल नंबर को खंगालना शुरू की तो एक बेहद हैरानपरेशान कर देने वाली जानकारी मिली, जिसे जान कर पुलिस चौंक गई. जानकारी यह थी कि 18 फरवरी को कृष्णा के एकाउंट में किसी ने 1500 रुपए ट्रांसफर किए थे.

पुलिस इस की तह में अंदर तक घुस गई थी. काफी मशक्कत के बाद आखिरकार पुलिस ने पता लगा ही लिया कि वह पैसे हैदराबाद से उस के खाते में ट्रांसफर किए गए थे.

हरिहर कृष्णा ने थाने में किया सरेंडर

कुल मिला कर पुलिस इस नतीजे पर पहुंच चुकी थी कि जो कुछ भी हुआ था, हैदराबाद में ही हुआ है. अपराध केंद्र हैदराबाद ही है. जब तक हरिहर कृष्णा पकड़ा नहीं जाता है, तब तक नवीन के बारे में किसी भी निष्कर्ष तक पहुंचना संभव नहीं था, इसलिए हरिहर कृष्णा का पकड़ा जाना हर हाल में जरूरी था.

हरिहर कृष्णा के ऊपर पुलिस ने चारों ओर से ऐसा जबरदस्त शिकंजा कस दिया था कि वह किसी भी बिल में छिपा हो, बाहर आने के लिए विवश हो जाएगा. पुलिस का यह फारमूला कामयाब भी हो गया और 24 फरवरी, 2023 की दोपहर हरिहर कृष्णा ने नारकेतपल्ली थाने में खुद ही आत्मसमर्पण कर दिया.

उस ने पुलिस के सामने अपना जुर्म कुबूल कर लिया कि उस ने दोस्त नवीन की 17/18 फरवरी, 2023 की रात को हत्या कर दी थी. नवीन की हत्या करने का उसे तनिक भी मलाल नहीं था.  इस के बाद वह पूरी घटना को विस्तार से बताता चला गया. मानवता के दुश्मन हरिहर कृष्णा का बयान सुन कर पुलिस वाले भी हैरान रह गए.

बहरहाल, आरोपी हरिहर कृष्णा के आत्मसमर्पण के बाद उसी के बयान के आधार पर हत्या का राज छिपाने और उसे पनाह देने के आरोप में उस की प्रेमिका नंदिनी और दोस्त हसन भी 10 दिनों बाद यानी 6 मार्च, 2023 को गिरफ्तार कर लिए गए थे. दोनों आरोपियों ने भी अपनेअपने जुर्म कुबूल कर लिए थे.

इस तरह 7 दिनों से रहस्य बने नवीन कांड का पुलिस ने खुलासा कर दिया था और यह साबित हो चुका था कि अब नवीन इस दुनिया में नहीं है.

कैसे एक जिगरी यार ने अपने बचपन के यार के खून से होली खेली और मोहब्बत के कैनवास पर अपने प्यार की दास्तान लिखी? पुलिस पूछताछ में सनसनीखेज कहानी कुछ इस तरह से सामने आई है.

नवीन और नंदिनी एकदूसरे को करते थे प्यार

22 वर्षीय नवीन मूलरूप से तेलंगाना राज्य के नगरकुरनुल जिले के चेरागोंडा मंडल थानाक्षेत्र के सीरिसनगैंड का रहने वाला था. शंकराय का वह इकलौता बेटा था. पापा शंकराय उस पर बेहद नाज करते थे.हंसमुख स्वभाव का नवीन अपनी बातों से किसी को भी अनायास अपनी ओर खींच लेता था. और हर कोई उस का मुरीद हो जाता था.

उन में से एक नाम था हरिहर कृष्णा का. हरिहर जो उस का दोस्त बन गया था और आगे चल कर दोनों की यह दोस्ती दांत काटी रोटी जैसी पक्की हो गई थी और घरबाहर से ले कर स्कूल कालेज तक सभी उन की दोस्ती का गुणगान किए बिना नहीं रह सकते थे.

होली पर मंगेतर को मौत का अबीर

पत्नी का प्रेमी : क्यों मारा गया किशोर? – भाग 2

तनहाई, 2 जवां दिल और किसी के आने का कोई डर न हो तो बहकने में देर नहीं लगती. कभीकभी रिशा और साहेब के भी दिल बहकने लगते, लेकिन रिशा जल्द ही संभल जाती. इस के बाद वह साहेब को भी बहकने से रोक लेती.

लेकिन संभलते संभलते भी उस रोज ठंड में न चाहते हुए भी रिशा बहक गई थी. इस के बाद तो रिशा को इस आनंद का चस्का सा लग गया था. उस आनंद को पाने के लिए वह हर वक्त उतावली रहने लगी थी. साहेब भी यही चाहता था.

जब दोनों तनहाई का ज्यादा ही फायदा उठाने लगे तो उन के इस मिलन की खुशबू फैलने लगी. पहले यह खुशबू पड़ोस वालों तक पहुंची. इस के बाद उन्होंने ही इसे मुंशी रावत तक पहुंचा दिया. वह तो सन्न रह गए.

मुंशी रावत दोनों पर नजर रखने लगे तो एक दिन उन्हें प्यार भरी बातें करते हुए रंगेहाथों पकड़ लिया. उन्हें देख कर साहेब तो चुपचाप खिसक गया, लेकिन रिशा की जम कर पिटाई हुई. मारपीट कर मुंशी ने उसे सख्त हिदायत दी, ‘‘आज के बाद साहेब अगर इस घर में आया या तू ने उस से कोई वास्ता रखा तो मैं तेरी जान ले लूंगा.’’

मुंशी की क्रोध से जलती आंखों को देख कर रिशा कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा सकी थी. डर के मारे उस ने अपनी आंखें मूंद ली थीं. मुंशी पैर पटकता हुआ चला गया था. बाप के जाने के बाद ही रिशा की जान में जान आई थी. अब उस पर कड़ी नजर रखी जाने लगी थी. जिस की वजह से रिशा और साहेब का मिलना असंभव हो गया था.

मुंशी रिशा की शादी साहेब से बिलकुल नहीं करना चाहता, इसलिए उस के लिए लड़के की तलाश में लग गया. क्योंकि अब इस के अलावा उस के पास कोई दूसरा उपाय नहीं था.

बाराबंकी के ही थाना रामसनेही घाट के गांव मुरारपुर के रहने वाला बालकराम रावत लखनऊ के थाना गाजीपुर के इंदिरानगर के बी ब्लाक में सपरिवार रहता था. वह लखनऊ विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय पर्यावरण केंद्र में चपरासी था. उस के परिवार में पत्नी, 3 बेटियां और 2 बेटे किशोर कुमार तथा सुमित कुमार थे.

किशोर विद्यांत कालेज से बीकौम की पढ़ाई कर रहा था. किशोर भले ही अभी पढ़ रहा था, लेकिन बालकराम उस की शादी कर देना चाहते थे. उस के लिए रिश्ते भी आ रहे थे. जब उस के बारे में मुंशी रावत को पता चला तो रिशा की शादी के लिए वह भी बालकराम के यहां जा पहुंचा. रिशा सुंदर तो थी ही, बालकराम को पसंद आ गई. उस ने शादी के लिए हामी भर दी.

4 फरवरी, 2014 को रिशा और किशोर कुमार का विवाह धूमधाम से हो गया. कुछ दिन ससुराल में रह कर रिशा मायके आ गई. अब उस की विदाई अप्रैल में नवरात्र में होनी थी. पिता के डर से रिशा शादी का विरोध नहीं कर पाई थी, और किशोर से शादी कर ली थी. लेकिन अभी भी उस के मन में साहेब ही था.

वैसे भी वह मात्र 3 दिन ही ससुराल में रही थी. इतने दिनों में वह पति को जितना समझ पाई थी, उस से उस ने यही अंदाजा लगाया था कि वह बहुत ही सीधासादा है. इसलिए रिशा को लगा कि पति से उसे कोई परेशानी नहीं होगी.

18 मार्च की शाम साढ़े 5 बजे के करीब बालकराम रावत के मोबाइल पर किसी अनजान ने फोन कर के कहा, ‘‘तुम अपने बेटे किशोर को ढूंढ रहे हो न? तुम्हारे बेटे की लाश चिनहट में मल्हौर रेलवे क्रासिंग के पास एक खाली प्लौट में पड़ी है, जा कर उसे ले आओ.’’

इतना कह कर उस आदमी ने फोन काट दिया था.

उस ने बालकराम को कुछ कहने का मौका नहीं दिया था, इसलिए उस ने कई बार वह नंबर मिलाया. लेकिन फोन बंद होने की वजह से फोन नहीं मिला.

किशोर के बारे में बालकराम को कुछ पता नहीं था, इसलिए उस ने तुरंत बेटे को फोन किया. लेकिन उस का फोन बंद था. फोन बंद होने से वह घबरा गया. उस ने पत्नी से पूछा कि किशोर कहां है तो पत्नी ने कहा, ‘‘किशोर एक बजे के करीब अपने किसी दोस्त घनश्याम से मिलने की बात कह कर घर से निकला था. उस के बाद से उस का कुछ पता नहीं है.’’

किसी अनहोनी की आशंका से बालकराम का दिल धड़क उठा. किशोर का फोन भी नहीं मिल रहा था कि वह उस से संपर्क करता. कोई रास्ता न देख वह तुरंत थाना कोतवाली चिनहट जा पहुंचा. इंसपेक्टर विजयमल सिंह यादव को पूरी बात बताई तो वह एसएसआई राजेश दीक्षित और कुछ सिपाहियों को साथ ले कर किशोर की तलाश में निकल पड़े.

मल्हौर क्रासिंग के पास एक खाली प्लौट में सचमुच किशोर की लाश पड़ी थी. किशोर का चेहरा बुरी तरह कुचला हुआ था. पास ही खून से सना एक भारी पत्थर पड़ा था. हत्यारे ने उसी पत्थर से उस के चेहरे पर प्रहार कर के उस की हत्या की थी. लाश के पास ही शराब और बीयर की बोतलें एवं प्लास्टिक के 2 गिलास पड़े थे. इस का मतलब था कि हत्यारे ने पहले किशोर को शराब पिलाई थी, साथ में खुद बीयर पी थी.

किशोर नशे में बेसुध हो गया होगा तो हत्यारे ने उसी भारी पत्थर से किशोर की हत्या कर दी थी. जवान बेटे की लाश देख कर बालकराम का बुरा हाल था. पुलिस वालों ने किसी तरह उन्हें संभाला और अपनी काररवाई आगे बढ़ाई.

निरीक्षण के बाद पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए लखनऊ मैडिकल कालेज भिजवा दिया. रंक्तरंजित पत्थर ही नहीं, वहां पड़ी सारी सामग्री पुलिस ने कब्जे में ले ली थी. इस के बाद कोतवाली चिनहट में बालकराम की ओर से अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया गया था.

इंसपेक्टर विजयमल सिंह यादव ने उस नंबर को सर्विलांस पर लगवा दिया, जिस से बालकराम को फोन कर के किशोर की लाश पड़ी होने की सूचना दी गई थी. इस के साथ ही उस की काल डिटेल्स और लोकेशन भी निकलवाई गई. उस फोन की आईडी निकलवाई गई तो पता चला कि वह फोन बाराबंकी के थाना असंद्रा के गांव देवीगंज सूरजपुर के रहने वाले एक नाई का था.

पुलिस ने वहां जा कर नाई से पूछताछ की तो उस ने बताया कि जिस दिन की घटना है, उसी दिन उस का मोबाइल चोरी हो गया था. पुलिस ने आसपास वालों से पूछताछ की तो उन लोगों ने बताया कि नाई सच बोल रहा है. मोबाइल चोरी होने के बाद उस ने तमाम लोगों से यह बात बताई थी. फिर वह दुकान छोड़ कर कहीं गया भी नहीं था.

अब तक यह साफ हो चुका था कि किशोर की हत्या उसी आदमी ने की थी, जिस ने नाई का मोबाइल फोन चुराया था. यह निश्चित था कि नाई का मोबाइल वहीं के किसी आदमी ने चुराया होगा. पुलिस ने नाई से पूछताछ की तो उस ने कई नामों पर शक व्यक्त किया. उन्हीं में एक नाम घनश्याम उर्फ साहेब का भी था.

मिसकाल बनी काल – भाग 2

12 दिसंबर, 2013 की सुबह के 4 बजे का समय था. लखनऊ की सब से पौश कालोनी आशियाना स्थित थाना आशियाना में सन्नाटा पसरा हुआ था. थाने में पहरे पर तैनात सिपाही और अंदर बैठे दीवान के अलावा कोई नजर नहीं आ रहा था. तभी साधारण सी एक जैकेट पहने 25 साल का एक युवक थाने में आया.

पहरे पर तैनात सिपाही से इजाजत ले कर वह ड्यूटी पर तैनात दीवान के सामने जा खड़ा हुआ. पूछने पर उस ने बताया, ‘‘दीवान साहब, मैं यहां से 2 किलोमीटर दूर किला चौराहे के पास आशियाना कालोनी में किराए के मकान में रहता हूं. मेरी बीवी मर गई है, थानेदार साहब से मिलने आया हूं.’’

सुबहसुबह ऐसी खबरें किसी भी पुलिस वाले को अच्छी नहीं लगतीं. दीवान को भी अच्छा नहीं लगा. वह उस युवक से ज्यादा पूछताछ करने के बजाए उसे बैठा कर यह बात थानाप्रभारी सुधीर कुमार सिंह को बताने चला गया. सुधीर कुमार सिंह को कच्ची नींद में ही उठ कर आना पड़ा. उन्होंने थाने में आते ही युवक से पूछा, ‘‘हां भाई, बता क्या बात है?’’

बुरी तरह घबराए युवक ने कहा, ‘‘साहब, मेरा नाम सचिन है और मैं रुचिखंड के मकान नंबर ईडब्ल्यूएस 2/341 में किराए के कमरे में रहता हूं. यह मकान पीडब्ल्यूडी कर्मचारी गुलाबचंद सिंह का है. उन का बेटा अजय मेरा दोस्त है. जिस कमरे में मैं रहता हूं, वह मकान के ऊपर बना हुआ है. मेरी पत्नी ने मुझे दवा लेने के लिए भेजा था, जब मैं दवा ले कर वापस आया तो देखा, मेरी पत्नी छत के कुंडे से लटकी हुई थी. मैं ने घबरा कर उसे हाथ लगाया तो वह नीचे गिर गई. वह मर चुकी है.’’

‘‘घटना कब घटी?’’ सुधीर कुमार सिंह ने पूछा तो सचिन ने बताया, ‘‘रात 10 बजे.’’

‘‘तब से अब तक क्या कर रहे थे?’’ यह पूछने पर सचिन बोला, ‘‘रात भर उस की लाश के पास बैठा रोता रहा. सुबह हुई तो आप के पास चला आया.’’

सचिन ने आगे बताया कि वह यासीनगंज के मोअज्जमनगर का रहने वाला है और एक निजी कंपनी में नौकरी करता है. उस के पिता का नाम रमेश कुमार है. सचिन की बातों में एसओ सुधीर कुमार सिंह को सच्चाई नजर आ रही थी.

मामला चूंकि संदिग्ध लग रहा था, इसलिए उन्होंने इस मामले की सूचना क्षेत्राधिकारी कैंट बबीता सिंह को दी और सचिन को ले कर पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. पुलिस ने जब उस के कमरे का दरवाजा खोला तो फर्श पर एक कमउम्र लड़की की लाश पड़ी थी. उसे देख कर कोई नहीं कह सकता था कि वह शादीशुदा रही होगी.

इसी बीच सीओ कैंट बबीता सिंह भी वहां पहुंच गई थीं. सचिन की पूरी बात सुनने के बाद उन्होंने लड़की की लाश को गौर से देखा. उन्हें यह आत्महत्या का मामला नहीं लगा. बहरहाल, घटनास्थल की प्राथमिक काररवाई निपटा कर पुलिस ने मृतका की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और सचिन को थाने ले आई. कुछ पुलिस वालों का कहना था कि सचिन की बात सच है. लेकिन बबीता सिंह यह मानने को तैयार नहीं थीं. उन्होंने मृतका के गले पर निशान देखे थे और उन का कहना था कि संभवत: उस का गला घोंटा गया है.

कुछ पुलिस वालों का कहना था कि अगर सचिन ने ऐसा किया होता तो वह खुद थाने क्यों आता? अगर उस ने हत्या की होती तो वह भाग जाता. इस तर्क का सीओ बबीता सिंह के पास कोई जवाब नहीं था. बहरहाल, हकीकत पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही पता चल सकती थी.

सावधानी के तौर पर पुलिस ने सचिन को थाने में ही बिठाए रखा. इस बीच सचिन पुलिस को बारबार अलगअलग कहानी सुनाता रहा. देर शाम जब पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली तो इस मामले से परदा उठा. पता चला, मृतका की मौत दम घुटने से हुई थी और उसे गला घोंट कर मारा गया था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट देखने के बाद पुलिस ने सचिन से थोड़ी सख्ती से पूछताछ की तो उस ने मुंह खोल दिया. सचिन ने जो कुछ बताया, वह एक किशोरी द्वारा अविवेक में उठाए कदम और वासना के रंग में रंगे एक युवक की ऐसी कहानी थी, जो प्यार के नाम पर दुखद परिणति तक पहुंच गई थी. मृतका सोफिया थी.

मिसकाल से शुरू हुई सचिन और सोफिया की प्रेमकहानी काफी आगे बढ़ चुकी थी. फोन पर होने वाली बातचीत के बाद दोनों के मन में एकदूसरे से मिलने की इच्छा बलवती होने लगी थी. तभी एक दिन सचिन ने कहा, ‘‘सोफिया, हमें आपस में बात करते 2 महीने बीत चुके हैं. अब तुम से मिलने का मन हो रहा है.’’

‘‘सचिन, चाहती तो मैं भी यही हूं. लेकिन कैसे मिलूं, समझ में नहीं आता. मैं अभी तक कभी अजगैन से बाहर नहीं गई हूं. ऐसे में लखनऊ कैसे आ पाऊंगी?’’ सोफिया ने कहा तो सचिन सोफिया की नादानी और भावुकता का लाभ उठाते हुए बोला, ‘‘इस का मतलब तुम मुझ से प्यार नहीं करतीं. अगर प्यार करतीं तो ऐसा नहीं कहतीं. प्यार इंसान को कहीं से कहीं ले जाता है.’’

‘‘ऐसा मत सोचो सचिन. तुम कहो तो मैं अपना सब कुछ छोड़ कर तुम्हारे पास चली आऊं?’’ सोफिया ने भावुकता में कहा.

‘‘ठीक है, तुम 1-2 दिन इंतजार करो, तब तक मैं कुछ करता हूं.’’  कह कर सचिन ने बात खत्म कर दी.

दरअसल वह किसी भी कीमत पर सोफिया को हासिल करना चाहता था. इस के लिए वह मन ही मन आगे की योजना बनाने लगा. सचिन का एक दोस्त था सुवेश. सचिन ने उस से कोई कमरा किराए पर दिलाने को कहा.

सुवेश को कोई शक न हो, इसलिए सचिन ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘दरअसल मैं एक लड़की से प्यार करता हूं और मैं ने उस से शादी करने का फैसला कर लिया है. चूंकि मेरे घर वाले अभी उसे घर में नहीं रखेंगे, इसलिए तुम किसी का मकान किराए पर दिला दो तो बड़ी मेहरबानी होगी. बाद में जब घर के लोग राजी हो जाएंगे तो मैं उसे ले कर अपने घर चला जाऊंगा.’’

अगले अंक में पढ़िए कैसे पहुंचाया सचिन ने सोफ़िया को मौत की कगार पर?

मिसकाल का प्यार