शादी पर दिया मौत का तोहफा

‘‘मैं जया को बेइंतहा चाहता था, बहुत प्यार करता था उस से. इतना प्यार कि मैं पागल हो गया था उस के लिए. अपने जीतेजी मैं उसे किसी और की जागीर बनते नहीं देख सकता था. इसलिए मैं ने उसे मौत के घाट उतार दिया.’’ कहतेकहते अनुराग पलभर के लिए रुका, फिर आगे बोला, ‘‘अब ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, फांसी हो जाएगी. मुझे फांसी भी मंजूर है. कम से कम एक बार में ही मौत तो आ जाएगी. वह किसी और की हो जाती तो मुझे रोजरोज मरना पड़ता.’’

पुलिस हिरासत में यह सब कहते हुए अनुराग नामदेव अपना गुनाह कुबूल कर रहा था या फिर अपनी मोहब्बत की दास्तां सुना कर दिल की भड़ास निकाल रहा था, समझ पाना मुश्किल था. उस की ये बातें सुन कर वहां मौजूद पुलिसकर्मी भी हैरान थे. वजह यह कि इस कातिल के चेहरे पर शर्मिंदगी या पछतावा तो दूर की बात, किसी भी तरह का डर नहीं था.

पुलिस हिरासत में अच्छे अच्छे अपराधियों के कसबल ढीले पड़ जाते हैं, पर अनुराग का आत्मविश्वास वाकई अनूठा था. उस की हर बात जया से अपनी मोहब्बत के इर्दगिर्द घूम रही थी. मानों दुनिया में उस के लिए जया और उस के प्यार के अलावा और कुछ था ही नहीं.

लालघाटी क्षेत्र भोपाल का वह हिस्सा है, जहां शहर खत्म हो जाता है और उपनगर बैरागढ़ शुरू होता है. लालघाटी का चौराहा और रास्ता दोनों भोपाल-इंदौर मार्ग पर पड़ते हैं, जहां चौबीसों घंटे आवाजाही रहती है. एयरपोर्ट भी इसी रास्ते पर है और शहर का चर्चित वीआईपी रोड भी इसी चौराहे पर आ कर खत्म होता है.

पिछले 15 सालों में लालघाटी चौराहे और बैरागढ़ के बीच करीब 2 दर्जन छोटेबड़े मैरिज गार्डन बन गए हैं. इन्हीं में एक है सुंदरवन मैरिज गार्डन. शादियों के मौसम में यह इलाका काफी गुलजार हो उठता है. रास्ते के दोनों तरफ बारातें ही बारातें दिखती हैं. घोड़ी पर सवार दूल्हे, उन के आगे नाचतेगाते बाराती और आसमान छूती रंगबिरंगी आतिशबाजी. नजारा वाकई देखने वाला होता है. शादियों के चलते इस रास्ते पर ट्रैफिक जाम की समस्या आम बात है.

8 मई को सुंदरवन मैरिज गार्डन में रोजाना के मुकाबले कुछ ज्यादा रौनक और चहलपहल थी. रात 8 बजे से ही मेहमानों के आने का सिलसिला शुरू हो गया था. इस मैरिज गार्डन में डा. जयश्री नामदेव और डा. रोहित नामदेव की शादी होनी थी. वरवधू दोनों ही भोपाल के हमीदिया अस्पताल में कार्यरत थे. डा. जयश्री बाल रोग विभाग में थीं और डा. रोहित सर्जरी डिपार्टमेंट में कार्यरत थे.

जयश्री और रोहित की शादी एक तरह से अरेंज मैरिज थी. जयश्री नामदेव 4 साल पहले ही जबलपुर मेडिकल कालेज से पीजी की डिग्री ले कर भोपाल के हमीदिया अस्पताल में बाल रोग विशेषज्ञ के पद पर तैनात हुई थीं. जयश्री के आने से पहले हमीदिया अस्पताल में एक ही डाक्टर नामदेव थे डा. रोहित. अब दूसरी नामदेव डा. जयश्री आ गई थीं. डा. जयश्री स्वभाव से बेहद हंसमुख और मिलनसार थीं. अस्पताल में स्वाभाविक तौर पर उन की खूबसूरती की चर्चा भी होती रहती थी.

अस्पताल में नामदेव सरनेम वाले 2 डाक्टर थे और दोनों कुंवारे. अगर दोनों शादी कर लें तो कितना अच्छा रहेगा. जयश्री और रोहित को ले कर अस्पताल में अकसर इस तरह का हंसीमजाक होता रहता था. डा. जयश्री के पिता घनश्याम नामदेव को जब पता चला कि उन्हीं की जाति का एक लड़का हमीदिया अस्पताल में डाक्टर है तो उन्होंने अपने स्तर पर पता लगा कर जयश्री की शादी की बातचीत चलाई.

रोहित के पिता रघुनंदन नामदेव जिला हरसूद के गांव छनेरा के रहने वाले थे और सिंचाई विभाग में कार्यरत थे. जयश्री और रोहित की शादी की बात चली तो रोहित के घर वाले भी तैयार हो गए. दोनों ही परिवारों के लिए यह खुशी की बात थी, क्योंकि नामदेव समाज में गिनती के ही लड़के लड़कियां डाक्टर हैं.

घनश्याम नामदेव मध्यप्रदेश विद्युत मंडल के कर्मचारी थे, जो रिटायरमेंट के बाद भोपाल के करोंद इलाके में बस गए थे. करोंद में उन्होंने खुद का मकान बनवा लिया था. उन की पत्नी लक्ष्मी घरेलू लेकिन जिम्मेदार महिला थीं. नामदेव दंपति की एक ही बेटी थी जयश्री. होनहार और मेधावी जयश्री ने 2003 में प्री मेडिकल परीक्षा पास करने के बाद भोपाल के गांधी मैडिकल कालेज से एमबीबीएस किया था और फिर जबलपुर मैडिकल कालेज से पोस्ट ग्रेजुएट.

बहरहाल, डा. रोहित और डा. जयश्री की शादी तय हो गई. 3 फरवरी, 2014 को पुराने भोपाल के एक होटल में रोहित और जयश्री की सगाई की रस्म पूरी की गई. सगाई के बाद दोनों पक्ष शादी की तैयारियों में लग गए.

घनश्याम की छोटी बहन अंगूरीबाई का विवाह सागर जिले के गढ़ाकोटा कस्बे में हुआ था. अब से डेढ़ साल पहले उस के पति कल्लूराम की कैंसर से मौत हो गई थी. बहनोई के अंतिम संस्कार का सारा खर्च घनश्याम ने ही उठाया था. अंगूरीबाई के 2 बेटे थे अनुराग नामदेव और अंबर नामदेव. अंबर अभी पढ़ रहा था.  इस परिवार का खरचा कपड़ों के पुश्तैनी व्यापार से चलता था. लेकिन उन का यह व्यापार मामूली स्तर का था, जिसे कल्लूराम के छोटे भाई उमाशंकर नामदेव संभालते थे.

पति की मृत्यु के बाद अंगूरी की सारी दुनिया अपने दोनों बेटों के इर्दगिर्द सिमट कर रह गई थी, क्योंकि वह खुद भी कैंसर की चपेट में आ गई थी. बहन की वजह से घनश्याम उस के और उस के बच्चों को ले कर चिंतित रहते थे. समयसमय पर वह उन की हर मुमकिन मदद भी करते रहते थे.

जब कल्लूराम जीवित थे तो एक दफा उन्होंने घनश्याम से अनुराग की नौकरी के लिए बात छेड़ी थी. इस पर उन्होंने उसे भोपाल आ कर बैंकिंग की कोचिंग लेने को कहा था. अनुराग को सहूलियत यह थी कि रहने और खानेपीने के लिए मामा का घर था. घनश्याम ने कोचिंग की फीस देने के लिए भी कह दिया था. यह सन 2005 की बात है. तब जयश्री एमबीबीएस के दूसरे साल में थी.

मामा से बातचीत के बाद अनुराग भोपाल आ गया और सबधाणी कोचिंग इंस्टीट्यूट में पढ़ाई करने लगा. मामा मामी और ममेरी बहन जयश्री उस का पूरा खयाल रखती थी. सभी को उस के घर के हालात की वजह से सहानुभूति थी. कोचिंग के दौरान एक बार अनुराग गंभीर रूप से बीमार पड़ा तो जयश्री और उस के मामा मामी ने उसे हमीदिया अस्पताल में भरती करवाया. उस की देखभाल से ले कर उस के इलाज का सारा खर्च भी उन्होेंने ही उठाया. मामा के यहां रहते हुए अनुराग जयश्री को एकतरफा प्यार करने लगा था.

कोचिंग के बाद अनुराग का चयन एचडीएफसी बैंक में पीओ के पद पर हो गया. उसे पोस्टिंग मिली सागर में. नौकरी जौइन करने के बाद वह सागर के पौश इलाके सिविल लाइंस में किराए का मकान ले कर रहने लगा.

लेकिन सागर जाने के बाद भी भोपाल से उस का नाता नहीं टूटा. अनुराग जयश्री को प्यार से जया कहता था, लेकिन उस का यह प्यार एक भाई का नहीं, बल्कि एक ऐसे आशिक का था, जिसे न तो रिश्तेनातों का लिहाज था और न मान मर्यादाओं की परवाह.

दरअसल अनुराग मन ही मन जयश्री को चाहने लगा था और यह मान कर चल रहा था कि वह भी उसे चाहती है. नजदीकी रिश्तों में इस उम्र में दैहिक आकर्षण स्वाभाविक बात है, पर समझ आने के बाद वह खुद ब खुद खत्म हो जाता है. लेकिन अनुराग यह बात समझने को तैयार नहीं था कि हिंदू सभ्यता में सामाजिक रूप से भी और कानूनी रूप से भी ऐसे रिश्तों में प्यार, सैक्स और शादी सब कुछ वर्जित है.

अनुराग ने जब अपना प्यार जयश्री पर जाहिर किया तो वह सकते में आ गई. अनुराग उस का फुफेरा भाई था और जयश्री को सपने में भी उस से ऐसी उम्मीद नहीं थी. जयश्री ने अपने स्तर पर ही अनुराग को समझाने की कोशिश की. लेकिन अनुराग आसानी से समझने वालों में नहीं था. जब भी मौका मिलता, वह उस से अपने प्यार की दुहाई दे कर शादी की बात कहता रहता. जब अनुराग जयश्री पर बराबर दबाव बनाने की कोशिश करने लगा तो मजबूरी में उस ने यह बात अपने मातापिता को बता दी.

हकीकत जान कर लक्ष्मी और घनश्याम के पैरों तले से जमीन खिसक गई. फिर भी उन्होंने बेटी को सब्र और समझदारी से काम लेने की सलाह दी और जल्दी ही इस परेशानी का हल निकालने का भरोसा दिलाया. निकट की रिश्तेदारी का मामला था. ऐसे में इस का एक ही रास्ता था कि अंगूरी से बात की जाए, ताकि संबंध खराब न हों. बात की भी गई. बड़े भाई के उपकारों तले दबी अंगूरी ने उन्हें आश्वस्त किया कि वह अनुराग को समझाएगी.

लेकिन अनुराग के तथाकथित प्यार का पागलपन समझने समझाने की हदें पार कर चुका था. मां के समझाने पर वह मान भी गया, पर दिखावे और कुछ दिनों के लिए. वक्त गुजरता रहा, लेकिन अनुराग के दिलोदिमाग से ममेरी बहन जयश्री की प्रेमिका की छवि नहीं मिट सकी. मायूस हो कर वह लुटेपिटे आशिकों की तरह दर्द भरे गानों और शेरोशायरी में अपने बीमार दिल की दवा ढूंढने लगा. लेकिन इस से उस का दर्द बढ़ता ही गया.

3 फरवरी को जयश्री और रोहित की सगाई थी. जयश्री के पिता घनश्याम ने इस की भनक अनुराग को नहीं लगने दी. लेकिन रोहित ने सगाई के 2 दिनों बाद 5 फरवरी को अपनी सगाई के फोटो फेसबुक पर शेयर किए तो उन्हें देख कर अनुराग बिफर उठा. उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उस के जख्मों पर नमक छिड़क दिया हो.

उस ने बगैर वक्त गंवाए घनश्याम और जयश्री से संपर्क कर के न केवल शादी की अपनी बेहूदी ख्वाहिश जाहिर की, बल्कि न मानने पर उन्हें देख लेने की धमकी भी दे डाली. उस की बात सुन कर घनश्याम चिंता में पड़ गए. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें, क्योंकि कोई कानूनी काररवाई करते तो बदनामी का डर था. वैसे भी एक तो सगी बहन के लड़के का मामला था, दूसरे ऐसे मामलों में बात उछलने पर बदनामी लड़की की ही होती है.

डा. जयश्री इसलिए ज्यादा चिंतित नहीं थी, क्योंकि उन्होंने अपने मंगेतर डा. रोहित को अनुराग के बारे में सब कुछ बता दिया था. यह एक पढ़ीलिखी युवती का अपने भविष्य और दांपत्य के मद्देनजर समझदारी भरा कदम था.

उधर फेसबुक पर जयश्री और राहुल की सगाई के फोटो देखदेख कर अनुराग का जुनून और बढ़ता जा रहा था. धमकी के बावजूद घनश्याम और जयश्री पर कोई असर न होता देख वह और भी बौखला गया था. उसे लग रहा था कि अब जयश्री उसे नहीं मिल पाएगी.

दूसरी ओर भोपाल में शादी की तैयारियों में लगे घनश्याम चिंतित थे कि कहीं अनुराग कोई बखेड़ा न खड़ा कर दे. उस की बेहूदी हरकतों के बारे में सोचसोच कर कभीकभी वह यह सोच कर गुस्से से भी भर उठते थे कि जिस भांजे को बेटे की तरह रखा, वही आस्तीन का सांप निकला. उन के दिमाग में अनुराग की यह धमकी बारबार कौंध जाती थी कि अगर मेरी बात नहीं मानी तो अंजाम भुगतने को तैयार रहना.

उन के डर की एक वजह यह भी थी कि वह अनुराग के स्वभाव को जानते थे. लेकिन जवान बेटी का बाप होने की बेबसी उन्हें कोई कदम नहीं उठाने दे रही थी. इसलिए शादी के कुछ दिनों पहले उन्होंने अपने भतीजे शैलेंद्र नामदेव से इस बारे में सलाहमशविरा किया तो उस ने फोन पर अनुराग को ऊंचनीच समझाने की कोशिश की. इस पर अनुराग का एसएमएस आया कि तू अपनी दोनों बेटियों का खयाल रख, उन्हें अभी बहुत जीना है.

आखिरकार डरते सहमते 8 मई आ गई. उस दिन जयश्री और रोहित की शादी थी. रात के करीब 8 बजे रोहित और जयश्री स्टेज पर बैठे थे. परिचित और रिश्तेदार आने शुरू हुए तो 9 बजे तक मैरिज गार्डन में काफी भीड़ जमा हो गई. हर कोई खुश था. खासतौर से दोनों के घर वाले और हमीदिया अस्पताल के बाल रोग विभाग और शल्य चिकित्सा विभाग के डाक्टर्स और कर्मचारी.

खाने के पहले या बाद में लोग स्टेज पर जा कर वरवधू को शुभकामनाएं और आशीर्वाद दे रहे थे. घनश्याम और लक्ष्मी भी लोगों की शुभकामनाएं लेते यहां वहां घूम रहे थे. उन की जिंदगी का वह शुभ समय नजदीक आ रहा था, जब उन्हें एकलौती बेटी के कन्यादान की जिम्मेदारी निभानी थी.

तभी अचानक भीड़ में अनुराग को देख कर लक्ष्मी के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं तो वह पति को ढूंढने लगी. घनश्याम नहीं दिखे तो कुछ सोच कर वह एकांत में जा कर खड़ी हो गईं. उसे इस तरह खड़ा देख, उस की एक पड़ोसन ने आ कर पूछा भी कि क्या हुआ जो इस तरह घबराई हुई हो. इस पर लक्ष्मी ने इशारा कर के पड़ोसन को दरवाजे के पास खड़े अनुराग के बारे में बताया.

अनुराग एकदम सामान्य नजर आ रहा था और मेहमानों की तरह ही घूम रहा था. उस के गले में सफेद रंग का गमछा लटका था. तब तक रात के 10 बज चुके थे और भीड़ छटने लगी थी. इस के बावजूद स्टेज के पास वरवधू के साथ फोटो खिंचवाने वालों की लाइन लगी हुई थी. दूसरी ओर अनुराग की निगाहें स्टेज पर ही जमी थीं.

अचानक अनुराग स्टेज की तरफ बढ़ा और पास जा कर रोहित को बधाई दी. इस से पहले कि डा. रोहित उसे धन्यवाद दे पाते, अनुराग ने फुरती से रिवाल्वर निकाला और जयश्री की तरफ तान कर 2 फायर कर दिए. दोनों गोलियां जयश्री के सीने में धंस गईं. कोई कुछ समझ पाता, इस के पहले ही डा. जयश्री स्टेज पर गिर  पड़ीं. इसी बीच अनुराग ने अविलंब रोहित को निशाने पर ले लिया, लेकिन तब तक वह संभल चुके थे. नतीजतन गोली स्टेज के पीछे जा कर लगी, जिस के कुछ छर्रे रोहित के दोस्त कचरू सिसोदिया के पैर में लगे.

करीब 2 मिनट सकते में रहने के बाद जब लोगों को समझ में आया कि दुलहन पर गोली चली है तो उन्होंने गोली चलाने वाले अनुराग को पकड़ कर उस की धुनाई शुरू कर दी. उधर स्टेज पर रोहित जयश्री को संभाल रहे थे. इस बीच वहां मौजूद लेगों में से किसी ने पुलिस और अस्पताल में खबर कर दी थी.

जयश्री को तुरंत अस्पताल ले जाया गया. लेकिन डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. फायर से भगदड़ मच गई थी. डर कर कई लोग वहां से भाग भी गए थे. जहां कुछ देर पहले तक हंसीमजाक चल रहा था, रौनक थी, वहां अब सन्नाटा पसर गया था. स्टेज पर रखे तोहफे और गुलदस्ते डा. जयश्री के खून से सन गए थे.

गुस्साई भीड़ ने अनुराग की जम कर धुनाई की थी, जिस से वह बेहोश हो कर गिर गया था. पुलिस आई तो पता चला कि वह जिंदा है. उसे तुरंत इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया. अब तक किसी को यह नहीं मालूम था कि अनुराग दुलहन का ममेरा भाई है. दूसरे दिन जिस ने भी सुना, स्तब्ध रह गया. अपनी ममेरी बहन को माशूका मानने वाले इस सिरफिरे आशिक की चलाई 2 गोलियों की गूंज भोपाल में ही नहीं, पूरे देश भर में सुनाई दी.

जब जयश्री की मौत की पुष्टि हो गई तो रात 2 बजे रोहित और उस के पिता बारात वापस ले कर अपने गांव छनेरा चले गए. एक ऐसी बारात, जिस के साथ दुल्हन नहीं थी.

बाद में पता चला कि वारदात के दिन अनुराग सागर से अपने एक दोस्त की मोटरसाइकिल मांग कर लाया था और देसी रिवाल्वर उस ने कुलदीप नाम के एक दलाल से 17 हजार रुपए में खरीदी थी. कत्ल की सारी तैयारियां उस ने पहले ही कर ली थीं. सुंदरवन मैरिज गार्डन में प्रवेश के पहले ही वह पूरी रिहर्सल कर चुका था. उसे इंतजार बस मौका मिलने का था, जो उस वक्त मिल गया जब डा. रोहित और जयश्री स्टेज पर लोगों की शुभकामनाएं ले रहे थे.

पुलिस हिरासत में अनुराग ने बताया कि जैसे ही जयश्री ने राहुल के गले में माला डाली, मैं ने अपना आपा खो दिया था. मुझे नहीं मालूम कि लोगों ने मुझे मारा भी था. मैं तो खुद को भी गोली मारने वाला था, लेकिन मौका नहीं मिला.

घायल अनुराग को हमीदिया अस्पताल के बजाय दूसरे अस्पताल में भर्ती कराया गया था. दरअसल पुलिस को डर था कि कहीं अस्पताल के लोग उसे मार न डालें. क्योंकि जयश्री वहां काम करती थी. इस बीच कोहेफिजा थाना पुलिस ने उस के खिलाफ जयश्री की हत्या का मामला दर्ज कर लिया था.

दूसरे दिन पोस्टमार्टम के बाद जब जयश्री की अर्थी उठी तो नामदेव दंपत्ति का दुख देख सारा मोहल्ला रो उठा. लक्ष्मी और घनश्याम रह रह कर बेटी की अर्थी पर सिर पटक रहे थे. हमीदिया अस्पताल में भी मातम छाया था.

एकतरफा प्यार में डूबा अनुराग दरअसल मनोरोगी बन गया था. जिस जुनून में उस ने वारदात को अंजाम दिया था, उसे इरोटोमेनिया भी कहते हैं और डिल्यूजन औफ लव भी. इस रोग में मरीज अपनी बनाई मिथ्या धारणा को ही सच मान कर चलता है और किसी के समझाने पर भी नहीं मानता. ऐसा मरीज बेहद शातिर और खतरनाक होता है.

जयश्री और अनुराग के बीच में क्या कभी प्रेमिल संबंध रहे थे, जैसा कि अनुराग कह रहा है, इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता. बहरहाल सच जो भी रहा हो, जयश्री के साथ चला गया. घनश्याम नामदेव ने बदनामी से बचने की जो कोशिश की थी, वह उन्हें काफी महंगी पड़ी. अगर वह वक्त रहते भांजे के खिलाफ कानूनी काररवाई करते तो जयश्री बच सकती थी.

कातिल निगाहों ने बनाया कातिल

चाहत का कहर : माशूका की खातिर

कैसे हुईं 9 दिन में 3 बहनें गायब

दगा दे गई सोशल मीडिया की गर्लफ्रैंड – भाग 4

तभी अनिल ने विवेक से बातचीत शुरू करते हुए कह  “;मुझे आप दोनों बारे में सब कुछ पता है. तृप्ति मेरी भी दोस्त है, इसलिए आप को समझा रहा हूं कि अब आप इन का पीछा करना छोड़ दो, यही बेहतर होगा.”

सुन कर विवेक आपे से बाहर हो गया और खड़े हो कर बोला  “आप कुछ नहीं जानते हैं हमारे बारे में. फालतू में ही कबाब में हड्डी बन रहे हो.”

सुन कर तैश मैं आ कर अनिल ने कहा “पहली बात तो यह है कि मैं वेजिटेरियन हूं, इसलिए कबाब और हड्डी की बात मत करो. और दूसरी बात यह है कि जबरदस्ती की दोस्ती ज्यादा दिन नहीं चलती. इसलिए तुम्हें फिर से समझा रहा हूं कि तृप्ति का पीछा छोड़ दो, वरना…”

“मुझे धमकी दे रहे हो,” कह कर विवेक ने आंखें तरेरीं.

तो मुसकराकर अनिल ने कहा, “धमकी नहीं चेतावनी दे रहा हूं कि इन का पीछा कर परेशान करने की शिकायत अगर पुलिस में चली गई तो मुश्किल में पड़ जाओगे.”

प्रोफेसर अनिल की चेतावनी सुन कर विवेक गुस्से से आग बबूला हो गया और पैर पटकता हुआ वहां से चला गया. रेस्टोरेंट में बैठे लोग उन की तरफ देखने लगे थे इसलिए प्रोफेसर अनिल तथा तृप्ति भी रेस्टोरेंट से बाहर निकल गए. विवेक और प्रोफेसर अनिल के बीच हुई इस तकरार से तृप्ति परेशान और भयभीत नजर आ रही थी जिसे देख कर अनिल ने उसे समझाते हुए कहा, “घबराओ नहीं, तुम आगे आगे चलो मैं पीछे आ रहा हूं. ज्यादा परेेशान करे तो इस की पुलिस से शिकायत कर देना, पक्का इलाज कर देगी पुलिस.”

जिस पर तृप्ति अपनी स्कूटी स्टार्ट कर घर की तरफ चल दी. उस के पीछेपीछे प्रोफेसर अनिल भी कार से चल दिया. रोडवेज बस स्टैंड से थोङ़ा आगे पहुंचने पर अचानक विवेक भी स्कूटर से उस का पीछा करने लगा

सीआरपीएफ ग्राउंड के आगे ओवरब्रिज होते हुए मेयो कालेज की तरफ घूम कर तृप्ति ने स्कूटी आगे बढ़ाई ही थी कि तभी मदार पुुलिस चौकी के आगे सुनसान जगह देख कर अचानक विवेक ने आगे आ कर तृप्ति की स्कूटी रुकवा दी और अपना स्कूटर स्टार्ट छोड़ कर ही तृप्ति के पास आ कर विवेक ने सड़क पर फिर एक बार तृप्ति के सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया. उस की सड़क छाप मजनू जैसी हरकत देख कर तृप्ति बुरी तरह से भड़क उठी और चीख कर बोली, “मेरा पीछा छोङ़ो, नहीं करूंगी शादी तुम से जाओ.”

उस की आवाज सुन कर सड़क के किनारे टपरी पर चाय पी रहे लोग उधर देखने लगे और तभी ऐसा कुछ घटित हो गया जिस की किसी को भी उम्मीद नहीं थी.

चाकू के पहले वार से बचने के लिए तृप्ति ने हाथों से रोकना चाहा तो हथेलियों पर गहरे घाव हो गए. जब कि गुस्से से पागल हो चुके विवेक ने चाकू का दूसरा वार तृप्ति के दिल पर किया. चाकू के वार ने उस का दिल चीर कर रख दिया और खून का फव्वारे से हत्यारे के हाथ-पैर और कपड़े भीग गए. जबकि चाकू के तीसरे वार से उस के फेफड़े क्षति ग्रस्त हो गए थे. वह निढाल होकर सङक पर गिर गई.

तृप्ति वह स्कूटी अपनी एक परिचित महिला से ले कर तथा अपनी बेटी को उस के पास छोड़ कर कोई जरूरी काम बोल कर सुनील से मिलने इंजीनियरिंग कालेज गई थी. वहीं तृप्ति के घर वाले भी घटना के बारे में कुछ भी नहीं बता सके. वो बेटी के दुर्भाग्य पर आंसू बहा रहे थे. पुलिस ने तृप्ति के शव का पोस्टमार्टम हो जाने के बाद उस का शव उस के परिजनों को सौंप दिया.

एसएचओ श्याम ङ्क्षसह चाारण ने आरोपी विवेक उर्फ विवान से पूछताछ के बाद उसे अदालत में पेश कर 2 दिन का पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उस की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू, स्कूटर और खून से सने कपड़े बरामद कर लेने के बाद फिर से अदालत में पेश किया. वहां से उसे अजमेर के सेंट्रल जेल भेज दिया.

आरोपी विवेक सिंह ने बताया कि वह पिछले ढाई साल से तृप्ति के साथ लिवइन रिलेशनशिप में रह रहा था. उस पर वह हजारों रुपए खर्च कर चुका था. यही नहीं उस ने प्यार में पागल हो कर अपने हाथ पर तृप्ति के नाम का टैटू भी गोदवा रखा था. वह अपनी कमाई का बङ़ा हिस्सा उस पर खर्च कर देता था. वह उस से शादी कर जिंदगी गुजारना चाहता था. अपने नए दोस्त अनिल के आ जाने पर तृप्ति के तेवर ही बदल गए.

उस की इस बेरुखी से उसे बेवफाई की बू आने लगी, जिसे वह सहन नहीं कर पाया इसलिए उसने उसे जान से मार दिया. लंबी सांस ले कर उस ने कहा उसे अपने किए पर कोई पछतावा नहीं है.

पुलिस ने पुख्ता तैयारी के साथ अजमेर के जिला एवं सत्र न्यायालय यमें आरोपी विवेक सिंह उर्फ विवान के खिलाफ चार्जशीट पेश कर दी थी.

(कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित)

कातिल प्रेम पुजारी

प्यार की वो आखिरी रात – भाग 4

प्यार की थी वो आखिरी रात

रात 9 बजे के पहले ही दीपक जागेश्वर मंदिर परिसर पहुंच गया और बरखा की काल आने का इंतजार करने लगा. इधर बरखा व घर के अन्य सदस्य खाना खा कर आए ही थे सो सब सोने चले गए. बरखा, उस के दोनों बच्चे, बहन व मां एक कमरे में लेट गए. जबकि उस के पिता दूसरे कमरे में.

रात 10 बजे तक सभी गहरी नींद में सो गए. लेकिन बरखा को नींद कहां थी. वह छत पर जा कर चहलकदमी करने लगी. छत पर स्थित कमरे की भी उस ने साफसफाई कर दी थी.

रात करीब साढ़े 10 बजे बरखा ने दीपक को काल की और घर के दरवाजे पर आने को कहा. फोन पर बतियाते बरखा और दीपक दरवाजे पर आए. बरखा ने दरवाजा खोल कर दीपक को घर के अंदर कर लिया. इस के बाद वह दीपक को छत पर बने कमरे में ले आई. यहां दोनों ने पहले शारीरिक भूख मिटाई, फिर आपस में बतियाने लगे.

दीपक बोला, “बरखा, मैं तुम से बेइंतहा प्यार करता हूं. तुम्हारे बिना अब नहीं रह सकता. तुम मेरे साथ भाग चलो. हम दोनों अपनी नई दुनिया बसा लेंगे. इस बार हम इतनी दूर जाएंगे, जहां कोई हमें खोज न पाएगा.”

“दीपक अब यह सब संभव नहीं. अब मैं एक नहीं 2 बच्चों की मां हंू. छोटा बेटा बस 9 महीने का है. उसे छोड़ कर मैं तुम्हारे साथ नहीं जा सकती. फिर भागने से 2 परिवारों की इज्जत भी मिट्टी में मिल जाएगी. मेरा तुम्हारा मिलन जैसे आज हुआ है, वैसा आगे भी होता रहेगा. मैं भी तुम्हारे लिए तड़पती रहती हूं. तुम सदा हमारे दिल में रहते हो.”

“लेकिन मुझे अब छिपछिप कर मिलना पसंद नहीं है. तुम्हें मेरे साथ आज ही चलना होगा. नहीं चली तो अनर्थ हो जाएगा.”

“क्या अनर्थ हो जाएगा. मुझे मार डालोगे क्या?” बरखा गुस्से से बोली.

“हां, मैं तुझे मार डालूंगा और खुद को भी मिटा लूंगा,” दीपक भी गुस्से से भर उठा.

बरखा ने दीपक की बात को मजाक समझा और हंसने लगी. इस पर दीपक का गुस्सा और बढ़ गया. उस ने उस का गला पकड़ा और कसने लगा. बरखा बेहोश हुई तो दीपक ने जेब से चाकू निकाल लिया और बरखा का गला रेत दिया.

प्रेमिका की हत्या करने के बाद दीपक चला गया. प्रेमिका के घर से दीपक गुरुदेव चौराहे पर आया. यहां से आटो पर बैठ कर झकरकटी आया. अब तक वह ग्लानि व पकड़े जाने के डर से घबराने लगा था. कुछ देर वह झकरकटी पुल के नीचे रेल लाइन के किनारे बैठा रहा फिर देर रात रेल से कट कर आत्महत्या कर ली.

मायके में लहूलुहान मिली बरखा

इधर रात लगभग 12 बजे बरखा का मासूम छोटा बेटा जाग गया. भूख से वह रोने लगा तो सरला की आंखें खुल गईं. उस ने छोटी बेटी कल्पना को जगा कर कहा कि देखो बरखा कहां है? उस का बच्चा भूख से रो रहा है.

कल्पना बरखा को खोजती छत पर गई तो वहां कमरे में बरखा की खून से तरबतर लाश देख कर वह चीख पड़ी. उस की चीख सुन कर सरला वहां पहुंची फिर उस का पति ओमप्रकाश सैनी. दोनों बेटी का शव देख कर अवाक रह गए.

ओमप्रकाश सैनी ने पहले बरखा के पति कृष्णकांत को मौत की सूचना दी फिर थाना नवाबगंज पुलिस को बेटी की हत्या की खबर दी. सूचना पाते ही एसएचओ प्रमोद कुमार पांडेय पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर आ गए. उन की सूचना पर पुलिस कमिश्नर बी.पी. जोगदंड, एडिशनल डीसीपी (सेंट्रल) आरती सिंह तथा एसीपी (कर्नलगंज) मो. अकलम भी घटनास्थल आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. मृतका बरखा की उम्र 30 वर्ष के आसपास थी. उस की हत्या चाकू जैसे किसी नुकीले हथियार से की हुई लग रही थी. घटनास्थल से पुलिस को मृतका का मोबाइल फोन मिला, जिसे अधिकारियों ने अपनी सुरक्षा में ले लिया.

अब तक मृतका का पति कृष्णकांत तथा उस के मातापिता भी आ गए थे. पुलिस अधिकारियों ने मृतका के माता पिता तथा पति से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि रात 9 बजे तक सब कुछ सामान्य था. उस के बाद सब सो गए. आशंका है कि रात में बदमाश लूटपाट के इरादे से घुसे, शायद बरखा जाग गई तो उन्होंने उस का गला रेत दिया. पूछताछ के बाद अधिकारियों ने शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपत राय अस्पताल भिजवा दिया.

रेलवे लाइनों में मिली दीपक गुप्ता की लाश

ओमप्रकाश सैनी के घर के ठीक सामने जागेश्वर मंदिर है. वहां सीसीटीवी कैमरे लगे थे. पुलिस अधिकारियों ने फुटेज चैक किए तो रात करीब साढ़े 10 बजे एक युवती फोन पर बतियाते घर से बाहर निकलते दिखाई दी. दूसरी तरफ एक युवक घर में प्रवेश करते दिखा. इस के बाद रात 11:35 पर वही युवक घर से बाहर जाते दिखा.

यह फुटेज ओमप्रकाश सैनी व कृष्णकांत को दिखाया गया तो उन्होंने बताया कि फोन पर बतियाती युवती उन की बेटी बरखा है. कृष्णकांत ने बताया कि फोन पर बतियाते दिख रहा युवक उस की पत्नी बरखा का प्रेमी दीपक गुप्ता है, जो उस के पड़ोस में रहता है.

इंसपेक्टर प्रमोद कुमार ने बरखा के फोन से दीपक को काल की तो जीआरपी थाने के एक सिपाही ने काल रिसीव की. उस ने बताया फोन धारक ने रेल से कट कर आत्महत्या की है. उस का शव अज्ञात में पोस्टमार्टम हाउस भेजा जा चुका है. दीपक के पिता विमल गुप्ता से शव की शिनाख्त कराई गई तो उन्होंने शव को तुरंत पहचान लिया.

पुलिस ने बरखा और दीपक के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि मरने से पहले दोनों के बीच 23 बार बात हुई थी. पिछले 2 महीने में दोनों के बीच 500 बार बात मोबाइल फोन पर हुई थी. जांचपड़ताल से स्पष्ट था कि दीपक ने ही पहले प्रेमिका की हत्या की फिर खुद रेल से कट कर आत्महत्या कर ली.

मृतका बरखा के पति कृष्णकांत ने पत्नी की हत्या की रिपोर्ट दीपक के खिलाफ दर्ज कराई. लेकिन दीपक द्वारा भी आत्महत्या कर लेने से पुलिस ने इस मामले को बंद कर दिया.

कथा संकलन तक मृतका के दोनों बच्चे नानानानी के पास पल रहे थे. कृष्णकांत को अपने बच्चों की चिंता सता रही थी. वह उन का पालनपोषण स्वयं करना चाहता है. इस के लिए उस के मांबाप भी राजी हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दगा दे गई सोशल मीडिया की गर्लफ्रैंड – भाग 3

कहते हैं कि दुनिया में अकेली औरत की जिंदगी कटी पतंग की तरह होती है. उस पर अगर वह जवान और खूबसूरत हो तो हर कोई लावारिस समझ कर उसे लूट लेना चाहता है. तृप्ति यह दुनियादारी अच्छी तरह से जान चुकी थी. इसलिए वह भी सही जीवन साथी को तलाश कर रही थी, जो उसके साथ ही उस की बेटी को भी बाप की तरह प्यार करे और अपनी औलाद जैसी परवरिश करने को तैयार हो.

प्रोफेसर से दोस्ती होने पर किया विवेक से किनारा

32 वर्षीय तृप्ति खूबसूरत और समझदार थी ही, साथ ही सुगठित शरीर की मालकिन होने के चलते 24 से 25 साल से ज्यादा उम्र की नहीं लगती थी, लेकिन कुछ हद तक वह सेंटीमेंटल फूल्स यानी दिल के हाथों मजबूर एक भावुक युवती थी. शायद इसलिए वह अपने पहले प्रेम में असफल होने के बाद एक बार फिर वही गलती कर बैठी.

पति सूरज के जेल जाने के बाद अपनी जिंदगी के अकेलेपन से घबरा कर वह सोशल मीडिया पर विवेक के संपर्क में आ गई और उस के हंसमुख नेचर से प्रभावित हो कर उस की गर्लफ्रेंड बन गई थी, जिस का पता उस की सहेली रीता को भी था. वह तृप्ति को बारबार जिंदगी की ऊंचनीच समझाती रहती थी और खबरदार भी करती रहती थी कि ऐसे बेमेल रिश्तों की उम्र ज्यादा लंबी नहीं होती है और वह अल्पशिक्षित कार ड्राइवर प्रेमी के साथ जीवनभर खुशहाल नहीं रह पाएगी.

क्योंकि ड्राइवरों की लाइफ स्टाइल स्टैंडर्ड की नहीं होती है और ज्यादातर ड्राइवर तो आपराधिक प्रवृत्ति के भी होते हैं. साथ ही दिनरात सङ़क पर घूमते रहने के कारण ऐसे लोगों का जीवन भी असुरक्षित होता है. इसलिए बेटी के भविष्य को ध्यान में रख कर कार ड्राइवर प्रेमी के साथ घर बसाने का निर्णय सोच विचार कर लेना .

बारबार सहेली रीता की समझदारी भरी सलाह सुन कर तृप्ति भी गंभीर हो गई और उस ने विवेक के साथ ज्यादा घूमना फिरना बंद कर दिया. उस ने उस से दूरी बनाए रखने का फैसला कर लिया. वह पहले भी सूरज चौहान के साथ प्यार में धोखा खा चुकी थी और अंतरजातीय प्रेम विवाह से तलाक की नौबत उसे फैमिली कोर्ट तक ले गई थी. इसलिए वह विवेक के शादी के प्रस्ताव को किसी न किसी बहाने टालने लगी. वह विवेक से पिंड छुङ़ाने का मौका तलाश रही थी.

इस दौरान अप्रैल, 2023 में तृप्ति अपने स्कूृल के स्टाफ के साथ इंजनियरिंग कालेज गई तो उस की मुलाकात जयपुर निवासी अनिल शर्मा से हुई जो इंजीनियरिंग कालेज में प्रोफेसर था और एक 38 वर्षीय आकर्षक और सजीला विवाहित युवक था. उस के मिलनसार तथा शालीन स्वभाव ने तृप्ति को इस कदर प्रभावित किया कि वह बारबार उस से मिलने लगी और कुछ ही दिनों में अनिल की अच्छी दोस्त बन गई. इतना नहीं वह मन ही मन उसे पसंद भी करने लगी.

अनिल से मिलने के बाद उस की सोच और जिंदगी का नजरिया ही बदल गया. अब वह विवेक को नजरअंदाज कर अनिल की हेल्प ले कर अपने भविष्य को बेहतर बनाने में समय गुजारने लगी. वह अब कार ड्राइवर विवेक के साथ गुजरे वक्त को अपनी भावुकता पूर्ण बेवकूफी मान कर भुला देना चाहती थी.

माहौल बदलने के लिए अनिल के साथ दोस्ती हो जाने पर उस ने दूसरी जौब करने और पुराना ठिकाना छोड़ कर नया मकान भी तलाशना शुरू कर दिया था. अनिल को जब तृप्ति के अतीत के बारे में पता चला. तो उस ने हमदर्दी जताते हुए पारिवारिक अदालत का फैसला आने के बाद नए सिरे से जीवन गुजारने की सलाह दी और वादा किया कि नौकरी लगवाने मेें वह उस की पूरी मदद करेगा

अनिल की बातों से तृप्ति को इस बात की तसल्ली हुई कि इस महानगर में अब वह अकेली नहीं है. इसलिए वह विवेक उर्फ विवान से पीछा छुङ़ाने की योजना पर अमल करने लगी. उसे डर था कि उस के एक तरफा प्यार में पागल विवेक संजीदा स्वभाव का व्यक्ति नहीं है इसलिए उस से मन भर जाने पर वह कभी भी उसे छोड़ सकता है. जबकि प्रोफेसर अनिल एक गंभीर और जिम्मेदार किस्म का संपन्न युवक था, जो उस की ज्यादा मदद कर सकता था.

तृप्ति से विवेक की लंबे समय तक मुलाकात नहीं हुई तो विवेक को यह सोच सोच कर फिक्र होने लगी कि कहीं उस का कोई और दोस्त तो नहीं बन गया. अपनी आशंका को दूर करने के लिए अगले ही दिन उस ने तृप्ति के स्कूल की छुट्टी हो जाने के बाद चुपचाप स्कूटी से उस का पीछा किया तो उस की आशंका सच साबित होती दिखी.

तृप्ति इंजीनियरिंग कालेज के आगे जयपुर रोड पर एक रेस्टोरेंट में अपने नए दोस्त के साथ बैठी चाऊमीन खा रही थी, उस से हंसहंस कर बातें कर रही थी. जिसे देख कर विवेक के तन बदन में आग लग गई. वह समझ गया कि तृप्ति उस से मिलने में बहाने बाजी क्यों कर रही थी. तभी उसे तृप्ति अपने नए दोस्त के साथ रेस्टोरेंट से बाहर निकल कर कार में बैठ कर जाती दिखाई दी. तब वह कुछ सोच कर वापस लौट गया.

प्रोफेसर ने दी विवेक को चेतावनी

अगले दिन विवेक ने तृप्ति से अरजेंट मिलने की बात कही तो पहले तो वह उसे टालती रही फिर ज्यादा रिक्वेस्ट करने पर उस ने स्कूल की छुट्टी के बाद जयपुर रोड स्थित जायका रेस्टोरेंट पर मिलने का टाइम दे दिया.

विवेक को तृप्ति की बेरुखी से बेवफाई की बू आने लगी थी. पर वह उस की लीगल पत्नी तो थी नहीं, जो वह उस पर अपना अधिकार जताता, इसलिए वक्त की नजाकत समझ कर चुप रह गया. फिर तयशुदा वक्त पर किसी मिलने वाले का स्कूटर ले कर वह जयपुर रोड स्थित रेस्टोरेंट पहुंच गया जहां एक कोने में तृप्ति अपने नए दोस्त प्रोफेसर अनिल के साथ बैठी कौफी पी रही थी.

उस ने अनिल को विवेक के बारे बताया था कि विवेक से उसकी सोशल मीडिया पर दोस्ती हो गई थी लेकिन अब वह सोशल मीडिया पर हुई दोस्ती को प्यार समझ कर उस से शादी के लिए दबाव बना रहा है. जबकि उस के मन में विवेक के प्रति प्यार जैसी कोई फीलिंग्स नहीं है. और वह उस से शादी भी नहीं करना चाहती. जिस पर तृप्ति का प्रोफेसर दोस्त अनिल शर्मा उस समय विवेक को समझाबुझा कर दोनों के बीच पैदा हुई गलतफहमी दूर करने के इरादे से उस के साथ रेस्टोरेंट में बैठा हुआ था.

तभी तृप्ति को अपनी समझने वाला विवेक धङ़धङ़ाता हुआ सीधे उन की टेबल पर जा पहुंचा और तृप्ति से अपने साथ चलने की जिद्द करने लगा. तब तृप्ति बोली”;अरे ऐसी भी क्या जल्दी है, बैठो जरा कौफी तो पी लो.”

फिर वह अपने नए दोस्त का परिचय कराते हुए बोली ”;इन से मिलो, ये प्रोफेसर शर्मा हैं… मेरे नए मित्र और सर, ये हैं विवान उर्फ विवेक सिंह.”

अनमने भाव से विवेक कुरसी खींच कर बैठ गया. उसे तृप्ति का किसी और को दोस्त कहना नागवार लग रहा था.

सनक में कर बैठी प्रेमी के दोस्त की हत्या – भाग 3

तान्या बहुत ही तेज तर्रार थी. वह जानती थी कि बाहर रह कर लड़कियों से दोस्ती करने से कोई लाभ नही, लड़कों से दोस्ती कर हर मकसद पूरा किया जा सकता है. क्योंकि अधिकांश लड़कियों में एकदूसरे से जलने की आदत होती है. यही कारण था कि उस ने इंदौर आते ही सब से पहले युवकों को ही निशाना बनाया था.

छोटू से दोस्ती करते ही उसे भरोसा हो गया था कि वह ही उसे उस की मंजिल तक पहुंचा सकता है. यही सोच कर उस ने छोटू के लिए अपने दिल के दरबाजे खोल दिए थे. उस के सहारे से ही उस की कई अवारा लड़कों से दोस्ती हो गई थी.

तान्या की हरकतों का पता रचित को लगा तो उस ने उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन उस ने उस की एक भी बात नहीं मानी. बाद में रचित तान्या को बोझ लगने लगा था. उस ने रचित से साफ शब्दों में कह दिया था कि उसे उस की हमदर्दी की कोई जरूरत नही. तान्या की बात सुनते ही रचित ने उस की तरफ ध्यान देना बिल्कुल ही बंद कर दिया था. लेकिन फिर भी उसे एक चिंता लगी रहती थी कि वह गलत हाथों में पड़ कर अपना भविष्य खराब न कर ले.

हालांकि तान्या ने रचित से पूरी तरह से संबंध खत्म कर लिए थे, लेकिन फिर भी उस के दिल में रचित के लिए बेचैनी रहती थी. उस के दिल में उस के लिए अभी भी थोड़ी जगह खाली थी. लेकिन उस के छोटू से संबंध होते ही रचित ने उस से पूरी तरह से संबंध खत्म कर लिए थे. उस के बाद तान्या ने रचित से बदला लेने का पक्का प्लान बना लिया था. उस ने अपने इस मकसद को अंजाम देने के लिए छोटू के साथसाथ शोभित और उस के दोस्त को भी अपने साथ मिला लिया था.

पूर्व बौयफ्रैंड को सिखाना चाहती थी सबक

26 जुलाई, 2023 को तान्या अपने तीनों दोस्तों के साथ एक होटल में खाना खाने गई हुई थी. उसी दौरान तान्या को पता लगा कि रचित अपने दोस्तों मोनू, विशाल व रचित के साथ महाकाल दर्शन करने के लिए जा रहा है. यह जानकारी मिलते ही उस ने अपने तीनों दोस्तों से रचित को सबक सिखाने वाली बात कही.

उस के सभी दोस्त उस वक्त शराब के नशे में थे. तान्या के कहने मात्र से सभी ने उस की नजरों में हीरो बनते हुए उस की हां में हां कर दी. फिर जल्दी से तीनों ने एक्टिवा स्कूटी निकाली और लोटस चौराहे पर जा पहुंचे. तान्या जानती थी कि उन की कार उसी रास्ते से हो कर गुजरेगी.

लोटस चौराहे पर पहुंचते ही रचित की नजर सामने खड़ी स्कूटी पर पड़ी. उस वक्त तान्या स्कूटी पर सब से पीछे बैठी सिगरेट पी रही थी. इतनी रात गये तान्या को तीन युवकों के साथ इस तरह से घूमते हुए देख रचित को गुस्सा आ गया. रचित ने उस के पास जा कर ही कार रोकी.

तान्या को देखते ही रचित बोला, ”तान्या तुम्हें शर्म नहीं आती . इस तरह से तुम 3-3 लड़कों के साथ रात में आवारगर्दी करती फिर रही हो.”

रचित की बात सुनते ही तान्या को भी गुस्सा आ गया.”तू कौन होता है मुझे रोकने टोकने वाला. तुझ से मेरा क्या रिश्ता है?” उस ने चिल्लाते हुए कहा.

रचित की बात सुनते ही उस के साथी बौखला गए. उन्होंने कार की तरफ लपकने की कोशिश की तो रचित उर्फ टीटू ने कार आगे बढ़ा दी. कार के आगे बढ़ते ही चारों स्कूटी पर सवार हुए. फिर उन्होंने स्कूटी कार के पीछे लगा दी. फिर कार को आगे से घेर कर रचित व उस के साथियों पर हमला कर दिया.

इस केस के खुल जाने के बाद पुलिस ने आरोपियों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त एक्टिवा स्कूटी व चाकू भी बरामद कर लिया था. पुलिस ने इस मामले में तान्या कुशवाह सहित उस के अन्य दोस्तों शोभित ठाकुर,छोटू उर्फ तन्यम व ऋतिक को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया था.

हालांकि तान्या ने पुलिस के सामने सफाई देते हएु कहा कि रचित को मारने का उस का कोई इरादा नहीं था. वह केवल उसे डराना चाहती थी. फिर भी उस ने जेल जाने से पहले पुलिस के सामने कहा कि रचित ने कई साल उस का शोषण किया था. वह उसे इतनी आसानी से नहीं छोड़ेगी. वह जब भी जेल से छूटेगी, उस से बदला जरूर लेगी.

आज की इस फैशनपरस्त दुनियां में लिवइन रिलेशनशिप में रहना युवकयुवतियों में क्रेज सा बन गया है. युवकयुवतियां अपना भविष्य बनाने के लिए बड़े शहरों में कोचिंग या पढ़ाई करने के नाम पर निकलते हैं, लेकिन मांबाप से दूर रह कर अधिकांश वहां पर जाते ही गलत रास्ता अपना लेतेे हैं.

शुरूशुरू में लिव इन रिलेशन में रहना अच्छा लगता है, लेकिन जैसे ही बात शादी की आती है तो उस प्रेमी युगल में एक शख्स पीछे हटने लगता है. जिस के कारण दोनों में मनमुटाव पैदा हो जाता है. फिर कुछ ही दिनों में दोनों प्रेमी युगल के रास्ते अलगअलग हो जाते हैं.

इस से युवकों को तो ज्यादा फर्क नही पड़ता, लेकिन युवतियों के आगे. खून के आंसू बहाने के अलाबा कोई रास्ता नहीं बचता. जिस के कारण उन की जिंदगी ही तबाह हो कर रह जाती है. तान्या के साथ भी यही हुआ. काश! वह समझदारी से काम लेती तो वह शायद जेल नहीं पहुंचती.

चाहत का कहर : माशूका की खातिर – भाग 3

रामू की मुलायम सिंह, राहुल और तेजा से खूब पटती थी. इन में से मुलायम सिंह और तेजा पास के ही गांव के रहने वाले थे, जबकि राहुल मैनपुरी के कुरावली कस्बे का रहने वाला था. एक दिन सभी एक साथ एक ढाबे में बैठे खापी रहे थे, तभी राहुल न कहा, ‘‘यार रामू, कभी हम लोगों को भी कुसुमा भाभी से मिलवा.’’

‘‘तुम लोग उस से मिल कर क्या करोगे?’’ रामू ने पूछा.

तेजा ने हंसते हुए कहा, ‘‘जो तू करता है, वही हम लोग भी करेंगे.’’

‘‘खबरदार, कुसुमा के बारे में अब एक भी शब्द बोला तो…?’’ रामू गुर्राया.

‘‘इस में तुझे मिर्चें क्यों लग रही है? कौन सी वह तेरी बीवी है?’’ मुलायम सिंह ने रामू के कंधे पर हाथ रख कर कहा.

‘‘यह अच्छी बात नहीं है, इसलिए मैं चाहता हूं कि तुम लोग उस की बात बिलकुल मत करो.’’ कह कर रामू उठ खड़ा हुआ.

राहुल ने रामू का हाथ पकड़ कर बैठाने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘भई, हम सब दोस्त हैं, इसलिए जो भी मिले, हम सब को मिलबांट कर खाना चाहिए.’’

राहुल की यह बात रामू को इतनी बुरी लगी कि उस ने गुस्से में उसे 2-4 तमाचे जड़ दिए. मुलायम ने रामू को धकेल कर अलग करते हुए कहा, ‘‘यह तुम ने अच्छा नहीं किया रामू.’’

‘‘कान खोल कर सुन लो, तुम में से किसी ने भी मेरी जिंदगी में दखल देने की कोशिश की तो मैं उस के साथ भी यही करूंगा.’’ कह कर रामू चला गया.

बाकी तीनों दोस्त रामू के इस रवैये से सन्न थे. किसी से कुछ कहते नहीं बन रहा था. आखिर चुप्पी मुलायम सिंह ने तोड़ी. ‘‘हम इतने भी गएगुजरे नहीं हैं कि इस की मारपीट चुपचाप सह लेंगे.’’

रामू के ये सभी दोस्त उस से जल रहे थे. वे कुसुमा को पाना चाहते थे, लेकिन रामू ने उन की इच्छाओं पर पानी फेर दिया था. इसलिए वे रामू को सबक सिखाने के बारे में सोचने लगे. 2 दिनों तक तीनों रामू द्वारा किए अपमान का बदला लेने की साजिश रचते रहे.

अंतत: उन्होंने तय किया कि रामू को ऐसी सजा दी जाए कि कोई दोस्त फिर कभी अपने किसी दोस्त का इस तरह अपमान न कर सके. इस के बाद उन्होंने योजना भी बना डाली. उसी योजना के तहत तीनों ने रामू से माफी मांगी. रामू ने सोचा कि जब इन्हें अपनी गलती का अहसास हो गया है तो उसे भी अपनी गलती के लिए माफी मांग लेनी चाहिए. उस ने भी दोस्तों से अपनी गलती के लिए माफी मांग ली.

इस के बाद मुलायम ने कहा, ‘‘इस खुशी में आज रात मैं सभी को पार्टी दे रहा हूं.’’

‘‘क्या खिलाएगा पार्टी में?’’ रामू ने पूछा.

‘‘भई पार्टी है तो कुछ अच्छा ही होगा. शाम को हम तुझे तेरे घर लेने आएंगे, तू तैयार रहना.’’ तेजा ने कहा.

शाम को रामू घर में ही था. उस के दोस्त उसे बुलाने आए तो मां को बता कर वह उन के साथ चला गया. एक ढाबे से गोश्त और रोटियां पैक कराई गईं. इस के बाद शराब की दुकान से एक बोतल शराब खरीदी गई. सारी व्यवस्था कर के तय किया गया कि भूरा की दुकान की छत पर बैठ कर खानापीना होगा.

भूरा की दुकान हिंदपुरम कालोनी के सामने ही थी. कालोनी अभी नईनई बस रही है, इसलिए यहां अभी इक्कादुक्का मकान ही बने हैं. दूसरी ओर खेत हैं, इसलिए लोगों का आनाजाना इधर कम ही होता है. यही वजह थी कि अंधेरा होते ही इधर सन्नाटा पसर जाता था. यह मैनपुरी का काफी संवेदनशील इलाका माना जाता है.

तीनों दोस्त रामू को साथ ले कर भूरा की दुकान की छत पर आ गए. इस के बाद बातचीत के बीच खानापीना होने लगा. रामू काफी अच्छे मूड में था, इसलिए उस ने शराब थोड़ी ज्यादा पी ली. दोस्तों ने उसे पिलाई भी कुछ ज्यादा. काफी देर हो गई तो रामू ने कहा, ‘‘भई, अब घर चलना चाहिए.’’

‘‘कौन से घर, मां के या माशूका के?’’ मुलायम सिंह ने छेड़ा.

रामू लड़ाईझगड़े के मूड़ में नहीं था, इसलिए उठ कर खड़ा हो गया.

वह चलता, उस के पहले ही मुलायम सिंह ने उसे छेड़ते हुए कहा, ‘‘चल, हम भी तेरे साथ तेरी माशूका के यहां मौजमस्ती करने चलते हैं.’’

दरअसल, मुलायम सिंह उसे उकसाना चाहता था. मुलायम की इस बात पर रामू को गुस्सा आ गया तो वह उस की ओर झपटा. फिर क्या था, तीनों दोस्तों ने उसे दबोच कर गिरा दिया. इस के बाद वहां रखे फावड़े से उस की गर्दन काट दी. अब उन्हें लाश को ठिकाने लगाना था. काफी सोचविचार कर वे लाश को घसीट कर नीचे ले आए और सड़क के उस पार बहने वाले नाले में फेंक कर भाग खड़े हुए.

काफी रात बीत गई और रामू नहीं लौटा तो शांति परेशान होने लगी. उस ने सोचा कि वह कुसुमा के यहां होगा. इसलिए उस ने सवेरा होते ही मनोज को कुसुमा के घर भेजा. तब पता चला कि रात में वह कुसुमा के घर भी नहीं था. इस के बाद उस की खोज शुरू हुई.

रामू अपने दोस्तों के साथ गया था. उस के दोस्तों से उस के बारे में पूछा जाता, उस के पहले ही किसी लड़के ने आ कर बताया कि रामू की लाश सड़क के किनारे बहने वाले नाले में पड़ी है.

कोतवाली पुलिस को सूचना दी गई. सूचना मिलते ही इंस्पेक्टर शंकर सिंह और क्षेत्राधिकारी वी.पी. सिंह पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे. निरीक्षण में उन्होंने देखा कि खून नाले से सामने की दुकान तक फैला है. छत पर जाने वाली सीढि़यों पर भी खून फैला था. पुलिस छत पर पहुंची तो वहां भी खून फैला दिखाई दिया. वहीं खून से सना फावड़ा भी पड़ा था. इस का मतलब यह था कि उसी फावड़े से छत पर मृतक की हत्या की गई थी.

पूछताछ में पता चल गया कि मृतक के मोहल्ले की ही एक महिला से अवैध संबंध थे. घरवालों ने भी बता दिया था कि कल शाम को रामू को उस के 3 दोस्त बुला कर ले गए थे.

इस के बाद रामू के छोटे भाई शिवशंकर ने मैनपुरी कोतवाली में भाई की हत्या की रिपोर्ट दर्ज करने के लिए जो तहरीर दी, उस के आधार पर उसे पुलिस ने अपराध संख्या 641/13 पर भादंवि की धारा 302, 201, 120बी के तहत मुलायम सिंह पुत्र सूरज, निवासी नगला पंजाबा, राहुल पुत्र किशनलाल, निवासी कुरावली तथा तेजा पुत्र बाबूराम, निवासी हिंदपुरम कालोनी और कुसुमा पत्नी मुकेश, निवासी हिंदपुरम कालोनी के खिलाफ दर्ज कर लिया.

मुलायम सिंह, तेजा और राहुल तो पहले से ही फरार थे, कुसुमा को भी जब पता चला कि रिर्पोट में उस का भी नाम है तो वह भी फरार हो गई. लेकिन पुलिस ने जाल बिछा कर मुलायम सिंह, तेजा और राहुल को उसी दिन यानी 16 जुलाई, 2013 की देर शाम गिरफ्तार कर लिया.

तीनों को थाने ला कर पूछताछ की गई तो उन्होंने अपना जुर्म स्वीकार कर के रामू की हत्या की पूरी कहानी सुना दी. अगले दिन पुलिस ने तीनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. पूछताछ में उन्होंने साफसाफ कहा था कि रामू की हत्या में कुसुमा शामिल नहीं थी. लेकिन रिपोर्ट में उस का नाम शामिल था, इसलिए 26 जुलाई, 2013 को उस ने अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

इस तरह कुसुमा की वासना की आग ने अपना घर तो जलाया ही, शांति के घर को भी नहीं बख्शा. शांति का कहना है कि रामू ने तो नादानी की ही, कुसुमा भी कम गुनहगार नहीं है. उसी ने उस के मासूम बेटे को गुमराह किया था. कथा लिखे जाने तक चारों आरोपी जेल में थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित