आफरीन के प्यार में मनोहर के 8 टुकड़े

6 जून, 2023 की सुबह लगभग साढ़े 7 बजे मनोहर लाल हर रोज की तरह अपने साथ 2 खच्चर ले कर रोजीरोटी की तलाश में घर से निकला था. घर से निकलते समय उस ने बताया था कि वह अपना काम खत्म करने के बाद अपने एक परिचित से मिलने जाएगा, जिस के कारण घर आने में थोड़ा लेट भी हो सकता है.

15 दिन बाद उस की शादी की डेट फिक्स थी. उसी कारण उस के घर की कुछ मरम्मत का काम चल रहा था. शादी के कारण ही उस ने अपने परिचित से कुछ पैसों की व्यवस्था करने को कहा था. जिस के कारण वहां पर उस का जाना बहुत ही जरूरी था.

मनोहर लाल अपना काम खत्म कर अकसर 4-5 बजे तक घर पहुंच जाता था, लेकिन उस दिन वह शाम के 6 बजे तक भी घर नहीं पहुंचा तो उस के परिवार वाले चिंतित हो उठे. फिर भी उन्होंने सोचा कि कुछ देर आ जाएगा. लेकिन वह देर रात तक घर नहीं पहुंचा तो उसे ले कर घर वाले परेशान हो उठे. उन्होंने यह बात अपने पड़ोसियों के अलावा अपने कुछ रिश्तेदारों को भी बता दी थी.

उसी समय उन्होंने रिश्तेदारों के साथ मनोहर लाल की खोजबीन शुरू की. हालांकि मनोहर लाल अपने घर वालों से किसी परिचित के यहां जाने वाली बात कह कर गया था, लेेकिन वह किस के पास गया था, यह नहीं जानते थे. यही कारण रहा कि रात भर घर वाले अपने रिश्तेदारों के साथ उसे इधरउधर ढूंढते रहे, लेकिन मनोहर लाल का कहीं भी पता नहीं चला.

उस के बाद घर वालों ने 7 जून, 2023 को अपने रिश्तेदारों के साथ हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले के अंतर्गत किहार थाने में जा कर उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी. थाने में गुमशुदगी की सूचना दर्ज होते ही पुलिस प्रशासन ने उसे हर जगह खोजने की भरसक कोशिश की, किंतु उस का कहीं भी अतापता नहीं चल सका.

9 जून को सलूनी इलाके में एक नाले से वहां से गुजर रहे लोगों को बदबू आती महसूस हुई. तब स्थानीय लोगों ने इस की सूचना पुलिस के गश्ती दल को दी. इस सूचना पर गश्ती दल पुलिस नाले पर पहुंची. तब पुलिस ने वहां से 3 बोरियां निकालीं. तीनों बोरियों को खोल कर देखा तो वहां मौजूद सभी लोगों की आंखें खुली रह गईं. उन बोरियों में किसी पुरुष के शव को 8 टुकड़ों में काट कर भरा गया था. फिर तीनों ही बोरियों को नदी में डाल कर पत्थरों से दबा दिया गया था.

पुलिस ने उस शव की शिनाख्त कराने की कोशिश की तो उस की पहचान मनोहर लाल के रूप में हुई. वीभत्स तरीके से की गई हत्या की यह खबर सोशल मीडिया पर वायरल हो गई. इस तरह से मनोहर लाल की हत्या की बात सामने आते ही पूरे हिमाचल प्रदेश में सनसनी सी मच गई.

मनोहर लाल की दर्दनाक और निर्मम हत्या ने आसपास के लोगों को झकझोर कर रख दिया दिया था. सभी लोग इस बात को सोच कर परेशान थे कि आखिर मनोहर लाल के साथ क्या हुआ और किस ने, क्यों उस के साथ जघन्य अपराध किया.

प्रेम प्रसंग का मामला आया सामने

उसी जांचपड़ताल के दौरान पुलिस को जानकारी मिली कि मनोहर लाल की एक मुसलिम लडक़ी से दोस्ती थी. जबकि इस बात की जानकारी उस के घर वालों को नहीं थी. यह बात सामने आते ही पुलिस ने इस मामले को गंभीरता से लिया और उस की तुरंत ही जांचपड़ताल भी शुरू कर दी.

पुलिस को लग रहा था कि मनोहर लाल की हत्या की मुख्य वजह उस की दोस्ती ही रही होगी. इसी शक के आधार पर पुलिस ने उस मुसलिम युवती के घर वालों को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया.

चूंकि मामला दूसरे धर्म से जुड़ा था, इसलिए गैर मुसलिम लोग आरोपियों को फांसी की सजा देने की मांग करने लगे. विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं ने इस घटना के विरोध में जिला मुख्यालय से रोष मार्च निकाला और आरोपियों को फांसी की सजा देने की मांग की.

क्षेत्र में इस मामले के तूल पकड़ते ही 13 जून, 2023 चंबा जिला मुख्यालय में जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन द्वारा संयुक्त प्रैस कौन्फ्रैंस का आयोजन किया गया, जिस में चंबा एसपी अभिषेक यादव ने पत्रकारों को बताया कि इस मामले को गंभीरता से लेते हुए एसआईटी तेजी के साथ जांचपड़ताल कर रही है. उन्होंने बताया कि इस मामले में शब्बीर नाम के एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया है. साथ ही 2 नाबालिग लड़कियों को भी पूछताछ के लिए हिरासत में लिया है, जिन से लगातार पूछताछ जारी है.

उसी पूछताछ के दौरान पुलिस को पता चला कि मनोहर लाल के एक मुसलिम युवती के साथ प्रेम प्रसंग चल रहा था, जिस की जानकारी होने के बाद युवती के घर वालों ने मनोहर लाल को अपने घर बुला कर उस के साथ मारपीट भी की थी. पता चला कि मारपीट में युवती के चाचा-चाची मुसाफिर हुसैन और फरीदा बेगम भी शामिल थी. पुलिस ने पूछताछ के लिए दोनों को हिरासत में ले लिया है.

प्रैस वार्ता करते हुए डिप्टी कमिश्नर अपूर्व देवगन ने मीडिया को बताया कि इस जघन्य अपराध के खुलासे के लिए प्रशासन पूरी तरह से लगा हुआ है. इस मामले को ले कर समाज के हर वर्ग को एक साथ मिल कर खड़े होने की जरूरत है. कोई भी राजनैतिक नुमाइंदा या समाजसेवी ऐसी धार्मिक सूचनाएं न फैलाए, जिस से आपस में मनमुटाव की स्थिति पैदा हो. स्थिति पूरी तरह से जिला प्रशासन के नियंत्रण में है.

घटना के विरोध में लोग हुए बेकाबू

प्रशासन की लाख कोशिशों के बावजूद भी क्षेत्र की स्थिति बिगड़ती गई. 15 जून, 2023 को कुछ स्थानीय लोग आक्रोशित हो उठे और उन्होंने आरोपियों के घरों में आग लगा दी. यही नहीं आक्रोशित भीड़ ने किहार थाने पहुंच कर सभी आरोपियों को फांसी की सजा देने की मांग की. आक्रोशित भीड़ ने थाने के भीतर घुसने की भी कोशिश की, जिसे बमुश्किल पुलिस बल द्वारा रोका गया.

इस सब की सूचना पाते ही चंबा एसपी अभिषेक यादव और डिप्टी कमिश्नर अपूर्व देवगन भी थाने पहुंच गए. इस दौरान दोनों ही अधिकारियों ने इस मामले में संलिप्त लोगों के खिलाफ सख्त काररवाई करने का आश्वासन दिया. अपूर्व देवगन ने इस तरह के बेकाबू हुए उग्र स्वरूप को देखते हुए सलूणी में धारा 144 लागू करने की अधिसूचना जारी करा दी.

क्षेत्र में धारा 144 लगने के बावजूद भी स्थानीय लोगों का गुस्सा शांत होने का नाम नहीं ले रहा था. उसी दौरान 17 जून, 2023 को बीजेपी ने एक प्रैस कौन्फ्रैंस कर आरोपियों पर इलजाम लगाते हुए बताया कि आरोपी परिवार ने 100 बीघा सरकारी जमीन पर कब्जा कर रखा है. उन के बैंक अकाउंट में 2 करोड़ रुपए जमा हैं. इस के अलावा आरोपी परिवार बैंक से 2 हजार रुपए के नोट के 95 लाख रुपए की मोटी रकम अब तक बदलवा चुका है.

आरोपी परिवार के सरफराज मोहम्मद का आपराधिक रिकार्ड भी रहा है. इस के अतिरिक्त जयराम ठाकुर ने यह भी आरोप लगाया कि इस परिवार के तार 1998 में साटुंडी में सामूहिक हमले से भी जुड़े हुए थे. इस घटना में 35 बेकुसूर लोगों की जान चली गई थी.

लोगों का कहना था कि मनोहर लाल ने आखिर 6 जून की सुबह आफरीन के घर में ऐसा क्या देखा, जिसके कारण उसकी निर्मम हत्या कर दी गई? लोग उस परिवार को आतंकी माफिया मानते थे. शक इस बात का भी हो रहा है कि परिवार के अतिरित उस दिन उस घर में कोई अन्य संदिग्ध भी मौजूद थे? या फिर मनोहर लाल को कातिल परिवार के आतंकियों से संबंधों का पता चल गया थाï. तभी तो उसे निर्मम तरीके से मार दिया.

लोग कातिल परिवार के घर को आतंकी होने की बात को कैसे झुठला सकते थे, क्योंकि इन के मुखिया की आतंकी हमले में भी पूर्व में संदिग्ध भूमिका रही थी? इस के अलावा कातिल परिवार के पास इतनी अधिक मात्रा में अकूत संपत्ति होना भी कहीं न कहीं एक प्रश्नचिह्न खड़ा करता है. जिस की विस्तृत जांच एनआईए से कराए जाने की लोग मांग करने लगे.

लोगों का कहना है कि आरोपी परिवार ने अपने काले कारोबार, आतंकियों से संबंधों और मनोहर हत्याकांड से जुड़े सभी साक्ष्यों को समाप्त करने की मंशा से अपने घरों में सुनियोजित षडयंत्र के तहत खुद आग लगवाई, आक्रोशित भीड़ के वहां पर पहुॅचने से पहले ही वहां पर आग लग चुकी थी. इस बात की भी विस्तृत जांच कराने की मांग की गई.

साल 1998 में चंबा के शतकंडी कांड जिस में इस्लामिक आतंकवादियों ने गोली मार कर 35 हिंदुओं की निर्मम हत्या की थी और एक मुसलिम को छोड़ दिया था. यह भी जांच एजेंसियों के घेरे में था. आरोप है कि यह परिवार शुरू से ही राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में शामिल रहा है. अब लोग यह जानना चाहते हैं कि आखिर इस के ऊपर किस का वदहस्त है?

लोगों के आक्रोश को देखते हुए पुलिस ने इस मामले में आरोपी परिवार के 11 लोगों को हिरासत में ले लिया था. थाने ले जा कर उन से कड़ी पूछताछ की गई. पुलिस पूछताछ के दौरान मनोहर लाल मर्डर केस का जो खुलासा हुआ, उस की कहानी इस प्रकार निकली—

हिमाचल प्रदेश की सुरम्य चंबा घाटी में बसा सलूणी का भंडाल गांव लुभावने पहाड़ी दृश्यों, नदी किनारे बने घरों, स्टेट छत वाली घास के शेड, सुंदर रास्तों और आकर्षक जंगलों के साथ अपने आप में एक छोटा स्वर्ग माना जाता है. इस गांव में लगभग 100 घर हैं, जिन में हिंदू, मुसलिम के अलावा बड़ी संख्या में आदिवासी समुदाय है.

शब्बीर के घर मनोहर का था आनाजाना

ग्राम पंचायत भोदल के गांव थरोली में रहता था रामू अधवार का परिवार. रामू अधवार शुरू से ही खच्चरों के सहारे अपनी रोजीरोटी चलाते आ रहे थे. उन के पास खेती की थोड़ीबहुत जमीन भी थी. मनोहर लाल 3 बहनों में सब से बड़ा और इकलौता भाई था.

मनोहर लाल कुछ समझदार हुआ तो उस ने अपने पापा की जिम्मेदारी संभालते हुए खेती करने के अलावा खच्चरों पर सामान ढोने का काम शुरू कर दिया, जिस के सहारे उस के परिवार की रोजीरोटी ठीक से चलने लगी थी.

मनोहर लाल इस वक्त 22 साल का हो चुका था. उस की शादी की उम्र हुई तो उस के घर वालों ने उस के लिए एक लडक़ी की तलाश शुरू कर दी. उसी दौरान उन्हीं के एक रिश्तेदार के माध्यम से एक लडक़ी से उस की शादी की बात भी पक्की हो गई थी.

शादी की बात पक्की होते ही उस के घर वालों ने शादी की तैयारियां शुरू कर दी थीं. उसी तैयारी के चलते सब से पहले उन्होंने अपने घर की मरम्मत का काम भी शुरू कर दिया था. उसी मरम्मत के लिए वह 6 जून, 2023 को अपने एक परिचित से कुछ पैसे लाने की बात कह कर घर से निकला था.

पुलिस पूछताछ के दौरान जो जानकारी सामने आई, उस में पता चला कि मनोहर लाल का शब्बीर के घर आनाजाना था. शब्बीर अहमद की 2 नाबालिग बहने थीं. उन्हीं में से एक का नाम आफरीन था. उसी आनेजाने के दौरान मोहन लाल की आफरीन से दोस्ती हो गई.

दोस्ती होने के बाद दोनों ही मोबाइल पर बात करने लगे थे, जिस की जानकारी धीरेधीरेआफरीन के घर वालों को भी हो गई थी. इस जानकारी के मिलते ही आफरीन के घर वालों ने उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन उस के बावजूद भी दोनों ही मोबाइल पर बात करने से बाज नहीं आए.

आफरीन के घर वालों ने पुलिस को बताया कि उन्होंने कई बार मनोहर लाल को अपने घर आने से मना किया था, लेकिन वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आया. उस की उन्हीं हरकतों से आजिज आ कर उन्होंने आफरीन से ही फोन करा कर उसे अपने घर बुलाया.

2 दिनों तक लाश के पास खड़े रहे खच्चर

6 जून, 2023 को मनोहर लाल अपने घर वालों से झूठ बोल कर अपने साथ दोनों खच्चरों को ले कर घर से निकला था. मनोहर लाल ने आफरीन के घर जाने से पहले ही अपने दोनों खच्चरों को सलूनी नाले के पास छोड़ दिया. फिर वह आफरीन के घर चला गया. उस के बाद उन्होंने उसे फिर से समझाने की कोशिश की. लेकिन वह उन की एक भी बात मानने को तैयार न था.

उसी से तंग आ कर उन्होंने उसे घर में ही डंडों से बुरी तरह से मारापीटा. जब मनोहर लाल बेहोश हो गया तो उन्होंने उस की हत्या कर दी. उस के बाद उस की लाश को ठिकाने लगाने के लिए लकड़ी काटने वाली आरी से उसे 8 टुकड़ों में काट डाला. फिर उस के सभी टुकड़ों को 3 बोरियों में भर कर नाले में पानी के नीचे पत्थरों से दबा दिया.

तभी मनोहर लाल के गायब होने की खबरें फैलीं. उस के गायब होते ही उसे उस के घर वालों के साथसाथ पुलिस ने भी सभी जगह ढूंढा, लेकिन उस का कहीं भी अतापता नहीं चला. उसी दौरान सलूनी इलाके में एक नाले के पास से अचानक आई बदबू से लोग परेशान हो उठे थे. उसी नाले के पास कई दिनों से 2 खच्चर लगातार खड़े हुए थे.

स्थानीय लोगों को उन खच्चरों का लगातार खड़े रहना अजीब सा लगा. वहां पर रह रहे कुछ लोग जानते भी थे कि ये खच्चर मनोहर लाल के हैं. लेकिन फिर भी किसी ने उस के बारे में गहराई से नहीं सोचा. धीरेधीरे जब मनोहर लाल के गायब होने की खबर क्षेत्र में फैली तो लोगों ने अनुमान लगाया कि इस तरह से खच्चरों के खड़े होने का मतलब मनोहर लाल के साथ कुछ अनहोनी होने की संभावना को दर्शाता है.

यही सोच कर लोगों ने वहां से गुजर रहे नाले में देखा तो वहां पर एक व्यक्ति के पैर का जूता और उस के पास ही बोरे दबे नजर आए. तब उस की सूचना पुलिस को दी गई. फिर उसी नाले से मनोहर लाल के शव के 8 टुकड़े बरामद हुए.

इस केस में जहां एक तरफ आरोपी के घर वालों ने मनोहर लाल पर एक साथ 2 युवतियों के साथ प्रेम प्रसंग का आरोप लगाया था. वहीं इंटरनेट पर मृतक मनोहर लाल के बारे में कई आधारहीन खबरें प्रसारित होने से पीडि़त परिवार के लोग बेहद दुखी और परेशान थे.

घर वालों ने प्रेम प्रसंग की बात को नकारा

इस मामले में मीडिया से बातचीत करते हुए मनोहर लाल के पिता रामू अधवार, मां जानकी, बहनें त्रिशला, सृष्ठा, सीमा और चचेरे भाई मानसिंह, उत्तम सिंह व अन्य ने बताया कि मनोहर लाल के बारे में जो प्रेम संबंधों की अफवाहें उड़ाई जा रही हैं, वे सब बेबुनियाद हैं. इस मामले को प्रेम संबंध से जोड़ कर केस को भटकाने का प्रयास किया जा रहा है.

परिजनों ने बताया कि मनोहर लाल एक शांत स्वभाव वाला सीधासादा युवक था. जो कि सभी लोगों से मुसकराते हुए प्रेम से बात करता था. वह हमेशा ही अपने काम से काम रखता था. अगर उस का किसी युवती से प्रेम प्रसंग चल रहा होता तो वह शादी की बात चलने से पहले ही अपने परिवार वालों को जरूर बता देता.

मनोहर लाल के बुजुर्ग मातापिता का कहना था कि उन के इकलौते बेटे के आरोपियों को फांसी की सजा मिलनी चाहिए. मृतक मनोहर लाल की बुजुर्ग मां जानकी का रोरो कर बुरा हाल था. मां ने रोते हुए बताया कि 15 दिन बाद ही उन के बेटे की शादी थी. शादी की पूरे घर में धूमधाम से तैयारियां चल रही थी. जैसेतैसे कर घर की मरम्मत का काम चल रहा था. लेकिन उस के बेटे के खत्म होते ही उस की सारी तैयारियां धरी की धरी रह गईं. बुजुर्ग मां का बेटे के लिए बहू लाने का सपना भी उस की अर्थी के साथ ही टूट गया.

पुलिस इस मामले में 11 आरोपियों को गिरफ्तार कर चुकी थी. पुलिस इस मामले से जुड़े सभी आरोपियों की पृष्ठभूमि भी खंगाल रही थी. आरोपियों के व्यवसाय से ले कर कहांकहां इन लोगों को आनाजाना था. किन लोगों से ये लोग मिलते थे. इस सब की जानकारी जुटाई जा रही थी.

आरोपियों की जम्मूकश्मीर के डोडा जिले में भी रिश्तेदारी है. वहां से भी लोग इन के घर आतेजाते रहते थे. इस बात को भी गंभीरता से लेते हुए हिमाचल प्रदेश की पुलिस डोडा पुलिस के साथ संपर्क साधने में लगी हुई थी.

प्रदेश सरकार ने एसआईटी से 15 दिन के भीतर पूरे घटनाक्रम की रिपोर्ट मांगी थी. पुलिस प्रशासन ने शांति व्यवस्था को देखते हुए चंबा में 160 दिनों के लिए धारा 144 लगाई थी. वहीं नेताओं व अन्य लोगों को पीडि़त परिवार के सदस्यों से मिलने पर भी पाबंदी लगा दी थी. साथ ही कुछ संदिग्धों पर भी पुलिस अपनी नजर रखे हुए थी.

बहरहाल, पुलिस ने आरोपियों से पूछताछ करने के बाद उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

(कथा पुलिस सूत्रों व जनचर्चा पर आधारित है )

विवाहिता के प्यार में फंसा समीर

लड़की के लिए दोस्त बना दुश्मन

देह का भूखा दानव

12 सितंबर, 2014 को सुबह कोई 10 बजे की बात थी. चांदनी अपने रोजमर्रा के कामों को निपटा कर कालेज जाने की  तैयारी कर रही थी कि उसी बीच उस के मोबाइल फोन की घंटी बजी. वह एक खास तरह की रिंगटोन थी. वह रिंगटोन उस ने अपने प्रेमी संदीप के फोन नंबर के साथ सेट कर रखी थी. इसलिए रिंगटोन बजाते ही वह समझ गई कि संदीप का फोन आया है.

संदीप का फोन आने पर उस का दिमाग गुस्से से झनझनाने लगा. एक समय ऐसा भी था, जब उस का फोन आता था तो वह मारे खुशी के फूले नहीं समाती थी, लेकिन अब उस का फोन आने पर वह टेंशन में आ गई. एक दफा तो उस के मन में आया कि वह फोन काट दे या यूं ही घंटी बजने दे. कुछ देर तक वह फोन नहीं उठाएगी तो वह अपने आप ही फिर फोन नहीं करेगा.

लेकिन दूसरे ही पल दिमाग में विचार आया कि नहीं, आज वह आखिरी बार उस से बात कर ही ले कि आखिर ऐसा कब तक चलेगा. यही सोच कर उस ने फोन रिसीव कर लिया. तभी चिरपरिचित अंदाज में फोन करने वाला संदीप बोला, ‘‘मैं एकडेढ़ घंटे में आ रहा हूं, तुम तैयार रहना.’’

‘‘लेकिन सुनो तो…’’ चांदनी ने अपनी बात कहने की कोशिश की. संदीप जानता था कि वह क्या कहेगी, इसलिए अपनी बात कहने के बाद बोला, ‘‘अब जो भी कहनासुनना है, वहीं कहना. ओके, बस तुम तैयार रहना.’’

चांदनी और संदीप कमल द्विवेदी के कैलाशपुरी कालोनी स्थित घर पर मिलते थे. कमल द्विवेदी संदीप का दोस्त था, जो कैलाशपुरी वाले घर में अकेला रहता था. जब भी वे दोनों उस के घर पहुंचते, दोस्ती निभाते हुए वह उन्हें खुल कर मौजमस्ती करने का मौका देने के लिए उन्हें अकेला छोड़ कर बाहर चला जाता था.

संदीप ने चांदनी को कमल के घर पहुंचने को कहा था, इसलिए वह बेबसी से तैयार होने के नाम पर कपड़े बदलने लगी. एक वक्त था जब वह संदीप से मिलने कमल के घर जाती थी तो वह उस की पसंद के कपड़े पहनती थी. जाने से पहले वह खूब मेकअप करती थी और बीच रास्ते में उस के लिए चाकलेट आदि खरीद कर ले जाती थी. घर से निकलते ही उस का दिल करता था कि उड़ कर चली जाए. तब उस के पैरों में पंख लगे रहते थे और दिल बेतहाशा धड़कता था.

लेकिन अब बात और थी. आज वह मन ही मन सख्त फैसला ले कर संदीप से मिलने जा रही थी. उस के मन में बेचैनी थी कि जाने आज भी संदीप उस के सवालों का ठीकठाक जवाब देगा या नहीं या हमेशा की तरह अपनी हवस की आग बुझाएगा और थोड़ाबहुत समझाबुझा या दुलारपुचकार कर चलता बनेगा. इन्हीं खयालों में डूबी चांदनी ने कमरे पर ताला लगाया. चांदनी रीवां के गवर्नमेंट गर्ल्स कालेज से एमएससी कर रही थी और रतहरा मोहल्ले में किराए पर रहती थी. कमरे पर ताला लगा कर वह बाहर आ गई.

सड़क पर धीरेधीरे पैदल चलती चांदनी अभी आधा किलोमीटर भी नहीं चली थी कि संदीप की बाइक उस के नजदीक आ कर रुकी. बगैर कुछ कहेसुने वह कूद कर संदीप के पीछे बैठ गई. संदीप तेज गति से बाइक चलाता हुआ कैलाशपुरी की तरफ निकल गया. वह इतनी नाराज थी कि उस ने रास्ते में उस से कोई बात नहीं की.

कमल ने जैसे ही अपने दोस्त को माशूका के साथ घर पर आया देखा, हर बार की तरह चुपचाप घर से बाहर निकल गया. संदीप और चांदनी एक कमरे में चले गए. अंदर पहुंचते ही संदीप ने पहला काम दरवाजा बंद करने का किया. इस के बाद हर बार की तरह उस ने चांदनी को अपनी बांहों में भर लिया और ताबड़तोड़ उसे चूमने लगा.

अपनी परेशानी में डूबी चांदनी को संदीप की यह हरकत पसंद नहीं आई. उस ने उसे झटक दिया और बेहद सख्त लहजे में कहा, ‘‘आज यह सब नहीं चलेगा. पहले मेरे सवालों का जवाब दो.’’

संदीप के ऊपर तो मिलन का भूत सवार था. प्रेमिका के व्यवहार से उसे झटका लगा. मौके की नजाकत को समझते हुए उस ने अपनी जल्दबाजी और बेसब्री पर काबू में ही भलाई समझी. पर उसे इस बात का भरोसा था कि थोड़ी नानुकुर के बाद चांदनी नौरमल हो जाएगी. क्योंकि बीते एक साल से यही हो रहा था.

चांदनी हर बार उस से यही पूछती, ‘‘संदीप, तुम शादी कब करोगे. आखिरकार हमारे इस रिश्ते का नाम क्या है. मैं खुद को भी मुंह दिखाने लायक नहीं रही. तुम आखिर समझते क्यों नहीं.’’

उस की बातों को वह एक कान से सुनता, दूसरे से निकाल देता था. उस का मकसद अपनी वासना को शांत करना होता था, इसलिए वह किसी तरह उसे बहलाफुसला कर रास्ते पर ला कर अपनी इच्छा पूरी कर लेता था.

इस तरह पिछले 2 सालों में वह चांदनी की रगरग से वाकिफ हो चुका था. काफी देर तक वह प्रेमिका की बातों को सुनता रहा. चांदनी की बात पूरी हो जाने के बाद वह अपनी लच्छेदार बातों से उसे संतुष्ट करने की कोशिश करने लगा. मानमनुहार करते हुए काफी देर हो गई, लेकिन चांदनी उस की बात मानने को तैयार नहीं थी. उस दिन वाकई बात जुदा थी.

अपनी बातों से बहलाने की कोशिश करते हुए संदीप को कोई एक घंटा बीत चुका था. चांदनी ने भी शायद खुद को उस के सामने समर्पण न करने का फैसला कर रखा था. तभी तो जब भी संदीप उसे स्पर्श करता, वह उस का हाथ झटक देती. जब काफी देर हो गई तो संदीप झुंझला कर बोला, ‘‘चांदनी, तुम यह बताओ कि हमारे बीच यह सब पहली बार थोड़े न हो रहा है, जो तुम इस तरह की बातें कर रही हो.’’

‘‘पहले जो भी हुआ, उसे भूल जाओ. लेकिन अब नहीं होगा.’’ चांदनी बोली.

संदीप के सब्र का बांध टूट चुका था. वह भी जिद करते हुए बोला, ‘‘होगा, आज भी होगा और प्यार से नहीं तो रिवाल्वर से होगा.’’ कहने के साथ ही उस ने जेब से रिवाल्वर निकाल लिया.

‘‘तो तुम मुझे मारोगे, मेरी हत्या करोगे?’’ बजाय डरने के चांदनी बेखौफ हो कर बोली, ‘‘तो कर लो मन की. तुम्हारी आज हरगिज नहीं चलेगी.’’

चांदनी नहीं डरी तो संदीप और झल्ला उठा, ‘‘मैं मजाक नहीं कर रहा. सीरियसली कह रहा हूं कि सीधेसीधे मान जाओ, नहीं तो…’’

‘‘नहीं तो क्या…’’

‘‘नहीं तो…’’ कहतेकहते संदीप ने उस के गुप्तांग पर निशाना साधते हुए गोली चला दी, जो कमर को चीरती हुई पार निकल गई.

चांदनी ने यह कभी सोचा भी नहीं था कि जिस प्रेमी को वह अपना सब कुछ सौंप चुकी थी, हवस के लिए वह उस का खून कर देगा. वह तो नाजनखरे दिखा कर उस से केवल शादी की बात पक्की करना चाहती थी. बहरहाल गोली लगते ही चांदनी की सलवार खून से लथपथ हो गई. संदीप ने प्रेमिका पर गोली तो चला दी, लेकिन खून देखते ही वह घबरा गया. उस के सिर से वासना का भूत उतर हो चुका था. अब उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे?

चांदनी असहनीय दर्द से जूझने लगी. संदीप से बोली, ‘‘संदीप मुझे अस्पताल ले चलो. मैं किसी से नहीं कहूंगी कि यह गोली तुम ने मारी है. अस्पताल वालों और पुलिस से कह दूंगी कि सेलिब्रेशन होटल के पास एक मोटरसाइकिल पर सवार अज्ञात लोगों ने उसे गोली मार दी. प्लीज, मुझे जल्दी ले चलो.’’

प्रेमिका की बात सुनने के बाद संदीप को भी लग रहा था कि चांदनी सच बोल रही है. इसलिए उस ने फोन कर के अपने दोस्त कमल द्विवेदी को बुला लिया और उसे संक्षेप में जानकारी दे दी. इस के बाद दोनों चांदनी को ले कर रीवां के नामी संजय गांधी मेमोरियल अस्पताल पहुंच गए. कमल की परेशानी यह थी कि अगर चांदनी को उस के घर में कुछ हो जाता तो उस के लेने के देने पड़ जाते. लिहाजा वह संदीप का साथ देने को तैयार हो गया. इसलिए अपनी बोलेरो कार से वह चांदनी को अस्पताल ले गया.

आपातकालीन वार्ड में मौजूद डाक्टरों ने चांदनी की हालत देखते हुए उसे तुरंत भरती कर इलाज शुरू कर दिया. मामला पुलिस केस का लग रहा था, इसलिए अस्पताल की तरफ से इस की सूचना थाना सिविल लाइंस को दे दी गई.

सूचना मिलते ही सिविल लाइंस के थानाप्रभारी बृजेंद्र मोहन दुबे तुरंत अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने लड़की का इलाज कर रहे डाक्टरों से बात की. डाक्टरों ने जब बताया कि लड़की बयान देने की हालत में नहीं है तो उन्होंने लड़की को अस्पताल लाने वाले संदीप और कमल द्विवेदी से बात की. उन से बात करने के बाद वह हैरानी में पड़ गए कि एक लड़की को दिनदहाड़े गोली आखिर किस ने मारी? और गोली भी उस के खास अंग को निशाना साधते हुए चलाई.

संदीप और कमल काफी हद तक अपनी घबराहट पर काबू पा चुके थे. उन्हें उम्मीद थी कि ठीक होने पर चांदनी भी पुलिस को गुमराह करने वाला बयान दे देगी और वह बच जाएंगे.

संदीप ने थानाप्रभारी को दिए बयान में बताया, ‘‘चांदनी पटेल हमारी परिचित है. वह यहीं के रतहरा मोहल्ले में रहती है. वह गर्वमेंट गर्ल्स कालेज से एमएससी कर रही है. इस का छोटा भाई राहुल मेरा दोस्त है. चांदनी ने दोपहर कोई साढ़े बारह बजे मुझे फोन पर बताया था कि वह कालेज जा रही थी, तभी सेलीब्रेशन होटल के पास अज्ञात युवकों ने पीछे से आ कर उसे गोली मार दी. यह खबर मिलने पर मैं ने तुरंत अपने दोस्त कमल द्विवेदी को फोन कर के बुलाया और उस की बोलेरो जीप में डाल कर अस्पताल ले आए.’’

संदीप ने पूरे आत्मविश्वास के साथ पुलिस को बयान दिया था, इसलिए पुलिस को उस पर कोई शक नहीं हुआ. चांदनी अभी बेहोश थी, उस के होश में आने के बाद ही पूरी जानकारी मिल सकती थी. इसलिए पुलिस उस जगह रवाना हो गई, जहां चांदनी को गोली मारने की बात बताई गई थी.

पुलिस ने होटल सेलिब्रेशन के आसपास के लोगों से अज्ञात बाइक सवारों द्वारा किसी लड़की को घायल करने के बारे में पूछा. तमाम लोगों से पूछताछ करने के बाद भी पुलिस को ऐसा कोई चश्मदीद गवाह नहीं मिला, जिस ने गोली मारते देखी हो. वहां खून आदि के निशान भी नहीं मिले. पुलिस के लिए यह बात बड़ी ताज्जुब की थी. चांदनी की सलवार खून से तरबतर थी और घटनास्थल पर खून की बूंद तक नहीं गिरी थी. पहली ही नजर में मामला कोई दूसरा दिख रहा था.

उधर डाक्टर चांदनी के इलाज में लगे थे. पुलिस को इंतजार था कि चांदनी होश में आ कर बयान दे, जिस से पता चले कि आखिरकार हुआ क्या था. चांदनी के घायल होने की खबर उस के घर वालों को दी गई तो उस के पिता और भाई संजय गांधी मेमोरियल अस्पताल पहुंच गए. जैसेजैसे गांव वालों को चांदनी के घायल होने की जानकारी मिलती गई, वे अस्पताल पहुंचने लगे. कुछ ही देर में तमाम लोग अस्पताल के बाहर जमा हो गए.

अस्पताल में भीड़ बढ़ती देख रीवां के एएसपी प्रणय नागवंशी भी वहां पहुंच गए. उन्होंने भी संदीप से पूछताछ की. जिस कालेज में चांदनी पढ़ती थी, उस कालेज के भी तमाम छात्रछात्राएं अस्पताल पहुंच गए. लोगों में पुलिस के प्रति आक्रोश बढ़ता जा रहा था. वे नारेबाजी करने लगे.

थोड़ी देर में एसपी के आदेश पर आसपास के थानों की पुलिस भी अस्पताल पहुंच गई. पुलिस अधिकारियों ने जैसेतैसे लोगों को समझा कर आश्वासन दिया कि जल्दी ही हमलावरों का पता लगा कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा.

डाक्टर चांदनी के इलाज में लगे हुए थे, लेकिन उस की हालत में सुधार नहीं हो रहा था. आखिरकार दोपहर कोई 3 बजे उस ने दम तोड़ दिया. चांदनी के मरते ही संदीप ने चैन की सांस ली कि घटना की हकीकत उस के साथ ही दफन हो जाएगी. पुलिस को सच्चाई पता नहीं चलेगी. लेकिन चांदनी के मरने के बाद पुलिस की चिंता और बढ़ने लगी, क्योंकि लोगों के उग्र होने की संभावना थी. पुलिस ने फटाफट चांदनी का पोस्टमार्टम करा कर शव परिजनों को सौंप दिया.

इस के बाद पुलिस एक बार फिर होटल सेलिब्रेशन पहुंची. शायद इस बार वहां से हत्यारों के बारे में कोई क्लू मिल जाए. वह फिर से चश्मदीद को तलाशने लगी. काफी कोशिशों के बावजूद भी पुलिस को एक भी चश्मदीद नहीं मिला. आसपास के काम करने वाले लोगों ने पुलिस को बताया कि उन्होंने गोली चलने तक की आवाज नहीं सुनी. यह जान कर पुलिस को ताज्जुब हुआ कि इतनी बड़ी घटना हो गई और लोगों को पता तक नहीं चला. जबकि वह इलाका भीड़भाड़ वाला था.

इन बातों से पुलिस को संदीप के बयान पर शक होने लगा. लिहाजा पुलिस ने संदीप के बयान का पोस्टमार्टम करना शुरू किया. वह संदीप को घटनास्थल पर ले गई तो वह यह तक नहीं बता पाया कि वारदात किस जगह हुई थी.

अब पुलिस का शक यकीन में बदलता दिख रहा था, लिहाजा पुलिस ने संदीप से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने सारी कहानी बयां कर दी. उस ने चांदनी से प्यार होने से ले कर हत्या तक की सिलसिलेवार जो कहानी बताई वह इस प्रकार निकली:

मध्य प्रदेश के विंध्य क्षेत्र के रीवां जिले के एक गांव की रहने वाली चांदनी राजकीय कन्या महाविद्यालय से एमएससी कर रही थी. चूंकि रोजाना घर से कालेज आने में उस की पढ़ाई बाधित हो रही थी, इसलिए उस ने रतहरा में किराए पर कमरा ले लिया. कमरे पर उस ने अपने छोटे भाई को भी रख लिया था. वह भी बहन के साथ रह कर पढ़ाई करने लगा.

उसी दौरान सैमसंग कंपनी में नौकरी करने वाले संदीप नाम के युवक से उस की दोस्ती हुई, संदीप को जब पता चला कि चांदनी के साथ उस का भाई भी रह रहा है तो चांदनी से नजदीकी बढ़ाने के लिए उस ने उस के छोटे भाई से दोस्ती कर ली. इस के बाद वह चांदनी से मिलने लगा.

संदीप की चांदनी के साथ हुई दोस्ती धीरेधीरे प्यार में बदल गई. उन का प्यार परवान चढ़ते हुए इतना आगे निकल गया कि वे सारी हदें पार कर गए. उन के बीच जिस्मानी संबंध कायम हो गए. इतना ही नहीं, उन्होंने शादी कर के साथसाथ रहने का फैसला कर लिया था.

काफी दिनों तक दोनों चोरीछिपे मिलते रहे. संदीप का एक दोस्त था कमल द्विवेदी, जो अपने जमाने के कुख्यात डकैत महेश द्विवेदी का बेटा था. कमल कैलाशपुरी स्थित मकान में अकेला रहता था. कमल संदीप और चांदनी के प्रेमप्रसंग से वाकिफ था. इसलिए संदीप चांदनी को कमल के घर पर मिलने के लिए बुला लेता था.

जब भी मन होता, वे कमल के घर पर मौजमस्ती कर लेते थे. लेकिन कुछ दिनों बाद ही संदीप में बदलाव आना शुरू हो गया. जो संदीप जीवनभर प्रेमिका का साथ निभाने का वादा करता था, वह शादी करने से कतराने लगा. अब वह चांदनी को केवल मौजमस्ती का साधन समझने लगा. जब भी चांदनी उस से शादी की बात करती, वह कोई न कोई बहाना बना कर बात टाल देता था. चांदनी उस की बात समझ गई.

चूंकि वह अपनी इज्जत उस के हवाले कर चुकी थी, इसलिए उस पर शादी का दबाव बनाने लगी. शादी की बात सुनते ही संदीप असमंजस में फंसा महसूस करता. फिर भी वह किसी तरह उसे झूठा भरोसा दे कर उस के साथ मौजमस्ती करने में कामयाब हो जाता था. 12 सितंबर, 2014 को चांदनी ने अपने उस के सामने देह समर्पण नहीं किया तो वह हैवान बन उठा और उसे गोली मार दी.

संदीप से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उस के दोस्त कमल द्विवेदी को भी सह अभियुक्त बना कर उसे गिरफ्तार कर लिया. दोनों को न्यायालय में पेश करने के बाद उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया. पुलिस मामले की तफतीश कर रही है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

विवाहिता के प्यार में फंसा समीर – भाग 3

जब समीर और अपने से दोगुनी उम्र की सोफिया के प्यार की जानकारी समीर के घर वालों की हुई तो वे परेशान हो उठे. उन्हें इज्जत के साथसाथ उस के भविष्य की भी चिंता सताने लगी. उन्होंने दुनियादारी बता कर उसे समझायाबुझाया तो वह शादी के लिए राजी हो गया. इस के बाद उस के लिए पारिवारिक लड़की खोजी जाने लगी.

समीर शादी के लिए तैयार तो हो गया था, लेकिन वह जानता था कि सोफिया आसानी से मानने वाली औरतों में नहीं है. उस ने सिर्फ शारीरिक जरूरत के लिए ही उस से प्यार नहीं किया था. उस ने उसे दिल से प्यार किया था, इसलिए वह जानता था कि सोफिया आसानी से उसे छोड़ने वाली नहीं है.

समीर भले ही उस से शादी का वादा करता रहा था, लेकिन सच्चाई यह थी कि उस ने मात्र शारीरिक जरूरत पूरी करने के लिए सोफिया से प्यार किया था. यही वजह थी कि घर वालों ने उस के लिए लड़की की तलाश शुरू की तो वह सोफिया को ले कर परेशान रहने लगा. क्योंकि वह जानता था कि सोफिया आसानी से तो क्या, बिलकुल ही नहीं मानने वाली. पता चलने पर यह भी हो सकता था कि वह उस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दे.

तब बदनामी भी होती और समीर कानूनी शिकंजे में भी फंस जाता. इसलिए सोफिया नाम के इस कांटे को अपनी जिंदगी से निकालने के लिए उस ने एक खतरनाक फैसला ले कर इस की जिम्मेदारी अपने एक दोस्त पप्पू उर्फ इस्माइल शेख को सौंप दी. इस के बाद वह सोफिया से एक बार फिर शादी का वादा कर के 20 नवंबर, 2013 को दुबई चला गया.

28 वर्षीय पप्पू उर्फ इस्माइल शेख शिवाजीनगर में उसी इमारत में रहता था, जिस में समीर शेख का परिवार रहता था. उस की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, इसलिए उस ने लगभग साल भर पहले व्यवसाय करने के लिए समीर से 35 हजार रुपए उधार लिए थे. समीर से रुपए ले कर उस ने जो व्यवसाय किया था, संयोग से वह चला नहीं. फायदा होने की कौन कहे, उस में उस की जमापूंजी भी डूब गई.

जब पैसे ही नहीं रहे तो पप्पू समीर का कर्ज कहां से अदा कर पाता. समीर ने रुपए ब्याज पर दिए थे, जो ब्याज के साथ 50 हजार रुपए हो गए थे. समीर ने अपने रुपए मांगे तो पप्पू ने रुपए लौटाने में मजबूरी जताई और कुछ दिनों की मोहलत मांगी. समीर जानता था कि पप्पू जल्दी रुपए नहीं लौटा सकता, इसलिए उस ने मौका देख कर कहा, ‘‘अगर तुम मेरा एक काम कर दो तो मैं तुम्हारा यह कर्ज माफ कर दूंगा.’’

‘‘ऐसा कौन सा काम है, जिस के लिए तुम इतना कर्ज माफ करने को तैयार हो?’’ पप्पू ने पूछा.

‘‘भाई, इतनी बड़ी रकम माफ करने को तैयार हूं तो काम भी बड़ा ही होगा.’’ समीर ने कहा.

‘‘ठीक है, काम बताओ.’’

‘‘सोफिया शेख की हत्या करनी है.’’ समीर ने कहा तो पप्पू को झटका सा लगा. क्योंकि काम काफी खतरनाक था. लेकिन समीर के 50 हजार रुपए देना भी उस के लिए काफी मुश्किल था, इसलिए मजबूरी में वह यह मुश्किल और खतरनाक काम करने को राजी हो गया. इस के बाद सोफिया की हत्या कैसे और कब करनी है, समीर ने पूरी योजना उसे समझा दी.

समीर के दुबई चले जाने के बाद पप्पू उस के द्वारा बनाई योजना को साकार करने की कोशिश में लग गया. यह काम उस के अकेले के वश का नहीं था, इसलिए मदद के लिए उस ने अपने एक परिचित 15 वर्षीय मुन्ना उर्फ परवेज शेख को साथ ले लिया. इस के बाद अपने दोस्त जावेद का मोबाइल फोन ले कर 9 दिसंबर, 2013 को मुन्ना के घर जा पहुंचा. पूरी रात दोनों समीर द्वारा बताई योजना पर विचार करते रहे.

अगले दिन 10 दिसंबर, 2013 की सुबह पप्पू मुन्ना के साथ बाजार गया और वहां से एक तेज धार वाला बड़ा सा चाकू खरीदा. अब उसे यह पता करना था कि सोफिया घर में है या कहीं बाहर. इस के लिए उस ने सोफिया को फोन किया. उस ने फोन रिसीव किया तो पप्पू ने छूटते ही कहा, ‘‘समीरभाई ने मेरा पासपोर्ट और कुछ जरूरी कागजात तुम्हारे घर पर रखे हैं, मैं उन्हें लेने आ रहा हूं. आप उन्हें ढूंढ़ कर रखें.’’

सोफिया कुछ कहती, उस के पहले ही पप्पू ने फोन काट दिया. इस के बाद पप्पू ने आटो किया और मुन्ना के साथ सोफिया के घर जा पहुंचा. उस ने घंटी बजाई तो सोफिया ने दरवाजा खोल दिया. पप्पू ने अपने पासपोर्ट और कागजातों के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘समीर मेरे पास न तो कोई पासपोर्ट रख गया है न कोई कागजात. जा कर उसी से पूछो, उस ने कहां रखे हैं.’’

इसी बात को ले कर पप्पू सोफिया से बहस करने लगा तो उस ने नाराज हो कर पप्पू को घर से निकल जाने को कहा. तभी पप्पू ने चाकू निकाल कर उस के सिर पर पूरी ताकत से वार कर दिया. वार इतना तेज था कि सोफिया संभल नहीं पाई और गिर पड़ी. गिरते ही वह बेहोश हो गई. इस के बाद पप्पू और मुन्ना ने सोफिया के सारे गहने उतार कर उसे उसी हालत में गद्दे में लपेट कर आग लगा दी. अपना काम कर के वे बाहर आ गए और काम हो जाने की सूचना समीर को दे दी.

रिमांड अवधि खत्म होने पर एक बार फिर पप्पू और मुन्ना को महानगर मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया, जहां से दोनों को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक दोनों जेल में थे. हत्या की साजिश रचने वाला समीर शेख दुबई में था. पुलिस उसे वहां से भारत बुलाने की कोशिश कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दिल आया जब दूसरे पर

विनोद एक निजी नौन बैंकिंग कंपनी में एजेंट था, इसलिए उस का घर आने का कोई निश्चित समय नहीं था. लेकिन जब भी उसे  घर लौटने में देर होती, वह पत्नी सुनीता को फोन कर के बता जरूर देता था.

26 दिसंबर, 2013 को भी विनोद एक परिचित के यहां जाने की बात कह कर घर से निकला था. जब लौटने में उसे देर होने लगी और उस का फोन नहीं आया तो सुनीता ने उसे फोन किया. लेकिन उस का फोन बंद था, इसलिए बात नहीं हो पाई.

विनोद जिस कंपनी का एजेंट था, वह कंपनी आकर्षक ब्याज पर लोगों के पैसे जमा कराती थी. सुनीता ने यह सोच कर दोबारा फोन नहीं मिलाया कि वह किसी ग्राहक के साथ मीटिंग में होगा. जब काफी देर हो गई और न विनोद का फोन आया, न वह खुद आया तो सुनीता ने एक बार फिर फोन मिलाया. इस बार भी उस का फोन बंद था. अब तक रात के 10 बज गए थे. इतनी देर तक विनोद बिना बताए कभी बाहर नहीं रहा था.

यही सोच कर सुनीता को पति की चिंता सताने लगी. जिस आदमी से मिलने की बात कह कर विनोद घर से निकला था, सुनीता उसे जानती थी. वह उस आदमी के घर गई तो पता चला कि विनोद उस के पास आया तो था, लेकिन थोड़ी देर बाद ही चला गया था. उस के यहां से जाने के बाद वह कहां गया, यह उसे पता नहीं था.

सुनीता ने बच्चों को तो खाना खिला कर सुला दिया था, लेकिन पति की वजह से उस ने खुद खाना नहीं खाया था. पति की चिंता में उस की भूखप्यास मर चुकी थी. किसी अनहोनी की आशंका से उस के दिमाग में तरहतरह के विचार आ रहे थे. व्याकुल होने के साथ उस की घबराहट भी बढ़ती जा रही थी. चारपाई पर बैठे हुए उस की निगाहें दरवाजे पर ही टिकी थीं.

बाहर कैसी भी आहट होती, सुनीता लपक कर दरवाजे तक आ जाती. लेकिन दरवाजा खोलने के बाद जब उसे कोई नहीं दिखाई देता तो वह मायूस हो कर वापस चली जाती. सुनीता ने पति के दोस्तों और सभी संबंधियों को भी फोन कर के पूछ लिया था. जब कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली तो रात 12 बजे के करीब वह कुछ रिश्तेदारों के साथ थाना कोतवाली पहुंची और थानाप्रभारी को विनोद के गायब होने की सूचना दी.

सुनीता की रात जैसेतैसे कटी. पूरी रात बहनबहनोई विनोद के वापस आने का भरोसा देते रहे. उन्होंने भी अपने स्तर से विनोद के बारे में पता लगाने की कोशिश की थी, लेकिन उन की भी कोशिश बेकार रही थी. विनोद का कहीं पता नहीं चला था.

विनोद का इस तरह लापता होना चिंता की ही नहीं, परेशानी की बात थी. सुबह होते ही सुनीता के बहनोई राकेश शर्मा को हाथरस के थाना मुरसान के गांव नगला धर्मा के निकट एक अज्ञात व्यक्ति की लाश पड़ी होने की सूचना मिली.

सूचना मिलते ही राकेश शर्मा कुछ लोगों के साथ गांव नगला धर्मा के लिए रवाना हो गए. लेकिन उन के वहां पहुंचने तक पुलिस लाश को सील कर चुकी थी. उस के पूछने पर पुलिस ने मृतक का जो हुलिया बताया, वह लापता विनोद शर्मा से हूबहू मिलता था. इसलिए लाश की शिनाख्त के लिए वह पोस्टमार्टम हाउस जा पहुंचे. वहां देखने पर पता चला कि वह लाश विनोद शर्मा की ही थी.

लाश देख कर राकेश शर्मा सन्न रह गए. वह सिर थाम कर बैठ गए. यह खबर जब विनोद शर्मा के घर पहुंची तो वहां कोहराम मच गया. सुनीता का रोरो कर बुरा हाल था. पल भर में उस के घर पर पूरा गांव इकट्ठा हो गया. पोस्टमार्टम के बाद देर शाम विनोद की लाश गांव आई तो घर वालों के साथ पूरा गांव रो पड़ा. गांव वालों ने पहले तो विनोद का अंतिम संस्कार किया, उस के बाद आगरा-अलीगढ़ राजमार्ग पर जाम लगा दिया.

मृतक विनोद की पत्नी सुनीता की ओर से थाना मुरसान में विनोद शर्मा की हत्या का मुकदमा राजकुमार उर्फ डैनी के खिलाफ नामजद दर्ज कराया गया. सुनीता का कहना था कि 26 दिसंबर, 2013 की दोपहर को विनोद डैनी के यहां जाने की बात कह कर घर से निकले थे.

थानाप्रभारी संसार सिंह राठी ने राजकुमार उर्फ डैनी के बारे में पता किया तो जो जानकारी मिली, उस के अनुसार वह फितरती प्रवृत्ति का आदमी था. वह सीडीओ औफिस से पेंशन आदि के काम कराने के बहाने लोगों को ठगता था.

सुनीता शर्मा ने पुलिस को बताया था कि डैनी ने जिला नगरीय विकास अभिकरण विभाग से कर्ज दिलाने के नाम पर उस के पति से 10-12 हजार रुपए ऐंठ लिए थे. काम नहीं हुआ तो विनोद उस से अपने पैसे मांग रहा था. 2 दिन पहले इसी बात को ले कर दोनों में झगड़ा भी हुआ था. तब 26 दिसंबर को उस ने पैसे देने के लिए कहा था.

26 दिसंबर, 2013 की दोपहर को विनोद राजकुमार उर्फ डैनी के घर जाने की बात कह कर घर से निकला था. बात पैसों के लेनदेन की थी, इसलिए डैनी पूरी तरह संदेह के घेरे में था. पुलिस ने राजकुमार उर्फ डैनी को उस के नबीपुर स्थित घर पर छापा मार कर हिरासत में ले लिया.

थाने ला कर राजकुमार उर्फ डैनी से पूछताछ की गई तो उस के जवाबों से साफ हो गया कि डैनी शातिर दिमाग तो है, लेकिन इस ने विनोद शर्मा की हत्या नहीं की. इस के बाद पुलिस ने उसे घर पर रहने और बुलाने पर तुरंत थाने आने का निर्देश दे कर घर भेज दिया.

थानाप्रभारी संसार सिंह राठी ने कोशिश तो बहुत की, पर वह विनोद के हत्यारों तक पहुंच नहीं सके. धीरेधीरे 15 दिन बीत गए. तब पुलिस अधीक्षक और क्षेत्राधिकारी ने सलाहमशविरा कर के इस मामले की जांच में थाना पुलिस की मदद के लिए एसओजी टीम के प्रभारी अशोक कुमार को भी लगा दिया.

अशोक कुमार ने सब से पहले विनोद शर्मा के मोबाइल नंबर की पिछले एक महीने की काल डिटेल्स निकलवाईं. उन की नजर उस नंबर पर जम गईं, जिस नंबर पर विनोद ने सब से अधिक बात की थी. पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो वह नंबर एक महिला का निकला.

एक तो नंबर महिला का था, दूसरे उसी पर विनोद की सब से ज्यादा बातें हुई थीं, इसलिए पुलिस को उस पर संदेह हुआ. इस के बाद पुलिस ने उस महिला के बारे में पता किया.महिला का नाम अंजलि था. वह गांव झींगुरा की रहने वाली थी. पुलिस ने छापा मार कर उसे उस के घर से हिरासत में ले लिया. थाने ला कर जब उस से विनोद की हत्या के बारे में पूछा गया तो उस ने साफ मना कर दिया.

लेकिन पुलिस के सामने वह कहां तक झूठ बोलती. पुलिस ने थोड़ी सख्ती की तो उस ने सच्चाई बता दी. उस ने विनोद की हत्या का जुर्म स्वीकार कर के अपने उन साथियों के नाम भी बता दिए, जिन के साथ मिल कर उस ने इस हत्याकांड को अंजाम दिया था.

अंजलि जिला बुलंदशहर के गांव वाजिदपुर के रहने वाले मुन्नाबाबू की 4 बेटों पर एकलौती बेटी थी. करीब 10 साल पहले उस का विवाह जिला हाथरस के गांव झींगुरा के रहने वाले राजकुमार के छोटे बेटे अनीस के साथ हुआ था. राजकुमार का बड़ा बेटा पवन जयपुर में अपने फूफा के पास रह कर नौकरी करता था.

ससुराल और पति से अंजलि खुश थी. शादी के कुछ दिनों बाद अंजलि गर्भवती हुई तो उस का पति अनीस गांव के ही भीष्मपाल सिंह की हत्या के आरेप में जेल चला गया. पति के जेल जाने के बाद अंजलि अकेली पड़ गई. कुछ दिनों बाद उस ने बेटे को जन्म दिया. वह सोच रही थी कि कुछ दिनों में पति जेल से छूट कर घर आ जाएगा. लेकिन धीरेधीरे 7 साल बीत गए और अनीस छूट कर घर नहीं आया.

एक जवान औरत के लिए पति के बिना रहना आसान नहीं है. जब वह अकेली हो, तब परेशानी और बढ़ जाती है. लेकिन अंजलि इस उम्मीद में दिन काट रही थी कि आज नहीं तो कल, अनीस छूट कर आ ही जाएगा.

जिंदगी इंतजार में नहीं कटती. आदमी की तमाम जरूरतें होती हैं. उन्हें पूरी करने के लिए आदमी को तरहतरह के काम करने पड़ते हैं. अंजलि अकेली नहीं थी, उस का एक बेटा भी था. दोनों की जरूरतें पूरी करने के लिए काम करना जरूरी था. अंजलि अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए सहारा इंडिया में कमीशन पर पैसे जमा कराने लगी.

अंजलि की उम्र 24-25 साल थी. उस की जवानी पूरे जोश पर थी. वह सुंदर तो थी ही, घर से बाहर कदम रखा तो मर्दों की नजरें उसे घूरने लगीं. क्योंकि सभी को पता था कि उस का पति जेल में है. अंजलि दूध पीती बच्ची नहीं थी कि मर्दों की निगाहों का मतलब न समझती. मन तो उस का भी करता था कि उन से नजरें मिलाए, लेकिन लोकलाज की वजह से वह अपनी इच्छा को दबाए रही.

एक दिन सहारा इंडिया के औफिस में बैठी अंजलि कुछ ऐसी ही सोच में डूबी थी कि साथ काम करने वाले विनोद शर्मा ने पूछा, ‘‘क्या हुआ अंजलि, किस सोच में डूबी हो?’’

‘‘कुछ नहीं, अपनी जिंदगी के बारे में सोच रही थी.’’ अचकचा कर अंजलि ने जवाब दिया.

विनोद ने उस के बगल बैठ कर सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘परेशानी की बात तो है ही, फिर भी हिम्मत से काम लो. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा.’’

‘‘ठीक तो तभी होगा, जब अनीस जेल से बाहर आए. पता नहीं वह कब बाहर आएगा. कभीकभी उस की बड़ी याद आती है.’’ अंजलि ने मायूसी से कहा.

‘‘हिम्मत मत हारो अंजलि. जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा.’’ विनोद ने उसे हिम्मत बंधाई.

विनोद अंजलि से करीब 20 साल बड़ा था. इस नाते अंजलि उस की बहुत इज्जत करती थी. विनोद उसे हमेशा उचित सलाह देता था. जरूरत पड़ने पर या देर होने पर वह अपनी मोटरसाइकिल से उसे उस के घर भी पहुंचा देता था. अंजलि को विनोद पर पूरा विश्वास था, इसलिए वह उस से अपना हर सुखदुख बता देती थी.

विनोद जिला हाथरस के गांव बिजरौली के रहने वाले छेदालाल शर्मा का बेटा था. घर की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, इसलिए वह ज्यादा पढ़लिख नहीं सका. उम्र होने पर नजदीक के ही गांव जगीपुर के रहने वाले करन सिंह की बेटी सुनीता से उस की शादी हो गई थी.

तब विनोद बिजली फिंटिंग एवं मोटर वाइंडिंग का काम करता था. इस कमाई से वह खर्च भर के लिए कमा लेता था. इस तरह आराम से जिंदगी कट रही थी. धीरेधीरे वह 4 बेटों तथा 3 बेटियों का बाप बन गया. कुछ दिनों बाद उस ने बिजली का काम छोड़ कर सहारा इंडिया में कमीशन पर पैसे जमा करने का काम शुरू कर दिया.

एजेंट का काम करते हुए ही अंजलि से विनोद की मुलाकात हुई थी. उसे जब अंजलि के बारे में पता चला तो उसे उस से सहानुभूति हो गई. फिर वह उस की हर तरह से मदद करने लगा. यही वजह थी कि अंजलि उसे अपने कमरे पर आनेजाने देने लगी. हाथरस में उस ने अपने रहने के लिए एक कमरा ले रखा था.

घर परिवार के साथ रहने पर अकेलापन उतना परेशान नहीं करता, जितना अकेले रहने पर करता है. अंजलि हाथरस में अकेली रहने लगी तो उसे पति की कमी और ज्यादा खलने लगी. दिन तो कामधाम में बीत जाता था, लेकिन रात काटे नहीं कटती थी. मानसिक और शारीरिक बेचैनी उसे परेशान कर देती.

उन दिनों हाथरस में अंजलि का सब से करीबी विनोद ही था. वह उस के कमरे पर भी आताजाता था. अपनी बेचैनी कम करने के लिए वह विनोद से हर तरह की बातें कर लेती थी. धीरेधीरे दोनों आपस में इस तरह खुल गए कि उन्हें एकदूसरे के सामने तन खोलने में भी संकोच नहीं रहा. विनोद से संबंध बनने के बाद अंजलि की बेचैनी काफी हद तक कम हो गई.

एक बार अंजलि का संकोच खत्म हुआ तो फिर यह रोज का खेल बन गया. विनोद और उस की उम्र में 20 साल का अंतर था. अंजलि जवान थी तो विनोद अधेड़. अंजलि ने उस से मजबूरी में संबंध बनाए थे. लेकिन अब उस की मजबूरी भी खत्म हो गई थी और संकोच भी. इसलिए उस ने नया हमउम्र साथी ढूंढ़ लिया. उस का नाम था सत्येंद्र, जो थोड़ा अपराधी प्रवृत्ति का था.

सत्येंद्र हाथरस के ही गांव चंदपा के रहने वाले भूमिराज शर्मा का बेटा था. उस की गांव में ही बिल्डिंग मैटेरियल्स की दुकान थी. उसी के साथ उस ने दवाओं की भी दुकान खोल रखी थी. वह शादीशुदा था और उस के बच्चे भी थे.

सत्येंद्र विनोद से संपन्न भी था और हृष्टपुष्ट भी. उम्र में भी वह विनोद से कम था. अंजलि अकसर सत्येंद्र के घर के सामने से गुजरती थी. अंजलि कभी पैसा जमा कराने के चक्कर में उस से मिली तो बात शारीरिक संबंधों तक जा पहुंची. इस के बाद तो जब देखो, तब सत्येंद्र अंजलि के कमरे पर पड़ा रहने लगा.

सत्येंद्र से संबंध बना कर अंजलि ने विनोद से दूरी बना ली. जबकि विनोद उसे छोड़ने को तैयार नहीं था. अंजलि विनोद से जितना दूर जाने की कोशिश कर रही थी, विनोद उस के उतना ही नजदीक आने की कोशिश कर रहा था. वह फोन तथा एसएमएस कर के अंजलि से उस के पास आने को कहता, जबकि अंजलि उसे भाव नहीं दे रही थी.

अंजलि विनोद का नंबर देख कर ही फोन काट देती थी. क्योंकि अब उसे उस में जरा भी रुचि नहीं रह गई थी. सत्येंद्र ने सहारा इंडिया का उस का काम बंद करवा कर उस का पूरा खर्च उठाने लगा था. एक तरह से अब वह उस की रखैल बन कर रह रही थी.

विनोद को पता नहीं था कि अंजलि किसी और की रखैल बन गई है. यही वजह थी कि वह पहले की ही तरह उस से मिलना चाहता था. अंजलि ने मना किया तो वह उस पर दबाव बनाने लगा, जो अंजलि को पसंद नहीं आया. उस ने इस बात की शिकायत सत्येंद्र से कर दी. सत्येंद्र भला कैसे चाहता कि कोई और उस की प्रेमिका से मिले.

सत्येंद्र अंजलि के प्यार में आकंठ डूबा था. उस की प्रेमिका को कोई परेशान करे, यह वह कैसे बरदाश्त कर सकता था. यही वजह थी कि उस ने विनोद को अंजलि के रास्ते से हटाने का निश्चय कर लिया. इस के बाद उस ने बगल के गांव खेड़ा परसौली के रहने वाले संजीव पाठक के साथ मिल कर विनोद को खत्म करने की योजना बना डाली. इस योजना में उस ने अंजलि को भी शामिल किया.

संजीव आपराधिक प्रवृत्ति का युवक था. उस पर कई मामले चल रहे थे. सत्येंद्र शर्मा से उस की अच्छी मित्रता थी. पूरी योजना तैयार कर के तीनों 26 दिसंबर, 2013 को हाथरस पहुंच गए.

हाथरस से ही अंजलि ने विनोद को फोन कर के आरपीएम स्कूल के निकट मिलने के लिए बुलाया. विनोद उस समय पैसों के सिलसिले में राजकुमार के यहां जा रहा था. अंजलि का फोन आने के बाद यहां से वह सीधे हाथरस स्थित आरपीएम स्कूल जा पहुंचा.

विनोद खुश था कि महीनों बाद आज वह अपनी प्रेमिका से मिलेगा. वह वहां पहुंचा तो अंजलि सत्येंद्र शर्मा एवं संजीव पाठक के साथ इंतजार करती मिली. सहारा इंडिया में पैसा जमा कराने की चर्चा करते हुए सभी अंजलि के कमरे पर आ गए.

कमरे पर बातचीत के दौरान संजीव ने विनोद को पकड़ लिया तो सत्येंद्र ने उस के गले में अंगौछा लपेट कर कस दिया. कुछ देर छटपटा कर विनोद शांत हो गया. विनोद की लाश को ठिकाने लगाने के लिए वे रात होने का इंतजार करने लगे. इस बीच सत्येंद्र और संजीव पाठक ने अंजलि से शारीरिक संबंध भी बनाए. अंधेरा होते ही उन्होंने विनोद की लाश को मारुति वैन में डाला और मथुरा रोड पर चल पड़े.

कुछ दूर जा कर गांव नगला धर्मा के निकट वीरान जगह देख कर उन्होंने लाश को फेंक दिया और अपनेअपने घर चले गए. विनोद की मोटरसाइकिल उन्होंने मथुरा रोड पर एक गेस्टहाउस के पास खड़ी कर दी थी.

अंजलि के बयान के आधार पर पुलिस ने 1 जनवरी, 2014 को सत्येंद्र शर्मा और संजीव पाठक को हत्या में प्रयुक्त मारुति वैन नंबर डीएल6सी1687 के साथ गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उन दोनों ने भी विनोद की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने सभी अभियुक्तों को सीजेएम की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जिला जेल अलीगढ़ भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक तीनों अभियुक्त जेल में थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

चाहत की दर्दनाक दास्तान

9 अगस्त की सुबह फताराम सो कर उठा तो घर में पत्नी मेहर और बच्चों को न पा कर वह परेशान हो उठा. उस ने पूरे गांव में उन्हें इधरउधर खोजा. जब वे कहीं नहीं मिले तो वह किसी अनहोनी के बारे में सोच कर चिंतित हो उठा. उस ने पत्नी और बच्चों की तलाश रिश्तेदारों एवं जानपहचान वालों के यहां की. लेकिन वे वहां भी नहीं थे.

जब मेहर और बच्चों का कहीं कुछ पता नहीं चला तो अगले दिन यानी 10 अगस्त को परिजनों की सलाह पर फताराम ने थाना पल्लू में अपनी पत्नी और बच्चों की गुमशुदगी दर्ज करा दी. अब फताराम और उस के घर वालों के साथ पुलिस भी मेहर और बच्चों की तलाश करने लगी.

लेकिन कई दिनों बाद भी मेहर और बच्चों का कुछ पता  नहीं चला. जब इस बात की जानकारी गांव के ही मनीराम और रूपाराम को हुई तो उन्होंने फताराम के घर जा कर बताया कि कई दिन पहले रात को उन्होंने मेहर को गांव के बाहर वाले तालाब के पास राजमिस्त्री कृष्ण से बातें करते देखा था. तब बच्चे भी उस के साथ थे..

कृष्ण और मेहर के बीच अवैध संबंधों की जानकारी फताराम को थी. लेकिन मेहर बच्चों को ले कर उसके साथ भाग जाएगी, यह उस ने नहीं सोचा था. एक बार उसे विश्वास भी नहीं हुआ कि मेहर ऐसा करेगी. लेकिन जब उस ने इस बात पर गहराई से विचार किया तो उसे लगा कि मेहर बच्चों को ले कर उसी के साथ चली गई है.

19 अगस्त को फताराम अपने एक रिश्तेदार नंदलाल के साथ कृष्ण के गांव आशाखेड़ा पहुंचा. उन दोनों को देख कर कृष्ण के होश उड़ गए. मेहर का मोबाइल फोन कृष्ण के हाथ में देख कर फताराम ने पूछा, ‘‘मेहर कहां है?’’

‘‘मैं क्या जानूं, वह कहां है?’’

‘‘लेकिन तुम्हारे पास यह जो मोबाइल फोन है, वह मेहर का है.’’ फताराम ने कहा.

‘‘इसे तो उस ने गांव में ही मुझे बेच दिया था.’’  कृष्ण ने कहा.

जब कृष्ण ने मेहर के बारे में कुछ नहीं बताया तो फताराम वापस आ गया. अगले दिन वह नंदलाल के साथ थाना पल्लू पहुंचा और थानाप्रभारी सुनील चारण को बताया कि उस ने अपनी पत्नी मेहर का मोबाइल फोन कृष्ण के पास देखा है.

इस के बाद फताराम की तहरीर पर थानाप्रभारी सुनील चारण ने राजमिस्त्री कृष्ण कुमार के खिलाफ भादंवि की धारा 365, 366 तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. मुकदमा दर्ज होने के बाद थानाप्रभारी ने इस बात की सूचना पुलिस अधिकारियों को दी तो पुलिस उपाधीक्षक सत्यपाल सोलंकी के आदेश पर थानाप्रभारी सुनील चारण ने अगले दिन यानी 21 अगस्त को हरियाणा के चौटाला गांव से कृष्ण को गिरफ्तार कर लिया.

उसी दिन रावतसर के नजदीक से गुजरने वाली इंदिरा गांधी कैनाल की आरडी 84 के पास पुलिस ने एक बच्ची की लाश बरामद की. जब फताराम को बुला कर उस बच्ची की लाश दिखाई गई तो उस ने उस की शिनाख्त अपनी बेटी गरिमा के रूप में की. पोस्टमार्टम के बाद लाश पुलिस ने उसे सौंप दी.

गिरफ्तार अभियुक्त कृष्ण को पुलिस ने नोहर के एसीजेएम की अदालत में पेश किया और पूछताछ के लिए पुलिस रिमांड की मांग की. जांच अधिकारी ने जो दलीलें दी थीं, उन्हें सुन कर अदालत ने आरोपी को 9 दिनों के पुलिस रिमांड पर दे दिया.

रिमांड अवधि के दौरान कृष्ण ने मेहर की हत्या का अपराध स्वीकार करते हुए उस का मोबाइल फोन और वह मोटरसाइकिल भी बरामद करा दी, जिस से वह मेहर को ले कर भागा था. इस के बाद उस ने मेहर और उस के बच्चों की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह पूरी कहानी कुछ इस प्रकार थी.

राजस्थान के जिला चुरू की तहसील सरदार शहर का एक गांव है पुनसीसर. इसी गांव की रहने वाली थी मेहर उर्फ मोहरां. मेहर शादी लायक हुई तो उस के पिता ने सन 2008 में उस की शादी जिला हनुमानगढ़ की तहसील नोहर के थिराना गांव के रहने वाले हेतराम के बेटे फताराम के साथ कर दी.

सुंदर सलोनी मेहर को पत्नी के रूप में पा कर फताराम निहाल हो गया था. जबकि मेहर की उम्मीदों पर पानी फिर गया. क्योंकि मेहर का सपनों का राजकुमार तो छैलछबीला था. उस की जगह उसे एक मेहनती, कर्मठ और सच्चा प्रेम करने वाला आम शक्लसूरत का साधारण पति मिला था.

मेहर ने हालात से समझौता किया और समझदार घर वाली के रूप में अपनी गृहस्थी संभाल ली. समय अपनी गति से  गुजरता रहा. फताराम के पिता के पास खेती लायक थोड़ी जमीन थी. सिचाई के अभाव से उस में कोई खास पैदावार नहीं होती थी. इसलिए हेतराम के तीनों बेटे मेहनतमजदूरी करते थे.

फताराम शादियों में खाना बना कर थोड़ीबहुत कमाई कर लेता था. खाली समय में वह भी पिता और भाइयों की तरह मजदूरी करता था.

सन 2011 में मेहर ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम उस ने गरिमा रखा. इस के बाद हेतराम ने बड़े बेटे की तरह फताराम को भी अलग कर दिया. फताराम अपने पुश्तैनी मकान से अलग कमरा बना कर मेहर और बेटी के साथ रहने लगा.

परिवार से अलग होने और बिटिया के पैदा होने से फताराम काफी मेहनत कर के भी घर के खर्चे पूरे नहीं कर पा रहा था. गुजरबसर के लिए फताराम को हाड़तोड़ मेहनत करनी पड़ रही थी. इस के बावजूद उस की स्थिति में जरा भी सुधार नहीं हो रहा था.

पति को परेशान देख कर एक दिन मेहर ने कहा, ‘‘अगर तुम कहो तो मैं भी तुम्हारे साथ मजदूरी करने चलूं. दोनों जन मजदूरी करेंगे तो कमाई दोगुनी हो जाएगी. उस के बाद तुम्हें इतनी मेहनत नहीं करनी पड़ेगी.’’

‘‘ऐसा नहीं हो सकता, क्योंकि मेरे घर की कोई भी औरत आज तक मजदूरी करने नहीं गई तो भला मैं तुम से कैसे मजदूरी करवा सकता हूं. अगर तुम्हें अपने साथ काम पर ले गया तो गांव वाले मेरी हंसी उड़ाएंगे कि औरत की कमाई खाता है.’’

‘‘अपने गांव में मैं मजदूरी नहीं कर सकती तो हम कहीं दूर अंजान जगह पर चलते हैं, जहां दोनों मजदूरी कर सकें. मैं ने मायके में खूब मजदूरी की है. तुम मर्दों से मैं दोगुना काम कर सकती हूं.’’ मेहर ने कहा.

पत्नी की इस बात पर फताराम को हंसी आ गई. लेकिन उसे मेहर की यह सलाह जंच गई.

अगले ही दिन फताराम मेहर और बेटी को ले कर हरियाणा के रहने वाले अपने एक दूर के रिश्तेदार के यहां पन्नीवाली चला गया. वहां गांव में ही किसी का मकान बन रहा था, उसी में फताराम और मेहर मजदूरी करने लगे.

उसी मकान पर कृष्ण कुमार राजमिस्त्री के रूप में काम करता था. वह हरियाणा के जिला सिरसा के गांव आशाखेड़ा के रहने वाले रामप्रताप का बेटा था. वह भी काम की तलाश में वहां गया था. मेहर के काम करने के ढंग और फुर्तीलेपन से वह काफी प्रभावित हुआ. उस ने मेहर के काम की प्रशंसा की तो वह खुशी से गदगद हो उठी. वह घूंघट हटा कर मंदमंद मुसकराई तो कृष्ण का हौंसला बढ़ गया.

धीरेधीरे कृष्ण मेहर पर डोरे डालने लगा. उसे अपने प्रेमजाल में फंसाने के लिए वह उस की कदकाठी और सुंदरता की प्रशंसा के पुल बांधने लगा. बातचीत का सिलसिला चल पड़ा था, इसलिए वह मेहर को भाभी कहने लगा था. अपने लिए कृष्ण के मन में रुचि देख कर मेहर भी उस की तरफ खिंची चली गई.

औरतों को प्रेमजाल में फंसाने में माहिर कृष्ण ने मेहर पर पैसे भी खर्च करने शुरू कर दिए. परिणामस्वरूप जल्दी ही देवरभाभी के मुंहबोले पवित्र रिश्ते को दोनों ने तारतार कर दिया. इस तरह मन से कृष्ण की हुई मेहर, तन से भी उस की हो गई.

कृष्ण कुंवारा था, इसलिए मेहर को वह सपनों का राजकुमार लगने लगा. दोनों इस तरह चोरी से मिलते थे कि फताराम को उन के इस संबंध की भनक तक नहीं लग पाई. कुछ दिनों बाद फताराम को गांव में पानी बरसने की जानकारी मिली तो उस ने अपने खेतों की जुताईबुवाई के लिए गांव जाने की तैयारी कर ली.

जब उस ने यह बात मेहर को बताई तो कृष्ण से दूर होने की बात सोच कर वह उदास हो गई. उस ने यह बात कृष्ण से कही तो उस ने कहा, ‘‘इस में परेशान होने की क्या बात है. मैं तुम्हें एक मोबाइल फोन ला कर दिए देता हूं, उस से हमारी बातें तो होती ही रहेंगी, मिलने में भी वह हमारी मदद करेगा.’’

मेहर कृष्ण का इशारा समझ गई. उस ने कहा, ‘‘कृष्ण वह मोबाइल फोन तुम मुझे उन के सामने गिफ्ट के रूप में देना, ताकि उन्हें किसी प्रकार शक न हो, क्योंकि वह बहुत शक्की स्वभाव के हैं.’’

वादे के अनुसार कृष्ण ने एक नया मोबाइल फोन ला कर फताराम के सामने मेहर को गिफ्ट कर दिया. अगले दिन फताराम मेहर को ले कर अपने गांव थिराना आ गया.

मेहर के जाने के बाद उस के प्रेम में पागल कृष्ण को उस के बिना एक भी पल काटना मुश्किल लगता था. मेहर की हालत तो उस से भी बदतर थी. हालांकि दोनों की फोन पर बातें होती रहती थीं, लेकिन बातों से मन नहीं भरता था. वे तो एकदूसरे को बांहों में भर कर प्यार करना चाहते थे. लेकिन यह संभव नहीं हो पा रहा था.

इस बीच मेहर ने एक बेटे को भी जन्म दिया था. अब वह 2 बच्चों की मां बन गई थी. बेचैनी ज्यादा बढ़ी तो एक दिन मेहर ने फोन पर कह दिया, ‘‘कृष्ण, मैं औरत हूं, लेकिन तू तो मर्द है. अगर तू चाहे तो मिलने का कोई न कोई रास्ता निकाल सकता है.’’

कृष्ण ने जवाब में कहा, ‘‘मेहर, मैं ने रास्ता निकाल लिया है. मैं कल ही तुम्हारे गांव आ रहा हूं. वहां भी कोई न कोई काम मिल ही जाएगा.’’

कृष्ण ने कहा ही नहीं, बल्कि अगले दिन थिराना पहुंच भी गया. बगल के गांव में किसी का मकान बन रहा था, वहां उसे राजमिस्त्री का काम भी मिल गया. गांवों में वैसे भी किसी का घर ढूंढ़ने में दिक्कत नहीं होती, कृष्ण को भी फताराम का घर आसानी से मिल गया. मियांबीवी ने कृष्ण की दिल खोल कर आवभगत की.

गांव आने के बाद फताराम शादीब्याह में खाना बनाने का काम करने लगा था. यहां मेहर मजदूरी करने नहीं जाती थी. कुछ देर रुक कर कृष्ण लौट गया.

रात का खाना खा कर कृष्ण सोने की कोशिश कर रहा था. लेकिन आंखों के सामने तो मेहर का गदराया बदन घूम रहा था, इसलिए उसे नींद नहीं आ रही थी. अचानक उस के मोबाइल की घंटी बजी. फोन उठा कर देखा तो मेहर का फोन था.

कृष्ण ने जैसे ही फोन रिसीव किया, मेहर ने कहा, ‘‘अभी जाग रहे हो? लगता है नींद नहीं आ रही है?’’

‘‘तुम्हें देखने के बाद भला नींद आ सकती है. नींद और दिल तो तुम ने चुरा लिया है.’’ कृष्ण ने आह भरते हुए कहा.

‘‘सुनो, कल यह एक विवाह में खाना बनाने जाएंगे. वहां इन्हें 3 दिनों तक रुकना है. इन के जाते ही मैं तुम्हें फोन कर दूंगी. 3 दिन दोनों मौज करेंगे.’’ कह कर मेहर ने फोन काट दिया.

प्रेमिका का संदेश मिलते ही कृष्ण छिपतेछिपाते मेहर के घर पहुंच गया. कई महीने से मिलन के लिए तरस रहे मेहर और कृष्ण ने पूरी रात जश्न मनाया. इस तरह एक बार फिर दोनों के मिलने का सिलसिला शुरू हो गया. जब भी मौका मिलता, मेहर कृष्ण को फोन कर के बुला लेती और दोनों मौजमस्ती करते.

कहावत है कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते, कृष्ण और मेहर का भी यह मिलन उजागर हो गया. दोनों के लाख सावधानी बरतने के बावजूद एक रात मेहर के देवर ने दोनों को रंगेहाथों पकड़ लिया. उस ने कृष्ण को धमकाया, ‘‘फिर कभी इधर दिखाई दिया तो हाथपैर तोड़ कर रख दूंगा.’’

भाभी को कुछ कहने के बजाय उस ने यह बात फताराम को बता दी. पत्नी की चरित्रहीनता से नाराज हो कर फताराम ने मेहर की जम कर पिटाई की. इस के बाद उस ने पत्नी पर नजर रखने के साथसाथ बंदिशें भी लगा दीं. बंदिशों से मेहर को घुटन सी होने लगी. मेहर से न मिल पाने की वजह से कृष्ण भी बेचैन था.

जब नहीं रहा गया तो मोबाइल पर बात कर के मेहर ने कृष्ण के साथ भाग जाने की योजना बना डाली. इस के बाद अगली रात यानी 8 अगस्त की रात मेहर बच्चों को ले कर अकेली ही गांव के बाहर तालाब पर पहुंच गई. मोटरसाइकिल लिए कृष्ण वहां पहले से ही खड़ा था.

कृष्ण मेहर और बच्चों को ले कर हरियाणा की ओर जाने वाली सड़क पर चल पड़ा. कुछ घंटों की यात्रा के बाद वह सभी को ले कर हरियाणा के गोरीवाला गांव पहुंचा. गांव में सत्संग चल रहा था. कृष्ण मेहर और बच्चों को ले कर सत्संग में बैठ गया. सवेरा होने पर कृष्ण सभी को ले कर राजस्थान के संगरिया कस्बे में पहुंचा. वहां उस ने मेहर तथा बच्चों को रेलवे स्टेशन पर छोड़ दिया और खुद नजदीक ही एक जगह पर मजदूरी करने चला गया.

दिन भर कृष्ण मजदूरी करता था तो मेहर रेलवे स्टेशन के प्रतीक्षालय में बच्चों को लिए बैठी रहती थी. रात में कृष्ण भी वहीं आ कर सो जाता था. खानेपीने की व्यवस्था वह बाहर से करता. वे वहां रह तो रहे थे, लेकिन दोनों को इस बात का डर सता रहा था कि फताराम ने रिपोर्ट लिखा दी होगी और पुलिस उन के पीछे पड़ी होगी. अगर वे पकड़े गए तो फजीहत तो होगी ही, जेल भी जाना पड़ेगा.

पुलिस के डर से दोनों का खानापीना और नींद हराम हो गई थी. पकड़े जाने के ही डर से कृष्ण मेहर को ले कर घर नहीं जा रहा था. इसी तरह 5 दिन बीत गए. जब कोई राह नहीं सूझी तो उन्होंने आत्महत्या करने का मन बना लिया. इस के बाद कृष्ण मेहर और उस के बच्चों को ले कर कालुआना गांव के नजदीक से बहने वाली इंदिरा गांधी नहर पर पहुंचा.

सूरज के डूब जाने से अंधेरा फैलने लगा था. नहर की पटरी पर बैठे कृष्ण ने एक बार फिर मेहर को समझाते हुए कहा, ‘‘मेहर, मैं जो कह रहा हूं, उसे मान लेने में ही हम दोनों की भलाई है. मैं तुझे रात में तेरे गांव पहुंचा देता हूं. मेरे पास ढेर सारे पैसे हो जाएंगे तो मैं तुझे कहीं दूर ले चलूंगा.’’

‘‘कृष्ण, गांव जाने के अलावा तू कुछ भी कहेगा, मैं करने को तैयार हूं. जिस दिन मैं ने तेरे साथ घर छोड़ा है, उसी दिन मैं गांव और घर वालों के लिए मर चुकी हूं. पति के पास या मायके जाने के बजाय मैं इस नहर में डूब मर जाना बेहतर समझती हूं.’’ मेहर ने कहा.

‘‘मर जाना किसी समस्या का हल नहीं है मेहर. हमें जीना चाहिए. जिएंगे तभी तो एकदूसरे को प्यार कर पाएंगे.’’ कृष्ण ने कहा.

‘‘तुम्हें प्यार करने की पड़ी है. फताराम पुलिस वालों को साथ लिए हमें ढूंढ रहा होगा. जिस दिन दोनों पकड़े गए, प्यार करना भूल जाएंगे.’’ मेहर ने कहा.

पुलिस के डर से ही तो कृष्ण भागाभागा फिर रहा था. उसे लगा, मेहर सच कह रही है. लेकिन वह मरना नहीं चाहता था, इसीलिए मेहर को बहकाते हुए इसी तरह लगभग घंटे भर चर्चा करता रहा. लेकिन अंत में मेहर ने कहा, ‘‘मेरी इच्छा यही है कि जिस तरह इस जन्म में मैं तेरी हो गई, उसी तरह अगले जन्म में भी तेरी ही रहूं. इसलिए हम दोनों को एक साथ नहर में कूद कर जान दे देनी चाहिए. कहते हैं, इस तरह एक साथ मरने से अगले जन्म में साथ मिल जाते हैं.’’

‘‘इन बच्चों का क्या होगा?’’ कृष्ण ने पूछा.

‘‘इन्हें हम किसी के भरोसे क्यों छोड़ेंगे. इन दोनों  को भी साथ ले कर कूदेंगे.’’ मेहर ने कहा.

कुछ देर दोनों मौन बैठे रहे. कृष्ण खड़ा हुआ तो मेहर भी उठ कर खड़ी हो गई. उस ने बेटी का हाथ पकड़ा और बेटे को गोद में उठा लिया. दोनों की सांसें घबराहट की वजह से धौंकनी की तरह चल रही थीं. योजना के अनुसार कृष्ण ने गिनती शुरू की. जैसे ही उस ने 3 कहा, मेहर दोनों बच्चों के साथ नहर में कूद गई. लेकिन कृष्ण जस का तस खड़ा रह गया.

नहर के तेज बहाव में मेहर बच्चों के साथ बह गई. कृष्ण बुत बना थोड़ी देर तक नहर के बहते पानी को देखता रहा. उस के मन में क्या चल रहा था, वह तो वही जाने, लेकिन उस ने मेहर के साथ जीने और साथ मरने की जो कसमें खाई थीं, उन्हें पूरा नहीं कर सका. कुछ देर बाद उस ने मोटरसाइकिल उठाई और अपने घर की ओर चल पड़ा.

रिमांड अवधि खत्म होने पर पुलिस ने कृष्ण को फिर से अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. पता चला है कि कृष्ण की कहीं और शादी तय हो गई थी, इसीलिए वह मेहर से छुटकारा पाना चाहता था. शायद इसीलिए धोखे से उस ने उसे नहर में गिरा दिया था, साथ ही बच्चों को भी नहर में फेंक दिया था.

पुलिस मेहर और उस के बेटे के शव को बरामद करने के लिए नहर पर नजर रख रही थी. सभी थानों को भी सूचना दे दी गई थी. मेहर की नादानी की वजह से एक भरापूरा परिवार खत्म हो गया.

विवाहिता के प्यार में फंसा समीर – भाग 2

सन 1991 में सोफिया शेख का निकाह चैंबूर के शिवाजीनगर के रहने वाले इमरान हाजीवर शेख के बड़े भाई के साथ हुआ तो मानो उसे दुनिया की सारी खुशियां मिल गई थीं. इस की वजह यह थी कि उस का पति उसे जान से ज्यादा प्यार करता था. उस का दांपत्यजीवन बड़ी हंसीखुशी से बीत रहा था. दोनों अपनी गृहस्थी जमाने की कोशिश कर रहे थे कि अचानक उन की इस गृहस्थी पर किसी की काली नजर पड़ गई.

अभी सोफिया के हाथों की मेहंदी भी ठीक से नहीं छूटी थी कि जिस पति ने उस का हाथ थाम कर जीवन भर साथ निभाने का वादा किया था, वह हाथ ही नहीं, बल्कि हमेशाहमेशा के लिए उस का साथ छोड़ कर चला गया. हैवानियत की एक ऐसी आंधी आई, जिस में उस का सुहाग पलभर में उड़ गया. सन 1992 में मुंबई में जो सांप्रदायिक दंगे हुए थे, उस में उस का पति मारा गया था.

पति की आकस्मिक मौत ने सोफिया को तोड़ कर रख दिया. उसे दुनिया से ही नहीं, अपनी जिंदगी से भी नफरत हो गई. वह जीना नहीं चाहती थी, लेकिन आत्महत्या भी नहीं कर सकती थी. वह हमेशा सोच में डूबी रहने लगी. मुसकराने की तो छोड़ो, वह बातचीत भी करना लगभग भूल सी गई थी. उस की हालत देख कर मातापिता परेशान रहने लगे थे. उस ने जिंदगी शुरू की थी कि उस के साथ इतना बड़ा हादसा हो गया था. अभी उस की पूरी जिंदगी पड़ी थी. उस की जिंदगी को संवारने के लिए उस के मातापिता उस के दूसरे निकाह के बारे में सोचने लगे.

सोफिया के मातापिता उस का दूसरा निकाह उस के पति के छोटे भाई इमरान हाजीवर शेख से करना चाहते थे. सोफिया की ससुराल वालों से बातचीत कर के जब उस के मातापिता ने इमरान से निकाह का प्रस्ताव सोफिया के सामने रखा तो उस ने मना कर दिया. लेकिन उन्होंने उसे ऊंचनीच का हवाला दे कर खूब समझायाबुझाया तो वह देवर इमरान हाजीवर शेख के साथ निकाह करने को तैयार हो गई.

इस के बाद दोनों परिवारों की उपस्थिति में बड़ी सादगी से सोफिया का निकाह उस के पति के छोटे भाई इमरान हाजीवर शेख के साथ हो गया. यह 1996 की बात थी. इमरान औटो चलाता था.

निकाह के बाद सोफिया अपने दूसरे पति से भी वैसा ही प्यार चाहती थी, जैसा उसे पहले पति से मिला था. यही वजह थी कि वह उसे भी उसी तरह प्यार कर रही थी. निकाह के कुछ दिनों बाद तक तो इमरान ने उसे उसी तरह प्यार किया, जिस तरह उस के पहले पति ने किया था. तब वह अपनी सारी कमाई ला कर सोफिया के हाथों में रख देता था. उस बीच उस ने उस के हर दुखसुख का खयाल भी रखा.

उसी बीच सोफिया उस के 2 बच्चों की मां बनी. पहला बच्चा बेटा था तो दूसरा बेटी. बच्चों के बढ़ने के साथ जिम्मेदारियां बढ़ने लगीं. जिम्मेदारियां बढ़ीं तो खर्च बढ़ा, जिस के लिए इमरान को कमाई बढ़ाने के लिए ज्यादा समय देना पड़ता था. अब वह पहले की तरह न सोफिया को प्यार कर पाता था, न समय दे पाता था. इस से सोफिया का मन बेचैन रहने लगा, जिस से छोटीछोटी बातों को ले कर बड़ेबड़े झगड़े होने लगे. धीरेधीरे ये झगड़े इतने बढ़ गए कि दोनों ने अलग रहने का निर्णय ले लिया. इस तरह दोनों के संबंध खत्म हो गए.

पति से अलग होने के बाद सोफिया दोनों बच्चों को ले कर मानखुर्द में मुंबई म्हाण द्वारा मिले मकान में आ कर रहने लगी. बच्चों के साथ यहां आ कर सोफिया खुश तो थी, लेकिन एक बात यह भी है कि पति से अलग होने के बाद हर औरत बहुत दिनों तक अपने दिलोदिमाग पर काबू नहीं रख पाती. अगर वह जवान हो तो यह समस्या और बढ़ जाती है. क्योंकि इस उम्र में जो जोश होता, उसे संभालना हर किसी के वश की बात नहीं होती. उस औरत के लिए यह और मुश्किल हो जाता है, जो उस का स्वाद चख चुकी होती है. ऐसे में वह उस सुख के लिए मर्यादा तक भूल जाती है.

ऐसा ही सोफिया के साथ भी हुआ. पति इमरान हाजीवर से अलग होने के बाद वह अपने तनमन पर काबू नहीं रख पाई और स्वयं को समीर शेख की बांहों में झोंक दिया.

25 वर्षीय समीर शेख अपने भाई के साथ गोवड़ी शिवाजीनगर के उसी इलाके में रहता था, जहां सोफिया अपने पति इमरान हाजीवर शेख के साथ रहती थी. समीर शेख देखने में जितना सुंदर और स्वस्थ था, उतना ही दिलफेंक भी था. इसी वजह से लड़कियां उस की कमजोरी बन चुकी थीं. समीर के पास किसी चीज की कमी नहीं थी. वह दुबई की किसी कंपनी में नौकरी करता था. अच्छी कमाई थी, इसलिए खर्च करने में भी उसे कोई परेशानी नहीं होती थी. वह हमेशा हीरो की तरह सजधज कर रहता था. उस की शादी भी नहीं हुई थी, इसलिए कोई जिम्मेदारी भी नहीं थी.

अपने दिलफेंक स्वभाव की ही वजह से जब उस ने सोफिया को अपने एक रिश्तेदार के यहां देखा तो पहली ही नजर में उसे अपने दिल में बैठा लिया. कुंवारा समीर अपनी उम्र से बड़ी और 2 बच्चों की मां सोफिया पर मर मिटा. सोफिया जब तक अपने उस रिश्तेदार के घर रही, तब तक महिलाओं को पटाने में माहिर समीर की नजरें सोफिया के इर्दगिर्द ही घूमती रहीं.

सोफिया को भी एक ऐसे पुरुष की जरूरत थी, जो उस के भटकते तनमन को काबू में ला सके. इसलिए समीर से नजरें मिलते ही उस ने उस के दिल की बात जान ली. सोफिया ने समीर को तब देखा था, जब वह लड़का था. आज वही समीर जवान हो कर उसे अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश कर रहा था.

समीर का भरापूरा चेहरा, चौड़ी छाती और मजबूत बांहें देख कर सालों से शारीरिक सुख से वंचित सोफिया का मन विचलित हो उठा. वह उसे चाहत भरी नजरों से ताक ही रहा था, इसलिए सोफिया ने भी उस पर अपनी नजरें इनायत कर दीं तो बातचीत में होशियार समीर को उस पर अपना प्रभाव जमाने में देर नहीं लगी. उसी दौरान दोनों ने एकदूसरे के फोन नंबर भी ले लिए. इस के बाद मोबाइल पर शुरू हुई बातचीत जल्दी ही मेलमुलाकात में ही नहीं, प्यार और शारीरिक संबंधों में बदल गई.

2 बच्चों की मां होने के बावजूद सोफिया की सुंदरता में जरा भी कमी नहीं आई थी. उस के रूपसौंदर्य और शालीन स्वभाव में समीर डूब सा गया. औरतों का रसिया समीर शेख जब तक दुबई में रहता, फोन से बातें कर के सोफिया को अपने प्यार में इस कदर उलझाए रहता कि उसे उस की दूरी का अहसास नहीं हो पाता.

दुबई से आने पर समीर सोफिया के लिए ढेर सारे उपहार तो लाता ही, उसे इस कदर प्यार करता कि बीच का खालीपन भर जाता. जब तक वह यहां रहता, सोफिया को इतना प्यार देता कि वह पूरी दुनिया भूली रहती. समीर के प्यार को पा कर सोफिया एक सुंदर भविष्य के सपनों में खो गई. उस के मन में उम्मीद जाग उठी कि समीर उस का पूरे जीवन साथ देगा. समीर ने वादा भी किया था, इसलिए सोफिया उस से निकाह के लिए कहने लगी. जबकि समीर टालता रहा.

विवाहिता के प्यार में फंसा समीर – भाग 1

आग भड़की तो धुआं खिड़कियों और दरवाजों की दराजों से बाहर निकलने लगा. पड़ोसियों ने तुरंत इस बात की जानकारी फायर और पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. पुलिस कंट्रोलरूम ने तत्काल इस बात की सूचना मुंबई के उपनगर चैंबूर के थाना पुलिस को दी. सूचना के अनुसार लल्लूभाई कंपाउंड की इमारत की पांचवीं मंजिल के किसी फ्लैट में आग लगी थी.

उस में से निकलने वाले धुएं से मानव शरीर के जलने की गंध आ रही थी. उस समय ड्यूटी पर सबइंसपेक्टर माली थे. सूचना गंभीर थी, इसलिए घटना की सूचना अपने सीनियर पुलिस इंसपेक्टर चंद्रशेखर नलावड़े को दे कर वह तुरंत कुछ सिपाहियों के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए.

सबइंसपेक्टर माली के पहुंचने तक वहां काफी भीड़ जमा हो चुकी थी. आग बुझाने वाली गाडि़यां भी आ चुकी थीं और उन्होंने आग पर काबू भी पा लिया था. सबइंसपेक्टर माली साथियों के साथ फ्लैट के अंदर पहुंचे तो वहां की स्थिति देख कर स्तब्ध रह गए.

कमरे में एक औरत बेहोशी की हालत में रुई के गद्दे में लिपटी थी. गद्दे के साथ उस के सारे कपड़े ही नहीं, सीना, पेट, हाथ, कमर और दोनों पैर भी बुरी तरह जल गए थे. गौर से देखने पर पता चला कि उस के सिर के ऊपरी हिस्से में गहरा घाव था, जिस से अभी भी खून रिस रहा था. वहां तेज धार वाला एक बड़ा सा खून से सना चाकू पड़ा था. साफ था, पहले हत्यारों ने महिला पर चाकू से वार किया था. उस के बाद सुबूत मिटाने के लिए उसे गद्दे में लपेट कर आग लगा दी थी.

सबइंसपेक्टर माली ने देखा कि महिला की सांस चल रही है तो उन्होंने उसे तुरंत एंबुलैंस में डाल कर उपचार के लिए घाटकोपर राजा वाड़ी असपताल भिजवा दिया. इस के बाद वह सुबूतों की तलाश में फ्लैट का कोनाकोना छानने में लग गए.

पड़ोसियों से पूछताछ में पता चला कि महिला का नाम सोफिया शेख था. वह अपनी बेटी के साथ वहां रहती थी. श्री माली अपने सहायकों के साथ सोफिया के बारे में जानकारी जुटा रहे थे कि घटना की सूचना पा कर ज्वाइंट सीपी कैसर खालिद, एडिशनल सीपी लखमी गौतम, एसीपी विजय मेरु, सीनियर इंसपेक्टर शंकर सिंह राजपूत, इंसपेक्टर चंद्रशेखर नलावड़े, प्रमोद कदम घटनास्थल पर आ पहुंचे थे.

अधिकारी घटनास्थल का निरीक्षण कर के सीनियर इंसपेक्टर शंकर सिंह राजपूत को आवश्यक दिशानिर्देश दे कर चले गए. अधिकारियों के जाने के बाद सीनियर इंसपेक्टर शंकर सिंह राजपूत ने सहायकों की मदद से चाकू, खून का नमूना, सोफिया का मोबाइल फोन कब्जे में लिया और लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर थाने आ गए.

थाने आ कर सीनियर इंसपेक्टर शंकर सिंह राजपूत हत्यारों तक पहुंचने का रास्ता तलाश करने लगे. घटनास्थल की स्थिति से साफ था कि यह लूटपाट का मामला नहीं था, क्योंकि फ्लैट का सारा समान यथास्थिति पाया गया था. ऐसे में सावाल यह था कि तब सोफिया की हत्या की कोशिश क्यों की गई थी.

सोफिया इस स्थिति में नहीं थी कि वह इस सवाल का जवाब देती. वह उस समय जिंदगी और मौत के बीच झूल रही थी. वैसे भी उस के बचने की संभावना कम थी. आखिर वही हुआ, जिस का सभी को अंदाजा था. लाख कोशिश के बाद भी डाक्टर सोफिया को बचा नहीं सके. उसी दिन शाम लगभग 6 बजे सोफिया ने दम तोड़ दिया था.

सोफिया की मौत के बाद हत्यारों के बारे में पता चलने की पुलिस की उम्मीद खत्म हो गई थी. अब उन्हें अपने तरीके से कातिलों तक पहुंचना था. सोफिया की हत्या किस ने और क्यों की, वे कहां के रहने वाले थे? अब पुलिस के लिए यह एक रहस्य बन गया था.

सीनियर इंसपेक्टर शंकर सिंह राजपूत ने इस मामले की जांच इंसपेक्टर चंद्रशेखर नलावड़े को सौंप दी थी. सीनियर इंसपेक्टर शंकर सिंह राजपूत के मार्गदर्शन में इंसपेक्टर चंद्रशेखर नलावड़े ने इंसपेक्टर प्रमोद कदम, असिस्टेंट इंसपेक्टर पोपट सालुके, सबइंसपेक्टर संदेश मांजरेकर, सिपाही भरत ताझे, राजेश सोनावणे की एक टीम बना कर मामले की तफ्तीश तेजी से शुरू कर दी.

चंद्रशेखर की इस टीम ने सोफिया की बेटी, इमारत में रहने वालों और उस के नातेरिश्तेदारों से लंबी पूछताछ की. इमारत में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी देखी. लेकिन काफी मेहनत के बाद भी उस के कातिलों तक पहुंचने का पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला.

जब इस पूछताछ से पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला तो पुलिस ने सोफिया के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. पुलिस की नजरें काल डिटेल्स के उस नंबर पर जम गईं, जो उस दिन सोफिया पर हमला होने से पहले आया था.

वही अंतिम फोन भी था. वह फोन 12 बज कर 03 मिनट पर आया था. सोफिया ने उसे रिसीव भी किया था. इस का मतलब उस समय तक वह जीवित थी. इस के बाद ही उस फ्लैट में आग लगने की सूचना पुलिस और फायरब्रिगेड को दी गई थी. इस का मतलब फोन करने के बाद 15 मिनट के अंदर हत्यारे अपना काम कर के चले गए थे.

इंसपेक्टर चंद्रशेखर की टीम ने एक बार फिर इमारत में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी. उस समय की तस्वीरों को गौर से देखा गया. लेकिन कोई स्पष्ट तस्वीर पुलिस को दिखाई नहीं दी. इस के बाद पुलिस ने उस नंबर पर फोन किया, लेकिन फोन बंद होने की वजह से बात नहीं हो पाई. तब पुलिस ने यह पता किया कि वह नंबर किस के नाम है और वह कहां रहता है?

पुलिस को इस संबंध में तुरंत जानकारी मिल गई. वह किसी जावेद के नाम था. पुलिस को उस का पता भी मिल गया था. पुलिस उस के घर पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला. घर पर जावेद की बहन और भाभी मिलीं तो पुलिस ने पूछा कि उस का फोन बंद क्यों है? तब दोनों ने बताया कि उस का फोन इन दिनों उस के जिगरी दोस्त पप्पू के पास है. पप्पू का पता भी दोनों ने बता दिया था. इसलिए पुलिस टीम वहां से सीधे पप्पू के घर जा पहुंची.

पप्पू भी घर से गायब था. पुलिस टीम ने उस फोन को सर्विलांस पर लगवा दिया, जिस का उपयोग पप्पू कर रहा था. इस के बाद सर्विलांस की मदद से 12 दिसंबर, 2013 की दोपहर 2 बजे पुलिस टीम ने पप्पू को शिवडी के झकरिया बंदर रोड से गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर जब पप्पू से सोफिया की हत्या के बारे में पूछताछ की जाने लगी तो पहले उस ने स्वयं को निर्दोष बताया. लेकिन पुलिस के पास उस के खिलाफ ढेर सारे सुबूत थे, इसलिए उसे घेर कर सच्चाई उगलवा ली. आखिर उस ने स्वीकार कर लिया कि मुन्ना उर्फ परवेज शेख के साथ उसी ने दुबई में रहने वाले समीर के कहने पर सोफिया की हत्या की थी.

इस के बाद पुलिस ने पप्पू की निशानदेही पर घाटकोपर के तिलकनगर के सावलेनगर के रहने वाले मुन्ना को उस के घर छापा मार कर गिरफ्तार कर लिया. पप्पू के पकड़े जाने से पूछताछ में उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद दोनों को मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश कर के 7 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया. रिमांड के दौरान पूछताछ में दोनों ने जो बताया, उस के अनुसार सोफिया की हत्या की यह कहानी कुछ इस तरह थी.

40 वर्षीया सोफिया शेख अपने 2 बच्चों के साथ चैंबूर मानखुर्द के लल्लूभाई कंपाउंड की बिल्डिंग नंबर 60 की बी-विंग के फ्लैट नंबर 5/3 में रहती थी. उस का 13 वर्षीय बेटा रत्नागिरि के एक बोर्डिंग स्कूल में पढ़ता था और वहीं बोर्डिंग के हौस्टल में रहता था. जबकि 10 वर्षीया बेटी सोफिया के साथ ही रहती थी. घटना के समय वह स्कूल गई हुई थी.

लड़की के लिए दोस्त बना दुश्मन – भाग 5

सुनील की परेशानी वासिफ से भी छिपी नहीं थी. कुछ महीने नौकरी कर के वासिफ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए मेरठ चला आया और लालकुर्ती इलाके में किराए पर कमरा ले कर रहने लगा. सुनील से उस का दोस्ताना भी बना रहा और संपर्क भी. उधर सुनील नितिन और पूजा के मुद्दे पर जितना सोचता उस की परेशानी उतनी ही बढ़ जाती. जिंदगी की राहों में मिलनाबिछड़ना कोई नई बात नहीं होती.

यूं भी इंसान की जिंदगी और रिश्ते ठीक वैसे नहीं होते जैसे वह खुद चाहता है. कुछ लोग विपरीत स्थितियों से भी संतुलन बैठा कर अपनी राह आसान कर लेते हैं, लेकिन कुछ ऐसा नहीं कर पाते. सुनील भी कुछ ऐसा ही था. वह नितिन को अपना सब से बड़ा दुश्मन मानता था. यह बात अलग थी कि नितिन को इस का अहसास भी नहीं था. यदाकदा वह सुनील से हालचाल पूछने के लिए फोन कर लिया करता था.

जिंदगी का एक सच यह भी है कि खूबसूरत यादें जल्दी नहीं भूली जातीं. सुनील ने पूजा की खूबसूरत यादों की नींव रख कर ख्वाबों का जो खूबसूरत आशियाना बनाया था वह उस की मुट्ठी से रेत की तरह फिसल गया था. यह अलग बात है कि यह उस का एकतरफा जुनून था. अपने ख्वाबों को पूरा करने के लिए अब वह बुरी कल्पनाएं करने लगा था. एक दिन वह मेरठ आया, तो काफी परेशान था.

उस की परेशानी भांप कर वासिफ ने पूछा तो वह रोष में बोला, ‘‘मैं नितिन को रास्ते से हटाना चाहता हूं. चाहे जो भी हो, अब मैं पूजा को पा कर ही रहूंगा. नितिन मेरे रास्ते से हट जाए तो सब ठीक हो जाएगा. तू इस काम में मेरा साथ दे.’’

दोस्ती की वजह से वासिफ इनकार करने की स्थिति में नहीं था. फिर भी उस ने संदेह जाहिर करते हुए कहा, ‘‘हम पकड़े गए तो कैरियर चौपट हो जाएगा.’’

‘‘ऐसा नहीं होगा, हम पूरी प्लानिंग के साथ काम करेंगे.’’ सुनील की यह बहुत ही घटिया सोच थी. लेकिन उस के सिर पर जुनून सवार था. वासिफ उस का साथ देने को तैयार हो गया. दोनों ने मिल कर नितिन की हत्या की योजना तैयार की. योजनाबद्ध ढंग से कुछ इस तरह योजना बनाई कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. सुनील ने वासिफ से कहा कि वह नितिन से बात करता रहेगा ताकि उसे शक न हो. नितिन ने उन दोनों को अपना दूसरा नंबर दे रखा था. बात कर के सुनील वापस हिमाचल चला गया.

अक्तूबर के चौथे सप्ताह में वह मेरठ आया. योजना के अनुसार वह अपना मोबाइल हिमाचल में ही छोड़ आया था ताकि उस की लोकेशन वहीं मिले. 24 अक्तूबर की सुबह वासिफ व सुनील मोटरसाइकिल से नितिन के कालेज के गेट पर पहुंच कर उस के आने का इंतजार करने लगे. उस वक्त सुनील वहां से हट गया था. इस काम के लिए वासिफ अपने बहनोई की मोटरसाइकिल मांग कर लाया था. नितिन आया तो वासिफ को देख कर रुक गया.

औपचारिक बातचीत के बाद वासिफ बोला, ‘‘नितिन ट्रेन से मेरा कुछ सामान आ रहा है उसे लेने के लिए चलना है. सुनील भी आया हुआ है तीनों चलते हैं. इस बहाने थोड़ा घूमनाफिरना भी हो जाएगा.’’

नितिन उस की चाल को समझ नहीं पाया. वह चलने को तैयार हो गया. वासिफ उसे पीछे बैठा कर चल दिया. सुनील उन्हें थोड़ी दूर आगे मिल गया. सब से पहले तीनों नितिन के कमरे पर गए. वहां नितिन ने कपड़े बदले और जेब में पर्स डाल कर उन के साथ चल दिया. वहां से तीनों कैंट रेलवे स्टेशन पहुंचे. वहां पहुंच कर वासिफ ने कहा कि उन का सामान सिटी स्टेशन पर आएगा. इसलिए उन्हें वहीं चलना होगा.

वहां  ट्रेन से चलेंगे. दोनों स्टेशनों के बीच चंद मिनट का फासला था. वे तीनों मुजफ्फरनगर की तरफ से आने वाली ट्रेन में सवार हो गए. सुनील और वासिफ की योजना थी कि नितिन को चलती रेल से धक्का दे कर गिरा देंगे, इस से उस की मौत हो जाएगी और इस तरह उस की हत्या हादसा लगेगी.

जब ट्रेन चली तो तीनों दरवाजे पर खड़े हो गए. नितिन को इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि वह मौत के दरवाजे पर खड़ा है. इसी बीच दूसरी पटरी पर विपरीत दिशा से जालंधर एक्सप्रेस आई, तो दोनों ने उस का मोबाइल और पर्स निकाल कर उसे धक्का दे दिया. नितिन डिब्बे से टकरा कर नीचे गिर गया. यह इत्तफाक ही था कि उन्हें ऐसा करते किसी ने नहीं देखा था. कुछ ही देर में अगले स्टेशन पर उतर कर वह दोनों यह जानने के लिए वापस आए कि नितिन मरा या नहीं.

जब वे वहां पहुंचे तो उन्होंने देखा कि लोग नितिन के आसपास खड़े थे. वह बुरी तरह घायल और बेहोश था. स्टेशन चूंकि वहां से पास ही था इसलिए आननफानन में एंबुलेंस बुला ली गई थी. घायल नितिन को जिला अस्पताल ले जाया गया. पीछेपीछे सुनील और वासिफ भी मोटरसाइकिल से वहां पहुंच गए. जब नितिन को एंबुलेंस से मेडिकल ले जाया जा रहा था तो वासिफ ने उसे टैम्पों से ले जाने की बात कही थी. लेकिन वहां मौजूद लोगों ने मना कर दिया था.

दरअसल वे दोनों टैंपों से ले जाने के बहाने रास्ते में ही गला दबा कर उस की हत्या कर देना चाहते थे. बाद में दोनों अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में पहुंचे. वहां लोगों की आवाजाही देख कर उन्हें अपनी योजना विफल होती नजर आई. इसलिए थोड़ा घूम कर वह वापस आ गए.

अस्पताल से लौट कर सुनील ने एक उस्तरे का इंतजाम किया. फिर शाम को वह इमरजेंसी वार्ड में पहुंचा. वासिफ मोटरसाइकिल लिए बाहर ही खड़ा रहा. सुनील को वहां के लोगों से यह बात पता चल गई थी कि सुबह तक नितिन को होश आ जाएगा. इस से वह परेशान हो उठा. वह जानता था कि अगर नितिन को होश आ गया तो दोनों फंस जाएंगे. इसलिए वह हर हाल में उसे खत्म कर देना चाहता था. इसलिए वह आसपास ही मंडराता रहा. तभी तीमारदार रविंद्र के पूछने पर उस ने अपना नाम सचिन बताया था.

रात साढ़े 3 बजे सुनील को मौका मिल गया. वहां भरती मरीज और उन के मरीज तीमारदार नींद के आगोश में थे. वह दबे पांव अंदर गया और उस्तरे से नितिन की गरदन काट कर बाहर आ गया. नितिन की हत्या कर के सुनील व वासिफ ने उस का मोबाइल पुलिस लाइन के नजदीक एक गंदे नाले में फेंक दिया और कमरे पर पहुंच कर आराम किया. उस्तरा व नितिन का पर्स वासिफ के कमरे पर ही छोड़ कर सुनील अगले दिन हिमाचल प्रदेश चला गया.

सुनील को उम्मीद थी कि पुलिस नितिन की हत्या का राज कभी नहीं खोल पाएगी. क्योंकि उन लोगों ने अपना काम बेहद चालाकी से किया था. लेकिन यह उन की गलतफहमी थी. देर से ही सही पर वह पुलिस की पकड़ में आ गए. विस्तृत पूछताछ के बाद पुलिस ने उन की निशानदेही पर वासिफ के कमरे से हत्या में इस्तेमाल किया गया उस्तरा और नितिन का पर्स बरामद कर लिया.

नितिन के घर वालों को भी इस की खबर दे दी गई. वे भी मेरठ आ गए. अगले दिन पुलिस ने दोनों को अदालत पर पेश किया जहां से उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक आरोपियों की जमानत नहीं हो सकी थी और पुलिस आरोपपत्र अदालत में दाखिल करने की तैयारी कर रही थी. सुनील के अविवेकपूर्ण रवैये ने न सिर्फ एक परिवार का चिराग बुझा दिया बल्कि अपना कैरियर भी चौपट कर लिया.

(कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित कहानी में पूजा नाम परिवर्तित है.)