होली पर मंगेतर को मौत का अबीर – भाग 2

क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम द्वारा अपना काम निपटाने के बाद थानाप्रभारी ने लाश का मुआयना किया तो उस के गले और मुंह पर लगे निशानों से लग रहा था कि उस की हत्या शायद गला घोंट कर की गई होगी.

बेडशीट और तकिया के कवर पर खून के निशान मिले. बेड के ऊपर और नीचे बंदूक के कुछ कारतूस भी पड़े हुए थे. प्रियंका के शरीर पर गोली लगने का कोई निशान नहीं था तो वहां कारतूस कैसे आ गए यह बात थानाप्रभारी नहीं समझ पा रहे थे.

थानाप्रभारी ने गेस्ट हाउस के मैनेजर सुनील से पूछा कि प्रियंका यहां कब और किस के साथ आई थी? इस पर उस ने बताया, ‘‘सर, यह कल शाम करीब 8 बजे मोहित नाम के एक युवक के साथ आई थी. मोहित ने इसे अपनी पत्नी बताया था. रात करीब पौने 11 बजे मोहित किसी काम से गेस्ट हाउस से बाहर गया था. आज 11 बजे गेस्ट हाउस का एक कर्मचारी इस कमरे पर आया तो कमरा बाहर से बंद था. उस कर्मचारी ने यह बात मुझे बताई.

‘‘मैं ने सब से पहले एंट्री रजिस्टर देखा कि कहीं मोहित पत्नी को ले कर यहां से चला तो नहीं गया. रजिस्टर में उस के द्वारा कमरा खाली करने का कोई जिक्र नहीं था. तब मैं यहां आया. दरवाजे का ताला बंद देख कर मैं भी चौंक गया. मैं ने दरवाजा खटखटा कर कई आवाजें दीं. कोई जवाब नहीं मिला तो मैं ने सोचा कि कहीं मोहित के जाने के बाद मौका पा कर उस की पत्नी भी तो यहां से नहीं खिसक गई.

‘‘फिर मैं ने सोचा कि एक बार रोशनदान से कमरे में भी देख लिया जाए. मैं ने ऐसा किया तो यह युवती बेड पर लेटी हुई दिखी. इस के मुंह में ठुंसा तौलिया और बेडशीट पर खून देख कर मुझे कुछ अनहोनी का अंदेशा हुआ. इस के बाद मैं ने पुलिस को फोन कर दिया.’’

टै्रफिक पुलिस की एक कांस्टेबल की हत्या की सूचना थानाप्रभारी ने जब उच्चाधिकारियों को दी तो डीसीपी सुमन गोयल और एसीपी ओमप्रकाश भी नीलगगन गेस्ट हाउस पहुंच गए. उन्होंने भी कमरे का बारीकी से मुआयना किया. और गेस्ट हाऊस के मैनेजर से भी पूछताछ की.

पुलिस ने लाश का पंचनामा और जरूरी काररवाई पूरी करने के बाद उसे पोस्टमार्टम के लिए दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल, हरि नगर भिजवा दिया.

पुलिस को यह जानकारी मिल चुकी थी कि प्रियंका अपने मंगेतर मोहित के साथ ही गेस्ट हाउस में आई थी. वह गेस्ट हाउस से फरार हो चुका था. इस के अलावा प्रियंका की बहन शिक्षा ने भी मोहित पर शक जताया था इसलिए पुलिस का शक भी मोहित पर बढ़ गया.

मोहित की तलाश के लिए डीसीपी सुमन गोयल ने एसीपी ओमप्रकाश के निर्देशन में एक पुलिस टीम बनाई, जिस में थानप्रभारी रिछपाल सिंह, एसआई मदन, अनुज यादव, चेतन, एएसआई यादराम, हेडकांस्टेबल दशरथ, सुमेर सिंह, राजकुमार, कांस्टेबल सुरेंद्र, नरेंद्र कुमार आदि को शामिल किया गया.

पुलिस टीम मोहित की तलाश में जुट गई. एएसआई मदन के नेतृत्व में एक पुलिस टीम मोहित के गांव छापर भेज दी गई. वहां पता चला कि वह घर पहुंचा ही नहीं है. उस के मोबाइल फोन पर बात करने की कोशिश की गई तो मोबाइल भी स्विच औफ मिला.

कहीं वह दिल्ली से बाहर न भाग गया हो, पुलिस को इस बात की आशंका थी. जब मोहित तक पहुंचने का कोई रास्ता न दिखा तो पुलिस ने अपने मुखबिरों को सतर्क कर दिया.

अगले दिन यानी 18 मार्च, 2014 को एक मुखबिर की सूचना के आधार पर पुलिस टीम ने मोहित को सागरपुर से सटे द्वारका क्षेत्र से हिरासत में ले लिया. थाने ला कर जब उस से प्रियंका उर्फ प्रिया की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो वह मर्डर करने की बात तो दूर, नीलगगन गेस्ट हाउस में ठहरने वाली बात को ही नकारता रहा. लेकिन जब पुलिस ने उस से कहा कि गेस्ट हाउस के रजिस्टर में तुम्हारे साइन हैं, साथ ही वहां लगे सीसीटीवी कैमरे में फोटो भी हैं.

सच्चाई की नदी में झूठ की नाव जल्द ही डूब जाती है. मोहित जानता था कि वह मंगेतर प्रियंका को ले कर नीलगगन गेस्ट हाउस में गया था. इसलिए थानाप्रभारी के सवालों के आगे उस का झूठ ज्यादा देर तक नहीं टिक सका. आखिर उस ने स्वीकार कर लिया कि प्रियंका की हत्या उस ने ही की थी. अपनी मंगेतर की हत्या की उस ने जो कहानी बताई वह इस प्रकार निकली.

मूल रूप से राजस्थान के झुंझनू जिले के थाना सूरजगढ़ के तहत आने वाले गांव चिमकावास के रहने वाले हरिसिंह के परिवार में 4 बेटियां और एक बेटा प्रवीण था. हरि सिंह भारतीय सेना में नौकरी करते थे जो फिलहाल रिटायर हो चुके हैं. उन्होंने अपने सभी बच्चों को उच्च शिक्षा हासिल करवाई. इस का नतीजा यह हुआ कि उन के 3 बच्चों की दिल्ली पुलिस में नौकरी लग गई. उन की बेटी शिक्षा दिल्ली पुलिस में सबइंस्पेक्टर, दूसरी प्रियंका कांस्टेबल हो गई तो बेटा भी दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल के पद पर भरती हो गया.

तीनों भाईबहन दिल्ली पुलिस में नौकरी करने लगे तो दक्षिणपश्चिमी दिल्ली के सागरपुर (पश्चिमी) के आई ब्लौक में उन्होंने अपनी रिहाइश बना ली. परिवार के बाकी लोगों को भी उन्होंने दिल्ली बुला लिया. सभी साथसाथ रहने लगे. हरिसिंह सभी बच्चों की शादी कर के फारिग हो जाना चाहते थे.

वह प्रियंका के लिए उपयुक्त लड़का देखने लगे. तभी उन्हें किसी ने मोहित के बारे में बताया. मोहित हरियाणा के भिवानी जिले की दादरी तहसील के छापर गांव के रहने वाले धर्मपाल का बेटा था और भारतीय नेवी में नौकरी करता था. हरिसिंह ने मोहित को देखा तो उन्हें वह पसंद आ गया. बाद में प्रियंका ने भी अपनी सहमति जता दी. इस के बाद उन्होंने मोहित के घरवालों से बात की. फिर दोनों तरफ से रिश्ता पक्का हो गया. यह अक्तूबर, 2013 की बात है.

रिश्ता तय हो जाने के बाद मोहित और प्रियंका फोन पर बातें करते रहते थे और कभीकभी इधरउधर घूमने का प्रोग्राम भी बना लेते थे. प्रियंका के घरवालों को इस पर कोई ऐतराज नहीं था क्योंकि कुछ दिनों में उस की मोहित से शादी होने ही वाली थी. साथ रहने की वजह से दोनों खूब घुलमिल गए थे.

बताया जाता है कि मोहित कुछ शक्की मिजाज का था. उस ने प्रियंका के मोबाइल से उस के अधिकांश रिश्तेदारों के फोन नंबर हासिल कर लिए थे. प्रियंका की गैरमौजूदगी में वह उन रिश्तेदारों को फोन कर के प्रियंका के बारे में छानबीन करता रहता था. रिश्तेदारों द्वारा यह बात जब हरिसिंह को पता लगी तो उन्हें होने वाले दामाद द्वारा इस तरह से छानबीन करना अच्छा नहीं लगा.

हालांकि उन्होंने इस बारे में मोहित से कुछ नहीं कहा. वह जानते थे कि जब उन की बेटी में किसी तरह का खोट नहीं है तो उन्हें छानबीन से कोई फर्क नहीं पड़ेगा. उन्होंने यह भी सोचा कि शादी से पहले इस तरह की बातें तो चलती ही रहती हैं, जब दोनों की शादी हो जाएगी तो सारी बातें अपने आप बंद हो जाएंगी.

प्यार ने बना दिया नागिन – भाग 3

रचना और रामेश्वर इसी निश्चिंतता का फायदा उठा रहे थे. लेकिन रचना को भगा ले जाना रामेश्वर के लिए आसान नहीं था. रचना को भगा कर ले जाने से एक तो उस के ननिहाल वाले दुश्मन बन जाते, दूसरे पकड़े जाने पर वह जेल भी जा सकता था.

रचना और रामेश्वर के प्रेमसंबंधों से रचना की ससुराल वाले पूरी तरह बेखबर थे. वे मामी भांजे के इस संबंध के बारे में सोच भी नहीं सकते थे. रचना और रामेश्वर ने एक होने की जो योजना बनाई थी, धीरेधीरे वह सफलता की ओर बढ़ रही थी. रचना ससुराल वालों को लगातार यह विश्वास दिलाने की कोशिश कर रही थी कि वह पूर्व जन्म में नागिन थी. इसलिए नाग उस के सपनों में आते हैं.

रचना जल्दी से जल्दी रामेश्वर के साथ कहीं दूर निकल जाना चाहती थी. वह हमेशा इसी उधेड़बुन में लगी रहती थी, इसलिए उस का किसी काम में मन नहीं लगता था. उस के इस रवैए से परेशान हो कर अकसर सास बिहारी से शिकायत करती. तब बिहारी रचना को डांटता. लेकिन रचना पर इस सब का कोई असर नहीं हो रहा था.

रचना की सास देखती थी कि जब भी उस का नवासा रामेश्वर घर आता है, वह रचना के आगेपीछे ही घूमता रहता है. यह बात उसे अच्छी नहीं लगती थी, इसलिए एक दिन उस ने टोका, ‘‘रामेश्वर, तू कोई कामधंधा क्यों नहीं करता. इधरउधर बेमतलब घूमता रहता है.’’

‘‘नानी, आप चिंता न करें, एक दिन मैं ऐसा काम करूंगा कि आप हैरान रह जाएंगी.’’ रामेश्वर ने कहा.

रचना और रामेश्वर की मुलाकातें चोरीछिपे होती थीं. लेकिन उन के बातव्यवहार, हावभाव और हरकतों से घर वालों को संदेह होने लगा था. इस के बावजूद कोई उन पर नजर नहीं रख रहा था. सभी को लगता था कि दोनों हमउम्र हैं और उन का हंसीमजाक का रिश्ता है, इसलिए थोड़ा खुल गए हैं.

लेकिन एक दिन दोपहर में बिहारी ने रचना और रामेश्वर को जिस हालत में देखा, वह हैरान करने वाला था. रचना रामेश्वर की बांहों में समाई थी. संदेह तो पहले से ही था, उस दिन अपनी आंखों से पत्नी को भांजे की बांहों में देख कर बिहारी के शरीर में आग लग गई. वह रामेश्वर की ओर लपका, लेकिन वह भाग खड़ा हुआ. इस के बाद बिहारी ने अपना सारा गुस्सा रचना पर उतार दिया.

पति के पिटने के बाद रचना के प्यार का जुनून कम होने के बजाय पहले से ज्यादा बढ़ गया. पत्नी की घिनौनी हरकत बिहारी घर वालों से नहीं बता सका, इसलिए वह अंदर ही अंदर घुटने लगा. इस का नतीजा यह निकला कि वह बातबात में रचना की पिटाई करने लगा. दोनों के बीच एक दरार पैदा हो गई, जो दिनोंदिन चौड़ी होती जा रही थी. एक दिन ऐसा भी आ गया, जब परेशान हो कर रचना अपने मायके चली गई.

रचना के मायके जाने से पतिपत्नी के बीच पैदा हुए तनाव की जानकारी बिहारी के घर वालों को तो हो ही गई, ससुराल वालों को भी हो गई थी. सभी ने सोचा कि कुछ दिनों में सब ठीक हो जाएगा. लेकिन हाकिम सिंह की परेशानी तब बढ़ गई, जब कई महीने बीत जाने के बाद भी रचना को कोई विदा कराने नहीं आया.

उन्होंने समधी को फोन किया तो पतिराम ने कहा, ‘‘परेशान मत होइए समधीजी, जल्दी ही मैं बहू को विदा कराने के लिए बिहारी को भेज रहा हूं.’’

पतिराम ने अच्छी तरह बात की थी, इसलिए हाकिम सिंह को लगा कि चिंता की कोई बात नहीं है. जब सब ठीकठाक है तो अगर उस की ससुराल से कोई नहीं आता तो वह स्वयं ही रचना को छोड़ आएगा. लेकिन उसे ऐसा नहीं करना पड़ा, क्योंकि पतिराम ने अपने यहां देवी जागरण कराया तो रचना का जेठ मोहर सिंह भांजे पूरन के साथ रचना को विदा कराने मांगरौली जा पहुंचा.

रचना ससुराल जाना तो नहीं चाहती थी, लेकिन वह देख रही थी कि उस की वजह से मम्मीपापा बहुत परेशान है, इसलिए वह मना नहीं कर सकी और जेठ के साथ ससुराल आ गई.

रचना काफी दिनों बाद ससुराल आई थी, इसलिए सास ने उसे हाथोंहाथ लिया. बिहारी को भी लगा कि अब रचना को अपनी गलती का अहसास हो गया होगा, इसलिए उस ने भी उस से प्यार से बात की. रचना का भी व्यवहार सामान्य था. देवी जागरण का जो आयोजन था, वह भी धूमधाम से हो गया. लेकिन इस के बाद उस घर में जो कुछ हुआ, वह काफी हैरान करने वाला था.

31 मई, 2014 की रात पतिराम का पूरा परिवार खापी कर आराम से सोया. जब अगले दिन सुबह बिहारी सो कर उठा तो रचना बिस्तर से गायब थी. वह घर में भी कहीं नहीं थी. बिहारी को याद आया कि वह रात में किसी से फोन पर बात कर रही थी. उस ने करवट ले कर वहां देखा, जहां रचना सोती थी तो वहां उस के वे कपड़े, चूडि़यां और मंगलसूत्र पड़ा दिखाई दिया, जिसे वह रात में पहन कर सोई थी. उसी के साथ एक चिट्ठी भी रखी थी.

बिहारी ने चिट्ठी खोली. रचना ने उस में लिखा था, ‘‘मैं नागिन बन चुकी हूं. सुबह मैं जिस हालत में मिलूं, मुझे जंगल में छोड़ दिया जाए.’’

चिट्ठी पढ़ कर बिहारी सन्न रह गया. उस ने इधरउधर देखा तो कमरे में उसे एक काला सांप दिखाई दिया. वह चीखा तो पूरा घर इकट्ठा हो गया. उस ने पूरी बात घर वालों को बताई तो सभी हैरान रह गए. कुछ ही देर में यह बात पूरे गांव में फैल गई. इस के बाद पूरा गांव पतिराम के घर इकट्ठा हो गया.

पतिराम ने हाकिम सिंह को फोन किया कि उन की बेटी रचना नागिन बन गई है. हाकिम सिंह भी हैरान रह गया. वह पत्नी रामवती को ले कर बेटी की ससुराल पहुंचा. पूरी हकीकत जानने के बाद वह उस नागिन को अपने साथ ले आया, जिस के बारे में बताया गया था कि सुबह यही कमरे में मिली थी.

रचना के नागिन बन जाने की बात आसपास फैली तो दूरदूर से लोग उस नागिन को देखने हाकिम सिंह के घर आने लगे. उत्सुकतावश बगल के गांव के रहने वाले सपेरे सोना और अमर भी नागिन को देखने हाकिम सिंह के घर आ पहुंचे. उन्होंने उस नागिन को देखा तो उन्होंने बताया कि यह नागिन नहीं, बल्कि नाग है और इस की जहर की थैली निकाल दी गई है, इसलिए यह किसी को काट नहीं रहा है.

यह जान कर हाकिम सिंह को लगा कि रचना की ससुराल वालों ने उस की बेटी को गायब कर के अपने गुनाहों पर परदा डालने के लिए यह षडयंत्र रचा है कि उस की बेटी नागिन बन गई है.

बात विश्वास करने लायक नहीं थी, इसलिए हाकिम सिंह ने थाना गोवर्धन जा कर रचना की ससुराल वालों के खिलाफ भादंवि की धारा 498, 506, 354 और 314 दहेज ऐक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

इंसपेक्टर उदयराज सिंह भी नागिन वाली कहानी से हैरान थे. जब रचना की ससुराल वालों को पता चला कि हाकिम ने उन के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी है तो वे परेशान हो उठे. इंसपेक्टर उदयराज सिंह ने पतिराम के घर छापा मारा तो बाकी लोग तो फरार हो गए, लेकिन पतिराम और रोहतान उन की पकड़ में आ गए.

3 मालियों की एक माला

माला भले ही 30 की उम्र पार कर चुकी थी, लेकिन अपने रंगरूप और बनसंवर कर रहने की वजह से वह 24-25 साल  से अधिक की नहीं लगती थी. 1 बच्चे की मां बनने के बावजूद उस की सुंदरता और स्वाभाविक चंचलता में कोई कमी नहीं आई थी. वह जिस की तरफ देख कर मुसकरा देती थी, वह उस का दीवाना हो जाता था.

सरोज उपेंद्र कामथी पहली ही नजर में माला का दीवाना हो गया था. वह काफी दिनों बाद मुंबई से अपने गांव आया था. एक दिन जब वह गांव के लोगों और अपने दोस्तों से मिलने के लिए घर से निकला तो अचानक उस की नजर अपने दोस्त राजेश के दरवाजे पर खड़ी माला से लड़ गई. उस ने माला को देखा तो देखता ही रह गया. राजेश उस वक्त घर में नहीं था.

सरोज कामथी औरतों के मामले में काफी अनुभवी था. वह माला के हावभाव देख कर काफी कुछ समझ गया. लेकिन वह चूंकि उस के दोस्त की पत्नी थी और गांव का मामला था, इसलिए वह बिना उस से बात किए अपने घर वापस लौट आया.

उस रात सरोज कामथी रात को सो नहीं पाया. रहरह कर उस की आंखों में नींद की जगह माला का मुसकराता चेहरा घूमता रहा. रात किसी तरह कट गई तो सुबह को वह मौका देख कर फिर राजेश के घर पहुंच गया. माला उस वक्त घर में अकेली थी. उस ने दरवाजे पर दस्तक दी तो दरवाजा माला ने ही खोला.

सरोज कामथी को आया देख वह चौंकी. वह कुछ कहती, इस के पहले सरोज ने अपना परिचय दे कर कहा, ‘‘मेरा नाम सरोज है, मैं इसी गांव का रहने वाला हूं. राजेश मेरा दोस्त है. मुंबई में रहने की वजह से कभीकभी गांव आना होता है. गांव वालों से मिलनाजुलना भी कम ही होता है.’’

माला ने सरोज कामथी को अंदर आने को कहा तो वह शरीफ इंसान की तरह अंदर आ गया. माला ने उस से उस के कामधंधे के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि मुंबई में उस की खानेपीने के सामान की दुकान है. जिस से उसे अच्छीभली कमाई हो जाती है.

‘‘मुंबई का बड़ा नाम सुना है. कैसा शहर है मुंबई?’’ माला ने पूछा तो सरोज बोला, ‘‘बहुत अच्छा और सुंदर शहर है. गगनचुंबी इमारतें, रानी बाग, मछली घर, नेशनल पार्क, समुद्र का किनारा बहुत कुछ है मुंबई में देखने के लिए. जुहू चौपाटी पर तो अच्छाभला मेला लगा रहता है, सुबहशाम.’’

सरोज को लंबाचौड़ा बखान करता देख माला बोली, ‘‘ये सब मुझे बताने से क्या फायदा? मेरे ऐसे नसीब कहां कि मुंबई जैसा खूबसूरत शहर देखने का मौका मिले. बस बच्चों, पति और घरपरिवार में ही जिंदगी गुजरती जा रही है.’’

सरोज की बातों में मायूसी भरी चाहत थी. सरोज ने अच्छा मौका देख उस की भावनाओं को भड़काने के लिए कहा, ‘‘इतना मायूस मत होइए. भाभी, आप चाहें तो मैं आप को मुंबई घुमा सकता हूं. एकएक चीज दिखाऊंगा आप को.’’

‘‘सच.’’ माला ने चौंक कर मुसकराते हुए कहा. फिर दूसरे पल ही वह गंभीर हो गई.

‘‘कितना अच्छा सपना है, लेकिन पति और बच्चों का क्या करूंगी?’’

माला को भावनात्मक स्तर पर बहकते देख सरोज तरंग में आ गया. उसे कमजोर पड़ते देख बोला, ‘‘कुछ पाने के लिए कई तरह के समझौते करने पड़ते हैं. एक बार घर से निकल कर देखो तो पता चलेगा, दुनिया कितनी रंगीन है. मुंबई देख लिया तो सब भूल जाओगी. वैसे भी तुम्हारी जैसी खूबसूरती को शहर की शान होना चाहिए, यहां गांव में क्या रखा है?’’

माला सरोज की नजरों में चढ़ गई थी. उसे लग रहा था कि थोड़ा सा प्रयास किया जाए तो वह लाइन पर आ जाएगी. इसीलिए वह इसी कोशिश में लग गया.

उस दिन के बाद सरोज माला से मिलने रोज उस के घर जाने लगा. वह ऐसे समय पर जाता, जब उस का पति खेतों पर गया होता और बच्चे स्कूल. माला को वह भी अच्छा लगने लगा था और उस की बातें भी. नतीजतन जल्दी ही दोनों एकदूसरे से घुलमिल गए. दोनों के बीच पहले प्यारीप्यारी बातें, छेड़छाड़ और हंसीमजाक शुरू हुई. ऐसे में दोनों एकदूसरे के करीब आते गए. आखिर वही हुआ जो सरोज चाहता था. माला उस की बाहों में आ गई. इस के बाद यह सिलसिला सा बन गया.

माला सरोज कामथी के रंग में कुछ ऐसी रंगी कि घरपरिवार और बच्चों को छोड़ कर उस के साथ मुंबई जाने को तैयार हो गई. सरोज यही चाहता था. मौका मिलते ही वह उसे भगा कर अपने साथ मुंबई ले आया. सरोज उपेंद्र कामथी मूलत: बिहार के जिला दरभंगा के गांव विलौर का रहने वाला था. उस का परिवार खेतीबाड़ी करता था. उस का विवाह बचपन में ही रिंकू से हो गया था.

सरोज कामथी ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था. इस के बावजूद वह महत्त्वाकांक्षी था और शहर जा कर खूब पैसा कमाना चाहता था. सरोज के गांव के कई लोग मुंबई में रहते थे. वह भी उन लोगों की बदौलत मुंबई चला आया. कुछ दिनों तक वह अपने गांव वालों के साथ रह कर अपने लिए नौकरी ढूंढ़ता रहा. जब उसे कोई अच्छी नौकरी नहीं मिली तो वह किसी दूसरे धंधे की तलाश में लग गया.

इसी तलाश में उसे एक अच्छी जगह मिल गई. वह अंधेरी की इनफिनिटी मौल के सामने इडली सांभर, मसाला डोसा और वड़ापाव की दुकान लगाने लगा. महानगर मुंबई में इडली सांभर, मसाला डोसा और वड़ापाव का धंधा बड़ी तेजी से पांव पसारता है. जल्दी ही सरोज कामथी का काम जम गया. उसे अच्छीभली कमाई होने लगी. जब काम चल निकला तो सरोज कामथी मुंबई के उपनगर जोगेश्वरी पश्चिम, न्यू लिंक रोड, न्यू शक्तिनगर की वर्मा चाल के रूम नंबर 5 में रहने लगा. बाद में वह अपनी पत्नी और बच्चों को भी मुंबई ले आया था.

सरोज कामथी अपने परिवार के साथ मुंबई में भले ही बस गया था. लेकिन कभीकभी वह अपने गांव जाता रहता था. अच्छी कदकाठी, बढि़या रहनसहन और हृष्टपुष्ट शरीर की वजह से गांव के लोग उस से प्रभावित होते थे. वह गांव जाता था तो सभी से मिलता था. मिलनेजुलने के इसी सिलसिले में उस की मुलाकात माला से हुई थी.

माला भी सरोज की तरह महत्त्वाकांक्षी औरत थी. सरोज के सामने उसे अपना सीधासादा पति राजेश बहुत बौना लगा था. इसीलिए वह सन  2010 में अपने पति और बेटे को छोड़ कर सरोज के साथ मुंबई चली आई थी.

सरोज कामथी जिस चाल में रहता था, उस ने उसी के पीछे चाल का ऊपर वाला कमरा ले कर माला के रहने का इंतजाम कर दिया. इस के बाद दोनों उसी कमरे में पतिपत्नी की तरह साथ रहने लगे. जब इस बात का पता सरोज कामथी की पत्नी रिंकू को चला तो उस ने पति से काफी लड़ाईझगड़ा किया. लेकिन सरोज कामथी और माला पर इस का कोई फर्क नहीं पड़ा. आखिरकार थकहार कर रिंकू को हालात से समझौता करना पड़ा.

माला को मुंबई लाने के बाद सरोज कामथी कुछ दिनों तक तो उसे मुंबई घुमाताफिराता रहा, उस के साथ मौजमस्ती करता रहा. माला भी अपने घर, गांव, पति और बच्चे भूल कर आसमान में उड़ने लगी. लेकिन जब उसे पता चला कि सरोज कामथी अपने बीवीबच्चों के साथ उसी चाल के आगे वाले हिस्से में रहता है, वह पर कटे पक्षी की तरह फड़फड़ा कर रह गई. लेकिन अब क्या हो सकता था. फलस्वरूप दोनों के बीच झगड़े होने लगे.

जब बात बढ़ी तो सरोज कामथी शराब पी कर माला के साथ मारपीट करने लगा. उस के बदले हुए व्यवहार को देख कर माला को अपना पति, गांव और बच्चे की याद आने लगी. लेकिन अब तक बहुत देर हो चुकी थी. वह अब अपने घर नहीं लौट सकती थी. सरोज कामथी उस के लिए एक मजबूरी बन गया था.

वह हर रात शराब के नशे में माला के पास आता. उस के साथ मौजमस्ती करता, वह कुछ कहती तो उस के साथ मारपीट करता. रोजरोज की इस मारपीट से माला तंग आ गई थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह करे तो क्या करे.  जिस कमरे में माला रह रही थी, उस के ठीक सामने वाले कमरे में महेश और सुरेश रहते थे.

वे उत्तर प्रदेश के जिला इलाहाबाद के गांव बकराबाद के रहने वाले थे और अंधेरी स्थित लक्ष्मी इंडस्ट्रियल एस्टेट की वाटर सप्लाई कंपनी बिसलरी में काम करते थे. ये दोनों शादीशुदा थे, लेकिन इन की पत्नियां अपने बच्चों के साथ गांव में रहती थीं. महेश और सुरेश माला के साथ होने वाली ज्यादती को देखा करते थे. उन्होंने माला से सहानुभूति जतानी शुरू कर दी. समय बे समय वह उस की आर्थिक मदद भी करते थे.

सरोज कामथी से परेशान माला को जब सुरेश और महेश की सहानुभूति मिली तो धीरेधीरे उस का झुकाव उन दोनों की तरफ हो गया. नतीजा यह हुआ कि जिस तरह माला सरोज कामथी के करीब आने के बाद अपनी सारी मर्यादाएं भूल गई थी. उसी तरह उस ने अपने और सुरेश व महेश के बीच की सारी दीवारें तोड़ दीं.

जल्दी ही उस के महेश और सुरेश के साथ संबंध बन गए. जब सरोज कामथी अपने काम पर चला जाता तो मौका देख सुरेश और महेश कभी अपने घर में तो कभी माला के घर में जा कर उस के साथ मौजमस्ती करते. इस तरह लगभग 2 सालों तक माला और सुरेश व महेश की रासलीला चोरीछिपे चलती रही. बाद में जब सुरेश और महेश के माला से आंतरिक संबंधों की जानकारी सरोज कामथी को मिली तो वह माला के प्रति और भी ज्यादा कू्रर हो गया.

सुरेश और महेश जबजब माला को सरोज कामथी के हाथों मार खाते देखते थे, तबतब उन का खून खौल जाता था. लेकिन वे चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते थे. क्योंकि माला उसी के साथ रहती थी और वही उस का खर्चा भी उठा रहा था. वे कोई भी ऐसा काम नहीं करना चाहते थे, जिस से माला मुसीबत में पड़ जाए. दूसरी ओर माला की सहनशक्ति जवाब दे चुकी थी. आखिरकार एक दिन उस ने सुरेश और महेश से कह दिया कि अब वह सरोज कामथी को और ज्यादा बरदाश्त नहीं कर सकती.

3 नवंबर, 2013 को दीपावली थी. उस रात सब के घरों में रोशनी बिखरी हुई थी. लेकिन माला के कमरे में अंधेरा था. उस दिन सुरेश जब माला के घर के अंदर गया तो वह बिस्तर पर पड़ी दर्द से कराह रही थी. सुरेश ने घर की लाइट जला कर उस से कारण पूछा तो माला की आंखों में आंसू भर आए. उस ने बताया कि सरोज ने उस के साथ मारपीट की है और अब यह सब उस की बरदाश्त के बाहर हो गया है.

माला की बात सुन कर सुरेश के तनबदन में आग सी लग गई. उस ने यह बात महेश को बताई तो उसे भी बहुत गुस्सा आया. उन दोनों ने आपस में बात कर के फैसला किया कि जैसे भी हो सरोज कामथी को अपने और माला के बीच से हटा दिया जाए. उन्होंने अपने मन की बात माला से बताई तो वह भी उन का साथ देने के लिए तैयार हो गई.

6 नवंबर, 2013 को सुबह के लगभग 8 बजे 2 युवक जोगेश्वरी के ओसिवारा पुलिस थाने पहुंचे और ड्यूटी पर मौजूद सबइंस्पेक्टर योगेश धारे को बताया कि वे लोग जिस कमरे में रहते हैं, उस के ऊपर वाले कमरे में कुछ गड़बड़ है. 2 दिनों पहले उन के कमरे की लकड़ी की छत से खून की कुछ बूंदें टपकी थीं और अब उस कमरे से अजीब तरह की दुर्गंध आ रही है.

सबइंसपेक्टर योगेश धारे ने उन दोनों की बातें बड़े ध्यान से सुनीं और इस मामले की जानकारी तुरंत अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. इस के बाद वह अपने साथ पुलिस टीम ले कर उन दोनों के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. उन लोगों द्वारा बताई गई जगह पर पहुंच कर पुलिस ने देखा कि उन्होंने जिस कमरे का जिक्र किया था, उस के दरवाजे पर ताला लटक रहा था.

उस कमरे का ताला तुड़वाया गया तो अचानक तेज दुर्गंध का झोंका आया. अंदर जा कर देखा गया तो पुलिस टीम स्तब्ध रह गई. कमरे में एक आदमी का निर्वस्त्र शव पड़ा था, जिस में सड़न शुरू हो चुकी थी. लाश के आसपास ढेर सारा खून फैला था, जो सूख चुका था. मृतक के सिर पर गहरा घाव और गले में नीला निशान था. लग रहा था कि उस की हत्या सिर पर किसी वजनी चीज से प्रहार कर के और गला दबा कर की गई थी.

मृतक कौन था, उस के साथ कौनकौन रहता था? योगेश धारे अभी इस की जांच कर रहे थे कि पुलिस उपायुक्त छेरिंग दोरजे, सहायक पुलिस आयुक्त शेर खान थाने के वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक नासिर पठान, पुलिस निरीक्षक बाबूराव मुखेड़कर, सहायक पुलिस निरीक्षक रवींद्र पाटिल, हेडकांस्टेबल गोरखनाथ पवार, सिपाही प्रवीण धार्गे और विकास पोल भी वहां पहुंच गए.

मृतक की शिनाख्त के लिए पुलिस को कोई माथापच्ची नहीं करनी पड़ी, क्योंकि मृतक की पत्नी रिंकू अपने बच्चों के साथ वहां पहुंच गई. उस ने रोते बिलखते बताया कि मृतक उस का पति सरोज कामथी है. रिंकू ने अपने पति की हत्या का आरोप सीधेसीधे माला पर लगाया. उस ने यह भी बताया कि माला पिछले 3 सालों से उस की सौतन बन कर उस के पति के साथ रह रही थी.

पूछताछ में यह बात भी पता चली कि माला दीपावली के दूसरे दिन से गायब है. यह भी जानकारी मिली कि माला के बाजू वाले कमरे में रहने वाले 2 युवक सुरेश और महेश भी शामिल हैं. रिंकू के बयान और घर से गायब होने के कारण वे दोनों भी संदेह के घेरे में आ गए.

रिंकू के बयान और घटनास्थल की प्राथमिक जांच व काररवाई के बाद मृतक सरोज कामथी की लाश को पोस्टमार्टम के लिए कूपर अस्पताल भेज दिया गया. थाने लौट कर सीनियर इंसपेक्टर नासिर पठान ने तीनों संदिग्धों की गिरफ्तारी के लिए 3 पुलिस टीमें तैयार कीं. पुलिस की तीनों टीमों ने माला, सुरेश और महेश की सरगरमी से तलाश शुरू कर दी. परिणामस्वरूप शीघ्र ही कामयाबी भी मिल गई. महेश को अंधेरी में उस के एक दोस्त के यहां से गिरफ्तार कर लिया गया.

पूछताछ में महेश ने अपना गुनाह कुबूल कर लिया. उस से पता चला कि सुरेश और माला हत्या के बाद अपनेअपने गांव भाग गए थे. महेश के बयान के बाद सहायक पुलिस निरीक्षक रवींद्र पाटिल के निर्देशन में पुलिस की एक टीम सुरेश के इलाहाबाद स्थित गांव और एक टीम माला के दरभंगा स्थित गांव भेजी गई.

12 नवंबर, 2013 को मोबाइल फोन की लोकेशन से सुरेश को इलाहाबाद स्टेशन के मुसाफिरखाना से गिरफ्तार कर लिया गया. लेकिन माला की तलाश में गई पुलिस टीम दरभंगा से खाली हाथ लौट आई.

मुंबई पहुंच कर सुरेश ने अपना गुनाह कबूल करते हुए पुलिस को बताया कि उन दोनों के माला से अवैध संबंध थे. इसी वजह से सरोज कामथी माला को प्रताडि़त करता था, जो उन से बरदाश्त नहीं होता था. इसलिए जब माला ने उन से कहा कि वह सरोज कामथी से छुटकारा पाना चाहती है तो उन लोगों ने उस के साथ मिल कर उस की हत्या की योजना बना डाली. उस की हत्या में माला भी शामिल थी.

सुरेश के अनुसार 4 नवंबर, 2013 को दीवाली के दूसरे दिन सरोज कामथी शराब के नशे में घर आया और सो गया. यह बात माला ने फोन कर के उन्हें बताई तो वे बिना देर किए उस के पास पहुंच गए. अपनी योजना के अनुसार सुरेश ने सरोज कामथी के सीने पर चढ़ कर उस का गला पकड़ कर दबाना शुरू कर दिया. महेश ने उस के दोनों पैर पकड़े और माला ने मसाला पीसने वाले पत्थर से उस के सिर पर वार किया. सरोज कामथी की हत्या करने के बाद कमरे में ताला लगा कर तीनों से फरार हो गए थे.

सुरेश और महेश से विस्तृत पूछताछ के बाद जांच अधिकारी बाबूराव मुखेड़कर और रविंद्र पाटिल ने तीनों के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मामला दर्ज कर के उन्हें अंधेरी कोर्ट के मेट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. माला अभी फरार है.

अनुराधा रेड्डी हत्याकांड : सीसीटीवी फुटेज से खुली मर्डर मिस्ट्री – भाग 1

वह जल्दीजल्दी काले कपड़े की तह को परतदरपरत हटाता गया. जब उस की नजर उस चीज पर पड़ी तो उस के मुंह से एक जबरदस्त चीख निकली और कपड़ा हाथ से छूट कर दूर जा गिरा और वह उल्टे पांव दूर जा खड़ा हुआ.  उस पौलीथिन के भीतर काले कपड़े में लपेट कर किसी महिला का कटा सिर रखा था. जिसे देख सुधाकर बुरी तरह डर गया था. डर के मारे ही उस के मुंह से चीख निकल पड़ी थी और कपड़ा हाथ से छूट कर दूर जा गिरा था.

फिर उस ने लाश…लाश चिल्ला कर लोगों को मौके पर जमा कर लिया था. चूंकि वह वक्त सुबह का था और लोग सुबह की सैर पर निकले ही थे इसलिए वहां काफी लोग जमा हो गए. मौके पर पुलिस भी आ गई. सीसीटीवी फुटेज के सहारे पुलिस चंद्रमोहन के घर पहुंच गई.

चंद्रमोहन समझ चुका था कि उस के गुनाहों का घड़ा फूट चुका है और वह बेनकाब हो चुका है. अब सच बता देने में ही भलाई है और वहां से उठा. फिर पुलिस को साथ ले कर किचन में पहुंचा, जहां फ्रिज रखा था. उस ने फ्रिज खोल कर पुलिस को दिखा दिया. फ्रिज के अंदर का नजारा देख कर दोनों पुलिस अधिकारी भौचक रह गए थे. फ्रिज के अंदर कटे हुए दोनों हाथ और पैर रखे हुए थे. यह दृश्य देख कर दोनों की जैसे रूह कांप उठी.

17 मई, 2023 की सुबह सफाई कर्मचारी सुधाकर अपनी ड्यूटी पर था. दूरदूर तक सडक़ की दोनों पटरियों पर बिखरे तिनकों को झाड़ू से बुहार रहा था और अपनी किस्मत को कोस रहा था कि पता नहीं कब तक उसे यह काम करना पड़ेगा. झाड़ू की लाठी पकड़े उस के दोनों बाजू थक चुके थे. झाड़ू लगातेलगाते सुधाकर अफजल नगर कम्युनिटी हाल के सामने मुसी नदी के पास थीगालगुडा रोड के बगल में स्थित कचरा डंप करने की जगह पहुंच गया था.

अचानक उस की नजर कचरा बौक्स के पास पड़ी काली पौलीथिन पर जा टिकी, जो काफी टाइट तरीके से बंधी हुई थी. पौलीथिन देख कर उस का दिल जोरजोर से धडक़ने लगा और मन ही मन खुश होने लगा था कि शायद उस के मन की मुराद पूरी हो रही है. सोच रहा था कि इस पौलीथिन में रुपए या कोई ज्वैलरी होगी. अपनी झाड़ू कचरा बौक्स के सहारे टिका कर सुधाकर घुटने मोड़ कर पौलीथिन के पास जा बैठा और उसे जल्दीजल्दी खोलने लगा.

पौलीथिन इतनी टाइट तरीके से बांधी गई थी कि उसे खोलने में करीब 5 मिनट का समय लग गया था. पौलीथिन की गांठें खुलीं तो देखा उस के भीतर भी काले कपड़े में सामान बंधा है. यह देख कर उस की उत्सुकता और बढ़ गई कि आखिर इस में है क्या जो इतने तरीके से बंधा है.

वह जल्दीजल्दी काले कपड़े की तह को परतदरपरत हटाता गया. जब उस की नजर उस चीज पर पड़ी तो उस के मुंह से एक जबरदस्त चीख निकली और कपड़ा हाथ से छूट कर दूर जा गिरा और वह उल्टे पांव दूर जा खड़ा हुआ. उस पौलीथिन के भीतर काले कपड़े में लपेट कर किसी महिला का कटा सिर रखा था. जिसे देख सुधाकर बुरी तरह डर गया था. डर के मारे ही उस के मुंह से चीख निकल पड़ी थी और कपड़ा हाथ से छूट कर दूर जा गिरा था.

फिर उस ने लाश…लाश चिल्ला कर लोगों को मौके पर जमा कर लिया था. चूंकि वह वक्त सुबह का था और लोग सुबह की सैर पर निकले ही थे इसलिए वहां काफी लोग जमा हो गए. मौके पर जमा तमाशबीन महिला का कटा सिर देख कर उसे पहचानने की कोशिश में जुटे थे, लेकिन उसे कोई पहचान नहीं सका. उस के बाद खुद सुधाकर ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर के घटना की जानकारी दे दी.

चूंकि वह एरिया हैदराबाद के मलकापेट थाना क्षेत्र में पड़ता था. इसलिए वायरलैस से कंट्रोल रूम द्वारा मलकापेट थाने के इंसपेक्टर के. श्रीनिवास को सूचना दी गई तो वह कुछ पुलिसकर्मियों को साथ ले कर मौके पर पहुंच गए. मौके पर जुटी भीड़ पुलिस को देख कर इधरउधर हो गई. पुलिस टीम जांच कार्य में जुट गई थी.

पुलिस ने बरामद किया महिला का सिर

मौके पर जमा भीड़ से इंसपेक्टर के. श्रीनिवास ने कटे सिर की शिनाख्त करानी चाही, लेकिन उसे कोई पहचान नहीं सका. पुलिस ने सिर को अपने कब्जे में ले लिया और बाकी बचे शरीर की तलाश में जुट गई. चारों ओर करीब एक किलोमीटर के दायरे में पुलिस ने शरीर के बाकी हिस्से की तलाश की, मगर वह कहीं नहीं मिला.

फिर इंसपेक्टर श्रीनिवास सिर को ले कर थाने पहुंचे. इस से पहले उन्होंने इस की जानकारी डीसीपी सी.एच. रूपेश (दक्षिण- पूर्वी जोन) और एसीपी (मलकापेट) जी. श्याम सुंदर को दे दी थी. सूचना पा कर दोनों अधिकारी मौके का जायजा लेने के बाद थाने पहुंचे.

डीसीपी और एसीपी ने भी कटे सिर का मुआयना किया तो वह चौंक गए. हत्यारे ने जिस तरीके से सिर धड़ से काट कर अलग किया, उस से लग रहा था कि उस ने उसे काटने में किसी तेजधार वाले हथियार का प्रयोग किया होगा.

अधिकारियों के निर्देश पर इंसपेक्टर श्रीनिवास ने हैदराबाद के सभी थानों को वायरलैस पर मैसेज भेज कर गुमशुदा महिला की रिपोर्ट दर्ज होने के बारे में जानकारी ली. उन्हें किसी भी थाने में न तो किसी महिला की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज होने की सूचना मिली और न ही किसी महिला की सिरविहीन लाश बरामद होने की जानकारी मिली.

पुलिस के सामने महिला की शिनाख्त कराने की चुनौती थी, क्योंकि पुलिस के पास केवल कटा हुआ सिर था. इस के अलावा मरने वाली की कोई पहचान नहीं थी. उस का नाम क्या है? उस की उम्र क्या है? कहां की रहने वाली थी? कहां से आई थी? ऐसे तमाम सवाल पुलिस के सामने थे, लेकिन उन का कोई जवाब नहीं था.

अगले दिन फिर से पुलिस मृतका का नाम और पता खोजने में जुट गई, लेकिन ये काम इतना आसान नहीं था. ये प्रक्रिया लंबी और जटिल थी. फिर क्या था पुलिस ने उस सिर के फोटो के पैंफ्लेट रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों, शहर के विभिन्न सार्वजनिक स्थानों, उन इलाकों में जहां भी संभावना थी, चिपकवा दिए और थाने का फोन नंबर दे दिया.

यही नहीं, पुलिस ने घरघर जा कर तसवीर दिखा कर लोगों से पूछा कि क्या इस युवती को जानते हैं? इस के अलावा पुलिस ने तसवीर राज्य के 750 पुलिस स्टेशनों में भेजी. साथ ही वाट्सऐप ग्रुप के जरिए भेज कर उस महिला के बारे में पूछा.

डीसीपी सी.एच. रूपेश ने घटना के खुलासे को ले कर 8 टीमें गठित कर दीं. सभी टीमों ने घटना के खुलासे को ले कर दिनरात एक कर दिया, मगर कोई सफलता हाथ नहीं लगी थी. पुलिस जहां से चली थी, फिर वहीं लौट कर आ गई थी. करीब 5 दिन बीच चुके थे.

कुछ तो ऐसा था जो पुलिस की निगाहों से छूट रहा था. 22 मई, 2023 को पुलिस की एक टीम फिर से मुसी नदी के किनारे पहुंची, जहां से कटा सिर बरामद किया गया था. वहां से गुजरने वाली सडक़ों के किनारे लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज को खंगालने का फैसला किया गया, जो एक सडक़ को दूसरी सडक़ से जोड़ते थे.

फिर क्या था पुलिस ने एक सप्ताह (10 से 16 मई, 2023 तक) की फुटेज निकाली और उस की गहनतापूर्वक जांचपड़ताल शुरू की. उस में करीब 200 घंटे की फुटेज मौजूद थी. ऐसा इसलिए किया जा रहा था, क्योंकि 17 मई को सिर बरामद हुआ था, पुलिस को अनुमान था कि इस दरम्यान कोई न कोई क्लू जरूर मिल सकता है.

मिसकाल का प्यार – भाग 3

21 फरवरी की सुबह अपना कालेज बैग ले कर रूबी कालेज जाने के लिए घर से निकली और इलकल से बस पकड़ कर वह रात साढ़े 9 बजे बंगलुरु एयरपोर्ट पर पहुंच गई. वहां सुजाय उस का पहले से इंतजार कर रहा था.

रूबी और सुजाय ने जब पहली बार एकदूसरे को हकीकत में देखा तो रूबी उस के सीने से लिपट गई. दोनों के दिल करीब आए तो धड़कनें स्वाभाविक ही बढ़ गईं. चूंकि वह सार्वजनिक जगह थी, इसलिए उन्होंने न चाहते हुए भी खुद को कंट्रोल किया. सुजाय ने बंगलुरु से दिल्ली तक की जेट एयरवेज की 2 टिकटें पहले से बुक कर रखी थीं. वहां से दोनों फ्लाइट से रात करीब डेढ़ बजे दिल्ली आ गए.

चूंकि दोनों पहली बार मिले थे, इसलिए सुजाय उस से जी भर कर बातें करना चाहता था. इसलिए रूबी को ले कर दिल्ली एयरपोर्ट के नजदीक महिपालपुर इलाके में गया और वहां स्थित एक गेस्टहाउस में एक कमरा बुक करा लिया. रूबी ने अपना फोन स्विच्ड औफ कर दिया था, ताकि घर वाले उसे ढूंढ़ न सकें.

कोई भी जवान लड़कालड़की, जो आपस में सगेसंबंधी न हों, अगर उन्हें लंबे समय तक एकांत में रहना पड़ जाए तो उन के बहकने की आशंकाएं अधिक होती हैं. रूबी और सुजाय तो प्रेमीप्रेमिका थे, इसलिए गेस्टहाउस के कमरे में वे इतने नजदीक आ गए कि उन के बीच की सारी दूरियां मिट गईं.

उधर रूबी शाम तक घर नहीं लौटी तो घर वालों को उस की चिंता हुई. उन्होंने उस का फोन मिलाया, वह स्विच्ड औफ मिला. इस के बाद उन का परेशान होना लाजिमी था. वैसे भी कोई जवान बेटी घर वालों से बिना कुछ बताए गायब हो जाए तो मांबाप की क्या स्थिति होगी, इस बात को रूबी की अम्मी और अब्बू ही महसूस कर रहे थे.

उन्होंने रूबी के बारे में संभावित जगहों पर फोन कर के पता किया, लेकिन जब उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो वह थाना इलकल पहुंच गए और 22 वर्षीया रूबी की गुमशुदगी दर्ज करा दी. रूबी के पिता ने बेटी के गायब होने की सूचना दर्ज करा जरूर दी थी, लेकिन उन्हें इस बात पर यकीन नहीं हो रहा था कि पुलिस बेटी के बारे में कुछ पता लगा पाएगी. बेटी की चिंता में उन्हें नींद नहीं आई.

अगले दिन 22 फरवरी को भी वह अपने तरीके से बेटी को खोजने लगे. तभी सुबह 10 बजे उन के मोबाइल की घंटी बजी. उन्होंने धड़कते दिल से काल रिसीव कर के जैसे ही हैलो कहा, दूसरी ओर से रौबदार आवाज में कोई आदमी बोला, ‘‘तुम रूबी के लिए परेशान हो रहे हो न..?’’

उस की बात पूरी होने से पहले ही रूबी के पिता बोले, ‘‘हां…हां, कहां है मेरी बेटी?’’

‘‘वह जिस के पास है, हमें पता है. वे लोग इतने खतरनाक हैं कि अगर उन की मांग नहीं मानी गई तो वे लड़की को खत्म कर देंगे या फिर उसे किसी कोठे पर बेच देंगे.’’ फोन करने वाले ने कहा.

‘‘मेरी बेटी को कुछ नहीं होना चाहिए. मैं उन की सारी मांगें मानूंगा. मगर यह तो बता दो कि जिन के पास मेरी बेटी है, वे लोग मुझ से चाहते क्या हैं?’’

‘‘10 पेटी. यानी 10 लाख रुपए दे दो और बेटी को ले जाओ. एक बात का ध्यान रखना, यह बात पुलिस को पता नहीं लगनी चाहिए, वरना बेटी को कफन ओढ़ाने की नौबत आ जाएगी. पैसे ले कर कब और कहां आना है, बाद में बता दिया जाएगा. और पैसे ले कर अकेले ही आना.’’ कहने के बाद फोन काट दिया गया.

फोन पर बात करने के बाद रूबी के पिता को यह तो पता चल गया कि बेटी का किसी ने अपहरण कर लिया है. लेकिन उन के दिमाग में एक दुविधा यह भी थी कि वह इस मामले की खबर पुलिस को दें या नहीं? क्योंकि पुलिस में सूचना देने पर अपहर्त्ता ने उन्हें अंजाम भुगतने की चेतावनी दी थी. उन की पत्नी ने पुलिस को खबर न करने को कहा, जबकि सगेसंबंधियों और दोस्तों ने पुलिस के पास जाने की सलाह दी.

फिर वह काफी सोचनेसमझने के बाद पुलिस के पास पहुंच गए. उन्होंने इलकल के थानाप्रभारी को वह मोबाइल नंबर भी दे दिया, जिस से उन के मोबाइल पर फिरौती का फोन आया था.

थानाप्रभारी ने उन की तहरीर पर एफआईआर नंबर 33/2014 भादंवि की धारा 364ए के तहत मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी. जिस नंबर से फिरौती की काल आई थी, थानाप्रभारी ने उस नंबर को इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस पर लगाया तो उस की लोकेशन दिल्ली की मिली. थानाप्रभारी ने यह बात अपने उच्चाधिकारियों को बताई.

बगालकोट जिले में एक आईपीएस अधिकारी हैं मिस्टर मार्टिन. मार्टिन दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के डीसीपी कुमार ज्ञानेश से अच्छी तरह परिचित थे. उन्होंने आईपीएस अधिकारी कुमार ज्ञानेश से फोन पर बात कर के रूबी को सकुशल बरामद कराने में सहयोग मांगा.

चूंकि मामला अंतरराज्यीय था, इसलिए कुमार ज्ञानेश ने क्राइम ब्रांच के अतिरिक्त आयुक्त रविंद्र यादव की जानकारी में यह बात लाई. दिल्ली पुलिस इस से पहले भी दूसरे प्रदेशों में बड़े अपराध कर के भागे अनेक अभियुक्तों को गिरफ्तार कर के संबंधित राज्यों की पुलिस के हवाले कर चुकी थी.

इसलिए अतिरिक्त आयुक्त रविंद्र यादव ने कर्नाटक पुलिस का सहयोग करने के लिए क्राइम ब्रांच की एंटी स्नैचिंग सेल के इंसपेक्टर सुशील कुमार की अध्यक्षता में एक पुलिस टीम बनाई, जिस में एसआई सुरेंद्र दलाल, एएसआई मुकेश त्यागी, हेडकांस्टेबल राजबीर सिंह, ऋषि कुमार आदि को शामिल किया. टीम का निर्देशन डीसीपी कुमार ज्ञानेश को सौंपा गया.

उधर कर्नाटक पुलिस के इंसपेक्टर रविंद्र शिरूर, एसआई प्रदीप तलकेरी, बस्वराज लमानी की टीम 23 फरवरी, 2014 को दिल्ली पुलिस के क्राइम ब्रांच औफिस पहुंच गई. टीम के साथ रूबी का बहनोई भी था. जिस मोबाइल नंबर से अपहर्त्ता ने रूबी के पिता को फिरौती की काल की थी, उस नंबर को दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने भी इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस पर लगा दिया था. उस की लोकेशन लगातार महिपालपुर इलाके की आ रही थी.

महिपालपुर के जिस इलाके की फोन की लोकेशन आ रही थी, उस इलाके में अनेक गेस्टहाउस और होटल थे. पुलिस ने अनुमान लगाया कि शायद अपहर्त्ताओं ने लड़की को किसी गेस्टहाउस या होटल में बंद कर रखा है, इसलिए कर्नाटक पुलिस के साथ दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच की टीम ने उस इलाके के एकएक होटल और गेस्टहाउस की तलाशी लेनी शुरू कर दी.

होली पर मंगेतर को मौत का अबीर – भाग 1

17 मार्च को जिस समय देश भर में लोग होली के हुड़दंग में मस्त थे उस समय हरिसिंह के घर में  मायूसी छाई हुई थी. इस की वजह यह थी कि हरिसिंह की छोटी बेटी प्रियंका जो दिल्ली टै्रफिक पुलिस में कांस्टेबल थी, बीते दिन यानी 16 मार्च की शाम से गायब थी. वह शाम को करीब 7 बजे यह कह कर घर से निकली थी कि किसी से मिलने जा रही है और थोड़ी देर में घर लौट आएगी.

प्रियंका कोई दूध पीती बच्ची तो थी नहीं जो घर वालों को उस की तरफ से कोई चिंता होती. वह 22 साल की थी, ऊपर से दिल्ली पुलिस में नौकरी कर रही थी इसलिए उन्हें उस की समझदारी पर कोई शक नहीं था. घर वाले निश्चिंत थे कि वह कहीं किसी काम से गई है तो देरसवेर घर आ जाएगी.

प्रियंका को घर से गए हुए कई घंटे बीत गए. वह घर नहीं लौटी तो उस की बड़ी बहन सुमन ने उसे यह जानने के लिए फोन किया कि वह कहां है और कितनी देर में घर आ रही है. लेकिन प्रियंका का फोन कंप्यूटर द्वारा स्विच्ड औफ या पहुंच से दूर बताया जा रहा था. सुमन ने उस का फोन कई बार मिलाया, हर बाद उन्हें कंप्यूटर का वही जवाब सुनने को मिला.

प्रियंका कभी भी अपना फोन स्विच औफ कर के नहीं रखती थी. और जब कभी उसे घर लौटने में देरी हो जाती तो वह घर पर फोन जरूर कर दिया करती थी. लेकिन आज उस ने कोई फोन नहीं किया था.

सुमन की एक बहन शिक्षा दिल्ली पुलिस में सब इंसपेक्टर है. वह भी उस समय घर पर ही थी. उस ने भी प्रियंका का फोन नंबर मिलाया, जो उस समय भी स्विच्ड औफ था. घर के लोग परेशान थे कि न जाने वह कहां चली गई जो फोन भी बंद कर रखा है.

प्रियंका का एकलौता भाई प्रवीण भी दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल है. उसे भी प्रियंका के घर न लौटने की बात बताई गई तो वह भी घर आ गया. परिवार के सभी लोग इधरउधर फोन कर के प्रियंका का पता लगाने में जुट गए.

उन्होंने प्रियंका की जानपहचान वालों को भी फोन किए लेकिन उस का कहीं पता न लगा. घर के सभी लोग परेशान थे. वे रात भर जागते रहे. उस के लौटने के इंतजार में पूरी रात उन की निगाहें दरवाजे की तरफ ही लगी रहीं.

सुबह होने पर उस की फिर तलाश शुरू कर दी गई. लेकिन उस के बारे में कोई खबर नहीं मिल रही थी. तब उन के दिमाग में प्रियंका को ले कर गलत खयाल आने लगे. अंतत: सुमन ने 10 बजे के करीब बहन के रहस्यमय तरीके से गायब होने की खबर 100 नंबर पर फोन कर के पुलिस नियंत्रण कक्ष को दे दी.

एक महिला कांस्टेबल के गायब होने की सूचना पाते ही पुलिस कंट्रोल रूम (पीसीआर) की वैन प्रियंका के घर पहुंच गई. चूंकि मामला सागरपुर थाना क्षेत्र का था इसलिए पीसीआर द्वारा थाना सागरपुर में वायरलेस द्वारा सूचना दे दी गई. तब थानाप्रभारी रिछपाल सिंह एसआई मदन के साथ वेस्ट सागरपुर के आई ब्लाक में स्थित कुसुम के घर पहुंच गए. सुमन और शिक्षा ने थानाप्रभारी को प्रियंका के गुम होने की पूरी बात बता दी.

पुलिस दोनों बहनों को थाने ले आई और शिक्षा की तरफ से प्रियंका की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर ली. थानाप्रभारी ने प्रियंका के हुलिए के साथ उस के गायब होने की सूचना दिल्ली के समस्त थानों में प्रसारित करा दी. साथ ही उन्होंने जब शिक्षा से पूछा कि उन्हें किसी पर कोई शक वगैरह तो नहीं है तो शिक्षा ने बताया कि हमें प्रियंका के मंगेतर मोहित पर शक है.

‘‘मोहित कहां रहता है?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘वह हरियाणा के भिवानी जिले के गांव छापर का रहने वाला है और नेवी में नौकरी करता है. अभी 3 महीने पहले ही प्रियंका का रिश्ता उस से तय हुआ था.’’ शिक्षा ने बताया.

थानाप्रभारी शिक्षा से बात कर ही रहे थे कि उसी दौरान उन्हें थाना क्षेत्र के ही मोहन नगर स्थित नीलगगन गेस्ट हाउस में एक महिला की लाश मिलने की सूचना मिली. थानाप्रभारी रिछपाल सिंह एसआई मदन, हेडकांस्टेबल सुरेश, कांस्टेबल लाला राम, नवीन आदि के साथ नीलगगन गेस्ट हाउस की तरफ चल दिए. चूंकि प्रियंका भी गायब थी इसलिए उन्होंने सुमन और शिक्षा को भी साथ ले लिया.

थानाप्रभारी जब नील गगन गेस्ट हाउस पहुंचे तो गेस्ट हाउस के मैनेजर सुनील कुमार ने बताया कि रूम नंबर 105 में एक युवती बेड पर पड़ी हुई है ऐसा लगता है शायद वह मर चुकी है. पुलिस तुरंत रूम नंबर 105 की तरफ गई, वो ग्राउंड फ्लोर पर दाहिनी साइड में था. उस कमरे में बाहर से ताला लगा था. मैनेजर ने पुलिस को बताया कि उस ने कमरे के अंदर का नजारा रोशनदान से झांक कर देखा था.

थानाप्रभारी ने भी उस कमरे के रोशनदान से कमरे में देखा तो एक युवती बेड पर लेटी हुई दिखाई दी. उस के मुंह में सफेद रंग का तौलिया ठूंसा हुआ था और बेडशीट पर खून के धब्बे भी दिख रहे थे. उस युवती के सीने तक का शरीर ब्राउन कलर के कंबल से ढका हुआ था.

उस युवती की हालत और बेडशीट पर खून के धब्बे देख कर थानाप्रभारी को भी लगा कि शायद उस की हत्या हो चुकी है. उन्होंने शिक्षा से भी कमरे के अंदर पड़ी युवती को देखने को कहा. शिक्षा ने जब रोशनदान से कमरे में झांका तो उस की आंखों में आंसू भर आए. बेड पर लेटी वह युवती उसे प्रियंका जैसी ही लग रही थी.

शिक्षा का उतरा चेहरा और आंखों में छलकते आंसू देख कर थानाप्रभारी रिछपाल सिंह ने पूछा, ‘‘क्या हुआ शिक्षा? क्या तुम उस युवती को पहचानती हो?’’

‘‘सर, वो मुझे प्रिया लग रही है.’’ प्रियंका को घर पर सब प्रिया कहते थे. वह थोड़ा गंभीर हो कर बोली, ‘‘मगर वो यहां क्यों आएगी?’’

शिक्षा की बात सुन कर सुमन भी घबरा गई उस ने भी रोशनदान से झांक कर देखा तो वह भी रुआंसी हो गई. उस ने रोशनदान से ही प्रियाप्रिया कह कर जोर से कई बार पुकारा लेकिन बेड पर लेटी युवती में कोई हरकत नहीं हुई. तब पुलिस ने क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को भी गेस्ट हाउस में बुला लिया.

क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम के सामने पुलिस ने धक्के मार कर उस कमरे के दरवाजे को तोड़ दिया. तभी शिक्षा और सुमन ने बेड पर लेटी युवती को देखा तो वे जोरजोर से रोने लगीं क्योंकि वह लाश उन की बहन प्रिया की ही निकली.

प्यार ने बना दिया नागिन – भाग 2

जब रचना को पता चला कि घर वालों ने उस की शादी तय कर दी है तो उस ने तुरंत रामेश्वर को फोन किया. प्रेमिका की शादी तय हो जाने की बात सुन कर वह बेचैन हो उठा. वह रचना से शादी तो करना चाहता था, लेकिन उस की मजबूरी यह थी कि अभी वह बेरोजगार था. उस के पास इतना पैसा भी नहीं था कि वह रचना को भगा ले जाता.

इसलिए उस ने मजबूरी जाहिर करते हुए पूछा, ‘‘रचना, तुम्हारी शादी कहां तय हुई है?’’

‘‘जब तुम कुछ कर नहीं सकते तो यह जान कर क्या करोगे?’’ रचना तुनक कर बोली.

‘‘भले ही अभी कुछ नहीं कर पा रहा हूं, लेकिन हमारे हालात हमेशा ऐसे ही थोड़े रहेंगे. जब सब ठीकठाक हो जाएगा, तब तो कुछ कर सकेंगे. इसीलिए पूछ रहा था.’’ रामेश्वर ने रचना को सांत्वना देते हुए कहा.

‘‘राम सिंह चाचा की कोई रिश्तेदारी मडौरा में है, वहीं किसी के यहां तय कराई है.’’ रचना ने जवाब दिया.

‘‘मडौरा में किस के यहां हो रही है? वहां तो मेरा ननिहाल है. कहीं तुम्हारी शादी बिहारी से तो नहीं हो रही है?’’ रामेश्वर ने चहक कर कहा, ‘‘मुझे पता चला है कि बिहारी मामा की शादी तय हो गई है. लेकिन मुझे यह नहीं मालूम कि उन की शादी कहां तय हुई है.’’

‘‘शायद उन्हीं के साथ हो रही है. वह तुम्हारे सगे मामा हैं?’’ रचना ने हैरानी से पूछा.

‘‘हां, बिहारी मेरे सगे मामा हैं. अगर उन के साथ तुम्हारा विवाह हो रहा है तो हम पहले की ही तरह मिलते रहेंगे. उस के बाद जब हमारे हालात सुधर जाएंगे तो हम भाग कर शादी कर लेंगे.’’ रामेश्वर ने कहा.

‘‘शादी के बाद क्या होगा, यह बाद की बात है, दूसरे के घर जा कर स्थिति कैसी बनेगी, यह तो वहां जाने पर ही पता चलेगा न? मैं तुम पर कैसे भरोसा कर सकती हूं? जब तुम अभी कुछ नहीं कर सकते तो दूसरी की हो जाने के बाद तुम मेरे लिए क्या कर पाओगे? अब मुझे तुम पर विश्वास नहीं रहा.’’ कह कर रचना ने फोन काट दिया.

अपने इस कायर प्रेमी पर रचना को बहुत गुस्सा आया था. वह समझ गई कि यह सिर्फ बड़ी बड़ी बातें कर के केवल सपने दिखा सकता है, कर कुछ नहीं सकता. एक से एक प्रेमी हैं, जो प्रेमिका के लिए जान देने को तैयार रहते हैं. एक यह है, जो बहाने बना कर पीछा छुड़ा कर भाग रहा है. यही सब सोच कर उस ने तय कर लिया कि अब वह उस से बात नहीं करेगी. अगर ससुराल में मिलेगा तो दुत्कार कर भगा देगी.

रचना का विवाह बिहारी से हो गया. वह विदा हो कर ससुराल आ गई. इस तरह वह अपने प्रेमी रामेश्वर की मामी बन गई. शादी में रामेश्वर मामा की बारात में तो गया ही था, बारात लौटी तो रचना से मिलने के चक्कर में रुक भी गया. उसे उम्मीद थी कि मौका मिलेगा तो रचना उस से बात करेगी. लेकिन रचना ने उस की ओर देखा तक नहीं. अगर कभी सामने पड़ा भी तो उस ने मुंह फेर लिया.

रामेश्वर की समझ में नहीं आ रहा था कि वह रचना को कैसे समझाए कि वह उसे बहुत प्यार करता है. लेकिन उसे भगा कर अपनी अलग दुनिया बसाने का उस के पास कोई साधन नहीं था, इसलिए वह पीछे हट गया था. रचना के लिए उस के मन में जो चाहत है, वह आज भी कम नहीं हुई है. रामेश्वर काफी परेशान था, क्योंकि वह प्रेमिका को दिखाए सपनों को पूरा नहीं कर सका था.

रामेश्वर जब भी मामा के यहां आता, रचना से बात करने की कोशिश करता. लेकिन रचना उसे मौका ही नहीं देती थी. संयोग से एक दिन वह ऐसे मौके पर मामा के घर पहुंचा, जब रचना घर में अकेली थी. उसे देख कर रचना को गुस्सा आ गया. उस ने उस से तुरंत वापस जाने को कहा.

रचना के गुस्से की परवाह किए बगैर रामेश्वर ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘रचना, मैं आज भी तुम से उतना ही प्यार करता हूं, जितना पहले करता था. यही नहीं, मैं तुम्हें इतना ही प्यार पूरी जिंदगी करता रहूंगा और किसी दूसरी लड़की से शादी भी नहीं करूंगा. मैं मजबूर था, भावनाओं में बह कर मैं तुम्हें भगा तो ले जाता, लेकिन बाद में जो परेशानी होती, उस का दोष तुम मुझे ही देती.’’

रचना ने जब रामेश्वर की बात पर गंभीरता से विचार किया तो उस की बात उसे सच लगी. लेकिन उस के सपनों की दुनिया तो उजड़ चुकी थी. रामेश्वर उसे बारबार विश्वास दिला रहा था कि वह आज भी उसे उतना ही प्यार करता है. इसलिए रचना ने कहा, ‘‘केवल प्यार करने से थोड़े ही कुछ होगा, कुछ करोगे भी या इसी तरह सिर्फ प्यार ही करते रहोगे? तुम्हें पता होना चाहिए कि तुम्हारे मामा बिहारी को आज भी मैं मन से स्वीकार नहीं कर पाई हूं.’’

‘‘अब तुम मेरी मामी बन चुकी हो, ऐसे में मैं क्या कर सकता हूं?’’ रामेश्वर ने कहा.

‘‘अगर तुम कुछ नहीं कर सकते तो मेरी नजरों के सामने आते ही क्यों हो?’’ रचना ने उसे झिड़का.

‘‘ऐसा मत कहो रचना. मैं तुम्हें देखे बगैर नहीं रह सकता. अगर तुम भी मुझे पहले की ही तरह प्यार करती हो तो मैं वादा करता हूं कि तुम जैसा कहोगी, मैं वैसा ही करूंगा.’’

‘‘तो फिर जैसे भी हो सके, तुम मुझे यहां से निकालो.’’ रचना ने कहा.

इस के बाद रामेश्वर और रचना के प्यार का सिलसिला एक बार फिर पहले ही तरह चल पड़ा. वे नए सिरे से अपनी अलग दुनिया बसाने की योजना बनाने लगे. काफी सोचविचार कर रचना और रामेश्वर ने जो योजना बनाई, उसी के अनुसार रचना काम करने लगी. एक दिन उस ने अपनी सास से कहा, ‘‘अम्माजी, आजकल मेरे सपनों में नाग बहुत आते हैं. वे कहते हैं कि मैं पूर्वजन्म में नागिन थी, इसलिए मुझे वे अपने साथ ले जाएंगे.’’

सास ने समझाया, सपना तो सपना होता है, वह सिर्फ दिखाई देता है, कभी सच नहीं होता. वह उस के बारे में सोचे ही न. लेकिन रचना लगातार सास से सपने का जिक्र करती रही. वह लगभग रोज बताती कि सपने में उसे नाग दिखाई देते हैं और कहते हैं कि वे उसे छोड़ेंगे नहीं.

रचना की बातों से ससुराल वाले परेशान रहने लगे थे. धीरेधीरे उस की शिकायतें कुछ ज्यादा ही बढ़ती गईं तो ससुराल वालों ने उसे कुछ दिनों के लिए मायके भेज दिया. सपने वाली बात जान कर हाकिम सिंह और रामवती को भी चिंता हुई. उन्हें असलियत का पता तो था नहीं, इसलिए उन्होंने झाड़फूंक भी कराई. उन्हें लगता था कि रचना अपने प्रेमी को भूल चुकी होगी. इसलिए वे निश्चिंत थे.

मिसकाल का प्यार – भाग 2

जब किसी लड़की या लड़के को प्यार होता है तो उसे अपने साथी के अलावा सब कुछ बेकार लगता है. हर समय वह उसी के बारे में सोचता रहता है. रूबी और सुजाय का भी यही हाल था. वे जब तक एकदूसरे से बात नहीं कर लेते, उन्हें चैन नहीं पड़ता था.

वह नेट पर चैटिंग भी करने लगे थे. फेसबुक पर उन्होंने अपने फोटो अपलोड कर दिए थे. रूबी का फोटो देख कर सुजाय फूला नहीं समा रहा था. उस ने बातचीत के बाद उस की जैसी तसवीर अपने दिल में बसा ली थी, वास्तव में वह उस से भी ज्यादा सुंदर निकली.

सुजाय भी हैंडसम था. रूबी को उस की छवि भी अपने सपनों के राजकुमार की तरह ही लगी. यानी दोनों अपनी पसंद पर इतरा रहे थे. सुजाय और रूबी बालिग थे. भले ही वे एकदूसरे से सैकड़ों मील दूर रह रहे थे, लेकिन फोन की बातचीत और चैटिंग के जरिए वे एकदूसरे के दिल में थे.

मोहब्बत ने उन की सैकड़ों किलोमीटर दूरी को समेट कर रख दिया था. उन्होंने एकदूसरे को जता दिया था कि भले ही उन के बीच में जातिधर्म की या अन्य कोई दीवार आए, वह उस दीवार को चकनाचूर कर के शादी करेंगे. दुनिया की कोई भी ताकत उन्हें जुदा नहीं कर सकेगी. फोन और सोशल मीडिया के जरिए उन का प्यार और मजबूत होता गया.

रूबी 22 साल की हो चुकी थी. बीए सेकेंड ईयर की पढ़ाई के साथ वह टेलरिंग का काम भी सीख रही थी. उस के घर वालों को इस बात की भनक तक नहीं लग पाई थी कि उस का पश्चिम बंगाल के रहने वाले किसी अन्य मजहब के लड़के साथ चक्कर चल रहा है.

हर मांबाप की यही ख्वाहिश होती है कि इज्जत के साथ वह बेटी को विदा करे. इसलिए रूबी के पिता भी उस के लिए लड़का देखने लगे. उन की मंशा थी कि जब तक कोई लड़का मिलेगा, तब तक वह बीए की पढ़ाई पूरी कर लेगी. उन्होंने अपने नातेरिश्तेदारों से भी रूबी के लिए सही लड़का तलाशने को कह दिया था.

इधरउधर भागदौड़ करने के बाद जनवरी, 2014 में रूबी का रिश्ता एक लड़के से तय हो गया और इसी साल अप्रैल महीने में निकाह की तारीख रखी गई. रूबी को जब अपने रिश्ते के बारे में जानकारी मिली तो उसे बहुत दुख हुआ. उस ने सैकड़ों किलोमीटर दूर रहने वाले प्रेमी सुजाय से जीवन भर साथ रहने का वादा किया था. इसलिए रिश्ते की बात पता लगते ही उस ने सुजाय से फोन पर बात की.

प्रेमिका की बातें सुन कर सुजाय भी हैरत में पड़ गया कि अचानक यह कैसे हो गया. रूबी ने कहा कि वह उस के अलावा किसी और से शादी के बारे में सोच भी नहीं सकती. कुछ भी हो जाए वह घर वालों द्वारा तय की गई शादी का विरोध करेगी. इस के लिए यदि उसे अपना घर भी छोड़ना पड़ जाए तो वह उसे भी छोड़ देगी.

‘‘नहीं रूबी, तुम जल्दबाजी में अभी ऐसा कदम मत उठाना. तुम्हारे घर वालों ने अप्रैल में शादी की तारीख रखी है. तुम चिंता मत करो, मैं जल्द ही कोई ऐसा उपाय निकालता हूं कि हमें कोई जुदा न कर पाए.’’ सुजाय ने उसे भरोसा दिलाया.

‘‘सुजाय, जो भी करना है जल्दी करो. कहीं ऐसा न हो कि हम लोग सोचते ही रह जाएं और…’’

‘‘नहीं रूबी, ऐसा हरगिज नहीं होगा. मैं तुम्हें दिलोजान से चाहता हूं और वादा करता हूं कि मैं तुम्हीं से शादी करूंगा.’’

‘‘ठीक है सुजाय, तुम जैसा कहोगे मैं करने को तैयार हूं. तुम बस मुझे एक दिन पहले फोन कर देना. तुम जहां कहोगे, मैं आ जाऊंगी.’’ रूबी खुश होते हुए बोली.

उधर शादी तय करने के बाद रूबी के घर वाले शादी का सामान जुटाने लगे. लेकिन उन्हें बेटी के मन की बात पता नहीं थी. उन्हें पता नहीं था कि जिस की शादी की तैयारी करने में वे फूले नहीं समा रहे हैं, वही बेटी परिवार की इज्जत उछालने के तानेबाने बुनने में लगी है.

इसी बीच 11 फरवरी, 2014 को सुजाय ने रूबी को फोन किया और बताया कि उस के घर वालों ने भी उस की शादी कहीं और तय कर दी है… सुजाय की बात पूरी होने के पहले ही रूबी गुस्से में बोली, ‘‘यह तुम क्या कह रहे हो?’’

‘‘रूबी, तुम ने मेरी पूरी बात तो सुनी नहीं.’’

‘‘बताओ.’’

‘‘देखो रूबी, घर वालों ने मेरी शादी तय जरूर कर दी है, लेकिन मैं उस लड़की से नहीं, बल्कि तुम से शादी करूंगा. मैं जब प्यार तुम से करता हूं तो भला शादी किसी और से कैसे करूंगा?’’

प्रेमी की बात सुन कर रूबी की जान में जान आई. इस के बाद दोनों काफी देर तक सामान्य रूप से बातें करते रहे. उन्होंने तय कर लिया था कि अब जल्द ही कोई ठोस कदम उठाएंगे.

इस के बाद एक दिन सुजाय ने रूबी को फोन किया, ‘‘रूबी, मैं ने पूरा प्लान तैयार कर लिया है कि हमें क्या करना है. ऐसा करना, तुम 21 फरवरी को अपने घर से बंगलुरु एयरपोर्ट पहुंच जाना. इधर से मैं भी वहां पहुंच जाऊंगा. तुम्हारी और अपनी एयर टिकट मैं पहले ही खरीद लूंगा. बंगलुरु से हम लोग दिल्ली आ जाएंगे. यहां शादी करने के बाद मैं तुम्हें अपने घर ले चलूंगा.’’

‘‘घर जाने के बाद अगर तुम्हारे घर वालों ने मुझे नहीं स्वीकारा तो..?’’

‘‘तो क्या हुआ? वे हमारे रिश्ते को स्वीकारें या न स्वीकारें, मुझे चिंता नहीं है. मैं घर छोड़ दूंगा और कहीं दूसरी जगह जा कर रह लेंगे. रूबी, मुझे केवल तुम्हारा साथ चाहिए, जमाना चाहे कुछ भी कहे, मुझे फिक्र नहीं है.’’

‘‘सुजाय, मैं तो मन से तुम्हारी कब की हो चुकी हूं और शादी के बाद हमारी बेताबी भी दूर हो जाएगी. मैं तुम्हारा साथ कभी नहीं छोड़ सकती.’’

‘‘बस, मुझे तुम्हारी इसी हिम्मत की जरूरत है. अच्छा, तुम एक काम करना, घर से निकलते समय ज्वैलरी और कुछ पैसे लेती आना, जो हम लोगों की जरूरत पर काम आ सकेंगे.’’

‘‘तुम फिक्र न करो. अगर तुम न भी कहते तो मैं ये सब साथ लाती. बस तुम मुझे बंगलुरु हवाईअड्डे पर मिलना.’’

‘‘हां, मैं तुम्हें वहीं मिलूंगा. गांव से बंगलुरु आते समय तुम अपना ध्यान रखना.’’

‘‘ओके, तुम भी अपना खयाल रखना.’’ कहने के बाद उन्होंने अपनी बात खत्म कर दी.

रूबी एक ठोस निर्णय ले चुकी थी. वह घर से फरार होने की तैयार करने लगी. 20 फरवरी की शाम तक उस ने घर में रखी 10 तोला सोने की ज्वैलरी और साढ़े 3 लाख रुपए अपने कालेज ले जाने वाले बैग में रख लिए. अगले दिन उसे बंगलुरु एयरपोर्ट पहुंचना था, इसलिए रात भर वह सो नहीं पाई.

अपहरण का कारण बना लिव इन रिलेशन – भाग 3

एक दिन बबीता की मुलाकात रविंद्र से हुई तो रविंद्र ने उसे अपने दिल में बसा लिया. इस के बाद वह उस दुकान के आसपास मंडराने लगा, जहां बबीता काम करती थी. धीरेधीरे बबीता का झुकाव भी रविंद्र की ओर हो गया. दोनों ने एकदूसरे को अपने फोन नंबर भी दे दिए. जल्दी ही दोनों एकदूसरे के काफी करीब आ गए. यहां तक कि उन के बीच जिस्मानी संबंध भी कायम हो गए. उन के दिलों में पनपी मोहब्बत पूरे शबाब पर थी.

रविंद्र ने अपने दोस्त अनिल की मदद से अंजलि और बबीता को बदरपुर में ही दूसरी जगह किराए पर मकान दिलवा दिया और वह खुद भी उन दोनों के साथ लिव इन रिलेशन में रहने लगा.

चंद्रा दिल्ली के सराय कालेखां इलाके में रहने वाले रामपथ चौधरी की बेटी थी. रामपथ चौधरी की चंद्रा के अलावा एक बेटा नरेंद्र चौधरी और 2 बेटियां थीं. वह सभी बच्चों की शादी कर चुके थे. नरेंद्र चौधरी का दूध बेचने का धंधा था. करीब 15 साल पहले उन्होंने चंद्रा का ब्याह नोएडा सेक्टर-5 स्थित हरौला गांव में रहने वाले महावीर अवाना के साथ किया था. महावीर अवाना प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था.

शादी के कुछ सालों तक महावीर और चंद्रा के बीच सब कुछ ठीक रहा, लेकिन बाद में उन के बीच मनमुटाव रहने लगा. इस की वजह यह थी कि वह शराब पीने का आदी था. चंद्रा शराब पीने को मना करती तो वह उस के साथ गालीगलौज करता और उस की पिटाई कर देता था. रोजरोज पति की पिटाई से परेशान हो कर चंद्रा अपनी मां के पास आ जाती थी.

इस दरम्यान वह 2 बच्चों की मां बन चुकी थी. उस की बेटी सोनिया 11 साल की और बेटा प्रिंस 7 साल का था. सोनिया 5वीं में पढ़ रही थी और प्रिंस यूकेजी में. कुछ दिन मां के यहां रहने के बाद चंद्रा ससुराल लौट जाती थी.

20 नवंबर, 2013 को भी चंद्रा बच्चों के साथ मायके आई थी. नानी के यहां आ कर बच्चे बहुत खुश थे, क्योंकि यहां वे एमसीडी के पार्क में मोहल्ले के अन्य बच्चों के साथ जी भर कर खेलते थे. दूसरी ओर नरेंद्र के रिश्ते का भाई रविंद्र कोई कामधंधा नहीं करता था. उस का खर्चा बबीता ही उठाती थी.

एक दिन अंजलि ने रविंद्र से कहा, ‘‘तुम बबीता के साथ बिना शादी किए पतिपत्नी की तरह रह रहे हो. वह कमाती है और तुम खाली रहते हो. आखिर ऐसा कब तक चलेगा. तुम कोई काम क्यों नहीं करते?’’

रविंद्र भी कोई काम करना चाहता था, लेकिन काम शुरू करने के लिए उस के पास पैसे नहीं थे. वह सोचता था कि कहीं से मोटी रकम हाथ लग जाए तो वह कोई कामधंधा शुरू करे. यह बात उस ने अंजलि और बबीता को बताई. काम शुरू करने के लिए रविंद्र 1-2 लाख रुपए की बात कर रहा था. इतने पैसे दोनों बहनों के पास नहीं थे. रविंद्र की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर वह ऐसा क्या करे, जिस से उस के हाथ मोटी रकम लग जाए. काफी सोचने के बाद उस के दिमाग में एक योजना आई तो वह उछल पड़ा.

उस ने उन दोनों से कहा, ‘‘मैं ने एक योजना सोची है, अगर तुम मेरा साथ दो तो वह पूरी हो सकती है.’’

‘‘क्या योजना है?’’ अंजलि ने पूछा.

‘‘हम किसी बच्चे का अपहरण कर लेंगे. फिरौती में जो रकम मिलेगी, उस से हम कोई अच्छा काम शुरू कर सकते हैं. काम जोखिम भरा है, लेकिन अगर सावधानी से किया जाएगा तो जरूर सफल होगा. काम हो जाने पर हम दिल्ली से कहीं दूर जा कर अपनी दुनिया बसा लेंगे.’’

‘‘अगर कहीं पुलिस के हत्थे चढ़ गए तो सारी उम्र जेल में चक्की पीसनी पड़ेगी.’’ अंजलि और बबीता ने कहा.

‘‘पुलिस को पता तो तब चलेगा, जब हम उस बच्चे को जिंदा छोड़ेंगे. मैं ने पूरी योजना तैयार कर ली है.’’ रविंद्र ने अपने मन की बात बता दी.

‘‘मगर अपहरण करोगे किस का?’’

‘‘सराय कालेखां में नरेंद्र की बहन चंद्रा अपने बच्चों के साथ आई हुई है. मैं चाहता हूं कि नरेंद्र के भांजे प्रिंस को किसी तरह उठा लें. उस से हमें मोटी रकम मिल सकती है.’’

बबीता और अंजलि भी उस की बात से सहमत हो गईं. रविंद्र प्रिंस की लाश को ठिकाने लगाने के लिए बड़ा सा एक ट्रैवलिंग बैग भी ले आया.

इस के बाद रविंद्र ने अपने दोस्तों अनिल और संदीप को भी पैसों का लालच दे कर अपहरण की योजना में शामिल कर लिया. संदीप के पास पल्सर मोटरसाइकिल थी, उसी से तीनों ने अपहरण की वारदात को अंजाम देने का फैसला किया. इन लोगों ने तय किया कि फिरौती मिलने के बाद वे बच्चे को मौत के घाट उतार देंगे और उस की लाश के टुकड़ेटुकड़े कर के बैग में भर कर बदरपुर के पास वाले बूचड़खाने में डाल देंगे.

पूरी योजना बन जाने के बाद तीनों प्रिंस को अगवा करने का मौका देखने लगे. 24 नवंबर, 2013 को कुछ बच्चे इलाके में बने एमसीडी पार्क में खेल रहे थे. उस वक्त प्रिंस बच्चों से अलग पार्क के किनारे चुपचाप बैठा था. रविंद्र अनिल के साथ आहिस्ता से वहां गया और उस ने प्रिंस को गोद में उठा लिया. इस से पहले कि प्रिंस शोर मचाता, उस ने उस का मुंह दबा कर उसे शौल से ढक लिया. फिर तीनों मोटरसाइकिल से फरार हो गए. उन्होंने अपने चेहरे रूमाल से ढक रखे थे.

सोनिया ने यह सब देख लिया था, वह भागती हुई घर गई और अपनी मां से सारी बात बता दी.

सभी आरोपियों ने पुलिस के सामने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पुलिस ने अनिल के पास से 6 फोन भी बरामद किए, जिन से उस ने फिरौती की काल्स की थीं. पता चला कि वे फोन भी चोरी के थे. पुलिस ने पल्सर मोटरसाइकिल के अलावा वह बैग भी बरामद कर लिया, जिस में ये लोग प्रिंस को मारने के बाद लाश के टुकड़े भर कर फेंकते.

पूछताछ में आरोपियों ने बताया कि फिरौती की रकम मिलती या न मिलती, वे लोग प्रिंस को मौत के घाट उतारने वाले थे, क्योंकि प्रिंस ने रविंद्र उर्फ रवि गुर्जर को पहचान लिया था. क्राइम ब्रांच ने सभी आरोपियों को 29 नवंबर, 2013 को साकेत कोर्ट में पेश कर के थाना सनलाइट कालोनी पुलिस के हवाले कर दिया.

बाद में सनलाइट कालोनी थाना पुलिस ने रविंद्र उर्फ रवि, अनिल, संदीप, अंजलि और बबीता को अदालत में पेश कर के न्यायिक हिरासत में भेज दिया. कथा लिखे जाने तक सभी आरोपी जेल में बंद थे.

—कथा पुलिस सूत्रों तथा चंद्रा और नरेंद्र चौधरी के बयानों पर आधारित है.

प्यार ने बना दिया नागिन – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला मथुरा के थाना छाता के गांव मांगरौली के रहने वाले हाकिम सिंह की 3 बेटियों में रचना दूसरे नंबर की थी. वह थोड़ा चंचल  स्वभाव की थी, इसलिए हर समय घर की रौनक बनी रहती थी. लेकिन अब उस की यही चंचलता मांबाप को परेशान करने लगी थी, क्योंकि वह जवान हो चुकी थी.

बड़ी बेटी की शादी करने के बाद हाकिम सिंह रचना की शादी के बारे में सोचने लगे थे. लेकिन रचना ने यह कह कर शादी से मना कर दिया कि वह पढ़ना चाहती है. चूंकि वह पढ़ने में ठीकठाक थी, इसलिए हाकिम सिंह ने सोचा कि अगर बेटी पढ़ना चाहती है तो इस में बुराई क्या है.

रचना गांव की लड़कियों में सब से ज्यादा खूबसूरत थी. वह बनसंवर कर तो रहती ही थी, उसे अपनी खूबसूरती पर गुरुर भी था, इसलिए वह सपने भी अपने ही जैसे खूबसूरत साथी के देखती थी.

हाकिम सिंह के पड़ोस में ही राम सिंह का घर था. राम सिंह उसी की जाति बिरादरी का था, इसलिए दोनों परिवारों में खूब पटती थी. इसी वजह से एकदूसरे के यहां आनाजाना भी खूब था. राम सिंह की ससुराल मथुरा के ही थाना शेरगढ़ के गांव राम्हेरा में थी. उन के साले का बेटा रामेश्वर उन के यहां खूब आताजाता था. वह जब भी आता, बूआ के यहां कईकई दिनों तक रुकता.

रामेश्वर शक्लसूरत से तो ठीकठाक था ही, कदकाठी से भी मजबूत था. बातें भी वह बड़ी मजेदार करता था. बूआ के यहां आनेजाने और कईकई दिनों तक रहने की वजह से रचना से भी उस की अच्छीखासी जानपहचान हो गई थी. दोनों में बातें भी खूब होने लगी थी. अपनी लच्छेदार बातों से रामेश्वर रचना को धीरेधीरे अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश करने लगा था.

कुछ ही दिनों में रचना को लगने लगा कि वह जैसा साथी चाहती है, रामेश्वर बिलकुल वैसा ही है. दिल में यह खयाल आते ही उस के मन में रामेश्वर से मिलने की बेचैनी होने लगी. इस का नतीजा यह हुआ कि रामेश्वर जब भी आता, रचना ज्यादा से ज्यादा समय राम सिंह के घर ही बिताती.

रामेश्वर बेवकूफ नहीं था कि वह रचना के दिल की बात न भांप पाता. रचना के मन में उस के लिए क्या है, इस बात का अहसास होते ही रामेश्वर फूला नहीं समाया. बात ही ऐसी थी. रचना जैसी खूबसूरत लड़की के मन में उस के प्रति चाहत जागना सामान्य बात नहीं थी. उस की जगह कोई भी होता, उस का भी यही हाल होता.

रचना के मन में उस के लिए क्या है, इस बात का अहसास होने के बाद भला रामेश्वर ही क्यों पीछे रहता. वह भी अपनी चाहत व्यक्त करने की कोशिश करने लगा यह बात चूंकि किसी के सामने कही नहीं जा सकती थी. इसलिए वह मौके की तलाश में रहने लगा. रामेश्वर की यह तलाश जल्दी ही पूरी हो गई. एक दिन वह बूआ के घर जा रहा था, तभी रास्ते में रचना मिल गई. उस समय वह स्कूल से आ रही थी.

रामेश्वर को तो जैसे मुंहमांगी मुराद मिल गई. क्योंकि उस के मिलते ही रचना ने सहेलियों का साथ छोड़ दिया था. वह रामेश्वर से बातें करने में इस तरह तल्लीन हो गई कि उस की सारी सहेलियां उस से काफी आगे निकल गईं. रामेश्वर को ऐसे ही मौके की तलाश थी. उस ने मौका देख कर दिल की बात कह दी. रचना ने पहले से ही इरादा बना रखा था, इसलिए उसे हामी भरते देर नहीं लगी.

इस तरह उन दोनों की मोहब्बत की बुनियाद रखी गई तो धीरेधीरे उस पर प्यार की दीवारें भी खड़ी होने लगीं. लेकिन उन के प्यार की इमारत तैयार होती, उस के पहले ही लोगों को उन पर शक होने लगा. इस की वजह यह थी कि रचना को लगता था कि वह जो कर रही है, किसी को पता नहीं है. वह बेखौफ होती गई. उस का बेखौफ होना ही उस के प्यार की चुगली कर गया. रामेश्वर से मिलनाजुलना, हंसना खिलखिलाना तमाम लोगों की नजरों में आया तो उस की इन्हीं हरकतों से उस की मां को भी संदेह हो गया.

संदेह हुआ तो रामवती रचना पर नजर रखने लगी. जल्दी ही उसे पता चल गया कि रचना का पड़ोसी राम सिंह के रिश्तेदार रामेश्वर से कुछ ज्यादा ही मिलनाजुलना होता है. रामवती के लिए यह चिंता की बात थी. उस से भी ज्यादा चिंता की बात यह थी कि बिटिया पढ़ीलिखी होने के साथसाथ बालिग भी हो चुकी थी. अगर वह कोई उलटासीधा कदम उठा लेती तो उन के पास तमाशा देखने के अलावा दूसरा कोई उपाय नहीं था. इसलिए उस ने हाकिम सिंह से पूरी बात बता कर जल्दी से जल्दी रचना के लिए घरवर ढूंढने को कहा.

बेटी की इस हरकत के बारे में जान कर हाकिम सिंह हैरान रह गया. जिस बेटी को उस ने हमेशा पलकों पर बैठाए रखा, वही उस की इज्जत का जनाजा निकालने पर तुली थी. हाकिम सिंह ने पत्नी की बातें सुन तो ली थीं, लेकिन उसे विश्वास नहीं हुआ था कि रचना ऐसा कर सकती है. सच्चाई जानने के लिए उन्होंने रचना से पूछा तो वह साफ मुकर गई. उस ने कहा कि उस का रामेश्वर से कोई लेनादेना नहीं है.

रचना ने भले ही झूठ बोल कर बाप को संतुष्ट कर दिया था, लेकिन हाकिम सिंह को अब रामेश्वर खटकने लगा था. उस ने राम सिंह से बात की. रामेश्वर भले ही रिश्तेदार था, लेकिन हाकिम सिंह पड़ोसी ही नहीं था, बल्कि जातिबिरादरी का भी था. बात गांव और परिवार की इज्जत की थी, इसलिए उस ने रामेश्वर को काफी डांटाफटकारा. उस ने उस से यहां तक कह दिया कि वह उस के घर तभी आए, जब कोई बहुत जरूरी काम हो.

रचना पर भी सख्ती की जाने लगी, जिस से रामेश्वर से उस का मिलनाजुलना नामुमकिन सा हो गया. बंदिशों से प्यार कम होने के बजाय बढ़ता ही है. रचना और रामेश्वर का प्यार बढ़ा जरूर, लेकिन वे कुछ कर पाते, उस के पहले ही राम सिंह की मदद से हाकिम सिंह ने रचना की शादी मथुरा के ही थाना गोवर्धन के गांव मडौरा के रहने वाले पतिराम के बेटे बिहारी से तय कर दी.

दरअसल, पतिराम की बेटी राम सिंह की सलहज थी. इसी रिश्ते की वजह से राम सिंह ने यह शादी तय करा दी थी. पतिराम का खाता पीता परिवार था. उस के 3 बेटे थे, मोहर सिंह, बिहारी सिंह और रोहतान सिंह. पतिराम के पास खेती की जो जमीन थी, उस पर पतिराम और उस के बेटे मेहनत से खेती करते थे, इसलिए घरपरिवार में खुशी और समृद्धि थी.